Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 651
________________ प्रमेय वन्द्रिका टीका श०२४ उ.३ सू०१ नागकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ६३७ जोणिए णं भंते !' पर्याप्तसंख्पानवर्षाघुकसज्ञिपश्चन्द्रियतियग्योनिकः खलु भदन्त । 'जे भविए नागकुमारेसु उज्जित्तए' यो भव्यो-भवितुं योग्यो नागकुमारेत्तत्तुम् , 'से णं भंते !' स खच भदन्त ! 'केवइयकालटिइएसु उववज्जे जा' कियत्कालस्थितिकेषु उत्पद्येत कियकालस्थितिकनागकुमारावासे तेषां पर्याप्ताद्यादिविशेषणवतां तिर्यग्योनिकानामुत्पत्ति भवतीतिप्रश्नः । जघन्यतो दशवर्षसहस्रस्थितिकेपूत्कर्षतः सातिरेकसागरोपमस्थितिकेषु नागकुमारावासेषु ते तिर्यग्योनिका समुत्पद्यन्ते इति उत्तरपक्षाशयः १ । तदेवातिदेशेनाह-एवं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स बत्तश्या तहेव इह वि णवसु वि गमएसु' एवं यथैव असुरकुमारेषु उत्पद्यमानस्य वक्तव्यता तथैव इहापि नवस्वपि गमकेषु तथैव वक्तव्यता वक्तव्या । 'नवरं नागकुमारटिइं संवेहं च जाणेज्जा' नवरं नागकुमारजोणिए णं भंते ! हे भदन्त ! पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव 'जे भविए नागकुमारेसु.' कि जो नागकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य है ‘से णं भंते ! केवइयकालटिइए०' वह कितने काल की स्थितिवाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम! वह जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थिति वाले नागकुमारों में और उत्कृष्ट से देशोन दो पल्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है, यही बात अतिदेश से 'एवं जहेव असुरकुमारेसु उवचज्जमाणस्स वत्तवया तहेव इह वि णवसु वि गमएसु' इस सूत्र द्वारा सूत्रकारने प्रकट की है इसमें यह समझाया गया है कि जिस प्रकार से असुरकुमारों में उत्पद्यमान जीव की वक्तव्यता कही गई है-उसी प्रकार की वक्तव्यता यहां पर भी नौ गमकों में पाम्राउयसन्निपंचि दियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! लगवन् ५यास सध्यान १पनी भायुष्यवाणी सशी पथेन्द्रिय तिय ७१ 'जे भविए नागकुमारेसु०' २ नसभामा उत्पन्न यवान येय छे. 'से ण भंते ! केवइयकालदिइएस०' કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા નાગકુમારેમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્ત. ૨માં પ્રભુ કહે છે કે–હે ગૌતમ ! તે જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા નાગકુમારમાં અને ઉત્કૃષ્ટથી સાતિરેક કઈક વધારે સાગરોપમની સ્થિતિવાળા नागभाशमा 4-थाय छे. वात मतिशथी एवं जहेव असुरकुमारेसु उबवज्जमाणास्त्र वत्तव्वया तहेव इह वि णवसु वि गमएमु भाणियव्वा' मा સૂત્રપાઠ દ્વારા સૂત્રકારે પ્રગટ કરી છે. આ સૂત્રપાઠથી એ સમજાવ્યું છે કે-જે રીતે અસુરકુમારોમાં ઉત્પન થવાવાળા જીવનું કથન શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

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