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दशवैकालिकसूत्र
[९५] मुनि ने उन्नत हो (ऊंचा मुंह) कर, न अवनत हो (नीचा झुक) कर, न हर्षित होकर, न आकुल होकर, (किन्तु) इन्द्रियों का अपने-अपने भाग विषय के अनुसार दमन करके चले ॥ १३॥
[९६] उच्च-नीच कुल में गोचरी के लिए मुनि सदैव जल्दी-जल्दी (दबादब) न चले तथा हंसी-मजाक करता हुआ और बोलता हुआ न चले ॥१४॥
[९७] (गोचरी के लिए) जाता हुआ (मुनि) झरोखा (आलोक), फिर से चिना हुआ (थिग्गल) द्वार, संधि (चोर आदि के द्वारा लगाई हुई सेंध) तथा जलगृह (परीडा) को न देखे (तथा) शंका उत्पन्न करने वाले अन्य स्थानों को भी छोड़ दे ॥ १४॥
[९८] राजा के, गृहपतियों के तथा आरक्षिकों के रहस्य (गुप्त मंत्रणा करने) के उस स्थान को (या अन्तःपुर को) दूर से ही छोड़ दे, जहां जाने से संक्लेश पैदा हो ॥ १६॥
विवेचन भिक्षाटन के मार्ग में वर्जित स्थान- भिक्षाटन के लिए जाते समय मुनि को ऐसे स्थानों को दूर से ही टाल देना चाहिए, जिनके निकट जाने या जिन्हें ताक-ताककर देखने से उसके प्रति चोर, गुप्तचर, पारदारिक (लम्पट) या शिशुहरणकर्ता आदि होने की आशंका हो। ऐसे स्थानों में जाने से मुनि को भी शंकास्पद व्यक्ति समझ कर यंत्रणा दी जाए या कष्ट भोगना पड़े। अतः ऐसे शंकास्थानों का दूर से ही त्याग कर देना चाहिए।
आलोयं आदि शब्दों के अर्थ- आलोयं घर के गवाक्ष, झरोखा या खिड़की, जहां से बाहरी प्रदेश को देखा जा सके। थिग्गलं दारं घर का वह दरवाजा, जो किसी कारण से पुनः चिना गया हो।
संधि : दो अर्थ— दो घर के बीच का अन्तर (गली) अथवा (२) सेंध (दीवार की ढंकी हुई सुराख), दगभवणाणिः अनेक अर्थ (१) जलगृह, (२) सार्वजनिक स्नानगृह (या स्नानमण्डप सर्वसाधारण के स्नान के लिए). (३) जलमंचिका (जहां से स्त्रियां जल भरकर ले जाती हैं), राजा, गहंपति (इभ्य श्रेष्ठी आदि) आदि प्रसिद्ध हैं। संडिब्ध जहां बच्चे विविध खेल खेल रहे हों। दित्तं गोणं मतवाला सांड। कुत्ता, प्रसूता गौ, उन्मत्त सांड, हाथी, घोड़ा, बालकों का क्रीड़ास्थल, कलह और युद्ध, इनका दूर से वर्जन साधु-साध्वी को इसलिए करना चाहिए कि इनके पास जाने से ये काट सकते हैं, सींग मार सकते हैं, उछाल सकते हैं। कलह (वाचिक संघर्ष)
और युद्ध (शस्त्रादि से संघर्ष) चल रहा हो, ऐसे स्थानों में जाने से विपक्षी व्यक्ति मन में साधु-साध्वी को गुप्तचर या विपक्ष समर्थक आदि समझ कर यंत्रणा दे सकते हैं अथवा कलहादि न सह सकने से बीच में बोल सकता
२२. (क) आलोगो-गवक्खगो।
(ख) थिग्गलं नाम जं घरस्स दारं पुव्वमासी तं पडिपूरियं । (ग) संधी जमलघराणं अन्तरं। (घ) संधी खत्तं पडिढक्किययं । (ङ) पाणियकम्मंतं, पाणियमंचिका, हाणमंडपादि दगभवणाणि। (च) दगभवणाणि–पाणियघराणि ण्हाणगिहाणि वा ।
(छ) शंकास्थानमेतदवलोकादि। २३. (क) संडिब्भं—बालक्रीडास्थानम् ।
(ख) संडिब्भं नाम बालरूवाणि रमंति धणूहिं ।
-अ. चू., पृ. १०३ -जिन. चूर्णि, पृ. १७४
-अ. चू., पृ. १०३ —जिन. चूर्णि, पृ. १७४ -अग. चूर्णि, पृ. १०३
—हारि. वृत्ति, पत्र १६६
—हारि. टीका, पृ. १६६ -जिन. चूर्णि, पृ. १७१-१७२