Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 596
________________ ૧૮૨ भगवतीसूत्रे स्य जघन्यत एको वा द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टतः संख्याता असुरकुमारेघृत्पद्यन्ते इत्युत्तरम् , एक्मवगाहनादिकं सर्वमवगन्तव्यम् । पूर्वापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदर्शयति'नवर' इत्यादि, 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगाओ दोपुवकोडीओ' नवरम् केवलं कायसंवेधः कालादेशेन-कालापेक्षया जघन्येन सातिरेके द्वे पूर्वकोटी, 'उक्कोसेण वि सातिरेगाओ दो पुव्व कोडीओ' उत्कर्षेणाऽपि सातिरेके द्वे पूर्वकोटी 'एवइयं कालं सेवेज्जा' एतावन्तं कालं सेवेत एतावत्कालपर्यन्तं तियंग्गतिममुरकुमारगतिं च सेवेत इति षष्ठोगमः ६ इति । अथ सप्तमो गमो निरूप्यते-'सो चेव' इत्यादि, 'सो चेव अप्पणा उक्कोसकालहिइओ जाओ' स एव आत्मना उत्कर्ष कालस्थितिको जातः, स एवासंख्यातवर्षायुष्कसंज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका उत्तर ऐसा है कि-ऐसे वे जीव एक समय में एक अथवा दो अथवा तीन उत्पन्न होते हैं, जघन्य से और उस्कृष्ट से संख्यात जीव उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार से अवगाहना आदि द्वारों के विषय में भी कथन है, परन्तु काल की अपेक्षा वह जीव जघन्य से सातिरेक-कुछ अधिक-दो पूर्वकोटि तक और उत्कृष्ट से भी सातिरेक दो पूर्वकोटि तक उस तिर्यग्गति का और असुरकुमारगति का सेवन करता है और इतने ही कालतक वह उसमें गमनागमन करता है। ऐसा यह छटा गम है। सातवां गम इस प्रकार से है-'सो चेव अप्पणा उक्कोसकाल विहो जाओ' वही असंख्यात वर्ष की आयुवाला संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्य ग्योनिक जीव कि जो उत्कृष्ट काल की स्थिति को लेकर उत्पन्न हुआ है यदि असुरकुमामों में उत्पन्न होने के योग्य है तो वह कितने काल की જીવો એક સમયમાં જઘન્યથી એક અથવા બે અથવા ત્રણ ઉત્પન થાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી સંખ્યાત જી ઉત્પન્ન થાય છે. એ જ રીતે અવગાહના વિગેરે દ્વારેના સંબંધમાં પણ કથન સમજવું. પરંતુ કાળની અપેક્ષાથી તે જીવ જઘન્યથી સાતિરેક-કંઈક વધારે-બે પૂર્વકેટિ સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ સાતિરેક-બે પૂર્વ કેટિ સુધી એ તિર્યંચ ગતિનું અને અસુરકુમારગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે. मा प्रमाणे मा छटो गम छे. वे सातभा समर्नु ४थन ४२कामा मावे छ– 'सो चेव अप्पणा उक्कोस. दिइओ जाओ' अस यात १नी आयुष्यवाणी सशी ५येन्द्रिय तिय ચૅિનિવાળે જીવ કે જે ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિથી ઉત્પન્ન થયેલ હોય તે જે અસર કુમારોમાં ઉત્પન થવાને ગ્ય છે તો તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા અસુરકુમારેમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? તથા તેઓ ત્યાં એક સમયમાં કેટલા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

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