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पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा
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में खड़ा रहे ? अब गाथा सूत्र १०९ से १३३ तक में यह वर्णन किया गया है कि किस विधि, कैसे दाता के द्वारा दिया जाने वाला आहार ग्रहण न करे, या ग्रहण करे ?
भिक्षादान में चार बातें विचारणीय- भिक्षा लेने-देने में विधि, द्रव्य, दाता और पात्र इन चारों की विशुद्धि का विचार किया जाता है । प्रस्तुत में द्रव्यशुद्धि और दातृशुद्धि दोनों का विचार किया गया 1
अकप्पियं, कप्पियं: व्याख्या— पिण्डैषणाप्रकरण में यत्र-तत्र ये दोनों शब्द व्यवहत हुए हैं। ये पारिभाषिक शब्द हैं। कल्प का प्रकरणसम्मत अर्थ है— नीति, आचार, मर्यादा, विधि अथवा समाचारी । अकल्प का अर्थ इसके विरुद्ध है अर्थात्कल्पनिषिद्ध या कल्प से असम्मत । इस दृष्टि से अकप्पियं ( अकल्पिक या अकल्पनीय ) एवं 'कप्पियं' (कल्पिक, कल्प्य या कल्पनीय) का अर्थ होता है— जो नीति, आचार, मर्यादा, विधि या समाचारी शास्त्र द्वारा निषिद्ध, अननुमत, या विरुद्ध हो वह अकल्पिक और जो शास्त्र द्वारा विहित, अनुमत या सम्मत हो, वह कल्पिक है । हरिभद्रसूरि ने कल्पिक का अर्थ — एषणीय और अकल्पिक का अर्थ — अनेषणीय किया है। यहां पूर्वोक्त नीति आदि से युक्त ग्राह्य, करणीय अथवा योग्य या शक्य को भी कल्प्य और इससे विपरीत को अकल्प्य बताया गया है । वाचक उमास्वाति की दृष्टि कोई भी कार्य एकान्तरूप से कल्प्य या अकल्प्य नहीं होता, जो कल्प्य कार्य सम्यक्त्व - हानि, ज्ञानादि के नाश और प्रवचन (शासन) निन्दा का कारण बनता हो, वह कल्प्य ही अकल्प्य बन जाता है। उमास्वाति के अनुसार - " जो कार्य ज्ञान, शील और तप का उपग्रहकारक और दोषों का निग्रहकर्ता हो, वह निश्चयदृष्टि से कल्प्य है और शेष अकल्प्य । " आगमसाहित्य में उत्सर्ग-उपवाद को दृष्टिगत रख कर महान् आचार्यों ने बताया है कि किसी विशेष परिस्थिति में कल्प्य और अकल्प्य का निर्णय देश, काल, पात्र (व्यक्ति), अवस्था, उपयोग और परिणाम - विशुद्धि का सम्यक् समीक्षण करके ही करना चाहिए, अन्यथा नहीं । निष्कर्ष यह है कि बहुश्रुत आगमधर के अभाव में साधु-सावियों को शास्त्रोक्त विधि - निषेधों का अनुसरण करना ही श्रेयस्कर है । प्रस्तुत गाथा (सूत्र १०९) में बताया है कि भिक्षाग्रहण करते समय अपनी विचक्षण बुद्धि से कल्प्य - अकल्प्य का विचार करके अकल्प्य को छोड़ कर कल्प्य (एषणीय, शास्त्रविहित एवं भिक्षासम्बन्धी ४२ दोष रहित) आहार ही ग्रहण करना चाहिए । ४३
देंतियं : देती हुई : तात्पर्य - प्रायः महिलाएं ही भिक्ष दिया करती हैं, इसलिए यहां 'दाता' के रूप में
४३.
(क) पाइय-सद्द - महण्णवो
(ख) जिनदास चूर्णि, पृ. १७७
(ग) कल्पिकं— एषणीयं, अकल्पिकं— अनैषणीयम् ।
(घ) अकप्पितं बायालीसाए अण्णतरणे एसणादोसेण दुट्टं, कप्पितं सेसेणादोसपरिसुद्धं ।
(ङ) यज्ज्ञानशीलतपसामुपग्रहं निग्रहं च दोषाणाम् । कल्पयति निश्चये यत्तत्कल्प्यमकल्प्यमवशेषम् ॥ (च) यत्पुनरुपघातकरं सम्यक्त्व-ज्ञान- शील- योगानाम् । तत्कल्प्यमप्यकल्प्यं प्रवचनकुत्साकरं यच्च ॥ १४४॥ देशं कालं क्षेत्रं पुरुषमवस्थामुपयोगशुद्धपरिणामान् । प्रसमीक्ष्य भवति कल्प्यं, नैकान्तात्कल्प्यते कल्प्यम् ॥ १४६ ॥
— हारि वृत्ति, पत्र १६८
- अगस्त्यचूर्णि, पृ. १०७
- प्र. प्र. १४३
वही, १४४-१४६