Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
कमेकं सागरोपमम्, उत्कृष्टतस्तु चत्वारि सागरोपमाणि वर्ष पृथक्त्वाधिकानि एवमेव षष्ठोऽपि गमो बोद्धव्य इति । ४-५ - ६ 'सो चैत्र अप्पणा उक्कोसकालहिइओ जाओ' स एवात्मनोत्कृष्टकालस्थितिको जातः, यदि मनुष्यः स्वयमुत्कृष्टकालस्थितिको भवेत् अथ च शर्करामभाख्यद्वितीये नरके समुत्पद्येत 'तस्स त्रि' तस्याऽपि यो मनुष्यः स्वयमुत्कृष्टकालस्थितिकः शर्कराप्रभायां नारकतयोत्पत्तियोग्यस्वस्याऽपि गमत्रिवदित्यर्थः 'तिसु वि गमएस' त्रिष्वपि गमेषु सप्तमाष्टमनवमेषु तत्र प्रथमो नमः सप्तमरूपः सूत्रे पत्र प्रदर्शितः ७, शेौ द्वौ गमौ यथा - 'सो वे जहन्नकालम् उत्रवन्नोट, सो चेत्र उक्कोसकालटिएस उववन्नो ९ । स एव जघन्यकाल स्थितिकेपुरपन्नः स एवोत्कृष्ट काल स्थिति के पृत्पन्नः ९, इतिच्छाया' इत्येतेषु त्रिषु गमेषु 'इमं णाणत्तं' इदं नानात्वमवगन्तव्यमिति, 'सरी
सागरोपम का है, और उत्कृष्ट से भी वह चार वर्षपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम का है, इसी प्रकार छट्टा गम भी जानना चाहिये ४-५-६ 'सोवेव अपणा उक्कोसकालडिओ जाओ 'यदि वह संज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त मनुष्य उत्कृष्ट स्थिति वाला है और वह शर्करा प्रभा नाम के द्वितीय नरक के नारकी पर्याय से उत्पन्न होने के योग्य है 'तस्त निसु वि गमएसु' उसके भी सात आठ नौ-इन तीन गमों में प्रथम गम अर्थात् सातवां गम तो सूत्र में कह दिया है दूसरे दो आठवां और नौवां गम इस प्रकार का हैं-'सोचे व जहन्नकालडिएस उबवन्नो, 'सोचेव उक्कोसकालfree उबवन्नो ९।' इन तीनों गमों में नानात्वभेद है वह इस प्रकार है - 'सरीरोगाहणा' इत्यादि । शरीर की अवगाहना
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या प्रमारथी छट्टो गभ समव ४-५-६ 'खोचेत्र अपणा उक्कोसका लट्ठिइओ લાગો' જો તે સ'ની ૫'ચેન્દ્રિય પર્યાપ્ત ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિને લઈને ઉત્પન્ન થયેા હાય અને પાછે તે શર્કરા પ્રભા નામના ખીજા નરકના નારકીય પર્યાયથી ઉત્પન્ન थवाना योग्य है य 'तस्स तिसु वि गमएसु' तो तेना सत्ता भने नव આ ત્રણ ગમે પૈકી પડેલે! ગમ અર્થાત્ સાતમા ગમ સૂત્રમાં જ કહ્યો છે, जीन मे ८-८ भो गम भी प्रमाणे छे.- 'सो चेत्र जहन्नकालट्ठिइएस उवनो ८, सो ar aratसकालट्ठिएसु उववन्नो ९' मात्र भभोभां नानात्व लेह छे. ते या भ्रम हो - 'सरीरोगाहणा' इत्याहि तेना शरीरनी अवशाना જાન્યથી પાંચસા ધનુષની કહી છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ તે પાંચસે ધનુષની છે, પહેલા ગમમાં જઘન્ય અવગાહના રત્ન પૃથકૂની કહી છે. અને અહિયાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪