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दशवैकालिकसूत्र तेउक्कातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । . अणभिगत-पुण्ण-पावो ण सो उट्ठावणाजोग्गो ॥ ३॥ वाउक्कातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगत-पुण्ण-पावो ण सो उट्ठावणाजोग्गो ॥ ४॥ वणस्सतिकातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगत-पुण्ण-पावो ण सो उट्ठावणाजोग्गो ॥ ५॥ तसकातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगत-पुण्ण-पावो ण सो उट्ठावणाजोग्गो ॥ ६॥ पुढविक्कातिए जीवे सद्दहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगत-पुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो ॥ ७॥ आउक्कातिए जीवे सहहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगत-पुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो ॥ ८॥ तेउक्कातिए जीवे सहहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगत-पुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो ॥ ९॥ वाउक्कातिए जीवे सहहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगत-पुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो ॥ १०॥ वणस्सतिकातिए जीवे सद्दहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगत-पुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो ॥ ११॥ तसकातिए जीवे सद्दहती जो जिणेहि पण्णत्ते ।
अभिगत-पुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो ॥ १२॥*] [जो जिनेन्द्रों द्वारा प्ररूपित पृथ्वीकायिक जीवों (के अस्तित्व) में श्रद्धा नहीं करता, वह पुण्य-पाप से अनभिज्ञ होने के कारण (महाव्रतों के) उपस्थापन (आरोहण) के योग्य नहीं होता ॥ १॥
जो जिनेन्द्रों द्वारा प्ररूपित अप्कायिक जीवों (के अस्तित्व) में श्रद्धा नहीं करता, वह पुण्य-पाप से अनभिज्ञ होने के कारण उपस्थापन के योग्य नहीं होता ॥२॥
जो जिनेन्द्रों द्वारा प्ररूपित तेजस्कायिक जीवों (के अस्तित्व) में श्रद्धा नहीं करता, वह पुण्य-पाप से अनभिगत होने के कारण उपस्थापन के योग्य नहीं होता ॥३॥ ___जो जिनेन्द्रों द्वारा प्ररूपित वायुकायिक जीवों (के अस्तित्व) में श्रद्धा नहीं करता, वह पुण्य-पाप से
कोष्ठक के अन्तर्गत अंकित ये १२ गाथाएं कई आचार्य सूत्र (मूल) रूप में मानते हैं, कई इन गाथाओं को प्राचीनवृत्तिगत मानते हैं, ऐसा अगस्त्यसिंह स्थविर का मत है।
-सं.