________________
१६२
दशवकालिकसूत्र
कि ऐसा आहार में ग्रहण नहीं कर सकता ॥ ३७॥
[१२०] हरिताल से भरे हुए हाथ, कड़छी अथवा बर्तन से आहार देती हुई दात्री को साधु निषेध कर दे कि ऐसा आहार मेरे लिए ग्राह्य (कल्पनीय) नहीं है ॥ ३८॥
[१२१] हिंगलू से भरे हाथ, कड़छी या बर्तन से आहार देती हुई महिला को साधु निषेध कर दे कि मेरे लिए ऐसा आहार ग्रहण करने योग्य नहीं है ॥ ३९॥
[१२२] मेनसिल से युक्त हाथ, कड़छी या बर्तन से आहार देती हुई दात्री को साधु निषेध कर दे कि मैं ऐसा आहार नहीं ले सकता ॥ ४०॥
[१२३] अंजन से युक्त हाथ, कड़छी या बर्तन से आहार देती हुई महिला से साधु कहे कि मैं ऐसा आहार ग्रहण नहीं कर सकता ॥४१॥
[१२४] सचित्त लवण से भरे हुए हाथ, कड़छी या बर्तन से आहार देती हुई स्त्री को साधु निषेध कर दे कि मैं ऐसा आहार ग्रहण नहीं कर सकता ॥ ४२॥
[१२५] सचित्त गैरिक (गेरू) से सने हुए हाथ, कड़छी अथवा बर्तन से आहार देती हुई महिला को साधु स्पष्ट निषेध कर दे कि ऐसा आहार मेरे लिए ग्राह्य नहीं है ॥४३॥ __[१२६] सचित्त पीली मिट्टी (वर्णिका) से भरे हुए हाथ, कड़छी अथवा भाजन से आहार देती हुई महिला को साधु इन्कार कर दे कि मैं ऐसा आहार नहीं ले सकता ॥४४॥ ___[१२७] सचित्त सफेद मिट्टी (श्वेतिका) से सने हुए हाथ; कड़छी या बर्तन से आहार देती हुई स्त्री को मुनि निषेध कर दे कि ऐसा आहार मेरे लिए ग्रहण करने योग्य नहीं है ॥ ४५ ॥
[१२८] सचित्त सौराष्ट्रिका (फिटकरी) से युक्त हाथ से, कड़छी से या बर्तन से आहार देती हुई स्त्री को साधु निषेध कर दे कि ऐसा आहार मेरे लिए ग्राह्य नहीं है ॥ ४६॥
[१२९] तत्काल पीसे हुए आटे (पिष्ट) से सने हुए हाथ, कड़छी या बर्तन से आहार देती हुई महिला से साधु स्पष्ट कह दे कि ऐसा आहार में नहीं ले सकता ॥४७॥
[१३०] तत्काल कूटे हुए धान्य के भूसे या छिलके से युक्त हाथ, कड़छी या बर्तन से आहार देती हुई स्त्री को साधु निषेध कर दे कि मैं इस प्रकार का आहार नहीं ले सकता ॥ ४८॥
[१३१] चाक से ताजे बनाये हुए फलों के कोमल टुकड़ों से युक्त हाथ से, कड़छी से या बर्तन से आहार देती हुई दात्री से साधु कह दे कि मैं इस प्रकार का आहार ग्रहण नहीं कर सकता ॥ ४९ ॥
[१३२] जहां (जिस आहार के लेने पर) पश्चात्कर्म (साधु को आहार देने के बाद तुरंत सचित्त जल से हाथ धोने) की संभावना हो, वहां असंसृष्ट (भक्त-पान से अलिप्त) हाथ, कड़छी अथवा बर्तन से दिये जाने वाले आहार को ग्रहण करने की इच्छा न करे ॥५०॥
[१३३] (किन्तु) संसृष्ट (भक्त-पान से लिप्त) हाथ से, कड़छी से या बर्तन से (साधु को) दिया जाने वाला आहार यदि एषणीय हो तो मुनि लेवें ॥५१॥
विवेचन किस विधि से दिया जाने वाला आहार ग्रहण करे?— इससे पूर्व गाथाओं में इस विधि का उल्लेख था कि भिक्षार्थी मुनि स्वस्थान से निकल कर गृहस्थ के घर में कैसे प्रवेश करे, वहां कैसे और किस स्थान