Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 605
________________ - - - प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ सू०२ सं. सं.पं. असुरकुमारेषूत्पादः ५९१ णेयमा' एवमेतेषां पर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्क संक्षिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाम् असुरकुमारेपूपिरसू गम् रत्नप्रमापृथिवीगमसहशा नव गमका नेतन्याः, यथा रत्नप्रभामाश्रित्य नव गमाः कथिताः त्रयोगमा औधिकाः, ३ जघन्यकालस्थितिकानां त्रयोगमाः, ३ तथा उत्कृष्ट कालस्थितिकानां त्रयोगमाः३, तदेवं नव गमाः, एवमिहापि औधिकादयो नव गमा वक्तव्याः । रत्नपभापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदाह-'नवर" इत्यादि, 'नवरं जाहे अपणा जहन्नकालाहिइओ भवई' नवरं यदा आत्मना जघन्यकालस्थितिको भवति, ताहे तिसु वि गमएम इमं णागतं तदा त्रिष्वपि गमकेषु इदं नानात्वम् यदा स पर्याप्त संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जीवः स्वयं जघन्य कालस्थितिकोऽसुरकुमारेत्पद्यते इति त्रिषु गमेषु एतावान् भेदो रत्नप्रभा गमापेक्षया बोद्धव्यः । तमेव भेदं दर्शयति-'चत्तारि लेस्साओ' चतस्रो लेश्याः कृष्णनील-कापोतिकतैजसागमसरीसा णव गमगा यया 'हे गौतम! इन पर्याप्त संख्येयवर्षा युष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीवों के जो कि असुरकुमार में उत्पन्न होने के योग्य हैं, उनके इस सम्बन्ध में रत्नप्रभा पृधिवी के नौ गम के जैसे ही नौ गम कहलेना चाहिये, अर्थात् रत्नप्रभा को आश्रित करके जैसे नौ गम कहे गये हैं-तीन गम औधिक ३ तथा जघन्य काल की स्थितिवालों के ३ गम, तथा उत्कृष्ट काल की स्थितिवालों के ३ गम-ऐसे ये नौ गम कहे गये हैं-इसी प्रकार से यहां पर भी अधिक आदि नव गम कह लेना चाहिये, परन्तु रत्नप्रभा की अपेक्षा जो भिन्नता है उसे 'नवरं जाहे अप्पणा जहन्न कालहिइओ भवह ताहे तिसु वि गमएसु इमं णाणत्तं' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रगट करते हुए सूत्रकार प्रमाणे यु ‘एवं एएसि रयणप्पभा पुढवीगमसरिसा णव गमगा णेयब्वा' है ગૌતમ! આ પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ એનિવાળા અને આ સંબંધમાં રત્નપ્રભા પૃથ્વીના પ્રકરણમાં કહેલા નવ ગમ પ્રમાણે નવ ગમે કહેવા જોઈએ, અર્થાત્ રત્નપ્રભા પૃથ્વીને ઉદ્દેશીને જેમ નવ ગમે કહેવામાં આવ્યા છે. જેમકે–ત્રણ ગમો ઔવિક તથા જઘન્ય કાળની રિથતિવાળા ને જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળાઓમાં ઉત્પત્તિ રૂપ ૩ ત્રણ ગમ તથા જઘન્ય કાળની સ્થિતિ વાળાને ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિવાળાઓમાં ઉત્પત્તિ રૂ૫ ૩ ત્રણ ગમ એ પ્રમાણે આ નવ ગમો કહેવામાં આવ્યા છે. એજ રીતે અહિયાં પણ ઔઘિક વિગેરે ત્રણ ગમો કહેવા જોઈએ. પરંતુ રત્નપ્રભાની अपेक्षा २ मिना छे. ते 'नवर' जाहे अप्पणा जहन्नकाकदिइओ भवइ ताहे तिसु वि गमएसु इमं णाणत्त' मा सूत्र५४ १२ प्रगट ४२ता सूत्रा२४९ छ : શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૪

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