Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 599
________________ प्रमेययन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ सू०१ असुरकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ५८५ यंग्योनिको यः जघन्यकालस्थिति कासुरकुमारेषू-पत्तियोग्यो विद्यते स कियत्काल स्थितिकासुरकुमारे स्पद्यते इति प्रश्ना, हे गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्रस्थिति केषु तथोत्कृष्टतोऽपि दशवर्षसहस्रस्थितिके वृत्पद्यते तथा हे भदन्त ! ते जीवा एकसमये तत्र कियन्त उत्पद्यन्ते हे गौतम ! जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टः संख्याता उत्पद्यन्ते इत्यादि सर्व प्रश्नोत्तरादिकं संहननसंस्थानादिकं च प्रथमगमवदेव इहाऽपि वक्तव्यमिति । 'नवरं असुरकुमारढिई संवेहं च जाणिमा' नवरमसुरकुमारस्थिति कायसंवेधं च जानीयादित्यष्टमो गमः ।। जब वह असंख्यात वर्ष की आयुषाला संज्ञो पञ्चेन्द्रियतिर्यग्यनिक जीव जघन्यकाल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य होता है तब वह जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थिति वाले असुरकुमारों में तथा उत्कृष्ट से भी दस हजार वर्ष की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है, इसी प्रकार से वे जीव वहां एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं। इस प्रश्न के उत्तर में जघन्य से एक अथवा दो अथवा तान एवं उत्कृष्ट से संख्यात उत्पन्न होते हैं इत्यादि सब प्रश्नो. तररूप कथन संहनन संस्थान आदि द्वार विषयक प्रथम गम के जैसा ही यहां पर भी कहलेना चाहिये, 'नवरं असुरकुमारहि संवेहंच जाणिज्जा' यहां असुरकुमार की स्थिति और संबेव विचार कर कह. लेना चाहिये इस प्रकार ये यह आठवां गम है। તે અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળો સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નીવાળે જીવ જઘન્ય કાળની સ્થિતિ વાળા અસુરકુમારેમાં ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય હોય તે તે જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારમાં તથા ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પલ્યોપમની સ્થિતિવાળા અસુર કુમારોમાં ઉત્પન્ન થાય છે. એ જ રીતે તે જ એક સમયમાં ત્યાં કેટલા ઉત્પન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં જઘન્યથી એક અથવા બે અથવા ત્રણ અને ઉત્કૃષ્ટથી સંખ્યાતપણે ઉત્પન થાય છે. વિગેરે તમામ પ્રશ્નોત્તર રૂપ કથન સંવનન સંસ્થાન વિગેરે દ્વારા રાખવી કથન પહેલા ગમ પ્રમાણે જ અહિયાં પણ કહેવું જોઈએ. “Ret असरकुमारदिई संवेह च जाणिज्जा' मडिया मसुरमान स्थिति भने સંવેધ વિચારીને કહેવું જોઈએ. ॥शत मा भाभी आम ४ो छे. भ० ७४ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

Loading...

Page Navigation
1 ... 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671