Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२१ व१. उ.१ औषधिवनस्पतिशाल्यादिगतजीवनि० २१५ हे गौतम ! 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्त' जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उको सेणं असंखेज्ज कालं' उत्कृष्टतोऽसंख्येयकालम् ते जीवाः शालिबीद्यादौ जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तमानं तिष्ठन्ति उत्कृष्टतस्तु असंख्येयकालं यात्तिष्ठन्तीत्युत्तरम् । ‘से णं भंते जीवा' ते जीवा खलु भदन्त ! 'साली वीही गोधूमजवजवजवगमूलगजीवे पुढवीजीवे' शालिव्रीहि गोधूमयवयवयवकमूलकजीवः पृथिवी जीवः 'पुणरवि साली वीही गोधूमजबजवजवगमूलगनीवेत्ति केवइं कालं सेवेजा' पुनरपि शालिव्रीहि गोधूमयवयवयवकमूलक जीव इति कियत्कालं से वेत, गोधूमादीनां मूलनया समुत्पद्य तद्रूपेण कियन्तं कालंतत्र तिष्ठेत् 'केवइयं कालं गइरागई करिज्जा' कियन्तं कालं गत्यागती कुर्यात् ? अयमर्थः-हे भदन्त ! शाल्यादीनां यवयवयवानां मूलस्थिता जीवा पृथिवीकायिके समुत्पन्ना भवेयुस्तथा पुनरपि परावृत्य शाल्यादीनां यवयस्यवानां काल नक ठहरे रहते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं' हे गौतम! वे जीव शालि ब्रीहि आदि में जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्ततक और उत्कृष्ट से असंख्यात कालतक ठहरते हैं-रहते हैं। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से गं भंते ! जीवा साली-वीही-गोधूमजवजवजवगमूलग जीवे पुढवीजीवे' हे भदन्त! यदि शालि-ब्रीहि-गोधूम-यवयवयवक का मूलक जीव पृथिवीकायिक में उत्पन्न हो जाय और 'पुणरवि साली थीही गोधूमजवजवजवकमूलगजोवेत्ति केवयं कालं सेवेजा' फिर वह शालि, ब्रीहि, गोधूम जवजव जवक का मूलक जीव बने तो वह इस प्रकार से वहां कितने कालतक रहे-कितने कालतक गति आगति करे ? तात्पर्य इस प्रश्न का ऐसा है कि शाल्यादिकों के मूल में स्थित जीव यदि पृथिवीकायिक में उत्पन्न हो जाते हैं और फिर पृथिवीकायिक जहन्नेणे अतोमुहत्तं उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं' 3 गौतम ते ७वी, की बीस વગેરેમાં જઘન્યથી એક અન્તર્મુહૂર્ત સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી અસંખ્યાત કાળ सुधी २ छे. वेगौतम स्वामी प्रसुन से पूछे छ- से गं भंते ! साली-वीही-गोधूम-जवजवजवगमूलगजीवे पुढवीजीवे' समपन्न શાલી-વીહી–ઘઉં-યવ યવક-ના મૂળના છ પૃથ્વીકાયિકેમાં ઉત્પન્ન થઈ जय मन 'पुणरवि साली वीही गोधूम जवजवजवक मूलग जीवेत्ति केवइय कालं सेवेज्जा' ५ ते शादी नाही. ध ११ ४१ना भूगना व બને તે તે એ રીતે ત્યાં કેટલા સમય સુધી રહે-કેટલા કાળ સુધી ગમનઆગમન કરે ? આ પ્રશ્નનું તાત્પર્ય એ છે કે- શાલી વિગેરેના મૂળમાં રહેલા જીવ જે પૃવીકાયિકોમાં ઉપન્ન થઈ જાય અને પછી પૃથ્વીકાયિકની
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪