Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 597
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ सू०१ असुरकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ५८३ स्वयमुत्कृष्टकालस्थितिको जातः, 'सो चेत्र पहनगमो भाणियन्यो' स एव प्रथमगमो भणितव्यः, कियत्कालस्थितिकेषु असुरकुमारेषु जायन्ते एकसमये च कियन्त उत्प धन्ते तथा संहननसंस्थानादिकं सर्व प्रथमगमानुसारेणैव ज्ञातव्यमिति। प्रथमगमापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदर्शयति-'णवरं' इत्यादि, 'णारं ठिई जहन्नेणं तिनि पलिओवमाई' नवरं स्थितिघ येन त्रीणि पलकोपमानि-पल्योपमत्रयस्थितिः अवगन्तव्या जधन्या, 'उक्कोसेग वि तिनि पलिओचमाई' उत्कर्षेणाऽपि त्रीणि पल्योपमानि जघन्योत्कृशम्यां पल्योपमत्रयं स्थितिः, प्रथमगमे जघन्या स्थितिः सातिरेका पूर्वकोटिपमाणा उस्कृष्टा पल्योषमत्रयप्रमाणा प्रदर्शिता इह तु उभे अपि त्रिप ल्योपमे इति विशेषः । 'एवं अणुबंधो वि एवम्-स्थितिवदेव अनुबन्धोऽपि जघन्योस्कृष्टाभ्यां पल्योपमत्रयात्मकः । कायसंवेधश्च भवादेशेन भवद्वयात्मकः प्रथमगमवदेव 'कालादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाई दसहि वाससहस्सेहिं अन्महिस्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? तथा वे वहां एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? यह सब प्रश्नोत्तर रूप कथन तथा संहनन, संस्थान आदि द्वार सम्बन्धी कथन प्रथम गम के जैसा ही है, परन्तु यहां स्थिति, अनुबन्ध एवं कायसंवेध को लेकर जो भिन्नता है-वह इस प्रकार से है कि यहां जघन्य से स्थिति तीन पल्योपम की है और उत्कृष्ट से भी स्थिति तीन पल्पोपम की है, प्रथम गम में जघन्य स्थिति सातिरेक पूर्वकोटि प्रमाण कही गयी है और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपमरूप कही गयी है । इसी प्रकार का कथन अनुबन्ध के सम्बन्ध में भी है। अर्थात् वह भी यहां सातवें गम में जघन्य और उत्कृष्ट से तीन पल्योपमरूप ही है, कायसंबंध भव की अपेक्षा दो भवों को ग्रहण करने रूप है तथा काल की अपेक्षा जघन्य से दश हजार वर्षे ઉત્પન્ન થાય છે ? આ તમામ પ્રશ્નોત્તર રૂપ કથન તથા સંહનન, સંસ્થાન, વિગેરે દ્વારા સંબંધી કથન પહેલા ગમ પ્રમાણે જ છે, પરંતુ અહિયાં સ્થિતિ, અનુબંધ અને કાયસંવેધમાં જુદાપણું છે. તે આ પ્રમાણે છે અહિયાં સ્થિતિ જઘન્યથી ત્રણ પપમની છે અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ ત્રણ ૫૫મની સ્થિતિ છે. પહેલા ગમમાં જઘન્ય સ્થિતિ સાતિરેક પૂર્વકેટ પ્રમાણ કહેવામાં આવી છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ત્રણ પાપમની કહી છે. આજ રીતનું કથન–અનુબંધના સંબંધમાં પણ છે. અર્થાત તે અનુબંધ પણ આ સાતમાં ગમમાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પાપમ રૂપ જ છે. કાય સંવેધ-ભવની અપેક્ષાથી બે ભને ગ્રહણ કરવા રૂપ છે. તથા કાળની અપે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

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