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पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा
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[२१३] मुधादायी दुर्लभ हैं और मुधाजीवी भी दुर्लभ हैं। मुधादायी और मुधाजीवी दोनों सुगति को प्राप्त होते हैं ॥ १३१ ॥ — ऐसा मैं कहता हूं।
विवेचन — मुधादायी : व्याख्या— प्रत्युपकार या प्रतिफल की आकांक्षा रखे बिना निःस्पृह एवं निःस्वार्थ भाव से दान देने वाला मुधादायी है । मुधादायी निष्काम वृत्ति का दाता होता है। जो निष्काम वृत्ति से ही दानादि कार्य करता है और यह सोचता है कि मैं किसी पर उपकार नहीं करता, आदाता (लेने वाले) ने मुझ पर उपकार— अनुग्रह करके ही मुझ से लिया है और मुझे अनायास ही यह लाभ दिया है। साधु-साध्वियों को दान देने के लिए शास्त्र में भत्त-पाणं पडिलाभेमाणे - ( भक्त - पान देने का लाभ लेते हुए) कहा है। जहां दाता में दान देने का अहं आ गया, आदाता (साधु या साध्वी) से प्रतिफल की कामना आ गई या अन्य सांसारिक फलाकांक्षा आ गई, वहां निष्काम-निःस्वार्थ वृत्ति समाप्त हो जाती है। मुधाजीवी की व्याख्या पहले की जा चुकी है। ये दोनों बहुत ही दुर्लभ
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दो वि गच्छंति सोग्गइं इस प्रकार की निष्काम वृत्ति वाले दाता और आदाता आत्मार्थी साधु-साध्वी विरले मिलते हैं। इन दोनों को सुगति प्राप्त होती है। निष्कामवृत्ति के फलस्वरूप वे कर्मबन्धन करने के बजाय कर्मक्षय करते हैं। सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होने पर मोक्ष प्राप्त होता है। इसलिए सुगति का अर्थ मोक्षगति या सिद्धिगति है। अथवा कुछ शुभ कर्म शेष रह जाएं तो देवगति प्राप्त होती है। इस दृष्टि से सुगति का अर्थ – देवगति भी होत है | १०३
॥ पिण्डैषणा नामक पंचम अध्ययन का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ॥
१०२. (क) दशवै. ( आचार्य श्री आत्मारामजी म.), पृ. २४४ - २४५ (ख) दसवेयालियं (मुनि नथमलजी), पृ. २६०
१०३. (क) दशवै. आचारमणिमंजूषा, भाग १, पृ. ४९७
(ख) दशवै. (संतबालजी). प. ६०