Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 621
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ सू०३ मनुष्येभ्यो असुरोत्पादादिकम् ५०७ स्पद्यतेति । 'ते णं भंते ! जीवा एगसमपण केवइया उववज्जति' ते खलु भदन्त ! जीवा एकसमयेन कियन्त उत्पधन्ते असुरकुमारावासे इति हे गौतम ! जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा समुत्पद्यन्ते उत्कर्षेण संख्याता उत्पद्यन्ते इत्युत्तरम्, एवंरूपेण पूर्वोक्तमेव सर्वम् इहापि अनुसन्धेयम् एतदेव प्रदर्शयति एवं' इत्या दिना, 'ए। जहेव एएसि रयणपमाए उववज्जमाणाणं णव गमगा' एवं यथैव एतेषाम्-पर्याप्तसंख्ये या युकस ज्ञिमनुष्याणां रत्नप्रभायाम्-रत्नप्रभानामकनर कवासे उत्पद्यमानानां नव गमका कथिताः 'तहे व इहाविणव गमगा भाणियव्या' तथैव-तेनैवप्रकारेण ३हापि एतेषां पर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिमनुष्याणां नव गमकाः पूर्वोक्तक्रमेणैवावशेषा भणितव्याः । 'णवर संवेहो साइरेगेण सागरोवमेग अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-ते णं भंते ! जीया एगसम. एणं केवड्या उववज्जति' 'हे भदन्त' ऐसे वे मनुष्य असुर कुमारावास में असुरकुमार की पर्याय से कितने उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! ऐसे वे जीव वहां असुरकुमार की पर्याय से जघन्य रूप में एक अथवा दो अथवा तीन उत्पन्न होते हैं और उस्कृष्ट से संख्यात उत्पन्न होते है। इस प्रकार पूर्वोक्त रूप से सब कथन यहाँ पर कहना चाहिये-इसी बात को प्रदर्शित करने के लिये 'एवं जहेव एएसिं रयणप्पभाए पुढवीए उववज्जमाणाणं णव गमगा' सूत्रकार ने यह सूत्रपाठ कहा है, इसमें यह समझाया गया है कि जिस प्रकार से रत्नप्रभा पृथिवी में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के नौ गम कहे गये हैं उसी प्रकार से यहां पर भी उनके नौ गम कहना चाहिये, पर जो उनकी अपेक्षा यहां विशेषता है वह कायसंबंध की अपेक्षा से है-क्योंकि प्रभुने मे पूछे छे ४-'ते णं भाते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति' 3 ભદન્ત એવા તે મનુષ્યો અસુરકુમારાવાસમાં અસુરકુમારની પર્યાયથી કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે-હે ગૌતમ ! એવા તે જીવે ત્યાં અસુરકુમારોની પર્યાયથી જઘન્યથી એક અથવા બે અથવા ત્રણ ઉત્પન્ન થાય છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી સંખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે પહેલાં કહેવા પ્રકારથી તમામ કથન અહિંયાં કહી લેવું. એ વાત બતાવવા માટે 'एवं जहेव एएसिं रयणप्पभाए पुढवीए उववज्जमाणाणं णव गमगा' सूत्रधारे આ સૂત્રપાઠ કહ્યો છે. આમાં એ બતાવવામાં આવ્યું છે કે-જે રીતે રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં ઉત્પન થવાવાળા મનુષ્યને નવ ગમો કહ્યા છે, એજ રીતે અહિયાં પણ નવ ગમે કહેવા જોઈએ. તે કથન કરતાં અહિં જે જુદાપણ છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

Loading...

Page Navigation
1 ... 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671