Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 587
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ सू०१ असुरकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ५७३ स्थितिवदेव जघ योत्कृष्टानं त्रिपल्योपमात्मकोऽनुबन्धो भवति कायसंवेधातु मवादेशेन भवद्वयग्रहणरूपः पूर्वरदेव कालापेक्षया कायसंवेधे बैलक्षण्यं प्रथमगमतृतीयगमयोस्तदेव दर्शयति 'कालादेसेणं जहन्नेणं छप्पलिओवमाई' कालादेशे जघन्येन षटल्योपमानि 'उक्कोसेण वि छप्पलि पोवमाई' उत्कर्षेणाऽपि षट्पल्पोपमानि, कायसंवेधः कालादेशेन जघन्योत्कृष्टाभ्यां पटपल्योपमात्मको भवति पूर्वपकरणे तु कायसंवेधः कालादेशेन जघन्येन दशवर्षसहस्राधिकसातिरेकपूर्वकोटि रूपः कथित इति भात्यु भयगमयो लक्षण्यमिति एवइयं०' एतावत्कालपर्यन्तं तिर्य. गतिमसुरकुमारगतिं च सेवेत तथा एतावस्कालप यन्तं तिर्यग्गतो अमुरकुमारगतौ च गमनागमने कुर्यादिति। 'सेसं तं चे३' शेषं तदेव-स्थित्यनुबन्धकायसंवेधातिरिक्तं सर्व पूर्ववदेव प्रथमगमवदेव ज्ञातव्यम् । इति तृतीयो गमः ३ । अथ चतुर्थगममाहसो चा अप्पणा' इत्यादि, 'सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठिाओ जाओ' स एव आत्मना जघन्यकालस्थितिको जातः, सोऽसंख्यातवर्षायुकसंज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्यग् योनिको जीवा भवकी अपेक्षा भवव्यग्रहण रूप है और काल की अपेक्षा वह जघन्य से ६ पल्योपम रूप और उत्कृष्ट से भी ६ पल्योपम रूप है, पूर्वगम में तो कायसंवेष काल की अपेक्षा जघन्य से दश हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि रूप कहा गया है, इस प्रकार वह जीव इतने काल तक तिर्यग्गति और असुरकुमारगति का सेवन करता है और इतने ही कालतक वह उसमें गमनागमन करता है। 'सेसं तं चेव' इस प्रकार स्थिति अनुबन्ध और कायसंबेव के अतिरिक्त और सब कथन प्रथम गम जैसे ही जानना चाहिये। ऐसा यह तृतीय गम है। चतुर्थगम इस प्रकार से हैं-'सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्टिइओ जाओ' यदि वह असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञो पश्चेन्द्रियतियग्यो ગ્રહણ રૂપ છે. અને કાળની અપેક્ષાથી તે જઘન્યથી ૬ છ પોપમ રૂપ અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ ૬ છે પપમ રૂપ છે. પહેલાના ગામમાં કાયવેધ કાળની અપેક્ષાએ જઘન્યથી સાતિરેક ૧૦ દસ હજાર વર્ષ અધિક પૂર્વકેટિ રૂપ કહેલ છે. આ રીતે તે જીવ આટલા કાળ સુધી તિર્યંચગતિ અને અસુરકુમાર ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે તેમાં ગમનાગમન કરે छ. 'सेसं तं चेव' मा शत स्थिति अनुमच मने यस वध शिवायन બાકીનું તમામ કથન પહેલા ગમમાં કહ્યા પ્રમાણે જ સમજવું આ પ્રમાણે આ ત્રીજે ગામ છે. वे याथा आमनु ४थन ४२वामा मावे छे.-स्रो चेष अप्पणा अहन्नका. लदिइओ जाओ'नेते मसण्यात वषनी मायुष्यवाणा सज्ञी ५न्द्रिय तिय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

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