Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
तिते सति केषां चिन्नार के पूत्पत्तेः तदुक्तम्- 'ओद्दिनागमणपज्जव आहार यसरीराणि लघूणं परिसाडित्ता उववज्जंति' इति 'अवधिज्ञान- मनः पर्यवा - SSहारकशरीराणि लब्ध्वा परिशाटयित्वा ' त्यक्त्वा उपपद्यन्ते' इतिच्छाया ।
पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमकरणे त्रीणि ज्ञानानि कथितानि इह तु चत्वारि ज्ञानानि प्रतिपाद्यन्ते इति वैलक्षण्यम् अतएव कथितम् - चत्वारि ज्ञानानि त्रीणिअज्ञानानि भजनया भवन्तीति । 'छ समुग्धाया केवलिवज्जा' षट्समुद्याता वेदना कषायादिकाः केवलसमुद्घातवर्जिता भवन्ति । 'ठिई अणुबंधो य जहन्नेणं मासपुडु' स्थितिरनुग्न्धश्च जघन्येन मासपृथक्त्वं द्विमासादारभ्य नवमासपर्यन्तः, - मतिज्ञान, श्रुनज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यव ज्ञान ये चार ज्ञान और मत्यज्ञान श्रुताज्ञान एवं विभंगज्ञान ये तीन अज्ञान अर्थात् ये ज्ञानाज्ञान दोनों भजना से होते हैं, क्योंकि अवधि आदि ज्ञान के छूट जाने पर कितने मनुष्यों का नरकों में उत्पाद होता है । तदुक्तम्- 'ओहिनाणमणपज्जव आहारय सरीराणि लङ्घणं परिसाडित्ता उववज्जति' अवधिज्ञान मनः पर्यवज्ञान और आहारक शरीर को प्राप्त करके मनुष्य इनके छूट जाने पर नरक में उत्पन्न हो जाता है। संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक के प्रकरण में तीन ज्ञान कहे गये हैं, और यहां चार ज्ञान कहे गये हैं। यही उस प्रकारण से इस प्रकरण में विशेपता है इसलिये यहां कहा है कि चार ज्ञान और तीन अज्ञान ये दोनों ज्ञान अज्ञान भजनासे होते हैं । 'छ समुग्धाया केवलिवज्जा' केवलि समुद्घात को छोड़कर वेदना कषाय आदि ६ समुद्घात होते हैं।' ठिईअणुबंध जहनेणं मासपुहुतं' स्थिति और अनुबन्ध जघन्य से मास
પયાઁવજ્ઞાન, અને મતિ અજ્ઞાન શ્રુતાજ્ઞાન અને વિભગ જ્ઞાન આ ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી ડાય છે. કેમકે-અવધિ-વિગેરે જ્ઞાન છૂટિ જાય ત્યારે કેટલાક मनुष्यानो नरम्यां उत्पात थाय छे. ते उडे छे - 'ओहिनाणमणपज्जव आहारय सरीराणि धूणं पडिवाडित्ता उववज्जंति' अवधिज्ञान भनःपर्यवज्ञान भने આહારક શરીરને પ્રાપ્ત કરીને તે છૂટિ જાય ત્યારે મનુષ્ય નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. સ'ની પ'ચેન્દ્રિય તિયાઁચ યોનિકાના પ્રકરણમાં ત્રણ જ્ઞાન કહ્યા છે. અને આ પ્રકરણમાં ચાર જ્ઞાન કહેવામાં આવેલ છે. તેથી આ અપેક્ષાએ તે પ્રકરણથી આ પ્રકરણમાં ફેરફાર છે. એટલે અહી' કહેવામાં આવ્યું છે કે ચાર ज्ञान भने त्रषु अज्ञाने लग्नाथी होय छे. 'छ समुग्धाया केवलिवज्जा' देवसि समुद्रघातने छोडीने वेहना, उषाय, विगेरे छ समुद्घाती होय छे. 'ठिई अणुबंधो य जहणणं मासपुत्त' स्थिति भने अनुबंध कधन्यथी मासपृथक्त्व भने उक्कोसेणं
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪