Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 585
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२ सू०१ असुरकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ५७१ उत्कृष्टतः दशवर्ष परस्राधिकत्रिएल्योपमात्मिका, एतावन्तमेव कालं यिगतिम् असुरकुमारगतिं च सेवेत एतान्तमेव कालं तिर्यग्गतो असुरकुमारगतौ च गमनागमने कुर्यात् । इत्येवं प्रथमगमवत् इहापि सो विचारः करणीयः, 'नवरं असुरकुमारट्टिई संवेहं च जाणेज्जा' नवरम्-केवलम् असुरकुमा स्य स्थिति कायसंवेधं च जानीयात्-तदेतत् इति द्वितीयो गमः २ । अथ तृतीयगमं प्रस्तुवन् आह-'सो चेव उक्कोप्तकाल' इत्यादि, 'सो चेत्र उक्कोसकालटिएस उपवन्नो' स एव असंख्यातवर्षायुष्कसंक्षिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकजीवो यदि उत्कृष्टकालस्थिति कासुरकुमारेषु उत्पन्नो भवेत् तदा-'जहन्नेणं तिपलियोवमट्टिइएसु उक्कोसेण वि अर्थात् इतने वाल तक वह असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्य ग्योनिक जीव । यश्च गति का और असुरकुमार गति का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उसमें गमनागमन करता है । इस प्रकार से प्रथम गम के जसे यहां पर भी सब विचार करणीय है, पर यहां पर असुरकुमार की स्थिति और संबंध कहना चाहिये। इस प्रकार से यह द्वितीय गम है। ____ अब तृतीयगम प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं-'सो चेव उक्कोसकाल हइएस्सु उववन्नो' इसमें प्रभु से गौतम ने ऐसा पूछा हैहे भदन्त ! वही असंख्यात वर्ष की आयुवाला संज्ञी पश्चेन्द्रियतियग्यो. निक जीव यदि उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले असुरकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य है तो वह कितने काल की स्थितिवाले असु'कुमारों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-हे गौतम ! 'जहन्नेणं तिपलि ओवमहिएसु उक्कोसेणं वि तिपलि भोवमद्विहरसु અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળો સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળે જીવ તિર્યંચ ગતિનું અને અસુરકુમાર ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે તેમાં ગમનાગમન કરે છે. આ રીતે પહેલા ગમ પ્રમાણે અહિયાં પણ તમામ વિચાર કરવાનો છે. અને અહિયાં અસુરકુમારની સ્થિતિ અને સંવેધ કહેવા જોઈએ આ રીતે આ બીજે ગમ કહ્યો છે. व त्रीने म प्रगट ४२॥ भाट सूत्र२ ४ छ ?-'सो चेव उक्कोसकालदिइएसु उबवन्नो' मामा जीतम २॥भीम प्रभु ५७यु हैહે ભગવદ્ અસાંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળો સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યચનિ વાળે એવો તે જીવ જે ઉતકૃષ્ટ કાળની સ્થિતિવાળા અસુર કુમારમાં ઉત્પન્ન થવાને ચેપગ્ય હોય તો તે કેટલા કાળની સ્થિતિ વાળા અસુરકુમારોમાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે-હે ગૌતમ ! 'जहन्नेणं ति पलि ओवमटिइएसु उववज्जेज्जा' ते न्यथा र पक्ष्या५मनी શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૪

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