Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
टीका - - ' कइ णं भंते' कति खलु भदन्त ! 'कम्मभूमीओ पन्नताओ' कर्मभूमयः प्रज्ञप्ताः कथिताः, कृषिवाणिज्यतपः संयमानुष्ठानादि प्रधाना भूमयः कर्मभूमयः । ताः कियत्यः ? इति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' हे गौतम ! 'पन्न
कम्मभूमीओ पन्नताओ' पञ्चदश कर्मभूमयः प्रज्ञप्ता इत्युत्तरम् पञ्चदशभेदमेव दर्शयति- 'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा 'पंच भरहाई' पञ्चभरतानि, 'पंच Rani' पञ्च देवतानि 'पंच महाविदेहाई' पञ्चमहाविदेहाः, त्रयाणां भरतैरवतमहाविदेहानां पञ्चसंख्यया गुणनेन पञ्चदशकर्मभूमयो भवन्तीति । कर्मभूमिं
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टीकार्थ - इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'कइ णं भंते ! कम्मभूमीओ पन्नताओ' हे भदन्त ! कर्मभूमियां कितनी कही गई हैं ? कृषि, वाणिज्य, तप संयम आदि कार्यों के करने की जहाँ प्रधानता होती है वे कर्मभूमियाँ हैं ये कर्मभूमियाँ कितनी होती हैं ? ऐसे इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं- 'गोपमा ! 'पन्नर सकम्मभूमीओ पन्नताओ' हे गौतम! कर्मभूमियां पन्द्रह कही गई हैं 'तं जहा' जो इस प्रकार से है - 'पंच भरहाई' इत्यादि, पांच भरत, पाँच परवल, पांच महाविदेश, जम्बूद्वीप संबन्धी एक भरत धातकीखंड संबंधी दो भरत, और पुष्करार्ध संबन्धी दो भरत इस प्रकार से अढाई द्वीप संबन्धी पाँच भरत है इनमें कृषि वाणिज्य आदि कर्मों की प्रधानता रहती है, इसी प्रकार से जम्बूद्वीप संबन्धी एक ऐरवत क्षेत्र, धातकी खंड सम्बन्धी दो ऐरक्तक्षेत्र और पुष्करार्ध सम्बन्धी
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टीअर्थ - श्रा सूत्रधी गौतमस्वाभीचे अलुने भेवु छे छे है- 'कइ णं भंते! कम्मभूमी ओ पण्णत्ताओ' हे भगवन् उमभूमीयो डेंटला अहारनी उडेल छे? हृषि खेती, वेपार, तय, संयम विगेरे अर्यो उखानु नयां मुख्ययागु હાય છે તેને ક ભૂમિ કહેવામાં આવે છે. આવી ક ભૂમિયા કેટલી કહી છે ? આ પ્રમાણેના ગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ તેઓને કહે છે કે'गोमा ! परकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ' हे गौतम उर्मभूमियो यडर हेल छे. 'त' जहा' ? या प्रमाणे छे. 'पंच भरहाई' इत्यादि पांच भरत, चांग અરવત, પાંચ મહાવિદેહ જમ્મૂદ્રીપ સંબધી ૧ એક ભરત ધાતકી ખ’ડ સંબધી એ ભરત અને પુષ્કરા સબધી એ ભરત આ રીતે અઢાઇ દ્વીપસમધી પાંચ ભરત છે. તેમાં ખેતી, વેપાર વિગેરે કર્માનું મુખ્યપણુ રહે છે. એજ રીતે જબુદ્વીપ સબધી એક એરવતક્ષેત્ર ધાતકી ખડ સંબંધી એ ઐવતક્ષેત્ર અને પુષ્કરા સ’બધી એ ઐરવતક્ષેત્ર આ રીતે આ પાંચ અર્વત
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪