Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 666
________________ ६५२ भगवतीसूत्रे 'गोयमा' हे गौतम ! 'पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उववज्जंति' पर्याप्तसंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते 'नो अपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से हिंतो उव नंति' नो-नैव अपर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्येभ्य आगत्योत्पधन्ते नागकुसारावासे इति । 'पज्जत्त संखेज्जवासा. उयसनिमणुस्से णं भंते !' पर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्यः खलु भदन्त ! 'जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए' यो भन्यो नागकुमारेषत्पत्तुम् ‘से णं भंते ! स खलु भदन्त ! 'केवइयकालढिइएमु उववज्जेज्जा' कियत्कालस्थितिकनागकुमारेपूत्पद्यत हे भदन्त ! पर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्यो यो नागकुमारावासेषु समुत्पत्ति योग्यो विद्यते स कियत्कालस्थितिकनागकुमारावासे समुत्पद्यते इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवासहैं ? इस गौतम के प्रश्न का समाधान करने के लिये प्रभु उनसे ऐसा कहते हैं-'गोयमा ! पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहितो उवव. ज्जंति' हे गौतम! वे पर्याप्त संख्यातवर्यायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकर के ही उत्पन्न होते हैं। 'नो आज्जत्तसंखेज्जवासाउय सन्नि मणु०' किन्तु अपर्याप्तसंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकरके वे उत्पन्न नहीं होते है। अब इस पर पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते है-'पज्ज. तसंखेज्जवासाउयसन्नि' हे भदन्त ! यदि पर्याप्त संख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य 'जे भविए नागकुमारेलु उववज्जित्तए' जो नागकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य हैं 'से णं भंते! केवइयकालट्ठिपएस्सु उवव. ज्जेज्जा' तो वह कितने काल की स्थितिवाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं 'गोयमा !' हे गौतम! ४२१॥ भाटे प्रभु तमान मे ४ छ -'गोयमा ! पज्जत्तसंखेजवासाउयसन्नि मणस्सेहिं तो उववज्जति गौतमतमा पर्याप्त सज्यात वषनी मायुष्याणा सभी मनुष्यामाथी भावान ४ ५न्न थाय छे. 'नो अपज्जत्तसंखेज्जवासाउय सन्निमणु०' अर्यात सध्यात ११नी आयुष्याणा सशी मनुष्यामाथी આવીને તેઓ ઉત્પન્ન થતા નથી. ફરીથી આ સંબંધમાં ગૌતમસ્વામી પ્રભુને पूछे छे है-'पज्जत्तस खेज्जवासाउय सन्नि' 3 सपन्ने पर्याप्त सभ्यात वर्षी मायुष्यवाणे। सभी मनुष्य जे भविए नागकुमारेसु उव०' नामशमi (५-- थावाने या छे. 'से भंते ! केवइय काल टिइएसु. उबव०' તે તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા નાગકુમારેમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु गौतभाभीन ४ छ -'गोयमा ! 3 गौतम ! 'जहन्ने णं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

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