Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०५ संक्षिपञ्चन्द्रियतिरश्चां नारकेषूनि० ४३९ पसंखेज्जहभाग' जघन्येनाङ्गुलस्यासंख्येयभागात्मिका, 'उक्को सेणं धणुहहुतं' उत्कर्षेण धनुःपृथक्त्वम् प्रथमगमे तेषां जीवानां शरीरसंबन्धिन्यवगाहना असंज्ञिवद् जघन्यतो अंगुलस्यासंख्येयभागात्मिका कथिता उत्कृष्टतस्तु योजनसहस्रपरिमिता शरीरावगाहना निरूपिता इह तु जघन्यतः पूर्वोदीरितैव शरीराव. गाहना उत्कृष्टतस्तु धनुःपृथकूस्वरूपा द्विधनुरारभ्य नवधनुः पर्यन्ता १ । तथा: लेश्यायामपि वैलक्षण्यम्-'लेस्साओ तिमि आदिल्लाओ' लेश्या स्तिस्र आदिमाः कृष्णनीलकापोतिकाः२ । दृष्टिविषये-'णो सम्मदिट्ठी' नो सम्यग् दृष्टयः, अपितु. 'मिच्छादिट्ठी' मिथ्यादृष्टय एते 'गो सम्मामिच्छादिट्ठी' नो सम्यग्मिथ्यादृष्टयः, न मिश्रदृष्टयोऽपि ते भवन्ति ३। 'णो णाणी' नो ज्ञानिन एते जीवा, 'दो अनाणा शरीरावगाहना 'जहण्णेणं अंगुलस्त असंखेज्जाभार्ग' जघन्य से तो अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है, और 'उक्कोलेणं उत्कृष्ट से वह 'धणुहपहुत्तं' धनुषपृथकाव है-२ धनुष से लेकर नो धनुष तक की है, प्रथम गम में उन जीवों की शरीरावगाहना असंज्ञी जीवों के शरीरकी अवगाहना के जैसी जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट से एक हजार योजन प्रमाण कही गयी थी और यहां वह जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट से २ धनुष से लेकर ९ धनुष तक की कही गयी है इस प्रकार यह अवगाहना की अपेक्षा भिन्नता है १ तथा लेश्या की अपेक्षा भिन्नता इस प्रकार से है-- 'लेस्साओ तिन्नि आदिल्लाओ' यहां आदि की ३ लेश्याएँ होती है, दृष्टि के विषय में ये सम्यग्दृष्टि और सम्यग मिथ्यादृष्टि नहीं होते हैं प्रमाणे ४-'सरीरोगाहणा' माडियां शरी२नी माना 'जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्न इभागो' धन्यथी तो मांगना मसण्यातमा साग प्रमाण छ, भने 'उक्कोसेणं' कृष्टथी त 'धणुहपुहुत्तं' धनुष छे. અર્થાત્ ૨ ધનુષથી લઈને ૯ નવ ધનુષ સુધીની છે, પહેલા ગામમાં તે જીના શરીરની અવગાહના અસંજ્ઞી જીવેના શરીરની અવગાહના પ્રમાણે જઘન્યથી આગળના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ અને ઉત્કૃષ્ટથી એક હજાર
જન પ્રમાણની કહી છે અને અહિયાં તે જઘન્યથી આગળના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ અને ઉત્કૃષ્ટથી ૨ બે ધનુષથી લઈને ૯ નવ ધનુષની કહી છે. આ રીતે અવગાહના સંબંધી ભિન્નપણું છે. ૧ તથા વેશ્યા સંબંધી मिन्नामा प्रमाणे छ.-'लेस्साओ तिन्नि आदिल्लाओ' मडियां पडेदी न હેશ્યાઓ હોય છે. ૩ દષ્ટિના સંબંધમાં સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચો સમ્યગુ દષ્ટિ, અને સમ્યમિચ્યા દષ્ટિવાળા દેતા નથી પણ મિથ્યાદૃષ્ટિજ હોય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪