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निन्दा-प्रशंसादि से उत्पन्न) पंच-दोष (१) अंगार, (२) धूम, (३) संयोजन, (४) प्रमाणातिरेक
और (५) कारणातिक्रान्त। ये ४७ दोष आगम साहित्य में एकत्र कहीं भी प्रतिपादित नहीं हैं किन्तु विविध आगमों में बिखरे हुए हैं। इन दोषों में से अधिकांश का उल्लेख प्रस्तुत अध्ययन में है। इसके अतिरिक्त किस समय, किस विधि से, किस मार्ग से, किस प्रकार भिक्षाचर्या के लिए साधु-साध्वी प्रस्थान करे? मार्ग में पड़ने वाले पृथ्वी, जल, वनस्पति तथा अन्य जीवों की रक्षा कैसे करे, कौन-से घर में, कैसे प्रवेश करे? कहां कैसे खड़ा रहे ? किससे किस प्रकार का आहार ले या न ले ? आहार-पानी की गवेषणा कैसे करे ? भिक्षाप्राप्त आहार का संविभाग कैसे करे ? मुक्तशेष या अतिरिक्त आहार का परिष्ठापन कैसे करे? आदि समस्त पिण्डैषणा सम्बन्धी वर्णन दोनों उद्देशकों में किया गया है।
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९. (क) स्था. ९/६२ (ख) निशीथ उद्दे. १२
(घ) भगवती ७/१ (ङ) प्रश्न व्या. १/१५
(छ) उत्तराध्ययन २६/३२ (ज) भगवती ७/१ १०. दसवेयालियसुत्तं (मूलपाठ टिप्पणयुक्त), पृ. १९ से ३८ तक
(ग) आचारचूला १/२१ (च) दशवै. अ. ५, उ.१ (ब) पिण्डनियुक्ति