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दशवैकालिकसूत्र किसी का अनुमोदन भी नहीं करूंगा।
भंते! मैं उस (अतीत की अप्काय-विराधना) से निवृत्त होता हूं उसकी निन्दा करता हूं, (गुरुसाक्षी से) गर्दा करता हूं और आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूं ॥ १९॥
[५१] संयत, विरत, प्रतिहत और प्रत्याख्यात-पापकर्मा वह भिक्षु या भिक्षुणी, दिन में या रात में, अकेले (या एकान्त) में या परिषद् में, सोते या जागते, अग्नि को, अंगारे को, मुर्मुर (बकरी आदि.की मींगनों की आग) को, अर्चि (टूटी हुई अग्नि-ज्वाला) को, ज्वाला को अथवा अलात को, शुद्ध अग्नि को, अथवा उल्का को, न उत्सिंचन करे (लकड़ी आदि देकर सुलगाए), न घट्टन करे, न उज्ज्वालन करे, [न प्रज्वालन करे], और न निर्वापन करे (बुझाए), (तथा) न दूसरों से उत्सेचन कराए, न घट्टन कराए, न उज्ज्वालन कराए, (न प्रज्वालन कराए), और न निर्वापन कराए (बुझवाए), एवं न उत्सेचन करने, घट्टन करने, उज्ज्वालन करने, (प्रज्वालन करने) और निर्वापन करने वाले अन्य किसी का अनुमोदन करे, (भंते! मैं इस प्रकार अग्निकाय की विराधना से विरत होने की प्रतिज्ञा) यावज्जीवन के लिए, तीन करण, तीन योग से (करता हूं)। (अर्थात् —) मैं मन से, वचन से
और काया से (अग्निसमारम्भ) नहीं करूंगा, न दूसरों से (अग्निसमारम्भ) कराऊंगा और न (अग्नि-समारम्भ) करने वाले का अनुमोदन करूंगा।
भंते! मैं उस (अतीत की अग्नि-विराधना) से निवृत्त होता हूं, उसकी निन्दा करता हूं, गर्दा करता हूं और उस आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूं ॥ २०॥
[५२] संयत, विरत, प्रतिहत और प्रत्याख्यातपापकर्मा, वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी, दिन में या रात में, अकेले (एकान्त) में या परिषद् में, सोते या जागते, श्वेत चामर से, या पंखे से, अथवा ताड़ के पत्तों से बने हुए पंखे से, पत्र (किसी भी पत्ते या कागज आदि के पतरे) से, शाखा से, अथवा शाखा के टूटे हुए खण्ड से, अथवा मोर की पांख से, मोरपिच्छी से, अथवा वस्त्र से या वस्त्र के पल्ले से, अपने हाथ से या मुंह से, अपने शरीर को अथवा किसी बाह्य पुद्गल को (स्वयं) फूंक न दे, (पंखे आदि से) हवा न करे, दूसरों से फूंक न दिलाए, न ही हवा कराए तथा फूंक मारने वाले या हवा करने वाले अन्य किसी का भी अनुमोदन न करे। (भंते! वायुकाय की इस प्रकार की विराधना से निरत होने की प्रतिज्ञा) यावज्जीवन के लिए तीन करण, तीन योग से (करता हूं।) अर्थात् मैं (पूर्वोक्त वायुकाय-विराधना) मन से, वचन से और काया से, स्वयं नहीं करूंगा, न दूसरों से कराऊंगा और करने वाले अन्य किसी का भी अनुमोदन नहीं करूंगा।
____ भंते! मैं उस (अतीत में हुई वायुकाय-विराधना) से निवृत्त होता हूं, उसकी (आत्मसाक्षी से) निन्दा करता हूं, (गुरुसाक्षी से) गर्दा करता हूं और उस आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूं ॥ २१॥
[५३] संयत, विरत, प्रतिहत और प्रत्याख्यातपापकर्मा, वह भिक्षु या भिक्षुणी, दिन में अथवा रात में, अकेले (एकान्त) में हो या परिषद् (समूह) में हो, सोया हो या जागता हो, बीजों पर अथवा बीजों पर रखे हुए पदार्थों पर, फूटे हुए अंकुरों (स्फुटित बीजों) पर अथवा अंकुरों पर रखे हुए पदार्थों पर, पत्रसंयुक्त अंकुरित वनस्पतियों पर अथवा पत्रयुक्त अंकुरित वनस्पति पर रखे हुए पदार्थों पर, हरित वनस्पतियों पर या हरित वनस्पति पर रखे हुए पदार्थों पर, छिन्न (सचित्त) वनस्पतियों पर, अथवा छिन्न-वनस्पति पर रखे हुए पदार्थों पर, सचित्त कोल (अण्डों एवं घुन) के संसर्ग से युक्त काष्ठ आदि पर, न चले, न खड़ा रहे, न बैठे और न करवट बदले (या सोए), दूसरों को न