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चतुर्थ अध्ययन : • षड्जीवनिका
वा, पिवीलयं वा, हत्थंसि वा, पायंसि वा, बाहुंसि वा ऊरुंसि वा, उदरंसि वा, सीसंसि वा, वत्थंसि वा, पडिग्गहंसि वा, कंबलंसि वा, पायपुंछणंसि वा, रयहरणंसि वा, गोच्छगंसि वा, उंडगंसि वा दंडगंसि वा, पीढगंसि वा, फलगंसि वा, सेज्जंसि वा, संथारगंसि वा, अन्नयरंसि वा, तहप्पगारे उवगरणजाए तओ संजयामेव पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्ज्यि पमज्जिय एगंतमवणेज्जा, नो णं संघायमावज्जेज्जा ॥ २३॥
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[४९] (पांच महाव्रतों को धारण करने वाला) वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी, जो कि संयत है, विरत है, जो पापकर्मों का निरोध और प्रत्याख्यान कर चुका है, दिन में या रात में, एकाकी (या एकान्त में) हो या परिषद् में, सोते अथवा जागते, पृथ्वी को, भित्ति ( नदी तट की मिट्टी) को, शिला को, ढेले (या पत्थर) को, सचित रज से संसृष्ट काय, या सचित्त रज से संसृष्ट वस्त्र को, हाथ से, पैर से, काष्ठ से, अथवा काष्ठ के खण्ड (टुकड़े) से, अंगुलि से, लोहे की सलाई ( शलाका) से, शलाकासमूह (अथवा सलाई की नोक) से, न आलेखन करे, न विलेखन करे, न घट्टन करे, और न भेदन करे, दूसरे से न आलेखन कराए, न विलेखन कराए, न घट्टन कराए और न भेदन कराए . तथा आलेखन, विलेखन, घट्टन और भेदन करने वाले अन्य किसी का अनुमोदन न करे, (भंते! मैं पृथ्वीकाय की पूर्वोक्त प्रकार की विराधना से विरत होने की प्रतिज्ञा) यावज्जीवन के लिए, तीन करण तीन योग से (करता हूं।) (अर्थात् — ) मैं (स्वयं पृथ्वीकाय - विराधना) नहीं करूंगा, न दूसरों से कराऊंगा और न पृथ्वीकाय - विराधना करने वाले अन्य किसी का अनुमोदन करूंगा ।
भंते! मैं उस (अतीत की पृथ्वीकाय - विराधना) से निवृत्त होता हूं, उसकी ( आत्मसाक्षी से) निन्दा करता हूं, (गुरुसाक्षी से) गर्हा करता हूं, (उक्त) आत्मा का व्युत्सर्ग करता हूं ॥ १८॥
[५० ] वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी, जो कि संयत है, विरत है तथा जिसने पापकर्मों का निरोध (प्रतिहत ) और प्रत्याख्यान किया है, दिन में अथवा रात में, एकाकी (या एकान्त में) हो या परिषद् में, सोते या जागते, उदक (कुंए आदि के सचित्त जल) को, ओस को, हिम (बर्फ) को, धुंअर को, ओले को, भूमि को भेद कर निकले हुए जलकण को, शुद्ध उदक (अन्तरिक्ष - जल) को, अथवा जल से भीगे हुए शरीर को, या जल से भीगे हुए वस्त्र को, जल से स्निग्ध शरीर को अथवा जल से स्निग्ध वस्त्र को न (आमर्श) एक बार थोड़ा-सा स्पर्श करे न बार-बार अथवा अधिक संस्पर्श करे, न आपीड़न (थोड़ा-सा या एक बार भी पीड़न) करे, या न प्रपीडन करे (बारबार या अधिक पीडन करे), अथवा न आस्फोटन करे (एक बार या थोड़ा-सा भी झटकाए) और न प्रस्फोटन करे (बारबार या अधिक झटकाए), अथवा न आतापन करे ( एक बार या थोड़ा-सा भी आग में तपाए), और न प्रतापन करे (बार-बार या अधिक तपाए), (इसी प्रकार ) दूसरों से न आमर्श कराए, (और) न संस्पर्श कराए अथवा न आपीडन कराए (और) न प्रपीडन कराए अथवा न आस्फोटन कराए (और) न प्रस्फोटन कराए, अथवा न आतापन कराए (और) न प्रतापन कराए, ( एवं ) न आमर्श, संस्पर्श, आपीडन, प्रपीडन, आस्फोटन, प्रस्फोटन, आतापन या प्रतापन करने वाले अन्य किसी का अनुमोदन करे। (भंते! मैं अप्काय- विराधना से विरत होने की ऐसी प्रतिज्ञा) थावज्जीवन के लिए, तीन करण- तीन योग से (करता हूं।) (अर्थात् ) मैं मन से, वचन से, काया से, ( अप्काय की पूर्वोक्त प्रकार से विराधना ) स्वयं नहीं करूंगा, (दूसरों से) नहीं कराऊंगा और करने वाले अन्य
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पाठान्तर— 'अवक्कमेज्जा ।'