Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०५ संक्षिपञ्चन्द्रियतिरश्चां नारकेषूनि० ४५१ ये दीर्घायुष्काः संक्षिपञ्चन्दियतियग्योनिकाः जघन्यस्थितिकजघन्योत्कृष्टाभ्या दशसहर्ष नरके समुस्पत्स्यमानास्ते खलु एकस्मिन् समये तत्र नरके कियन्त उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । उत्तरमाह-'सो चेव सत्तमो गमो निश्वसेसो भाणियन्या जाव भवादेसोत्ति' स एव सप्तमो गमो वक्तव्यः, तत्रोत्पादपरिमाणादिकं सर्व वक्तव्यं भवादेशेन जघन्यतो भवद्वयम् उत्कृष्टोऽष्टभवपर्यन्तम् इत्यन्तः सप्तमो गमो वक्तव्यः, 'कालादेसेण जहन्नेणं पूच्चकोडीः दसहि वाससहस्सेहि अब्भहिया' कालादेशेन कालापेक्षयेत्यर्थी, जघन्येन पूर्वकोटिः दशभिर्वर्ष हरीर भ्यधिका, 'उक्कोसेणं चत्तारि पुव्यकोडीओ' उत्कर्षेण चतस्रः पूर्वकोटया: प्रकार से पूछते हैं-ते णं भंते ! जीवा०' हे भदन्त ! वे जीव जो दीर्घा युष्क संज्ञिपश्चेन्द्रियनियंग्योनिक है और जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा सम्बन्धी नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य हैं एक समय में उस नरक में कितने उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्सर में प्रभु कहते हैं-'सो चेव सत्तमो गमो निरवसेसो भाणिययो जाव भवादेसात्ति' हे गौतम! यहां पर सप्तम गम में जो कुछ उत्पाद परिमाण आदि कहा गया है वह सब यहां कहना चाहिये, इसमें भव की अपेक्षा जघन्य से दो भषों को ग्रहण करने तक और उत्कृष्ट से आठ भवों को ग्रहण करने तक वह जीव तिर्यग्गति का और नरक गति का सेवन करता है और उसमें वह इतने ही काल तक गमनागमन करता रहता है तथा काल की अपेक्षा वह जघन्य से दश हजार वर्ष अधिक एक कोटि पूर्व तक और उस्कृष्ठ से ४० हजार वर्ष से अधिक चार पूर्वकोटि तक दीर्घायुष्क पञ्चछ -'ते णं भते जीवा० सप २ ही आयुष्याणा सज्ञी પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિકે છે, અને જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા રતનપ્રભા પૃથવીના નૈરયિકમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય છે. તેઓ એક સમયમાં તે નરકમાં Bean 4-थाय छ १ मा प्रश्नाना उत्तम प्रभु छ है-'सो व सत्तमो गमो निरवसेखो भाणियन्वो जाव भवादेनोचि' हे गौतम ! सातwi ગમમાં ઉત્પાદ, પરિમાણ, વિગેરે કહેલ છે, તે સઘળું કથન અહિયાં સમજવું જોઈએ. અર્થાત કહી લેવું. તેમાં ભવની અપેક્ષાએ જ ઘન્યથી બે ભવને ગ્રહણ કરતાં સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી આઠ ભલેને ગ્રહણ કરતાં સુધી તે જીવ તિર્યંચ ગતિનું અને નરક ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલાજ કાળ સુધી તે જીવ તેમાં ગમનાગમન-અવર જવર કરતા રહે છે. તથા કાળની અપે. ક્ષાએ તે જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષ અધિક એક પૂર્વકેટિ સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી ૪૦ ચાળીસ હજાર વર્ષથી અધિક ચાર પૂર્વ કેટિ સુધી દીર્ધાયુષ્યવાળા પચે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪