Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 643
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.३ सू०१ नागकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ६२९ वैलक्षण्यं यद्विद्यते तदर्शयति-'कालादेसेणं' इत्यादि, 'कालादेसेणं' जहन्ने] देखूणाई चतारि पंलिप्रोचमाई कालादेशेन जघन्येन देशोनानि चत्वारि पल्योपमानि, 'उकोसेणं देमूणाई पंचपलि भोवमाई उत्कृष्टतो देशोनानि पञ्च पल्यो. पमानि कायसंवेधः कालापेक्षया जघन्येन देशोनचतुःपल्योपमः उत्कृष्टतस्तु देशोन पञ्च पल्योपमात्मक इति भावः । 'एवयं जाव करेज्जा' एतावन्तं याव स्कुर्यात् । एतावदेव कालपर्यन्तं तिर्यग्गतिं नागकुमारगतिं च सोऽसख्यातवर्षा युष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जीवः नागकुमारेपूपित्सुः सेवेत तथा एतावन्तमेव कालं तिर्यग्गतौ नागकुमारगतौ च गमनागमने कुर्यादिति सोऽयं कायसंवेधः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य नागकुमारावासे निगमिषोरिति औधिकः तृतीयो गमो भवतीति ३ । __अथ प्रथमगमकत्रिकं निरूपप द्वितीयत्रिके गमकत्रयं निरूपयन् प्रथमगमं दर्शयति-'सो चेव' इत्यादि, 'सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठिइओ' स एवात्मना संबंध में कालकी अपेक्षा वह जघन्य से देशोन चार पल्योपम का है और उत्कृष्ट से वह कायसंबंध 'देसूणाई पंच पलिओवमाई' कुछ कम पांच पल्योपम का है, इस प्रकार इतने काल तक वह असंख्यात वर्ष की आयुवाला संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव जो कि नागकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य है उस तिर्यग्गति का और नागकुमार गति का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उसमें गति और आगति करता है। इस प्रकार से यह पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव का जो कि नागकुमारावास में उत्पन्न होने के योग्य है। औधिक तृतीयगम है। ३॥ इस प्रकार से प्रथम गमत्रिक का निरूपण करके अब सूत्रकार द्वितीय गमत्रिक का निरूपण करते हुए इसका प्रथम गम प्रकट करते તે જઘન્યથી દેશોન ચાર પોપમનું છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી તે કાયસંવેધ રે णाई पंच पलिओवमाई' ४४ ४५ पांय पक्ष्यो५मनु छ. मे शत 21 m સુધી તે અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળે સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળે જીવ કે જે નાગકુમારોમાં ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય છે. તે એ તિર્યંચ ગતિનું અને નાગકુમાર ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે તેમાં ગતિ અને આગતિ-અવર જવર કરતા રહે છે. આ રીતે આ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળા જીવને કે જે નાગકુમારાવાસમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય છે, તે સંબંધી ઓધિક ત્રીજે ગમ કહ્યો છે. ૩ * આ રીતે પહેલા ત્રણ ગમોનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૪

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