Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
भगवतीने नियम द्वे अज्ञाने नियमतो प्रत्यज्ञानं श्रुताज्ञानं चेति तेषां जीवानामिति ४ । 'समुग्घाया अदिल्ला तिन्नि' समुद्घाता आदिमा स्त्रयः वेदनाकषायमारणान्तिकाः ५। 'आउं अज्झवसागं अणुबंधो य जहेव असन्नीणं' आयुरध्यबसानमनुबन्धश्च यथैवासंज्ञिनाम् तद्यथा-आयुर्जघन्यतोऽनमुहूतम् उत्कुष्टतः उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहू. तम्६ । अध्यवसानानि चासंख्यातानि चाऽप्रशस्तान्येव७ । अनुबन्धश्च जघन्योत्कष्टाभ्यामन्तर्मुहूर्त मिति आयुरध्यवसानानुबन्धाः चतुर्थगमोक्ता असंज्ञिवदेव उदाहरणीया इति । 'अब सेसं जहा पढमगमए' अवशेषम्-एतद्भिन्नं सर्व यथा-प्रथमगमके कथितं तथैव इहापि ज्ञातव्यम् हे भदन्त ! प्रथमं जघन्यकालस्थितिक संज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्ततो मृत्वा नारको जातः ततः पुनरपि नरकान्निःमृत्य संज्ञिपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकः एवं क्रमेण कियत्कालपर्यन्त तिर्यग्गति नारकगतिं च से वेत कियकिन्तु मिथ्या दृष्टि ही होते हैं३ ‘णो णाणी' ये ज्ञानी नहीं होते हैं 'दो अन्नाणा नियम' मत्यज्ञान एवं श्रुताज्ञान ऐसे ये नियम से दो अज्ञान वाले होते हैं-'समुग्घाया आदिल्ला तिन्नि' आदि के ३ यहां समुद्घात होते हैं । उनके नाम वेदना कषाय और मारणान्तिक है। आउ अज्झवसाणं अणुबंधो य जहेव असन्नीणं' असंज्ञी जीवों के जैसा यहां आयु जघन्य से एक अन्तर्मुहर्त का है और उस्कृष्ट से' भी अन्तर्मुहर्त की है अध्यसान यहां असंख्यात हैं, परन्तु वे सब अप्र. शस्त होते हैं अनुबन्ध जघन्य से एक अन्तमुर्स का और उस्कृष्ट से भी अन्तर्मुहतं का है, 'अवसेसं जहा पढमगमए' इन से भिन्न और सब कथन प्रथम गमक में कहे अनुसार यहाँ जानना चाहिये, ___ अब गौत्तम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-हे भदन्त ! जघन्य काल की स्थिति वाला वह संज्ञीपश्चेन्द्रियतियश्चयोनिक जीव अपनी गृहीत पर्याय से मरकर
. ३ णो णाणी' । ज्ञानी जात नथी. दो अन्नाणा नियम' भति मज्ञान मने श्रुत मज्ञान प्रभाएना में भज्ञानवाण होय छ, 'समुग्धाया भाटिलला तिन्नि मडिया पडसाना 3 त्रय समुद्धात भेटवे
वहना, ४षाय, मन भान्ति मे १y समुद्धात खाय छे. 'आउ अज्यवसाणं अणुबंधो य जहेव असणीण' ससशी व प्रभारी महिया આયુ જઘન્યથી એક અંતર્મુહૂર્તનું છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વકેટિનું છે, અહિયાં અધ્યવસાન અસંખ્યાત છે. પરંતુ તે બધા અપ્રશરસ્ત હોય છે. અનુબંધ જઘન્યથી એક અંતર્મુહૂર્તનું અને ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વ કેટિનું छ, 'अवसेसं जहा पढमगमए' या शिवायनु माडीतुं तमाम प्रयन पडसा ગમમાં કહ્યા પ્રમાણે અહિયાં સમજવું.
- હવે તમસ્વામી પ્રભુને એવું પૂછે છે કે- હે ભગવન જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળે તે સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ ચનિવાબે જીવ પિતે ધારણ કરેલ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪