Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे ॥ अथ सप्तमो वर्गः प्रारभ्यते । षष्ठ वर्ग सेंडियप्रभृतिक वणवनस्पतिविशेषाणां स्वरूप तज्जीवानां मूलादिषु समुत्पधमानानां समुत्पत्त्यादिकं च पदय हरितवनस्पतिजातीयाभ्ररुहादिवनस्पतिमूलतयोत्पद्यमान नीवानामुत्पादादिव्यवस्था प्रदर्शयितुं सप्तमो वर्गः प्रारभ्यते, तदनेन सम्बन्धेन आयातस्य सप्तमवर्गस्येदमादिमं सूत्रम्-'अब भंते' इत्यादि।
मूलम् -'अह भंते ! अब्भरुहवायणहरितगतंदुलेज्जगतणवत्थुलपोरगमज्जारिया विल्लीपालकदगपिप्पली दवी सोत्थियसायमंडुक्की मूलगसरिसव अंबिलसागे य जियंतगाणं एएसिंण जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति ते णं जीवा कओहिंतो उववज्जंति किं नेरइएहितो तिरिएहितो मणुस्सहिंतो देवेहिंतो वा० एवं एत्थ वि दस उद्देसगा जहेव वंसवग्गो।सू. १॥ एकवीसइमे सए सत्तमो वग्गो समत्तो॥
सातवें वर्ग का प्रारंभ सप्तम धर्ग प्रारंभ--चढे वर्ग में 'सेडिय आदि रूप तृण वनस्पतियों के स्वरूप का कथन करके और इनके मूल आदि कों में समु. स्पद्यमान जीवों की उत्पत्ति आदि प्रकट करके अब सूत्रकार हरितवनस्पति की जाति की जो अभ्ररूहादिरूप वनस्पति है सो उस वनस्पति के मलरूप से उत्पद्यमान जीवों की उत्पाद आदि की व्यवस्था को दिखाने के लिये सातवां वर्ग प्रारंभ करते हैं-इसी संबंध से आये हुए इस सप्तम वर्ग का 'अहभंते ! अन्भरुह' इत्यादि प्रथम सूत्र है, _ 'अह भंते ! अन्भरुह' इत्यादि ।
સાતમા વર્ગને પ્રારંભस भा 'सेडिय' विगैरे ३५ तय वन५तियाना २१३५नु ४यन કરીને અને મૂળ વિગેરેમાં ઉત્પન્ન થનારા જીવની ઉત્પત્તિ વગેરે પ્રગટ કરીને હવે સૂત્રકાર હરિત (લીલી) વનસ્પતિની જાતની જે અબ્રરૂહ વિગેરે રૂપ વનસ્પતિ છે, તે વનસ્પતિના મૂળરૂપે ઉત્પન્ન થનારા જીવોના ઉત્પાદ વિગેરે બતાવવા માટે સાત વર્ગ પ્રારંભ કરે છે–સાતમા વર્ગનું પહેલું સૂત્ર આ अभाव छ.-'अह भंते ! अम्भरुह' त्यादि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૪