Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२१ व. २ उ. १-१० कलायादि धान्यगतजीवनि० २४५ टीका - - ' अह भंते' अथ भदन्त ! 'कलायमसूर' कलायो धान्यविशेषः 'मसूर' मलूरोऽपि धान्यविशेष तिल' तिलोऽपि धान्यविशेष एवं स्नेहप्रधानकः तैलानां निमित्तभूतः 'मुग्ग' मुद्द्र, धान्यविशेषो द्विदल: 'मृग' इति लोकमद्धिः 'मास' माष: अयमपि द्विदलो धान्यविशेषः 'उरद' इति लोकप्रसिद्धः 'निष्फाव' निष्फावर लक्ष्या प्रादुर्भवति 'वाल' इति लोकमसिद्ध: 'कुलत्थ' कुलस्थोऽपि द्विदलो धान्यविशेषो 'आलिसंदग' आलिसन्दको धान्यविशेषो द्विदल एव 'सवीण' सतीणोऽपि धान्यविशेष एव 'हरिमंथगाणं' हरिमन्थकाः 'चना' इति लोकप्रसिद्धाः कलायादारभ्य हरिमन्थक पर्यन्तानामितरेतरयोग
टीकार्थ - गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है - हे भदन्त ! धान्य विशेषरूप जो ये कलाय, मसूर, तिल, मुद्ग माष, निष्पात्र, कुलत्थ, आलिसन्दक, सतीण एवं हरिमन्धक हैं सो इनके मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं - वे 'कओहितो उववजंति' कहां से आकरके उत्पन्न होते हैं ?, कलाय नाम मटर का है, मसूर प्रसिद्ध है यह धान्य विशेष हैं स्नेह प्रधान धान्यविशेष का नाम तिल है इससे तेल निकाला जाता है मुद्ग नाम मूग का है यह द्विदलों वाला होता है । माष-उड़द का नाम है, निष्फाव-वाल को कहते हैं । कुलथी का नाम कुलत्थ है, यह भी दो दलों वाला होता है आलिसन्दक भी मान्य विशेष है और यह भी दिलों वाला होता है, सतीग भी ऐसा ही होता है हरि
ટીકા”—ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને એવુ પૂછ્યું કે-હે ભગવાન્ ધાન્ય विशेष ३५ हे उद्याय - (या है वटाणा) मसूर, तल, भग, भडह निष्याव (वास) उजथी मालिसन्ड, सतीशु भने हरिभाऊ (अणा यथा) छे तेना भूण३पथी ने लव उत्पन्न थाय छे, तेथेो- 'कओहि तो उबवज्जति' इथांथी આવીને તે તે રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે ? કલાયામ મટર (વટાણા)નું છે, મસૂર પ્રસિદ્ધ જ સ્નેહ-તેલ પ્રધાન ધાન્ય વિશેષનુ નામ તલ છે. તેમાંથી તેલ કહાડવામાં આવે છે. મુદ્ર નામ મગનુ` છે. આ એ દળવાળા હાય છે. ભાષ અડદનું નામ છે. નિષ્કાવ વાલને કહે છે. કળથીને કુલત્ય કહે छे, मा પશુ કે દળવાળુ હોય છે. અને અલિસક પણ ધાન્ય વિશેષ છે. અને તે પણુ એ દળ વાળા હોય છે. સતીષુ પણ એ જ પ્રમાણે હોય છે. હરિમન્થક ચણાને કહે છે, કહેવાનુ તાત્પ એજ છેકે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪