Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 642
________________ ૮ भगवती सूत्रे तेषामेव तादृशप्रमाणायुष्कत्वात् एतेषामेव च स्वायुः समानदेवायुर्वन्धकत्वेन उत्कृष्टस्थितिकेषु नागकुमारेषूत्पादादिति । 'उकोसेणं तिनि पलिओ माई ' उत्कृष्टत स्त्रीणि पल्योपमानि पल्योपमत्रयम् उत्कृष्टायुरेतेषामिति । अत्रोत्कृष्टायु परयोपमत्रयं कथितं तत् देवकु संख्यातास्तिरच आश्रित्य प्रोक्तम् ते त्रिपल्योपमायुषोऽपि देशोनद्विल्योपममानमायु बध्नन्ति यतस्ते स्वायुषः समानं हीनतरं वा आयुर्वघ्नन्ति किन्तु महत्तरं न बध्नन्ति इति भावः । ' सेसं तंत चैव' शेषं तदेव 'जाव भवादेसोति यावदभवादेश इति शेषम्-स्थिस्यतिरिक्तं मादेशपर्यन्तं सर्वं प्रथमगमव देव बोद्धव्यम् । कायसंवेधे कालापेक्षया आयुवाले तिर्यञ्चको लक्ष्य करके हुआ है, क्योंकि ऐसे तिर्यञ्च ही इस प्रकार की आयुष्क वाले होते हैं। और ये ही अपनी आयु से अधिक देवायु के बन्धक नहीं होते हैं इससे उनका उत्कृष्ट स्थिति वाले ऐसे ही नागकुमारों में उत्पाद होता है। तथा - 'उक्कोमेणं तिनि पलिओवमाई' उत्कृष्ट से इनकी आयु तीन परमोपम की है। यहां उत्कृष्ट आयु जो तीन पल्योपम की कही गई है वह देवकुरू आदि के असं ख्यात वर्ष के आयुवाले तिर्यञ्चों को लेकर कही गई है। ये तीन पल्योपम की आयुवाले भी देशोन पिल्योपम को आयु का बन्ध करते हैक्योंकि वे अपनी आयु के समान आयु का अथवा हीनतर आयु का बन्ध करते हैं-अधिक आयु का बन्ध नहीं करते हैं। 'सेसं तं चेत्र जाव भवादेसोप्ति' बाकी का भयादेश तक ओर सब कथन इस स्थिति कथन के सिवाय प्रथम गम के जैसा ज्योंका त्यों है । 'काय संवेधे' काय ઉદ્દેશીને કહેલ છે. કેમકે એવા તિય ચાજ આ પ્રકારની આયુષ્યવાળા હાય છે. અને એજ પાતાની આયુના સમાન દેવાયુના અંધ કરનાર હોય છે. तेथी तेयोनो उत्पाद उत्कृष्ट स्थितिवाजा नारभां थाय छे. तथा 'उको सेण तिनि पलिओ माई' उत्पष्टथी त्रषु पयेोचमनी तेमनी आयु उही छे. આહી જે આ ઉત્કૃષ્ટ આયુ ત્રણ ક્ષેાપમની કહી છે, તે દેવકુરૂ વિગેરેના અસખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા તિય ચાને ઉદ્દેશીને કહે છે. આ ત્રણ પક્ષ્ચાપમની આયુષ્યવાળા પણુ દેશેાન એ પચેપમની આયુષ્યના ખધ કરે છે.કેમકે તેઓ પેાતાની આયુષ્યની સરખી આયુષ્યના અંધ કરે છે. વધારે આયુष्यनो मध पुरता नथी. 'सेसं त्तं चैव जाव भवादेस्रोत्ति' माडीनु लवाहेश સુધીનું તમામ કથન આ સ્થિતિ કથનના વિષય શિવાયનુ' પહેલા ગમના કથન प्रभा प्रेमनु तेभ सभवु' 'कायसंवेध' काय संवेधभां अजनी अपेक्षाओ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

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