Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 551
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०८ श० षष्ठपृथ्वीगतजीवानामुदिकम् ५३७ अथ मनुष्यमधिकृत्य सप्तमी पृथिवीवक्तव्यतामाह-'पज्जत्त०' इत्यादि, 'पज्जत्तसंखेज्जवासाउथ सन्निमणुस्से ण भंते !' पर्याप्तसंख्येयवर्षायुरुकसंज्ञिमनुष्यः खलु भदन्त ! 'जे भविए अहे सत्तमाए पुढवीए' यो भव्यः-उत्पत्तियोग्य: अधः सप्तम्याः पृथिव्याः संबन्धिषु 'नेरइएसु' नैरषिकेषु 'उअवज्जित्तए' उत्पत्तुम् 'से णं भंते' स खलु भदन्त ! 'केवइयकालटिइरसु उववज्जेज्जा' कियकालस्थितिकेषु नैरयिकेषु सप्तमपृथिवीसम्बन्धिपूत्पद्येत इति प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम! 'जहन्नेणं बाबीससागरोवपट्टिइएम' जघन्येन द्वाविं. शतिसागरोपमस्थितिकेषु सप्तमपृथिवीसंबन्धिनैरयिकेषु तथा-'उक्कोसेणं तेत्तीससागरोवमटिइएसु उवज्जेज्जा' उत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमस्थिविकेषु सप्तमनारकपृथिवीसम्बधिनारकेतृत्पद्ये । इति । 'ते णं भते ! जीवा एगसमएण अव सातवीं पृथिवी की वक्तव्यता कहते हैं-पज्जत्त०' इत्यादि । 'पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते! हे भदन्त ! पर्याप्त संख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रिय मनुष्य 'जे भविए अहे सत्तमाए पुढ. वीए.' जो अधासप्तमी पृथिवी संबन्धी नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य हैं 'से णं भंते! के वायकालटिइएस्सु उववज्जेज्जा' वह हे भदन्त ! वहां कितने कालकी स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-'गोयमा! जहन्नेणं बावीससागगेवमहिए' हे गौतम ! ऐसा वह मनुष्य जघन्य से २२ सागरोपम की स्थितिवाले नैरयिकों में एवं-'उक्कोसेणं तेत्तीससागरोवमहिइएसु उव. वज्जेज्जा' उत्कृष्ट से तेतीस सागरोपम की स्थितिवाले नैरयिकों में वेसातमी पृथ्वी समधी १४तव्यता ४ामां आवे छे. 'पज्जत्त' त्याल ___ 'पज्जत्तस खेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते !' . सावन पर्याप्त सच्यात नी मायुष्य वा सशी ५३न्द्रिय मनुष्य 'जे भविए अहे सत्तमारा पदवीप०२ अघास तभी अर्थात् सामना२४मा पृथ्वीना नैयिामा अपन वान योग्य हाय 'से गं भंते ! केवइयकालदिइएसु उववज्जेज्जा' ભગવન તે ત્યાં કેટલા કાળની સ્થિતિ વાળા નરયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? 4. प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीन ४३ छ -'गोयमा। जहणे बावीस गरोवमट्रिइएसु' गीतम! मेवो ते मनुष्य न्यथी २२ मावीस सापनी स्थिति वा नयिमा भने उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमटिडएस उववज्जेज्जा' उत्कृष्टथी 33 तेत्रीस सागरे।५भनी स्थितिमा नैरयिमा ઉત્પન્ન થાય છે. भ० ६८ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

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