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सप्तम अध्ययन : वाक्यशुद्धि
२५९ 'थूले' आदि पदों का भावार्थ थूले-स्थूल-मांस की अधिकता के कारण मोटा या तगड़ा। पमेइलेजिसकी मेद (चर्बी) बढ़ी हुई हो। वझे : दो रूप : दो अर्थ (१) वध्य वध करने योग्य, (२) वाह्य- वहन करने योग्य। पाइमे—(१) पाक्य—पकानेयोग्य अथवा कालप्राप्त। (२) पात्य—पातनयोग्य अर्थात् —देवता आदि को बलि देने योग्य। परिवूढ़े : दो रूप दो अर्थ (१) परिवृद्ध-अत्यन्त वृद्ध, (२) परिवूढ–समर्थ। संजाएसंजात युवा हो गया है, यह सुन्दर है। पीणिए-प्रीणित—आहारादि से तृप्त या हृष्टपुष्ट । उवचिए-उपचितमांस के उपचय से उपचित अथवा पुष्ट । महाकाए–महाकाय-प्रौढ़। दुज्झाओ : दोह्या : दो अर्थ (१) दुहनेयोग्य, (२) दोहनकाल–जैसे इन गायों के दुहने का समय हो गया है। दम्मा दम्या दमन करने योग्य, बधिया (खस्सी) करने योग्य या नाथने योग्य। वाहिमा वाह्य गाड़ी का भार ढोने में समर्थ। रहजोग्गरथयोग्य-रथ में जोतने योग्य। गोरहग : दो अर्थ (१) तीन वर्ष का बछड़ा अथवा (२) जो बैल रथ में जुत गया, वह । जुवंगवे युवा बैल अर्थात् —चार वर्ष का बैल।संवहणे संवहन–धुरा को वहन करने योग्य । अर्थात् रथ को चलाने वाले बैल।९ वृक्षों एवं वनस्पतियों के विषय में अवाच्य एवं वाच्य का निर्देश
३५७. तहेव गंतुमुजाणं पव्वयाणि वणाणि य ।
रुक्ख महल्ल पेहाए, नेवं भासेज पण्णवं ॥ २६॥ ३५८. अलं पासाय-खंभाणं- तोरणाण गिहाण य ।
फलिहऽग्गल-नावाणं अलं उदगदोणिणं ॥ २७॥ ३५९. पीढए चंगबेरे य नंगले मइयं सिया ।।
जंतलट्ठी व नाभी वा, गंडिया व अलं सिया ॥ २८॥ ३६०. आसणं सयणं जाणं होजा वा किंचुवस्सए ।
भूओवघाइणिं भासं, नेवं भासेज पण्णवं ॥ २९॥ ३६१. तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य ।
रुक्खा महल्ल पेहाए एवं भासेज पण्णवं ॥ ३०॥ ३६२. जाइमंता इमे रुक्खा दीहा वट्टा महालया ।
पयायसासा विडिमा वए दरिसणित्ति य ॥ ३१॥ १९. (क) दशवै. पत्राकार (आचार्य श्री आत्मारामजी महाराज), पृ. ६६८, ६७१
आचारांग चूला, ४/२५ वृत्ति अगस्त्यचूर्णि, पृ. १७०
हारि. वृत्ति, पत्र २१७ (ख) गोजोग्गा रहा गोरहजोगत्तणेण गच्छंति...गोपोतलगा।
-अ.चू, पृ. १७० _ 'गोरटुगं ति त्रिहायणं बलीवर्दम् ।'
-सूत्रकृतांग १/४/२/१३ वृ. पाठान्तर- * तोरणाणि गिहाणि य ।