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सप्तम अध्ययन : वाक्यशुद्धि
३७२. सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुनिट्ठिए सुलट्ठि त्ति,
सुच्छिन्ने सुडे सावज्जं वज्जए
मडे । मुणी ॥ ४१ ॥
३७३. पयत्तपक्के त्ति व पक्कमालवे, पयत्तछिन्ने तिx व छिन्नमालवे । पयत्तलट्ठेत्ति + व कम्महेउयं पहारगाढे त्ति व गाढमालवे ॥ ४२ ॥ ३७४. सव्वक्सं परग्धं वा अउलं नत्थि एरिसं । अचक्कियमवत्तव्वं अचिंतंx चेव णो ॥ ४३ ॥ ३७५. सव्वमेयं वइस्सामि सव्वमेयं अणुवी सव्वं सव्वत्थ एवं
ति नो वए । भासेज्ज पण्णवं ॥ ४४ ॥
३७६. सुक्कीयं वा
अकेज्जं
सुविक्की
इमं गिण्ह इमं मुंच
पणियं,
वा, कए व समुन्ने अणवजं
धीरो
आस
एहि
x सय चिट्ठ वयाहि त्ति,
३७७. अप्पग्घे वा महग्घे पणिय
पाठान्तर
३७८. तहेवाऽसंजयं
नवे
केजमेव वा ।
नो वियागरे ॥ ४५ ॥
विक्कए वि वा ।
x पयत्तछिन्नत्ति । अविक्किय ।
[३७१] इसी प्रकार (किसी के द्वारा किसी प्रकार का) सावद्य (पापयुक्त) व्यापार ( प्रवृत्ति या क्रिया) दूसरे के लिए किया गया हो, (वर्तमान में) किया जा रहा हो, अथवा (भविष्य में किया जाएगा) ऐसा जान कर (या देख कर, यह ठीक किया है, इस प्रकार का ) सावद्य (पापयुक्त वचन) मुनि न बोले ॥ ४० ॥
+ पयत्तलट्ठित्ति । x अचिअत्तं ।
वियागरे ॥ ४६ ॥
करेहि वा ।
भासेज पण्णवं ॥ ४७॥
[३७२] (कोई सावद्यकार्य हो रहा हो तो उसे देखकर) (यह प्रीतिभोज आदि कार्य) बहुत अच्छा किया ( यह भोजन आदि) बहुत अच्छा पकाया है, (इस शाक आदि को या वन को) बहुत अच्छा काटा है, अच्छा हुआ (इस कृपण का धन) हरण हुआ (चुराया गया), (अच्छा हुआ, वह दुष्ट) मर गया, (दाल या सत्तु में घी आदि रस, अथवा यह मकान आदि) बहुत अच्छा निष्पन्न हुआ है, (यह कन्या) अतीव सुन्दर ( एवं विवाहयोग्य हो गई) है, इस प्रकार के सावद्य वचनों का मुनि प्रयोग न करे ॥ ४१ ॥
[३७३] (प्रयोजनवश कभी बोलना पड़े तो ) सुपक्व (भोजनादि) को 'यह प्रयत्न से पकाया गया है' इस प्रकार कहे, छेदन किये हुए (शाक आदि या वनादि) को 'प्रयत्न से काटा गया है' इस प्रकार कहे, (शृंगार आदि) कर्म - (बन्धन - ) हेतुक (कन्या के सौन्दर्य) को (देखकर) कहे (कि इस कन्या का ) प्रयत्नपूर्वक लालन-पालन किया गया है, तथा गाढ (घायल हुए व्यक्ति) को यह प्रहार गाढ है, ऐसा (निर्दोष वचन) बोले ॥ ४२ ॥
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[३७४] (क्रय-विक्रय के प्रसंग में साधु या साध्वी) (यह वस्तु) सर्वोत्कृष्ट है, यह बहुमूल्य (महार्थ) है, यह अतुल (अनुपम) है, इसके समान दूसरी कोई वस्तु नहीं है, (यह वस्तु बेचने योग्य नहीं है, अथवा ) ( इसका
* पहारगाढ त्ति । x सयं ।