Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 572
________________ nommit endra ५५८ भगवतीसूत्रे प्रश्नस्य जघन्यत एको वा द्वौ वा त्रयो वा उत्कृष्टतः संख्याता वा समुत्पद्यन्ते इत्युत्तरम् । एवमेव अन्येऽषि प्रश्नाः कर्तव्या स्तेषां यथायथमुत्तराणि च कुर्वता नवाऽपि गमाः रत्नप्रभा गमसदृशा इहाऽपि गमा भणितिव्याः, रत्नप्रभामकरणाद् यद् वैलक्षण्यं तदेवाह-'णवरं' इत्यादि, नवरम्-केवलं विशेष एव यत् 'जाहे' यदा स पर्याप्ताऽसंज्ञिपश्चेन्द्रियतियग्योनिकनीः असुरकुमारेपृत्तत्तियोग्यः 'अषणा' आत्मना स्वयम् 'जहन्नकालटिइओ भवई' जघन्यकालस्थितिको भवति 'ताई' तदा तस्य 'अज्झवसाणा' अध्यवसानानि-मानसिकपरिणामाः 'पसत्था' प्रशस्तानि-शुमानि भवन्ति किन्तु 'णो अप्पसत्था' नो-नैव अप्रशस्तानि-अशु. भानि-अमुकुमारभवे उत्पित्सोः पर्याप्ताऽसंज्ञिपश्चेन्द्रियजीवस्य परिणामाः जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं तो इस प्रश्न के उत्तर में ऐसा समझना चाहिये कि वे जीव एक समय में वहां जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन उत्पन्न होते हैं और उत्कृष्ट से संख्यात अथवा असंख्यात उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार से अन्य और भी प्रश्न करना चाहिये और उनके उत्तर भी करना चहिये, इस प्रकार रत्नप्रभा के गम जैसे यहां पर भी नौगम जानना चाहिये। अब सूत्रकार रत्नप्रभा प्रकरण से यहां के प्रकरण में जो भिन्नता है उसे' नवरं' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा प्रकट करते हैं-इसमें यह समझाया गया है कि जब वह पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव कि जो असुरकुमारों में उत्पत्ति के योग्य है जघन्य काल की स्थितिवाला होता है, तब उसके 'अझयसाणा' अध्यवसाय-मानसिक परिणाम-प्रशस्त शुभ-ही होते हैं-'णो अप्पसस्था' अप्रशस्त-अशुभ-नहीं होते हैं। अर्थात् असुरએ સમજવું જોઈએ કે તે જે એક સમયમાં ત્યાં જઘન્યથી એક અથવા બે અથવા ત્રણ ઉત્પન્ન થાય છે અને ઉત્કૃષ્ટથી સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે. એ જ પ્રકારે બીજા પણ પ્રશ્નો અને તેના ઉત્તરે સમજવા જોઈએ. આ પ્રમાણે રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ગમ પ્રમાણે અહિયાં પણ નવ ગમે સમજવા. હવે સૂત્રકાર રત્નપ્રભા પ્રકરણ કરતાં આ પ્રકરણમાં જે જૂહાપણું છે. તે “ના” ઈત્યાદિ સત્રપાઠથી બતાવે છે. તેમાં એ સમજાવવામાં આવ્યું છે કે જ્યારે તે પર્યાપ્ત અસંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળે જીવ કે જે અસુરકુમારોમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્યા હોય અને જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળે डाय छे, त्यारे तेनु 'अज्ज्ञवसाणा' मध्यवसान-मानसि परिणाम प्रशस्त Yaar य छ, 'णो अप्पसत्था' प्रशस्त-मशुल डातु नथी. मात् શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪

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