Book Title: Angavijja
Author(s): Punyavijay, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
Catalog link: https://jainqq.org/explore/001439/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ਸ गनिपण्यविजय Wਰ ਦੀ ਧੀ ਨੂੰ ਤਫ਼ਸਰਫy Jain Education Intemational Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत ग्रन्थ परिषद् ग्रन्थाङ्क १ [ मणुस्सविविहचेट्टाइणिरिक्खणदारेण भविस्साइफलणाणविण्णाणरूवा ] वीरसंवत् २५२६ पुव्वायरियविरइया अंगविज्जा परिसिट्ठाइविभूसिया XXXXXXXX संशोधकः सम्पादकश्च मुनिपुण्यविजय: [जिनागमरहस्यवेदि - जैनाचार्य श्रीमद्विजयानन्दसूरिवर (प्रसिद्धनाम - श्री आत्मारामजीमहाराज) शिष्यरत्न - प्राचीन जैनभाण्डागारोद्धारक - प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयान्तेवासिनां श्रीजैनआत्मानन्दग्रन्थमालासम्पादकानां मुनिप्रवरश्रीचतुरविजयानां विनेयः ] प्रकाशिका प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अहमदाबाद - ९ विक्रमसंवत् २०५६ For Private Personal Use Only ईस्वीसन् २००० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Prakrit Text Society Series No. 1 ANGAVIJJĀ (Science of Divination through Physical Signs & Symbols) EDITED BY Muni Shri PUNYAVIJAYAJI : GENERAL EDITORS : D. D. MALVANIA H. C. BHAYANI PRAKRIT TEXT SOCIETY AHMEDABAD-9 2000 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: हरिवल्लभ भावाणी C/o एल. डी. इन्स्टिट्युट ओफ इन्डोलोजी, अमदाबाद- ३८० ००९. प्रथमावृत्ति : १९५७ द्वितीय पुनर्मुद्रण : २००० ई. प्रति : ५०० अध्यक्ष प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी © सर्वाधिकार स्वाधीन पुनः प्रकाशन- प्रेरणा : आचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिः प्राप्तिस्थान १ प्रा. टे सो कार्यालय Co एल. डी. इन्स्टिट्युट ओफ इन्डोलोजी गुजरात युनिवर्सिटी परिसर, अमदावाद- ३८० ००९. २. सरस्वती पुस्तक भण्डार श्री अश्विनभाई बी. शाह ११२, रतनपोल, हाथीखाना, मूल्य : रू ३५०/ अमदाबाद- ३८० ००१ फोन नं. : (०७९) ५३५ ६६ ९२ मुद्रक : मनन टाईप सेटर्स, दिलीप आई. पटेल घर नं. ८५६, तीसरी गली, नारणपुरा गाम, अमदावाद - ३८० ०१३. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति श्रीमान् डॉ. राजेन्द्रप्रसाद Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण जिस भूमि में भगवान् महावीर ने जन्म लेकर अहिंसा धर्म की स्थापना की, जिस भूमि में भगवान् बुद्ध ने आकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया, उसी बिहार की पुण्यभूमि में जन्म लेने वाले स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति भारतीय वाङ्मय के उपासक श्रीमान् डो. राजेन्द्रप्रसाद के करकमलों में भारत की प्राचीन प्राकृत - मागधी भाषा का "प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी" द्वारा प्रकाशित यह प्रथम ग्रन्थ अंगविज्जा समर्पित है । मुनि पुण्यविजय Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थानुक्रम vii viii ix-x Foreword द्वितीयमुद्रणके अवसर पर : निवेदन मुनि पुण्यविजयजी का किंचित् परिचय - ले. लक्ष्मणभाई भोजक १. श्री पुण्यविजयजी के संपादित ग्रन्थों की सूचि Preface (प्राक्कथन) प्रस्तावना (मुनि श्री पुण्यविजयजी) विषयानुक्रम X1 २. xii-xiv १-१४ १५-२८ २९-४५ Introduction (Dr. Moti Chandra) अंगविज्जा (हिन्दी भूमिका-श्री वासुदेवशरण अग्रवाल) ७. हस्तलिखित प्रतियों के फोटोचित्र ४६-७८ ७९-८० ८. अंगविज्जा पइण्णय-मूलग्रन्थ १-२६९ परिशिष्टानि प्रथम परिशिष्ट-सटीकम् अंगविद्याशास्त्रम् २६९-२७८ द्वितीय परिशिष्ट-अंगविज्जा-शब्दकोष २७९-३२२ तृतीय परिशिष्ट-अंगविज्जान्तर्गतप्राकृतधातुप्रयोगाणां संग्रहः ३२३-३३२ चतुर्थ परिशिष्ट-(१) अंगविज्जानवमाध्ययमध्यगतानामङ्गनाम्नां कोषः ३३३-३३५ (२) अंगविज्जानवमाध्यायप्रारम्भे निर्दिष्टानां २७० अङ्गविभाजकद्वाराणां संग्रहः ३३६-३३८ (३) अंगविज्जानवमाध्याये विभागशो निर्दिष्टानामङ्गनाम्नां यथाविभागं संग्रहः ३३८-३४५ पञ्चमपरिशिष्ट-अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः संग्रह: ३४६-३६५ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOREWORD The Angavijja-painnaya (Sk. Angavidyā-prakirnaka) is a unique work of its own kind preserved only in the Svetämbara Jain Agamic tradition. It is a science of divination from bodily signs, conditions, gestures etc. But incidentally it presents hundreds of classified lists of realia pertiaining to the socio-cultural life of India of the period upto (and several centuries prior to the fourth century. The data that thus becomes available is encyclopaedic in its range as is shown by the various word indexes given in the book, covering ninety large-sized pages. The work is also a mine of lexicographical data. The list of contents and the scholarly introduction of the late doctors Vasudevsharan Agrawal and Moti Chandra gives an adequate idea of the subject matter and cultural significance. It is to the credit of Late Muni Punjyavijayaji who, in the midst of his numerous activities and untiring work, prepared a critical edition of this difficult Prakrit text, and gave to the Prakrit Text Society and its secretary Pt. Dalsukh Malvania for starting publication of the books under Prakrit Text Society Series. It is very unfortunate that no full-length studies of the various aspects of this work of unparallel importance have appeared eventhough some fifty years have lapsed after its publication. The work was out of print for several years. We are grateful to Acharya VijayaShilchandrasuriji, who as an active well-wisher of the Society arranged for this reprint. H. C. Bhayani President, Prakrit Text Society. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीय मुद्रणके अवसर पर : प्रकाशकीय निवेदन स्वतंत्र भारतके प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ. राजेन्द्रप्रसाद महोदयके प्रोत्साहक पथदर्शन में, ई. १९५३ के वर्षमें कार्यरत 'प्राकृत ग्रन्थ परिषद्' (PTS) नामक संस्थान के ४८ वें वर्षमें पदार्पण के सुअवसर पर, इसी संस्थान द्वारा प्रकाशित प्रथम महाग्रंथ 'अंगविज्जा' का पुनः प्रकाशन करते हुए मैं आनन्द अनुभव कर रहा हूं। दिवंगत आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजीने सख्त परिश्रम उठाकर इस ग्रंथका संशोधन व सम्पादन किया और इसकी प्रथम आवृत्ति ई. १९५७ में PTS. द्वारा प्रकाशित की गई। पिछले कई सालोंसे उक्त आवृत्ति अलभ्य हो चुकी थी, और उसका पुनः प्रकाशन अपेक्षित था । संस्थाके सौभाग्य से, आचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ, और इस ग्रंथ के पुनः प्रकाशन के लिए उन्होंने 'पूर्व-ग्राहक योजना' का आयोजन किया । इस योजना में भाग लेनेवाले दाताओं का मैं अभिवादन करता हूं। पहले सोचा था कि आधुनिक फोटो-झेरोक्स-पद्धतिसे ग्रंथ का पुनर्मुद्रण बहुत आसानीसे हो सकेगा । परंतु तदर्थ किया गया प्रयत्न असफल रहा । अतः पुनः टाइप-सेटिंग (कम्पोज) करना ही शेष रहा । फिर वह कार्य बहुत कष्टदायक व श्रमसाध्य था । किंतु मुझे आनन्द है कि मनन टाइप सेटर्स के श्री दिलीपभाई पटेलने यह मुश्किल कार्यको हाथ में ले लिया, और बहुत अच्छे ढंगसे मुद्रणका कार्य कर दिखाया है। एतदर्थ उन्हें शतशः धन्यवाद । प्रूफवाचन के कार्य में मुनि श्री धर्मकीर्तिविजयजी तथा मुनि श्रीकल्याणकीर्तिविजयजीका भी काफी योगदान रहा है; मैं उनका आभारी हूं। यह मुद्रणव्यवस्थामें अश्विन शाह के सहयोग के लिए आभारी हूँ । मुझे उम्मीद है कि इसी प्रकार से PTS. के अन्य अलभ्य प्रकाशनों भी पुन: प्रकाशनाधीन बनेंगे । PTS. की भूमिका, कार्यक्षेत्र एवं प्रारंभ - इत्यादिकी जानकारी प्रथम आवृत्तिके प्रधान सम्पादकों के निवेदन PREFACE द्वारा प्राप्त हो सकेगी । अंत में, आज जब प्राकृत भाषा एवं साहित्यको एक उपेक्षित चीज मानी-मनायी जाने की व्यापक साज़िश पैदा हो रही है, ऐसे समय में PTS. जैसी संस्था की खूब खूब व शीघ्र उन्नति हो और उसके माध्यम से प्राकृत भाषा एवं साहित्य का खूब प्रचार-प्रसार हो, ऐसी शुभकामना के साथ । दि. १-१-२००० - हरिवल्लभ भायाणी अध्यक्ष प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी अमदाबाद Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ పి आगमप्रभाकर श्रुतशीलवारिधि मुनिराजश्री पुण्यविजयजी जन्मशताब्दी ई. स. १८९७ — १९९७ w Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्यपाद आगमप्रभाकर मुनिराजश्री पुण्यविजयजी महाराजजी का संक्षिप्त परिचय स्वनामधन्य पूज्य मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराज का जन्म गुजरात के कपडवंज गाँव में विक्रम संवत् १९५२ कार्तिक शुक्ला पंचमी (ज्ञानपञ्चमी) के शुभ दिन हुआ था । उनकी माता का नाम माणेकबेन और पिता का नाम डाह्याभाई दोशी था । उनका संसारी नाम मणिलाल था । उन्होंने विक्रम संवत् १९६५ में महामास के कृष्ण पक्ष की पञ्चमी के शुभ दिन पू. मुनिराजश्री चतुरविजयजी महाराज के पास गुजरात में छाणी गांव में प्रव्रज्या ग्रहण की और उन्हें पुण्यविजयजी नाम प्रदान किया गया । उनका कालधर्म विक्रम संवत् २०२७ ज्येष्ठमास कृष्ण पक्ष षष्ठी के दिन बम्बई में हुआ । दादागुरु पूज्य प्रवर्तक मुनि श्री कान्तिविजयजी महाराज से प्रकरण-ग्रन्थों का, पण्डित श्री भाइलालभाई से संस्कृत मार्गोपदेशिका का, पण्डित नित्यानन्दजी से सिद्धहैम-लधुवृत्ति, हैमलघुप्रक्रिया इत्यादि का और जैन दर्शन सहित सर्व भारतीय दर्शनों के प्रखर विद्वान् पंडितवर्य श्री सुखलालजी संघवी से अध्ययन किया । उन्होंने संशोधनकार्य की शिक्षा पूज्य गुरुदेव मुनिश्री चतुरविजयजी के साथ कार्य करते हुए प्राप्त की । उन्होंने ग्रन्थ-भण्डारों के संरक्षण और ग्रन्थ-संशोधन में अपना समग्र जीवन व्यतीत किया । वे संशोधन-कार्य में इतने अत्यन्त परिश्रमी थे कि जिसके लिये यह एक ही दृष्टांत काफी है कि जब उन्हें प्रोस्टेट ग्लैण्ड के ओपरेशन के लिए बम्बई में अस्पताल ले जाने की परिस्थिति पैदा हुई, तब भी उन्होंने मुझे आवश्यक नियुक्ति-चूर्णि की प्रेसकापी साथ लेने की सूचना दी थी । जैन ज्ञानभण्डारों के उद्धार और आगमसंशोधन के कार्यों में उन्होंने जो परिश्रम किया है, उससे विद्वज्जगत् सुपरिचित है । मुझे उनके साथ रहने का सु-अवसर अतिदीर्घ काल पर्यंत (ई. १९५७ से १९७१ तक) मिला है। वे स्वाध्यायादि में अप्रमत्त थे । मैंने कदापि उन्हें दिन में विश्राम लेते नहीं देखा । वे किसी भी विद्वान् को स्वाध्याय-सामग्री शीघ्र ही लभ्य कराते थे और संशोधनकार्य में तो वे स्वयं ही अत्यन्त परिश्रम करते थे। लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर, अमदावाद के लिए हस्तलिखित ग्रन्थ संगृहीत करने का कार्य चल रहा था, तब यतिश्रीयों, महात्माओं, पण्डितों और व्यापारियों द्वारा लाए हुए हर एक ग्रन्थ को वे पूर्णतया दृष्टिसे सोचकर, पूरी परीक्षा कर और शारीरिक श्रम की परवाह किये बिना स्वयं निर्णय करते थे । किसी भण्डार में ग्रन्थ बिखर गये हों, तब उनके भिन्न-भिन्न पत्रों को पढ़कर वे उनको व्यवस्थित करते थे। ऐसे कार्य यथाशीघ्र सम्पन्न करने पडते थे। फिर भी वे कभी आक्लान्त नहीं होते, बल्कि बहुत आनन्दपूर्वक करते थे । आगम-प्रकाशन हेतु प्राचीन संशोधित और शुद्ध प्रति की खोज में वे ग्रन्थभण्डारों की तलाश करते रहते थे । जब कभी भी उन्हें अच्छी-शुद्ध प्रति मिली, तो उन्होंने तुरंत प्रतिलिपि करवाई थी । इस तरह उन्होंने लाखों श्लोकों की प्रतिलिपि करवाई है और पाठान्तर एकत्रित किये हैं । मुद्रित ग्रन्थों में से पाठान्तर अंकित करना, भ्रष्ट पाठ की शुद्ध करना इत्यादि निरन्तर चलता ही रहता था । यही कारण है कि उनके पास मुद्रितसंशोधित ग्रन्थों का भी एक सङ्ग्रह बन गया । __ पूज्य मुनिजीने ग्रन्थों पर लगी रज की सफाई से लेकर पोथी बांधने तक के सभी कार्य स्वयं किये हैं । जेसलमेर किले के भण्डार के ताडपत्रीय ग्रन्थों को बहुत लोगों ने अस्तव्यस्त कर दिया था, जिन्हें पुनः मुनिश्रीने व्यवस्थित किये । सूचीकरण में ग्रन्थ का नाम, कर्ता, रचनाकाल, लेखनकाल, भाषा, पत्रसंख्या, श्लोकसंख्या के अलावा, पत्रक्रमानुसार प्रतियोंको संपूर्ण व्यवस्थित करना, अच्छे कागज से आवृत करना, नाम-नम्बर लिखकर लकडी के बक्से में रखना, कपाट बनवाना, कपाट में पुस्तक रखवाना, इत्यादि सब कार्य समाविष्ट होते हैं । यह सब कार्य वे स्वयं करते व करवाते थे । कभी कोई ज्ञानभण्डार के ट्रस्टी पुस्तक देने में विलम्ब करे या बारबार समय दे कर भी न देवें, तो भी वे व्याकुलता महसूस नहीं करते थे । कई बार वे मुझे कहते थे, "इनके पूर्वजों ने यह सामग्री कितने परिश्रम से संभालकर रखी है, उनका यह गुण हम नजरअंदाज नहीं कर सकते ।" Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वे आगामी काल में भी ग्रन्थोंकी परम्परा अविच्छिन्न रहे इसके लिए भी यत्नशील थे । लेखकारों से काश्मीरी देशी कागज़ पर ग्रन्थों को लिखाकर उनकी क्षतियों भी वे स्वयं ही सुधारते थे । बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति, लघुभाष्य, सटीक - पत्रसंख्या १७६७, उद्देशक १ से ६ ग्रंथाग्र ४२६०० (प्रकाशक-आत्मानंद जैन सभा भाग १ से ६) - यह प्रति पूज्यश्रीने स्वयं कलम लेकर हरताल (Yellow-arsenic) से शुद्ध की है और अद्यापि लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर अमदावाद के हस्तप्रत विभाग में (भेंटसूचि क्र. १०४९ से १०५६) सुरक्षित है । __ हस्तलिखित पुस्तकों के रक्षण के लिए साग की लकड़ी के डिब्बों में रखने की परम्परा बहुत पुरानी है, परन्तु मुनिश्रीने सर्वप्रथम बार उन डिब्बों को Air-light बनाने की परिकल्पना की । फलतः लकडी के डिब्बों में रज के प्रवेश की शक्यता बहुत ही कम हो जाती है और ग्रन्थों को कपडे से नहीं बांधने पर भी हवाधूल आदि से रक्षण मिलता है । जैसलमेर में किया गया ज्ञानभण्डार का कार्य तो बहुत ही कष्टप्रद था । अत्यन्त ठंडी, अत्यन्त गर्मी और रणप्रदेशकी सतत आंधियाँ और ऐसे में अस्तव्यस्त हुए ताडपत्रों को व्यवस्थित मिलाने के लिए कमरे की खिड़कियाँ और दरवाजे बन्द कर के कार्य करने में हम सब जो परेशानी महसूस करते थे, उसका अंश भी पूज्यश्रीमें दिखता नहीं था, बल्कि वे तो पूरे दिन उत्साह से कार्य करते थे । यही उनके समत्व का प्रमाण है। वडोदरा में श्री आत्मानन्द जैन ज्ञानमन्दिर में पूज्यपाद मुनिश्री हंसविजयजी शास्त्रसङ्ग्रह में एक सुवर्णाक्षरीय सचित्र कल्पसूत्र की जौनपुर (प्राय: १६वीं शताब्दी)में लिखी गई प्रति जीर्ण हो जाने से बम्बई भेजी गई थी, जो सुधारकर अमदाबाद पूज्यश्रीको लुणसावाडा उपाश्रयमें पहुँचाई गई । यह प्रति पूज्यश्री के पास ही थी । उसे बम्बई जाते समय वडोदरा श्री संघ को वापस दे दी । उस समय ज्ञानभण्डार के ट्रस्टी महाशयों और संघ के अग्रणियों को वे एक-एक पत्र स्पष्ट दिखाते थे । उस समय मेरे मनमें विचार आया कि इसकी यहाँ कौन संभाल लेगा? वे मेरे इस विचारको समझ गये और तुरन्त मेरे सामने देखा और पूछा कि क्या सोच रहे हो यह पोथी कौन संभालेगा ? क्या ५०० वर्ष तक तुमने संभाली थी ? श्रीसंघ के पुण्य से इसकी संभाल लेनेवाले मिल जाएँगे । प्रति ट्रस्टी महोदयों को सौंप दी गई । मैंने सुना है कि आज भी वह बेन्क के लोकर में सुरक्षित है। 'भारतीय जैन श्रमणसंस्कृति और लेखनकला' (Gujarati)-नामक पुस्तक लिखकर पूज्यश्रीने हस्तप्रत भण्डार, उनकी लेखनपद्धति और संरक्षण पद्धतिकी जानकारी समाज के आगे रखी । गलित पाठदर्शक चिह्न आदि १६ प्रकार के प्राचीन हस्तप्रतों में प्राप्त चिह्नों का परिचय दिया । गण्डी, कच्छपी, मुष्टि, संपुटफलक और छीवाडी पुस्तकों का परिचय कराया । कागज की पोथियों के सूड, त्रिपाठ, पंचपाठ, हुंडी, जिब्भा, रिक्तलिपिचित्र, चोरअङ्क इत्यादि की समजूती दी । पुस्तकलेखन के उपकरण ओळियुं, फांटियु, कांठां, बरू, वतरणां, जुजवळ, प्राकार, कम्बिका और पुस्तक-संरक्षण के उपकरण ग्रन्थिका, पाठाँ, चाबखी, झलमल, वींटामj, कवळी इत्यादि विस्मृत हुए शब्दों के अर्थ प्रकाश में लाए । महावीर जैन विद्यालय की जगविख्यात जैन आगम ग्रन्थमाला तथा प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी की विद्वन्मान्य ग्रन्थ श्रेणियों के मुख्य सूत्रधार भी वे ही थे। इसके उपरान्त, एल. डी. इन्स्टीट्यूट, अमदावादकी सुप्रसिद्ध ग्रन्थावली में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इस तरह पूरे ६२ वर्ष तक ज्ञानसाधना करते करते उन्होंने वि.सं. २०२७ के ज्येष्ठ मास की कृष्ण षष्ठी के दिन बम्बईमें अंतिम सांस लिये । वि.सं. २०५३ उनकी जन्मशताब्दी का वर्ष था । इस सु-अवसर की स्मृति में प्राकृत ग्रन्थ परिषद् की ग्रन्थश्रेणि के प्रथम पुष्प-'अङ्गविज्जा' (पूज्यश्री द्वारा सम्पादित ग्रन्थ) का पुनर्मुद्रण करके प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी के कार्यवाहकों ने पूज्यश्री को समुचित अञ्जलि दी है। पूज्यश्री के सतत सहवास से मुझमें अविरत कार्य करने की वृत्ति उत्पन्न हुई, जिससे आज पर्यन्त (८३ वर्ष की उम्र में भी) में कार्यरत हूँ। में यहाँ उनका पवित्र स्मरण कर उनके चरणोमें वन्दन करता हूँ। १-जनवरी, २००० - लक्ष्मणभाई ही. भोजक Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूज्य मुनि श्री पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित ग्रन्थों की सूचि मुद्रणवर्ष १९१७ १९१८ १. मुनि रामचन्द्रकृत कौमुदीमित्रानन्दनाटक २. मुनि रामभद्रकृत प्रबुद्धरौहिणेय नाटक ३. श्रीमन्मेघप्रभाचार्यविरचित धर्माभ्युदय (छाया नाटक ) ४४. गुरुतत्त्वविनिय *E. (उपाध्याय श्री यशोविजयकृत) ऐन्द्रस्तुतिचतुर्विंशतिका (वाचक संघदासगणिविरचित) वसुदेव- हिण्डि *७. कर्मग्रन्थ ( भाग १-२ ) १८. बृहत्कल्पसूत्र नियुकिाभाष्यवृत्तियुक्त (भाग १-६) ९. भारतीय जैन श्रमणसंस्कृति अने लेखनकला १०. ( पूज्य श्री जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणविरचित) जीतकल्पसूत्र स्वोपज्ञभाष्य सहित ११. (कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यप्रणीत) सकलास्तोत्र श्रीकनककुशलगणिविरचित वृत्तियुक्त १२. श्री देवभरिकृत) कथारत्नकोश १३. ( श्री उदयप्रभसूरिकृत) धर्माभ्युदयमहाकाव्य १४. (कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्यप्रणीत) त्रिषष्टिशालाकापुरुषचरित्र-महाकाव्य ( पर्व २, ३, ४) १५. जेसलमेरली चित्रसमृद्धि १६. कल्पसूत्र नियुक्ति, चूर्णि टिप्पण गुर्जर अनुवाद सहित १९१८ १९२५ १९२८ १९३३ - ३८ तथा १९४२ १९३०-३१ १९३४-४० १९३५ १९३८ १९४२ १९४४ - १९४९ १९५० १९५१ १९५२ १९५७–२००० १९६१ २०. सोमेश्वरकृत उल्लाघराघवनाटक २१. Descriptive Catalogue of palm leaf MSS. in the Shantinath Bhandar २२. Catalogue of Sanskrit and Prakrit MSS. of L. D. Institute of Indology, Parts I-IV २३. (श्रीनेमिचन्द्राचार्यकृत) आख्यानकमणिकोश, आम्रदेवसूरिकृत वृत्ति सहित X२४. ( (श्री हरिभद्रसूरिकृत) योगशतक स्वोपज्ञवृत्तियुक्त; तथा ब्रह्मसिद्धान्तसमुच्चय २५. (सोमेश्वरकृत) रामशतक २६. नन्दी चूर्णसहित २७. +२८. नन्दीसूत्र- विविध वृत्ति युक्त (आचार्य हेमचन्द्रकृत ) निघण्टुशेष, श्री श्रीवल्लभगणिकृत टीका सहित +२९. नंदि अणुओगदाराई ३०. ज्ञानाञ्जलि (महाराज श्रीना दीक्षापर्यायषष्टिपूर्ति समारोह प्रसंगे प्रगट थयेल महाराज श्रीना लेखोनो तथा महाराजश्रीने अंजलि आपता लेखोनो संग्रह) +३१. पन्नवणासुत्त (प्रथम भाग ) +३२. पन्नवणासुत्त (द्वितीय भाग) ३३. जेसलमेरज्ञानभाण्डारसूचिपत्र मुद्रणवर्ष १९६१ १९६१ - १९६६ १९६३, १९६५, १९६८, १९७२ १९६२ १९६५ १९६६ १९६६ १९६६ १७. अंगविज्जा ३४. पत्तनज्ञान भाण्डारसूचिपत्र भाग - १ १८. (सोमेश्वरकृत) कोर्तिकौमुदी तथा (अरिसिंहकृत) सुकृतसंकीर्तन १९. सुकृतकीर्तिकल्लोलिन्यादि वस्तुपाल - प्रशस्तिसंग्रह ३५. दसकालीयच अगस्त्यसिंह चूर्णि सहित ३६. सूत्रकृतांग चूर्णि भाग-१ १९६१ ३७. कवि रामचन्द्रकृत नाटकसंग्रह एतदुपरान्त, मुनिश्रीने अनेक आगमग्रन्थ व अन्य ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ ( Press copy) करवा रक्खी है और उनमें स्वयं पाठान्तर भी ले रक्खें हैं । उसी तरह, मुद्रित आगम व आगमेतर ग्रन्थों के पाठान्तर भी उन्होंने ले रक्खे हैं; इस प्रकार उन्होंने विपुल मुद्रणार्ह सामग्री विद्वानों के लिए उपलब्ध कर दी है । * इस चिह्नांकित ग्रन्थों का सम्पादन स्वर्गीय गुरुवर्य श्रीचतुरविजयजीके साथ किया है । X इस चिह्नवाले ग्रन्थों का सम्पादन स्व. डॉ. भोगीलाल जे. सांडेसरा के साथ किया है । + इस चिह्नवाले ग्रन्थों का सम्पादन पं. दलसुखभाई मालवणिया तथा पं. अमृतलाल मो. भोजक के साथ किया है ! १९६८ १९६८ १९६९ १९६९ १९७१ १९७२ १९७३ १९७३ १९७३ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREFACE The current of Indian literature has flown into three main streams, viz, Sanskrit, Pali and Prakrit. Each of them witnessed an enormous range of creative activity. Sanskrit texts ranging in date from the Vedic to the classical period and belonging to almost all branches of literature have now been edited and published for more than a century beginning with the magnificent edition of the Rgveda by Prof. Max Müller. The Pali literature devoted almost exclusively to the teaching and religion of the Buddha was even more lucky in that the Pali Text Society of London planned and achieved its comprehensive publication in a systematic manner. Those editions of the Pali Vinaya, Sutta and Abhidhamma Pitakas and their commentaries are well known all the world over. The Prakrit literature presents an amazing phenomenon in the field of Indian literary activity. Prakrit as a dialect may have had its early beginnings about the seventh century B.C. From the time of Mahāvīra, the last Tirthankara who reorganised the Jaina religion and church in a most vital manner and infused new life into all its branches, we have certain evidence that he, like the Buddha, made use of the popular speech of his time as the medium of his religious activity. The original Jaina sacred literature or canon was in the Ardhamāgadhi form of Prakrit. It was compiled sometime later, but may be taken to have retained its pristine purity. The Prakrit language developed divergent local idioms of which some outstanding regional styles became in course of time the vehicle of varied literary activity. Amongst such Śauraseni, Maharashtri and Paisachi occupied a place of honour. Of these the Mahārāshtri Prakrit was accepted as the standard medium of literary activity from about the first century A.D. until almost to our own times. During this long period of twenty centuries a vast body of religious and secular literature came into existence in the Prakrit languages. This literature comprises an extensive stock of ancient commentaries on the Jaina religious canon or the Agamic literature on the one hand, and such creative works as poetry, drama, romance, stories as well as scientific treatises in Vyakaraņa, Kosa, Chhanda etc. on the other hand. This literature is of vast magnitude and the number of works of deserving merit may be about a thousand. Fortunately this literature is of intrinsic value as a perennial source of Indian literary and cultural history. As yet it has been but indifferently tapped and is awaiting proper publication. It may also be mentioned that the Prakrit literature is of abiding interest for tracing the origin and development of almost all the New Indo-Aryan languages like Hindi, Gujarati, Marathi, Panjabi, Kashmiri, Sindhi, Bangali, Uriya, Assamese, Nepali etc. A national effort for the study of Prakrit languages in all aspects and in proper historical perpective is of vital importance for a full understanding of the inexhaustible linguistic heritage of modern India. About the eighth century the Prakrit languages developed a new style known as Apabhramsa which has furnished the missing links between the Modern and the Middle Indo-Aryan speeches. Luckily several hundred Apabharamsa texts have been recovered in recent years from the forgotten archives of the Jaina temples. With a view to undertake the publication of this rich literature some coordinated efforts were needed in India. After the attainment of freedom, circumstances so moulded themselves rapidly as to lead to the foundation of a society under the name of the Prakrit Text Society, which was duly registered in 1953 with the following aims and objects: (1) To prepare and publish critical editions of Prakrit texts and commentaries and other works connected therewith. (2) To promote studies and Research in Prakrit languages and literature. (3) To promote Studies and Research of such languages as are associated with Prakrit. (4) (a) To set up institutions or centres for promoting Studies and Research in Indian History and Culture with special reference to ancient Prakrit texts. (b) To set up Libraries and Museums for Prakrit manuscirpts, paintings, coins, archaeological finds and other material of historical and cultural importance. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) To preserve manuscripts discovered or available in the various Bhandars throughout India, by __modern scientific means, inter alia photostat, microfilming, photography, lamination and other latest scientific methods. (6) To manage or enter into any other working arrangements with other Societies having any of their objects similar or allied to any of the objects of the Society. (7) To undertake such activities as are incidental and conducive, directly or indirectly, to and in furtherance of any of the above objects From its inception the Prakrit Text society was fortunate to receive the active support of His Excellency Dr. Rajendra Prasad, President, Republic of India, who very kindly consented to become its Chief Patron and also one of the six Founder Members.* The Prakrit Text society has plainly taken inspiration from the Pali Text society of London as regards its publication programme, of which the plan is as follows: I Āgamic Literature अंग-आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञा, ज्ञाताधर्मकथा, उपासक, अन्तकृत, अनुत्तरौपपातिक, प्रश्नव्याकरण, विपाक । उपांग-औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा । मूलसूत्र-आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, पिण्डनियुक्ति, ओघनियुक्ति । छेदसूत्र-निशीथ, महानिशीथ, बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कन्ध, कल्पसूत्र, जीतकल्प । प्रकीर्णक-चतुःशरण, आतुरप्रत्याख्यान, भक्तपरिज्ञा, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रवेध्यक, देवेन्द्रस्तव, गणिविद्या, महाप्रत्याख्यान, संस्तारक, मरणसमाधि, गच्छाचारप्रकीर्णक, ऋषिभाषित, आदि । II Āgamic Commentaries नियुक्ति, संग्रहणी, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, टीका, बालावबोध आदि । III Agamic Prakaranas समयसार आदि IV Classical Prakrit Literature काव्य (पउमचरिय आदि), नाटक (कर्पूरमंजरी आदि), आख्यान-कथा (वसुदेवहिण्डी, धम्मिल्लहिण्डि, समराइच्चकहा आदि), पुराण (चउपन्नमहापुरिस आदि) V Scientific Literature Grammar, Lexicography, Metrics, Rhetorics, Astronomy, Mathematics, Arts and other Sciences. The Society has selected as the first item of its publication programme an ancient text known as the Angavijjā. It had not been published so far and is an exceptionally rich source of Indian cultural history. Like Buddhist Mahāvyutpatti it has preserved valuable lists appertaining to the realia of Indian life. The readers can form an idea of its contents from the Introduction in English and in Hindi printed in the beginning of the text. Other Founder Members are - Shri Muni Punyavijayji, Acharya Vijayendra Suri, Shri V. S. Agrawala, Shri Jainendra Kumar, Shri Fatechand Belaney. Shri Belaney acted as Society's Secretary from the beginning upto May 1957 and displayed great organising ability in founding the Society. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ This edition has been prepared by Muni Shri Punyavijayji, the venerable doyen of Prakrit language and literature in India today. He has devoted a whole life-time to the preparation of critical editions of the Agamic texts. His ascetic discipline and rigorous critical faculties have enabled him to cope single-handed with a problem of vast magnitude in the domain of Prakrit text criticism. The Prakrit Text Society has been fortunate to receive his blessings and also the fruits of his lifelong labours in the form of those critical editions which like the Angavijja now being presented will be published by the Society in due course. On behalf of ourselves and our countrymen we offer our most respectful gratitude to Muni Shri Punyavijayji. The Programme of work undertaken by the Society involves considerable expenditure, towards which liberal grants have been made by the following Governments : Madras Orissa Mysore Punjab Government of India Government of Assam Government of Bombay Government of Bihar Government of Delhi Government of Hyderabad Madhya Pradesh Madhya Bharat 10,000/ 2,500/ 10,000/ 10,000/ 1,000/ 3,000/ 10,000/ 10,000/ BANARAS HINDU UNIVERSITY, 14th September, 1957. Rajasthan Saurashtra Travancore Cochin Uttar Pradesh West Bengal Kerala To these have been added grants made by the following Trusts and individual philanthrophists : Sir Dorabji Tata Trust Seth Lalbhai Dalpatbhai Trust Seth Narottam Lalbhai Trust Seth Kasturbhai Lalbhai Trust Shri Ram Mills, Bombay Girdhar Lal Chhotalal Tulsidas Kilachand Rs. 10,000/Rs. 5,000/Rs. 5,000/ Rs. 8,000/ Rs. 5,000/ Rs. 5,000/ Rs. 2,500/ Rs. 1,000/ Rs. 1,000/Rs. 1,000/ Laharchand Lalluchand Nahalachand Lalluchand Navjivan Mills The Society records its expression of profound gratefulness to all these donors for their generous grantsin-aid to the Society. The Society's indebtedness to its Chief Patron Dr. Rajendra Prasad has been of the highest value and a constant source of guidance and inspiration in its work. Rs. 10,000/ Rs. 10,000/Rs. 5,000/ Rs. 10,000, Rs. 5,000/ Rs. 1,250/ 2,500/ 10,000/ Rs. 10,000/ Rs. 2,500/ General Editors VASUDEVA S. AGRAWALA, DALSUKH MALVANIA, Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जा SCIENCE OF DIVINATION THROUGH PHYSICAL SIGNS & SYMBOLS Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ je 219 LE LI LA DEJ REL elle neredelsi c helle lokeliablemeleeuseetcaldebultetsake ERLBERAPBdgetele secueneeeeeeeeeeeaaeeja126p 622) blakeeeeeeeeheerbie Saltele seule cube r tetele Lubenen Heldtelligieun PUBLne ulegaleesett Sepalielina lencereldScuterietate eleifelschepeilisenebee patolette a se kutecek blackjalashtu selerntetenul celelalte E kleuke Sulitolellisarklaual BON P encemetrebkeltpel Uskje tejetik Bireuelsdepsicleellist? nubben Erweile BGEBI Qebeleljele2g eE2121212 landet. jela ljeewee Bd328€ zleplejo (1221062! 122jeralteyl P 4 2Better polnjulgudeetajlepsbelleftebelluar! 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श्री एम यसंप्रया ॥ ३५॥ सिंण्वरांम्रणिमितं गामवासवसुत्र तिला एवं SHINNATURASH यायावयवाचायचादावापा सधामारखाण्ाकदा सुसामा साहादीरणास विसावव सिडिंनए सिस्ममितिद्वया। सिहिनावार सान्तामिति शाणितोिगा कवली एसरीरका काम्नाणियात्रा गतिमात्रा वाशिमया इति||प्रतिश्वलाला गामासगवतीयमहापरिस चपला दासह स्पपरिवारासमवतीथ णामसियामा गाणा संवत्श्वा श्रावणावदिलासा. अंगविद्यासा मय अपुग यायचा सकसमाससंध्यकालनिस्ि श्री वीरदेवमताको वीरदेसारक मरता समज निकलाधरोल शीलगुणालंकृता किमुक्काम नाः॥३नका श्रीपाद नावाची मोसमी लिखु देश विद्यांतोपमेत्यव्यवसा० गूडार साधगंडासा नाल समिन्द्यामा रानाश्रीताना धिरा श्री सोमसुंदररिहाले कार सदारकी वापदेशे नलेखिताश्रग्रेग विद्याजी यात् लाकाराकाशसोम का प्रति की या निर्मायाविज्ञाधाकि देवासी नेोरनमोविंग जितनी नावाचा धनपाल त श्रीकन शासन नालासने तीन बारामत प्रभाग महापरिवयामास स्वार सम्राडामिया सिहा तिसिहा समुहगर Vioes हादरवण अरहंतति निश्वदिद्वादशांग संगवायासमा पिड आमरिया माशाथ आद Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Cal मुनिराज श्री पुण्य विजय जी के संग्रह से CERESIDDLUELINK 1!! nou delleecejecueleto2l2ta aeg een 3emeteli, 1024211 Heecegen nelabanatatelt neno cael eltallen lentjurecereumengejaelenlerleb e lHURRe m entele 22IEth.rane SEEMERALDIPEntributeELPEBlueatetelangerejecBDHERIPetajeejRUCILITIES althietOSELIP26/epYyanenijatalelDrpaUMEETIL HEMLATEEptembejiayupiratulatibBeneEnteurjaalee LIPELRelkanerASURELEOneTablpu2MBERlalgunejalculammalgirluitelnacallestinenantayateurelatezueliteen Lace GES sajnentletinterestauteneuterterjeeauntiDeupareactshelteretattlefantata.cimprisejeletePRILLIARLERS blitecielle Elenco delle l egaliskuuta celanaemguamegagalatoes GPrasPersorarusation rajeicleitterlacencetatuttireclBRCIALP2LLECTesentenseleteleseclenstelmetete Bcpujustpryay trentRIHEELSteeltehimsstematajeejEERACTERIJElePaperjeelhapuellenteenbalatpurplustarted TujelteclentertElementarpleeteenghlatebeluetailenterstuduatenhajasleletetrain HEREneelnetelechterhterat.DEDEScietlertumngjtt.itteetectri C 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ManyDFURIOSJIRITattELLUPICkerantralBRETRImmunajaralaanumatituteacretaratmakapteraLamagnitual minem Jain E Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मामाtin दि गत्सामा गनिभिना हावा मद धनवदियाणाबा सिंगा याद ग मारिदिश्रा यसरी वि मलकीयत मा सदर का दानादावल महारा रिया मामा राशनादिणिमित संग पासाद्यमित्पाधीनामे निशा वारसादिहापि यादव महिलानि याला सात्मा मा उपपत्री विज्ञायाणामशायासहितिमा समान ॥ ॥मानगवाताहातायवानामदास मारतापभासिदामामायरिया) लिखनामनामनात 1866 शास्वदिशा श्रीमती नयी जिन रिविजय राधारी र सतरी ॐ साथ म मारिया शादिय विराध्यापदेशेरिकामा स्वाक्षर स नीत्यादि का વાળની બા ताडपत्र प्रति, जैसलमेर भंडार से लेखन समय १४वीं शताब्दी । ि सं माय विद्यार दलित सं निर्विर श्रीवादिनादिवचनादा मालक दिया कि नियादिनादाय 14 योगासहमतिमा रतिया गनिमाका नावा महाशादिसित किय ६ MERI महानदी दारिमदायसंग विद्याय मन्त्र रिवायत गवती यथादत दि गीतावलीपातिक पदवी या समानाका विसंकाशवाणपतिमा विदाये००० नव रिवालाक ताडपत्र प्रति, जैसलमेर भंडार से । लेखन समय १४८९, वैशाख शुदि ३, खंभात में लिखी गई है। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ जयन्तु वीतरागाः ॥ प्रस्तावना अंगविज्जापइण्णयग्रन्थ की हस्तलिखित प्रतियाँ प्रस्तुत अंगविज्जापइण्णयं ग्रंथ के संशोधन के लिये निम्नोल्लिखित प्राचीन सात हस्तलिखित प्रतियों का साद्यन्त उपयोग किया गया है, जिनका परिचय यहाँ पर कराया जाता है - १हं० प्रति-यह प्रति बड़ौदा-श्री आत्मारामजी जैन ज्ञानमंदिर में रखे हुए, पूज्यपाद जैनाचार्य श्री १००८ विजयानन्द सूरीश्वरजी महाराज के प्रशिष्य श्री १००८ श्री हंसविजयजी महाराज के पुस्तक-संग्रह की है। भंडारमें प्रति का क्रमांक १४०१/२ है और इसकी पत्रसंख्या १३८ है । पत्रके प्रति पृष्ठ में १७ पंक्तियाँ और हरएक पंक्ति में ५८ से ६५ अक्षर लिखे गये हैं। प्रति की लंबाई-चौड़ाई १३। x ५॥ इञ्च है। लिपि सुंदर है और प्रति की स्थिति अच्छी है । प्रति के अंत के तीन-चार पत्र नष्ट हो जाने के कारण इसकी पुष्पिका प्राप्य नहीं हैं, फिर भी प्रति के रंग-ढंग को देखते हुए यह प्रति अनुमानतः सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में या सत्रहवीं सदी के प्रारम्भ में लिखित प्रतीत होती है । प्रति शुद्धि की दृष्टि से बहुत ही अशुद्ध हैं और जगह-जगह पर पाठ और संदर्भ भी गलित हैं । प्रति हंसविजयजी महाराज के संग्रह की होने से इस का संकेत मैंने हं० रखा है । यह प्रति पंन्यास मुनिवर श्री रमणीकविजयजी द्वारा प्राप्त हुई है। २त० प्रति-यह प्रति पाटण (उत्तर गूजरात) के श्री हेमचन्द्राचार्य जैन-ज्ञानमंदिर में, वहाँ के तपागच्छीय की सम्मति से रखे हुए तपागच्छ ज्ञानभंडार की है। भंडार में प्रति का क्रमांक १४८६५ है और इसकी पत्रसंख्या १३३ है । पत्र के प्रतिपृष्ठ में १५ पंक्तियाँ और प्रतिपंक्ति ६३ से ६९ अक्षर लिखे गये हैं । प्रति की लंबाई-चौड़ाई १३ x ४||| इञ्चकी है । लिपि भव्य है । प्रति के अंत में निम्नोद्धृत पुष्पिका है - "णमो भगवईए सुयदेवयाए ॥ छ । ग्रंथाग्रं०८८०० ॥ संवत् १५०५ वर्षे श्रावण वदि ८ भौमे ॥ अंगविद्यापुस्तकं समाप्तम् ॥ छ । शुभं भवतु ॥ श्रीश्रमणसंघस्य कल्याणमस्तु ॥ ले० देवदत्तलिखितम् । श्री वीरदेवमतसुप्रभावको वीरदेवसाधुवरः । ऊकेशकुलाकाशप्रकाशने सोमसंकाशः ॥ १ ॥ तज्जाया निर्माया विल्हणदेव्यत्र धर्मकर्मरता । समजनि कलाधरोज्ज्वलशीलगुणालंकृता सततम् ॥ २ ॥ विजपालदेव आसीदनयोस्तनयो विराजितनयश्रीः । तज्जाया वरजाईनाम्नी श्रुतभक्तियुक्तमनाः ॥ ३ ॥ स्वजनकगूर्जर-जननी पूरा-वरबंधुपूनपालयुताः । श्रीजैनशासननभः प्रभासने तरुणतरणीनाम् ॥ ४ ॥ बाणखबाणधरामितवर्षे १५०५ श्रुत्वोपदेशवाचमिमाम् । श्री जयचंद्रगुरूणां समलीलिखदंगविद्यां ताम् ॥ ५ ॥ संवत् १५०५ वर्षे सा० गूर्जरभार्या पूरांपूत्र्या सा० पूनपालभगिन्या श्रा० [व] रजाई नाम्न्या श्रीतपागच्छाधिराज श्री सोपसुंदरसूरिपट्टालंकार भट्टाकार प्रभु श्री जयचंद्रसूरिसुगुरूणामुपदेशेन लिखिता श्री अंगविद्या जीयात् ।" पुष्पिका को देखने से प्रतीत होता है कि प्रति विक्रम सं० १५०५ में लिखी हुई है। प्रति उद्देहिका से खाई हुई होने से अतिजीर्ण दशा में पहुँच गई होने पर भी किसी कलाधरने कुशलतापूर्वक साँधकर इसको पुनर्जीवन दिया अंग०१ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ अंगविज्जापइण्णय है, अत: वह दीर्घायुष्क हो गई है। हं० प्रति और त० प्रति ये दोनों प्रतियाँ एक कुल की हैं। शुद्धि की दृष्टि से यह नितान्त अशुद्ध है और जगह-जगह पर इसमें पाठ, पाठसंदर्भ गलित है, फिर भी हं० प्रति से यह प्रति बहुत अच्छी . है । यह प्रति तपागच्छ भंडार की होने से इसकी संज्ञा मैंने त० रक्खी है । ३ सं० प्रति-यह प्रति पाटन के श्री हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर में स्थित श्रीसंघ के भंडार की है। भंडार में प्रति का क्रमांक ६९९ है और इसकी पत्रसंख्या १४८ है। पत्र के प्रतिपृष्ठ में १५ पंक्तियाँ और प्रति पंक्ति ५५ से ६३ अक्षर लिखे गये हैं। प्रति की लंबाई-चौड़ाई ११॥ x ४|| इञ्चकी है। लिपि सुंदर है किन्तु इसकी अवस्था इतनी जीर्णातिजीर्ण हो गई है कि इस को हाथ लगाना या पत्र उठाना बडा कठिन कार्य है; फिर भी संपूर्णतया मृत्युमुख में पहुँची हुई इस प्रति का उपयोग, प्रति की हिंसा करने के दोष को सिर पर ऊठा करके भी मैंने संपूर्णतया किया है। प्रति अति अशुद्ध होने के साथ, इस में स्थान-स्थान पर पाठ, पाठसंदर्भ आदि गलित हो गये हैं। यह प्रति संघ के भंडार की होने से इसकी संज्ञा मैंने सं० रक्खी है । प्रति के अंत में निम्नोल्लिखित पुष्पिका है - "णमो भगवतीए सुतदेवताए । श्री। थाराप्रद्रजगच्छभूषणमणे: श्री शान्तिसूप्रिभोः चंद्रकुले ॥ छ । एताओ गाधाओ संलावजोणीपडले आदिदितिकाओ । पुढवगतजा काया समायुत्ता कधा भवे । आधारितणिसित्तढे कधेत्ताण व पुच्छति ॥ पसत्था अप्पसत्था वा. अत्था णिद्धा सुभाऽसुभा । णिग्गुणा गुणसु (जु) त्ता वा सम्मत्ता वा असम्मता ॥ दुरा इति आसन्ना दीह हस्सा धुवा चला । संपताऽणागताऽतीता उत्तमाऽधम-मज्झिमा ॥ जारिसी जाणमाणेण पुढवीसंकधा भवे । तेणेव पडिरूवेण तं तधा वग्गमादिसे ॥ श्रीअंगविद्यापुस्तकं संपूर्ण ॥ छ । ग्रंथानं ९००० ॥ छ । संवत् १५२१ वर्षे आषाढ वदि ९ भौमे श्रीपत्तने लिखितमिदं चिरं जीयात् ॥ छ ।॥ १ ॥ शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ छ । ४ ली० प्रति—यह प्रति पाटन के श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर में स्थित श्री संघ के भंडार के साथ जुड़े हुए लींबडीपाडाभंडार की है । भंडार में इसका क्रमांक ३७२१ है और पत्रसंख्या इसकी १३१ है। इसकी लंबाई-चौडाई ११॥ x ४ इञ्च है। इसकी लिपि सुंदर है, किन्तु इसकी दशा सं० प्रति की तरह जीर्णातिजीर्ण है; इसका भी उपयोग इस ग्रन्थ के संशोधन में पूर्णतया किया गया है। प्रति अति अशुद्ध है और इसमें भी स्थान स्थान पर पाठ, पाठसंदर्भ आदि गलित हैं। प्रति लींबडीपाडा भंडार की होने से इसका सकेत ली० रक्खा है । प्रति के अंत में निम्नोद्धृत पुष्पिका है - "णमो भगवतीए सुतदेवताए । श्री थारापद्रजगच्छभूषणमणी: श्री शान्तिसूपिभोः चंद्रकुले ॥ छ ॥ एताओ गाधाओ संलावजोणीपडले आदिदितिकाओ । पुढवीगत्तजा काया समायुत्ता कधा भवे । आधारितणिसित्तढे कधेत्ताण व पुच्छति ॥ पसत्था अप्पसत्था वा अत्था णिद्धा सुभाऽसुभा । णिग्गुणा गुणसुत्ता वा सम्मत्ता वा असम्मता ॥ दुरा इति आसन्ना दीह हस्सा धुवा चला । संपताऽणागताऽतीता उत्तमाऽधम-मज्झिमा ॥ जारिसी जाणमाणेण पुढवी संकधा भवे । तेणेव पडिरूवेण तं तधा वग्गमादिसे ॥ छ । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना श्री अंगविद्यापुस्तकं संपूर्ण ॥ छ ॥ ग्रंथाग्रं० ९००० ॥ छ ॥ संपूर्ण ॥ ल ॥ श्रीः ॥ ग्रंथाग्रं ९००० । संवत् १५२७ वर्षे आश्वन वदि सप्तमी रवौ लिखितं श्रीश्री अणहिलपुरपत्तने ॥ छ । श्रीः ॥ शुभं भवतुः ॥ श्रीरस्तुः ।। मंगलमस्तुः । श्री । छ । श्रीसीमंधरस्वामिने नमः ॥ अस्ति स्वस्तिकरश्रीगूर्जरधरणीसुलोचनाकारम् । अणहिल्लपाटकं पुरमपरपुरप्रवरशृंगारम् ॥ १ ॥ सौधश्रेणिमनोहरे प्रतिपदप्रासादशोभावरे, श्रीमत्श्रीअणहिल्लपाटकपुरे पुण्यैकरत्नाकरे । श्रीश्रीमालविशालवंशतिलक: प्रौढ: प्रतिष्ठास्पदं, जातः श्रीमदनः सहर्षवदनः साधुः सदानंदनः ॥ २ ॥ तदंगजो विश्रुतनामधेयस्त्रैलोक्यलोकाद्भुतभागधेयः । बभूव भूवल्लभरूपधेयः श्रीदेवसिंहः स्वकुलैकसिंहः ॥ ३ ॥ . तत्सुतः सकलविश्वविश्रुतः संघभक्तिगुरुभक्तिसंयुतः । धीरिमादिकगुणैरलंकृतः शोभते शरबणाभिधस्ततः ॥ ४ ॥ तस्य शीलगुणनिर्मलगात्रं सत्कलत्रयुगलं गुणपात्रम् । आदिमा शुभति तत्र हि टिबू स्त्रीषु रत्नमपरा खलु लक्ष्मीः ॥ ५ ॥ असूत सूनद्वयमद्वयश्रीनिकेतनं सा समये तदाद्या । आद्यः सदाचारपरः सदाख्यो हेमाभिधो हेमसमो द्वितीयः ॥ ६ ॥ दीनेषु दानं सुजनेषु मानं पात्रेषु वित्तं सुकृतेषु चित्तम् । तदा तदाद्यस्तु सदा ददानः सदाभिधः कं न चमत्करोति ॥ ७ ॥ शत्रुजयाद्री गिरिनारशृंगे रंगेण यात्रां किल यश्चकार ।। परोपकारैकपरायणश्रीः श्रीमान् सदाह्वानसुधी: सुधीरः ॥ ८ ॥ कल्याणकत्रयविहारविशालभद्रप्रासादपुण्यसफलीक्रियमाणवित्तः । श्रीपातसाहमहिमुंदसभासु मान्यः सोऽयं सदाभिधसुधीः समभूद् वदान्यः ॥ ९ ॥ यस्याभंगुरभाग्यभंगिसुभगस्यादत्त वच्छेरके त्याख्यां श्रीमदहिम्मदामिधसुरत्राणः स्वयं सोत्सवम् । दुष्प्रापान्नकणेऽपि यो वसुवियत्तिथ्यंकिते १५०८ वत्सरे सत्रागारममंडयच्च वसुधाधारः कृपासागरः ॥ १० ॥ अपर कलत्रसुतश्रीअहिम्मदाबादनगरवास्तव्यः । गुरुसेवाकरणरतिर्देवाक: पुण्यहेवाकः ॥ ११ ॥ तज्जाया लज्जायाः सदनं वदनेन विजितरजनिकरा । देवश्रीदेवश्रीरेव श्रीकारणं जयति ॥ १२ ॥ तस्यास्तनुजस्त्रिजगति शुभति श्रीअमरदत्त इत्याख्यः । श्रीहेमसुतः सुचिरं जयति जगज्जीवजीवाकः ॥ १३ ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं तस्य प्रशस्याञ्जनि मुक्तमाया जाया रमाईरित नामधेया । एवं परीवारविराजमानो मानोज्झितो राजति देवराजः ॥ १४ ॥ अनेन जैनागमभक्तिभाजा राजादिमान्येन धनीश्वरेण । वस्वग्निबाणक्षितिमानवर्षे १५३८ हर्षेण देवाभिधसाधुनाऽत्र ॥ १५ ॥ श्रीमत्तपागणेन्द्र श्रीलक्ष्मीसागराह्वसूरीणां । श्रीसोमजयगुरूणामुपदेशाल्लेषितः कोशः ॥ १६ ।। युग्मम् ॥ चित्कोशचिन्ताकरणे सुधीरैः परोपकारप्रथनप्रवीणैः । गणीश्वरैः श्रीजयमंदिराद्वैर्भक्त्या भृशोपक्रम एष चक्रे ॥ १७ ॥ विबुधैर्वाच्यमानोऽसौ शोध्यमानः सुबुद्धिभिः । ज्ञानकोशश्चिरंजीयादाचंद्राकै जगत्त्रये ॥ १८ ॥ ॥ इति प्रशस्तिः समाप्ता ॥ छ । ५ मो० प्रति-यह प्रति पाटण श्रीहेमचन्द्राचार्य जैनज्ञानमंदिरस्थ मोंका मोदीके भण्डार की है। भण्डार में प्रति का नम्बर १००८२ है और इसकी पत्रसंख्या १२७ है । पत्र के प्रतिपृष्ठ में १७ पंक्तियाँ और प्रतिपंक्ति ६२ से ६६ अक्षर लिखे गये हैं। प्रति की लम्बाई-चौड़ाई १३॥ x ५। इंच की है । प्रति की लिपि अच्छी है। शुद्धिकी दृष्टि से प्रति बहुत ही अशुद्ध है, एवं स्थान स्थान पर पाठ और पाठसंदर्भ गलित हैं। प्रति मोदी के भंडार की होने से इसका संकेत मो० रक्खा गया है। इसका समाप्ति भाग सं० प्रति के समान है, सिर्फ लेखनकाल में फर्क है । जो इस प्रकार है-श्रीअंगविद्या पुस्तकं सम्पूर्णा ॥ ० ॥ ग्रंथानं ९००० ॥ छ । संवत् १५७४ वरषे मार्गशीर्ष शुद्धि १. शनौ लिषापितम् ॥ छ । ६ पु० प्रति—यह प्रति मेरे निजी संग्रह की है। संग्रह में इसका क्रमाङ्क १८ है। इसकी पत्रसंख्या १३२ है। पत्र के प्रतिपृष्ठ में १७ पंक्तियाँ हैं और प्रतिपंक्ति ५८ से ६६ अक्षर हैं । प्रति की लम्बाई-चौड़ाई १३॥ x ५। इंच है । लिपि सुन्दर है । इसकी स्थिति जीर्णप्राय है और उद्देहिका ने प्रति के सभी पत्रोंको छिद्रान्वित किया है, फिर भी प्रति के अक्षरों को पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं है । शुद्धि की अपेक्षा प्रति अति अशुद्ध है और स्थानस्थान में पाठ व पाठसंदर्भ गलित हैं। प्रति मेरे संग्रह की होने से मेरे नाम के अनुरूप इसकी पु० संज्ञा रक्खी गई है। इसके अन्त की पुष्पिका सं० प्रति के समान ही है, सिर्फ लेखनसंवत् में अन्तर है संवत् १५७३ आषाढादि ७४ प्रवर्त्तमाने मार्गशीर वदि १ रवी लष्यतं ॥ छ । ७ सि० प्रति-यह प्रति पूज्यपाद शान्तमूर्ति चरित्रचूडामणि श्रीमणिविजयजी दादाजीके शिष्यरत्न महातपस्वी चिरंजीवी महाराज श्री १००८ श्रीविजयसिद्धिसूरीश्वरजी महाराज के अहमदाबाद-विद्याशालास्थित ज्ञान इसकी पत्रसंख्या १५३ है। पत्र के प्रतिपृष्ठ में १४ पंक्तियाँ और प्रतिपंक्ति ६६ अक्षर लिखित हैं । लिपि सुन्दर है और प्रति नई लिखी होने से इसकी स्थिति भी अच्छी है । शुद्धि की दृष्टि से प्रति बहुत ही अशुद्ध और जगह जगह पर इस में पाठ एवं पाठसंदर्भ छूट गये हैं। प्रति श्रीविजयसिद्धिसूरीश्वरजी महाराजश्री के संग्रह की होने से इसकी संज्ञा मैंने सि० रक्खी है। इसके अन्त में सं० प्रति के समान ही पुष्पिका है। सिर्फ लेखनसंवत् में अन्तर है लि० भावसार भाईलाल जमनादास गाम वसोना संवत् १९५८ ना आषाढ शुदि १३ दिने पंन्यास श्रीसिद्धविजयजी ने काजे लिखी सम्पूर्ण करी छे ॥ छ ॥ श्री ॥ छ ॥: ॥: ॥ छ । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना संशोधन और संपादन पद्धति उपरि निर्दिष्ट सात प्रतियों के अतिरिक्त युगप्रधान आचार्य श्रीजिनभद्रसूरि महाराज के जैसलमेर के प्राचीन ज्ञानभण्डार की ताडपत्रीय प्रति, बड़े उपाश्रय की ताडपत्रीय प्रति और थिरूशाह के भण्डार की कागज की प्रति, एवं बीकानेर, बड़ौदा, अहमदाबाद आदि के ज्ञानभण्डारों की कई प्रतियों का उपयोग इस ग्रन्थ के संशोधन के लिए किया गया है। किन्तु इन प्रतियों में से एक भी प्रति में कोई भी ऐसा पाठ प्राप्त नहीं हुआ है कि जिससे ग्रन्थ के संशोधन में विशिष्टता प्राप्त हो । अत: जिन प्रतियों का इस संशोधन में साद्यन्त उपयोग किया गया है उन्हीं का परिचय यहाँ दिया गया है। जैसलमेर आदि स्थानों में पादविहार करने के पूर्व ही मैंने इस ग्रन्थ को सांगोपांग तैयार कर लिया था, किन्तु जब अन्यान्य ज्ञानभण्डारों में इस ग्रन्थ की प्रतियाँ मेरे देखने में आईं तब उनके साथ मेरी प्रतिकृति की मैंने शीघ्र ही तुलना कर ली, परन्तु कोई खास नवीनता कहीं से भी प्राप्त नहीं हुई है। इस प्रकार अन्यान्य ज्ञानभण्डारोकी जो संख्याबंध प्राचीन-अर्वाचीन प्रतियाँ आज दिन तक मेरे देखने में आई हैं, उनसे पता चला है कि प्रायः अधिकतर प्रतियाँ-जिनमें जैसलमेर की ताडपत्रीय प्रतियों का भी समावेश हो जाता है, एक ही कुलकी और समान अशुद्धि एवं समान गलित पाठवाली ही हैं। हं० और तक ये दो प्रतियाँ भी ऐसी ही अशुद्ध एवं गलित पाठवाली ही हैं, फिर भी ये दो प्रतियाँ अलग कुल की होने से इन प्रतियों की सहायता से यह ग्रन्थ ठीक कहा जाय ऐसा शुद्ध हुआ है-हो सका है । तथापि यह ग्रन्थ अन्य प्राचीन कुल की प्रत्यन्तरों के अभाव में पूर्णतया शुद्ध नहीं हो सका है, क्योंकि इसमें ऐसे बहुत से स्थान हैं जहाँ प्रतियों में रिक्तस्थान न होने पर भी अर्थानुसन्धानके आधार से जगह-जगह पर पाठ एवं पाठसंदर्भ खण्डित प्रतीत होते हैं । इन स्थानों में जहाँ पूर्ति हो सकी वहाँ करने का प्रयत्न किया है । और जहाँ पूर्ति नहीं हो सकी है वहाँ रिक्तस्थानसूचक" "ऐसे बिन्दु किये हैं । ये पूर्ति किये हुए पाठ और रिक्तस्थानसूचक बिन्दु मैंने [ ] ऐसे चतुरस्त्र कोष्ठक में दिये हैं । देखो पूर्ति किये हुए पाठपृष्ठ पंक्ति ९-१३, ११-८, १४-८, . ४१-१५, ४६-२५, ५८-६, ७२-२४, ८५-११, ८६-२५, ९३-८, ९६-२८, ९७-६, ९७–१४, १०३-१३, १०६-३, १०९-५, २०७–१२, २१३-२३ आदि । और खंडित पाठसूचक रिक्तबिन्दुओं के लिए देखो, पृष्ठपंक्ति १८-९, २८-८, ६२-२४, ६३-४, ६७–२१, ७०-१३, ७४-२८, ७९-११, ८५-३, ९८-१५, ११६-२१, १२०-२८, १२७-२६, १२८-५, १२९-१५, १४१-१० आदि, १४२-१९, १५१-६, १५५-२०, २३३-३१, २३६-५, २४५-१५, २५०-१३, २६१-३, २६७-२४ आदि । जहाँ सभी प्रतियों में पाठ अशुद्ध मिले हैं वहाँ पूर्वापर अनुसंधान एवं अन्यान्य ग्रंथादि के आधार से ग्रंथ को शुद्ध करने का प्रयत्न बराबर किया गया है । कभी कभी ऐसे स्थानों में अशुद्ध पाठ के आगे शुद्ध पाठको ( ) ऐसे वृत्त कोष्ठक में दिया गया है । देखो पृष्ठ-पंक्ति २-६, ५-६, ९-१४, ३०-२२, ८१-१२, १२८-३१, १८३-६, १९६-२८ प्रभृति । मैं ऊपर अनेकबार कह आया हूं कि प्रस्तुत ग्रन्थ के संशोधन के लिये मेरी नजर सामने जो हाथपोथियाँ हैं वे सब खंडित-भ्रष्ट पाठ की एवं अशुद्धि शय्यातररूप या अशुद्धि भाण्डागार स्वरूप हैं। फिर भी ये प्रतियाँ दो कुल परम्परा में विभक्त हो जाने के कारण इन प्रतियों ने मेरे संशोधन में काफी सहायता की है। एक कुल की प्रतियों में जहाँ अशुद्ध पाठ, गलित पाठ या गलित पाठसंदर्भ हो वहाँ दूसरे कुल की प्रतियों ने सैकड़ों स्थानों में ठीक ठीक जवाब दिया है। और ऐसा होने से यह कहा जा सकता है कि दोनों कुल की प्रतियों ने जगह जगह पर शुद्ध पाठ, गलित पाठ और पाठसंदर्भो को ऐसे सँभाल रक्खे हैं, जिससे इस ग्रंथ की शुद्धि एवं पूर्ति हो सकी है । मेरी नजरके सामने जो दो कुल की प्रतियाँ हैं उनमें से दोनों कुलों की प्रतियों ने कौन से कौन से शुद्ध पाठ दिये, कौन से कौन से गलितपाठ और पाठसंदर्भ की पूर्ति की? - इसका पता चले इसलिये मैंने प्रतिपृष्ठ में पाठभेदादि देने का प्रयत्न किया है। जो पाठ या पाठसंदर्भ हं० त० प्रतियोंमें से प्राप्त हुए हैं और वे सं० ली. मो० पु० सि० प्रतियों में गलित Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ अंगविज्जापइण्णयं है, वे मैंने दो हस्तचिह्नों के बीच में रक्खे हैं । देखो पृष्ठ- पंक्ति - ३ - ३, ४–२४, १२ - ११, १४–११, २६-१५, ३२–१६, ३३–२०, ४२ - २५ आदि, ४९-९ आदि, ५१ - १२, ५२ - २५, ६१-३१, ६६–४, ७३–१७ आदि, ७४–११ आदि, ७८–९, ८०–४, ८६–१, ८८-१६, ९७–७, आदि, ९९-६, १०० -५ आदि, १०५ - १३, १०६–१७, १०९-१४, ११०–१५, १११-२७, ११३ - १३, ११५-२८, ११९-३०, १२० –२, १२९-५ आदि, १३१-८, आदि १३२–१७, १३५–१ आदि, १५२–९, १६७ - १२ आदि, १७२ -६, १७७-२ आदि, १७८-२, १८५–१०, १८९-२०, १९०–२५, १९१–१७ आदि, १९४ - ११ आदि, १९६ - १२, १९९-६, २००-३२, २०१-१५ आदि, २०८-२७, २१०–२९, २११–२४, २१५–७, २१६ - २५, २१७ – ९ आदि, २१८-८ आदि, २२५ - २४, २२८-३३, २२९–१४, २४०-१६ आदि, २४३ –५, २५२ - १२, २५९ - २८, २६० - ३, २६१–८, २६२ – ९, २६६ - १७ प्रभृति । इन सब स्थानों में श्लोकार्ध एवं संपूर्ण श्लोक गलित है। इनके अतिरिक्त इन स्थानों को भी देखें, जहाँ कि दो, तीन, चार और पाँच श्लोक जितना पाठ गलित है-पृष्ठ-पंक्ति १४ –६, ४६ - २३, ४९ - १६, ९५ - २५, ९८-३, ९८–१४, १०८ - २५, १३३—– १७, १३७–१, १४२–२४, १५७–२९, १९३-२३, २०१-१५, २१३ - १६, २५५ - १२ । छोटे-छोटे गलितपाठ तो बहुत हैं । जो पाठ एवं पाठसंदर्भ सं० ली० मो० पु० सि० प्रतियों में उपलब्ध होते हैं किन्तु हं० त० प्रतियों में गलित हैं, वे मैंने 04 Do ऐसे त्रिकोण चिह्न के बीच में रक्खे हैं । देखो पृष्ठ- पंक्ति १२-६, २१-२८, ३४–७, ३७–६, ४३–१०, ४७–३ आदि, ४८-२५, ४९-१२ आदि, ५४-१२, ६७२२, ७४–१५, ८२–१७, ८५-५ आदि, १०२ - २२, १३१-१ आदि, १३३-४ आदि, १५२ - १०, १६९ - १४, १७०–४, १७३ – ३, १८९ - २५, १९१–१८, १९२ – ११, १९६ - १८, २०५–२२ आदि, २०८ - २४, २११ – १, २२९ - १२, २४५-३, २४८–१०, २५६–६, २५८–९, २६२ - ९, २६५-१५, २६८ - १६, प्रभृति । इन स्थानों में श्लोकार्ध एवं संपूर्ण श्लोक गलित हैं । इनके अतिरिक्त इन स्थानों को भी देखिये, जहाँ दो-तीन - चार-पाँच श्लोक जितना संदर्भ गलित है-पृष्ठ- पंक्ति २४- २२, १०७ १५, १३७–८, १६६ - १०, २३२ - २१, २३६ - १८, २६० - २५ । छोटे छोटे गलित पाठ तो अत्यधिक है । कहीं कहीं एक-दूसरे कुल की प्रतियों में एक दो अक्षरादि गलित वगैरह हुआ है वहाँ उपरिनिर्दिष्ट चिह्न नहीं भी किये गये हैं । संपादन में मौलिक आधारभूत प्रतियाँ ऐसे तो इस ग्रंथ के संशोधन में यथायोग्य सब प्रतियाँ आधारभूत मानी गई हैं, फिर भी जहाँतक हो सका है, मैंने सं० ली० मो० पु० सि० प्रतियों को ही मौलिक स्थान दिया है। जैसलमेर की चौदहवीं एवं पंदरहवीं शताब्दी लिखित ताडपत्रीय प्रतियाँ एवं अन्यान्य भंडार की सोलहवीं एवं पिछली शताब्दीयों में लिखित प्रतियों का इसी कुल में समावेश होता है । इन प्रतियों को मौलिक स्थान देने का खास कारण यह है किजैन आगमिक प्राकृतभाषा जो प्रायः तकार बहुल एवं ह के स्थानमें ध का प्रयोग आदिरूप है, वह इस कुल की प्रतियों में अधिकतया सुरक्षित है। हं० त० प्रतियों में आपवादिक स्थानों को छोड़कर सारे ग्रंथ में इस प्राचीन प्राकृत भाषा का समग्रभाव से परिवर्तन कर दिया गया है। ऐसा परिवर्तन करने में कहीं कहीं त आदि वर्णों का परिवर्तन गलत भी हो गया है, जो अर्थ की विकृतता के लिये भी हुआ है । अतः मुझे यह प्रतीत हुआ कि इस ग्रंथ की मौलिक भाषा जो इस कुल की प्रतियों में है वही होनी चाहिए । इस कारण से मैंने सं० ली० मो० पु० सि० प्रतियाँ मौलिक मानी हैं और इन्हीं प्रतियों की भाषा एवं पाठों को मुख्य स्थान इस संशोधन एवं संपादन में दिया है। किन्तु जहाँ पर सं० ली० आदि प्रतियों में छूट गया पाठ हं० त० प्रतियोंमें से लिया गया है वहाँ पर हं० त० प्रतियों में जो और जैसा पाठ है उसको विना परिवर्तन किये लिया गया है । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना ग्रन्थका बाह्य स्वरूप यह ग्रन्थ गद्य-पद्यमय साठ अध्यायों में समाप्त होता है और नव हजार श्लोक परिमित है । साठवाँ अध्याय दो विभाग में विभक्त दोनों स्थान पर साठवें अध्याय की समाप्तिसूचक पुष्पिका है । मेरी समझ से पुष्पिका अन्त में ही होनी चाहिए, फिर भी दोनों जगह होने से मैंने पुव्वद्धं उत्तरद्धं रूप से विभाग किया है । पूर्वार्ध में पूर्वजन्म विषयक प्रश्न- फलादेश है और उत्तरार्ध में आगामि जन्म विषयक प्रश्न- फलादेश है । आठवें और उनसठवें अध्याय के क्रम से तीस और सत्ताईस पटल (अवान्तर विभाग) है। नववाँ अध्याय, यद्यपि कहीं कहीं पटलरूपमें पुष्पिका मिलने से (देखो पृ. १०३) पटलों में विभक्त होगा परन्तु व्यवस्थित पुष्पिकायें न मिलने से यह अध्याय कितने पटलों में समाप्त होता है यह कहना शक्य नहीं । अतः मैंने इस अध्याय को पटलों से विभक्त नहीं किया है किन्तु इसके प्रारंभिक पटलमें जो २७० द्वार दिये हैं उन्हीके आधार से विभाग किया है । मूल हस्तलिखित आदर्शों में ऐसे विभागों का कोई ठिकाना नहीं है, न प्रतियों में पुष्पिकाओं का उल्लेख कोई ढंगसर है, न दोसौ सत्तर द्वारों का निर्देश भी व्यवस्थित रूप से मिलता है, तथापि मैंने कहीं भ्रष्ट पुष्पिका, कहीं भ्रष्ट द्वारांक, कहीं पूर्ण घट का चिह्न जो आज विकृत होकर अपनी लिपि का "हठ" सा हो गया है, इत्यादि के आधार पर इस अध्याय के विभागों को व्यवस्थित करने का यथाशक्य प्रयत्न किया है । इस ग्रंथ में पद्यों के अंक, विभागों के अंक, द्वारों के अंक वगैरह मैंने ही व्यवस्थित रूपसे किये हैं । लिखित आदर्शों में कहीं कहीं पुराने जमाने में ऐसे अंक करने का प्रयत्न किया गया देखा जाता है, किन्तु कोई भी इसमें सफल नहीं हुआ है। सब के सब अधबिच में ही नहीं किन्तु शुरू से ही पानी में बैठ गये हैं, फिर भी मैंने इस ग्रन्थ में साद्यंत विभागादि करने का सफल प्रयत्न किया है । ग्रंथ की भाषा और जैन प्राकृत के विविध प्रयोग जैन आगमों की मौलिक भाषा कैसी होगी — यह जानने का साधन आज हमारे सामने कोई भी नहीं है । इसी प्रकार मथुरा- वल्लभी आदि में आगमों को पुस्तकारूढ किये तब उसकी भाषा का स्वरूप कैसा रहा होगा इसको जानने का भी कोई साधन आज हमारे सामने नहीं है । इस दशा में सिर्फ आज उन ग्रन्थों की जो प्राचीन- अर्वाचीन हस्तप्रतियाँ विद्यमान हैं—यह एक ही साधन भाषानिर्णय के लिये बाकी रह जाता है । इतना अनुमान तो सहज ही होता है कि जैन आगमों की जो मूल भाषा थी वह पुस्तकारूढ करने के युगमें न रही होगी, और जो भाषा पुस्तका करनेके जमाने में थी वह आज नहीं रही है-न रह सकती है। प्राचीन-अर्वाचीन चूर्णिव्याख्याकारादि ने अपने चूर्णिव्याख्याग्रन्थों में जो सारे के सारे ग्रन्थ की प्रतीकोंका संग्रह किया है, इससे पता चलता है कि सिर्फ आगमों की मौलिक भाषामें ही नहीं, किन्तु पुस्तकारूढ करने के युग की भाषा में भी आज काफी परिवर्तन हो गया है । प्राकृत वृत्तिकार अर्थात् चूर्णिकारों ने अपनी व्याख्याओं में जो आगमग्रन्थों की प्रतीकोंका उल्लेख किया है उससे काफी परिवर्तनवाली आगमग्रन्थों की प्रतीकोंका निर्देश संस्कृत व्याख्याकारोंने किया है इससे प्रतीत होता है कि आगमग्रन्थों की भाषा में काफी परिवर्तन हो चुका है। ऐसी परिस्थिति में आगमों की प्राचीन हस्तप्रतियाँ और उनके ऊपर की प्राकृत व्याख्यारूप चूर्णियाँ भाषानिर्णय के विधान में मुख्य साधन हो सकती हैं। यद्यपि आज बहुत से जैन आगमों की प्राचीनतम हस्तलिखित प्रतियाँ दुष्प्राप्य हैं तो भी कुछ अंगआगम और सूर्यप्रज्ञप्ति आदि उपांग वगैरह आगम ऐसे हैं जिनकी बारहवीं - तेरहवीं शताब्दी में लिखित प्राचीन हस्तप्रतियाँ प्राप्य हैं। कितनेक आगम ऐसे भी हैं जिनकी चौदहवीं और पन्दरहवीं शताब्दी में लिखित प्रतियाँ ही प्राप्त हैं । इन प्रतियों के अतिरिक्त आगमग्रन्थों के ऊपर की प्राकृत व्याख्यारूप चूर्णियाँ आगमों की भाषा का कुछ विश्वसनीय स्वरूप निश्चित करने में महत्त्व का साधन बन सकती हैं, जिन चूर्णियों में चूर्णिकारोंने जैसा ऊपर मैं कह आया हूं वैसे प्रायः समग्र ग्रन्थ की प्रतीकों का संग्रह किया है । यह साधन अति महत्त्व का एवं अतिविश्वसनीय है । यद्यपि चूर्णिग्रन्थों की अति प्राचीन प्रतियाँ लभ्य नहीं हैं तथापि " For Private Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं बारहवीं तेरहवीं चौदहवीं शताब्दी में लिखित प्रतियाँ काफी प्रमाण में प्राप्य हैं । यहाँ एक बात ध्यान में रखने की है कि भले ही चूर्णिग्रन्थों की अति प्राचीन प्रतियाँ प्राप्य न भी होती हों, तो भी इन चूर्णिग्रन्थों का अध्ययन-वाचन बहुत कम होने से इसमें परिवर्तन विकृति आदि होने का संभव अति अल्प रहा है। अत: ऐसे चूर्णिग्रन्थों को सामने रखने से आगमों की भाषा का निर्णय करने में प्रामाणिक साहाय्य मिल सकता है । यह बात तो जिन आगमों के ऊपर चूर्णि-व्याख्यायें पाई जाती हैं उनकी हुई । जिनके ऊपर ऐसे व्याख्याग्रन्थ नहीं हैं ऐसे आगमों के लिये तो उनके प्राचीन-अर्वाचीन हस्तलिखित प्रत्यन्तर और उनमें पाये जानेवाले पाठभेदों का-वाचनान्तरों का अति विवेकपुरःसर पृथक्करण करना-यह ही एक साधन है। ऐसे प्रत्यन्तरों में मिलनेवाले विविध वाचनान्तरों का पृथक्करण करने का कार्य बड़ा मुश्किल एवं कष्टजनक है, और उनमें से भी किसको मौलिक स्थान देना यह काम तो अतिसूक्ष्मबुद्धिगम्य और साध्य है। भगवती सूत्र की विक्रम संवत् १११० की लिखी हुई प्राचीनतम ताडपत्रीय प्रति आचार्य श्रीविजयजम्बूसूरिमहाराज के भंडार में है, तेरहवीं शताब्दी में लिखी हुई दो ताडपत्रीय प्रतियाँ जैसलमेर में हैं, तेरहवीं शताब्दी में लिखी हुई एक ताडपत्रीय प्रति खंभात के श्रीशान्तिनाथ ज्ञानभंडार में है और एक ताडपत्रीय तेरहवीं शताब्दी में लिखी हुई बडौदे के श्रीहंसविजयजीमहाराज के ज्ञानभंडार में है। ये पाँच प्राचीन ताडपत्रीय प्रतियाँ चार कुल में विभक्त हो जाती हैं । इनमें जो प्रायोगिक वैविध्य है वह भाषाशास्त्रीयों के लिये बड़े रस का विषय है। यही बात दूसरे आगमग्रन्थों के बारे में भी है। अस्तु, प्रसंगवशात् यहाँ जैन आगमों की भाषा के विषय में कुछ सूचन कर के अब अंगविज्जा की भाषा के विषय में विचार किया जाता है। इस ग्रंथ की भाषा सामान्यतया महाराष्ट्री प्राकृत है, फिर भी यह एक अबाध्य नियम है कि जैन रचनाओं में जैन प्राकृत-अर्धमागधी भाषा का असर हमेशा काफी रहता है और इस वास्ते जैन ग्रन्थों में प्रायोगिक वैविध्य नजर आता है । इसका कारण यही प्रतीत होता है कि जैन निर्ग्रन्थों का पादपरिभ्रमण अनेक प्रान्तों में प्रदेशों में होने के कारण उनकी भाषा के ऊपर जहाँ तहाँ की लोकभाषा आदि का असर पड़ता है और वह मिश्र भाषा हो जाती है। यही कारण है कि इसको अर्धमागधी कहा जाता है । यहाँ पर ध्यान रखने की बात है कि जैसे जैन प्राकृत भाषा के ऊपर महाराष्ट्री प्राकृत भाषा का असर पड़ा है वैसे महाराष्ट्री भाषा के ऊपर ही नहीं, संस्कृत आदि भाषाओं के ऊपर भी जैन प्राकृत-अर्धमागधी भाषा का असर जरूर पड़ा है । यही कारण है कि ऐसे बहुत से शब्द इधर तिधर प्राकृत-संस्कृत आदि भाषाओं में नजर आते हैं। अस्तु, इस अंगविज्जा ग्रन्थ की भाषा महाराष्ट्री प्राकृत प्रधान भाषा होती हुई भी वह जैन प्राकृत है । इसी कारण से इस ग्रंथ में ह्रस्व-दीर्घस्वर, द्विर्भाव-अद्विर्भाव, स्वर-व्यंजनों के विकार-अविकार, विविध प्रकार के व्यंजनविकार, विचित्र प्रयोग-विभक्तियाँ आदि बहुत कुछ नजर आती हैं । भाषाविदों के परिचय के लिये यहाँ इनका संक्षेप में उल्लेख कर दिया जाता है । क का विकार-परिक्खेस सं० परिक्लेश, निक्खुड सं० निष्कुट आदि । क का अविकार-अकल्ल, सकण्ण, पडाका, जूधिका, नत्तिका, पाकटित आदि । क्ष का विकार-वुख सं. वृक्ष, लुक्काणि सं. रूक्षाणि, छीत सं. झुंत, छुधा सं. क्षुधा, आदि । ख का विकार-कज्जूरी सं. खजूरी, साधिणो सं. शाखिनः आदि । ख का अविकार-मेखला, फलिखा आदि । ग का विकार-छंदोक, मक सं. मृग, मकतण्हा सं. मृगतृष्णा आदि । घ का विकार-गोहातक सं. गोघातक, उल्लंहित सं. उल्लङ्गित, छत्तोध सं. छत्रौघ आदि । घ का अविकार-जघन्न, चोरघात आदि । च का अविकार-अचलाय, जाचितक आदि । ज का अविकार-जोजयितव्व, पजोजइस्सं आदि । ड का विकार—छलंगवी सं. षडङ्गवित्, दमिली सं. द्रविडी आदि । त का विकार-उदुसोभा, अणोदुग, पदोली, वदंसक, ठिदामास, भारधिक, पडिकुंडित सं. प्रतिकुंचित आदि । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना त का अविकार-उतु, चेतित, वेतालिक, पितरो, पितुस्सिया, जूतगिह, जूतमाला, जोतिसिक आदि । थ का विकार-आमधित, वीधी, कधा, मणोरध, रधप्पयात, पुधवी, गूध, रायपध, पाधेज्ज, पधवावत, मिधो, तध, जूधिका आदि । थ का अविकार-मधापथ, रथगिह आदि । द का विकार-कतंब, कातंब, रापप्पसात, लोकहितय, रातण सं. राजादन, पातव, मुनिंग सं. मृदङ्ग, वेतिया आदि । द का अविकार-ओदनिक, पादकिंकणिका, अस्सादेहिति, पादखडुयक आदि । ध का विकास-परिसाहसतो सं. पर्षद्धर्षक: आदि । ध अविकार-ओधि, ओसध, अविधेय, अव्वाबाध, खुधित, पसाधक, छुधा, सं. क्षुधा आदि । प का विकार-वउत्थ आदि । प का अविकार-अपलिखित, अपसारित, अपविद्ध, अपसक्कंत, पोरेपच्च सं० पुरःपत्य, चेतितपादप आदि । भ का अविकार-परभुत सं० परभृत आदि । य का विकार-असव्वओ जसवओ सं. यशस्वतः आदि । र का विकास-दालित सं. दारित, फलिखा सं. परिखा, लसिया सं. रसिका आदि । व का विकार-अपमक सं. अवमक, अपमतर, अपीवर सं. अविवर, महापकास सं. महावकाश आदि । ह का विकार-रमस्स सं. रहस्य, बाधिरंग सं. बाह्याङ्ग, प्रधित सं. प्रहित, णाधिति प्रा. णाहिति सं. ज्ञास्यति आदि । लुप्त व्यंजनों के स्थान में महाराष्ट्री प्राकृत में मुख्यतया अस्पष्ट य श्रुति होती है, परन्तु जैन प्राकृत में त, ग, य, आदि वर्गों का आगम होता है। त का आगम-रातोवरोध सं. राजोपरोध, पूता सं. पूजा, पूतिय सं. पूजित, आमतमत सं. आमयमय, गुरुत्थाणीत सं. गुरुस्थानीय, चेतितागत सं. चैत्यगत, पातुणंतो सं. प्रगुणयन्, जवातू सं. यवागू, वीतपाल सं. बीजपालु आदि । ग का आगम-पागुन सं. प्रावृत, सगुण सं. शकुन आदि । य का आगम-पूयिय सं. पूजित, रयित सं. रचित, पयुम सं. पद्म, रयतगिह सं. रजतगृह, सम्मोयिआ सं. सम्मुद् आदि । जैन प्राकृत में कभी कभी शब्दों के प्रारम्भके स्वरों में त का आराम होता है। ये प्रयोग प्राचीन भाष्यचूर्णि और मूल आगम सूत्रों में भी देखे जाते हैं । तोपभोगतो सं. उपभोगतः, तूण सं. ऊन, तुहा सं. ऊहा, तेतेण सं. एतेण, तूका सं. यूका आदि । अनुस्वार के आगमवाले शब्द-गिंधी सं. गृद्धि, संली सं. श्याली, मुंदिका सं. मृद्वीका, अप्पणि सं. आत्मनि आदि । अनुस्वार का लोप-सस्सयित सं. संशयित आदि । प्राकृत भाषा में हस्व-दीर्घस्वर एवं व्यंजनों के द्विर्भाव-एकीभाव का व्यत्यास बहुत हुआ करता है। इस ग्रंथ में ऐसे बहुत से प्रयोग मिलते हैं-आमसती सं. आमृशति, अप्पणी सं. आत्मनी, णारिए सं. नार्याः, वुख सं. वृक्ष, णिखुड, णिकूड, कावकर, सयाण सं. सकर्ण आदि । जैसे प्राकृत में शालिवाहन शब्द का संक्षिप्त शब्दप्रयोग सालाहण होता है वैसे ही जैन प्राकृत में बहुत से संक्षिप्त शब्दप्रयोग पाये जाते हैं-साव और साग सं. श्रावक, उज्झा सं. उपाध्याय, कयार सं. कचवर, जागू सं. यवागू, रातण सं. राजादन आदि । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० अंगविज्जापइण्णयं इस ग्रन्थ में सिद्ध संस्कृत से प्राकृत बने हुए प्रयोग कई मिलते हैं-अब्भुत्तिट्ठति सं. अभ्युत्तिष्ठति, स्सा और सा सं. स्यात्, केयिच्च केचिच्च, कचि क्वचित्, अधीयता, अतप्परं सं. अतः परम्, अस सं. अस्य, याव सं. यावत्, वियाणीया सं. विजानीयात्, पस्से सं. पश्येत्, पते और पदे सं. पतेत्, पणिवते सं. प्रणिपतति, थिया सं. स्त्रियाः, पंथा, पेच्छते सं. प्रेक्षते, णिच्चसो, इस्सज्ज सं. ऐश्वर्य, ण्हाउ सं. स्नायु आदि । इस ग्रन्थ में नाम और आख्यात के कितनेक ऐसे रूप–प्रयोग मिलते हैं जो सामान्यतया व्याकरण से सिद्ध नहीं होते, फिर भी ऐसे प्रयोग जैन आगमग्रन्थों में एवं भाष्य-चूर्णि आदि प्राकृत व्याख्याओं में नजर आते हैं । अत्थाय चतुर्थी एकवचन, अचलाय थीय एनाय ण्हुसाय उदुणीय स्त्रीलिङ्ग तृतीया एकवचन, जारीय चुडिलीय णारीय णरिए णासाय फलकीय स्त्रीलिङ्ग षष्ठी एकवचन, अचलाय गयसालाय दरकडाय पमदायं विमुक्कायं दिसांज स्त्रीलिङ्ग सप्तमी एकवचन, अप्पणि अप्पणी लोकम्हि युत्तग्घम्हि कम्हियि सप्तमी एकवचन, सकाणि इमाणि अब्भंतराणि प्रथमा बहुवचन । पवेक्खयि सं. प्रवीक्षते, गच्छाहिं सं. गच्छ, जाणेज्जो सं. जानीयात्, वाइज्जो वाएज्जो सं. वाचयेत् वादयेत्, विभाएज्जो सं. विभाजयेत्, पवेदेज्जो सं. प्रवेदयेत् । ऐसे विभक्तिरूप और धातुरूपों के प्रयोग इस ग्रन्थ में काफी प्रमाण में मिलते हैं । इस ग्रन्थ में-पच्छेलित सं. प्रसेण्टित, पज्जोवत्त सं. पर्यपवर्त्त, पच्चोदार सं. प्रत्यपद्वार, रसोतीगिह सं. रसवतीगृह, दिहि सं. धृति, तालवेंट तालवोंट सं. तालवृन्त, गिधि सं. गृद्धि, सस्सयित सं. संशयित, अवरण सं. अपराह्न, वगैरह प्राकृत प्रयोगों का संग्रह भी खूब है। एकवचन द्विवचन बहुवचन के लिये इस ग्रन्थ में एकभस्स दुभस्सबिभस्स और बहुभस्स शब्द का उल्लेख मिलता है । णिक्खुड णिक्कूड णिखुड णिकूड सं. निष्कुट, संली सल्ली सल्लिका सं. श्यालिका, विलया विलका सं. वनिता, सम्मोई सम्मोदी सम्मोयिआ सं. सम्मुद्, वियाणेज्ज-ज्जा-ज्जो वियाणीया-वियाणेय विजाणित्ता सं. विजानीयात् धीता धीया धीतर धीतरी धीतु सं. दुहितृ वगैरह एक ही शब्द के विभिन्न प्रयोग भी काफी हैं । आलिंगनेस्स सं. आलिङ्गेदेतस्य वुत्ताणेकविसति सं. उक्तान्येकविंशति: जैसे संधिप्रयोग भी हैं। कितनेक ऐसे प्रयोग भी हैं जिनके अर्थ की कल्पना करना भी मुश्किल हो जाय; जैसे कि परिसाहसतो सं. पर्षद्धर्षक: आदि । यहाँ विप्रकीर्णरूप से प्राचीन जैन प्राकृत के प्रयोगों की विविधता एवं विषमता के विषय में जो जो उदाहरण दिये गये हैं उनमें से कोई दो-पाँच उदाहरणों को बाद करके बाकी के सभी इस ग्रंथ के ही दिये गये हैं जिनके स्थानों का पता ग्रन्थ के अन्त में छपे हुए कोश को (परिशिष्ट २) देखने से लग जायगा । अंगविज्जाशास्त्र का आंतर स्वरूप अङ्गविज्जाशास्त्र यह एक फलादेश का महाकाय ग्रन्थ है । यह ग्रन्थ ग्रह-नक्षत्र-तारा आदि के द्वारा या जन्मकुण्डली के द्वारा फलादेश का निर्देश नहीं करता है किन्तु मनुष्य की सहज प्रवृत्ति के निरीक्षण द्वारा फलादेश का निरूपण करता है । अतः मनुष्य के हलन-चलन और रहन-सहन आदि के विषय में विपुल वर्णन इस ग्रन्थ में पाया जाता है । यह ग्रन्थ भारतीय वाङ्मय में अपने प्रकार का एक अपूर्वसा महाकाय ग्रंथ है। जगतभर के वाङ्मयमें इतना विशाल, इतना विशद महाकाय ग्रन्थ दूसरा एक भी अद्यापि पर्यंत विद्वानों की नजर में नहीं आया है। इस शास्त्र के निर्माता ने एक बात स्वयं ही कबूल कर ली है कि इस शास्त्र का वास्तविक परिपूर्ण ज्ञाता कितनी भी सावधानी से फलादेश करेगा तो भी उसके सोलह फलादेशों में से एक असत्य ही होगा, अर्थात् इस शास्त्र की यह एक त्रुटि है । यह शास्त्र यह भी निश्चितरूप से निर्देश नहीं करता कि सोलह फलादेशों में से कौनसा असत्य होगा । यह शास्त्र इतना ही कहता है कि "सोलस वाकरणाणि वाकरेहिसि, ततो पुण Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना एक्कं चुक्किहिसि, पण्णरह अच्छिड्डाणि भासिहिसि, ततो अजिणो जिणसंकासो भविहिसि" पृष्ठ २६५, अर्थात् "सोलह फलादेश तू करेंगा उनमें से एकमें चूक जायगा, पनरहको संपूर्ण कह सकेगा-बतलाएगा, इससे तू केवलज्ञानी न होने पर भी केवली समान होगा ।" इस शास्त्र के ज्ञाता को फलादेश करने के पहले प्रश्न करनेवालेकी क्या प्रवृत्ति है ? या प्रश्न करनेवाला किस अवस्था में रहकर प्रश्न करता है? इसके तरफ उसको खास ध्यान या खयाल रखने का होता है। प्रश्न करनेवाला प्रश्न करने के समय अपने कौन-कौन से अङ्गों का स्पर्श करता है? वह बैठ के प्रश्न करता है या खड़ा रहकर प्रश्न करता है ?, रोता है या हँसता है ?, वह गिर जाता है, सो जाता है, विनीत है या अविनीत ?, उसका आनाजाना, आलिंगन-चुंबन करना, रोना, विलाप करना या आक्रन्दन करना, देखना, बात करना वगैरह सब क्रियाओं की पद्धति को देखता है; प्रश्न करनेवाले के साथ कौन है ? क्या फलादि लेकर आया है ?, उसने कौन से आभूषण पहने हैं वगैरह को भी देखता है और बाद में अङ्गविद्या का ज्ञाता फलादेश करता है। ___ इस शास्त्र के परिपूर्ण एवं अतिगंभीर अध्ययन के बिना फलादेश करना एकाएक किसी के लिये भी शक्य नहीं है। अत: कोई ऐसी सम्भावना न कर बैठे कि इस ग्रन्थ के सम्पादक में ऐसी योग्यता होगी । मैंने तो इस वैज्ञानिक शास्त्र को वैज्ञानिक पद्धति से अध्ययन करने वालों को काफी साहाय्य प्राप्त हो सके इस दृष्टि से मेरेको मिले उतने इस शास्त्र के प्राचीन आदर्श और एतद्विषयक इधर-उधर की विपुल सामग्री को एकत्र करके, हो सके इतनी केवल शाब्दिक ही नहीं किन्तु आर्थिक संगतिपूर्वक इस शास्त्र को शुद्ध बनाने के लिये सुचारु रूप से प्रयत्नमात्र किया है। अन्यथा मैं पहिले ही कह चुका हूँ कि काफी प्रयत्न करने पर भी इस ग्रन्थ की अति प्राचीन भिन्न भिन्न कुल की शुद्ध प्रतियाँ काफी प्रमाण में न मिलने के कारण अब भी ग्रन्थ में काफी खंडितता और अशुद्धियाँ रह गई हैं । मैं चाहता हूँ कि कोई विद्वान् इस वैज्ञानिक विषय का अध्ययन करके इसके मर्म का उद्घाटन करे । ऊपर कहा गया उस मुताबिक कोई वैज्ञानिक दृष्टिवाला फलादेश की अपेक्षा इस शास्त्र का अध्ययन करे तो यह ग्रन्थ बहुत कीमती है-इसमें कोई फर्क नहीं है । फिरभी तात्कालिक दूसरी दृष्टि से अगर देखा जाय तो यह ग्रन्थ कई अपेक्षा से महत्त्व का है। आयुर्वेदज्ञ, वनस्पतिशास्त्री, प्राणीशास्त्री, मानसशास्त्री, समाजशास्त्री, वगैरह को इस ग्रन्थ में काफी सामग्री मिल जायगी । भारत के सांस्कृतिक इतिहासप्रेमियों के लिये इस ग्रन्थ में विपुल सामग्री भरी पड़ी है। प्राकृत और जैन प्राकृत व्याकरणों के लिये भी सामग्री कम नहीं है । भविष्य में प्राकृत कोश के रचयिता को इस ग्रन्थ का साद्यन्त अवलोकन नितान्त आवश्यक होगा । सांस्कृतिक सामग्री इस अंगविद्या ग्रन्थ का मुख्य सम्बन्ध मनुष्यों के अंग एवं उनकी विविध किया-चेष्टाओं से होने के कारण इस ग्रन्थ में अंग एवं क्रियाओं का विशदरूप में वर्णन है। ग्रन्थकर्त्ताने अंगो के आकार-प्रकार, वर्ण, संख्या, तोल, लिङ्ग, स्वभाव आदि को ध्यान में रखकर उनको २७० विभागों में विभक्त किया है [देखो परिशिष्ट ४] । मनुष्यों की विविध चेष्टाएँ, जैसे कि बैठना, पर्यस्तिका, आमर्श, अपश्रय-आलम्बन टेका देना, खडा रहना, देखना, हँसना, प्रश्न करना, नमस्कार करना, संलाप, आगमन, रुदन, परिदेवन, क्रन्दन, पतन, अभ्युत्थान, निर्गमन, प्रचलायित, जम्भाई लेना, चुम्बन, आलिंगन, सेवित आदि; इन चेष्टाओं को अनेकानेक भेद-प्रकारों में वर्णन भी किया है। साथ में मनुष्यके जीवन में होनेवाली अन्यान्य क्रिया-चेष्टाओं का वर्णन एवं अनेक एकार्थकों का भी निर्देश इस ग्रन्थ में दिया है। इससे सामान्यतया प्राकृत वाङ्मय में जिन क्रियापदों का उल्लेख-संग्रह नहीं हुआ है उनका संग्रह इस ग्रंथ में विपुलता से हुआ है, जो प्राकृत भाषा की समृद्धि की दृष्टि से बड़े महत्त्व का है [देखो तीसरा परिशिष्ट] । सांस्कृतिक दृष्टि से इस ग्रंथ में मनुष्य, तिर्यंच अर्थात् पशु-पक्षि-क्षुद्रजन्तु, देव-देवी और वनस्पति के साथ सम्बन्ध रखनेवाले कितने ही पदार्थ वर्णित है [देखो परिशिष्ट ४] । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ अंगविज्जापइण्णयं इस ग्रन्थ में मनुष्य के साथ सम्बन्ध रखनेवाले अनेक पदार्थ, जैसे कि-चतुर्वर्ण विभाग, जाति विभाग, गोत्र, योनि-अटक, सगपण सम्बन्ध, कर्म-धंधा-व्यापार, स्थान-अधिकार, आधिपत्य, यान-वाहन, नगर-ग्राम-मडंबद्रोणमुखादि प्रादेशिक विभाग, घर-प्रासादादि के स्थान-विभाग, प्राचीन सिक्के, भाण्डोपकरण, भाजन, भोज्य, रस सुरा आदि पेय पदार्थ, वस्त्र, आच्छादन, अलंकार, विविध प्रकार के तैल, अपश्रय-टेका देने के साधन, रतसुरत क्रीडा के प्रकार, दोहद, रोग, उत्सव, वादित्र, आयुध, नदी, पर्वत, खनिज, वर्ण-रंग, मंडल, नक्षत्र, कालवेला, व्याकरण विभाग, इन सब के नामादि का विपुल संग्रह है। तिर्यग्विभाग के चतुष्पद, परिसर्प, जलचर, सर्प, मत्स्य, क्षुद्रजन्तु आदि के नामादि का भी विस्तृत संग्रह है । वनस्पति विभाग के वृक्ष, पुष्प, फल, गुल्म, लता आदिके नामोंका संग्रह भी खूब है। देव और देवियों के नाम भी काफी संख्या में हैं । इस प्रकार मनुष्य, तिर्यंच, वनस्पति आदि के साथ सम्बन्ध रखनेवाले जिन पदार्थों का निर्देश इस ग्रंथ में मिलता है, वह भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की दृष्टि से अति महत्त्व का है। आश्चर्य की बात तो यह है कि ग्रंथकार आचार्य ने इस शास्त्र में एतद्विषयक प्रणालिकानुसार वृक्ष, जाति और उनके अंग, सिक्के, भांडोपकरण, भाजन, भोजन, पेयद्रव्य, आभरण, वस्त्र, आच्छादन, शयन, आसन, आयुध, शुद्रजन्तु आदि जैसे जड एवं क्षुद्रचेतन पदार्थों को भी इस ग्रन्थ में पुं-स्त्री-नपुंसक विभाग में विभक्त किया है । इस ग्रंथ में सिर्फ इन चीजों के नाममात्र ही मिलते हैं, ऐसा नहीं किन्तु कई चीजों के वर्णन और उनके एकार्थक भी मिलते हैं। जिन चीजों के नामों का पता संस्कृत-प्राकृत कोश आदि से न चले, ऐसे नामों का पता इस ग्रन्थ के सन्दर्भो को देखने से चल जाता है । इस ग्रंथ में शरीरके अङ्ग, एवं मनुष्य-तिर्यंच-वनस्पति-देव-देवी वगैरहके साथ संबंध रखनेवाले जिनजिन पदार्थों के नामों का संग्रह है वह तद्विषयक विद्वानों के लिये अति महत्त्वपूर्ण संग्रह बन जाता है। इस संग्रह को भिन्न भिन्न दृष्टि से गहराईपूर्वक देखा जायगा तो बड़े महत्त्व के कई नामों का तथा विषयों का पता चल जायगा । जैसे कि क्षत्रप राजाओं के सिक्कों का उल्लेख इस ग्रन्थ में खत्तपको नाम से पाया जाता है [देखो अ० ९ श्लोक १८६] । प्राचीन खुदाईमेंसे कितने ही जैन आयागपट मीले हैं, फिर भी आयाग शब्द का उल्लेख-प्रयोग जैन ग्रन्थों में कहीं देखने में नहीं आता है, किन्तु इस ग्रन्थ में इस शब्द का उल्लेख पाया जाता है [देखो पृष्ट १५२, १६८] | सहितमहका नाम, जो श्रावस्ती नगरी का प्राचीन नाम था उसका भी उल्लेख इस ग्रन्थ में अ० २६, श्लो. १५३ में नजर आता है। इनके अतिरिक्त आजीवक, डुपहारक आदि अनेक शब्द एवं नामादिका संग्रह-उपयोग इस ग्रन्थ में हुआ है जो संशोधकों के लिये महत्त्व का है। परिशिष्टों का परिचय इस ग्रन्थ के अन्त में ग्रन्थ के नवीनतमरूप पाँच परिशिष्ट दिये गये हैं। उनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जाता है। प्रथम परिशिष्ट-इस परिशिष्ट में अङ्गविद्या के साथ सम्बन्ध रखनेवाले एक प्राचीन अङ्गविद्या विषयक अपूर्ण ग्रन्थ को प्रकाशित किया है । इस ग्रन्थ का आदि-अन्त न होने से यह कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ है या किसी ग्रन्थ का अंश है-यह निर्णय मैं नहीं कर पाया हूँ । दूसरा परिशिष्ट-इस परिशिष्ट में अङ्गविज्जा शास्त्र के शब्दों का अकारादि कम से कोश दिया गया है जिसमें अङ्गविज्जा के साथ सम्बन्ध रखनेवाले सब विषयों के विशिष्ट एवं महत्त्व के शब्दों का संग्रह किया योगिक दृष्टि से जो शब्द महत्त्व के प्रतीत हुए हैं इनका और देश्य शब्दादिका भी संग्रह इसमें किया है । जिन शब्दों के अर्थादि का पता नहीं चला है वहाँ (?) ऐसा प्रश्नचिह्न रक्खा है । इसके अतिरिक्त प्रायः सभी शब्दों का किसी न किसी रूप में परिचयादि दिया है। सिद्धसंस्कृत प्रयोगादि का भी संग्रह किया है। इस तरह प्राकृत भाषा एवं सांस्कृतिक दृष्टि से इसको महद्धिक बनाने का यथाशक्य प्रयत्न किया है। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना . १३ तीसरा परिशिष्ट-इस परिशिष्ट में अङ्गविज्जाशास्त्र में प्रयुक्त कियारूपोंका संग्रह है। जो संग्रह प्राकृत भाषाविदोंके लिये बहुमूल्य खजानारूप है। प्राकृत वाङ्मयके दूसरे किसी भी ग्रन्थमें इतने क्रियापदों का संग्रह मिलना सम्भावित नहीं है। चौथा परिशिष्ट-इस परिशिष्ट में मनुष्य के अङ्गों के नामों का संग्रह है, जिसको मैंने औचित्यानुसार तीन विभागों में विभक्त किया है। पहले विभाग में स्थाननिर्देशपूर्वक अकारादिक्रम से अङ्गविज्जा शास्त्र में प्रयुक्त अङ्गोंके संग्रह हैं । दूसरे विभागमें अङ्गविज्जाशास्त्रप्रणेताने मनुष्यके अङ्गोंके आकार-प्रकारादि को लक्ष्य में रखकर जिन २७० द्वारों में प्रकारों में उनको विभक्त किया है उन द्वारोंके नामोंका अकारादिक्रम से संग्रह है। तीसरे विभाग में ग्रन्थकर्ताने जिन अङ्गोंका समावेश किया है, उनका यथाद्वारविभाग संग्रह किया है । यथाद्वारविभाग यह अङ्गनामोंका संग्रह अकारादिक्रमसे नहीं दिया गया है, किन्तु ग्रन्थकारने जिस क्रमसे अङ्गनामोंका निर्देश किया है उसी क्रमसे दिया है । इसका कारण यह है कि इस शास्त्रमें अङ्गोंके कितने ही नाम ऐसे हैं जिनका वास्तविक रूपसे पता नहीं चलता है कि इस नाम से शरीरका कौनसा अंग अभिप्रेत है। इस दशामें ग्रन्थकारका दिया हुआ कम ही तद्विदोंके लिये कल्पना एवं निर्णयका साधन बन सकता है। पाँचवाँ परिशिष्ट-इस परिशिष्टमें अङ्गविज्जा शास्त्र में आनेवाले सांस्कृतिक नामोंका संग्रह है। यह संग्रह मनुष्य, तिर्यंच, वनस्पति व देव-देवी विभागमें विभक्त है। ये विभाग भी अनेकानेक विभाग, उपविभाग प्रविभागोंमें विभक्तरूपसे दिये गये हैं। सांस्कृतिक दृष्टिसे यह परिशिष्ट सब परिशिष्टोंसे बड़े महत्त्वका है। इस परिशिष्टको देखनेसे विद्वानोंको अनेक बातें लक्ष्यमें आ जायँगी ।। इस परिशिष्टको देखनेसे यह पता चलता है कि प्राचीन काल में अपने भारतमें वर्ण-जाति-गोत्र-सगपणसम्बन्ध-अटक वगैरह किस प्रकारके होते थे, लोगोंकी नामकरण विषयमें क्या पद्धति थी, नगर-गाँव-प्र(प्रा)कारादि की रचना किस ढंगकी होती थी, लोगोंके मकान शाला और उनमें अवान्तर विभाग कैसे होते थे, कौनसे रंगवर्णमृत्तिका आदिका उपयोग होता था, लोगोंकी आजीविका किस-किस व्यापारसे चलती थी, प्रजामें कैसे-कैसे अधिकार और आधिपत्यका व्यवहार था, उनके स्थान-शयन-आसन-तकिया-यान-वाहन-बरतन-गृहोपस्कर कैसे थे, लोगोंके वेष-विभूषा अलंकार-इन-तैलादिविषयक शौक किस प्रकार का था, लोगोंका व्यापार किस किस प्रकारके सिक्कोंके आदान-प्रदान से चलता था, लोगोंके खाद्य पेय पदार्थ क्या क्या थे, लोकसमूह में कौन से उत्सव प्रवर्त्तमान थे, लोगोंको कौनसे रोग होते थे? ये और इनके अतिरिक्त दूसरी बहुतसी बातों का पृथक्करण विद्वद्गण अपने आप ही कर सकता है । अंगविज्जा ग्रन्थ का अध्ययन और अनुवाद कुछ विद्वानों का कहना है कि इस ग्रन्थ का अनुवाद किया जाय तो अच्छा हो । इस विषय में मेरा मन्तव्य इस प्रकार है - फलादेशविषयक यह ग्रन्थ एक पारिभाषिक ग्रन्थ है। जबतक इसकी परिभाषाका पता न लगाया जाय तबतक इस ग्रन्थके शाब्दिक मात्र अनुवाद का कोई महत्त्व नहीं है। इसलिये इस ग्रन्थके अनुवादक को प्रथम तो इसकी परिभाषाका पता लगाना होगा और एतद्विषयक अन्यान्य ग्रन्थ देखने होंगे । जैसे कि इस ग्रन्थ के अंतमें प्रथम परिशिष्ट रूपसे छपे हुए ग्रन्थ और उसकी व्याख्यामें निर्दिष्ट पराशरी संहिता जैसे ग्रन्थोंका गहराईसे अवलोकन करना होगा । इतना करने पर भी ग्रन्थकी परिभाषाका ज्ञान यह महत्त्वकी बात है । अगर इसकी परिभाषाका पता न लगा तो सब अवलोकन व्यर्थप्राय है और तात्त्विक अनुवाद करना अशक्य-सी बात है । दूसरी बात यह भी है कि यह ग्रन्थ यथासाधन यद्यपि काफी प्रमाण में शुद्ध हो चुका है, फिर भी फलादेश करने की अपेक्षा इसका संशोधन अपूर्ण ही है । चिरकालसे इसका अध्ययन-अध्यापन न होने के कारण इस Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ अंगविज्जापट्टण्णयं ग्रन्थ में अब भी काफी त्रुटियाँ वर्त्तमान हैं । जैसे कि ग्रन्थ कई जगह खंडित है, अङ्ग आदि की संख्या सब जगह बराबर नहीं मिलती और सम-विषम भी है, इसमें निर्दिष्ट पदार्थोंकी पहचान भी बराबर नहीं होती है, अङ्गशास्त्र के साथ सम्बन्ध रखनेवाले पदार्थोंका फलादेशमें क्या और कैसा उपयोग है ? इसकी परिभाषा का कोई पता नहीं है । इस तरह इस ग्रन्थका वास्तविक अनुवाद करना हो तो इस ग्रन्थका साद्यन्त अध्ययन, आनुषङ्गिक ग्रन्थोंका अवलोकन और एतद्विषयक परिभाषा का ज्ञान होना नितान्त आवश्यक है । आभार स्वीकार इस ग्रन्थ के संशोधनके लिये जिन महानुभावोंने अपने ज्ञानभंडारोंकी महामूल्य हाथपोथियाँ भेजकर और चिरकाल तक धीरज रखकर साहाय्य किया है उनका धन्यवाद पुरःसर मैं आभारी हूँ । साथ साथ पाटली निवासी पंडित भाई श्री नगीनदास केशलशी शाह, जिन्हों ने इस ग्रन्थ की प्राचीन प्रतियों के आधार पर विश्वस्त नकल ( प्रेसकोपी) करना, कई प्रतियों के विश्वस्त पाठभेद लेना, एवं प्रूफपत्रों को प्रेसकापी और हाथपोथियों के साथ मिलाना आदि द्वारा काफी साहाय्य किया है, उनको मैं अपने हृदय से कभी नहीं भूल सकता हूँ । इसका साहाय्य मेरेको आदि से अन्त तक रहा है, जिसकी याद मेरे अन्तःकरण में जीवनभर रहेगी । अन्त में मेरा इतना ही निवेदन है कि इस ग्रन्थ के संशोधनादि के लिये मैंने काफी परिश्रम किया है, फिर भी इस ग्रन्थ में त्रुटियाँ रह ही गई हैं, जिनका परिमार्जन विद्वद्वर्ग करें और जिन त्रुटियोंका उन्हें पता चले उनकी सूचना मेरे को देने की कृपा करें । जैन उपाश्रय लूणसावाडा- अहमदाबाद मुनि पुण्यविजय Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद्य १-३६ १-५४ ॥ जयन्तु वीतरागाः ॥ अंगविज्जापइण्णय - विषयानुक्रम १ - २८ १-९ १० - २० २१-३६ विषय १ पहला अंगोत्पत्ति अध्याय अंगविद्या की उत्पत्ति अंगविद्या का स्वरूप अंगविद्या प्रकीर्णक ग्रन्थ के अध्यायों के नाम २ दूसरा निजसंस्तव अध्याय ३ तीसरा शिष्योपख्यापन अध्याय अंगविद्याशास्त्र को पढ़नेवाले शिष्यों की योग्यायोग्यता, उनके गुण-दोष और अंगशास्त्र पठन के योग्य और अयोग्य स्थान- जगह का वर्णन ४ चौथा अंगस्तव अध्याय अंगविद्या का माहात्म्य ५ पाँचवाँ मणिस्तव अध्याय अंगविद्या के पारंगत मणिस्वरूप महापुरुषों की स्तुति ६ छट्टा आधारण अध्याय अंगविद्याशास्त्रज्ञ गंभीर होकर प्रश्न करनेवाले के प्रश्न का श्रवण एवं अवधारण करे- इस विधिका वर्णन | ७ सातवाँ व्याकरणोपदेश अध्याय अंगविद्याशास्त्रज्ञ गंभीर होकर फलादेश करे इस विधि का कथन । ८ आठवाँ भूमीकर्म अध्याय - १ १-२ २-३ (२) पद्यबंध संग्रहणीपटल भूमीकर्म अध्याय के पटलों में वर्णनीय विषयों का निर्देश । (३) भूमीकर्म सत्त्वसमुद्देश पटल भूमीकर्म अध्याय के ज्ञान में ध्यान रखने योग्य वस्तु का निर्देश । For Private Personal Use Only (१) गद्यबंध संग्रहणीपटल अंगविद्या की भूमी को साध्य करने की विद्यायें एवं भूमीकर्म अध्याय के पटलोंमें वर्णनीय विषयों का निर्देश । १-१८ पत्र १-३ ३ ३-५ ५-६ ६ ७ ७ ८-५६ ८-९ ९-१० १०-११ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ १-४८ ११-१३ अंगविद्या शास्त्रज्ञ की फलादेश करने के समय अपनी दश प्रकार की परिस्थिति और तदनुसार प्रश्न का फलादेश । १-११ १-१२६ १- ९४ १-१६२ १-१५८ १-६० १-३१ १-३० १-७५ १-३३ १-३७ १-३६ १-२६ अंगविज्जापइण्णयं (४) आत्मभावपरीक्षा पटल (५) निमित्तोपधारणा पटल (६) आसनाध्याय पटल १-४० बत्तीस प्रकार के आसन-बैठने के प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश । १३-१५ ४१-१२६ बैठने के प्रकारान्तर, बैठने की दिशा, एवं बैठने के मंचक, पल्यंक, भद्रासन आदि साधनों का निर्देश और तदनुसार प्रश्न का फलादेश । (७) पर्यस्तिका पटल १५-१८ बाईस प्रकार की पर्यस्तिकायें, उनके भेद-उपभेद तदनुसार प्रश्न का फलादेश । (८) आमासगंडिका पटल अट्ठाईस खड़े रहने के प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (११) प्रेक्षितविभाषा पटल दस देखने के प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (१२) हसितविभाषा पटल चौदह प्रकार का हँसना और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (१३) पृष्ट पटल पृष्ट के प्रश्न करने के तीन, चार, आठ, चौबीस वगैरह प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (१४) वंदितविभाषा पटल सोलह प्रकार के वंदन - नमस्कार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (१५) संलापविधि पटल बीस प्रकार के संलाप और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (१६) आगतविभाषा पटल आगमन - आने के सोलह प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (१७) रुदतविभाषा पटल १३ १३-१८ एकसौ आठ आमर्ष - स्पर्श के प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश । ( ९ ) अपश्रय पटल २६-३१ सत्रह प्रकार के अपश्रय-टेका लेने के प्रकार, उसके उपभेद और तदनुसार प्रश्न का फलादेश । (१०) स्थित पटल ३१-३३ रोने के बीस प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश १८- २१ २१-२६ ३४-३५ ३५-३६ ३६-३८ ३८-३९ ४०-४१ ४१-४२ ४२-४३ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-२१ ४७ विषयानुक्रम (१८) परिदेवितविभाषा पटल परिदेवितके तेरह प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (१९) विक्रंदित पटल विक्रंदित के आठ प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश १-३७ (२०) पतितविभाषा पटल ४४-४५ पतन के आठ प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (२१) आत्मोत्थितविभाषा पटल ४५-४६ अपने आप उठने के इक्कीस प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (२२) निर्गत पटल ४६ निर्गम के ग्यारह प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (२३) प्रचलायितविभाषा पटल ४६-४७ प्रचलायितके सात प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश १-१८ (२४) जृम्भितविभाषा पटल जृम्भित-जम्भाई के सात प्रकार, उसके उपभेद और तदनुसार प्रश्नका फलादेश (२५) जल्पितविभाषा पटल ४७-४८ जल्पित के सात प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश १-४२ (२६) चुंबितविभाषा पटल ४८-४९ सोलह प्रकार का चुंबन, एवं चुंबन के दूसरे अनेक प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश (२७) आलिंगित पटल ४९-५१ आलिंगन के चौदह प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश १-४२ (२८) निपन्नविभाषा पटल ५१-५३ निपन्न के बारह प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश १-७९ (२९) सेवितविभाषा पटल सेवित के बत्तीस प्रकार और तदनुसार प्रश्न का फलादेश १-१६ (३०) भूमीकर्मसत्त्वगुणविभाषा पटल ५६ भूमिकर्म अध्याय के अधिकारी के गुण और योग्यता १-१८६८ ९ नववाँ अंगमणी अध्याय ५७-१२९ मणिसूत्र ५७-५९ अंगमणि अध्याय में वर्णनीय २७० द्वारों का निर्देश १-१९२ (१) पिचत्तर पुण्णाम ५९-६६ १-५९ पिचत्तर पुण्णामक-पुरुषजातीय अङ्गों के नाम और उनके स्पर्शानुसार फलादेश पुरुषजातीय मनुष्यनाम ६६-७३ पुरुषजातीय देवयोनिकनाम ग०२ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ अंगविज्जापइण्णयं ७४-८० पुरुषजातीय चतुष्पद तिर्यग्योनिकनाम ८१-८८ पुरुषजातीय पक्षि तिर्यग्योनिकनाम ८९-९४ पुरुषजातीय जलचर परिसर्प तिर्यग्योनिक मत्स्यजातिके नाम ९५-९७ पुरुषजातीय स्थलचर परिसर्प तिर्यग्योनिक सर्पजातिके नाम ९८-११० पुरुषजातीय वृक्ष के नाम १११-११५ पुरुषजातीय गुल्म के नाम ११६-१२४ पुरुषजातीय पुष्प के नाम १२५-१३० पुरुषजातीय फल के नाम १३१-१३४ पुरुषजातीय पेयद्रव्य आसन-घृत आदि के नाम १३५-१४० पुरुषजातीय भोज्यपदार्थों के नाम १४१-१४६ पुरुषजातीय वस्त्रों के नाम १४७-१६२ पुरुषजातीय आभूषणों के नाम १६३-६९ पुरुषजातीय भाजनों के नाम १७०-७३ पुरुषजातीय शयन आसन और यान के नाम १७४-८२ पुरुषजातीय भाण्डोपकरण के नाम १८३-८४ पुरुषजातीय धान्य के नाम १८५-८६ पुरुषजातीय धन-सिक्कों के नाम १८७-९२ पिचत्तर पुरुषजातीय समानार्थक शब्द १९३-३७४ (२) पिचहत्तर स्त्रीनाम ६६-७२ १९३-२४४ पिचत्तर स्त्रीनामक-स्त्रीजातीय अङ्गों के नाम और उनके स्पर्शानुसार फलादेश २४५-७० स्त्रीजातीय मनुष्यनाम २७१-८० स्त्रीजातीय देवयोनिकनाम २८१-८६ स्त्रीजातीय चतुष्पद तिर्यग्योनिक नाम २८७-९२ स्त्रीजातीय पथि तिर्यग्योनिक नाम २९३-९५ स्त्रीजातीय जलचर परिसर्प तिर्यग्योनिक मत्स्यजातिके नाम २९६-३०० स्त्रीजातीय स्थलचर परिसर्प तिर्यग्योनिक जन्तुओंके नाम ३०१-१२ स्त्रीजातीय वृक्ष गुल्म लताओं के नाम ३१३-२२ स्त्रीजातीय पुष्पों के नाम ३२३-२७ स्त्रीजातीय फलों के नाम ३२८-३५ स्त्रीजातीय भोज्यपदार्थों के नाम ३३६-४१ स्त्रीजातीय वस्त्रों के नाम । ३४२-५० स्त्रीजातीय आभूषणों के नाम ३५१-५३ स्त्रीजातीय शया आसा और यान के नाम ३५४-५६ स्त्रीजातीय भाजनों के नाम ३५७-६२ स्त्रीजातीय भाण्डोपकरण के नाम ३६३-६५ स्त्रीजातीय आयुधों के नाम ३६६-७४ स्त्रीजातीय एकार्थक शब्द Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ विषयानुक्रम ३७५-४०५ (३) अट्ठावन नपुंसक नाम ७२-७३ ३७५-९९ अट्ठावन नपुंसकजातीय अंगों के नाम और उनके स्पर्शानुसार फलादेश ४००-४०५ नपुंसकजातीय नामों का निर्देश ४०६-४४१ (४) सतरह दक्षिण ७३-७४ सतरह दक्षिण-दाहिने अंगोंके नाम, 'स्पर्शानुसार फलादेश, और दक्षिण के एकार्थक-समानार्थक ४४२-७९ (५) सतरह वाम ७५-७६ सतरह वाम–बायें अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और वाम के एकार्थक ४८०-५२१ (६) सतरह मध्यम ७६-७६ सतरह मध्यम अङ्गों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और मध्यम के एकार्थक समानार्थक ५२२-६४ (७) अट्ठाईस दृढ ७७-७९ अट्ठाईस चल अंगो के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और दृढ के समानार्थक ५६५-६१६ (८) अट्ठाइस चल ७९-८० अट्ठाईस चल अंगो के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और चल के समानार्थक ६०१-६१० इन पद्यों में प्राकृत क्रियापदों का विपुल संग्रह है। ६१७-५६ (९) सोलह अतिवृत्त ८१-८२ सोलह अतिवृत्त-अतिक्रान्त अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और उनके समानार्थक ६४४-५० इन पद्यों में प्राकृत क्रियापदों का विपुल संग्रह है ६५७-९६ (१०) सोलह वर्तमान ८२-८३ सोलह वर्तमान अंगों के नाम, उनके स्पर्शानुसार फलादेश और उनके समानार्थक ६८४-९१ इन पद्यों में प्राकृत क्रियापदों का विपुल संग्रह है ६९६-७३४ (११) सोलह अनागत ८३-८४ सोलह अनागत अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक ७२०-२९ इन पद्योंमें प्राकृत कियापदों का विपुल संग्रह है ७३५-७१ (१२) पचास अभ्यन्तर ८४-८६ पचास अभ्यन्तर अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक ७७२-८०६ (१३) पचास अभ्यन्तराभ्यन्तर ८६-८७ पचास अभ्यन्तराभ्यन्तर अंगों के नामों का अतिदेश, स्पर्शानुसार फलादेश और एकार्थक ७९७-८०१ इन पद्यों में प्राकृत क्रियापदों का संग्रह है ८०७-३६ (१४) पचास बाहिराभ्यन्तर ८७-८८ पचास बाहिराभ्यन्तर अंगों के नामों का अतिदेश, स्पर्शानुसार फलादेश और एकार्थक Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ८३७-५६ ८५७-७६ ८७७–९९ ९००-१६ ९१७-३२ ९३३-४६ ९४७-६५ ९६६-९६ ९९७-१०१० १०११ - १४ १०१५-३७ १०३८-५४ १०५५-५८ १०५९-६६ १०६७-७२ अंगविज्जापइण्णयं (१५) पचास अभ्यन्तर बाहिर पचास अभ्यन्तर बाहिर अंगों के नामों का अतिदेश, स्पर्शानुसार फलादेश और एकार्थक (१६) पचास बाहिर पचास बाहिर अंगों के नामों का अतिदेश, उनके स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक (१७) पचास बाहिर बाहिर पचास बाहिर अंगों के नामों का अतिदेश, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक (१८) पचास ओवात- अवदात पचास ओवात अंगों के नामों का अतिदेश, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थ (१९) पचास सामोवात - श्यामावदात पचास सामोवात अंगों के नामों का अतिदेश, स्पर्शानुसार फलादेश और एकार्थक (२०) पचास श्याम पचास श्याम अंगों के नामों का अतिदेश, स्पर्शानुसार फलादेश और एकार्थक (२१-२२ ) पचास श्यामकृष्ण और कृष्ण पचास श्यामकृष्ण और कृष्ण अंगों के नामों का अतिदेश, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक चौदह मध्यम अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और एकार्थक (२७) चौदह मध्यमानन्तर चौदह मध्यमानन्तर अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक ( २८ ) दस जघन्य दस जघन्य अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक (२९) दो उत्तम मध्यम साधारण दो उत्तम मध्यम साधारण अंगों के नाम, उनके स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक (३०) दो मध्यम मध्यम साधार ( २३ - २४ ) पचास अध्यवदात और अतिकृष्ण ( २५ ) बीस उत्तम बीस उत्तम अंगों के नामोंका अतिदेश, उनके स्पर्शानुसार फलादेश और एकार्थक (२६) चौदह मध्यम दो मध्यम मध्यम साधारण अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक (३१) दो मध्यमानन्तर मध्यम साधारण ८८ ८९-९० दो मध्यमानन्तर मध्यम साधारण अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक (३२) दो मध्यमानन्तर जघन्य साधारण दो मध्यमानन्तर जघन्य साधारण अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक ८९ ९०-९१ ९१ ९१-९२ 1x22 ९२ ९२ ९३ ९४ ९४ ९४-९५ ९५-९६ ९६ ९६ ९६ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ विषयानुक्रम १०७३-९५ (३३) दस बालेय दस बालेय अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक १०८६-८९ इन पद्यों में मनुष्य के संस्कारोत्सवों के नाम हैं। १०९६-११२७ (३४) चौदह यौवनस्थ ९७-९८ चौदह यौवनस्थ अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक ११२८-४८ (३५) चौदह मध्यमवयस्क ९९ चौदह मध्यमवयःस्थ अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक ११४९-७४ (३६) बीस महावयस्क ९९-१०० बीस महावयःस्थ अंगों के नाम, उनके स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक ११७५-८० (३७-३९) वयः साधारण १०० ३७ दो बाल यौवनस्थ साधारण, ३८ दो यौवनस्थ मध्यमवय साधारण, ३९ दो मध्यमवय महावय साधारण अंगों के नाम और फलादेश का अतिदेश ११८१-९३ (४०) बीस ब्रह्मेय बीस ब्रह्मय अंगों के नाम, फलादेश और एकार्थक ११९४-९९ (४१) चौदह क्षत्रेय चौदह क्षत्रिय अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १२००-५ (४२) चौदह वैश्येय चौदह वैश्य अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १२०६-११ (४३) दस शूद्रेय १०२ दस शूद्र अंगों के नाम, फलादेश और एकार्थक १२१२-४१ (४४-४६) चतुर्वर्णविधान १०२-४ १२४२-४५ (४७-५३) आयुःप्रमाणनिर्देश पटल १०४ १२४६-७१ (५४) बहत्तर शुक्लवर्णप्रतिभोग १०४ बहत्तर शुक्लवर्ण प्रतिभोग अंगों के नाम, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक १२७२-७४ (५५-६२) वर्णप्रतिभोगपटल १०४ १२७४-९७ (६३-७३) स्थितामासवर्णयोनिपटल . १०४-५ अंगों के वर्ण का निर्देश और गजतालुक, ब्रह्मराग, सूर्योद्गमवर्ण, मनःशिलावर्ण, मेचकवर्ण, कोरेंटकवर्ण आदि रंगों की पहचान १२९८-१३३० (७४-७९) स्निग्धरूक्ष पटल १०५-७ १२९८-१३०३.७४ दस स्निग्ध अंगों के नाम, फलादेशादि, ७५ स्निग्ध-स्निग्ध, ७६ रूक्ष, ७७ रूक्षरूक्ष, ७८ रूक्षस्निग्ध, ७९ स्निग्धरूक्ष अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक का अतिदेश और निर्देश १०१-२ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ अंगविज्जापइण्णयं १३३१-४७ (८०) दस आहार १०७ दस आहार अंगों के नाम, फलादेश और एकार्थक शब्द १३४०-४५ इन पद्यों में प्राकृत क्रियापदों का संग्रह है १३४८-६७ (८१-८५) नीहारपटल १०७-८ १३४८-५८. ८१ दस नीहार अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १३५४-५७. प्राकृत क्रियापदों का संग्रह १३५९-६७. ८२ दश आहाराहार आहारनीहार नीहाराहार नीहारनीहार अंगों के नामादि का अतिदेश १३६८-१४४८ (८६-९५) दिक्पटल १०८-११ ८६ सोलह पौरस्त्य, ८७ सोलह पाश्चात्य, ८८ सतरह दाक्षिणात्य, ८९ सतरह औत्तराह, ९० सतरह दक्षिणपूर्व, ९१ सतरह दक्षिणपाश्चात्य, ९२ सतरह उत्तरपाश्चात्य, ९३ सतरह उत्तरपौरस्त्य, ९४ बारह ऊर्श्वभागीय, ९४ तेरह अधोभागीय अंगों के नामों का अतिदेश, स्पर्शानुसार फलादेश और समानार्थक १४४९-६८ (९६-९९) प्रसन्नाऽप्रसन्नपटल १११-१२ ९६-९९ पचास प्रसन्न, अप्रसन्न, अप्रसन्नप्रसन्न, प्रसन्नअप्रसन्न, अंगों के नामों का अतिदेश, फलादेश और एकार्थक १४६९-९७ (१००-३) वामपटल ११२-१३ सोलह वामप्राणहर, सोलह वामधनहर, अट्ठावन वाम सोपद्रव और तीस संख्यावाम अंगों के नाम, फलादेश और एकार्थक १४९८-९९ (१०४) ग्यारह शिव ११३ ग्यारह शिव अंगों के नाम और फलादेश १५००-८ (१०५) ग्यारह स्थूल ११३-१४ ग्यारह स्थूल अंगों के नाम, फलादेश और एकार्थक १५०९ (१०६) नव उपस्थूल अंग ११४ १५१० (१०७) पचीस युक्तोपचय अंग ११४ १५११ (१०८) बीस अल्पोपचय अंग और (१०९) बीस नातिकृश अंग १५१२-१८ - (११०) सतरह कृश ११४ सतरह कृश अंगों के नाम और समानार्थक १५१९-२० (१११) ग्यारह परंपरकृश ११४ ग्यारह परंपरकृश अंगों के नाम और फलादेश १५२१-२८ (११२) छब्बीस दीर्घ ११४-१५ छब्बीस दीर्घ अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ ११५ विषयानुक्रम १५२९-३० (११३) छब्बीस युक्तप्रमाण दीर्घ अंग ११५ १५३१ (११४) सोलह ह्रस्व किंचिदीर्घ अंग १५३२-३७ (११५) सोलह ह्रस्व सोलह हुस्व अंगों के नामों का अतिदेश और समानार्थक १५३८-५२ (११६) दस परिमंडल ११५-१६ दस परिमंडल अंगों के नाम और एकार्थक १५५३-५७ (११७) चौदह करणमंडल ११६ १५५८-६२ (११८) बीस वृत्त ११६ बीस वृत्त अंगों के नाम और समानार्थक १५६३-६८ (११९) बारह पृथु ११६-१७ बारह पृथु अंगोंके नाम और एकार्थक १५६९-७० (१२०) इकतालीस चतुरस्र अंग ११७ १५७१ (१२१) दो व्यस्त्र अंग ११७ १५७२-७६ (१२२) पांच काय अंग ११७ १५७७-८२ (१२३) सत्ताईस तनु और (१२४) इक्कीस परमतनु सत्ताईस तनु और इक्कीस परमतनु अंगोंके नाम और समानार्थक १५८३-८५ (१२५) दो अणु (१२६) एक परमाणु अंग ११७ १५८६-९० (१२७) पांच हृदय और समानार्थक ११८ १५९१-९८ (१२८) पांच ग्रहण पांच ग्रहण अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १५९९-१६०० (१२९) पांच उपग्रहण अंग और एकार्थक १६०१-७ (१३०) छप्पन रमणीय छप्पन रमणीय अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १६०८-१२ (१३१) बारह आकाश अंग और एकार्थक ११८-१९ १६१३-२२ (१३२) छप्पन दहरचल और (१३३) छप्पन दहरस्थावर ११९ छप्पन दहरचल और छप्पन दहरस्थावर अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १६२३-३० (१३४) दस ईश्वर (१३५) दस अनीश्वर ११९ दस ईश्वर और दस अनीश्वर अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक ११८ ११८ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ११९-२० १२० १२०-२१ १२१ १२१ १२१ १२१ १२१ १२१-२२ अंगविज्जापइण्णयं . १६३१ (१३६) चौदह ईश्वरभूत अंग १६३२-४० (१३७) पचास प्रेष्य (१३८) पचास प्रेष्यभूत पचास प्रेष्य और पचास प्रेष्यभूत अंगोंके नाम, फलादेश और एकार्थक १६४१-५६ (१३९) छब्बीस प्रिय और (१४०) छब्बीस द्वेष्य __ छब्बीस प्रिय और छब्बीस द्वेष्य अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १६५७-६२ (१४१) छब्बीस मध्यस्थ अंग और समानार्थक १६६३-६४ (१४२-४६) पृथ्वीकायिकादि अंगों के नामों का अतिदेश १६६५-६६ (१४७) बीस जंगम अंगों के नाम १६६७-७० (१४८) तेत्तीस आतिमूलिक अंगों के नाम १६७१-७२ (१४९) तेत्तीस मज्झविगाढ अंगों के नाम १६७३-७४ (१५०) तेत्तीस अंत अंगों के नाम १६७५-८६ __ (१५१) पचास मुदित और (१५२) पचास दीन पचास मुदित और पचास दीन अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १६८७-९१ (१५३) बीस तीक्ष्ण अङ्ग और समानार्थक १६९२-९५ (१५४) पिचत्तर उपद्रुत (१५५) पिचत्तर व्यापन्न अङ्ग १६९६-९७ (१५६) दो दुर्गन्ध और (१५७) दो सुगन्ध अङ्ग १६९८-१७०३ (१५८) नव बुद्धिरमण (१५९) चार अबुद्धिरमण अंग और समानार्थक । १७०४-५ (१६०) ग्यारह महापरिग्रह (१६१) चार अपरिग्रह अङ्ग १७०६-७ (१६२) उन्नीस बद्ध और (१६३) सत्ताईस मोक्ष अङ्ग १७०८ (१६४-१६६) पचास स्वक, परकीय और स्वकपरकीय अङ्ग १७०९-१६ (१६७-७२) दो शब्देय, दो रूपेय, दो गन्धेय, एक रसेय, ___ दो स्पर्शेय, और एक मणेय अङ्ग और फलादेश १७१७-१९ (१७३-७५) चार वातमण, दो सद्दमण और दश वर्णेय अङ्ग १७२०-२२ (१७६) दस अग्नेय अङ्ग १७२३ (१७७) दस जण्णेय अङ्ग १७२४ (१७८-७९) दो दर्शनीय और अदर्शनीय १७२५ (१८०) दस थल अङ्ग १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२३ १२३ १२३ १२३ १२३ १२३ १२३ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम १७२६-२७ (१८१) बारह निम्न अङ्ग १२३ १७२८ (१८२-८३) नव गम्भीर और निम्न गम्भीर अङ्ग १२४ १७२९-३२ (१८४-८९) पन्दरह विषम, चौदह उन्नत, बारह सम, दस उष्ण, १२४ दस शीतल, दस आवुणेय अङ्ग १७३३-३४ (१९०-९१) चौरासी पूर्ण और पिचत्तर तुच्छ अङ्ग १२४ १७३५-७४ (१९२-२३८) उन्नीस विवर, अविवर आदि अङ्ग १२४-२६ १९२ उन्नीस विवर, उन्नीस अविवर, अट्ठाईस विवृतसंवृत, सात सुकुमार, १९६ चार दारुण, पांच मृदु, चार पत्थीण-प्रस्त्यान, छप्पन श्लक्ष्ण, चौबीस खर, २०१ दस कुटिल, दस ऋजुक, छत्तीस चण्डानत, छ आयत, छ आयतमुद्रित, २०६ बीस दिव्य, चौदह मानुष्य, चौदह तिर्यग्योनिक, दस नैरयिक, २१० पिचत्तर (पंचाणवें) रौद्र, दो सौम्य, बाईस मृदुभाग, दो पौत्रेय, दो कन्येय, चार स्त्रीभाग, दो युवतेय, २१७ छब्बीस दुर्गस्थान, बारह (चौदह) ताम्र, चार रोगमण, छ पूति, २२१ छ चपल, सात अचपल, चार गुह्य, पांच उत्तानाक्३५७न्मस्तक, दस (बारह) तत, दस मत, २२७ बारह (ग्यारह) महंतक, अट्ठाईस शुचि, दश क्लिष्ट, पिचत्तर वर, २३१ पिचत्तर नायक, पिचत्तर अनायक, पचास (अट्ठावन) नीच, पिचत्तर निरर्थक, २३४ पचास अन्यजन, सोलह अम्बर (अन्तर), ग्यारह शूर, तीन भीरु अंगोंके नाम १७७५-१८१४ (२३९-७०) पचास एक्कादि अङ्गों के नाम १२६-२७ १८१५-६८ दो सौ सत्तर द्वारों का समुच्चित फलादेश और नववें अध्याय की समाप्ति १२८-२९ १० दसवाँ आगमन अध्याय १३०-१३५ आगमन विषयक फलादेश पृष्ट १३० पंक्ति ५-७, पं० १७–१८, पृष्ठ १३२ पं० १४, पृष्ठ १३३ पं० ९ में प्राकृत धातुओं का संग्रह है ११ ग्यारहवाँ पृष्ट अध्याय १३५-१३८ प्रश्नपृच्छा के प्रकार और तदनुसार फलादेश इस अध्याय में अनेकानेक प्रकार के गृह, शालायें और वैभागिक एवं प्रादेशिक स्थानों का संग्रह है १२ बारहवाँ योनि अध्याय १३८-१४० अंगविद्या द्वारा अनेक प्रकार की मानसिक, व्यावहारिक, जाति विषयक एवं औपाधिक जीवन प्रवृत्तियों के आधार स्वरूप योनियों का फलादेश १३ तेरहवाँ योनिलक्षण व्याकरणाध्याय १४०-१४४ १४ चौदहवाँ लोमद्वाराध्याय १४४-१४५ १५ पनरहवाँ समागमद्वाराध्याय १४५ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ १४५ १४५ १४५-१४६ १४६ १४६ १४६-१४८ १४८-१४९ १४९ १४९-५० अंगविज्जापइण्णयं १६ सोलहवाँ प्रजाद्वाराध्याय १७ सतरहवाँ आरोग्यद्वाराध्याय १८ अठारहवाँ जीवितद्वाराध्याय १९ उन्सवाँ कर्मद्वाराध्याय २० बीसवाँ वृष्टिद्वाराध्याय २१ इक्कीसवाँ विजयद्वाराध्याय २२ बाईसवाँ प्रशस्ताध्यार' इस अध्याय में अनेक जातीय प्रशस्त नाम, क्रियाएँ, पूजा, उत्सव, स्थान, ऋतु आदि का उल्लेख और तदनुसार फलादेश का कथन है २३ तेईसवाँ अप्रशस्त अध्याय इस अध्याय में अनेक प्राकृत क्रियापदों का संग्रह है २४ चौबीसवाँ जातिविजयाध्याय इस अध्याय में अङ्गविद्या के अनुसार जातिविषयक फलादेश कथन है २५ पच्चीसवाँ गोत्राध्याय अंगविद्या अनुसार गोत्रविषयक फलादेश इस अध्याय में प्राचीन गोत्रों का विपुल उल्लेख है २६ छब्बीसवाँ नामाध्याय इस अध्याय में व्याकरणविभाग, नामविषयक विचार और अंगविद्या अनुसार फलादेश है २७ सत्ताईसवाँ स्थान अध्याय अंगविद्या अनुसार अधिकारविषयक फलादेश इस अध्याय में अनेक प्रकार के अधिकारियों का निर्देश है २८ अट्ठाईसनाँ कर्मयोनि अध्याय अंगविद्या अनुसार कर्म एवं शिल्पविषयक फलादेश इस अध्याय में अनेक प्रकार के कर्म, शिल्प एवं व्यापारों का उल्लेख है २९ उनतीसवाँ नगरविजयाध्याय ३० तीसवाँ आभरणयोनि अध्याय इस अध्याय में प्राचीन विविध आभरण एवं अंगरचना के नामों का उल्लेख है ३१ इकतीसवाँ वस्त्रयोनि अध्याय इस अध्याय में वस्त्र के प्रकारों का उल्लेख है १५०-१५८ १५९ १५०-१६१ १६१-१६२ १६२-१६३ १६३-१६४ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम २७ ३२ बत्तीसवाँ धान्ययोनि अध्याय १६४-१६५ इस अध्याय में विविधजातीय धान्य-अनाज के नामोंका उल्लेख है ३३ तेत्तीसवाँ यानयोनि अध्याय १६५-१६६ इस अध्याय में प्राचीन काल में काम में लाये जानेवाले अनेकविध जलयान और स्थलयानों के नामों का उल्लेख पाया जाता है ३४ चौंतीसवाँ संलापयोनि अध्याय १६७-१६८ ३५ पैंतीसवाँ प्रजाविशुद्धि अध्याय १६८-१७० संततिविषयक फलादेश पृ० १६८-६९ में प्राकृत क्रियापदों का विपुल संग्रह है ३६ छत्तीसवाँ दोहद अध्याय १७०-१७२ पृ० १७१ में प्राकृत क्रियापदों का संग्रह है ३७ सैंतीसवाँ लक्षण अध्याय १७३-१७४ ३८ अड़तीसवाँ व्यंजनाध्याय १७४-१७५ ३९ उणचालीसवाँ कन्यावासनाध्याय १७५-१७६ ४० चालीसवाँ भोजनाध्याय १७६-१८२ इस अध्याय में विविध प्रकार के भोज्य पदार्थ एवं उत्सवादि के नाम हैं ४१ इकतालीसवाँ वरियगंडिकाध्याय १८२-१८६ इस अध्याय में मूर्तियों के प्रकार, प्राक्त क्रियापद, आभरण और अनेक प्रकार के रत-सुरत क्रीडाओं के नामों का संग्रह है ४२ बयालीसवाँ स्वप्नाध्याय १८६-१९१ ४३ तेंतालीसवाँ प्रवासाध्याय १९१-१९२ ४४ चौवालीसवाँ प्रवास अद्धाकालाध्याय १९२-१९३ ४५ पैंतालीसवाँ प्रवेश अध्याय १९३-१९४ इसमें अनेक प्रकार के यान भाण्डोपकरणादि के नामों का संग्रह है ४६ छियालीसवाँ प्रवेशनाध्याय १९५-१९७ ४७ सैंतालीसवाँ यात्राध्याय १९८-१९९ ४८ अड़तालीसवाँ जयाध्याय १९९-२०१ ४९ उनचासवाँ पराजयाध्याय २०१-२०२ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ अंगविज्जापइण्णयं ५० पचासवाँ उपद्रुताध्याय २०२-२०४ इस अध्याय में कितनेक रोगों के नाम उल्लिखित हैं ५१ इक्कावनवाँ देवताविजयाध्याय २०४-२०६ ५२ बावनवाँ नक्षत्रविजयाध्याय २०६-२०९ इसमें नक्षत्रों के नाम है ५३ त्रेपनवाँ उत्पाताध्याय २१०-२११ ५४ चौपनवाँ सारासार अध्याय २११-२१३ ५५ पचपनवाँ निधान अध्याय २१३-२१४ विविध प्रकार के निधानस्थान और निधान रखने के भाजनों के नाम ५६ छप्पनवाँ निर्विसूत्राध्याय २१४-२१६ ५७ सत्तावनवाँ नष्टकोशकाध्याय २१६-२२१ इसमें आहार, अनाज, भाजन, धातु, भाण्डोपकरण और गृहादि के नामों का संग्रह है ५८ अट्ठावनवाँ चिंतिताध्याय २२३-२३४ इस अध्याय में उत्सव, देवता, मनुष्य, तिर्यग्जातीय जीवों के नाम भेद-प्रभेद वर्णित हैं । इस अध्याय में उत्सव, देवता, मनुष्यजाति के नामादि हैं; तिर्यग्योनिक क्षुद्रजन्तु, छोटे मोटे जलचर, स्थलचर, पशु-पक्षी, मत्स्यजाति, सर्पजाति, चतुष्पद, द्विपद, अपद प्राणियों के नामों का संग्रह है, अनेक प्रकार के आसन, भाण्डोपकरण, पुष्प-फल वृक्ष, रसद्रव्य, तैलभेद, अनाज, वस्त्रप्रकार, भाजन,धातुभेद, प्रादेशिकविभाग, आभरण आदि को द्योतित करनेवाले नाम एवं शब्दों का विपुल संग्रह है। ५९ उनसठवाँ कालाध्याय २३५-२६२ सत्ताईस पटलों में विभागों में कालाध्यायका कालविषयक फलादेश का निरूपण चतुर्थ और पंचम पटल में क्षुद्रजन्तु और वृक्ष-लतादिके नाम हैं २३७-३८ छटे और सातवें पटल में पशु-पक्षी एवं वृक्षादिके नाम हैं सतरहवें पटल में भोज्यपदार्थों के नाम हैं २४६ अठारहवें पटल में भक्तवेला, मागधवेला, दूधकेला, आलोलीवेला, कूरवेला, गंडीवेला, प्रातराशवेला, भक्तवेला, यवागूवेला आदि वेलाओं के अर्थात् कार्यकाल के नाम हैं २४७ बाईसवाँ अर्धप्रमाण पटल २५०-२५३ चौबीसवाँ वर्षावास-वृष्टिपटल २५४-२५७ ६० साठवाँ पूर्वमेवविपाकाध्याय-पूर्वार्ध २६२-२६३ ६० साठवाँ उपपत्तिविजयाध्याय-उत्तरार्ध २६४-२६९ इस अध्याय में जीवजाति के अनेक प्रकार, उनके नाम और जन्मान्तर में उत्पत्ति विषयक फलादेश वर्णित हैं । अंगविद्याविषयक जप्यविद्या भी है। २३८ २५ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION The science of prognostication is one of the oldest sciences. It must have flourished in ancient India, there is no doubt, but being an unorthodox science its notice has come down to us in scrappy references. For instance Manu, VI. 20 condemns science of utpāta, nimitta, nakshatra and angavidya and ordains that a Brahmana should not receive alms from those practising the above mentioned arts. The Buddhists also condemned these and disallowed the monks their practice. The Brahmajāla Satta (Tr. by Rhys Davis, 16-18) mentions in the category of the condemned sciences Nimitta, Uppado, Angavijjā, Vatthuvijja (architecture) and Khattavijjā (art of warfare), Supinapāthakas (interpreters of dreams) and Nemittas (fortune-tellers). They are frequently referred to in the Jātakas and are accused of fraudulent practices. The Jainas were equally strong in their condemnation of false sciences. Thus in Thānanga, So. III, 6. 78, the list of sinful sciences (pāpaśrutas) includes utpata (rain, flood and other natural disturbances), nimitta (divination), mantra (magical formulas), ākhyakas (Science of the Matangas), chikitsa (medicine), kală (art), avarana (clothes), ajñāna (traditional lore), mithyāpravachana (non-Jain texts). The Samavāyānga's list includes bhauma (terrestrial disturbances), utpåta (natural disturbance), svapna (dream), antarariksha (atmospheric omens), anga (prognostication from the limbs of the body), svara (omen from articulation), vyañjana (foretelling from mole etc. on the body), lakshana (auspicious marks on the body), vikathānuyoga (science of artha and kāma), mantrānuyoga (magical formulas), yogānuyoga (science of controlling others), and any atirthikānuyoga (texts of other religions). The Uttaradhyayana Sa. 8 expresses forcibly that those who practice Angavijjā are not śramaņas (angavijjām cha je pauñjanti nahi te samaņā). But inspite of the great condemnations heaped on the so-called false sciences by the Jainas, Buddhists and Brahmanas, these sciences continued to exist and had a large number of followers among the people. The sacrifice of eight Virupas, namely very tall, very fat, very lean, very fair, very black, very bald, very hairy (Vāj.Sam. XXX, 22), shows that a certain magical significance was attached to human body and its various physical aspects. What significance these physical aspects had with reference to the science of prognostication we are not informed. Pänini, III, 2, 53 as pointed out by Dr. Agrawala (India as known to Pāņini. pp. 326-27), refers to the belief in divination from bodily signs and also to fortune-telling by soothsayers (1. 4. 39); the mention of utpåta, samvatsara, muhurta and nimitta subjects of study in the Rigayanādi-gana (IV. 3.73) indicates the study of astronomy and omens. It is mentioned in the Jātakas (J. I. 290; II. 21, 200, 250; III. 122, 158, 215; V. 211, 458) that the Brāhmaṇas were well-versed in predicting the future of a child from the signs (lakkhana) on his body. Also they were well-versed in the science of prognostication from the movements of the limbs (angavijjāsampathakāḥ) and thus were supposed to be in a position to foretell not only one's past but also one's worth and character. The Ummadanti Jätaka (I. II.211 ff.) has a fling at such prognosticators and diviners. The Brāhmaṇas come to examine the auspicious signs of Ummadanti, but they are so much overpowered by her beauty that they make a mess of the food they were eating. When the girl sees their conduct she asks her attendants to drive them away. Howsoever popular Angavijjä might have been, little was known about the contents of that science, before the publication of the Angavijjāpainnayam. The Brihat Samhita in chapter 51 describes certain details of that science. According to Varāhamihira the prognosticators after studying the movements of their own limbs and those of their questioners prognosticated good or bad results. They were also fully conversant with the nature of movable and immovable objects, gesticulations and conversations. They chose a suitable place to practise their art. It had to be a garden inhabited by Brāhmaṇas, Siddhas and other divine beings. It was not to be situated at a crossing. The proper time and duration for the questioner were ordained. Auspicious and inauspicious results about a journey were prognosticated by seeing the hand or a cloth held up by the questioner. The limbs, after the manner of Angavijjä are divided into masculine, feminine and neuter genders and the prognostications resulting from them recounted. The naming of certain spices foretold no omens but naming of certain fruits and full vessel foretold good omens. The sight of certain animals foretold riches including valuable textiles. The results accruing from the sight of Jaina and Buddhist monks, diviners, bankers, wine-sellers etc., are recounted. The prognostication depended on the way questions were asked and stretching of limbs etc. In a nutshell, the Bșihatsamhita gives the contents of the Angavijjā much as we find in the published text. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ANGAVIJJA-PRAKIRŅAKA The commentary of the Uttarādhyayana Su. 8 also mentions Angavijjä as a book dealing with prognostications by means of the movements of limbs, terrestrial and astronomical sciences, mantras as hili mätangini svāha and other vidyas. There is no definite evidence to determine the data of the text of the Angavijjā. But taking into account the mention of Khattapaka or Kshtrapa coins and also the details of costumes and furniture its compilation should have taken place in the fourth century A. D., though by its very nature it is also a repository of earlier material. The Angavijjā opens with the usual salutations to Siddhas, Achāryas, Upadhyāyas, Sadhus, Jinas and Mahāvira. The science is said to have been enunciated by Mahāpurisa. The nimittas are divided into eight classes, namely (1) arga (limbs or gestures), (2) svara (articulation), (3) lakshana (signs), (4) vyañjana (moles etc.), (5) svapana (dream), (6) chhinna (wear and tear), (7) bhauma (terrestrial omens), and (8) antariksha (astrology). Among the nimittas, anga is supposed to occupy a prominent position. This science formed a part of Ditthivāya supposed to have lost since the days of Sthalabhadra, a disciple of Bhadrabāhu. We are further informed that it formed the twelfth part of Ditthivāya and that it was taught by Mahāvira to his Ganadharas. The author claims that the Angavijjá records faithfully the nimittas as were enumerated by Mahavira to his disciples. It is supposed to describe the title, the etymology and the chapter headings as described by Mahavira (pp. 1-2). The purpose of nimitta is senses visualizing objects for personal satisfaction. Anga is defined as the science of prognostication by means of external and internal manifestation of signs. After this, a list of chapter headings is given. (2-3). Chapter II (p. 3) contains the laudation of Jina (Jina santhavajjhão). Chapter III (3-5) is devoted to the selection and training of a disciple (sissopakkhāvana). It is ordained that an expert in Angavijjā should impart the knowledge of the science to deserving Brāhmanas, Kshatriyas and Sadras. It was also expected that they came of a good family and bore sound character. Stress is also laid on their comely appearance, sound health, sweet speech, religiosity, humbleness, intelligence, obedience to teacher and ability to understand the significance of gestures, etc. The non-believer had no right to learn the science. Angavijjā was to be taught in a Gurukula to those who led the life of celebacy and honoured gods, guests and monks. The use of collyrium tooth-brush, perfumes, flowers, ornaments, fish, flesh, honey, wine and butter was forbidden to the initiates. The lessons on Angavijjā were not to be given in stormy weather, hot summer, at the time of an earthquake, fall of meteors, bathing time, at the time of an invasion, in the vicinity of a burning place or graveyard (eďaka), mritasutaka, and at a place soiled by flesh, blood and fat or strewn with rocks, pebbles and ashes. The appropriate places for such occassion were in the proximity of clean waters, green fields, auspicious trees, peaceful gods, soft sands, a stone slab in a cattle pen and in a white-washed house with the initiate dressed in white garments. The lessons began after salutations to gods, Jinas and Acharyas. Chapters IV-VII (5-7) deal with a short panegyric on Angavijja. The author after praising the magical formulae (mani) and the basic principles (adharana) tells us that training in Angavijă imparted the knowledge of victory and defeat, a king's death or recovery from illness, anarchy, profit and loss, happiness and misery, life and death, famine and good harvest, drought or good rainfall, etc. The VIIIth Chapter (8-9) entitled bhumikarma contains many magical incantations for the attainment of Angavijja. In one mantra its relationship with Khirini, Udumbara and Virana trees is emphasised. A threeday fast under a Kshira tree to be broken with rice-pudding is enjoined. For bhūmikarma one-day fast on the fourteenth of the black half of the month is ordained. Wearing uncalendered garment and seated on a kuśa mat, a two-day fast resulted in the attainment of the Vidyā. The mantras were to be repeated 800 times. The importance of bhumikarma is further stressed. It is said to be the very foundation of the house of the Science which was laid down with the help of magical formulae. Twenty-three items for prognostication are recorded namely-1) the manner of sitting (upavavitthavihi), (2) squatting (palhatthiga-vihi), (3) touching (āmāsa-vihi), (4) bolstered position (apassya-vihi), (5) posing up (thiyavihi), (6) seeing (vipikkhiya-vihi), (7) laughing (hasita), (8) questioning (puchchiya), (9) paying respect (vandiya), (10) conversing (sarlaviya), (11) coming (agama), (12) weeping (rudita), (13) wailing (paridevita), (14) moaning (kandiya), (15) kayotsarga pose (peļima), (16) standing up for respect (abbhutthiya), (17) going out (niggaya), (18) stamping while standing or sleeping (pailäiya), (19) the manner of yawning, (20) kissing, (21) embracing (22) opulence (samiddhi), (23) service. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION The author then subdivides the Chapters into Sections. In the second section the various postures in sitting, laughing, sleeping, etc. are described (9-10). In third section a list of qualifications of a disciple are enumerated. The place of past, present and future in prognostication by āmāsa, time, perfume, beauty and voice are given. While questioning the present, the manner of question asked and its purpose, the congregation and the appearance of the questions are taken into consideration. In the six categories mentioned above presentation is the cause, one who presents the symbol. The manifestations are external and internal. The subvarieties of the twenty-three items recounted above (p. 9) are then enumerated. (10-11). In the fourth section the purposes and moods of prognostication are recounted. The list contains moods and state of health, anger, happiness, suppliancy, health, sickness, emaciation, fatness, steadiness and unsteadiness. It is enjoined that one should not foretell about separation, loss of fortune, insult, quarrel, warfare etc. He should only foretell about impending happiness, good fortune, festivities, honour etc. As a matter of fact the writer prescribes what should be foretold and what should be withheld under the heading enumerated above. Section fifth describes in detail the virtues of a prognosticator. He controlled his senses, prognosticated only at the right moment, did not believe in adventurous life, did not hustle matters, was bereft of jeolousy and greed, was an expert analyst, fully understood time, spoke little, was steady, polite etc. (13). Section sixth recounts thirty-two kinds of the manners of sitting which also include seat made of wood, straw, cowdung, panels etc. Then follows a tedious list of good and bad results prognosticated from the different ways of sitting, their directions, and the seats used. The following interesting list of seats is given : (1) pallanka (cot), phalaka (bench), kattha (a piece of wood), pidhikā (wooden panel), asandaka (chair), phalaki (a small wooden seat), bhisi (a cushioned seat), chimphalaka (?), mancha (tered benches, dias), masuraka (round cushion), bhaddäsana (an elaborate type of seat), pichaga (wooden panel, modern pidha), katthakhoda (wooden pegs), nahatthikā. They were made of stone, metals, yarn, bone, earth, grass, cowdung, flowers, seeds, branches of trees, etc. (p. 45). Good or bad results from their use were prognosticated considering their state of preservation and the direction in which they were placed. (13-18). Twenty-two varieties of squatting are recounted. The help of arms, belts made of cloth, yarn, rope, leather and string was taken while squatting. We are informed that belts were made of cotton, wool and bark, their quality depending on their strength. For yarn-belt woolen and cotton yarn, cotton pieces (chelika), fibre, etc. were used. Leather belts were obtained from the skin of cattle and reptiles. The bark belts were made from the fibres of roots and barks. In the end squatting in different positions and directions and the prognostications made from them are recounted at great length. (18-21). Then the positions of a belly (āmāsa) are fixed as eight-ummatha, vimatha, nimmattha, appamajjita, sammajjita, thitāmāsa, āmattha and atimajjita. These positions are further subdivided into one hundred and eight classes and prognostications accruing from them are recounted. (21-26). In the ninth section seventeen kinds of rests are mentioned. They are seats, beds (sejjā), conveyance (jāņa), crutch (apassata), box (pidāya), door pins (dārappidhana), wall (kudda, column (khambha), tree, chaitya, grass, utensils, rests (avatthambha) made of earth or metals, dry rests, bone rests. Under the asana class nine types of seats mentioned on page p. 15 are recounted with the addition of certain new terms such as dimphara, māsāla (thickly padded), manchikä (small modhā or machia) and khatta (cot). 26. Among the conveyances are mentioned siyā (litter), asandana (sedan chair), jänaka (car), horsepalanquin (gholi), elephant litter (gallikā), Sagada (bullock cart), Sagadi (small bullock cart), open car (yāna), elephants, horses, bullocks and camels. (26.) Under the heading apassaya are mentioned various members of the household architecture such as small door (kidikā), wooden door (därukavāda), small covering (harssavarana). The walls are said to be whitewashed or plain (litto alitto vā), curtained (chelima), made of wooden planks (phalakamaya) or trelissed (phalaka-pasiya). The varieties of columns, poles and beams are central columns (gihadharana), beams (dhāriņi), masts (nāvākhambha), capitals columns of pipal, column sheltered from sunshine (chhāyā khambha), pillars for chandeliers (diva-rukkha-khambha) and water poles (dagalaţthi). The columns and poles were made of stone, metal, bone etc. (27). Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ANGAVIJJA-PRAKIRŅAKA Under the heading tree, thorny and milky trees are termed inauspicious; on the contrary green and flowering, trees are auspicious. The platforms (pidhikā) of the auspicious trees were made of earth or stone. (27). Under the heading images (padima) the images of men and gods are mentioned. The images were made of stone, metal, wood, painted or of stucco (potthakamma). These are said to be of superior, middling or low quality according to their appearance. (27). Under the heading 'green rests' heaps of grass, leaves, flowers and fruits are mentioned. (27), Utensils (bhāyana) were made by potter and metalsmiths. They included cups or tiles (padala), grain receptacles (kotthakāpala), boxes (mañjūsā) and wooden utensils. They were filled with liquids, food, water and riches. (27.) Receptacles (avatthambha) were also made of earth, stone and metals. Dry receptacles were made of grass, leaves, twigs, cloth, flowers and fruits. Utensils were also made of ivory and bones of cattle and fishes. (27). The items described above are divided into masculine, feminine and neuter genders and the prognostications resulting from their different positions are recounted at great length. (28-31.) The tenth section describes various positions of the body in proximity to seats, beds, seats and beds combined, cattle, human being, conveyance, palaces, staircase, tree stands, garlands, treasures, utensils, clothings, precious stones, pearls, emeralds, silver, ornaments, articles of food, contour of the lands, pure earth, stone, slabs, water, marshes, wet cow dung, path, drainage (paņāli-niddhamana), dry place, dusty place, hair, nails and bones, and cremation ground and the prognostications resulting from such proximities. (31-33). The eleventh section deals at great length with various positions of the eyes and the prognostication made from them. (34–35). In the twelfth section laughter is divided into fourteen types, each betokening different results (35-36). The thirteenth section deals in detail with the body-postures of the questioner by which events could be foretold (36-38). In section fourteenth different kinds of salutation, the manner and direction in which they were made and the prognostications resulting from them are enumerated. (38-39). The prognostications made from conversation of different topics form the subject matter of the fifteenth section. The conversation could veer round the topics of profit and loss, happiness and misery, sickness and death, professions, amusements, family love, enmity, union and separation, rains, and drought, playfulness, increase in power or loss of fortune, victory and defect and praise and reviling. (40-41). Section sixteenth enumerates different kinds of approaches which prognosticated different results (4142). Sections seventeenth to thirtieth deal with different kinds of weeping, crying, sobbing, lying down, silence, going out, sleeping, yawning, prattling, kissing, embracing, sitting in meditation, service, etc. (43–56). The ninth chapter is named as angamani or magical formulas and recounts 270 items of interest (5759) touching many walks of life. The first section enumerates seventy-five names of the different parts of the body and the prognostications resulting from them (59-60). Then various categories of men and their relatives are named. The names of planets, cattle, birds, reptiles, fishes, frogs, worms, shrubs, creepers, trees, flowers and fruits and vegetables follow. (61-64). In the flower section various kinds of garlands, such as kanthaguna, samvitānaka, devamālya, urană, chumbhala, āmelaka, matthaka, gochhaka are mentioned (64). Then follows a list of drinks which includes wines and liquors besides milk and its products, malasses, oils, water, soup, juices, etc. The intoxicating drinks are arittha, asava, meraka, madhu. It is followed by a list of foods, which includes rice and its preparations, such as boiled rice, rice pudding, curd and rice, milk and rice, rice and ghi, rice pulao, etc. (64). The list of textiles and clothing material (achchhādana and pachchhädana) mentions padasadaga (silken dhoti), linen (khoma and dugulia), gossamer, Chinese silk (chiņamsuga), ordinary Chinese silk (Chinapatta), wrapper (pāvāra), bedspread, sări (sadaka), white dhoti (sedasāda), sāri with silk border (koseyapāraa), different kinds of shawla (pada), upper cloth (uttarija), lower cloth (antarija), turban (ussisa), turban made of a long strip (vedhana), jacket (ka(ku)pāssa), coat (kanchuka), vāravāņo (perhaps quilted coat), coat with ties (vitānaka), pacchata (scarf), padded coat (saņņāhapatta), wrestler's shorts (mallasādaga). (64). The list of clothes and clothing mentioned is followed by a fairly long list of ornaments (bhasana). Diadem and crown are called tirida, mauda and siha-bhandaka. The tiara is called parikkheva or matthakakantaka. Apparently these head ornaments were decorated with the figures of eagle, makara, bullock, siuka (?), elephant, pair of Brahmany ducks, fish, rings and spirals. It is noteworthy that these ornaments appear on the figures of the Kushāna period in the art of Mathura and Gandhāra. The temple mark (nidālamāsaka, Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION ३३ modern tika), forehead ornament (tilaka, perhaps shaped like triratna), muhaphalaka (perhaps decorative panels attached to turbans as in the sculptures of the Kushāņa period), visesaka (a specially designed forehead decoration), and the elongation of the eye with collyrium (avanga). The names of the ear-ornaments include several varieties such as kundala, baka (jasmine shaped), matthaga, talapattaka (palmyra-leaf-shaped), kurabaka (kurabaka-flower shaped), kannakovaga (beautifying the ear), kannapila (tight-earring), kannapura (a kind of earring), earnail (kanna-khila or kann-loda). In the ornaments for hands are mentioned armlet (keüra), talabha (armlet with palmyra-shaped leaves), kandaga (armlets with round beads), pariherga (perhaps circular armlet), ovedhaga (light bangles). The other names are khadduga, ananta (endless bangles or armlets), khuddaya (small bangle), kankana (jingling bangle) and vedhaga. In the ornaments for neck hära had eighteen strands and addhahāra nine strands, phalahāra (had apparently fruit-shaped beads), vekachchhaga (a necklace worn across the chest), gevejja (short necklace or collar), kattha (wooden collar), kadaga (necklet), suttaka (golden chain worn cross-wise on the chest), sovanna suttaga (golden chain). The exact nature of the tigiñchhiga and hidayattānaka is not known; the latter may however be something like modern urbasi. The necklaces as often found in early terracottas were decorated with beads or plaques shaped like Svastika, Srivatsa and eight auspicious symbols (Srivatsa, Svastika, Nandyavartya, Minayugala, Vardhamanka, Darpana, Bhadrasana and Purnaghata). Others were sonisutta (necklace hanging on the haunches), gandopaka and khattiyadhammaka (probably some sort of necklace used by the Kshatriyas). For the feet nipura (anklet), angajaka, păpadha (var. pãedha, modern Hindi pāyal), padakhaduyaga (thick anklets), padamāsa (anklet made by stringing coins), pādakalāvaga (tinkling anklets). Then ornamental nets for arms and feet are mentioned. They are sarajālaka, bāhujālaka (ornamental net for arms), urujalaka (ornamental nets for the thighs) and pādajālaka (net for the feet). Among the girdles are mentioned akkhaka (made of beads), pussakokila (making noise like the male cuckoo), kañchikalāva (many stranded zone), and hasudolaka (slightly moving). (64–65). The list of utensils for keeping food is interesting though difficult to interpret. Under the thāla class are mentioned tattaka (perhaps made of bronze), saraka, thala and sirikunda. In the bowl class appear panasaka which had its outer body granulated like that of a jack fruit', addhakavitthaga was probably a semicirculer bowl and supatitthaka was one which had a ring at the base, pukkharapattaga had scalloped body imitating lotus petals, saraga, was a wine cup (cf. Jivābhigama), mundaga had straight edge without outspreading lips, and siri-kamsaga was made of bronze, dālima-püsika was perhaps shaped like a pomegranate, nälaka had a handle, and the mallakamalaka was a flat bowl with tapering end. Then follow the cups of various forms. Karoda is a modern katorā, vattamānaga is a deep saucer, alandaka, a water cup, and jambuphalaka, a cup with ovaloid body. Khoraka is an ordinary purvă or khorā and mundaka seems to have been a rimless water cup, and vattaga round cups used for ghi at the time of dinner (Jivabhigama), finally pinaka seems to have been a square cup. (65). The list of seats also given elsewhere (15, 26) has some new names as savvatobhadda, padaphala (foot-rest), vattapidhaka (round seat), satthika (Svastika-shaped), taliya (bed), attharaka (bed-cover), kottima (tiled) and silätala (paved) are mentioned. (65). The list of seats is followed by a list of storage jars. They are arañjara, alinda, kundaga, māņaka, ghataka (small pitcher), kudharaka vāraka (broad-mouthed auspicious pitcher of Marudeśa, Jivā.), kalasa (big pitcher), gulamaga, pidharaga, mallagabhanda (ring-well), pattabhanda (storage receptacle made of leaves). 65. In the list of precious materials gold, silver, sandalwood, agallochum (agaru) cloths made of silk (andaja), pondaja (cotton), chamma (leather), vălaya (hair) and vakkaya (bark-fibre) are mentioned..(65). The list of grains contains cereals, oil-seeds etc. (66). The names of coins, suvannamāsaka, rayayamāsaka, diņāramāsaka, ņāņa-māsaka, kahapana, khattapaka, puräņa and sateraka are interesting and point to the early date of the text when these coins were either current or their memory was still fresh. In the second section in the list of feminine names at first the names of the various parts of the human body are recounted and various prognostications resulting from them are enumerated (66-67). Then IV. S. Agrawala, Harshacharita, p. 180. f. n. 1. The same as kanțakita karkari of Baņa. Specimens of panasakta have been found in the excavations at Ahichchhatra, Hastinapur and Rajaghat ncar Banaras. अंग०३ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 ANGAVIJĀ-PRAKIRNAKA follow the synonyms for women-ahomahila, sumahilä, ahoitthi, suitthi, dāriya, bāliya, singikā, pillikā, vachchhikā, tannika, potikā, kaņņā, kumāri, dhijjá, patti-vadhu, vadha, upavadha, itthiya, pamada, angaņā, mahilā, ņāri, pohatti, juvati, josită, dhanitā, vilaka, vilasini, itthå, kantā, piya, hita-ichchhită, issari, sāmiņi, vallabhikā, pajjiyā, ajjiyā, nāņika, mahămātuyā, mātā, chullamātā, māussiyā, pitussiyā, bhajjā, jári, sahi, qatti, paņattiņi, ramā, suhņā, sāvatti, sallikā, medhuņā, bhātuijāyā, sagottā, bhagini, bhāginejje-bhajjā, kodumbiņi, pitussahā, maussahā, neyātukasahā. The list contains the names of women according to their age, virtue, relationship etc. (68). The queen is called itthirayana, mahādevi, rāyapatti, rāyaggamahisi, rayopajjāyapatti. Then come seņāyapatiņi (wife of the commander-in-chief), bhoyani (wife of a bhoga), talavari (wife of a talavara), ratthiņi (wife of a răshtrika), gāmiņi (wife of a village headman), amacchi (wife of a minister), vallabhi (wife of the king's brother-in-law), padihari (wife of the chamberlain), issarigini (wife of feudal chief), bhogini, (wife of a bhoga), ghariņi (wife of a house--holder), satthavähi (wife of a caravan-leader), ibbhi (wife of a member of the guildor Sreshthi-wealthy person), bhogamitti (perhaps courtezan), bhadi (wife of a warrior), nadi (actress), kärugimi (wife of an artisan), sahigini (wife of Sāhi ?), Lādi (a Gujarati woman), Jonikā (a Greek woman), Chilāti (a Kirāta woman), Babbari (a Barbara woman), Sabari (a Śabara woman), Pulindi (a Pulinda woman), Andhi (an Andhra woman), Dimiļi (a Tamil woman). We are further informed that feminine names were formed after the caste, provenance, profession, vidyā and silpa. Some examples are cited (68). Then follow the names of the womenfolk of the Asuras, Nāgas, Gandharvas, Räkshasas, Yakshas, Vegetation Spirits, Stars etc. (69). The following goddesses are mentioned: Hiri, Siri, Lachchi, Kitti, Medha, Sati (Smriti), Dhiti, Buddhi, Ilā, Sitā, Vijjā, Vijjatā, Chandaleshā, Ukkosā, Abbharāyā, Ahodevi, Devi, Devakannā, Asurakannā, Indaggamahisi, Asuraggamahisi, Airikä, Bhagavati, Alambusā, Missakisi, Minakā, Miyadarnsaņā, Apala, Anădită, Airāņi, Rambha, Ttimissakesi, Tidhini, Salimāliņi. Tilottamă, Chittaradha, Chittalehā, Uvvasi. (69). In the above list the names of certain foreign goddesses are of great interest. Apalā may be identified with the Greek goddess Pallas Athene. Anadita is the Avestic goddess Anahita whose cult was later on mixed with the cult of Nana or Nanaia. Airāni may be the Roman goddess Irene, Ttimissakesi may be the nymph Themis from whom her son Evander learned his letters, Tidhani can not be identified, Sālimāliņi may be identified with the Moon goddess Selene. From what source this tit-bit of information came in Angavijja is not known, but it must be fairly early when the Greek influence was not completely lost from North-Western India and Mathura. Then follows a list of quadrupeds, birds, aquatic animals, worms and insects, trees, creepers, flowers, tubers, etc. coming under feminine class. (69-71). Four kinds of food, boiled, mixed with spices, rolled into balls and fumigated with spices are mentioned. (71). Some names of chädars or coverings are recounted : paunna or patrorna (made from bark fibre or silk), paeni or praveņi (made from twisted yarn), vannā (coloured), somittiki (perhaps sagmotogene of the Periplus, 24), addhakosijjikā (same as modern bäftä in which half silk and half cotton are used), kosejjikā (made of silk), pasara (large), pigāņādi (thick stuff), lekha (perhaps painted), vaukāņi (stuff as light as wind, baft-havā ventus textiles), velavika (patterned with creeper motive), parattikä (perhaps may be some stuff from Parthia), Mähisika (cotton cloth manufactured in South Hyderabad Deccan) or Mysore, illi (a kind of soft stuff); katutari. (a hard one), jämilika was a pair of sash cloth called yamali in the Divyavadana). The stuffs were smooth, thick, well woven, badly woven, costly, cheap, uncalendered and bleached. (71). In the list of ornaments sirisa-malikā (the string of beads shaped like sirisha flower), naliyamālikā (the beads shaped like reed) are necklaces. In the earring class are mentioned makarikā, orāņi (unidentified), pupphitika (flower shaped), makanni, lakada (wooden slugs), vālikā (circlet), kannikā, kannavälikä. Kundamålikā is a necklace. Siddhatthika (adorned with mustard seed design) and angulimuddika (signets) are finger rings. Akkhamālikā (rosary), sangha-mālikā (interconnected necklace), payukā (necklace with plaques), nitaringi (?), kantaka-mālikā (necklace with granulated beads), ghanapichchhilikā (heavily decorated with peacock feathers). vikāliya (serpentine necklace), ekávali (necklace with one strand), pippalamālika (necklace with pippla-shaped beads), hārāvali, muttāvali (pearl-necklace) are necklaces. In zones kañchi, rasaņā, jambuka (zone with jambu, fruit-shaped beads), mekhalā, kantikā, sampadikā are mentioned. Pämuddika is toe-ring, vammikā, pāasuchikā, pāghattika and khinkhiņika are all foot ornaments. (71). Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION ३५ In the beds and seats, and conveyances, the usual names are repeated (72). In the list of pots and pans alandika (storage jar), patti (cup), ukkhala (mortar), thalika, kälañchi, karaki (spouted pot), kutharika (small storage jar), thāli (tray), mandi, ghadi (small pitcher), davvi, kelä (perhaps oblong jar) uttika-māņikā (measuring pot), nisaka (pot with stand ?) ayamani (ladle), chulli (some kind of small pot), phumaṇāli (blow pipe ?). samañchhani (?), mañjūsikā (small box), muddikā (sealed pot), salākāñjani (collyrium stick), pellikä (grain measure), dhütullika, piñcchola (some earthern musical instrument), phanika (a pot with combed decoration), doni (trough), ukkuliņi (perhaps a pot with outspread lip), pani, amila (polished ?), budhā, paḍālikā and vattharika. (72). The names of some implements are also mentioned: kuddāli (spade or hoe), kuthara (axe), chhurika (knife), davvi (ladle), kavalli (big kaḍāha), diviga (oven or lamp). (72). Some coins are also named Suvanna-kakani, māsaka kākaņi, suvannaguñja, and dināri. (72). In section 3, names of the limbs under neuter category are recounted (72-73). In section 4, seventeen right side limbs, in section 5, seventeen left side limbs, in section 6, 17 central limbs, in section, 7, twentyeight firm limbs, and in section 8, 28 mobile limbs and the prognostications resulting from them are enumerated (72-80). Section seven also gives a list of the mountains: Himavanta, Maha-himavanta, Nisadha, Ruppi, Meru, Mandara, Nelavanta, Keläsa, Vassadhara, Veyaḍdha, Achchhadanta, Sajjha, Viñjha, Manta, Malaya, Pāriyatta, Mahinda, Chittakuda, Ambasaṇa. This list is followed by the various synonyms of a mountain and its constituents. (78). In sections 9 to 270, follows a very complicated system of prognostication by means of words pertaining to limbs and their connotations to the present and future, external and internal division and their classifications into castes and various other topics. (80-129). The tenth chapter deals with the arrival of the questioner and the prognostications made from the objects of different categories held by him or her and the position of the limbs of the questioner. As usual much of the information previously given is repeated. (130-135). The eleventh chapter describes in detail the states of the questioner and the different places where the questions were asked. In this connection various architectural terms: Gabbhagiha (sleeping room), abbhantaragiha (inner apartment), bhattagiha (dining room), vachcha (lavatory), nakuda, udagagiha (water pavilion), aggi (fire house), bhumi (cellar), vimana, chachhara (lane), sandhi (railing joint), samara (Kāma's temple), kadikatorana (thatched torana), pagara (city-wall), charika (road between the fort and the city), veti (railing), gayavāri (elephant stable), samkama (ferry), sayana (rest room), valabhi (pinnacle of the house or caves), rási, pamsu, niddhamana (drain), niküḍa (female apartment), phalikha (moat), pävira, peḍhikā (room), mohanagiha (sleeping room), osara (open square before the main gate), somāņa (steps), abbhantara-pariyarana (inner circle), duvarasālā (room on the door), gihaduvärabaha (side frame of the outer door), uvatṭhānajālagiha (trellised assembly-hall), achchhanaka (rest-room), sippa (workshop), kammagiha (workroom), rayata (white room), odhi-uppala-(lotus-painted room), himagiha (cold room), ādamsa-(room decorated with mirrors, modern sismahal), tala-(ground floor), agama (reception room), chatukka (square building), rachcha (protected building), danta (ivory room), kamsa-(bronze room), padikamma (room for religous rites), kankasālā, ātavagiha (summer room), paniya (shop), asana (drawing room), bhojana (dining room), rasoti (kitchen), haya (horse stable). radha (chariot stable), gaja (elephant stable), pupha (flower house), juta (gambling house), pātava (house with trees), khaliņa (stable where the horses' bit and birdle were stored), bandhanagiha (prison), jāņa giha (garrage) (135-136). Further on some fresh architectural terms are given: kottha (granary), angana (courtyard), bhagga (plastered house), singhaḍaga (public square), attāla (bastion), vappa (earthern rampart), khambha (column), duārasālā (portico), jalagiha (water pavilion), mahānasagiha (kitchen), bhanda (storehouse), osadhagiha (drug store), chitta (picture gallery), lata (bower), kosa (treasury), vättha (bouduoir), pāņava (business house), levana (room for storing perfume), savana-ujjāņa (garden house), äesa (audience hall), vesagiha (brothel), kotthākāra (store house), pavā (water booth), setukamma (dyke), nhãnagiha (bathroom). ãtura (sickroom), samsarana (working room), sumkasālā (customs house), karaṇasālā (secretariat), parohada (courtyard at the back of the house). (137-138). Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ AÑGAVIJJĀ-PRAKIRŅAKA Chapter twelfth describes at length the forms of existence. Dhammajoni is connected with religion; atthajoni with the acquisition of wealth; kamajoni with the enjoyment of garlands and perfumes etc.; sargama with sexual intercourse; mitta with friendship; vivada with acts of enmity; pavāsika with those proceeding to gāma (village), nagara (city), nigama (banking town), janapaya (district town), pattaņa (emporium), nivesa (encampment), khandāvāra (military encampment), forest and hills, or engaged on the mission of an envoy (duta, sandhivāla); pavuttha with the act of travelling; agamaņa with the act of returning; niggama with going out and agama with coming; rāja and rājanupāya with the paraphernalia of royalty; rajapurisa with the officers of a king; vaniyappadha with trade and commerce; käruka with artisans, anujoga with questions; ajja with noble profession; sissa with the bowing disciples; pessa with servants; bandhana with securely held prisoners; mokha with release; mudita with the happiness at the recovery from illness; atura with illness; marana with death; sayitavva with sleeping; chhinna with broken asunder; nattha with cessation; vinaya with discipline; Bambhana, Khattiya, Vessa and Sudda with respective castes; bāla, jovvana and vuddha with childhood, youth and old age respectively. The forms of existence are also connected with various states of the body, time, gender, directions, etc. (138-144). In chapter thirteenth prognostication from various states of existence is described. In chapter fourteenth entitled Lābhaddära (means of acquisition) the whole topic is divided under six headings : atthadāra (means of acquiring wealth), samāgama (means of getting desired result), payă (starting on a journey), arogga (recovery from sickness), jivita (saving life), kamma (work of the artisans), vutthi (rains) and vijaya (victory) (144-145). The attha was prognosticated from flowers and fruits, valuable cloths and jewels, furniture, food, unguents, perfumes, etc. In chapter fifteenth samāgama is prognosticated by amorous behaviour of certain birds and men and women, talk about way-faring and the topics such as rivers, seas, mountains, etc. connected with it. Results could be prognosticated from it about marriage, friendship, etc. (145). Chapter sixteenth deals with certain prognostications about travel means of children, fruits, animals, etc. (145). Chapter .seventeenth deals with prognostications from fruits, vafuable clothes and ornaments, and signs of enjoyment which foretold recovery from illness (145). In the eighteenth chapter prognostications on death are enumerated (145-146). In chapter ninteenth it is said that certain omens foretold the loss of work or the workshop (146). Chapter twentieth deals with prognostications about rain and good farm yields from water, aquatic animals, boats as ņāvā, kotimba, daālua, lotuses, oil, milk, rains, lightning, thunder etc. (146). In chapter twenty-first the prognostication about victory with the help of a fan, utensils, flags, conveyances, cosily cloths and garlands, drums, jungle, enemy territory, encampment, etc. were foretold. (146). In the twenty-second chapter the prognostication of good omens is concerned with marriage, the attainment of success, tasting certain fruits and grains, harvesting, welcoming a friend as a guest, putting on certain ornaments and accomplishments, protecting certain animals and human beings while asleep, decorating the body, the appearance of clouds, lightning and certain furniture, the appearance of birds and beasts on lotus ponds and trees, murder and imprisonment, laughter and laying the ghost, use of old garments in different seasons, biting by the fish, comforting the confused, catching the horse and boar, panyegyries of the bards, serving an officer in opulent circumstances, offering of flowers and perfumes, coming of a traveller after a long time after completing the journey successfully (siddhayattā), the appearance of ghosts?, hearing the wail of trumpet in a chaitya, giving back the stolen goods, making of gold designs in flags ?, giving of umbrella, shoes etc., obtaining wealth for protecting someone, honour at the Completion of some clever art, seeing the setting in a tank, the rise of some mystic thought in mind, the filling of tank and vessel with water, kindling of sacred fire at jätakarma etc., auspicious occassion at the recovery from illness, getting wealth, etc., the worship of monks, the appointments of jettha and anujettha of a goshthi (Niśitha, 264), the manifestation of certain forces of nature, the enjoyment at birth, the respect of good people, medication, restoring old dilapidated buildings for religious merits, seeing about oneself, looking at yajña, seeing the shaking of Nivāra tree, hearing the jingling of ornaments, kissing stage property, goods carried by land and sea routes, animals and food taken by Sadhus and their praise, the growth or riches and fame, slight rise of fortune, column, seat, bed, trees etc., ascending a tree, house, horse and hill, prosperity of the village and town etc., arranging chaplets, mukuta, etc., clapping in various positions, metal decoration, etc., coming of a group of people intoxicated with passion, pleasure at seeing the people giving one another, seeing the youth, fruits and grains, hearing loud happy voice Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION ३७ from outside, playing with pet birds, seeing the satisfying meals, depositing of jewels, fruits etc., seeing the rescue of the people from the ravages of Rudra, realising the force of form, taste etc., determining the results from the naming of the sotras, seeing the blooming lotus, foretelling prosperity hearing the half-spoken words, appearance of bali, mangala and yajña, seeing the lotus, forest and animals, construction of the palace of a Vaisya, seeing the procession of a king coming out in haste, release from prison, tying the ornaments, circumambulation, belching, seeing the filling of utensils, seeing the mast elephant, the coming of mithuna, seeing and enjoying music and dancing, seeing the washing of impure things, seeing the erection of tiered benches, hearing the rumbling of clouds, determining the date for travel, the accumulation of jewels, building of yūpa, chiti, and dykes, beholding yogic powers, increase of wealth, defeat of enemies, unhealing of the wound, entering the city while weeping, victorious expedition of a king, entering a garden and watershed without fatigue, etc. (146–148). In chapter twenty-third the prognostications about loss etc. are called unpraiseworthy. Under this class come weeping, anger, hunger, seeing birds of ill-omens, and other states of mind and body showing dejection. (148–149). The twenty-fourth chapter is entitled jātivijaya. The people are divided into two classes : Aryas and Mlechchhas. Under the first category Brahmanas, Kshatriyas, Vaisyas are placed, while the Sudras are counted as Mlechchhas. The brāhmaṇas are described as white, the Kshatriyas red, the Vaiśyas yellow and the Sudras black. Their colours are pure, śyāma and black. They are very tall and short. They lived by trade (vavahāropajivi) or military profession (satthopajivi), or agriculture. They lived in pleasure groves, mountains, islands, rural areas, as Chakka chara, in cities. They are also named after the directions they lived in. They are also called ajjadesanissita, living in the Arya land; when they went out they were known as ajjadesäntara. Those living in garden land (ņikkhuda) (?) were known as anajjadesijja. (149). The twenty-fifth chapter is devoted to gotras (See also, Sürya-Pannatti, 10-16, p. 149 b). Gotras are said to be of two kinds-gahapatigotta and dijātigotta. In the first category are mentioned Madha, Gola, Harita, Chandaka, Sakita (Kasita), Väsula, Vachchha, Kochchha, Kosika and Konda (149) The Brahman gotras are based on four conditions Sagotta, Sakavigotta, Bambhachărika and Pavara. The following gotras are named Mandava, Setthina, Samdilla, Kumbha, Māhaki, Kassava, Gotama, Aggirasa, Bhagava, Bhagavata, Saddaya, Oyama, Härita, Lokakkhia, Kachakkhi, Chäräyana, Pārāvana, Aggivessa, Moggalla, Atthisena, Purimansa, Gaddabha, Varāha, Kandusi, Bhagavati, Kākurudi, Kaņņa, Majjhandiņa, Varaka, Mulagotta, Sarkhāgotta, Kadha, Kalava, Välamva, Setassatara, Tettirika, Mahajjharasa, Bajjhasa Chhandoga, Mujjāyana, Katthalāyana, Ggahika, Ņerita, Bambhachcha, Käppäyana, Kappa, Appasattabha, Sālankāyana, Yaņāna, Amosala, Sakija, Upavati, Dobha, Thambhāyana, Jivantayana, Dadhaka, Dhanajāya, Sankhena, Lohichchha, Antabhāga, Piyobhāga, Sandilla, Pavvayava, Apurayaņa, Vävadāri, Vagghapada, Pila, Devahachcha, Väriņila, Sughara. (150). Chapter twenty-sixth is devoted to proper names. The list includes the names of stars, planets, directions, meteors, forests, wells, rivers, oceans, Nāgas, Varuna, sea-ports (samudrapattana), foods and drinks, animals, trees and creepers, fruits, gods, cities, men, almost everything on the earth. (150–152). The names of constellations are of two kinds-Nakkhattanissita, Devatānissita. The names of men were formed from gottanāma, ayaņāma (constellation ?), kamma (profession), sarira (body) and karana (office). Under aya are quoted the examples Kinnaka, Kataraka Chhaddilaka. Sarira names are good or bad. They are Sanda (bull), Vikada (terrible), Kharada (lowest), Khallada (bald) Vipiņa (forest). The friendly names ended with the suffixes nandi, nanda, dinna, nandaka and nandikā. The names indicating defects of the body are Khandasisa (broken head), Käna (blind of one eye), Pillaka (discarded), Kujja (hunchback), Vamanaka (dwarf), Kuvi(ni)ka (lame), Sabala (spotted), Khanja (lame), Vadabha (distorted). Proper names were also formed on the basis of complexion; fair complexion being denoted by Avadātaka, Seda and Sediļa, light black by Säma, Sāmall and Sämaka-Sámalā and black by Kalaka and Kālikā. Names based on beauties of the human body are : Sumuha (handsome), Sudarsana (pleasing personality), Suruva (beautiful), Jāta (well-born), Sugata (pleasing gait). The names based on age are Balaka (child), Daharaka (boy), Majjhima (middle-aged), Thavira-thera (old). The following endings of proper names are Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ANGAVIJJA-PRAKIRNAKA mentioned : tāta, datta, diņņa, mitta, gutta, bhūta, päla, pāli, samma, yasa, räta, ghosa, bhānu, viddhi, nandi, nanda, mana, uttarā, pālita, rakhi, nandana, nandaka, sahitamahaka. (153). Chapter twenty-seven describes the names of officers : rayakammika and amachcha (minister), nayaka (leader); asanattha bhändägarika (treasurer), abbhāgārika (chamberlain), mahanasika (chief cook), gayadhiyakkha (chief of elephant forces); majjaghariya (chief of the royal booth), panaghariya (officer in charge of waterhouse), návādhiyakkha (admiral of the navy), suvaņņādhiyakkha (officer in charge of gold), hatthiadhigata (officer in charge of elephant stable), assao (offcer in charge of horse stables), yoggāyariya (officer in charge of conveyances), govayakkha (superintendent of herds), padihara (chamberlain), ganikakhansa (officer in charge of courtezans), balaganaka or ņāyaka (officer in charge of a section of army), pachchantapāla (warden of the marches), varisadhara (head of eunuchs), ärāmapāla (garden--officer), sandhipāla (member of war and peace), sisärakkha (chief of the bodyguards), patiärakkha (body-guard), suńka säliya (superintendent of customs), rajjaka or padhavavata (washerman), ādavika (superintendent of forests), nagarādhiyakkha (city-magistrate), susanavävata (superintendent of cemetry), sūņāvavata (incharge of slaughter-houses), chäraka pāla (superintendent of spies), phalādhiyakkha (superintendent of fruits), pupphao (superintendent of flowers), purohita (royal priest), àyudhäkärika (artificer of weapons), korthakārika (tresurer). (159). In the twenty-eighth chapter a fairly long list of professions is given. There are five kinds of professions : rayaporisa (government officers), vavahāra (trade and commerce), kasi-gorakkha (agriculture and animal husbandry), kärukamma (art and crafts) and bhati (work on daily wages or labour). In the first class of government officials are mentioned rāyamaccha, amaccha, assavārika, āsavāriya, abbhantarāvachara (spy), abbhākāvachara (superintendent of the harem), bhändägäriya, sisärakkha, pațihāraka, süta, mahānasika, majjaghariya or pāniyaghariya (officer in charge of wine cellars), hatthädhiyakkha or mahāmatta or battimentha. The officers in charge of cavalary are assadhiyakkha, assārodha, assabandhaka, officer in charge of sheep (chhăgalika), officer in charge of cows (gopāla), officer in charge of buffaloes (mahisipāla), superintendent of camels (uttapala), hunter (magaluddhaga), shephard (orabbhika), ahinipa. Superintedents of royal stables are assātiyakkha, hatthādhiyakkha, elephant-rider (hatthäroha), elephant-driver (haththimahämatta), lord of elephants (gajadhipati) and cattle enumerator (gosankhi) are also officers. Bhandägărika or kosarakkha was an officer in charge of stores and custom duties; savvädhikata received all kinds of royal tributes; lekhaka had all scripts at his finger tips (angulisu savvalipigate); samvachchhara, the royal astrologer, dārădhigata and dārapāla controlled the entrance and exit of the visitors; balaganaka or senapati was commander of the army, abbhāgărika or ganikākhamsaka looked after the courtezans; varisadhara is eunuch; vatthadhigata was in charge of royal wardrobe; nagaraguttiya the city superientendent of police. The messenger is data, jainaka, pesamakärka, and patihāraka. The following officers are connected with water navigation : tarapaatta (officer in charge of ferry charges), năvădhigata (admiral), titthapāla (warden of the river crossings). Then there are officers in charge of water (paniyaghariya), bathroom (phanaghariya) and wine cellars (surăgharita). Officers in charge of wood, grass (katthadhikata, tana) are there; biyapala was in charge of seeds. Opasejjika was in charge of the royal beds; sisarakkha, the head body-guard. The superintedent of garden (ärämädhigata), superintendent of police (nagararakkha), officer in charge of aśoka garden (asokavanikāpāla), officer in charge of arrows (vāņādhigata), officer in charge of omaments (ābharanadhigata). (159-160). Then follows a long list of professions : trader (vavaharin), naval architect (udakavaddhaki), fishermen (macchabandha), boatmen (navika), oarsmen (bāhuvika), goldsmith (suvannakära), lac dyemaker (alittakakāra), dyer specialising in red (rattarajjaka), image-maker (devada), dealer in wool (unnavāniya), dealer in yarn (suttavaniya), lacquer-worker (jatukāra), painter (chittakāra), player on instruments (chittavāji) ?, utensil-maker (tatthakāra), ironsmith (lohakära), sitapettaka ?, dyer (suddharajaka), potter (kumbhakära), bronzesmith (kāṁsakāraka) silkweaver (kosakāra), cloth-dealer (dussika), dyer (rayaka), silk-weaver (kosejja), bark--fibre weaver (väga), butcher of sheep and buffaloes (orabbhika-mahisaghấtaka). sugarcane crusher (ussanika), umbrellamaker (chhattakäraka), eaming livelihood by cloth-trade (vatthopajivika), dealers in fruits, roots and grains (phalavaniya, müla, dhanna), boiled rice seller (odanika), meat-seller (masa-väņijja), bean-seller (kammāsa-vānijja), maker of groats (tappana), dealer in salt (loņa), cake maker (apūpika), maker of khājā sweet (khajjakäraka), green grocer (pannaka), dealer in ginger (singare-vāniya), profession of toiletmaking (pasādhaka), aggi-upajivi or āhitaggi, actor (kusilava) or rangāvachara, perfumer (gandhika), garland maker (mālākāra), maker Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION ३९ of perfumed powder (chuņņikára). Those living by their tongue are sūta, māgadha, pussamāņava (panygerists), purohita (priest), dhammattha mahāmanta (officer in charge of religious endowments ?), gandhika, gayaka (singer), dapakära, bahussaya. The metal-workers also include lapidary (manikär), kottaka (inlayer), vattaki, vatthāpādhaka, vatthuvāpatika, mantika, bhandavāpata, titthavāpata and ārāmavavata were perhaps small officers in charge of vastrāpatha, treasury, ferry boats, garden etc. Superintendent of wood in dāruka-adhikarika and radhakara in charge of chariots. Bandhanāgārika is jailor, policeman is choralopahāra. Basic works were in charge of mulakkhănaka malika and mulakamma. The rich merchants were those dealing in wrought gold, unwrought gold (herannika sauvannika), sandalwood, cloth and were called devada. There was an officer in charge of animal fodder (govajjhabhatikärka), oyakāra-odda (diggers of soil), mulakhāņaka (the foundation diggers), iddkāra (the brick layers), bālepatunda, suttavatta, architect, the relief-carver (Tuvapakkhara) phalakäraka (engraver of sword blades) sikāhāraka, amaddahāraka are all terms connected with building industry. The weavers are of silk (kosajjavāyaka), shawl (diandakambalavāyaka) and kolika. In the class of doctors are physicians (vejja), healers of the body (kāyategichchhaga), surgeon (sallakatta), eye-surgeon (sālāki), witch doctor (bhutavijjika), physician for children (komarabhichcha), poison doctor (visatitthika). Then illusionist (mäyäkäraka), goripādhaka, pole-dancers (larkhaka), boxers (mutthika), ballad singers (läsaka), jesters (velambak), barber (gandaka) and criers (ghosaka) are mentioned. (160-161). In the twenty-ninth chapter certain details about ancient Indian cities are given. The cities are divided according to the four varmas : i.e. Brāhmaṇa, Kshatriya, Vaisya and Sudra. The capital is rājadhāni, the suburb sākhanagara. The city was permanently or temporarily inhabited and it had heavy or scanty rainfall and was either inhabited by thieves (choranagara) or gentlemen. The city was either one's own or others. It was either long, round or square, was provided with the city--wall made of wood, or brick. It was oriented to the south or left, surrounded by a forest, garden, hill etc. Emphasis is also laid on its climatic conditions and due stress is laid on its prosperity or adversity. (161-162). In the thirtieth chapter ornaments are described. The ornaments are of three kinds (1) made of chankshell, pearls, ivory, buffalo-horn, hair and bone; (2) made of wood, flowers, fruits and leaves; and (3) made of gold, silver, copper, lead, iron, tin, brass (äraküda), pig iron (kala-loha) ?, hyacinth, carnelian (lohitakka) coral, garnet (rattakkhāra mani). In white class comes white crystal, vimalaka, setakkhāramani; in black class pig iron, antimony and black khāramani, in blue class, sapphire (nilakkhāramani); in red class gold, silver, metals, carnelian and masarakalla. The metals were beaten, the khäramanis were perhaps scalloped, precious coral and chank were rubbed (ghattha), and the pearls were smoothened (parimaddita). The ornaments for the head are ocholaka, nandiviņaddhaka, apalokanika and sisopaka; for the ears talapattaka, kannuppilaka. The eyes were decorated with collyrium, the brows with the lampblack, the temple with orpiment, bingula (cinnabar) and realgar (manahsila); the lips with lacdye. The neck ornaments are vannasutta, tipisāchaka (three goblins), vijjādharaka, asimālikā (row of swords), hära, addhahāra, puchchhalaka, ávalikā, manisomaņaka (stepped ornament). atthamangalaka (a necklace of eight auspicious signs), pechukā, väyumuttă, vuppasutta, padisarakhāramani, katthevattaka; for arms angaja; for hands hatthakadaga, kadaga, ruchaga, suchika; for fingers anguleyaka, muddeyaka, ventaka; for the waist kañchi-kalāpaka and mekhalā; for legs ganda payaka, nipura and pariheraka; for the feet khinkhinika, khattiyadhammaka and padamuddika. (162-163). In chapter thirty-one the textile materials are divided into three classes -(1) made of hair etc.: (2) made of silk, patijja (v.l. paunna patrorna) and wool. Wool was obtained from quadrupeds and silk and patrorna from insects. The basic textile materials are linen (khoma), dukulla, chinese silk (chinapatta) and cotton (savvakappasika). Linen and dukulla and chiņapatta are said to have been made from the fibre. The cotton cloth includes materials made from cotton pod, arka-cotton, goat's wool (pahmagatapakshmagata). The textiles made from metals are Johajālika (chain armour) suvannapatta (gold brocade) and tinsel printing (suvanna-khasita, var.-khachiya). Then the various conditions of a textile piece are re-counted. It is uncalendered (āhata), old (parijunna), very costly (paraggha), reasonably costly juttaggha), fairly costly (samaggha), thick (thula), thin (aņuka), broad (diha), small (hrassa), bearing border (sakaladasada), plaited borders (chhinnadasa), used (vivādita), sewn (sivita), cut-piece (chhidda), wrapper (pavāraka), fluffy blanket (kotava), woollen (unnika), lining (attharaka), short--haired (tanuloma), bridal trousseau (vadhuyavattha), shroud (matakavattha), vilāta, one's own (saka), one's own or other's (atavitaka), others (paraka), given away (nikkhitta), stolen (apahita), begged (yachitaka), lost (nattha), gained (laddha). Cloths were white, black, red, yellow, green, peacock-green (mayürakaggiva), elephant grey (karenüyaka), two-coloured (vitta), gamboge, lotus red (payumarattaka), realgar Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 ANGAVIJJA-PRAKIRNAKA shaded (manosilaka), deep black (mechaka). The dyes are said to be of the best, middle and as desired classes. Red is viratta or half red (addharatta); it was of the colour of jätipatta. The truban is named is jälaka (net). pattika, vatthana (veshtana) and sisekarana. Uttarijja was wrapped above the navel and antarijja below the navel. Pachchattharna was a carpet, vitanaka the ceiling canopy and parisaranaka a floor cover. (163-164). Chapter thirty-two gives a long list of food grains and their place in prognostications. (164-165). Chapter thirty-three is devoted to conveyances. Of the conveyances playing on the roads the following are mentioned : Sibikā, bhaddäsaņa, pallankasikā (litter), radha (chariot), samdamāņikā, gilli, jugga, golinga, sakada and sakadi. Sibika and bhaddäsana were of equal superior rank. The chariots were used in war and accompanied the caravans. One could stretch fully in pallankasikā; it was long and covered. Sakada, sandamanikä and gilli are placed in the same class; a waggon of middle size is sagadi. The chariot's and golinga's front part is raised (ullāyita), the back part lowered (anullāyita). (165–166). The names of boats are more interesting : They are nåva, pota, kottimba, sālikā, tappaka, plava, pindikā (round boat), kandevelu, dati (water-skin). Ņava and pota had ample room while kottimba, sälikä, samnghäda, plava and tappaka were middle sized boats. Kattho (kanda) and velu were small, so also tumba, kumbha and dati. It is interesting to note that the Periplus (44) while describing Barygaza (Broach) says-"Native fishermen in the King's service, stationed at the very entrance in well-manned large boats called trappaga and cotymba go up the coast as far as Syrastrene." These boats could now be safely identified with the kottimba and tappaga of the Angavijjā. Speaking about the boats playing on the Eastern coast of India the Periplus (60) observes "and other very large vessels made of single logs bound together, called sangara; but those which make the voyage to Chryse and to the Ganges are called colandia, and are very large." The first were no doubt, the crafts made of hollowed logs with plank sides and outriggers such as are still used in South India and Ceylon; the larger types sangara, were probably made of two such canoes joined together by a deck platform admitting of a fair sized deck house. According to Dr. Taylor (JASB, Jan. 1847, pp. 1-78) the name jangar was in his time being used for these double canoes. Caldwell gives the form changādam in Malayalam, jangāla in Tulu, and sanghādam is Sanskrit. Benfey derives it from Sanskrit sangara 'trade'; Lassen, however, thinks the word of Malay origin (SchoffThe Periplus of the Erythrean Sea, p. 243). All doubt about its derivation is now set at rest by the mention of sanghāta, as a kind of craft by the Angavijjā. In the above list sālikā was probably provided with a cabin-house; pindikā was a round boat, kända was made of rushes, veļu from bamboo, tumba from gourd floats; dati is a float made of bloated skins; kumbha is a float made of pitchers. (166). Horses, elephants, oxen, buffaloes, asses and sheep were also used as conveyances. (166). Chapter thirty-four is devoted to samlāpa or conversation. It deals with the conversations of the human, animal and heavenly world. It describes in detail the position of the talker, the place and time. (167-168). Chapter thirty-fifth deals with payāvisuddhi. Payā is defined as the visit of relatives, welcome, toilet, kissing and embracing and other physical acts and how such arts prognosticated good or bad results. (168-170). Chapter thirty-six is devoted to dohala or pregnancy longing. The longing manifests itself in kissing and various other acts in the presence of relatives, desire for flowers, ornaments, conveyances, seats, utensils etc., love for children, decoration, bathing, etc. The dohalas pertain to sound, shape, taste, smell and touch. The ravagata class of dohala is confined to men, animals, birds, insects, flowers, seas, rivers, tanks, forests, hills, earth, gods, cities, encampment, war etc. The saddagata dohala is concerned with different kinds of noise made by men, animals, birds, ornaments, musical instruments and gatherings. The gandhagata dohala pertains to different kinds of fragrance emanating from flowers, fruits, leaves, perfumes, incense, etc. The rasagata pertains to food and drinks and phāsagata pertains to contacts with furniture, conveyances, houses, clothes and ornaments. The dohalas are divided according to the seasons and the dates and times in which they occurred. (170-172). The thirty-seventh chapter is devoted to lakshanas or favourable signs. The signs are good or bad. They are divided into twelve classes (1) colour (vanna), (2) sound (sara), (3) movement (gati), (4) place (santhāņa), (5) collective body (sanghayana), (6) length measure (māņa), (7) weight measure (ummāņa), Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ INTRODUCTION (8) power (satta), (9) shape (anuka), (10) progress (pagati), (11) shadow (chhāyā) and (12) riches (sära). In the first class come some colours, sandal-wood, agallochum, conch-shell planets, clouds, lightning, lotus, fruits, eatables. In the second class are mentioned the different kinds of noise created by gold, cloud, drum, certain animals and birds, musical instruments, songs, small bells etc.; the third class includes the movements of animals like lion, tiger, etc., birds such as peacock etc.; the fourth class includes the group of animals and birds etc.; the fifth class includes undivided emplacement; the sixth class requires requisite measurements; the seventh class includes the objects that have no proper measurements; the eighth concerns adventurers, soldiers etc.; the ninth is concerned with gods, men and animals and birds, the tenth is concerned with the shadows of heavenly bodies, fire and lightning; the eleventh (pagati) deals with the human nature depending on mucus, kashāya, wind and bile, and the twelfth with the riches. Prognostications concerning each class are described. (173-174). In the thirty-eighth chapter are described the modes and other peculiarities of the body, and how results could be prognosticated from them. (174–175). In the the thirty-ninth chapter named Kannāvāsana or ear-ornaments is stated how prognostications could be made from it in different states of the body. (175-176). In the fortieth chapter, what constitutes food is described. Food is divided into three classes. The pānajoni is divided into sankhya such as milk, curds, molasses, sugar and honey; in aggeya class come ghi, flesh, milk and fat and in anaggeya class milk, curds, butter etc. The materials for food are white, yellow, red, black and their tastes are classified. Foods were also obtained from root, bulbs, bark, young leaves, flowers, fruits. A number of cereals are described. Then follows a description of the tastes of food, such as sweet, sour etc. In the animal food are mentioned the flesh of birds, animals, fish, etc. Dinners were thrown out at the festivals (ussava), after death (mataka bhoyana), after two-day fast (sattha). Slaves were fed. Dinners were also held at the sacred thread ceremony, devayāga, jäti yajña, after funeral rites, at the beginning or end of studies, picnic (abhinavabhoyaņa) etc. Dinner was taken at one's own place, at a friend's house, as a guest, at one's own will or forcibly etc. Among the drinks are mentioned sugarcane juice, juices of fruits and leaves and grains. Among the wines are mentioned yavā (beer), pasanna, ayasa, arittha, (medicinal wine) and white wine (seta-sura), Yavägu was made with milk, ghi, oil and also vegetables. Some vegetables are mentioned. Among the varieties of molasses and sugar are mentioned sakkara, machchandika, khajjakagula and ikkása. Power or pastes of badara, wheat, rice and sesamun were used as food. Among the salts are mentioned samudda, sindhava, sovacchala, pamsukhāra, jave-khāra etc. Among the sweetmeats are mentioned modaka, pendika, pappada, morendaka, sālākälika, ambatthika. Among the savouries are mentioned povalika, vokkitakka, povalakka, papaada, sakkulikā, púpa, phenaka, akkhapapa, apaļihata, pavitallaka, velātika (perhaps chilātikachilā), pattabhajjita, ullopika, siddhatthikā, blyaka, ukkārikā, mandillikā, dihasakkulika, khāravattika, khodaka, divālika, dasirikā, bhisakantaka, matthataka. Most of the terms can not be identified. Modaka is modern ladda; pendikā pedā, pappada may be păpada or some kind of crisp cake; morendaka the modern tilladdu; and ambatthika probably amti, povālika and sakulikă are paris, pupa cake, phenaka pheni, pavitallaka is a cake-like parāthā, pattabhajjaka, the well-known bhajiā, bijaka cakes with seeds, ukkarika like modern shoäla etc. (176-182). Chapter forty-one is devoted to the topic of sexual intercourse, kissing and embracing. The topic of sexual intercourse is divided into three categories : Divva or love-making of the gods in which use is made of chhatra, bhingāra, beacon (laullopika) ?, bedspread (vāsakadaga), jakkhopāyana (presenting yaksha perfume) etc. In tiryakjoni class come the copulation of birds and animals. The sexual intercourse of men is divided into two classes-known (vigata) and unknown (avigata). In human copulation clothes, ornaments, shoes, conveyances, garlands, mukuta, brushes, combs (phanalikhāvaņa), bathing, applying viseshaka, curling (okuntana), applying cinnabar, collyrium, perfumed powder, perfumes, colours (vannaka), earwax-cleaner (kannasodhanaka), collyrium rod, needles, incense, food of all kinds, ornaments, mouth perfumes (muhäväsak) were used. After that varieties of sexual poses are described. (182–186). Chapter forty-two is devoted to dreams. The dreams are seen (dittha), unseen (adittha), and of trance variety (avatta dittha). They are auspicious or inauspicious. They are further classified as śruta or heard in which the rumbling of clouds, tinkling of ornaments and gold coins, singing and playing on musical instruments Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ANGAVIJĀ PRAKIRNAKA are included. In gandha class come various kinds of scent. Similarly dreams pertain to touch, sexual intercourse, rodha, avarudha, jangama, aquatic creatures, gods, men, birds and animals. Under the category "gods in dream'. come devas and devis. In human variety come the dead, the living and the unborn. It is followed by the names of the kins who appear in dreams. In the class of 'animal dreams' come all birds and animals. They are divided in auspicious and inauspicious class. The dreams are also classified on the basis of rupa, rasa, gandha and sparsa. Apparently coins like suvannaka, ruppa and kähävana had to do something with dreams (189). The prognostications of the dreams depended on the place, duration, and time. (186-191). The forty-third chapter deals with pavāsa or travel. The essential requisites of travelling are the mode of walking, use of shoes, umbrellas, conveyances, satta, knife (kattarikā), kundi and pounder. The travellers passed tanks, rivers, mountains and different types of human habitations (gäma, nagara, pattana, sannivesa, and included itinerant actors, monks, messengers and runners (duta-paridhävaka). Short or long journey was undertaken. It is also said how different colours and rūpa, rasa, gandha and sparśa prognosticated different results in travelling. (191-192). Chapter forty-fourth deals with the prognostications which determine the directions, the duration and the destination of the journey. (192–193). Chapter forty--fifth deals with the prognistications about homecoming. A well-fed person, his ears oiled, his body anointed (abbhangana) and painted and decorated with lac dye, the forehead decorated with višeshaka and his clothes fumigated, wearing ornaments indicated a person returned from journey. The congregation of conveyances also indicated the arrival of a person from a long journey. Milk and its products, oil, molasses, sugar, fish, flesh, sprouts, leaves, jewels and precious metals and stones and articles of luxury etc. indicated the arrival of a traveller. (193–194). Chapter forty-sixth deals with the topic of entering the house. The prognostications take into account auspicious or inauspicious events. For instance, seeing certain birds and animals in the doorway brought good results. The sight of curds, garlands, fruits, flowers, etc. forebode prosperity. The sight of a dry rotten tree foretold failure. If standing to the right of a person something is presented to the left it foretold doom; if the pile of the wood is loose it foretold the same result. If the open door lingered onwards, the fortune earned with difficulty is lost. In this way the topic proceeds. Where children smeared with dirt toddle on the ground bad fortune results, but if they wear ornaments the result is otherwise. If the flowers and fruits growing in the courtyard suffer from frost loss occurs, but if they prosper good fortune results. Similar is the case if one weeps in the courtyard or is happy. Similarly wearing of dirty tom clothes foretold misfortune. The same happens in the case of the appearance of a broken pot or furniture in the courtyard. The appearance of well clad men and women foretold good fortune. The appearance of bitter fruits foretold the control of his life by the householder. The sight of rolling fruits by girls and boys caused trouble. If the Sramaņas and Brāhmaṇas did not visit the house, it resulted in misfortune. Then prognostications from arañjara, depending on its strength or weakness are given. The breaking of Bahmatthala and conveyance foretold doom. The offering of a rough seat to a Sramana with dirty or white covering or placing his seat in a dilapaditated house had their consequences. Prognostications were also made from certain types of food, hair, straw, curtains, formation of anjali etc. The absence and position of food in the kitchen, the chirping of certain birds, the emptiness of water pots, the appearance of vegetables, sweet fruits etc. had their own place in the science of prognostication. (195--197). in the forty-seventh chapter military expedition is described. It required the presence of umbrella, bhringára, fans, weapons and armour, and people engaged in war preparation, the war chariots and waggons being put in trim and moving in and out, shoes being put on. An expedition is divided into victorious (vijaya), for pleasure (sammodi) and of long duration (chira), it brought great success (maha phala) or was full of troubles or of hazards (pamādavati). It was undertaken for food and drinks, for gaining riches (dhanalambhabahula), for more income (yabahula), and for conquering a city, district or village. An expedition proceeded to kheda, forest country, garden country, low lands (ninnadesa) or for besieging a city etc. Victory gave pleasure and defeat resulted in cleavage of opinion. Expeditions were also taken out to conquer merchants. Victorious expeditions resulted in the acquistion of beasis of burden and coveyances. Expedition was made up also of Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION carvan parties or was taken out for war, encroachment or it was just a peaceful one. It was taken to all directions and in all seasons. (198--199). Chapter forty-eighth deals with the topic of victory. It included victory over kings, ganas, cities etc. Victorious expeditions were undertaken in spring when the trees were green, and flowers, fruits, furniture, cloths. ornaments, conveyances etc. were auspicious to the occasion. (199-201). Chapter forty-ninth deals with prognostications about defeat. (201-202). Chapter fiftieth deals with the various defects of the body and diseases and the prognostications concerning them. (202-203). Chapter fifty-one is devoted to the propitiation of gods and goddesses. They are : Sura, Gandhavva, Vasava, Jakkha, Pitara, Peta. Adichcha, Assiņa, Arittha, Avvābādhā, Devaduta, Särassata, Gaddatoya; Vahni, Achchharăta, Varuņakäiya. Vesamanakaiya, Jakkha, Aggikāiya, Soma, Chanda, Adichcha, Gaha, Baldeva. Väsudeva, Siva, Vessamana, Khanda, Visāha, Aggi, Māruya, Sāgara, Nadi, Indaggi, Brahma, Inda, Kāma, Udaládala, Giri, Jama, Ratti, Divasa, Airāņi, Siri, Pudhavi, Ekaņāsā, Navamiga, Suradevi, Nägi, Suvannā, Divakumnāra, Samuddakumara Aggikumāra, Vāukumāra, Thanita, Vijjukumăra, Vemāņikadeva. The gods are said to be adhipati, sámániya and abhiyogika, parisovavanna. Vessavana, is said to be the patron god of the merchants and richmen; Varuna the lord of the seas; Indra as suzerain lord; Siva as lord of cows, buffaloes and sheep: Senapati Kartikeya is associated with the cock and peacock; Khandha with a boy: Visäha with sheep, ram, boy and sword: Aggi with flames etc. Then there are goddesses of vegetation (vanassati-kanna), of hills (pavvata-devata), of the seas, rivers, wells, tanks, ditch (samudda-nadi-talaga-pallala-devayato), of directions (disā), of intellect (buddhi), and of creepers (latā), of objects (vatthu), of city (nagaradevata). It also refers to ärya devatas and mlechchadevatás. (204-206). Chapter fifty-second deals wiih the prognostications made from the rainbow, lightning, thunder, sun, moon, planets, stars, yuga, samvatsara, month, fortnight, ukkāpata (falling comet), disādäha, eventide etc. Then follows a detailed description of the Nakshatras and the prognostications made with their help. (206-209). Fifty-third chapter deals with heavenly portents boding calamity (uppataņa). These portents come from the unusual behaviour of planets, day, night, earth, sky, comets, clouds, directions, rainfall of blood and flesh, lightning, rainfall, eventide. These all come under atmospheric disturbances. The terrestrial distrubances pertain to men, animals, birds, vegetation, rivers and bills, houses, furniture, utensils, etc. Also within the scope come disturbances in the city or district, breaking of certain architectural member, falling of lightning on buildings, or Indradhvaja, absence or otherwise of the rainfall, portent in certain utensils, conveyances and forest etc. (210-211). Chapter fifty-fourth deals with valuable and valueless objects. The valuable objects are said to be of four categories -dhanasara (riches), mittasära (friendship), issariyasära (kingship), and vijjäsara (knowledge). The first pertains to the possession of land, field, garden, village, city. House with furniture etc. is gihasära. Dhanasára is further subdivided into manussasāra and tirikkhajonigata-sära. Under the latter category come elephants, cows, buffaloes, sheep, camels, donkeys etc. Dhaņasāra is of twelve kinds (1) vittasára, (income). (2) suvanna (gold), (3) ruppa (silver), (4) mani (precious stones), (5) mutta (pearls), (6) vattha (clothes). abharana (ornaments), (7) sayanāsana (beds and furniture), (8) bhāyana (utensils), (9) davvopakarana (means of making money), (10) abbhupahajja (11) dhanna (grain), (12) jāna (conveyance). Mittasāra is divided into five classes (1) sambandhi (relatives), (2) mitta (friend), (3) vayassa (confidant), (4) women (5) kammakārabhichcha (workmen and servants). In issariyasāra come adhikarana (official), nāykattā (leadership), amachchatta (ministership), and rayatta (kingship). (212-213). Chapter fifty-fifth is devoted to treasures. At first the names, numbers and various units are given. It is said that treasures were hidden in many places such as the palace (pāsāya), story of a building (mäla), central beam (patthivamsa), alagga ?, city-gate (gopura), attālaga (towers), city-wall (pägära), trees, hills, temple (devatäyatana), house, well, garden, forest, fountain, field, King's highway, wall of a house etc. The treasures were buried in the receptacles made of wood, metal and earth. (213-214). Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ANGAVIJJA-PRAKIRŅAKA Chapter fifty-six deals with the classification of certain materials. They are panajoni gata, mola and dhātu. The mala is further subdivided in mulagata (roots), khandha (trunk), agga (branch) and patta (leaves). Dhấtujonigata is subdivided into manidhätugata (precious stone) and loha (metals). Under the first class are named pulaa, lohiyakkha, masaragalla. In the second class are mentioned coins, kähāvana and nänaka. The kahavanas are said to be old (porāna) and new (nava). Then come mäsa and käkani. (215-216). in fifty-seventh chapter the topic of Nattha Kosaya is dealt with. It is divided into sajjiva (living) and ajjiva (non-living). The former dealt with men and animals. In the category of men come ajja (noble), pessa (servant), varnas, elders, friends, relatives, etc. For father petara, ajjaya, āyariya, for uncle petijja, for teacher uvajjhāya. The following terms occur : bhātā, vayassa, bhagini, samla (brother-in-law), pati, medhuna, devara, patijettha, bhätu-vayassa, vayassa-vayassa, bhagiņi-pati, mätula-putta, mātusiya-putta, bhajja, säli, mātussiya-dhitara, pitussiya-dhitara, pittiya-dhitara, jātara, nanandara, sahi, jāri, bhujjā, bhätujja, sahi, salli, sodari, mahapituka, dhitara, pittiya-dhitara, mātula-dhitara, jonibhagini, sodariya, bhagini, jämăta, jämätuyabhāyā, nhusā, bhāginejja etc. It is followed by a description of prognostications from where one had gone. The ajiva class is divided into panajoni, mala and dhätu. In mula are enumerated a number of grains and sugar etc. and milk products and wines such as pasanna, nitthita, madhuraka, asava, jagala, madhura-meraka, arittha, āsavāsava, attakälikä, surā, kusukundi and jayakālikā (22). In dhätu class come objects made of pearls, conch, bor, ivory, bone, hair, metals, etc. The list also includes textiles with a new name välavira. (217-221), Another section deals with the emplacement of objects in aranjara, uttiyā, palla, kudda (wall), kijjara, ukhalikā (mortar), ghada (pitcher), pelikā, karanda, sayanåsaņa, māla (storey of a house), vätapāņa (window), chamma, kosa (leather bag), bila (hole), näli (drain), thambha (column), antaria (corner), pessantariya, kotthāgāra, bhattaghara (kitchen), väsaghara (living room), arassaghara (glass house), padikamma ghara (house for ceremonies), asokavaniyāgata, paņāligata, udakachäragata, vachchädakagata (lavatory), aritthagahanagata, chittagihagata (picture gallery), sirighara, aggihottagaha, nhãņaghara (bath room), pussaghara, dasighara, vesanagaha. There are recounted certain architectural parts and rivers, mountains, etc. Thubha and eluya (i.e. eduka) are mentioned. (221-222). The fifty-eighth chapter is devoted to reflections (chintita). Reflections come by steadfast heart and clamness of body and spirit. Reflection is divided into reflection on worldy gods, reflection on non-worldly gods and both. Reflection on gods (deva chintä) constitutes the requistites of worship. The gods mentioned are Suvanna, Vessamana, Venhu (Vishnu), Siva, Kumāra Chanda, Visäha, Bambha, Baladeva-Vasudeva, Pajjuna etc. In the list of goddesses appear Alaņā, Ajjā, Airāņi, Māuyā (Matrikā), Sauņi, Ekāņaņsă etc. It is said that different beings should be invoked in different conditions of mind. In reflection regarding human beings a list of kinship is given. Similarly, long lists of birds, quadrupeds, reptiles, aquatic animals, insects, various constituents of the human body, flowers, fruits, creepers, grains, oils etc. are mentioned. Among articles of perfume appear guggula (bdellium), sajjalasa (resin of Vatica Robusta), chandanarasa (oil of sandalwood), telavaņņika (olebanum), kāleyaka, sahakāra-rasa (mango oil), mātulinga rasa (lemon oil), karamanda-rasa, sālaphala-rasa (oil of Sāla fruit). (232). Further lists of cloths, utensils, ornaments, metals, precious stones, colours, different kinds of earth are given. For white sudhā, sedikā, palepaka (plaster), nelakata (bluish white), and kadasakkara (grit); for red geruga (red ochre), hingulaka (cinnabar), pajjani and vannamattikā (red earth), for yellow haritāla (orpiment) and manosila, for blue milaka dhatu (ultramarine ?), and sassakachunna (green malachite powder); for black añjana (collyrium) and kanhammattikā (black earth). It is followed with a list of different topographical features of the land. (223-234). Chapter fifty-nine on Time (Kāla), is divided into twenty-seven Sections (padalas). In the first Section divisions of time are mentioned. In the second Section the gunas and their relationship with time are enumerated. In the third Section utpātā vidhis are described; in the fourth Section are described small units, grains etc. and their relationship with muhurta. In Sections fifth to seventh the relationship of animate and inanimate objects with time is defined. In this way the sections roll on and their meaning is rather obscure and difficult to interpret. (235-262). Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTRODUCTION Chapter Sixtieth deals with purvabhava, devabhava, manussabhava, tirikkhajonika and nerayikabhava etc. (263-269). The above summary of the chapters gives rather an inadequate idea of the contents of the Angavijjā. The difficulties of interpretation are manifold. The language is full of technical terms and until their import is fully understood it is difficult to interpret the text. The author adopts in it a terse style which more often becomes a headache. The absence of any commentary and the lack of proper Prakrit dictionaries add further to our difficulties. This obscurity could only be removed if in future more literature on the subject becomes available. But inspite of all its shortcomings the text is a treasure-house for the cultural history of the early centuries of the Chiristian era. It does not confine itself to prognostications only, but gives long lists of objects of daily use which are important for understanding certain features of Indian life that appear nowhere else in literature. It is hoped that some scholar in future will take up a serious study of the Angavijjā and apply critical testimonia to the understanding of its rich cultural glossary. MOTI CHANDRA. Prince of Wales Museum, Bombay. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जा जैन साहित्य में अंगविज्जा नामक एक प्राचीन ग्रन्थ है। यह कुषाण-गुप्त युग के संधिकाल का ज्ञात होता है, किन्तु अभी तक कहीं प्रकाशित नहीं हुआ । प्राकृत टैक्स्ट सोसाइटी नई दिल्ली की ओर से अब यह मूल्यवान् संग्रहग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, जिसका सम्पादन मुनि श्री पुण्यविजयजी ने किया है। अंगविद्या प्राचीनकाल की एक लोकप्रचलित विद्या थी । शरीर के लक्षणों से अथवा अन्य प्रकार के निमित्त वा चिह्नों से किसी के लिए शुभाशुभ फल का कथन इस विद्या का विषय था । पाणिनि ने ऋ गण (४.३.७३) में अंगविद्या, उत्पात, संवत्सर, मुहूर्त, निमित्त आदि विषयों पर लिखे जानेवाले व्याख्यान ग्रन्थों का उल्लेख किया है। ब्रह्मजाल सुत्त (दीघनिकाय) में निमित्त, उप्पाद और अंगविज्जा के अध्ययन को भिक्षुओं के लिए वर्जित माना है। किन्तु यह अंगविद्या क्या थी, इसको बताने वाला एक मात्र प्राचीन ग्रन्थ यही जैन साहित्य में 'अंगविज्जा' नाम से बच गया है, जिसकी गणना आगम साहित्य के प्रकीर्णक ग्रन्थों में की जाती है। इसमें कहा है कि दृष्टिवाद नामक बारहवे अंग में अर्हत् वर्धमान महावीर ने निमित्त ज्ञान बताने वाले इस विषय का उपदेश किया था । अंग, स्वर, लक्षण, व्यंजन, स्वप्न, छींक, भौम, अंतरिक्ष इस प्रकार निमित्त कथन के ये आठ आधार माने जाते थे । इन महानिमित्तों से अतीत और अनागत के भाव जानने का प्रयत्न किया जाता था । इनमें भी अंगविद्या सब निमित्तों में श्रेष्ठ समझी जाती थी । जैसे सूर्य सब रूपों को साफ दिखा देता है, ऐसे ही अंग से अन्य सब निमित्तों के बारे में बताया जा सकता है। यहाँ इस ग्रन्थ के अंगज्ञान के विषय में लिखने का उद्देश्य नहीं है, वरन् इसमें जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व की शब्दावली है उसकी कुछ सूचियों की ओर ध्यान दिलाना उद्दिष्ट है । इस ग्रन्थ में तत्कालीन जीवन के अनेक क्षेत्रों से सम्बन्धित लम्बी-लम्बी शब्द-सूचियां उपलब्ध होती हैं। ये सूचियां बौद्ध ग्रन्थ महाव्युत्पत्ति की सूचियों के समान अति महत्त्वपूर्ण हैं । इन दोनों ग्रन्थों का तुलनात्मक दृष्टि से सांस्कृतिक अध्ययन भी आवश्यक है। ग्रन्थ में कुल साठ अध्याय हैं । कहीं कहीं लम्बे अध्यायों में पटल नामक अवान्तर विभाग हैं, जैसे आठवें अध्याय में विविध विषय संबंधी तीस पटल और नौवें अध्याय में १८६८ कारिकाएं जिनमें २७० विविध विषयों का निरूपण है।। आरम्भ के अध्यायों में अंगविद्या की उत्पत्ति, स्वरूप, शिष्य के गुण-दोष, अंगविद्या का माहात्म्य आदि प्रास्ताविक विषयों का विवेचन है। पहले अध्याय में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु-इन्हें नमस्कार इस विद्या का उपदेश महापुरुष ने किया था और ये भगवान् महावीर ही ज्ञात होते हैं। निमित्तों के आठ प्रकार हैं-अंग, स्वर, लक्षण, व्यञ्जन अर्थात् तिल आदि चिह्न, स्वप्न, छिन, भौम (पृथिवी सम्बन्धी निमित्त) और अन्तरिक्ष । इन निमित्तों में अंग का विशेष महत्त्व है। यह विद्या बारहवे अंग दिट्ठिवाय के अन्तर्गत मानी जाती थी, जिसका भद्रबाहु के शिष्य स्थूलभद्र के समय से लोप हो गया था । उसके बाद ग्रन्थ के साठ अध्यायों के नामों की सूची दी गई है। दूसरे अध्याय में जिन भगवान् की स्तुति है। अध्याय तीसरे से पांचवें तक में शिष्य के चुनाव और शिक्षण के नियम बताये गये हैं । ब्रह्मचर्य पूर्वक गुरुकुल में वास करनेवाले श्रद्धालु शिष्य को ही इस शास्त्र का उपदेश करना चाहिए । चौथे अध्याय में अंगविद्या की प्रशंसा की गई है । लेखक के अनुसार अंगविद्या के द्वारा जय-पराजय, आरोग्य, लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण, सुभिक्ष-दुर्भिक्ष, अनावृष्टि-सुवृष्टि, धनहानि, Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ भूमिका काल-परिमाण आदि बातों का ज्ञान हो सकता है। आठवां भूमिकर्म नामक अध्याय ३० पटलों में विभक्त है और उनमें महत्त्व की सामग्री है । आसनों का उल्लेख करते हुए उनके कई प्रकार बताये गये हैं, जैसे सस्ते (समग्घ), मंहगे ( महग्घ), और औसत मूल्य के (तुल्लग्घ), टिकाऊ रूप से एक स्थान में जमाए हुए (एकट्ठान), इच्छानुसार कहीं भी रखे जाने वाले (चलित), दुर्बल और बली अर्थात् सुकुमार बने हुए या बहुत भारी या संगीन । आसनों के भेद गिनाते हुए कहा है पर्यंक, फलक, काष्ठ, पीढ़िका या पिढ़िया, आसन्दक या कुर्सी, फलकी, भिसी या बृसी अर्थात्, चटाई, चिफलक या वस्त्रविशेष का बना हुआ आसन, मंचक या माँचा, मसूरक अर्थात् कपड़े या चमड़े का चपटा गोल आसन, भद्रासन अर्थात् पायेदार चौकी जिसमें पीठ भी लगी होती थी पीढग या पीढ़ा, काष्ठ खोड़ या लकड़ी का बना हुआ बड़ा पेटीनुमा आसन । इसके अतिरिक्त पुष्प, फल, बीज, शाखा, भूमि, तृण, लोहा, हाथीदांत से बने आसनों का भी उल्लेख है । उत्पल का अर्थ संभवतः पद्मासन था । एक विशेष प्रकार के आसन को नहट्टिका लिखा है, जिसका अभिप्राय गेंडे, हाथी आदि के नख की हड्डियों से बनाया जाने वाला आसन था (पृष्ठ १५) । पृष्ठ १७ पर पुनः आसनों की एक सूची है, जिसमें आस्तरक या चादर, प्रवेणी या बिछावन और कम्बल के उल्लेख के अतिरिक्त खट्वा, फलकी, डिप्फर (अर्थ अज्ञात), खेडु खंड (संभवतः क्रीड़ा या खेल तमाशे के समय काम में आने वाला आसन), समंथणी ( अर्थ अज्ञात) आदि का उल्लेख है । कुषाणकालीन मूर्तियों में जो मथुरा से प्राप्त हुई हैं, यक्ष, कुबेर या साधु आदि अपनी टांग या पेट के चारों ओर वस्त्र बांध कर बैठे हुए दिखाए जाते हैं । उसे उस समय की भाषा में पल्हत्थिया ( पलौथी) कहते थे । ये दो प्रकार की होती थीं, समग्र पल्हत्थिया या पूरी पलथी और अर्ध पलत्थिया या आधी पलथी । आधी पलथी दक्षिण और वाम अर्थात् दाहिना पैर या बाँया पैर मोड़ने से दो प्रकार की होती थी । मथुरा संग्रहालय में सुरक्षित सी ३ संख्यक कुबेर की विशिष्ट मूर्ति वाम अर्ध पल्हत्थिया आसन में बैठी हुई है । पलथी लगाने के लिए साटक, बाहुपट्ट, चर्मपट्ट, वल्कलपट्ट, सूत्र, रज्जु आदि से बंधन बांधा जाता था । मध्यकालीन कायबन्धन या पटकों की भाँति ये पल्लत्थिकापट्ट रंगीन, चित्रित अथवा सुवर्ण - रत्न- मणिमुक्ता खचित भी बनाये जाते थे (पृ० १९) । केवल बाहुओं को टांगों के चारों ओर लपेट कर भी बाहु-पल्लत्थिका नामक आसन लगाया जाता था । नववें पटल में अपस्सय या अपाश्रय का वर्णन है । इस शब्द का अर्थ आश्रय या आधार स्वरूप वस्तुओं से है । शय्या, आसन, यान, कुड्य, द्वार, खंभ, वृक्ष आदि अपाश्रयों का वर्णन किया गया है । इसी प्रकरण में कई आसनों के नाम हैं, जैसे आसंदक, भद्रपीठ, डिप्फर, फलकी, बृसी, काष्ठमय पीढा, तृणपीढा, मिट्टी का पीढा, छगणपीढग (गोबर से लिपा- पुता पीढ़ा ) । कहा है कि शयन, आसन, पल्लंक, मंच, मासालक (मसारक), मंचिका, खट्वा, सेज-ये शयन सम्बन्धी अपाश्रय हैं। ऐसे ही सीया, आसंदणा, जाणक, घोलि, गल्लिका (मुंडा गाड़ी के लिए राजस्थानी में प्रचलित शब्द गल्ली), सग्गड़, सगड़ी नामक यान सम्बन्धी अपाश्रय हैं । किडिका (खिड़की), दारुकपाट (दरवाजा), ह्रस्वावरण (छोटा पल्ला ), लिपी हुई भींत, बिना लिपी हुई भींत, वस्त्र की भींत या पर्दा (चेलिम कुड्ड), फलकमय कुड्य (लकड़ी के तख्तों से बनी हुई भींत), अथवा जिसके केवल पार्श्व में तखते लगे हों और अन्दर गारे आदि का काम हो (फलकपासित कुड्ड) ये भींत सम्बन्धी अपाश्रय हैं । पत्थर का खम्भा (पाहाण खंभ), धन्नी (गृहस्य धारिणी धरणी), प्लक्ष का खंभ (पिलक्खक थंभ), नाव का गुनरखा (णावाखंभ), छाया खंभ, झाड़फानूस (दीवरुक्ख या दीपवृक्ष), यष्टि (लट्ठी), उदकयष्टि (दग लट्ठी)ये स्तम्भ सम्बन्धी अपाश्रय हैं । पिटार ( पडल), कोथली (कोत्थकापल), मंजूषा, काष्ठभाजन — ये भाजन सम्बन्धी अपाश्रय हैं ( पृ० २७) । इसी प्रकरण में कई प्रकार की कुड्या या दीवारों का उल्लेख आया है; जैसे, रगड़कर चिकनी दीवार (मट्ठ), चित्रयुक्त भित्ति (चित्त), चटाई से (कडित), या फूस से बनी हुई दीवार (तणकुड्ड), या सरकंडे आदि की तीलिओं से बनी हुई दीवार, कणगपासित (जिसके पार्श्वभाग में कणग या तीलियाँ लगी हुई हों) । किन्तु For Private Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ अंगविज्जापइण्णयं इस प्रकार की भीतें अच्छी नहीं समझी जाती थीं । मृष्ट, शुद्ध और दृढ़ दीवारों को प्रशस्त माना जाता था । घृत तेल रखने की बड़ी गोल (केला = कयला = अलिञ्जर), मणि, मुक्ता, हिरण्य मंजूषा, वस्त्रमंजूषा, दधि, दुग्ध, गुड़-लवण आदि रखने के अनेक पात्र-ये सब नाना प्रकार के अपाश्रयों के भेद कहे गये हैं (पृ० ३०) । स्थित नामक दसवें पटल में अट्ठाईस प्रकार से खड़े रहने के भेद कहे गये हैं। फिर आसन, शयन, यान, वस्त्र, आभूषण, पुष्प, फल, मूल, चतुष्पद, मनुष्य, उदक, कर्दम, प्रासादतल, भूमि, वृक्ष आदि के सान्निध्य में खड़े होकर प्रश्न करने के फलाफल का निर्देश किया गया है (पृ० ३१-३३) । ग्यारहवें पटल में नेत्रों की भिन्न भिन्न स्थिति और उनके फलाफल का विचार है (पृ० ३४-३५) । बारहवें पटल में चौदह प्रकार के हसित या हँसने का निर्देश करते हुए उनके फल का कथन है (पृ. ३५-३६) । तेरहवें पटल में विस्तार से पूछनेवाले या प्रश्नकर्ता की शरीर-स्थिति और उससे संबंधित शुभाशुभ फल का विचार किया गया है (पृ० ३७-३८) । चौदहवें पटल में वंदन करने की विधि को आधार मानकर इसी प्रकार का विचार है (पृ० ३८-३९) । प्रश्नकर्ता व्यक्ति जिस प्रकार का संलाप करे उसे भी फलाफल का आधार बनाया जा सकता है - इस बात का पन्द्रहवें पटल में निर्देश है (पृ० ४०-४१) । इस प्रकार के बीस संलाप कहे गये हैं जो अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष-इन चार भागों में बाँटे जा सकते हैं । पुष्प, फल, गन्ध, माल्य आदि मांगलिक वस्तुओं के संबंध की चर्चा अर्थसिद्धि की सूचक है । ऐसी ही अनेक प्रकार की कथा या बातचीत के फल का निर्देश किया गया है । सोलहवें पटल में आगत अर्थात् आगमन के प्रकारों से शुभ-अशुभ फल सूचित किये गये हैं (पृ० ४१-४२) । सत्रहवें पटल से तीसवें पटल तक रोने-धोने, लेटने, आने-जाने, जंभाई लेने, बोलने आदि से फलाफल का कथन है (पृ० ४२-५६) । किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से इस अंश का विशेष महत्त्व नहीं है। नौवें अध्याय की संज्ञा अंगमणी है। इसमें २७० विषयों का निरूपण है। पहले द्वार में शरीर सम्बन्धी ७५ अंगों के नाम और उनके शुभाशुभ फल का कथन है । विभिन्न प्रकार के मनुष्य, देवयोनि, नक्षत्र, चतुष्पद, पक्षी, मत्स्य, वृक्ष, गुल्म, पुष्प, फल, वस्त्र, भूषण, भोजन, शयनासन, भाण्डोपकरण, धातु, मणि एवं सिक्कों के नामों की सूचियाँ हैं । वस्त्रों में पटशाटक, क्षौम, दुकूल, चीनांशुक, चीनपट्ट, प्रावार, शाटक, श्वेत शाट, कौशेय और नाना प्रकार के कम्बलों का उल्लेख है । पहनने के वस्त्रों में इनका उल्लेख है-उत्तरीय, उष्णीष, कंचुक, वारबाण (एक प्रकार का कंचुक), सन्नाह पट्ट (कोई विशेष प्रकार का कवच), विताणक और पच्छत (संभवतः पिझेरी जो पीठ पर डाल कर सामने की ओर छाती पर गठिया दी जाती थी, जैसा मथुरा की कुछ मूर्तियों में देखा जाता है), मल्लसाडक (पहलवानों का लंगोट) (पृ. ६४) । आभूषणों के नामों की सूची अधिक रोचक है (पृ० ६४-६५) । किरीट और मुकुट सिर पर पहनने के लिए विशेष रूप से काम में आते थे । सिंहभंडक वह सुन्दर आभूषण था जिसमें सिंह के मुख की आकृति बनी रहती थी और उस मुख में से मोतियों के झुग्गे लटकते हुए दिखाए जाते थे । मथुरा की मूर्तियों में ये स्पष्ट मिलते हैं । गरुडक और मगरक ये दो नाम मथुराकला में पहचाने जा सकते हैं । मथुरा के कुछ मुकुटों में गरुड़ की आकृति वाला आभूषण पाया जाता है । मगरक वही है जिसे बाणभट्ट और दूसरे लेखकों ने मकरिका या सीमंत-मकरिका कहा है। दो मकरमुखों की आकृतियों को मिलाकर यह आभूषण बनाया जाता था और दोनों के मुख से मुक्ताजाल लटकते हुए दिखाए जाते थे। इसी प्रकार बैल की आकृति वाला वृषभक, हाथी की आकृति वाला हत्थिक, और चक्रवाक मिथुन की आकृति से युक्त चक्रकमिथुनक (चक्ककमिहुणग) Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ भूमिका नामक आभूषण होता था । हाथ के कड़े और पैरों के खड़वे, णिडालमासक (माथे की गोल टिकुली), तिलक, मुह फलक (मुख फलक), विशेषक, कुण्डल, तालपत्र, कर्णापीड, कर्णफूल, कान की कील और कर्णलोढक नामक आभूषण ठेठ कुषाणकाल में व्यवहार में आते थे । इनमें से कर्णलोढक बिलकुल वही आभूषण है जिसे अंग्रेजी में वोल्यूट (Volute) कहते हैं और जो मथुरा की कुषाणकालीन स्त्रीमूर्तियों में तुरन्त पहचाना जा सकता है । यह आभूषण फिर गुप्तकाल में देखने में नहीं आता । केयूर, तलव, आमेढ़क, पारिहार्य (विशेष प्रकार का कड़ा), वलय, हस्तकलापक, कंकण ये भी हाथ के आभूषण थे । हस्तकलापक में बहुत सी पतली चूड़ियों को किसी तार से एक में बाँध कर पहना जाता था, जैसा मथुरा शिल्प में देखा जाता है। गले के आभूषणों में हार, अर्धहार, फलहार, वैकक्षक, ग्रैवेयक का उल्लेख है। सूत्रक और स्वर्णसूत्र, स्वस्तिक और श्रीवत्सनामक आभूषण भी पहने जाते थे। किन्तु इन सब में महत्त्वपूर्ण और रोचक अष्टमंगल नाम का आभूषण है । बाण ने इसे ही अष्टमंगलकमाला कहा है, और महाव्युत्पत्ति की आभूषणसूची में भी इसका नाम आया है । इस प्रकार की माला में अष्टमांगलिक चिह्नों की आकृतियाँ रत्नजटित स्वर्ण की बनाकर पहनी जाती थी और उसे विशेष रूप से संकट से रक्षा करने वाला माना जाता था । सांची के तोरण पर भी मांगलिक चिह्नों से बने हुए कठुले उत्कीर्ण मिले हैं । मथुरा के आयागपटों पर जो अष्टमार्गलिक चिह्न उत्कीर्ण हैं वे ही इन मालाओं में बनाए जाते थे । श्रोणि सूत्र, रत्नकलापक-ये कटिभाग के आभूषण थे । गंडूपक और खत्तियधम्मक पैरों के गहने थे । खत्तियधम्मक वर्तमान काल का गूजरी नामक आभूषण ज्ञात होता है जो एक तरह का मोटा भारी पैरों से सटा हुआ कड़े के आकार का गहना है । पाएढ़क (पादवेष्टक), पैरों के खडुवे, पादकलापक (लच्छे), पादमासक (सुतिया कड़ी जिसमें एक गोल टिकुली हो) और पादजाल (पायल), ये पैरों के आभूषण थे । मोतियों के जाले आभूषणों के साथ मिलाकर पहने जाते थे जिनमें बाहुजालक, उरुजालक और सरजालक (कटिभाग में पहनने का आभूषण, जिसे गुजराती में सेर कहते हैं) का विशेष उल्लेख है । बर्तनों (पृ० ६५) में थाल, तश्तरी (तट्टक), कुंडा (श्रीकुंड) का उल्लेख है । एक विशेष प्रकार का बर्तन पणसक होता था जो कटहल की आकृति का बनाया जाता था । इस प्रकार के एक समूचे बर्तन का बहुत ही सुन्दर नमूना अहिच्छत्रा की खुदाई में मिला है। हस्तिनापुर और राजघाट की खुदाई में भी पणसक नामक पात्र के कुछ टुकड़े पाये गये हैं । यह पात्र दो प्रकार का बनाया जाता था । एक बाहर की ओर कई पत्तियों से ढका हुआ और दूसरा बिना पत्तियों के हूबहू कटहल के फल के आकार का और लगभग उतना ही बड़ा । अर्धकपित्थ वह प्याला होना चाहिए जो आकृति में अति सुन्दर बनाया जाता था और आधे कटे हुए कैथ के जैसा होता था । ऐसे प्याले भी अहिच्छत्रा की खुदाई में मिले हैं। सुपतिटक या सुप्रतिष्ठित वह कटोरा या चषक होता था जिसके नीचे पेंदी लगी रहती थी और जिसे आजकल की भाषा में गोडेदार कहा जाता है । पुष्करपत्रक, मुंडक, श्रीकंसक, जंबूफलक, मल्लक, मूलक, करोटक, वर्धमानक-ये अन्य बर्तनों के नाम थे । खोरा, खोरिया, बाटकी (वट्टक नामक छोटी कटोरियां) भी काम में आती थीं । शयनासनों का उल्लेख ऊपर आ चुका है। उनमें मसूरक उस तकिये को कहते थे जो गोल चपटा गाल के नीचे रखने के काम आता था, जिसे आजकल गलसूई कहा जाता है । मिट्टी के (पृ० ६५) पात्रों में अलिंजर (बहुत बड़ा लंबोतरा घड़ा), अलिन्द, कुंडग (कुण्डा नामक बड़ा घड़ा), माणक (ज्येष्ठ माट नाम का घड़ा) और छोटे पात्रों में वारक, कलश, मल्लक, पिठरक आदि का उल्लेख है। इसी प्रकरण में धन का विवरण देते हुए कुछ सिक्कों के नाम आये हैं, जैसे स्वर्णमासक, रजतमासक, दीनारमासक, णाणमासक, काहापण, क्षत्रपक, पुराण और सतेरक । इनमें से दीनार कुषाणकालीन प्रसिद्ध सोने का सिक्का था जो गुप्तकाल में भी चालू था । णाण संभवत: कुषाण सम्राटों का चलाया हुआ मोटा गोल बड़ी आकृति का तांबे का पैसा था जिसके लाखों नमूने आज भी पाये गये हैं। कुछ लोगों का अनुमान है कि ननादेवी की आकृति सिक्कों पर कुषाणकाल में बनाई जाने लगी थी और इसीलिए चालू सिक्कों को नाणक कहा जाता था । पुराण शब्द महत्त्वपूर्ण है जो कुषाणकाल में चाँदी की पुरानी आहत मुद्राओं (Punch-market) के लिए प्रयुक्त होने Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० अंगविज्जापइण्णयं लगा था, क्योंकि नये ढाले गये सिक्कों की अपेक्षा वे उस समय पुराने समझे जाने लगे थे यद्यपि उनका चलन बेरोक-टोक जारी था । हुविष्क के पुण्यशाला लेख में ११०० पुराण सिक्कों के दान का उल्लेख आया है। खत्तपक संज्ञा चाँदी के उन सिक्कों के लिए उस समय लोक में प्रचलित थी जो उज्जैनी के शकवंशी महाक्षत्रपों द्वारा चालू किये गये थे और लगभग पहली शती से चौथी शती तक जिनकी बहुत लम्बी श्रृंखला पायी गई है। इन्हें ही आरम्भ में रुद्रदामक भी कहा जाता था । सतेरक यूनानी स्टेटर सिक्के का भारतीय नाम है। सतेरक का उल्लेख मध्यएशिया के लेखों में तथा वसुबन्धु के अभिधर्म कोश में भी आया है। पृष्ठ ७२ पर सुवर्ण-काकिणी, मासक-काकिणी, सुवर्णगुञ्जा और दीनार का उल्लेख हुआ है । पृ० १८९ पर सुवर्ण और कार्षापण के नाम हैं । पृ० २१५-२१६ पर कार्षापण और णाणक, मासक, अद्धमासक, काकणी और अट्ठभाग का उल्लेख है । सुवर्ण के साथ सुवर्ण-माषक और सुवर्ण-काकिणी का नाम विशेष रूप से लिया गया है (पृ० २१६) । दूसरे द्वार में (पृ० ६६-७२) पिचहत्तर स्त्री नामों की सूचियाँ हैं जिनमें मनुष्य, देवयोनि, चतुष्पद, पक्षी, जलचर, थलचर, वृक्ष, पुष्प, फल, भोजन, वस्त्र, आभूषण, शयनासन, यान, भाजन, भाण्डोपकरण और आयुधों के नाम हैं । स्त्रीजातीय मनुष्य नामों में निम्नलिखित उल्लेखनीय है-अमच्ची, वल्लभी, प्रतिहारी, भोगिनी, तलवरी, रदिनी (राष्ट्रिक नामक उच्च अधिकारी की पत्नी), सार्थवाही (सार्थवाहक नामक व्यापारी की पत्नी), इब्भी (इभ्य नामक श्रेष्ठी की पत्नी); देश के अनुसार लाटी, किराती, बब्बरी (बर्बर देश की), जोणिका (यवन देश की) शबरी, पुलिन्दी, आन्ध्री, दिमिलि (द्रमिल या द्राविड़ देश की स्त्री) (पृ० ६८) । देवयोनि (पृ० ६९) के अन्तर्गत कुछ देवियों के नाम महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे इन्द्रमहिषी, असुरमहिषी, अइरिका, भगवती । किन्तु इस सूची में कुछ विदेश की देवियों के नाम भी आ गये हैं, उनमें अपला, अणादिता, अइराणी, सालि-मालिणी उल्लेखनीय हैं । अपला यूनानी देवी पलास अथीनी और अणादिता ईरान की अनाहिता ज्ञात होती हैं । सालि-मालिनी की पहचान चन्द्रमा की यूनानी देवी सेलिनी से संभवत: की जा सकती है । तिधिणी या तिधणी संज्ञा स्पष्ट नहीं है । हो सकता है यह रोम की देवी डायना का भारतीय रूप हो । अइराणी नाम पृ० २०५ और २२३ पर भी आया है । इसकी पहचान निश्चित नहीं । किन्तु प्राचीन देवियों की सूची में अफ़ोदिती का नाम इसके निकटतम है । यदि अइराणित्ति का पाठ अइरादित्ती रहा हो तो यह पहचान ठीक हो सकती है । रंभत्ति मिस्सकेसित्ति का पाठ भी कुछ बदला हुआ जान पडता है क्योंकि मिश्रकेशी का नाम पहले आ चुका है। मोतीचन्द्र जी को प्राप्त एक प्रति में रब्भं तिमिस्सकेसित्ति पाठ मिला था । इनमें तिमिस्सकेसी अरतेमिस नामक यूनानी देवी जान पड़ती है और रब्भ की पहचान इस्तर से संभव है जो प्राचीन जगत् में अत्यन्त विख्यात थी और जिसे रायी, रीया भी कहा जाता था । स्त्रीजातीय वस्त्रों के नामों में ये शब्द उल्लेखनीय हैं-पत्रोर्ण, प्रवेणी सोमित्तिक (अर्थशास्त्र की सौमित्रिका जिसकी पहचान श्री मोतीचन्द जी ने पेरिप्लस के सगमोतोजिन से की है), अर्धकौशेयिका (जिसमें आधा सूत और आधा रेशम हो), कौशेयिका (पूरे रेशमी धागेवाला), पिकानादित (यह संभवत: बहुत महीन अंशुक था जिसे स्त्रियां पिकनामक केशपाश सिर पर बनाते समय बालों के साथ गूंथती थीं; पिक नामक केशपाश का उल्लेख अश्वघोष के सौन्दरनंद ७/७ में शुक्लांशुकाट्टाल नाम से एवं पद्मप्राभृतक नामक भाण में कोकिल केशपाश नाम से आया है और उसका रूप मथुरा वेदिकास्तंभ संख्या जे० ५५ के अशोक दोहद दृश्य में अंकित हुआ है), वाउक या वायुक (बापत हवा), वेलविका (बेलदार या बेलभांत से युक्त वस्त्र) माहिसिक (महिष जनपद या हैदराबाद के बुने हुए वस्त्र), इल्लि (कोमल या कृष्ण वर्ण के वस्त्र), जामिलिक (बौद्ध संस्कृत में इसे ही यमली कहा गया है, दिव्यावदान २७६।११; पादताडितकं नामक भाण के श्लोक ५३ में भी इसका उल्लेख हुआ है, जिससे ज्ञात होता है कि यह एक प्रकार का कायबंधन या पटका था जिसमें दो भिन्न रंग के वस्त्रों को एक साथ बटकर कटि में बाँधा जाता था-समयुगलनिबद्धमध्यदेश:) । विशेषतः ये वस्त्र चिकने मोटे अच्छे बुने हुए सस्ते या मंहगे होते थे (पृ० ७१) । Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ५१ स्त्रीजातीय आभूषणों में ये नाम हैं- शिरीषमालिका, नलीयमालिका (नलकी के आकार के मनकों की माला) मकरिका दो मगर मुखों को मिलाकर बनाया हुआ मस्तक का आभूषण), ओराणी (अवारिका या धनिए के आकार के दानों की माला), पुप्फितिका (पुष्पाकृति गहना ), मकण्णी (संभवतः लिपटकर बैठे हुए दो बंदरों के अलंकरण वाला आभूषण), लकड़ (कान में पहनने के चन्दन आदि काष्ठ के बुन्दे), वालिका (कर्णवल्लिका), कर्णिका, कुण्डमालिका (कुंडल), सिद्धार्थिका ( वह आभूषण जिस पर सरसों के दाने जैसे रवे उठाये गये हों), अंगुलि मुद्रिका, अक्षमालिका ( रुद्राक्ष की आकृति के दानों की माला), पयुका (पदिक की आकृति से युक्त माला), णितरिंगी (संभवतः लहरियेदार माला), कंटकमाला (नुकीले दानों की माला), घनपिच्छलिका (मोर-पिच्छी की आकृति के दानों से घनी गूथी हुई माला), विकालिका (विकालिका या घटिका जैसे दानों की माला), एकावलिका (मोतियों की इकलड़ो माला जिसका कालिदास और बाण में उल्लेख आया है), पिप्पलमालिका (पीपली के आकार के दानों की माला जिसे मटरमाला भी कहते हैं), हारावली (एक में गूथे हुए कई हार), मुक्तावली (मोतियों की विशेष माला जिसके बीच में नीलम की गुरिया पड़ी रहती थी) । कमर के आभूषणों में काँची, रशना, मेखला, जंबूका (जामुन की आकृति के बड़े दानों की करधनी जैसी मथुरा कला में मिलती है, कंटिका (कंटीली जैसे दानों वाली), संपडिका (कमर में कसी या मिली हुई करधनी) के नाम हैं । पैर के गहनों में पादमुद्रिका (पामुद्दिका), पादसूचिका, पादघट्टिका, किंकिणिका (छोटे घूँघरूवाला आभूषण) और वम्मिका (पैरों का ऐसा आभूषण जिसमें दीमक की आकृति के बिना बजने वाले घूँघरू के गुच्छे लगे रहते हैं, जिन्हें बाजरे के घूँघरू भी कहते हैं ) ( पृ० ७१) । शयनासन और यानों में प्रायः पहले के ही नाम आये हैं। बर्तनों के नामों में ये विशेष हैं-करोडी (करोटिका – कटोरी), कांस्यपात्री, पालिका (पालि), सरिका, भृंगारिका, कंचणिका, कवचिका । बड़े बर्तनों (भाण्डोपकरण) के ये नाम उल्लेखनीय हैं- आलिन्दक (बड़ा पात्र), पात्री ( तश्तरी), ओखली (थाली), कालंची, करकी, (टोंटीदार करवा), कुठारीका (कोष्ठागार का कोई पात्र) थाली, मंडी (माँड पसाने का बर्तन), घड़िया, दव्वी (डोई), केला (बड़ा घड़ा), ऊष्ट्रिका (गगरी), माणिका ( माणक नामक घड़े का छोटा रूप), जिसका (मिट्टी का सिलौटा), आयमणी (आचमनी या चमची), चुल्ली, फुमणाली (फुंकनी), समंछणी (पकड़ने की संडसी), मंजूषिका (छोटी मंजूषा), मुद्रिका (ऐसा बर्तन जिसमें खान-पान की वस्तु मोहर लगाकर भेजी जाँय ), शलाकाञ्जनी (आंजने की सलाई), पेल्लिका ( रस गारने का कोई पात्र), धूतुल्लिका (कोई ऐसा पात्र जिसमें धूता या पुतली बनी हो), पिछोला (मुँह से बजाने का छोटा बाजा), फणिका (कंधी), द्रोणी, पटलिका, वत्थरिका, कवल्ली (गुड़ बनाने का बड़ा कड़ाह) आदि ( पृ० ७२) । तीसरे द्वार में नपुंसक जाति के अंगों का परिगणन है। चौथे द्वार में दाहिनी ओर के १७ अंगों के नाम हैं । पाँचवें द्वार में १७ बाईं ओर के अङ्ग, छठे द्वार में १७ मध्यवर्ती अंग, सातवें द्वार में २८ दृढांग, आठवें द्वार में २८ चल अंग और उनके शुभाशुभ फलों का कथन है । नवें द्वार से लेकर २७० वें द्वार तक शरीर के भिन्न भिन्न अंग और उनके नाना प्रकार के फलों का बहुत ही जटिल वर्णन है । इन थका देने वाली सूचियों से पार पाना इस विषय के विद्वानों के लिए भी दूभर काम रहा होगा ( पृ० ७२–१२९) । दसवें अध्याय में प्रश्नकर्ता के आगमन और उसके रंग-ढंग, है ( पृ० १३० - १३५ ) । आसन आदि से फलाफल का विचार पुच्छित नामक ग्यारहवें अध्याय में प्रश्नकर्त्ता की स्थिति एवं जिस स्थान में प्रश्न किया जाय, उसके आधार पर फलाफल का कथन है । सांस्कृतिक दृष्टि से यह अध्याय महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें तत्कालीन स्थापत्य संबंधी अनेक शब्दों का संग्रह आ गया है; जैसे कोट्ठक (कोष्ठक या कोठा), अंगण ( आंगन या अजिर) अरंजरमूल (जलगृह), गर्भगृह (आभ्यंतरगृह या अन्तःपुर) भत्तगिह (भोजन शाला), वच्चगिह (वर्च कुटी, या मार्जनगृह), For Private Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ अंगविज्जापइण्णयं णकूड (संभवत: नगकूट या क्रीड़ापर्वत), उदकगृह, अग्निगृह, भूमिगृह (भोंहरा), विमान, चत्वर, संधि (दो घरों की भीतों के बीच का प्रच्छन्न स्थान), समर ( स्मरगृह या कामदेवगृह), कडिक तोरण ( चटाई या फूँस से बनाया हुआ अस्थायी तोरण), प्राकार, चरिका (प्राकार के पीछे नगर की ओर की सड़क), वेती (संभवतः वेदिका), गयवारी ( गजशाला), संकम (संक्रम या परिखा के ऊपर बनाया हुआ पुल), शयन ( शयनागार), वलभी (मंडपिका), रासी ( कूड़ी), पंसु (धूल), णिद्धमण (पानी का निकास मार्ग, मोरी), णिकूड (निष्कुट या गृहोद्यान), फलिखा (परिखा), पावीर (संभवतः मूल पाठ पाचीर प्राचीर), पेढिका (पेढ़ी या गद्दी ), मोहण गिह (मदनगृह, स्मरशाला), ओसर (अपसरक - कमरे के सामने का दालान, गुजराती ओसरी, हिन्दी ओसारा), संकड़ (निश्छिद्र अल्प अवकाश वाला स्थान), ओसधि गिह, अभ्यन्तर परिचरण (पाठान्तर परिवरण- भीतरी परिवेष्टन - परकोटा), बाहिरी द्वारशाला, गृहद्वार बाहा (गृहद्वार का पार्श्वभाग), उवट्ठाण जालगिह ( वह उपस्थानशाला जहाँ गवाक्ष जाल बने हों; यह प्रायः महल के ऊपरी भाग में बनी होती थी), अच्छणक (आसनगृह या विश्रामस्थान), शिल्पगृह, कर्मगृह, रजतगृह (चांदी से मांडा हुआ विशिष्ट गृह), ओधिगिह (पाठान्तर उवगिह उपगृह), उप्पलगृह (कमलगृह), हिमगृह, आदंस (आदर्शगृह, शीशमहल), तलगिह (भूमिगृह), आगमगिह (संभवत: आस्थायिका या आस्थानशाला), चतुक्कगिह (चौक), रच्छागिह (रक्षागृह), दन्तगिह ( हाथीदांत से मंडित कमरा), कंसगिह (कांसे से मंडित कमरा), पडिकम्मगिह (प्रतिकर्म या धार्मिक कृत्य करने का कमरा), कंकसाला (कंक = विशेष प्रकार का लोहा, उससे बना हुआ कमरा) आतपगिह, पणिय गिह (पण्यगृह), आसण गिह (आस्थानशाला), भोजनगृह, रसोती गिह (रसवतीगृह, रसोई ) हयगृह, रथगृह, गजगृह, पुष्पगृह, द्यूतगृह, पातवगिह (पादपगृह), खलिण गिह ( वह कमरा जहाँ घोड़े का साजसामान रखा जाता है), बंधनगिह ( कारागार) जाणगिह ( यानगृह) ( पृ० १३६) । इस सूची के हिमगृह का विस्तृत वर्णन कादम्बरी में आया है । = = आती है जिसमें बहुत से नाम तो ये = कुछ दूर बाद स्थापत्य संबंधी शब्दों की एक लम्बी सूची पुनः ही हैं और कुछ नये हैं, जैसे भग्ग गिह (लिपा पुता घर, देशी भग्ग शब्द लिपा पुता, देशी नाममाला ६।९९), सिंघाडग (शृंगाटक सार्वजनिक चतुष्पथ), रायपथ (राजपथ ), द्वार, क्षेत्र, अट्टालक, उदकपथ, वय (व्रज), वप्प (वप्र ), फलिहा ( परिघ या अर्गला ), पउली (प्रतोली, नगरद्वार) अस्स मोहणक (अश्वशाला ), मंचिका (प्राकार के साथ बने हुए ऊँचे बैठने के स्थान ), सोपान, खम्भ, अभ्यंतर द्वार, बाहरी द्वार, द्वारशाला, चतुरस्सक (चतुष्क), महाणस गिह, जलगिह, रयणगिह ( रत्नगृह, जिसे पहले रयत गिह या रजत गृह कहा है वही संभवतः रत्नगृह था), भांडगृह, ओसहि गिह ( ओषधिगृह), चित्तगिह (चित्रगृह), लतागिह, दगकोट्ठक (उदक कोष्ठक), कोसगिह (कोषगृह), पाणगिह (पानगृह), वत्थगिह (वस्त्रगृह, तोशाखाना), जूतसाला (द्यूतशाला), पाणवगिह (पण्य या व्यवहारशाला), लेवण ( आलेपन या सुगंधशाला), उज्जाणगिह ( उद्यानशाला), आएसणगिह (आदेशनगृह), मंडव (मंडप ), वेसगिह ( वेशगृह, शृंगारस्थान), कोट्ठागार (कोठार), पवा (प्रपाशाला), सेतुकम्म (सेतुकर्म), जणक (संभवतः जाणक = यानक), ण्हाणगिह (स्नानगृह), आतुरगिह, संसरणगिह (स्मृतिगृह), संकशाला ( शुल्कशाला), करणशाला ( अधिष्ठान या सरकारी दफ्तर), परोहड ( घर का पिछवाड़ा) । अन्त में कहा है कि और भी अनेक प्रकार के गृह या स्थान मनुष्यों के भेद से भिन्न भिन्न होते हैं, जिनका परिचय लोक से प्राप्त किया जा सकता है ( पृ० १३५ - १३८ ) । = बारहवें अध्याय में अनेक प्रकार की योनियों का वर्णन है। धर्मयोनि का संबंध धार्मिक जीवन और तत्संबंधी आचार-विचारों से है | अर्थयोनि का संबंध अनेक प्रकार के धनागम और अर्थोपार्जन में प्रवृत्त स्त्री-पुरुषों के जीवन से है । कामयोनि का संबन्ध स्त्री-पुरुषों के अनेक प्रकार के कामोपचारों से एवं गन्धमाल्य, स्नानानुलेपन, आभरण आदि की प्रवृत्तियों ओर भोगों से है । सत्त्वों के पारस्परिक संगम और मिथुन भाव को संगमयोनि समझना चाहिए । इसके प्रतिकूल विप्रयोगयोनि वह है जिसमें दोनों प्रेमी अलग अलग रहते हैं। मित्रों के मिलन और आनंदमय जीवन को मित्रयोनि समझना चाहिए । जहाँ आपस में अमैत्री, कलह आदि हों और दो व्यक्ति अहि-नकुलं भाव से रहें वह विवादयोनि है | जहाँ ग्राम, नगर निगम, जनपद, पत्तन, निवेश, स्कन्धावार, अटवी, पर्वत आदि प्रदेशों में मनुष्य For Private Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका दूत, सन्धिपाल या प्रवासी के रूप में आते-जाते हों, उस प्रसंग को प्रावासिक योनि मानना चाहिए । ये ही लोग जब ठहरे हुए हों तो उसे पवुत्थ या गृहयोनि समझना चाहिए । तेरहवें अध्याय में नाना प्रकार की योनियों के आधार पर शुभाशुभ फल का कथन है। सजीव, निर्जीव और सजीव-निर्जीव तीन प्रकार की योनि हैं और तीन ही प्रकार के लक्षण हैं, अर्थात् उदात्त, दीन और दीनोदात्त । (पृ० १४०-१४४) चौदहवें अध्याय में यह विचार किया गया है कि यदि प्रश्नकर्ता लाभ के सम्बन्ध में प्रश्न करे तो कैसा उत्तर देना चाहिए । लाभ सम्बन्धी प्रश्न सात प्रकार के हो सकते हैं-धनलाभ, प्रियजनसमागम, सन्तान या पुत्रप्राप्ति, आरोग्य, जीवित या आयुष्य, शिल्पकर्म, वृष्टि और विजय । इनका विवेचन चौदहवें से लेकर २१ वें अध्याय तक किया गया है। वृष्टिद्वार नामक बीसवें अध्याय में जल सम्बन्धी वस्तुओं का नाम लेते हुए कोटिम्ब नामक विशेष प्रकार की नाव का उल्लेख आया है, जिसका परिगणन पृष्ठ १६६ पर नावों की सूची में पुनः किया गया है । धनलाभ के सम्बन्ध में फलकथन उत्तम वस्त्र, आभरण, मणि-मुक्ता, कंचन-प्रवाल शयन, भक्ष्य भोजन आदि मूल्यवान् वस्तुओं के आधार पर और प्रश्नकर्ता द्वारा उनके विषय में दर्शन या भाषण के आधार पर किया जाता था (पृ० १४४-१४५) । पन्द्रहवें अध्याय में हंस, कुररी, चक्रवाक, कारण्डव, कादम्ब आदि पक्षियों की कामसम्बन्धी चेष्टाओं अथवा चतुष्पथ, उद्यान, सागर, नदी, पत्तन आदि की वार्ताओं के आधार पर समागम के विषय में फलकथन किया गया है । इसमें संमोद, संप्रीति, मित्रसंगम या विवाह आदि फलों का उल्लेख किया जाता था । सोलहवें अध्याय में सन्तान के सम्बन्ध में प्रश्न का उत्तर कहा गया है, जो बच्चों के खिलौनों या तत्सदृश वस्तुओं के आधार पर कहा जाता था । सत्रहवें अध्याय में आरोग्य सम्बन्धी प्रश्न का उत्तर पुष्प, फल, आभूषण आदि के आधार पर अथवा हास्य, गीत आदि भावों के आधार पर करने का निर्देश है । अठारहवें अध्याय में जीवन और मरण सम्बन्धी प्रश्नकथन का वर्णन है । कर्मद्वार नामक उन्नीसवें अध्याय में राजोपजीवी शिल्पी एवं उनके उपकरणों के सम्बन्ध में प्रश्नकथन क उल्लेख है। वृष्टिद्वार नामक बीसवें अध्याय में उत्तम वृष्टि और सस्यसम्पत्ति के विषय में फलकथन का निर्देश है, जो नावा, कोटिम्ब, डआलुआ नामक नौका, पद्म उत्पल, पुष्प, फल, कन्दमूल, तैल, घृत, दुग्ध, मधुपान, वृष्टि, स्तनित, मेघगर्जित, विद्युत् आदि के आधार पर किया जाता था । विजयद्वार नामक इक्कीसवें अध्याय में जय-पराजय सम्बन्धी कथन है। तालवृन्त, भृङ्गार, वैजयन्ती, जयविजय, पुस्समाणव, शिबिका, रथ, मूल्यवान् वस्त्र, माल्य, आभरण आदि के आधार पर यह फलकथन किया जाता था । उसमें पुस्समाणव (पुष्यमाणव) शब्द का उल्लेख महाभाष्य ७।२।२३ में आया है (महीपालवचः श्रुत्वा जुघुषुः पुष्यमाणवाः) । आगे पृष्ठ १६० पर भी सूत मागध के बाद पुष्यमाणव का उल्लेख हुआ है, जिससे सूचित होता है कि ये राजा के बन्दी मागध जैसे पार्श्वचर होते थे । इसी सूची में जय-विजय विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है । वराहमिहिर की बृहत्संहिता के अनुसार (अ० ४३, श्लोक ३९-४०) राज्य में सात प्रकार की ध्वजाएं शक्र-कुमारी कहलाती थी। उनमें सब से बड़ी शक्रजनित्री या इन्द्रमाता, उससे छोटी दो वसुन्धरा, उनसे छोटी दो जया विजया और उनसे छोटी दो नन्दा-उपनन्दा कहलाती थीं (पृ० १४६) । बाइसवाँ प्रशस्त नामक अध्याय है। इसमें उन उत्तम फलों की सूची है जिनका शुभ कथन किया जाता था । उनमें से कुछ विषय इस प्रकार थे-क्रय-विक्रय में लाभ, कर्म द्वारा प्राप्त लाभ, कीर्ति, वन्दना, मान, पूजा, उत्कृष्ट और कनिष्ठ शब्दों का श्रवण, सुन्दर केशविन्यास और मौलिबन्धन, केशाभिवर्धन, विवाह, विद्या, Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ अंगविज्जापइण्णयं इक्षु, सस्य फल आदि का लाभ, खेती में सुभिक्ष, बन्धुजन-समागम, गेय काव्य, पादबन्ध (= श्लोकरचना), पाठ्य काव्य, गौ आदि पशु एवं नर-नारी और स्वजनों की रक्षा, गन्धमाल्य, भाजन- भूषण आदि का संजोना, यान, आसन, शयन, कमलवन, भ्रमर, विहग, द्रुम आदि का समागम, घात, वध, बन्ध एवं हास्य परिमोदन आदि की प्राप्ति, ग्रीष्म, वर्षा, हेमन्त, वसन्त, शरद आदि ऋतुओं की प्राप्ति, घोड़े, शूकर आदि का पकड़ना, घंटिक (राजप्रासाद में घंटावादन करने वाले), चक्किक (चाक्रिक, घोषणा करने वाला बंदीविशेष, अमरकोष २२८१९८ ), सत्थिक (स्वस्ति वाचन करने वाला), वैतालिक ( प्रातःकाल स्तुतिपाठ द्वारा जागरण कराने वाला), मंगलवाचन, मूल्यवान रत्न आदि का ग्रहण, गन्ध, माल्य, आभरण, चिरप्रवास से सफलयात्रा या सिद्धयात्रा के साथ लौटने पर स्वजन संबंधियों से समागम, भूताधिपत्य, पुण्य उत्पत्ति, चैत्य पूजा के महोत्सव ( महामहिक) में तूर्य शब्दों का श्रवण, चोरी हुए, भ्रष्ट या नष्ट धन की पुनःप्राप्ति, अष्टमांगलिक चिह्नों (चिंधट्ठय) को सुवर्ण में बनाकर उनका उच्छ्रित करना, छत्र, उपानह, भृंगार का संप्रदान, रक्षा और सम्पत्ति की प्राप्ति, इच्छानुकूल आनन्द प्राप्त होना, किसी विशेष शिल्प के कारण संपूजन और अभिवन्दन, स्वच्छ जल की उत्पत्ति और दर्शन, मन में उत्तम विचार की उत्पत्ति, जलपात्र या जलाशय का पूर्ण होना, जातकर्म आदि संस्कारों में प्रशस्त अग्नि का प्रज्वलित करना, आयुष्य, धन, अन्न, कनक, रत्न, भाजन, भूषण, परिधान, भवन आदि सुखकारी संपदा की प्राप्ति, आर्जव युक्त साधुओं का पूजन, ज्येष्ठ और अनुज्येष्ठ की नियुक्ति, ज्योति, अग्नि, विद्युत्, वज्र, मणि, रत्न आदि से तृप्ति, जन्म आदि अवसरों पर होने वाले मंडन या शोभा, आर्यजनों का संमान और पूजा, ध्यान की आराधना, पुरानी वस्तुओं का नवीनीकरण, अध्यात्म-गति विषयक दर्शन, किसी आढ्य पुरुष का याग, आभूषणों का झंकृत शब्द इत्यादि अनेक प्रकार के प्रशस्त या उत्तम भाव लोक में है । जहाँ मन की रुचि हो, जो इन्द्रियों को इष्ट जान पड़े, एवं लोक जिसकी पूजा करता हो, उसे ही प्रशस्त जानना चाहिए (पृष्ठ १४६ - १४८) । तेइसवें अध्याय में अप्रशस्त वस्तुओं का उल्लेख है जिसमें रुदन, क्रोध, बुभुक्षा आदि नाना प्रकार के हीन और विनाशकारी भावों की सूची है ( पृ० १४८ - १४९) । चौबीसवें अध्याय की संज्ञा जातिविजय है । आर्य और म्लेच्छ दो प्रकार के मनुष्य हैं। आर्य के अन्तर्गत ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की गणना है । म्लेच्छवर्ग की गिनती शूद्रों में है । यह कथन पतंजलि के उस कथन से मिलता है जहाँ महाभाष्य में उन्होंने शक-यवनों का परिगणन शूद्रों में किया है। ज्ञात होता है भारतीय इतिहास के उस युग का यह सामाजिक तथ्य था जिसका उल्लेख अंगविज्जा के लेखक ने भी किया है । इन जातियों में कुछ महाकाय (लम्बे शरीर वाले), कुछ मज्झिमकाय (मझले कद के) और कुछ छोटे कद के होते थे । कुछ लोग व्यवहारोपजीवी, कुछ शस्त्रोपजीवी और कुछ क्षेत्रोपजीवी या कृषि से जीविका करते थे । उनके रहने के स्थान नगर, अरण्य, द्वीप, पर्वत, उद्यान (निक्खुड-निष्कुट) आदि थे । पुरत्थिमदेसीय, दक्खिणदेसीय, पच्छिमदेसीय, उत्तरदेसीय इस प्रकार से चार दिशाओं में रहने वाले जन कहे गए हैं। एक दूसरा विभाग आर्यदेश और अनार्य- देश निवासियों का था (पृष्ठ १४९ ) । T पच्चीसवाँ अध्याय गोत्र नामक है । गोत्र दो प्रकार के थे। पहले गृहपतिक गोत्र और दूसरे द्विजातीय । इस वर्गीकरण में गृहपति शब्द का अर्थ ध्यान देने योग्य है । गृहपति उस वर्ग की संज्ञा थी जो बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायी थे । उन धर्मों में अनगारिक या गृहहीन व्यक्ति तो श्रमण या मुंडक होते थे, और गृही या अगारिक सामान्य रूप से गृहपतिक कहलाते थे । उनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य का भेद उन धर्मों को मनःपूत न था । किन्तु ब्राह्मण धर्मानुयायी गृहस्थ द्विजाति कहलाते थे । गृहपतियों के गोत्रों में माढ़, गोल, हारित, चंडक, सकित (कसित), वासुल, वच्छ, कोच्छ, कोसिक, कुंड ये नाम हैं ( पृ० १४९ - १५०) । ब्राह्मण गोत्र चार प्रकार के कहे गये हैं- (१) सगोत्र ( ऋषि गोत्र ) (२) सकविगत गोत्र ( इसका तात्पर्य लौकिक गोत्रों से ज्ञात होता है, जो ऋषि गोत्रों से अतिरिक्त थे 1) (३) बंभचारिक गोत्र (उन नैष्ठिक ब्रह्मचारियों के गोत्र जिन्हों ने ऊर्ध्वरेता होने के कारण गृहस्थ धर्म धारण नहीं किया और शान्तनव भीष्म के समान जिन्हें : Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका अन्य सब लोगों ने अपना मान लिया था), (४) एवं प्रवर गोत्र । इसी प्रसंग में कुछ गोत्रों के नाम भी दिये गये हैं, जैसे-मंडव (मांडव्य), सेट्ठिण, वासेट्ठ, सांडिल्ल (शांडिल्य), कुम्भ, माहकी, कस्सव (काश्यप), गोतम, अग्गिरस, भगव (भार्गव), भागवत, सद्दया, ओयम, हारित, लोकक्खी (लौगाक्षि), पचक्खी, चारायण, पारावण, अग्गिवेस्स (अग्निवेश), मोग्गल्ल (मोद्गल्य), अट्ठिसेण, (आष्टिषेण), पूरिमंस, गद्दभ, वराह, डोहल (काहल), कंडूसी, भागवाती (भागवित्ति), काकुरुडी, कण्ण (कर्ण), मज्झंदीण (माध्यन्दिन), वरक, मूलगोत्र, संख्यागोत्र, कढ (कठ), कलव (कलाप) वालंब (व्यालम्ब), सेतस्सतर (श्वेताश्वतर), तेत्तिरीक (तैत्तिरीय), मज्झरस, बज्झस (संभवत: बाध्व), छन्दोग (छान्दोग्य), मुञ्जायण (मौञ्जायन), कत्थलायण, गहिक, णेरित, बंभच्च, काप्पायण, कप्प, अप्पसत्थभ, सालंकायण, यणाण, आमोसल, साकिज, उपवति, डोभ, थंभायण, जीवंतायण, दढक, धणजाय, संखेण, लोहिच्च, अंतभाग, पियोभाग, संडिल्ल, पव्वयव, आपुरायण, वावदारी, वग्घपद (व्याघ्रपाद), पिल (पैल), देवहच्च, वारिणील, सुघर । इस सूची में स्पष्ट ही प्राचीन ऋषि गोत्रों के साथ साथ बहुत से नये नाम भी हैं जो पाणिनीय परिभाषा के अनुसार गोत्रावयव या लौकिक गोत्र कहे जायेंगे । इस तरह के बांक या अल्ल समाज में हमेशा बनते रहते हैं और उस समय के जो मुख्य अवटंक रहे होंगे उनमें से कुछ के नाम यहाँ आ गए हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों और शास्त्रों के नाम भी आये हैं जैसे वैयाकरण, मीमांसक, छन्दोग, पण्णायिक (प्रज्ञावादी दार्शनिक), ज्योतिष, इतिहास, श्रुतवेद (ऋग्वेद), सामवेद, यजुर्वेद, एकवेद, द्विवेद, त्रिवेद, सव्ववेद (संभवत: चतुर्वेदी), छलंगवी (षडंगवित्), सेणिक, णिरागति, वेदपुष्ट, श्रोत्रिय, अज्झायी (स्वाध्यायी), आचार्य, जावक, णगत्ति, वामपार (पृ० १५०) । ___ छब्बीसवां अध्याय नामों के विषय में है । नाम स्वरादि या व्यंजनादि, अथवा ऊष्मान्त, व्यंजनान्त या स्वरान्त होते थे । कुछ नाम समाक्षर और कुछ विषमाक्षर, कुछ जीवसंसृष्ट और कुछ अजीवसंसृष्ट थे । स्त्रीनाम, पुंनाम, नपुंसक यह विभाग भी नामों का है । अतीत, वर्तमान और अनागत काल के नाम यह भी एक वर्गीकरण है । एक भाषा, दो भाषा या बहुत भाषाओं के शब्दों को मिला कर बने हुए नाम भी हो सकते हैं । और भी नामों के अनेक भेद संभव हैं । जैसे नक्षत्र, ग्रह, तारे, चन्द्र, सूर्य, वीथि या मंडल, दिशा, गगन, उल्का, परिवेश, कूप, उदपान, नदी, सागर, पुष्करिणी, नाग, वरुण, समुद्र, पट्टन, वारिचर, वृक्ष, अन्नपान, पुष्प, फल, देवता, नगर, धातु, सुर, असुर, मनुष्य, चतुष्पद, पक्षी, कीट, कृमि इत्यादि पृथिवी पर जितने भी पदार्थ हैं उन सब के नामों के अनुसार मनुष्यों के नाम पाये जाते हैं । वस्त्र, भूषण, यान, आसन, शयन, पान, भोजन, आवरण, प्रहरण-इनके अनुसार भी नाम रखे जाते हैं । नरकवासी लोक, तिर्यक् योनि में उत्पन्न, मनुष्य, देव, असुर, पिशाच, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, गन्धर्व, नाग, सुपर्ण इत्यादि जो देव योनियाँ हैं उनके अनुसार भी मनुष्यों के नाम रखे जाते हैं । एक, तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह अक्षरों के नाम होते हैं, जो विषमाक्षर कहलाते हैं । अथवा दो, चार, आठ, दस, बारह अक्षरों के नाम समाक्षर कहलाते हैं । संकर्षण, मदन, शिव, वैष्णव, वरुण, यम, चन्द्र, आदित्य, अग्नि, मरुत्संज्ञक देवों के अनुसार भी मनुष्य नाम होते हैं । मनुष्य नाम पाँच प्रकार के कहे गये हैं-(१) गोत्रनाम, इनके अन्तर्गत गृहपति और द्विजाति गोत्र दो कोटियाँ थीं जिनका उल्लेख ऊपर हो चुका है । (२) अपनाम या अधनाम-जैसे उज्झितक, छड्डितक । इनके अन्तर्गत वे नाम हैं जो हीन या अप्रशस्त अर्थ के सूचक होते हैं । प्रायः जिनके बच्चे जीवित नहीं रहते वे माता-पिता अपने बच्चों के ऐसे नाम रखते हैं । (३) कर्मनाम । (४) शरीर नाम जो प्रशस्त और अप्रशस्त होते हैं, अर्थात् शरीर के अच्छे बुरे लक्षणों के अनुसार रखे जाते हैं; जैसे सण्ड, विकड, खरड, खल्वाट आदि । दोषयुक्त नामों की सूची में खंडसीस, काण, पिल्लक, कुब्ज, वामणक, खंज आदि नाम भी हैं । यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्राकृत भाषा में भी नाम रखे जाते हैं। उसमें प्रशस्त नाम वे हैं जो वर्ण गुण या शरीर गुण के अनुसार हों-जैसे अवदातक और उसे ही प्राकृत भाषा में सेड या सेडिल, ऐसे ही श्याम को प्राकृत भाषा में सामल या सामक और कृष्ण को कालक या कालिक कहा जायगा । ऐसे ही शरीर गुणों के अनुसार सुमुख, सुदंसण, सुरूप, सुजान, सुगत आदि नाम होते हैं । (५) करण नाम वे हैं जो अक्षर संस्कार के विचारसे Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं रखे जाते हैं। इनमें एक अक्षर, द्वि अक्षर, त्रि अक्षर आदि कई तरह के नाम हैं। दो अक्षरों वाले नाम दो प्रकार के होते हैं जिनके दोनों अक्षर गुरु हों, जिनका पहला अक्षर लघु और बाद का अक्षर गुरु हो । इनके उदाहरणों में वे ही नाम हैं जो कुषाण काल के शिलालेखों में मिलते हैं जैसे तात, दत्त, दिण्ण, देव, मित्त, गुत्त, भूत, पाल, पालि, सम्म, यास, रात, घोस, भाणु, विद्धि, नंदि, नंद, मान । और भी, उत्तर, पालित, रक्खिय, नंदन, नंदिक-नंदक, ये नाम भी उस युग के नामों की याद दिलाते हैं जिन्हें हम कुषाण और पूर्वगुप्त काल के शिलालेखों में देखते हैं । इसके बाद वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को लेकर विस्तृत ऊहापोह की गई है कि नामों में उनका प्रयोग किस किस प्रकार किया जा सकता है । इस अध्याय के अन्त में मनुष्य नामों की कई सूचियाँ दी गई हैं जिनमें अधिकांश नाम कुषाणकालीन संस्कृति के प्रतिनिधि हैं । उस समय नक्षत्र देवताओं के नाम से एवं नक्षत्रों के नाम से मनुष्य नाम रखने की प्रथा थी । नक्षत्र देवताओं के उदाहरणों में चंद (चन्द्र), रुद्द (रुद्र), सप्प (सप), अज्ज (अर्यमा), तट्ठा (त्वष्टा), वायु, मित्त (मित्र), इन्द (इन्द्र), तोय, विस्से (विश्वदेव), ऋजा, बंभा (ब्रह्मा) विण्हु (विष्णु), पुस्सा (पुष्य) हैं । यह ध्यान देने योग्य है कि उस समय प्राकृत भाषा के माध्यम से नामों का जो चालू था, उसे ज्यों का त्यों सूची में ला दिया है; जैसे, अर्यमा के लिये अज्जो और विश्वदेव के लिये विस्से । नक्षत्र नामों में अद्दा, पूसो, हत्थो, चित्ता, साती, जेट्ठा, मूला, मघा ये रूप हैं । दाशार्ह या वृष्णियों के नाम ' भी मनुष्य नामों में चालू थे जैसे, कण्ह, राम, संब, पज्जुण्ण (प्रद्युम्न), भाणु । नामों के अन्त में जुड़नेवाले उत्तर पदों की सूची विशेष रूप से काम की है क्योंकि शुंग और कुषाण काल के लेखों में अधिकांश उसका प्रयोग देखा जाता है; जैसे त्रात, दत्त, देव, मित्त, गुत्त, पाल, पालित, सम्म (शर्मन्), सेण (सेन), रात (जैसे वसुरात), घोस, भाग । नामों के चार भेद कहे हैं :-प्रथम अक्षर लघु, अन्तिम अक्षर गुरु, सर्वगुरु एवं अन्तिम अक्षर लघु । इनके उदाहरण ये हैं-अभिजि(अभिजित्), सवण (श्रवण), भरणी, अदिती, सविता, णिरिती (निर्ऋति), वरुण । और भी कत्तिका, रोहिणी, आसिका, मूसिका, वाणिज । मगधा, मधुरा, प्रातिका, फग्गुणी, रेवती, अस्सयो (अश्वयुक्), अज्जमा (अर्यमन्), अश्विनौ, विसाहा, आसाढा, धणिट्ठा, ईदगिरि । सर्वगुरु नामों की सूची में रोहतात, पुस्सत्रात, फग्गुवात, हत्थत्रात, अस्सत्रात । उपान्त्य लघुनामों में रिघसिल (पाठा० रिषितिल) श्रवणिल, पृथिविल इन नामों में स्पष्ट ही उत्तरपद का लोप करने के बाद इल प्रत्यय जोड़ा गया है जिसका विधान अष्टाध्यायी में आया है (धनिलचौ ५।३।७९) । इलवाले नाम साँची के लेखों में बहुत मिलते हैं-अगिल (अग्निदत्त), सातिल (स्वातिदत्त), नागिल (नागदत्त), यखिल (यक्षदत्त), बुधिल (बुद्धदत्त) । ससित्रात, पितृत्रात, भवत्रात, वसुत्रात, अजुत्रात, यमत्रातये प्रथम लघु अक्षरवाले नाम थे । शिवदत्त, पितृदत्त, भवदत्त, वसुदत्त, अजुदत्त, यमदत्त, उपान्त्यगुरु नामों के उदाहरण हैं । अंगविज्जा के नामों का गुच्छा इस विषय की मूल्यवान् सामग्री प्रस्तुत करता है । आगे चलकर गुप्तकाल में जब शुद्ध संस्कृत भाषा का पुनः प्रचार हुआ तब मनुष्य नाम भी एकदम संस्कृत के साँचे में ढल गये, जैसे सत्यमित्र, धृतिशर्मा आदि । अंगविज्जा में उनकी बानगी नहीं मिलती (पृ० १५०-१५८) । सत्ताइसवें अध्याय का नाम ठाणज्झाय है । इसमें ठाण अर्थात् स्थान या सरकारी अधिकारियों के पदों की सूची है। राज्याधिकारियों की यह सूची इस प्रकार है-राजा, अमच्च, नायक, आसनस्थ (संभवत: व्यवहारासन का अधिकारी), भांडागारिक, अभ्यागारिक (संभवत: अन्तःपुर का अधिकारी जिसे दौवारिक या गृहचिन्तक भी कहते थे), महाणसिक (प्रधान रसोइया), गजाध्यक्ष, मज्जघरिय (मद्यगृहक), पाणियघरिय (जिसे बाण ने जलकर्मान्तिक लिखा है), णावाधियखै (नावाध्यक्ष), सुवर्णाध्यक्ष, हत्थिअधिगत, अस्सअधिगत, योग्गायरिय (योग्याचार्य अर्थात् योग्या या शस्त्राभ्यास करानेवाला), गोवयक्ख (गवाध्यक्ष), पडिहार (प्रतिहार), गणिक खंस (गणिकाओं या वेश का अधिकारी), बलगणक (सेना में आर्थिक हिसाब रखनेवाला) वरिसधर (वर्षधर या अन्त:पुर में कार्य करनेवाला), Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ५७ वत्थुपारिसद (वास्तुपार्षद), आरामपाल (उद्यानपाल), पच्चंतपाल (प्रत्यंत या सीमाप्रदेश का अधिकारी), दूत, सन्धिपाल (सान्धिविग्रहिक), सीसारक्ख (राजा का सबसे निकट का अंगरक्षक), पतिआरक्ख (राजा का आरक्षक), सुंकसालिअ (शौल्कशालिक या चुंगीघर का अधिकारी), रज्जक, पधवावत (पथव्यापृत), आडविक (आटविक), नगराधियक्ख (नगराध्यक्ष), सुसाणवावट ( श्मशान व्यापृत) सूणावावत, चारकपाल (गुप्तचर अधिकारी) फलाधियक्ख, पुप्फाधियक्ख, पुरोहित, आयुधाकारिक, सेणापति, कोट्ठाकारिक (कोष्ठागारिक) ( पृ० १५९) । अट्ठाईसवें अध्याय में उस समय के पेशेवर लोगों की लम्बी सूची आई है । आरंभ में पाँच प्रकार के कर्म या पेशे कहे हैं जैसे रायपुरिस (राजपुरुष), ववहार (व्यापार वाणिज्य), कसि गोरक्ख (कृषि और गोरक्षा) कारुकम्म (अपने हाथ से उद्योग धन्धे करने वाले शिल्पी ओर पेशेवर लोग), भतिकम्म ( मजदूरी पेशा ) राजपुरुषों के ये नाम हैं-रायामच्च ( राजामात्य), अस्सवारिक (अश्वाध्यक्ष जैसा उच्च अधिकारी), आसवारिय (घुड़सवार जैसा सामान्य अधिकारी जिसे पउमचरिय ६।८७ में असवार कहा गया है), गायक, अब्भंतरावचर, अब्भाकारिय (अभ्यागारिक), भाण्डागारिय, सीसारक्ख, पडिहारक, सूत, महाणसिक, मज्जघरिय, पाणीयघरिय, हत्थाधियक्ख (हस्त्यध्यक्ष), महामत्त (महामात्र), हत्थिमेंठ, अस्साधियक्ख अस्सारोध, अस्सबन्धक, छागलिक, गोपाल, महिसीपाल, उट्टपाल, मगलुद्धग (मृगलुब्धक), ओरब्धिक (औरभ्रिक), अहिनिप (संभवत: अहितुंडिक या गारुडिक) । राजपुरुषों में विशेष रूप से इनका परिगणन है— अस्सातियक्ख, हत्थाधियक्ख हत्थारोह ( हस्त्यारोह), हत्थिमहामत्तो, गोसंखी (जिसे पाणिनि और महाभारत में गोसंख्य कहा गया है), गजाधिपति, भाण्डागारिक, कोषरक्षक, सव्वाधिकत (सर्वाधिकृत), लेखक (सर्वलिपिओं का ज्ञाता), गणक, पुरोहित, संवच्छर (सांवत्सरिक), दाराधिगत (द्वारपाल, दौवारिक), बलगणक, सेनापति, अब्भागारिक, गणिकाखंसक, वरिसधर, वत्थाधिगत (वस्त्राधिकृत, तोशाखाने का अध्यक्ष), णगरगुत्तिय (नगरगुप्तिक, नगरगुप्ति या पुररक्षा का अधिकारी), दूत, जइणक (जविनक या जंघाकर जो सौ सौ योजन तक संदेश पहुँचाते या पत्रवाहक का काम करते थे), पेसणकारक, पतिहारक, तरपअट्ट (तरप्रवृत्त), णावाधिगत, तित्थपाल, पाणियघरिय, हाणघरिय, सुराघरिय, कट्ठाधिकत (काष्ठाधिकृत ), तणाधिकत (तृणाधिकृत), बीजपाल, ओपसेज्जिक ( औपशय्यिकशय्यापाल, राजा की शय्या का रक्षक ), सीसारक्ख (मुख्य अंगरक्षक), आरामाधिगत नगररक्ख, अब्भागारिय, असोकवणिकापाल, वाणाधिगत, आभरणाधिगत । राज्य के अधिकारियों की इस सूचि के कितने ही नाम पहले भी आ चुके हैं । कुछ नये भी हैं। प्राचीन भारतीय शासन की दृष्टि से यह सामग्री अत्यन्त उपयोगी कही जा सकती है । प्रायः ये ही अधिकारी राजमहलों में और शासन में बहुत बाद तक बने रहे । इसके बाद सामान्य पेशों की एक बड़ी सूची दी गई है; जैसे ववहारि (व्यवहारी), उदकवड्डकि ( नाव या जहाज बनाने वाला), मच्छबन्ध, नाविक, बाहुविक (डाँड चलाने वाले), सुवण्णकार, अलित्तकार (आलता बनाने वाला), रत्तरज्जक (लाल रंग की रंगाई का विशेषज्ञ), देवड (देवपटविक्रेता), उण्णवाणिय, सुत्तवाणिय, जतुकार, चित्तकार, (चित्रकार), चित्तवाजी (चित्रवाद्य जानने वाला), तट्ठकार (ठठेरा), सुद्धरजक, लोहकार, सीतपेट्टक (संभवत: दूध दहीं के भांडोंको बरफ में लपेट कर रखने वाला), कुंभकार, मणिकार, संखकार, कंसकार, पट्टकार (रेशमी वस्त्र बनाने वाला) दुस्सिक ( दूष्य नामक वस्त्र बनानेवाले), रजक, कोसेज्ज (कौशेय या रेशमी वस्त्र बुनने वाला), वाग (वल्कल बनाने वाला), ओरब्भिक, महिसघातक, उस्सणिकामत्त (उख पेरने वाले), छत्तकारक, वत्थोपजीवी, फलवाणिय, मूलवाणिय, धान्यवाणिय, ओदनिक, मंसवाणिज्ज, कम्मासवाणिज्ज (कम्मास या घुघरी बेचने वाला), तप्पणवाणिज्ज (जौ आदि के सत्तू बेचने वाला), लोणवाणिज्ज, आपूपिक (हलवाई), खज्जकारक (खाजा बनाने वाला); इससे सूचित होता है कि खाजा नामक मिठाई कुषाण काल में भी बनने लगी थी), पण्णिक ( हरी साग-सब्जी बेचनेवाला), फलवाणियक, सिंगरेवाणिया (सिंगबेर या अदरक बेचने वाला) । इसके अनन्तर राजपुरुष और पेशेवर लोगों की मिली-जुली सूची दी गई है, जिनमें से नये नाम ये हैं - छत्तधारक, पसाधक (प्रसाधक, प्रसाधन कर्म करने वाला), हत्थिखंस (एक प्रति के अनुसार हत्थिसंख), अस्सखंस (एक प्रति के अनुसार अस्ससंख; संभवतः यही मूलरूप था जो उच्चारण में वर्णविपर्यय से खंस बन गया), अग्गि उपजीवी (आहिताग्नि), कुसीलक, रंगावचर (रंगमंच पर अभिनय करने वाला), गंधिक, मालाकार, चुण्णिकार For Private Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ अंगविज्जापइण्णयं (स्नान-चूर्ण बनानेवाला जिसे चुण्णवाणिय भी कहते थे), सूत मागध, पुस्समाणव, पुरोहित, धम्मट्ठ (धर्मस्थ), महामंत (महामात्र), गणक, गंधिक-गायक, दपकार, बहुस्सुय (बहुश्रुत) । इस सूची के पुस्समाणव का उल्लेख पृष्ठ १४६ पर भी आ चुका है, और यह वही है जिसका पतंजलि ने 'महीपालवचः श्रुत्वा जुघुषुः पुष्यमाणवाः' इस श्लोकार्ध में उल्लेख किया है। ये पुष्यमाणव एक प्रकार के बन्दीजन या भाट ज्ञात होते हैं जो राजा की प्रशंसा में कुछ श्लोकपाठ करते या सार्वजनिक रूप से कुछ घोषणा करते थे । यहाँ 'महीपालवचः श्रुत्वा' यह उक्ति संभवतः पुष्यमित्र शुंग के लिए है। जब उसने सेना-प्रदर्शन के व्याज से उपस्थित अपने स्वामी अंतिम मौर्य राजा बृहद्रथ को मार डाला, तब उसके पक्षपाती पुष्यमाणवों ने सार्वजनिक रूप से उसके राजा बन जाने की घोषणा की । पतंजलि ने यह वाक्य किसी काव्य से उद्धृत किया जान पड़ता है; अथवा यह उसके समय में स्फुट उक्ति ही बन गई हो । पुष्यमाणव शब्द द्वयर्थक जान पड़ता है ! उसका दूसरा अर्थ पुष्य अर्थात् पुष्यमित्र के माणव या ब्राह्मण सैनिकों से था (पृष्ठ १६०) ।। दर्पकार का अर्थ स्पष्ट नहीं है। संभवतः दर्पकार का आशय अपने बल का घमंड करने वाले विशेष बलशाली व्यक्तियों से था जिन्हें वंठ कहते थे और जो अपने भारी शरीर बल से शेर-हाथियों से लड़ाए जाते थे । गन्धिक-गायक भी नया शब्द है । उसका आशय संभवतः उस तरह के गवैयों से था जिनमें गान विद्या के ज्ञान की सगन्धता या कौशल अभिमान रहता था । सूची को आगे बढ़ाते हुए मणिकार, स्वर्णकार, कोट्टाक (बढई; यह शब्द आचारांग राशर में भी आया है, तुलना-संस्कृत कोटक, मानियर विलियम्स), वट्टकी (संभवतः कटोरे बनाने वाला), वत्थुपाढक (वास्तु पाठक, वास्तुशास्त्र का अभ्यासी), वत्थुवापतिक (वास्तुव्यापृतक-वास्तुकर्म करनेवाला) मंतिक (मान्त्रिक), भंडवापत (भाण्ड व्यापृत, पण्य या क्रय-विक्रय में लगा हुआ), तित्थवापत (घाट वगैरह बनाने वाला), आरामवावट (बागबगीचे का काम करने वाला), रथकार, दारुक, महाणसिक, सूत, ओदनिक, सामेलक्ख (संभवतः संभली या कुट्टनिओं की देख-रेख करने वाला विट्), गणिकाखंस, हत्थारोह, अस्सारोह, दूत, प्रेष्य, बंदनागरिय, चोरलोपहार (चोर एवं चोरी का माल पकड़ने वाला), मूलकक्खाणक, मूलिक, मूलकम्म, सव्वसत्थक (सब शस्त्रों का व्यवहार करनेवाला, संभवतः अय:शूल उपायों से वर्तने वाले जिन्हें आय:शूलिक कहा जाता था) । सारवान व्यक्तियों में हेरण्णिक, सुवण्णिक, चन्दन के व्यापारी, दुस्सिक, संजुकारक (संजु अर्थात् संज्ञा द्वारा भाव ताव या मोल-तोल करनेवाले जौहरी, जो कपड़े के नीचे हाथ रखकर रनोंका दाम पक्का करते थे), देवड (देवपट अर्थात् देवदूष्य बेचनेवाले सारवान व्यापारी), गोवज्झभतिकारक (= गोवह्यभृतिकारक, बैलगाडी से भृति कमाने वाला, वज्झ = सं० वह्य), ओयकार (ओकस्कार-घर बनाने वाला), ओड (खनन करनेवाली जाति) । गृहनिर्माण संबंधी कार्य करनेवालों में ये नाम भी हैं-मूलखाणक (नींव खोदनेवाले), कुंभकारिक (कुम्हार जो मिट्टी के खपरे आदि भी बनाते हैं), इड्डकार (संभवतः इष्टका, ईंटे पाथने वाले), बालेपतुंद (पाठान्तर-छावेपर्बुद अर्थात् छोपने वाले, पलस्तर करने वाले), सुत्तवत्त (रस्सी बटने वाले; वत्ता = सूत्रवेष्टन यंत्र, पाइयसद्दमहण्णवो), कंसकारक (कसेरे जो मकान में जड़ने के लिए पीतल-ताबें का सामान बनाते थे), चित्तकारक (चितेरे जो चित्र लिखते थे), रूवपक्खर (रूप = मूर्ति का उपस्कार करने वाले), फलकारक (संभवतः लकड़ी के तख्तों का काम करने वाला), सीकाहारक और मड्डुहारक-इनका तात्पर्य बालू और मिट्टी ढोनेवालों से था; सीक = सिकता, मड्ड = मृत्तिका । कोसज्जवायक (रेशमी वस्त्र बुनने वाले), दिअंडकंबलवायका (विशेषनाप के कम्बल बुनने वाले); कोलिका (वस्त्र बुनने वाले), वेज्ज (वैद्य), कायतेगिच्छका (काय-चिकित्सक), सल्लकत्त (शल्यचिकित्सक), सालाकी (शालाक्य कर्म, अर्थात् अक्षि, नासिका आदि की शल्य चिकित्सा करने वाले), भूतविज्जिक (भूतविद्या या ग्रहचिकित्सा करने वाले) कोमारभिच्च (कुमार या बालचिकित्सा करने वाले), विसतित्थिक (विषवैद्य या गारुडिक), वैद्य, चर्मकार, हाविय-स्नापक, ओरब्भिक (औरभ्रिक गडरिये), गोहातक (गोघातक या सूना कर्म करने वाले), चोरघात (दंडपाशिक, पुलिस अधिकारी), मायाकारक (जादूगर), गौरीपाढक (गौरीपाठक, संभवतः गौरीव्रत या गौरीपूजा के अवसर पर पाठ करने वाले), लंखक (बांस के ऊपर नाचने वाले), मुट्ठिक (मौष्टिक, पहलवान), लासक (रासक, रास गाने Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका वाले), वेलंबक (विडंबक, विदूषक), गंडक (गंडि या घंटा बजाकर उद्घोषणा करने वाले), घोषक (घोषणा करने वाले)-इतने प्रकार के शिल्पिओं का उल्लेख कर्म-योनिनामक प्रकरण में आया है (पृ. १५९-१६१) । उन्तीसवें अध्याय का नाम नगरविजय है। इस प्रकरण में प्राचीन भारतीय नगरों के विषय में कुछ सूचनाएँ दी गई हैं । प्रधान नगर राजधानी कहलाता था । उसीसे सटा हुआ शाखानगर होता था । स्थायी नगर चिरनिविष्ट और अस्थायी रूप से बसे हुए अचिरनिविष्ट कहलाते थे । जल और वर्षा की दृष्टि से बहूदक या बहुवृष्टिक एवं अल्पोदक या अल्पवृष्टिक भेद थे । कुछ बस्तियों को चोरवास कहा गया है (जैसे सौराष्ट्र के समुद्र तट पर बसे वेरावल के पास अभी भी चोरवाड़ नामक नगर है)। भले मनुष्यों की बस्ती आर्यवास थी। और भी कई दृष्टियों से नगरों के भेद किये जाते थे-जैसे परिमंडल और चतुरस्र, काष्ठप्राकार वाले नगर (जैसा प्राचीन पाटलिपुत्र था) और ईंट के प्राकार वाले नगर (इट्टिकापाकार), दक्षिणमुखी और वाममुखी नगर, पविट्ठ नगर (घनी बस्ती वाले), विस्तीर्ण नगर (फैलकर बसे हुए), गहणनिविट्ठ (जंगली प्रदेश में बसे हुए), उससे विपरीत आरामबहुल नगर (बाग-बगीचोंवाले; अं० पार्क सिटी), ऊँचे पर बसे हुए उद्धनिविट्ठ, नीची भूमि में बसे हुए, निव्विगंदि (सम्भवतः विशेष गन्ध वाले), या पाणुप्पविट्ठ (चांडालादि जातियों के वासस्थान; पाण = श्वपच चांडाल, देशीनाममाला ६३८) । प्रसन्न या अतीक्ष्ण दंड और अप्रसन्न या बहुविग्रह, अल्प परिक्लेश और बहुपरिक्लेश नगर भी कहे गये हैं । पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर दिशाओं की दृष्टि से, अथवा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्णों की दृष्टि से भी नगरों का विभाग होता था । बहुअन्नपान, अल्पअन्नपान, बहुवतक (बहुवात या प्रचंड वायु के उपद्रव वाले), बहुउण्ह (अधिक उष्ण), आलीपणकबहुल (बहु आदीपन या अग्नि वाले), बहूदक, बहुवृष्टिक, बहूदकवाहन नगर भी कहे गये हैं (पृ० १६१-१६२) । तीसवाँ अध्याय आभूषणों के विषय में है । पृ० ६४, ७१ और ११६ पर भी आभूषणों का वर्णन आ चुका है। आभूषण तीन प्रकार के होते हैं। (१) प्राणियों के शरीर के किसी भाग से बने हुए (पाणजोणिय), जैसे शंखमुक्ता, हाथीदाँत, जङ्गली भैंसे के सींग आदि, बाल, अस्थि के बने हुए; (२) मूलजोणिमय अर्थात् काष्ठ, पुष्प, फल, पत्र आदि के बने हुए; (३) धातुयोनिगत जैसे-सुवर्ण, रूपा, ताँबा, लोहा, वपु (राँगा), काललोह, आरकुड (फूल, काँसा), सर्वमणि, गोमेद, लोहिताक्ष, प्रवाल, रक्तक्षार-मणि (तामड़ा), लोहितक आदि के बने हुए । श्वेत आभूषणों में चांदी, शंख, मुक्ता, स्फटिक, विमलक, सेतक्षार मणि के नाम हैं । काले पदार्थों में सीसा, काललोह, अंजन और कालक्षार मणि; नीले पदार्थों में सस्सक (मरकत) और नीलखार मणि; आग्नेय पदार्थों में सुवर्ण, रूपा, सर्वलोह, लोहिताक्ष, मसारकल्ल, क्षारमणि । धातुओं को पीटकर, क्षारमणि को उत्कीर्ण करके और रत्नों को तराशकर तथा चीरकोर कर बनाते हैं । मोतिओं को रगड़ कर चमकाया जाता है । - इसके बाद शरीर के भिन्न भिन्न अवयवों के गहनों की सूचियाँ हैं। जैसे सिर के लिये ओचूलक (अवचूलक वा चोटी में गूंथने का आभूषण, चोटीचक्क), णंदिविणद्धक (कोई मांगलिक आभूषण, सम्भवतः मछलियों की बनी हुई सुनहली पट्टी जो बालों में .बाईं ओर सिर के बीच से गुद्दी तक खोंसकर पहनी जाती थी जैसे मथुरा की कुषाण कला में स्त्री मस्तक पर मिली है), अपलोकणिका (यह मस्तक पर गवाक्षजाल या झरोखे जैसा आभूषण था जो कुषाण और गुप्तकालीन किरीटों में मिलता है), सीसोपक (सिर का बोर); कानों में तालपत्र, आबद्धक, पलिकामदुघनक (द्रुघण या मुंगरी की आकृति से मिलता हुआ कान का आभूषण), कुंडल, जणक, 'ओकासक (अवकाशक कान में छेद बड़ा करने के लिये लोढ़े या डमरू के आकारका), कण्णेपुरक, कण्णुप्पीलक (कान के छेद में पहनने का आभूषण)-इन आभूषणों का उल्लेख है। आँखों के लिए अंजन, भौहों के लिए मसी, गालों के लिये हरताल, हिंगुल और मैनसिल, एवं ओठो के लिए अलक्तक राग का वर्णन है । गले के लिए आभूषणों की सूची में कुछ महत्त्वपूर्ण नाम हैं; जैसे सुवण्णसुत्तक (= सुवर्णसूत्र), तिपिसाचक (त्रिपिशाचक अर्थात् ऐसा आभूषण जिसके टिकरे में तीन पिशाच या यक्ष जैसी आकृतियाँ बनी हों), विज्जाधारक (विद्याधरों की आकृतियों से युक्त टिकरा), असीमालिका (ऐसी माला जिसकी गुरियां या दाने खड्ग की आकृतिवाले हों), Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० अंगविज्जापइण्णयं पुच्छलक (संभवत: वह हार जिसे गोपुच्छ या गोरतन कहा जाता है, देखिये अमरकोष-क्षीरस्वामी), आवलिका (संभवत: इसे एकावली भी कहते थे), मणिसोमाणक (विमानाकृति मनकों का बना हुआ ग्रैवेयक । सोमाणक पारिभाषिक शब्द था । लोकपुरुष के ग्रीवा भाग में तीन-तीन विमानों की तीन पंक्तियाँ होती हैं जिनमें से एक विमान सोमणस कहलाता हैं), अठ्ठमंगलक (अष्ट मांगलिक चिह्नों की आकृति के टिकरों की बनी हुई माला जिसका उल्लेख हर्षचरित एवं महाव्युत्पत्ति में आया है । इस प्रकार की माला संकट से रक्षा के लिए विशेष प्रभावशाली मानी जाती थी), पेचुका (पाठान्तर पेसुका, संभवत: वह कंठाभूषण जो पेशियों या टिकरों का बना हुआ हो), वायुमुत्ता (विशेष प्रकार के मोतियों की माला), वुप्प सुत्त (संभवतः ऐसा सूत्र जिसमें शेखर हो; वुप्प = शेखर), कट्ठवट्टक (अज्ञात) | भुजाओं में अंगद और तुडिय (= टड्डे) | हाथों में हस्तकटक, कटक, रुचक (निष्क), सूची, अंगुलियों में अंगुलेयक, मुद्देयक, वेंटक, (गुजराती वीटी = अंगूठी) । कटी में कांचीकलाप, मेखला और जंघा में गंडूपदक (गेंडोए की भांति का पैर का आभूषण), नूपुर, परिहेरक (= पारिहार्यक-पैरों के कड़े (और पैरों में खिखिणिक (किंकिणी-धूंघरू), खत्तियधम्मक (संभवत: वह आभूषण विशेष जिसे आजकल गूजरी कहते हैं), पादमुद्रिका, पादोपक । इस प्रकार अंगविज्जा में आभूषणों की सामग्री बहुत से नये नामों से हमारा परिचय कराती है और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्व की है (पृ० १६२-३) । वत्थजोणी नामक एकत्तीसवें अध्याय में वस्त्रों का वर्णन है । प्राणियों से प्राप्त सामग्री के अनुसार वस्त्र तीन प्रकार के होते हैं-कौशेय या रेशमी, पतुज्ज, पाठान्तर पउण्ण = पत्रोर्ण और आविक । आविक को चतुष्पद पशुओं से प्राप्त अर्थात् अविके बालों का बना हुआ कहा गया है, और कौशेय या पत्रोर्ण को कीड़ों से प्राप्त सामग्री के आधार पर बना हुआ बताया गया है । इसके अतिरिक्त क्षौम, दुकूल, चीनपट्ट, कासिक-ये भी वस्त्रों के भेद थे । धातुओं से बने वस्त्रों में लोहजालिका-लोहे की कड़ियों से बना हुआ कवच जिसे अंगरी कहा जाता है, सुवर्णपट्ट-सुनहले तारों से बना हुआ वस्त्र, सुवर्णखसित-सुनहले तारों से खचित या जरीके काम का वस्त्र । और भी वस्त्रों के कई भेद कहे गये हैं जैसे परग्घ-बहुत मूल्य का, जुत्तग्घ-बीच के मूल्य का, समग्घ-सस्ते मूल्य का, स्थूल, अणुक या महीन, दीर्घ, हस्व, प्रावारक-ओढ़ने का दुशाला जैसे वस्त्र, कोतवरोएंदार कम्बल जिसे कोचव भी कहते थे और जो संभवतः कूचा या मध्य एशिया से आता था, उण्णिक (ऊनी), अत्थरक-आस्तरक या बिछाने का वस्त्र महीन रोंएदार (तणुलोम), हस्सलोम, वधूवस्त्र, मृतक वस्त्र, आतवितक (अपने और पराये काम में आनेवाला), परक (पराया), निक्खित्त (फेंका हुआ) अपहित (चुराया हुआ), याचितक (माँगा हुआ) इत्यादि । रंगों की दृष्टि से श्वेत, कालक, रक्त, पीत, सेवालक (सेवाल के रंग का हरा), मयूरग्रीव (नीला), करेणूयक (श्वेत-कृष्ण), पयुमरत्त, (पद्मरक्त अर्थात् श्वेतरक्त), मैनसिल के रंग का (रक्तपीत्त), मेचक (ताम्रकृष्ण) एवं उत्तम मध्यम रंगोंवाले अनेक प्रकार के वस्त्र होते थे । जातिपट्ट नामक वस्त्र भी होता था । मुख के ऊपर जाली (मुहोपकरणे उद्धंभागेसु य जालक) भी डालते थे । उत्तरीय और अन्तरीय वस्त्र शरीर के ऊर्ध्व और अध: भाग में पहने जाते थे । बिछाने की दरी पच्चत्थरण और वितान या चंदोवा विताणक कहलाता था (पृ० १६३-४) । ३२ वें अध्याय की संज्ञा धण्णजोणी (धान्ययोनि) है। इस प्रकरण में शालि, व्रीहि, कोदों, रालक (धान्य विशेष, एक प्रकार की कंगु), तिल, मूंग, उड़द, चने, कुल्थी, गेहूँ आदि धान्यों के नाम गिनाये हैं। और स्निग्ध, रूक्ष, श्वेत, रक्त, मधुर, आम्ल, कषाय आदि दृष्टिओं से धान्यों का वर्गीकरण किया है (पृ० १६४-५) । ३३ वें जाणजोणी (यानयोनि) नामक अध्याय में नाना प्रकार के यानों का उल्लेख है। जैसे शिबिका, भद्दासन, पल्लंकसिका (पालकी), रथ, संदमाणिका (स्यन्दमानिका एक तरह की पालकी), गिल्ली (डोली), जुग्ग (विशेष प्रकार की शिबिका जो गोल्ल या आन्ध्र देश में होती थी), गोलिंग, शकट, शकटी इनके नाम आए हैं। किन्तु जलीय वाहनों Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका की सूची अधिक महत्त्वपूर्ण है। उनके नाम ये हैं-नाव, पोत, कोट्टिम्ब, सालिक, तप्पक, प्लव, पिण्डिका, कंडे, वेलु, तुम्ब, कुम्भ, दति (दृति) । इनमें नाव और पोत महावकाश अर्थात् बड़े परिमाणवाले जहाज थे जिनमें बहुत आदमियों के लिये अवकाश होता था । कोट्टिम्ब, सालिक, संघाड, प्लव और तप्पक मझले आकार की नावें थीं। उससे छोटे कट्ठ (कंड) और वेलू होते थे। और उनसे भी छोटे तुम्ब, कुम्भ और दति कहलाते थे। जैसा श्री मोतीचन्दजी ने अंग्रेजी भूमिका में लिखा है पेरिप्लस के अनुसार भरुकच्छ के बन्दरगाह में त्रप्पग और कोटिम्ब नामक बड़े जहाज सौराष्ट्र तक की यात्रा करते थे । यही अंगविज्जा के कोट्टिब और तप्पग हैं । पूर्वी समुद्र तट के जलयानों का उल्लेख करते हुए पेरिप्लस ने संगर नामक जहाजों का नामोल्लेख किया है जो कि बड़े-बड़े लट्ठों को जोड़कर बनाये जाते थे। येही अंगविज्जा के संघाड (सं० संघाट) हैं । वेलू बाँसों का बजरा होना चाहिए । कांड और प्लव भी लकड़ी या लट्ठों को जोड़कर बनाये हुए बजरे थे । तुम्बी और कुम्भ की सहायता से भी नदी पार करते थे। इनमें दति या दृति का उल्लेख बहुत रोचक है। इसे ही अष्टाध्यायी में भस्त्रा कहा गया है। भेड़-बकरी या गाय-भैंस की हवा से फुलाई हुई खालों को भस्त्रा कहा जाता था और इस कारण भस्त्रा या दृति उस बजड़े या तमेड़ के लिये भी प्रयुक्त होने लगा जो इस प्रकार की खालों को एक दूसरे में बाँधकर बनाये जाते थे। इन फुलाई हुई खालों के ऊपर बाँस बाँधकर या मछुओं का जाल फैलाकर यात्री उन्हीं पर बैठकर लगभग आठ मील की घंटे की रफ्तार से मजे में यात्रा कर लेते हैं । इस प्रकार के बजरे बहुत ही सुविधाजनक रहते हैं। ठिकाने पर पहुँचकर मल्लाह खालों को पटकाकर कन्धे पर डाल लेता है और पैदल चलकर नदी के ऊपरी किनारे पर लौट आता है। भारत, ईरान, अफगानिस्तान और तिब्बत की नदियों में भस्त्रा या दृति का प्रयोग पाणिनि और दारा के समय से चला आया है। ईरान में इन्हें मश्का कहते थे । शालिका संभवतः उस प्रकार की नाव थी जिसमें शाला या बैठने उठने के लिये मंदिर (केबिन) पाटातान के ऊपर बना हो । पिंडिका वह गोल नाव थी जो बेतों की टोकरी को चमड़े से मढ़कर बनाई जाती थी (पृ० १६५-६) । ३४ वें संलाप नामक अध्याय में बातचीत का अंगविज्जा की दृष्टि से विचार किया है जिसमें स्थान, समय एवं बातचीत करनेवाले की दृष्टि से फलाफल का विचार है। ३५ वें अध्याय का नाम पयाविसुद्धि (प्रजाविशुद्धि) है। इसमें प्रजा या संतान के सम्बन्ध में शुभाशुभ का विचार किया गया है। छोटे बच्चे के लिये वच्छक और पुत्तक की तरह पिल्लक शब्द भी प्रयुक्त होने लगा था जो कि दक्षिणी भाषाओं से लिया हुआ शब्द ज्ञात होता है । ३६ वें अध्याय में दोहल (दोहद) के विषय में विचार किया गया है । दोहद अनेक प्रकार का हो सकता है। विशेष रूप से उसके पाँच भेद किये गये हैं-शब्दगत, गन्धगत, रूपगत, रसगत, स्पर्शगत । रूपगत दोहद के कई भेद हैं, जैसे पुष्प, नदी, समुद्र, तडाग, वापी, पुष्करिणी, अरण्य, भूमि, नगर, स्कन्धावार, युद्ध, क्रीडा, मनुष्य, चतुष्पाद, पक्षी आदि के देखने की इच्छा होती तो उसे रूपगत दोहद कहेंगे । गन्धगत दोहद के अन्तर्गत स्नान, अनुलेपन, अधिवास, स्नान चूर्ण, धूप, माल्य, पुष्प, फल आदि के दर्शन या प्राप्ति की इच्छा समझनी चाहिए । रसगत दोहद में पान, भोजन, खाद्य, लेह्य; और स्पर्शगत दोहद में आसन, शयन, वाहन, वस्त्र आभरण आदि का दर्शन और प्राप्ति समझी जाती थी । ३७ वें अध्याय की संज्ञा लक्षण अध्याय है। लक्षण बारह प्रकार के कहे गये हैं-वर्ण, स्वर, गति, संस्थान, संघयण (निर्माण), मान या लंबाई, उम्माण (तोल), सत्त्व, आणुक (मुखाकृति), पगति (प्रकृति), छाया, सारइन बारहों भेदों की व्याख्या की गई है, जैसे वर्ण के अन्तर्गत ये नाम हैं-अंजन, हरिताल, मैनसिल, हिंगुण, चाँदी, सोना, मूंगा, शंख, मणि, हीरा, शुक्ति (मोती), अगुरु, चन्दन, शयनासन, यान, चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, ग्रह, तारा, उल्का, विद्युत्, मेघ, अग्नि, जल, कमल, पुष्प, फल, प्रवाल, पत्र, मंड, तेल, सुरा, प्रसन्ना, पद्म, उत्पल, पुंडरीक, चम्पक, माल्याभरण आदि । फिर इनमें से प्रत्येक लक्षण का भी शुभाशुभ फल कहा गया है (पृ० १७३–४) ।। ३८ वें अध्याय में शरीर के व्यंजन या तिल, मसा जैसे चिन्हों के आधार पर शुभाशुभ का कथन है । For Private &Personal use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं ३९ वें अध्याय की संज्ञा कण्णावासण है । इसमें कन्या के विवाह एवं उसके जन्म के फलाफल एवं कर्मगति का विचार है कि वह अच्छी होगी या दुष्ट होगी ( पृ० १७५–६) । ६२ भोजन नामक चालीसवें अध्याय में आहार के सम्बन्ध में विस्तृत विचार किया गया है। आहार तीन प्रकार का होता है- प्राणयोनि, मूलयोनि, धातुयोनि । प्राणयोनि के अन्तर्गत दूध, दही, मक्खन, तक, घृत, मधु आदि है । उसके भी संस्कृत, असंस्कृत, आग्नेय, अनाग्नेय भेद किये गये हैं । कंद, मूल, फल, फूल, पत्र आदि से भी आहार उपलब्ध होता है। कितने ही धान्यों के नाम गिनाये गये हैं । उत्सवों के समय भोज किये जाते थे । उपनयन, यज्ञ, मृतक, अध्ययन के आदि, अन्त एवं गोष्ठी आदि के समय भोजों का प्रबन्ध होता था। भोजन अपने स्थान पर या मित्र आदि के स्थान पर किया जाता था । इक्षुरस, फलरस, धान्यरस आदि पानों का उल्लेख है । यवा, प्रसन्ना, अरिष्ट, श्वेतसुरा ये मद्य थे । यवागू, दूध, घृत, तैल आदि से बनाई जाती थी । गुड़ और शक्कर के भेदों में शर्करा, मच्छंडिका, खज्जगगुल (खाद्यक गुड़) और इक्कास का उल्लेख है । समुद्र, सैन्धव, सौवर्चल, पांसुखार, यवाखार आदि नमक के भेद किये गये हैं। मिठाईयों में मोदक, पिंडिक, पप्पड, मोरेंडक, सालाकालिक, अम्बट्ठिक, पोवलिक, वोक्कितक्क, पोवलक, सक्कुलिका, पूष, फेणक, अक्खपूप, अपडिहत, पवितल्लक (पोतलग), वेलातिक, पत्तभज्जित, सिद्धत्थिका, बीयक, उक्कारिका, मंदिल्लिका, दीह सक्कुलिका, खारवट्टिका, खोडक, दीवालिक (दीवले) दसीरिका, मिसकण्टक, महन्थतक, आदि तरह तरह की मिठाइयाँ और खाद्यपदार्थ होते थे । अम्बट्टिक (अमचुर या आम से बनी हुई मिठाई हो सकती है जिसे अवधी में गुलम्बा कहते हैं) । पोवालिक पौली नाम की मीठी रोटी और मुरण्डक, छेने का बना हुआ मुरंडा या तिलके लड्डू होने चाहिएँ । फेणक फेणी के रूप में आज भी प्रसिद्ध है । ४१ वाँ वरियगंडिका अध्याय है । इसमें मूर्तियों के प्रकार, आभरण और अनेक प्रकार की रत - सुरत की क्रीडाओं के नामों का संग्रह है। सुरत क्रीडाओं के तीन प्रकार कहे गये हैं-दिव्य, तिर्यक् योनि और मानुषी । दिव्य क्रीडाओं में छत्र, भृंगार, जक्खोपयाण (संभवतः यक्षकर्दम नामक सुगंध) की भेंट का प्रयोग होता है । मानुषी क्रीडा में वस्त्र, आभूषण, यान, उपानह, माल्य, मुकुट, कंघी, स्नान, विशेषक, गन्ध, अनुलेपन, चूर्ण, भोजन, मुखवासक आदि का प्रयोग किया जाता है ( पृ० १८२-६) । ४२ वें अध्याय (स्वप्नाध्याय) में दिट्ठ, अदिट्ठ और अवत्तदिट्ठ नामक स्वप्नों का वर्णन है । ये शुभ और अशुभ प्रकार के होते हैं । स्वप्नों के और भी भेद किये गये हैं- जैसे श्रुत जिसमें मेघगर्जन, आभूषणों का या सुवर्णमुद्राओं का शब्द या गीत आदि सुनाई पड़ते हैं । गंधस्वप्नों में सुगन्धित पदार्थ का अनुभव होता है । ऐसे ही कुछ स्वप्नों में स्पर्शसुख, सुरत, जलचर, देव, पशु, पक्षी आदि का अनुभव होता है । अ सगे सम्बन्धी भी स्वप्नों में दिखाई पड़ते हैं जो कि मानुषी स्वप्न कहलाते हैं । स्वप्नों में देव और देवियाँ भी दिखाई पड़ती हैं ( पृ० १८६ - १९१) । ४३ वें अध्याय में प्रवास या यात्रा का विचार है । यात्रा में उपानह, छत्र, तप्पण (सत्तू ), कत्तरिया (छुरी), कुंडिका, ओखली आवश्यक हैं । यात्री मार्ग में प्रपा, नदी, पर्वत, तडाग, ग्राम, नगर, जनपद, पट्टन, सन्निवेश आदि में होता हुआ जाता था । विविध रूप-रस- गन्ध-स्पर्श के आधार पर यात्रा को शुभाशुभ कहा जाता था । उससे लाभ, अलाभ, जीवन, मरण, सुख-दुःख, सुकाल, दुष्काल, भय, अभय आदि फल उपलब्ध होते हैं ( पृ० १९१-१९२) । ४४ वें अध्याय में प्रवास के उचित समय, दिशा, अवधि और गन्तव्य स्थान आदि के सम्बन्ध में विचार है ( पृ० १९२ – ९३) । ४५ र्वे प्रवेशाध्याय नामक प्रकरण में प्रवासी यात्री के घर लौटने का विचार है । भुक्त, पीत, खड़त, लीढ, कर्णतैल, अभ्यंग, हरिताल, हिंगुल, मैनसिल, अंजन, समालभणक ( = विलेपन), अलत्तक, कलंजक, वण्णक, Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका चुण्णक, अंगराग, उस्सिघण (सुगन्धि सूंघना), मक्खण (म्रक्षण-मालिश), अब्भंगण, उच्छंदण (संभवतः आच्छादन), उब्बट्टण (उद्वर्तन-उबटन), पघंस (प्रघर्षण द्वारा तैयार सामग्री), माल्य, सुरभिजोगसंविधाणक (विविध गन्ध युक्ति), आभरण और विविध भूषणों की संजोयणा (अर्थात् सँजोना) एवं अलङ्कारों का मण्डन-इनके आधार पर प्रवासी के आगमन की आशा होती थी। इसी प्रकार शिबिका, रथ, यान, जुग्ग, कट्ठमुह, गिल्ली, संदण (स्यंदन) सकट (शकट), शकटी और विविध वाहन, हय, गज, बलीवर्द, करभ, अश्वतर, खर, अजा, एडक, नर, मरुत, हरित, वृक्ष, प्रासाद, विमान, शयन आदि पर अधिरोहण, ध्वजा, तोरण, गोपुर, अट्टालक, पताका समारोहण, उच्छ्यण के आधार पर भी विचार किया जाता था । दूध, दधि, घी, नवनीत, तेल, गुड़, लवण, मधु आदि दिखाई दें तो आगमन होने की आशा थी। ऐसे ही पृथिवी, उदक, अग्नि, वायु, पुष्प, धान्य, रत्न आदि से भी आगमन सूचित होता था । अंकुर, प्ररोह, पत्र, किसलय, प्रवाल, तृण, काष्ठ एवं ओखली, पिठर, दविउलंक (सम्भवतः द्रव का उदंचन) रस, दर्वी, छत्र, उपानह, पाउगा (पादुका), उब्भुभंड (ऊर्ध्व भाँड सम्भवतः कमण्डलु), उभिखण (अज्ञात), फणख (कंघा), पसाणग (= प्रसाधनक), कुव्वट्ठ (सम्भवतः कुप्यपट्ट, लंगोट), वणपेलिका (= वर्णपेटिका-शृङ्गारदानी), विवट्टणय-अंजणी (सुरमेदानी और सलाई), आदंसग (दर्पण), सरगपतिभोयण (मद्यआहार), वाधुज्जोपकरण (वाधुक्य = विवाह; विवाह की सामग्री), माल्य-इन पदार्थों के आधार पर आगमन की सम्भावना सूचित होती थी। फिर इसी प्रसंग में यह बताया गया है कि कौन-सा लक्षण होने पर किस वस्तु का प्रवेश या आगमन होता है । जैसे, चतुरस्त्र चित्र सारवंत वस्तु दिखाई पड़े तो कार्षापण; रक्त, पीत सारवान वस्तु के दर्शन से सुवर्ण; श्वेत सारवंत से चाँदी, शुक्ल शीतल से मुक्ता; घन सारवंत और प्रभायुक्त वस्तु से मणि का आगमन सूचित होता है। ऐसे ही नाना भाँति की स्त्रियों के आगमन के निमित्त बताये गये हैं(पृ० १९३-४) । ४६ वें पवेसण अध्याय में गृहप्रवेश सम्बन्धी शुभाशुभ का विचार किया गया है। अंगचिन्तक को उचित है कि घर में प्रवेश करते समय जो शुभ-अशुभ वस्तु दिखाई पड़ें उनके आधार पर फल का कथन करे । जैसे-बलीवर्द, अश्व, ऊष्ट्र, गर्दभ, शुक, मदनशलाका या मैना, कपि, मोर ये द्वारकोष्ठक या अलिन्द में दिखाई पड़ें तो शुभ समझ कर घर में प्रवेश करना चाहिए । ब्रह्मस्थल (सम्भवत: देवस्थान-पूजास्थान) में, अरंजर या जहाँ जल का बड़ा पात्र रखा जाता हो, उव्वर (धर्मस्थान या जहाँ धूल या भट्ठी हो), उपस्थान शाला में बैठने पर, उलूखलशाला में या कपाट या द्वार के कोने में, आसन दिये जाने पर और अंजलिकर्म द्वारा स्वागत किये जाने पर और ऊपर महानस या रसोई घर में, या मकान के णिक्कुड अर्थात् उद्यान प्रदेश में यदि अङ्गविद्याचार्य वस्तुओं को अस्त-व्यस्त या टूटी-फूटी या गिरी-पड़ी देखे तो बाहर से सम्बन्ध रखनेवाली वस्तुओं की हानि बतानी चाहिए । रसोई घर में कंबा (करछुल या दर्वी) को गिरी पड़ी देखे और मल्लक या मिट्टी के शराव आदि को फैले हुए (ओसरित = आकीर्ण) देखें तो कुलभङ्ग का फल कहना चाहिए, अथवा अपने दास कर्मकरों से कष्ट या अर्थों की अप्राप्ति कहनी चाहिए । दधि, मङ्गल, पुष्प, फल, अक्षत, तंडुल आदि से वृद्धि का फल बताना चाहिए । तुष, पंसु, अङ्गार, भग्न वृक्ष से हानि और कुलभंग सूचित होता है । लकड़ी का रोगन उखड़ गया हो और संधि या जोड़ यदि ढीले हों तो कुटुम्ब की हानि और अर्थ की अस्थिरता समझनी चाहिए । यदि द्वार की सन्धि शिथिल हो और उसकी देहली-सिरदल (उत्तरंबर = उतरंगा; गुजराती में देहली या नीचे की लकड़ी को अभी तक उम्बर कहते हैं) भग्न हो तो इष्ट वस्तु को हानि होगी । यदि द्वारकपाट खुला हुआ हो तो दुःख से अर्जित धन चला जाता है । द्वार के नीचे की देहली और ऊपर का उत्तरंगा (अधरुत्तरुम्मिर) टूटे या निकले हुए हों तो घर में क्लेश होगा । तिल, वेल्लव (वेलु या बांस) और वाक (छाल) ये कोठे में रक्खे हुए जब खराब हो जाय या कीड़े दिखाई पड़ें तो व्याधि समझनी चाहिए । कोठे में बांधा हुआ एलकभेड़ा, अश्व, पक्षी, यदि कुछ विपरीत निमित्त प्रकट करें तो उससे भी हानि सूचित होती है। यदि घर के भीतर बालक धरती में लोटते हुए, मूत्र, पुरीष ये सब दिखाई पड़े तो हानि, और इसके विपरीत यदि वे अलंकृत दिखाई पड़ें तो वृद्धि जाननी चाहिए । आंगन में लगे हुए पुष्प और फलों को आंगन के भीतर लाया जाता Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ अंगविज्जापइण्णयं देखा जाय तो वृद्धि सूचित होती है। ऐसे ही आंगन में भाजन या बर्तनों को अखंड और परिपूर्ण देखा जाय तो आय-लाभ सिद्ध होता है। आंगन के आधार पर कई प्रकार के फलों का निर्देश किया गया है । आंगन में यदि पोत्ती (वस्त्र) और णंतक (एक प्रकार का वस्त्र, पाइयसद्दमहण्णवो) बिखरे हुए दिखलाई पड़ें और आसंदक (बैठने की चौकी) आदि भग्न हों तो हानि और रोग सूचित होता है । यदि आंगन में अलंकृत और हृष्ट नर-नारी दिखाई दें तो संप्रीति और लाभ, यदि क्रुद्ध दिखाई दें तो हानि सूचित होती है । यदि भरा हुआ अरंजर (जल का बड़ा घड़ा) अकारण टूट जाय, अथवा कौवे या कुत्ते उसे भ्रष्ट कर दें तो गृहस्वामी का नाश सूचित होता है। इसी प्रकार अलिंजर अर्थात् जल का घड़ा और उसकी घटमंचिका (पेढिया) के नये पुरानेपन से भी विभिन्न विचार किया जाता है। श्रमण को प्रदत्त आसन और सिद्ध अन्न से भी निमित्त सूचित होते हैं । ओदन में कीट, केश, तृण आदि से भी अशुभ सूचित होता है। श्रमण के घर आने पर उससे जिस भाव और मुँह से कुशल प्रश्न (जवणीय) पूछा जाय उसके आधार पर वह सुख-दुःख का कथन करे । जैसे पराङ्मुख हो कर पूछने से हानि और अभिमुख हो कर पूछने से लाभ मिलेगा । रिक्तभाजन, उदकपूर्ण भांड, फल आदि जो जो वस्तुएँ घर में दिखाई पड़ें वे सब अंगविद् के लिए इष्ट और अनिष्ट फल की सूचक होती हैं (पृ० १९५-७) । ४७ वाँ यात्राध्याय है। इसमें राजाओं की सैनिक यात्रा के फलाफल का विचार किया गया है। उस सम्बन्ध में छत्र, भृङ्गार, व्यजन, तालवृन्त, शस्त्र प्रहरण आयुध, आवरण वर्म कवच-इनके आधार पर यात्रा होगी या नहीं यह फलादेश बताया जा सकता है । यात्रा कई प्रकार की हो सकती है-विजयशालिनी (विजइका), आनन्ददायिनी (संमोदी), निरर्थक, चिरकाल के लिये, थोड़े समय के लिए, महाफलवाली, बहुत क्लेशवाली, बहुत उत्सववती, प्रभूत अन्नपानवाली, बहुत खाद्यपेय से युक्त, धन लाभवती, आयबहुला, जनपद लाभवाली, नगर लाभवाली, ग्राम, खेड लाभवती, अरण्यगमन भूयिष्ठा, आराम, निम्नदेश आदि स्थानों में गमन युक्त इत्यादि । यात्रा के समय प्रसन्नता के भाव से विजय और अप्रसन्नता के भाव से पराजय या विवाद (झगड़ा) सूचित होता है । यात्रा के समय नया भाव दिखाई पड़े तो अपूर्व जय की प्राप्ति होगी । ऐसे ही वाहन-लाभ, अर्थलाभ आदि के विषय में भी यात्राफल का कथन करना चाहिये । किस दिशा में और किस ऋतु में किस निमित्त से यात्रा सम्भव होगी यह भी अंगविज्जा का विषय है (पृ० १९८-१९९) । ४८ वें जय नामक अध्याय में जय का विचार किया गया है। राजा, राजकुल, गण, नगर, निगम, पट्टण, खेड, आकर, ग्राम, संनिवेश-इनके संबंध में कुछ उत्तम चर्चा हो तो जय समझनी चाहिए । ऐसे ही ऋतुकाल में अनुकूल वृक्ष, गुल्म, लता, वल्ली, पुष्प, फल, पत्र, प्रवाल, प्ररोह आदि जय सूचित करते हैं । वस्त्र, आभरण, भाजन, शयनासन, यान, वाहन, परिच्छद आदि भी जय के सूचक हैं । छत्र, भृङ्गार, ध्वज, पंखा, शिबिका, रथ, प्रासाद, अशन, पान, ग्राम, नगर, खेड, पट्टण, अन्तःपुर, गृह, क्षेत्र सनिवेश, आपण, आराम, तड़ाग, सर्वसेतु आदि के संबंध में उस शब्द या रूप का प्रादुर्भाव हो तो जानना चाहिए कि विजय होगी । इन्हीं के संबंध में यदि विपरीत भाव अथवा हीन दीन शब्द रूप की प्रतीति हो तो पराजय सूचित होती है। विजय के भी कितने ही भेद कहे गये हैं। जैसे अपने पराक्रम से, पराये पराक्रम से, विना पुरुषार्थ के सरलता से विजय, राज्य की विजय, राजधानी या नगर की विजय, शत्रु के देश की विजय, आय बहुल विजय, महाविजय, जोणिबहुलविजय (जिसमें धन का लाभ न हो किन्तु प्राणियों का लाभ हो), शस्त्रनिपात द्वारा विजय, प्राणातिपातबहुल विजय, अहिंसा द्वारा मुदित विजय आदि (पृ० १९९-२०१) । ४९ वें अध्याय में इसी प्रकार के विपरीत चिह्नों से पराजय का विचार किया है (पृ० २०१-२) । ५० वें उवद्दुत (उपद्रव) नामक अध्याय में शरीर के विविध दोष और रोग आदि का विचार किया गया है। इसमें भी फलकथन का आधार वे ही वस्तु हैं जिनका यात्रा और जय के संबंध में परिगणन किया गया है। हाँ शारीरिक दोषों और रोगों की अच्छी सूची इस प्रकरण में पायी जाती है। जैसे काण, अन्ध, कुंट (टोंटा), गंडीपाद (हत्थीपगा, फील पाव), खंज, कुणी (टेढ़े हाथ वाला), आतुर, पलित, खरड़ (सिर में रुक्षता या मैल की पपड़ीवाला, गुजराती-खोडो), तिलकालक, विपण्ण (विवर्णता), चम्मक्खील (मस्सा), किडिग Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ६५ ( सीप या श्वेत दाग, संस्कृत - किटिभ), दट्ठ (दष्ट - देश), किलास (कुष्ठ), कट्ठ (संभवत: कुट्ठ या कुष्ठ), सिब्भ (सिम्ह या श्लेष्म) कुणिणह (कुनख-या टेढ़े मेढ़े नख), खत (क्षत), अरूव (अरूप) कामल (कामला) णच्छक (अप्रशस्त ), पिलक (पिल्ल नामक मुख रोग), चम्मक्खील, गलुक ( गलगंड), गंड ( गूलर के आकार की फुडिया), कोढ, कोट्टित (अस्थिभंग), वातंड (वात के कारण अण्डवृद्धि), अम्हरि (अश्मरी पथरी), अरिस (अर्श), भगंदर, कुच्छि —- रोग (अतिसार, जलोदर आदि), वात गुम्म (वातगुल्म ), शूल, छड्डि (छर्दि-वमन), हिक्क (हिचकी), कंठे अवयि (कंठ का अपची नामक रोग कंठमाला), गलगंड (घेंघा या गिल्हड ), कंट्ठसालुक (कंठशालूक), शालूक = कण्ठ की जड़, अंग्रेजी (टोन्सिलाईटिस), पट्ठिरोग (पृष्ठिरोग), खण्डोट्ठ (खण्डौष्ठ - कटा हुआ ओष्ठ), गुरुल करल (बड़े और कराल या टेढ़े-मेढ़े दांत), खंडदंत (टूटे हुए दांत), सामदंत (श्याम - दंत, दाँतों का कालापन), ग्रीवा रोग, हत्थछेज्ज (हस्तच्छेद), अंगुलि छेज्ज, पाद छेज्ज, शीर्ष व्याधि, वातिक, पेत्तिक, श्लेष्मिक, सान्निपातिक आदि । ५१ वें अध्याय का नाम देवताविजय है । इसमें अनेक देवी-देवताओं के नाम हैं जिनकी पूजा उपासना उस युग में होती थी। जैसे यक्ष, गन्धर्व, पितर, प्रेत, वसु, आदित्य, अश्विनौ, नक्षत्र, ग्रह, तारा, बलदेव, वासुदेव, शिव, वेस्समण (वैश्रवण), खंद (स्कंद), विसाह (विशाख), सागर, नदी, इन्द्र, अग्नि, ब्रह्मा, उपेन्द्र, यम, वरुण, सोम, रात्रि, दिवस, सिरी (श्री), अइरा (अचिरा = इन्द्राणी) (देखिये पृ० ६९), पुढवी ( पृथिवी), एकणासा (संभवत: एकानंशा), नवमिगा (नवमिका), सुरादेवी, नागी, सुवर्ण, द्वीपकुमार, समुद्रकुमार, दिशाकुमार, अग्निकुमार, वायुकुमार, स्तनितकुमार, विद्युत्कुमार (द्वीपकुमार से लेकर ये भवनपति देवों के नाम हैं) । लता देवता, वत्थु देवता, नगर देवता, श्मशान देवता, वच्चदेवता ( वर्चदेवता), उक्करुडिक देवता ( कूड़ाकचरा फेंकने के स्थान के देवता) । देवताओं की उत्तम, मध्यम, अवर ये तीन कोटियाँ कही गईं हैं; अथवा आर्य और मिलक्खु या म्लेच्छ देवता । म्लेच्छ देवता हीन हैं ( पृ० २०४–६) । ५२ वें अध्याय का नाम णक्खत्तविजय अध्याय है । इसमें इन्द्र-धनुष, विद्युत्, स्तनित, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र, तारा, उदय, अस्त, अमावास्या, पूर्णमासी, मंडल, वीथी, युग, संवत्सर, ऋतु, मास, पक्ष, क्षण, लव, मुहूर्त, उल्कापात, दिशा, दाह आदि के निमित्तों से फलकथन का वर्णन किया गया है । २७ नक्षत्र और उनसे होनेवाले शुभाशुभ फल का भी विस्तार से उल्लेख है ( पृ० २०६–९) । ५३ वें अध्याय की संज्ञा उप्पात अध्याय है । पाणिनि के ऋगयनादि गण (४।३।७३) में अंगविद्या, उत्पात, संवत्सर, मुहूर्त और निमित्त का उल्लेख आया है, जो उस युग में अध्ययन के फुटकर विषय थे । ग्रह, नक्षत्र, चन्द्र, आदित्य, धूमकेतु, राहु के अप्राकृतिक लक्षणों को उत्पात मानकर उनके आधार पर शुभाशुभ फल का कथन किया जाता था । इनके कारण जिन जिन वस्तुओं पर विपरीत फल देखा जाता था उनका भी उल्लेख किया गया है—जैसे प्रासाद, गोपुर, इन्द्रध्वज, तोरण, कोष्ठागार, आयुधागार, आयतन, चैत्य, यान, भाजन, वस्त्र, परिच्छद, पर्यंक, अरंजर, आभरण, शस्त्र, नगर, अंतःपुर, जनपद, अरण्य, आराम- इन सब पर उत्पात लक्षणों का प्रभाव बताया जाता था ( पृ० २१० -२११) । अध्याय ५४ वें में सार - असार वस्तुओं का कथन है । सार वस्तुएँ चार प्रकार की हैं- धनसार, मित्रसार, ऐश्वर्यसार और विद्यासार। इनमें भी उत्तम, मध्यम और अवर- ये तीन कोटियां मानी गई थीं। धनसार के अन्तर्गत भूमि, क्षेत्र, आराम, ग्राम, नगर आदि के स्वामित्व की गणना की जाती थी । शयनासन-पान - भोजन-वस्त्रआभरण की समृद्धि को सार कहते थे । धनसार का एक भेद प्राणसार भी है । यह दो प्रकार का है- मनुष्यसार या मनुष्य समृद्धि और तिर्यक्योनिसार अर्थात् पशु आदि की समृद्धि । जैसे- हाथी, घोड़े, गौ, महिष, अजा, एडक, खर, उष्ट्र आदि का बहुस्वामित्व । धनसार के और भी दो भेद हैं-अजीव और सजीव । अजीव के १२ भेद है वित्तसार, स्वर्णसार, रूप्यसार, मणिसार, मुक्तासार, वस्त्रसार, आभरणसार, शयनासनसार, भाजनसार, द्रव्योपकरणसार (नगदी), अब्भुपहज्ज सार (अभ्यवहार - खान-पान की सामग्री), और धान्यसार । बहुत प्रकार की सवारी की संपत्ति यानसार कहलाती थी । अंग० ५ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइयं मित्रसार या मित्रसमृद्धि पांच प्रकार की होती थी-संबंधी, मित्र, वयस्क, स्त्री एवं भृत्य की । बाहर और भीतर के व्यवहारों में जिसके साथ साम्य या सख्यभाव हो वह मित्र और जिसके साथ सामान्य मित्रभाव हो वह वयस्य कहा जाता है । ६६ ऐश्वर्य सार के कई भेद हैं-जैसे, नायकत्व, अमात्यत्व, राजत्व, सेनापतित्व आदि । विद्यासार का तात्पर्य सब प्रकार के बुद्धिकौशल, सर्वविद्या एवं सर्वशास्त्रों में कौशल या दक्षता से है ( पृ० २११ - २१३) । ५५ वें अध्याय में निधान या गड़ी हुई धनराशि का वर्णन है । निधान, संख्या या राशि की दृष्टि से कई प्रकार का हो सकता है-जैसे शतप्रमाण, सहस्रप्रमाण, शतसहस्रप्रमाण, कोटिप्रमाण अथवा इससे भी अधिक अपरिमित प्रमाण । एक, तीन, पांच, सात, नौ, दस, तीस, पचास, सत्तर, नव्वे, शत आदि भी निधान का प्रमाण हो सकता था । किस स्थान में निधान की प्राप्ति होगी इस विषय में भी अंगवित् को बताना पड़ता था । जैसे प्रासाद में, माल या ऊँचे खंड में, पृष्ठ वंश या बँडेरी में, आलग्ग ( आलग्न अर्थात् प्रासाद आदि से मिले हुए विशेष स्थान खिड़की, आले आदि), प्राकार, गोपुर, अट्टालक, वृक्ष, पर्वत, निर्गमपथ, देवतायतन, कूप, कूपिका, अरण्य, आराम, जनपद, क्षेत्र, गर्त, रथ्या, निवेशन, राजमार्ग, क्षुद्ररथ्या, निक्कुड (गृहोद्यान), रथ्या (मार्ग), आलग्ग (आलमारी या आला), कुड्या, णिव्व (= नीव्र, छज्जा), प्रणाली, कूपी (कुइया), वर्चकुटी, गर्भगृह, आंगन, मकान का पिछवाड़ा (पच्छावत्थु ) आदि में । निधान बताते समय इसका भी संकेत किया जाता था की गड़ा हुआ धन किस प्रकार के पात्र में मिलेगा; जैसे, लोही (लोहे का बना हुआ गहरा डोलनुमा पात्र), कड़ाह, अरंजर, कुंड, ओखली, वार, लोहीवार (लोहे का चौड़े मुँह का बर्तन) । इनमें से लोहा, कड़ाह और उष्ट्रिक (उष्ट्रिका नामक भाजन विशेष बहुत बड़े निधान के लिए काम में लाये जाते थे । कुंड, ओखली, वार और लोहवार मध्यम आकृति के पात्र होते थे । छोटों में आचमनी, स्वस्ति आचमनी, चरुक ओर ककुलुंडि (छोटी कुलंडिका या कुल्हड़ी; कुल्हड़िया घटिका, पाइयसद्दमहण्णवो) । अंगवित् को यह भी संकेत देना पड़ता में गड़ा हुआ, अथवा वह प्राप्य है या अप्राप्य - पृ० २१३-२१४ । कि निधान भाजन में रखा हुआ मिलेगा या सीधे भूमि अध्याय ५६ की संज्ञा णिधिसुत्त या निधिसूत्र है । पहले अध्याय में निधान के परिमाण, प्राप्तिस्थान और भाजन का उल्लेख किया गया है । इस अध्याय में निधान द्रव्य के भेदों की सूची । वह तीन प्रकार का हो सकता है - प्राणयोनिगत, मूलयोनिगत और धातुयोनिगत । प्राणयोनि संबंधित उपलब्धि मोती, शंख, गवल (= सींग), बाल, दन्त, अस्थि आदि से बने हुए पात्रों के रूप में संभव है । मूलयोनि चार प्रकार की कही संबंध सब प्रकार के धातु, रत्न, मणि आदि से है; गणना मणियों में होती है । घिस कर अथवा चीर कर और कोर करके बनाई हुई गुरियाँ और मणके मणि, शंख और प्रवाल से बनाये जाते थे । वे विद्ध और अविद्ध दो प्रकार के होते थे । उनमें से कुछ आभूषणों के काम में आते थे । गुरिया या मनके बनाने के लिये खड़ पत्थर भिन्न भिन्न आकृति या परिमाण के लिये जाते थे। जैसे अंजण (रंगीन शिला), पाषाण, शर्करा, लेडुक (डला) ढेल्लिया (डली), मच्छक ( पहलदार छोटे पत्थर), फल्ल (वेदार संग या मनके ) - इन्हें पहले चीर कर छोटे परिमाण का बनाते थे। फिर चिरे हुए टुकड़े को कोर कर (कोडिते) उस शकल का बनाया जाता था, जिस शकल की गुरिया बनानी होती थी । कोरने के बाद उस गुरिया को खोडित अर्थात् घिस कर चिकना किया जाता था । कडे संग या मणियों के अतिरिक्त हाथीदांत और जंगली पशुओं के नख भी (दंतणहे) काम में लाये जाते थे । इन दोनों के कारीगरों को दंतलेखक और नखलेखक कहा जाता था । बड़े टुकड़ों को चीरने या तराशने में जो छोटे टुकड़े या रेजे बचते थे उन्हें चुण्ण कहा जाता था जिन्हें आज कल चुन्नी कहते हैं । इन सब की गणना धन में की जाती थी । गई है - मूलगत, स्कन्धगत, पत्रगत, फलगत । धातुयोनि का जैसे लोहिताक्ष, पुलक, गोमेद, मसारगल्ल, खारमणि - इनकी = Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ६७ इसके अतिरिक्त कुछ प्रचलित मुद्राओं के नाम भी हैं, जो उस युग का वास्तविक द्रव्य धन था; जैसे काहावण (कार्षापण) और णाणक । काहावण या कार्षापण कई प्रकार के बताये गये हैं । जो पुराने समय से चले आते हुए मौर्य या शुंग काल के चांदी के कार्षापण थे उन्हें इस युग में पुराण कहने लगे थे, जैसा कि अंगविज्जा के महत्त्वपूर्ण उल्लेख से (आदिमूलेसु पुराणे बूया) और कुषाणकालीन पुण्यशाला स्तम्भ लेख से ज्ञात होता है (जिसमें ११०० पुराण मुद्राओं का उल्लेख है)। पृ० ६६ पर भी पुराण नामक कार्षापण का उल्लेख है। पुरानी कार्षापण मुद्राओं के अतिरिक्त नये कार्षापण भी ढाले जाने लगे थे । वे कई प्रकार के थे, जैसे उत्तम काहावण, मज्झिम काहावण, जहण्ण (जघन्य) काहावण । अंगविज्जा के लेखक ने इन तीन प्रकार के कार्षापणों का और विवरण नहीं दिया । किन्तु ज्ञात होता है कि वे क्रमश: सोने, चाँदी और तांबे के सिक्के रहे होंगे, जो उस समय कार्षापण कहलाते थे । सोने के कार्षापण अभी तक प्राप्त नहीं हुए किन्तु पाणिनि सूत्र ४.३.१५३ (जातरूपेभ्यः परिमाणे) पर हाटकं कार्षापणं यह उदाहरण काशिका में आया है । सूत्र ५.२.१२० (रूपादाहत प्रशंसयोर्यप्) के उदाहरणों में रूप्य दीनार, रूप्य केदार और रूप्य कार्षापण-इन तीन सिक्कों के नाम काशिका में आये हैं । ये तीनों सोने के सिक्के ज्ञात होते हैं । अंगविज्जा के लेखक ने मोटे तौर पर सिक्कों के पहले दो विभाग किए-काहावण और णाणक । इनमें से णाणक तो केवल तांबे के सिक्के थे । और उनकी पहचान कुषाणकालीन उन मोटे पैसों से की जा सकती है जो लाखोंकी संख्या में वेमतक्षम, कनिष्क, हुविष्क, वासुदेव आदि सम्राटों ने ढलवाये थे । णाणक का उल्लेख मृच्छकटिक में भी आया है, जहाँ टीकाकार ने उसका पर्याय शिवाङ्क टंक लिखा है । यह नाम भी सूचित करता है कि णाणक कुषाणकालीन मोटे पैसे ही थे, क्योंकि उनमें से अधिकांश पर नन्दीवृष के सहारे खड़े हुए नन्दिकेश्वर शिव की मूर्ति पाई जाती है । णाणक के अन्तर्गत तांबे के और भी छोटे सिक्के उस युग में चालू थे जिन्हें अंगविज्जा में मासक, अर्धमासक, काकणि और अट्ठा कहा गया है। ये चारों सिक्के पुराने समय के तांबे के कार्षापण से संबंधित थे जिसकी तौल सोलह मासे या अस्सी रत्ती के बराबर होती थी। उसी तौल माप के अनुसार मासक सिक्का पांच रत्ती का, अर्धमासक ढाई रत्ती का, काकणि सवा रत्ती की और अट्ठा या अर्धकाकणि उससे भी आधी तौल की होती थी । इन्हीं चारों में अर्धकाकणि पच्चवर (प्रत्यवर) या सबसे छोटा सिक्का था । कार्षापण सिक्कों को उत्तम, मध्यम और जघन्य इन तीन भेदों में बाँटा गया है । इसकी संगति यह ज्ञात होती है कि उस युग में सोने, चाँदी और तांबे के तीन प्रकार के नये कार्षापण सिक्के चालू हुए थे। इनमें से हाटक कार्षापण का उल्लेख काशिका के आधार पर कह चुके हैं । वे सिक्के वास्तविक थे या केवल गणित अर्थात् हिसाब किताब के लिये प्रयोजनीय थे इसका निश्चय करना संदिग्ध है, क्योंकि सुवर्ण कार्षापण अभी तक प्राप्त नहीं हुए। चाँदी के कार्षापण भी दो प्रकार के थे । एक नये और दूसरे मौर्य शुंग काल के बत्तीस रत्ती वाले पुराण कार्षापण । चांदी के नये कार्षापण कौन से थे इसका निश्चय करना भी कठिन है। संभवतः यूनानी या शक-यवन राजाओं के ढलवाये हुए चांदी के सिक्के नये कार्षापण कहे जाते थे । सिक्कों के विषय में अंगविज्जा की सामग्री अपना विशेष महत्त्व रखती है। पहले की सूची में (पृ. ६६) खतपक और सतेरक इन दो विशिष्ट मुद्राओं के नाम आ भी चुके हैं । मासक सिक्के भी चार प्रकार के कहे गये हैं-सुवर्णमासक, रजतमासक, दीनारमासक और चौथा केवल मासक जो तांबे का था और जिसका संबंध णाणक नामक नये तांबे के सिक्के से था । दीनार मासक की पहचान भी कुछ निश्चय से की जा सकती है, अर्थात् कुषाण युग में जो दीनार नामक सोने का सिक्का चालू किया गया था और जो गुप्त युग तक चालू रहा, उसी के तौल-मान से संबंधित छोटा सोने का सिक्का दीनार मासक कहा जाता रहा होगा । ऐसे सिक्के उस युग में चालू थे यह अंगविज्जा के प्रमाण से सूचित होता है । वास्तविक सिक्कों के जो नमूने मिले हैं उनमें सोने के पूरी तौल के सिक्कों के अष्टमांश भाग तक के छोटे सिक्के कुषाण राजाओं की मुद्राओं में पाये गये हैं (पंजाब संग्रहालय सूची संख्या ३४, ६७, १२३, १३५, २१२, २३७), किन्तु संभावना यह है कि षोडशांश तौल के सिक्के भी बनते थे । रजतमासक से तात्पर्य चांदी के रौप्यमासक से ही था । सुवर्णमासक यह मुद्रा ज्ञात होती है जो अस्सी रत्ती के सुवर्ण कार्षापण के अनुपात से पांच रत्ती तौल की बनाई जाती थी । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं इसके बाद कार्षापण और णाणक इन दोनों के निधान की संख्या का कथन एक से लेकर हजार तक किन लक्षणों के आधार पर किया जाना चाहिए यह भी बताया गया है । यदि प्रश्नकर्ता यह जानना चाहे कि गड़ा हुआ धन किसमें बँधा हुआ मिलेगा तो भिन्न भिन्न अंगों के लक्षणों से उत्तर देना चाहिए - थैली में (थविका), चमड़े की थैली में (चम्मकोस), कपड़े की पोटली में (पोट्टलिकागत) अथवा अट्टियगत (अंटी की तरह वस्त्र में लपेटकर) सुत्तबद्ध, चक्कबद्ध, हेत्तिबद्ध - पिछले तीन शब्द विभिन्न बन्धनों के प्रकार थे जिनका भेद अभी स्पष्ट नहीं है । कितना सुवर्ण मिलने की संभावना है इसके उत्तर में पाँच प्रकार की सोने की तौल कही गई है, अर्थात् एक सुवर्णभर, अष्ट भाग सुवर्ण, सुवर्णमासक (सुवर्ण का सोलहवाँ भाग), सुवर्ण काकिणि (सुवर्ण का बत्तीसवाँ भाग) और पल ( चार कर्ष के बराबर ) । ६८ अध्याय ५७ का नाम णट्ठकोसय अध्याय है जिसमें कोश के नष्ट होने के संबंध में विचार किया गया है । नष्ट के तीन भेद हैं- नष्ट, प्रमृष्ट, ( जबरदस्ती छीन लिया गया) और हारित ( जो चोरी हुआ हो) । पुनः नष्ट के दो भेद किये गये हैं-सजीव और अजीव । सजीव नष्ट दो प्रकार के हैं- मनुष्य योनिगत और तिर्यक् योनिगत । तिर्यक् योनि के भी तीन भेद हैं-पक्षी, चतुष्पद और सरिसर्प । सरिसर्पों में दव्वीकर, मंडलि और राजिल (राइण्ण) नामक सर्पों का उल्लेख किया गया है । मनुष्य वर्ग में प्रेष्य, आर्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि का उल्लेख है । इनमें भी छोटे-बड़े अनेक भेद होते थे । संबंध की दृष्टि से भ्राता, वयस्य, भगिनी, श्याल, पति, देवर, ज्येष्ठ, मातुलपुत्र, भगिनीपति, भ्रातृव्य, भ्रातृश्वसा, पितृश्वसा आदि के नाम हैं। अजीव पदार्थों की सूची में प्राणयोनि के अन्तर्गत दूध, दही, तक, कूचिय ( कूर्चिक रबड़ी), आमधित ( = आमथित = मट्ठा या दूध में मथी हुई कोई वस्तु), गुड़दधि, रसालादधि, मंथु (सं० मंथ), परमण्ण (परमान्न, खीर), दधिताव (छोंकी हुई दही या कढी), तक्कोदण (तक्रौदन), अतिकूरक (विशेष प्रकार का भात, पुलाव) इत्यादि । मूलयोनिगत आहार की सूची में शालि, व्रीहि, कोद्रव, कंगू, रालक (एक प्रकार की कंगनी), वरक, जौ, गेहूँ, मास, मूँग, अलसंदक (धान्य विशेष), चना, णिप्फावा (गुज० वाल, सेम का बीज), कुलत्था (कुलथी), चणविका (= चणकिका चने से मिलता हुआ अन्न, प्राकृत चणइया, ठाणांग सूत्र ५, ३), मसूर, तिल, अलसी, कुसुम्भ, सावां । इस प्रकरण में कुछ प्राचीन मद्यों के नाम भी गिनाये हैं । जैसे पसण्णा (सं० प्रसन्ना नामक चावल से बना मद्य, काशिका ५.४.१४, संभवत: श्वेत सुरा या अवदातिका), णिट्ठिता (= निष्ठिता, मद्यविशेष मंहगी शराब, संभवतः द्राक्षा से बनी हुई), मधुकर (महुवे की शराब) आसव, जंगल ( ईख की मदिरा), मधुरमेरक (मधुरसेरक पाठान्तर अशुद्ध है । वस्तुतः यह वही है जिसे संस्कृत में मधुमैरेय कहा गया है, काशिका ६.२.७०), अरिट्ठ, अकालिक (इसका शुद्ध पाठ अरिट्ठकालिका था जैसा कुछ प्रतियों में है, कालिका एक प्रकार की सुरा होती है, काशिका ५.४.३, अर्थशास्त्र २२५, आसवासव (पुराना आसव), सुरा, कुसुकुंडी (एक प्रकार की श्वेत मधुर सुरा), जयकालिका । धातु के बने आभरणों में सुवर्ण, रुप्प, तांबा, हारकूट, त्रपु ( रांगा) सीसा, काललोह, वट्टलोह, सेल, मत्तिका का उल्लेख है । धातुनिर्मित वस्त्रों में सुवर्णपट्ट (किमखाब) सुवर्णखचित (जरी का काम ) और लौहजालिका (पृ० २२१) —ये हैं । इसी प्रसंग में तीन सूचियाँ रोचक हैं-घर, नगर और नगर के बाहर के भाग के विभिन्न स्थानों की । घर के भीतर अरंजर, ऊष्ट्रिका, पल्ल (सं० पल्य, धान्य भरने का बड़ा कोठा), कुड्य, किज्जर, ओखली, घट, खड्डभाजन (खोदकर गड़ा हुआ पात्र), पेलिता ( पेलिका संभवतः पेटिका), माल ( घर का ऊपरी तल), वातपाण ( गवाक्ष), चर्मकोष ( चमड़े का थैला), बिल, नाली, थंभ, अंतरिया ( अंत के कोने में बनी हुई कोठी या भंडरिया), पस्संतरिया (पार्श्वभाग में बनी हुई भंडरिया), कोट्ठागार, भत्तघर, वासघर, अरस्स (आदर्श भवन या सीसमहल), पडिकम्मघर (शृंगारगृह ) असोयवणिया (अशोकवनिका नामक गृहोद्यान), आवुपध, पणाली, उदकचार, वच्चाडक (वर्चस्थान), अरिट्ठगहण (कोपगृह जैसा स्थान ), चित्तगिह (चित्रगृह), सिरिगिह (श्री गृह), अग्निहोत्रगृह, स्नानगृह, पुस्सघर, दासीघर, वेसण | Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ६९ नगर के विभिन्न भागों की सूची इस प्रकार है- अन्तःपुर या राजप्रासाद, भूमंतर (भूम्यंतर संभवतः भूमिगृह), सिंघाडक (शृङ्गाटक), चउक्क (चौक), राजपथ, महारथ्या, उस्साहिया ( अज्ञात, संभवतः परकोटे के पीछे की ऊँची सड़क), प्रासाद, गोपुर, अट्टालक, पकंठा (प्रकंठी नामक बुर्ज), तोरण, द्वार, पर्वत, वासुरुल (अज्ञात), थूभ ( स्तूप), एलुय (एडुक), प्रणाली, प्रवात (प्रपात, गड्ढा), वप्प, तडाग, दहफलिहा (हृदपरिखा), वय (व्रज - गोकुल अथवा मार्ग या रास्ता ) । नगरबाह्य स्थानों की सूची इस प्रकार है- ध्वज, तोरण, देवागार, वुक्ख (वृक्ष), पर्वत, माल, थंभ, एलुग (द्वार की लकड़ी), पाली ( तलाव का बांध ), तडाग, चउक्क, वप्र, आराम, श्मशान, वच्चभूमि (वर्चभूमि), मंडलभूमि, प्रपा, नदी-तडाग, देवायतन, दड्ढवण ( दग्धवन), उट्ठियपट्टग (ऊँचा स्थान), जण्णवाड (यज्ञपाटक), संगाम भूमि (संग्राम भूमि) । ५८ वाँ चिन्तित अध्याय है। जैनधर्म में जीव-अजीव के विचार का विषय बहुत विस्तार से आता है । यहाँ धार्मिक दृष्टिकोण से उस सम्बन्ध में विचार न करके केवल कुछ सूचिओं की ओर ध्यान दिलाना इष्ट है । जीव, अजीव - इसमें जीव दो प्रकार का है-एक संसारी और दूसरा सिद्ध । संसारी जीव के सम्बन्ध में याचन विवृद्धि, भोग, चेष्टा, आचार-विचार, चूड़ाकर्म (चोल), उपनयन, तिथि (पर्वविशेष), उत्सव, समाज, यज्ञ आदि विशेष आयोजनों का उल्लेख है। संसार चार प्रकार के होते हैं-दिव्य, मानुष्य, तिर्यंच, नारकी । देवताओं की सूची में निम्नलिखित नाम उल्लेखनीय हैं- वैश्रवण, विष्णु, रुद्र, शिव कुमार, स्कन्द, विशाख (इन तीन नामों का पृथक् उल्लेख कुषाण काल की मुद्राओं पर भी पाया जाता है), ब्रह्मा, बलदेव, वासुदेव, प्रद्युम्न, पर्वत, नाग, सुपर्ण, नदी, अलणा (एक मातृदेवी), अज्जा, अइराणी ( पृ० ६९, २०४ पर भी यह नाम आ चुका है), माउया (मातृका), सउणी, (शकुनी, सम्भवतः सुपर्णी देवी), एकाणंसा (एकानंसा नामक देवी जो कृष्ण और बलराम की बहिन मानी जाती है), सिरी (श्री- लक्ष्मी), बुद्धि, मेधा, कित्ती (कीर्ति), सरस्वती, नाग, नागी, राक्षसराक्षसी, असुर-असुरकन्या, गन्धर्व - गन्धर्वी, किंपुरुष - किंपुरुषकन्या, जक्ख-जक्खी, अप्सरा, गिरिकुमारी, समुद्रसमुद्रकुमारी, द्वीपकुमार - द्वीपकुमारी, चन्द्र, आदित्य, ग्रह, नक्षत्र, तारागण, वातकन्या, यम, वरुण, सोम, इन्द्र, पृथ्वी, दिशाकुमारी, पुरदेवता, वास्तुदेवता, वर्चदेवता ( दुर्गन्धि स्थान के अधिष्ठातृ देवता), सुसाण देवता ( श्मशान देवता), पितृदेवता, चारण, विद्याधरी, विज्जादेवता, महर्षि आदि । इस सूची में कई बातें ध्यान देने योग्य हैं । एक तो देवताओं की यह सूची जैनधर्म की मान्यताओं की सीमा में संकुचित न रहकर लोक से संगृहीत की गई थी । अतएव इसमें उन अनेक देव-देवियों के नाम आ गये हैं जिनकी पूजा-परम्परा लोक में प्रचलित थी । इसमें एक ओर तो प्रायः वे सब नाम आ गये हैं जिनकी मान्यता मह नामक उत्सवों के रूप में पूर्वकाल से चली आती थी; जैसे - वेस्समण मह, रुद्दमह, सिवमह, नदीमह, बलदेवमह, वासुदेवमह, नागमह, जक्खमह, पव्वतमह, समुद्रमह, चन्द्रमह, आदित्यमह, इन्द्रमह आदि; दूसरे कुछ वैदिक देवता, जैसे- वरुण, सोम, यम; कुछ विशेष रूप से जैन देवता जैसे द्वीपकुमारी, दिशाकुमारी; अग्निदेवता के साथ अग्निघर और नागदेवता के साथ नागघर का उल्लेख विशेष ध्यान देने योग्य है । नागघर या नागभवन या नागस्थान, नागदेवता के मन्दिर थे जिनकी मान्यता कुषाण काल में विशेष रूप से प्रचलित थी । मथुरा के शिलालेखों में नागदेवता और उनके स्थानों का विशेष वर्णन आता है । एक प्रसिद्ध नागभवन राजगृह में मणियार नाग का स्थान था जिसकी खुदाई में मूर्ति और लेख प्राप्त हुए हैं । स्कन्द, विशाख, कुमार और महासेन ये चार भाई कहलाते थे जो आगे चलकर एक में मिल गये और पर्यायवाची रूप में आने लगे, पर हुविष्क के सिक्कों पर एवं काश्यप संहिता में इनका अलग-अलग उल्लेख है, जैसा कि उनमें से तीन का यहाँ भी उल्लेख है । श्री लक्ष्मी की पूजा तो शुंगकाल से बराबर चली आती थी और उसकी अनेक मूर्तियाँ भी पाई गई हैं । किन्तु मेधा और बुद्धि का देवता रूप में उल्लेख यहाँ नया है । मनुष्य योनि के सम्बन्ध में पहले स्त्री, पुरुष और नपुंसक-इन तीन भेदों का विचार किया गया है और फिर पिता, माता आदि सम्बन्धियों की सूची दी है । तदन्तर पक्षी, चतुष्पद, परिसर्प, जलचर, कीट, पतंग, For Private Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० अंगविज्जापइणयं पुष्प, फल, लता, धान्य, तैल, वस्त्र, धातु, वर्ण, आभरण आदि की विस्तृत सूचियां दी गई हैं जिनसे तत्कालीन संस्कृति के विषय में उपयोगी सूचना प्राप्त होती है । जलचर जीवों में कुछ ऐसे नाम हैं जिनका अंकन मथुरा की जैन कला में विशेष रूप से पाया जाता है । इन्हें सामुद्रिक अभिप्राय (Marine Motifs) कहा जाता है; जैसे हत्थिमच्छा (हाथी का शरीर और मछली की पूछ मिली हुई, जिसे जलेभ या जलहस्ति भी कहा जाता है), मगमच्छ (मृगमत्स्य), गोमच्छ ( गौमत्स्य), अस्समच्छ ( आधी अश्व की आधी मत्स्य की), नरमत्स्य ( पूर्वकाय मनुष्य का और अधः काय मत्स्य का, अं० Triton | मछलियों की सूची में कुछ नाम विशेष ध्यान देने योग्य हैं । जैसे सकुचिका (सकची माछ), चम्मिरा (चर्मज, मानसोल्लास), घोहणु, वइरमच्छ (वज्रमच्छ), तिमितिमिगिल, वालीण, सुंसुमार, कच्छभमगर, गद्दभकप्पमाण ( Shark ), रोहित, पिचक (पिच्छक, मानसोल्लास ), णलमीन ( नलमीन, eel), चम्मिराज, कल्लाडक, सीकुंडी, उप्पातिक, इंचका, कुडुकालक, सित्तमच्छक ( पृ० २२८) । वृक्षों की सूची में चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं- पुष्पशाली, पुष्पफलशाली, फलशाली, न पुष्पशाली न फलशाली । पुष्पशाली तीन प्रकार के हैं-प्रत्येकपुष्प, गुलुकपुष्प, मंजरी । एक एक फल अलग लगे तो प्रत्येक पुष्प, फूलों के गुच्छे हों तो गुलुकपुष्प और पुष्पों के लम्बे लम्बे झुग्गे लगें तो मंजरी कही जाती है । रंगों की दृष्टि से पुष्पों के पांच प्रकार हैं-श्वेत, रक्त, पीत, नील और कृष्ण पुष्प । गंध की दृष्टि से पुष्पों के तीन प्रकार हैं-सुगंध पुष्प, दुर्गन्ध पुष्प, अत्यंत गंध पुष्प । फलदार वृक्ष फलों के परिमाण की दृष्टि से चार वर्गों में बांटे गये हैं- बहुत बड़े फल वाले (कायवंत फल जैसे कटहल, तुम्बी, कुष्मांड, मज्झिमकाय ( मझले आकार के फल वाले), कैथ, बेल; बिचले (मज्झिमाणांतर) फल वाले जैसे आम, उदुम्बर; और छोटे फल वाले जैसे बड, पीपल, पीलू, चीरोजी, फालसा, बेर, करौंदा । वर्गीकरण की क्षमता का और विकास करते हुए कहा गया है कि भक्ष्य और अभक्ष्य दो प्रकार के फल होते हैं । पुनः वे तीन प्रकार के हैं-सुगंध, दुर्गंध और अत्यन्त सुगंध । रस या स्वाद की दृष्टि से फलों के पांच प्रकार और हैं-तीते, कडुवे खट्टे, कसैले और मीठे । अशोक, सप्तवर्ण, तिलक-ये पुष्पशाली वृक्षों के उदाहरण हैं । आम, नीम, बकुल, जामुन, दाडिम- ये ऐसे वृक्ष हैं जो पुष्प और फल दोनों दृष्टिओं से सुन्दर हैं। गंध की दृष्टि से वृक्षों के कई भेद हैं-जैसे मूलगंध (जिनकी जड़ में सुगंध हो), स्कंधगत गंध, त्वचागत गंध, सारगत गंध (जिसके गूदे में गन्ध हो), निर्यासगत गंध (जिसके गोंद में सुगंध हो), पत्रगत गंध, फलगत गंध, पुष्पगत गंध, रसगत गंध । रसों में कुछ विशेष नाम उल्लेखयोग्य हैं- गुग्गुल विगत (गुग्गुल से बनाई गई कोई विकृति), सज्जलस (सर्ज वृक्ष का रस ), इक्कास (संभवत: नीलोत्पल कमल से बनाया हुआ द्रव; देशीनाममाला १–७९ के अनुसार इक्कस नीलोत्पल या कमल), सिरिवेटूक (श्रीवेष्टकदेवदार वृक्ष का निर्यास), चंदन रस, तेलवण्णिकरस (तैलपर्णिक लोबान अथवा चंदन का रस), कालेयकरस (इस नाम के चन्दन का रस), सहकार रस ( इसका उल्लेख बाण ने भी हर्षचरित में किया है), मातुलुंग रस, करमंद रस, सालफल रस । उस समय भाँति-भाँति के तैल भी तैयार होते थे जिनकी एक सूची दी हुई है - जैसे कुसुंभ तेल्ल, अतसी तेल्ल, रुचिका तेल्ल (= एरंड तैल), करंज तेल्ल, उण्हिपुण्णामतेल्ल (पुन्नाग के साथ उबाला हुआ तैल), बिल्ल तेल्ल (बिल्व तैल), उसणी तेल्ल ( उसणी नामक किसी ओषधि का तेल ), वल्ली तेल्ल, सासव तेल्ल (सरसों का तेल), पूतिकरंज तेल्ल, सिग्गुक तेल्ल (सोहजन का तेल), कपित्थ तेल्ल, तुरुक्क तेल्ल (तुरुष्क नामक सुगंधी विशेष), मूलक तेल्ल, अतिमुक्तक तैल । नाना प्रकार के तेल वृक्ष, गुल्म, वल्ली, गुच्छ, वलय (झुग्गे) और फल आदि से बनाये जाते थे । घटिया बढ़िया तेलों की दृष्टि से उनका वर्गीकरण भी बताया गया है। तिल, अतसी, सरसों, कुसुंभ के तैल प्रत्यवर या नीची श्रेणी के रेड-एरंड, इंगुदी, सोंहजन के मज्झिमाणंतर वर्ग के; मोतिया और पकली (बेला) के तैल मध्यम वर्ग के, और कुछ दूसरे तैल श्रेष्ठ जाति के होते हैं । चंपा और चांदनी (चंदणिका) के फूलों (पुस्स = पुष्प) से जाही और जूही के तेल भी बनाये जाते थे । अनेक प्रकार के कुछ अन्नों के नाम भी गिनाये गये हैं ( पृ० २३२, पं० २७) । वस्त्र, भाजन, आभरण और धातुओं के नाम भी गिनाये हैं । सुवर्ण, त्रपु ताँबा, सीसक, काललोह, वट्टलोह, कंसलोह, हारकूट ( आरकूट), चाँदी ये कई प्रकार = For Private Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ७१ की धातुएँ बर्तन बनाने के काम में आती थीं । इसके अतिरिक्त वैदूर्य, स्फटिक, मसारकल्ल, लोहिताक्ष, अंजनपुलक, गोमेद, सासक (पन्ना), सिलप्पवाल, प्रवाल, वज्र, मरकत और अनेक प्रकार की खारमणि इनसे कीमती बर्तन बनाये जाते थे । कृष्ण मृत्तिका, वर्ण मृत्तिका, संगमृत्तिका, विषाणमृत्तिका, पांडुमृत्तिका, ताम्रभूमि मृत्तिका (हिरमिजी) मुरुम्ब (मोरम) इत्यादि कई प्रकार की मिट्टियाँ बर्तन बनाने और रंगने के काम में आती थीं। इस प्रकार मृत्तिकामय, लोहमय, मणिमय, शैलमय कई प्रकार के भाजन बनते थे । वस्तुत: इस अध्याय में दैनिक जीवन से सम्बन्ध रखनेवाली मूल्यवान् सामग्री का संनिवेश पाया जाता है (पृ. २२३-२३४) । ५९ वें अध्याय का नाम काल अध्याय है जिसमें २७ पटल हैं। पहले पटल में काल विभाग के नाम हैं । दूसरे में गुणों का विवेचन है। तीसरे पटल में उत्पात और चौथे में काल के सूक्ष्म विभागों का उल्लेख है। पांचवें पटल से २७ वें पटल तक जीव-अजीव पदार्थों और प्राणियों का काल के साथ सम्बन्ध कहा गया है । बारहवाँ पटल महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें छह ऋतु और बारह महीनों के क्रम से प्रकृति में होनेवाले वृक्ष, वनस्पति, पुष्प, सस्य, ऋतु आदि के परिवर्तन गिनाये गये हैं। उदाहरण के लिये फाल्गुन महीने के सम्बन्ध में कहा है-फाल्गुन मास में नरनारिओं के मिथुन मिलकर उत्सव मनाते हैं और मुदित होते हैं । उस समय शीत हट जाता है और कुछ उष्ण भाव आ जाता है। जिस समय आम्रमंजरी निकलती और कोयल शब्द करती है उस समय गाने बजाने और हँसी खुशी के साथ स्त्रीपुरुष आपानक प्रमोद में मस्त होते हैं । जपा, इन्दीवर, श्यामाक के पुष्पों से आंदोलित ऋतु का नाम वसंत है, जिसमें मनुष्य मस्त होकर नाचने लगते हैं, घूमने लगते हैं । स्त्री पुरुषों के मिथुन मैथुन कथाप्रसंगों में लगे हुए नाना भांति से अपना मंडन करते हैं उसका नाम फाल्गुन मास है । इन ४२ श्लोकों को अपने साहित्य का सबसे प्राचीन बारामासा कहा जा सकता है (पृ० २४३-४४) । सत्रहवें पटल में प्रात:काल से लेकर संध्याकाल तक के भिन्न भिन्न व्यवहार बताये गये हैं। जिसमें प्रातराश, मध्याह्नभोजन, उद्यानभोजन आदि हैं । बीसवें पटल में रामायण, भारत और पुराणों की कथाओं का भी उल्लेख है। साठवें अध्याय में पूर्वभव अर्थात् देवभव, मनुष्यभव, तिर्यक् भव और नैरयिकभव के जानने की युक्ति बताई गई है। इसी के उत्तरार्ध में आगामी भव जानने की युक्ति का विचार है। इस प्रकार यह अंगविज्जा नामक प्राचीन शास्त्र सांस्कृतिक दृष्टि से अतिमहत्त्वपूर्ण सामग्री से परिपूर्ण है । निःसन्देह इसकी शब्दावली अनेक स्थलों में अस्पष्ट और गूढ़ है । इस ग्रन्थ की कोई भी प्राचीन या टीका उपलब्ध नहीं है। प्राकृत कोष भी इन शब्दों के विषय में सहायता नहीं करते । वस्तुत: तो स्वयं अंगविज्जा के आधार पर वर्तमान प्राकृत कोषों में अनेक नये शब्दों को जोड़ने की आवश्यकता है। इस ग्रंथ पर विशेष रूप से स्वतंत्र अर्थ अनुसंधान की आवश्यकता है। तुलनात्मक सामग्री के आधार पर एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से यह संभव हो सकेगा कि इसकी शब्दावली एवं वस्त्र, भाजन, आभूषण, शयनासन, गृहवस्तु, फल, मूल, पुष्प, वृक्ष, यान, वाहन, पशुपक्षी, धातु, रत्न, देवी-देवता, पर्व, उत्सव, व्यवहार आदि से संबंधित जो मूल्यवान् शब्दसूचियाँ इस ग्रन्थ में सुरक्षित रह गई हैं, उनकी यथार्थ व्याख्या की जा सके । आशा है कि इस ग्रन्थ के प्रकाशन के बाद सांस्कृतिक इतिहास के विद्वान् लेखक इस सामग्री का समुचित उपयोग कर सकेंगे । यहाँ हमने कुछ शब्दों पर विचार किया है, बहुत से अभी अस्पष्ट रह गये हैं। फिर भी जहाँ तक संभव हो सका है, सांस्कृतिक अर्थों की दृष्टि से अंगविद्या के अध्ययन को आगे बढ़ाने का कुछ प्रयत्न यहाँ किया गया है । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ COIN NAMES IN THE ANGAVIJJĀ The Angavijja contains extremely valuable lists of textiles, containers and utensils, seats and furniture, ornaments and jewellery, gods and goddesses, conveyances and boats, government officers, articles of food and drink, arms and weapons, birds and animals, personal names of men and women, architectural terms, etc. Similar to the lists of the Buddhist Mahāvyutpatti, these are replete with cultural material of great importance. Here it is proposed to record the numismatic data incorporated in this text in the form of lists of coins constituting the wealth during that period, which served as the basis of foretelling the fortune of a person. The following passages are noteworthy : ................................धणमतो परं ॥ १८४ सुवण्णमासको व ति तहा स्यय मासओ । दीणारमासको व ति तधो णाणं च मासको ॥ १८५ काहापणो खत्तपको पुराणो त्ति व जो वदे । सतेरको ति तं सव्वं पुण्णामसममादिसे ।। १८६ [अङ्गविज्जा, ch. Ix, p. 66] सुवण्णकाकणी व त्ति तथा मासककाकणी । तधा सुवण्णगुञ्ज त्ति दीणारि त्ति व जो वदे ॥ ३६६ [अंगविज्जा, ch. IX, p. 72] तत्थ कोडिते खोडिते दंतणहे अंजण-पासाण-सक्कर लेटुक-ढल्लिया-मच्छक फल्लादिसु सव्वकढिणगते सव्वकडगए सव्वचुण्णगते सव्वधणपडिरूव उवकरणगते चेव धणं बूया । उद्धं णाभीय काहावणे बूया । अधो णाभीय णाणकं बूया । तत्थ अब्भंतरामासे सव्वसारगते सव्वकाहावणोपकरणगते य काहावणो बूया । तत्थ काहावणेसु पुव्वाधारितेसु उत्तमेसु उत्तमयत्तिए बूया, मज्झिमेसु मज्झिमयत्तिए बूया, जहण्णेसु जहण्णयत्तिए बूया, साधारणेसु उत्तममज्झिमजहण्णेसु साधारणयत्तिए बूया, आदिमूलेसु पुराणे बूया, बालेसु णवाए बूया ।। तत्थ बज्झामासेसु असारगते य सव्वणाणकपडिरूवगते य णाणकं बूया । तत्थ णाणए पुव्वाधारिते कायमंतेसु सव्वमासकपडिरूवगते य मासए बूया, मज्झिमकाएसु अद्धमासकपडिरूवसद्दपादुब्भावे य अद्धमासए बूया, मज्झिमाणतरकाएसु सव्वकाकणिपडिरूवगते य काकणि बूया, पच्चवरकाएसु सव्वअट्ठपडिरूवगते य अट्ठातो बूया । IV सेतेसु णिद्धेसु य रुप्पं बूया चउरंसेसु णिद्धेसु चित्तेसु दढेसु काहावणं बूया । [अंगविज्जा, Ch. x, p. 134] V तंबेसु सुवण्णकं दिटुं बूया सुक्के रुप्पं वा काहावणे वा बूया । सुक्केसु दढेसु रुप्पं बूया । चित्तेसु सुक्केसु दढेसु य काहावणे बूया । [अंगविज्जा, Ch. XLII, p. 189] 1. See also for a casual discussion, Umakant P. Shah, JNSI, XIV, 107-110, and Journal of Oriental Research, M. S. University, of Baroda. III, 55-60. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ It is evident from the above that a full contingent of coin-names as presented here is the following: 1. सुवण्ण मासक (सुवर्ण माषक) 2. रयय मासक (रजत माषक) 3. दीणार मासक (दीनार माषक ) 4. णाण मासक 5. काहापण 6. खत्तपक 7. पुराण 8. सरक 9. सुवण्ण काकणी 10. मासक काकणी 11. सुवण्ण गुंज 12. दीणारि 13. आदिमूल काहावण also called पुराण 14. उत्तमकाहावण 15. मज्झिम काहावण COIN NAMES (नाणक माषक) (कार्षापण) ( क्षत्रपक) (पुराण) (Stater) (सुवर्ण काकणी) ( माषक काकणी) (सुवर्ण गुंजा) ( दीनार Denarius) (उत्तमकार्षापण) (मध्यम कार्षापण) (जघन्य कार्षापण) (बाल कार्षावण, also called नवकार्षापण) 16. जहण्ण काहावण 17. बाल काहावण 18. णाणक (नाक) 19. मासक (कायमंत, of big size) 20. अद्धमासक ( मज्झिमकाय, of medium size) 21. काकणि ( मज्झिमाणंतर काय, of small size) ( पच्चवर काय, of minute size) 22. अट्ठा We may now offer some explanation of these coin denominations. 1. सुवण्णमासक—This seems to refer to the gold माषक coin which was a submultiple of the standard gold coin called auf. According to the traditional weight standard the auf coin was of 80 rattis and a माषक was one-sixteenth part of it, hence weighing 5 rattis : पञ्च कृष्णलको मापस्ते सुवर्णस्तु षोडश । (मनु ८२१३४) Kautilya had laid down that a सुवर्ण and कर्ष each was equal to 16 सुवर्णमाषकs and that the latter was 5 rattis in weight : सुवर्ण माषकः पञ्च वा गुञ्जाः । ते षोडश सुवर्णः कर्षो वा । (अर्थशास्त्र II. 19 ) The gold coins of the Guptas are mentioned both as दीनार and सुवर्ण in their inscriptions. The सुवर्ण standard of 80 rattis was frankly adopted in the reign of Skandagupta only, whose coins were struck to two standards, viz. an average of 131 grains and that of 142 grains. The latter has been unanimously accepted as conforming to the ancient Hauf weight of 144 grains (taking 1 ratti = 1.8 grains). What could have been the standard followed by the Gupta mint-masters when they were minting to an average of 131 grs. has remained an unsolved problem so far. An important fact is brought to light by the अंगविज्जा, viz that besides the दीनार - सुवर्णs which were the standard gold coins, their sub-multiples were also minted, and these are specifically called auf दीनारमाषक No specimen however, of such small gold coins of the Guptas has yet been found. and 1. J. Allan, Catalogue of the Coins of the Gupta Dynasties, p. cxxxiv; cf. Flcet, C II, iii, No. 64. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ANGAVIJJA 2. स्ययमासक - This is obviously the silver माषक coin which Manu mentions as रौप्यमाषक. Its weight was 2 rattis : S oud d fast 441: I (99. (1934) Punch-marked specimens of the silver 4994 coins are well known and it may be taken for granted that they were current in the Kushāņa and Gupta periods, since no other type of silver 49s have ever been found. Again, the Kushanas hardly minted any silver and the Guptas also gave scant attentions to coins in this metal because earlier punch-marked coins were still current. 3. 41-641941 - As pointed out above it should have been a sub-multiple of the standard denarius coin, weighing 121 grains which was the standard adopted by the Kushāņas in imitation of the Roman aurei. 4. नाणकमाषक - The अंगविज्जा is specific that the नाणक was an unsubstantial coin (असार गत), i.e. much inferior in value to the lefqu of silver referred to as H ARTA. The determining of the weight standard of the copper coins of the Kushāņas is still in a state of confusion. Its range extends from 31 grs. to 270 grs. as recorded by Whitehead in the PMC. The 71014 coin is also mentioned in the ygfees (R1 07147+421 4 , I. 17) where the commentary, obviously on some good old authority, explains it as a fria *, i.e. a coin bearing the figure of siva, which induces us to identify the 7701 with the copper money of the Kushānas, since it was Wema Kadphises who issued the most abundant currency of this type and caused it to be marked with the figure of Śiva or one of his emblems. Buddhaghosha has an important passage in the alfaut commentary on the fanta, in which he mentions after 61997 a coin called HEART, which seems to signify the copper 194 coin and was the same as the 1975 1976 of the infawol list. According to the traditional weight system, a copper d u weighed 80 rattis or 144 grs, and a 19h 5 rattis. The standard weight of the Th coin being uncertain, that of the 1975 also remains problematical. The heavy coins of the Kushäņas were struck either equal to the tetradrachma wt. standard of 268.8 grs. (67.2) (being the wt. of a drachma), or the double stater wt. of 266.4 (133.2 grs. being the wt. of a stater), or double of the Suvrņa wt. of about 290 grs. (146 or 144 being the wt. of a Suvarma); or there is also the possibility of the heavy wt. of the ancient for coins mentioned by Pāṇini (150 rattis or 270 grs.) still being familiar with respect to the copper currency and officially accepted. The exact weight of the 2107 and its sub-multiples in copper remains a matter of conjecture. 5. FETU - The fu coin was of ancient denomination well-known from the time of Panini. Its history is full of vicissitudes. The 71619 of the infall had wide ramifications. It is distinguished as a coin of substantial value (सारगत), in comparison to the copper नाणक which was of inferior value (असारगत). The same distinction is indicated by the काहावण corresponding to the upper part of the body (उद्धं णाभीय) and the णाणक to the lower part (3 unit) from the point of view of prognossicating the fortune of some person. The 3ifugl further distinguishes the original Kārshāpaņas (3 4 91610) from the new coins of the same name (ali 169 and ua 1694, both meaning the young' or recent coins). Fortunately the current name of the आदिमूल काहावणs is also recorded, viz. पुराण (आदमूलेसु पुराणे बूया), which was well-known during the Saka-Sätavähana and the Kushāna periods, as will be seen below. Further the rigut coin was of three classes, superior (3 ), middle (fr) and R (inferior), and it is essential to understand clearly these distinctions, as shown later. 6. UN -It is a new coin-name added by the 3ifquall and is of exceeding interest. Obviously it denoted the coins issued by the Kshatrapa rulers of Ujjain and Western India. In this connection it is relevant 1. जातरूपरजतन्ति सुवण्णं चेव रूपियं च । अपि च कहापणो लोहमासक दारुमासक जतुमासकादयो पि ये वोहारं गच्छंति Ho a Pacifa ya Jul (safavit, p. 84). Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COIN NAMES 194 to recall the evidence of the Pali commentaries to which Prof. C. D. Chatterji had drawn attention.' There the ancient punch-marked silver Kärshāpaņas are called and the same is distinguished from 14, viz. the coins which were minted by Rudradaman, the Great Satrap who ruled in 150 A.D. According to the सारत्थदीपनी a रुद्रदामक coin was three-fourth in value of a नीलकहापण. It may be taken for granted that in weight also it was three-quarters of the standard silver Kärshāpaṇa of 32 rattis, i.e. of 24 ratti (= 40 grs.) weight. These silver coins were apt to excessive wear and tear, and due to the deposit of verdigris on the surface they were graphically nicknamed as eh. We find in the available specimens a good deal of variation in weight; e.g. Rapson has recorded wts. ranging from 28 grs. to 38 grs. (specimen no. 320 is 37 grs. and no. 324, 38 grs.). coins, i.e. ones minted by Rudradaman himself, We may also make a distinction between the 4 and the 4 coins, i.e. others which were minted by his successors on the model of the original 14hs. For all practical purposes they were indentical in weight, fabric and value. The general name for all such coins of the Western Kşatrapas must have been खत्तपक as revealed by the अंगविज्जा. 7. पुराण - These were the आदिमूल or the original Kärshapana coins of ancient mintage which continued to remain in circulation from circa sixth century B. C. to circa 6th century A. D. These are now known as coins of the punch-marked series and are of many Classes and Varieties. Fortunately once put into circulation, they were never withdrawn by subsequent rulers, even when new coins were cast and minted. During the Śaka-Kushana period (C. 1st Cent. B.C. 3rd Cent. A.D.) they served as the standard money of the day and public endowments were made and recorded in terms of the 'Purana' or the ancient Kärshāpaņas of the punch-marked variety. In the Punyaśāla Pillar Inscription of Huvishka at Mathura an endowment of 1100 Purāņa coins was deposited with two guilds which undertook to make certain provisions of public benefaction in consideration of the interest accruing on the original sum. The implication of the 4-f passage cited above, seems to be that the term was of very wide application and included all kinds of old and new silver coins, under which each class was distinguished by its special name like पुराण, रुद्रदामक, खत्तपक, etc. At any rate the word पुराण was of unmistakable denotation to the common man in the Saka-Kushana period when most of the material for the infa was compiled. Manu also mentions the coin under the name of y, i.e. a q coin of silver, which was equal in wt. to 16 raupya-mashakas (Manu. VIII. 135, 136). In passage no. IV above, the reference to the H 1. In view of Prof. C. D. Chatterji's article, Some Numismatic Terms in Pali Texts, being published in a rather out of the way Journal (Journal of the U. P. Historical Society, Vol. VI, Pt. I, January 1933, pp. 156-173) and the exceptional importance of that evidence for comparative study, the three original passages are cited here : (I) तदा राजगहे वीसतिमासको कहापणो होति, तस्मा पञ्चमासको पादो। एतेन लक्खणेन सव्वजनपदेसु कहापणस्स चतुत्थो भागो पादा' ति वेदितव्वो । सो च खो पोराणस्स नीलकहापणस्स वसेन न इतरेसं रुद्रदामकादीनं । (समन्तपासादिका on सुत्तविभंग, पाराजिक 11. 1.6, विनयपिटक, P.T.S, Vol. III, P. 45). At that time at Rajagaha one Kahapana was equal to twenty maṣakas; wherefore one Pada was equal to five masakas. By this standard it is to be understood that, in all the provinces the quarter of a Kahapana, is a Pada. But this is in respect of the ancient Nilakahapana (and) not of these (latter-day) Rudradamaka (coins) and these have been modelled after it; 11 इमिना व 'सव्वजनपदेसु कहापणस्स वीसतिमो भागो मासको ति इदञ्च वुत्तमेव होती'ति दट्ठव्वं । पोराणसत्थानुरूप लक्खणसम्पन्ना उप्पादिता नीलकहापणाति वेदितव्वा । रुद्रदामेन उप्पादतो रुद्रदामको सो किर नीलकहापणस्स तिभागं अग्घति । (सारत्थदीपनी comm. on the समन्तपासादिका, Sirthalese edn., Vol. I, p. 493). I It must be bome in mind that by this (referring to the 4 passage cited above) it has been said that in all the provinces the twentieth part of a कहापण is a मासक. A नीलकहापण is to be understood as being manufactured with marks following the ancient (numismatic) treatises. A 4 (coin) is one which has been manufactured by Rudradama. This (money-piece) is said to be equivalent to three quarters of a नीलकहापण. --मासको III 'पोराणकस्सा' ति पोराणसत्यानुरूपमुप्पादितस्स लक्खणसम्पन्नस्स नीलकहापणसदिसस्स कहापणस्स एतेन रुद्रदामकादीनि पटिक्खिपति---- नाम पोराणकस्स कहापणस्स वीसतिमो भागो या लोके 'मझेट्ठी' तिपि वुच्चति । *(The expression) (ie. of the ancient) applies to the manufactured with marks according to the ancient (numismatic) treatises and resembling the ether. By this (expression) are excluded the 4 (coin) and those which have been modelled after it is, indeed, the twentieth part of an ancient 14, which is also called Mañjetthi in current usage.' Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGAVIJJA 1894, i.e. the square Kärshapana must be to the ancient punch-marked coins, which owing to the presence of a variety of symbols were also described as चित्त (Skt. चित्र). 8. This word was derived from the Greek term 'stater', which became familiar in India from the time of the Indo-Greeks, and continued to be current during the Kushäna period, and probably in the Gupta epoch also. The stater was a gold coin weighing 133.2 grs. In the Central Asian Kharoshthi documents mention is often made of the ya Hac or yaf Het coin, i.e. the gold stater, which was current along with silver coins called e or 764, the drachm.' Shri Ratna Chandra has also drawn attention to an important evidence from the स्फुटार्था commentary on the अभिधर्म कोष of वसुबन्धु in which a specific reference is found to the dt coin with the remark that 2 dināras were equal to 1 d. This raises several problems, e.g. (1) what was this particular an coin which had the exchange value of 2 : 1 with the stater coin ? (2) Whether the air was of silver or gold ? The literary references acquaint us with the dināra coin both of silver ( CAT) and gold (Hauf CH ), but we are not yet in a position to determine the nature of the dināra affiliated to the stater. The probability is that the silver dināra may have been the name applied to the silver Drachm (wt. 67.2 grs.) in India, and then the weight of the stater (133.2 grs.) would stand to the dināra in the ratio of 2 : 1, as recorded by महावीराचार्य in the गणितसार संग्रह-द्वौ दीनारौ सतेरं स्यात् प्राहुलॊहेऽत्र सूरयः, i.e. in the case of metallic weights 2 दीनारs are equal to 1 सतेर.' It may be safe to assume that were was not a new coin minted in the Kushāna period, but the old Indo-Greek gold stater which continued to be in free circulation for several hundred years after the end of that dynasty. 9. yque 1001t-We know from ancient literature that the 419 coin existed in gold, silver and copper, as the one-sixteenth part of the standard coin. So also the luft. It was one-fourth of a H15. The Arthaśāstra furnishes definite evidence about the ratio of a luft to a -19. The you coin being 80 rattis, its H194 would be 5 rattis and a half hot 1.25 rattis (2.25 grs.). We have of course, no actual specimens of such minute gold coins either for the Kushāņa or for the Gupta period. 10. मासक काकणी-This seems to refer to the काकणी coin related as a submultiple to the silver माषक coin, although there is nothing to preclude a 10 of copper from being known by this name. On Pāņini VI. 3.79, the front commentary has the following examples: (a) 4414: Satur: (b) H141977: 1 i.e., a (silver) ofu exceeded by a (silver) 4797 coin, and a (silver) 49 coin exceeded by a (silver) 014, 0ft coin. 11. quu T5-It signifies a 11 or 1 ratti of gold, and it is uncertain whether the reference is to a coin, or merely a wt., but the probability is in favour of the former. The far far does refer to a gold FUIT coin (ch. 9). 12. The name was derived from Roman denarius. A coin of this designation was first introduced in Rome in B.C. 269-268. It was a silver coin and its original weight was 70 grs, but within about fifty 1. Ratna Chandra Agrawala, Numismatic Data in the Kharosthi Documents from Chinese Turkestan, JNSI, XIV. p. 103. The writer refers there, on the authority of Prof. Gran wedel to a stater of silver, but the point is left undeveloped. We do not yet know of any other firm reference to a silver ch coin. 2. Ratna Chandra Agrawala, Greek Stater in Ancient Indian Epigraphs and Literature, JNSI, XV, pp. 153-154. 3. Ratna Chandra, ibid, JNSI, XV, p. 154. 4. v fque quemfufai yrity 1 0479 1414 374414fufa (37purer II. 12. Text, p. 84, Mysore edn.). 5. danty 46 476 4 2 aai area (fancy, Vol. I, p. 426, fawarfa, ch. 9) 6. See however, for a contrary view, K. V. Rangaswami Iyengar, Brhaspati Smrti. Introduction, pp. 152-156. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COIN NAMES years it began to decline; between 210 B. C. and the time of Augustus its wt. was reduced to 60 grs, and after Nero (A. D. 54-68) to 52 grs.' Its value sank steadily. In 210 B. C. 1 aureus was equal to 15 denārii, in the time of Augustus to 25 denarii, till in the beginning of the third century A. D. it was only worth three pence and the name applied to a copper coin. It appears that the name was introduced in the realm of Indian coinage during the reign of the Imperial Kushāņas who applied it to their gold issues. The Indian literary evidence shows that the ar was generally a coin of gold. In the Jaina Kalpasūtra a necklace is said to be strung with gold dināras. The raffa refers to a cr as a synonym of a gauf which was equal to 12 धानकs'. The वासवदत्ता of सुबन्धु (c. 5th century A.D.) mentions दीनार to have been a gold coin, where the sun is compared to a gold दीनार seen in the eastem horizon (प्राचीकाञ्चनदीनारचक्रे इव); the दशकुमारचरित (c. 7th cent. A. D.) refers to 16,000 dināras without specifying the metal. The gold coins of the Guptas are mentioned in a number of inscriptions as dināras, and in one place both the air and the auf coins are mentioned together. There is, however, a reference in the original Panchatantra, as reconstructed by Edgerton, to the dināra coins of silver, but it may there be a generic term for coins. The reference in the info will seems to be a gold coin of the Kushāņa period, the form of the name दीणरि in the female gender (थीणामाणि = स्त्रीनामानि) being nearer to the original denārii, where as in the Gupta period the form everywhere is the masculine dinara (cf. षड्दीनारान् अष्ट च रूपकानायीकृत्य).' 13. आदिमूल कार्षापण-The term is explained by the अंगविज्जा itself as denoting the पुराण or ancient punch-marked silver coins, which were still current as the standard money for revenue assessment during the Gupta period, as shown by the Sukraniti. 14-16. उत्तम, मध्यम, जघन्य कार्षापण-It mentions the कार्षापण coin as of high, middle and inferior value. It is difficult to be precise about the denotations. But in the काशिका commentary (जातरूपेभ्यः परिमाणे, IV. 3.153) we have a mention of a gold Karshapana (हाटकं कार्षापणम्) which very likely was the उत्तमकार्षापण of the अंगविज्जा . Taking out as a general term for a coin, the gold p ut of the Kasika would be the same as the out or दीनार. The मध्यम कार्षापण would refer to coins of silver and the जघन्य कार्षापण to those of copper, viz, the नाणक pieces. 17. बाल कहावण-The अंगविज्जा explains it as the new coins, distinguished as such from the old (पुराण) Kārshāpanas. These must have been the cast coins, and not punch-marked. As a matter of fact, the GT4hs, the 55514hs would all come under this general class of 'recent' coins. 1. E. Warre Cornish, Concise Dictionary of Greek & Roman Antiquities, p. 768. 2. Kalpastitra, Eng. Translation by H. Jacobi. S. B. E., XXII. p. 233; in the vitafque, ruta (a necklace of dinara coins) is an ornament produced by the माणिकांग कल्पवृक्ष. 3. कार्षापणो दक्षिणस्यां दिशि रूढः प्रवर्तते । पणैर्विद्धः पूर्वस्यां षोडशैव पण: स तु ॥ ११६ ।। पञ्चनद्याः प्रदेशे तु या संज्ञा व्यावहारिकी । कार्षापणप्रमाणं तु निबद्धमिह वै तया ॥ ११७ ॥ arafuntsarah gera wita HD 4 4 1 GIGYT auf Pir ( 76) fara: a: !! C II (Freefa 86 370; wasic, Vol. 1. p. 330) For afront the v. I. is 34+5+1, which was probably the correct reading. 4. The varr edn., Calcutta, 1933, p. 121 5. forget the for AR10174, Nirnaya Sagar edn., II. p. 97. 6. Flect C. II., III, Nos. 5, 7, 8, 9, 62, 64. 7. Ibid., No. 64, cf. Allan, Coins of the Gupta Dynastics, p. cxxxiv. 8. अथ तत्र धर्मबुद्धिर्नाम यः सार्थवाहसुतस्तेन कस्यचित् साधोः पूर्वस्थापितं कलशिकागतं स्वभाग्यप्रचोदितं रौप्यदीनारसहस्रं प्राप्तम् । (धर्मबुद्धिgegfel, 19ada, Poona edn., p. 42). 9. Baigram Copperplate Inscription of the Gupta year 128 (-448 A.D.), Ep. Ind. XXI, p. 81 f., D. C. Sarkar, Select Inscriptions, p. 344. 10. feat write RT I 14-1: 7 74: : . ... ya-life, I. 181-182 ff. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGAVIJJA 18. 714--It was both a generic term for all kinds of coins and a specific denomination of the copper coin which was much inferior in value (असारगत) to a कार्षापण mentioned as सारगत. As an instance of the former meaning, we may refer to the correa where one who counterfeits coins is called Penal 114 and an examiner of coins as नाणकपरीक्षी.. This evidence may almost have been of the same age as the अंगविज्जा . The बृहत्कल्पसूत्रभाष्य (II. 1969) also employs the term नाणक for copper (ताम्रमय), silver (रूपमय) and gold (सुवर्ण) coins, but this evidence should be assignd to about the seventh century A.D.? The 7107 coin of lesser value, as pointed out above, was the name for the copper money of the Kushäņas, which according to the commentator of the fee was also called, frag i.e. the money bearing the figure of Śiva. 19–22. The infool mentions 4 other names of coins of lower denomination, which were once current as sub-multiples of the silver teu and also of the copper 401, as I have shown elsewhere. These were the 419, 3744194, 41hut and 3161, all referred to in the 372911a, the last one called 3711uft. In the infasal passage, the context seems to indicate that these were names of the sub-multiples of the copper णाणक. The माषक would be 5 rattis, अर्धमाषक 25 rattis, काकणी 1.25 rattis and अर्धकाकणी or 319 (i.e. one-eighth 419) 5/8th ratti or 1.125 grs. Of course these were very minute coins, but their existence may be taken for granted. As I have discussed elsewhere, the actual finds of silver punch marked coins have brought to light specimens of even lesser weight. Of course it is rare to find them along with other coins in hoards. The evidence of the Bifuel a text originally compiled in the Kushāņa period and substantially retouched during the Gupta period, thus furnished important data about current coinage in that age. We learn that coins of gold, silver and copper were in circulation, that in gold both the auf and the - were minted as distinct coins, that the older and new coins were current side by side, the older (971) ones being the square or irregular shaped (734) punch-marked (fat) Kärshāpaņas of silver of which the great antiquity was very well understood as shown by the designation cyst Pielu applied to them, that the new copper UT coins of the Kushänas presented a rich series with several inferior coins of lower denominations like the मासक, अद्धमासक, काकणी and अट्ठा, and finally that the old Indo-Greek gold staters (सतेरक) of an earlier age and the new contemporary coins of the Western Kshatrapas known as the u th were also current at one and the same time. BANARAS Hindu University Vasudeva S. AGRAWALA 1. 4erra, II. 240-241. 2. तानमयं वा नाणकं यद् व्यवहियते यथा दक्षिणापथे काकिणी । रूपमयं वा नाणकं भवति यथा भिल्लमाले दुम्मः । पीतं नाम सुवर्ण तन्मयं वा नाणकं भवति यथा पूर्वदेशे दीनारः । केवडिको नाम यथा तत्रैव पूर्वदेशे केतराभिधानो नाणकविशेषः । बृहत्कल्पसूत्र भाष्य on the कारिका II. 1969. 3 India as known to Panini p. 266, see the Table of Kärshāpaņa. 4. merito a i 192444145 #41441fifa Arthasastra, II, 12. Text p. 84. SA note on some minute Silver Punch-marked Coins of the Raupya Mashaka Series, JNSI, XII, 164-171. Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ णमो त्थु णं महइमहावीरवद्धमाणसामिस्स ॥ पुव्वायरियविरइयं अंगविज्जापइण्णयं । 5 [ पढमो अंगुप्पत्ती अज्झाओ] || दै० ॥ नमः सर्वज्ञाय || णमो अरहंताणं । णमो सिद्धाणं । णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं । णमो लोए सव्वसाहूणं । णमो जिणाणं । णमो ओधिजिणाणं । णमो परमोधिजिणाणं । णमो सव्वोधिजिणाणं । णमो अणंतोहिजिणाणं । णमो भगवओ अरहओ असव्वओ महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । णमो भगवईय महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय सहस्सपरिवाराय व सपरिवाराय | अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय अंगुप्पत्ती णामऽज्झाओ पढमो । तं खलु भो ! तमणुवक्खामि । तं जधाअणादिणिधणं णाणं सव्वण्णूहिं पवेदियं । णिमित्तसंगहे उक्कं अट्ठधा उ विभज्जए ॥ १ ॥ अंगं १ सरो २ लक्खणं ३ च वंजणं ४ सुविणो ५ तहा । छिण्ण ६ भोम्म ७ तलिक्खाऐ ८ एमए अट्ठ आहिया ॥ २ ॥ एए महानिमित्ता उ अट्ठ संपरिकित्तिया । एएहि भावा णज्जंति तीता-ऽणागय-संपया ॥ ३ ॥ एएसिं पवरं णेयं णिमित्तं अंगमेव तु । सव्वसुत्त-ऽत्थविण्णाणे एवं संपरिकित्तियं ॥ ४ ॥ रूवाणं जधा सव्वेसिं रखी सिद्धो पगासणे । एवं अंग निमित्ताणं सव्वेसिं त पगासणे ॥ ५ ॥ जधा णदीओ सव्वाओ ओवरंति महोदधि । एवं अंगोदधि सव्वे णिमित्ता ओतरंतिह ॥ ६ ॥ अंग सिद्धं णिमित्ताणं णाणाणमिव केवलं । अजिणो जिणसंकासो अहिआणो भवे णरो ॥ ७ ॥ तस्स सव्वण्णुदिट्ठस्स णिमित्तपवरस्स उ । आगमो आणुपुव्वीए इमो केवलिदेसिओ ॥ ८ ॥ चउव्वीसेण अरहया वद्धमाणेण देसियं । णवण्हं गणजेट्ठाणं बारसंगे सुउत्तमो ॥ ९ ॥ तत्थ बारसमे अंगे दिट्टिवाए जिणेण उ । सुयोदधिम्मि पण्णत्तं णिमित्तण्णाणमेव उ ॥ १० ॥ वद्धमाणेण अरहया जधा तेसिं पवेदियं । णिमित्तणाणं सिस्साणं तेहिं सुतक्कियं तओ ॥ ११ ॥ 10 १ए ए नमः श्रीवर्द्धमानाय ॥ हं० त० । ० श्रीपार्श्वनाथाय नमः ॥ सि० ॥ २ हओ[5]सव्वओ हं० त० विना । 'असव्वओ' यशस्वत इत्यर्थः ॥ ३ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं तेहिं णामं च णेरुत्तं अज्झायाणं इमो कमो । जिणाणं वरणाणीहिं णिमित्ताणं पवेदियं ॥ १२ ॥ इंदिएहिंदियत्थेहिं समाधाणं च अप्पणो । णाणं पवत्तए जम्हा णिमित्तं तेण आहियं ॥ १३ ॥ अंतरंगम्मि उद्वेइ बाहिरंगे अ लक्खणं । तेण जाणंति जम्हा उ णेयं अंगं तु तेण तं ॥ १४ ॥ अंगस्स णामं णेरुत्तं एवं संपरिकित्तियं । महप्पुरिसदिण्णाय लक्खणं तु णिबोधतं ॥ १५ ॥ सत्वे आवेदिया भावा सरीरे पुरिसस्स उ । समासा गमसंजुत्ता अप्पमेया जिणेण उ ॥ १६ ॥ णाम णिरुत्तं अंगं ति अंगविज्जाय तधा व्वए(थए ?) । महापुरिसदिण्णं तं लोगस्सुज्जोयणित्तिया ॥ १७ ॥ तम्हा णाम णिरुत्तं एवं संपरिकित्तियं । महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय उत्तमं ॥ १८ ॥ महापुरिसदिट्ठस्स सयसाहस्ससाधिणो । सहस्सदारजुत्तस्स सयसाहस्समुखस्स य ॥ १९ ॥ वागरणओ अणंतस्स अप्पमेयागमस्स य । महापुरिसदिण्णाए अज्झायाणं इमो कमो ॥ २० ॥ 10 अंगुष्पत्ती ति अज्झाओ १ तहा य जिणसंथवो २ । सिस्सोवक्खावणे चेव ३ अंगस्स य तहा थवो ४ ॥ २१ ॥ मणित्थवो य अज्झाओ ५ णेयो आधारणे तधा ६ । वागरणोवदेसो य ७ भूमिकम्मं तहेव य ८ ॥ २२ ॥ मणि ९ आगमणज्झाओ १० पुच्छियम्मि तहेव य ११ । जोणीसु यावि अज्झाओ १२ कमसो परिकित्तिओ ॥ २३ ॥ जोणिलक्खणवागरणे १३ अट्ट दारा तओवरि । अटेवण्णे य अज्झाया तेसिं वा वि इमो कमो ॥ २४ ॥ अत्थदारं १४ संगहद्दारं १५ पयादारं १६ आरोग्गद्दारं १७ जीवियद्दारं १८ कामदारं १९ वुट्ठिदारं २० 15 विजयद्दारमिति २१ ॥ आणुपुव्वीए अद्वैए अज्झाया दारसण्णिया । तओवर पसत्थो य २२ अप्पसत्थो य आहिता २३ ॥ २५ ॥ अज्झाओ जातिविजयो २४ गोत्तज्झाओ तहेव य २५ । णामज्झाओ य २६ ठाणे य २७ कम्मजोणी तहेव य २८ ॥ २६ ॥ णगराणं च विजये २९ जोणी आभरणेण य ३० । वत्थजोणी ३१ धण्णजोणी ३२ जाणजोणी य कित्तिया ३३ ॥ २७ ॥ संलावे य तहा जोणी ३४ विसुद्धी य पजासु य ३५ । दोहले ३६ लक्खणे चेव ३७ अज्झाओ वंजणम्मि य ३८ ॥ २८ ॥ कण्णवासणयज्झाओ ३९ भोयणा ४० यरियगंडिया ४१ ।। सुविणे य ४२ पवासे य ४३ अद्धा ४४ पावासियम्मि य ४५ ॥ २९ ॥ पवेसे चेव ४६ जत्ताय अज्झाओ ४७ य तहा जयो ४८ । पराजयो य अज्झाओ ४९ तहेव य उवद्दुओ ५० ॥ ३० ॥ देवयाविजयो चेव ५१ णक्खत्तविजयो ति य ५२ । उप्पाए चेव अज्झाओ ५३ सारासारे तहेव य ५४ ॥ ३१ ॥ णिधाणे ५५ णिव्विसुत्ते य ५६ णटे य तह कोसओ ५७ । चितिए चेव अज्झाओ ५८ कालज्झाओ तहेव य ५९ ॥ ३२ ॥ 20 १ गेण लं० सं ३ पु० ॥ २ महापु हं० त० सि० ॥ ३ आवसिआ हं० त० । आवासिआ सि० ॥ ४ तधा जुए हं० । तच्चा जुए त० ॥ ५ साहिणो हं० त० ॥ ६ स्स पसाहस्स सुखस्स य हं० त० विना ॥ ७ रणं उ अ हं० त० विना ८ अज्झाओ सप्र० ॥ ९ पयमद्दारं सप्र० ॥ १० भुविद्दारं सप्र० ॥ ११ ‘णा ४० रिय हं० त० विना ॥ १२ तधा ठाणेसियम्मि य सं ३ पु० सि० | तहा वायासियम्मि य हं० त० । तहा वायासियम्मि य ४४ ॥ २९ ॥ पवेसे चेव ४५ जत्ताय ४६ अज्झाओ अ तहा जओ ४७ । पराजओ अ अज्झाओ ४८ तहेव य उवहुओ ४९॥ ३० ॥ देवताविजओ चेव ५० णक्खत्तविजओ त्ति अ५१ । अप्पाए चेव अज्झाओ ५२ सारासारे तहेव य ५३ ॥ ३१ ॥ णिहाणे ५४ णिव्विसुत्ते य ५५ णटे अतह कोसओ५६ ।चिंतिए चेव अज्झाओ ५७ कालज्झाओ तहेव य ५८ ॥ ३२ ॥ विजओ पुरिमभावाणं ५९ पवित्तिविजओ तहा ६० । सटुिं एए अज्झाया संगहे परिकित्तिया ॥ ३३ ॥ इत्थं अध्यायाङ्क-पाठादिविपर्यासो हं० त० आदर्शयोः दृश्यते । अन्यासु प्रतिषु अध्यायाङ्का एव न वर्त्तन्ते । मया तु यथायोग्यमङ्क-पाठादिपरावर्तनं विहितमस्ति, तदत्र तज्ज्ञा एव प्रमाणम् ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइओ सिस्सोपक्खावणअज्झाओ विजयो पुरिमभावाणं ६०/१ उववत्तिविजओ तओ ६०/२ । सव्वे वि सट्ठि अज्झाया संगहे परिकित्तिया ॥ ३३ ॥ महापुरिसदिण्णाय सव्वभावपरूवणा । अणागयमतिकंता भावा तह य संपया ॥ ३४ ॥ F जीवा-ऽजीवसंजुत्ता सव्वे एयं पवेइआ । हिअयं सव्वभावाणं सव्वण्णूहिं पवेइअं ॥ ३५ ॥ क संगहो सट्ठिमज्झाया अंगविज्जाय एस उ । एयं सम्ममधिज्जित्ता अणंतगमवित्थरं । महापुरिसदिण्णं तु सव्वण्णू व वियागरे ॥ ३६ ॥ ॥ अंगुष्पत्ति त्ति अज्झाओ सम्मत्तो ॥ १ ॥ छ ॥ [बितिओ जिणसंथवज्झाओ] 000000000 G || णमो अरिहंताणं ।। अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय जिणसंथवो णामऽज्झाओ । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामो । तं जहा-सयंसंबुद्धा वीतराग-दोसा सयंभुणो तमरयोघमलणा सेव्वण्णू सव्वदरिसिणो सव्वलोगपवरा संजम-तवविपुलमंडणा पवरतेयस्सया दित्तरस्सी केवलणाणसंभवो लोकम्हि वितिमिरकरा लोगस्सुज्जोयगरा 10 जिणसूरा सव्वजोइपवरा । जेहिं इमं बारसंगमखिलं सुयणाणं देसियं, पदीवो अक्खयो, दीवणं असेसस्स जगतीभावाणं, सव्वभावदंसीहिं भासियं बारसंगसुयणाणभूसणं भूमिकम्मवरभूमिसुप्पइट्टियं मणिकरुयकसट्ठियज्झायविचित्तं बंधविविहचारुकडभिसुद्धपओदग्गविमलच्छे णेकवागरणतमसंधीय पाक्कडपडाकुदये सव्वलोकदीपे आदिकरे धुतरये लोगायरिए सव्वविदू पवरमहिए णिमित्तवरदेसके जिणवरे | गई पवरं पत्ते वंदामि सव्वसिद्धे । अंते मझे असंगा चतुमतीणिउणबुद्धि अणगारा संथुया लोगसंथवारिहा ।। ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाए अंगविज्जाए जिणसंथवो णामऽज्झाओ ॥ २ ॥ छ । [तइओ सिस्सोपक्खावणअज्झाओ] बंभणं खत्तियं वेस्सं तओ वण्णे यथाविहिं । अंगमज्झावए सिस्सं अंगविज्जाविसारदे ॥ १ ॥ एतेसुं दिज्जवण्णेसु भिण्णाचार-पलाविणो । जे दुम्मेहा य थद्धा य ण ते अज्झावए विदू ॥ २ ॥ रायण्णं उग्ग भोगं वा राजवंसकुलुग्गयं । सिस्सं सिस्सगुणोपेयं अंगविज्जं तु गाहए ॥ ३ ॥ पिइवंस-माइवंसेहिं विसुद्धे भद्दगे विणीए य । कुलीणकुलसंभूए सीलवंते गुणण्णिए ॥ ४ ॥ जाईइ कुल-रूवेण सीला-ऽऽचारगुणेण य । पदक्खिणेण विणएण मईअ य अलंकिए ॥ ५ ॥ जाईमंते अणुस्सित्ते कुलीण-विणयण्णिए । सुअवं ण य चाउल्ले सोडीरो ण य कोधणो ॥ ६ ॥ १ हस्तचिह्नान्तर्गतोऽयं श्लोक: हं० त० आदर्शयोरेव वर्त्तते ॥ २ सढेि एए अज्झाया हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ वक्खाइस्सा हं० त० ॥ ५ सव्वण्णू सव्वजोइपवरा संजम हं० त० विना ॥ ६ लोगम्मि हं० त० सि० ॥ ७ जिणुत्तरा हं० विना ।। ८ भूसियं भूमि हं० त० विना ॥ ९ च्छणे । कवा हं० त०॥ १० तमबीऽपा... डपडागुदए हं० । तमबीअपाक्कडपडागुदए त० ॥ ११ “कदेवीआ' हं० त० ॥ १२ ज्झे य सं' हं० त० विना ॥ १३ “गा भवतु सप्र० ॥ १४ जहाविहिं हं० त० ॥ १५ गुणुण्णिए हं० त० ॥ १६ गुणेहि य हं० त० विना ॥ १७ सईअ सि० ॥ १८ अकलंकिए हं० त० ॥ १९ सुयवण्णए य चापल्ले हं० त० विना ॥ Jain Education Interone Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं पिया-ऽभिरामो कंतीए जुत्तो रूवेण रूपवं । अखुयाचार-सीलेणं चारित्तगुणसालिणा ॥ ७ ॥ पसत्थलक्खणोपेए उत्तमा-ऽभिजणागई । सर-सत्तसमाउत्तो गइ-गारवसारवं ॥ ८ ॥ अलुद्धो धिइमंतो य धेम्मिको धम्मजीवणो । धम्मसुई धारयिता धम्मे धणियणिच्छयो ॥ ९ ॥ अकोधणो अफरुसो अत्थद्धो ण य कक्कसो । अपरोवयावी णियओ अतिण्हो ण य आइलो ॥ १० ॥ अपरिसावी थिमिओ अपावो अणुसूरको । आयरियमोवादकरो रिजू अपरिभावको ॥ ११ ॥ जिणसासणाणुरत्तो सोम्मो दंसणकोविदो । णिच्चोपजुत्तो आभोगे जुत्तजोगो समाहिओ ॥ १२ ॥ मधुरालाव-संलावरो णिट्ठियभासओ । आदेयवक्को सुगिरो वायो-गइविसारदो ॥ १३ ॥ णिधाणं सुरहस्साणं अत्थे अभिणिवेसवं । तच्चित्तो तम्मणो णिच्चं आधारे दोसणिच्छयो ॥ १४ ॥ णिम्ममो णिरहंकारो णापमाणी परम्मि य । देवे य सम्माणइता गुरुं माणइता सया ॥ १५ ॥ उग्गेण्हंतो य ऊहाय अपायोपायधारको । चउप्पकाराय वि हु जुत्तो बुद्धीय बुद्धिमं ॥ १६ ॥ दक्खो दक्खिण्णवं णिउणो णीयावत्ती पियंवदो । परस्स चित्तग्गहणे उपायपरिणिट्ठिओ ॥ १७ ॥ जियमाणो जियकोहो जियमाई जियसंसओ । जियलोभो जियभयो जियणिदो जिइंदिओ ॥ १८ ॥ असाहसो अचवलो अवस्थियमवेगिओ । अणुब्भडो अरभसो अणुज्जलमचंचलो ॥ १९ ॥ समयाधिगओ पुव्वं जिणसासणणिच्छिओ । उव्वत्तजोव्वणो किंचि विज्जागहणपच्चलो ॥ २० ॥ बुद्धिमं गूढमंतो य गुरूणं वयणे रओ । चित्तमुत्तममेधावी धारणोपायकोविदो ॥ २१ ॥ विणीयविणओ दंतो साधुजुत्तो दढव्वयो । णीरोगो साहुसंपन्नो सच्चसंधो यदाणओ ॥ २२ ॥ विज्जा-चरणसंपन्नो आसं गंधविसारदो । आदेज्जवयणो सूरो कयण्णू णयकोविदो ॥ २३ ।। इंगियाकारकुसलो पंडिओ पइभाणवं । अहिणंदियसवग्गो जितसाहस-मच्छरी ।। २४ ॥ पंडिपुण्णंग-पच्चंगो देस-कालविसारदो । खिप्पकारमसंभंतो तव्विज्जाणुमओ सया ॥ २५ ॥ परिसाहसतो लज्जो तहा बहुगयागमो । सदा गुरुहिते जुत्तो मधुरो परमणेव्वुओ ॥ २६ ॥ अभीओ हीणलोभो य ण प्पमायी तहेव य । जो विरुद्धाणि साहूणं णायरे ण ई मुज्झइ ॥ २७ ॥ सहसीलमदंतं वा अभत्तीण व जो सणे | साहसीमप्पसंतं वा विज्जामेए ण गाहए ॥ २८ ॥ थद्धो चंडो पमादी य रोगी अविणीओ तहा । मिच्छद्दिट्टी व जो मिच्छो अंगं से णाभिजाणइ ॥ २९ ॥ G अरहंता-ऽऽयरिअपरो सम्मद्दिट्ठी चरित्तवं । ॐ सुई अमाई मेहावी सीसो से परिकित्तिओ ॥ ३० ॥ समहत्थ-पादो समगत्तो समसंठाणसंठिओ । सुतवितेहिं सोतेहिं अंगं सो अभिजाणई ॥ ३१ ॥ मिदुहत्थ-पादो मिदुगई मिदुलोमो मिदुच्छवी । मिदुआलाव-संलावो अंगं से अभिजाणई ॥ ३२ ॥ हस्सेण हत्थ-पादेण मिदुणा सप्पभेण य । उजु-वट्ट-दीहगत्ते य अंगं से अभिजाणई ॥ ३३ ॥ सुहुम-प्पसण्णदिट्ठी य अणिट्ठरे मणवित्तओ । एवंलक्खणसंपण्णे अंगं समभिजाणई ॥ ३४ ॥ १ अक्खुताचा हं० त० । अक्खयाचा सि० ॥ २ धम्मिओ धम्मजीवओ हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्नमध्यगतः पाठः हं० त० एव ॥ ४ अक्कोहणो हं० त० ॥ ५ आविलो सि०॥ ६ अपरिभावी विसिओ अपावोऽणसूरए हं० त० ॥ ७ सोमो हं० त० ॥ ८ जोगजुत्तो सि० ॥ ९ परिणि हं० त० ॥ १० नायोगइ हं० त०॥ ११ णिधाणमरह सि० विना ॥ १२ आहारो दोस' हं० त० ॥ १३ ओगिर्णिहतो हं० त० ॥ १४ य जहाय सप्र० ॥ १५ अप्पाओपा” हं० त० ॥ १६ जियकोधो सि० । जियकोधी सं ३ पु० ॥ १७ गुरुणो सि० ॥ १८ संपत्तो सं ३ पु० ॥ १९ पइसावणं हं० त० विना ॥ २० “यसव्वंगो सि० । 'यमव्वग्गो हं० त० ॥ २१ परिपु हं० त० ॥ २२ कारीम हं० त० ॥ २३ लज्जू हं० त० ॥ २४ तहा तम्मग्गगाहगो सि० । तहा त...मगा............. । सं ३ पु० ॥ २५ य हं० त० ॥ २६ लमुदंतं सप्र० ॥ २७ सहसी' हं० त० विना ॥ २८ हस्तचिह्नान्तर्गतं पूर्वार्द्ध हं० त० एव वर्तते ॥ २९ मुसवितेहिं हं० त० विना ॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो अंगत्थवऽज्झाओ || एवमादीहिं अण्णेहिं गुणजुत्तो गुणण्णिओ । स सिस्सो सिक्खवेयव्वो जिणोत्तं अंगमेव 룸 11 ३५ ॥ तेण चाऽधीयता अंगं वसया गुरुकुलम्मि य । केओ उ इमो णियमो जाव विज्जं समाए ॥ ३६ ॥ सुची सुचिसमायारो बंभचारी जितिंदिओ । अच्चए य जहासत्ति देवता - ऽतिथि- साहवो ॥ ३७ ॥ अंजणं दैतपवणं गंधं मल्लं विभूषणं । मच्छं मंसं महुं मज्जं णवणीयं विवज्जए ॥ ३८ ॥ कालापरण्णपिंडीओ "विमिलीसेलणालिकं । सणं कुसुंभकं कण्णिवल्लीबंधं च यग्गिकं ॥ ३९ ॥ जाणि विक्ख-रुखादीणि कंटका (की?)णि कडूणि य । असुईसंगठाणा य सव्वाणि परिवज्जए ॥ ४० आहारसुद्धिहेउ य इमाणि वज्जए सदा । सूतिकाभत्त-पाणं च खरुद्दिट्ठऽण्णवज्जए ॥ ४१ ॥ तत्कलाओ य कुच्छियाओ[5] सुचीणि य । वज्जइत्ता चरे दंतो साधूणिज्जेसु गोयरं ॥ ४२ ॥ थणिए विज्जुयायं च णीघाए भूमिकंपए । उक्कापाए दिसीघाए आपाके अधिकंतणे ॥ ४३ ॥ सुसाब्भासमेलूगे अमेज्झ मतसूतके । अद्दे य मच्छ- मंसम्मि वसायं सोणियम्मि या ॥ ४४ ॥ कंटकी - खाणु-कम्मण्णे पासाण - ऽट्ठिअसंकुले । करीस-च्छारसंकिण्णे गंगमज्झावर विदू ॥ ४५ ॥ सुक्कवासाजलब्भासे सद्दले हरिए तणे । खीरविक्खसमब्भासे मंगल्ला जिणपादवा ॥ ४६ ॥ सोमम्मि देवतब्भासे पुलिणे सण्हवालुगे । गोट्ठाणम्मि सिलापट्टे समे देसे सुभम्मि य ॥ ४७ ॥ सुचिम्मि सुचिसामंते अगारे सुक्किले सुभे । अंगमज्झावए सिस्सं सुइ- सुक्किलवाससं ॥ ४८ ॥ अरहंत मंगविज्जाय पैणामो चैव कायव्वो । णमोक्कारअधीए य अणण्णमणसा यव ॥ ४९ ॥ आयरिय-गुरु- देवाणं पायविणएण य । उवायणिद्देसवया लहुं विज्जा विवद्धए ॥ ५० ॥ एवं सुस्सवमाणस्स विज्जागुरुजणं तथा । आयरियाण गुरूणं च अंगविज्जा समिज्झए ॥ ५१ ॥ एएण विधिकप्पेण सिस्समज्झावए तु जो । मणुज्जो णिव्वुई किति जसं वा वि स पावइ ॥ ५२ ॥ एवंगुण- समायारो सीसो एवं तु सिक्खइ । आदेसपागडजसो पूयं पावइ उत्तमं ॥ ५३ ॥ इति परिकहियजधोवदेस जधविणण सुउत्तमं सुसिस्सो । अरिहइ मणुए देवपूयं, विउलफलं सुयमंगमागमत्ता ॥ ५४ ॥ ॥ महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय सिस्सोपक्खावणो [णामऽज्झाओ सम्मत्तो ] ॥ ३ ॥ छ ॥ [ चउत्थो अंगत्थवऽज्झाओ ] अरहंताणं । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय अंगत्थवो णामऽज्झाओ । तं खलु भो ! तमणुर्वैक्खयिस्सामि । तं जधा - गुणगणधारए धुयरय - कलुसे णित्थिण्णजरा - मरणे सव्वदुक्खाणं णभमिव 25 अंतपारं सव्वगए अनंतनाणविसए सव्वामरा - ऽसुर- मणुयमहिए सिरसा सतोसो अभिवंदिऊण सिद्धे, जिणजाणवसभे वितिमिरे धुतरये वरणाणणाणणाणी य णमंसिऊणं, आभिणिबोहियणाणी - सुयणाण-मणपज्जवणाण - ओहिणाण-परमोहिणाणकेवलणाणी य सव्वभावण्णुणो वीयराए जे अणगारे वंदिऊण, सततं सुरा - सुर-पवरणरवइ - पतगपति-र्भुजगपणिवतियसंपूइँयमंगमभिवंदहे उड्डमहो- तिरियदिसि - विदिसिणिग्गयजसे विधूयरय-मले समे समणे । १ य हं० त० ॥ २ कहिओ य इमो सि० ॥ ३ दंतवणं हं० त० सि० ॥ ४ च वज्जए हं० त० ॥ ५ कालायरण्णपिं सं ३ पु० । कालायरण्णो पिं सि० ॥ ६ विमलीसेणणा सि० ॥ ७ णिपल्ली' हं० त० विना ॥ ८ 'गवाणा य हं० । 'गवाणी य सं ३ पु० त० ॥ ९ पत्तभत्त सं ३ पु० । जिपअभत्त हं० त० ॥ १० अधिविकं हं० त० ॥ ११ मयलूतगे हं० त० विना ॥ १२ खीखच्छस्सम हं० त० ॥ १३ पणमो हं० त० ॥ १४ 'रियसुभदेवाणं सि० विना ॥ १५ गुरुणं सि० विना ॥ १६ णाममज्झाओ हं० त० ॥ १७ वक्खाइस्सामि हं० त० ॥ १८ णधराण ( धरणे ? ) धुय हं० त० विना ॥ १९ मिय अंत सं ३ पु० ॥ २० तविन्नाण सि० ॥ २९ पन्नग हं० त० ॥ २२ इयं संगमभि सं ३ सि० पु० ॥ 5 10 15 20 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ अंगविज्जापइण्णयं जल-अणिलजगतिजगभूयं लोकाऽलोकबहुभावभावियविमिसिंतं वितिमिरकरणं सु(सू )रमभिवंदियं ।। तमभिवंदहे सिरसा वागरणमगरचरियं अणंतपारमप्पमेयं धिइसुविधिविपुलवेलं मतिसलिलमंगमुदधि । ठाणम्मि अप्पमेधायं सण्णासुजातमूलविण्णाणविपुलमेधं आमासविविहसाह-प्पसाहविडिएअं विविधणयपवालरुचिरसोभि वागरणपुष्फ-फलसुरभिसरसं विइत्तेविपुलजसपतीकवितड्डीकं अंगवरवेइअं । 5 वंदहे सुमणसोणयविविहबहुहातुकंदुकसिहरं सज्झायसुतोघविपुलप्पसूए सणांपवायमणिकवरविपुले समणुगयसव्वभाववागरणवालपविचरियं णिपुणणयविपुलकंदरगुहं सुयपव्वयतुंगमंगं । अभिवंदहे मिगवरअणंतपडिपुण्णसुभसरीरं ववसायविपुलवेगं वागरणविविह-सुद्ध-घणतिक्खदाढं मणिकवरबलोघ- . अजिअगइविण्णाणविसुद्धदिहिं तत्तत्थसुदिट्ठदीवोतुणिग्गयजसविपुलसीहणादं कणयमंगायुधर्मलणं मिगराजमंगसीहं । वंदामि असरिसबलपुरिसमणिकवरविपुलकायं ववसायधिईहत्थं अपरिमियकालवागरणणाणचक्खं सुपतिट्ठियं 10णिट्ठियत्थसज्झायचारुगब्भचरणं गोल(लु)ण्णयविहिसुविभत्तउच्छंगविपुलदंतं वागरणविविहगम्मीरम्मं वाआलापमधरविघुट्ठणाययप्पसूयं मदसुगंधगंधी णाणवरगयमंगवरवारणं उदग्गं ।। अभिवंदहे विविधसज्झायसुतोघणिचियकोसं मणिकवररयणसारणयविहिचउरंगवाहिणिबलोपवेयं अणंतगममखिलविपुलविसयं वागरणसुप्पसायं सुजायबलसव्वणाणविसए सुलद्धविसयं विण्णाणविपुलअपडिहयविजयकेतुं सुयराय[मंगं] चउरंगअप्पइमो त्ति 15 ॥ यधा खलु [भो !] महापुरिसदिण्णाय० अंगत्थवो णामऽज्झाओ. चउत्थो ॥ ४ ॥ छ । [पंचमो मणित्थवज्झाओ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय मणित्थवो णामऽज्झाओ । [तं खलु भो ! तमणुवक्खइस्सामि] । तं जधा-तमतिमिरपडलविधुतरय-मले जर-मरणकिलेससंगतिण्णे णाणवरपवरोवधिपणतमिव समणुगयसव्वणाणविसए सिरसा सयओ अभिवंदिऊण सिद्धे, जिणवसभमपच्छिमं धुतरयं संतिण्णसव्वदुक्खं वंदिय, 20 पवरमप्पमेयणाणं वरधम्मबारसंगसुयदेसकं वरजसं लोगायरियं वदित्तु वद्धमाणं केवलिं अट्ठपयदेसकं सव्वलोक समणुगयसव्वभावदयापरं रयणाणमागरं वागरणोदधि, उप्पायणिमित्तणाणवरसागरं अणंतमेरुमिव विविधधातुचित्तं वागरणजोणिवरधातुणाणसिहरं अचलं जेसण्णाणण्णाणवरमेरुलोकं हिययं भावाणं अणंतगमसंपयुत्तं अंगसारभूयं अंगहिययं मणिवरं वदामि सुज्झियमणसो विणएण वीसत्थं । जेण भगवया परित्तपदसंगहेण गहिया अणंतगमवित्थडा जसपदा, तं अंगसारभूयं लोकहिययं असेसं अणंतजिणदेसियं मणिवरं अणंतचिंतासव्वभावविण्णाणपत्तविसए सुलद्धविसयं वंदामि 27णिययं वरजसं सुविहियमणगारसंपूइयं ।। ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय मणित्थवो णामऽज्झाओ सम्मत्तो ॥ ५ ॥ छ । १ जगइजग हं० त० ॥ २ 'भाववियमिसितं हं० त० विना ॥ ३ "डिए विवि हं० त० विना ॥ ४ सुरसं विपत्त' हं० त० विना ॥ ५ त्तजसविपुलपता हं० त० ।। ६ ताकं वितरीकं हं० त० विना ॥ ७ सोइयवि हं० त० ॥ ८ कंटुक' हं० त० ॥ ९ “प्पावाय' हं० त० विना ॥ १० वरवलुप्पअजिअगइविण्णा' हं० त० । वरबलौघअइतराइविण्णा सं३ पु० सि० ॥ ११ 'सुद्धदिट्ठदिढेि तत्त हं० त० ॥ १२ दिहदीपोतुणिग्गयजण्णससिविपुल हं० त० विना ॥ १३ “मलणमिग हं० त० विना ॥ १४ वाआलोयमधुरविप्पुद्धणातयप्प हं० त० विना ॥ १५ नामाज्झाओ हं० त० ।। १६ “पवसेवयेएणभमिव हं० । “पवरोवयेएणभमिव त० ॥ १७ सतओ हं० त० विना । 'सयओ' सयतः, प्रयत इत्यर्थः ।। १८ गमुवएसकं हं० त० ॥ १९ वंदिअ वद्ध हं० त० ॥ २० अट्ठपरिदे हं० त० विना ॥ २१ "ण सागरं हं० त० विना ॥ २२ जसण्णाणगोणवर' हं० त० विना ॥ २३ मुणि हं० त० विना ॥ २४ मुज्झिय सप्र० ॥ २५ भगवंतं प हं० त० विना ॥ २६ लोकहियं सि० ॥ २७ संभूइयं हं० त० विना ॥ २८ णाम अज्झा' हं० त० ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो वागरणोपदेसऽज्झाओ [ छट्टो आधारणज्झाओ ] णमो अरहंताणं । [ अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय ] आधारणो णामऽज्झाओ । तं खलु भो ! तमणुर्वक्खस्सामि । तं जधा - जिणवरमयाणुरत्तो णिग्गंथसासणरओ असंको आयरिओवदिट्ठसुत्तत्थणिच्छियमई इरिएसणा-ऽऽदाण-भास-ग्गहणपसाससमिइजुत्तो पेडिपुण्ण अंगविज्जासुणयसुपरिणिच्छियकरणजोगो अंगरक्खाणिगमणिणिच्छियमई अप्पाणे बाहिरे तदुभये वा सण्णं निवेसइत्ता थी- पुं- णपुंसगेसु आमासत्थसयं सम्मं 5 अविर्यक्खयाणं णिगुणम्मि अणुरागं सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधादिके व गुणे दुविहम्मि य बाहिर - ऽब्भंतरम्मि अंगे अविक्खियाणं णिस्संकियमुप्पण्णं आधारणाय उपायं अंगवी ववसिओ अंणाइलोयणओ अत्तमाणो अभीओ ण वि य पडिनिवेसा ण वि पेम्मा सव्वसमत्थमाधारए गु ( उ ) णाणी ॥ | महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय [ आधारणो णामऽज्झाओ सम्मत्तो ] ॥ ६ ॥ छ ॥ [ सत्तमो वागरणोपदेसऽज्झाओ ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाए अंगविज्जाए वागरणोपदेसो णामऽज्झाओ । तं खलु भो ! तमणुवक्खाइस्सामि । तं जधा-आधारिय णाणी सम्मं जीव- अजीव - बाहिर - ऽब्भंतरं अंगं कारण- णिमित्तविसए अणागया ती - वट्टमाणगुणलद्धविसयो दसदिसासमणुगयभावो उप्पण्णुप्पायलद्धचक्खु एकत्त- पुहत्तउवट्ठियणाणविसयोवलद्धीयं अप्पणो सुतबलोघर्जेणिओहासो णाणी तु वियागरिज्ज एवं - पयहिऊण राग-दोसे मुक्खपधगवेसओ पवयणस्स णाणगुणभावभावणट्टयाय परोवघातवागरणा जीवमज्झत्थभावभूओ से पत्थारइतु सोहं अभीओ ण वि य सप्पहासं 15 सुद्धवसिईओ अँदीणो तत्तत्थं उट्ठियं न वि य संकियं ण वि यऽणुप्पण्णं वागरणपागडं बहुजणबहुगुणणिव्वुईकरं पच्चक्खघातिकं पवयणस्स दीवणा न खलु लघु समत्थ वियागरेज्जा । इमा य पुच्छा उप्पण्णे कारणंसि आधारयित्तु ववसिए अणिरुद्धे कीले अणुरत्तो जयं पराजयं वा राजमरणं वा आरोग्गं वा रण्णो आतंकं वा उवद्दवं वा मा पुण सहसा वियागरिज्ज णाणी । लाभा - ऽलाभं सुह- दुक्खं जीवितं मरणं वा सुभिक्खं दुब्भिक्खं वा अणावुट्ठि सुवुट्ठि वा धणहाणि अज्झप्पवित्तं वा कालपरिमाणं अंगहियं तत्तत्थणिच्छियमई सहसा उ ण वागरिज्ज णाणी । अंगं गवेसिऊण 20 णं णाणी एयाणि कारणाणि तु परेण परिपुच्छिउ सयं वा गवेसिऊण सम्मं उप्पन्नं पिक्खिय उप्पायं तत्तत्थगवेसणाय सम्मं गवेसिऊणं उप्पायं पवत्तयकारणगुणोववण्णो णाओपवण्णयअणुप्पन्नं कारणं किंचि समुप्पायं ॥ ॥ महापुरिसदिण्णाए० वागरणोपदेसो णामऽज्झाओ सम्मत्तो ॥ ७ ॥ छ ॥ १ 'वक्खाइ हं० त० ॥ २ परिपु हं० त० विना ॥ ३ अभक्खा हं० त० ॥ ४ वा सइण्णं (= सइं णं ) निवेसइत्ता हं० त० ॥ ५ अमोस हं० त० विना ॥ ६ 'यक्खिणाआणं णि हं० त० ॥ ७ तरियम्मि सि० ॥ ८ णिण्णस्संकिमु हं० त० ॥ ९ उवप्पायं हं० त० ॥ १० अणायलो हं० त० विना ॥ ११ णाम अज्झा हं० त० ॥ १२ अंगकारण सं ३ ॥ १३ हं० त० विनाऽन्यत्र - णिमित्तपरिण्णाणणाणीण णाणागुणलद्धि सि० । सं ३ पु० प्रतिषु रिक्तं पाठस्थानम् ॥ १४ जणिअहा हं० त० सि० ॥ १५ 'गुणभावणट्ट हं० त० ॥ १६ पत्थावइत्तु मोहं हं० त० विना ॥ १७ अदीणोत्तत्थं हं० त० ॥ १८ णिव्वुइत्तीकरणं पच्च हं० त० ॥ ९९ काले रण्णा जयं हं० त० ॥ २० विआकरिज्ज हं० त० ॥ २१ "लाभं दुःखं सुखं वा जी हं० त० विना ॥ २२ नामं अज्झा हं० त० ॥ 10 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ] [तत्थ पढमं गज्जबंधेणं संगहणीपडलं] णमो अरहंताणं, णमो सव्वसिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं, णमो महापुरिसस्स महतिमहावीरस्स सव्वण्णू-सव्वदरिसिस्स । इमा भूमीकेम्मस्स विज्जा-इंदिआली इंदिआलि माहिंदे मारुदि 5 स्वाहा, णमो महापुरिसदिण्णाए भगवईए अंगविज्जाए सहस्सवागरणाए खीरिणिविरणउदंबरिणिए सह सर्वज्ञाय स्वाहा सर्वज्ञानाधिगमाय स्वाहा छ सर्वकामाय स्वाहा सर्वकर्मसिद्ध्यै स्वाहा । क्षीरवृक्षच्छायायां अष्टमभक्तिकेन गुणयितव्या क्षीरेण च पारयितव्यम्, सिद्धिरस्तु । भूमिकर्मविद्याया उपचार:चतुर्थभक्तिकेन कृष्णचतुर्दश्यां ग्रहीतव्या, षष्ठेन साधयितव्या अहतवत्थेण कुससत्थरे १ ॥ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं, णमो आमोसहिपत्ताणं, 10 णमो विप्पोसहिपत्ताणं, णमो सव्वोसहिपत्ताणं, णमो संभिन्नसोयाणं, णमो खीरस्सवाणं, णमो मधुस्सवाणं, णमो कुट्ठबुद्धीणं, णमो पदबुद्धीणं, णमो अक्खीणमहाणसाणं, णमो रिद्धिपत्ताणं, णमो चउद्दसपुव्वीणं, णमो भगवईय महापुरिसदिन्नाए अंगविज्जाए सिद्धे सिद्धाणुमए सिद्धासेविए सिद्धचारणाणुचिन्ने अमियबले महासारे महाबले अंगदुवारधरे स्वाहा । छट्ठग्गहणी, छट्ठसाधणी, जापो अट्ठसयं, सिद्धा भवइ २ ॥ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाए, णमोक्कारयित्ता इमं मंगलं पयोजयिस्सामि, 15 सा मे विज्जा सव्वत्थ पसिज्झउ, अत्थस्स य धम्मस्स य कामस्स य इसिसस्स आदिच्च-चंद-णक्खत्त-गहगणतारा-गणाण जोगो जोगाणं णभम्मि य जं सच्चं तं सच्चं इधं मज्झं इध पडिरूवे दिस्सउ, पुढवि-उदधि-सलिलअग्गि-मारुएसु य सव्वभूएसु देवेसु जं सच्चं तं सच्चं इध मज्झ पडिरूवे दिस्सउ । अवेतु माणुसं सोयं दिव्वं सोयं पवत्तउ । अवेउ माणुसं रूवं दिव्वं रूवं पवत्तउ ॥ १ ॥ 20 अवेउ माणुसं चक्खं दिव्वं चक्खू पवत्तउ । अवेउ माणुसे गंधे दिव्वे गंधे पवत्तउ ॥ २ ॥ अवेउ माणुसो फासो दिव्वो फासो पवत्तउ । अवेउ माणुसा कंती दिव्वा कंती पवत्तउ ॥ ३ ॥ अवेउ माणुसा बुद्धी दिव्वा बुद्धी पवत्तउ । अवेउ माणुसं जाणं दिव्वं जाणं पवत्तउ ॥ ४ ॥ एएसु जं सच्चं तं सच्चं इध मज्झ पडिरूवे दिस्सउ त्ति, णमो महतिमहापुरिसदिण्णाए अंगविज्जाए जं सच्चं तं सच्चं इध मज्झं पडिरूवे दिस्सउ, णमो अरहंताणं, णमो सव्वसिद्धाणं, सिझंतु मंता स्वाहा । 25 एसा विज्जा छट्ठग्गहणी, अट्ठमसाधणी, जापो अट्ठसयं ३ ॥ णमो अरहंताणं, णमो सव्वसिद्धाणं, णमो सव्वसाहूणं, णमो भगवतीय महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय, उभयभये णतिभये भयमाभये भवे स्वाहा । स्वाहा डंडपडीहारो अंगविज्जाय उदकजत्ताहिं चउहि सिद्धि । णमो अरहंताणं, णमो सव्वसिद्धाणं, णमो भगवईय महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय भूमिकम्म० । 30 सच्चं भणंति अरहंता ण मुसा भासंति खत्तिया । सच्चेण अरहंता सिद्धा सच्चपडिहारे उ देवया ॥ १ ॥ अत्थसच्चं कामसच्चं धम्मसच्चयं सच्चं तं इह दिस्सउ त्ति, अंगविज्जाए इमा विज्जा उत्तमा लोकमाता बंभाए ठाणथिया पयावइअंगे, एसा देवस्स सव्वअंगम्मि मे चक्खु । १ नमो सिद्धाणं हं० त० ॥ २ कम्मसविज्जा-इदियाली इदिअलि हं० त० विना ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ "सिद्धि स्वाहा हं० त० विना ॥ ५ भक्तेन हं० त० ॥ ६ ताणं, णमो अक्खीणमहाणसाणं, णमो पदबुद्धीणं, णमो सिद्धाणं, सि० ॥ ७ पउंजइस्सामि हं० त० ॥ ८ 'त्थ समिओ अत्थस्स हं० त० विना ॥ ९ णभविय जं हं० त० विना ॥ १० माणुसो गंधो दिव्वो गंधो सि० ॥ ११ वाणपिया हं० विना ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संगहणीपडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ सव्वलोकम्मि य सच्चं पव्वज्ज इसिसच्चं च जं भवे । एएण सच्चवइणेण इमो अट्ठो [प] दिस्सउ ॥ १ ॥ उतं पवज्जे, भुवं पवज्जे, स्वं पवज्जे, विजयं पव्वज्जे, सव्वे पव्वज्जे, उतदुंबरमूलीयं पव्वज्जे, पवविस्सामि तं पवज्जे, मेघडंतीयं पवज्जे, विज्जे स्वरपितरं मातरं पवज्जे, स्वरविज्जं पव्वज्जेंति स्वाहा ।। आभासो अभिमंतणं च उदकजत्ताहिं चउहिं सिद्धं ४ ॥ णमो अरहंताणं, णमो सव्वसिद्धाणं, णमो केवलणाणीणं सव्वभावदंसीणं, णमो आधोधिकाणं, णमो आभिणिबोधिकाणं, 5 णमो मणपज्जवणाणीणं, णमो सव्वभावपवयणपारगाणं बारसंगवीणं अट्ठमहानिमित्तायरियाणं सुयणाणीणं, णमो पण्णाणं, णमो विज्जाचारणसिद्धाणं, तवसिद्धाणं चेव अणगारसुविहियाणं णिग्गंथाणं, णमो महानिमित्तीणं सव्वेसि, आयरियाणं, णमो भगवओ जसवओ महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय भूमीकम्मं णामऽज्झाओ ! तं खलु भो ! तमणुवक्खाइस्सामि । ...तं तु भो ! महापुरिसस्स मणिस्स सयसाहस्स सहस्सदारस्स अपरिमियस्स अपरिमियसुसंगहियस्स पच्चोदारागमसंजुत्तस्स अपरिमियस्स अपरिमियगइविसयस्स भगवओ 10 उवविट्ठविहिविसेसेणं १ पल्हत्थिगाविहिविसेसेणं २ आमासविहिविसेसेणं ३ अपस्सयविहिविसेसेणं ४ ठियविहिविसेसेणं ५ विपिक्खियविहिविसेसेणं ६ हसितविधिविसेसेणं ७ पुच्छियविहिविसेसेणं ८ वंदियविहिविसेसेणं ९ संलावियविहिविसेसेणं १० आगमविधिविसेसेणं ११ रुदितविधिविसेसेणं १२ [परिदेवितविधिविसेसेणं १३] कंदियविधिविसेसेणं १४ पडिमविधिविसेसेणं १५ अब्भुट्ठिय(अप्पुट्ठिय)विधिविसेसेणं १६ णिग्गयविधिविसेसेणं १७ पइलाइयविधिविसेसेणं १८ जंभियविधिविसेसेणं १९ चुंबियविधिविसेसेणं २० आलिंगियविधिविसेसेणं २१ समिद्धविहिविसेसेणं २२ सेवियविहिविसेसेणं 15 २३ अत्तभावओ बाहिरओयओ वा अंतरंग-बाहिरंगेहि वा सद्द-फरिस-रूव-गंधेहि वा गुणेहि पडिरूवसमुप्पाएहिं वा उवलद्धीवीहिसुभा-ऽसुभाणं संपत्ति-विपत्तिसमायोगेणं उक्करिसा-ऽवकरिसा उवलद्धव्वा भवंति ॥ ॥ इति ख० पु० संगहणीपडलं सम्मत्तं ॥ १ ॥ छ । 00000000. [बिइअं पज्जबंधेणं संगहणीपडलं] सव्वन्नुअरहंतेहिं सव्वदंसीहि देसियं । अणंतरं जिणेहिं ता णिमित्तण्णाणमुत्तमं ॥ १ ॥ तस्स सव्वण्णुदिढुस्स अप्पमेयागमस्स उ । भूमिकम्ममिहऽज्झाओ पइट्ठाणं पवेदिया ॥ २ ॥ चराचराणं भूयाणं, पइट्ठा जगई जधा । तहा णिमित्तभवणस्स भूमीकम्मं णिवेदियं ॥ ३ ॥ पयट्ठियाणि भूमीकं जधा बीयाणि वड्डए । मूल-खंधविरोधेहिं साल-साह-प्पसाहओ ॥ ४ ॥ पवालप्पविरोहेहिं पत्त-पुप्फ-फलेहि य । णाणासंठाण-वण्णेहिं रस-गंधविधाणओ ॥ ५ ॥ एव प्पमेयसारं तु णिमित्तं मणिसंगहा । भूमिकम्मपइट्ठाणे वइए बीजमागमे ॥ ६ ॥ 25 मणिसण्णियस्स पुरिसस्स मयाऽऽगमवित्थरो । जगं सव्वमिदं वंतं सगुणा दव्वसिया जधा ॥ ७ ॥ एवमेयं जसवओ मणिस्स पुरिसस्स उ । वत्ताए मणिवियारभूमिकम्मे पकित्तिया ॥ ८ ॥ १ उंत हं० ॥ २ काणं, पवज्ज णमो सप्र० । पवज्ज इति पदं सर्वासु प्रतिषु विद्यमानमपि लेखकप्रमादप्रविष्टमाभातीति नातं मूले ॥ ३ विहविहिविसेसेणं सिसं० विना ॥ ४ यद्यपीह समिद्धविहिविसेसेणं इत्यत्र समिद्धपदं वर्तते, तथाऽनन्तरवर्तिनि द्वितीये पद्यसङ्ग्रहणीपटले "आलिंगियविसेसा २१ य संविद्धविधी २२ तधा ।" [श्लोक १४] इत्यत्र संविद्धपदं दृश्यते, अष्टाविंशतितमे पुन: णिपण्णपटले स्थानस्थानेषु "बारसण्हं णिवण्णाणं" [श्लो० १] "उक्किट्ठियं णिवण्णं च" [श्लो० ३] "परिवेट्ठितं णिवण्णं च'' [श्लो० ४] इत्यादिषु णिवण्णपदं आकल्यते, तदत्र समिद्ध-संविद्ध-णिवण्णपदैकार्थसङ्गतिस्त विचार्या ॥ ५ रउपओ वा हं० । 'बाहिरओयओ' बाह्ययोगतः इत्यर्थः ॥ ६ 'ख० पु०' खलु भो ! महापुरिसदिण्णाए अंगविज्जाए भूमीकम्मे इत्यर्थः ॥ ७ वंतं परिदेवितविधिविसेसेणं सगुणा हं० त० सं ३ पु० । वंतं परिदेवितवित्थडं विधिविसेसेणं सगुणा सि० ॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 अंगविज्जापइण्णयं [ तइयं भूमीकम्मउपविट्ठविधिविसेसा य १ तधा पल्हत्थियाय य २ । आमासविधी चेव ३ अपस्सयविधी तधा ४ ॥ ९ ॥ ठियपत्थियविधी चेव ५ विपेक्खियविधी तथा ६ । हसियाणं विधी चेव ७ पुच्छियाणं विधी तधा ८ ॥ १० ॥ वंदियाणं विधी चेव ९ संलावियविधी तथा १० । आगयाणं विसेसा य ११ रुदिताण विधी तधा १२ ॥ ११ ॥ परिदेवियविधीओ य १३ कंदियाणं विधी तधा । १४ पडियाणं विसेसा य १५ अप्पुट्ठियविधी तधा १६ ॥ १२ ॥ णिग्गयाणं विसेसा य १७ पइलाइयविधी तधा १८ । जंभियाणं विसेसा य १९ विसेसा चुंबिएसु या २० ॥ १३ ॥ आलिंगियविसेसा य २१ संविद्धविधी तधा २२ । सेवियाणं विसेसा य २३ तेवीसं वत्थुसंगहा ॥ १४ ॥ अप्पणी बाहिरे चेव संजुत्ते लक्खणे तधा । विसए पंचविधे चेव तन्निभोवनिभा तधा ॥ १५ ॥ उक्करिसाऽपगरिसा चेव तीता-ऽणागय-संपदा । सुभा-ऽसुभाणं भावाणं विपत्ती संपदं सिया ॥ १६ ॥ भूयो भूमीकम्माणि उ समग्गे सम्मईमयं । मए पवेदिओऽज्झाओ णिमित्ते संपकित्तिओ ॥ १७ ॥ भूमीकम्मविही एसो संगहेण पकित्तिओ । समुद्देसें भरस्सं (रेभस्स) च अतो अटुं पवक्खइ ॥ १८ ॥ G॥ भूमीकम्मस्स संगहणीपयं ॥ २ ॥ छ ॥ क 10 15 [ तइयं भूमीकम्मसत्तसमुद्देसपडलं] वसुं निमित्तं पवदंति लोके, वसुं निमित्तस्स य अंगमाहु । वसुं च अंगस्स मणि वदंति महेसिणो जेण वियागरंति ॥ १ ॥ केवलं अंगविज्जाए मणिओ अंगदीपणा । अंगस्सरविणिव्वत्तो अंगस्स रयणं मणी ॥ २ ॥ मणिओ अंगहिययं णिमित्तहिययं तधा । तइयं लोगहिययं ति तस्स णामं विधीयति ॥ ३ ॥ ताणि सज्झायम्मि रओ णिच्चमाधारए नरो । अणण्णमइमं दच्छो तरे वागरणोदधि ॥ ४ ॥ णाकयन्नुमसिस्सं वाऽणाउत्तं णासहस्सदि । णाऽणप्पभूयं वाइज्जो भगवंतं महामणि ॥ ५ ॥ भत्तिमंतं विणीयं च सुस्सूसाणिरतिदियं । कयण्णुं मइमं दंतं धिइमंतमणुसूयकं ॥ ६ ॥ दक्खिणं मिदु सूरं च विज्जागुरुपरं सदा । सिस्समेयर्गुणुज्जुत्तं विदू अंगं तु वायए ॥ ७ ॥ दंतो गुरुसगासम्मि अधीयंतो ये रूवओ । पारं गच्छे णिमित्तस्स . आवज्ज वयणं जधा ॥ ८ ॥ अधिज्ज विज्जं पडिपुण्णं अट्ठक्खाणंसि कोविदो । गुरुणा अब्भणुण्णाओ अणुस्सित्तो अगव्विदो ॥ ९ ॥ ऐयमासज्ज हि णरो अणंतजिणचक्खुमा । अजिणो जिणसंकासो पच्चक्खं देवतं भवे ॥ १० ॥ सुभो य असुभो यऽत्थो तईओ णाभिगम्मई । संपया य विपत्ती य दुविहा तस्स मग्गणा ॥ ११ ॥ अतीतं १ वट्टमाणं च २ पुरत्थाय अणागयं ३ । तिण्णि अत्थस्स ठाणाणि चउत्थं णाभिगम्मई ॥ १२ ॥ आमासे १ सेविए २ गंधे ३ पडिरूवे ४ सरे ५ तहा । एवं अत्थग्गयं सव्वं समुदीरेति पंचसु ॥ १३ ॥ अप्पणो १ जो य पुच्छिज्ज २ जस्सत्थाय व पुच्छइ ३ । जा यऽत्थ परिसा भवति ४ पडिरूवे य पंचमे ५ ॥ १४ ।। बाहिरे आवि सद्दम्मि लक्खणं समुदीरइ ६ । छ व्वागरणजोणीओ सत्तमी नाभिगम्मइ ॥ १५ ॥ छस् एयासु जोणीसु अप्पा भवइ कारणं । अणाधारयमाणस्स अप्पमाणं हि लक्खणं ॥ १६ ॥ 20 25 १ भोयणतिभा सप्र० ॥ २ विभत्ति सप्र० ॥ ३ महा पवे सप्र० ॥ ४ त० विनाऽन्यत्र सं च तस्सं च सं ३ पु० सि० । "सं वत सं च हं० ॥ ५ 'रभस्सं' रहस्यमित्यर्थः ॥ ६ हस्तचिह्नमध्यगतः पाठः हं० त० सिसं० वर्त्तते ॥ ७ "दीपिणो हं० विना ॥ ८ "णित्तत्थो हं० त० विना ॥ ९ धणी हं० त० ॥ १० “णापुत्तं अणासहस्सदं हं० त० ॥ ११ भगवति म हं० त० सि० ॥ १२ “गुणाजुत्तं हं० त० ॥ १३ अ हं० त० ॥ १४ यथा हं० त० ॥ १५ एसमा हं० त० ॥ १६ अत्थो हं० त० ॥ १७ एवं अत्थं गयं हं० त० ॥ १८ यावि सिद्धम्मि हं० त० विना ।। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तसमुद्दे पडलं ] अमो भूमीकम्मऽज्झाओ ११ आधार जया णाणी अप्पणी बाहिरम्मि वा । तं लक्खणं तओ गिज्झं जत्थ सेम्मं निवेस ॥ १७ ॥ अंगवी जाहे सुयपुव्वि आधारयइ अप्पणि । उदीरणा बाहिरिका सव्वा भवइ अकारणं ॥ १८ ॥ णिवेसिआय सन्नाय बाहिरे लक्खणम्मि य । अप्पणीओ समुप्पाओ सव्वो भवइ अकारणं ॥ १९ ॥ उदीरिए बहुविधे जोवत्थो णोवलब्भइ । अप्पणीयं विंदू अत्थं सुणे वा वि णिवेसए ॥ २० ॥ अप्पणी बाहिरे वा वि जत्थ सण्णं निवेसए । तं लक्खणं तओ गिज्झं दुविण्णेयमलक्खणं ॥ २१ ॥ उवविट्ठविधिविसेसा य बत्तीसं मणिए मया १ । पल्हत्थिकायो बावीसं २ आमासट्ठसयं तहा २२ ॥ अपस्सया सत्तरस ४ अट्ठावीसं ठियाणि य ५ । दस विप्पेक्खियाणंगे ६ हसियाणि चउद्दस ७ || [पुंच्छिताणि चउव्वीसं ८ बंदिताणि य सोलस ९ । संलाविताणि वीसं च १० सोलसेवाऽऽगताणि ११ य ॥ २४ ॥] वीसं रुदियाणि मणिए १२ तेरसं च परिदेवणा १३ । अट्ट विकंदियाणंगे १४ अट्ठेव पडियाणि य १५ ॥ २५ ॥ अप्पुट्ठिताणिक्कवीसं १६ एक्कारस य णिग्गमा १७ । पंचलाइयाणि सत्ताऽऽहु १८ सत्त जंभाइयाणि या १९ ॥ २६ ॥ 10 चुंबी सोलसंगम्म २० चउद्दसाऽऽलिंगियाणि २१ य । बारसाऽऽहु णिपण्णाणि २२ सैविआणि बतीस २३ इच्चेसा संखेवविही भूमीकम्मस्स कित्तिया । यं पुणो वित्थरओ कित्तइस्सामि भागसो ॥ २८ ॥ ॥ भूमीकम्मसत्तसमुद्देसो पडलं तइयं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ छ ॥ २३ || ॥ २७ ॥ [ चउत्थं अत्तभावपरिक्खापडलं ] अत्तभावपरीणामं पुच्छिओ अंगचितओ । आभोगेण परिक्खेतू अत्ताणं दसहा विदु ॥ १ ॥ 20 अत्तभावेण अत्ताणं परिक्खेइ वियक्खणो । दीणयं १ कुद्धयं चेव २ हिट्ठयं च ३ पसण्णयं ४ ॥ २ ॥ आरोगत्तं ५ आउरत्तं ६ छायत्तं ७ पीणितत्तणं ८ । विक्खिकत्तं च ९ एकत्तं १० दसधा संपधारए ॥ ३ ॥ पसन्नतं १ मुदितत २ मारुग्गं ३ पीणियत्तणं ४ । एकग्गमणसत्तं च ५ पंचत्तम्मि पैंसस्सए ॥ ४ ॥ दीया १ कुद्धया चेव २ छातत्तं ३ आतुरत्तणं ४ । विक्खित्तमणसत्तं च ५ पंचऽत्ते ण पैंसस्स ॥ ५ ॥ जाणित्ता दीणमप्पाणं सुत्तत्थेण वियागरे । अप्पिएहि य संजोगं विप्पओगं पिएहि अ ॥ ६ ॥ संपत्ति च अणिट्ठाणं इट्ठाणं च असंपदं । आसा पणयभंगं वा पेंडिसायणमेव य ॥ 11 अप्पमाणमसक्कारं अँप्पइट्ठमणिव्वुई । जं चऽण्णं एरिसं किंचि दीणे अप्पणिमादिसे ॥ ८ ॥ अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमित्थं वियागरे । जं किंचि पसत्थं सौ सव्वं दीणे ण णिद्दिसे ९ ॥ ९ ॥ जाणे अदीणमत्ताणं सुत्तत्थेण वियागरे । पियसंगमं वा जाणीया वियोगं अप्पिएहि य ॥ १० ॥ अणिट्टाणं असंपत्ती इट्ठाणं वा वि संपदं । उस्सयं वा विलासं वा सोभग्गं वा वि णिदिसे ॥ ११ ॥ मइजुत्तं च जं कज्जं पीइजुत्तं च जं भवे । तधा हाससमाउत्तं बहुमाणस्सियं च जं ॥ १२ ॥ ७ १ आराधए यदा हं० त० विना ॥ २ संतं निवे हं० त० ॥ ३ अंगविजाए हेऊ य आधारेई अप्पाणो सि० ॥ ४ जाघे [...] पुव्वि आधा हं० त० । जाहे सुय [...] आधा" सं ३ पु० ॥ ५ यो व हं० त० विना ॥ ६ विदू यणं (पण्णं) सुण्णे हं० त० ॥ ७ सुणे सप्र० ॥ १० याणि अ वादस ( चोद्दस ) हं० त० ॥ ११ [ खण्डितपाठपूर्त्यर्थं मयैव निर्मितोऽस्ति । १२ अट्ठेव कंदि ८ मणिये मता हं० त० ॥ ९ बत्तीसं हं० त० विना ॥ ] एतत्कोष्ठकान्तर्गतोऽयं श्लोकः कस्मिंश्चिदप्यादर्शे नास्ति, केवलं सि० ॥ १३ पवलाउयाणि सत्थाहु सत्त लंभाणिजिआणि अ हं० त० ॥ १४ णा चउद्दसंग सं ३ पु० सि० । 'णा चोद्दसंग हं० त० । सर्वासु प्रतिषु मूलगतः पाठो नास्ति ॥ १५ सीवियाणि य वीसई सं ३ पु० सि० । सेविआणि अ तीसई हं० त० ॥ १६ एवं पुणो वित्थ हं० त० सि० ॥ १७ णायं पुच्छिउं हं० त० विना ॥ १८ परिकित्ति विय हं० त० विना ॥ १९ वक्खि हं० त० ॥ २०-२१ पसंसए हं० त० विना ॥ २२ प्पिएसि व हं० त० विना ॥ २३ पडिआसण हं० त० ॥ २४ अप्पयट्टमणिव्वुई हं० त० विना ॥ २५ 'सा' स्यादित्यर्थः ॥ २६ उस्सुयं हं० त० विना ॥ २७ सोभयं वा हं० त० ॥ २८ पंतिजुत्तं हं० त० ॥ 5 For Private Personal Use Only 15 25 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [ चउत्थं अत्तभावएवमाइ उ जं सव्वं हि अप्पणिमादिसे ॥ १३ ॥ पमोदसियं वा वि जं वा सम्मोहसंसियं जं तु किंचि पसत्थं वा सव्वमित्य वियागरे । अप्पसत्यं तु जं किंचि सव्वं हि ण णिदिसे २ ॥ १४ ॥ जाणित्ता कुद्धमप्पाणं सुत्तत्थेण वियागरे । आयासं कलहं वा वि संतासं आविलं तहा ॥ १५ ॥ विग्गहं वा विवादं वा विप्पियं वा अणिव्वुइं । जुद्धं णिजुद्धं संगामं संपरागं च दारुणं ।। १६ ।। 5 भेदणं संपहारं च मिच्छोवालंभमेव वा। जं चणं एवमाईयं कुद्धे अप्पणिमादिसे ॥ १७ ॥ 10 15 20 25 १२ ४ ॥ २२ ॥ वा ॥ २३ ॥ अप्पसत्यं तु जं किंचि ० संव्वमित्थ वियागरे । जं किंचि Do पसत्थं वा सव्वं कुद्धे न निद्दिसे ३ ॥ १८ ॥ पसन्नम्म य अप्पाणे सुत्तत्थेण वियागरे । संधी संपीइ सम्मोइ मिति णिव्वाणिमेव वा ॥ १९ ॥ रोसक्खयं खमं वा वि पियागमणमेव वा । इटुं वा धम्मचरणं विज्जाणं धारणं पि वा ॥ २० ॥ इच्छियारंभसंपत्ती दुक्खाणं खयमेव य । जं चऽण्णं एरिसं सव्वं पसन्ने अप्पणि व्वदे ॥ २१ ॥ सव्वं पसत्थं जं किंचि एवमाइ विआगरे । अप्पसत्थं च जं किंचि पसंते ण उ णिद्दिसे आरम्मि य अप्पाणे सुत्तत्थेण उ णिदिसे । आउरं वा वि जाणीआ वोपहतमेव तहोसहपउत्तं वा किच्छप्पाणं व णिद्दिसे । अण्णं वा विरुतं जाणे तहेव परितावणं । जं आरुग्गम्मि य अप्पाणे सुत्तत्थेण वियागरे आउणो वा पमाणं तु कितिमूलं तथैव य सिद्धि ओसधजोगस्स संपत्ति ओसधस्स वा पसत्यं जत्तियं किंचि सव्वमित्थ वियागरे । जाणित्ता छायमाणं तत्थेण वियागरे । । दुक्खत्तं वेयणत्तं वा जीविक्खयमेव वा ॥ २४ ॥ चऽण्णं एरिसं सव्वं आउरे अप्पणि वदे ५ ।। २५ ।। आरोग्गं वा वि जाणीयों तथा वा विप्पसम्मणं ॥ २६ ॥ दिग्घकालिकमत्थं वा सुभत्ता दिग्धकालियं ॥ २७ ॥ सुभावहं च जं चणं आरोगे अप्पणि वदे ॥ २८ ॥ अप्पसत्यं च जं किंचि आरोगेण न निदिसे ६ ॥ २९ ॥ अबुद्धिं सरसणासं वा दुभिखभयमेव वा ॥ ३० ॥ वित्तिक्खयं खुधा मारं इति वा छायमेव वा । अत्थहाणिमसंपत्ति कम्मारंभमसंपदं ।। ३१ ।। १३ अलाभ अण्ण- पाणस्स धण पाणक्खयं तथा । जं चऽण्णं एरिसे किंचि छाए अप्पणि णिदिसे ॥ ३२ ॥ अप्पसत्यं च जं किंचि सव्वमित्थं वियागरे । जं किंचि पसत्यं वा सव्वं छाए ण जिदिसे ७ ॥ ३३ ॥ पीणियम्मि य अत्ताणे सुत्तत्थेण वियागरे । सुँवुद्धिं सस्ससंपत्ति सुभिक्खं धातकं तथा ॥ ३४ ॥ णिरितीकं च सस्साणं अण्ण- पाणसमागमं । वैद्विमिस्सरीकं लाभं सव्वत्थाणं च आगमं ॥ ३५ ॥ पउरण- पाणयं चेव सुप्पियं धण्णमेव वा । सव्वं तु एवमाईयं अप्पणी पीणिए वदे || ३६ || जं किंचि पसत्थं वा सव्वमित्थं वियागरे । अप्पसत्यं च जं किंचि पौणिएवं न निहिसे ८ ॥ ३७ ॥ विक्खित्तचित्ते अप्पाणे सूत्तत्थेण वियागरे । अप्पकम्पमादे वा अत्थाय गममेव य ॥ चिरकालपवासं वा विप्पवासं अणागमं । विसंपत्तिमसंजीगं अप्पट्टमणिव्व ॥ ३९ ॥ ३८ ॥ २० अति सोगपागं वा अप्पीइमतिसं तहा । जं चऽण्णं एरिसं किचि विक्खिते अप्पणि व्वदे ॥ ४० ॥ अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमित्थं वियागरे । जं किंचि पसत्थं वा विक्खितेणं ण णिदि ९ ॥ ४१ ॥ १ विपीडं वा हं० ॥ २ संपहाणं च मो० ॥ ३० Do एतच्चिह्नमध्यगतः पाठ: है० त० नास्ति ॥ ४ निव्वाणमेव हं० त० विना ॥ ५ यारभसपत्तं हं० त० ॥ ६ हस्तचिह्नमध्यगतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ७ परिणावणं हं० त० विना ॥ ८ आरोग्गं ति य हं० त० विना ॥ ९ या विहा वा हं० त० । 'विहा' द्विधा इत्यर्थः ॥ १० आयुणो हं० ॥ १९ आरोग्गे न सं ३ पु० | १२ क्खयमेव सं ३ पु० । १३ बुद्धिखयं कुधा मारं हं० त० ॥ १४ सुबुद्धि सप्र० ॥ १५ बुद्धिमि सप्र० ॥ १६ पीणिते न सं ३ पु० ॥ १७ वक्खि हं० त० ॥ १८ म्मसमाए वा हं० त० ॥ २० वीसंपत्ति हं० त० ॥ १९ कालं पवा हं० त० ॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिक्खापडलं ] अट्टमो भूमीकम्मऽज्झाओ एगग्गम्मि य अप्पाणे सुत्तत्थेण वियागरे । पइलाभं थिया बूया भज्जालाभं नरस्स उ ॥ पुत्तलाभऽत्थलाभं च वत्थलाभं नरस्स वा । सव्वेसामेव इट्ठाणं विद्धि लाभं च णिद्दिसे ॥ चोलोपणयणं गोदाणं जगयाणं छणुसयं । [प]र्वसियाऽऽगमणं वा वि भज्जा - पुत्तसमागमं ॥ इहिं संगमं वा वि सव्वत्थाणं च आगमं । एवमाई उ जं सव्वं एगग्गे अप्पणि वदे ॥ एवं अप्पणि एकग्गे सव्वमिट्टं सुभं भवे । अप्पसत्थमणिटुं वा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे १० ॥ ४६ ॥ ४२ ॥ ४३ ॥ ४४ ॥ ४५ ॥ अत्तभावपरीणामं एवं दसविहं विदू । सम्मं समणुगंतूणं तओ बूया सुभा - ऽसुभं ॥ ४७ ॥ पिम्मा १ पडिणिवेसा वा २ आगमा ३ दुव्विभाविया ४ । अत्थे दुरुवदिट्ठे वा ५ पंचधा णाभिजाइ ॥ ४८ ॥ ॥ अत्तभावपरिक्खा णामं पडलं सम्मत्तं ॥ ४ ॥ छ ॥ [ पंचमं णेमित्तमुपधारणापडलं ] छिण्णासे[5]कयदोसे विंदू सव्वत्थसाधए । जिइंदिए जुत्तजोगे स णिमित्तं वियागरे ॥ १ ॥ असाहसे अरभसे अलद्धे अणसूयके । समिक्खकारी कालण्णू मियवक्के अवत्थि ॥ २ ॥ लाभा - लाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तधा । महप्पाणविसेसी य सहसा ण वदे उ जो ॥ ३ ॥ पभावणा पवयणस्स आयरियगुणदीवणा । तित्थ- प्पवयणहेऊ वा पंबूया जो वियक्खणो ॥ ४ ॥ विसयाणमंगिंधी य सुदितत्तदरिसणो । बूया अमूढो णेमित्ती चक्कवट्टि पि पत्थिवं ॥ ५ ॥ एवं गुणसमायुत्तो जुत्तो विणएण भासइ । णिमित्तजायमधीतित्ता ण विऊसयते कया ॥ ६ ॥ जं दिसं च विपक्खिज्ज ततो लक्खणमादिसे । पडिरूवाणि विण्णाय तण्णिभोवणिभाणि या ॥ ७ ॥ जं च वायमुदीरिज्जा तं सद्दमवधारये । अणन्नचित्तो थिमिओ तओ भवइ लक्खणं ॥ ८ ॥ आमास - सद्द-रूवेहिं तँतो लक्खणमादिसे । सयाहिजुत्तो णेमित्ती आदीसंतो ण मुज्झइ ॥ ९ ॥ अप्पणी बाहिरे चेव सम्मं समुपलक्खिअ । अंतरंगसमुत्थेहिं बाधिरंगविधीसु य ।। १० ।। अणागयमइक्कतं संपयं च वियागरे । अणाइलो णिव्विसंको विसत्थो लक्खणं वदे ॥ ११ ॥ ।। नैमित्तमुपधारणापडलं ॥ ५ ॥ छ ॥ १३ [छट्टं आसणऽज्झाओ पडलं ] ठाणा - Sठाविसेसेणं आसणाभिग्गहेसु य । उपविट्ठाणि बत्तीसं कित्तस्सं विभागसो ॥ १ ॥ णेमित्तियस्साऽऽसणम्हि पुच्छकस्स य आसणे । उपविट्ठाणि बत्तीसं ईक्किक्कम्मि विभावए ॥ २ ॥ गिहप्पविट्टे सक्कारं थी पुमं वा वि युजइ । आसणेण य छंदेति वियत्तेण णिवेसह ॥ ३ ॥ सणं वा पिण्णत्तं पेंडिविक्खिज्ज अप्पणा । अव्वग्गमणसो णेमित्ती बत्तीसविधिसंथियं ॥ ४ ॥ अभितरं व १ मज्झे वा २ बहिं वा संपकप्पियं ३ । णीयं ४ समं वा अण्णेणं ५ आसणं णिप्पकंपियं ६ ॥ ५ ॥ संथाणओ य ७ सारओ य ८ जहण्णु९त्तम १० मज्झिमं ११ । समग्ग१२ मसमग्गं वा १३ अभिण्णं १४ भिण्णमेव वा १५ ॥ ६ ॥ १ वसित्तागम हं० त० ॥ २ सव्वं सव्वाणगंतूणं हं० त० विना ॥ ३ विज्जं सि० ॥ ४ जईदिए जत हं० त० विना । 'जइंदिए' यतेन्द्रियः ॥ ५ असहासे हं० त० विना ॥ ६ कालयण्णू हं० त० विना ॥ ७ णविएसी हं० त० ॥ ८ पभूया हं० त० विना ॥ ९ मगेधी हं० त० ॥ १० सुहदरि सि० ॥ ११ एस पुण समा सं ३ पु० । एसो पुण समा सि० ॥ १२ विदूसतए कयि हं० त० विना ॥ १३ जइ संधविपि हं० त० ॥ १४ नेउ ल हं० त० विना ॥ १५ आसत्तो ण हं० त० ॥ १६ लक्खड़ हं० त० विना ॥ १७ मुत्थे य बाहिरंग हं० त० विना ॥ १८ मित्तिमु हं० त० ॥ १९ णविसेसण्णू हं० त० ॥ २० 'इस्सामि वि हं० त० ॥ २१ एकक्वम्मि हं० त० विना ॥ २२ जुंजइ हं० त० ॥ २३ पडिदिक्खि हं० त० ॥ २४ सम्मं हं० त० विना ॥ 5 10 15 20 25 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 १४ अंगविज्जापइण्णयं [ छटुं आसणऽज्झाओ बद्धं १६ तहा अबद्धं वा १७ अदढं १८ दढमेव य १९ । चलं २० अकंपमाणं वा २१ संथियं वा २२ असंथियं २३ ॥ ७ ॥ सक्कारणाय पण्णत्तं २४ दीणं वा वि असक्कयं २५ । भूमिमयं २६ कट्ठमयं २७ तणं २८ छगण २९ पीढगं ३० ॥ ८ ॥ सामण्णं वा ३१ परकं वा ३२ एवं भवइ आसणं । पंडिपेक्खिज्ज मित्ती तव्वसो अंगचिंतओ ॥ ९ ॥ __ अभितरे आसणम्मि सक्कारेणुपणामिए । मज्झिमे बाहिरे चेव एवं बूया वियक्खणो ॥ १० ॥ अभितरे आसणम्मि वड्डी अब्भंतरा भवे । मज्झिमे मज्झिमा वद्धि बाहिरम्मि य बाहिरा ॥ ११ ॥ अब्भंतरे आसणम्मि असक्कारेण छंदिए । G मज्झिमे बाहिरे वा वि एवं बूया वियक्खणो ॥ १२ ॥ अब्भंतरे असक्कारे हाणी अब्भंतरा भवे । मज्झिमे मज्झिमा हाणी बाहिरम्मि य बाहिरा ॥ १३ ॥ पुव्वामुहे आसणम्मि सक्कारेणुवणामिए । [वैद्धिमिस्सरियं दव्वं खिप्पमेवऽस्स णिदिसे ॥ १४ ॥ एतम्मि आसणे चेव असक्कारोवणामिते ।] वद्धिमिस्सरियं दव्वं खिप्पमेवऽस्स हायति ॥ १५ ॥ दक्खिणाभिमुहे चेव आसणे संपकप्पिए । सयणं आसणं वत्थं कामभोगे य णिद्दिसे ॥ १६ ॥ एयम्मि आसणे चेव असक्कारेणुवणामिए । सयणा-55सण-वस्थाणि काम-भोगा य हायते ॥ १७ ।। अवरम्मुहे आसणम्मि सक्कारेणुवणामिते । कुडुंबवद्धि सोहग्गं खिप्पमेवऽस्स णिदिसे ॥ १८ ॥ एयम्मि आसणे चेव असक्कारोवणामिए । कुटुंबहाणि केसं च खिप्पमेवस्स णिदिसे ॥ १९ ॥ उत्तराभिमुखे चेव आसणे उवणामिए । हिरण्ण-रुप्पसंठाणं वद्धि लाभं च णिदिसे ॥ २० ॥ 15 एयम्मि चेव ठाणम्मि असक्कारोवणामिए । हिरण्ण-रुप्पसंठाणं वद्धि णासं च णिद्दिसे ॥ २१ ॥ तत्थुत्तरादिसाहुत्तो सक्कारेणुवणामिए । णिव्वुइं अत्थलाभं च णारीणमभिणिद्दिसे ॥ २२ ॥ एयम्मि आसणे चेव असक्कारोपणामिए । अणिव्वुइं अत्थहाणि णारीणमभिणिद्दिसे ॥ २३ ॥ विदिसाभिग्गहिए य आसणम्मि वियाणिया । विवादं गणसंजुत्तं पुरिसस्सऽत्थ वियागरे ॥ २४ ॥ एवं दिसासु विदिसासु बूया दिण्णे उ आसणे । आसणे पडिरूवाणं सेसाणं सुण भासणं ॥ २५ ॥ आसणस उ दाणेणं तिरिच्छोणस्स अंगवं । विग्गहं अंगवी बूया अत्थस्स य असंपयं ।। २६ ॥ उच्चासणे पसत्थे वद्धी मझं लाभं समे सुभे । हीणे य बूया परिहाणी उस्सेहे आसणस्स उ ॥ २७ ।। संठियम्मि महासारे उत्तमं लाभमादिसे । मज्झिमे मज्झिमं बूया अप्पसारे असंपदा ॥ २८ ॥ समग्गे अत्थसामग्गी खंडे हाणि पवेदये । भिण्णे भेदं विजाणीया अभिन्ने संगहं वदे ॥ २९ ॥ बद्धे बद्धं विजाणीया अबद्धे सुभमादिसे । दढे अणिव्वुई बूया अदढे णिव्वुई वदे ॥ ३० ॥ अप्पइट्ठाणमत्थस्स चले बूया उ आसणे । अकंपे य पइट्ठाणमप्पणो आसणे वदे ॥ ३१ ॥ संथिए भोगसंपत्ती असंपत्ती असंथिए । सक्कारदिण्णे वद्धी य असक्कारे पराजए ॥ ३२ ॥ भूमी-धातुमए वद्धी उक्कट्ठ संपवेदये io मज्झिमे मज्झिमं बूया जहण्णे हाणिमादिसे ॥ ३३ ॥ [तधा] कट्ठमए बूया सारओ पवियक्खणो । तणे य गोमये चेव असारं संपवेदये ॥ ३४ ॥ उदग्गतण-पत्तमए फल-पुप्फमए तहा । पसत्थं आसणे बूया हाणी सुक्खमलाणसु ॥ ३५ ॥ 30 साधारणे आसणम्मि अत्थं बूया सविग्गहं । असामण्णे असामण्णं अत्थं बूया उ आसणे ॥ ३६ ॥ १ संधितं वा असंधितं हं० त० । संघयं वा असंघयं मो० ॥ २ परिपे हं० त० ॥ ३ 'रेण पणा हं० त० ॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गत: श्रलोकसन्दर्भः हं० त० एव वर्त्तते ।। ५ चतुरस्रकोष्ठकान्तर्गते उत्तरार्ध-पूर्वार्द्ध प्रतिषु गलिते इति सम्बन्धानुसारेण सन्धिते ॥ ६ कारोव सि० ॥ ७ हस्तचिह्नान्तर्गते उत्तरार्ध-पूर्वार्द्ध हं० त० एव ॥ ८ एतच्चिह्नमध्यवर्ति पद्यं हं० त० नास्ति ॥ ९ भायणं हं० त० ॥ १० स्सऽत्थ दा हं० त० ॥ ११ अंगयं हं० त० ॥ १२ अन्नविन्नु या हं० त० विना ॥ १३ इत आरभ्य त्रयस्त्रिंशत्पद्यपूर्वार्द्धं यावद् Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ १५ उक्कस्स मज्झिमे चेव हीणे य पविभागसो । अंतो मज्झे य बाहिं च वद्धी हाणि च थाणतो ॥ ३७ ॥ एवं तु आसणे वद्धी अप्पणो उवलक्खए । पुच्छितस्स य जाणिज्जो आसणाण विभत्तिओ ॥ ३८ ॥ पडिविक्खिउं व णेमित्ती अप्पणो आसणे विही । उववित्तो पडिपिक्खिज्जा पुच्छगस्स य आसणं ॥ ३९ ॥ बत्तीसतिविहं तं पि उवविद्वविधिकोविदो । इमाहिं पडिपिक्खाहिं अवेक्खइ समाहिओ ॥ ४० ॥ पुरिमं १ पच्छिमं चेव २ वामओ ३ दक्खिणेण या ४ । पुव्वदक्खिणभागे य ५ दक्खिणेण य पच्छिमे ६ ॥ ४१ ॥ 5 पच्छिमे वामभागम्मि ७ वामभागे पुरत्थिमे ८ । अट्ट आसणस्स हु दिसा णवमी णाऽभिगम्मति ॥ ४२ ॥ अइदूरे अविक्खित्तं १ अच्चासण्णं च पीलियं २ । णाइदूरे ण वाऽऽसण्णे ३ तिविहं भवइ आसणं ॥ ४३ ॥ णीयतरं वा अंगविणो १ समं वा भवताऽऽसणं २ । उच्चयरं वा भवइ ३ चउत्थं णाऽभिगम्मइ ॥ ४४ ॥ जधण्णतरयं वा वि १ तुल्लरूवं च आसणं २ | विसिट्ठतरयं वा वि ३ रूवेणऽग्घेण वा पुणो ॥ ४५ ॥ सामण्णं वा १ परकं वा २ सेगं वा ३ भवताऽऽसणं । तिरिच्छीणं भवे यावि १ अभिमुहं वा २ परम्मुहं ३ ॥ ४६ ।। 10 पोराणयं वा भवई १ णवं वा भवताऽऽसणं २ । समग्धं वा १ महग्घं वा २ तुल्लग्घं वा वि ३ आसणं ॥ ४७ ॥ दुट्ठियं १ सुट्ठियं वा वि २ ठाणा १ ऽठाणा व २ साहियं । एकट्ठाणं १ चलियं वा २ दुब्बलं १ बलियं तहा २ ॥ ४८ ॥ पल्लंको १ फलकं २ कट्ठ ३ पीढिका ४ ऽऽसंदके तधा ५ । फलकी ६ भिसी ७ चिफलको ८ मंचको९ऽथ मसूरको १० ॥ ४९ ॥ 15 भद्दासणं ११ पीढगं वा १२ कट्ठखोडो १३ नेहट्ठिका १४ ।। उप्पलो १५ लोहसंघातो १६ तंतो य १७ तह अट्ठिकं १८ ॥ ५० ॥ भूमीमयं १९ तणमयं २० तधा छगणपीढगं २१ । पुष्पाणि २२ फल २३ बीयाणि २४ तणं २५ साहा २६ मही तधा २७ ॥ ५१ ॥ एवमादीणि जाणीया आसणाणि वियक्खणो । समासओ य तिविहा आसणाणं विधी भवे ॥ ५२ ॥ 20 धातुजोणीसमुत्थाणा १ बिइया पाणजोणिया २ । आसणाणं विही चेव तइया मूलजोणिया ३ ॥ ५३ ॥ समग्गमसमग्गं वा फुडियं अप्फुडियं तधा । अजज्जरं जज्जरं च अंदड्ढे दड्डमेव य ॥ ५४ ॥ दिसाहिदेसओ चेव उच्च-णीयविधीहि य । संथाणओ सारओ य गुणा-ऽगुणविधीहि य ॥ ५५ ॥ आसणाणं विधि चेव जोणीहिं पडिपिक्खिया । परकं सगं सामण्णं विजाणे अंगचिंतओ || ५६ ॥ आसणाभिग्गहविही इति वुत्ता जहा तहा । विभत्तिफलओ चेव कित्तइस्सं विभागसो || ५७ ॥ 25 पुरिमं १ दक्खिणं चेव २ तधा पुरिमदक्खिणं ३ । तिण्णाऽऽसणाणंगगए उत्तमाणि पसस्सए ॥ ५८ ॥ आसणं वामभागं जं जं वा वामपुरस्थिमं । एयाणि मज्झिमत्थम्मि थीलाभे य पसस्सए ॥ ५९ ॥ आसणाभिग्गहा एए विण्णेया पुरिसस्स वि । थीसंसिएसु अत्थेसु निप्फत्ती अनुमज्झिमा ॥ ६० ॥ दक्खिणं पच्छओ चेव पच्छिमं वामतो तहा । एयाणि ण प्पसंसंति समजुंजं च वामओ ॥ ६१ ॥ पुरस्थिमं समक्खं जं तं वरं भवउत्तमं । अप्पसत्थं च परमं समुज्जो पच्छिमेण जं ॥ ६२ ॥ पुरस्थिमे आसणम्मि अत्थं बूया अणागयं । उभेसु यावि पस्सेसु वत्तमाणं वियागरे ॥ ६३ ॥ अतीतमत्थं जाणिज्जा पच्छिमेणाऽऽसणे थिते । अणावलोइयते यावि पच्छिमेण य पुच्छिए ॥ ६४ ॥ १ च यामओ हं० त० विना ।। २ 'विट्ठ विधि' सप्र० ॥ ३ णीअयरं हं० त० ॥ ४ सम्मं हं० त० विना ॥ ५ समं वा हं० त० विना ॥ ६ तिरियत्थाणं हं० त० विना ॥ ७ ठाणाठाणं व हं० त० ॥ ८ चिफरको हं० त० ॥ ९ तहिट्ठका हं० त० ॥ १० दंतो हं० त० ॥ ११ अदढं दढमे हं० त० विना ॥ १२ चिंधओ हं० त० ॥ १३ प्पसम्मति समजुंजणा वीमओ हं० त० ॥ १४ सपुष्पं जं हं० त० विना ॥ १५ सपुष्पं पच्छि हं० त० विना ॥ १६ सणोत्थिए हं० त० ॥ 30 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ अंगविज्जापइण्णयं अइदूरे पमुहओ जया भवइ आसणं । अणागयं तं जाणिज्जा अत्थं परमदुल्लभं ॥ ६५ ॥ णाइदूरे पमुहओ जदा भवति आसणं । णाइसिग्घं ण य चिरा अत्थं बूया अणागयं ॥ ६६ ॥ अच्चासन्नं पमुहओ जदा भवति आसणं । उवत्थितं तओ बूया अत्थं खिप्पं पुरेखडं ॥ ६७ ॥ आसणं दक्खिणे भागे पुरिसस्साऽऽसणं भवे । अब्भन्तरं कुडुंबत्थं वत्तमाणं वियागरे ॥ ६८ ॥ 5 आसणं दक्खिणे भागे पमदायाऽऽसणं भवे । अत्थं पइम्हि णिययं वत्तमाणं वियागरे ।। ६९ ।। 10 15 20 25 [ छटुं आसणऽज्झाओ दक्खिणं णाइदूरे य पमदायाऽऽसणं भवे । पइमित्तंतरेणऽत्थं वत्तमाणं वियागरे ॥ ७० ॥ दक्खिणं जं अपक्खित्तं पमदायाऽऽसणं भवे । अत्थं जारम्मि णिययं वत्तमाणं वियागरे ॥ ७१ ॥ आसन्नं वामभागे उ पुरिसस्साऽऽसणं भवे । अत्थं भज्जाय णिययं वत्तमाणं वियागरे ॥ ७२ ॥ आसणं अत्तमाणं तु वामतो पुरिसस्स य । मित्तभज्जंतरेणऽत्थं वत्तमाणं वियागरे ॥ ७३ ॥ वामओ जें अवक्खित्तं पुरिसस्साऽऽसणं भवे । अत्थं जारीय णिययं वत्तमाणं वियागरे ॥ ७४ ॥ वामओ जं अपक्खित्तं पमदायाऽऽसणं भवे । पतिजारिणीयतत्थं णिद्दिसे तं वियक्खणो ॥ ७५ ॥ आसणं पच्छिमे भागे उपसन्नत्थियं भवे । अचिराइवत्तं अत्थं णिद्दिसे अत्थचितका ॥ ७६ ॥ पच्छिमे णाइदूरेण भवेया आसणत्थितं । चिराइवत्तं तं अत्थं बूया परमदुल्लहं ॥ ७७ ॥ पुरत्थिमे व ओगट्टे तधा पुरिमदक्खिणे । अत्थं अणागयं बूया आसणाभिग्गहेसु य ॥ ७८ ॥ पुव्वुत्तरे व ओकट्ठे अत्थं बूया अणागयं । आसणाभिग्गहे ठाणं सव्वत्थेसऽत्थसाधणं ॥ ७९ ॥ दक्खिणे आसणत्थाणे उक्किट्टे थाविए सुहं । वामे वा आसणत्थाणे मज्झिमत्थो पसस्स ॥ ८० ॥ पच्छिमे दक्खिणे अत्थो अंतिवत्तो सुभो भवे । मज्झिमो पच्छिमो अत्थो हीणो सौ पच्छिमुत्तरे ॥ ८१ ॥ तधंतरदिसा सव्वा वियार्णेय विभागओ । उक्किट्ठ मज्झिमं हीणं पडिरूवेण णिदिसे ॥ ८२ ॥ उच्चतरकं महत्तरकं परघतरकं तधा । पुच्छंतस्साऽऽसैंणं भवइ अत्थहाणि पवेदये ॥ ८३ ॥ सैमं वा तुल्लरूवं वा तुल्लग्घं वा वि असणं । पुच्छंतस्साऽऽसणं भवति ण जओ ण पराजओ ॥ ८४ ॥ उच्चयरकं महतरकं परग्घतरकं तहा । अंगविस्साऽऽसणं भवइ अत्थसिद्धी पवेदए ॥ ८५ ॥ पोराणेण य पोराणं अत्थं बूया विचितियं । साँ णवे णवकं बूया आसणेणंगचितओ ॥ ८६ ।। फलमप्पं परिजुण्णे सुभं वा यदि वाऽसुभं । नवे महप्फलं हवइ आसम्हि महफ्फलं ॥ ८७ ॥ पायं पागणऽत्थं आसणेण पवेदए । परग्घम्हि महग्घम्हि जुत्तग्घम्हि य मज्झिमं ॥ ८८ ॥ णिव्वत्तियागए अप्पा युत्तग्घम्हि य मज्झिमा । परग्घम्हि महासारा णिव्वत्ती भवताऽऽसणे ॥ ८९ ॥ सामण य सामण्णं सगेण सगमादिसे । अण्णायकं पैरक्केण आसणेण पवेदये ॥ ९० ॥ आसणम्हि तिरच्छीणे विवादं तत्थ णिद्दिसे । परम्मुहे णिराकारं अणुलोमं अभिमुहे ॥ ९१ ॥ उवसक्किए आसणम्हि महाअत्थो विधीयते । अवसक्किए आसणम्हि अत्थहाणी पवेदए ।। ९२ । १ अणागई हं० त० विना ॥ २ अइदूरे हं० त० विना ॥ ३ खिप्पे पुरेकडं हं० त० विना ॥ विना ॥ ५ अत्तमातं तु हं० त० ॥ ६ य हं० त० विना ॥ ७ वडक्कुट्टे हं० त० विना ॥ ८ ९ अक्कुट्टे घातिए सुहं हं० त० विना ॥ १० अतिवृत्तो हं० त० विना ॥ ११ 'सा' स्यादित्यर्थः ॥ १३ 'णे पइभा हं० त० ॥ १४ सणं तत्ती तं अत्थ हं० त० ॥ १५ सम्मं हं० त० विना ॥ १६ यासणं हं० त० विना ॥ १७ सारं णवेण णवकं हं० त० ॥ १८ जइ हं० त० ॥ १९ णम्मि हं० त० ॥ २० परत्थेण हं० त० ॥ ४ पयम्मि णि हं० त० हे थीणं स हं० त० ॥ १२ तत्थुत्तर हं० त० ॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडलं ] अमो भूमीकम्मऽज्झाओ उवसक्किए मज्झिमम्हि मज्झिमत्थो विधीयते । अवसक्किअम्हि तेम्मेय मज्झिमत्थोऽस्स हायइ ॥ ९३ ॥ उवसक्किए पच्चवरे अत्थो पच्चवरो भवे । अवसक्कियम्हि तम्हेवे सो अत्थो परिहायइ ॥ ९४ ॥ दूरे अवसक्किए अत्थो आसणे उत्तमे महा । अवसक्किए उ दूराओ उत्तमत्थोऽसे हायइ ॥ ९५ ॥ आसणम्हि अकट्ठम्हि चिरा अत्थो पुरत्थिमे । तम्हेव उवकट्ठम्हि खिप्पमत्थं पवेदए ॥ ९६ ॥ पक्खासणे अकट्ठम्हि संपतत्थोऽस हायइ । तम्हेव उवकट्ठम्हि वत्तमाणो विधीयते ॥ ९७ ॥ पच्छिमेणुवकट्ठम्हि अतिवृत्तो चिरा भवे । उवकट्ठम्हि तम्हेव ण चिरा अत्थो अइच्छिओ ॥ ९८ ॥ उवसक्किअम्हि दुखुत्तो इट्ठो अत्थो विधीयते । अवसक्किए व दुखुत्तो सो चेव परिहायति ॥ ९९ ॥ उवसक्किएसु बहुसो वद्धी [य] आसणे महा । अवसक्किएसु बहुसो अत्थहाणी महा भवे ॥ १०० ॥ दुब्बले दुब्बलं अत्थं दढेण दढमादिसे । दुत्थिंएणं चलं जाणं सुत्थिएण य थावरं ॥ १०१ ॥ तधा - उवसक्किए आसणम्हि इट्ठे इटुं वियाणिया । अवसक्किए आसणम्हि विप्पओगो पिएण उ ॥ १०२ ॥ 10 उवसक्किए अणिट्ठम्हि इट्ठाणं तु असंपदा । अवसक्किए उ तम्हेव अणिद्वेणं असंपदा ॥ १०३ ॥ दक्खिणापक्कमं धन्नं पुरिसस्साऽऽसणं भवे । अवखित्तं तु वामेणं अधन्नं भवयाऽऽसणं ॥ १०४ ॥ विवरीयं तु नारीय आसणावक्कमं वदे । तिणि ठाणाणि संकन्त ण कम्हियि पसस्सते ॥ १०५ ॥ पीढिकाऽऽसंदको चेव पल्लंको डिप्फरो [तधा] । भद्दासणं जुत्तमेसु अचलं जं च आसणं ॥ १०६ ॥ समागमं घरावासं ठाणमिस्सरियं तहा । इटुं निव्वुरं वद्धि सव्वमेएहिं णिद्दिसे ॥ १०७ ॥ पीढकं फैलकी खट्टा मज्झिमेसु पवेदए । मज्झिमेसु य एएसु मज्झिमं फलमादिसे ॥ १०८ ॥ बद्धेण बद्धं जाणिज्जो मिथो भेदं च जज्जरे । विणिवायं च भग्गम्मि खंडे हाणी पवेदए । १०९ ।। फुडिए भेदं विजाणीया दड्ढे बूया अणिव्वुई । जुन्ने विगयसंठाणे जाणीया अत्थवापदं ॥ ११० ॥ णीलासणं तणं णीलं पुप्फाणि य फलाणि य । बीयाणि य उदग्गाणि आसणेसु पसस्सए ।। १११ ॥ हिरणं वा सुवण्णं वा मणि मुत्त [य] यं तहा । अकिलिट्ठो तहा छाओ आसणत्थो पैंसस्सई ॥ ११२ ॥ 20 मसूरको अत्थरको पवेणी तह कंबलो । सुभा वा अचला भूमी आसणे अत्थसाधिया ॥ ११३ ॥ आसणेसु तु एएसु पसत्थं अंगवी बुवी । सव्वत्थ-साधणं इटुं पसत्थं र णारिणं ॥ ११४ ॥ सुहस्सहा तणं कट्ठे पासाणो इट्ठ- (ट्ट ) कट्ठिगं । कट्ठ-च्छगणपीढं वा खेडुखंडं समंधणी ॥ ११५ ॥ बद्धं भिण्णं च दडुं च जज्जरं परिखंडियं । दुब्बलं परिजुण्णं च विखंडं वा वि संठिय ११६ ॥ मरणं बंधणं रोगो अप्पइट्ठमणिव्वुई । विवादं विप्पयोगं च हाणी एएस णिदिसे ॥ ११७ ॥ अप्प बंधं अवक्खित्ते रोगं चेव अणिव्वुई । कलहं विप्पयोगं च हाणि चेव वियागरे ॥ ११८ ॥ सुट्ठियम्हि अभिण्णम्मि समग्गम्मि अजज्जरे । सुसिलिट्ठे सुदढे व सारवंते वऽवत्थिए ॥ ११९ ॥ संठियम्मि समे वा वि आसणे उजुकम्मि य । आच्छण्णे य उदग्गे य पट्टे अणहे तहा ॥ १२० ॥ अप्पणागे असामण्णे र्णवणेमित्तिपीलिए । पसत्थदिसिणिक्खित्ते आसणे सुविकंपिए ॥ १२१ ॥ मित्तीकस्साऽऽसणाओ ण उक्किट्ठे गुणेहि उ । न य हीणे अंगविदो आसणेण पकंपिए ॥ १२२ ॥ एवंविहे आसणे उ उवविट्ठो जइ पुच्छई । अत्थे विसिट्ठे पुच्छिज्ज विसिद्धं ति वियागरे ॥ १२३ ॥ अप्पसत्थं य पुच्छिज्ज उवविट्ठो एरिसम्मि जो । अणिट्ठसंपया णत्थि पसत्थे चेव णिद्दिसे ॥ १२४ ॥ १ तम्हे [व] म हं० त० ॥ २ व सासत्यो हं० त० ॥ ३ क्विरे अ° हं० त० ॥ ४ °क्किरे तु हं० त० ॥ ५ अहा हं० त० ॥ ६-७ दुक्खत्तो हं० त० विना ॥ ८ नारीणं आसणोवक्कमो हं० त० ॥ ९ कुत्तएसुं हं० त० ॥ १० परिट्ठि हं० त० ॥ ११ फलकं हं० त० विना ॥ १२ जण्णे विगयसंवाओ जाणीया हं० त० ॥ १३ पसंसइ हं० त० ॥ १४ अत्थरणो हं० त० विना ॥। १५ अंगवी जयं हं० त० विना ॥ १६ अप्पं विट्ठे अवक्खित्ते रेकं चेव हं० त० ॥ १७ आकण्णे हं० त० ॥ १८ पयट्ठे य णवे तहा सं ३ पु० ॥ १९ णवे णे सि० ॥ २० उक्कुट्टे सं ३ पु० । उक्कट्टे सि० ॥ १७ 5 15 25 30 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 १८ अंगविज्जापइण्णयं पसत्थेसु य सव्वेसु आसणेसु वियक्खणो । तज्जायपडिरूवेणं गुणाणं सुभमादिसे ॥ अप्पसत्सु सव्वेसु आसणेसु तु अंगवी । तज्जायपडिरूवेणं दोसाणं असुभं वदे ॥ ॥ भगवतीय महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय आसणऽज्झाओ सम्मत्तो ॥ ६ ॥ छ ॥ [ सत्तमं पल्हत्थिया [ सत्तमं पल्हत्थियापडलं ] इति वृत्ताणि सव्वाणि आसणाणि जधा तधा । पल्हत्थिकाओ बावीसं कित्तइस्सं जधा तधा ॥ १ ॥ बहू १ वत्थं च २ वामत्तो (वागत्तो) ३ सुत्तं ४ रज्जू य पंचमं ५ । चम्मपट्टो ६ वक्कपट्टो ७ सत्त वृत्ता परिग्गहा ॥ २ ॥ कप्पासिय १ आविकं च २ वक्कयं च ३ वियाणिया । तिविहो वत्थेण संजोगो वित्थारो छव्विहो भवे ॥ ३ ॥ उक्कस्स १ मज्झिम २ जहण्णो ३ सारओ तिविहो भवे । णवो १ जुण्णो य २ विण्णेओ दुब्बलो ३ बलिओ तहा ४ ॥ ४ ॥ किलिट्ठो ५ अकिलिट्ठो य ६ एवं वैत्थपरिग्गहे । [ ] णेओ सुत्तपरिग्गहो ॥ ५ ॥ उण्णा १ सुँत्तामओ चेव २ तधा चेलिकसुंत्तीजी ३ । वक्कजा ४ बोंडजा चेव ५ रज्जू चम्ममयी तहा ६ ॥ ६ ॥ चप्पयचम्ममओ १ परिसप्पचम्ममओ पि वा २ । दुविहो पल्हत्थिकार्पेट्टो चम्मिओ परिकित्तिओ ॥ ७ ॥ मूलया खधया चेव दुविहा वाकपट्टिका । परिग्गहेसु एएस मज्झे पल्हत्थिका विदू ॥ ८ ॥ अण्णायगं १ अप्पणोकं २ तधा साधारणामवि ३ । विज्जा पल्हत्थियापट्टं तिविहं एवं विभागसो ॥ ९ ॥ एयं परिग्गहविहिं बुज्झे पल्हत्थियासु जो । पल्हत्थिकाओ बावीसं तासि विज्जा इमं विधि ॥ १० ॥ पल्हत्थिया समग्गा य अद्धपल्हत्थिया तधा । दक्खिणा चेव वामा य दुविहा य पवेदिया ॥ ११ ॥ सुट्टिया दुट्टिया चेव दढा अबलिआ भवे । उक्कस्सा मज्झिमा चेव जधण्णा चेव सारओ || १२ || किण्हा णीला य 'लोहितिआ हालिद्दा सुक्किला तधा । अकिलिट्ठा किलिट्ठा य णवा जुण्णा य कित्तिया ॥ १३ ॥ चित्ता येँ बिविहा णेया खईआ अखई तधा । पुरिमाऽवाइमा चेव वण्णसंजोगओ तधा ॥ १४ ॥ चित्ता चउव्विहा एसा वित्थरेण विभासिया । अट्ठारसमी एसा णेया पल्हत्थिया विहिं ॥ १५ ॥ चलिया १९ अचलिया चेव २० मुक्का २१ तध पलोलिया २२ । पल्हत्थिकाओ बावीसं इच्चेया परिकित्तिया ॥ १६ ॥ दुविहा अचलिआ णेया दुविहा य पलोलिया । छिण्णा चेव अछिण्णा य जुण्णा य दुविहा भवे ॥ १७ ॥ एवं पल्हत्थिया एया बावीसं परिकित्तिया । जहाणुपुव्विं चेतासिं बूया उ गुणवित्थरं ॥ १८ ॥ साकं बाहुपट्टो य चम्मओ सुत्तमेव या । पल्हत्थिकासु चउरो पैंसत्था उ परिग्गहे ॥ १९ ॥ अकिलिँट्ठा णवा चेव परघा य परिग्गहा । पसत्था उत्तमेसेते अप्पसत्थेसु गरहिया ॥ २० ॥ सामण्णम्मि य सामण्णं सकमत्थं सकेण य । अलाभकं परक्केणं अजोगे णाभिणिदिसे ॥ २१ ॥ पल्लत्थिकाय गहितेसु जाणूसु उभयेसु य । अत्थं ठियंतियं बूया इत्थीयं पुरिसस्स य ॥ २२ ॥ सष्वपल्लत्थिका चेव इटुं संयोगसंपदं । अचलाय सुट्ठियायं च सव्वमेवाभिणिद्दिसे ॥ २३ ॥ अद्धपल्लत्थिका वामा थीणं अत्थो पसस्सए । संजोत्थे असत्थम्मि अवसेसे ण प्पसस्स ॥ २४ ॥ अद्धपल्लत्थिका वामा आउत्ता जस्स तू भवे । भज्जं ण्डुसं धूयरं [च] अंतरा ण प्पसस्सए ।। २५ ।। १२५ ॥ १२६ ॥ १ अस्मिन् पल्हत्थियापटलके हं० त० प्रतौ सर्वत्र पल्हत्थियास्थाने पल्लत्थिया पाठ एव भूम्ना दृश्यते ॥ २ वामंतो हं० त० विना || ३ चम्मपहो चक्कपहो अग्ग वुत्ता हं० त० ॥ ४ आविकुं च हं० त० विना ॥ ५ वत्थुप हो हं० त० विना ॥ ६ सुथप हं० त० ॥ ७ सुत्तोमओ सं ३ पु० । 'सुत्तोमए सि० ॥ ८ सुत्तीका हं० त० ॥ ९ जा । जा त चम्मसमुब्भवा वक्कजा सि० ।। १० चम्मओ हं० त० विना ॥। ११ पबद्धो च हं० त० विना ॥ १२ खंखया सं ३ पु० । कंकया सि० ॥ १३ लोहइया हं० त० विना ॥ १४ य तिविहा हं० त० ॥ १५ सुक्कालेह पलो हं० त० विना ॥ १६ अच्चित्ता परि हं० त० ॥ १७ चेवाऽऽसि हं० त० विना ॥ १८ साडको त० । सादुको हं० ॥ १९ परित्थाओ हं० त० ॥ २० लिट्ठिया ण वा हं० त० विना ॥ २१ अण्णातकं परक्वेणं आजोगे हं० त० ॥ २२ अत्थं बिइअं तं बूया हं० त० हं० त० विना ॥ २४ अवुत्ता हं० त० विना ॥ २३ त्थे य सव्वम्मि Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ अद्धपल्लत्धिका जा य भवे पस्सम्मि दक्खिणे । पुरिसस्सऽत्थेसु सव्वेसु सव्वे सुद्धाण इत्थिसु ॥ २६ ॥ अद्धपल्लत्थिका जस्स आयुत्ता दक्खिणा भवे । पुत्तं पेसुं पई दारं अंतरेण प्पसस्सए ॥ २७ ॥ विप्पमुक्कासु एयासु मरणं विप्पजोजणं । मोक्खं च विप्पयोगं च रोगं सोगं च णिद्दिसे ॥ २८ ॥ पल्लत्थिकायं वामायं थीय अत्थो पसस्सइ । दक्खिणासु य पुरिसस्स मुक्कं मुक्काय णिदिसे ॥ २९ ॥ पइट्ठियायं तु बूया सव्वं अत्थं पइट्ठियं । अप्पइट्ठाणमत्थस्स अट्ठिआसु वियागरे ॥ ३० ॥ अद्धपल्लत्थिका जस्स दक्खिणा सुट्ठिया भवे । तं चेव सेवए अत्थं अत्थसिद्धि तु णिद्दिसे ॥ ३१ ॥ वामाय य फलं वा वि सव्वपल्लस्थिकाय या । तिस्सत्थस्स पइट्ठाणं सुट्ठियासु वियागरे ॥ ३२ ॥ सव्वपल्लत्थियं जं च अद्धपल्लत्थियं च [जं] । अट्ठियासंठियं अत्थं जधुत्तं संपवेदए ।। ३३ ।। पल्लत्थिकासु अचलासु अचलं अत्थमादिसे । सुभं सुभासु सव्वासु असुभं असुभासु य ॥ ३४ ॥ समागमं घरावासं बंध-वत्थुपरिग्गहं । अवत्थियायं अचलायं बूया पल्लत्थिकाय उ ॥ ३५ ॥ 10 अणवत्थियासु चलियासु सव्वपल्लत्थिकासु य । गिहवास-खेत-वत्थूहि विप्पओगं सुहीसु य ॥ ३६ ॥ पागया पागया जं च मज्झिमा मज्झिमाउ य । अत्थस्स संपया भवइ महासारा य उत्तमा ।। ३७ ॥ पल्लत्थिकाणुसारेहिं अप्पसंठाणसारओ । अत्थजाएण कप्पेत्ता तिविहं फलमादिसे ॥ ३८ ॥ उक्किट्ठ मज्झिमं चेव बूया पेच्चवरं तधा । पसत्थासु फलं इट्ठमप्पसत्थासु गरहियं ॥ ३९ ॥ खित्त-वत्थुगए बूया कण्ह-नीले परिग्गहे । पसुलाभं पेस्सलाभं उभयं तत्थ णिद्दिसे ॥ ४० ॥ 15 पीय-लोहियए बूया पल्लत्थियपरिग्गहे । लाभं सुवण्ण-रययाण मणि-मुत्तस्स वाऽऽदिसे ॥ ४१ ॥ सुक्के पल्लत्थिकापट्टे अकिलिटे सुभोदये । संयोगे अत्थधम्मे य बूया संपदमुत्तमं ॥ ४२ ॥ पल्लत्थिकासु सव्वासु अकिलिट्ठासु वण्णओ । हुत्तासंकिलिट्ठस्स बूया अत्थस्स संपयं ॥ ४३ ॥ पल्लत्थिकासु सव्वासु संकिलिट्ठासु वण्णओ । जधुत्ताणं किलिट्ठाणं अत्थाणं फलमादिसे ॥ ४४ ।। पोराणके परिक्खेवे अत्थो पोराणको भवे । सुभम्मि य सुभो णेओ असुभम्मि असुभो भवे ॥ ४५ ॥ 20 णवे पल्लत्थिकापट्टे णवं अत्थं पवेदये । सुभम्मि य सुभं अत्थं असुभम्मि असुभं तधा ॥ ४६ ॥ अणवे पल्लत्थिकापट्टे असुभे पोराणकम्मि य । दुब्बले जिण्ण दड्डे वा अणिटुं फलमादिसे ॥ ४७ ।। अकिलिडे अहए चेव णिद्दिसे उत्तमं फलं । सावज्ज दुब्बले छिण्णे अहए असुभं फलं ॥ ४८ ॥ एवं वियाण पोराणं गुण-दोससमण्णिए । सुभा-ऽसुभं फलं णाणी पट्टे पल्लत्थिकाय उ ॥ ४९ ॥ चित्ते पल्लत्थिकापट्टे चित्तो अत्थो विधीयते । दढम्मि य महासारो अप्पसारो य दुब्बले ॥ ५० ॥ पुरिमेऽवाइमे वा वि महासारे परिग्गहे । चित्तम्मि बूया विपुलं विचित्तं अस्थमादिसे ॥ ५१ ॥ वण्णओ उक्कडा वा वि चित्तोदिट्ठा परिग्गहा । अत्थजाएण कप्पेत्ता जधुत्तं फलमादिसे ॥ ५२ ॥ चलिताय य आउत्तो दुक्खेणऽत्थस्स संपया । उजुसमाय आउत्तो खिप्पं अत्थस्स संपया ॥ ५३ ॥ विप्पमुक्कासु चलियासु णत्थी अत्थस्स संपया । पल्लत्थिकासु सव्वासु जा पुव्वं परिकित्तिया ॥ ५४ ।। १ सुट्ठा हं० त० विना ॥ २ पसंसई दारं हं० त० विना ॥ ३ “णाय य हं० त० ॥ ४ वित्थस्स हं० त० ॥ ५ वत्थप हं० त० ॥ ६ माय य हं० त० ॥ ७ "कायासारेहिं अग्घसंथाण हं० त० विना ॥ ८ अप्पजा हं० त० विना ॥ ९ पत्थवरं हं० त० विना ॥ १० कण्हे नीले हं० त० विना ॥ ११ रयणाण हं० त० विना ॥ १२ जस्सेत्ताणं किलिट्ठाणं अस्थाणं फलमादिसे हं० त० विना || लेखकप्रमादपरिवर्तितमिदमुत्तरार्द्धमसङ्गतमेव ॥ १३ किलित्ताणं हं० त० विना ॥ १४ वुत्तमं हं० त० सि० ॥ १५ सावज्झे हं० त० विना ॥ १६ छण्णे हं० त० ॥ १७ विहीअति हं० त० ॥ १८ वाइमे वा हं० त० विना ॥ १९ "डा सव्वचित्तोदट्ठा परिग्गहे हं० त० विना ॥ २० वेलियाय सं ३ पु० । विलियाय सि० ॥ २१ उज्झुस्समाइं आउत्तो हं० त० विना ॥ अंग०७ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं ॥ ५६ ॥ विप्पमुक्कासु जाणिज्जो पसत्थासय अंगवि । पसत्थेसु य सव्वेसु विप्पयोगं विणिद्दि समागमं संपयोगं खित्तं वत्थुस्स वाहणं । तेहि तथा दव्वेण जेणेण य असंपया ॥ अप्पसत्थासु एयासु बूया पल्लत्थिकासु य । संरोधो मोक्ख उग्गमणं दुक्खस्स य परिक्खयं ॥। ५७ ।। संखित्तो जो उ आजोगो ण यावि चलिओ भवे । पसत्थम्मि पसत्थस्स अत्थस्स बहुसंपदा ।। ५८ ।। अप्पसत्थम्मि आयोगे संखित्तम्मि अपत्थिए । अप्पसत्थम्मि अत्थम्मि बूया णाणी असंपदं ॥ ५९ ॥ आयुत्ताय पलोलोहं विमुच्चे हं पलोलिया । वद्धि विप्पयोगं वा णिग्गमं वा णिगच्छई ॥ ६० ॥ आयुत्ताय पलोलोहं ण विमुंचे पलोलिया । बंधं वा सण्णिरोधं वा धणापचयं बूहि से ॥ ६१ ॥ मइला दुब्बला यावि छिड्डा पल्लत्थिका भवे । संखित्ता वट्टिता वा वि सोभते अणपूइया ॥ ६२ ॥ अप्पणिया णवा वा वि उत्तमा सुपइट्ठिया । चलिया पुराणी अठिया अप्पसत्था पवेदिया ॥ ६३ ॥ बाहुपल्लत्थिका इट्ठा सव्वत्थेसु सुभेसु य । रैज्जू [य] चम्मपट्टो य बंधेण असुभेसु य ॥ ६४ ॥ एयाणि चेव सव्वाणि अत्थि त्ति अभिणिद्दिसे । चलियासु विप्पमुक्कासु सया पल्लत्थिकासु य ॥ ६५ ॥ समागमं घरावासं बंध - वेत्थपरिग्गहं । पल्लत्थिकाय अचलाय संजोगं च पवेदए । ६६ ।। कण्णप्पयाण मुक्खं च तधा णिग्गमणाणि य । मरणं च पवासं च सव्वमेयासु णिद्दिसे ॥ ६७ ॥ पल्लत्थिकाविप्पमोक्खे अत्थि एतं ति णिद्दिसे । अप्पसत्थे पसत्थे य विप्पयोगं पवेदए ॥ ६८ ॥ अब्भितरपसत्थायं अत्थो अभितरो भवे । बाहिरायं पसत्थायं अत्थो सो बाहिरो भवे ॥ ६९ ॥ पल्लत्थिकाय गहिएसु जाणूसु उभयेसु य । अत्थं विचितियं बूया पुरिसस्स महिलाय य ॥ ७० 11 एयाणि चेव सव्वाणि णत्थिकाणि पवेदये । चलियाय विप्पमुक्काय सव्वं पल्लत्थिकाय उ ।। ७१ ।। पोराणम्मि तु आयोगे पुराणत्थस्स चिंतितं । णवेण तु णवं बूया चितियं तु परिग्गहे ॥ ७२ ॥ कैसि णीले य आयोगे अयले सुत्थितम्मि य । लाभं सखेत्त-वत्थूणं वासं च अभिणिदिसे ॥ ७३ ॥ विप्पमुक्कासु उ एतासु खेत्त-वत्थुय होयणं । अवुट्ठि मरणं रोगं विप्पयोगं च णिद्दिसे ॥ ७४ ॥ लोहिता पीतिका वा पि दढा पल्लत्थिका भवे । सुट्ठियायं भवे सिद्धि खेत्त वत्थू धैणं लभे ॥ ७५ ॥ विप्पमुक्कासु चेतासु अवुट्ठि सस्सणासणं । खित्त-वत्थु - हिरण्णेहिं विप्पयोगं वियागरे ॥ ७६ ॥ अहया सेता व अकिलिट्ठा दढा पल्लत्थिका भवे । सुवण्णलाभं अत्थायं सव्वं चेतासु णिद्दिसे ॥ ७७ ॥ एयासिं चेव आओगो पुच्छतो जति मुंचति । पल्लत्थिकाय इट्ठाय सुभो अत्थोऽस्स हायति ॥ ७८ ॥ पागतं पागतायऽत्थं वदे पल्लत्थिकाय उ । परग्घाय महासारं जुत्तग्घाय य मज्झिमं ॥ ७९ ॥ साधारणत्थं सामण्णे सकमत्थं सकेण तु । अण्णातकं परक्केणं आयोगेणाभिणिद्दिसे ॥ ८० ॥ अचलायं धुवो अत्थो चलिताय चलो भवे । णत्थि अत्थो विमुक्कायं दुहिताय य दुट्ठितो ॥ ८१ ॥ आउत्ता पलोलत्थं पैदा पल्लत्थिकाय तु । अप्पसत्थं तहिं बूया पसत्थं तु ण णिद्दिसे ॥ ८२ ॥ समा पल्लत्थिया इट्ठा वण्णेण य समायुता । सव्वत्थेसु पसंसंते विद्धिं चेव अणागतं ॥ ८३ ॥ एतेणेव तु कप्पेण सुद्धा पल्लत्थिका भवे । अत्थसिद्धी विवद्धीसु असुभाय असुभं बहुं ॥ ८४ ॥ १ पुन्नेहि सं ३ पु० । पुण्णेहिं सि० ॥ २ गणेण हं ० त० विना ॥ ३ मुक्ख ओगमणं हं० त० ॥ ४ णाणी ण संपदं हं० त० ॥ ५ अप्पत्थिआ हं० त० ॥ ६ रज्जूअं च हं० त० ॥ ७ बंधणे हं० त० ॥ ८ णत्थि हं० त० विना । ९ वत्थु सि० ॥ १० मोक्खो स तथा नियमणाणि य हं० त० विना ॥ ११ काय वि हं० त० ॥ १२ वदे हं० त० विना ॥ १३ सुपरि हं० त० विना ॥ १४ कसणे हं० त० विना ॥ १५ हाणयं हं० त० विना ॥ १६ अवुद्धि सप्र० ॥ १७ विणिद्दिसे हं० त० ॥ १८ मुदियायं भवे सं ३ पु० सि० । अट्ठिआरं भवे हं० त० ॥ १९ धणं भवे हं० त० विना ॥ २० अहतवे अकिलद्धा दढा सं ३ पु० । अहतवेअस्थि लद्धा दढा सि० ॥ २१ आयामे हं० त० विना ॥ २२ सुयावुत्ता हं० त० विना ॥ २३ जहा हं० त० ॥ २४ समाजुआ हं० त० ॥ For Private Personal Use Only 5 10 15 20 25 30 २० [ सत्तमं पल्हत्थिया ५५ ॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ २१ पसत्थ-सुट्ठिते इट्ठा अप्पसत्था वि दुट्ठिता । अचला पसत्था कल्लाणे असुभा वा सुभे चला ॥ ८५ ।। उत्तमा पूयिते सिद्धा अप्पसारे अपूयिता । सुभं पसत्थवण्णायं पसत्थेसु पसंसते ॥ ८६ ॥ एगवण्णा य चित्ता य अकिलिट्ठा दढा य जा । सुभा पसत्था अत्थेसु उत्तमेसु पसंसते ॥ ८७ ॥ पसत्था विप्पमुक्का य सुभे हाणिं करोति तु । अप्पसत्था विमुंचित्थ दुक्खसारो त्थ मोइया ॥ ८८ ॥ पलोलियाओ सव्वाओ इट्ठा-ऽणि?ण पूयिता । विप्पमुक्का विसेसेणं सव्वपल्लत्थिया विदू ॥ ८९ ॥ 5 चलितासु य किच्छेणं सुभं सुभासु णिद्दिसे । असुभा य चलितासु दुक्खं बूया विसेसतो ॥ ९० ॥ विप्पमक्कास सव्वास असंखित्तास णिबिसे । विविहाएस णाणत्ता विप्पवासो विवज्जए ॥ ९१ ॥ असंखित्तासु मुक्कासु बूया पल्लत्थियासु य । असुभा असुभऽत्थस्स विवड्ढेि तु विसेसओ ॥ ९२ ।। पल्लत्थितासु सव्वासु सुभासु तु सुभं वदे । असुभासु तु सव्वासु असुभं फलमादिसे ॥ ९३ ॥ पल्लत्थियासु सव्वासु विसेसा इसिभासिया । वित्थारतो य विधिता फलाणं परिभासणं ॥ ९४ ॥ 10 ॥ इति [पल्हत्थिया] पडलं सम्मत्तं ॥ ७ ॥ [अट्ठमं आमासगंडिकापडलं] पल्लत्थिकाओ बावीसं वक्खाताओ जधा तधा । आमासऽट्ठसयं भूयो पवक्खामऽणुपुव्वसो ॥ १ ॥ उम्मटुं च १ विमटुं च २ णिम्मटुं ३ अप्पमज्जितं ४ । सम्मज्जितं ५ ठितामासो ६ आमटुं ७ अभिमज्जितं ८ ॥ २॥ आमासा अट्ठ इच्चेते समासेण पवेदिता । भेअ अट्ठसु भेएसु एक्कक्कस्स विभावये ॥ ३ ॥ 15 उम्मटुं चोद्दसविधं १४ विमटुं चोद्दसेव य १४ । भेदा भवंति विण्णेया णिम्मट्ठस्स वि चोद्दस १४ ॥ ४ ॥ अपमज्जिते चोद्दस य १४ तधा सम्मज्जितम्मि य । चोद्दसेव य विण्णेया १४ ठितामासा य बारस १२ ॥ ५ ॥ भेदा बारस आमटे आमासम्मि पवेदिता १२ । अभिमज्जिते य आमासे भेदा चोद्दस आहिता १४ ॥ ६ ॥ एवं अट्ठसयं वुत्तं आमासा संगहेण तु । अधापुव्वं च एतेसि इमं भेदं वियाणिया ।। ७ ।। इसुम्मटुं तुं उम्मटुं १ जुत्तम₹ तधेव य २ । आमटुं चेव विण्णेयं ३ उम्मटे ततिओ विधि ।। ८ ।। 20 पीलितं चेव उम्मटुं ४ तधेव य अपीलितं ५ । अब्भंतरं च ६ बाहिरं च ७ मझं ८ साधारणं तधा ९ ॥ ९ ॥ पुरिमं १० पच्छिमं चेव ११ दक्खिणं १२ वाममेव य १३ । साधारणं च १४ एतेसु उम्मटुं चोद्दसं भवे ॥ १० ॥ एवं चोद्दसधा एस उम्मट्ठस्स विधी भवे । संगहेण तु विण्णेया संजोगे बहुधा भवे ॥ ११ ॥ संविमटे वि एसेव णेयो चोद्दसधा विधी । णिम्मम्मि वि स एंसेव तधा य अपमज्जिते ॥ १२ ॥ 25 सम्मज्जिते वि एसेव विज्जा चोद्दसधा विधि । आमट्ठम्मि य आमासे एमेव अभिमज्जिते ॥ १३ ॥ ठितामासे य जो वुत्तो आमटे य तधा विधी । एक्केको बारसविधो तस्स भेदविधी इमो ॥ १४ ।। अवट्ठितो ठितामासो पीलितो य १ अपीलितो २ । < अभितरो ३ बाहिरो य ४ पीलितो य ५ अपीलितो ६ ॥ १५ ।। पुरिमो ७ पच्छिमो चेव ८ दक्खिणो ९ वामगो तधा १० । साधारणो य ११ एतेहिं एवं एक्कारसाऽऽहिता ॥ १६ ॥ विकप्पितो ठितामासो चलितो बारसो भवे १२ । ठितामासस्स एमेते भेदा बारस आहिता ॥ १७ ॥ 30 छडे ठाणे ठितामासे जधा बारसधा विधी । तध सत्तमम्मि ठाणम्मि आमटे बारसाऽऽहिया ॥ १८ ॥ १ था पमुंचे तु दुक्ख हं० त० विना ॥ २ सारो समोइया हं० त० विना ॥ ३ अविमुक्का हं० त० विना ।। ४ विजज्जए हं० त० ॥ ५ विहिया हं० त० ॥ ६ भासणे हं० त० ॥ ७ णिमटुं सि० विना ॥ ८ समज्जितं हं० त० सि० ॥ ९ अट्ठमं अभि हं० त० ॥ १० भेदा अट्ठसु ते(भे)तेसु एक्कक्क' हं० त० विना ॥ ११ चउदस साहिता हं० त० ॥ १२ च तम्मटुं हं० त० विना ॥ १३ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ 15 अंगविज्जापइण्णयं [अट्ठमं आमासगंडिकाएवं अट्ठस ठाणेसु भेदा मे संपवेदिता । आमासऽट्ठसतं सम्मं विण्णेयं पविभागसो ॥ १९ ॥ एवं संगहतो उत्तो आमासऽट्ठसते विधी । अप्पमेया व विण्णेया एस संजोयणागमो ॥ २० ॥ उदत्ता १ अणुदत्ता य २ दुविधा एते समासतो । जघन्नु १ त्तम २ मज्झ ३ त्ति एवं च तिविधा भवे ।। २१ ॥ जहण्णु १ त्तम २ मज्झ ३ त्ति तेहिं साधारणा तधा ४ । चउव्विधं भवे णेयं आमासट्ठसयं पुणो ॥ २२ ॥ थी-पुमंस-णपुंसेसु देवता-कण्ह-सामसु । सुक्कपक्खे य काले य संधीणं पविभागसो ॥ २३ ॥ रत्ती दिवा य संझासु पच्चूसे पुव्वरत्तसु । मज्झंतिके अड्डरत्ते एतेर्सि तु विभासणा ॥ २४ ॥ अतीते वट्टमाणे य तधेव य अणागते | लाभा-ऽलाभे सुहे दुक्खे जीविते मरणम्मि य ॥ २५ ॥ एतेसऽत्थेसु सव्वेसु आमासऽर्द्धसते फलं । विण्णेयं संगहेणेतं अप्पमेयं च भेदसो ॥ २६ ॥ छ । ईसुम्मटुं तधा जुत्तं दुरुम्म? समं तधा । पीलिता-ऽपीलितं ईसि जुत्तसंपीलितं तधा ॥ २७ ॥ ईसुम्मटेसु गत्तेसु ईसिसंपीलितेसु य । सव्वो अत्थो जधाभूतो ईसिसंपीलितो भवे ॥ २८ ॥ जुत्तुम्मद्वेसु गत्तेसु जुत्तसंपीलितेसु य । जुत्तं लाभं वियाणीया मज्झिमत्थं पवेदये ॥ २९ ।।। दुरुम्मद्वेसु गत्तेसु धणितं पीलितेसु य । सुभस्सऽत्थस्स पायो सा पीलिते पीलितो भवे ॥ ३० ॥ सेमुम्मडेसु गत्तेसु समम्मि य अपीलिते । महासारे य उम्मढे सुभं अत्थं वियागरे ॥ ३१ ॥ ईसिहीणम्मि उम्मढे ईसिसंपीलितम्मि य । सव्वमत्थं वियाणीया हीणमत्थेण केणयि ॥ ३२ ॥ पेल्लितं पीलीते यावि मज्झं ईसिं च पीलिते । उक्कस्स मज्झिम जहन्नं अंत्थपीलं वियाणीया ॥ ३३ ॥ अभितरम्मि उम्मढे अत्थो अभितरो भवे । बाहिरब्भंतरे मज्झो बाहिरम्मि य बाहिरो || ३४ ॥ अब्भंतरम्मि उम्मद्वे सकं अत्थं पवेदये । साधारणं च मज्झम्मि परकं बाहिरम्मि य ॥ ३५ ॥ साधारणम्मि उम्म? बज्झ-ऽभंतर-मज्झिमे । साधारणो भवे अत्थो विण्णेयो पविभागसो ॥ ३६ ।। दक्खिणम्मि य उम्मढे सकं अत्थं पवेदये । वामतो य थीया अत्थं पच्छतो य णपुंसके ॥ ३७ ।। पुरत्थिमम्मि उम्मटे अत्थं बूया अणागतं । वट्टमाणं च पस्सेसु अतिकंतं च पच्छतो ॥ ३८ ॥ साधारणम्मि उम्मढे उभयो वामदक्खिणे । पुरिमे पच्छिमे वा वि अत्थं साधारणं वदे ।। ३९ ॥ अपीलितम्मि उम्मढे सव्वे अत्थे पसस्सते । पीलिते संकिलिट्ठम्मि ण कम्मि वि पसस्सते ॥ ४० ॥ अब्भंतरे बाहिरे वा उम्मद्वे मज्झिमम्मि वा । सेसे सेसं वियाणिज्जा असेसे य असेसगं ॥ ४१ ॥ १ ॥ छ । ईसिं च संविमट्ठम्मि ईसिं संपीलितम्मि वा । सव्वो अत्थो जधाभूतो ईसिलाभेसु जुज्जति ॥ ४२ ।। मज्झिमे संविमट्टम्मि मज्झिमम्मि य पीलिते । मज्झिमत्थो भवे णेयो किंचि लेद्धे तु पीलिते ॥ ४३ ॥ अच्चत्थसंविमट्टम्मि अपव्वामं च पीलिते । जं किंचि अत्थं पुच्छेज्जा पीलितं तेण णिदिसे ॥ ४४ ॥ समे सुभे संविमटे पदक्षिणमपीलिते । उम्मम्मि महासारे महाअत्थं पवेदये ॥ ४५ ॥ अब्भंतरे संविमटे अत्थो अभितरो भवे । बाहिरब्भंतरो मज्झो बाहिरम्मि य बाहिरो ॥ ४६ ॥ अभितरे संविमढे उक्कस्सा अत्थसंपदा । मज्झिमे मज्झिमा वद्धी हीणा भवति बाहिरे ॥ ४७ ।। अब्भंतरे संविमटे सकं अत्थं पवेदये । साधारणं मज्झिमे य परक्कं बाहिरेण य ॥ ४८ ॥ 20 25 30 १ परिभागसो हं० त० ॥ २ "ट्ठस्सते सप्र० ॥ ३ 'ट्ठसम्मं तथा सं ३ पु० । 'ट्ठसयं तधा हं० त० सि० ॥ ४ जुत्तमढेसु सप्र० ॥ ५ अट्ठमढेसु हं० त० ॥ ६ सम्ममढेसु सप्र० ॥ ७ पीलितं पी' हं० त० ॥ ८ अत्थं पीलं हं० त० सि० ॥ ९ थीया पुच्छं पच्छतो हं० त० ॥ १० अइयंतं वा पयच्छतो हं० त० ॥ ११ लाभे तु जुज्जए हं० त० ।। १२ लढे तु सं ३ पु० ॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ पडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ साधारणम्मि उम्मढे बज्झे अभंतरम्मि वा । साहारणो भवे अत्थो विण्णेयो पविभागसो ।। ४९ ॥ दक्खिणे संविमम्मि पुरिसस्सऽत्थो विधीयते । वामतो य थिया अत्थो पच्छतो य णपुंसके ॥ ५० ॥ साधारणे संविमटे उभयो वाम-दक्खिणे । पुरिमे पच्छिमे चेव अत्थो साधारणो भवे ॥ ५१ ॥ पुरिमे संविमट्ठम्मि अत्थं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेसु अतिक्कंतं च पच्छिमे ॥ ५२ ॥ . अपीलिते संविमटे सव्वो अत्थो पसस्सते । पीलिते य अपव्वामं ण कम्हि वि पसस्सते ॥ ५३ ॥ 5 अभितरे बाहिरे य संविमटे य मज्झिमे । सेसे सेसं वियाणीया असेसे य असेसगं ॥ ५४ ॥ २ ॥ छ । ईसिगत्तम्मि णिम्मद्वे ईसिसंपीलितम्मि य । सव्वो अत्थो जधाभूतो ईसिं हीणो तु लब्भति ॥ ५५ मज्झिमम्मि य णिम्मढे मज्झिमम्मि य पीलिते । मज्झिमा अत्थहाणी तु बूया लाभं च मज्झिमं ॥ ५६ ॥ दुरागते य उम्मट्टे धणितं पीलितम्मि य । हायते ससुभो अत्थो अवसेसं विवड्डए ॥ ५७ ॥ समणिम्मढेसु गत्तेसु समम्मि य अपीलिते । मज्झिमा सव्वहाणी णं मज्झिमा लाभसंपदा ॥ ५८ ॥ 10 निम्मटुं पीलितं जं तु तत्थ वा वि पुणो भवे । ईसि-मज्झविलग्गेसु थीणं बूया विभागसो ॥ ५९ ॥ हाणी पुणो पुणो वद्धी सव्वमत्थगतेसु य । णिम्मट्ठम्मि य गत्तम्मि उम्मट्ठम्मि पुणो पुणो ॥ ६० ॥ णिम्मढेसु तु गत्तेसु णि?तेसु य जाणिया । सव्वत्थीगगते हाणी मरणं पपतणं तधा ॥ ६१ ॥ अब्भंतरम्मि णिम्मद्वे हाणी अभंतरा भवे । बाहिरब्भंतरा मज्झे बाहिरम्मि य बाहिरा ॥ ६२ ॥ अभंतरम्मि णिम्मद्वे महासारस्स णासणं । मज्झं मज्झिमसारस्स अप्पसारं च बाहिरे ॥ ६३ ॥ अब्भंतरम्मि णिम्मद्वे सकस्सऽत्थस्स णासणं । साधारणो य मज्झम्मि परकं जाण बाहिरे ॥ ६४ ।। साधारणम्मि णिम्मद्वे बज्झ-ऽब्भंतर-मज्झिमे । साधारणस्स अत्थस्स णासं बूया सुभा-ऽसुभं ॥ ६५ ।। दक्खिणम्मि तु णिम्मद्वे पुरिसत्थे हाणिमादिसे । थीआ अत्थं च वामम्मि णपुंसत्थं च पच्छिमे ॥ ६६ ॥ पुरस्थिमम्मि णिम्मढे अत्थहाणी अणागता । वत्तमाणी य पस्सेहिं अतिकता य पच्छतो ॥ ६७ ।।। साधारणम्मि उम्मढे उभतो वामदक्खिणे । पुरत्थिमे पच्छिमे वा हाणी साधारणा भवे ॥ ६८ ॥ ३ ॥ छ ।। 20 ईसिमपमज्जिते गत्ते ईसि संपीलितम्मि य । ईसिं हाणी वियाणीया अत्थतो तस्स णो सुहं ।। ६९ ॥ अपमज्जिते मज्झिमम्मि मज्झिम वा वि पीलिते । मज्झिमत्थं पवेदेज्जा किंचि सेसं तु लाभतो ॥ ७० ॥ अपमज्जितम्मि सव्वम्मि धणितं पीलितम्मि य । हायते ससुभो अत्थो असुभो य विवद्धते ॥ ७१ ॥ पमज्जितापमढेसु हाणी सव्वत्थ णिद्दिसे । अपमज्जितापमढेसु हाणी पावे पुणो सुभं ॥ ७२ ॥ अपमज्जिते बाहिरम्मि हाणी सा बाहिरा भवे । अब्भंतरे य विण्णेयो मज्झिमम्मि य मज्झिमो ॥ ७३ ॥ 25 अपमज्जणायं बज्झायं अप्पसारस्स णासणं । अभंतरे सारवतो मज्झासारं च मज्झिमे || ७४ ॥ अपमज्जिते बाहिरम्मि परत्थस्स तु णासणं । अब्भंतरे सकत्थस्स मज्झे साधारणस्स तु ॥ ७५ ॥ अपमज्जिते बाहिरम्मि मज्झिम-ऽब्भंतरे तधा । साधारणो भवे अत्थो विण्णेयो पैविभागसो ॥ ७६ ॥ अपमज्जितम्मि वामम्मि थिया अत्थस्स णासणं । पुरिसस्स दक्खिणे पासे पच्छतो य णपुंसके ॥ ७७ ॥ अपमज्जितम्मि सामण्णे उभयो वामदक्खिणे । पुरिमे दक्खिणे चेव हाणी साधारणा भवे ॥ ७८ ॥ 30 अपमज्जितम्मि पुरिमम्मि हाणि बूया अणागतं । वत्तमाणं च पैस्सेहिं अतिक्कंतं च पच्छतो ॥ ७९ ॥ अभितरे बाहिरे वा मज्झिमे अपमज्जिते । सेसे सेसं वियाणेया असेसे य असेसयं ॥ ८० ॥ ४ ॥ छ । ईसिं सम्मज्जिते गत्ते ईसिं संपीलितम्मि य । इसिं हाणि पवेदेज्जो अत्थऽत्थो तस्स णो सुहं ॥ ८१ ।। १ परिभागसो हं० त० ॥ २ विहीयए हं० त० ॥ ३ अधो साधा हं० त० विना ॥ ४ मज्झिमज्झिमपीलिते हं० त० विना ॥ ५ "टे चलियं पीलि' हं० त० ॥ ६ अवसेसम्मि य व सं ३ पु० ॥ ७ सव्वसंपदा ॥ निम्मट्ठी हं० त० ॥ ८ तरो मज्झे सप्र० ॥ ९ यतिक्कया य पच्चओ हं० त० ॥ १० स्यादित्यर्थः । ११ परिभागसो हं० त० ॥ १२ पक्खेहिं हं० त० ॥ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [अट्ठमं आमासगंडिकासम्मज्जिते मज्झिमम्मि मज्झिमे वा वि पीलिते । मज्झिमत्थं पवेदेज्जो किंचि लाभेण पीलिते ॥ ८२ ।। दूरं सम्मज्जिते यावि धणितं पीलितम्मि य । सुभस्सऽत्थस्स हाणिस्सा असुभत्थो विवद्धते ॥ ८३ ॥ सम्मज्जिते य उम्मढे हाणि पावे सुहं भवे । तम्मेव य णिम्मढे हाणि हाणि पवेदये ॥ ८४ ॥ अब्भंतरम्मि सम्म? हाणी अब्भंतरा भवे । मज्झिमा मज्झिमे हाणी बाहिरम्मि य बाहिरा ।। ८५ ॥ अभितरम्मि सम्मटे महासारस्स णासणं । मज्झिमे मज्झिमं सारं अप्पसारं च बाहिरे ॥ ८६ ॥ अब्भंतरम्मि णिम्मढे सकस्सऽत्थस्स णासणं । साधारणं च मज्झम्मि परक्कं तध बाहिरे ॥ ८७ ॥ सम्मज्जितम्मि सामण्णे बज्झ-ऽब्भंतर-मज्झिमे । साधारणस्स अत्थस्स णासं बूया विभागसो ॥ ८८ ॥ सम्मज्जियम्मि वामम्मि अत्थहाणी थिया भवे । पुरिसस्स दक्खिणे पासे पच्छतो य णपुंसके ॥ ८९ ॥ साधारणम्मि उम्मढे उभओ वामदक्खिणे । पुरिमे पच्छिमे वा वि हाणी साधारणा भवे ॥ ९० ॥ पुरत्थिमम्मि सम्मढे अत्थहाणी अणागता । वत्तमाणी य पस्सेहिं अतिक्कंता य पच्छतो ॥ ९१ ॥ सम्मज्जितेसु सव्वेसु सव्वगत्तगतागते । सव्वहाणी अलाभं च अप्पसत्थं च णिदिसे ॥ ९२ ।। अब्भंतरे बाहिरे वा सम्मट्ठम्मि य मज्झिमे । सेसे सेसं वियाणिज्जो असेसे य असेसगं ॥ ९३ ।। थीय णामेसु सव्वेसु थीणं अत्थं पवेदये । पीलितं पीलिते यावि अपीला य अपीलिते ॥ ९४ ॥ ५ ॥ छ ।। थितामासेसु सव्वेसु थितं अत्थं पवेदये । ईसि पि चलिते तम्मि थावरं किंचि हायति ॥ ९५ ॥ थितामासे दढे सव्वे थावरो अचलो भवे । चलामासे दढे सव्वे थावरो चलितो भवे ॥ ९६ ॥ थितामासे चले सव्वे अत्थं पचलियं वदे । चलामासे य चलिते चलमेव पवेदये ॥ ९७ ॥ अब्भंतरथितामासे अत्थो अब्भंतरो भवे । बाहिरब्भंतरो मज्झे बाहिरम्मि य बाहिरो ॥ ९८ ॥ अब्भतरे थितामासे उक्कट्ठा सस्ससंपदा । मज्झिमे मज्झिमा वद्धी बाहिरम्मि य बाहिरा ॥ ९९ ॥ अब्भंतरठितामासे सकत्थं सारिकं वदे । साधारणं मज्झिमम्मि परकं बाहिरम्मि य ॥ १०० ॥ 20 साधारणठितामासे बज्झ-ऽब्जंतर-मज्झिमे । साधारणस्स अत्थस्स वद्धि बूया विभागसो ॥ १०१ ॥ दक्खिणम्मि ठितामासे पुरिसस्सऽत्थो त्ति णिद्दिसे । वामतो य थिया अत्थो पच्छतो य णपुंसके ॥ १०२ ॥ साधारणे ठितामासे उभओ वामदक्खिणे । पुरिमे पच्छिमे वा वि अत्थो साधारणो भवे ॥ १०३ ॥ अपीलिते ठितामासे सव्वो अत्थो पसस्सति । पीलिते संकिलिट्ठम्मि ण केम्हीयि पसस्सते ॥ १०४ ॥ पुरत्थिमे ठितामासे अत्थं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेहिं अतिक्कंतं च पच्छतो ॥ १०५ ॥ णपुंसके ठितामासे णत्थि अत्थस्स संपदा । चले चलातो विण्णेयो उदत्ते अत्थमादिसे ॥ १०६ ॥ ठितामासेसु सव्वेसु थी-पुमंस-णपुंसके । दीणोदत्तेसु संजोगे विभत्तीय वियागरे ॥ १०७ ॥ पुण्णामम्हि ठिदामासे सव्वो अत्थो पंसस्सति । थितामासे य थीणामे संयोगत्थे पंसस्सति ॥ १०८ ॥ ईसुम्मटे उदत्ते च ईसिं अत्थस्स संपदा । मज्झिमत्थे उदत्ते य मज्झिमत्थस्स संपदा ॥ १०९ ॥ संविमटे उदत्ते य उक्कट्ठा सस्ससंपदा । णपुंसक-थी-पुमसेसु पुच्छंतस्स वियागरे ॥ ११० ॥ ६ ॥ छ । ईसिं हीणम्मि आमटे ईसीहीणं पवेदये । मज्झिमे मज्झिमा हाणी उक्कट्ठे य महंतिया ॥ १११ ॥ अब्भंतरम्मि आमटे अत्थो अब्भतरो भवे । बाहिरब्भंतरो मज्झे बाहिरम्मि य बाहिरो ॥ ११२ ॥ अब्भंतरम्मि आमटे उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झिमे मज्झसारा तु अप्पसारा तु बाहिरे ॥ ११३ ॥ अब्भंतरम्मि आमटे वद्धी अब्भंतरा भवे । मज्झिमे मज्झिमा वद्धी बाहिरम्मि य बाहिरा ॥ ११४ ॥ अब्भंतरम्मि आमटे सकस्सऽत्थस्स संपदा । साधारणा य मज्झम्मि बाहिरम्मि य बाहिरा ॥ ११५ ।। १ मज्झिमत्तं प सि० विना ॥ २ 'हाणिस्सा' हानिः स्याद् इत्यर्थः ॥ ३ थिता अत्थो हं० त० विना ॥ ४ उभयतो वाम हं० त० विना ॥ ५ कम्हीय पसंसए हं० त० ॥ ६ पत्तेयं अति हं० त० ॥ ७-८ पसंसए हं० त० ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 पडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ साधारणम्मि उम्मढे बज्झ-ब्भंतर-मज्झिमे । साधारणस्स अत्थस्स लाभं बूया विभागसो ॥ ११६ ॥ दक्खिणे पुण आमटे पुरिसस्सऽत्थं पवेदये । वामम्मि य थिया अत्थं पच्छतो य णपुंसके ॥ ११७ ॥ साधारणम्मि आमटे उभतो वामदक्खिणे । पुरिमे पच्छिमे वा वि अत्थो साधारणो भवे ॥ ११८ ।। अपीलितम्मि आमटे सव्वो अत्थो पसस्सते । पीलिते संकिलिट्ठम्मि ण किंचि वि पसस्सते ॥ ११९ ॥ पुरत्थिमम्मि आमटे अत्थं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेसु अतिक्तं च पिट्ठतो ॥ १२० ॥ दढं णिद्धं च पुण्णं च आणामं सुक्किलं तधा । सुभं सच्चं उदत्तं वा आमासे अत्थसाधणं ॥ १२१ ॥ चलं लुक्खं च तुच्छं च किलिटुं च णपुंसकं । असुभं दीणं च अणुदत्तं आमासेणऽत्थसाधणं ॥ १२२ ।। कंपिते चलितामासे चलमत्थं पवेदये । अकंपिते अचलिते आमढे अचलं वदे ॥ १२३ ।। अब्भंतरे मज्झिमे वा आमट्टम्मि य बाहिरे । सेसे सेसं वियाणेज्जा असेसे य असेसयं ॥ १२४ ॥ ७ ॥ छ । __ अभिमज्जितं ति वा सद्दा तधा उम्मज्जितं ति वा । एकत्था तु भवंतेते सद्दा पज्जायवायगा ॥ १२५ ।। 10 ईसाभिमद्दिते गत्ते ईसिं अत्थस्स संपदा । मज्झाभिमद्दिते गत्ते मंज्झिमऽत्थस्स संपदा ॥ १२६ ॥ सव्वाभिमज्जिते गत्ते उक्कट्ठा अत्थसंपदा । अपमज्जितापमढेसु अत्थहाणि पवेदये ॥ १२७ ॥ अब्भंतरापमट्ठम्मि अत्थो अब्भतरो भवे । बाहिरब्भंतरो मज्झे बाहिरम्मि य बाहिरो ॥ १२८ ॥ अब्भंतरावमट्ठम्मि उक्कट्ठा अट्ठसंपदा । मज्झे य मज्झिमा वद्धी हीणा भवति बाहिरे ॥ १२९ ।। अब्भंतरावमढेसु सकमत्थं पवेदये । साधारणं मज्झिमम्मि बाहिरम्मि य बाहिरं ॥ १३० ॥ साधारणम्मि य आमटे बज्झऽब्भंतरमज्झिमे । साधारणस्स अत्थस्स लाभं बूया विचिंतितं ॥ १३१ ॥ दक्खिणे अभिमट्ठम्मि पुरिसत्थं पवेदये । वामम्मि थिया अत्थं पच्छतो य णपुंसके ॥ १३२ ॥ साधारणम्मि अभिमढे उभयो वामदक्खिणे । पुरिमे पच्छिमे वा वि अत्थो साधारणो भवे ॥ १३३ ॥ अभितराभिमढे य लाभं सव्वत्थ णिद्दिसे । अपमज्जियापमढे य अत्थसिद्धि ण णिद्दिसे ॥ १३४ ॥ अपीलितम्मि आमटे सव्वो अत्थो पसस्सति । पुरत्थिमम्मि अभिमटे अत्थं बूया अणागतं ॥ १३५ ॥ 20 उभेसु यस्स पस्सेसु वत्तमाणं वियाकरे । पच्छतो समतिक्कंता णिद्दिसे अंगचिंतका ॥ १३६ ।। उदत्ते अभिमट्ठम्मि उत्तमा अत्थसंपदा । दीणे य अभिमट्ठम्मि दीणा अत्थस्स संपदा ॥ १३७ ॥ अब्भंतरे मज्झिमे वा अभिम? बाहिरे पि वा । सेसे सेसं वियाणेज्जा असेसे य असेसयं ॥ १३८ ॥ ८ ॥ छ । उम्मटुं १ संविमटुं च२ णिम्मटुं ३ अपमज्जितं ४ । संमज्जितं ५ ठितामासे ६ आमटुं ७ अभिमज्जितं ८॥ १३९ ।। इच्चेते अट्ठ आमासा एक्कक्को पविभागसो । पविभत्तासु संजुत्ता आमासा सेतअट्ठ १०८ या ॥ १४० ॥ 25 मूलामासा य अद्रुमे संजोगपविभागसो । अण्णोण्णसमायोगेणं बहवो होंति मिस्सगा || १४१ ॥ मिस्सका वि य आमासा मूलामासगमेण तु । णेतव्वा कमसो सव्वे जधुत्तेणं सतीमता ॥ १४२ ॥ अपीलिता पीलिता य बज्झ-ऽब्भंतर-मज्झिमा । पुरिमा पच्छिमा वा वि वामा य तध दक्खिणा ॥ १४३ ॥ साधारणा य ऐतेसिं दढा चलित-कंपिता । उदत्ता अणुदत्ता य थी-पुमंस-णेपुंसगं ॥ १४४ ॥ उत्तमा मज्झिमा वा वि जधण्णा मिस्सया तधा । इस्सराऽणिस्सरा य स्सा तेहिं साधारणा वि य ॥ १४५ ।। 30 बंभणा खत्तिया वेस्सा सुद्दा बाला समज्झिमा । महावया य ओवाता काला सामा य मिस्सका ॥ १४६ ॥ रातिदियविभागेहिं कालजातेहिं संधिहि । भूत-भव्वेहिं भावहिं वत्तमाणगुणेहि य ॥ १४७ ।। १ आगासे सत्थ सावणं हं० त० ॥ २ सिद्धा हं० त० ॥ ३ मज्झे अत्थस्स सप्र० ॥ ४ अभिमज्जितं सप्र० ॥ ५ अट्ठमं अभिमज्जति सप्र०॥ ६ सत्त' सप्र० ॥ ७ "समयोगेण सप्र० ॥ ८ तेण मयीमया हं० त० ॥ ९ एतेहिं दढा हं० त० विना ॥ १० णपुंसगा हं० त० ॥ ११ 'स्सा' स्यादित्यर्थः ॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ अंगविज्जापइण्णयं [णवमं अपस्सयएतेसि आमासगमो अप्पमेयो त्ति आहितो । सुभा-ऽसुभेसु भावेसु णेयो मित्तिणा सदा ॥ १४८ ॥ चिंतया अंतरंगम्मि बाहिरंगे य चितका । विभत्ति उवधारेत्ता ततो सम्मं वियागरे । १४९ ।।। अब्भंतरे दिवा जातं सुक्कपक्खे य णिद्दिसे । रत्तिजातं च बज्झेसु कालपक्खे य णिद्दिसे ॥ १५० ॥ अब्भंतरम्मि उम्मटे ओवातं तु वियागरे । सामा सामेण णातव्वा बाहिरेण तु कालया ॥ १५१ ॥ बालामासेसु बालो य तरुणेसु तरुणो भवे । मज्झिमो मज्झिमंगेसु उतमेसु मेहव्वओ ॥ १५२ ।। उद्धं णाभीय गत्तेसु विण्णेओ इस्सरो भवे । अणिस्सरो अधोभागे पेस्सो पाए व जंघासु ॥ १५३ ॥ सिरो-मुहम्मि आमासे बंभणो जातिया भवे । बाहूदरे य आमटे खत्तिओ जातिया भवे ॥ १५४ ॥ पस्से उरे परामटे वेस्सो जातीय वा भवे । पाद-जंधपरामासे सुद्दो जातीय णिद्दिसे ॥ १५५ ॥ सिरो-मुहपरामासे तधा अब्भंतरेसु य । जातिमंतं वियाणीया जाणितं पितुणा तधा ॥ १५६ ॥ मज्झिमंगेसु जाणीया विण्णेयो मज्झिमव्वयो । हेट्ठा जहण्णो जातीय बझंगे जारकेण तु ॥ १५७ ॥ अब्भंतराणं बज्झाणं मज्झिमाणं तधेव य । साहारणेसु संधिसु संझा पुव्वावरा भवे ।। १५८ ॥ पुरिमे पुरिमं जाणीया दक्खिणे दक्खिणं वदे । अवरसजमगत्तेसु विज्जा वामेसु उत्तरं ॥ १५९ ॥ तधंतरदिसा वा वि पुव्वपच्छिमसंधिसु । वामदक्खिणजंतेहिं विज्जा साधारणेहिं तु ॥ १६० ॥ पुण्णामेहिं पुमं जाणे थीणामंगेहिं थी वदे । अंगुलंतरसंधीहि णपुंसत्थो पकित्तितो ॥ १६९ ।। अप्पसत्थेसु सव्वेसु पसत्थं णाभिणिद्दिसे । आमासेसु पसत्थेसु अप्पसत्थे ण णिद्दिसे ॥ १६२ ।। ॥ आमासगंडिका सम्मत्ता महापुरिसदिण्णाय० ॥ ८ ॥ छ । 10 15 [णवमं अपस्सयपडलं] आमासट्ठसतं अंगे इति वुत्तं विभागसो । अपस्सये सत्तरस कित्तयिस्समऽतो परं ॥ १ ॥ आसणापस्सते चेव १ सेज्जा २ जाणे अपस्सतो ३ । अपस्सतो य पुरिसे ४ इत्थीय ५ तध णपुंसके ६ ॥ २ ॥ अपस्सयो य पिडायं ७ दारप्पिधणे तधा ८ । कुडम्मि ९ खंभे १० रुक्खम्मि ११ चेतिते य अपस्सयो १२ ॥ ३ ॥ अपस्सतो य हरितेसु १३ भायणापस्सतो तधा १४ । भूमीधातुमयो चेव अवत्थंभो पकित्तितो १५ ॥ ४ ॥ मूलजोणीगते सुक्खे १६ अट्ठीसु य अपस्सतो १७ । अपस्सया सत्तरस दढो चेव पकित्तितो ॥ ५ ॥ आसंदओ १ भद्दपीठं २ डिप्फरो ३ फैलकी तधा ४ । भिसि ५ कट्ठमयं पीढं ६ तधा य तणपीढकं ७ ॥ ६ ॥ < मैट्टियापीढयं चेव ८ तधा छगणपीढगं ९ । स एवमादि भवे णेयं आसणप्पस्सए विधि ॥ ७ ॥ उक्कस्स मज्झिमो यावि जहण्णो वा वि सारतो । आसणापस्सओ तिविधो असुभो य सुभो तधा १ ॥ ८ ॥ सयणा १ऽऽसणं च २ पल्लंको ३ मंच ४ मासालके तधा ५ । मंचिका चेव ६ खट्टा य ७ सेज्जा य ८ तधेव य ॥ ९ ॥ एवमादी तु विण्णेया सयणे वि अपस्सता । सारतो तिविधा चेव दुविधा पुज्ज-णिदिता २ ॥ १० ॥ सीया १ऽऽसंदणा वा वि २ जाणकं ३ घोलि ४ गैल्लिका ५ । सगडं ६ सगडी ७ याणं ८ जं चऽण्णं एवमादियं ।। ११ ॥ जाणार्पस्सए एसो पविभागविधी भवे । सारतो दुविधा चेव सुभा चेवाऽसुभा तधा ३ ॥ १२ ॥ मणुस्सो चेव पुरिसो, गय १ वाजी २ वसभो तधा ३ । करभो ४ सुभादयो चेव ५ पुरिसा तिज्जजोणिसु ॥ १३ ॥ 25 १ अप्पनेये त्ति हं० त० विना ॥ २ महव्वतो हं० त० विना ॥ ३ पस्सोपादवजंघासु सं ३ पु० । पस्सोपावदजंघसु सि० । पोस्सापायवजंघासु हं० त० ॥ ४ परामुढे हं० त० ॥ ५ वेसो हं० त० विना ॥ ६ जणितं सि० ॥ ७ अवरपजेमग सं ३ पु० । अवरपच्छिमग सि० ॥ ८ ‘णजुत्तेहिं सं ३ पु० सि० ॥ ९ रमत्तीहिं सं ३ पु० ॥ १० हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ११ फलही तहा हं० त० ॥ १२ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पङलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ २७ पुरिसावस्सये चेव विधी णेयो विभागसो । बाल जोव्वण दीणो य विण्णेया उ विधीहि य ४ ॥ १४ ॥ महिलापस्सए चेव एस णेया विधी भवे ५ । णपुंसके अवत्थंभे विधी एस विभागसो ६ ॥ १५ ॥ वामाय दक्खिणायं वा विद्दायतु अपस्सयो । वज्जा-ऽवज्जेहि विण्णेयो तधा थाणविधीहि य ७ ॥ १६ ॥ किडिका १ दारुकवाडं वा २ हुस्सावरणं भवे ३ । णेयं सावज्जमणवज्जं दुब्बलं बलियं तधा ८ ॥ १७ ॥ कुड़ो लित्तो १ अलित्तो वा २ चेलिमो दुविधो भवे । कुट्टो फलकमयो चेव ३ तधा फलकपासितो ४ ॥ १८ ॥ 5 णवो जुण्णो य विण्णेयो दुब्बलो बलितो तधा । महासाया विणभत्ती णिव्वज्जे वा कुतो भवे ॥ १९ ॥ सावज्जो चंचलो यावि णिप्पकंपो थिरो तधा । कुडापस्सयविधी जघण्णुत्तम-मज्झिमो ९ ॥ २० ॥ पाहाणस्स खंभो य मज्झिमो गिहधारणो १ । गिहस्स धारिणी धरणी चेवं २ थंभो पिलक्खकस्स य ३ ॥ २१ ॥ णावाखंभो य खंभो ४ छायाखंभो तधेव य ५ । दीवरुक्खस्स लट्ठी य ६ दगलट्ठी तधेव य ७ ॥ २२ ॥ खंभा य एवमादीया जे भवंति समुट्ठिता | खंभावस्सए एस विण्णेया तु विधी भवे ॥ २३ ॥ 10 सेल-कट्ट-ऽटिकमया विण्णेया मिस्सया तधा । अपस्सएसु जे खंभा जघण्णुत्तम-मज्झिमा १० ॥ २४ ॥ असुभा कंटकीरुक्खा १ खीररुक्खा तधेव य २ । उत्तमा य भवे रुक्खा पत्त-पुप्फ-फलोपगा ३ ॥ २५ ॥ हिट्ठपत्त-पवाले तु फलापस्सवसालिणो । उदत्ता कित्तिया रुक्खा दीणेसु य असंपदा ११ ॥ २६ ॥ महिरासी य उवलो य रुक्खे य तध पेढिका । मणुस्स-तिज्जजोणीणं सालसा पडिमा तधा ॥ २७ ॥ सेल-लोह-ऽटि-कट्ठहिं णिमित्तं पडिमा भवे । पोत्थकम्मे य चित्ते य अधोगागारसंथिता ॥ २८ ॥ 15 मितु-दारुण सोम्मा तु उत्तमा अधम मज्झिमा । सुभा य असुभा चेव पडिमावस्सया भवे १२ ॥ २९ ॥ तणस्स भारो हरितो १ पत्तभारो तधेव य २ । भारो य फल ३ पुप्फाणं ४ हरितावस्सए विधी ॥ ३० ॥ सुभा य असुभा चेव पच्चूदग्गाण वा तधा । मिलाणा पडिजुण्णा य हरितावस्सया भवे १३ ।। ३१ ॥ कुंभकारकतं चेव १ तधा लोहमयं भवे २ । पडलं ३ कोत्थकापलं ४ मंजूसा ५ कट्ठभायणं ६ ॥ ३२ ॥ भायणा एवमादीया अवत्थंभे पकित्तिता । अणवज्जा य सावज्जा पुण्णामा तुच्छका तधा ॥ ३३ ॥ 20 रसेण केणयि पुण्णा परिपुण्णा भोयणस्स वा । उदगस्स वा भवे पुण्णा धण--धण्णेहिं पूरिता ॥ ३४ ॥ एतेहिं वा भवे रिक्कं एतेसामेव भायणं । ऊणकं वा वि एतेहिं भायणापस्सते विधि १४ ॥ ३५ ॥ सोलोयाण (सेलेयो वा १) भूमिमयो २ तथा लोहमयो भवे ३ । भूमी-धातुमयो एसो अवत्थंभो सुभा-ऽसुभो १५ ॥ ३६ ॥ तण १ पत्ताणि २ कद्राणि ३ चेल ४ पप्फ ५ फलाणि य६ । मलजोणिगते सक्खे विधि एस अपस्सते १६ ।। ३७ ।। 24 चतुप्पदाणं मच्छाणं दंत-संग-ऽट्ठिकाणि तु । एस अट्ठिगते णेयो विधि सुक्खे अपस्सते १७ ॥ ३८ ॥ ___ भूमिधातुपरिदड्डो मूलजोणिगतो वि वा । झामितो अट्ठिधातू वा झामितापस्सए विधि ॥ ३९ ॥ सजीवमजीवो वा [वि] दुविधो णेयो अपस्सयो । जंगमो थावरो चेव सजीवो दुविधो भवे ॥ ४० ॥ धातुजोणीसमुत्थाणो १ मूलजोणिसमुत्थितो २ । पाणजोणिसमुत्थाणो ३ अजीवो तिविधो भवे ॥ ४१ ॥ एते अपस्सया सव्वे विण्णेया विविधप्फला । पसत्था १ अप्पसत्था य २ मिस्सगा य ३ विभागसो ॥ ४२ ॥ 30 १ फलह.....सिओ हं० त० ॥ २ मेधासाया विणभित्ती सं० वा० । मेधासाया वि ण भत्ती मो० । मधासिया विणभित्ती सि० ॥ ३ उवन्ना हं० । उवत्ता त० ॥ ४ सातला मो० ॥ ५ 'मितु' मृत्तिकेत्यर्थः ॥ ६ वधस्स हं० त० ॥ ७ पत्तसारो सप्र० ॥ ८ पव्व उद" हं त० ॥ ९ तत्थका हं० त० विना ॥ १० पुणो परि हं० त० ॥ ११ तूणकं हं० त० ॥ १२ सेलोतडो भूमि हं० त० विना ॥ १३ अपस्सतु सप्र० ॥ १४ सुक्के हं० त० ॥ १५ पि वा हं० त० ॥ १६ अट्ठधातू हं० त० विना ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 अंगविज्जापइण्णयं [णवमं अपस्सयपुण्णामा चेव सुद्धा य दढा चेव असंथिता । पुण्णा मुदिता उदत्ता य पूयिता तु अपस्सया ॥ ४३ ॥ णपुंसका चला दुक्खा किलिट्ठा य ण संथिता । दीणा तुच्छा पसन्ना य अप्पसत्था अपस्सया ॥ ४४ ॥ थीणं अत्थेसु थीणामा विण्णेया तु अपस्सया । पुण्णामा पुरिसत्थेसु णपुंसत्थे णपुंसका ॥ ४५ ॥ अपस्सयेसुदत्तेसु सुभस्सऽत्थस्स संपदा । असुभस्स यावि अत्थस्स असंपत्ति वियागरे ॥ ४६ ॥ अणुपत्ते अपत्थंभे असुभऽत्थस्स संपदा । सुभस्स यावि अत्थस्स असंपत्तिं वियागरे ॥ ४७ ॥ सुभा-ऽसुभेसु सव्वेसु अपत्थंभेसु अंगवी । तज्जातपडिरूवेण इट्ठाऽणिट्ठफलं वदे ॥ ४८ ॥ अपस्सयविधी एसो संगहेण पकित्तितो । पिधप्पिधं च एतेसिं विभागे वित्थरो इमो ॥ ४९ ॥ आसणापस्सयो चेव पल्लंक-सयणा-5ऽसणे । [............ ............. || ५० ॥] सयणा-ऽऽसणऽपत्थंभे जहण्णुत्तम-मज्झिमे । तज्जातपडिरूवेण विभत्तीय वियागरे ॥ ५१ ॥ पुरिसं जो अपत्थद्धो पुरिसो पुच्छति अंगवि । पुत्तं पसं व मित्तं वा महिसं हत्थि तधोसमं ॥ ५२ ।। पुण्णामधेयं जं किंचि तस्स लाभं समागमं । विवद्धि अत्थसिद्धि च सव्वमत्थि ति णिद्दिसे ॥ ५३ ॥ पमदं जो अपत्थद्धो पुरिसो पुच्छति अंगवि । सुण्हं दुहितरं दासी गावी महिसि तधेव य ॥ ५४ ॥ थीणामधेयं जं किंचि तस्स लाभं समागमं । विवद्धि अत्थसिद्धि च सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ५५ ॥ महिलाय अपत्थद्धो पुरिसो पुच्छति अंगवि । पुण्णामधेयं जं किंचि तस्स णत्थि ति णिद्दिसे ॥ ५६ ॥ थियायं पुरिसे वा वि पुरिसो जो अपस्सिओ । णपुंसकत्थं पुच्छेज्जा णत्थि तेवं वियाकरे ॥ ५७ ॥ पुरिसं जा अपत्थद्धा महिला पुच्छेज्ज अंगवि । पति पुत्तं च मित्तं च हत्थि अस्सं तधोसभं ॥ ५८ ॥ पुण्णामधेयं जं किंचि तस्स लाभं समागमं । विवद्धिं अत्थसिद्धिं च सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥ ५९ ॥ पुरिसं जा अपत्थद्धा महिला पुच्छति अंगविं । सुण्डं दुहितरं दासी पसुका-महिसि-गाविओ ॥ ६० ॥ थीणामधेयं जं किंचि तस्स लाभं समागमं । अत्थसिद्धि विवद्धि च सव्वमत्थि ति णिद्दिसे ॥ ६१ ॥ पमदायं अपत्थद्धा महिला पुच्छति अंगविं । पति पुत्तं च महिसं च हत्थि अस्सं तधोसभं ॥ ६२ ॥ पुण्णामधेयं जं किंचि तस्स लाभं समागमं । अत्थसिद्धिं विवद्धि च सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ६३ ॥ पमदायं अपत्थद्धा पमदा पुच्छति अंगवि । सुण्हं दुहितरं दासी पसुका-महिसि-गाविओ ॥ ६४ ॥ थीणामधेयं जं किंचि तस्स लाभं समागमं । अत्थसिद्धि विवद्धिं च सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥ ६५ ॥ पमदायं च पुरिसो पुरिसे व पमदा सिता । णपुंसकत्थं पुच्छेज्ज णत्थित्तेण वियागरे । ६६ ।। णपुंसके अपत्थद्धो पुरिसो अत्थं तु पुच्छति । पुण्णामधेयं जं किंचि सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे ॥ ६७ ॥ णपुंसके अपत्थद्धो पुरिसो अत्थं तु पुच्छति । थीणामधेयं जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥ ६८ ॥ णपुंसके अपत्थद्धा महिला अत्थं तु पुच्छति । थीणामधेयं जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ६९ ॥ पुरिसम्मि अपत्थद्धो अत्थं पुच्छे णपुंसको । पुण्णामधेयं जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥ ७० ॥ पुरिसम्मि अपत्थद्धो अत्थं पुच्छे णपुंसको । थीणामधेयं जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७१ ॥ पमदायं अपत्थद्धो अत्थं पुच्छे णपुंसको । पुण्णामधेयं जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ।। ७२ ॥ पमदायं अपत्थद्धो अत्थं पुच्छे णपुंसको । थीणामधेयं जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७३ ॥ णपुंसके अपत्थद्धो अत्थं पुच्छे णपुंसको । णपुंसकं तु जं किंचि सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे ॥ ७४ ॥ 30 १ पुरिसं सप्र० ॥ २ ण्हुसं हं० त० ॥ ३ महागमं हं० त० विना ॥ ४ ण्हुसं दु हं० त० ॥ ५ "सिता' स्यादित्यर्थः ।। ६ सव्वमाथि त्ति त० ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ पडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ णपुंसके अपत्थद्धो अत्थं पुच्छे णपुंसको । पुण्णामधेयं जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ।। ७५ ॥ णपुंसके अपत्थद्धो अत्थं पुच्छे णपुंसको । थीणामधेयं जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७६ ॥ पमदायं च पुरिसे च पंडको जो अपस्सितो । णपुंसकत्थं पुच्छेज्ज अत्थि त्ति अभिणिद्दिसे ॥ ७७ ॥ पुरिसो पमदा वा वि पंडकं जे अपस्सिते । अत्थि त्ति परिपुच्छेज्ज सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७८ ।। पडिपुण्णम्मि बालम्मि उदग्गे जोव्वणत्थिते । विगाढे मज्झिमवये जुण्णे आतंकिते तथा ॥ ७९ ॥ आरोग्गं वाधिपुट्ठम्मि हीणे दीणे व अंगवि । उदत्तदेसे मुदिते हीणालंकारभूसिते ॥ ८० ॥ पुरिसे य पमदायं च तधेव य णपुंसके । मणुस्स-तिज्जजोणीसु अपत्थद्धेसु अंगवी ॥ ८१ ।। सुभा-ऽसुभं फलं सव्वं तज्जातपडिरूवतो । इढे इटुं वियाणीया अणिढे वि य गरहियं ।। ८२ जाणम्मि तु अपत्थद्धो जदि पुच्छति अंगविं । जहण्णुत्तम-मज्झम्मि फलं बूया विभागसो ॥ ८३ ।। अचले उत्तमे जाणे उत्तमत्थो पसस्सते । मज्झिमे मज्झिमो अत्थो एत्थ मे णत्थि संसतो ॥ ८४ ॥ 10 जुत्तम्मि [य] अपत्थद्धे जाणे जो तु पुच्छति । सव्वसंगमणं बूया ततो चेवऽत्थसंपदा ॥ ८५ ॥ पिढें णरो व णारी वा दक्खिणं जो अपस्सितो । अब्भंतरामुहो पुच्छे गिहस्सऽभंतराठितो ॥ ८६ ॥ आगामी पवसियं बूया पुत्तमावण्णमादिसे । पतिणा समागमं बूया पुत्तेण य समागमं ॥ ८७ ॥ पिट्टे णरो व णारी वा दक्खिणं जो अपस्सितो । बाहिराभिमुहो पुच्छे गिहमब्भंतरा ठितो ॥ ८८ ।। कण्णा य पतिलाभा य गब्भिणी य पजायति । पवासं णिग्गमं मोक्खं सव्वं बूया अणागतं ॥ ८९ ॥ 15 पिढें णरो व णारी वा दक्खिणं जो अपस्सितो । बाहिराभिमुहो पुच्छे उम्मरस्स बहिं ठितो ॥ ९० ॥ कण्णा य पतिलाभा य गब्भिणी य पजायति । पवासं णिग्गमं मोक्खं सज्जकालं पवेदये ॥ ९१ ॥ पिढें णरो व णारी वा दक्खिणं जो अपस्सितो । अभितरीमुहो पुच्छे उम्मरस्स बहिं ठितो ॥ ९२ ॥ आगामी पवसियं बूया कण्णा वा वि उवद्रुितं । पतिणा समागमं बूया पुत्तेण य समागमं ॥ ९३ ॥ पिढें णरो व णारी वा वामं जो अपस्सितो । अभितरामुहो पुच्छे गिहस्सऽब्भंतरा ठितो ॥ ९४ ॥ 20 ण्हुसं पतिट्ठियं बूया कण्णं वा वि पतिट्ठियं । ण्हुसाय संगमं बूया भज्जाय य समागमं ॥ ९५ ॥ पिढें णरो व णारी वा वामं जो अपस्सियो । बाहिराभिमुहो पुच्छे गिहस्सऽब्भंतरा ठितो || ९६ ॥ ण्हुसं पतिट्ठियं बूया कण्णं वा वि पतिट्ठियं । ण्हुसाय संगमं बूया भज्जाय य समागमं ॥ ९७ ॥ पिढें णरो व णारी वा वामं जो अपस्सितो । बाहिराभिमुहो पुच्छे बहि ठातुत्तरुंबरे ॥ ९८ ॥ पवासं णारिए बूया गब्भिणीय पयायणं । मोक्खं वि या णिग्गमणं सज्जकालं पवेदये ॥ ९९ ॥ पिढें णरो व णारी वा वामं जो अपस्सितो । अब्भंतरमुहो पुच्छे बहि ठातुत्तरुंबरे ॥ १० ॥ पवस्सिस्साऽऽगमं बूया कण्णं वा वि उवट्ठियं । ण्हुसाय भज्जाय समं संगमो समुवस्थितो ॥ १०१ ।। सुक्कं तण व कटुं वा कवाडं कडिकं तधा । जैज्जरं तध भिण्णं वा अप्पसत्थं अपस्सते ॥ १०२ ॥ णवं जुण्णं च णिव्वज्जं चेतितं दुविधं पि वा । अपस्सये कवाडाणि सुभेणऽत्थेण जोजये ॥ १०३ ॥ अब्भंतरकवाडे जो पुच्छेज्जऽणुपस्सितो । आगमो णिग्गमो णत्थि संरोधं वा वि णिद्दिसे ॥ १०४ ॥ 30 बाहिरेण कवाडस्स पुच्छेज्ज अणुपस्सितो । आगमं णिग्गमं बूया संरोधं च ण णिद्दिसे ॥ १०५ ॥ १ सव्वमथि त्ति त० ॥ २ अरोगं वावियुद्धम्मि हं० त० ॥ ३ अपत्थंभेसु सप्र० ॥ ४ उम्बरस्य इत्यर्थः ॥ ५ दक्खिणे हं० त० ॥ ६ “राभिमुहो हं० त० ॥ ७ भज्जाइ य हं० त० ॥ ८ पुच्छे गिहस्सऽब्भंतरा ठितो सप्र० ॥ ९ रुम्मरे हं० त० ॥ १० सुक्खत्तणं हं० त० विना ॥ ११ जज्जरंतरभिन्नं वा हं० त० ॥ १२ "ज्जं चिंतितं सप्र० ॥ १३ योजयेत् इत्यर्थः ॥ १४ भावि णि' हं० त० ॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 15 अंगविज्जापइण्णयं [णवमं अपस्सयजुण्णो वि जज्जरो कुड्डो सव्वत्थीके णिरत्थको । णवो दढो उज्जुको य सव्वत्थीके पसस्सते ॥ १०६ ॥ मट्ठो चित्तो य सुद्धो य दढो वा वी सुभो तधा । अपस्सयत्थे कुड्डो सव्वत्थे पूयितो सदा ॥ १०७ ॥ कंडितो अलित्तो तणकुड्डो तधा कणगपासितो । कुड्डापस्सया एते असारा ण प्पसस्सते ॥ १०८ ॥ चित्तिको मज्झयक्खंभो उज्जुकस्सो पसस्सति । जज्जरो फलितो भिण्णो सव्वत्थेसु ण पूयितो ॥ १०९ ॥ पासादस्स तधा खंभो धारणो य गिहस्स जो । णावाखंभों झयक्खंभो दगलट्ठी य पूयिता ॥ ११० ॥ दीवरुक्खस्स लट्ठी [य] णिव्वज्जा उज्जुका थिरा । एते अत्थगते इट्ठा पसत्था य अपस्सता ॥ १११ ॥ पीडोलकस्स खंभो छायाखंभो मतस्स य । चल भग्गो य भिण्णो य सव्वे थंभा ण पूयिता ॥ ११२ ॥ पुष्फिया फलिया णीला चेतिता खीरपादपा । अपस्सते पसत्था या सव्वत्थीगगते सुभा ॥ ११३ ॥ णिपुप्फो णिप्फलो सुक्खो जो य कंटकिपायवो । दड्डो भिण्णो य भग्गो य सव्वत्थीके ण पूयितो ॥ ११४ ॥ सोम्मा उ अवक्खित्ता उदत्ता सव्वचेतितपादवा । अपस्सया पसस्संते सव्वत्थीकै कते सुभे ॥ ११५ ॥ अणभियिता चला भिण्णा उच्छुद्धा झामिता तधा । खंड-भग्गा विसिण्णा य अपत्थंभे ण पयिता ॥ ११६ ॥ तणभारो वि वा णीलो णीलो वा पण्णवोट्टलो । पोट्टलो फल--मूलाणं पुप्फाणं च पसस्सते ॥ ११७ ॥ पहट्ठा अकिलिट्ठा य सव्वत्थीके पसस्सते । हरितापस्सता सव्वे मिलाणा ण प्पसस्सते ॥ ११८ ॥ केला घतस्स तेल्लस्स सुराकुंभो अरंजरो । भायणं बीयपुण्णं वा सव्वत्थीगे पसस्सते ॥ ११९ ॥ मणि-मुत्त-हिरण्णाणं तधा अच्छादणस्स य । मंजूसा पडिपुग्णा वा अपत्थंभेसु पूयिता ॥ १२० ॥ दधि-दुद्धस्स पुण्णा य परिपुण्णा भोयणस्स य । गुल-लवणस्स मज्जस्स परिपुण्णाऽपस्सया सुभा ॥ १२१ ॥ एते अपस्सया सव्वे भायणेसु सुपूयिता । णिव्वुत्तीणं पसत्थाणं सत्थाणं अत्थसाधका ॥ १२२ ॥ पुण्णाणि तु एताणि उत्तमत्थकराणि तु । ऊणेसु किंचि परिहाणी उत्तमस्स पकित्तिता ॥ १२३ ॥ रित्तकेसु तु एतेसु मज्झिमा अत्थसंपदा । एलोट्टितं वा भिण्णं वा सव्वत्थीके णिरत्थकं ॥ १२४ ।। थलिका सिला तडं वा वि थावरेसु पसस्सते । आगमे णिग्गमे वा वि चरेसु णि (ण) पसस्सते ॥ १२५ ॥ तणस्स भारो सुक्खो [वा] सुक्खो वा पण्णपोट्टलो । फल-पुष्फपोट्टला सुक्खा सव्वत्थीके ण पूयिता ॥ १२६ ॥ विसाणं अट्टिकं कटुं सव्वत्थीके ण पूयितं । इंगाल-छारिका पुंसु (पंसु) सव्वत्थीके ण पूयितं ॥ १२७ ॥ कटुं वा सयणं वा वि आसणं जाणमेव य । सेलो तडो व भित्ती बा दड्डा चेते ण पूयिता ॥ १२८ ।। पराजयमणारोग्गं अत्थहाणिमणिव्वुर्ति । विसंजोगं च जाणीया झामियापस्सये विदू ॥ १२१ ।। सजीवेसु य सज्जीवं अत्थं बूया वियक्खणो । अज्जीवेसु य अज्जीवं अपत्थद्धेसु णिदिसे ॥ १३० ॥ चउप्पदे अपत्थद्धो अत्थं पुच्छति अंगविं । चउप्पयं वा जाणं वा अस्थि त्तेवं वियागरे ॥ १३१ ॥ धण्णम्मि य अपत्थद्धो अंगवी परिपुच्छति । वासारत्तं व अग्धं वा सव्वमेत्थं पवेदये ॥ १३२ ।। जाणम्मि [य] अपत्थद्धो अंगवि परिपुच्छति । गमणं वा पवासं वा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १३३ ॥ अपस्सयेसु सव्वेसु अत्थो से-परसंसितो । अणापस्सयरूवेसु भवे अत्थो असंसितो ॥ १३४ ॥ जाणे वा वाहणे वा वि अपत्थद्धो तु पुच्छते । चले पवासं मोक्खं च अचले अत्थमादिसे ॥ १३५ ।। 25 30 १मत्तो चित्तो य मुद्धो य हं० त० ॥ २ कलितो अलितो तणकुड्डो तहा कडमपासितो हं० त० ॥ ३ मज्झकुंभो य उ हं० त० ।। ४ 'भो य पक्खंभो हं० त० ॥ ५ पड्डोलकस्स खंभा मो० ली० सि० । पड्डोलक्खस्स खंभा सं० ॥६ चलरुक्खा य हं० त० ॥ ७ के हथे सुभे हं० त० ॥ ८ उच्छुढा हं० त० ॥ ९ सामिता हं० त० विना ॥ १० "लवणं समणुज्जस्स हं० त० ॥ ११ णिव्वत्तीणं हं० त० ॥ १२ अत्थाणं हं० त० विना ।। १३ चरणे पुण पस हं० त० ॥ १४ सामियावसये हं० त० विना ॥ १५ अप्पसत्थेसु सप्र० ॥ १६ सपरसंतितो सं३ । समरसंतितो सि० ॥ १७ असंतितो सि० ॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडलं] __ अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ सोमाणे वा सिंतीयं वा अपत्थद्धो तु पुच्छति । पवासं अत्थहाणि च चलेसु चलसंपदा ॥ १३६ ॥ आसंदगे अपत्थद्धो अंगविं परिपुच्छति । वरसंसितइक्कस्सं अत्थसिद्धिं च णिदिसे ॥ १३७ ॥ सापस्सते अपत्थद्धो आउत्तो जदि पुच्छति । भज्जं ण्हुसं कुडुंबं च खेत्त वत्थु च अत्थितं ॥ १३८ ॥ आसणे सव्वतोभद्दे अपत्थद्धो तु पुच्छति । कुडुंबवद्धि इस्सरियं काम-भोगे य णिद्दिसे ।। १३९ ॥ सयणा-ऽऽसणे अपत्थद्धो अत्थं जं किंचि पुच्छति । भज्ज पुत्तघरा-ऽऽवासं अत्थलाभं च णिद्दिसे ॥ १४० ॥ 5 दारपिंडायऽपत्थद्धो वामायं जति पुच्छति । भज्जाणिमित्तं अस्थस्स हाणी सोगं च णिदिसे ॥ १४१ ॥ दारपिंडं अपत्थद्धो दक्खिणं जति पुच्छति । मातुणिमित्तं सोकं च अत्थहाणि च णिदिसे ॥ १४२ ॥ कवाडम्मि अपत्थद्धो अत्थं जं किंचि पुच्छति । पितुणिमित्तं सोकं च अत्थहाणि च णिद्दिसे ॥ १४३ ॥ अरंजरस्स पुण्णस्स पेढिकं जो अपस्सितो । जं किंचि सुभं पुच्छेज्ज सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १४४ ॥ सापस्सते सअत्थारे इट्ठम्मि जति पुच्छति । अत्थसिद्धि कुटुंबस्स अत्थसिद्धी य णिद्दिसे ॥ १४५ ॥ 10 दढं कुड्डा सुभं गेहं पुच्छे जति अपस्सितो । अंतो अब्भंतरो अत्थो सुभो वज्जो(बज्झो) य हायति ॥ १४६ ॥ अपत्थद्धो ठितो दारे अत्थं च जति पुच्छति । कण्णापवाहणे मोक्खं पवासं चऽत्थ णिद्दिसे ॥ १४७ ।। अपत्थद्धो ठितो खंभे अत्थं च जति पुच्छति । मणुस्सजाता वणजाता अप्पसत्थं च णिद्दिसे ॥ १४८ ।। उग्घाडं वा कवाडं वा अपत्थद्धो तु पुच्छति । कुडुंबहाणी धणहाणी केसं सोगं च णिदिसे ॥ १४९ ॥ वेइयं पेढियं वा वि णिस्सेणि वा अपस्सितो । जं किंचि अत्थं पुच्छेज्ज बाहिरत्थे पसस्सते ॥ १५० ॥ 15 चेतिके जो अपत्थद्धो अत्थं जं किंचि पुच्छति । दिव्वमिस्सरियं भोगे उदत्तमिति णिदिसे ॥ १५१ ।। बद्ध अपस्सते बंधं मिधो भेदं च जज्जरे । विणिपातं चे खंडम्मि हाणि भंगं विणिदिसे ॥ १५२ ॥ जाणे वा वाहणे वा वि अवत्थद्धो तु पुच्छति । चले पवासं मोक्खं च अचले अत्थमादिसे ॥ १५३ ॥ सोमाणे सीतिअं वा वि अपत्थद्धो तु पुच्छति । पवासं अत्थहाणि च चलेसु चलसंपदा ॥ १५४ ।। अपस्सयम्हि सज्जीवे सज्जीवत्थं वियागरे । अज्जीवम्मि य अज्जीवं विभत्तीय वियागरे ॥ १५५ ॥ 20 अपस्सये उत्तमम्मि उदत्ता अत्थसंपदा । मज्झे य मज्झिमा बद्धी दीणे दीणं पवेदये ॥ १५६ ।। अपस्सतेसु सव्वेसु तज्जातपंडिरूवणं । अपेक्ख सम्म बूया जघण्णुत्तम-मज्झिमं ॥ १५७ ॥ अप्पसत्थेसु सव्वेसु + पंसत्थं णाभिणिद्दिसे । पसत्थेसु य सव्वेसु , अप्पसत्थं ण णिद्दिसे ॥ १५८ ।। ॥ अपस्सयाणि सम्मत्ताणि ॥ ९ ॥ छ । [दसमं ठियपडलं] अपस्सया सत्तरस इति वुत्ता विभागसो । अट्ठावीसं ठिताणंगे कित्तइस्सं विभागसो ॥ १ ॥ पुरतो १ दक्खिणतो चेव २ पच्छतो ३ वामतो तथा ४ ।। विदिसासु चेव ठाणाणि ८ उड्ढे ९ तध अधे य तु १० ॥ २ ॥ एवं दिसाविभागेण ठाणं दसविधं भवे । अट्ठावीसविधीजुत्तं पतिवाणं विधीयते ॥ ३ ॥ १ सोमासे हं० त० विना ॥ २ 'सितीयं' शिबिकायामित्यर्थः ॥ ३ वरसंसितइसिक्खं हं० त० विना ॥ ४ आगुत्तो जति हं० त० ॥ ५ मेत्तणि सि० । सामूणि हं० त० ॥ ६ सोकस्स अत्थ सप्र० ॥ ७ “स्स पदिकं हं० त० ॥ ८ तो असत्थारे हं० त० ॥ ९ य आहति हं० त० विना ॥ १० तत्थ हं० त०॥ ११ जाती धणुजाती हं० त० विना ॥ १२ रोगं सोगं सि० ॥ १३ दव्वमि हं० त० ॥ १४ विणीघातं हं० त० विना ॥ १५ च खुम्मि हं० त० ॥ १६ सोमाणसेतीअं हं० त० विना ॥ १७ “यम्मि जीवेसु जीवत्थं हं० त० ॥ १८ “पडिग्घायणं सं ३ पु० । 'पडियायणं सि० ॥ १९ हस्तचिह्नमध्यवर्ती अयं पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ २० त्तयस्सं हं० त० ॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 अंगविज्जापइण्णयं [ दसमं ठियपतिट्ठाणविसेसेहिं विभंगा वीसमट्ठ य । ठाणे अणेया अंगविणा जघण्णुत्तम-मज्झिमा ॥ ४ ॥ आसणे १ सयणे चेव २ तधेव सयणाऽऽसणे ३ । चतुष्पदे ४ मणुस्सेसु ५ ठाणा जाणविधीसु य ६ ॥ ५ ॥ गेहम्मि पासादतले ठाणं ७ सोपाणसेणिसु ८ । रुक्खट्ठाणे य हरितम्मि ९ मालायोणिगते सुभे १० ॥ ६ ॥ धण्ण ११ भायणजोणीयं ठाणं १२ वेत्थुपरिच्छदे १३ । मणि-मुत्त-पेण्ह-रजते १४ भूसणा-5ऽभरणेसु वा १५ ॥ ७॥ भोयणोपक्खरे चेव ठाणं संपरिकित्तियं १६ । उच्चणीचे व देसम्मि ठाणाणि संविजाणिया १७ ॥ ८ ॥ ठाणं च सुद्धपुढवीयं १८ ठाणं तध सिलायले १९ । उदगे २० कद्दमे चेव २१ अद्दे य तध गोमये २२ ॥ ९ ॥ पंथे य तधा ठाणं २३ पणाली-णिद्धमेसु य २४ । मूलजोणिगते सुक्खे ठाणं २५ असुचिकेसु य २६ ॥ १० ॥ केस-रोम-णह-ऽट्ठीसु ठाणं २७ ठाणं च झामिते २८ । अट्ठावीसं विधीजुत्ता ठाणा एवं विभावये ॥ ११ ॥ पसत्थमप्पसत्थं च दुविधं ठाणं समासतो । एक्कक्कं दुविधं तत्तो जीवा-उजीवविभागसो ॥ १२ ॥ सजीवं दुविधं तत्तो जंगमं थावरं तधा । अज्जीवं तिविधं भवति जोणीण पविभागसो ॥ १३ ॥ पाणजोणिगतं चेव मूलजोणिगतं तधा । धातुजोणिसमुत्थाणं अज्जीवं एव जाणिया ॥ १४ ॥ दढं चलं च लुक्खं च असुयिं सुयिरेव य । रमणीयमरम्मं च णिण्णं उण्णतमेव य ॥ १५ ॥ उदत्तमणुदत्तं च जहण्णुत्तम-मज्झिमं । ठाणमेवं भवे णेयं समासा वित्थरेण य ॥ १६ ॥ पुच्छकस्संगचेट्ठाहिं दीणोदत्तविधीहि य । तज्जातपडिरूवेहिं थाणं जहण्णुत्तम-मज्झिमं ॥ १७ ॥ पुरओ ठितं दक्खिणतो तधा पुरिमदक्खिणं । दक्खिणं पच्छिमे भागे ठितं पच्छिमतो तधा ॥ १८ ॥ G पच्छिमं वामभागम्मि वामे पस्से ठितं तधा । पुरिमं वामभागम्मि ठितं उद्ध अधो तधा ॥ १९ ॥ पुरस्थिमं ठितं जं तु तधा पुरिमदक्खिणं । ठितं दक्खिणतो जं च पुरिसस्सऽत्थे पसस्सते ॥ २० ॥ थिया वामं पसत्थं तु जं च वामपुरच्छिमं । पुरिसस्स वि घेताणि पमदत्थं पसस्सते ॥ २१ ॥ दक्खिणे पच्छिमे भागे वामभागे य पच्छिमे । पच्छिमाणि य ठाणाणि पसत्थाणि णपुंसके ॥ २२ ॥ . पुरिमे अणागतो अत्थो वत्तमाणो य पस्सतो । ठाणेसु अत्थो विण्णेयो अतिक्कंतो य पच्छतो ॥ २३ ॥ पुरस्थिमं दक्खिणतो जं च वामपुरत्थिमं । एतेसु पत्थितं विज्जा अत्थलाभं पुरेक्खडं ॥ २४ ॥ पच्छिमं दक्खिणं चेव जं वा वामेण पच्छिमं । एतेसु समतिकंतं विज्जा अत्थस्स संपदा ॥ २५ ॥ उपरि ठितो दिसाजं तु जो तु पुच्छति अंगवि । अत्थं विभत्तिसंजुत्तं पसत्थमभिणिदिसे ॥ २६ ॥ अधट्ठितो दिसायं तु जो तु पुच्छति अंगवि । पसत्थमपसत्थं वा वद्धी णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ २७ ।। एवं दिसासु विदिसासु ठाणाणि समपेक्खिया । थी-पुमंस-णपुंसाणि दीणोदत्ताणि णिद्दिसे ॥ २८ ॥ आसणे सयणे जाणे वत्थे आभरणे तधा । पुप्फेसु फल-मूलेसु धण्णे भोयणजातिसु ॥ २९ ॥ चतुप्पदे मणुस्से वा ठितो तु जदि पुच्छति । अत्थं अत्था पवेदेहिं अप्पियं च पुणो लहुं ॥ ३० ॥ उदगं कद्दमो चेव पासादस्स तलो तधा । मेदिणी-पादपत्थाणे पसत्था गोमयं तधा ॥ ३१ ॥ णीला साहा तणं णीलं परिसुक्खं गोमयं तधा । उपरिग्गहे व जाणे वा ण जयो ण पराजयो ॥ ३२ ॥ सुक्खसाहा तणं सुक्खं इंगाला छारिया तधा । एतेसु ठितो पुच्छेज्जा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ३३ ॥ सुट्ठिते सुट्ठितो अत्थो सुभे देसे सुभो भवे । चले ठिते चलो अत्थो दुट्टितम्मि य दुट्ठितो ॥ ३४ ॥ अंतोघरे ठितो पुच्छे सकमत्थं पवेदये । साधारणं मज्झिमम्मि बाहिरम्मि य बाहिरो ॥ ३५ ॥ 20 25 30 १ पासाणतले सप्र० ॥ २ सोमाण हं० त० ॥ ३ मामयो हं० त० विना ॥ ४ धणभा हं० त० विना ॥ ५ वत्थपरि हं० त० ॥ ६ “पण्णर सि० ॥ ७ तिविधं सप्र० ॥ ८ हस्तचिह्नमध्यवर्ति पूर्वार्द्ध हं० त० एव वर्तते ॥ ९ 'धेताणि' हेयानि वर्जनीयानीत्यर्थः ॥ १० य धण्णाणि सप्र० ॥ ११ पुरेकडं हं० त० ॥ १२ अद्धाणाणि हं० ॥ १३ सणं सि० ॥ १४ साहा सणं सं ३ पु० सि० ॥ साहा रणं हं० त० ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ पडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ सोमाणे सीतियं वा वि ठितो अत्थं तु पुच्छति । अत्थलाभो विरोहंते ओरुभंते य हायति ।। ३६ ॥ अंतोघरे ठितो पुच्छे अत्थो अभितरो भवे । बाहिरऽभंतरे मज्झो बाहिरम्मि य बाहिरो ॥ ३७ ।। अंतोघरे ठितो पुच्छे उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झे य मज्झिमा वड्डी जहण्णा वा वि बाहिरे ॥ ३८ ॥ उण्णमंतो ठितो पुच्छे सव्वत्थ य विवद्धते । विणमंतो ठितो पुच्छे अत्थहाणिऽस्स णिद्दिसे ॥ ३९ ॥ ओणते उण्णते यावि ठितो अत्थं तु पुच्छति । हाणि वा हायमाणि वा अत्थहाणि च णिद्दिसे ॥ ४० ॥ 5 परम्मुहो ठितो पुच्छे अत्था तस्स परम्मुहा । अभिमुहम्मि पुच्छंते अत्था तस्स अभिमुहा ॥ ४१ ॥ पक्खवेंटट्टितो वा वि तेरिच्छीणं च जो ठितो । मिच्छाजुत्त विवादेणं अत्थं बूया विचिंतितं ॥ ४२ ॥ ठितो जाणे य पत्थे वा वाहणे वा वि पुच्छति । सव्वसंगमणं मोक्खं विप्पयोगं च णिद्दिसे ॥ ४३ ॥ फेल-पुष्फ-पवालेसु ठितो धण्णे व पुच्छति । दीणोदत्तं वियाणीया तथा लाभं पवेदये ॥ ४४ ॥ उदत्ते तु ठितो पुच्छे वासं अत्थं च णिद्दिसे । णिद्धेसु कद्दमे वा वि सुभिक्खं सुसमं वदे ॥ ४५ ॥ कुटुंतरठितो पुच्छे पणाली-णिद्धमेसु वा । मरणं विप्पयोगं च अत्थहाणि च णिद्दिसे ॥ ४६ ॥ आसणम्मि ठितो पुच्छे पल्लंकं सयणासणे । खिप्पमिस्सरियं बूया ओतिण्णे चलितो भवे ॥ ४७ ॥ पाणजोणिगतं अत्थं गेब्भं तु परिपुच्छति । धातुमूलगतं वा वि दीणोदत्तेण णिद्दिसे ॥ ४८ ॥ ठितो उदत्ते देसे तु अत्थं तु परिपुच्छति । सुभं उदत्तमत्थस्स ठाणाहि अभिणिद्दिसे ॥ ४९ ॥ ठितो दीणे [प]देसे तु अत्थं तु परिपुच्छति । असुभं दीणमत्थस्स ठाणाहि अभिणिद्दिसे ॥ ५० ॥ 15 उदत्ते वा वि ओमम्मि ठितो अत्थं तु पुच्छति । सुभम्मि तु सुभा वद्धी असुभे असुभा भवे ॥ ५१ ।। णिण्णे देसे ठितो यावि अत्थं तु परिपुच्छति । णिण्णे सुभे य णिद्धे य वद्धी लाभं च णिद्दिसे ॥ ५२ णिण्णे असुभे य लुक्खे य विसमे कंटकालके । परिदड्डे य पुच्छेज्जा अणिटुं तत्थ णिद्दिसे ॥ ५३ ॥ चलाणि छल-णिण्णाणि सुक्ख-लुक्खाणि जाणि य । मिलाणाणि य थाणाणि असुयीणि तधेव य ॥ ५४ ॥ खंड-जज्जर-भिण्णाणि भंत-भग्गाणि जाणि य । विसमाणि निरुद्धाणि बद्ध-दड्ढाणि जाणि य ॥ ५५ ॥ 20 खराणि कक्खडालाणि छारिंगाला तुसे तधा । लोयको दहणमेलको जे वऽण्णे एवमादिया ॥ ५६ ॥ एवंविधेसु ठाणेसु ठितो जो परिपुच्छति । विणासमत्थहाणी य असुभं च पवेदये ॥ ५७ ॥ एगपादट्टिओ वा वि चलंतो दुट्टितो तधा । विणमंतो ओणमंतो वा दीणो वा जो तु पुच्छति ॥ ५८ ॥ अप्पसत्थं तहिं बूया पसत्थं णाभिणिद्दिसे । ठीणठाणविसेसेणं अंगवी पविभज्जतु ॥ ५९ ॥ पसत्थेसु य सव्वेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । अप्पसत्थेसु सव्वेसु पसत्थं णाभिणिद्दिसे ॥ ६० ॥ ॥ [ठिय] पडलं सम्मत्तं ॥ १० ॥ छ । १ अत्थभाणि हं० त० विना ॥ २ हाणं सि० ॥ ३ 'माणं वा हं० त० विना ॥ ४ पक्कवितठिते वा वि हं० त० विना ॥ ५ फले पुप्फे पवालेसु हं० त० ॥ ६ बज्झं तु हं० त० ॥ ७ ओगम्मि हं० त० ॥ ८ असुयाणि हं. त० विना ॥ ९ हस्तचिह्नमध्यवर्ति उत्तरार्धं हं० त० एव वर्त्तते ॥ १० तुज्झा तधा सि० । तुज्झा वधा सं ३ पु० ॥ ११ छायाकोट्टहणमेल्लंको हं० त० ॥ १२ ठाणे ठाणंविसे हं० त० ॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ [एगारसमं पेक्खित अंगविज्जापइण्णयं [एगारसमं पेक्खितविभासापडलं] 5 अट्ठावीसं ठिताणंगे कित्तिताणि जधा तधा । दस विप्पेक्खियाणंगे कित्तयिस्सं विभागसो ॥ १ ॥ पदक्खिणं च १ वामं च २ पुरतो ३ पच्छतो तधा ४ । ओलोकितं पंचमं च ५ छट्ठमुल्लोकितं तधा ६ ॥ २ ॥ मुदितं पेक्खितं वा वि ७ अट्ठमं दीणमेव य ८ । अभिहारि णवमं भवति ९ णीहारि दसमं भवे १० ॥ ३ ॥ थिआ वामं पसंसंति पिक्खितं अत्थसाधणं । थीलाभे वा वि पुरिसस्स पसत्थं वामपेक्खियं ॥ ४ ॥ पुरिसस्स दक्खिणं पत्थं पुरिसत्थेसु पेक्खितं । थिआ य पूयितं भवति पुत्तस्सऽत्थे पतिस्स वा ॥ ५ ॥ < ओलोइते पिक्खितम्मि अत्थहाणी पवेदये । उल्लोइते विवद्धिं च पेक्खितम्मि वियागरे ॥ ६ ॥ मुदिते पेक्खिते वा वि उत्तमत्थं पवेदये । पेक्खितम्मि य दीणम्मि अणिट्ठा अत्थसंपदा ॥ ७ ॥ आहारिपेक्खिते वा वि आगमं संपवेदये । णीहारिपेक्खमाणे य णिग्गमं संपवेदये ॥ ८ ॥ पेक्खितं उमुकं पुरिमं दक्खिणं पुव्वदक्खिणं । ओहितं णिव्वतं हिटुं पसत्थं अत्थसाधकं ॥ ९ ॥ थिआ वामं पसंसंति जं च वामपुरत्थिमं । णपुंसके पसत्थं वा पेक्खितं पच्छिमेण तु ॥ १० ॥ उल्लोइत उत्तमेसु पेक्खितं तु पसस्सते । आहारि मुदितं वा वि सव्वत्थीककतेसु य ॥ ११ ॥ ओलोइतं पच्छिमं वा अप्पसत्थं विपेक्खितं । णीहारि परिणेओ य सव्वत्थीगकते सुभं ॥ १२ ॥ समुज्जुगं पच्छिमतो यं च वामेण पच्छतो । पच्छतो दक्खिणं वा वि णपुंसत्थेसु पूयितं ॥ १३ ॥ पुरिसस्स थिया वा वि तयो एते उ पेक्खिया । पसत्थेण प्पसस्संते अप्पसत्था तु ते सदा ॥ १४ ॥ उद्धमुल्लोगिते उज्जू खिप्पमिस्सरियं वदे । अभिवड्डिते य अत्थाणं जयत्थाणं च णिदिसे ॥ १५ ॥ ओलोइतं च जं हेट्ठा दीणं वा वि विलोचितं । रुणारुतं च णिज्झायं सव्वं गरहियं भवे ॥ १६ ॥ उल्लो इतं च पुरतो तधा पुरिमदक्खिणं । तं चोवपेक्खितं उज्जु अत्थसिद्धि पवेदये ॥ १७ ॥ उल्लोइते दक्खिणम्मि दक्खिणे य पलोइते । सव्वत्थस्स विवद्धते सव्वतो उत्तमा सुभा ॥ १८ ॥ उल्लोइतं च जं वामं जं च वामं पलोइतं । पुव्वुत्तरं च जं जोगे मज्झिमत्थे पसस्सते ॥ १९ ॥ उज्जुङल्लोइते दिग्घे उप्पुतं तुरियं तथा । पवासगमणं खिप्पं खिप्पवासं च णिद्दिसे ॥ २० ॥ दीणं दूरं च दिग्धं च पवासे ण पसस्सते । हिटुं मुदितं च थोवं च आगमम्मि पसस्सते ॥ २१ ॥ पहट्टपेक्खितं दिग्घं दिग्घा अत्था सुभा भवे । पासे दीणं च णिज्झाति आगमो असुभो भवे ॥ २२ ।। पीतिउल्लोगितं जं च हासेण य विलोगितं । अवत्थितमणुव्विग्गं सव्वत्थेसु पसस्सते ॥ २३ ॥ दीणं उल्लोगितं जं वा दीणं वा वि पलोगितं । अणवत्थितं समुव्विग्गं अप्पसत्थेसु कित्तितं ॥ २४ ।। अपेक्खियं दिसा सव्वा भूमीलोकमपेक्खति । तुरितं उवणिमिल्लंते विपुला अत्थसंपदा ॥ २५ ॥ अविपेक्खमाणो उज्जुकं पस्सेणं जो तु पेक्खति । विसमं चिराभिमिल्लंते अत्थं बूया अवत्थितं ॥ २६ ॥ णिज्झाइते दक्खिणम्मि पुरिसस्सऽत्थं पवेदये । वामतो य थिआ अत्थं पच्छतो य णपुंसके ॥ २७ ॥ पेक्खितम्मि उदत्तम्मि उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झिमा मज्झिमे वद्धी हीणं दीणेसु णिदिसे ॥ २८ ॥ पेक्खिते पुरतो उज्जु अत्थं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेसु अतिक्कंतं च पच्छतो ॥ २९ ॥ 20 25 30 १थीलाभो हं० त० ॥ २ णं पसत्थं हं० त० । णं सत्थं सि० ॥ ३ 4 एतच्चिह्नमध्यवर्ति पूर्वार्द्ध हं० त० नास्ति ॥ ४ उहितं णिव्वति हिटुं हं० त० ॥ ५ समुज्जगं हं० त० ॥ ६ एते सुपेक्खि हं० त० ॥ ७ उल्लोइतं सि० ॥ ८ ओलोइको व पु हं० त० ॥ ९ ओलोइतं हं० त०॥ १० जोगो हं० त० ॥ ११ ओलोइते दिग्धे मुप्फरितं हं० त० ॥ १२ विप्पवासं हं० त० सि० ॥ १३ पासंदाणं हं० त० ॥ १४ णिस्साति हं० त० विना ॥ १५ तं च हं० त० विना ॥ १६ विभासितं हं० त० ॥ १७ विप्पेक्खित दिसा हं० त० ॥ १८ पक्खित्तो पुरतो अत्थं अत्थं हं० त० ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभासापडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ पेक्खितेसु य सव्वेसु थी-पुमंस-णपुंसके । दीणोदत्तेहिं अत्थो तु पुच्छंतस्स विआकरे ॥ ३० ॥ पेक्खितेसु पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । पेक्खिते अप्पसत्थे य पसत्थं व णिदिसे ॥ ३१ ॥ ॥ भूमीकम्मे पेक्खितविभासापडलं सम्मत्तं ॥ ११ ॥ छ । -000000000 [बारसमं हसितविभासापडलं] दस विप्पेक्खियाणंगे इति वुत्ताणि भागसो । हसिताणि चोद्दसंगे कित्तयिस्सामि भागसो ॥ १ ॥ परिमं दक्खिणे चेव वामतो पच्छिमेण य । अकामहसितं १ दीणं २ मड्डाहसित ३ दारुणं ४ ॥ २ ॥ णिस्सद्द ५ विलितं वा वि ६ पेम्मा ७ मुदित ८ जंपियं ९ । अच्चत्थहसितं वा वि १० भवेंतहसितं तधा ११ ॥ ३ ॥ बहुमाणहसितं वा वि १२ णिमिल्लहसितं तधा १३ । हसितं सअंसुगं वा वि १४ संगहा चोद्दसाऽऽहिता ॥ ४ ॥ अभंतरं तु हसितं सव्वत्थेसु पसस्सते । णिब्बाहिरं च हसितं अप्पसत्थेसु कित्तितं ॥ ५ ॥ हेसंतो जति पुच्छेज्जा बाहिरं विगतस्सरो । बंधं व अत्थहाणि वा अप्पसत्थं च णिदिसे ॥ ६ ॥ हसंतो य णिमिल्लंतो अत्थं जं किंचि पुच्छति । अदिट्ठकमणत्थं च खिप्पमेव पवेदये ॥ ७ ॥ हसंतं तु सअंसूगं जं अत्थं परिपुच्छति । पियस्स मरणं खिप्पं अणत्थं चऽस्स णिद्दिसे ॥ ८ ॥ ओहत्थहसियं कुद्धं हीलया फड्डितं तधा । पीलिया हसियं दुटुं अप्पसत्थेसु कित्तितं ॥ ९ ॥ पीतीअ हसितादुटुं अत्थतो मधुरं मयु । देसे वा अंगविदिटुं पुच्छंतो वा पसस्सति ॥ १० ॥ बहुमाणेण हसितं वंदंते पुच्छणाय वा । पहसंतो पीतिआ पुच्छे अत्थसिद्धी स णिद्दिसे ॥ ११ ॥ उच्चस्सरेण णीहारी अट्टहासाय बाहिरा । हसंते हसितं चेव सव्वं गरहितं भवे ॥ १२ ॥ समत्थं मुदितं भवति जं णातिविपुलं भवे । अंतोहसीयमाणं तु सततं उत्तमं भवे ॥ १३ ॥ उत्थितं हसितं ते सुभं तं हासहासितं । पुण्णा मयुं अणीहारी सव्वत्थेसु पसस्सते ॥ १४ ।। अभिमुहम्मि हसिते अत्थो अब्भंतरो भवे । बाहिरब्भंतरे मज्झो बाहिरम्मि य बाहिरो ॥ १५ ॥ अब्भंतरम्मि हसिते उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झिमे मज्झिमा वद्धी हीणा भवति बाहिरे ॥ १६ ॥ 20 अब्भंतरम्मि हसिते सकमत्थं पवेदये । साधारणं मज्झिमगे बाहिरम्मि य बाहिरं ॥ १७ ॥ पदक्खिणम्मि हसितम्मि पुरिसस्सऽत्थं पवेदये । वामतो इत्थिआ अत्थं पच्छतो य णपुंसके ॥ १८ ॥ पुरस्थिमम्मि हसिते अत्थं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेसु अतिक्कंतं च पच्छतो ॥ १९ ॥ आसण्णकालं चाऽऽसणं अंतकालं च मज्झिमे । अव्वक्खित्तं च हसिते चिरकालं पवेदये ॥ २० ॥ हसिते य उदत्तम्मि उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झिमे मज्झिमा वद्धी दीणे हाणिं तु णिद्दिसे ॥ २१ ॥ अणीहारि पसत्थं च णिद्धं दित्तं अविस्सरं । बहुमाणा पमोदा वा हसितं संपसस्सते ॥ २२ ॥ णेमित्ती दिस्स सोमं तु तहाऽटुं अविरोधितं । उद्धम्मुहं पहसति सव्वत्थीयेसु पूयितं ॥ २३ ॥ बहुमाणपेक्खणायुत्तं आणाणतमकंपितं । अंतोमुहं पहसितं पुच्छंतेण पसस्सति ॥ २४ ॥ णीहारि चेव दीणं च अकामं विस्सरं तधा । हीला वा हासदोसा य सव्वत्थीके ण पूयितं ॥ २५ ॥ १ दक्खिणं हं० त० सि० ॥ २ हीणं सि० ॥ ३ णिस्स? हं० त० विना ॥ ४ जंघियं त० ॥ ५ हसंतो भूमि पु हं० त० ॥ ६ आदिट्ठ सि० ॥ ७ आणित्थ वऽस्स सं ३ पु० ॥ अणिच्छंतस्स सि० ॥ ८ कुटुं हं० त० ॥ ९ दसे वा सप्र० ॥ १० उम्हितं हं० त० विना ॥ ११ सोमत्तं तहा हं० त० ॥ १२ अवरोधितं सप्र० ॥ १३ अणोणत' हं० त० विना ॥ Jain Education अंग०८ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ अंगविज्जापइण्णयं [तेरसमं पुच्छितअकामहसितं हीलाय अप्पसदं तुवग्गहे । सव्वंगकंपितं चेव हसितं सा ण पूयितं ॥ २६ ॥ हसितेसु य सव्वेसु थी-पुमंस-णपुंसके । दीणोदत्तविसेसेण ततो अत्थं वियागरे ॥ २७ ॥ पुरिसस्स पुरिमे भागे थिया वामे तधेव य । सके अत्थे पसंसंति पहासं मधुरं मयुं ॥ २८ ॥ पुरिसकारं थिआ हसितं थिआय पुरिसस्स वा । विप्पयोगे पसंसंति णिव्विकारं अविस्सरं ॥ २९ ॥ अप्पसत्थेसु हसितेसु पसत्थं तु ण णिद्दिसे । पसत्थेसु य सव्वेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे ॥ ३० ॥ ॥ हसितविभासाणामऽज्झायो ॥ १२ ॥ छ । 5 10 [तेरसमं पुच्छितपडलं] हसिताणि चोद्दसेताणि कित्तियाणि विभागसो । पुच्छिताणि चउव्वीसं कित्तयिस्समतो परं ॥ १ ॥ पुरतो १ पच्छतो चेव २ वामतो ३ दक्खिणेण य ४ । पुरिमदक्खिणभागं तु ५ दक्खिणं पच्छिमेण तु ६ ॥ २ ॥ पच्छिमं वामभागम्मि ७ जं च वामपुरस्थिमं ८ । पुच्छिताणाऽऽहु अद्वैव संखेवेण महेसयो ॥ ३ ॥ अतिदूरं अवखित्तं १ अच्चासण्णं च पीलितं २ । पुच्छितं णातिदूरं च ३ तिविधं संविभावये ॥ ४ ॥ उदत्तपुच्छितं चेव १ दीणं च परिपुच्छितं २ । दीणोदत्तविसेसेहिं ३ तिविधं तु वियाणिया ॥ ५ ॥ पुच्छिताणि विसेसेहि एवं विज्जा वियक्खणो । चतुविधविधीजुत्तं सुण तस्स विभासणं ॥ ६ ॥ ठितेणा १ ऽऽगच्छतो चेव २ तधेव परिसक्कतो ३ । चतुत्थपुच्छितं चेव अपत्थद्धेण पुच्छितं ४ ॥ ७ ॥ ओणमंते व पुच्छेज्जा १ उण्णमंतो य पुच्छति २ । णिसीदंते व पुच्छेज्जा ३ णिसण्णे व विधीयते ४ ॥ ८ ॥ पेतंते व विभासा तु ५ णिवज्जते व पुच्छति ६ । णिवण्णे व विभासा तु ७ पासुत्ताणाणि कुव्वते ८ ॥ ९ ॥ उटुंते ९ जंभमाणे वा १० रोदंते व विभासणा ११ । हसंते १२ गायमाणे वा १३ परिदेवंते व पुच्छके १४ ॥ १० ॥ थणते १५ विणिकोलंते १६ कंपते उ १७ णिमीलिते १८ । आहारं करते व १९ णीहारं च विभासणा २० ॥ ११ ॥ पहढे वा वि २१ कुद्धे वा २२ भीते वा परिपुच्छति २३ । आवातेंते य पुच्छंते तमेवऽत्थं पुणो पुणो २४ ।। १२ ॥ 20 दिसाविसेसा आसण्णा दीणोदत्तविधीहि य । पुच्छिताणि चउव्वीसं एताणि संविभावये ॥ १३ ॥ ___पुरिमं १ दक्खिणं चेव २ तधा पुरिमदक्खिणं ३ । पुच्छिताणि सदा तिण्णि उत्तमाणि पसस्सते ।। १४ ।। पैच्छिमं वामभागं वा जं च वामं पुरत्थिमं । थीणामेतं पसंसंति णाउं पाथमकं पि वा ॥ १५ ॥ पच्छिमे दक्खिणे भागे पच्छिमं वामतो यकं । एताणि ण प्पसंसंति समुज्जं जं च पच्छतो ॥ १६ ॥ पुरस्थिमं समुज्जं जं पुच्छितं पवरुत्तमं । अप्पसत्थं च परमं समुज्जं पच्छिमेण जं ॥ १७ ॥ पुरस्थिमे पुच्छितम्मि अत्थं बूया अणागतं । उभेसु जस्स पस्सेसु वत्तमाणं पवेदये ॥ १८ ॥ अतीतमत्थं जाणेज्जो पुच्छिते पच्छिमेण तु । अव्वत्तपुच्छिते वा वि दूरमत्थं पवेदये ॥ १९ ॥ अतिदूरपमुहतो अत्थत्थी जदि पुच्छति । अणागतं च जाणेज्जो अत्थं परमदुल्लभं ॥ २० ॥ उवत्थितं च अत्थं च अच्चासण्णम्मि पुच्छिते । पुच्छिते णातिदूरे य कालं पवेदये ॥ २१ ॥ पासेसु पैच्छतो चेव पुच्छिते अविभागसो । दूरे वाऽऽसण्णजुत्तेसु कालं बूया विभागसो ॥ २२ ॥ १ 'सा' स्यादित्यर्थः ॥ २ पुरिसं कारं सं ३ पु० ॥ ३ भासणायमज्झाय हं० त० ॥ ४ दुविधं सप्र० ॥ ५ पतंते चेव भासा तु सप्र० ॥ ६ तेसु पु हं० त० ॥ ७ कुज्जके हं० त० ॥ ८ उदत्ते हं० त० ॥ ९ रोहंते हं० त० ॥१० कोलंभे कंपति उहं० त० ॥ ११ कुटे वा हं० त० विना ।। १२ आवण्णा हं० त० ॥ १३ पुच्छियं वाम० हं० त० विना ॥ १४ पावमकं हं० त० विना ।। १५ य जं हं० त० । 'यकं' यकद् यदित्यर्थः ॥ १६ ण वा सि० । "ण मा सं ३ पु०॥ १७ जाणेज्जा हं० त०॥ १८ त्तपच्छिमे वा हं० त० ॥ १९ जाणेज्जा हं० त० ॥ २० जत्त हं० त० विना ।। २१ पुच्छतो हं० त० विना ।। २२ दूरं हं० त० विना ॥ २३ काले हं० त० विना ॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ ३७ उदत्ते आसणे पुच्छे उदत्ता अत्थसंपदा । मज्झा य मज्झिमे वद्धी हीणे हीणं पवेदये ॥ २३ ॥ उदत्ते सयणे पुच्छे उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झिमे मज्झिमा वद्धी हीणे हीणं च णिद्दिसे ॥ २४ ॥ जाणम्मि ठितो पुच्छे उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झिमे मज्झिमा वद्धी हीणे हीणं च णिद्दिसे ॥ २५ ॥ उदत्तम्मि य देसम्मि आमासे पेक्खितम्मि य । उदत्तम्मि य पुच्छंते उक्कट्ठा अत्थसंपदा ॥ २६ ॥ मज्झिमेसु य एतेसु मज्झिमा अत्थसंपदा । हीणेसु हीणं जाणेज्जा अत्थसिद्धि विभागसो ॥ २७ ॥ उत्तमेण सरीरेण वत्थेणाऽऽभरणेण य । < उदत्तमत्थं पुच्छेज्ज अत्थसिद्धि वियागरे ॥ २८ ।।। दीणेण सरीरेण वत्थेणाऽऽभरणेण य । दीणो अत्थं च पुच्छेज्ज अत्थहाणि से णिद्दिसे ॥ २९ ॥ वंदमाणो य पुच्छेज्ज सैक्कतं गारवेण य । बहुमाणं च पुच्छेज्जा अत्थसिद्धि से णिद्दिसे ॥ ३० ॥ अवंदंतो य खिज्जतो असक्कारेण हीलया । पुच्छे अबहुमाणेणं अत्थहाणि पवेदये ॥ ३१ ॥ ठिते उदत्ते देसंसि सुट्टितम्मि य पुच्छिते । अत्थस्स संपयं बूया चले थाणे चलं वदे ॥ ३२ ॥ अमणुण्णम्मि देसम्मि णिरुद्ध असुगंधि य । पुच्छे ठितो दढं जो तु अप्पसत्थं दढं वदे ॥ ३३ ॥ अरहस्सेसु विणासं तधा य असुयीसु य । णिरुद्धं सण्णिरुद्धं वा देसे ठाणेहिं णिद्दिसे ॥ ३४ ॥ चले थाणे चलो अत्थो पसत्थो णिदितो वि वा । दुट्ठिते दुट्ठितो अत्थो सुट्ठिते य धुवो भवे ॥ ३५ ॥ गच्छंतो जति पुच्छेज्जा अत्थं खलु सुभा-ऽसुभं । अप्पसत्थो भवे अत्थो पसत्थं णाभिणिद्दिसे ॥ ३६ ॥ पवासं णिग्गमं वा वि विप्पयोगं च जं तथा । विसंजोगं च गच्छंते पुच्छिते अभिणिद्दिसे ॥ ३७ ।। 15 परिसक्कंतो व पुच्छेज्जा अत्थं जति सुभाऽसुभं । पसत्थस्स असंपत्ती अप्पसत्थं पवेदये ॥ ३८ ॥ अपत्थद्धे य पुच्छंते अत्थो स-परसंसितो । उदत्तापस्सये लाभो अणुदत्ते विपज्जओ ॥ ३९ ॥ उम्मत्तो जति वा मत्तो अत्थं तु परिपुच्छति । परस्संतं परस्सत्थ णिद्दिसे परसंतियं ॥ ४० ॥ पुच्छिते पुरतो उज्जु अत्थं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेसु अतिक्कंतं च पट्ठितो ॥ ४१ ॥ अभिमुहे पुच्छितम्मि अणुलोमा अत्थसंपया । तिरिच्छीणे विविधा सा तु पराहुत्ता परम्मुहे । अणुट्ठितो वा पुच्छेज्जा ठितो वा पुरतो समं । अच्चाइकं सुभं अत्थं णिद्दिसे स अणागतं ॥ ४३ ॥ समाणयंतो गत्ताणि उण्णमंतो व पुच्छति । उण्णामेण य पुच्छेज्जा सुभे सऽत्थे पवेदये ॥ ४४ ॥ विलिंपतो य गत्ताणि ओणमंतो य ओणतो । विणमंतो चलो पुच्छे अत्थहाणिऽस्स णिदिसे ॥ ४५ ॥ पुच्छंतो अप्पणामंतो अवकरिसेंतो व पुच्छति । णीहारं वा करेमाणो पुच्छे हाणि स णिद्दिसे ॥ ४६ ॥ गेण्हंतो उवणा तो उवसकंतो तधेव य । आहारं च करेमाणो पुच्छे वद्धि स णिद्दिसे ॥ ४७ ॥ 25 कासंतो णिट्ठभंतो वा णिस्सिघंतो व पुच्छति । छड़ेंतो [वा] णिमिल्लंतो अलाभं हाणिमादिसे ॥ ४८ ॥ अभिहटुं च पुच्छेज्जा १ चुंबिता-ऽऽलिंगितेहि य । अतिमासे च गुज्झाणं थीलाभो दव्वसंपया ॥ ४९ ॥ णिकुंचिमट्टि करेमाणो पुच्छे उक्कुडुको पि वा । मिच्छा जतं विवादेणं अत्थहाणि से णिद्दिसे ॥ ५० ॥ मुत्तं पुरिसं वातं वा उस्सासेंतो व पुच्छति । पयलायंतो वियंभंतो अत्थाणिऽस्स णिद्दिसे ॥ ५१ ॥ भंडमाणो वे संभंतो रोवंतो वा वि पुच्छति । दुम्मणो उप्पुतो रुट्ठो अप्पसत्थं स णिद्दिसे ॥ ५२ ॥ 30 पाणजोणिगतं गब्भं सक्कारंगारपूयितो । अत्थं पयाणगमणं पुच्छतोऽस्स वियागरे ॥ ५३ ॥ १ वण्णेणा हं० त० ॥ २ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 10 अंगविज्जापइण्णयं [चोद्दसमं वंदियणिसीदंतो णिसण्णो वा पुरतो पुच्छे अभिमुहो । अत्थलाभं कुडुंबस्स वद्धि चऽस्स वियागरे । ५४ ॥ छिदंतो वा डहंतो वा फालितो वा वि पुच्छति । तच्छेमाणो विणासिंतो हाणि रोगं च णिदिसे ॥ ५५ ॥ खणंतो उक्खणंतो वा अवाहणंतो य पुच्छति । भैजंतो वा पवलितो वा हाणि मरणं च णिद्दिसे ॥ ५६ ॥ बंधंतो वा थक्केंतो वा णिक्खणंतो व पुच्छति । बंधं च सण्णिरोधं च अत्थहाणि च णिद्दिसे ॥ ५७ ॥ अपावणंतो मुंचंतो संपादेंतो व पुच्छति । मोक्खं वा विप्पयोगं वा अत्थसिद्धीस णिद्दिसे ॥ ५८ ॥ घेसेंतो उव्वलेंतो वा धोवमाणो व पुच्छति । पगलेतो ण्हायमाणो वा अत्थहाणि स णिद्दिसे ॥ ५९ ।। एतेसु चेव भावेसु अंगवि जो तु पुच्छति । विप्पयोगं च मोक्खं च णीरोगत्तं च अत्थितं ।। पातुणंतो णिवासेंतो पिणिधंतो पिणिधणं । पुच्छे अलंकरेमाणो इंदुमत्थस्स संपदा ॥ ६१ ॥ ओमुंचमाणो पुच्छेज्ज वत्थं आभरणाणि य । अवणेतो वा अलंकारं अथहाणिऽस्स णिद्दिसे ॥ ६२ ॥ इंदियत्थेसुदत्तेसु उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झिमेसु भवे मज्झा हीणा हीणेण आदिसे ॥ ६३ ॥ तुढे य तुटुं पुच्छेज्ज सुभं अत्थं पवेदये । पसण्णो य पसण्णं सा णिव्वुती अत्थसंपदा ॥ ६४ ॥ पीणितो पीणितं पुच्छे अत्थलाभो धुवं भवे । अरोगं च अरोगं तु सुहेणऽत्थस्स संपदा ॥ ६५ ॥ अवक्खित्तो अवक्खित्तं पुच्छे एकग्गमाणसे । इस्सरियमत्थलाभं च महंतमभिणिद्दिसे ॥ ६६ ॥ दीणो य दीणं पुच्छेज्जा अत्थहाणी धुवा भवे । कुद्धो य कुद्धं पुच्छेज्जा बूया हाणिमणेवुति ॥ ६७ ॥ छातो छातं पुच्छेज्ज णस्थि अत्थस्स संपदा । आतुरो आतुरं पुच्छे वाधी हाणि धणखयो । ६८ ॥ विक्खित्तो जति विक्खित्तं पुच्छे हीला य णिच्छितो । परिकेसो धणहाणी हाणी इस्सरिते धुवं ॥ ६९ ॥ उत्ते उत्तं तु जाणीया अप्पणो पुच्छकस्स य । पसत्थस्स वदे लाभं अप्पसत्थे असंपदा ॥ ७० ॥ दीणत्तं अप्पणो दिस्स पुच्छकस्स य णिद्दिसे । अप्पसत्थं वदे अत्थं पसत्थस्स असंपदं ॥ ७१ ॥ अप्पणी य प्पहिलुम्मि दीणो य परिपुच्छए । संकिलिटुं वदे अत्थं अणिटुं दारुणं वदे ॥ ७२ ॥ अप्पणी पुच्छते चेव जत्थाणं पवेदये । दीणोदत्तविभागेहिं फलं बूया विभागसो ॥ ७३ ।। पुच्छिताणि चउव्वीसं संगहेणं वियक्खणो । दीणोदत्तविभागेहिं अप्पमेयाणि जाणिया ॥ ७४ ॥ पुच्छितेसु पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । पुच्छिते अप्पसत्थम्मि पसत्थं णाभिणिद्दिसे ॥ ७५ ।। ॥ पुच्छितपडलं सम्मत्तं ॥ १३ ॥ छ । -000000000 25 [चोहसमं वंदियविभासापडलं] पुच्छिताणि चउव्वीसं इति वुत्ताणि भागयो । वंदियाणि पवक्खामि सोलसंगे विभागसो ॥ १ ॥ वंदितं तु उदत्तेणं १ सक्कारेण व वंदितं २ । वंदितं गारवा वा वि ३ अमणुण्णं च वंदितं ४ ॥ २ ॥ असक्कारेण ५ हीलाय पणामे ६ इसिवंदियं ७ । तुरियं ८ सहसा चेव ९ गहणेण व वंदितं १० ॥ ३ ॥ अव्वग्गं वंदियं वा वि ११ विक्खित्तेण य वंदियं १२ । सज्जीवं गेज्झ वंदिज्ज १३ अज्जीवं गेज्झ वंदति १४ ॥ ४ ॥ उदत्तं गेज्झ वंदेज्ज १५ अणुदत्तं गेज्झ वंदति १६ । वंदिता सोलसा एते संगहा परिकित्तिया ॥ ५ ॥ १ वा हुहंतो हं० त० ॥ २ भजंतो य व भंतो वा हाणिं हं० त० विना ॥ ३ थकेतो हं० त०॥ ४ णिक्खमणंतो सं ३ पु० । णिक्खमंतो सि० ॥ ५ थासंतो हं० त० ॥ ६ एतेसेव भावेसु सप्र० ॥ ७ अंगविज्जो तु हं० त० ॥ ८ इहमत्थ' हं० त० विना ॥ ९ अधणं वा हं० ॥ १० हाणि स हं० त० ॥ ११ धुवो हं० त० ॥ १२ "माणतं हं० त० विना ॥ १३ छावो छावं हं० त० । 'छातो' क्षुधित इत्यर्थः ॥ १४ य णस्थितो सि० विना ॥ १५ दिस्सं हं० त० विना ॥ १६ “त्थं अपस हं० त० विना ॥ १७ भागयं हं० त० विना ॥ १८ वंदितुं हं० त०॥ १९ ईसि हं० त०॥ २० गहत्तेण सं ३ पु० । गहणत्ते सि० ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभासापडलं ] ३९ अट्टमो भूमीकम्मऽज्झाओ पुरतो १ पच्छतो चेव २ पस्सेहिं ३ उभयो तधा ४ । दिसाविभागा विण्णेयं वंदितं सा चतुव्विधं ॥ ६ ॥ उदत्त १ अणुदत्तं च २ वंदितं दुविधं भवे । ठाणा -ऽऽगारविसेसेहिं संपधाए मतिमता ॥ ७ ॥ उदत्तमणुदत्ताणं तध सक्कारठिताणि य । अणुदत्तं तु जाणीया एतेसिं तु विवज्जए ॥ ८ || वंदिताणं विधि एवं समासा संविभावितं । वित्थरेणऽस्स णिद्देसं पवक्खामि जधार्तधं ॥ ९ ॥ १४ ॥ १५ ॥ १६ ॥ अभिहट्टं वंदितं चेव सक्कारेण य वंदितं । गारवेण य सीसेणं सव्वत्थेसु पसस्सते ॥ १० ॥ ईसिं वंदितं चेव असक्कारेण हीलया । विक्खित्ते अवहट्ठे य सव्वत्थीए ण यितं ॥ ११ ॥ तुरितं वंदितं चेव अतिच्छंतेण वंदितं । सहसा वंदितं चैव गमणेण संपसस्सते ॥ १२ ॥ भीतेण वंदियं चेव Do कलहंतेण व वंदितं । संलाववंदितं चैव सव्वत्थेसु पराजये ॥ १३ ॥ पदुमुप्पले हत्थगते फुल्ले फले व उत्तमे । वंदमाणे ण पाडेति अत्थसिद्धि स णिद्दिसे ॥ हिरण्णम्मि सुवण्णम्मि मणि- मोत्तियभूसणे । हत्थकतेण वंदेज्जा अत्थसिद्धि स णिद्दिसे ॥ पुप्फुच्छंगे फलुच्छंगे धणुच्छंगे धैणस्स वा । वंदंतो जति पुच्छेज्जा लाभो पुत्त - धणेहि से ॥ णपुंसकगोज्जयो तु अंगारे छारिअं तुसे । वंदंतो जति पुच्छेज्जा कलहं वाधि व णिद्दिसे ॥ १७ ॥ सिप्पोवगरणं गेज्झ वंदंतो जति पुच्छति । तस्स तेणेव सिप्पेण अत्थलाभो अणागतो ॥ १८ ॥ पघंसंतो पधोवंतो पहाणहत्थगतो तधा । वंदंतो जति पुच्छेज्जा अत्थहाणि स णिदिसे ॥ १९ ॥ जाणं ओरुज्झ वंदेज्ज असणं सयणं तधा । घरा वा णिग्गतो वंदे जं पुच्छे होणगे तथा ॥ २० ॥ उण्णमंतो य वंदेज्जा सीसे णुमज्जु पुच्छति । अब्भुट्ठेति व हासेणं लाभो इस्सरिते धुवो ॥ २१ ॥ उपविट्टं वंदितं चेव एक्कग्गेण य वंदितं । सम्मोयिआ तु विष्णेया लाभे सूये तधेव य ॥ पुण्णामधेयं घेत्तूणं वंदंतो जति पुच्छति । लाभं पुण्णामधेयस्स दीणाउत्तं वियागरे ॥ २३ ॥ २२ ॥ मिट्ठे गहेतूणं वंदंतो जति पुच्छति । थीलाभं तु पवेदेज्जो थीणामस्स य संपदं ॥ २४ ॥ णपुंसगं गहेतूणं वंदंतो जति पुच्छति । णपुंसकैत्थे अत्थो अणत्थो थी - पुमंसयो ।। २५ ।। दंतो जति सोयंतो दीणो वा जति वदति । जं किंचि अत्थं पुच्छेज्ज अप्पसत्थं पवेदये ॥ २६ ॥ बहुमाण-गारवा वा विणयवंतोऽभिवादये । अत्थं च जति पुच्छेज्ज सव्वमत्थीति णिद्दिसे ॥। २७ ।। पुरत्थिमेणं वंदंतो पच्छतो दक्खिणेण य । वंदंते पुरिसत्थस्स संपदा सऽभिणिद्दिसे ॥ २८ ॥ वंदिते वामपस्सेणं थीलाभेसु पसस्सते । पच्छतो वंदिते चेव अणि संपवेदये ॥ २९ ॥ हत्थुण्णमंतो सुठितो सुवेसो दक्खिणुज्जुतो । वंदेज्ज विणया अत्थि तस्स लाभं पवेदये ॥ ३० ॥ एमेव आसणत्थम्मि णिसण्णे सयणम्मि वा । वंदंतम्मि उदत्तम्मि विणया उत्तमं वदे ॥ ३१ ॥ जाणे यावि वंदते उदत्ताकारभूसणे । अत्थस्स संपयं बूया उज्जुत्ते य जयं वदे ॥ ३२ ॥ वंदिते पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । अप्पसत्थेसु सव्वेसु पसत्थं णाभिणिद्दिसे ॥ ३३ ॥ ॥ भूमीकम्मे वंदियविभासा [ पडलं ] ॥ १४ ॥ छ ॥ १ तथा हं० त० विना ॥ २ अभिहडं हं० त० विना ॥ ३ पूईयं हं० त० ॥ ४० एतच्चिह्नमध्यगतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ५ फुल्ले फुल्ले व सप्र० । ६ धणुस्स हं० त० सि० ॥ ७ आसणा सयणा तथा हं० त० ॥ ८ हीणमेव तथा सं ३ पु० । हाणि से तथा सि० ॥ ९ णुपुज्ज पु° सं ३ पु० । णुमुज्ज पु' सि० ॥ १० पुत्तमट्ठे सं ३ पु० । उत्तम सि० ॥ १९ कत्थो अत्थो अणघो थी हं० त० ॥ १२ वंदंतो जति रोयंतो हं० त० ॥ १३ तु हं० त० ॥ १४ त्थी विणि हं० त० ॥ १५ 'दामभि हं० त० ॥ १६ व अणत्थ हं० त० ॥ 5 10 15 20 25 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० पण्णरसमं संलावविधिपडलं अंगविज्जापइण्णयं [पण्णरसमं संलावविधिपडलं ] 5 10 15 सोलसेताणि वुत्ताणि वंदिताणि समासतो । वीसं संलावजोणीओ कित्तयिस्सामि भागसो ॥ १ ॥ लाभे १ अलाभे य कधा २ सुह ३ दुक्खेसु य कधा ४ । जीवाधाओकसंपत्ति ५ मरणातंककधामवि ६ ॥ २ ॥ वसणा ७ पमोदेसु कधा ८ सामोई-पीतिसंकधा ९ । विप्पीतिसु कधा चेव १० विसंजोगे कधा तधा ११ ॥ ३ ॥ संजोगेसु कधा चेव १२ सुवुट्ठी-सुसमाकधा १३ । दुक्काल-दुवुट्ठिकधा १४ विलासे किल संकधा १५ ॥ ४ ॥ वद्धी-उदयसमाजुत्ता १६ हाणी-विणिपातसंकधा १७ । जयो १८ पराजयो चेव १९ पसत्थाणिदितासु य २० ॥ ५ ॥ वीसं संलावजोणीयो एया वित्थरतो मया । चतुविधा य एताओ सव्वा संगहतो वदे ॥ ६ ॥ अत्थे १ धम्मे य २ कामे य ३ मोक्खे ४ त्ति य चतुविधा । कधाओ एव णातव्वा संपत्तीहि विपत्तिसु ॥ ७ ॥ दुविधं संलावजोणीओ समासेण विभावये । सुभं च १ असुभं चेव २ जीवाऽजीवसमायुतं ॥ ८ ॥ दुविधं संलावजोणि तु ऐवं भण्णंतु वीसधा । आधारयित्ता सव्वाओ तज्जातेण वियागरे ॥ ९ ॥ धन्नागमणसंजुत्ता लाभजुत्ता य जा कधा । धणागमं अत्थसिद्धि उभयं तासु णिद्दिसे ॥ १० ॥ सम्मोइसंजुत्तकधा याणुस्सयकधा य जा । समागमं इस्सरियं सम्मोइं चऽत्थ णिद्दिसे ॥ ११ ॥ दुक्कालदुब्भिक्खकधा भुक्खायं चेव जा कधा । अणिव्वुती णिराकारं अलाभं तासु णिद्दिसे ॥ १२ ॥ सभंडणमुल्लकाणं बालसदं सुणित्तु य । भंडणं सप्पहारं च उभयं तासु णिद्दिसे ॥ १३ ॥ अपिधावधिकधा चेव रोग-सोगकधा य जा । मरणं विप्पयोगं च उभयं तासु णिद्दिसे ॥ १४ ॥ वण-पुष्फ-फले जुत्ता मधुरे पक्खि-चउप्पदे । संगमं पिअसंजोगो पयालाभं च णिद्दिसे ॥ १५ ॥ गंध-मल्लेसु वत्थेसु कधा वा वि पिणंधणे । तासु लाभं पवेदेज्जो अत्थसिद्धिं च णिदिसे ॥ १६ ॥ जाणे वा आसणे वा वि सयणे वा कधा सुभा । अत्थलाभं कुटुंबे य खिप्पमेवाभिणिद्दिसे ॥ १७ ॥ खेत्त-वत्थुकधा चेव गिहेसु य कंधा सुभा । पुण्णामा सरसंजुत्ता सव्वा तस्स पसस्सते ॥ १८ ॥ णिरोध-बंधणकधा वा शंसता लाभसंजुता । बंधणं विणियोगं च जाणी चेवऽत्थ णिदिसे ॥ १९ ॥ बद्धे वा सण्णिरुद्ध वा गहिते मारिते तधा । छिण्णे भिण्णे विणद्वे वा पडिरूवेण णिदिसे ॥ २० ॥ गते वा णिगते मुक्के अतीते आगते तधा । भक्ख-भोज्जकधा चेव पडिरूवेण णिद्दिसे ॥ २१ ॥ हिते णटे पलाते वा कधा व पदसंसिता । मिधोसंलावर्जुत्ता य पडिरूवेण णिद्दिसे ॥ २२ ॥ सम्मोइसंपयुत्ता माता-पुत्तसमागमे । सँमा य वाधुज्जकधा एता सव्वा पसस्सते ॥ २३ ॥ पुण्णामधेयजुत्ता वा तधा इत्थी-णपुंसँगे । सुभा वा असुभा वा वि विभत्तीअ वियाकरे ॥ २४ ॥ पव्वज्जसहिता जा य जा य धम्मत्थिया भवे । दाण-सीलकधाओ य तज्जातेण विआगरे ॥ २५ ॥ बंधी व कधा सव्वा दव्वोपकरणेसु य । समत्था लोकिके वेदे पडिरूवेण णिदिसे ॥ २६ ॥ णक्खत्त-जोतिसकधा आकासे उदगम्मि वा । णगे जलचरे यावि वासं तोसु वियागरे ॥ २७ ॥ १ जीवातडंक सं ३ पु० । जो वातडंक सि० ॥ २ सुबुद्धीसुसमा हं० त० विना ॥ ३ "दुबुद्धिकधा हं० त० विना ॥ ४ वद्धीऊद्धीउद सप्र० ॥ ५ चेव सजीवा' सप्र० ॥ ६ एव भिन्नं तु हं० त० विना ॥ ७ धा सुक्खायं हं० त. विना ॥ ८ "कारां बाल' हं० त० विना ॥ ९ धावकधा चेव रोगरोसकधा हं० त० ॥ १० धण हं० त विना ॥ ११ "लाभा उ णि' हं० ॥ १२ कधासु य हं० त० ॥ १३ 'जाणी' ज्ञानीत्यर्थः ॥ १४ भोक्खभोज्ज' हं० त० विना ॥ १५ संसितो सं ३ पु० । संतितो सि० ॥ १६ जुत्तो य हं० त० विना ॥ १७ समायुधा धुज्ज" हं० त० विना ॥ १८ "सगा हं० त० ॥ १९ ‘ज्जसट्ठिता हं० त० ॥ २० अधकधा हं० ॥ २१ तीसु हं० त० विना ॥ इणि पुं० ॥ संतितो सि० ॥ ९६ जुत्तो य इंध काहि ॥ २९ तीसु Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ सोलसमं आगतविभासपडलं अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ केसे कटे य सुक्खम्मि उण्हे अग्गिघरे तधा । अणावुट्ठी भयं रोगं अवायं ताहि णिद्दिसे ॥ २८ ॥ भेरी-मुयंग-पणवाणं संख-उक्कुट्टिणिस्सणे । पिसाय-रक्खसकधा सुभमेतासु णिदिसे ॥ २९ ॥ अत्थाभिगमणे लाभे विवद्धीसु य जा कधा । अत्थस्स य विणासम्मि तज्जातेण वियागरे ॥ ३० ॥ कामिते संपयोगम्मि अभिरोमविवद्धिसु । विगते यावि कामम्मि कथा तज्जाततो वदे ॥ ३१ ॥ धम्माभिलासे विणये दाणे जण्णिक्कियासु य । धम्मोवधाते य तथा तज्जातेण वियागरे ।। ३२ ।। कंधासऽज्झप्पजुत्तासु मोक्खमंतकधासु य । सुसंगमितरागाणं कधा तज्जाततो वदे ॥ ३३ ॥ अत्थे धम्मे य कामे य कधा इस्सरिए तधा । सद्दा विवायसंजुत्ता तज्जातेण वियागरे ॥ ३४ ॥ मणोरमा सुहा सोम्मा कधा या धम्मसंसिता । सुहासं भावजोगं वा सव्वत्थीए पसस्सते ॥ ३५ ॥ पतिकूला य सोतु ज्जे कधा उव्वेदयंतिया । सविग्गहा य संलावा सव्वत्थीगे ण पूयिता || ३६ ॥ कधासु य पसत्थासु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । कधासु य अणिट्ठासु पसत्थं णाभिणिद्दिसे ॥ ३७ ॥ ॥ भूमीकम्मे [संलावविधि] पडलं सम्मत्तं ॥ १५ ॥ छ । [सोलसमं आगतविभासापडलं] वीसं संलावजोणीओ इति वुत्ता विभागसो । सोलसेवाऽऽगताणंगे कित्तयिस्सं विभागसो ॥ १ ॥ आगतं हत्थसंलग्गं १ सपरीवारं च आगतं २ । असहायं च अवत्थाणं आगतं ३ सुत्थियागतं ४ ॥ २ ॥ [आगतं पंचमं] चेव वीमंसा व विचेट्ठियं ५ । इड्डि-उदयिजुत्तं च आगतं छट्ठमुच्चते ६ ॥ ३ ॥ 15 ण्हायालंकारसंछण्णं सत्तमं आगयं भवे ७ । णिस्सोयमइलं दीणं अट्ठमं धिवलागतं ८ ॥ ४ ॥ आधावितं च तुरितं ९ दसमं चेतितागतं । भया वा संभवा वा वि तध अव्वाइकेण वा १० ॥ ५ ॥ पसत्थाणि य गिण्हित्ता आगतं संपकित्तियं ११ । अप्पसत्थाणि गेण्हित्ता आगमे बारसो विधि १२ ॥ ६ ॥ पुरतो १३ पच्छतो यावि १४ दक्खिणेणु १५ त्तरेण य १६ । चतुव्विधं आगमणं इच्चेते सोलसाऽऽहिता ॥ ७ ॥ सुभं १ चेवाऽसुभं चेव २ आगतं दुविधं भवे । थी १ पुमंस २ णपुंसत्थे ३ एवेतं तिविधं भवे ॥ ८ ॥ 20 अप्पत्थं च १ परत्थं च २ तधा साधारणत्थियं ३ । णिरत्थं ४ हेलणत्थं च ५ आगते पंचधा विधि ॥ ९ ॥ दिसाणं विदिसाणं च पविभागं वियक्खणो । अट्ठधा आगतं णच्चा ततो बूया सुभाऽसुभं ॥ १० ॥ आगताणं विधी एसो समासा वासतो तधा । सम्मं संपडिपेक्खित्ता ततो बूया अणाविलो ॥ ११ ॥ जमले हत्थसहगते संबंधेण य आगते । समागमं घरावासं वधं बंधं च णिद्दिसे ॥ १२ ॥ आधाविते य तुरितम्मि वेगिते आगतम्मि य । खिप्पमच्चाइतं अत्थं पवासं वा वि णिद्दिसे ॥ १३ ॥ 25 सुत्थितम्मि य पज्जंते तधा एकग्गाणसे । महासारसुभं अत्थं वदे एवं तु आगमे ॥ १४ ॥ पधप्पवेसे कंदप्पे चंचले अणवत्थिते । आगयम्मि अणोकते असारं अत्थमादिसे ॥ १५ ॥ एकग्गमणुव्विग्गं [जं] जं च मालितभूसियं । पाउतं हत्थसंलग्गं आगतं अत्थसाधगं ॥ १६ ॥ तुरिते अहित्थतं विच्छे मोक्खणे अलिस्स य । विक्खित्तविकधाजुत्तं आगतं अत्थणासणं ॥ १७ ।। विग्गहेण विवादेण कलहेणेति दुवे जणा । भंडणं अत्थहाणि च आगतेणाभिणिद्दिसे ॥ १८ ॥ १भेरीसुद्धंग सं३ पु० ॥२ रागवि सि० ॥३ जण्णुक्कि हं० त० विना ॥ ४ कधामज्झसं ३ पु० । 'कधासऽज्झप्पजुत्तासु' कथासु अध्यात्मयुक्तासु इत्यर्थः ॥ ५ सुहासंलाव हं० त० ॥ ६ उच्छेद हं० ॥ ७ अस्थिआगतं हं० ॥ ८ चेव मीमंसा च विवे वीमंसासु पइट्ठियं सि० ॥ ९ णिम्मोइमइलं सि० । णिमोयमइलं सं ३ पु० ॥ १० हीणं हं० त० ॥ ११ विवलागतं हं० त० विना ॥ १२ रोहित्ता हं० विना ॥ १३ णुत्ता ततो सं ३ पु० । णुव्वा ततो हं० त० ॥ १४ 'मत्ताइतं हं० त० विना ॥ १५ 'माणुसे हं० त० विना ॥ १६ अणेकत्ते सं ३ पु० सि० । अणाकत्ते हं० त० ॥ १७ अहत्थितं वित्थे हं० त० विना ॥ १८ मोक्खाण हं० त० विना ॥ 30 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ अंगविज्जापइण्णयं [सत्तरसमं रुदितविभासापडलं पंक्खवेढाय एज्जंतं बाहुपंगुरणेण वा । उक्खंभमाणो दंडं वा अत्थहाणिऽस्स णिद्दिसे ॥ १९ ॥ सिप्पोवकरणं गेज्झ आगतो पुरतो ठितो । तस्स तेणेव सिप्पेण अत्थलाभं पवेदये ॥ २० ॥ पुप्फुच्छंगे फलुच्छंगे धण्णुच्छंगेण आगते । धण्णलाभं पयालाभं उभयं तेसु णिद्दिसे ॥ २१ ॥ पाणजोणिगतं गेज्झ आगते पुरतो ठिते । दीणोदत्तं विजाणीया तधा अत्थं पवेदये ॥ २२ ॥ मूलजोणिगतं गेज्झ आगते पुरतो ठिते । दीणोदत्तं विजाणित्ता विभत्तीय वियागरे ॥ २३ ॥ धातुजोणिगतं गेज्झ आगते पुरतो ठिते । दीणोदत्तं विजाणित्ता विभत्तीय वियागरे ॥ २४ ॥ पुण्णामधेयं गेण्हित्ता आगते पुरतो ठिते । अत्थलाभं विजाणित्ता थी-पुमंस-णपुंसके ॥ २५ ॥ थीणामधेयं गेण्हित्ता आगते पुरतो ठिते । थीलाभं पुरिसे विज्जा अलाभं थी-णपुंसके ॥ २६ ॥ णपुंसकं गेज्झ तु जो आगतो पुरतो ठितो । अलाभो अत्थहाणी य थी-पुमंस-णपुंसके ॥ २७ ॥ पुरतो आगते चेव दक्खिणेण य उज्जुयं । पुव्वदक्खिणओ वा वि सुभमत्थं पवेदये ॥ २८ ॥ पुव्वुत्तरेणाऽऽगतम्मि उत्तरेण य उज्जुयं । थीणामधेयं संसंति थीणामे पुरिसस्स य ॥ २९ ॥ पच्छिमेणाऽऽगते उज्जु पच्छिमम्मि य दक्खिणे । पच्छिमे वुत्तरं भागे अत्थलाभो णपुंसके ॥ ३० ॥ अभिमुहे आगतम्मि अप्पट्ठायाऽऽगतं वदे । साधारणत्थं पस्सेहिं पच्छिमेण परस्स तु ॥ ३१ ॥ आगते अवयक्खंते परत्थायाऽऽगतं वदे । आगते हेलणत्थाय संकंतेण इमे विदू ॥ ३२ ॥ ओकूणते विकूणंते गेण्हते य अणामियं । आगतमि अणोकते हेलणत्थाय णिदिसे ॥ ३३ ।। अब्भंतरं आगयम्मि अंतो अब्भंतरो भवे । साधारणो भवे मज्झे बाहिरे बाहिरो भवे ॥ ३४ ॥ उदत्ते आगते यावि उदत्तत्थस्स संपदा । आगते अणुदत्तम्मि असुभं संपवेदये ॥ ३५ ॥ आगतेसु पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । अप्पसत्थाऽऽगते यावि पसत्थं णाभिणिद्दिसे ॥ ३६ ॥ ॥ भूमीकम्मे आगतविभासा णामं पडलं विभागसो विक्खातं ॥ १६ ॥ छ । [सत्तरसमं रुदितविभासापडलं] सोलसेवाऽऽगताणंगे इति वुत्ताणि भागसो । वीसं रुदिताणंगे तु कित्तयिस्समतो परं ॥ १ ॥ ओलोएंतो व रोदेज्जा १ उल्लोएंतो व रोदति २ । पेक्खंतो उज्जुअं पुरतो ३ पेक्खंतो तध दक्खिणं ४ ॥ २ ॥ पच्छतो अवलोएंतो रुदिते पंचधा (मा) विधि ५ । वामतो पेक्खिते छटुं ६ विलोकंते व सत्तमं ७ ॥ ३ ॥ पलोएंते व रुदितं अट्ठमं तु पवेदये ८ । आहारकरणे णवमं ९ णीहारे दसमं भवे १० ॥ ४ ॥ F दीणं मधुरनिग्घोसं रुदितं एक्कादसं भवे ११ । क दीणक्खामं अमधुरं बारसं परिकित्तियं १२ ॥ ५ ॥ F अंतो य रुदितं मंदं तेरसं परिकित्तियं १३ । ॐ महासदं च णीहारि रुदितं चोद्दसं भवे १४ ॥ ६ ॥ ओणमंते य रोदंते G भवे पण्णरसो विधि १५ । ओणते वा वि रोदंते क विधी सोलसमो भवे १६ ॥ ७ ॥ सोताणि पिधयित्ता य रुदिते सत्तरसो विधि १७ । अपावितेहिं सोतेहिं रुण्णमट्ठारसं भवे १८ ॥ ८ ॥ F अपस्सिएण रुदियं भवे व एकूणवीसकं १९ । अणपस्सितेण रुदितं भवे वीसतिमं सता २० ॥ ९ ॥ १ पक्खवेंटा य हं० त० ॥ २ उभक्खमाणो हं० त० विना ॥ ३ आगतो । धणलाभं सि० ॥ ४ आगतो पुरतो ठितो हं० त० ॥ ५ आगतो हं० त० सि० ॥ ६ थीणामत्थे पसंसंति हं० त० विना ॥ ७ अवयक्तते हं० त० ॥ ८ आगतो हेलणट्ठाय संकतेण इमो विदु हं० त० ॥ ९ उक्खणेते विक्कुणुत्ते हं० त० ॥ १० मो० विनाऽन्यत्र-"म्मि य णेकत्ते सं० ३ पु० सि० । अणाकत्ते हं० त० ॥ ११ आगमम्मि य तो हं० त० ॥ १२ आगमे हं० त० ॥ १३ कम्मपुच्छितवि सप्र० ॥ १४ पेक्खितो हं० त० ॥ १५ विलोकेंतो व हं० त० विना ॥ १६ पलोएंतो हं० त० ॥ १७-१८ हस्तचिह्नमध्यवर्ति पूर्वार्द्धयुगलं हं० त० एव वर्तते ॥ १९ “सत्तं ध (थ) णीहारि हं० त० ॥ २० उण्णमंतो हं० त० ॥ २१ हस्तचिह्नमध्यगतः पाठः हं० त० एव वर्तते ।। २२ वा वि रुदंतो हं० त० ॥ २३ थोवाणि हं० त० ॥ २४ सोमेहिं हं० त० ॥ २५ हस्तचिह्नगतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमं परिदेवितविभासापडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ ४३ एवमेसो विधी वुत्तो वीसधा रुदितेसु तु । वित्थारओ जधादिट्ठा समासा दुविधा भवे ॥ १० ॥ हासेण रुदितं चेव १ रुदितं दुम्मणस्स तु २ । दुविधं णेयं समासेण वित्थरेण य वीसधा ॥ ११ ॥ रुदिताणं विधी एसो समासा वासतो तधा । फलतो उदाहरिस्सामि तज्जातपविभागसो ॥ १२ ॥ ओलोइतं पच्छिमं च रुदितं ण प्पसस्सति । णीहारि परिहीणं च सव्वत्थीककते सदा ॥ १३ ॥ उल्लो गितं च मुदितं च सव्वत्थीगे पसस्सति । आहारमुदितं वा वि रुण्णमंगे गुणण्णितं ॥ १४ ॥ 5 थिया वामं पसंसंति थीलाभो पुरिसस्स य । णरस्स दक्खिणं पुज्जं थिआ पुत्त-पतिम्मि य ॥ १५ ॥ दुम्मणेज्जो विलोएंते णरो णारी व रोदति । विप्पओगं वियाणेज्जो रुदिते पुच्छकस्स तु ॥ १६ ॥ रुण्णं च पलोएंतो आगमं से पवेदये । दुक्खं सेदुम्मणे रुण्णे सुहं सुमुदितम्मि य ॥ १७ ॥ हासेण रुदिते मंदे मंदं लाभं पवेदये । दुक्खिते रुदिते मंदे बूया मंदं अणिव्वुती ॥ १८ ॥ महाणादं सुमधुरं अक्खामं च पसस्सते । < नामं भिन्नमणोघोसं विस्सरं ण पसस्सते ॥ १९ ॥ 10 अब्भंतरम्मि रुदिते णिरुद्ध मंदणिस्सणे । मंदं अत्थं पवेदेज्जो सुभं वा जदि वाऽसुभं ॥ २० ॥ अभितरम्मि रुदिते अंतोणादम्मि जाणिया । हासं अब्भंतरं इटुं दुक्खे अब्भंतरे दुहं ॥ २१ ॥ ओणतं रुदितं चेव सव्वमेयं ण पूयितं । उदत्तं रुदितं चेव पूयितं अत्थिए भवे ॥ २२ ॥ अपत्थद्धे य रुदिते तज्जातपडिरूवतो । दीणोदत्तविभागेहिं विभत्तीए विभावए ॥ २३ ॥ हासेण रुदितं सव्वं आहारी मुदितं सुभं । महाणादी य मधुरं सव्वत्थीएहिं पूयितं ॥ २४ ॥ वेमणंसा तु रुदितं महाणादि खरस्सरं । उल्लोएते णते वा वि सव्वत्थेसु ण पूयितं ॥ २५ ॥ रुदितेसु पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । अप्पसत्थे य रुदिते पसत्थं णेव णिद्दिसे ॥ २६ ॥ ॥ रुदितविभासापडलं सम्मत्तं ॥ १७ ॥ छ । 20 000000000[अट्ठारसमं परिदेवितविभासापडलं] ॥ नमो जिनेभ्यः ॥ वीसं रुदिताणंगे कित्तियाणि विभागसो । परिदेविताणि अंगगते कित्तयिस्सामि तेरसा ॥ १ ॥ भिण्णस्सरं खरं पढमं १ बीतियं सुस्सरं सुभं २ । साधारणं च ततिगं भवे तु परिदेवितं ३ ॥ २ ॥ पुरतो ४ पच्छिमतो चेव ५ दक्खिणेणु ६ त्तरेण य ७ । विदिसेसु ११ अधे १२ उद्धं १३ एते तेरस आहिता ॥ ३ ॥ परिदेविताणि एताणि तेरसेव विभागसो । जधोदिट्ठाणि वक्खामि गुणा-ऽगुणविभत्तिहि ॥ ४ ॥ अणुस्सरं अप्पसत्थं सुस्सरं तु पसस्सते । मज्झिमे मज्झिमेवाऽऽहु सव्वत्थीगगते वदे ॥ ५ ॥ परिदेवितेणं सव्वेणं विभत्ताणं दिसाहि तु । दसण्ह वि फलं बूया जधुत्तं पुव्ववत्थुसु ॥ ६ ॥ समागमे वेदणायं मंदसि परिदेवणा । विप्पवासणिमित्तं वा दव्वणासे तधेव य ॥ ७ ॥ सराणं पविभागेहिं दीणोदत्तविधीहि य । दिसाणं च विसेसेणं णिद्दिसे तं सुभा-ऽसुभं ॥ ८ ॥ परिदेविते पसत्थे तु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । परिदेविते अप्पसत्थे पसत्थं णाभिणिद्दिसे ॥ ९ ॥ ॥ [परिदेवितविभासा] पडलं सम्मत्तं ॥ १८ ॥ छ । 30 १थीलाभे हं० त० ॥ २ दुम्मणेयो विलोएउ हं० त० ॥ ३ वियाणिज्जा हं० त० ॥ ४ पलोएंते आगमं संप हं० त० ॥ ५ सुदु' हं० त० ॥ ६ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ अंगविज्जापइण्णयं [वीसतिमं पडितविभासापडलं [एगूणवीसइमं विक्कंदियपडलं] परिदेविताणि वुत्ताणि जधोदिवाणि भागसो । विक्कंदियाणि अद्वेव कित्तयिस्सं जधाविधि ॥ १ ॥ समागमे १ भया वा वि २ कोधाए ३ वेदणाए वा ४ । मदे वा ५ विप्पवासे य ६ दव्वणासे व तारिसे ७ ॥ २ ॥ विक्कंदियं भवे यावि आकारण्णपवत्तणा ८ । उक्कटुं वा वि वुज्झेहं विक्वंदितस्स लक्खणं ॥ ३ ॥ सरा-ऽसरविसेसेहिं विज्जा विक्कंदिताणि वि । दीणोदत्तविधाणाणि तव्वसो अंगचितओ ॥ ४ ॥ आसण्णे अपकटे य णातिदूरे तधेव य । पुव्वुद्दिद्वेहिं वत्थूहिं फलं विक्कंदिते वदे ॥ ५ ॥ विक्कंदियाणि सव्वाणि जधावुत्ताणि णिद्दिसे । दिसासु जेधजुत्ताणि फलाणि पुव्ववत्थुसु ॥ ६ ॥ विक्कंदिताणं अट्ठाणं एस वुत्ता विधी गमे । पुव्ववत्थुसु णिद्दिट्टा इट्ठा-ऽणिट्ठफलं पति ॥ ७ ॥ ॥[विक्कंदिय] पडलं सम्मत्तं ॥ १९ ॥ छ । 0000000[वीसतिमं पडितविभासापडलं] 10 विक्कंदिताणि अद्वेव इति वुत्ताणि तच्चसो । पडिताणं तु अट्ठण्हं पविभत्ति इमं सुण ॥ १ ॥ पुरिमं १ पच्छिमं चेव २ वामतो ३ दक्खिणेण य ४ । दक्खिणं पुरिमे भागे ५ दक्खिणं पच्छिमेण य ६ ॥ २ ॥ पच्छिमं वामभागम्मि ७ वामतो य पुरत्थिमं ८ । पडितस्स अट्ठ ठाणाणि णवमं णाभिगम्मति ॥ ३ ॥ वामभाग थिआ बूया पुरिसस्स य दक्खिणं । पुरिमेसु दोसु संधीसु अत्थं साधारणं वदे ॥ ४ ॥ पच्छिमेसु य संधीसु पच्छिमे पडितम्मि य । णपुंसकत्थं जाणेज्जो पडितो सुवियक्खणो ॥ ५ ॥ पुरत्थिमम्मि पडिते सव्वं बूया अणागतं । उभेसु जस्स पासेसु वत्तमाणं पवेदये ॥ ६ ॥ अतीतमत्थं जाणेज्जो पच्छिमे पडितम्मि य । अणावलोको वत्तं वा पच्छिमेण य पुच्छिते ॥ ७ ॥ खलितं तु पडणं विज्जा १ विन्भंसा २ दुट्ठितेण य ३ । मदा वा ४ पित्तमुच्छा वा ५ दोबल्ला ६ पचलायणा ७ ॥ ८ ॥ परणोल्लणाय पडणं ८ अट्ठमं पविभावये । तज्जातपविभागेण फलं बूया वियक्खणो ॥ ९ ॥ सव्वत्थीगगते णिच्चं पडणं ण पसस्सते । सुभे पतिविसेसं तु जधाजातेण कप्पते ॥ १० ॥ पडिते सव्वगत्तेहिं दसधा पडिते तधा । पडिबाहमहापडिते १ णिस्सटुं पडितम्मि य २ ॥ ११ ॥ विलिते पडिते यावि ३ मुंच्छिते पडितं तधा ४ । उट्ठिते वा लहुं पडिते चिरा वा उट्ठिते तधा ५ ॥ १२ ॥ छगणा ६ कद्दमा वा वि ७ पंसुणा वा वि मक्खिते ८ । मक्खिते वा अमेझेणं ९ उदगा वाऽवमक्खिते १० ॥ १३ ॥ भूमीभागविसेसेण मित्ती पविभज्जतु । सयणा-ऽऽसण-जाणगये फल-पुप्फ-हरितेसु य ॥ १४ ॥ णारी-णराणं उच्छंगे तधेव य चउप्पदे । पडियाणि विभाएज्जो अव्वग्गो अंगचिंतको ॥ १५ ॥ __ अपेक्ख एतेसु पडिएसु अवायं तु पवेदये । विन्भट्ठपडिते वा वि पमादा हाणिमादिसे ॥ १६ ॥ मज्जप्पमादा पडिते मंदहाणि पवेदये । मुच्छाय पडिते वा वि वाधिसासं पवेदये ॥ १७ ॥ दोब्बले पडिते वा वि हाणि सत्तुगतं वदे । पयलायमाणे पडिते दुण्णया हाणिमादिसे ॥ १८ ॥ 30 परणोल्लणाय पडणे हाणि बूया पराजये । दुट्ठाणपडिते वा वि पग्गहा हाणिमादिसे ॥ १९ ॥ सव्वगत्तेहि पडिते उत्ताणे पुच्छकम्मि उ । सव्वत्थ हाणि बूया तधेव य पराजयं ॥ २० ॥ १ अक्कोरन्नपरूवणा सं ३ पु० । आकारनपरूवणा सि० ॥ २ जहवुत्ताणि हं. त० ॥ ३ सुणु हं० त० ॥ ४ भागम्मि आबूया सप्र० । ५ अणायलोओ घतं वा हं० त० ॥ ६ "ल्लयाण प हं० त० सि० ॥ ७ 'भागदो हं० त० ॥ ८ पुच्छिए पडणं तधा हं० त० ॥ ९ उदगाधावम' सप्र० ॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगवीसतिमं अप्पुट्ठितविभासापडलं ] अमो भूमीकम्मऽज्झाओ दक्खिणपस्सपंडणे पुरिसापायं पवेदये । वामपस्सेण पडणे थियाऽपायं पवेदये ॥ २१ ॥ पडिते णिकुज्जके वा वि संपत्ते वि य मैदणि । पराजैए जयं बूया भूमीलाभं च अंगवी ॥ २२ ॥ पडिबाहमाणे पडिते हाणि चेट्ठा य णिद्दिसे । णिस्सट्ठपडिते वा वि चौर - मच्चुभयं भवे ॥ २३ ॥ पडणा वि खलियं वा वि बूया अंगविभागसो । पडणा मुच्छिते वा वि वाधि- मच्चुभयं भवे ॥ २४ ॥ मक्खिते वा वि अंगाणं इट्ठा ऽणिट्ठेहि अंगवी । मक्खितप्पविभागेणं फलं बूया सुभासुभं ॥ २५ ॥ संयणे पवडणे कीडं आसणे आसणं वदे । जाणे जाणगतं बूया पवयणपडिरूवतो ॥ २६ ॥ पुप्फ-फलेसु बीएसु हरिते संघण - भूसणे । अच्छादणे वाहणे वा यो पते तु णिकुज्जको ॥ २७ ॥ तेसु लाभं वियाणीया पडिते इस्सरियम्मि य । पासिकुत्ताणके विज्जा वयंतेहिं तु संसियं ॥ २८ ॥ उच्छंगे णर-णारीणं जो पंते परिपुच्छको । थी- पुमंसविभागेणं संजोगं पतिवेदये ॥ २९ ॥ चतुष्पदे पदे जो तु आलिंगे पडितो तु जो । तस्स लाभं पंवेदिज्जा पंसुठाणे विपज्जयो ॥ ३० ॥ दव्वमण्णतरं गज्झ यो पडेज्ज तु पुच्छको । हाणि सत्तनिमित्ताकं अत्थहाणि च णिद्दिसे ॥ ३१ ॥ गहितम्मि पतज्जणट्टे वा वैज्जते भिण्ण-लोलिते । हाणि हाणि पवेदेज्जो तज्जातपडिरूवतो ॥ ३२ ॥ गहितम्मि अविणटुम्मि अणिकुज्जे अलोलिते । अमुत्ते सुपरिग्गहीतम्मि हाणितो वद्धिमादिसे ॥ ३३ ॥ पडंतो जाणि मिल्लेति विक्खरइ जो णियं वयं । जं उवगेण्हे तं ते य तस्स भागी भवे तु सो ॥ ३४ ॥ जाणि जाणि य पीडेति पडतो जाणि वाँ खिरे । तेहिं ते य जाणिस्स पडते जाणि विक्खिरे ॥ ३५ ॥ 15 इट्ठम्मि य पडे जो तु सुहं लेसं अपीलये । तस्स तेणं गुणं बूया विवरीते विवज्जयो । पडिताणं विधी एसो तच्चसो पविभावये । पुव्वुद्दिट्ठेहिं वत्थूहिं ततो बूयांगचितको ॥ ३७ ॥ ॥ भूमीकम्मे पडितविभासाणामज्झाओ ॥ २० ॥ छ ॥ ३६ ॥ [ एकवीसतिमं अप्पुट्ठितविभासापडलं ] पडिताणं विधी एसो उत्तो सव्वो समासतो । अप्पुट्ठिताणेक्कवीसं कित्तयिस्सं विभागसो ॥ १ ॥ पुरिमं १ पच्छिमं चेव २ वामतो ३ दक्खिणेण य ४ । दक्खिणं पुरिमे भागे ५ पच्छिमं दक्खिणेण य ६ ॥ २ ॥ पच्छिमं वामभागम्मि ७ वामेण य पुरत्थिमं ८ । दिसाणं पविभागेहिं अट्ठ अप्पुट्ठिताणि तु ॥ ३ ॥ अकामकं च ९ दीणं च १० कुद्धेणऽप्पुट्ठितं च जं ११ । विलितं अप्पुट्ठितं चेव १२ तधा संकुचणुट्ठितं १३ ॥ ४ ॥ आसत्थं च १४ उदग्गं च १५ पहट्टं च तधुट्ठितं १६ । गारवा १७ बहुमाणेणं १८ अॅसल्लीणुट्ठितं तधा १९ ॥ ५ ॥ सद्दे इट्ठे तधामासे भवे अप्पुट्ठितं तधा २० । असुयामाससद्दम्मि २१ इति वुत्ताणेकवीसति ॥ ६ ॥ १ पडिणि हं० त० ५ पुच्छिते यावि हं० त० ॥ ९ पए परिपुच्छर हं० त० ॥। ४५ ॥ २ मेदिणं सप्र० ॥ ३ 'जयं जये बूया हं० त० विना ॥ ४ चार मत्तुभयं हं० त० विना ॥ ६ सजणो पवजणे हं० त० ॥ ७ सवण हं० त० ॥ ८ संहितं हं० त० विना ॥ १० पवेदेज्जो पसुं दाणे पविज्जयो हं० त० विना ॥ ११ वज्जिए भिण्ण-लोहि (ट्टि) ए हं० त० ॥ १२ जो वयं सि० विना ॥ १३ उवगेण्हं तं हं० त० विना ॥ १४ वोखरे हं० त० विना ॥। १५ जाण विक्खरे हं० त० ॥ १६ उच्चसो हं० त० विना ॥। १७ भागं तु वा हं० त० ॥ १८ असण्णीणु हं० त० विना ॥ Personal Use Only For Private 5 10 20 25 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [तेवीसइमं पयलाइतविभासापडलं पुरस्थिमं दक्खिणतो तधा पुरिमदक्खिणं । अप्पुट्ठिताणि तिण्णंगे उत्तमाणि वियाणिया ॥ ७ ॥ अप्पुट्ठितं वामभागं जं च वामपुरत्थिमं । ताणि साधारणाणाऽऽहु णातं एव [प]कप्पिते ॥ ८ ॥ थिया वामं पसंसंति थीलाभे पुरिसस्स य । णरस्स दक्खिणं पुज्जं थिया पुत्ते पतिस्स य ॥ ९ ॥ पच्छिमं वामभागं तु दक्खिणेण य पच्छिमं । अप्पुट्टितं ण प्पसत्थं समुज्जं पच्छिमं च जं ॥ १० ॥ अकामकं वा दीणं वा कुंद्धमप्पुट्टितं तधा । विलितं चलितं चेव सव्वमेव ण पूयितं ॥ ११ ॥ आसत्थमं उदत्तं च पह?मुदितं तधा । गारवा बहुमाणेणं असल्लीणं च पूयियं ॥ १२ ॥ तल-तालुयघोसेसु सुभे छेलिंत-घोडिते । संख-दुंदुभिघोसेसु उद्वितं तु पसस्सते ॥ १३ ॥ रुदिते कंदिते वा वि अट्टस्सरणिणादिते । विग्गहेण विवादेणं उद्वितं ण पसस्सते ॥ १४ ॥ अब्भंतराणि णिद्धाणि पुण्णामाणि दढाणि य । एताणि आमसंतुट्टे अत्थसिद्धि स णिद्दिसे ॥ १५ ॥ साधारणाणि सामाणि थीणामाणि तणणि य । एताणि आमसंउतुटे मज्झिमत्थं स णिदिसे ॥ १६ ॥ णपुंसकाणि बज्झाणि लुक्काणि य चलाणि य । एताणि आमसंउतुढे हीणमत्थं पवेदये ॥ १७ ।। गमणं वा पवासं वा मोक्खेण य विमोयणं । जयं ठाणट्ठिते विज्जा थावरं ण तु पूयितं ॥ १८ ॥ अप्पुट्टितम्मि पुरिमे अत्थं बूया अणागतं । उभेसु यस्स पस्सेसु वत्तमाणं पवेदये ॥ १९ ॥ अप्पुट्ठिते पच्छिमम्मि अत्थं बूया अतिच्छितं । अणावलोइते यावि उच्चत्तम्मि य पच्चतो ॥ २० ॥ उट्टितेसु पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिदिसे । अप्पसत्थेसु सव्वेसु पसत्थं णेव णिदिसे ॥ २१ ॥ ॥ भूमीकम्मे अप्पुट्टितविभासा सम्मत्ता ॥ २१ ॥ छ । 15 -000000000 20 [बावीसतिमं णिग्गयविभासापडलं ] अप्पुट्टिताणेक्कवीसं कित्तियाणि जधा तधा । णिग्गमे संपवक्खामि एक्कारस जधाविधि ॥ १ ॥ पुरतो णिग्गतो चेव १ पच्छतो २ दक्खिणेण य ३ । वामतो निग्गओ चेव ४ [वि]दिसा भवतु तह च्चिय ८ ॥ २ ॥ इट्ठामासे तधाऽऽगारे णवमो णिग्गमो सुभो ९ । एतेसु य अणिढेसु णिग्गमो दसमो भवे १० ॥ ३ ॥ साधारणेसु चेतेसु उभयेसु वि णिग्गमो । एक्कारसो वि वक्खातो ११ इति वुत्ता उ संगहा ॥ ४ ॥ जधा अप्पुट्टिताणंगे दिसासु विदिसासु य । आमासा-ऽऽगार-सद्देहिं विभत्ताणि विभागसो ॥ ५ ॥ पसत्थमप्पसत्थाणि थी-पुमंस-णपुंसके । G थावरम्मि चले चेव निग्गमे वि तहा वदे ॥ ६ ॥ निदिए य पसत्थे य विभत्तीय वियागरे । पुव्ववत्थुगमे बूया एक्कारस वि णिग्गमे ॥ ७ ॥ २ णिग्गमेसु पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । [अप्पसत्थेसु सव्वेसु पसत्थं व णिद्दिसे ॥ ८ ॥] छ । [॥ भूमीकम्मे णिग्गयविभासापडलं ॥ २२ ॥] [तेवीसइमं पयलाइतविभासापडलं ] णिग्गमा दस एक्को य कित्तिया पविभागसो | पयलाइताणि सत्तंगे कित्तयिस्समयो परं ॥ १ ॥ अप्पुट्ठितं १ ओणतं च २ पयलाइत दक्खिणं ३ । पयलाइतं तधा वामं ४ ओहीणं पंचमं भवे ५ ॥ २ ॥ उदग्गं व उदत्तं वा छटुं सा पयलाइतं ६ । अणुदत्तमप्पहटुं च सत्तमं पयलाइतं ७ ॥ ३ ॥ 30 १तिण्हंगे हं० त० ॥२ णातुं हं० त०॥णोतं सि० ॥ ३ कुट्ठम हं० त०सि०॥ ४ पूयियं हं० त० ॥ ५ असण्णीणं च पूयितं हं० त० विना ।। ६ सं उद्धे हं० त० ॥ ७ण णि हं० त० विना ॥ ८ 'सं उद्धे हं० त०॥९णवरं काणि हं० त० ॥ १० अइचिरं हं० त० ॥ ११ तम्विधा सि० ॥ १२ हस्तचिह्नगतः सार्द्धश्लोकः हं० त० एव वर्तते ॥ १३ पयलाइतं च तथवा ओहीम पच्छिमं भवे सं ३ पु० सि० । पयलाइयं तत्थव्वाउहीनं पच्छिमं भवे हं० त० ॥ १४ लाइया हं० त० ॥१५ अणाउत्तम हं० त०॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ पणुवीसतिमं जंपितविभासापडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ अप्पुट्टितं पसत्थं सा ओणयं ण प्पसस्सते । अणावलोइतं चेव संताणं ण प्पसस्सति ॥ ४ ॥ थिया वामं पसंसंति थीलाभे पुरिसस्स य । णरस्स दक्खिणं पुज्जं थिया पुत्ते पतिम्मि य ॥ ५ ॥ ओहीणं ण प्पसंसंति < अंगविं पयलाइतं । उदत्तं च पसंसंति - सव्वत्थीककते सदा ॥ ६ ॥ पयलाइतविधी एतं दीणोदत्तविधीहि य । ओहित्थोदग्गभावेहि विभावेंतो वियाकरे ॥ ७ ॥ पयलायंते जयो णत्थि अट्ठाणगमणं तथा । अत्थलाभं पवेदेज्जो णिव्वत्ती य विभागसो ॥ ८ ॥ पयलाइते पसत्थम्मि अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । - अप्पसत्थेसु सव्वेसु पसत्थं णाभिणिदिसे ॥ ९ ॥ ॥ भूमीकम्मे पयलाइतविभासापडलं सम्मत्तं ॥ २३ ॥ छ । 5 [चउवीसइमं जंभितविभासापडलं] पयलाइताणि सत्तंगे वुत्ताणि पविभागसो । सत्त जंभाइताणंगे कित्तइस्समतो परं ॥ १ ॥ पुरिमं १ पच्छिमं चेव २ वामतो ३ दक्खिणेण य ४ । उदत्तं चेव ५ दीणं च ६ ससंताणं च सत्तमं ७ ॥ २ ॥ 10 उड्डे संजंभियं चेव १ तधा ओसीसजंभियं २ । जंभितं समभागं च ३ अणिरुद्धं च जंभितं ४ ॥ ३ ॥ आसकं सवरेत्ता य णिरुद्धं जंभितं तधा ५ । सम्मीलइत्ता वयणं अंतोसंजंभियामपि ६ ॥ ४ ॥ पसारयंतो बाहाओ सीहो वा पविजंभति ७ । एक्कक्कं सत्तधा विभजे पुव्वुद्दिटुं विजंभियं ॥ ५ ॥ एवं विभावयित्ता य जंभियं स वियक्खणो । अंगवी पविभागं तु विभत्तीय वियागरे ॥ ६ ॥ पुरिमं दक्खिणं चेव पुरिसस्सऽत्थे पसस्सते । थिया य पूयितं तं तु सता पुत्ते पतिम्मि य ॥ ७ ॥ 15 वामतो जंभियं जं च जं च वामपुरस्थिमं । थिया पसस्सते तं तु थीणामत्थे णरस्स य ॥ ८ ॥ पच्छतो जंभियं जं तु णपुंसत्थे तु तं भवे । उदत्तं जंभियं चेव सव्वत्थीके पसस्सति ॥ ९ ॥ जंभिते अणुदत्तम्मि दीणे बूया पराजयं । विक्कमस्स असंपत्ती तधा अत्थस्स आदिसे ॥ १० ॥ जंभियम्मि ससंताणे ससंगं अत्थमादिसे । जंभिते अणुदत्तम्मि पत्थि अत्थस्स संपदा ॥ ११ ॥ णिग्गमे याविलालाभं पयं सो संपवेदये । जंभिते य सअंसूके एवमेव पवेदये ॥ १२ ॥ उद्धं संजंभिते वद्धि हाणी ओसीसजंभिते । समं संजंभिते यावि वद्धी तु ण महालिया ॥ १३ ॥ अणिरुद्ध जंभिते वा वि संअंगा जय-वद्धिओ । संगं च जय-वद्धीणं णिरुद्ध जंभिते वदे ॥ १४ ॥ अंतोसंजंभिते चेव वद्धी अब्भंतरा भवे । सीहविजंभिते चेव अत्थसिद्धिमुदाहरे ॥ १५ ॥ पुरत्थिमे जंभितम्मि जयं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेसु अतिवंतं च पच्छतो ॥ १६ ॥ दिसाणं पविभागेहिं दीणोदत्तविधीहि य । आगारपविभागेहिं जंभियाणि विआकरे ॥ १७ ॥ जंभितेसु पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । अप्पसत्थे य सव्वम्मि पसत्थं णाभिणिद्दिसे ॥ १८ ॥ ॥ [जंभितविभासापडलं] ॥ २४ ॥ छ । -000000000 [पणुवीसतिमं जंपितविभासापडलं] एवेस जंभितविधी पविभत्ता विभागसो । जंपिताणि तु सत्तेव पवक्खामऽणुपुव्वसो ॥ १ ॥ १ उण्णतं हं० त० विना ॥ २ सयाणं हं० त० ॥ ३ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [छव्वीसतिमं चुंबितविभासापडलं पेम्मा १ पडिणिवेसा वा २ विलिग्गं ३ विक्खित्तमाणसं ४ ।। मज्झत्थं ५ गुहितं वा वि ६ सामण्णं सत्तमं भवे ७ ॥ २ ॥ जधा दिसाणं पविभागा विभत्ता पुव्ववत्थुसु । पजंपितेसु वि तधा विभत्तीय वियाकरे ॥ ३ ॥ . जधा संलावजोणीओ वुत्ताओ पविभागसो । पसत्था अप्पसत्था य तधा संजंपिताण वि ॥ ४ ॥ एवं संलावजोणीयं संजंपितविधि वदे । वेयणप्पविभागत्थं संगहेसुमुदाहितं ॥ ५ ॥ जंपिताणं तु सत्तण्हं विभत्ताणं विभागसो । संलावजोणीहिं फलं णिद्दिसे अंगचिंतको ॥ ६ ॥ संजंपिताणं सत्तण्हं विधी वित्थारतोऽधिता | संलावविधिजोणीयं पडले पण्णरसम्मि तु ॥ ७ ॥ ॥ जंपितविभासापडलं सम्मत्तं ॥ २५ ॥ छ । -00000000 [छव्वीसतिमं चुंबितविभासापडलं] 10 संजंपितेसु य विधी वुत्ता संजंभितेसु य । चुंबिते सोलसंगम्मि पवक्खामि विभागसो ॥ १ ॥ पुरिसं चुंबे १ थियं वा वि २ ततियं च णपुंसकं ३ । पाणजोणिगतं चुंबे ४ मूलजोणिगतं पि वा ५ ॥ २ ॥ धातुजोणिगतं वा वि ६ चुंबियं छट्ठकं भवे । पुरिमं ७ दक्खिणं चेव ८ पच्छिमं ९ वाममेव य १० ॥ ३ ॥ अब्भंतरं ११ बाहिरं च १२ मज्झिमं चुंबितं तथा १३ । उदग्गं १४ मज्झिमं चेव १५ जघण्णं वा वि १६ सोलसं ॥ ४ ॥ 15 चुंबिताणं विधी एसो सोलसण्हं पि आदितो । अणुयोगविधि चेव संगहेण य मे सुण ॥ ५ ॥ सज्जीवं १ तध अज्जीवं २ चुंबियं दुविधं भवे । णामतो तिविधं चेव थी १ पुमंस २ णपुंसकं ३ ॥ ६ ॥ अभितरं १ बाहिरं च २ मज्झिमं वा वि चुंबितं ३ । उदत्त ४ मणुदत्तं च ५ पंचधा स विधीयति ॥ ७ ॥ मत्थके १ वदणे चेव २ बाहुसीसे ३ उरे तधा ४ । बाहुम्मि ५ पाणिमज्झम्मि ६ अंगुढे ७ अंगुलीसु य ८ ॥ ८ ॥ उयरे ९ बाहुमज्झम्मि १० गोज्झंगे चेव चुंबितं ११ । चुंबितं पादसंडीए १२ तले १३ पादंगुलीसु य १४ ॥ ९ ॥ चुंबितं चंतरंगम्मि एवमादि वियाणिया । फल-पुप्फातिणं चेव दव्वाणं परिचुंबणा ॥ १० ॥ चुंबितं चतरंगम्मि १ बाहिरंगे तधेव य २ । एक्कक्कं दुविधं णेयं वित्थारो सोलसाऽऽगमा ॥ ११ ॥ चुंबितं कामरागा वा १ पीतीअ तध चुंबितं २ । वीमंसणट्ठा ३ उवहासा ४ हेलणट्ठाय चुंबितं ५ ॥ १२ ॥ चुंबियाण विधी एतं समास-वासदेसितं । पंजाणवं चुंबितं चेव विभत्तीअ विआगरे ॥ १३ ॥ कामरागा व हासा वा चुंबियं उत्तमं भवे । < वीमंसणा महासत्थं मज्झिमत्थे पसस्सते ॥ १४ ॥ चुंबितं हेलणत्थाय सव्वत्थीके ण पूयितं । चत्तारि तु पसत्थाणि उत्तमाणि तु चुंबिते ॥ १५ ॥ पुरिसो पुरिसं चुंबेज्ज मत्थकम्मि उरम्मि य । अण्णम्मि वा वि पुण्णामे अत्थसिद्धि स णिद्दिसे ॥ १६ ॥ पुरिसो इत्थियं चुंबे मत्थकम्मि उरम्मि वा । अण्णम्मि वा वि थीणामे थीलाभं तस्स णिद्दिसे ॥ १७ ॥ पुरिसो णपुंसकं चुंबे मत्थकम्मि मुहम्मि वा । णपुंसके वा अण्णम्मि अत्थहाणि से णिदिसे ॥ १८ ॥ इत्थी पुरिसं चुंबेज्ज मत्थकम्मि मुहम्मि वा । अण्णम्मि वा वि पुण्णामे अत्थलाभं से णिद्दिसे ॥ १९ ॥ इत्थी इत्थीं तु चुंबेज्ज मत्थकम्मि मुहम्मि वा । अण्णम्मि वा वि थीणामे अत्थलाभो स मज्झिमो ॥ २० ॥ इत्थी णपुंसकं चुंबे मत्थकम्मि मुहम्मि वा । णपुंसके वा अण्णम्मि अत्थहाणि स णिद्दिसे ॥ २१ ॥ १ विलित्तं ३ हं० त० विना ॥ २ वयणथवि हं० त०॥ ३ चितिए हं० त० विना ॥ ४ वित्थरओ तहा हं० त० ॥ ५ उरे य बाहु सप्र० ॥ ६ च तरंग' हं० त० विना ॥ ७'चुंबणे हं० त० विना ॥ ८ च तरंग हं० त० विना ॥ ९ जयावणं चुं हं० त० ॥ १० Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तावीसतिमं आलिंगितपडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ पुरिसं णपुंसको चुंबे मत्थकम्मि मुहम्मि वा । अण्णम्मि वा वि पुण्णामे अत्थसिद्धी धुवा भवे ॥ २२ ॥ इत्थीं णपुंसको चुंबे मत्थकम्मि मुहम्मि वा । अण्णम्मि वा वि थीणामे अत्थलाभोऽस मज्झिमो ॥ २३ ॥ अपुमं णपुंसको चुंबे मत्थकम्मि मुहम्मि वा । णपुंसके वा अण्णम्मि अत्थहाणिऽस्स णिद्दिसे ॥ २४ ॥ चुंबिते पाणमज्झम्मि पुरिसत्थो पसस्सते । अब्भंतरं कुडुंबत्थं वत्तमाणं पवेदये ॥ २५ ॥ पुष्पं फलं च चुंबेज्जा वत्थं आभरणाणि य । समागमं घरावासं अत्थसिद्धि च णिद्दिसे ॥ २६ ॥ हिरण्णं च सुवण्णं च मणि-मुत्त-पवालयं । पसण्णो जति चुंबेज्जा अत्थलाभं पवेदये ॥ २७ ॥ चुंबिते पाणजोणीयं मूलजोणिगते तधा । धातुजोणिगते चेव दीणोदत्तेण णिद्दिसे ॥ २८ ॥ अंगोट्ठचुंबिते बूया पुरिस]त्थं पुत्तसंसितं । अंगुलीयं थिया अत्थं ण्हुसं दुहितरं तधा ॥ २९ ॥ बाले पुष्फ-फले बूया G चुंबियम्मि पजागर्म । जुण्णे पुप्फे फले बूया के गुरु वुड्डसमागमं ॥ ३० ॥ पाणजोणि-मूलजोणि-धातुजोणिगतेसु वा । बाले पजागमे वद्धी विदित्ता लक्खणं वदे ॥ ३१ ॥ 10 सुक्खे तणे व कटे वा सुक्खे पुष्फ-फलम्मि य । रोग-सोकं समरणं चुंबिते संपवेदये ॥ ३२ ॥ पुण्फे फले उदत्तम्मि सबूया पिअसमागमं । जिण्णे य अणुदत्तम्मि > अप्पियेहि समागमं ॥ ३३ ॥ पुरस्थिमे सुभो अत्थो दक्खिणे यावि चुंबिते । थीसंसितो भवे वामे मज्झिमत्थो तु चुंबिते ॥ ३४ ॥ पच्छिमे चुंबिते यावि अत्थोऽस्स असुभो भवे । अंगंतरम्मि विण्णेयो दीणोदत्तविभागसो ॥ ३५ ॥ पुरस्थिमे चुंबितम्मि अत्थं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेसु अतिक्कं च पच्छतो ॥ ३६ ॥ पुरत्थिमे दक्खिणे य पुरिसत्थं णिवेदये । F वामे य थिआ अत्थं पच्छतो य नपुंसए ॥ ३७ ॥ चुंबियम्मि उदत्तम्मि उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झिमे मज्झिमा वद्धी हीणे हीणं निवेदये ॥ ३८ ॥ छ पुण्णामे चुंबिते विज्जा पुरिसत्थस्स संपदा । थीणामे इत्थिसंपत्ती णत्थि लाभो णपुंसके ॥ ३९ ॥ अभितरे चंबितम्मि अत्थो अभितरो भवे । बाहिरब्भंतरे मज्झो बाहिरम्मि य बाहिरो ॥ बाहिर-ऽब्भंतर-मज्झेहिं दीणोदत्तविधीहि य । थी-पुं-णपुंसलग्गेहिं चुंबिआणि विआगरे ॥ ४१ ॥ 20 चुंबितेसु पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । < अप्पसत्थेसु सव्वेसु पसत्थं णेव णिद्दिसे ॥ ४२ ॥ [चुंबितविभासा] पडलं सम्मत्तं ॥ २६ ॥ छ । [सत्तावीसतिमं आलिंगितपडलं] चुंबिताणि तु अंगम्मि इति वुत्ताणि सोलस । चोद्दसाऽऽलिंगिताणंगे पवक्खामि विभागसो ॥ १ ॥ पुरिमं १ पच्छिमं चेव २ दक्खिणं ३ वाममेव य ४ । आलिंगितं तु पुण्णामं ५ थीणामं ६ तु णपुंसकं ७ ॥ २ ॥ 25 उदत्त ८ मणुदत्तं च ९ दसमं चेव अवीलितं १० । आलिंगितं पीलियं च एक्कारसमं उच्चते ११ ॥ ३ ॥ आलिंगितं बारसमं चला-ऽचलविभागसो १२ । सव्वंगतोपगूढेसु तेरसो विधि उच्चति १३ ॥ ४ ॥ गत्तमूलम्मि उवगूढे देसालिंगितमेव य । आलिंगितं चोद्दसमं १४ संगहा इति कित्तिया ॥ ५ ॥ पुरिसे य थिया जं च तधेव य णपुंसके । बाल-जोव्वण-वुड्डेसु आरोगेसाऽऽतुरेसु य ॥ ६ ॥ पाणजोणिगते चेव मूलजोणिगतेसु य । धातुजोणिगते चेव दीणोदत्तविधीहि य ॥ ७ ॥ दव्वोपकरणाणं वा विभत्तीय वियाणिया । अचलाचले य विण्णाय पीलिता-ऽपीलितं तधा ॥ ८ ॥ १ पुरत्थं हं० त० विना ॥ २ हस्तचिह्नगतः पाठः हं० त० एव वर्तते ।। ३ <> एतच्चिह्नगतः पाठः हं० त० नास्ति ।। ४ पुरिमे दक्खिणे चेय हं० त० ॥ ५ ण वेदये हं० त० विना ॥ ६ हस्तचिह्नमध्यगतः सार्द्धश्लोक: हं० त० एव वर्त्तते ॥ ७ हस्तचिह्नगतः पाठः हं० त० एवास्ति ॥ ८ 'लग्गे वि चुं सप्र० ॥ ९ एतच्चिह्नगतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 अंगविज्जापइण्णयं [सत्तावीसतिमं आलिंगितपडलं पडिरूवेहि एतेहि दिसाणं वा विभागसो । चोद्दसाऽऽलिंगिताणंगे विभत्तीय वियागरे ॥ ९ ॥ आलिंगितम्मि पुरतो सुभं अत्थं पवेदये । दक्खिणम्मि य गूढम्मि अत्थसिद्धि पवेदये ॥ १० ॥ आलिंगिते पच्छिमम्मि अत्थं बूया णपुंसकं । वामे य उवगूढम्म थिया अत्थं पवेदये ॥ ११ ॥ आलिंगितम्मि पुरतो अत्थं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेसु अतिक्कंतं च पच्छतो || १२ ॥ पुरिसो पुरिसं आलिंगे अत्थसिद्धिऽस्स उत्तमा । पुरिसो इत्थिमालिगे इत्थीलाभंऽस णिद्दिसे ॥ १३ ॥ पुरिसो णपुंसकं वा वि आलिंगेत्ताण गेण्हति । अत्था तस्सऽवहायंति ण य सिझंतिऽणागता ॥ १४ ॥ इत्थी य पुरिसमालिंगे संजोगं च धणागमं । इत्थी य इत्थिमालिंगे मज्झिमा अत्थसंपदा ॥ १५ ॥ इत्थी णपुंसमालिंगे अत्थलाभोऽस मज्झिमो । उभो णपुंसमालिंगे अत्थलाभोऽस कण्णसो ॥ १६ ॥ पुरिसो पुरिसमालिंगे पुण्णामम्मि कम्हियि । अत्थसिद्धीऽस जाणीया पुरिसत्थं च णिद्दिसे ॥ १७ ॥ पुरिसो जो तु आलिंगे इत्थिमध णपुंसकं । पुण्णामकम्मि अंगम्मि अत्थसिद्धीऽस णिद्दिसे ॥ १८ ॥ पुरिसो इत्थि पुमं वा वि तहेव य णपुंसकं । थीणामकम्मि अंगम्मि उवगूढे कथंचि तु ॥ १९ ॥ थीलाभं संपवेदेज्जो उवगूढम्मि एरिसे । अवसेसेसु अत्थेसु मज्झिमं अत्थसंपदं ॥ २० ॥ पुरिसो जो तु आलिंगे इत्थी तध णपुंसकं । णपुंसकम्मि अंगम्मि तत्थ एतारिसं वदे ॥ २१ ॥ संजोगं च पदं चेव णत्थि एवं वियागरे । अवसेसेसु अत्थेसु अत्थाहाणि पवेदये ॥ २२ ॥ इत्थी इत्थि च पुरिसं च तथैव य णपुंसकं । पुण्णामकम्मि अंगम्मि आलिंगे तरुबंधणं ॥ २३ ॥ आलिंगितम्मि एतम्मि अत्थसिद्धिऽस णिद्दिसे । सव्वत्थेसु पजातं च भावा किड्डागतेसु य ।। २४ ॥ इत्थी तु जति आलिंगे थी-पुमंस-णपुंसकं । थीणामकम्मि अंगम्मि तत्थ एवं वियागरे ॥ २५ ॥ आलिंगितम्मि एतम्मि मज्झिमा अत्थसंपदा । अत्थो साधारणो कज्जो विभत्तीय वियागरे ॥ २६ ॥ इत्थी इतिथ णरं चेव तधेव य णपुंसकं । णपुंसकंगे अण्णतरे उवगूढे कधंचि वि ॥ २७ ॥ आलिंगितम्मि एतम्मि हीणमत्थं पवेदये । पुरिसत्थं पमदत्थं च णपुंसत्थं तधेव य ॥ २८ ॥ णपुंसो पुरिसो वा वि इत्थि तध णपुंसकं । पुण्णामेसु य आलिंगे ततो एवं विआगरे ॥ २९ ॥ आलिंगितम्मि एतम्मि पुरिसत्थं पवेदये । संजोगमत्थसिद्धि वा बूया पुरिससंसियं ॥ ३० ॥ णपुंसं पुरिसं वा वि इत्थी तध णपुंसकं । थीणामकम्मि आलिंगे अंगम्मि जति कम्हियि ॥ ३१ ॥ आलिंगितम्मि एतम्मि अत्थसिद्धिऽस णिद्दिसे । समागमं तधा लाभं इत्थीयं संपवदेये ॥ ३२ ॥ णपुंसो पुरिसो वा वि इत्थी तध णपुंसकं । णपुंसकंगे आलिंगे तस्स विज्जा इमं फलं ॥ ३३ ॥ आलिंगितम्मि एतम्मि अत्थहाणि पवेदये । थी-पुमंससमाउत्ते लाभो वा वि णपुंसके ॥ ३४ ॥ आलिगितम्मि उवगूढे पुण्णाममवलंभए । पसत्थसव्वमंगम्मि विवरीते विवज्जतो ॥ ३५ ॥ आलिंगितेसु सुक्केसु सव्वं तु ण पसस्सते । कन्नापदाणे मोक्खे य पवासे य पसस्सते ॥ ३६ ॥ आलिंगिते सव्वगत्ते अणुव्विग्गे अपीलिते । सुभा अत्थाऽस वद्धते असुभं च परिहायति ॥ ३७ ॥ अपीलिते सुभो अत्थो पीलिते पीलितो भवे । चले यावि चलं बूया अत्थमालिंगितम्मि उ ॥ ३८ ॥ पाणजोणि च आलिंगे मूलजोणि तधेव य । धातुजोणिगतं वा वि दीणोदत्तेण णिद्दिसे ॥ ३९ ॥ पुण्णामधेये उक्कट्ठो थीणामे मज्झिमो भवे । णपुंसके पच्चवरो अत्थो आलिंगिते सदा ॥ ४० ॥ आलिंगिते उदत्तम्मि उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झा य मज्झिमे वद्धी हीणं हीणेण णिद्दिसे ॥ ४१ ॥ 20 25 30 १ एतच्चिह्रान्तर्गतं चरणं हं० त० नास्ति ॥ २ संभोगं बंधणागयं (व धणागयं) हं० त० ॥ ३ अत्थसिद्धि विजा हं० त० ॥ ४ स्थिमंध सप्र० ॥ ५ “गूढे जहण्णिओ हं० त० ॥ ६ तकबं सं ३ पु० सि० । तहकबं हं० त० ॥ ७ भागा किन्नाग हं० त० विना ॥ ८ ‘गमिच्छसिद्धि सं ३ पु० ॥ ९ "ममचलं भवे हं० त० विना ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 अट्ठावीसतिमं णिवण्णविभासापडलं] अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ पुष्पं फलं च पुण्णामं आलिंगेत्ता तु पुच्छति । अत्थसिद्धी य लाभं च सव्वमेतेहि णिद्दिसे ॥ ४२ ॥ थीणामधेयं जं किंचि आलिंगितो तु पुच्छति । पुरिसस्स थिया लाभं थिया अत्थस्स संपदा ॥ ४३ ॥ मणि आभरणं वत्थं आलिंगितो तु पुच्छति । मणि आगमणं लाभं सव्वमेतेहिं णिदिसे ॥ ४४ ॥ अब्भंतरेसु णिद्धेसु पुण्णामेसु दढेसु य । पुण्णे सुक्केसु तधा आहारमुदितेसु य ॥ ४५ ॥ आलिंगितेसु चेतेसु उक्कट्ठा अत्थसंपदा । अमणुण्णाणं च भावाणं णत्थि लाभो त्ति णिद्दिसे ॥ ४६ ॥ णपुंसकेसु सव्वेसु बज्झेसु य चलेसु य । उवद्दुतेसु एतेसु वावण्णेसु य णिच्छता ॥ ४७ ॥ आलिंगितेसु एतेसु पसत्थं णभिणिद्दिसे । असुभाणं च भावाणं लाभमत्थं पवेदये ॥ ४८ ॥ थिआ वामं पसंसंति थीलाभो पुरिसस्स य । णरस्स दक्खिणं पुज्जं थिया पुत्ते पतिम्मि य ॥ ४९ ॥ पुष्पं फलं च आलिंगे वत्थमाभरणं तधा । समागमं अत्थलाभं उभयं तत्थ णिद्दिसे ॥ ५० ॥ आलिगिते पाणितले पुरिसस्सऽत्थे पसस्सते । अब्भंतरं कुडुंबत्थं वत्तमाणं पवेदये ॥ ५१ ॥ आलिगितम्मि अंगुढे पुरिसत्थो पुत्तसंसितो | अंगुलीसु थिआ अत्थे ण्हुसत्थे धूतुसंसितो ॥ ५२ ॥ बाले पुप्फ-फले बूया पयालाभं चऽणागमं । 6 जुण्णे पुप्फ-फले बूया धुवं गुरुसमागमं ॥ ५३ ॥ क हिरण्णं वा सुवण्णं वा मणि-मुत्त-पवालयं । गेण्हित्ता जति आलिंगे अत्थलाभं पवेदये ॥ ५४ ॥ पाणजोणिगते चेव मूलजोणीगते तधा । अणुवद्दुतम्मि अकिलिट्टे उदत्ते पवरम्मि य ॥ ५५ ॥ आलिंगितम्मि एतम्मि थिया [वा] परिसेण वा । इट्ठलाभं पवेदेज्जो असुभस्स असंपदं ॥ ५६ ॥ किलिट्टेसु य एतेसु तहा सोवद्दवेसु त । अप्पसत्थं पवेदेज्जो पसत्थं णाभिणिद्दिसे ॥ ५७ ॥ पुप्फे फले वुदग्गम्मि बूया थिअ समागमं । अणुदत्ते य दीणम्मि विवरीतं पवेदये ॥ ५८ ॥ सुक्खं तणं व कटुं वा सुक्खं पुष्फ-फलं तथा । रोगं सोगं च मरणं च आलिंगेतस्स णिदिसे ॥ ५९ ॥ पुष्फितं फलितं रुक्खं चेतितं खीरपादवं । आलिंगतो तु पुच्छेज्जा बूया पिअसमागमं ॥ ६० ॥ जे खीरमंतो फलिता य रुक्खा, मज्झे य वंका ण व छिण्णसाहा । ___ अभिज्झिता सारवंतो य जे सा, आलिंगिते उत्तममत्थसंपया ॥ ६१ ॥ आगम्मि पवसियं बूया आगतस्स य णिव्वुर्ति । समागमे सुभे लाभे सव्वत्थीके पसस्सति ॥ ६२ ।। भंडोवगरणे चेव सिप्पोवकरणे तधा । कीलणीये य उवगूढे विभत्तीय विआगरे ॥ ६३ ॥ आलिंगिताणं सुयणे वियोगं तेसु णिद्दिसे । कण्णापदाण गमणं मोक्खं वा तत्थ णिदिसे ॥ ६४ ॥ पुण्णामेसु य पुण्णामं थीणामं थीणामकेसु य । णपुंसके णपुंसं तु दिटुंतेण विआगरे ॥ ६५ ॥ आलिंगितम्मि मुक्कम्मि अविमुक्के व अंगवी । दीणोदत्तविधी दिट्ठा विभत्तीय विआगरे ॥ ६६ ॥ आलिगिते पसत्थम्मि अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । आलिगिते यापसत्थे पसत्थं णेव णिदिसे ॥ ६७ ॥ ॥ सम्मत्तं आलिंगितं ॥ २७ ॥ छ । 20 [अट्ठावीसतिमं णिवण्णविभासापडलं] चोद्दसाऽऽलिंगिताणंगे विभत्ताणि विभागसो । बारसण्हं णिवण्णाणं पविभत्तिविधि सुणु ॥ १ ॥ उत्ताणकं णिवण्णं च १ तधेव य णिकुज्जकं २ । दक्खिणेण य पस्सेणं संविटुं ३ वामकेण य ४ ॥ २ ॥ 30 १ आहारमुदियेसु या हं० त० ॥ २ वावण्णे सयणं तहा हं० त०॥ ३ लाभट्ठनागमं हं०॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गतमिदमुत्तरार्द्ध हं० त० एवास्ति ॥ ५ आलिगितस्स हं० त० विना ॥ ६ रुक्खं विइयं खीर हं० त० ॥ ७ आलिगितो हं० त० विना ॥ ८ उत्तमा अत्थ' सि० ॥ ९ आगमिपविसियं बूया आगमस्स हं० त० ॥ १० सुते लाभे हं० त० ॥ ११ वियोगतेसु स णि हं० त० विना ॥ १२ तस्स णि' हं० त० ॥ . अंग० ९ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 अंगविज्जापइण्णय [अट्ठावीसतिमं णिवण्णविभासापडलं उक्कट्ठियं णिवण्णं च ५ तथाऽऽरुभितपादनं ६ । अद्धप्पसारितं चेव णिवण्णं सत्तमं भवे ७ ॥ ३ ॥ परिवेढितं णिवण्णं च ८ णवमं संकुडितं भवे ९ । विच्छुद्धगत्तं दसमं णिवण्णं विप्पसारितं १० ॥ ४ ॥ अद्धसंविट्ठसंजुत्तं ११ संविटुं तिरिआगतं १२ । णिवण्णाण विसेसे य इति बारसधा मता ॥ ५ ॥ बारसेव णिवण्णाणि विण्णातव्वाणि संगहा । सेज्जाभागविसेसाय बत्तीसमुपधारये ॥ ६ ॥ सयणा-5ऽसणं च १ पल्लंको २ तधा मसारओ भवे ३ । मंचको ४ तध खट्टा य ५ फलिकं ६ मंचिकं तधा ७॥७॥ कणके ८ तलियं च ९ भूमी य १० तधेव य सिलातलं ११ । फल-पुष्फ-हरिता सेज्जा १२ तिणसेज्जा तधेव य १३ ॥ ८ ॥ सुक्ककढेसु १४ जाणेसु सेज्जाय १५ तध आसणे १६ । बीयेसु १७ धण-धण्णेसु १८ तधा वत्थपरिच्छदे १९ ।। ९ ॥ पहरणाऽऽवरणे २० सेले २१ तुस २२ लोह २३ णहेसु य २४ । अंगार्रछारिकादीर्स २५ झामसज्जा तधाऽवरा २६ ॥ १० ॥ सत्थिण्णा य २७ असत्थिण्णा २८ परक्का य २९ सका तधा ३० । सामण्णा य ३१ असामण्णा ३२ एवं बत्तीसमाहिता ॥ ११ ।। णिवण्णाणं विधी एस सज्जाणं च विधी तधा । दीणोदत्तेहिं णेमित्ती. विभत्तीय वियागरे ॥ १२ ॥ सावज्ज-अणवज्जेसु महासारे तधेव य । अप्पसारा य विण्णेया सेज्जा य पविभागसो ॥ १३ ।। उत्ताणके निवण्णम्मि समं जं संपसारिते । सुभमत्थं सुभे बूया विसमं विसमे वदे ॥ १४ ॥ दक्खिणेण णिवण्णम्मि सुभो अत्थो महा भवे । णिकुज्जे असुभो अत्थो वामपस्सेण मज्झिमो ॥ १५ ॥ उक्कुडितणिवण्णम्मि तधा अद्धप्पसारिते । परिवेढिते संकुड़िते अत्थहाणि पवेदये ॥ १६ ॥ तिरच्छीणं णिवण्णे य अद्धसंविट्ठके तधा । एकारुभितपादे य अत्थहाणि पवेदये ॥ १७ ॥ विच्छुद्धगत्ते आसत्थे णिवण्णे विप्पसारिते । णिच्चेटे वि य उत्ताणे अत्थहाणि पवेदये ॥ १८ ॥ दक्खिणे सविते पस्से पुरिमे वा सुभो भवे । थीसंपयोगं वामम्मि णिवण्णे तु वियागरे ॥ १९ ॥ उताणके निवण्णम्मि अत्थं बूया अणागतं । वत्तमाणं च पस्सेसु णिकुज्जम्मि अतिच्छियं ॥ २० ॥ णिकुज्जको पराहुत्तो पुच्छे संकडितो तधा । विवादं वा णिरागारं अत्थहाणि च णिद्दिसे ॥ २१ ।। अणुलोमं निवण्णो जो भूमीयं सयणाऽऽसणं । महासारे च सयणे अच्छण्णे वऽत्थ पुच्छति ॥ २२ ॥ तिरिच्छाणो णिवण्णो जो खट्टायं फलकीय वा । णिराकारं विवादं वा पुच्छंतस्स विआगरे ॥ २३ ।। सयणाऽऽसणे व फलगे वा मंच-मासालगेसु वा । खट्टायं मंचिकायं वा G भूमीकं च सिलायले ॥ २४ ॥ भूमियं पेडिकायं वा क पल्लंके सुक्खदारुगे । सयणाऽऽसणेसु तलिए कडगे तध तणच्छते ॥ २५ ॥ णवे य तध जुन्ने व खंडभग्गे व जज्जरे । दीणोदत्तविधी दिट्ठा विभत्तीय वियागरे ॥ २६ ॥ फल-पुप्फेसु संविढे हरिते वा सद्दले तणे । समागमं च लाभं च वद्धिं चेतेसु णिद्दिसे ॥ २७ ॥ विजज्जरे जुण्णसयणे सुक्के वा तणसत्थरे । सयणाऽऽसणे य विद्धत्थे अत्थहाणि पवेदये ॥ २८ ॥ 15 20 १ उक्किट्ठियं हं. त० ॥ २ अधप्पसा हं० त० विना ॥ ३ परिभेदितं सं ३ पु० । परिदेवितं सि० ॥ ४ विसुद्ध हं. त० विना ॥ ५ आगमं हं० त० ॥ ६ “सेसाय सि० ॥ ७ तध खुड्डा य फालकं हं० त० ॥ ८ कणके तेलिपं च सं ३ पु० । कणके पंच सि० ॥ ९ सेज्जा तधा तूलसुणिम्मिया ॥ ८ ॥ तिणसेज्जा सुक्क सि० ॥ १० सेलो सि० विना ॥ ११ रकारिगादी ० त० ॥ १२ सु समसज्जा हं० त० विना ॥ १३ सम्मं जं हं० त० । समजं सं ३ पु० सि ॥ १४ ओकुडित' सि० । उक्वद्दित हं० त० ॥ १५ अधप्प सि० ॥ १६ पुच्छेयं खुभिओ तहा हं० त० ॥ १७ हस्तचिह्नगतं पादयुगलं हं० त० एव वर्त्तते ॥ १८ तणुच्छते हं० त० ॥ १९ खंडे भग्गे य हं० त० ॥ २० संविद्धे हं० त० ॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं सेवितविभासापडलं ] अट्टमो भूमीकम्मऽज्झाओ ५३ जुणं तु फुडितं खंडं भग्गं दट्ठे च सेवति । मरणं हाणि च जाणि च सयणे एरिसे वदे ॥ २९ ॥ सुक्ककट्ठेसु झामेसु तुस - रोम - णहेसु य । सत्थावरणेसु संविट्ठे हाणि मा चेव णिद्दिसे ॥ ३० ॥ जधुत्तं आससा ये आसणाणं गुणा ऽगुणा । सयणेसु वि तधा जाणे गुण-दोसं सुभा - सुभं ॥ ३१ ॥ महासारं मज्झिमं च अट्ठमं सयणं विदु । अवेक्ख सम्मं नेमित्ती अत्थं इह वियागरे ॥ ३२ ॥ णिवण्णो पुरिसो र्पुच्छे पुण्णाम थी - णपुंसके । दीणोदत्तं वियाणित्ता विभत्तीय वियागरे ॥ ३३ ॥ णिवण्णा महिला पुच्छे पुण्णाम-त्थी - णपुंसके । दीणोदत्तं वियाणित्ता विभत्तीय विआगरे ॥ ३४ ॥ अपुमं णिवण्णो पुच्छे पुण्णाम-थी- णपुंसके । दीणोदत्तं वियाणित्ता विभत्तीय विआगरे ।। ३५ ।। तिविधेण य णामेणं दीणोदत्तविधीहि य । सारतो य विदित्ताणं सयणं अत्थमादिसे || ३६ ॥ समाधिते आसणम्मि णिवणं उज्जुमभिमुहं । णिव्वुत्तं च उदत्तं च सव्वत्थेसु पसस्सते ॥ ३७ ॥ अचलं सममकुचितं अणुक्खित्तेकपादकं । अविच्छुद्धेहिं गत्तेहिं णिवण्णं संपसस्सते ॥ ३८ ॥ चलं विच्छुद्धगत्तं वा विसमं चलितपादकं । उक्कुडुतं संकुचितं णिवण्णमसमाहितं ॥ ३९ ॥ अद्धप्पसारितं दीणं तिरिच्छाणमणुज्जुगं । णिवण्णमत्थहाणी य णिद्दिसे असुहावहं ॥ ४० ॥ णिवण्णेसु तु एतेसु सयणेसु तु भागसो । पसत्थमप्पसत्थं च फलं बूया विभागसो ॥ ४१ ॥ पसत्थेसु तु एतेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । अप्पसत्थेसु सव्वेसु पसत्थं णेव णिद्दिसे ॥ ४२ ॥ [ ॥ णिवण्णविभासापडलं ॥ २८ ॥ छ ॥] [ एगूणतीसइमं सेवितविभासापडलं ] बारसेव णिवण्णाणि इति वृत्ताणि भागसो । सेविताणि तु बत्तीसं पवक्खामऽणुपुव्वसो ॥ १ ॥ पुरिमं १ पच्छिमं चेव २ दक्खिणं ३ वाममेव य ४ । [वि] दिसासु चउरो भूया ८ उद्धं ९ हेट्ठा १० य ते दस ॥ २ ॥ सजीवं सेवितं चेव तिरिक्खं देव माणुस ११ । अजीवं सेवितं वा वि जोणीहिं तिविधं भवे ॥ ३ ॥ पाणजोणी-मूलजोणी- धातुजोणीगतं तथा । अजीवं सेवितं तिविधं १२ एवमेते दुवालसा ॥ ४ 11 सेवितं अत्थजोणीय १३ धम्मजोणीय सेवितं १४ । कामजोणीय १५ मोक्खे य १६ सेवितं सोलसं भवे ॥ ५ ॥ थीणामं सेवितं अंगे १७ पुण्णामं च १८ णपुंसकं १९ । आहारो २० तध णीहारो २१ दढं च २२ चलमेव य २३ ॥ ६ ॥ सुद्धं २४ किलिट्ठ २५ णिद्धं वा २६ दुक्खं वा तध सेवितं २७ । 20 25 पुण्णं २८ तुच्छं व विष्णेयं २९ जघण्णु ३० त्तम ३१ मज्झिमं ३२ ॥ ७ ॥ एवेस सेवितविही बत्तीसतिविधो भवे । विण्णेयो पविभागेण पैंसत्थो १ णिदितो तधा २ ।। ८ ।। सद्दे १ रूवे २ रसे ३ गंधे ४ फासे ५ य तध सेविते । इंदियत्थेसु पविभत्तो संगहेण तु पंचधा ॥ ९ ॥ चक्खुणा १ तध सोतेण २ णासता ३ तध जिब्भया ४ । तया ५ विचेट्टणा चेव ६ सेवितं छव्विधं भवे ॥ १० ॥ इति इंदियवापण्णा विण्णेयं कायचेट्टया । बुद्धी - मतिविचारेण सेविताणि विभावये ॥ ११ ॥ एवं समास-वासेहिं सेवितं पडिपेक्खितं । पुच्छकस्स त णेमित्ती अप्पणो य विआगरे ॥ १२ ॥ तज्जातपडिरूवेण ततो अत्थं वियागरे । धम्मोपायविसेसेहिं जधुत्तं पुव्ववत्थुसु ॥ १३ ॥ १ जोणि सप्र० ॥ २ च रुयणे हं० त० विना ॥ ५ आससाणं हं० त० विना ॥ ६ पुच्छे थीणामत्थे णपुं हं० त० ॥ ९ विसुद्ध हं० त० ॥ १० पायवं हं० त० ॥ १२ णुच्छकं हं० त० ॥ १३ पसत्था सप्र० ॥ त० ॥ १५ अप्पाणाय हं० त० ॥ ३ सामेसु हं० त० विना ॥ ४ संविद्धे हं० त० विना ॥ सप्र० ॥ ७ उज्जमति सुहं हं० त० ॥ ८ क्खित्तेयपायवं ११ उक्कुदुद्दितं हं० त० । उक्कुटुदित्तं सं ३ पु० सि० ॥ १४ सि० विनाऽन्यत्र - इंदियधापण्णा सं ३ पु० । इंदियहापण्णा हं० 10 15 30 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [ एगूणतीसइमं सेवितविभासापडलं सद्दे रूवे रसे गंधे सुहे फासम्मि सेविते । इंदियत्थेसु 0 संव्वेसु Do पसत्थं अत्थमादिसे ॥ १४ ॥ सद्दे रूवे रसे गंधे दुक्खे फासम्म सेविते । दीणेसु इंदियत्थेसु अत्थहाणि पवेदये ॥ १५ ॥ समए लोक-वेदेसुं सत्थेण जति सेवति । अत्थे धम्मे य कामे य सत्थे सत्थं पवेदये ॥ १६ ॥ अंगवि सेवते पुरओ दक्खिणेण य उज्जुकं । पुव्वदक्खिणतो चेव अत्थसिद्धिं वियागरे ॥ १७ ॥ 5 दक्खिणं सेवते उज्जुं दक्खिणेण य पच्छिमं । उत्तरं पच्छिमं वा वि अत्थं बूया णपुंसकं ॥ १८ ॥ 10 15 20 25 30 ५४ पुव्वुत्तरे वा पुव्वे वा सेविते पुव्वदक्खिणे । अत्थं अणागतं बूया सुभं वा अत्थसाधनं ॥ १९ ॥ उत्तरे सेविते उज्जुं उत्तरे वा पुरत्थिमे । संजोगलाभं जाणेज्जो इत्थीलाभं च णिद्दिसे ॥ २० ॥ दक्खिणे सेविते अत्थो पसत्थो वा सुभो भवे । वामे वा वि सुभो अत्थो संजोगेण वियाहिया ॥ २१ ॥ पच्छिमे पच्छिमुत्तरतो पच्छिमेण य दक्खिणे । सेवमाणे अतिक्कंतं अत्थं बूया सुभासुभं ॥ २२ ॥ थिया वामं पसंसंति थीलाभे पुरिसस्स य । णरस्स दक्खिणं पुज्जं थिया पुत्ते पतिम्मि य ॥ २३ ॥ मूलजोणिगते चेव पाणजोणिगते तथा । धातुजोणिगते यावि दीणोदत्तेण णिद्दिसे ॥ २४ ॥ ० सेव्वतो सेविते उद्धं अत्थसिद्धि स णिद्दिसे । अहेव सेविते सव्वं अत्थहाणिऽस्स णिद्दिसे ॥ २५ ॥ Do सयणं आसणं वा वि घरं वा जति सेवति । दीणोदत्तं वियाणित्ता विभत्तीय वियागरे ॥ २६ ॥ सुवण - रुप्प संखे वा मणि मुत्तं च भूसणं । पिर्णिधणं च सेवंते अत्थसिद्धिऽस्स णिद्दिसे ॥ २७ ॥ णिवसणं पाउरणं अच्छायणं च सेवति । दीणोदत्तं वियाणित्ता विभत्तीय वियागरे ॥ २८ ॥ धयं पडागं सेवते देवतायतणाणि य । पसत्थेसु य मल्लेसु पसत्थं संपवेदये ॥ २९ ॥ सारं जयतणं सारं थाणमिस्सरियं जसं । पतिट्ठे णिव्वुतिं वद्धिं सव्वमेतेसु णिद्दिसे ॥ ३० ॥ देवे वा मणुसे वा वि सेवमाणो चउप्पदे । पक्खी व परिसप्पे वा विभत्तीय वियागरे ॥ ३१ ॥ धणं वा जति वा धण्णं सेवे पुप्फ-फलाणि वा । दीणोदत्तं वियाणित्ता विभत्तीय विआगरे ॥ ३२ ॥ सिप्पोवकरणं चेव दव्वोवकरणं तधा । सेवमाणो जता पुच्छे तेणं तस्स तमादिसे ॥ ३३ ॥ लुक्खं तुच्छं मयं सुक्खं भग्गं भिण्णं च जज्जरं । सेवमाणो जता पुच्छे अत्थहाणिऽस णिद्दिसे ॥ ३४ ॥ सुक्खं रुक्खं तणं सुक्खं तणरासि च सेवति । सयणाऽऽसणं च परिजुण्णं अत्थहाणिऽस्स णिद्दिसे ॥ ३५ ॥ पुप्फितं फलितं रुक्खं उड्डोदग्गं च सेवति । समागमं च लाभं च वद्धि चेतेसु णिद्दिसे ॥ ३६ ॥ दुब्बलं फुडितं खंडं दीणं जुण्णं च सेवति । मरणं हाणि वियाणीया सेवितम्मि पवेदये ॥ ३७ ॥ णगरद्दारं घरद्दारं छिड्डुं णिद्धमणाणि य । वातायणं च सेवेत तलछिड्डुं तव य ॥ ३८ ॥ कण्णप्पवाहणं मोक्खं मरणं णिग्गमणं तधा । धणजोणिणिराकारं अप्पसत्थं च णिदिसे ॥ ३९ ॥ आहारं सेवमाणस्स अत्थसिद्धि वियागरे । णिग्गमं विप्पयोगं च णीहारम्मि पवेदये ॥ ४० ॥ महासारे महासारं मज्झसारं च मज्झिमे । अप्पसारे य पच्चयरं सेवितम्मि पवेदये ॥ ४१ ॥ महासारं च सयणं महासारं च आसणं । सेवमाणे महासारे महासारं पवेदये ॥ ४२ ॥ अप्पसारे य सयणे अप्पसारे य आसणे । सेविते अप्पसारम्मि अप्पसारं पवेदये ॥ ४३ ॥ अब्यंतरे सेवितम्मि अत्थो अब्भंतरो भवे । मज्झिमे मज्झिमो अत्थो बाहिरम्मि य बाहिरो ॥ ४४ ॥ १० Do एतच्चिह्नगतं पदं हं० त० नास्ति ॥ २ सु पसत्थे जति हं० त० ॥ ३ अगवि सेतते सं ३ पु० । अंगविसेविए हं० त० सि० ॥ ४ विणा थिया हं० त० विना ॥ ५० Do एतच्चिह्नमध्यवर्ती श्लोकः हं० त० नास्ति ॥ ६ अच्छायं च सप्र० ॥ ७ देवाय सि० विना ॥ ८ समादिसे हं० त० सि० ॥ For Private Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमं सेवितविभासापडलं ] अमो भूमीकम्मऽज्झाओ अभितरे सेवितम्मि उक्कट्ठा अत्थसंपदा । मज्झा य मज्झिमे वद्धी बाहिरे हीणमादिसे ॥ ४५ ॥ पुण्णामधेयं सेवेध पुमं इत्थि णपुंसकं । दीणोदत्तं वियाणित्ता विभत्तीय वियागरे ॥ ४६ ॥ थीणामधेयं सेवेध पुमं इत्थि णपुंसकं । दीणोदत्तं वियाणित्ता विभत्ती य वियागरे ॥ ४७ ॥ सिरं ललाडं कण्णं च उरं बाहुं च सेवति । थणे य परिमंडेज्ज र्मत्थगं च णिसेवति ॥ ४८ ॥ उम्मट्ठेसु सुभंगेसु सिद्धमत्थं पवेदये । णिम्मट्ठेसु य गत्तेसु अत्थहाणि पवेदये ॥ ४९ ॥ पुण्णामधेये पुरिसत्थो थीणामेसित्थिया भवे । णपुंसके उभा णत्थि णपुंसत्थं पवेदये ॥ ५० ॥ थी - पुमंस - णपुंसत्थं णीहारे सेवितम्मि उ । तेसामेव भवे णासो आहारे लाभमादिसे ॥ ५१ ॥ चंदणं अगरुं चेव गंध - मल्लं विलेवणं । एताणि सेवमाणस्स सव्वं साधु पवेदये ॥ ५२ ॥ तं चेव जति सेवेध थणे य परिमंडती । णिम्मट्ठेसु य गत्तेसु हीणमत्थं पवेदये ॥ ५३ ॥ इंगाल- छारिया - पंसु - केस - रोम - णहाणि य । किसाणि लुक्खाणि तधा चलाणि य णिसेवति ॥ ५४ ॥ ५९ ॥ क्ख - तुच्छाणि गत्ताणि बाहिराणि मताणि य । णिसेवमाणे एताणि हीणमत्थं पवेदये ॥ ५५ ॥ उवद्दुताणि सेवंते वापण्णाणि सुचीणि य। विणासं संपवेदेज्जो मरणं विप्पजोयणं ॥ ५६ ॥ अब्धंतरेसु णिद्धेसु पुण्णामेसु दढेसु य । पुण्णाम- सुक्केसु तधा आहार- मुदितेसु य ॥ ५७ ॥ समासतो तु जो पुच्छे पसत्थं पूयितं तधा । एताणि सेवमाणस्स अत्थसिद्धी पवेदये ॥ ५८ ॥ रुदिते कंदिते वा वि पुव्वम्मि रुदितम्मि य । समल्लिकंति वा कट्टं धणे वा ि उवद्दुताणि सेवंतो वापण्णाणि सूचीणि य । आतुरं परिपुच्छेज्ज मरणं तस्स णिद्दिसे ॥ ६० ॥ तधा पुप्फ-फलं वा वि पवालं च उवद्दुतं । एवंविधं सेवमाणस्स अवायं तत्थ णिद्दिसे ॥ ६१ ॥ दारकं दारिकं वा वि उपर आयमणि तधा । पजागरं थावरं वा सव्वमेतेहि णिद्दिसे ॥ ६२ ॥ बीभच्छमासणं सयणं जुण्णं वत्थं च सेवइ । मरणं वा वि जाणि व वाधि हाणि च णिद्दिसे ॥ ६३ ॥ चतुप्पदं गो-महिसं अस्सं हत्थि च सेवति । चतुप्पदं जाणगतं सव्वमेतेसु णिद्दिसे ॥ ६४ ॥ दंसणीयम्मि देसम्म णवे वा सयणाऽऽसणे । पुप्फे फले सेवितम्मि सव्वमेव सुभं वदे ॥ ६५ ॥ सयणा - ऽऽसणाणं जाणाणं विभूसं चेव सेवति । सव्वेसि चेव इट्ठाणं पसत्था अत्थसिद्धिओ ॥ ६६ ॥ किड्डा - रति-विहाराणं उवभोगाणं च सेवणा । पाणाणं भक्ख - भोज्जाणं सुभाणं संठितस्स य ॥ ६७ ॥ पुरिमे अणागतं बूया पच्छिमेण अतिच्छियं । वत्तमाणं च पस्सेसु उद्धे वद्धि अधो खयं ॥ ६८ ॥ सज्जीवेसु य सज्जीवं सेवितेसु वियागरे । अजीवमथ अज्जीवे सेवितम्मि वियाग ॥ ६९ ॥ पुण्णामेसु य पुण्णामं थीणामे इत्थिमादिसे । णपुंसके णपुंसत्थं सेवितम्मि वियागरे ॥ ७० ॥ अब्यंतरे सगं अत्थं मज्झे साधारणं वदे । बाहिरेसु परक्कं च सेवितेसु वियागरे ॥ ७१ ॥ पाणजोणी मूलजोणी धातुजोणी तधेव य । एताणेव तु जाणेज्जो दीणोदत्तेहिं सेविते ॥ ७२ ॥ उड्ढे उड्डुं बूया चलेसु चलमादिसे । आहारे आगमं विज्जा णीहारे णिग्गमं वदे ॥ ७३ ॥ उत्तमे उत्तमं विज्जा मज्झिमे मज्झिमं वदे । सेवितम्मि जहण्णम्मि जधण्णं तु पवेदये ॥ ७४ ॥ अत्थजोणीसु अत्थं [च] धम्मे धम्मं पवेदये । कामजोणीसु कामं च मोक्खे मोक्खं पवेदये ॥ ७५ ॥ १ अत्थगं च णिवेसति हं० त० ॥ २ वुभा हं० त० विना ॥ ३ लज्जतुट्ठाणि हं० त० ॥ ४ पुण्णामसुक्कसुक्केसु तथा सं ३ पु० ॥ ५ तु पुच्छेज्ज प° सि० ॥ ६ कट्ठे विणे वा चिलकोसु वा सं ३ पु० सि० । कट्टं वणे वा विला हं० त० ॥ ७ ण्णाण सु सप्र० ॥ ८ आयमिणं तथा सि० ॥ ९-१० सेवियंसि हं० त० ॥ ५५ 5 10 15 20 25 30 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [तीसतिमं भूमीकम्मसुत्तगुणविभासापडलं लोइए लोइयं बूया वेदिके वेदिकं वदे । समयोपसेविते चेव समयं संपवेदये ॥ ७६ ।। एवमादिसु भावेसु सेवितेसु वियक्खणो । तज्जातपडिरूवेणं विभत्तीय पवेदये ॥ ७७ ।। सेवितेसु पसत्थेसु अप्पसत्थं ण णिद्दिसे । अप्पसत्थेसु सव्वेसु पसत्थं णेव णिद्दिसे ॥ ७८ ॥ इति सेवितविभासा तु अप्पमेयागमा अयं । भूमीकम्मम्मि उद्दिट्टा सव्वभावपरूविता ॥ ७९ ॥ ॥ भूमीकम्मे सेवितविभासा [पडलं] ॥ २९ ॥ छ । [तीसतिमं भूमीकम्मसुत्तगुणविभासापडलं] महापुरिसदिण्णाए भूमीकम्मं ससंगहं । पडिपुण्णमिमं सव्वं अधीयाणो ण मुज्झति ॥ १ ॥ आहारुच्चारसुद्धो तु सुयीरंगमभिम्मणो । अरहंतवयणं भत्तो नमसंतो जिणुत्तमे ॥ २ ॥ अंगविज्जं पणिवते आणाणातप्परो सता । आयरियसुस्सूसपरो गुरूणं च तधारहं ॥ ३ ॥ 10 अपरीभावी अणुस्सित्तो जितकोधो जितिदिओ । संजताणं च सव्वेसिं सुस्सूसकणसूयगो ॥ ४ ॥ जितणिद्दो सुतवी य सज्झायम्मि सदा रतो । पच्चूसे य पदोसे य अंतभावत्थितो विदु ॥ ५ ॥ सुस्सूसायं पयत्तो य सत्थण्णू परिपुच्छतो । गहणे धारणे चेव विण्णाणे य धुवत्थितो ॥ ६ ॥ तू[ऊ]हा-ऽपोहासु कुसलो तप्परो जितसंसओ । जेधाणातम्मि वत्तंतो आयरियस्साणुसासणे ॥ ७ ॥ पगब्भो ववसायी य तधा सुप्पतिभाणवं । वाकरणम्मि य आजुत्तो णिच्छितो जितसंसओ ॥ ८ ॥ 15 सुत्तत्थेसु दढो धीरो संसयं परिपुच्छतो । पडिबुद्धो य झायंतो णिस्संको तु ण मुज्झति ॥ ९ ॥ चक्खुसा सोतसा वा वि उग्गेण्हंतो अविप्पुतो । पडिरूवेसु कुसलो मित्ती पुच्छितो सदा ॥ १० ।। आमासपडिरूवेसु समुप्पण्णेसु तस्सए । भया करणाणि णिसरंतो ततो बुद्धीऽभिजाणति ॥ ११ ॥ मज्झत्थो तु जधुद्दिटुं जो एवं पविजाणिया । अंगस्स भूमीकम्मम्मि णिद्देसम्मि णसिज्जति ॥ १२ ॥ अमूढो मतिमं धीरो सुत्तत्थेण य कोविदो । रायीणं सम्मतो भवति जो एणं ववहारये ॥ १३ ॥ 20 एतमासज्ज हि णरो अणंतजिणचक्खुमा । ण मुज्झति सदा यावि अप्पणो वि सुभा-ऽसुभे ॥ १४ ॥ भावा-ऽभावविधि वा वि। मुंणेतूणऽत्थकोविदो । अणण्णो जिणसत्थम्मि सव्वदुक्खंतगो भवे ॥ १५ ॥ अप्पमेया गुणासेवा भूमीकम्मस्स कित्तिता । अणंतजिणदिट्ठस्स गुणावयवदीवणा ॥ १६ ॥ ॥ भूमीकम्मे सुत्तगुणविभासा णामं पडलं G तीसतिमं च सम्मत्तं ॥ ३० ॥ छ । [इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय भगवतीय अंगविज्जाय भूमीकम्मज्झाओ अट्ठमो सम्मत्तो ॥ ८॥] १ उवदिट्ठा हं० त० विना ॥ २ परिपुण्णम्मितं सव्वं हं० त० ॥ ३ सयीरंग सि० । सूरीयंग" हं० त० ॥ ४ अस्थिभाव' हं० त० विना ॥ ५ यधा' हं० त० ॥ ६ वीरो हं० त० विना ॥ ७ हं० त० विनाऽन्यत्र-तस्सतो सि० । तस्सुतो सं ३ पु० । ८ परिजा' हं० त० ॥ ९णिद्देसं विणिसज्जति सं ३ पु० । णिद्देसं विणिसिज्झति हं० त०॥ १० एवं वहवारये हं० त० विना ॥ ११ सुणेतू हं० त० ॥ १२ अणण्णा सप्र० ॥ १३ हस्तचिह्नगतं पदं हं० त० एव वर्त्तते ।। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ [णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ] नमो अरहंताणं सर्वज्ञानाम्, नमो सर्वसिद्धानां विसुद्धसर्वकर्मणाम्, णमो चोद्दसपुव्वीणं विदितपरमत्थाणं, णमो सव्वसाहूणं सर्वशास्त्रसूत्र-भाष्यप्रवचनपारगानाम्, णमो अणगारसुविहिताणं महातवस्सीणं, णमो सव्वजाणाणं सव्वजीतसंसयाणं, णमो पण्णाधिगाणं सव्वत्थीभावप्पदेसदंसकाणं, णमो अट्ठण्हं महाणिमित्ताणं णवंगस्स य बहुसच्चस्स । णमो भगवतो जसवतो महापुरुसस्स महावीरवद्धमाणस्स । णमो भगवतीय अंगविज्जाय महाभागाय महापुरुसदिण्णाय । 5 अंधातो भगवतीय महापुरुसदिण्णाय अंगमणी णामऽज्झायो तमणुवक्खाइस्सामि । तं जधा मणी खलु अयं पुरुसो सतसाहो सहस्सक्खो सहस्सदारो सयसहस्समुहो अपरिमितो अपरिमिताणुगमणो अणंतमपारो अणंतवइयाकरणो । ताणि य सुयीकम्मोवयारेणं अरहंतभत्तिपूयाय विज्जाय नमस्कारेण आयरिय-गुरु-देवतसुस्सूसाय अहरहं सण्णाभिणिवेसेणं अरहस्स चिंताय आधात्मचिंताय अणण्णमणताय तव-णियम-सीलतायतविज्जोपसेवाय अत्थविणिच्छयणिरताय गहण-धारण-विमरिसोवयोगताय । लोकहितयमंगविज्जामणि समासज्ज हि णरो अदेवो 10 देवदिव्वचक्खु-माणसो अधवा अजिणो जिणो विवे सुविसुद्धभावदंसी भवति, हिता-ऽहिताणं अत्थाणं अणागताऽतीत–वट्टमाणाणं अत्थभूयत्थवेयाकरणाणं विन्नाया भवति । तस्स खलु भो ! इमस्स मणिणो पुरिसस्स सतसाहस्स < संहस्स 20 क्खस्स बहुसतसहस्सदारस्स सतसहस्समुहस्स अपरिमितस्स अपरिमिताणुगमणस्स अणंतमवारस्स अणंतवेयाकरणस्स पण्णत्तरि पुण्णामाणि भवंति १ पण्णत्तरि त्थीणामाणि २ अट्ठावण्णं णपुंसकाणि ३ सत्तरस दक्खिणाणि ४ सत्तरस वामाणि ५ सत्तरस मज्झिमाणि ६ अट्ठावीसं दढाणि ७ अट्ठावीसं चलाणि ८ सोलस अतिवत्ताणि ९ सोलस 15 वत्तमाणाणि १० सोलस अणागताणि ११ पण्णासं अब्भंतराणि १२ पण्णासं अब्भंतरअब्भंतराणि १३ पण्णासं बाहिरब्भंतराणि १४ पण्णासं अब्भंतरबाहिराणि १५ पण्णासं बाहिराणि १६ पण्णासं बाहिरबाहिराणि १७ पण्णासं ओवाताणि १८ पण्णासं ओवातसामाणि १९ पण्णासं सामाणि २० पण्णासं सामकण्हाणि २१ पण्णासं कण्हाणि २२ पण्णासं अव्वोआताणि २३ पण्णासं अतिकण्हाणि २४ वीसं उत्तमाणि २५ चोद्दस (बारस) मज्झिमाणि २६ चोद्दस मज्झिमाणंतराणि २७ दस जहण्णाणि २८ दुवे उत्तिममज्झिमसाधारणाणि २९ दुवे मज्झिममज्झिमसाधारणाणि ३० दुवे मज्झिममज्झिमाणंतरसाधारणाणि 200 ३१ दुवे मज्झिमाणंतर < जहण्ण - साधारणाणि ३२ दस बालेयाणि ३३ चोद्दस जोव्वणत्थाणि ३४ चोद्दस मज्झिमवयाणि ३५ वीसं महव्वताणि ३६ दुवे बालजोव्वणत्थसाधारणाणि ३७ दुवे जोव्वणत्थमज्झिमवयसाधारणाणि ३८ दुवे मज्झिमवय 2 महव्वय > साधारणाणि ३९ वीसं बंभेज्जाणि ४० चोद्दस खत्तेज्जाणि ४१ चोद्दस वेसेज्जाणि ४२ दस सुद्देज्जाणि ४३ दुवे बंभखत्तेज्जाणि ४४ दुवे खत्तेज्जवेसेज्जाणि ४५ दुवे वेसेज्जसुद्देज्जाणि ४६ आयुप्पमाणे वस्ससतप्पमाणाणि वीसं ४७ पण्णत्तरिवस्सप्पमाणाणि चोद्दस ४८ पंचासवस्सप्पमाणाणि चोद्दस ४९ पणुवीसवस्सप्पमाणाणि 25 दस ५० दुवे पणुवीसपण्णासवस्ससाधारणाणि ५१ दुवे पण्णासपण्णत्तरिवस्ससाधारणाणि ५२ दुवे पण्णत्तरिवस्ससतसाधारणाणि ५३ बावत्तरि सुक्कवण्णपडिभागा ५४ तिण्णि पीतवण्णपडिभागा ५५ पण्णरस रत्तवण्णपडिभागा ५६ वीसं णीलवण्णपडिभागा ५७ अट्ठारस हरितवण्णपडिभागा ५८ दस कण्हवण्णपडिभागा ५९ तिण्णि पंडुवण्णपडिभागा ६० १ अरिहं हं० त० सि० ॥ २ सव्वजणाणं सं ३ पु० । सव्वजिणाणं सि० ॥ ३ बहुसुव्वस्स हं० त० विना ।। ४ यसवतो हं० त० ॥ ५-६ पुरिस हं० त० सि० ॥ ७ अहाओ भग' हं० ॥ ८ पुरिस' हं० त० सि० ।। ९ सहस्सुद्धारो हं० त० । १० नमोक्कारेण सि० ॥ ११ अहाचिंताय हं० त० ॥ १२ विय विसुद्ध हं० त० । विव सुद्ध सि० ॥ १३ त्र्यसचिह्नमध्यगतं पदं हं० त० नास्ति ॥ १४ यद्यप्यत्र सर्वासु हस्तप्रतिषु पण्णासं अब्भंतरअब्भंतराणि १३ पण्णासं बाहिराणि १४ पण्णासं बाहिरबाहिराणि १५ पण्णासं बाहिरब्भंतराणि १६ पण्णासं अब्भंतरबाहिराणि १७ पण्णासं उवाताणि इतिरूप: पाठ उपलभ्यते, किञ्चाग्रे ग्रन्थकृव्याख्यास्यमानक्रमाननुसारित्वादेतत्पाठस्य ग्रन्थकृव्यावर्णनाक्रममनुसृत्य मया मूले पाठपरावृत्तिर्विहिताऽस्तीति ।। १५ त्रयोविंशतिचतुर्विंशतिद्वारयोर्व्याख्यानपटलं ग्रन्थमध्ये नास्ति । किञ्च-एतदध्यायप्रान्ते द्वारनामसंग्रहनिर्देशान्तरेतद्वारनामनिर्देशो दृश्यत इति ॥ १६ व्यस्त्रचिह्नगतं पदं ह० त० नास्ति ॥ १७ बालजणो हं० त० सि० ॥ १८ मज्झिमाणि हं० त० ॥ १९ व्यस्रचिह्नमध्यगतः पाठः हं० त० नास्ति । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [मणीसुत्तं दुवे गंततालुगवण्णपडिभागा ६१ दुवे मेयकवण्णपडिभागा ६२ ठिआमासे पंडुवण्णपडिभागा ६३ ठिआमासे मणोसिलवण्णपडिभागा ६४ ठिआमासे हरितालवण्णपडिभागा ६५ ठिआमासे हिंगुलकवण्णपडिभागा ६६ ठिआमासे सुज्जुग्ममवण्णपडिभागा ६७ ठिआमासे असितवण्णपडिभागा ६८ ठिआमासे कोरेंटवण्णपडिभागा ६९ ठिआमासे चित्तवण्णपडिभागा ७० ठिआमासे णिद्धवण्णपडिभागा ७१ ठिआमासे लुक्खवण्णपडिभागा ७२ ठिआमासे 5णिद्धलुक्खवण्णपडिभागा ७३ दस णिद्धा ७४ दस णिद्धणिद्धा ७५ दस लुक्खा ७६ दस लुक्खलुक्खा ७७ दस लुक्खणिद्धा ७८ दस णिद्धलुक्खा ७९ दस आहारा ८० [दस णीहारा ८१] दस आहाराहारा ८२ दस [आहार]णीहारा ८३ दस णीहाराहारा ८४ [दस णीहारणीहारा ८५] सोलस पुरच्छिमा ८६ सोलस पच्चत्थिमा ८७ सत्तरस दक्खिणा ८८ सत्तरस उत्तरा ८९ सत्तरस दक्खिणपुरथिमा ९० सत्तरस दक्खिणपच्चत्थिमा ९१ सत्तरस उत्तरपच्चत्थिमा ९२ सत्तरस उत्तरपुरस्थिमा ९३ दुवालस उद्धभागा ९४ तेरस अधोभागा ९५ पण्णासं पसण्णा ९६ पण्णासं अप्पसण्णा 10९७ पण्णासं अपसण्णअपसण्णा ९८ पण्णासं पसण्णअप्पसण्णा ९९ सोलस वामा पाणहरा १०० सोलस वामा धणहरा १०१ अट्ठापण्णं वामा सोवद्दवा १०२ तीसं संखावामा १०३ एक्कारस सिवा १०४ एक्कारस थूला १०५ णव उवथूला १०६ पणुवीसं जुत्तोपचया १०७ वीसं अप्पोपचया १०८ वीसं णातिकिसा १०९ सत्तरस किसा ११० एक्कारस परंपरकिसा १११ छेव्वीसं दिग्घा ११२ छव्वीसं दिग्घा जुत्तप्पमाणा ११३ सोलस हस्सा किंचि दिग्घा ११४ सोलस हस्सा ११५ बारस (दस) परिमंडला ११६ चोद्दस करणमंडला ११७ वीसं वट्टा ११८ बारस पुधुला ११९ एक्कत्तालीसं चउरंसा 15 १२० बे तंसा १२१ पंच काया १२२ सत्तावीसं तणू १२३ एक्कवीसं G परंपरतणू हा १२४ दुवे अणू १२५ एक्के परमाणू १२६ पंच हिदयाणि १२७ पंच ग्गहणाणि १२८ पंच उवग्गहणाणि १२९ छप्पण्णं रमणीयाणि १३० बारस आकासा १३१ छप्पण्णं दहरचलणा १३२ छप्पण्णं दहरथावरेज्जा १३३ दस इस्सरा १३४ दस अणिस्सरा १३५ चोद्दस इस्सरभूता १३६ पण्णासं पेस्सा १३७ पण्णासं पेस्सभूया १३८ छव्वीसं पिया १३९ छव्वीसं अप्पिया १४० छव्वीसं अवत्थिया १४१ बारस पुढविकाइया १४२ दस आयुक्काइकाणि १४३ दस अगणिक्काइकाणि १४४ बारस 20 वायुक्काइकाणि १४५ दस वणप्फइकाइकाणि १४६ वीसं जंगमाणि १४७ तेवीसं (तेत्तीस) आतिमूलिकाणि १४८ तेत्तीसं मज्झविगाढाणि १४९ तेत्तीसं अंता १५० पण्णासं मुदिता १५१ पण्णासं दीणा १५२ वीसं तिक्खा १५३ पण्णत्तरि उवद्दुता १५४ पन्नतरि वापण्णा १५५ [दुवे] दुग्गंधा १५६ दुवे सुगंधा १५७ णव बुद्धीरमणा १५८ चत्तारि अबुद्धीरमणा १५९ एक्कारस महापरिग्गहा १६० चत्तारि अप्पपरिग्गहा १६१ एकूणवीसं बद्धा १६२ सत्तावीसं मोक्खा १६३ पण्णासं सका १६४ पण्णासं परक्का १६५ पण्णासं सकपरक्का १६६ दुवे सद्देया १६७ दुवे रूवेया १६८ 25 दुवे गंधेया १६९ एक्का रसेज्जा १७० दुवे फासेया १७१ एक्के मणेये १७२ चत्तारि वातमणा १७३ दुवे सद्दमणा १७४ दस जम्मणा १७५ दस अग्गेया १७६ दस जण्णेया १७७ दुवे दंसणिया १७८ दुवे अदंसणिया १७९ दस थला १८० पंच (बारस) णिण्णा १८१ णव गंभीरा १८२ णव परिणिण्णगंभीरा १८३ पण्णरस विसमा १८४ चोद्दस उण्णता १८५ बारस समा १८६ दस अण्हा १८७ दस सीतला १८८ देस आवुणेया १८९ चउरासीतिं पुण्णा १९० पण्णत्तर तुच्छा १९१ ० एकूणवीसं विवरा १९२० एकूणवीसं अविवरा १९३ अट्ठावीसं (अट्ठ) वियडसंवुडा १९४ १ गयतालु हं० त० ॥ २-३-४ चतुरस्रकोष्ठकगत उपयुक्तोऽपि पाठः प्रतिषु नास्ति ॥ ५-६ छत्तीसं हं० त० ॥ ७ हस्तचिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते । परमतणू इति नामान्तरमस्य ॥ ८ Do एतच्चिान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ९ मज्झत्थाणि इति नामान्तरमस्य ॥ १० वीसं पावसजंगमाणि सं ३ पु० । वीसं पारसजंगमा सि० ॥ ११ 'त्तरि वापण्णा १५५ पण्णत्तरं दुग्गंधा हं० त० । त्तरि वा दुग्गंधा सं३ पु० सि० ॥ १२ दंसणीया इति नामान्तरमस्य ॥ १३ वत्तमाणा हं० त० ॥ १४ वण्णेया इति नामान्तरमस्य ॥ १५ यद्यप्यत्र सर्वास्वपि प्रतिषु दस आवुणेया इति पाठस्थाने दस अपस्सया दस वानेया इति द्वारद्धयात्मक एव पाठो वर्त्तते, तथापि ग्रन्थकृत्प्रतिज्ञातद्वारसंख्यामध्ये एकद्वाराधिक्यभावाद् अग्रे क्रियमाणद्वारव्यावर्णनानुसारेणात्र मया पाठपरावृत्तिर्विहिताऽस्ति ॥ १६ < एतच्चिान्तर्गतः पाठो हं० त० नास्ति । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ताणि बे सत्तराणि ] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ सत्त सुकुमाला १९५ चत्तारि दारुणा १९६ पंच मउक्का १९७ चत्तारि पत्थीणा १९८ छप्पण्णं सोहा १९९ चउवीसं खरा २०० दस कुडिला २०१ दस उज्जुका २०२ छत्तीसं चंडाणता २०३ छ आयता २०४ चत्तारि आययमुद्दिता २०५ वीसं दिव्वा २०६ चोद्दस माणुसा २०७ चोद्दस तिरक्खजोणिका २०८ दस णेरड्या २०९ पण्णत्तरि (पंचणउति) रुद्दा २१० दुवे सोम्मा २११ बावीसं मितुभागा २१२ दुवे पुत्तेया २१३ दुवे कण्णेया २१४ चत्तारि थीभागा २१५ दुवे जुवतेया २१६ छव्वीसं दुग्गथाणा २१७ बारस (चोद्दस) तंबा २१८ चत्तारि रोगमणा २१९ छ प्पूतियं २२० 5 छ च्चपला २२१ सत्त अचपला २२२ चत्तारि गोज्झा २२३ पंच उत्ताणुम्मथका २२४ दस (बारस) तता २२५ दस मता २२६ बारस (एक्कारस) महंतकाई २२७ अट्ठावीसं सूयी (सुयी) २२८ दस किलिट्ठा २२९ पण्णत्तरं वराई २३० पण्णत्तर णायकाई २३१ पण्णत्तर अणायकाई २३२ पण्णासं (अट्ठावण्णं) णीयाई २३३ पण्णत्तरं णिरत्थकाई २३४ पण्णासं अण्णजणाई २३५ सोलस अंबराइं (अंतराइं) २३६ एक्कारस सूराइं २३७ तिण्णि भीरूणि २३८ पण्णासं एक्ककाणि २३९ पणुवीसं बिकाणि २४० दस तिकाणि २४१ अट्ठ चतुक्काणि २४२ छ पंचकाणि २४३ छक्कए ठिआमासे 10 २४४ सत्तए ठिआमासे २४५ अट्ठए ठिआमासे २४६ णवके ठिआमासे २४७ दसके ठिआमासे २४८ बे पण्णरसवग्गा २४९ बे बीसतिवग्गा २५० बे पणुवीसतिवग्गा २५१ बे तीसतिवग्गा २५२ बे पणतीसतिवग्गा २५३ बे चत्तालीसतिवग्गा २५४ बे पणतालीसतिवग्गा २५५ बे पंचासतिवग्गा २५६ 6 बे पंचपंचासतिवग्गा के २५७ बे सट्ठिवग्गा २५८ बे पंचसट्ठिवग्गा २५९ बे सत्तरिवग्गा २६० बे पंचसत्तरिवग्गा २६१ बे असीतिवग्गा २६२ बे पंचासीतिवग्गा २६३ बे णवुतिवग्गा २६४ बे पंचणवुतिवग्गा २६५ एगे सतवग्गे २६६ एगे सहस्सवग्गे २६७ एगे सतसहस्सवग्गे 15 २६८ Do एगे कोडिवग्गे २६९ एगे अपरिमिते २७० । इति खलु भो ! इमस्स मणिणो पुरिसस्स सतसाहस्स सहस्सक्खस्स बहुसहस्सदारस्स सतसहस्समुहस्स अपरिमियस्स अपरिमिताणुगमणस्स अणंतपारस्स अणंतवेयाकरणस्स आगमणविधिविसेसेणं १ वंदितविधिविसेसेणं २ ठितविधिविसेसेणं ३ उपविट्ठविधिविसेसेणं ४ पल्लत्थिकाविधिविसेसेणं ५ अपस्सयविधिविसेसेणं ६ विपेक्खितविधिविसेसेणं ७ हसितविधिविसेसेणं ८ आमासविधिविसेसेणं ९ सेवितविधिविसेसेणं १० संलावितविधिविसेसेणं ११ 20 पुच्छितविधिविसेसेणं १२ हिता-ऽहिताणं अत्थाणं अणागत-वत्तमाणा-ऽतीताणं अधभूतत्थवेयाकरणाणं उक्करिसाऽवकरिसा विण्णातव्वा भवंति ॥ ॥ मणिसुत्तं सम्मत्तं संताणि बे सत्तराणि २७० ॥ छ । __ [१ पण्णत्तरि पुण्णामाणि] ॥ णमो भगवतो महतिमहावीरवद्धमाणाय ॥ पण्णत्तरं तु पुण्णामा पवक्खामऽणुपुव्वसो । सिखंडो १ मत्थको २ सीसं ३ तधा सीमंतको ४ भवे ॥ १ ॥ संखा ६ ललाटं ७ अच्छीणि ९ अवंगा ११ कणवीरका १३ । कण्णा १५ गंडा १७ कवोला य १९ उभयो कण्णपुत्तका २१ ।। २ ॥ १ रोगमणा २१९ छ च्चपला २२० सत्त अचपला २२१ चत्तारि गोज्झा २२२ छ प्पूतियं २२३ पंच उत्ताणुम्मथका २२४ दस तता २२५ दस मता २२६ अट्ठावीसं सूयी २२७ दस किलिट्ठा २२८ पण्णत्तरं वराई २२९ पण्णत्तरं णायकाई २३० पण्णत्तरि अणायकाणि २३१ बारस महंतकाई २३२ पण्णासं पीयाई २३३ पण्णासं अण्णजणाई २३४ पण्णत्तर णिरत्थकाई २३५ सोलस अंबराई २३६ इति क्रमेण सर्वासु प्रतिषु पाठो वर्त्तते । अत्र हं० त० आदर्शयोः रोगमणा स्थाने रोमगणा इति पाठो वर्तते, तथा बारस महंतकाई इति पाठो हं० त० एव वर्तते ॥ २ अण्णेयाणि इति नामान्तरमस्य ॥ ३ सताणि चेव सत्त' हं० त० ॥ ४ गंडो सप्र० ॥ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 अंगविज्जापइण्णयं [१पण्णत्तरं ओट्ठा य २३ दंतवेला य २४ दंतमंसं २५ मुहं तधा २६ । अंसा २८ बाहू ३० पबाहू य ३२ कोप्परा ३४ अवहत्थगा ३६ ॥ ३ ॥ मणिबंधहत्था सतला ३८ अंगुट्ठा चतुरो तधा ४२ । खंधो(धा) ४४ जतूणि ४६ पस्साणि ४८ अक्खका य ५० उरो ५१ थणा ५३ ॥ ४ ॥ हितयाणि य पंचेव ५८ कुक्खी ६० उंदर ६१ वक्खणा ६३ । पोरुसं ६४ वत्थिसीसं च ६५ चल्ला ६७ ऊरू ६९ तधेव य ॥ ५ ॥ गोप्फा ७१ पादा य ७३ तधा उभो पायतलाणि य ७५ । एवं पुण्णामधेयाणि वियाणे पंचसत्तरि ॥ ६ ॥ सरीरे जाणि वऽण्णाणि पुण्णामाणि भवंतिह । ताणि पुण्णामधेज्जेसु णिद्दिसे अंगचितओ ॥ ७ ॥ ___ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । पराजयं वा सत्तूणं मित्तसंपत्तिमेव य ॥ ८ ॥ समागमं घरावासं थाणमिस्सरियं जसं । णिव्वुर्ति वा पतिटुं वा भोगलाभं सुहाणि य ॥ ९ ॥ दासी-दासं जाण-जुग्गं गो-माहिसमऽया-ऽविलं । धण-धण्णं खेत्त-वत्धुं च विज्जा संपत्तिमेव य ॥ १० ॥ कुडुंबवद्धि विपुलं च जं चऽण्णं इच्छितं सुखं । जं च किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थीति णिदिसे ॥ ११ ।। पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । सूरो य रज्जभागी य ससेसो सुभगो त्ति य ॥ १२ ॥ सयं अभिगताणं च परेणाभिगतस्स य । भोगमत्थं सुहाणि च भुंजिस्सति ण संसयं ॥ १३ ॥ वसुमं जसभागी य इत्थीओ य जतिस्सति । कल्लाणभागी य सया सता संतोस एव य ॥ १४ ॥ अमित्तं भायरं पुत्तं तधा जामाइतं पि वा । जारं च परिपुच्छेज्जा दासं चऽत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १५ ॥ इत्थि च परिपुच्छेज्जा सिद्धत्था सुभग ति य । धण्णा य सुहभागी य सव्वकामसमन्निया ॥ १६ ॥ महतो य कुटुंबस्स इस्सरी सामिणी भवे । कल्लाणाणं सुहाणं च भागिणी भोगभागिणी ॥ १७ ॥ सततं अणुरत्ता य असवत्तं अकंटगं । अरोगा सुहिता णिच्चं पुरिसं च जयिस्सति ॥ १८ ॥ भगिणि भायरं धीतं दासि वा जारिकं तधा । सहि ण्हुसं वा पुच्छेज्जा अस्थि तेवं वियागरे ॥ १९ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्जा सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य भवेय सुभलक्खणा ॥ २० ॥ संसेसा य उदत्ता य अणुरत्ता य जसस्सिणी । सेमिद्धं च कुलं एसा गमिस्सति ण संसयो ।। २१ ।। सूरं च रज्जभागिं च णिच्चं च सुहभागिणं । महाधणं महाभागं भत्तारं च लभिस्सति ॥ २२ ॥ सतितामेव कण्णं तु पुच्छंती वरका जति । धण्णा कण्ण त्ति तं ब्रूया खिप्पं णिग्गहित्ति य ॥ २३ ॥ गभं च परिपुच्छेज्ज अस्थि गब्भो ति णिद्दिसे । गम्भिणी पुरिपुच्छेज्जा दारगं सा पयाहिति ॥ २४ ॥ जधा पुरुसपुच्छायं पुव्वुत्ता पुरुसे गुणा । तं चेव गुणसंपत्ति तस्स बालस्स णिदिसे ॥ २५ ॥ कम्मं वा परिपुच्छेज्ज पुरिसकम्मं स णिद्दिसे । संगामेसु य कम्माणि सव्वाणेवं वियागरे ।। २६ ॥ णिद्दिसे रायसेवीणं सव्वरायकुलेसु य । वावारमाधिपच्चं वा जुद्धं आयरियत्तणं ॥ २७ ॥ पवासं परिपुच्छेज्जा मासमत्तस्स होहिति । साधयिस्सति अत्थं वा भुज्जो जण्णं लभिस्सति ॥ २८ ॥ पउत्थं परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सधणो त्ति य । कतकज्जो अरोगो य अविग्घेणाऽऽगमिस्सति ।। २९ ।। बंधं च परिपुच्छेज्जा णत्थि बंधो त्ति णिद्दिसे । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्जा चिरा मोक्खो भविस्सति ।। ३० ॥ 30 १ जत्तूणि सं ३ पु० । जंतूणि सि० ॥ २ हिंतयाणि हं० त० | हिंतहाणि सि० ॥ ३ उदर चक्खुणा सप्र० ॥ ४ च रुल्ला हं० त० ॥ ५ वियारे हं० त० ॥ ६ वाणूणि हं० त० ॥ ७ सुभभागी हं० त० ॥ ८ सुट्ठिया हं० त० ॥ ९ भगिणी हं० त० ॥ १० भवेमुभयल' हं० त० ॥ ११ सेसेसा हं० त० ॥ १२ समिद्धं णियकुलं सि० ॥ १३ महाधण्णं सं ३ पु० ॥ १४ सतिभामेव सं ३ पु० ॥ १५ वरछा जति हं० त० ॥ १६ गुरुसंपत्तिं हं० त० विना ॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्णामाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ भयं वा परिपुच्छेज्जा णत्थि त्तेवं वियागरे । खेमं च परिपुच्छेज्जा खेमं चऽथि त्ति णिदिसे ॥ ३१ ॥ संधि च परिपुच्छेज्जा विग्गहं तत्थ णिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्जा विवादं तत्थ णिद्दिसे ॥ ३२ ॥ विवादे वा जयं पुच्छे जयो अत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोगं परिपुच्छेज्जा आरोगो त्ति विआगरे ॥ ३३ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्जा णत्थि रोगि त्ति णिद्दिसे | मरणं च परिपुच्छेज्जा णत्थि त्तेवं विआगरे ॥ ३४ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्जा अस्थि त्तेवं विआगरे । आबाधिकं च पुच्छेज्जा समुट्ठाणंऽस णिदिसे ॥ ३५ ॥ भोगलंभं भोगवद्धि भोगथावरता तधा । भोगस्स वा समुदयं पुच्छे अत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ३६ ॥ कम्मिको केणिको वा वि पुच्छे अधिकरणागमं । इस्सज्जं वा पतिटुं वा छायाकरणमेव य ॥ ३७ ॥ अधिपच्चत्थिकारे वा पुच्छे समुदयं जति । विवद्धते थिरं व त्ति सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥ ३८ ॥ सिप्पिकं सिप्पिकम्मं वा विज्जाधिगमणं तधा । अजा-ऽविलं वा गो-महिसं दासी-दासं तधेव य ॥ ३९ ॥ थीसंपयोगं पुरिसस्स थिआ वा पुरिसेण तु । पयलाभं थिरायं च मित्त-णातिसमागमं ॥ ४० ॥ 10 णिधाणं णिधितं वा वि हितं < अवधितं तधा । पम्हुटुं वा पलातं वा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ४१ ॥ रायतो निव्वुत्ति वा वि गिहं वा सयणा-ऽऽसणं । जाणं वा वाहणं वा वि सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥ ४२ ॥ विज्जासिद्धि कम्मसिद्धि अरोगसिद्धि तधेव य । जूते पण्णवणे सिद्धि जयं लाभं च णिद्दिसे ॥ ४३ ॥ पणिएसु पणिज्जेसु भंडस्स कय-विक्कये । णिचये लाभसंपत्ति कयसिद्धिं च णिदिसे ॥ ४४ ॥ पराजयं वाधि-भयं णिराकारं अणिव्वुर्ति । छेदणं भेदणं वा वि सव्वं णत्थि. त्ति णिद्दिसे ॥ ४५ ॥ 15 अणावुढेि च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वस्सारतं च पुच्छेज्ज उक्कट्ठ त्ति वियागरे ॥ ४६ ॥ अपातवं च पुच्छेज्ज अत्थित्तेवं वियाकरे । वासं च परिपुच्छेज्ज महामेह त्ति णिद्दिसे ॥ ४७ ॥ सस्सस्स वापदं पुच्छे णत्थित्तेवं वियागरे । सस्सस्स संपदं पुच्छे उक्कट्ठा सस्ससंपदा ॥ ४८ ॥ पुण्णामधेयं जं चऽण्णं पभूतमिति णिबिसे । "णिरितीअं अविग्घेणं सस्ससंगहमादिसे ॥ ४९ ।। मणि च परिपुच्छेज्ज मणी धण्णो त्ति णिद्दिसे । दंडं च परिपुच्छेज्ज दंडो धण्णो त्ति णिदिसे ॥ ५० ॥ 20 भूसण-उच्छादणं जाणं गिह वा सयणा-ऽऽसणं । "बिपयं चतुप्पयं वा वि भंडोवगरणं तधा ॥ ५१ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं सव्वं धण्णं विणिद्दिसे । साणुबद्धं गुणकरं कुलवद्धिकरं भवे ॥ ५२ ॥ घरप्पवेसं पुच्छेज्ज थावरं धण्णमादिसे । तत्थऽथि संचयो सव्वो थावरो धण्ण एव य ॥ ५३ ।। णटुं च परिपुच्छेज्ज लाभं तस्स वियागरे । णट्ठमाधारए तं च पुण्णाममभिणिद्दिसे ॥ ५४ ॥ पुण्णामधेयं जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । थीणामधेयं पुच्छेज्ज सव्वं अत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ५५ ॥ 25 पुरिसो णपुंसको व त्ति पुरिसो त्ति वियागरे । धणं धण्णं ति पुच्छेज्ज धण्णं ति य वियागरे ॥ ५६ ॥ जं किंचि पसत्थं पुच्छे सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि ण तं अत्थि त्ति णिद्दिसे ।। ५७ ॥ तधा वत्थं तधा खेत्तं गिहं वा वि तधोसभं । कुक्कुडं पसु पक्खि वा भिंगारं छत्त-विज्जणं ॥ ५८ ॥ तधा खग्गं तधा वम्मं तधा चम्मं तधा वणं । तधा छिण्णं रुतं सुविणं पुण्णामं सव्वमत्थि तं ॥ ५९ ।। समे सद्दे य जाणेज्जा पुण्णामा जे भवंतिह । अहोपुरिसो त्ति वा बूया महापुरुसको त्ति वा ॥ ६० ।। 30 तधा पुरुससीहो त्ति पधाणपुरुसो त्ति वा । F कुलपुरुसो त्ति वा बूया रायपुरुसो ति वा पुणो ।। ६१ ॥ १ अरोगं सि० ॥ २ अरोगो सि० ॥ ३ रोगो त्ति हं० त० विना ॥ ४ च परिपुच्छे हं० त० ॥ ५ सपुरयं हं० त० ॥ ६ एतच्चिह्नमध्यगतं पदं हं० त० नास्ति ॥ ७ पवयणे सि० ॥ ८ सु य णिच्चेसं भंड सं ३ पु० सि० । 'सु य णिच्चेसुं भंड हं० त० ॥ ९-१० एवं हं० त० ॥ ११ णिरतीअं सप्र० ॥ १२ दुपयं हं० त० ॥ १३ पुच्छेज्ज सव्व हं० त० सि० ॥ १४ कयविज्जणं हं० त० ॥ १५ हस्तचिह्नमध्यगतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [१ पण्णतरि पुरिसिस्सरो ति वा बूया विज्जापुरुसो ति वा पुणो । जुवाणो जोव्वणत्थो वा पोअंडो पुरिसो ति वा ॥ ६२ ॥ गड्डिको पोट्टहो व त्ति अड्डगो सुभगो त्ति वा । विकतो विस्सुओ सूरो धीरो वीरो विसारदो ॥ ६३ ॥ विक्खातो लद्धमाणो ति महाबल-परक्कमो । गुणाणं एवमादीणं जतोदाहरणं भवे ॥ ६४ ॥ णरं पुण्णामधेयं वा पुण्णामसमकं हि तं । इच्वेते मणुसा सद्दा पुण्णामसमलक्खणा ॥ ६५ ॥ पुण्णामसमके सद्दे कित्तयिस्सं अमाणुसे । णेरइयो त्ति वा बूया णिरयलोको त्ति वा पुणो ॥ ६६ ॥ तधा असुरलोको त्ति असुरिंदो ति वा पुणो । णागो त्ति सुवण्णो त्ति णागलोको त्ति वा पुणो ॥ ६७ ॥ कधं अण्णस्स वा कुज्जो भवणवासी भवंति जे । महालोको किंपुरुसो गंधव्वो किन्नरो त्ति वा ॥ ६८ ॥ मरुतो वा वि भूतो वा पिसाओ जख-रक्खसो । चंदो सूरो त्ति वा बूया बुधो सुक्को बहस्सती ॥ ६९ ॥ राहु त्ति धूमकेउ ति लोहियंको सणिच्छरो । विमाणाणि विमाणिदो कप्पो कप्पपति त्ति वा ॥ ७० ॥ 10 कप्पोपको वा देवो वा देवो वेमाणिको त्ति वा । देवो वा अमरो व त्ति सुरो वा विबुधो त्ति वा ॥ ७१ ॥ गोज्झगो गोज्झकपती देवराय त्ति वा पुणो । कप्प त्ति वा विमाणं ति जे वा कप्पपती सुरा ॥ ७२ ॥ तेसिं तु णामग्गहणं कधा व जति कीरति । एते अमाणुसा सद्दा देवजोणिकता भवे ॥ ७३ ॥ तिज्जजोणिगते सद्दे कित्तयिस्सं अत प्परं । हत्थी अस्सो व उट्टो ति गद्दभो घोडगो त्ति वा ॥ ७४ ॥ तधोसभो बलिवद्दो वच्छको तण्णको त्ति वा । सीहो वग्घो वको व त्ति खग्गो वा रोहितो त्ति वा ॥ ७५ ॥ दीविको अच्छभलो ति तरच्छो महिसो गयो | लोयको वा ससो व त्ति कंटेणो धण्णको त्ति वा ॥ ७६ ॥ कँडुमायो कुरंगो त्ति सियालो सूकरो सुणो । विरालो णकुलो व त्ति कुक्कुरो मूसगो त्ति वा ॥ ७७ ॥ सरभो वा रुरू व ति वाणरो गजपुंगवो । मेसो ऊरणको व त्ति मेंढगो छेगलो ति वा ॥ ७८ ॥ हरितो वा मगो वा वि कवलो कोसको त्ति वा । जे वऽण्णे एवमादीया लोए होंति चतुप्पदा ॥ ७९ ॥ तेसिं रुते कधाय वा पुण्णामसममादिसे । चतुप्पदगता सद्दा इच्चेते परिकित्तिता ॥ ८० ॥ इतो पक्खिगते सद्दे पवक्खामऽणुपुव्वसो । गरुलो रायहंसो त्ति कलहंसो त्ति वा पुणो ॥ ८१ ॥ चासो रिकिसिको व ति वीरल्लो सारसो त्ति वा । चक्कवागो बगो व त्ति भारंडो [.............] || ८२ ।। गहरो कुललो [वा वि] सेणो G बाँसो(जो) तहा सुओ। ॐ वंजुलो सतपत्तो ति उवो कपिलको त्ति वा ।। ८३ ।। पारेवयो कपोतो ति हारीडो कुक्कुडो ति वा । तित्तिरो लावको व त्ति कैयरो व कविजलो ॥ ८४ ॥ [...............................] कातंबो दंडमाणवो | आसवाय त्ति कोंचो त्ति अधवा कधामज्झको ॥ ८५ ॥ सरभो उपको व त्ति मयूरो त्ति व जो वदे । कारंडओ त्ति पिलओ त्ति सिरिकंठो ति वा पुणो ॥ ८६ ॥ पुत्तंगयो भिंगरायो जीवंजीवको त्ति वा । मुधुलूको त्ति वा बूया कुंधुलूको त्ति वा पुणो ॥ ८७ ॥ जे वऽण्णे एवमादीया पक्खी पुरुसणामगा । "तेसिं तु रुतणिग्घोसे णामोदाहरणेण वा ॥ ८८ ॥ पुण्णामसमका सद्दा इच्छेते पक्खिजोणिया । परिसप्पगते सद्दे कित्तयिस्समतो परं ॥ ८९ ॥ मच्छो वा कच्छभो व त्ति णागो त्ति मगरो ति वा । सुंसुमारो ति तिमी तिर्मिगिल गिल त्ति वा ॥ ९० ॥ १ गद्दिको हं० त० ॥ २ लोहंको सं ३ पु० ॥ ३ सूरो वत्तो बुधो त्ति सं ३ सि० । सूरो व्व उ बुद्धो त्ति हं० त० ॥ ४ तिरियजोणि हं० त० विना ॥ ५ अय प्परं हं० त० । 'अत प्परं' अत: परमित्यर्थः ॥ ६ लोपको पाससो सं ३ पु० । लोयको पारुसो हं० त० ॥ ७ कडमायो हं० त० विना ॥ ८ उरणको व हं० त० विना ॥ ९ छगलगो तधा हं० त० विना ॥ १० व त्ति कतलो कोमको हं० त० विना ॥ ११ रूवे सि० ॥ १२ धीरल्लो हं० त० ॥ १३ भारंड हं० त० विना ॥ १४ हस्तचिह्नगतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ १५ वंज्झलो हं० त० ॥ १६ कतरो विधि कर्विजलो ॥१७ असवायति कोवो त्ति अहवा कायमज्जाओ हं० त० ॥ १८ सरतो तोपको हं० त० विना ॥ १९ मुधूलको हं० त० । मधुलोको सि० ॥ २० कुधुलुको हं० त० । कुधुलोको सि० ॥ २१ तेर्सि गुरुया णि हं० त० ॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्णामाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ मंडूको त्ति कुलीरो ति मगरो बोडमच्छको । सहस्सदंतो पाठीणो मच्छो गागरको त्ति वा ॥ ९१ ॥ सोहमच्छो महामच्छो तधा कालाडगो त्ति वा । णामिण ग्गाधमको तधा पिविपिणो त्ति वा ॥ ९२ ॥ जे चेवमादिणो सव्वे मच्छा पुरुसणामका । णामसंकित्तणे तेसिं पुण्णामसममादिसे ॥ ९३ ॥ पुण्णामधेयमच्छाणं दंसणं पि तधा भवे । [..... ..........] || ९४ ।। ___ भीराहि गोणसो व त्ति अजो अजगरो ति वा । मिलिंदको लोहितको तधा पापहिको त्ति वा ॥ ९५ ॥ 5 पूर्तिगालो तित्तिलो त्ति तधा गोमयकीडगो । कीडो ति वा पतंगो त्ति संखो खुलुक हालको ॥ ९६ ॥ जे वऽण्णे एवमादीया सुहमा बादरा वि वा । उदाहिते ण पुण्णामा सव्वे पुण्णामसंसिता ॥ ९७ ॥ तधा रुक्खेसु जे रुक्खा पुण्णामा परिकित्तिता । पुण्णामसद्देहिं समा तेहि सद्दा विधीयति ॥ ९८ ॥ अंबो अंबाडको व त्ति पणसो लकुचो त्ति वा । असोगो तिलको लेकुचि सालो बकुल-वंजुलो ॥ ९९ ॥ पुण्णागो णागरुक्खो ति बूया कुरबको ति वा । अंकोल्लो कोलिको वा वि णग्गोधो अतिमुत्तगो || १०० ॥ 10 अहिरण्णको त्ति वा बूया कण्णिकारो त्ति वा वदे । चारो वरुणको व त्ति किंसुगो पालिभद्दगो ॥ १०१ ॥ सज्जऽज्जुणो कतंबो त्ति णिबो त्ति कुडजो त्ति वा । उदुंबरो त्ति अप्फोयो णग्गोधो ति वडो त्ति वा ॥ १०२ ॥ सिण्हको त्ति सिलिधो त्ति विलियंधो त्ति वा पुणो । णिवुरो ति व < जो बूया - सागो त्ति असणो त्ति वा ॥ १०३ ॥ पाणो वा कोविडालो वा चिल्लको बंधुजीवको । दधिवण्णो सत्तिवण्णो त्ति कोसंबो भीरुओ त्ति वा ॥ १०४ ॥ अयकण्णो अस्सकण्णो त्ति धम्मण्णो त्ति धवो त्ति वा । दालिमो णालिकेरं ति कविट्ठो रिट्ठको त्ति वा ॥ १०५ ॥ 15 पारावतो णत्तमालो कोविरालो ति वा पुणो । वणसंडो सिरीसो त्ति छत्तोधो त्ति णलो त्ति वा ॥ १०६ ॥ मधूगो चंदणो चेव लोद्धो उण्होलको त्ति वा । वारंगो खदिरो व त्ति अयमारो करो त्ति वा ॥ १०७ ॥ पादवो व दुमो व ति रुक्खो वा अगमो ति वा । तथा थावरकायो ति विडवि त्ति व जो वदे ॥ १०८ ॥ जे वऽण्णे एवमादीया रुक्खा पुरुसणामका । णामतो समुदीरंति पुण्णामसमका हि ते ॥ १०९ ॥ रुक्खणामगता सद्दा इच्चेते परिकित्तिता । पुण्णामधेया जे गुम्मा ते पवक्खामि णामतो ॥ ११० ॥ 20 कोरेंटो कणवीरो त्ति सिंधुवारो त्ति वा पुणो । अणंगणो अणोज्जो ति "कुंटो वा सेदकंठको ॥ १११ ॥ रत्तकंठक-वाणीरो छिक्को वा णीलकंठको । तिमिरको सणो व त्ति तलकोड । णागमालको ॥ ११२ ॥ जे वऽण्णे एवमादीया रुक्खा (गुम्मा) पुरुसणामका । रुक्खा गुम्मा य जे वुत्ता तेसिं पुष्फ-फलस्स वि ॥ ११३ ॥ णामसंकित्तणासद्दा पुण्णामसमका भवे । एतेसुं [चेव] जे रुक्खा णामतो ण उदाहिता ॥ ११४ ॥ ततो केसिंचि पुण्फ-फलं कित्तयिस्सामि णामतो । विभत्तीसु जैधासत्ति णायव्वं सुहमं भवे ॥ ११५ ॥ 25 पदुमं पुंडरीकं च पंकयं णलिणं ति वा । सहस्सपत्तं सतपत्तं सर्फ ति कुमुदं ति वा ॥ ११६ ॥ तधुप्पलं कुवलयं तधा गद्दभगं ति वा । तणसोल्लिकं ति वा बूया तधा तामरसं ति वा ॥ ११७ ॥ इंदीवरं कोज्जकं ति पाडलं कंदलं ति वा । तधा चंपगपुष्पं ति इरिकाकं ति वा पुणो ॥ ११८ ॥ तथा लवंगपुष्पं ति भवे मोगरगं ति वा । अंकोल्लपुप्फ वा बूया पुष्पं सहवरस्स वा ॥ ११९ ॥ पुष्पाणि जाणि वऽण्णाणि एवमादीणि सूयए । पुण्णामकधायं तु समसद्दा भवंति ते ॥ १२० ॥ 30 १ वाड हं० त० विना ॥ २ कलोडगो सि० ॥ ३ पापाहि ओविहा हं० त० ॥ ४ खलुक हं० त० ॥ ५ लकुचो हं० त० ॥ ६ अप्फायो सं ३ पु० सि० । अड्डोयो हं० त० ॥ ७ विलिअंचो त्ति सं ३ पु० । विलिअंबो त्ति सि० ॥ ८ व एतच्चिह्नगतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ९ धम्मणो त्ति धणो त्ति सि० ॥ १० रुक्खा णाम सि० विना ॥ ११ कुंडो वा सेदकंटको हं० त० ॥ १२ 'कंटक' सि० ॥ १३ 'कंटको सि० ॥ १४ तडकोडो हं० त० । तिलकोडो सि०॥ १५ णागगोलको हं० त० विना ॥ १६ यधा हं० त० ॥ १७ सूयितो सं ३ पु० । सूयिते सि० ॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णय [१ पण्णत्तर कंठेगुणो त्ति वा बूया अधवा संविताणकं । देवमल्लं ति वा बूया उरणा चुंभलं ति वा ॥ १२१ ॥ आमेलको त्ति वा बूया मत्थको गोच्छको त्ति वा । पुष्फरासी णिगरो वा पुप्फाणं पोट्टलो त्ति वा ॥ १२२ ।। जं च पुप्फमयं किंचि पुण्णामं भूसणं भवे । तस्सद्दमुदाहरणे पुण्णामसममादिसे ॥ १२३ ॥ पुष्फजोणी समासेण इच्चेसा परिकित्तिता । फलं पुण्णामतो सदं कित्तयिस्समतो परं ॥ १२४ ॥ ____ कुभंडं तुंब–कालिंगं तधा केक्खारुगं ति वा । ससबिंदुकं ति वालुक्कं तपुसेल्लालुकं ति वा ॥ १२५ ॥ दालिम णालिकेरं ति बिल्लमामलकं ति वा । तिंदुकं बदरं व त्ति तधा सेलूडकं ति वा ॥ १२६ ॥ तलपक्कं ति वा बूया सीवण्णं धम्मणं ति वा । तोरणं करमंदं ति तधा बेभेलकं ति वा ॥ १२७ ॥ कंटासकं जंबुफलं भवे पारावतं ति वा । अक्खोल-मातुलिंगं ति खज्जूरं कलिमाजकं ॥ १२८ ।। फलाणि जाणि वऽण्णाणि पुण्णामाणि भवंतिह । तेसिं संकित्तणासद्दा पुण्णामाणि भवंतिह ॥ १२९ ।। 10 फलजोणी समासेण इच्चेसा परिकित्तिया । पुण्णामाणि तु पेयाणि कित्तयिस्समतो परं ॥ १३० ॥ बूया तु अपक्करसो तधा पक्करसो त्ति वा । अरिहो आसवो व त्ति मेरको त्ति मधु ति वा ॥ १३१ ॥ गोधसालको व त्ति पाणकं ति व जो वदे । रसो जसो त्ति वा बूया खलको पाणियं ति वा ॥ १३२ ॥ < खीरं दुद्धं दधि व त्ति पयं गुल दधि ति वा । णवणीतं घितं व त्ति गुल तेल फाणितं ति वा ॥ १३३ ॥ एवमेताणि पेयाणि कित्तियाणि समासतो । पुण्णामाणि पवक्खामि भोयणाणि अत प्परं ॥ १३४ ॥ ___ कूरो वा ओदणो व त्ति अण्णं ति असणं ति वा । भोयणं जेमणं व त्ति आहारो त्ति व जो वदे ॥ १३५ ।। पायसो परमण्णं ति दधितावो विलेपिको । दधिकूर-दुद्धकूरो घत-सासवकूरको ॥ १३६ ॥ गुलकूरको त्ति वा बूया अधवा पत्तकूरको । कुलत्थकूरको व त्ति मुग्ग-मासोदणो त्ति वा ॥ १३७ ॥ अतिपूर तेल्लकूरो त्ति भूतकूरो त्ति वा वदे । जस्स धण्णस्स जो मिस्सो तण्णामो कूर एव सो ॥ १३८ ॥ जे वऽण्णे एवमादीया कूरा पुरुसणामगा । तेसिं संकित्तणासद्दा पुण्णामसमका भवे ॥ १३९ ॥ 20 अण्णजोणीसु पेयाले इच्चेते परिकित्तिता । पुण्णामाणि पवक्खामि एत्तो अच्छादणाणि तु ॥ १४० ॥ पडसाडगं ति वा बूया तधा खोमदुगल्लगं । चीणंसुगं चीणपट्टो पावारो वा पडो त्ति वा ॥ १४१ ॥ साडको सेदसाडो ति तधा कोसेयपारओ । णाणाविधा कंबलका जे पुण्णामा भवंतिह ॥ १४२ ॥ उत्तरिज्जंतरिज्जं ति उस्सीसं वेधणं ति वा । कप्पासो कंचुको व त्ति वारवाणं ति वा पुणो || १४३ ॥ विताणकं ति वा बूया पच्छतो व त्ति जो वदे । संण्णाहपट्टको व त्ति अधवा मल्लसाडगो ॥ १४४ ॥ 25 अच्छादणे पंचविधे यं जं पुण्णामकं भवे । तं [तं] सद्दोदाहरणं पुण्णामसममादिसे ॥ १४५ ॥ पच्छादणजोणीय एव पेयालमाहितं । पुण्णामाणि पवक्खामि भूसणाणमतो परं ॥ १४६ ॥ तिरीडं मउडो चेव तधाः सीहस्स भंडकं । अलकस्स परिक्खेवो अधवा मत्थककंटकं ॥ १४७ ॥ तधा गरुलको व त्ति वदे मगरको त्ति वा । तधा उसभको व त्ति अधवा सीउको भवे ॥ १४८ ॥ अधवा हत्थिको व त्ति तधा चक्ककमिहुणगं । तधेव ज्झंकको व त्ति कडगं खडुगं ति वा ॥ १४९ ॥ 30 णिडालमासको व त्ति तिलको मुंहफलक ति वा । विसेसको त्ति वा बूया अवंगो त्ति व जो वदे ॥ १५० ॥ कुंडलं वा बको व त्ति मत्थगो तलपत्तकं । दक्खाणकं कुरबको अधवा कण्णकोवगो ॥ १५१ ॥ १ उराणं चुंभलं हं० त० । उरुणाभं तलं सि० ॥ २ रुक्खारुगं हं० त० ॥ ३ वालुंकं सि० ॥ ४ 'क्कं पुसेल्लाबुकं हं० त० विना ॥ ५ <एतच्चिह्नमध्यवर्त्ययं श्लोक: हं० त० नास्ति ॥ ६ 'अत प्परं' अतः परमित्यर्थः ।। ७ गुम्ममासो हं० त० ॥ ८ "कूरं खल्लकरो त्ति चूत हं० त० ॥ ९ स्वेडसाडो सि० विना ॥ १० ओसीसं हं० त० ॥ ११ चेवणं हं० त० विना ॥ १२ कंसुको हं० त० ॥ १३ ससोह हं० त० विना ॥ १४ सीधस्स हं० त० विना ॥ १५ सीउदको सं ३ पु० ॥ १६ महुफलकं सं ३ पु० ॥ १७ वाद्धको सं ३ पु० । वाव्वको हं० त० । वाडको सि० ॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्णामाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ ६५ कण्णपीलो त्ति वा बूया कण्णपूरो त्ति वा पुणो । कण्णस्स खीलको व त्ति अधवा कण्णलोडको ॥ १५२ ।। केज्जूरं तलभं व त्ति कंदूगं परिहेरगं । ओवेढगो वलयगं तधा हत्थकलावगो ॥ १५३ ॥ हत्थ[स्स] खड्डग । ति अणंतं खुड्डगं ति वा । हत्थ[स्स] भंडको व त्ति कंकणं वेढको त्ति वा ॥ १५४ ॥ हारो वा अद्धहारो वा तेधा च फलहारको । वेकच्छगो ति गेवेज्जं कट्ठो वा कडको त्ति वा ॥ १५५ ।। सुत्तकं ति व जो बूया तधा सोवण्णसुत्तगं । तिगिच्छिग त्ति वा बूया हिदयत्ताणकं ति वा ॥ १५६ ॥ 5 सत्थिको सिरिवच्छो त्ति अट्ठमंगलकं ति वा । सोणिसुत्तं ति वा बूया अधवा रयणकलावगो ॥ १५७ ।। गंडूपकं ति वा बूया तधा खत्तियधम्मकं । तधा णीपुरगं व त्ति तधा अंगजकं ति वा ॥ १५८ ॥ पापढको त्ति वा बूया पादखंडुयगं ति वा । परमासको त्ति वा बूया तधा पादकलावगो ॥ १५९ ॥ सरजालकं ति वा बूया अधवा बाहुजालकं । तधूरुजालकं व त्ति तधा वा पादजालकं ॥ १६० ॥ अक्खको व त्ति वा बूया पुस्सकोकिलको, त्ति वा । कंचीकलावको व त्ति तधा वा हसुडोलको ।। १६१ ॥ 10 एसाऽऽभरणजोणी तु पुण्णामा परिकित्तिता । कित्तेसं भोयणीयाणी भायणाणि समासतो ॥ १६२ ॥ तट्टकं सरकं थालं सिरिकुंडं ति वा पुणो । तधा पणसकं व त्ति तधा अद्धकविट्ठगं ॥ १६३ ।। सुपतिट्टकं ति व वदे तधा पुक्खरपत्तगं । सरगं मुंडगं व त्ति तधेव सिरिकंसगं ॥ १६४ ॥ थालकं ति व जो बूया तधा दालिमपूसिकं । णालकं ति व जो बूया तधा मल्लकमूलकं ॥ १६५ ॥ करोडको त्ति वा बूया अधवा वट्टमाणगं । अलंदको जंबुफलकं तधा वा भंडभायणं ॥ १६६ ॥ 15 खोरकं खोरको व त्ति वट्टकं ति व जो वदे । मुंडकं ति व जो बूआ पीणकं ति व जो वदे ॥ १६७ ॥ पुण्णामधेयं जं चऽण्णं भवे भोयणभायणं । तस्स संकित्तणासद्दा पुण्णामसमका भवे ॥ १६८ ।। भायणाणि तु पादाणि कित्तियाणि समासतो । सयणा-ऽऽसण-जाणाणि कित्तयिस्समतो परं ॥ १६९ ॥ आसणं सव्वतोभदं तधेव सयणाऽऽसणं । आसंदगो भद्दपीढं ति पादफलं वट्टपीढकं ॥ १७० ।। डिप्फरो पीढफलकं सत्थिकं तलियं ति वा । मसूरको अत्थरको कोट्टिमं ति सिलातलो ॥ १७१ ॥ 20 मासालो मंचको व ति पल्लंको पडिसेज्जको । जं वा जाणेसु पुण्णामं सव्वं तं समलक्खणं ॥ १७२ ॥ सयणाऽऽसण-जाणाणि कित्तियाणि समासतो । भंडोवगरणं सव्वं कित्तयिस्समतो परं ॥ १७३ ॥ अरंजरो अलिंदो त्ति कुंडगो माणको त्ति वा । घडको कुढारको व त्ति वारको कलसो त्ति वा ॥ १७४ ।। गुलमगो त्ति वा बूया तधा पिढरको त्ति वा । तधा मल्लगभंडं ति पत्तभंडं ति वा पुणो ॥ १७५ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं पुण्णामं भोमयं भवे । सव्वमेवाणुगंतूणं पुण्णामसमगं वदे ॥ १७६ ।। एवं लोहमयं सव्वं तधा मणिमयं च जं । संख-सिप्पमयं चेव जं च सेलमयं भवे ॥ १७७ ॥ भंडोवगरणं सव्वं जं जं पुण्णामकं भवे । सव्वमेवाणुगंतूणं पुण्णामसममादिसे || १७८ ।। तधा पुण्णामधेयाणि सव्वलोहाणि णिद्दिसे । मणि वा मोत्तियं व त्ति सव्वं पुण्णामिकं भवे ।। १७९ ॥ सुवण्ण-रुप्पं धण-धण्णं चंदणं अगरुं तधा । अंडजं १ पोंड २ चम्मं ३ वालयं ४ वक्कयं ५ पि वा ।। १८० ॥ अच्छादणं पंचविधं परग्घं पट्टणुग्गतं । जं चऽण्णं एवमादीयं रयणं पुण्णामिकं भवे ।। १८१ ॥ 30 १ कणस्स सीलको हं० त० ॥ २ 'लोढको हं० त० सि० ॥ ३ कज्जूरं हं० त० विना ॥ ४ खद्दगं हं० त० ॥ ५ अणत्तरं खु. हं० त० ॥ ६ तहा पल' हं० त० ॥ ७ वाडको सि० विना ॥ ८ सित्थको हं० त० ॥ ९ पाएढको सि० । पापटको हं० त० ॥ १० खन्नुयगं सं ३ पु० । 'खवुयगं सि० ॥ ११ पुंसको सि० ॥ १२ कच्चीक' हं० त० विना ॥ १३ वा लसुडो हं० त० विना ॥ १४ वद्धमाणगं सि० ॥ १५ तु एयाणि हं० त० । ‘पादाणि' पात्राणीत्यर्थः ॥ १६ उल्लमको त्ति हं० त० ॥ १७ पुण्णाम भोम्मयं हं० त० विना ॥ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 अंगविज्जापइण्णयं [२ पण्णत्तरिं तं सव्वमणुगंतूण पुण्णामसममादिसे । एत्तो पुण्णामिकं धण्णं कित्तयिस्सामऽतो परं ॥ १८२ ॥ साली वीही तिलो व त्ति कोद्दवा वरक त्ति वा । उरालका चीण-मुग्गा णिप्फावा जव-गोधुमा ॥ १८३ ॥ मासा मूढत्थ चणका कुलत्थ त्ति सण त्ति वा । एवं पुण्णामिका सद्दा वोच्छं धणमतो परं ॥ १८४ ॥ सुवण्णमासको व त्ति जतहा रययमासओ। दीणारमासको व त्ति छ तधोणाणं च मासको ॥ १८५ ॥ काहापणो खत्तपको पुराणो त्ति व जो वदे । सतेरको त्ति तं सव्वं पुण्णामसममादिसे ॥ १८६ ॥ ___ एवमेवऽत्थतो दिटुं पुण्णामं पि य लक्खणं । सव्वमेवाणुगंतूणं पुण्णामसममादिसे ॥ १८७ ॥ . पुण्णामधेये णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । रुक्खे पुप्फ-फले देसे णगरे गाम-गिहे तधा ॥ १८८ ॥ पुरिसे चउप्पदे वा वि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किपिल्लके वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ १८९ ॥ पाणे य भोयणे चेव तधा आभरणेसु य । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य ॥ १९० ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्व-धण्ण-धणेसु य ॥ १९१ ॥ एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतको ॥ १९२ ॥ ॥ पुण्णामाणि सम्मत्ताणि । द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥ छ । 10 15 20 [२ पण्णत्तरि थीणामा] पण्णत्तर तु थीणामा मणिम्मि परिकित्तिया । छगली सिहा य गंडा य उभयो कण्णचूलिगा ॥ १९३ ॥ भुमका अक्खिगुलिका तारका अक्खिवत्तिणी । णासिका कण्णपालीओ थूणा सीता य तालुका ॥ १९४ ॥ दाढाओ दंतवेढीओ वट्ठी जिब्मा हणू तधा । अवह-ककाडिका गीवा कडि पट्ठी फिजा गुदा ॥ १९५ ॥ पओट्टा बाहुणालीओ चूचुका थणपालीओ । णाभी य लोमवासी य जंघाओ थूरका तधा ॥ १९६ ॥ कंडरा पण्हिका लंका सोलसंगुलिओ तधा । लेहा छिरा य धमणी य वलीओ सिव्वणी तधा ॥ १९७ ।। सरीरे जाणि वऽण्णाणि थीणामाणि भवंति हि । ताणि थीणामधेज्जेसु णिद्दिसे अंगचितओ ॥ १९८ ॥ अत्थं वद्धि जयं लाभं पुच्छे एताणि आमसं । थीणिमित्तं ति तं बूया इतरं णत्थि त्ति णिदिसे ॥ १९९ ।। पुरिसं च पुरिपुच्छेज्ज अधण्णो दूभगो त्ति य । असिद्धत्थो त्ति तं बूया थीणामं पुण णिद्दिसे ॥ २०० ॥ अप्पभागो य भवति अप्पसेसे किलेसवं । पावो य आइलो णिच्चं भोगे दुक्खेण भुंजति ॥ २०१ ॥ इत्थि वा परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य । अप्पसेसा असिद्धत्था कुटुंबस्स अणिस्सरी ॥ २०२ ॥ अस्सामिणी य अत्थाणं आणा जस्स ण वट्टति । आइला बहुमंतक्खा पति च ण जयिस्सति ॥ २०३ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज तिस्से सव्वत्थमादिसे । अज्झावक फलं सव्वं ण लहुं पुण णिग्गमे ॥ २०४ ॥ अप्पसेसा अभागा य कुडुंबस्स य णीहणी । निच्चं पतिस्स वस्साय अविधेयो पती य से ॥ २०५ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्ज णत्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गम्भिणी तु किलेसेण दारिकं तु पजाहिति ॥ २०६ ॥ णिच्वं अपच्चधमणं पुच्छे कण्णास्स ढावरा । दारकाऽस्स ण जायंति जाताणं मच्चुतो भयं ॥ २०७ ॥ पुरुसो जति पुच्छेज्ज थीणिमित्तं समागमं । भविस्सति त्ति संबूया थीया णत्थि समागमो ॥ २०८ ॥ विज्जाभिगमणं सिप्पं कम्मारंभं परिग्गहं । ववहारं च लाभं वा मित्त-णातिसमागमो || २०९ ॥ 30 १ "ण्णामकं हं० त० विना । २ "स्सामितो हं० त० विना ॥ ३ वकर त्ति सं ३ पु० ॥ ४ हस्तचिह्नमध्यवर्ती पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ ५ काहपको हं० त० विना ॥ ६ "थ उद्दिढे हं० त० ॥ ७ दंतचेटीओ वही जि हं० त०॥ ८ अवत्तक' सं ३ पु० । अवभूक सि० ॥ ९ का भीवा सप्र०॥ १० चुचूका हं० त०॥ ११ ओ पूरका हं० त० । ओ रुरका सि० ॥ १२ अत्थं च विजयं सि० ॥ १३ “सवा हं० त० ॥ १४ "स्सरा हं० त० विना ॥ १५ अभग्गा हं० त० । १६ अविधेया सप्र० ॥ १७ णिटुं अपच्चवमणं हं० त० ॥ १८ मो० पु० विनाऽन्यत्र-स्स ठावरा सं० ली० । “स्स थावरा हं० त० । “स्स वावरा सि० ॥ १९ सीया हं० त० ॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थीणामा ] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ ६७ रायप्पसातं अधिगारं थीणामे ण पसस्सते । थीसंपयोगो थीलाभो थियाणं तु पसस्सते ॥ २१० ॥ कामिगं कामिगा खंसं सढिकं केसवाणियं । अब्भाकारियं लद्धमवलद्धं वा वि णिद्दिसे ॥ २११ ।। देविकोडुबिकं वा वि महाणसिकमेव य । णाडकायरियं वा वि तधा णट्टोसकं पि वा ॥ २१२ ।। थीसेवकपेसणकं गणिकापविचारकं । थीअलंकारगं चेव थीणं व दव्वसाधकं ॥ २१३ ॥ पवासे पुच्छिते णत्थि पउत्थो य णिरत्थकं । थीसंपउत्तं आगमणं पउत्थस्स वियागरे । २१४ ॥ बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि बंधो त्ति णिद्दिसे । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्ज मोक्खं तस्स वियागरे ॥ २१५ ॥ बद्धस्य वा वि पुच्छेज्ज पुरिसस्स पवासणं । पुच्छिते णिद्दिसे तस्स भविस्सति पवासणं ॥ २१६ ॥ भयं च परिपुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे । खेमं च परिपुच्छेज्ज णत्थि खेमं वियागरे ॥ २१७ ॥ संधि वा परिपुच्छेज्ज विग्गहं तस्स णिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज विवादं तस्स णिद्दिसे ॥ २१८ ॥ विवादे वा जयं पुच्छे णत्थि त्तेवं पवेदये । अरोगं पडिपुच्छेज्जा णत्थि तेवं वियागरे । २१९ ॥ कोवं च परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । मरणं च परिपुच्छेज्ज मरणं तत्थ णिद्दिसे :: २२० ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । आबाधितं च पुच्छेज्ज ण समुद्रुहिति त्ति तं ॥ २२१ ॥ णिव्वाणं परिपुच्छेज्ज अणेव्वाणि पवेदये । संपत्तिं परिपुच्छेज्ज असंपत्ति पवेदये ॥ २२२ ॥ उस्सवभूतं जं पुच्छे णत्थि त्तेवं वियागरे । दीणं सोकं च पुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे ॥ २२३ ॥ अणावुढेि च पुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । वस्सारत्तं च पुच्छेज्ज मज्झिमो त्ति वियागरे ।। २२४ ॥ 15 अपातपं च पुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । कता वासं ति वा बूया काले वासं ति णिद्दिसे ॥ २२५ ॥ दिवा रत्ति ति वा बूया रत्तिं ति य वियागरे । सस्सस्स वापदं पुच्छे अत्थि त्तेवं वियागरे । २२६ ।। सस्सस्स संपयं पुच्छे मज्झिमं ति वियागरे । सतिं च जति पुच्छेज्ज सई तत्थ पवेदये ।। २२७ ॥ थीणामधेयं जं चऽण्णं पभूतमिति णिद्दिसे । णटुं ति परिपुच्छेज्ज णत्थी णटुं ति णिद्दिसे ॥ २२८ ।। णट्ठमाधारइत्ताणं थीणाममिति णिद्दिसे । णट्ठस्स लाभं पुच्छेज्ज णत्थि लाभो त्ति णिद्दिसे ॥ २२९ ॥ 20 ............ I] पलातसंगमं पुच्छे णत्थि तेवं वियागरे ॥ २३० ॥ वणिधाणं णिधितं पुच्छे णत्थि त्तेवं वियागरे । 'णिधाणलंभं पुच्छेज्ज णत्थि लेभो त्ति णिद्दिसे ।। २३१ ॥ सेवाणिमित्तं पुच्छेज्ज णत्थि सेव त्ति णिद्दिसे । रायप्पसादं पुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे ॥ २३२ ॥ रायतो णिव्वुर्ति पुच्छे वल्लभत्तं च पुच्छति । भोगलंभं तधा[5]ण्णं वा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ २३३ ॥ तधाऽधिकरणे सिद्धि लाभं पुच्छति कम्मिको । तधा पतिटुं छायं वा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ २३४ ॥ 25 मणि च परिपुच्छेज्ज अधण्णो पावकम्मिको । कुलं मणि णिमित्तं च अवसिद्धेण संसितो ॥ २३५ ॥ अच्छादणं च पुच्छेज्ज अधण्णं पावकं ति य । अच्छादणनिमित्तं च कुलस्साऽऽयासमादिसे ॥ २३६ ॥ भूसणं परिपुच्छेज्ज अधण्णं पावकं ति य । अप्पसत्थं च तं बूया कुलस्साऽऽयासकारणं ॥ २३७ ॥ घरप्पवेसं पुच्छेज्ज अधण्णं पावकं ति य । अणिव्युतिकरं पावं चलं णेव पसस्सते ॥ २३८ ॥ णिचयं भंडलाभं च दव्वस्स य स णिव्वुर्ति । वाधि लंभं च एतेसु णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ २३९ ॥ 30 दासकम्मकरं पुच्छे अधण्णं पावकं वदे । आएसकारकं णिच्चं उवातं ण य काहिति ॥ २४० ॥ पुण्णामधेयं जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे । थीणामधेयं जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ २४१ ॥ १ "कारिकलई व द्धलं वा वि हं० त० विना ॥ २ णद्दोसकं हं० त० विना ॥ ३ एतच्चिह्नमध्यगतं पूर्वार्द्ध हं० त० नास्ति ॥ ४ णिहाणलाभं हं० त० सि० ॥ ५ लाभो हं० त० । ६ अधणो हं० त० ॥ ७ दव्वस्स य सन्निधिं । वाधि सं ३ पु० । दव्वसेव य सन्निधि । वाधि सि० ॥ अंग० १० Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 अंगविजापाणथं [२ पण्णत्तरिं पुरिसो णपुंसको इत्थी इत्थि त्ति [य] वियागरे । धणं धणं च पुच्छेज्ज सव्वं मज्झिमगं वदे ॥ २४२ ।। जं किंचि पसत्थं सा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च पुच्छेज्ज अत्थि तेवं वियागरे ॥ २४३ ॥ तधा खेत्तं तधा वत्थं सब स्थिति णिद्दिसे । सव्वे (समे) सद्दे य जाणेज्ज थीणामा जे भवंति य ॥ २४४ ।। अहोमहिल त्ति वा बूया महिला सुमहिल ति वा । अहोइत्थि त्ति वा बूया सुइत्थी इत्थिमेव य ।। २४५ ॥ दारिया बालिया व त्ति सिंगिका पिल्लिक लिखा । बच्छिका तण्णिका व त्ति पोतिक त्ति व जो वदे ॥ २४६ ॥ कण्ण त्ति वा कुमारि त्ति धिज्जा पत्ति वधु ति बा । बधू उपवधू व त्ति इत्थिया पमद त्ति वा ॥ २४७ ।। अंगणा महिला णारी पोहट्टी जुवति ति वा । जोसिता धेणिता व त्ति विलक त्ति विलासिणी ॥ २४८ ॥ इट्रा कंता पिया व ती मणामा हितइच्छिता । इस्सरी सामिणी बत्ति तथा वालभिक त्ति वा ॥ २४९ ॥ पज्जिया अज्जिया व त्ति < नानिका मह मातुया । माता वा चुल्लमाता वा माउस्सिय पितुस्सिया ॥ २५० ॥ भज्जा जारि सही व त्ति धूता णत्ति पणतिणी । रेमा त सुमह सावत्ती सल्लिका मेधुण त्ति वा ॥ २५१ ।। भातुज्जाय त्ति वा बूया सगोत्ता भगिणि त्ति वा । भागिणेज्जे त्ति भज त्ति तथा कोडुंबिणि त्ति वा ।। २५२ ।। पितुस्सहा माउस्सहा वा जधा णेयातुकासहा । एतासं कितणेणं ता थीणामं सव्वमादिसे ॥ २५३ ।। इत्थीरयणं ति वा बूया महादेवि त्ति वा पुणो | रायपत्ति त्ति वा बूया रायग्गमहिसि त्ति वा ॥ २५४ ॥ रायोपण्जायपत्ति त्ति सेणायपतिणि त्ति वा । भोयणी तलवरी व त्ति रट्ठिणी गामिणि त्ति वा ॥ २५५ ॥ अमच्ची दल्लभी व त्ति पडिहारि त्ति वा पुणो । तधिस्सरिगिणी व त्ति तधा भोइणिगि त्ति वा ।। २५६ ॥ छायाकरणठाणेण ठाबिता जे सऽधिस्सरा । 'जे यत्थाणजाते पुरिसा माता भज्जा वि सिं तधा ॥ २५७ ॥ घरिणी सत्थवाहि ति इछभी बा भोगमित्ति वा । भडी णडी कारुगिणी तधा सहिगिणी त्ति वा ।। २५८ ।। लाडी [वा] जोणिका व ति चिलाती बब्बरि त्ति वा । सबरि त्ति पुलिदि त्ति अंधी दिमिलि त्ति वा ॥ २५९ ॥ जाति-स्स-देस-कम्माणं विज्जा-सिप्पकमेण वा । ये यत्थाणजाते पुरिसा ताओ वि य तधेय सि ॥ २६० ।। जं जो समाचरे कम्मं जंजातीको व्व जो भवे । तेसि भज्जा वि णातव्वा तेणेवाभिजणेण तु ॥ २६१ ।। गणणामा लाजिका व त्ति उवधाइणि ति वा । दासी कॅम्मकरी व त्ति पेसि त्ति नेत्तिक त्ति वा ॥ २६२ ॥ पयावति ति वा बूया अणे भोति त्ति वा पुणो । भोति त्ति माणिणी व त्ति मातुस्स त्ति व जो वदे ॥ २६३ ।। बंभणी खत्तियाणि त्ति वेस्सी सुद्दि त्ति वा पुणो । चातुधणविधाणेण णामतो जं जधुच्चते ॥ २६४ ॥ ओवातिक त्ति वा बूया सामोवात त्ति वा पुणो । कालस्साम त्ति साम त्ति कालक त्ति व जो वदे ॥ २६५ ॥ दिग्घा मडहिया व त्ति चतुरस्स त्ति वा पुणो । चतुरस्सा वाऽऽयता व त्ति खुज्जा मडहिक त्ति वा ॥ २६६ ॥ थूल त्ति तणुकी व त्ति तधा मज्झिमक त्ति वा । सरला असरला व त्ति कोण त्ति सहु त्ति वा ॥ २६७ ।। तधंतेपुरिका व त्ति अभोगाकरिणि त्ति वा । तधा सयणपालि त्ति भंडाकारिकिणि त्ति वा ॥ २६८ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं थीकलाकम्मणं ति वा । तासं संकित्तणासद्दा थीणामसमलक्खणा ॥ २६९ ।। १ वासिया हं० त० विना ॥ २ त्ति पत्तिक त्ति हं० त० ॥ ३ त्ति विज्जा सप्र० ॥ ४ एत्ति दवु त्ति हं० त० ॥ ५ वणिता सप्र० ॥ ६ पिया पत्ती सि० विना ॥ ७ एतच्चिह्नगतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ २६ कोण त्ति हं० त० विना ॥ २७ आभागाकिरिणि हं० त० ॥ २८ जं चऽण्णं पवस्थिकाला कम्मिणच्चति । तासं सं ३ पु० । जं चऽण्णं पवस्थिकाला कम्मण व त्ति । तासं हं० त० । जं चण्णं एवमादीयं स्थिकाला कम्मिण व त्ति । तासं सि० ॥ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीणामा ] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ थीणामा माणुसा सद्दा इच्चेते परिकित्तिता । एत्तो अमाणुसे सद्दे कित्तयिस्सं अतो परं ।। २७० ।। असुरी असुरभज्जा वा असुरकण्ण त्ति वा पुणो । णागी [वा] णागकण्णा वा जा वऽण्णा भवणालया ।। २७१ ।। गंधव्वी रक्खसी व त्ति जक्खी किन्नरक त्ति वा । वणप्फति दिसा व त्ति तारक त्ति व जो वदे ॥ २७२ ॥ कित्ति मेधा सति त्ति य । हिरी सिरि त्ति लच्छित्ति धिती िित्त तु बुद्धि त्ति इला सीत त्ति वा पुणो ।। २७३ ।। २७५ ॥ ० २७६ ।। विज्जा वा विज्जता व त्ति चंदलेह त्ति वा पुणो । उक्कोससत्ति वा बूया अब्भराय त्ति वा पुणो ॥ २७४ ॥ अहोदेवि त्ति वा बूया देवी वा देवत त्ति वा । देवकण्ण त्ति वा बूया असुरकण्ण त्ति वा पुणो ॥ इंदग्गमहिसी व त्ति असुरग्गमहिसि त्ति वा । तधा अँइरिका व त्ति तधा भगवति त्ति वा ॥ अलंबुसा मिस्सकेसी मीणका मियदंसणा । अचला अणादिता वत्ति अइराणि त्ति वा वदे ॥ २७७ ॥ रंभ त्ति मिस्सकेसि त्ति तिधिणी सालिमालिणी । तिलोत्तिमा चित्तरधा चित्तलेह त्ति उव्वसी ॥ २७८ ॥ जा वऽण्णा एवमादीया अच्छरायि वि सूयते । णामसंकित्तणे तासि थीणामं सव्वमादिसे ॥। २७९ ।। अमाणुसाणि एताणि थीणामाणि वियाणिया । चतुप्पदेसु किन्त्तिस्सं थीणामाणि अतो परं ॥ २८० ॥ 15 कणेरु हत्थणी वत्ति गावि त्ति महिसि त्ति वा । वडव त्ति किसोरि त्ति घोडिक त्ति अजाऽविला ॥ २८१ ॥ कंण्हेरी रोहिती व त्ति एणिका पसति त्ति वा । कुरंगि त्ति मिगी वत्ति भल्लुंकी सुणहि त्ति वा ॥ २८२ ॥ सीही वग्घी "विकी वत्ति अच्छभल्लि त्ति वा पुणो । मज्जारी मुंगसी व त्ति उन्हाली अडिल त्ति वा ॥ २८३ ॥ मूसिका छुछिका वत्ति ओवुलीक त्ति उंदुरी । वाराही सुवरी कोली खारका घरकोइला ॥ २८४ ॥ जं चणं एवमादीयं थीणामं तु चतुप्पदं । णामसंकित्तणे सद्दे थीणामं सव्वमादिसे ॥ २८५ ॥ चतुष्पाणि ताणि थीणामाणि भवंतिह । थीणामधेये पैक्खीओ कित्तयिस्समतो परं ॥ २८६ ॥ २८९ ॥ । "विल्लरी रायहंसि त्ति कलहंसि त्ति वा पुणो । 'कोकि त्ति सौलिया व त्ति पूँतणा सकुणि त्ति वा ॥ २८७ ॥ गिद्धी सेणि त्ति काकि त्ति घूकी वा गंतुक त्ति वा । उलुकी मालुका व त्ति "सेणा सीपिंजुल त्ति वा ॥ २८८ ॥ 20 कीरी मदणसलाग त्ति सालाका कोकिल त्ति वा । पिरिली कुडपूरि त्ति भारद्दाइ त्ति वा पुणो ॥ लाविका वट्टिका व त्ति सेण्ही वा कुक्कुडि त्ति वा पैलाडीक त्ति पोटाकी सउणीग त्ति वा पुणो ॥ आडा टिट्टिभिका व त्ति णडिकुक्कुडिक त्ति वा सडिक त्ति बलाक त्ति चक्कवायि त्ति वा पुणो ॥ एवं थीनामका पक्खी समासेण तु कित्तिया । परिसप्पगते वोच्छं थीणामेण अतो परं ॥ २९२ ॥ लुंडी अहिणूक त्ति जलूका अहिणि त्ति वा । वोमीक त्ति सिकूवाली कुलीरा कच्छभि त्ति वा ।। २९३ ।। 25 वत्तणासी सिगिलाय सिकुत्थी वरइ त्ति वा । ओवातिक त्ति मंडुक्की सुंसुमारि सालिका ॥ २९४ ॥ एवमादी समासेण थीणामा जे जलचरा । णामतो समुदीरंति थीणामसमका हि ते ॥ २९५ ॥ । गोधा गोमि त्ति वा बूया तधा मंडलिकोरिका । भिंगारी अरका वत्ति वचाई इंदगोविगी ॥ २९६ ॥ ६९ १० Do एतच्चिह्नगतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ २०० एतच्चिह्नमध्यगतः सार्द्ध श्लोकः हं० त० नास्ति ॥ ३ इंदत्तमहिसी वत्ति असुर त्ति मह त्ति वा हं० त० ॥ ४ अइरका हं० त० ॥ ५ वियदंसणा हं० त० विना ॥ ६ अप (य)ला हं० त० विना ॥ ७ तिधणि हं० त० विना ॥ ८ राति वि हं० त० ॥ ९ कण्हेणा रो हं० त० विना ॥ १० वकी हं० त० ॥ ११ अंगुली व त्ति हं० त० ॥ १२ छुछुका व त्ति उंभुलीक हं० त० ॥ १३ पक्खीतु हं० त० विना ॥। १४ किण्णरी हं० त० सि० ॥ १५ जाजि त्ति हं० त० ॥ १६ सालिभा व सप्र० । १७ पूवणा सकुज्झि त्ति हं० त० ॥ १८ भेणा सीपिंजलि त्ति हं० त० ॥ १९ लीहिका वहिका व त्ति सण्ही वा कुखुडि हं० त० ॥ २० पोलाडिक त्ति पोताकी हं० त० ॥ २१ मल्लंडी हं० त० ॥ २२ कुल्लरी हं० त० ॥ २३ सिकुण्डी सि० । सिकुही हं० त० ॥ २४ असासिका हं० त० विना ।। २५ कारिमा सं ३ पु० | २६ अरवा कतिं वचाई हं० त० विना ॥ २७त्ति बंधवाई इंदुगोधिंगा हं० त० ॥ २९० ॥ २९९ ॥ 5 10 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णय [२ पण्णत्तरि तूका लिक्खा फुसी व त्ति तधा मुम्मुलक त्ति वा । जाला लुत ति वा बूया भिउडी किणिहि तधा ॥ २९७ ।। तला कभेइका व त्ति उण्हणाभि त्ति वा पुणो । काणटिट्टि ति वा बूया मयंसल-किपिल्लिका ॥ २९८ ॥ जा वऽण्णा किमिजातीणं सुहुमा बादरा इ वा । थीणामा य उदीरंति थीणामसमका हि ते ॥ २९९ ॥ इच्चेते पाणजोणीयं थीणामा जे पवेदिता । मूलजोणिगता सद्दा थीणामसमका इमे ॥ ३०० ॥ तत्थ5 रुक्खजोणि[ग]ए रुक्खे थीणामे परिकित्तिये । थीणामधेज्जेहिं समा ते वि सद्दा विधीयते ॥ ३०१ ॥ पिप्परी वेडसी जंबू तधा ते परिकित्तिता । तधा अंबिलिका व त्ति वेदे चिचिणिक त्ति वा ॥ ३०२ ।। तधा मंडि त्ति सीवण्णि कज्जूरी केतभि ति वा । कडूकीका तिबुरुकी धकंटि वेल्लरि तेरणि ॥ ३०३ ॥ अरलूसाऽऽमली सेवपूति लंवा(चा)पलि त्ति वा । सीकवल्लोकि लिंगिच्छी हिंछाघोड त्ति वा पुणो ॥ ३०४ ॥ टक्कारी वेजयंति त्ति कंगूका सीसवत्तिया । अप्फोतिका धवासि त्ति सिंदीवासि त्ति वा पुणो ॥ ३०५ ॥ 10 तधा समुद्दवल्लि त्ति कप्पासी रुचिक त्ति वा । उंगुणी मातुलिगि त्ति णीहू वा आफकि त्ति वा ॥ ३०६ ॥ तथाऽरंजरवल्लि त्ति उदगवल्लि त्ति वा पुणो । कूभंडी तवुसी व त्ति भवे पल्लालुक त्ति वा ॥ ३०७ ॥ तुंबी कालिंगी वालुंकी [तधा] कक्खारुणि त्ति वा । नलिणी पउमिणी व त्ति तधा कमलिणि त्ति वा ॥ ३०८ ॥ उप्पलिणी [.......... ..................] पिंडालुकि त्ति वा ॥ ३०९ ॥ घोसाडकि ति वा बूया ससबिंदुकिणि त्ति वा । तधा भंजुलिका व त्ति कसकी कारिअल्लिका ॥ ३१० ॥ णीलि त्ति कालिका व त्ति अंजणेकसक त्ति वा । लता लट्ठि त्ति वा बूया छमिणी काणवि त्ति वा ॥ ३११ ।। दुम-गुम्म-लता व त्ति लोए थीणामका व ये । भवंति एवमादीणि थीणामसमकाणि ते ॥ ३१२ ॥ लता-वल्लि–दुमाणं च लोए गुम्माणमेव य । पुष्पाणि य पवक्खामि थीणामाणि अतो परं ॥ ३१३ ॥ जाति चंपयजाति त्ति महाजाति त्ति वा पुणो । सुवण्णजूधिगा व त्ति जूधिक त्ति व जो वदे ॥ ३१४ ।। तक्कुली तलुसी व त्ति वासंती वासुल ति वा । वइंदवुद्धि काल त्ति जयसमण त्ति वा पुणो ॥ ३१५ ॥ णवमल्लिका मल्लिक त्ति णितणिक त्ति वा पुणो । तिनिच्छि पीतिका व त्ति तधेव म[ग]यंतिका ॥ ३१६ ॥ . पियंगुक त्ति वा बूया कंगुक त्ति व जो वदे । कुरुडूक त्ति व वदे वैणति त्ति व जो वदे ॥ ३१७ ॥ तधंबमंजरी व त्त जा वऽण्णा पुप्फमंजरी । पुष्फपिडिया बूया पुष्फगोच्छि त्ति वा पुणो ॥ ३१८ ।। इच्चेते पुप्फजोणीयं थीणामा परिकित्तिता । थीणामं पुष्फसंजोगं कित्तयिस्सं अतो परं ॥ ३१९ ॥ चंदा तीसालिका व त्ति पारिहत्थि ति वा पुणो । कुभिंधि धम्मि जागि त्ति तेधेव य विलिंजरं ॥ ३२० ॥ पाट्टालिका वेजयंति तधा मज्जणमालिका । जंगमाल त्ति वा बूया तधा खोलकमालिका ॥ ३२१ ॥ पुप्फजोणी समासेण इच्चेसा परिकित्तिता । थीणामाणि फलाणिं तु कित्तयिस्समतो परं ॥ ३२२ ॥ मुंदिका चलिका चेव तधेव य कसेरुका । मुणालिक त्ति वा बूया तधा विधित्तिक त्ति वा ॥ ३२३ ॥ १ लूका हं० त० ॥ २ मुम्मुलिक हं० त० ॥ ३ किणिदित्तहा हं० त० ॥ ४ कभेरुका व त्ति उंटेणाभि हं. त० ॥ ५ काणो डिद्धि त्ति हं० त० ॥ ६ वदे विविणिकं ति वा सं ३ पु० सि० । वदे विविलिकं ति वा हं० त० ॥ ७ कहकीका तिंवरुकी वकंटिखल्लरिएरणिं हं० त० ॥ ८ सेलूपूति लंवापति त्ति हं० त० ॥ ९ अहोति हं० त० ॥ १० सिंदी वा सिण्णि वा पुणो हं० त० ॥ ११ आटा ढ) कि हं० त० ॥ १२ “कसिक हं० त० ॥ १३ 'मकं च ये सं ३ पु० सि० । मकं च यं हं० त० ॥ १४ का हि ते सप्र० ॥ १५ जाति चए जाति त्ति सं ३ पु० सि० । जोइवयजाति त्ति हं० त० ॥ १६ तकुली हं० त० ॥ १७ वुद्धि कालाणि जय' सि० विना ॥ १८ णवमालिका मल्लिक त्ति तिणितित्तिक त्ति वा हं० त० विना ।। १९ वणवि त्ति हं० त० ॥ २० "जोणीया हं० त०॥ २१ कुभिविवम्मिजाग हं० त० ॥ २२ तवेयं विलिजरं हं० त० ॥ २३ वाहालिका हं० त० ॥ २४ मुद्दिका चिंचलिका हं० त० विना ॥ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 थीणामा] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ ७१ तधा लोमसिका व त्ति अक्खोल त्ति व जो वदे । तधा कुक्कुडिगा व त्ति तथा संगलिक त्ति वा ॥ ३२४ ॥ फलपिडि त्ति वा बूया फलगोच्छो त्ति वा पुणो । फला फलिक त्ति वा बूया फलमाल त्ति वा पुणो ॥ ३२५ ॥ तधेव फल मिजासु फलाणं पेसिकासु वा । एवमादीसु सव्वेसु थीणाममभिणिद्दिसे ॥ ३२६ ।। फलजोणी समासेण इच्चेसा परिकित्तिता । थीणामधेये आहारे कित्तयिस्सं अतो परं ॥ ३२७ ।। दुद्भुण्हिक त्ति वा बूया तधेव उदक(कु)ण्हिका । समगुण्हिक ति वा बूया जागु त्ति कसरि त्ति वा ॥ ३२८ ॥ 5 अंवेल्लि ति व जो बूया पत्तंबेल्लि [त्ति] वा पुणो । वालकल्लि त्ति वा बूया तेक्कुलि त्ति व जो वदे ।। ३२९ ।। तथा कुम्मासपिडि त्ति सत्तुपिंडि त्ति वा पुणो । तथा तप्पणपिंडि त्ति इतिपिडि त्ति वा पुणो ॥ ३३० ॥ तधा ओदणपिडि त्ति तिलपिडि ति वा पुणो । पीढपिडि त्ति वा बूया रच्छाभि(भ)त्ति व जो वदे ॥ ३३१ ॥ रसाल त्ति व जो बूया पडमटुं त्ति वा पुणो । चोरालि त्ति व जो बूया अंबपिंडि त्ति वा पुणो ॥ ३३२ ॥ तधा अंबकधूवि त्ति तधा उल्लूरधूविता । अंबाडगधूवि वऽण्णा धूपिता भवे ॥ ३३३ ॥ चतुव्विहम्मि आहारे जं जं थीणामकं भवे । णामसंकित्तणे तस्स थीणामसममादिसे ॥ ३३४ ॥ थीणामधेज्जा आहारा इच्चेते परिकित्तिया । अच्छादणं तु थीणामं कित्तयिस्समतो परं ॥ ३३५ ॥ पंउण्ण ति पएणि त्ति वण्णा सोमित्तिकि ति वा । अद्धकोसिज्जिका व त्ति तधा कोसेज्जिका पि वा ।। ३३६ ॥ पसरादि त्ति वा बूया पिगाणा दियवंतरा । लेख त्ति वाउकाणि त्ति तधा वेलविक त्ति वा ॥ ३३७ ॥ तेधा Do परत्तिका व त्ति भवे माहिसिक त्ति वा । G इल्ली कटुतरी व त्ति तधा जामिलिक त्ति वा क ॥ ३३८ ॥ सण्हा थूल त्ति वा बूया सुवुता दुव्वुत ति वा । अप्पग्घा वा महग्घा वा अहता धोतिक त्ति वा ॥ ३३९ ।। जं चऽण्णं एवमादीयं लोए थीणामकं भवे । वत्थसंकित्तणे तासं थीणामसममादिसे ॥ ३४० ॥ अच्छादणं तु थीणामं इच्चेतं परिकित्तितं । भूसणाणि तु कित्तेस्सं थीणामाणि अतो प्परं ।। ३४१ ।। सिरीसमालिका व ति तधा णलियमालिका । तथा मकरिका व त्ति ओराणि त्ति वा पुणो ॥ ३४२ ।। 20 पुष्फितिक त्ति वा बूया मंकण्णी लकड त्ति या । वालिका कण्णवल्लीका कण्णिका कुंडमालिका ।। ३४३ ॥ सिद्धत्थिक त्ति वा बूया तधा अंगुलिमद्दिका । तधsक्खमालिका व त्ति तधा वा संघमालिका ॥ ३४४ ॥ पयुका णितरिंगि त्ति तधा कंटकमालिका । घणपिच्छिलिका व त्ति तधा वा वि विकालिका ॥ ३४५ ॥ एकावलिका व त्ति तधा पिप्पलमालिका । हारावलि त्ति वा बूया अंधा मुत्तावलि त्ति वा ॥ ३४६ ॥ कंची च रसणा व त्ति जंबुका मेखल त्ति वा । कंटिक त्ति व जो बुया तधा संपडिक त्ति वा ।। ३४७ ॥ 25 पौमुद्दिक त्ति वा बूया वम्मिका पाअसूचिका । तधा पाघट्टिका व त्ति तधा खिखिणिक त्ति वा ॥ ३४८ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं थीणामं भूसणं भवे । णामसंकित्तणे तेसिं थीणामं सव्वमादिसे ॥ ३४९ ॥ भूसणाणि तु सव्वाणि थीणामाणि समासत । सयणा-ऽऽसणाणि जाणाणि कित्तयिस्समतो परं ॥ ३५० ।। १ नामसिका हं० त० ॥ २ "मिजेसु हं० त० ॥ ३ दुद्धहि हं० त० ॥ ४ सम्मिगुम्मिक हं० त० ॥ ५ ताल' हं० त० ॥ ६ तकुलि हं० त० ॥ ७ कम्मास सप्र० ॥ ८ पिंडपिंड हं० त० विना ॥ ९ वारालि हं० त० विना ॥ १० अंधपिडि हं० त० ॥ ११ अंधकधूवि हं० त० ॥ १२ त्तिगा जा हं० त० ॥ १३ पत्तुण्ण त्ति पपण त्ति हं० त० विना ॥ १४ "काण त्ति हं० त० विना ॥ १५ <एतच्चिह्नगतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ १६ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठ हं० त० एव वर्तते ॥ १७ आवया धोत्तिक हं० त० ॥ १८ मकणी लकुड हं० त० विना ॥ १९ 'मुद्दिका हं० त० ॥ २० पेयुका णितिरिगि हं० त० ॥ २१ अध हं० त० ॥ २२ कंटक हं० त० विना ॥ २३ जामुद्दि हं० त० । २४ "सूरिका हं० त० विना ॥ २५ पाघंटिका पु० ॥ २६ “सओ हं० त० ॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ 5 10 अंगविज्जापइण्णय [३ अट्ठावण्णं सेज्जा खट्टा भिसी व त्ति आसंदी पेढिक त्ति वा । महिसाहा सिला व त्ति फलकी ईट्टक त्ति वा ॥ ३५१ ॥ सकडि त्ति व जो बूया सकडीक त्ति वा पुणो । चिल्ली गिल्लि ति वा बूया सिबिका संदमाणिका || ३५२ ॥ सयणा-ऽऽसण-जाणाणि थीणामाणि समासत । कित्तियाणि पवक्खामि भायणाणि समासत ॥ ३५३ ॥ __ करोडी कंसपत्ति त्ति पालिका सरिक त्ति वा । भिंगारिका कंचणिका तधा कवचिक त्ति वा ।। ३५४ ।। जं चऽण्णं एवमादीयं थीणामं भायणं भवे । णामसंकित्तणे तेसिं थीणामसममादिसे ॥ ३५५ ॥ भायणाणि तु वुत्ताणि थीणामाणि समासत । थीणामाणि पवक्खामि भंडोवगरणाणि तु ॥ ३५६ ॥ अलंदिक त्ति पत्ति त्ति उक्खली थालिक त्ति वा । कालंची करकी व त्ति कुठारीक त्ति वा पुणो ।। ३५७ ॥ थाली मंडी घडी दव्वी केला उट्टिक-माणिका । णिसका आयमणी चुल्ली फूमणाली समंछणी ॥ ३५८ ॥ मंजूसिका मुद्दिका य सलाकंजणि पेल्लिका । धूतुल्लिक त्ति [...] व त्ति पिच्छोला फणिका पि वा ॥ ३५९ ॥ दोणी उक्कुलिणी पाणि अमिल त्ति बुध त्ति वा । तधा पडालिका व त्ति तवि वत्थरिक त्ति य ॥ ३६० ॥ जं चऽण्णमवि थीणाम भंडोवगरणं भवे । णामसंकित्तणे तेसिं थीणामं सव्वमादिसे ॥ ३६१ ॥ भंडोवगरणं एतं थीणामं परिकित्तियं । आयुधाणि पवक्खामि थीणामाणि अतो परं ॥ ३६२ ॥ कुँद्दालि त्ति कुठारि त्ति वासि त्ति छुरिक ति य । दव्वी तध कवल्ली य दीविक त्ति कडच्छकी ।। ३६३ ॥ जं चऽण्णमपि थीणामं दव्वं लोहमयं भवे । णामसंकित्तणे तासं थीणामसममादिसे ॥ ३६४ ॥ मणीसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु त । जं जं थीणामकं भवति तं तं थीलक्खणं भवे ॥ ३६५ ।। सुवण्णकाकणी व त्ति तधा मासककाकणी । तधा सुवण्णगुंज त्ति दीणारि त्ति व जो वदे || ३६६ ॥ हिरण्णम्मि तु सव्वम्मि जं जं थीणामकं भवे । णामसंकित्तणे तासं थीणामसमलक्खणं ॥ ३६७ ॥ तधा सव्वेसु धन्नेसु जं जं थीणामकं भवे । णामसंकित्तणे तेसं सव्वं थीणामकं भवे ॥ ३६८ ॥ एवमेतेसु सव्वेसु पवित्तिसु यधक्कम । जं जं थीणामकं भवति सव्वं तं समलक्खणं ॥ ३६९ ॥ थीणामधेज्जे णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि वा । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गामे गिहे पि वा ॥ ३७० ॥ पुरिसे चतुप्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लके वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ ३७१ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि तधेवाऽऽभरणेसु य । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ ३७२ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणि[सु] वा वि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ३७३ ॥ [एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य ।] सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूया अंगचितको ॥ ३७४ ॥ ॥ थीणामाणि सम्मत्ताणि ॥ २ ॥ छ ॥ 15 20 [३ अट्ठावण्णं णपुंसका] अट्ठावण्णं तु णातव्वा पुरिसंगे णपुंसका । उद्देसंतरभागा य जंघोरूणं च जे भवे ॥ ३७५ ॥ अक्खिकूडंउंसकूडाणि कुक्खंतर-भुमंतरं । अंगुली अंतराणि च अंगे णिण्णाणि जाणि य ॥ ३७६ ॥ केस-मंसु-णहं लोमं अंगाणि मज्झिमाणि य । एते अंगम्मि णातव्वा अट्ठावण्णं णपुंसका ॥ ३७७ ॥ 30 णपुंसकाणि जाणंगे अण्णाणि वि भवंति ह । णपुंसकेहिं ताणि पि णिद्दिसे अंगचिंतओ ॥ ३७८ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं किंचि पसत्थं सा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ३७९ ॥ १ इट्ठक हं० त० ॥ २ थाली गिल्ल त्ति हं० त० । थाली गिण्हि त्ति सं ३ पु० सि० ॥ ३ अलिंदक सि० ॥ ४ करवी हं० त० ॥ ५ केणा-उहिक-माणिवा हं० त० ॥ ६ मकुंसिका मुद्दिका य सणा कंजणि पेलिका हं० त० विना ॥ ७ एवं हं० त०॥ ८ कुडालि हं० त० विना ॥ ९त्ति य दुच्छकी हं० त० ॥ १० चतुरस्रकोष्ठकगतं पूर्वार्द्धमिदं प्रतिषु नास्ति ॥ ११ च जं भवे हं० त० विना ॥ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णपुंसकाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ ७३ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज अधण्णो दूभगो त्ति य । असिद्धत्थो त्ति तं बूया एतेसामुपवेसणे ॥ ३८० ।। असेसो आइलो चेव वयोगतमणो णरो । परिकिलेसाभिगते भोगे अप्पे तु भुजति ॥ ३८१ ।। इत्थि वा परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग ति य । असिद्धस्था असेसा य इत्थीयमिति णिदिसे ॥ ३८२ ॥ अणीसरी कुटुंबस्स ण य कस्सति सामिणी । आइला सपरिकेसा भोगे भुंजे जेधेच्छया ॥ ३८३ ॥ अविधेयो य से भसा सा व भत्तु वसे भवे । बहुरोगा अप्परोगा बहुपच्चत्थिका भवे ॥ ३८४ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज अधण्णा हूंभग सिं घ । असिद्धत्था असेसा य विज्जते अचिरेण य ॥ ३८५ ॥ तं पंडगं समासेण पंडगस्स वियाणिया । विज्जेस्सत्ति लि त खूषा सेवितम्मि णपुंसके ॥ ३८६ ॥ गब्भं पुच्छे ण भविस्सति त्ति जाणे णपुंसकं च तं । इत्थी वा पुरिसी वा वि एगमेगसमागमं ॥ ३८७ ॥ णत्थि त्ति तं वियाणीया पुच्छिओ अंगचितओ । रहे संजोगपुच्छायं थीपुर्मसैण पसरसते ॥ ३८८ ॥ दव्वाभिगमणं णत्थि ववहारो णिरत्थको । पंडकस्स य कम्माणि जाणि तस्स परस्स वा ॥ ३८९ ॥ 10 कम्मपुच्छाय णिद्देसे एवमादि फलं वदे । पवासो पुच्छिते णत्थि पउत्थो य णिरत्थकं ॥ ३९० ॥ विवादे वा जयं पुच्छे जयो णत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोग परिपुच्छेज्जा त्थि त्तेवं वियागरे ॥ ३९१ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्जा अस्थि त्तेवं वियागरे । मरणं च परिपुच्छेज्जा अस्थि तेवं वियागरे ॥ ३९२ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्जा णत्थि त्तेवं वियागरे । आबाधितं च पुच्छेज्जा ण समुहिहिति सि सो ॥ ३९३ ॥ अणावुढेि च पुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । वासारत्तं च पुच्छेज्ज जहण्णो त्ति वियागरे ॥ ३९४ ॥ 15 अपातपं च पुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे । वासं चे परिपुच्छेज्ज मोहं मेहं वियागरे ॥ ३९५ ॥ F संस्सस्स संपयं पुच्छे जहण्णा सस्ससंपया । 9 सस्सस्स वापदं पुच्छे अस्थि तेवं वियागरे ।। ३९६ ॥ णटुं च परिपुच्छेज्जा णत्थि णटुं ति णिद्दिसे । णट्ठमाधारए तं च णिरत्थं णट्ठमादिसे ॥ ३९७ ॥ पुरुसो णपुंसको इत्थी णपुंसो त्ति वियागरे । धणं धणं ति पुच्छेज्जा अधण्णं ति वियागरे ।। ३९८ ॥ जं [च] किंचि पसत्थं [सा] सव्यं णत्थि त्ति णिद्दिसे । 20 जं किंचि अप्पसत्थं च सव्वमत्थि ति णिदिसे ॥ ३९९ ॥ छ - तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वं णत्थि ति णिधिसे । सव्वे सद्दे य जाणेज्जा जे भवंति णपुंसका ।। ४०० ॥ णपुंसको अपुरुसो चिल्लिको सीतलो त्ति वा । पंडको वातिको वा वि किलिमो वा सेंकरो ति वा ॥ ४०१ ॥ कुंमीकपंडकं जाणे इस्सापंडकमेव य । पक्खापक्खि व विक्खो य संढो वा वि णरेतरो ॥ ४०२ ।। एते णपुंसका सद्दा णक्खत्ताणंतरे तधा । णक्खत्तदेवंतरए कीलेयेयंतरे तधा ॥ ४०३ ॥ 25 भायणंतरते या वि वत्थमाभरणंतरे । उवकरणमंतरे चेव धण-धण्णंतरे तधा ॥ ४०४ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतव्वं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ४०५ ॥ . ॥णपुंसकाणि सम्मत्ताणि ॥ ३ ॥ छ ॥ [४ सत्तरस दक्खिणाणि] सत्तरस दक्खिणाणंगे पवक्खामऽणुपुव्वसो । सीसस्स दक्खिणो भागो १ कण्णो यो वा वि दक्खिणो २ ॥ ४०६ ॥ 30 अक्खी ३ भम् ४ हणू वा वि ५ गंडो जो यावि दक्खिणो ६ । गीवा ७ अंसो य ८ बाहू य ९ थणो १० हत्थो य दक्खिणो ११ ॥ ४०७ ॥ पस्सं १२ वसणो १३ ॐरू य १४ जाणू १५ जंघा य दक्खिणा १६ । पादो य दक्खिणो णेयो १७ एवं सत्तरसाऽऽहिया ॥ ४०८ ।। १ जयिच्छया हं० त० ॥ २ हस्तच्चिह्नान्तर्गत पूर्वार्द्ध हं० त० एव वर्त्तते ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतमुत्तरार्द्ध हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ चिण्णको हं० त० ॥ ५ "संवरो हं० त० ॥ ६ मंतणे चेव हं० त० ॥ ७ जतू य हं० त० ॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 ७४ अंगविज्जापइण्णयं [४ सत्तरस दक्खिणाणि एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । पसत्थं जत्तियं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ४०९ ॥ पुरुसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । दाहिणाचारभागी य पुरुसोऽयमिति णिद्दिसे ॥ ४१० ॥ इत्थि वा परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । दक्खिणाचारभागी य इत्थीयमिति णिदिसे ॥ ४११ ॥ पुरुसस्सऽढुविधं पुच्छे बूया तं तु पदक्खिणं । थियो अट्ठविधं पुच्छे आदितो तं पयक्खिणं ॥ ४१२ ।। कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य ण खिप्पं तु गमिस्सति ॥ ४१३ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्ज अस्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गम्भिणी परिपुच्छेज्ज इमं पक्खं पजाहिति ॥ ४१४ ॥ पुत्तलाभं च पुच्छेज्ज दक्खिणो य भविस्सति । कम्मं च परिपुच्छेज्ज रायमभंतरं भवे ॥ ४१५ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज पवासो सफलो भवे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज इमं पक्खं स एहिति ॥ ४१६ ॥ बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि बंधो त्ति णिद्दिसे । बंधस्स मोक्खं पुच्छेज्ज अत्थि मोक्खो त्ति णिद्दिसे ॥ ४१७ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । पतिद्वं परिपुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ४१८. ॥ भयं च परिपुच्छेज्ज भयं णत्थि त्ति णिद्दिसे । खेमं च परिपुच्छेज्ज F अत्थि खेमं ति णिद्दिसे ॥ ४१९ ॥ पसत्थं परिपुच्छेज्ज क अत्थि अस्थि त्ति णिदिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ४२० ।। जयं च परिपुच्छेज्ज जयो अत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोग्गं परिपुच्छेज्ज णीरोगो त्ति वियागरे ॥ ४२१ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज णत्थि रोगो ति णिद्दिसे । मरणं च परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ४२२ ॥ < जीवितं परिपुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे ० । असमाहिं परिपुच्छेज्ज समुट्ठाणं समुद्दिसे ॥ ४२३ ॥ अणावुट्टि च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासारत्तं च पुच्छेज्ज उत्तमो त्ति वियागरे ॥ ४२४ ॥ अपातपं च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज अणुपुट्वि वियागरे ॥ ४२५ ॥ कदा वासं ति वा बूया इमं पक्खं ति णिद्दिसे । दिवा रतिं ति वा बूया दिवा वासं विणिदिसे ॥ ४२६ ॥ 4G संस्सस्स सं(वा)पयं पुच्छे णत्थि ति त्ति वियागरे। के सस्सस्स संपयं पुच्छे उत्तमा सस्ससंपया ।। ४२७ ॥ 20 ण? च परिपुच्छेज्ज लाभं तस्स विणिद्दिसे । णट्ठमाधारए तं च दक्खिणं सव्वमादिसे ॥ ४२८ ॥ कदा णटुं ति वा बूया इमं पक्खं ति णिद्दिसे । कदा दिस्सिहिति तं च इमं पक्खं ति णिदिसे ॥ ४२९ ॥ वामं व दक्खिणं व त्ति दक्खिणं ति वियागरे । धण्णं धणं च पुच्छेज्ज घेणं ति [य] वियागरे ॥ ४३० ॥ जं च किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि त्ति णिदिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि ण तं अस्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ४३१ ॥ सत्तमाभिजणं कम्मं आयारं च विसेसतो । सद्दे पदक्खिणे सव्वं जं चऽण्णमवि एरिसं ॥ ४३२ ।। 25 सव्वकालं पसत्थं तु सव्वत्थेसु य पूतियं । पुण्णामधेये हि फलं दक्खिणाणं पि णिद्दिसे ॥ ४३३ ॥ तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वमत्थि त्ति णिपिसे । सव्वे सद्दे य जाणेज्जा दक्खिणा जे भवंतिह ॥ ४३४ ॥ अतिदक्खिणं दक्खिणतो भवे यावि पुव्वदक्खिणं । अतिदक्खिणं सप्पति तधेव उवादलिणं (उवदक्खिणं) ॥ ४३५ ॥ [............] दक्खिणं ति व जो वदे । पदक्खिणं ति वा बूया जं चऽण्णं दक्खिणं भवे ।। ४३६ ॥ णक्खत्ते दक्खिणद्दारे देवते पणिधिम्मि या । पुप्फे फले य देसे य णगरे गाम गिहे वि वा ॥ ४३७ ।। 30 पुरुसे चतुप्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किमिल्लिके वा वि परिसप्पगते तधा ॥ ४३८ ॥ १ दक्खिणा हं० त० ॥ २ ठिया अत्थ हं० त० विना ॥ ३ रायगब्भं हं० ॥ ४ सहलो हं० त० ॥ ५ हस्तचिह्नगतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ६ संधि च परिपुच्छेज्ज अस्थि संधि त्ति णिहिसे । इति पाठः स्यात् ।। ७ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ ५ सत्तरस वामाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य ॥ ४३९ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ४४० ॥ एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ४४१ ॥ ॥ दक्खिणाणि सम्मत्ताणि ॥ ४ ॥ छ । [५ सत्तरस वामाणि] सत्तरस वामाणंगे कित्तयिस्समणुपुव्वसो । सीसस्स वामगो भागो १ कण्णो जो यावि वामको २ ॥ ४४२ ॥ अक्खि ३ भुमा ४ हणू वा वि ५ गंडो यो यावि वामको ६ । गीवा ७ अंसो य ८ बाहू य ९ थणो १० हत्थो य वामको ११ ॥ ४४३ ।। पस्सं १२ वसण १३ ऊरू य १४ जाणू १५ जंघा य वामिका १६ । वामगो य तधा पाओ १७ एवं सत्तरसाऽऽहिता ॥ ४४४ ॥ 10 एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं किंचि वि पुच्छेज्ज सव्वं पत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ४४५ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज अधण्णो दूभगो त्ति य । वामाचारभागी य पुरिसोऽयमिति णिद्दिसे ॥ ४४६ ॥ इत्थि वा परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य । वामाचारभागी य इयमित्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ४४७ ॥ पुरिसऽटुविधं पुच्छे वामं चेव वियागरे । इत्थऽटुविधं पुच्छे वामं चेव वियागरे ॥ ४४८ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य । असिद्धत्थ त्ति तं बूया खिप्पं विज्जेहिति ति य ॥ ४४९ ॥ 15 गब्भं च परिपुच्छेज्ज णत्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गब्भिणी परिपुच्छेज्ज मतं सत्तं पयाहिति ॥ ४५० ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज किच्छवित्ति भविस्सति । मित्ताणं च पडिकूलो सव्वत्थेहि य बाहिरो ॥ ४५१ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज णिरत्थो त्ति वियागरे । महंतो य अवद्धंसो खिप्पमेव भविस्सति ॥ ४५२ ॥ पउत्थं < परिपुच्छेज्ज Do चिरेणाऽऽगमणं भवे । णिरत्थकं पवासं च पउत्थस्स वियागरे ॥ ४५३ ॥ बंधं वा परिपुच्छेज्ज अस्थि बंधो त्ति णिद्दिसे । बंधस्स मोक्खं पुच्छेज्ज चिरा मोक्खो भविस्सति ॥ ४५४ ।। 20 पवासं परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । पतिद्वं परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे ॥ ४५५ ॥ सम्माणं संपयोगं वा णिव्वाणं मोक्खमेव य । भोगलाभं सुहिस्सरियं सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ४५६ ॥ भयं [च] परिपुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे । खेमं च परिपुच्छेज्ज 6 णत्थि खेमं ति णिद्दिसे ॥ ४५७ ॥ संधि च परिपुच्छेज्ज कणत्थि त्तेवं वियागरे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे ॥ ४५८ ॥ जयं च परिपुच्छेज्ज जयो णत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोग्गं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ४५९ ॥ 25 रोगं च परिपुच्छेज्ज अस्थि रोगो ति णिद्दिसे । मरणं च परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे ॥ ४६० ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । आबाधितं च पुच्छेज्ज ण समुद्रुहिति त्ति सो ॥ ४६१ ॥ अणावुढेि ति पुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे । वस्सारत्तं व पुच्छेज्ज पावको ति वियागरे ॥ ४६२ ॥ अपातयं च पुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज कटुकं ति विआगरे ॥ ४६३ ॥ सस्सस्स वापदं पुच्छे अस्थि त्तेवं वियागरे । सस्सस्स संपयं पुच्छे णिकिट्ठा सस्ससंपया ॥ ४६४ ॥ 30 णटुं च परिपुच्छेज्ज णत्थि णटुं ति णिद्दिसे । णट्ठमाधारइत्ता य वामपक्खस्स णिद्दिसे ॥ ४६५ ॥ वामं च दक्खिणं व त्ति वामं चेव वियागरे । धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज अधण्णमिति णिद्दिसे ॥ ४६६ ॥ १ जत्तू य हं० त० ॥ २ Do एतच्चिह्नगतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ३ हस्तचिह्नगतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते । ४ आवाविहं च परिपुच्छेज्ज हं० त० ॥ ५ वासारत्तं हं० त० ॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णय [६ सत्तरस जं [च] किंचि पसत्थं तं सव्वं णत्थि त्ति णिदिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ४६७ ।। सत्तमाभिजणं जाति आयारं विणयक्कम । असुभं अप्पसत्थं च वामभागेसु णिद्दिसे ॥ ४६८ ॥ जधा थीणामधेयाणं फलं वुत्तं सुभा-ऽसुभं । तेधेव सव्वं वामाणं फलं बूया सुभा-ऽसुभं ॥ ४६९ ॥ तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे । समे सद्दे य जाणेज्जा वामे जे मणिके मया ॥ ४७० ॥ उत्तरं ति व वामं ति वामावट्टो त्ति वा पुणो । वामसीलो त्ति वा बूया वामायारो त्ति वा पुणो ॥ ४७१ ॥ वामपक्खं ति वा बूया [वामदेसं ति वा] पुणो । वामभागं ति वा बूया वामतो त्ति व जो वदे ॥ ४७२ ॥ अपवामं ति वा बूया अपसव्वं ति वा वदे । अवसव्वं ति वा बूया अप्पग्धं ति वा पुणो ॥ ४७३ ।। जं चऽण्णं एवमादीयं समासेण य वासतो । ये वऽण्णे वामतो सद्दा वामतो मणिके मता ॥ ४७४ ॥ णखत्ते उत्तरद्दारे देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गाम-गिहे वि वा ॥ ४७५ ॥ पुरुसे चतुप्पदे वा वि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किपिल्लके वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ ४७६ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य ॥ ४७७ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रतणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ४७८ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ४७९ ॥ ॥ वामाणि सम्मत्ताणि ॥ ५ ॥ छ । [६ सत्तरस मज्झिमाणि] सत्तरस मज्झिमाणंगे पवक्खामऽणुपुव्वसो । मत्थको पढमं वुत्तो १ ततो सीमंतको भवे २ ॥ ४८० ॥ ललाडं ३ भूमकंतरवंसो ४ तधा णासाय पुत्तको ५ । णासा ६ ओट्ठा य ८ भवे उरो ९ जत्तुत्तरं तधा १० ।। ४८१ ।। हिदयं ११ थणंतरं १२ णाणी (णाभी) १३ लोमवासी १४ तधोदरं १५ । मेहणं १६ वत्थिसीसं च १७ मज्झिमाणाऽऽभवंतिह ॥ ४८२ ।। 20 एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं [च] किंचि पसत्थं [सा] सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ४८३ ॥ पुरिसं परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । धण्णो य सुहभागी य भातीणं मज्झिमो भवे ॥ ४८४ ।। रायमंती भवे सो य णातीणं मज्झिमो भवे । मज्झत्थसीलमायारो सव्वत्थेसु भवे णरो ॥ ४८५ ॥ इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था अपरायिता । धण्णा य सुहभागी य भगिणीसु य मज्झिमा ॥ ४८६ ॥ णातीसु मज्झिमं लभते भत्तारम्मि य वल्लभा । मज्झत्थसीलमायारा सव्वत्थेसु य सा भवे ॥ ४८७ ॥ पुरिसस्सऽत्थविधि पुच्छे मज्झिमं ति वियागरे । [थिया अत्थविधि पुच्छे मज्झिमं ति वियागरे ॥ ४८८ ॥] कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य ण य खिप्पं निग्गमिस्सति ॥ ४८९ ॥ . गब्भं च परिपुच्छेज्ज अस्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गब्भिणि परिपुच्छेज्ज खिप्पं सा पयाहिति ॥ ४९० ॥ कता पयाहिती व त्ति पक्खसंधिम्मि णिद्दिसे । कम्मं च परिपुच्छेज्ज रायमभंतरं वदे ॥ ४९१ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज सफलं ति वियागरे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज सधणो आगमिस्सति ॥ ४९२ ॥ सवि पावासिकं पुच्छे कता सो आगमिस्सति । अंगवी आगमं तस्स पक्खसंधिम्मि णिद्दिसे ॥ ४९३ ॥ < बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि बंधो त्ति णिद्दिसे । - बंधस्स मोक्खं पुच्छेज्ज अस्थि मोक्खो ति णिद्दिसे ।। ४९४ ।। कता मुच्चिहिती व त्ति जो णरो परिपुच्छति । अंगवी तस्स मोक्खं तु पक्खसंधिम्मि णिद्दिसे ॥ ४९५ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । पतिटुं परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । ४९६ ॥ पतिटुं णिव्वुर्ति पीति संजोगं च समागमं । जं इटुं परिपुच्छेज्ज सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥ ४९७ ॥ १ ‘यक्खमं हं० त० विना ॥ २ तं चेव सव्ववामा हं० त० ॥ ३ अपव्वामं हं० त० विना ॥ ४ अवसव्वं हं० त० विना ॥ ५ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्झिमाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ संधि च परिपुच्छेज्ज अस्थि संधि त्ति णिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ४९८ ॥ जयं च परिपुच्छेज्ज जयो अस्थि त्ति णिद्दिसे | आरोग्गं परिपुच्छेज्ज समुट्ठाणऽस्स णिद्दिसे ॥ ४९९ ।। अणावुढेि च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वस्सारत्तं च पुच्छेज्ज मज्झिमो त्ति वियागरे ॥ ५०० ।। अपातयं च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज मज्झिमो ति वियागरे । ५०१ ।। कता वासं ति वा बूया पक्खसंधिम्मि णिपिसे । दिवा रत्तिं ति वा बूया संझाकाले विणिपिसे ।। ५०२ ॥ 5. सस्सस्स वा[प]दं पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । सस्सस्स संपयं पुच्छेज्ज मज्झिमा सस्ससंपदा ॥ ५०३ ॥ लाभं च परिपुच्छेज्ज मज्झिमं लाभमादिसे | णटुं च परिपुच्छेज्ज मज्झिमं तं च लब्भति ॥ ५०४ ॥ वाम-दक्षिणमज्झम्मि मज्झिमं ति वियागरे । धण्णं धणं च पुच्छेज्ज मज्झिमो त्ति वियागरे ॥ ५०५ ।। जं [च] किंचि पसत्थं [सा] सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सेव्वं नत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ५०६ ॥ तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । समे सद्दे य जाणेज्जा मज्झिमा जे भवंतिह ॥ ५०७ ॥ 10 मज्झि मज्झतिको मज्झो मज्झिमो त्ति व यो वदे । पुस्-देस-भागमज्झो गोट्ठी-सेणागमस्स वा ॥ ५०८ ॥ वयस्स मज्झो सुहमज्झो सयणमज्झं ति वा वदे । घरमज्झ गाममज्झो अरण्णस्साऽडवीय वा ॥ ५०९ ॥ णीयसेंवरिमज्झम्मि मित्तमज्झो त्ति वा वदे । अमित्तमज्झो गोमज्झो णातिमज्झो त्ति वा वदे ॥ ५१० ॥ सुमज्झो तणुमज्झो त्ति चोरमज्झो त्ति वा वदे । जवमज्झो कीडमज्झो लद्धमज्झो त्ति वा वदे ॥ ५११ ॥ समुद्दस्स य मज्झं ति अब्भमज्झं ति वा वदे । उदगस्स व मज्झो त्ति अग्गिमज्झो त्ति वा पुणो ॥ ५१२ ॥ 15 चउप्पदाणं सव्वेसि बिपदाणं तधेव य । अंगोवंगेसु सव्वेसु मज्झस्स उ उदीरणा ॥ ५१३ ॥ भातीणं मज्झिमं व त्ति | मज्झिमं भयणीण > वा । मज्झागतं ति वा बूया मज्झसारं ति वा वदे ॥ ५१४ ॥ मझं सारं ति वा बूया तथा उद्धममज्झिमं । उक्कट्ठमज्झिमं व त्ति तधा सम्मज्झिमें ति वा ॥ ५१५ ॥ कित्तियंति य जे सद्दा जं चऽण्णं मज्झिमं भवे । एते उत्ता समा सद्दा मज्झिमा जे भवंति य ॥ ५१६ ॥ सद्द-रूव-रसे गंधे फासे मज्झिमकम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गामे गिहे वि वा ॥ ५१७ ।। 20 पुरुसे चतुप्पदे वा वि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ५१८ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ५१९ ॥ आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य । लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य ॥ ५२० ॥ एतम्मि पेक्खितामासे सद्द-रूव-रसे तधा । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ५२१ ॥ ॥ मज्झिमाणि सम्मत्ताणि ॥ ६ ॥ छ । 25 [७ अट्ठावीसं दढाणि] अट्ठावीसं दढाणंगे पवक्खामऽणुपुव्वसो । सिरं १ णिडालं २ जतूणि ४ उरो ५ पस्साणि बे भवे ७ ॥ ५२२ ॥ 'बे बाहुणालिमज्झाणि ९ बाहुमज्झा य बे भवे ११ । जंघोरूणं च मज्झाणि १५ तधेव पादपट्ठिओ १७ ।। ५२३ ॥ दंता १९ संखा य २१ गंडा य २३ करमज्झो तधेव य २५ ।। खंधो [य] २६ जैतुमज्झो य २८ दढाणेताणि णिद्दिसे ॥ ५२४ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं [च] किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ५२५ ॥ १ण मज्झं ति म हं० त० विना ॥ २ सव्वमत्थि हं० त०॥ ३ वत्थं हं० त० विना ।। ४ मज्झमिको हं० त० ॥ ५ संबंधे मज्झं ति मित्त हं० त० विना ॥ ६ अचित्त हं० त० ॥ ७ मज्झम्मि अ हं० त० सि०॥ ८ भावाणं हं० । भावीणं त० ॥ ९ D एतच्चिह्नान्तर्गत पाठः हं० त० नास्ति ॥ १० मं तहा हं० त०॥ ११ जे बा० हं० त०॥ १२ जत्तुमज्झो हं० त०॥ 30 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७ अट्ठावीसं दढाणि ५२६ ॥ ।। ५२७ ।। अंगविज्जापइण्णयं पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । धण्णो य सुहभागी य दढो य बलवं ति य इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्तिय । धण्णा य सुहभागी य दढा य बलिका ति पुरिसस्सऽद्वविधं पुच्छे दढर्मिच्चेव णिद्दिसे । थिया अट्ठविधि पुच्छे दढमिच्चेव णिद्दिसे ।। ५२८ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य ण तु खिप्पं गमिस्सति ॥ ५२९ ॥ 5 गब्धं च परिपुच्छेज्ज अत्थि गब्भो ति णिद्दिसे । गेब्भिणि परिपुच्छेज्जा चिरा पुत्तं पयाहिति ॥ ५३० ॥ ७८ 10 15 20 25 30 कम्मं च परिपुच्छेज्ज दढं कम्मं तु णिद्दिसे । पवासं परिपुच्छेज्ज सफलमिति णिदिसे ।। ५३१ ॥ पउत्थं परिपुच्छेज्ज संघणो आगमिस्सति । दढो त्ति य वियाणेज्जा पुच्छितो अंगचिंतको ॥ ५३२ ॥ बंधं च परिपुच्छेज्ज नत्थि बंधो त्ति णिद्दिसे । बंधस्स मोक्खं पुच्छेज्ज चिरा मोक्खो भविस्सति ॥ ५३३ ॥ पवासं परिपृच्छेज्ज णत्थि एवं वियागरे । इटुं परिपुच्छेज्ज अत्थि तेवं वियागरे ॥ ५३४ ॥ समागमं संपयोगं थाणमिस्सरियं जसं । जं जं पसत्थं पुच्छेज्ज सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ५३५ ॥ भयं च परिपुच्छेज्ज णत्थि त्वं वियागरे । खेमं च परिपुच्छेज्ज अत्थि खेमं ति णिद्दिसे ॥। ५३६ ॥ संधि च परिपुच्छेज्ज अत्थि संधि त्तिणिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे ॥ ५३७ ॥ जयं च परिपुच्छेज्ज जयो अस्थि ति णिद्दिसे । आरोग्गं परिपुच्छेज्ज आरोग्गमिति णिद्दिसे || ५३८ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज णत्थि रोगं ति णिद्दिसे । मरणं च परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे ॥ ५३९ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज अत्थि तेवं वियागरे । आबाधितं च पुच्छेज्ज समुट्ठाणऽस्स णिद्दिसे । ५४० ॥ अणावुट्ठि च पुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । वस्सारत्तं च पुच्छेज्ज सोभणो त्ति वियागरे । ५४१ ।। अपातवं च पुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज पभूतमिति णिद्दिसे ॥। ५४२ ॥ सस्सस्स संपयं पुच्छे सोभणा सस्ससंपदा । सस्सस्स वापदं पुच्छे णत्थि तेवं वियागरे ॥ ५४३ ॥ गठ्ठे च परिपुच्छेज्ज अत्थि गठ्ठे ति णिद्दिसे । णट्टमाधारये तं च दढमिच्चेव णिद्दिसे ॥। ५४४ ॥ सज्जीवं वा विणिज्जीवं णट्ठमाधारये जति । सज्जीवमिति तं बूया एवं तु दढ - दुब्बले ॥ ५४५ ॥ दढं वा दुब्बलं वा वि दढमिंत्तेव णिद्दिसे । धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज धण्णं चेव वियागरे ॥ ५४६ ॥ जं [च] किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे || ५४७ ॥ जधा पुण्णामधेयेसु अत्थो सव्वो सुभा -ऽसुभो । एवं दढेसु सव्वेसु पुण्णामसमकाऽऽहिते ॥ ५४८ ॥ तधा खेत्तं तधा वैत्थं सव्वमत्थि त्तिणिद्दिसे । समे सद्दे य जाणेज्जा दढा जे मणिके मता ॥ ५४९ ॥ अचलं धुवं तधा ठाणं सस्सतं मखिलं ति वा । अजरामरं ति वा बूया णियतं ति अवत्थितं ॥ ५५० ॥ हिमवंतो त्ति वा बूया महाहिमवतो त्ति वा । णिसैढो अधवा रुप्पी मेरू वा मंदरो त्ति वा ॥ ५५१ ॥ णेलवंतो त्ति केलासो तधा वस्सधरो त्ति वा । वेयड्डो अच्छदंतो त्ति सज्झो विंझो त्ति वा 04 वैदे DO ॥ ५५२ ॥ मँतो त्ति मलयो व त्ति पार्रियत्तो त्ति वा पुणो । महिंदो चित्तकूडो त्ति वदे अंबासणो त्ति वा ॥ ५५३ ॥ णगो त्ति पव्वतो व त्ति गिरिमेरुवरो त्ति वा । सेलो सिलोच्चयो व त्ति पव्वतो सिहरि त्ति वा ।। ५५४ ।। सिलापट्टो त्ति वा बूया गंडसेलो त्ति वा पुणो ॥ ५५५ ॥ सेलो वइरो त्ति वा बूया मेरुको मरुभूतिको ।। ५५६ || । पासाणो पत्थरो वत्ति उपलो त्ति मणि त्ति वा णामतो गिरिको वत्ति तहा पव्वतको त्ति वा । १ मित्थेव हं० त० सि० ।। २ इत्थिया वि अट्ठविधं पुच्छे दढामि हं० त० ॥ ३ कल्लं च हं० त० ॥ ४ य णेतु हं० त० ॥ ५ गब्भिणी परिपुच्छेज्ज हं० त० ॥ ६ सधण्णो हं० त० ॥ ७ ज्ज अत्थि हं० त० विना ॥ ८ ज्ज अत्थि त्तेवं हं० त० ॥ ९ हस्तचिह्नगतमुत्तरार्द्धं हं० त० सि० एव वर्त्तते ॥ १० मिच्चेव हं० त० ॥ ११ सव्वमत्थि हं० त० ॥ १२ वत्थं हं० त० विना ॥ १३ स्सलं म हं० त० विना ॥। १४ अपच्छियं हं० त० ॥। १५ सभो अहवा हं० त० सि० ॥ १६०० एतच्चिह्नमध्यगतं पदं हं० त० नास्ति । १७ मंचो ति हं० त० सि० ॥ १८ वित्तो हं० त० ॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ अट्ठावीसं चलाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ - ७९ धुवको अचलितो व ति तधा थावरको त्ति वा । सिवणामो गुत्तणामो भवो त्ति अभवो ति वा ॥ ५५७ ।। थितो त्ति सुत्थितो व त्ति तधा ठाणट्टितो त्ति वा । अकंपो णिप्पकंपो त्ति णिव्वरो सुहते त्ति वा ॥ ५५८ ॥ अण्णे वेवंविधा सद्दा जे अण्णे अचला भवे । एते उत्ता समा सद्दा दढा जे मणिके मता ॥ ५५९ ॥ थावरम्मि य णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि त । पुप्फे फले य देसे य णगरे गामे गिहे वि वा ॥ ५६० ॥ पुरुसे चउप्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किपिल्लगे वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ ५६१ ।। पाणे य भोयणे यावि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ ५६२ ॥ सव्वेसु यावि लोहेसु सव्वेसु रतणेसु य । मणी[सु] यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ५६३ ॥ एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ५६४ ॥ ॥ दढाणि सम्मत्ताणि ॥ ७ ॥ छ । 10 ......... [८ अट्ठावीसं चलाणि] अट्ठावीसं चलाणंगे पवक्खामऽणुपुव्वसो । कण्णासंधी भुमासंधी [........................ || ५६५ ॥ .................. । ........... ........... ॥ ५६६ ॥ ............... । .......] कमतलाणं च अट्ठावीसं चलाणि तु ॥ ५६७ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं [च] किंचि पसत्थं तं सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ५६८ ॥ पुरिसं परिपुच्छेज्ज अधण्णो दूभगो त्ति य । असिद्धत्थो त्ति तं बूया ऐतेसिं उपसेवणे ॥ ५६९ ॥ इत्थि च परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य । असिद्धत्थ त्ति तं बूया एतेसमुपसेवणे ॥ ५७० ॥ 15 पुरिसस्सऽत्थविधं पुच्छे चलमिच्चेव णिद्दिसे । अत्थविधं इत्थीसु य चलमिच्चेव णिद्दिसे ॥ ५७१ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य । असिद्धत्थ त्ति तं बूया खिप्पं विज्जेहिति ति य ।। ५७२ ।। गब्भं च परिपुच्छेज्ज णत्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गम्भिणि परिपुच्छेज्ज मतं सत्तं पजाहिति ॥ ५७३ ।। गब्भिणी चलमामासं पुच्छे गब्भो सो चलो भवे । चले बितियमालद्धे गब्भो हणति मातरं ॥ ५७४ ॥ 200 छित्ते चलम्मि तिक्खुत्तो गब्भो तु पितरं हणे । चउखुत्तो चले छित्ते भातरं तु वधिस्सति ॥ ५७५ ।। पंचखुत्तो चले छित्ते कुलं सो तु वधिस्सति । गम्भिणी य परामासे इच्चेवमुवधारये ॥ ५७६ ॥ पडिहारकं च दूतं च जंघावाणियकं पि वा । दिसावाणियगं वा वि छत्तंसासणहारगं ॥ ५७७ ॥ तधा पेसणियं जाणे तधा आदिट्ठभूमियं । तधा णिज्जामकं जाणे तधा वा कुक्खिधारकं ॥ ५७८ ॥ तधेव णाविकं जाणे तधा डुपकहारकं । तधा पग्गाहकं जाणे तधा कंतिकवाहकं ॥ ५७९ ॥ 25 तंबाधावकं जाणे अब्भाकारिकमेव य । कम्मपुच्छाय णिद्देसे एवमादि फलं वदे ॥ ५८० ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज णिरत्थं ति वियागरे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज परओ सो गमिस्सति ॥ ५८१ ॥ बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि बंधो ति णिद्दिसे । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्ज खिप्पं मोक्खो त्ति णिद्दिसे ॥ ५८२ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे । < पतिटुं परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे > || ५८३ ॥ पतिद्वं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । संधि च परिपुच्छेज्ज णत्थि संधि ति णिद्दिसे ॥ ५८४ ॥ 30 विग्गहं परिपुच्छेज्ज अस्थि तेवं वियागरे । भयं च परिपुच्छेज्ज भयमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ५८५ ॥ खेमं च परिपुच्छेज्ज णत्थि खेमं ति णिद्दिसे । जयं च परिपुच्छेज्ज जयो णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ५८६ ॥ आरोग्गं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । रोगं च परिपुच्छेज्ज अस्थि रोगो त्ति णिद्दिसे ॥ ५८७ ।। १ भव्वो त्ति अभव्वो त्ति हं० त० ॥ २ ठिओ त्ति सुट्ठिओ व त्ति हं० त० ॥ ३ सहिति त्ति हं० त० ॥ ४ धणो दू हं० त० ॥ ५ एतेसं तु पवेसणे हं० त० ॥ ६ अधणा हं० त० ॥ ७ चले खित्ते कुल सो उ व हं० त० ॥ ८ अज्झाका' हं० त० ॥ ९ परितो हं० त० विना ॥ १० बंधस्स हं० त० ॥ ११ Do एतच्चिह्रान्तर्गत: पाठः हं० त० नास्ति ॥ १२ आरागं हं० त० ॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 अंगविज्जापइण्णयं [८ अट्ठावीसं चलाणि मरणं परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । जीवितं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ५८८ ॥ आबाधितं च पुच्छेज ण समुढेहिति त्ति सो । अणावुढेि च पुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ५८९ ॥ वासं च परिपुच्छेज्ज हीणमेव वियागरे । अपातयं च पुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे ॥ ५९० ॥ F वासं च परिपुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे । ३ वासं तु परिपुच्छेज्ज अप्पवासं सु णिद्दिसे ।। ५९१ ॥ F संस्सस्स वापदं पुच्छे अत्थि त्तेवं वियागरे । क सस्सस्स संपयं पुच्छे जहण्णा सस्ससंपदा ॥ ५९२ ॥ णटुं च परिपुच्छेज्जा णत्थि णटुं ति णिपिसे । णट्ठमाधारये तं च चिरणटुं वियागरे ॥ ५९३ ॥ सज्जीवं वा वि णिज्जीवं णट्ठमाधारए जति । अज्जीवमिति तं बूया एवं अदढदुब्बले ॥ ५९४ ॥ दढं चलं ति वा बूया चलमिच्चेव णिद्दिसे । धण्णं धणं ति वा बूया अधण्णं ति वियागरे ॥ ५९५ ॥ जं [च] किंचि पसत्थं तं सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि ति णिद्दिसे ।। ५९६ ॥ समागमं संपयोगं थाणमिस्सरियं जसं । जं जं इटुं च पुच्छेज्ज सव्वं णत्थि ति णिदिसे ॥ ५९७ ॥ रोगं वा मरणं वा वि अप्पतिट्ठमणिव्वुर्ति । विवादं विप्पयोगं वा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ५९८ ।। चलाणेताणि वुत्ताणि जम्मि अत्थे णपुंसको । णपुंसकविभागेणं चलाणि वि वियागरे ॥ ५९९ ॥ तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे । चले सद्दे य जाणेज्जो चला ये मणिके मया ॥ ६०० ।। चलितं विचलितं वा वि चलं ति चलियं ति वा । तधा च चलजाति त्ति धावति त्ति व जो वदे ॥ ६०१ ॥ पंधावति Gत्ति वा बूया संधावति के विधावति । परिधावति त्ति वा बूया तधा णिद्धावति त्ति वा ॥ ६०२ ॥ ओधावति ति वा बूया अहिधावति णोल्लति । 'विघोलते त्ति वा बूया अधवा विप्पघोलति ॥ ६०३ ॥ परिचेट्टति त्ति वा बूया तधा विप्परिचेट्ठते । परिवत्तते त्ति वा बूया तधा विप्परिवत्तते ॥ ६०४ ॥ विचले अधुवे व त्ति ओधुते संधुते त्ति वा । A अधुवे त्ति गए व त्ति । आधुते त्ति धुते त्ति वा ॥ ६०५ ॥ गलियं ति व जो बूया तधा पगलियं ति वा । गलियं विगलितं व त्ति तथा पगलियं ति वा ॥ ६०६ ।। तधा णिक्खिन्न विक्खिन्नं णिक्खिन्नं विसलाइतं । पकिण्णं विप्पकिण्णं ति छड्डितं परिसाडियं ॥ ६०७ ॥ फुलितं दालितं दलियं छड्डितं परिसाडितं । भग्गं ति वाकलं व त्ति छल्लिलग्गं ति वा पुणो ॥ ६०८ ।। अंदोलंति त्ति वा बूया तधा हंदोलको त्ति वा । घुमति त्ति परिघुमति भमते व परिब्भमे ॥ ६०९ ॥ णिटुंधति त्ति वा बूया णिकड्डति विकड्डति । उक्कड्डति त्ति वा बूया कड्डिति त्ति व जो वदे ॥ ६१० ॥ अण्णे चेवंविधा सद्दा जं चऽण्णं पि चलं भवे । एते उत्ता समा सद्दा चला जे मणिके मता ॥ ६११ ।। चले खिप्पे य णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पप्फे फले देसे व णगरे गामे गिहे वि वा ॥ ६१२ ।। पुरिसे चउप्पदे चेव पक्खिम्मि उदकेचरे । कीडे किविल्लिगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ६१३ ॥ पाणे य भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य ॥ ६१४ ।। लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ६१५ ।। एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतको ॥ ६१६ ॥ ॥ चलाणि सम्मत्ताणि ॥ ८ ॥ छ । 20 १-२ हस्तचिह्नमध्यगतं पूर्वार्धयुगलं हं० त० एव वर्त्तते ॥ ३ एतत् श्लोकपूर्वार्धमेव सि० नास्ति ॥ ४ हस्तचिह्नगतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ५ विघोलए अडजए अधवा हं० त० सि० । वघोलते अडजए अधवा सं.३ पु० ॥ ६ परिधावति त्ति सप्र० ॥ ७ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९ सोलस अतिवत्ताणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ [९ सोलस अतिवत्ताणि] सोलसेवऽतिवत्ताणि पवक्खामऽणुपुव्वसो । सीसस्स पच्छिमो भागो गीवा पट्ठी य पच्छिमा ॥ ६१७ ॥ बाहुणाली-उवत्थाणं फिजोरूणं च पच्छिमं । जंघाणं पण्हिकाणं च अतिवत्ताणि सोलस ॥ ६१८ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तथा । जं किंचि पसत्थं तं सव्वं णत्थि त्ति णिदिसे ॥ ६१९ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज अधपणो दूभगो त्ति य । असिद्धत्थो त्ति तं बूया अतिवत्तम्मि सेविते ॥ ६२० ॥ 5 इत्थि च परिपुच्छेज्ज अधन्ना दूभग ति य । असिद्धत्थ त्ति तं बूया अतिवत्तम्मि सेविते ॥ ६२१ ॥ पुरिसत्थविधि पुच्छे अतिवत्तं वियागरे । इत्थिअत्थविधि पुच्छे अतिवत्तं वियागरे ॥ ६२२ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य । असिद्धत्थ त्ति तं बूया खिप्पं विज्जिहिते त्ति य ॥ ६२३ ।। गर्भ च परिपुच्छेज्ज णत्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गब्भिणि परिपुच्छेज्ज मतं सत्तं पयाहिति ॥ ६२४ ।। उक्खित्ततुंबिकं वा वि तधा बाहिरंतुंबियं । पक्खच्छयकं व जाणीया कव्वुडं आसणहारकं ॥ ६२५ ॥ 10 भागहारकमेवावि मधवा साधिगक्खरं । कम्मपुच्छाय णिद्देसे एवमादि फलं वदे ॥ ६२६ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज अफलो त्ति वियागरे । पा(पवा)सितं परिपुच्छेज्ज पेरतो सो गमिस्सति ॥ ६२७ ॥ बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि बंधो ति णिदिसे । बंधस्स मोक्खं पुच्छेज्ज मोक्खं तस्स वियागरे ॥ ६२८ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज अस्थि तेवं वियागरे । पतिद्वं परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे ।। ६२९ ॥ भयं च परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । खेमं च परिपुच्छेज्ज णत्थि खेमं ति णिद्दिसे ॥ ६३० ॥ 15 संधिं च परिपुच्छेज्ज णत्थि संधि त्ति णिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे ॥ ६३१ ॥ जयं च परिपुच्छेज्ज जयो णत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोग्गं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । ६३२ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज अस्थि रोगो त्ति णिद्दिसे । मरणं च परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे ॥ ६३३ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । आबाधितं च पुच्छेज्ज ण समुद्रुहिति त्ति सो ॥ ६३४ ।। अणावुढेि च पुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे । वस्सारत्तं च पुच्छेज्ज णिकिट्ठो त्ति वियागरे ॥ ६३५ ॥ 200 अपातयं च पुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज अप्पं वासं वियागरे ॥ ६३६ ॥ सस्सस्स वापदं पुच्छे अत्थि त्तेवं वियागरे । सस्सस्स संपदं पुच्छे णत्थि तेवं वियागरे ॥ ६३७ ॥ णटुं च परिपुच्छेज्ज णत्थि णटुं ति णिद्दिसे । णट्ठमाधारतित्ता णं चिरणटुं वियागरे ॥ ६३८ ॥ संपता-ऽणागता-ऽतीतं अतीतं ति वियागरे । धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज अधणं ति वियागरे । ६३९ ॥ समागमं संपयोगं ठाणमिस्सरियं जसं । जं जं इटुं च पुच्छेज्ज सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ६४० ॥ 25 रोगं च मरणं वाधि अप्पतिद्वमणिबुर्ति । विप्पओगं विवादं वा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ६४१ ॥ जं किंचि पसत्थं तं सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ६४२ ॥ तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वं णत्थि ति णिपिसे । समे सद्दे य जाणेज्जा अतिवत्ता भवंति जे ॥ ६४३ ॥ अतिवत्तमतिकंतं गतं ति य विणिग्गतं । विणियत्तं पुराणं ति जुण्णं ओपुप्फ णिप्फलं ॥ ६४४ ॥ सुक्खं मलितं विसिण्णं ति उवउत्तं झीणमेव य । खइतं पितं ति वा भुत्तं णिट्ठितं ति कतं ति वा ।। ६४५ ।। 300 सम्मद्दितं अतीतं ति समतिच्छियमतिच्छियं । ओहिज्जतं ओहसितं पहीणं ति पहिज्जते ॥ ६४६ ॥ हातं व मज्जियं वा वि ओलोलित पलोलियं । पलोट्टितं ति वा बूया तधा सम्मज्जितं ति वा ॥ ६४७ ॥ णच्चितं वाइयं गीयं लासितं पढितं ति वा । वेलंबितं ति वा बूया तधा वत्तुस्सयं ति वा ॥ ६४८ ॥ १ 'त्तगुंठिकं हं० त० विना ॥ २ "रगुंठियं हं० त० विना ॥ ३ कधुडं हं० त० विना ॥ ४ भवे हं० त० ॥ ५ परितो हं० त० विना ॥ ६ “तिमे हं० त० विना ॥ ७ ओहिज्झियं ओह हं० त० ॥ ८ पठिज्जए हं० त० ॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [१० सोलस वत्तमाणाणि णियतं भूतपुव्वं ति कतपुव्वं ति वा पुणो । तधा रयितपुव्वं ति अणुभूतं ति वा पुणो ॥ ६४९ ॥ गतपुव्वं ति वा बूया रयपुव्वं ति वा पुणो । तधा माणितपुव्वं ति वत्तपुव्वं ति वा पुणो ॥ ६५० ॥ गतगंधा गतरसा तधा गतवयो त्ति वा । एते उत्ता समा सद्दा अतिवत्ता भवंति जे ॥ ६५१ ॥ अतिवत्तम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले ये देसे य णगरे गाम गिहे वि वा ॥ ६५२ ।। पाणे व भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य ॥ ६५३ ॥ पुरुसे चतुष्पदे वा वि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ६५४ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्व-धण्ण-धणेसु य ॥ ६५५ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ६५६ ॥ ॥ अतिवत्ताणि सम्मत्ताणि ॥ ९ ॥ छ ॥ 5 15 20 [१० सोलस वत्तमाणाणि] वत्तमाणाणि वक्खामि सोलसंगे जधा तधा । बे चेव सीसपस्साणि २ कण्णा ४ गंडा तधेव य ६ ॥ ६५७ ॥ बे बाहुणालिपस्साणि ८ बाहुपस्साणि बे तधा १० । जंघो १२ रु १४ पादपस्साणि १६ वत्तमाणाणि सोलस ॥ ६५८ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ६५९ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । धण्णो य सुहभागी य पुरुसोऽयमिति णिद्दिसे ॥ ६६० ॥ इत्थि वा परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य इत्थीयमिति णिद्दिसे ॥ ६६१ ॥ परिसत्थविधं पुच्छे वत्तमाणं वियागरे । < ईत्थिस्सऽत्थविधं पुच्छे वत्तमाणं वियागरे । ६६२ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग ति य । धण्णा य सुहभागा य खिप्पं विज्जिहिति त्ति य ॥ ६६३ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्ज अस्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गब्भिणी परिपुच्छेज्ज खिप्पं सा पयाहिति ॥ ६६४ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज सद्दे रूवेहिं णिद्दिसे । वत्तमाणं पसत्थं च सुभं लाभं च णिद्दिसे ॥ ६६५ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज सफलो त्ति वियागरे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज सफलो पंधि वत्तते ॥ ६६६ ॥ बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्ज खिप्पं मोक्खं वियागरे ॥ ६६७ ।। पवासं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । पतिद्वं परिपुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ६६८ ॥ समागमं संपयोगं थाणमिस्सरियं जसं । इटुं च परिपुच्छेज्ज सव्वमत्थि ति णिद्दिसे ॥ ६६९ ॥ अपमाणमसक्कारं णिरातारमणिव्वुतिं । विप्पयोगं विवादं च सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे ॥ ६७० ॥ भयं च परिपुच्छेज्ज भयं णत्थि त्ति णिद्दिसे । खेमं च परिपुच्छेज्ज खेममत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ६७१ ॥ संधि वा परिपुच्छेज्ज अत्थि संधि त्ति णिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छिज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ६७२ ।। जयं वा परिपुच्छेज्ज जयो अत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोग्गं परिपुच्छेज्ज आरोग्गमिति णिद्दिसे ॥ ६७३ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । मरणं च परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे ॥ ६७४ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज अत्थि त्तेवं वियागरे । असमाधि च पुच्छेज्ज समुट्ठाणंऽस णिद्दिसे ॥ ६७५ ।। अणावुद्धि च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासारत्तं च पुच्छेज्ज ण सो पढमकप्पितो ॥ ६७६ ॥ अपातयं च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज वासमासवमादिसे ॥ ६७७ ।। सस्सस्स वापदं पुच्छे नत्थि त्तेवं वियागरे । सस्सस्स संपयं पुच्छे ण सो पढमकप्पिगो ॥ ६७८ ॥ १d एतच्चिह्नमध्यगतमुत्तरार्धं हं० त० नास्ति ॥ २ पविवुत्तओ हं० त० । 'पधि' पथि मार्गे इत्यर्थः ॥ ३ सतवादिसे हं० त० विना ॥ 30 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ सोलस अणागताणि ] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ संपता-ऽणागता–ऽतीतं वत्तमाणं वियागरे । घण्णं धणं च पुच्छेज्जा तं तु मज्झगतं वदे ॥ ६७९ ॥ वत्तमाणं पत्थं च सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ६८० ॥ तधा खेत्तं तधा वत्युं सव्वमत्थि ति णिद्दिसे । समे सद्दे य जाणेज्जो वत्तमाणा भवंति जे ॥ ६८१ ॥ वत्तते त्ति व जो बूया वेत्तमाणं ति वा पुणो । णिव्वत्तते त्ति वा बूया तधा संपतिवत्तते ॥ ६८२ ॥ संजायते संभवति तधा संचितेत्ति वा । आसते सयते व त्ति बुज्झते पडिबुज्झते ॥ ६८३ ॥ उप्पज्जते त्ति वा बूया दिस्सते सूयते त्ति वा । अग्घायते त्ति वा ब्रूया अस्साएति त्ति वा पुणो ॥ फरिसायते त्ति वा बूया सुहं वेदयते त्ति वा । दलायते त्ति वा बूया सुहं वा दायते त्ति वा ॥ तधा चितेति मंतेति गायते हसते त्ति वा । तधा पढति पाढेति वेलंबेति त्ति णच्चति ॥ ६८६ ॥ मज्जति त्ति व जो बूया आहिंचति विलिंपति । भरेति कुसुमाणीति आबंधति वासितं । ६८७ ॥ अलंकारेति अप्पाणं पसायति त्ति वा पुणो । पाउणेति निवेसेति तधा ओचक्खति त्ति वा ॥ ६८८ ॥ भुंजति त्ति व जो बूया तथा पिबति भेदति । आहारेति त्ति वा बूया कल्लाणं पावति त्ति वा ॥ ६८९ ॥ आचिक्खति कधेति सि जंपति भणति त्ति वा । विजाणेति त्ति वा बूया तधा संजाणति त्ति वा ॥ ६९० ॥ आति व देत व उवणामेति त्ति वा पुणो । एवमादी य जे केयि वत्तमाणा भवंति ते ।। ६९१ ।। वत्तमाणम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा नगरे गाम गिहे वि वा ॥ ६९२ ।। पुरुसे चतुप्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ।। ६९३ ।। पाणे व भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य ॥ ६९४ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु त । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ६९५ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ।। ६९६ ॥ ॥ वत्तमाणाणि सम्मत्ताणि ॥ १० ॥ छ ॥ 10 15 ८३ ६८४ ॥ ६८५ ॥ [ ११ सोलस अणागताणि ] अणागताणि वक्खामि सोलसंगे जधा तधा । मुहं १ णिडालं २ कंठो य ३ हिदयं ४ जंतुतरं ६ तधा ॥ ६९७ ॥ १ सव्वमत्थि हं० त० विना ॥ २ वत्तमण्णं ति सं ३ पु० सि० । वत्तं मण्णं ति हं० त० ॥ ३ पाउणाति हं० त० ॥ ४ उच्चक्कति हं० त० ॥ ५ हिदयं यंतुतरं सं ३ पु० सि० । ह्रिदयं जं उत्तरं हं० त० ॥ Jain Educatअंगommi१९al 5 उरस्स ७ बाहुणालीणं ९ वत्थी १० सीसो ११ दरस्स य १२ । जंघो १४ रूणं च १६ पुरिमाणि सोलसंगे अणागता || ६९८ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तथा । जं किंचि पसत्थं सा सव्वं बूया अणागतं ।। ६९९ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । धण्णो य एसकल्लाणो पुरिसोऽयमिति णिदिसे ॥ ७०० ॥ 25 इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्तिय । घण्णा य एस्सकल्लाणा इत्थीयमिति णिद्दिसे ॥ ७०१ ॥ पुरिसस्सऽत्थविधं पुच्छे भविस्सति अणागतं । थिया अत्थविधं पुच्छे वदे तं पि अणागतं ॥ ७०२ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । घण्णा य एस्सकल्लाणा विज्जिस्सति चिरेण तु ॥ ७०३ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्ज अत्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गब्भिणी परिपुच्छेज्ज दारकं सा पयाहिति ।। ७०४ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज जं कम्मं स समाचरे । तं तं कालंतरेणेव अणागतफलं भवे ॥ ७०५ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज सफलं ति वियागरे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज सधणो आगमिस्सति ॥ ७०६ ॥ बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि बंधो त्ति णिद्दिसे । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्ज अत्थि मोक्खो ति णिद्दिसे ॥ ७०७ ॥ 20 30 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णय [१२ पण्णासं भयं च परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । खेमं च परिपुच्छेज्ज खेममत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७०८ ॥ संधि च परिपुच्छेज्ज अस्थि संधि त्ति णिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । ७०९ ।। जयं च परिपुच्छेज्ज जयो अत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोगं परिपुच्छेज्ज आरोगमिति णिदिसे ॥ ७१० ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज णस्थि रोगो त्ति णिद्दिसे । मरणं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ७११ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज अस्थि त्तेवं वियागरे । आबाधितं परिपुच्छेज्ज समुट्ठाणंऽस णिदिसे ॥ ७१२ ॥ अणावुट्टि च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वस्सारत्तं च पुच्छेज्ज सोभणो त्ति भविस्सति ॥ ७१३ ॥ अपसारं च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज चिरं वासं वियागरे ॥ ७१४ ॥ सस्सस्स वापयं पुच्छे णत्थि तेवं वियागरे । सस्सस्स संपयं पुच्छे सोभणो त्ति वियागरे ॥ ७१५ ।। णटुं च परिपुच्छेज्ज अत्थि णटुं ति णिद्दिसे । णट्ठमाधारतित्ता णं पुरिमपक्खं ति णिद्दिसे ॥ ७१६ ।। संपता-ऽणागता–ऽतीतं आगामि त्ति वियागरे । धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज धणं तेवं वियागरे ॥ ७१७ ।। जं किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिदिसे ॥ ७१८ ॥ तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वं बूया अणागतं । समे सद्दे य जाणेज्जो जे भवंति अणागता ।। ७१९ ।। अणागतं वट्टिहिति 6 उप्पज्जिहिति 0 होक्खति । भविस्सते आगहिति तधा आगच्छते त्ति वा ॥ ७२० ॥ एहिती व त्ति वा बूया तधा दाहिति काहिति । भुंजिस्सति त्ति वा बूया तधा खाहिति पाहिति ॥ ७२१ ।। तधा सिक्खिहिते व त्ति आगमेहिति पेच्छति । हाधिति त्ति वा बूया दक्खिणं दाहिति त्ति वा ॥ ७२२ ।। तधा अज्जिहिते व ति तधा दिस्सहिति त्ति वा । अंग्घाहिति त्ति वा बूया अस्सादेहिति व त्ति वा ॥ ७२३ ।। फरिसाहिति त्ति वा बूया तधा चिंतेहिति त्ति वा । मंतेहिति त्ति वा बूया णिच्छयं णाहिति त्ति वा ॥ ७२४ ॥ वज्जिहिते गिज्जिहिते वायेहिति धाहिति । ल्हासेहिति त्ति वा बूया तधा पढिहिति त्ति वा ॥ ७२५ ॥ ण्हाहिते त्ति विलिंपिहिति ण्हाणं आहेच्छिति ति वा । सिरं भरेहते व त्ति आविधिहिति वासितं ॥ ७२६ ॥ णिवसिहिति वत्थाणि तधा पांगुहिति ति वा । पसाधेहिति त्ति वलये भूसणाणि विणेच्छिति ॥ ७२७ ।। अलंकारेहिते व त्ति पडिकम्मं काहिति त्ति वा । माणेहिति त्ति वा पच्छा तधा सोभिहिते त्ति वा ॥ ७२८ ॥ आतिगंछिति ति वा बूया समेहिति रमेहिति । एते उत्ता समा सद्दा जे भवंति अणागता ॥ ७२९ ।। __ अणागतम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गाम गिहे वि वा ॥ ७३० ॥ पुरिसे चतुप्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ७३१ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ ७३२ ।। लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ७३३ ।। एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ७३४ ।। ॥ अणागताणि सम्मत्ताणि ॥ ११ ॥ छ । 20 30 [१२ पण्णासं अब्भंतराणि] अब्भंतराणि पण्णासं पवक्खामऽणपुव्वसो । सरीरत्थाणि जाणंगे सरीराबाहिराणि य ॥ ७३५ ॥ पाद-पाणितलाणं च जंघोरुब्भंतराणि य । कक्ख-ऽक्खि-वक्खणाणं च णाभीय मेहणस्स य ॥ ७३६ ॥ १णं विणि हं० त० ॥ २ आगमि सप्र० ॥ ३ धण्ण त्तेवं हं० त० ॥ ४ वट्टिहिते हं० त० ॥ ५ ति भोक्खति चिट्ठतिस्सति । भवि सि० ॥ ६ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ७ अगहिते हं० त० विना ॥ ८ अग्घाहिते हं० त० ॥ ९ वथिहिए गच्छिहिए वाये हं० त० ॥ १० वाविहिति हं० त० विना ॥ ११ आहेकिति त्ति वा । थिरं भरेहिते हं० त० ॥ १२ विणिच्छति हं० त० विना ॥ १३ सोभहिते हं० त० विना ॥ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब्भंतराणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ हितयस्सावि समूहस्स कण्णाणं णासिकाय य । बाहुणालीय हत्थाणं सोणीआ व गुदाय य ॥ ७३७ ।। मत्थकस्स णिडालस्स गीवा-गंडाणमेव य । भुमगाणं चेव जंतूणं उरस्स उदरस्स य ॥ ७३८ ॥ [....................................................... | ................... .................. ॥] एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं किंचि वि पसत्थं तं सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७३९ ।। पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य धण्णो य सुहभागीय अब्भंतरको ति य ॥ ७४० ॥ 5 इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । - धण्णा य सुहभागी य अब्भंतरयभारिया ॥ ७४१ ॥ पुरिसस्स विधं पुच्छे बूया अब्भंतरं ति य । पमदाय विधं पुच्छे तं पि अब्भंतरं वदे ॥ ७४२ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । रायब्भंतरकस्सायं कण्णा विज्जिहिते लहुं ॥ ७४३ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्ज अत्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गम्भिणि परिपुच्छेज्ज चिरा पुत्तं पयाहिति ॥ ७४४ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज राजपोरुसमादिसे । रण्णो य अब्भंतरको भवे सव्वरहस्सिको ॥ ७४५ ॥ 10 पवासं परिपुच्छेज्ज चिरा मोक्खो भविस्सति । [पउत्थं परिपुच्छेज्ज .......... ............] || ७४६ ॥ भयं च परिपुच्छेज्ज भयं णत्थि त्ति णिद्दिसे । खेमं च परिपुच्छेज्ज खेममत्थि ति णिदिसे ॥ ७४७ ॥ संधि वा परिपुच्छेज्ज अत्थि संधि त्ति णिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ७४८ ॥ जयं च परिपुच्छेज्ज जयो अत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोग्गं परिपुच्छेज्ज आरोगमिति णिदिसे ॥ ७४९ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । मरणं च परिपुच्छेज्ज णत्थि मरणं ति णिद्दिसे ॥ ७५० ॥ 15 जीवितं परिपुच्छेज्ज अस्थि तेवं वियागरे । आबाधितं च पुच्छेज्ज समुट्ठाणंऽस णिद्दिसे ॥ ७५१ ॥ अणावुट्टि च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासारत्तं च पुच्छेज्ज उत्तमो त्ति वियागरे ॥ ७५२ ॥ अपातयं च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज महामेह उवद्वितो ॥ ७५३ ॥ सस्सस्स वापयं पुच्छे णत्थि तेवं वियागरे । सस्सस्स संपयं पुच्छे उत्तमा सस्ससंपदा ॥ ७५४ ॥ णटुं च परिपुच्छेज्ज लाभं तस्स वियागरे । णट्ठमाधारइत्ताणं तकं अब्भंतरं भवे ॥ ७५५ ॥ 20 बाहिरऽब्भंतरं पुच्छे अब्भंतरगमादिसे । o धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज धण्णं ति य वियागरे || ७५६ ।। जं किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णस्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७५७ ॥ तधा खेत्तं तधा वत्धुं तधा दंडं तधा मणि । बिपदं चतुप्पदं सव्वं धण्णमत्थि त्ति यं वदे ॥ ७५८ ॥ वत्थमाभरणं भंडं अंतेपुरवरं जणं । सुवण्ण-रुप्प-मणि-रत्तं थिरमब्भंतरं वदे ॥ ७५९ ॥ जधा पुण्णामधेयेसु सव्वो अत्थो सुभा-ऽसुभो । तधा सुभा-ऽसुभं सव्वं वदे अब्भंतरेसु. वि ॥ ७६० ॥ 25 अब्भंतरे य जाणेज्जो समा सद्दा भवंति जे । अब्भंतरं ति वा बूया तधा अंतेपुरं ति वा ।। ७६१ ॥ अब्भंतरं वा गामे त्ति पुरे अब्भंतरं ति वा । अभंतरं वा खेडे त्ति घरं अभितरं ति वा ॥ ७६२ ॥ अंतोगामे त्ति वा बूया तधंतोणगरे त्ति वा । अंतोखेडे त्ति वा बूया तधंतोघरे त्ति वा ॥ ७६३ ॥ अभितरं देवकुले अंतोदेवकुले त्ति वा । अब्भंतरे मुहे व त्ति तधंतोमुहे त्ति वा ॥ ७६४ ॥ अब्भंतरं तु वारीय अंतोवारीय वा पुणो । अब्भंतरं कोत्थलगे अंतोकोत्थलके त्ति वा ॥ ७६५ ॥ 30 जम्मि कम्मियि भंडम्मि अंतो अब्भंतरं ति वा । एते उत्ता समा सद्दा जे तु अब्भंतरा भवे ॥ ७६६ ॥ __ अब्भंतरम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे य णगरे गामे गिहे वि वा ॥ ७६७ ॥ पुरिसे चतुप्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लिगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ७६८ ॥ १ > एतच्चिहान्तर्गते उत्तरार्ध-पूर्वार्धे हं० त० न स्तः ॥ २ पोट्टसमा हं० त० ॥ ३ <एतच्चिह्नान्तर्गतमुत्तरार्धं हं० त० नास्ति ॥ ४ 'रत्तं' रत्नमित्यर्थः ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 ८६ 10 15 20 25 30 अंगविज्जापइण्णयं [ १३ पण्णासं अब्भंतरब्धंतराणि आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ ७६९ ॥ रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण - धणेसु य ७७० 11 तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ॥ ७७१ ॥ ॥ अब्भंतरं सम्मत्तं ॥ १२ ॥ छ ॥ पाणे य भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे [ १३ पण्णासं अब्भंतरब्धंतराणि ] अब्भंतरं तु जेा ते उम्मट्ठे वियाणिया । अब्भंतरअब्भंतरके फलं तत्थ वदे सुभं ॥ ७७२ ।। अत्थविद्धि जयं लाभं जं चऽण्णं पि सुभं भवे । एताणि आमसं पुच्छे अब्भंतरतरं वदे ॥ ७७३ ॥ पुरिसं परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । अब्भंतरब्भंतरको रण्णो णिच्चं सुही भवे ॥ ७७४ || इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । रायब्धंतरकस्सायं भज्जा तु भविस्सति ॥ ७७५ ॥ पुरुसद्वविधं पुच्छे अब्भंतरतरं वदे । थिए अत्थविधं पुच्छे अब्भंतरतरं वदे ।। ७७६ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । अब्भंतरब्धंतरको रण्णो होहिति सेवगो ।। ७७७ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज रायवल्लभको भवे । अब्भंतरब्धंतरको रण्णो सव्वरहस्सितो ॥ ७७८ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज सधणो खिप्पमेहिति ॥ ७७९ ॥ बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्ज चिरा मोक्खो भविस्सति ॥ ७८० ॥ भयं च परिपुच्छेज्ज भयं णत्थि ति णिद्दिसे । खेमं च परिपुच्छेज्ज खेममत्थि त्ति णिदिसे ॥ ७८१ ॥ संधि च परिपुच्छेज्ज अत्थि संधि ति णिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे ॥ ७८२ ॥ जयं च परिपुच्छेज्ज जयो अत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोग्गं परिपुच्छेज्ज आरोग्गमिति णिद्दिसे ॥ ७८३ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । मरणं परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे ॥ ७८४ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज सुइरं उत्तमं भवे । आबाधितं च पुच्छेज्ज समुट्ठाऽसे णिद्दिसे ॥ ७८५ ॥ अणावुट्ठि च पुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । वस्सारत्तं च पुच्छेज्ज णिद्दिसे उत्तमुत्तमं ॥ ७८६ ॥ अपातयं च पुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज उत्तमं वासमादिसे ॥ ७८७ ॥ सस्सस्स वापदं पुच्छे णत्थि तेवं वियागरे । सस्सस्स संपयं पुच्छे णिद्दिसे उत्तमुत्तमं ॥ ७८८ ॥ गठ्ठे च परिपुच्छेज्ज लाभं तस्स वियागरे । णट्ठमाधारये तं च अब्भंतरतरं वदे ।। ७८९ ।। बाहिरब्धंतरं वत्ति अब्भंतरब्भंतरं वदे । धण्णं च पुरिपुच्छेज्ज धण्णं तेण वियागरे । ७९० ॥ जं किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि ति णिद्दिसे । [ अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे ।। ७९१ ॥] वत्थमाभरणं भंडं अंतेपुरवरं जणो । सुवण्ण-रुप्प - मणि-मुत्तं अब्भंतरतरं थिरं ।। ७९२ ।। तधा खेत्तं तधा वत्युं खग्गं दंडं तधेव य । सव्वं सज्जीव- णिज्जीवं धण्णमत्थि ति णिद्दिसे ॥ ७९३ ॥ अब्भंतरतरं एतं विभावेतूण अंगवी । पुण्णामधेये हि फलं विसिट्ठतरकं वदे ॥ ७९४ ॥ एवमेतं जधा वृत्तं विभत्तीसु वियागरे । समे सद्दे य जाणेज्जो अब्भंतरतरा हि जे ॥ ७९५ ॥ अब्भंतरब्भंतरतो अंतो अंतो त्ति वा पुणो । तधा आहारमाहारे अब्भंतरतरं ति वा ॥ ७९६ ॥ पविट्ठोत्ति व यो बूया तधा अतिगतो त्ति वा । तधाऽतिसरितो व त्ति तथा लीणो त्ति वा पुणो ॥ ७९७ ॥ तैधा उक्कड्डूमोकड्डो अव्वोकड्ढे त्ति वा पुणो । तधा ओगूढमुवगूढो तधा वल्लभवल्लभो ॥ ७९८ ॥ १ हस्तचिह्नगतोऽयं पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ २ वत्थ हं० त० विना ॥ ३ सिहं० त० ॥ ४ एतदुत्तरार्धं सर्वासु प्रतिषु नास्ति ॥ ५ तहा उक्कट्ठमोकट्ठो अव्वोकिट्टे त्ति हं० त० ॥ For Private Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पण्णासं बाहिरब्भंतराणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ अतिदूरे पविट्ठो त्ति अतिगतो त्ति व दूरत । दूरातिसरितो व त्ति दूरोगाढो त्ति वा पुणो ॥ ७९९ ॥ तधा अणुपविट्ठो त्ति तधा अतिगतो त्ति वा । तधा गाढोपगूढे त्ति गाढलीणं ति वा वदे ॥ ८०० ।। तधा अल्लीणमल्लीणो अच्चल्लीणो त्ति वा वदे । अब्भंतरब्भंतरगो एते सद्दा समा भवे ॥ ८०१ ॥ ___ अक्कप्पविढे णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गामे गिहे वि वा ॥ ८०२ ॥ पुरिसे चतुष्पदे चेव पक्खिम्मि उदकेचरे । कीडे किविल्लगे चेव परिसप्पे तधेव य ।। ८०३ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य ॥ ८०४ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ।। ८०५ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ८०६ ॥ ॥ अब्भंतरब्भंतराणि सम्मत्ताणि ॥ १३ ॥ छ । [१४ पण्णासं बाहिरब्भंतराणि] 10 अब्भंतरा तु निम्मट्ठा बाहिरब्भंतरा तु ते । अब्भंतराणंतरिया अध वुत्ता सुभा-ऽसुभा ॥ ८०७ ॥ अत्थलाभं जयं वद्धि जं चऽण्णं सुभं भवे । एताणि आमसं पुच्छे बाहिरब्भंतरं वदे ।। ८०८ ।। पुरिसं च परिपुच्छेज्ज बाहिरब्भंतरं भवे । इत्थि च परिपुच्छेज्ज बाहिरब्भंतरा भवे ॥ ८०९ ॥ पुरिसस्सऽत्थविधं पुच्छे बाहिरब्भंतरं भवे । थिया अत्थविधं पुच्छे बाहिरब्भंतरं वदे ॥ ८१० ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज बाहिरब्भंतरस्स तु । खिप्पं विज्जिहिति कण्णा एवं बूयांगचिंतको ।। ८११ ॥ 15 गब्भं च परिपुच्छेज्ज अस्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गब्भिणी परिपुच्छेज्ज खिप्पं पुत्तं पयाहिति ॥ ८१२ ।। कम्मं च परिपुच्छेज्ज बाहिरब्भंतरं वदे । पडिहारं संधिवालं वा तधा अत्थोपणायकं ॥ ८१३ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज सफलोऽयमिति णिद्दिसे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज सधणो आगमिस्सति ॥ ८१४ ।। बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि बंधो त्ति णिद्दिसे । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्ज मोक्खं तस्स वियागरे ॥ ८१५ ॥ भयं च परिपुच्छेज्ज भयो णत्थि त्ति णिद्दिसे । खेमं च परिपुच्छेज्ज खेममत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ८१६ ॥ 20 संधि वा परिपुच्छेज्ज अस्थि संधि त्ति णिद्दिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ८१७ ।। जयं च परिपुच्छेज्ज जयो अत्थि त्ति णिद्दिसे । आरोग्गं परिपुच्छेज्ज आरोग्गमिति णिदिसे ॥ ८१८ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज णत्थि रोगो त्ति णिद्दिसे । मरणं च जति पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ ८१९ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज अत्थि तेवं वियागरे । आबाधितं च पुच्छेज्ज समुट्ठाणंऽस णिद्दिसे ॥ ८२० ॥ अणावुढेि च पुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । वस्सारतं च पुच्छेज्ज मज्झिमो त्ति वियागरे ॥ ८२१ ॥ 25 अपातयं च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज मज्झिमं वासमादिसे ॥ ८२२ ॥ कया वासं ति वा बूया संधीदिवसेसु णिद्दिसे । दिवा रत्तिं ति वा बूया संझाकाले त्ति णिद्दिसे ॥ ८२३ ॥ सस्सस्स वापदं पुच्छे णत्थि तेवं वियागरे । सस्सस्स संपयं पुच्छे मज्झिमा सस्ससंपदा ॥ ८२४ ॥ णटुं च परिपुच्छेज्ज लाभं तस्स वियागरे । णट्ठमाधारयित्ता य बाहिरब्भंतरं वदे ॥ ८२५ ॥ अब्भंतरं ति बझं ति बाहिरब्भंतरं वदे । धणं धण्णं ति पुच्छेज्ज मज्झिमं ति वियागरे ॥ ८२६ ॥ 30 जं किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ८२७ ।। तधा खेत्तं तधा वत्थु खग्गं दंडं मणि तधा । सव्वं सज्जीव-णिज्जीवं मज्झागतमत्थि य ॥ ८२८ ॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 ८८ 10 15 20 25 30 अंगविज्जापइण्णयं वत्थमाभरणं भंडं अंतेपुरवरं जणं । रुप्पं मणि रयणं मज्झागममत्थि य ॥ ८२९ ।। एवमेवं विभावित्ता णिदिसे अंगचितओ । समे सद्दे य जाणेज्जा बाहिरब्धंतरा हि जे ॥ ८३० ॥ बाहिरब्भंतरा सद्दा समुदीरंति मिस्सका । अब्भंतरा य बहुला बाहिरब्भंतरा तु ॥। ८३१ ।। क्खत्ते देवते यावि तधा णक्खत्तदेवते । पुप्फे फले व देसे वा नगरे गाम गिहे वि वा ॥ ८३२ ॥ पुरिसे चतुष्पदे चेव पक्खिम्मि उदकेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ८३३ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तथा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ।। ८३४ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ।। ८३५ ।। एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ॥ ८३६ || ॥ बाहिरब्धंतराणि सम्मत्ताणि ॥ १४ ॥ छ ॥ [ १५ पण्णासं अब्भंतरबाहिराणि ] अंब्यंतरबज्झस्स खिप्पं विज्जिहिए त्तिय ॥ ८४२ ॥ अब्भंतराणि सेवित्ता बाहिराणि णिसेवति । अब्भंतरबज्झा ते सव्वत्थे ण पसस्सते ॥ ८३७ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं किंचि पसत्थं तं सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे || ८३८ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज अघण्णो दूभगो त्ति य । असिद्धत्थो त्ति तं बूया अब्भंतरबाहिरो ।। ८३९ ।। इत्थि वा परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य असिद्धत्थ त्ति तं बूया अब्भितरबाहिरा ॥। ८४० ॥ पुरिसत्थविधं पुच्छे वदे अब्भितरबाहिरं । थिया अत्थविधं पुच्छे अभितरबाहिरं वदे ।। ८४१ ॥ कण्णामवि असिद्धत्था अधण्णा दूभग त्तिय । कम्मं च परिपुच्छेज्ज अब्भितरबाहिरं वदे । पडिहारि संधिवालं वा अब्भागारिगमेव य ॥ ८४३ ॥ पवासे पुच्छिते अत्थि पोसिते य णिरत्थगो । बंधो य पुच्छिते णत्थि बद्धो खिप्पं मुच्चति ॥ ८४४ ॥ भयं अत्थि त्ति वा ब्रूया णत्थि खेमं ति पुच्छिते । संधि पुच्छे णे भवति विग्गहो य णिरत्थगो ॥ ८४५ ॥ आरोगो यऽत्थ ण भवे रोगं मरणं च णिद्दिसे । णत्थि त्ति जीवियं ब्रूया ण समुट्ठेति आतुरो ॥ ८४६ ॥ अपातवमणावुट्ठि सस्सवापत्तिमेव य । णत्थि त्ति णिद्दिसे सव्वं णटुं तत्थ ण दीसति ॥ ८४७ ॥ वस्सारत्तं च वासं च णट्ठस्स व ण दंसणं । तधा खेत्तं तधा वत्युं सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे ॥ ८४८ ॥ अब्भंतरं ति बज्झं ति अब्धितरबाहिरं वदे । धण्णं धणं च पुच्छेज्ज अधण्णमिति णिद्दिसे ॥ ८४९ ॥ जं किंचि पसत्थं तं सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ८५० ॥ [ १५ पण्णासं अब्भंतरबाहिराणि अब्भंतरबाहिरका सद्दा सूतंति मिस्सगा । अब्भंतरद्विका ते तु अब्भंतरबाहिरा भवे ॥ ८५१ ॥ आदिच्चे चेव णक्खत्ते वामिस्से देवतेसु य । तित्थे पुप्फ फले देसे णगरे गाम गिहेसु य ।। ८५२ ॥ पुरुसे चतुष्पदे यावि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लए यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ८५३ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य ॥ ८५४ ॥ लोहे यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ।। ८५५ ॥ एम्म पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ।। ८५६ ।। ॥ अभितरबाहिराई सम्मत्ताई ॥ १५ ॥ छ ॥ १ हस्तचिह्नगतमुत्तरार्धं हं० त० एवास्ति ॥ ३ अरोगो हं० त० ॥ ४ भूतंति हं० त० ॥ २ ण वा बूया विग्गहो सि० ॥ ण [ ५ तिथि पुप्फ हं० त० विना ॥ ...........] विग्गहो सं ३ पु० ॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ पण्णासं बाहिरबाहिराणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ [१६ पण्णासं बाहिराणि] एतेसामेव सव्वेसि पडिपक्खे बाहिराणि तु । सेवमाणो जया पुच्छे पसत्थं णाभिनिद्दिसे ॥ ८५७ ।। एतेसं सेवणे जं तु कम्मपुच्छं वियागरे । वणकम्मिकं व णाविकम्म बाहिरं कट्ठहारकं ॥ ८५८ ॥ आरामपालकं जाणे उज्जाणस्स वणस्स वा । पुप्फुच्चागं फलुच्चागं वत्तणीपालकं तहा ॥ ८५९ ॥ पुरिसं इत्थि च अत्थं च गब्भं पोसितमागमं । तधा खेमं च संधि वा जयाऽऽरोग्गं च जीवितं ॥ ८६० ॥ 5 वस्सारत्तं च वासं च सस्सं णटुस्स दंसणं । खेत्त वत्थु धणं धण्णं मेत्ती संजोगमेव य ॥ ८६१ ॥ खग्गं वम्मं च चम्मं च दंडं अच्छादणं मणि । जं किंचि पसत्थं सा सव्वं नत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ८६२ ॥ पवासं णिग्गमं मोक्खं गम्भिणीय पजायणं । कण्णापवाहणं वा वि भयं बद्धस्स मोक्खणं ॥ ८६३ ॥ विग्गहं मरणं रोगं अणावुट्टि अपातयं । सस्सस्स वापदि णासं अण्णतिट्रमणिव्वुर्ति ॥ ८६४ ॥ अपमाणमसक्कारं णिराकारं पराजयं । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥ ८६५ ॥ 10 अब्भंतरं ति बझं ति बाहिरं ति वियागरे । धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज अधणं ति वियागरे ॥ ८६६ ॥ पसत्थं णत्थि तं सव्वं अप्पसत्थं च अस्थि तं । समे सद्दे य जाणेज्जो बाहिरा जे भवंतिह ।। ८६७ ।। बाहिरं ति व जो बूया परिबाहिरकं ति वा । अंते बझं ति वा बूया अंतपालो त्ति वा पुणो ॥ ८६८ ॥ गामस्स बज्झतो व त्ति बज्झतो णगरस्स वा । खेडस्स बज्झतो व त्ति बज्झतो वा घरस्स तु ॥ ८६९ ॥ पच्चंतो त्ति वा बूया पच्चंतवसति त्ति वा । तधा पच्चंतपालो त्ति एक्कतो त्ति व यं वदे ॥ ८७० ॥ 15 बाहिंबाहिं ति वा बूया बाहिरेणं ति वा पुणो । एते उत्ता समा सद्दा बाहिरा जे भवंतिह ॥ ८७१ ॥ ___णक्खत्ते पच्छिमदारे देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गामे गिहे वि वा ॥ ८७२ ।। पुरिसे चतुप्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ८७३ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ ८७४ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ।। ८७५ ।। एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंततो ॥ ८७६ ॥ ॥ बाहिराणि (सम्मत्ताणि) ॥ १६ ॥ छ । 20 _ [१७ पण्णासं बाहिरबाहिराणि] णिम्म? बाहिरे बूया सव्वबाहिरबाहिरे । ते सेवमाणो पुच्छेज्ज बाहिरत्थं वियागरे ॥ ८७७ ।। पुरिसं च परिपुच्छेज्ज अधण्णो दूभगो त्ति य । असिद्धत्थो त्ति तं बूया बाहिरो ति य णिद्दिसे ॥ ८७८ ।। 25 इत्थी य परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य । असिद्धत्थ त्ति तं बूया बाहिर त्ति य णिद्दिसे ॥ ८७९ ॥ पुरिसस्सऽत्थविधं पुच्छे बाहिर त्ति वियागरे । थिया अत्थविधं पुच्छे बाहिर त्ति वियागरे ।। ८८० ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य । असिद्धत्थ त्ति तं बूया खिप्पं विज्जिहिति त्ति य ॥ ८८१ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्ज णत्थि गब्भो ति णिदिसे । गम्भिणी परिपुच्छेज्ज मतं सा जणयिस्सति ॥ ८८२ ॥ 30 १ एएसिमेव हं० त० ॥ २ सेवमाणो य पुच्छेज्ज पसत्थं णत्थि तं भवे हं० त० विना ॥ ३ पुव्वं हं० त० विना ॥ ४ आरामसालं जाणेज्ज सस्सवण्णस्स वा पि वा हं० त० ॥ ५ तं हं० त० ॥ ६ वापतिं हं० त० ॥ ७ अप्पमाणथिरसक्कार सं ३ पु० सि० । अप्पमायमसक्कारं हं० त० ॥ ८ कारं च अववयं हं० त० ॥ ९ ति मग्गं ति हं० त० ॥ १० अधण्णं ति हं० त० विना ॥ ११ एकंतो त्ति व जो वदे हं० त० ॥ १२ चेव हं० त० ॥ १३ अधणो हं० त० ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं [१८ पण्णासं ओवाताणि कम्मं च परिपुच्छेज्ज वत्तणीपालमग्गियं । तुंबस्स मग्गितं वा वि तधा बाहिरंतुंबियं ॥ ८८३ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज अफलो त्ति वियागरे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज परओ सो गमिस्सति ॥ ८८४ ।। बंधं च परिपुच्छेज्ज णिरत्थं बंधमादिसे । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्ज मोक्खो तस्स पवासणे ॥ ८८५ ।। भयं पुच्छे भयं भवति खेमं पुच्छे ण होहिति । संधि पुच्छे ण भवति विग्गहो य णिरत्थगो ॥ ८८६ ॥ जयं पुच्छे ण भवति आरोगो वि ण होहिति । रोगं च मरणं चेव अत्थि तेवं वियागरे ॥ ८८७ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । आबाधितं च पुच्छेज्ज मतप्पाओ मतो त्ति वा ॥ ८८८ ।। अपातयमणावुढेि सस्सवापत्तिमेव य । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि ति णिद्दिसे ॥ ८८९ ।। वस्सारत्तं च वासं च सव्वं णट्ठस्स दंसणं । तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ८९० ॥ धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज अधण्णं ति वियागरे । समे सद्दे तु जाणेज्जो जे तु बाहिरबाहिरा ॥ ८९१ ॥ तधा णिच्छुद्धणिच्छुद्धं तधा णिग्गतणिग्गतं । तधा णीहारणीहारे तधा गतगते त्ति वा ॥ ८९२ ॥ [तधा] वणवणं व त्ति अडवीअडवि त्ति वा । परतो-परतो व त्ति परंपरगतो त्ति वा ॥ ८९३ ॥ बझंबज्झं ति वा बूया तधा बाहिरबाहिरं । एते उत्ता समा सद्दा जे तु बाहिरबाहिरा ॥ ८९४ ॥ बज्झमंडलचारिम्मि णक्खत्ते देवते तधा । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गाम गिहे वि वा ॥ ८९५ ।। पुरिसे चतुप्पदे वा वि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ ८९६ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थमाभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ ८९७ ।। लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ८९८ ॥ एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ।। ८९९ ।। ॥ बाहिरबाहिराणि सम्मत्ताणि ॥ १७ ॥ छ । 10 20 [१८ पण्णासं ओवाताणि] ओवाताणि पण्णासं पवक्खामऽणुपुव्वसो | अब्भंतराणि सव्वाणि उमट्ठाणि जता भवे ॥ ९०० ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ९०१ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । धण्णो य सुहभागी य पुरिसोऽयमिति णिदिसे ॥ ९०२ ॥ इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य इत्थीयमिति णिद्दिसे ॥ ९०३ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । ओवातकस्स पुरिसस्स कण्णा विज्जिहिति त्ति य ॥ ९०४ ॥ जं किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थि ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ९०५ ॥ ___ कम्मं च परिपुच्छेज्ज सुद्धकम्मं वियागरे । उल्लायको कंसिको वा सुद्धाकारी य होक्खति ॥ ९०६ ॥ अधामयं ति वा बूया ओवातो त्ति ससि ति वा । सेतं ति पंडरं व त्ति विमलं णिम्मलं ति वा ॥ ९०७ ॥ सुद्धं ति वाऽतिविसुद्धं ति तधा वितिमिरं ति वा । सप्पभं सुचिमं ति त्ति पितवण्णं ति पीतकं ॥ ९०८ ॥ पउमकेसरवण्णं ति तिगिच्छसरिसं ति वा । कोरेंट चंपको व त्ति कणिकार असितं ति वा ॥ ९०९ ।। जं चऽण्णं पीतकं णिद्धं जं वा वि रजतप्पभं । तेसं संकित्तणासद्दा ओवातेहि समा भवे ॥ ९१० ॥ जधा अब्भंतरे सुत्तं सव्वं दि8 सुभा-ऽसुभं । तधोवातेसु सव्वेसु फलं बूया सुभा-ऽसुभं ॥ ९११ ॥ तधोवातम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुष्फे फले व देसे वा णगरे गाम गिहे ति वा ॥ ९१२ ।। १ गुंठस्स हं० त० विना ॥ २ गुंठितं हं० त० विना ॥ ३ परितो सं३ पु० ॥ ४ धण्णं धण्णं व हं० त० ॥ ५ उल्लायंको हं० त० विना ॥ ६ आवागयं हं० त० ॥ ७ समि त्ति हं० त० ॥ ८ पियमण्णं हं० त० ॥ ९ अतिगं हं० त० ॥ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९१ १९ पण्णासं सामोवाताणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ पुरिसे चतुप्पदे वा वि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लके यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ९१३ ।। पाणे वा भोयणे वा [वि] वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ ९१४ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु त । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ९१५ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ९१६ ॥ ॥ ओवाताणि सम्मत्ताणि ॥ १८ ॥ छ । [१९ पण्णासं सामोवाताणि] सामोवाताणि पण्णासं जाणि अब्भंतराणि तु । अवत्थिताणि सव्वाणि सव्वत्थेसु पसस्सते ॥ ९१७ ।। एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ९१८ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । धण्णो य सुहभागी य पुरिसोऽयमिति णिद्दिसे ॥ ९१९ ।। इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य इत्थीयमिति णिद्दिसे ॥ ९२० ॥ 10 कण्णं च परिपुच्छेज्ज धण्णा विज्जिहिते लहुं । वण्णं च परिपुच्छेज्ज सामोवातं वियागरे ॥ ९२१ ॥ जं किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ९२२ ।। अब्भंतरेसु सव्वेसु जधा दिटुं सुभा-ऽसुभं । सामोवातेसु वि तहा फलं बूया सुभा-ऽसुभं ॥ ९२३ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज तत्थ अब्भंतरं वदे । दीविकाधारकं वा वि ........ ............. ॥ ९२४ ॥ उज्जालकं वा जाणेज्जा जं चऽण्णं एरिसं भवे । कम्मपुच्छाय णिद्देसे एवमादि फलं वदे ॥ ९२५ ॥ 15 सुद्धसुतसामं आमं अरुणाभमरुणं ति वा । अरुणस्स देसकालो त्ति अरुणे उन्नते त्ति वा ॥ ९२६ ॥ अरुणोदये त्ति वा बूया अरुणो उदितो त्ति वा । एते उत्ता समा सद्दा सामोवाता भवंति जे ॥ ९२७ ॥ सामोवातम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गाम-गिहेसु वा ॥ ९२८ ।। पुरिसे चतुप्पदे यावि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ९२९ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ।। ९३० ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रतणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ९३१ ।। एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंततो ॥ ९३२ ॥ ॥ स(सा)मोवाताणि सम्मत्ताणि ॥ १९ ॥ छ । [२० पण्णासं सामाणि] बाहिरब्भंतरा सव्वे साम तेवं वियागरे । तेसु अत्थं च वद्धिं च सुहं लाभं च णिद्दिसे ॥ ९३३ ।। 25 पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य ॥ ९३४ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज धण्णा विज्जिहिते लहुं । वण्णं च परिपुच्छेज्ज सामा तत्थ वियागरे ॥ ९३५ ॥ दीविकाहारिका णावा तधा पादीविकं पि वा । उज्जालकं कावकरं गितकारिं च णिद्दिसे ॥ ९३६ ॥ ताणि धम्मवणट्ठाणि सव्वाणेव करिस्सति । सव्वभंडेसु कुसलो णट्टको वा वि होक्खति ॥ ९३७ ।। अग्गिको जाणको वा वि आजीवणिको तधा । कम्मपुच्छाय णिद्दिसे एवमादि फलं वदे ॥ ९३८ ॥ 30 सामं गीतं ति वा बूया अधवा गीत-वाइतं । गाअको गाणकं व ति गीतकं मधुरं ति वा ॥ ९३९ ॥ हुतासिणा सिहा व त्ति तथा अग्गिसिह त्ति वा । तधा दीवसिहा व त्ति ओदीवसिह त्ति वा ॥ ९४० ॥ १ धन्नं च हं० त० विना ॥ २ सण्णाविज्जि विया हं० त० विना ॥ ३ भवे हं० त० ॥ ४ सुद्धसुयसामं अ° हं० त० ।। ५ उदत्ते त्ति हं० त० ॥ ६ 'कावकरं' काव्यकरमिति अर्थः सम्भाव्यते ॥ ७ भवे हं० त० ॥ ८ हुयासणा हं० त० ॥ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 ९२ 15 20 25 अंगविज्जापइण्णयं [ २१-२२ पण्णासं सामकण्हाणि कण्हाणि य दीविगाय सिहा वत्ति चुडिलीय सिहि त्ति वा । एते उत्ता समा सद्दा मज्झं एतेसु णिद्दिसे ॥ ९४१ ।। तधा सामम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा नगरे गाम-गिहेसु वा ॥ ९४२ ॥ पुरिसे चतुप्पदे यावि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लके यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ९४३ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तथा ।। ९४४ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण - धणेसु य ॥ ९४५ ॥ एम्म पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ॥ ९४६ ॥ ॥ सामाणि सम्मत्ताणि ॥ २० ॥ छ ॥ [ २१-२२ पण्णासं सामकण्हाणि कण्हाणि य ] पण्णासं सामकहाणि बाहिराणि वियागरे । समप्फलाणि बेज्झेहि पसत्थेण प्पसस्सति ॥ ९४७ ॥ जाणेव बज्झबज्झाणि ताणि कण्हाणि णिद्दिसे । अप्पसत्थाणि सव्वाणि सव्वत्थेसु वियागरे ॥ ९४८ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज अधण्णो दूभगो त्ति य । इत्थि च परिपुच्छेज्ज अधण्णा दूभग त्ति य ॥ ९४९ ॥ कण्णामवि य सिद्धत्था अधण्णा दूभग त्तिय । वण्णं च परिपुच्छेज्ज कालको ति वियागरे ।। ९५० ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज इमं कम्मं वियागरे । णीलीकारकं वा वि तधा इंगालकारकं ॥ ९५१ ॥ णीलहारककम्मं वा तथा इंगालहारकं । णीलवाणियकं वा वि तधा इंगालवाणियं ॥ ९५२ ॥ अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । जं किंचि पसत्थं तं सव्वं णत्थि त्ति णिदिसे ।। ९५३ ॥ कण्हेसु वदे फलं सव्वं सुभासुभं ॥ ९५४ ॥ । जधा तु बज्झबज्झेसु सव्वं दिनं सुभासुभं । तधेव कण्हं णीलं ति वा बूया कालकं असितं ति वा अंजणं कज्जलं व त्ति रुगणं भंगमुत्तमं । खंजणं सूरत कोकिला व त्ति गोपच्छेलको त्ति वा । मातंगो त्ति मैटिंगो त्ति गयो त्ति महिसो त्ति वा । तधा कण्हकरालो त्ति कण्हतुलसि त्ति वा पुण । मसी आरिको वत्ति कण्हालो कण्हमोयको । जे वऽण्णे एवमादीया सहा कण्हसमा भवे ।। ९६० । असितं किसिणं व त्ति हरितं ति व जो वदे ।। ९५५ ॥ भिगपत्तं ति गवलं ति व जो वदे ।। ९५६ ॥ भमरो मोरकंठो त्ति वायसोत्ति व जो वदे ॥ ९५७ ॥ बलाहको त्ति मेघो त्ति तथा जलहरो त्ति वा ॥ ९५८ ॥ बाणं णीलुप्पलं व त्ति पामेच्छा णेलकँठको ।। ९५९ ।। णक्खत्ते देवते यावि तधा णक्खत्तदेवते । पुप्फे फले व देसे वा नगरे गाम गिहे वि वा ।। ९६१ ।। पुरिसे चतुष्पदे यावि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तव य ॥ ९६२ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ।। ९६३ ।। लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण - धणेसु य ॥ ९६४ ॥ एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ॥ ९६५ ॥ ॥ सामकहाणि कंण्हाणि Do [य] ( सम्मत्ताणि) ॥ २१ ॥ २२ ॥ छ ॥ [" पण्णासं अज्झोआताणि २३ पण्णासं अतिकण्हाणि २४" इति द्वारद्वयव्याख्यानं सर्वास्वपि प्रतिषु नास्ति ।] १ रज्जेहिं हं० त० ॥ २ सव्वमत्थि हं० त० विना ॥ ५ गोपेच्छेलगो त्ति हं० त० ॥ ६ मुर्तिगो हं० त० ॥ ७ ९० एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ३ भगणं हं० त० विना ॥ ४ भिगणवतिं ति हं० त० ॥ कंटको सं ३ पु० ॥ ८ सामकण्हाणि सम्मत्ताणि सि० ॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ [ २५ वीसतिं उत्तमाणि ] 10 वीसतिं उत्तमाणंगे पवक्खामऽणुपुव्वसो । मत्थको १ सीस २ संखा य ४ णिडालं ५ कण्णपुत्तका ७ ।। ९६६ ।। कण्णा ९ गंडो ११ ट्ठ १३ दंता य १४ णासा १५ णासपुडा तथा १६ । कणवीरका १८ अपंगा य २० वसतिं होंति उत्तमा ।। ९६७ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं च किंचि पसत्थं सा उत्तमं ति वियागरे ॥ ९६८ ॥ पुरुसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्तिय । धण्णो य सुहभागी य उत्तमो ति वियागरे ॥ ९६९ ॥ इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्तिय । धण्णा य सुहभागी य उत्तम त्ति वियागरे ।। ९७० ।। [पुंरिसस्सऽत्थविधं पुच्छे उत्तमं ति वियागरे ] । थिया अत्थविधं पुच्छे उत्तमं ति वियागरे ॥ ९७१ ।। कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । पुरिसस्स जुत्तामासायं कण्णा विज्जिहिते त्ति य ॥ ९७२ ॥ गब्धं च परिपुच्छेज्ज अत्थि गब्भो ति णिद्दिसे । गब्भिणी परिपुच्छेज्ज उत्तमं पुत्तमादिसे ॥ ९७३ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज उत्तमं कम्ममादिसे । राया वा रायमच्चो वा वित्तीतोसं करिस्सति ॥ ९७४ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज सफलो त्ति वियागरे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज सघणो आगमिस्सति । ९७५ ।। बंधं च परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्ज मोक्खं थाणं च णिद्दिसे ॥ ९७६ ॥ भयं च परिपुच्छेज्ज भयं णत्थि त्ति णिद्दिसे । खेमं च परिपुच्छेज्ज उत्तमं खेममादिसे ।। ९७७ ।। संधि च परिपुच्छेज्ज अत्थि तेवं वियागरे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज णत्थि तेवं वियागरे ॥ ९७८ ॥ जयं च परिपुच्छेज्ज उत्तमं जयमादिसे । आरोग्गं परिपुच्छेज्ज उत्तमं ति वियागरे ॥ ९७९ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज णत्थि त्वं वियागरे । पुच्छिते उत्तमं जीयं अकालस्स य उग्गमं ॥ ९८० ॥ अपातयमणावुद्धिं सस्सवापत्तिमेव य । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे ॥ ९८९ ॥ वस्सारत्तं च वासं च सस्सं णटुस्स दंसणं । खेत्तं वत्युं धणं धण्णं पसत्थं सव्वमेत्थि य धणं धणं ति पुच्छेज्ज धण्णं ति य वियागरे । समे सद्दे य जाणेज्जो उत्तमा जे भवंति उत्तमं ति व जो बूया तधुत्तमतरं ति वा । तधुत्तिमुत्तमं वा वि उत्तमा उत्तमं ति वा ॥ पवरं ति व जो बूया तधा पवरतरं ति वा । पवराणं पवरं वत्ति पवरातिपवरं ति वा ॥ विसिद्धं ति व .जो बूया विसितरकं ति वा । तं विसिद्वंविसिद्धं ति विसिट्ठतरकं ति वा ॥ वरिट्ठ ति व जो बूया वैरितरकं ति वा । तं वरिवरि ति तिरकं ति वा ॥ ९८७ ॥ उदारं ति व जो बूया उदारतरकं ति वा । तधुदारमुदारं ति उदारपवरं ति वा ॥ ९८८ ॥ पधाणं ति व जो बूया पंधाणतरकं ति वा । तं पधाणपधाणं ति पधाणपवरं ति वा ॥ ९८९ ॥ "जेट्टतरं ति वा । तधा जेट्ठातिजेट्टं वा जेट्ठाणं जेट्ठकं ति वा ॥ ९९० ॥ उक्कुट्टतरकं ति वा । तधा उक्कुट्ठमुक्कुट्टं समा सद्दा उ उत्तमा । ९९१ ॥ उत्तमम्मि य णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले वा देसे वा नगरे गामे गिहे वि वा ।। ९९२ ॥ पुरिसे चतुप्पदे वा वि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ९९३ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ।। ९९४ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रतणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ९९५ ॥ एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ॥ ॥ ९८४ ॥ ९८५ ॥ ९८६ ॥ वि जो बूया तधा उक्कुटुं ति व जो बूया 30 ९९६ ॥ ॥ उत्तमाणि ( सम्मत्ताणि) ॥ २५ ॥ छ ॥ २५ वीसतिं उत्तमाणि ] ९३ १-२ सुभभागी हं० त० ॥ ३ एतत् पूर्वार्द्ध प्रतिषु नास्ति ॥ ४ गीयं हं० त० ॥ ५ मादि य हं० त० ॥ ६-७ विसिद्वंतरकं हं० त० विना ॥। ८-९ वरिद्वंतरकं हं० त० विना ॥ १० पधाणंतरकं हं० त० विना ॥ १९ जेट्टंतरं हं० त० विना ॥ १२ उक्कुट्टंतरकं हं० त० विना ॥ ९८२ ॥ ९८३ ॥ 5 15 201 25 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ 5 अंगविज्जापइण्णयं [२८ दस जहण्णाणि [२६ चोद्दस मज्झिमाणि] मज्झिमाणि पवक्खिस्सं चोद्दसंगे जधा तधा । जत्तु १ थणंतर २ हिययं ३ उदरं वा वि जाणिया ४ ॥ ९९७ ॥ अंसा ६ बाहू ८ पबाहू य १० हत्था १२ हत्थतला तधा १४ । चोद्दसेताणि जाणीया मज्झिमत्थे पसस्सते ॥ ९९८ ।। एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं च किंचि पसत्थं सा मज्झिमत्थं वियागरे ॥ ९९९ ॥ पुरिसं इत्थि च अत्थं च कण्णं गब्भं च गब्भिणि । कम्मं पवासं पावासिं बंधं मोक्खं भया-ऽभयं ॥ १००० । संधि जयमारोग्गं जीवितं आतुरं खमं । वासारत्तं च वासं च सस्सं णट्ठस्स दंसणं ॥ १००१ ॥ खेत्तं वत्थु मणि दंडं छत्तं खग्गं तधेव य । जं किंचि पसत्थं सा मज्झिमं ति वियागरे । १००२ ।। अपातपमणावुद्धि सस्सवापत्तिमेव य । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १००३ ॥ धण्णं धणं ति पुच्छेज्जा मज्झिमं ति वियागरे । समे सद्दे य जाणेज्जो मज्झिमा जे भवंतिह ॥ १००४ ॥ बंधित्ता मज्झिमा अंगे जे सद्दा तेसु कित्तिया । एतेसु वि तधा चेव मज्झिमेसु वियागरे ॥ १००५ ॥ णक्खत्ते मज्झजोगम्मि देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गामे गिहे वि वा ॥ १००६ ॥ पुरिसे चतुप्पदे चेव पक्खिम्मि उदकेचरे । कीडे किविल्लिये वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ १००७ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ १००८ ।। लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ १००९ ।। एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ १०१० ॥ ॥ मज्झिमाणि (सम्मत्ताणि) ॥ २६ ॥ छ । 15 20 [२७ चोद्दस (बारस) मज्झिमाणंतराणि] मज्झिमाणं तु पडिवक्खा मज्झिमाणंतराणिह । उत्तमे अप्पसत्थाणि मज्झिमत्थे पसस्सते ॥ १०११ ।। कडी कडियपस्साणि वत्थी सीसं समेहणं । वसणा ऊरू य जंघा य मज्जिमाणंतराणिह ॥ १०१२ ॥ मज्झिमेसु जधा दिट्ठो अत्थो तत्तो अणंतरं । मज्झिमाणंतराणं पि फलं बूया सुभासुभं ॥ १०१३ ।। जे सद्दा मज्झिमा उत्ता तेसिं साराणुमायिकं । मज्झिमाणंतराणं पि समे सद्दे तु कप्पये ॥ १०१४ ।। ॥ मज्झिमाणंतराणि (सम्मत्ताणि) ॥ २७ ॥ छ । [२८ दस जहण्णाणि] 25 अंगुट्ठा २ पादपण्हीओ ४ जंघा ६ गुप्फा तधेव य ८ । दसेताणि जहण्णाणि पादाण ९ हितयाणि या १० ॥ १०१५ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं च किंचि पसत्थं सा जहण्णं सव्वमादिसे ॥ १०१६ ॥ पुरिसं इत्थि च अत्थं च कण्णं गब्भं च गब्भिणि । कम्मं पवासं पावासिं बंध-मोक्खं भया-ऽभयं ॥ १०१७ ।। संधि च विग्गहं चेव पेस्सं जय-पराजयं । रोगा-ऽरोगं च मरणं च जीवितं वाधितं तधा ॥ १०१८ ।। वस्सारत्तमणावुट्टि वासं वा वि अपातपं । सस्सस्स वापदि संपदि च णटुस्स दंसणं ॥ १०१९ ॥ 30 खेत्तं वत्थु मणि दंडं खग्गं चम्मं सवम्मगं । धणं धण्णं च छायं च जं चऽण्णं सव्वमादिसे ॥ १०२० ॥ जं किंचि पसत्थं सा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं अत्थि त्ति णिदिसे ॥ १०२१ ।। १ परित्ता मज्झिमा अण्णे जे हं० त० ॥ २ पादाणा (णी) हि सि० विना ॥ ३ खग्गधम्मस्सवस्सगं सं ३ पु० । खग्गचम्मस्सचम्मगं हं० त० । खग्गधम्मसवम्मगं सि० ॥ ४ च जातं च सं ३ पु० ॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ दुवे उत्तिममज्झिमसाधारणाणि ] वो अंगमणी णाम अज्झाओ ९५ धण्णं धणं ति पुच्छेज्जं अंधणं ति वियागरे । समे सद्दे य जाणेज्जो जहण्णा जे भवंति ॥ १०२२ ॥ जहणं ति चेव जे बूया जहण्णतरकं ति वा । जहण्णं ति जहण्णं ति जहणणं कुच्छितं ति वा ॥ १०२३ ॥ अधमं ति व जो बूया तधा अधमतरं ति वा । अधमाधमं ति वा बूया अधमाणं अधमं ति वा ।। १०२४ ॥ अपतंति व जो बूया तधा अपमतरं ति वा । अपमयापमयं ति वा बूया अपमाणतरं ति वा ।। १०२५ ।। हीण ति व जो बूया तधा हीणतरं ति वा । हीणहीणं ति वा बूया हीणहीणतरं ति वा ।। १०२६ ॥ थोवं ति व जो बूया तधा थोवतरं ति वा । थोवथोवं ति वा बूया थोवथोवतरं ति वा ॥ १०२७ ॥ किट्टं ति व जो बूया णिकट्टतरकं ति वा । णिकट्टातिणिकटुं ति तधा णिकट्ठणिकट्ठगं ॥ १०२८ ॥ मंगलं ति व जो बूया तं मंगुलतरं ति वा । अतिमंगुलं ति वा बूया तधा मंगलमंगुलं ।। १०२९ ॥ पावकं ति व जो बूया तधा पावतरं ति वा । अतिपावकं ति वा बूया तधा पावकपावकं ॥ १०३० ॥ दुगुंछितं ति वा बूया दुगुंछिततरं ति वा । तधा पच्चवरं व त्ति अतिपच्चवरं ति वा ॥ १०३१ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं जहणणं परिकित्तितं । तेसं संकित्तणासद्दा जधण्णसमैकाऽऽहिया ॥ १०३२ ॥ अप्पासेसे णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा नगरे गामे गिहे वि वा ॥ १०३३ ॥ पुरिसे चतुष्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ १०३४ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ।। १०३५ ।। लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ।। १०३६ ।। एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ॥ १०३७ ॥ ॥ जहण्णाणि ( सम्मत्ताणि) २८ ॥ छ ॥ ३-४ हीणंतरं हं० त० ॥ ५ थोवंतरं ति सप्र० ॥ १ अधण्णं हं० त० विना ॥ २ अप्पमाणंतरं हं० त० ॥ ६ थोवंतरं हं० त० विना ॥ ७ थोकत्थोकं ति हं० त० विना ॥ ८ थोकत्थोकतरं हं० त० विना ॥ ९ थोवथोवं ति जो सं ३ पु० । थोवथोवंतरं जो हं० त० । थोवंतरं ति जो सि० ॥ १० णिकट्टंतरकं सप्र० ॥ १९ मका हि ते हं० त० विना ॥ १२ अप्पवसेसे सप्र० | १३ जंतूणि प्पक्खियाणीसो उत्त हं० त० ॥ १४ हस्तचिह्नान्तर्गतं श्लोकत्रितयं हं० त० एव वर्त्तते ॥ १५ सग्गं धम्मं च धम्मकं हं० त० ॥ 5 10 [ २९ दुवे उत्तिममज्झिमसाधारणाणि ] मज्झिमाणुत्तमाणं च मज्झे साधारणाणि तु । जैत्तूणि बे वियाणीया उत्तमत्थे पसस्सते ॥ १०३८ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं किंचि पसत्थं सा सव्वं साधारणं वदे ।। १०३९ ।। पुरिसं च इत्थि अत्थं च धणं धण्णं तधेव य । कण्णं च परिपुच्छेज्ज सव्वं साधारणं वदे ॥ १०४० ॥ गब्धं च परिपुच्छेज्जा अत्थि गब्भो ति णिद्दिसे । गब्र्भािणि परिपुच्छेज्ज जमलाणि प्पयाहिति ।। १०४१ ॥ कम्मं साधारणं बूया बंधं णत्थि त्ति णिद्दिसे । चिराय मुच्चते बद्धो भयं खेमं च मिस्सकं ॥ १०४२ ॥ संधि अस्थि त्ति जाणीया विग्गहो णत्थि दारुणो । जया -ऽऽरोग्गं च रोगं च सव्वं साधारणं वदे || १०४३ ।। रणंच अणावुट्ठि आयवं सस्सवापदं । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि ति णिद्दिसे ॥। १०४४ ॥ 25 जीवितं बंधं - मोक्खं च वस्सारत्तं सवासकं । सस्सं च नट्टलाभं च सव्वं साधारणं वदे ।। १०४५ ॥ खेत्तं वत्युं धणं धणं खेग्गं चम्मं सवम्मकं । छत्तं दंडं मणि वत्थं सव्वं साहारणं वदे ॥ १०४६ ॥ जं किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थि ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ।। १०४७ ॥ धणं धणं ति पुच्छेज्जा सव्वं साधारणं वदे । समे सद्दे य जाणीया अंगे साधारणा तु जे || १०४८ ॥ जे सद्दा उत्तमा वुत्ता मज्झिमा जे उदाहिता । ते वामिस्सा उदीरंता साधारणसमा भवे ।। १०४९ ॥ 15 20 30 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ अंगविज्जापइण्णय [३२ दुवे मज्झिमाणंतरजहण्णसाधारणाणि साधारणम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गामे गिहे वि वा ॥ १०५० ॥ पुरिसे चतुप्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लये वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ १०५१ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ १०५२ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ १०५३ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ।। १०५४ ॥ ॥ उत्तममज्झिमसाधारणाणि (सम्मत्ताणि) ॥ २९ ॥ छ । _ [३० दुवे मज्झिममज्झिमसाधारणाणि] साधारणा तु अंगम्मि मज्झे मज्झाणमेव तु । ठाणा दुवे पसस्संते सोभणं तेसु णिद्दिसे ॥ १०५५ ॥ मज्झिमाणुत्तमाणं च फलं साधारणं सुभं । मज्झे साधारणाणं पि तमेव फलमादिसे ॥ १०५६ ॥ जे सद्दा मज्झिमा वुत्ता उत्तमाणंतरा य जे । ते वामिस्सा उदीरंता मज्झसाधारणे समा ॥ १०५७ ।। साधारणम्मि णक्खत्ते जं चेतेसं समुत्तरं । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ १०५८ ॥ ॥ मज्झिममज्झिमसाधारणाणि (सम्मत्ताणि) ॥ ३० ॥ छ । 10 15 [३१ दुवे मज्झिमाणंतरमज्झिमसाधारणाणि] मज्झिमाणंतराणं च मज्झिमाणं च वक्खणा । मज्झे साधारणा वुत्ता मज्झिमत्थे पसस्सते ॥ १०५९ ।। एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं किंचि पसत्थं सा मज्झिमत्थे पसस्सते ॥ १०६० ॥ पुरिसं इत्थि च अत्थं वा कण्णं गब्भं च गब्भिणि । कम्मं पवासं पावासिं बंधं मोक्खं भया-ऽभयं ॥ १०६१ ॥ रोगा-ऽऽरोगं च मरणं च जीविता वाधिकं तधा । वासारत्तमणावुढेि वासं वा वि अपातपं ।। १०६२ ।। सस्सवापत्ति-संपत्तिं णटुं णट्ठस्स दंसणं । खेत्तं वत्थु धणं धण्णं खग्गं चम्मं संवम्मकं ॥ १०६३ ।। जधुद्दिटुम्मि एतम्मि पसत्थं जत्तियं भवे । मज्झिमाणंतरं सव्वं अप्पसत्थं हि णत्थि य ॥ १०६४ ॥ जे सद्दा मज्झिमा वुत्ता मज्झिमाणंतरा य जे । ते वामिस्सा उदीरंता मज्झिमाणंतरे समा ॥ १०६५ ॥ साधारणम्मि णक्खत्ते जें चेतेसं समुत्तरं । तं सव्वमणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ १०६६ ।। ॥ मज्झिमाणंतरमज्झिमसाधारणाणि सम्मत्ताणि ॥ ३१ ॥ छ । 20 25 [३२ दुवे मज्झिमाणंतरजहण्णसाधारणाणि] मज्झिमाणंतराणं च जहण्णाणं च अंतरा । मज्झे साधारणा वुत्ता गोप्फा तेसु ण सोभणं ॥ १०६७ ।। एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं च किंचि पसत्थं सा जहण्णं सव्वमादिसे ॥ १०६८ ॥ पुरिसादीकाणि वत्थूणि पवित्ताणि तु जाणिह । ताणि खेत्तप्पधाणाणि जहण्णाणि वियागरे ॥ १०६९ ॥ मज्झिमाणंतरा सद्दा जहन्ना जे य कित्तिया । ते वामिस्सा उदीरंता जधन्ना समका भवे ॥ १०७० ।। साधारणम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । [पुप्फे फले व देसे वा णगरे गाम गिहे वि वा ॥ १०७१ ॥] साधारणम्मि णक्खत्ते जं चेतेसं समुत्तरं । तं सव्वमणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ।। १०७२ ।। ॥ मज्झिमाणंतरजहण्णसाधारणाणि सम्मत्ताणि ॥ ३२ ॥ छ । 30 १ रणा तहा हं० त० ॥ २ च चक्खुणा हं० त० ॥ ३ सचम्मकं सप्र० ॥ ४ जओदिटुंसि एयम्मि हं० त० ॥ ५ जं वत्तो से समु सं ३ पु० सि० । जं वुत्ता से समुहं० त० ॥ ६ पतताणि हं० त० विना ॥ ७ उत्तरार्धं सर्वासु प्रतिषु नास्ति ।। Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ दस बालेयाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ [३३ दस बालेयाणि] पादंगुटुं २ गुली ४ गोप्फा ६ जंघा ८ पादतलाणि य १० । एते बाला पसस्संते बाला थीणामगेसु य ॥ १०७३ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं च किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १०७४ ।। गब्भं पुच्छे वदे अस्थि पुण्णामेसु य दारकं । दारिगं इत्थिणामेसु बालेयेसु वियागरे ॥ १०७५ ॥ जं बालसंसितं चऽण्णं सव्वमत्थि त्ति णिपिसे । समे सद्दे य जाणेज्जो बाला ये समा भवे ॥ १०७६ ।। 5 बालको दारको व त्ति [सिंगको पिल्लको त्ति वा ।] वच्छको तेण्णको व त्ति o पोतको कलभो त्ति वा ॥ १०७७ ॥ बालको ति व जो बूया तहा बालतरो ति वा । अतिबालको त्ति वा बूया तथा बालगबालगो ॥ १०७८ ॥ दारको त्ति व जो बूया तधा दारगदारगो । अतिदारको त्ति वा बूया दारगस्स य दारगो || १०७९ ॥ सिंगको ति व जो बूया तधा सिंगकसिंगको । अतिसिंगको त्ति वा बूया सिंगकस्स व सिंगको ॥ १०८० ॥ पिल्लको त्ति व जो बूया तधा पिल्लतरो त्ति वा । अतिपिल्लको त्ति वा बूया पिल्लकस्स व पिल्लको ।। १०८१ ॥ 10 वच्छको त्ति व जो बूया तधा वच्छकवच्छको । अतिवच्छको त्ति वा बूया वच्छकस्स व वच्छको ॥ १०८२ ॥ तण्णको त्ति व जो बूया तधा तण्णकतण्णको । अतितण्णको त्ति वा बूया तण्णकस्स व तण्णको ॥ १०८३ ॥ पोतको त्ति व जो बूया तधा पोतकपोतको । अतिपोतको त्ति वा बूया पोतकस्स व पोतको ॥ १०८४ ॥ [कलभो त्ति व जो बूया तधा कलभकलभको । अतिकलभो त्ति वा बूया कलभस्स व कलभको ।। १०८५ ॥] बालकं जाणकं व त्ति तधा ठियपडिय त्ति वा । तधा पंचमिका व त्ति तथा सत्तमिक त्ति वा ।। १०८६ ।। 15 उठाणकं ति वा बूया मासपूरणकं ति वा । पिंडे वद्धणकं व त्ति उवणिग्गमणं ति वा ॥ १०८७ ॥ पादपेसणकं व त्ति परंगेणकमेव वा । पदक्कमणकं व ति पच्चाहरणकं ति वा ॥ १०८८ ।। चोलकं ति व जो बूया उपणयणं ति वा पुणो । लेहणिक्खिवणं व त्ति गणितापढपणकं ति वा ॥ १०८९ ॥ बालेयोपक्खराणं च बालोवकरणस्स य । तेसं संकित्तणे सद्दा बालेयसममादिसे ॥ १०९० ॥ बालजम्मणणक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । बाले पुप्फफले देसे णगरे गामे गिहे वि वा ॥ १०९१ ॥ 20 बाले चतुप्पदे यावि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ १०९२ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । F आसणे सयणे जाणे भंडोवकरणे तधा || १०९३ ॥ छ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रतणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥१०९४ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ १०९५ ॥ ॥ बालेयाणि (सम्मत्ताणि) ॥ ३३ ॥ छ । [३४ चोद्दस जोव्वणस्थाणि] उदरं १ कडी य २ णाभी य ३ कडीपस्साणि बे तधा ५ । पट्ठिपस्साणि ७ मज्झो य ८ लोमवासी तधेव य ९ ॥ १०९६ ॥ मेहणं १० वत्थि ११ सीसं च १२ फलं बे वि य जाणिया १४ । जोव्वणत्थेस एतेसु जोव्वणत्थं विजाणिया ॥ १०९७ ।। 30 १ चतुरस्रकोष्ठकगतं चरणं सर्वासु प्रतिषु नास्ति ॥ २ मल्लको हं० त० ॥ ३ 4 एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं. त० नास्ति ॥ ४ हस्तचिह्नमध्यगतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ५ बूया पोतकस्स व पोतको हं० त० विना ॥ ६ पोत्तिकपोतको हं० त० विना ॥ ७ चतुरस्रकोष्ठकान्तर्गतं पद्यं सर्वासु प्रतिषु नास्ति, किन्तु सम्बन्धानुसारेणानुसंघितमस्ति ॥ ८ पंडवद्ध हं० त० ॥ ९ पादापे हं० त० विना ॥ १० गतिताप' सं ३ पु० ॥ ११ हस्तचिह्नान्तर्गतमुत्तरार्धं हं० त० एव वर्त्तते ॥ १२ "णि ७ सल्लोय हं० त० ॥ १३ वियागरे हं० त० ॥ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ 15 अंगविज्जापइण्णयं [३४ चोद्दस जोव्वणस्थाणि एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं च किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १०९८ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । सहत्थकारी दच्छो य सव्वत्थेसु पुमं भवे ॥ १०९९ ।। इत्थी वा परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । G सेहत्थकारी दच्छा य सव्वत्थेसु पदक्खिणा ॥ ११०० ॥ पुरिसत्थविहं पुच्छे सिग्घमत्थो भविस्सति । थिया अत्थविहं पुच्छे खिप्पमत्थो भविस्सति ॥ ११०१ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य। ३ धण्णा य सुहभागी य खिप्पं विज्जिहिते त्ति य ॥ ११०२ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्ज अस्थि गब्भो ति णिद्दिसे । गब्भिणि परिपुच्छेज्ज खिप्पं पुत्तं पयाहिति ॥ ११०३ ।। कम्मं च परिपुच्छेज्ज खिप्पं कम्मं वियागरे । परिस्समेण यऽप्पेण खिप्पं अत्थं लभिस्सति ॥ ११०४ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज सफलो त्ति वियागरे । पउत्थं परिपुच्छेज्ज सफलो खिप्पमेहिति ॥ ११०५ ॥ विवादं विग्गहं बंधं रोगं मरणमेव य । अपातयमणावुढेि सस्सवापत्तिमेव य ॥ ११०६ ॥ णदुस्स विप्पणासं च पलाणस्स अणागमं । धणक्खयं वियोगं च सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ११०७ ।। बद्धस्स मोयणं खिप्पं संधि संपीतिमेव य । जयाऽऽरोगं च आयुं च उत्थाणं वाधितस्स य ॥ ११०८ ॥ वस्सारत्तं च वासं च सस्सं णट्ठस्स दंसणं । हितस्स पंडिलाभं च पलातस्स य आगमं ॥ ११०९ ॥ समागमं संपयोगं थाणमिस्सरियं जसं । धणलाभं कम्मसिद्धि वा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १११० ॥ वयं च परिपुच्छेज्जा जोव्वणत्थो त्ति णिदिसे । धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज धणं 6 तेवं वियागरे ॥ ११११ ॥ जहा पुण्णामधेएसु सव्वं दिटुं सुभा-ऽसुभं । [............. ...................................] || १११२ ॥ तहा खित्तं तहा वत्थु सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । समे सद्दे य जाणेज्जो जोव्वणत्था भवंति जे ॥ १११३ ॥ जोव्वणं ति व जो बूया तहा जोव्वणकं ति वा । जोव्वणत्थे त्ति जो बूया जुवाणो त्ति व जो वदे ।। १११४ ॥ तरुणं ति व जो बूया तहा तरुणतरं ति वा । तरुणो त्ति व जो बूया तरुणा तरुणको त्ति वा ॥ १११५ ॥ डहरो त्ति व जो क बूया वयत्थो त्ति व जो वदे । पवत्तो त्ति उदग्गो त्ति पोअडो त्ति व जो वदे ॥ १११६ ॥ गुलभक्खणं ति वा बूया बाढक्कारो त्ति वा पुणो । समासेयणकं व ति णियो वा सुण्णिक त्ति वा ॥ १११७ ॥ उपमाणकं ति वा बूया तत्थ गोसग्गण्हाणकं । पडिवज्झकं ति वा बूया तधा णिव्वहणं ति वा ॥ १११८ ॥ अधिक्कमणकं व त्ति तोप्पारुभणा ति वा । पातिज्जं ति व यो बूया णवणं पंचमेजणं ॥ १११९ ॥ वारेज्जं ति व जो बूया अण्णोण्णं ति व जो वदे । तंधा जामातुकीयं ति दसमीण्हाणकं ति वा ॥ ११२० ॥ उस्सउ त्ति समास तितधा जण्ण छणे त्ति वा । तधा अब्भुदयो व त्ति भोज्ज मज्जणकं ति वा ॥ ११२१ ।। जं चऽण्णं एवमादीयं जोव्वणस्स य संसितं । तैस्सुदाहरणं सव्वं जोव्वणस्थिसमं भवे ॥ ११२२ ॥ __णक्खत्ते जोगे संपुण्णे देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गाम गिहे वि वा ॥ ११२३ ॥ पुरिसे चतुप्पदे यावि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ ११२४ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणेसु य ॥ ११२५ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ११२६ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ११२७ ।। ॥जोव्वणस्थाणि (सम्मत्ताणि) ॥ ३४ ॥ छ ॥ 20 25 30 १ हस्तचिह्नान्तर्गतः श्लोकद्वयमितः सन्दर्भः हं० त० एव वर्तते ॥ २ खिप्पं सिज्झिहिए ति या हं० त० ॥ ३ पडिलंभं हं० त० सि० ॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गतश्चतुःश्लोकाधिक: पाठसन्दर्भः हं० त० एव वर्तते ॥ ५ पोअंडो हं० त० ॥ ६ पतिज्ज ति हं० त० विना ॥ ७ णरणं हं० त० ॥ ८ अण्णोणं हं० त० विना ॥ ९ तहा तेमाउकीयं हं० त० ॥ १० उज्झउ त्ति समाउ त्ति तथा जण्णछणे हं० त० विना ॥ ११ तस्सापहरणं हं० त० ॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ चोइस मज्झिमवयाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ [३५ चोद्दस मज्झिमवयाणि] बाहाओ २ बाहुणालीओ ४ हत्थमंगुलिकोदरो ५ । हत्थमंगुट्ठका ७ हत्था ९ अंसवीफाणिए तधा १० ॥ ११२८ ॥ जत्तूणि १२ थणावुभये १४ एते मज्झिमये वये । सव्वमज्झिमकं अत्थं लाभं चऽत्थ वियागरे ॥ ११२९ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज मज्झिमो सारतो भवे । मज्झिमो आउतो चेव भातूणं वा वि मज्झिमो ॥ ११३० ॥ इत्थि च परिपुच्छेज्ज मज्झिमा सारतो भवे । मज्झिमा आउतो वा वि भगिणीणं च मज्झिमा ॥ ११३१ ॥ 5 पुरिसस्सऽत्थविधं पुच्छे मज्झिमं ति वियागरे। CF थिया अत्थविहं पुच्छे मज्झिमं ति वियागरे ॥ ११३२ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज मज्झकल्लाणसोभणा । भातूणं मज्झिमा सा वि खिप्पं विज्जिहिति त्ति य ॥ ११३३ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्ज णत्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गब्भिणि परिपुच्छेज्ज संसयेण पजाहिति । ११३४ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज कम्मं मज्झगतं वदे । लाभं च परिपुच्छेज्ज मज्झिमं लाभमादिसे ॥ ११३५ ॥ पवासं परिपुच्छेज्ज मज्झिमं फलमादिसे । पोसितो मज्झकालेण मज्झलाभेण एहिति ॥ ११३६ ॥ 10 बंधं पुच्छे ण भवति बद्धो मुच्चिहिति त्ति य । भयं खेमं च संधि वा विग्गहो वा वि मज्झिमो ॥ ११३७ ॥ रोगं च मरणं चेव अणावुट्ठि अपातयं । सस्सस्स य वापत्ति सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ११३८ ॥ जयं जीवितमारोग्गं उत्थाणं वाधितस्स य । वस्सारत्तं च वासं च वदे सस्सं च मज्झिमं ॥ ११३९ ॥ वयं च परिपुच्छेज्ज मज्झिमो त्ति वियागरे । धण्णं धणं च पुच्छेज्ज मज्झिमं ति वियागरे ॥ ११४० ॥ पवत्ता मज्झिमा जे तु फलं जं तेसु कित्तितं । तधेव य फलं सव्वं बूया मज्झवयेसु वि ॥ ११४१ ॥ 15 तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वमत्थि ति णिद्दिसे । समे सद्दे य जाणेज्जो मज्झिमा जे भवंतिह ॥ ११४२ ॥ मज्झिमेसु य जे सद्दा मज्झसारेसु आहिता । ते चेव मज्झिमवये णिपिसे अंगचितओ ॥ ११४३ ॥ मज्झणक्खत्तजोगम्मि देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गामे गिहे वि वा ॥ ११४४ ॥ पुरिसे चउप्पये यावि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे यावि परिसप्पे तधेव य ॥ ११४५ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ ११४६ ॥ 20 लोहेसु या वि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ११४७ ॥ एतम्मि पेक्खितामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ ११४८ ।। ॥ मज्झिमाणि (मज्झिमवयाणि) (सम्मत्ताणि) ॥ ३५ ॥ छ । [३६ वीसं महव्वयाणि] गीवा हणू य दंतोटुं णासा णासपुडावुभो । गंडा कवोला य तधा भुमकाणं अंतरं च जं ॥ ११४९ ॥ 25 णिडालं च सिरं चेव एवमेताणि वीसतिं । महव्वताणि जाणीया अंगविज्जाविसारतो ॥ ११५० ॥ एताणि आमसं पुच्छे महंतं अत्थमादिसे । जयं लाभं पसत्थं च एतं णातिचिरं भवे ॥ ११५१ ।। पुरिसं च परिपुच्छेज्ज णरं बूया महव्वतं । इत्थि वा परिपुच्छेज्ज बूया तं पि महव्वयं ॥ ११५२ ।। पुरिसत्थविधं पुच्छे महंतं अस्थमादिसे । थिया अत्थविधं पुच्छे उत्तमत्थं वियागरे ॥ ११५३ ॥ कण्णं च परिपुच्छेज्ज कण्णं बूया महव्वयं । महव्वयस्स पुरिसस्स चिरं विज्जिहिते त्ति या ॥ ११५४ ।। 30 गब्भं च परिपुच्छेज्ज णत्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गम्भिणि परिपुच्छेज्ज मतं सा जणयिस्सति ॥ ११५५ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज वुड्डकम्म वियागरे । अप्पफलं बहुक्केसं तं च कम्मं दुगुंछितं ॥ ११५६ ॥ पवासो पुच्छिते णत्थि णाऽऽगच्छति पवासितो । बंधं पुच्छे ण भवति बद्धो खिप्पं च मुच्चिहि ॥ ११५७ ।। १ "लिकाउरो हं० त० विना ॥ २ ‘फाणि बे तधा हं० त० विना ॥ ३ जंतूणि हं० त० ॥ ४ हस्तचिहान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ ५ अंतरं बलं हं० त० ॥ ६ महयं हं० त० ॥ ७ वुड्डकम्मि हं० त० ॥ ८ बहुखेमं तं हं० त० ॥ ९ पवस्सिओ हं० त० ॥ अंग० १२ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० अंगविज्जापइण्णयं [३७-३९ वयसाधारणा खेमं पुच्छे ण भवति भयमस्थि त्ति णिद्दिसे । संधि पुच्छे ण भवति विग्गहो य णिरत्थगो ॥ ११५८ ॥ रोगं मरणमणावुद्धि आतवं सस्सवापदं । अत्थहाणि वियोगं च सव्वमत्थि ति णिद्दिसे ॥ ११५९ ॥ जयारोग्गं च आयुं वा उत्थाणं आतुरस्स य । णट्ठस्स दंसणं चेव सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ११६० ॥ वयं च परिपुच्छेज्ज ततो बूया महव्वतं । धणं धणं ति पुच्छेज्ज अधण्णं ति वियागरे ॥ ११६१ ॥ जं किंचि पसत्थं सा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे। अपसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥११६२ ।। तधा खेतं तधा वत्थु सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे । महव्वयसमे वा वि इमे सद्दे विभावये ॥ ११६३ ॥ महव्वयो त्ति वा बूया तधा जुण्णवयो त्ति वा । तधा तीतवयो व त्ति तधा गतवयो त्ति वा ॥ ११६४ ॥ थेरो जुण्णो ति वा बूया वुड्डो परिणतो त्ति वा । जरातुरो त्ति वा बूया खीणवंसो ति जो वदे ॥ ११६५ ॥ वत्तुस्सयो त्ति वा बूया णिव्वत्त ति व यो वदे । उववुत्तं ति वा बूया झीणं वा 'णिट्टितं ति वा ॥ ११६६ ॥ वातं ति मलितं व त्ति तधा परिमलितं ति वा । मिलाणं परिसुक्खं ति तधा परिसडितं ति वा ॥ ११६७ ।। तुच्छं ति रित्तकं व त्ति असारं झसिरं ति वा । तधुद्धिततरं व त्ति गतगंध-रसं ति वा ॥ ११६८ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं जिण्णातीतवयस्सियं । तस्स संकित्तणासद्दा महावयसमा भवे ॥ ११६९ ॥ ___ अप्पावसेसे णक्खते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गाम गिहे वि वा ॥ ११७० ॥ पुरिसे चतुष्पदे चेव पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लये वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ ११७१ ॥ 15 पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ ११७२ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ ११७३ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ॥ ११७४ ॥ ॥ महव्वयाणि (सम्मत्ताणि) ॥ ३६ ॥ छ । 10 20 [३७-३९ वयसाधारणा] __ [३७ दुवे बालजोव्वणत्थसाधारणाणि] उम्मढेसु वियाणीया दुवे णेये च वक्खणे । बालजोव्वणसामण्णे तं चेव य फलं धुवं ॥ ११७५ ॥ बालेयजोव्वणत्थाणं 6 जे सद्दा पुव्वकित्तिता । बालेयजोव्वणत्थाणं व तम्मिस्से समके वदे ।। ११७६ ॥ [३८ दुवे जोव्वणस्थमज्झिमवयसाधारणाणि] तारुण्णमज्झिमाणंगे वयसाधारणा थणा । उम्मट्ठा य पसस्संते तं चेव य फलं वदे ॥ ११७७ ॥ तारुण्णमज्झिमाणम्मि जे सद्दा पुव्वकित्तिता | तारुण्णमज्झिमाणंगे मिस्से साधारणे वदे ।। ११७८ ॥ [३९ दुवे मज्झिमवयमहव्वयसाधारणाणि] मज्झिममहव्वयाणं मज्झे साधारणा भवे । उम्मट्ठा जंतुणो तेसु पुव्वुत्तं फलमादिसे ॥ ११७९ ॥ मज्झिममहव्वताणं पि जे सद्दा पुवकित्तिता । ते वामिस्सा उदीरंता साधारणसमा भवे ।। ११८० ।। ॥ वयसाधारणा ॥ ३७-३८-३९ ॥ छ । 25 १ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ २ महावयो हं० त० ॥ ३ लिपिभेदानुसारेण चेदत्र चत्तुस्सयो इति पाठ: क्रियेत तदापि सम्यगेव पाठः ॥ ४ उवगुत्तं सि० । उच्चगुत्तं सं ३ पु० ॥ ५ णित्थियं हं० त० ॥ ६ सुसिरं हं० त० ॥ ७ नवुद्धिततरं हं० त० ॥ ८ गाम-गिहेसु वा हं० त० ॥ ९ च चक्खुणा हं० त० ॥ १० हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ११ ते मिस्से हं० त० सि० ॥ १२ "माणं वि जे हं० त० विना ॥ १३ जंतुणो हं० त० । जत्तुणो सि० ॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० वीसंबंभेयाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ १०१ [४० वीसं बंभेयाणि] दंतो १ लु ३ कण्ण ५ गंडा य ७ कवोल ९ ऽक्खि ११ भुमाणि य १३ । णासा १४ णिडालं १५ संखा य १७ सिरं १८ बे बाहु २० वीसति ॥ ११८१ ॥ बंभेयोवक्खरे चेव बंभणोपकरणेसु य । बंभणो त्ति वियाणीया तस्सद्दोदीरणेण य ॥ ११८२ ॥ पितामहो त्ति वा बूया तधा बंभं ति वा पुणो । सयंभु त्ति व जो बूया तधेव य पयावति ॥ ११८३ ॥ 5 बंभणो त्ति वियाणीया तधा बंभरिसि त्ति वा । बंभवत्थो त्ति वा बूया बंभण्णू पिअबंभणो ॥ ११८४ ॥ दिजाति ति व जो बूया दिजातीवसभो त्ति वा । दिजातीपुंगवो व ति दिजाईपवरो त्ति वा ॥ ११८५ ॥ विप्पो व त्ति व जो बूया तधा विपरिसि त्ति वा । तधा विप्पगुणोवेओ विप्पाणं पवरो त्ति वा ॥ ११८६ ॥ जण्णो कतो ति वा बूया जण्णकारि ति वा पुणो । जट्ठो पढमजण्णो त्ति जण्णमुंडो त्ति वा पुणो ॥ ११८७ ॥ सोमो ति व जो बूया सोमपाइ त्ति वा पुणो । सोमपा इत्ति वा बूया सोमणामं च वाहरे ॥ ११८८ ॥ 10 अग्गिहोत्तं ति वा बूया आहितग्गि ति वा पुणो । अग्गिहोत्तरती व त्ति अग्गिहोत्तं हुतं ति वा ॥ ११८९ ॥ वेदो ति व जो बूया वेदज्झाइ त्ति वा पुणो । वेदाणं पारको व त्ति चतुवेदो त्ति वा पुणो ॥ ११९० ॥ वारिसं पुव्वमासं ति चतुम्मासं ति वा पुणो । जूवो चिति त्ति वा बूया अग्गीणं चयणि त्ति वा ॥ ११९१ ॥ करणे कमंडलू य त्ति दब्भा सज्जा भिसि त्ति वा । दंडं कटुं ति वा बूया जण्णोपइतकं ति वा ॥ ११९२ ॥ (जे)यऽण्णे एवमादीया सद्दा दिजवरस्सिता । णामसंकित्तणे तेर्सि बंधेयसममादिसे ॥ ११९३ ॥ 15 ॥ बंभेयाणि ॥ ४० ॥ छ । 20 [४१ चोद्दस खत्तेयाणि] खंधं २ उंसपीढ ३ बाहू य ५ जत्तुं ७ उर ८ थणा तधा १० । हिययं ११ पस्साणि १३ पट्टी य १४ खत्तेयाणि वियागरे ॥ ११९४ ॥ खत्तेयोवक्खरे चेव खत्तिओवकरणेसु य । खत्तिओ ति वियाणीया तस्सद्दोदीरणेण य ॥ ११९५ ॥ इंदो त्ति व जो बूया तधा इंदमहो त्ति य । इंदकेउ त्ति वा बूया इंदणामं च वाहरे ॥ ११९६ ॥ इंदवड्डइसद्देणं इंदोवकरणं ति वा । इंदसयणं ति वा बूया जं चऽण्णं इंदसंतियं ॥ ११९७ ॥ खत्तिओ त्ति व जो बूया तधा खत्तियसंतिओ । तधा खत्तियराय त्ति खत्तियाधिपति ति वा ॥ ११९८ ॥ जे यऽण्णे एवमादीया सद्दा खत्तियसंसिता । णामसंकित्तणे तेसिं खत्तेयसममादिसे ॥ ११९९ ॥ ॥ खत्तेयाई समत्ताई ॥ ४१ ॥ छ । 25 [४२ चोद्दस वेस्सेयाणि] कुक्खीपस्सा २ कडीपस्सा ४ उदरो ५ रु ७ मेड्ड ८ वक्खणा १० । वत्थि ११ सीसं १२ फले चेव १४ वेस्सेयाणि वियागरे ॥ १२०० ॥ वेस्सेयोवखरे चेव वेस्सोवकरणेसु य । वेस्सो त्ति वियाणीया तस्सद्दोदीरणेण य ॥ १२०१ ॥ . वेस्सो ति व जो बूया तधा वेस्सकुलं ति वा । वेस्सप्पकतिओ व त्ति वेस्सो सो जीवति त्ति वा ॥ १२०२ ॥ 30 जातो वेस्सकुले व त्ति जाती य वित्ति सो त्ति वा । वेस्समित्तं ति वा बूया वेस्सोपकरणं ति वा ॥ १२०३ ॥ १ ‘ण्ण ५ दंता य हं० त० विना || २ णिलाड साहा य हं० त० ॥ ३ जिट्ठो पढमकण्णो हं० त०। ४ ‘याई सम्मत्ताणि हं० त० ॥ ५ “स्सपाकत्तिओ हं० त० ॥ ६ जातीया वेत्ति हं० त० विना ॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ अंगविज्जापइण्णय [४५-४६ चातुव्वण्णविधाणं वेस्सकम्मं ति वा बूया वेस्सारंभो त्ति वा पुणो । वेस्साणं धणकं व त्ति वेस्साणं उस्सओ त्ति वा ॥ १२०४ ॥ जे यऽण्णे एवमादीया सद्दा ये वेस्ससंसिया । णामसंकित्तणे तेसिं वेसेज्जसममादिसे ॥ १२०५ ॥ ॥ वेस्सेयाणि ॥ ४२ ॥ छ । [४३ दस सुद्देयाणि] पादंगुटुं २ गुली ४ गोप्फा ६ जंघा ८ पादतलाणि य १० । दसेताणि विजाणीया सुद्देयाणि वियागरे ॥ १२०६ ॥ सुद्देयोवक्खरे के सुद्दोवकरणेसु य । सुद्दो त्ति विजाणीया तस्सद्दोदीरणेण य ॥ १२०७ ॥ सुद्दो त्ति व जो बूया सुद्दलोगो त्ति वा पुणो । तधा सुद्दकुलं व त्ति सुद्दजाति त्ति वा पुणो ॥ १२०८ ॥ जातो सुद्दकुले व त्ति सुद्दजोणि त्ति वा पुणो | सुद्दमित्तं ति वा बूया सुद्दवित्तिकरो त्ति वा ॥ १२०९ ॥ सुद्दकम्मं ति वा बूया सुद्दारंभो त्ति वा पुणो । सुद्देहिं ववहारो त्ति सुद्देहि त्ति व जीवति ॥ १२१० ॥ जे यऽण्णे एवमादीया सद्दा सुद्देयसंसिता । णामसंकित्तणे तेसिं सुद्देयसममादिसे ॥ १२११ ॥ ॥ सुद्देयाणि ॥ ४३ ॥ छ ॥ 10. 15 [४४-४५-४६ चातुव्वण्णविधाणं] [ ४४ दुवे बंभेज्जखत्तेज्जाणि] बंभेयाणि णिसेवित्ता बंभेयाणि णिसेवति । बंभणो त्ति व जाणीया तस्सद्दोदीरणेण य ॥ १२१२ ॥ बंभेयाणि णिसेवित्ता खत्तेयाणि णिसेवति । बंभखत्ते त्ति जाणीया पुच्छिओ अंगचितओ ॥ १२१३ ॥ खत्तेयाणि णिसेवित्ता बंभेयाणि णिसेवति । खत्तबंभं वियाणीया पुच्छितो अंगचितओ ॥ १२१४ ॥ बंभेयाणि णिसेवित्ता वेस्सेयाणि णिसेवति । बंभवेस्सं वियाणीया पुच्छिओ अंगचितओ ॥ १२१५ ॥ वेस्सेयाणि णिसेवित्ता बंभेयाणि णिसेवति । वेस्सबंभं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंतओ ॥ १२१६ ॥ बंभेयाणि णिसेवित्ता सुद्देयाणि णिसेवति । बंभसुदं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंतओ ॥ १२१७ ॥ सुद्देयाणि णिसेवित्ता बंभेयाणि णिसेवति । सुद्दबंभं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंतओ ॥ १२१८ ॥ 4 खत्तेयाणि णिसेवित्ता खत्तेयाणि णिसेवति । खत्तिको त्ति विजाणीया तस्सद्दोदीरणेण य ॥ १२१९ ॥ Do खत्तेयाणि णिसेवित्ता बंभेयाणि णिसेवति । खत्तबंभं वियाणीया पुच्छिओ अंगचितओ ॥ १२२० ॥ बंभेयाणि णिसेवित्ता खत्तेयाणि णिसेवति ॥ बंभखत्तं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंतओ ॥ १२२१ ॥ 20 [४५ दुवे खत्तेज्ज वेस्सेज्जाणि] खत्तेयाणि णिसेवित्ता वि(वे)स्सेयाणि णिसेवति । खत्तवेस्सं वियाणीया पुच्छिओ अंगचितको ॥ १२२२ ।। वेस्सेज्जाणि णिसेवित्ता खत्तेयाणि णिसेवति । वेस्सखत्तं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिततो ॥ १२२३ ॥ खत्तेयाणि णिसेवित्ता सुद्देयाणि णिसेवति । खत्तसुदं वियाणीया पुच्छितो अंगचिंतओ ॥ १२२४ ॥ सुद्देयाणि णिसेवित्ता खत्तेयाणि णिसेवति । सुद्दखत्तं वियाणीया पुच्छिओ अंगचितओ ॥ १२२५ ॥ वेस्सेज्जाणि णिसेवित्ता वि(वे)स्सेयाणि णिसेवति । वेस्सं तं तु वियाणीया तस्सद्दोदीरणेण य ॥ १२२६ ॥ वेसे(स्से)ज्जाणि णिसेवित्ता बंभेयाणि णिसेवति । वेस्सबंभं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंतओ ॥ १२२७ ॥ १ वणकं हं० त० ॥ २ उस्सुतो त्ति हं० त० विना ॥ ३ सुपक्खेवक हं० त० ॥ ४ सुद्दो लोगो हं० त० ॥ ५ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ बावत्तरि सुक्कावण्णपडीभागा] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ १०३ बंभेयाणि णिसेवित्ता वेसेज्जाणि णिसेवति । बंभविस्सं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंततो ॥ १२२८ ॥ विस्सेज्जाणि णिसेवित्ता खत्तेयाणि णिसेवति । वेस्सखत्तं वियाणीया पुच्छिओ अंगचितओ ॥ १२२९ ॥ खत्तेयाणि णिसेवित्ता वेस्सेयाणि णिसेवति । खत्तवेस्सं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंतओ ॥ १२३० ॥ [४६ दुवे वेसेज्जसुद्देज्जाणि] विस्सेयाणि णिसेवित्ता सुद्देज्जाणि णिसेवति । विस्ससुद्दे वियाणीया पुच्छिओ अंगचितओ || १२३१ ॥ 5 सुद्देयाणि णिसेवित्ता विस्सेयाणि णिसेवति । सुहवेसं वियाणीया पुच्छितो अंगचितओ ॥ १२३२ ॥ सुद्देयाणि णिसेवित्ता सुद्देयाणि णिसेवति । सुदं तं तु वियाणीया तस्सद्दोदीरणेण य ॥ १२३३ ॥ सुद्देयाणि णिसेवित्ता बंभेयाणि णिसेवति । सुद्दबंभं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंतओ ॥ १२३४ ॥ बंभेयाणि णिसेवित्ता सुद्देयाणि णिसेवति । बंभसुई वियाणीया पुच्छितो अंगचितओ ॥ १२३५ ॥ सुद्देयाणि णिसेवित्ता खत्तेयाणि णिसेवति । सुदखत्तं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंतओ ॥ १२३६ ॥ खत्तेयाणि णिसेवित्ता सुद्देयाणि णिसेवति । खत्तसुदं वियाणीया पुच्छितो अंगचिततो ॥ १२३७ ॥ सुद्देयाणि णिसेवित्ता वेस्सेज्जाणि णिसेवति । सुहवेस्सं वियाणीया पुच्छिओ अंगचिंततो ॥ १२३८ ॥ [वेसेज्जाणि णिसेवित्ता सुद्देयाणि णिसेवति । वेस्ससुदं वियाणीया पुच्छिओ अंगचितओ ॥ १२३९ ॥ छ ॥] - यं चाऽऽज्जमामसित्ताणं आमसे बितियं पुणो । तेण तम्मिस्सकं वण्णं णिद्दिसे अंगचिंततो ॥ १२४० ॥ चातुव्वण्णं च इच्चेतं सम्ममामसजोणिया । जधा तमणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ॥ १२४१ ॥ 15 व्वण्णविधाणं ॥ ४४-४५-४६ ॥ छ । [४७-५३ आयुप्पमाणणिद्देसो-चत्तालीसतिमं पडलं] आयुप्पमाणणिद्देसो उत्तमेसु सयं भवे । पण्णत्तरं च वस्साणि मज्झिमेसु वियागरे ॥ १२४२ ॥ पण्णासं तु णातव्वा मज्झिमाणंतरेसु य। जहण्णे पण्णवीसा तु आयुवस्साणि णिद्दिसे ॥ १२४३ ॥ साधारणेसु सव्वेसु गोप्फ-जाणु-थणेसु य । जत्तूसु यावि वग्गाणं तं तु साधारणं वदे ॥ १२४४ ॥ आयुप्पमाणमिच्चेतं सुसाधारणमंगवी | असम्मूढो विभावेत्ता जधुत्तमभिणिद्दिसे ॥ १२४५ ॥ ॥ आयुष्पमाणणिद्देसो सम्मत्तो ॥ ४७-५३ ॥ छ ॥ . ॥ पडलं चत्तालीसतिमं ॥ ४० ॥ छ । 20 [५४ बावत्तरि सुक्कवण्णपडीभागा] उम्मट्ठा तु दढा सव्वे २८ पुरिमंगाणि ४४ णखाणि य ६४ । 25 हितयं ६५ थण ६७ दंता य ६८ गीवा ६९ खंधो ७० ऽक्खिमेव य ७२ ॥ १२४६ ॥ एते सुक्कपडीभागा अंगे बावत्तरि मता । अपीलिता तु उम्मट्ठा सव्वत्थेसु पसस्सते ॥ १२४७ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा | जं किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १२४८ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो त्ति य । धण्णो य सुहभागी य सुद्धभावी य Do सो भवे ॥ १२४९ ॥ इत्थि च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य सुद्धभागि त्ति यं वदे ॥ १२५० ।। 30 __ कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य खिप्पं विज्जिहिते ति य ॥ १२५१ ॥ * चतुरस्रकोष्ठकान्तर्गतः श्लोकः सर्वासु प्रतिषु नास्ति ॥ १ चउव्वण्ण हं० त० ॥ २ तु मुणेतव्वा सि० ॥ ३ आयव हं० त० ॥ ४ जतूसु हं० त ॥ ५ ५ एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ __ अंगविज्जापइण्णयं [६३-७३ ठियामासवण्णजोणीपडलं वण्णं च परिपुच्छेज्ज सुक्किलो त्ति वियागरे । तधा आभिजणं पुच्छे सुक्कमाभिजणं वदे ॥ १२५२ ॥ जं किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १२५३ ॥ जधा पुण्णामधेयेसु आदेसो तु विधीयते । तधा सुक्केसु णातव्वं विसिट्ठतरकं फलं ॥ १२५४ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज सुक्कं कम्मस्स णिद्दिसे । संखिकं संखवाणियकं तधा वलयवाणियं ॥ १२५५ ॥ मणि-मुत्तवाणियं वा वि जं चऽण्णं सुक्किलं भवे । कम्मपुच्छाय णिद्देसे एवमादि फलं वंदे ॥ १२५६ ॥ तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वमत्थि ति णिद्दिसे । समे सद्दे य जाणेज्जो सुकिला जे भवंतिह ॥ १२५७ ।। सुक्को बहस्सती व त्ति चंदो व त्ति सणिचरो । बलाका बलदेवो त्ति मुकणंदवणं ति वा ॥ १२५८ ॥ संखो संखवलयं ति संखणाभि त्ति वा पुणो । तधा संखमलो व त्ति संखचुण्णं ति वा पुणो ॥ १२५९ ।। छुहा सेडि त्ति वा बूया चुण्णको त्ति पलेवगो । कडसक्कर त्ति वा बूया तधा णेलकितं ति वा ॥ १२६० ॥ दंतो सेडकणवीरो वा वासंति वासल त्ति वा । वेइल्लपुष्फिका जाती लाणी जूधिक त्ति वा ॥ १२६१ ॥ णवमालिका मल्लिका व त्ति चंपकालि त्ति वा पुणो । तेणसोल्लिक त्ति वा बूया सेडकफलिक त्ति वा ।। १२६२ ।। पुंडरीकं ति वा बूया सेडगद्दभकं ति वा । तधा सेडककंदो त्ति सिंधुवारो त्ति वा पुणो ॥ १२६३ ॥ दुद्धं दधि वा बूया तधा दधिसरो त्ति वा । णवणीतं ति वा बूया सतधोतं घतं ति वा ॥ १२६४ ॥ धोतकं मधुसित्थं ति जोण्हा धवलपडो त्ति वा । दंतो त्ति दंतचुण्णो त्ति रयतं मुत्तिकं ति वा ॥ १२६५ ।। जं चऽण्णं एवमादीयं सज्जीव-ऽज्जीवकं भवे । सुक्किलं ति सुए सद्दे सुक्किलस्स तु तं समं ॥ १२६६ ॥ तधा सुक्कपडीभागे णक्खत्ते देवते तधा । पुप्फे फले वा देसे वा णगरे गाम गिहे वि वा ॥ १२६७ ॥ पुरिसे चतुष्पदे यावि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लये यावि परिसप्पे तधेव य ॥ १२६८ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि आसणे सयणे तधा । वत्थे आभरणे यावि भंडोवगरणे तधा ॥ १२६९ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ १२७० ॥ 20 एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ || १२७१ ॥ ॥सुक्कवण्णपडीभागा ॥ ५४ ॥ छ । [५५-६२ वेण्णपडीभागपडलं] अब्भंतरं अवंगे उ अक्खीणं बे विणिद्दिसे । एते पंडुपडीभीगे अब्भंतरफले वदे ॥ १२७२ ॥ तधा णीलपडीभागा अप्पसत्थे वियागरे । दढाणं पडिपक्खा जे णपुंसकफला उ ते ॥ १२७३ ॥ दस कण्हपडीभागे णिम्मद्वेसु वियागरे । बालेयेसु सव्वेसु पुच्छिते ण प्पसस्सते ॥ १२७४ ॥ ॥ वण्णपडीभागा ॥ ५५-६२ ॥ छ । 25 [६३-७३ ठियामासवण्णजोणीपडलं] सचे ज्जाव ठियामासा बाहिरप्पडिरूविगा । जो जस्स वण्णपडिरूवो वण्णं तं तेण णिदिसे ॥ १२७५ ॥ कण्हेण कण्हं जाणीया णीलकं णीलकेण य । रत्तेण रत्तं जाणीया पीतकेण य पीतकं ॥ १२७६ ॥ 30 सेतेण सेतं जाणीया पंडुमेव य पंडुणा । मेचकं मेचकेणेव ठियामासं वियागरे ॥ १२७७ ।। १ भवे हं० त० विना ॥ २ मकणं हं० त० ॥ ३ पइल सप्र० ॥ ४ जाती णाली जू सि० ॥ ५ वण हं० त० ॥ ६ धातकं हं० त० विना ॥ ७ सते हं० त० विना ॥ ८ सुक्ल प हं० त० ॥ ९ अत्रेदमवधेयम् एतद् वण्णपडीभागपडलं अग्रेतनं च ठियामासवण्णजोणीपडलं कथञ्चित् समानविषयकमिति मिश्रीभावेन तव्यावर्णनमत्र दृश्यते । अत एवात्र पटलद्वये द्वारसाकर्यमपि वर्तते । कतिचिद्वारापरामर्शस्त्वत्र सुगमत्वात् सम्भाव्यते । द्वारक्रमभङ्गः पुनर्ग्रन्थकृदिच्छामनुवर्तत इति ॥ १० णं चेव णि हं० त० ॥ ११ भागं अब्भंतरफलं हं० त० विना ॥ १२ 'भागो हं० त० विना ॥ १३ "भागा हं० त० विना ।। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४-७९ णिद्धलूहपडलं] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ १०५ गयतालुकवण्णं च तव्वण्णेण वियागरे । काकंडकवण्णं च तधा गोमुत्तकं विदु ॥ १२७८ ॥ सूरेण सुरुग्गमिकं पदुमाभेण पदुमकं । मणोसिलाय य तधा मणोसिलाणिभं वदे ।। १२७९ ॥ हरितालेण जाणेज्जो हरितालसमप्पभं । तधा हिंगुलके यावि बूया हिंगुलकप्पभं ॥ १२८० ॥ णिद्धं णिद्धेण जाणेज्जो लक्खं लुक्खेण णिद्दिसे । मिस्सकं मिस्सकेणेव चित्तवण्णं च चित्तले ॥ १२८१ ॥ एवमादी ठियामासे सवण्णेहिं वियाणिया । बाहिरप्पडिरूवेहिं णिद्दिसे अंगचितओ ॥ १२८२ ॥ 5 बाहिरंगगता एते ठियामासा विआहिता । एते चेव पुणो सव्वे अंगामासेहि णिद्दिसे ॥ १२८३ ।। वक्खणा गोप्फणा जाणू य कण्णा य हरिता भवे । गीवा पीता तधा पंडू अपंगे बे तधोदरं ।। १२८४ ॥ जिब्भो?-तालुका रत्ता बंभवण्णा तऽक्खिणो । सुक्का दंत-णहा असिता बज्झतं केस-लोमय ॥ १२८५ ॥ अब्भंर्तरा य अच्छीण भागा गीवा य पीतिका । सम्मद्दिया य हरिता णिम्मट्ठा होति पंडुणो ॥ १२८६ ॥ कणवीरका अवंगा य पाद-पाणितला तधा । जिब्भो?-तालु-कंठोल्ला दंतमंसं तधेव य ॥ १२८७ ॥ 10 रत्तवण्णपडीभागा विण्णेया दस पंच य । जत्तमणगंतणं ततो बयांगचितओ ॥ १२८८ ॥ रक्त-सेतसमामासे णिहिसे गयतालुकं । सेत-रत्तसमामासे बंभरागं वियागरे ॥ १२८९ ॥ रक्त-पीतसमामासे वण्णं सुज्जुग्गमं वदे । पीत-रत्तसमामासे G मणोसिलाणिभं वदे ॥ १२९० ॥ कण्ड-सेयसमामासे मेचकं वण्णमादिसे । सेत-कण्हसमामासे कोरेंटकणिभं वदे ॥ १२९१ ॥ णिद्ध-लुक्खसमामासे णिद्धलुक्खं तु णिद्दिसे । लुक्ख-णिद्धेसमामासे लुक्खणिद्धाणि णिदिसे ॥ १२९२ ।। 15 पुप्फाणि च फलाणि च तया पत्ताणिमेव य । णिज्जासा चेव सारा य मूलजोणिगतस्स य ॥ १२९३ ॥ वालाणं अंगलोमाणं चम्माणं च पिधप्पिधं । मासाणं रुधिराणं च पित्तस्स य कफस्स य ॥ १२९४ ॥ मुत्ताणं च पुरीसाणं सुक्क-मेद-वसाय य । अट्ठीणं अद्विमिजाय णेहाणं पाणजोणिया ।। १२९५ ॥ जे यऽण्णे धातुजोणीया वण्णरागा पिधपि(प्पि)धं । तेसिं संकित्तणासद्दा विभावेऊण अंगवी ॥ १२९६ ॥ सुक्कादयो सव्ववण्णा ये एते परिकित्तिया । तज्जोणीवण्णसद्देहिं ते पत्तेगं वियागरे ॥ १२९७ ॥ 20 ॥ ठियामासकता वण्णजोणी ॥ ६३-७३ ॥ छ । [७४-७९ णिद्धलूहपडलं] [७४ दस णिद्धाणि] मुहं १ णासापुडा ३ कण्णा ५ मेड्ड ६ मक्खी ८ थणावुभो १० । एताणि दस णिद्धाणि उम्मट्ठाणि पसस्सते ॥ १२९८ ॥ 25 जधा पुण्णामधेज्जेसु आदेसा परिकित्तिता । तधा णिद्धेसु सव्वेसु विसिट्ठतरकं फलं ॥ १२९९ ॥ एताणि आमसंती य गम्भिणी जति पुच्छति । इमो तस्सा भवे अण्णो विसेसो उत्तरुत्तरो ॥ १३०० ॥ उदग्गमाणसा हट्ठा सव्वकामसमण्णिता । सुहेण सुलता पुत्तं धणं णारी पयाहिति ॥ १३०१ ।। बंभणो जति पुच्छेज्जा उदिच्चे वेदपारतो । अभिरूवो सुहितो णिच्चं भवे य धण-धण्णवा ॥ १३०२ ॥ वेस्सो जति पुच्छेज्जा सिद्धऽच्छादण-भोयणो । अड्डो य सुहभागी य वसुमंतो य सो भवे ॥ १३०३ ॥ छ ॥ 30 १'तरो ये अच्छीणं भागा सं ३ पु० । 'तरो य अच्छीणं भागी हं० त० ॥ २ पीयिका हं० त० ॥ ३ लुकंभेल्ला हं० त० विना ॥ ४ हस्तचिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ५ द्धमणिद्धाणि लुक्ख सप्र० ॥ ६ सुव्व हं० त ॥ ७ तिजोणी हं० त० ॥ ८ 'ज्जा मिच्छच्छा सं ३ पु० सि० ॥ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 १०६ अंगविज्जापइण्णयं [७४-७९ णिद्धलूहपडलं [७५ दस णिद्धणिद्धाणि]. एताणि चेव णिद्धाणि णिद्धणिद्धाणि णिद्दिसे । दूंरम्मट्ठाणि सव्वाणि विसिट्ठफलदाणि य ॥ १३०४ ॥ मक्खितं ति व जो बूया तं मक्खिततरं ति वा । [अतिमक्खितं ति वा बूया मक्खितमक्खितं ति वा ॥ १३०५ ॥ णि ति व जो बूया तं णिद्धतरकं ति वा ।] अतिणिद्धं ति वा बूया णिद्धणिद्धं ति वा पुणो ॥ १३०६ ॥ 5 किलिण्णं ति य जो बूया किलिण्णतरकं ति वां । तधा अतिकिलिण्णं ति किलिण्णकिलिण्णं ति वा ॥ १३०७ ॥ णेहितं ति व जो बूया तं णेहिततरं ति वा । अतिणेहितं ति वा बूया णेहितणेहितं ति वा ॥ १३०८ ॥ णेहुक्कडं ति वा बूया णेहुक्कडतरं ति वा । अतिणेहुक्कडं व त्ति बहुणेहुक्कडं ति वा ॥ १३०९ ॥ णेहत्तरं ति वा बूया णेहत्तरतरं ति वा । अतिणेहुत्तरं G वे ति बूया बहुणेहुत्तरं के ति वा ॥ १३१० ॥ णेहागाढं ति वा बूया णेहागाढतरं ति वा । अतिणेहागाढं ति तधा बहुणेहागाढतरं ति वा ॥ १३११ ॥ दुद्धं दधि सरो णवणीतं घयं ति वा । तेलं मधु ति वा बूया वसा मज्जं ति वा पुणो ॥ १३१२ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं दव्वं णेहोवकं भवे । तस्स संकित्तणासद्दा सव्वे णेहसमा भवे ॥ १३१३ ॥ छ । [७६ दस लुक्खाणि] णिम्मट्ठाणि य णिद्धाणि दस लुक्खाणि णिद्दिसे । जधा णपुंसका अंगे विण्णेया फलतो तधा ॥ १३१४ ॥ छ ।। [७७ दस लुक्खलुक्खाणि] एताणि चेव लुक्खाणि दूरं णिम्मज्जिताणि तु । लुक्खलुक्खाणि जाणीया फलं पावतरं च से || १३१५ ॥ लूहं ति व जो बूया तधा लूहतरं ति वा । अतिलूहं ति वा बूया लूहालूहतरं ति वा ॥ १३१६ ॥ फुट्ट ति व जो बूया तधा फुट्टतरं ति वा । F अतिफुट्ट ति वा बूया फुट्टफुट्टतरं ति वा ॥ १३१७ ॥ क फरुसं ति व जो बूया तधा फरुसतरं ति वा । तधाऽतिफरुसं व त्ति फरुसातिफरुसं ति वा ॥ १३१८ ॥ कयारो त्ति व जो बूया पंसुको त्ति व जो वदे । धूली रयो त्ति रेणु त्ति सरो सुक्को त्ति वा पुणो ॥ १३१९ ॥ 20 इंगालछारिगा व त्ति भती भस्सो त्ति वा पुणो । तस त्ति गलिकं वत्ति चण्णं रोट्रो त्ति वा पणो । गोब्बरो त्ति करीसो त्ति सुक्खं वा छगणं पुणो । तण-कट्ठ-पलालं ति सुक्खपुप्फ-फलं ति वा ॥ १३२१ ॥ सुक्खपत्तं ति वा बूया तधा सुक्खफलं ति वा । तुस त्ति कोंटको व त्ति कक्कुसो तप्पणो त्ति वा ॥ १३२२ ।। __ लूहं ति लूहितं ती वा विलूहितविलूहितं । उल्लोहितं उव्वलितं तधा उच्छाडितं ति वा ॥ १३२३ ॥ णिब्भामितं णिग्गलितं अब्भुक्कढितं ति वा । णिण्णेहकं अणेहं वा फुट्ट ति फरुसं ति वा ॥ १३२४ ॥ खफुट्ट ति व जो बूया खपल्लापाडणं ति वा । णिच्छोडणं णिव्वलकं तधा णिल्लिक्खणं ति वा ॥ १३२५ ॥ तधा पलिहितं व त्ति "णिद्धोतं ति व जो वदे । पोल्ल त्ति झुसिरं व त्ति सधूलीक सरेणुकं ॥ १३२६ ॥ जे चऽण्णं एवमादीय लोए लुक्खोपकं भवे । तस्स संकित्तणासद्दा सव्वे लूहसमा भवे ॥ १३२७ ॥ छ । [७८ दस लुक्खणिद्धा ७९ दस णिद्धलूहा य] लुक्खणिद्धा य एतेवं णिद्धा सम्मज्जिता भवे । साधारणं तेसु वदे अत्थलाभं सुभा-ऽसुभं ॥ १३२८ ॥ १ दूरम' हं० त० ॥ २ विसुद्धफ हं० त० ॥ ३ चतुरस्रकोष्ठकान्तर्गतोऽयं खण्डितपाठ: सम्बन्धानुसारेण पूरितोऽस्ति ॥ ४ बूया बहुणेहकडं ति वा सप्र० ॥ ५ अतिणेहितं ति वा बूया बहुणेहकडं ति वा सप्र० ॥ ६ हस्तचिह्नगतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ७ हस्तचिह्नान्तर्गतमुत्तरार्द्ध हं० त० एव वर्त्तते ॥ ८ कुक्कसो हं० त० ॥ ९ उच्चाडियं हं० त० ॥ १० अब्भुक्कंढितं हं० त० विना ॥ ११ णिच्चोडणं हं० त० ॥ १२ णिद्दायम्मि य जो हं० त० ॥ १३ लुक्खे परं भवे हं० त० ॥ १४ साहारणं एसु वदे सव्वं अत्थं सुभा-ऽसुभं हं० त० ॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१-८५ णीहारपडलं] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ १०७ निद्धा लूहा उ एतेवं संविमट्ठा जता भवे । साधारणं तेसु वदे अत्थं सव्वं सुभासुभं ॥ १३२९ ॥ लूहणिद्धं व जं अंगे णिद्धलूहं व जं भवे । तेसिं वामिस्ससद्देहिं साधारणगुणं वदे ॥ १३३० ॥ ॥णिद्धलूहाणि ॥ ७४-७९ ॥ छ । 15 [८० दस आहारा] चक्खु १ सोत्तेण २ घाणेण ३ देहफरिसेण ४ जिब्भया ५ । हत्थ ६ पादेण ७ सीसेण ८ बाहूर्हि ९ भमुहाहि य १० ॥ १३३१ ॥ आहारं कुरुते चेव उवयोगेहि जेहि तु । तधा य होति आहारे दसेताणुवधारये ॥ १३३२ ॥ सुणेती १ पेक्खती यावि २ गंधं वा केवि घायति ३ ।। ओट्ठसंदंसणे चेव ४ णिग्गिण्णाऽऽसाइतम्मि य ५ ॥ १३३३ ॥ अतिहारे य जिब्भायं ओट्ठाणं परिलेहणे ६ । तधेव मुट्ठिकरणे अंगुलीपेंडणेसु य ७ ॥ १३३४ ॥ 10 हत्थपादोवसेंहारे ८ सिरेण ९ भुमकाहि य १० । आहारे णीहिते यावि सव्वं आहारमादिसे ॥ १३३५ ॥ जधा पुण्णामधेयेसु आदेसो तु विधीयति । आहारेसु वि एमेव फलं बूया सुभाऽसुभं ॥ १३३६ ॥ आहारे त्ति व जो बूया खज्जापज्जं (खज्ज-पेज्ज) ति वा पुणो । आहारेति आहारेंति तधा अतिहरंति वा ॥ १३३७ ॥ समाहरंति त्ति वा बूया र बप्पा वाहरति त्ति वा । एति वा [आ]गतो व त्ति तधा अतिगतो त्ति वा ॥ १३३८ ॥ पवेसितो पविट्ठो त्ति आणीयं ति [व] आणितो । सु[ण]ते ति णिसामेति आगण्णेति त्ति वा पुणो ॥ १३३९ ।। पेक्खत्ते पेच्छते व त्ति णिज्झायति [व] पेक्खति । णियक्खेति ति वा बूया णिरिक्खति णिलिक्खति ॥ १३४० ॥ अग्घायते त्ति वा बूया उवग्घाय त्ति वा पुणो । आचिक्खति त्ति वा बूया तधा उच्चंपति त्ति वा ॥ १३४१ ।। 20 रसायते त्ति वा बूया अस्सायेति त्ति वा पुणो । तधा विगिलते व त्ति तधा आतिअ[ति] त्ति वा ॥ १३४२ ॥ जेमेति भुंजते व त्ति आहारं कुरुते त्ति य । अण्हेते व ति वा बूया भक्खते खाति वप्फति ॥ १३४३ ॥ फरिसायते त्ति वा बूया उवष्फरिसते त्ति वा । सुहफरिसं ति वा बूया फस्सं(रुस) वेदयति त्ति वा ॥ १३४४ ॥ आगारेति ति वा बूया तधा वाहरति त्ति वा । राते त्ति व जो बूया तधा एमि वा पुणो ॥ १३४५ ॥ जे वऽण्णे एवमादीया सद्दा आहारसंसिता । तेसिं संकित्तणासद्दा आहारसममादिसे ॥ १३४६ ॥ अब्भंतरेसु जे सद्दा अब्भंतरतरेसु य । ते वि आहारसद्देहि तुल्लत्थे उवधारए ॥ १३४७ ॥ ॥ आहारसम्मत्ति ॥ ८० ॥ छ । 25 30 [८१-८५ णीहारपडलं] [८१ दस णीहारा] चक्खु १ सोत्तेण २ घाणेण ३ देहफरिसेण ४ जिब्भया ५ । हत्थ ६ पादेण ७ सीसेण ८ बाहूहिं ९ भमुहाहि य १० ॥ १३४८ ॥ णीहारं कुरुते चेव उवयोगेहिं जेहि तु । जधा य होति णीहारो दसेताणुवधारए ॥ १३४९ ॥ १ केति हं० त० ॥ २ संघारे हं० त० ॥ ३ एतच्चिान्तर्गत: श्लोकसन्दर्भ: हं० त० नास्ति ॥ ४ तहाऽतिगि हं० त० ॥ ५ सुद्धफ हं० त० ॥ ६ अंगा सं ३ पु० सि० । अगा' हं० त० ॥ ७ चिक्खसो हं० त० विना ॥ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 १०८ अंगविज्जापइण्णयं [८६-९५ दिसापडलं दिस्सते सद्दरूवेण णिस्संघति पुणो पुणो । विर्णिद्वैते णिस्ससति ओटुं णिवोल्लए तधा || १३५० ॥ णिल्लेलेउ जिब्भं तु मुट्ठि वा वि पमुच्चति । विक्खिवे अंगुलीओ य दंताणं च विसोधह ॥ १३५१ ॥ हत्थ-पादं पसारेति सिरेण भुमकाहि य । आकारेण विसज्जेति णीहारमिति णिद्दिसे ॥ १३५२ ॥ चलाणं बाहिराणं च बज्झबज्झाणमेव य । सुभा-ऽसुभफलं जं जं णीहारेसु वि तं वदे ॥ १३५३ ॥ ____णीहारेति णीहरति त्ति अवकड्डति णिकड्डति । णिसारेति [णिसरति] णिक्खुस्सति विकड्डति ॥ १३५४ ॥ णिच्छुद्धे णिग्गते छुद्धे उक्कड्डिय विकड्डिते । अवकड्ढिते पराहूते पराजित परम्मुहे ॥ १३५५ ॥ णिस्सारिते णिस्सरिते अवच्चत पसारिते । विप्पसारित वाविद्धे उव्वेल्लित पसारिते ॥ १३५६ ॥ तधा विक्खिण्ण णिक्खिण्णे विप्पकिण्णे विणासिते । अवकिण्णे परिमीते अवमाणित विमाणिते ॥ १३५७ ॥ चल-बज्झ-बाहिरा [चे]व ये सद्दा पुव्वकित्तिता । ते विमे य उदीरंता णीहारसमका भवे ॥ १३५८ ॥ छ । 10 [८२-८५ दस आहाराहारा आहारणीहारा णीहाराहाराइ] आहारियम्मि आहारे आहारो जति जायति । एतं आहारमाहारं वियाणे अंगचिंतओ ॥ १३५९ ॥ आहारियम्मि आहारे णीहारो जति जायति । एतं आहारणीहारं वियाणे अंगचितओ ॥ १३६० ॥ आहारितम्मि णीहारे आहारो जति जायति । एतं णीहारआहारं वियाणे अंगचिंतओ ॥ १३६१ ।। आहारियम्मि णीहारे णीहारो जति जायति । एतं णीहारणीहारं वियाणे अंगचितओ ॥ १३६२ ॥ बहवो आहार-णीहारा मिस्सका जति जायति । तमाहारं जहित्ता णं अण्णमाधारए पुणो ॥ १३६३ ॥ पुरिमेण पुरिमं जाणे पच्छिमेण य पच्छिमं । वत्तमाणम्मि आहारे वत्तमाणं वियागरे ॥ १३६४ ॥ पुण्णामम्मि य आहारे पुरिसत्थं वियागरे । थीणामे य थिया अत्थं णपुंसं च णपुंसके ॥ १३६५ ॥ उत्तमम्मि य आहारे उत्तमत्थं वियागरे । मज्झिमे मज्झिमं अत्थं हीणे हीणत्थमादिसे ॥ १३६६ ॥ आहारम्मि य आहारे पसत्थं अस्थमादिसे । णीहारम्मि य आहारे अत्थं पुव्वं वियागरे ॥ १३६७ ॥ 20 ॥णीहारपडलं सम्मत्तं ॥ ८१-८५ ॥ छ । [८६-९५ दिसापडलं] [८६ सोलस परत्थिमाणि] पुरत्थिमाणि वक्खामि सोलसंगे जधा तधा । अणागताणि जाणेव पसत्थं तत्थऽणागतं ॥ १३६८ ॥ अत्थलाभं जयं वद्धि पुच्छे एताणि आमसं । पुरत्थिमं आगमिस्सं सव्वमत्थि त्ति णिदिसे ॥ १३६९ ।। आगामिभदं पुरिसं एस्सकल्लाणमादिसे | G तहाऽऽगमेसभदं च पयमाणं पि णिद्दिसे ॥ १३७० ॥ पुरिसस्सऽत्थविहं पुच्छे बूया तं पुरत्थिमं । थिआ अत्थविहं पुच्छे तं पि बूआ पुरत्थिमं ॥ १३७१ ॥ तहाऽऽगमेसभद्दा य गम्भिणीणं पुरत्थिमा । पुरत्थिमं व भातूणं कण्णा तु लभते वरं ॥ १३७२ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्ज गब्भमागामिमादिसे । गम्भिणि परिपुच्छेज्ज चिरा पुत्तं पयाहिति ॥ १३७३ ।। कम्मं च परिपुच्छेज्ज उत्तमं कम्ममादिसे । फलं तस्स य कम्मस्स आगामी लभते णरो ॥ १३७४ ॥ 30 पवासं परिपुच्छेज्ज चिरा तु गमणं वदे । पोसितस्स सलाभस्स चिरेणाऽऽगमणं वदे ॥ १३७५ ॥ बंधं वधं वाधि मच्चं अणावुढेि अपातपं । सस्सस्स वा वि वापत्ति सव्वं णत्थि त्ति णिदिसे ॥ १३७६ ॥ १ "णिट्ठभे णि हं० त० ॥ २ णिल्लेणेतु जि हं० त० विना ॥ ३ विक्खेवं हं० त० विना ॥ ४ णिखस्सति हं० त० ॥ ५ णिव्वुद्धे णिग्गते वुद्धे हं० त० विना ॥ ६ णिस्सरति हं० त० सि० ॥ ७ विक्खित्त णिक्खित्ते हं० त० विना ।। ८-९ वियारे हं० त० विना ॥ १० जाणि व हं० त० विना ॥ ११ हस्तचिह्नान्तर्गतः पद्यसन्दर्भः हं० त० एव वर्तते ।। Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६-९५ दिसापडलं] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ १०९ बद्धस्स मोक्खं खेमं च संधि च जयमेव य । आरोग्गं जीवितं व त्ति वस्सारत्तो य उत्तमो ॥ १३७७ ॥ वस्सारत्तं च पुच्छेज्ज बूया वासमणागतं । पुरथिमे महामेहा महावासं करिस्सति ॥ १३७८ ॥ णटुं च परिपुच्छेज्जा अत्थि णटुं ति णिद्दिसे । णट्ठमाधारइत्ता य बूया णटुं पुरत्थतो || १३७९ ॥ कतिमि दिसं ति वा बूया पुरिमं ति वियागरे । धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज धण्णं तेवं वियागरे ॥ १३८० ॥ जं किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । [जं किंचि अप्पसत्थं च सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे ॥ १३८१ ॥] 5 उवातं णिद्दिसे धण्णं दिसं बूया पुरत्थिमं । साधारणं वदे अत्थं थी-पुमंसस्सऽणागतं ॥ १३८२ ॥ जधा पुण्णामधेयेसु सव्वो अत्थो सुभा-ऽसुभो । एवमेतेसु पुरिमेसु सव्वं बूया अणागतं ॥ १३८३ ॥ अणागतेसु सद्दा जे पुव्वं संपरिकित्तिता । ते चेव सद्दा पुरिमाणं जाणे तुल्ले फलेण तु ॥ १३८४ ॥ ॥ पुरथिमाणि सम्मत्ताणि ॥ ८६ ॥ छ । [८७ सोलस पच्छिमाणि] 10 सोलस पच्छिमाणंगे अतिवत्ताणि जाणि तु । ताणि साधारणे अत्थे अतीते णर-णारिणं ॥ १३८५ ॥ अत्थलाभं जयं वा वि वद्धि वा जति पुच्छति । पच्छतो य तमत्थि त्ति सेसं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १३८६ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज भातूणं पच्छिमो भवे । इत्थि च परिपुच्छेज्जा भगिणीणं पच्छिमा भवे ॥ १३८७ ॥ पुरिसत्थविधं पुच्छे पच्छतो त्ति वियागरे । G थिया अत्थविहं पुच्छे पच्छतो ति वियागरे ॥ १३८८ ॥ क कण्णं च परिपुच्छेज्जा भगिणीणं पच्छिमा भवे । पच्छिमं चेव भातूणं खिप्पं च लभते वरं ॥ १३८९ ॥ 15 गब्भं च परिपुच्छेज्ज णत्थि गब्भो ति णिद्दिसे । गम्भिणि परिपुच्छेज्ज वियाणं पच्छिमं वदे ॥ १३९० ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्ज पच्छा कम्मं वियागरे । अप्पप्फलं बहुक्केसं णराणं कम्ममादिसे ॥ १३९१ ।। पवासौं पुच्छिते णत्थि पोसितो पच्छओ गओ । णिरत्थकं च तं बूया चिरायाऽऽगमणं वदे ॥ १३९२ ॥ बंधं पुच्छे ण भवति बद्धो खिप्पं च मुच्चति । भयं खेमं च संधि वा विग्गहो य णिरत्थको ॥ १३९३ ॥ रोगं मरणमणावुढेि आतवं सस्सवापदं । विप्पयोगं विवादं च सव्वमत्थि ति णिद्दिसे ॥ १३९४ ॥ 20 जीवितं जयमारोग्गं वस्सारत्तं सवासकं । णट्टिकं सस्ससंपत्ति सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १३९५ ॥ कतमि दिसं ति वा बूया पच्छिमं ति वियागरे । धण्णं धणं ति पुच्छेज्ज अधण्णं ति वियागरे ॥ १३९६ ॥ अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । जं किंचि पसत्थं सा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १३९७ ॥ वण्णतो कालगं बूया पच्छिमं दिसमादिसे । अप्पसत्थं वदे अत्थं अतीतं णर-णारिणं ॥ १३९८ । अतिवत्तेसु आदेसो जधा दिट्ठो सुभा-ऽसुभो । पच्छिमेसु वि एमेव फलं बूया सुभा-ऽसुभं ॥ १३९९ ॥ 25 अतिवत्तेसु जे सद्दा पुव्वं तु परिकित्तिता । पच्छिमेसु वि एमेव तुल्लत्थे फलतो वदे ॥ १४०० ॥ . ॥ पच्छिमाणि ॥ ८७ ॥ छ । [८८ सत्तरस दक्खिणा] जाणेव दक्खिणाणंगे ताणेव दक्खिणाणि तु । पुरिसत्थे पसत्थाणि णिद्दिसे दस सत्त य ॥ १४०१ ॥ सामोवातं वदे वण्णं दक्खिणं दिसमादिसे । वत्तमाणं सुभं अत्थं पुरिसाणं पवेदये ॥ १४०२ ॥ 30 दक्खिणेसु जधा दिट्ठो सव्वो अत्थो सुभा-ऽसुभो । दक्खिणेसु वि एमेव फलं बूया सुभा-ऽसुभं ॥ १४०३ ॥ छ । १ जीवितं अस्थि वस्सा हं० त० ॥ २ कतिमं हं० त० ॥ ३ चतुरस्रकोष्ठकान्तर्गतः पाठः सम्बन्धानुसारेणानुसन्धितोऽस्ति ॥ ४ हस्तचिह्नान्तगर्तमुत्तरार्द्धं हं० त० एव वर्तते ॥ ५ “सो पच्छिमे णस्थि हं० त० ॥ ६ पच्छितो गतो हं० त० विना । ७ पच्छिमेव तु एमेव सप्र० ॥ ८ दक्खिणेण तु सं ३ पु० ॥ ९ धण्णं हं० त० ॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० अंगविज्जापइण्णयं [८६-९५ दिसापडलं [८९ सत्तरस उत्तरा] जाणेव होंति वामाणि ताणेव उत्तराणि तु । थीणं कल्लाणभागीणं णराणं ण प्पसस्सते ॥ १४०४ ॥ सामं कालं वदे वण्णं उत्तरं णिद्दिसे दिसं । वत्तमाणं सुभं अत्थं पमदाणं पवेदये ॥ १४०५ ॥ जधा वामेसु सव्वेसु अत्थो 4 दिट्ठो सुभा-ऽसुभो । [ उत्तरेसु वि एमेव फलं बूया सुभा-ऽसुभं ॥ १४०६ ॥ वामभागेसु जे सद्दा पुव्वमेव तु कित्तिया । उत्तरेसु वि ते चेव सद्दे तुल्लफले वदे ॥ १४०७ ॥ छ । [९० सत्तरस दक्खिणपुरच्छिमा] पुरिमाणं दक्खिणाणं च मज्झे अंगाणि जाणि तु । पुव्वदक्खिणभागाणि पसत्थाणि वियागरे ॥ १४०८ ॥ अत्थलाभं जयं वा वि वद्धिं च परिपुच्छति । साधारणं वदे अत्थं फलतो पुरिमदक्खिणं ॥ १४०९ ।। पुरिसं इत्थि च अत्थं च पुच्छे . णि आमसं । पुरिमाणं दक्खिणाणं च फलं वामिस्समादिसे ॥ १४१० ॥ 10 कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्था सु.. त्ति य । धण्णा य सुहभागी य खिप्पं विज्जेहिते त्ति य ॥ १४११ ॥ गब्भमत्थि त्ति जाणीया गब्भिणी दारकम्मि य । खिप्पं पजायते णारी कम्मं साधारणं वदे ॥ १४१२ ॥ . पवासो पुच्छिते सफलो पउत्थं पुव्वदक्खिणं । दिसं गतो त्ति जाणीया सधणो खिप्पमेहिति ॥ १४१३ ॥ बंधं भयं विग्गहं रोगं मरणं आतवं तधा । अवुढेि सस्सवापत्ती सस्सं(सव्वं) णत्थि त्ति णिदिसे ॥ १४१४ ॥ बद्धस्स मोक्खं खेमं च संधि च जयमेव य । आरोग्गं जीवितं चेव उग्गाहं वाधितस्स य ॥ १४१५ ॥ वस्सारत्तं च वासं च सव्वं नट्ठस्स दंसणं । तहा खित्तं तहा वत्धुं सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १४१६ ॥ कतमं दिसं ति वा बूया वदे पुरिमदक्खिणं । धण्णं धणं ति पुच्छेज्जा वदे उक्कट्ठमज्झिमं ॥ १४१७ ॥ जं किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे ॥ १४१८ ॥ उवातं णिद्दिसे वेण्णं दिसं पुरिमदक्खिणं । अत्थं अणागतं सव्वं पसत्थं णिद्दिसे सता ॥ १४१९ ॥ अणागतेसु जे सद्दा जे सद्दा दक्खिणेसु य । पुव्वदक्खिणसद्दाणं ते सद्दे णिद्दिसे समे ॥ १४२० ॥ छ । [९१ सत्तरस दक्खिणपच्चत्थिमा] दक्खिणाणं च सव्वे सिं पच्छिमाण य अंतरा । अंगा ण प्पसस्संते जधा अत्थो णपुंसको || १४२१ ।। अत्थलाभं जयं वद्धि एताणि जति पुच्छति । जं किंचि पसत्थं सा सव्वं णत्थि त्ति णिदिसे ॥ १४२२ ॥ अधण्णं दूभगं वा वि अणवज्जं णरं वदे । एवमेव य णारीणं णिरत्थं अस्थमादिसे ॥ १४२३ ॥ गब्भं पुच्छे ण भवति गम्भिणी जणये मतं । कम्मपुच्छाय णिद्देसे णिरत्थं कम्ममादिसे ॥ १४२४ ॥ णिरत्थकं पवासं च पोसियं च णिरत्थकं । गतं अवरदक्खिणतो चिरकाले य णिदिसे ॥ १४२५ ॥ बंधं पुच्छे ण भवति बद्धो खिप्पं च मुच्चति । बद्धस्स यावि मुत्तस्स पवासो सिग्घमेव उ ॥ १४२६ ॥ खेमं पुच्छे ण भवति भयं पुच्छे भविस्सति । संधि पुच्छे ण भवति विग्गहो बहुसो भवे ॥ १४२७ ।। जीवितं जयमारोग्गं उग्गाहं आतुरस्स य । वस्सारत्तं च वासं च सस्सं णट्ठस्स दंसणं ॥ १४२८ ॥ खेत्तं वत्थु धणं धण्णं थाणमिस्सरियं जसं । जं च किंचि पसत्थं सा सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १४२९ ॥ 30 पराजयमणावुट्टि रोगं मरणमातवं । सस्सस्स वा वि आवत्तिं णत्थि त्तेवं वियागरे ॥ १४३० ॥ कतमं दिसं ति वा बूया वदे अवरदक्खिणं । धण्णं धणं ति पुच्छेज्जा अधण्णं ति वियागरे ॥ १४३१ ॥ सामोवातं वदे वण्णं दिसं अवरदक्खिणं । अप्पसत्थं वदे अत्थं अतीतं णर-णारिणं ॥ १४३२ ॥ दक्खिणेसु य जे सद्दा अतीतेसु य जे भवे । दक्खिणापरसद्दाणं ते सद्दे णिद्दिसे समे ॥ १४३३ ॥ छ । १ND एतच्चिह्रान्तर्गत: पाठ: हं० त० नास्ति ॥ २ परमदक्खिणं हं० त० ॥ ३ च वय सप्र० ॥ ४ हस्तचिहान्तर्गत: पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ५ धण्णं हं० त० ॥ ६ व त्ति अ° हं० त० ॥ 20 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '१११ ९६-९९ पसण्णा-उपसण्णपडलं] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ [९२ सत्तरस उत्तरपच्चत्थिमा] पच्छिमाणं च सव्वेसिं उत्तराणं च अंतरा । अप्पसत्था भवंतेते जधा अत्थे णपुंसके || १४३४ ॥ आदेसो तु जधा दिट्ठो [पुव्वं] दक्खिणपच्छिमे । तधेव सव्वमादेसं बूया उत्तरपच्छिमे ॥ १४३५ ॥ वण्णतो कालतं बूया दिसं च अवरोत्तरं । अप्पसत्थं च णारीणं अत्थं बूया अतिच्छियं ॥ १४३६ ॥ छ । [९३ सत्तरस उत्तरपुरत्थिमा ] उत्तराणं च जे अंगा पुरिमाणं च अंतरा । थीणामत्थे पसत्था तु विण्णेया दस सत्त य ॥ १४३७ ।। पुव्वदक्खिणतो दिट्ठो जधा अत्थो सुभा-ऽसुभो । तधेव पुव्वुत्तरत्तो सव्वं बूया सुभा-ऽसुभं ॥ १४३८ ।। सामकालं वदे वण्णं दिसं च परिमत्तरं । अणागतं सभं अत्थं णारीणं तं पवेदये ॥ १४३९ ॥ अणागता य जे सद्दा जे य वामेसु कित्तिता । पुरिमुत्तरसद्दाणं एते सद्दे समे वदे ॥ १४४० ॥ छ । 5 ___ 10 [९४ दुवालस उद्धभागा] पुरिमेण उच्चं जाणेज्जो पच्छिमें हस्समादिसे । वामदक्खिणतो वा वि चतुरस्सं वियागरे ॥ १४४१ ॥ पुरिमेण थूलं जाणेज्जो पच्छिमेण किसं वदे । समोवयितगत्तं च वामदक्खिणतो वदे ॥ १४४२ ॥ उल्लोकितम्मि सव्वम्मि आमट्ठम्मि सिरम्मि य । उम्मज्जिताभिमढे य दूरम्मढे तधेव य ॥ १४४३ ॥ उट्रिते उस्सिते यावि उक्खित्तुव्वरितम्मि य । उण्णते उण्णमंते य सद्दे आकासकम्मि य ॥ १४४४ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं आकासपडिरूवितं । एतम्मि सद्दरूवम्मि दिसं उर्दू वियागरे । १४४५ ॥ छ । 15 [९५ तेरस अधोभागा] ओलोकिते य सव्वम्मि अवमट्ठा-ऽपमज्जिते । णिम्मज्जिते य णिम्मढे सव्वमोसारितम्मि य ॥ १४४६ ।। णिक्खित्ते णिहित्ते यावि ओतिण्णोतारितम्मि य । उम्मढे ये णिवुड्डे य सव्वभूमिगतम्मि य ॥ १४४७ ।। जं चण्णं एवमादीयं अधोभागं विधीयते । एतम्मि सद्दरूवम्मि दिसं बूया तु हेट्टिमं ॥ १४४८ ॥ ॥ दिसापडलं ॥८८-९५ ॥ छ । 20 [९६-९९ पसण्णा -उपसण्णपडलं] [९६ पण्णासं पसण्णा] अब्भंतरे य उम्मढे पसण्णते वियागरे । अब्भंतरत्थेण वदे विसिट्ठतरकं फलं ॥ १४४९ ॥ एताणि आमसं पुच्छे अत्थलाभं जयं तधा । जं च किंचि पसत्थं तं सव्वमत्थि ति णिद्दिसे ।। १४५० ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज सिद्धत्थो सुभगो ति य । धण्णो य सुहभागी य सामोईबहुलो भवे ॥ १४५१ ॥ 25 इत्थि च परिपुच्छेज्जा सिद्धत्था सुभग त्ति य । धण्णा य सुहभागी य सम्मोईबहुला भवे ॥ १४५२ ॥ पुरिसस्सऽत्थविधं पुच्छे सम्मोईसु भविस्सइ । G थिंया अत्थविहं पुच्छे सम्मोई य भविस्सइ ।। १४५३ ॥ का कण्णं च परिपुच्छेज्जा धण्णा विज्जिहिते लहुं । रण्णो य अब्भंतरगं भत्तारं सा लभिस्सति ॥ १४५४ ।। गब्भं च परिपुच्छेज्ज अस्थि गब्भो त्ति णिद्दिसे । गब्भिणि परिपुच्छेज्जा जणये पुत्तमुत्तमं ॥ १४५५ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्जा रण्णो अब्भंतरं वदे । महाजणस्स णिद्देसं करिस्सति य कम्मणा ॥ १४५६ ॥ 30 पवासं परिपुच्छेज्जा सफलो त्ति वियागरे । पउत्थं परिपुच्छेज्जा संधणो खिप्पमेहिति ॥ १४५७ ॥ १णं च प हं० त० ॥ २ 'मेरस्स” हं० त० ॥ ३ ओणते हं० त० ॥ ४ "सजम्मि हं० त० ॥ ५ या णिवुद्धे य हं० त० ॥ ६ सद्दलूयम्मि हं० त० ॥ ७ सोमाई सं ३ पु० ॥ ८ हस्तचिह्नान्तर्गतमुत्तरार्द्धं हं० त० एव वर्तते ॥ ९ सधण्णो हं० त० विना ।। Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 अब्यंतरे य णिम्मट्ठे अप्पसण्णे वियागरे । अत्थहाणि विणासं च सव्वं च असुभं वदे ॥ १४६३ ॥ णमो अरहंताणं, णमो आयरियाणं, णमो ऋरिकसुत्ताणं, जे एकपदं द्विपदं बहुपदं वा विज्जामंतपयं धारयंत तेसिं णमोक्कारइत्ता इमं विज्जा (ज्जं ) पजोजयिस्सं, सा मे विज्जा समिज्झतु, णमो अरहतो वद्धमाणस्स, जधा भगवती 10 अंगदेवी सहस्सपरिवारा समणं भगवंतं महावीरं पुव्वि सच्चपतिट्ठिए लोए तेणं सच्चवयणेणं सा मं अंगदेवी उत्थातु, जधा दक्खिणस्स अद्धलोगस्स मघवं देवाणं इंदे आधिपच्चं पोरेपच्चं कारयति एतेण सच्चवयणेण सा मं अंगदेवी उवत्थायतु, उत्तरस्स अद्धलोगस्स ईसाणे महाराया आधिपच्चं पोरेपच्चं कारयति एतेण सच्चवयणेण सा मं अंगदेवी उवत्थायतु, तधेव देविंदस्स चत्तारि लोगपाला देवा य वयणेणमुपगता एतेण सच्चवयणेण अमुको अत्थो सिज्झतु त्ति । मणम्मि सिक्खिते पढितव्वा । छट्टग्गहणी एस विज्जा ॥ 20 25 ११२ अंगविज्जापइण्णयं [ १००-१०३ वामपडलं बंधं भयं विग्गहं [च] रोगं मच्चु य वासकं । अपातयं सस्सवापत्ति सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १४५८ ॥ बद्धस्स मोक्ख णासं विजयाऽऽरोग्गं च जीवितं । आतुरस्स समुट्ठाणं वस्सारत्तं सवासकं ॥ १४५९ ॥ टुस्स दंसणं वा वि सस्ससंपत्तिमुत्तमं । मित्ति सम्मोइ संपीति सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ १४६० ॥ जं च किंचि पसत्थं सा सव्वमत्थि त्ति णिद्दिसे । अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि त्ति णिद्दिसे || १४६१ ॥ सव्वमब्भंतरत्थं च पुण्णामत्थो य जो भवे । जधुत्तमणुगंतूणं पसण्णेसु विं तं वदे ॥ १४६२ ॥ छ ॥ [ ९७ पण्णासं अप्पसण्णा ] 30 णपुंसकाणं जो अत्थो बाहिरत्थो य जो भवे । तं सव्वं अप्पसण्णेसु तधेव फलमादिसे ॥ १४६४ ॥ छ ॥ [ ९८-९९ पण्णासं अप्पसण्णपसण्णा पसण्णअप्पसण्णाणि य ] अप्पसने पसन्ने य पण्णासं चेव णिद्दिसे । पसन्ने अप्पसन्ने य पण्णासं चेव णिद्दिसे । अब्धंतरा तु पण्णासं आमट्ठा जे अवत्थिता । अब्भंतरा य पण्णासं विमट्ठा जे पुणो पुणो । अप्पसत्थे वियाणीया अप्पसेण्णतरा हि ते ॥ १४६८ ॥ ॥ पसण्ण-अप्पसण्णाणि ९६ - ९९ ॥ छ ॥ अब्भंतरा संविमट्ठा ण ते पढमकप्पिता ।। १४६५ ॥ अब्भंतरा तु अपमट्ठा अप्पसन्ना भवंति ते ।। १४६६ ॥ पैसत्थे ते वियाणेज्जा पसन्नतरका हि ते ॥ १४६७ ॥ [ १००- ३ वामपडलं ] [ १०० - १०३ सोलस वामा पाणहरा इच्चाइ ] अच्छीणि कन्ना संखा य हितयं णाभी कडी तधा । पस्सं संधितला सव्वे वामा पाणहरा भवे ॥ १४६९ ॥ हिययं १ बाहुसंधी य ३ कक्खा ५ हत्था ७ ककाडिका ८ । गोप्फा १० अक्खीणिकण्णा य १२ संखा १४ पादा य १६ सोलस || १४७० ॥ एते तु पीलिता सव्वे वामा धणहरा भवे । अपीलिता य उम्मट्ठा सोलसेव धणारा || १४७१ ॥ णपुंसका तु णिम्मट्ठा वामा सोवद्दवा मता । णंपुसके हि पावतरं फलं तेहि वियागरे ॥। १४७२ ॥ छ ॥ अंगुट्ठा ४ अंगुलीओ य २० बाला ३० णिम्मज्जिता तधा । तीसं तु साहा वामे अंगे एते वियागरे || १४७३ ॥ संखावामेसु एतेसु थीणा बूया उवद्दवं । बहुसाधारणं अत्थं एतप्पच्चयमादिसे || १४७४ ॥ पुरिसं च परिपुच्छेज्ज बहुसाधारणं वदे । महाजणं च पोसेति पेसेति य महाजणं ॥ इत्थि च परिपुच्छेज्ज बहुसाधारणं वदे । महाजणं च पोसेति पेसेति य महाजणं ॥ पुरिसस्सऽत्थविधं पुच्छे तं साधारणमादिसे । थिया अत्थविधं पुच्छे तं पि साधारणं वदे ॥ १४७७ ॥ १४७५ ॥ १४७६ ॥ १त्थो जयो भवे हं० त० ॥ २ वि यं वदे हं० त० ॥ ३ झरिकभुत्ताणं सं ३ पु० । झरिकपुत्ताणं सि० ॥ ४ पसण्णो व विया हं० त० ॥ ५ 'सण्णेतरा हं० त० विना ॥ ६ अत्र अक्षिणी कर्णौ च इति भिन्नपदविधाने अष्टादशाङ्गसंख्या भवति, अनिष्टा ह्यसौ, अतः 'अक्षिकर्णौ अपाङ्गौ' इत्यर्थं सम्भाव्य अक्खीणिकण्णा इति एकपदत्वेन स्थापितमस्ति, अत्रार्थे तज्ज्ञा एव प्रमाणम् ॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 १०५ एक्कारस थूला] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ ११३ कण्णं च परिपुच्छेज्ज सिग्घं अभिवरा भवे । महाणपैसकं वा पि समिद्धं लभते वरं ॥ १४७८ ॥ गब्भं च परिपुच्छेज्जा बहुसो तु पजायति । गम्भिणी परिपुच्छेज्जा वामणं जणयिस्सति ॥ १४७९ ॥ कम्मं च परिपुच्छेज्जा बहुसाधारणं वदे । महप्फलेण कम्मेण तोसेहिति महाजणं ॥ १४८० ॥ पवासं परिपुच्छेज्जा भविस्सति बहुप्फलो । पोसितं परिपुच्छेज्जा लभिस्सति बहुं धणं ॥ १४८१ ।। बंधं च परिपुच्छेज्जा बहुसो बज्झति त्ति य । बद्धस्स मोक्खं पुच्छेज्जा खिप्पं मुच्चिस्सते त्ति य ॥ १४८२ ॥ 5 भयं च परिपुच्छेज्जा बहुसो त्ति वियागरे । खेमं च परिपुच्छेज्जा चिरं खेमं भविस्सति ॥ १४८३ ॥ संधि च परिपुच्छेज्जा साधारणमादिसे । विग्गहं परिपुच्छेज्ज महाणेण तु विग्गहो ॥ १४८४ ॥ जयं च परिपुच्छेज्ज जयिस्सति महाजणं | आरोग्गं परिपुच्छेज्ज आरोग्गं सउवद्दवं ॥ १४८५ ॥ रोगं च परिपुच्छेज्ज बहुरोगो भविस्सति । मरणं च परिपुच्छेज्ज परिक्किट्ठो मरिस्सति ॥ १४८६ ॥ जीवितं परिपुच्छेज्ज सरोगं जीवितं चिरं । आबाधितं च पुच्छेज्जा समुट्ठाणं चिरा भवे ॥ १४८७ ॥ अणावुढेि च पुच्छेज्जा णत्थि तेवं वियागरे । वस्सारत्तं च पुच्छेज्जा बहुमेधं वियागरे ।। १४८८ ॥ अपातयं च पुच्छेज्ज णत्थि त्तेवं वियागरे । वासं च परिपुच्छेज्ज चिरं वासं तु णिद्दिसे ॥ १४८९ ॥ F सेस्सस्स वापयं पुच्छे णत्थि त्तेवं वियागरे । ३ सस्सस्स संपयं पुच्छे विचित्ता सस्ससंपया ॥ १४९० ॥ अप्पसत्थं च जं किंचि सव्वं णत्थि ति णिद्दिसे । जं च किंचि पसत्थं सा सव्वं साधारणं वदे ॥ १४९१ ॥ , तधा खेत्तं तधा वत्थु सव्वं साधारणं वदे । धण्णं धणं ति पुच्छेज्जा तं पि साधारणं वदे ॥ १४९२ ॥ 15 साधारणम्मि णक्खत्ते देवते पणिधिम्मि य । पुप्फे फले व देसे वा णगरे गाम गिहे वि वा ॥ १४९३ ॥ पुरिसे चतुष्पदे वा वि पक्खिम्मि उदगेचरे । कीडे किविल्लगे वा वि परिसप्पे तधेव य ॥ १४९४ ॥ पाणे वा भोयणे वा वि वत्थे आभरणे तधा । आसणे सयणे जाणे भंडोवगरणे तधा ॥ १४९५ ॥ लोहेसु यावि सव्वेसु सव्वेसु रयणेसु य । मणीसु यावि सव्वेसु सव्वधण्ण-धणेसु य ॥ १४९६ ॥ एतम्मि पेक्खियामासे सद्दे रूवे तधेव य । सव्वमेवाणुगंतूणं ततो बूयांगचितओ ॥ १४९७ ॥ 20 ॥ वामा सम्मत्ता ॥ १००-१०३ ॥ छ । 25 [१०४ एक्कारस सिवा] णिडालं १ दस णिद्धाणि ११ उम्मट्ठाणि जया भवे । एक्कारस सिवा एते पुच्छितम्मि पसस्सते ॥ १४९८ ॥ जधा पुण्णामधेयेसु आदेसो तु विधीयते । विसिटुतरगं अत्थं तधा बूया सिवेसु वि ॥ १४९९ ॥ छ | [१०५ एक्कारस थूला] उभो ऊरु २ उरो ३ पट्टी ४ सिरं ५ गंडा ७ थणा ९ फिओ .११ । एते थुल्ला पसस्संते थुलं वऽत्थं वियागरे ॥ १५०० ॥ एताणि आमसं पुच्छे पुरिसं थी णपुंसकं । उदगेचर परीसप्पं मच्छ पक्खि चतुप्पदं ॥ १५०१ ॥ कीडं किविल्लगं वा वि जं चऽण्णं जंगलं भवे । सव्वथुल्लं वियाणीया थुलं वऽत्थं वियागरे ॥ १५०२ ॥ सजीवं जीवमाधारे सजीवमिति णिपिसे । थुल्लो किसो त्ति वा बूया थुल्लो त्तेवं वियागरे ॥ १५०३ ॥ 30 अप्पं बहुं ति आहारे बहु तेवं वियागरे । समे सद्दे य जाणेज्जा थुल्ला जे मणिके मता ॥ १५०४ ॥ १ पेसिकं हं० त० ॥ २ महाफलेण हं० त० ॥ ३ च बहुपु हं० त० ॥ ४ सिग्धं हं० त० ॥ ५ हस्तचिहान्तर्गतं पूर्वार्द्ध हं० त० एव वर्तते ॥ ६ “रणम्मि य हं० त० ॥ ७ उभो हुंरुदरो हं० त० ॥ ८ "ल्लो एवं हं० त० ॥ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 ११४ अंगविज्जापइण्णयं [११२ छन्वीसं दिग्धा थूलं वर्ल्ड वरढं ति परिवूढं ति वा पुणो । पीणं उवचितं व त्ति पीवरं मांसलं ति वा पुणो ॥ १५०५ ॥ महासारं महाकायं अतिकायं ति वा पुणो । मंडं ति बहलं व ति पुत्थव्वा मेदितं ति [वा]॥ १५०६ ॥ रूढं ति समतुंबं ति उद्धमातं ति वा पुणो । सम्मत्तं अतिपुण्णं ति अव्वंगं ति व जो वदे ॥ १५०७ ।। जे यऽन्ने एवमादीया पज्जवा थुल्लसंसिता । तस्स संकित्तणासदा तें थुल्लसममादिसे ॥ १५०८ ॥ छ । [१०६ णव उवथूला] जंघा २ सिरो ३ ऽधरा ५ बाहू ७ हत्थपादा तधेव य ९ । उवथूलाणि एताणि उम्मट्ठाणि पस्सते ॥ १५०९ ॥ छ । [१०७ पणुवीसं जुत्तोपचया ] अंगुट्ठा ४ अंगुलीओ य २० णिडालं २१ चिबुकोट्ठयो २४ ।। णासा य २५ जुत्तोपचया जधुत्तेणं वियागरे ।। १५१० ॥ छ । [१०८-१०९ वीसं अप्पोवचया वीसं णातिकिसा य] ते चेव अप्पोवचया ते य णातिकिसा मता । अंगुट्ठा ४ अंगुलीओ य २० जधुत्तेण वियागरे ॥ १५११ ॥ छ । [११० सत्तरस किसा] गोप्फा २ जण्णुगसंधी य ४ मणिबंधा ६ उवत्थगा ७ । [कण्ण] संधी ९ भुमासंधी ११ संखा १३ पट्टी य १४ कुक्कुडा १५ ॥ १५१२ ॥ अवडू १७ सत्तरसा उत्ता किसे एते वियाणिया । चलं बझं मुहं वत्थं कस्सं जत्तं वियागरे ॥ १५१३ ।। थुल् किसं ति वा बूया कसं तेवं वियागरे । समे सद्दे य जाणेज्जो किसा ये मणिके मता ॥ १५१४ ।। कसं परिकसं व त्ति अणुं ति अणुकं ति वा । दुब्बलो त्ति किसो व त्ति उल्लुत्तो ति व जो वदे ।। १५१५ ॥ णिम्मंसको त्ति वा बूया तधा अट्ठिकलेवरं । अट्टिकं चम्मणद्धं ति तधा अट्ठिकसंकला ॥ १५१६ ॥ सुक्कलो त्ति व जो बूया णिस्सुक्को त्ति व जो वदे । ओझीणं परिहीणं ति मातं ति मलितं ति वा ॥ १५१७ ॥ 20 जे यऽण्णे एवमादीया पज्जवा किससंसिता । णामसंकित्तणे तेर्सि किसेहि सममादिसे ॥ १५१८ ॥ छ । [१११ एक्कारस परंपरकिसा] परंपरकिसा उत्ता खलुका २ जाणुक ४ ढेल्लिका ६ । कोप्परा ८ केस ९ रोग(रोम) १० हणं(णह) ११ अप्पसत्था भवंति ते ॥ १५१९ ॥ थूलेसु थूलमत्थं उवथूले अणुत्तरं । जुत्तोपचये जुत्तत्था ततो बूया अणुत्तरं ॥ १५२० ॥ छ । [११२ छव्वीसं दिग्घा] बाहू २ पबाहू ४ जंघो ६ रु ८ सोलसंगुलिओ २४ तधा । केसे २५ पट्ठी य २६ जाणीया दीहाणेताणि अंगवी ॥ १५२१ ।। दीहाणेताणि छव्वीसं उम्मट्ठाणि जता भवे । पुच्छितम्मि पसस्संते इत्थेणमभिणिदिसे ॥ १५२२ ॥ १ वदं वरदं ति परिरूढं हं० त० ॥ २ मंदं ति बहुलं व त्ति पुच्छवा मे हं० त० ॥ ३ संसत्तं सप्र० ॥ ४ पुत्तं ति हं० ॥ ५ तं थुल्लं सम सं ३ सि० । तं थूलं सम हं० त० ॥ ६ जत्तुग हं० त० विना ॥ ७ कस्सं जंते वि' हं० त० । कंसं जंतं वि सि० ॥ ८ किसं हं० त० विना ॥ ९ कसा हं० त० ॥ १० कस परिकस व्व सप्र० ॥ ११ अण्णं ति अणकं ति हं० त० ॥ १२ त्ति विया भो वदे हं० त० ॥ १३ चम्मणिटुं सं ३ पु० । चम्मणटुं हं० त० ॥ १४ सुक्खल्लो त्ति व जो बूया णिस्सुक्खो त्ति हं० त० विना ॥ १५ ओरीणं हं० त० । ओडीणं सि० ॥ १६ मलिन त्ति हं० त० ॥ १७ खुल्लका हं० त० विना ॥ १८ कोसलोगहणं हं० त० ॥ १९-२० अणंतरं हं० त० विना ॥ २१ इच्छेण हं० त० विना ॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ ११६ दस परिमंडला] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ दीहो पंथो दीहमायुं दीहकालं च णिद्दिसे । दीहं थीपुमंसव्वमेत्ती पेम्मं च स णिद्दिसे ॥ १५२३ ॥ दीहं च पीतिसंजोगं संधी जोगं च णिद्दिसे । समे सद्दे य जाणेज्जा दीहा जे मणिके मता ॥ १५२४ ॥ दीहमुच्चं महंतं ति रज्जूको रण्हको त्ति वा । केआ अंछणिका व ति वरत्त त्ति अहि त्ति वा ॥ १५२५ ।। वेसो खलु धयो व त्ति जुगमत्थो त्ति वा पुणो । मुसलं दंडको लट्ठी णारायो तोमरो त्ति वा ॥ १५२६ ॥ चाप त्ति हडिका व त्ति कोंतं कंडं ति वा पुणो । असिलट्ठी तरखच्च त्ति धेणुभाग त्ति वा पुणो ॥ १५२७ ॥ जे यऽण्णे एवमादीया पायया (पज्जया) दिग्घसंसिता । तेसिं संकित्तणासद्दा ते दिग्घसमका भवे ॥ १५२८ ॥ ॥ दिग्धा[णि] सम्मत्ताणि ॥ ११२ ॥ छ । 5 [११३ छव्वीसं जुत्तप्पमाणदिग्घा] भुम २ ऽक्खि ४ णासा ६ जत्तूणि ८ मेंढ ९ स्थविका ११ सिरो १२ ऽधरा १४ । जिब्भं १५ गुटुंग १९ लोमाणि २० पाणिलेहा २६ तधेव य ॥ १५२९ ॥ 10 जुत्तप्पमाणदीहा तु एते छव्वीसमाहिता । अपीलिता अणुम्मट्ठा पुच्छितम्मि पसस्सते ॥ १५३० ॥ छ । [११४ सोलस हस्सा किंचि दिग्घा] हस्सा य किंचि दिग्घा य सोलसंगे वियाहिया । पुरिमा किंचि उम्मट्ठा पुच्छितम्मि पसस्सते ॥ १५३१ ॥ छ । [११५ सोलस हस्सा] हस्सा य सोलसंगम्मि णिम्मट्ठा तु पुरस्थिमा । पुच्छिते ण प्पसस्ते हस्सं चऽत्थ वियागरे ॥ १५३२ ॥ 15 दीहेसु जं फलं वुत्तं हस्सं हस्सेसु तं वदे । समे सद्दे य जाणेज्जो हस्सा जे मणिके मता ॥ १५३३ ॥ - रहस्सं मडहकं व ति संखित्तं खुडितं ति वा । रुद्धं ति सण्णिरुद्धं ति संपीलितं ण पीलितं ।। १५३४ ॥ संपिंडितं पेंडितं ति सन्नद्धं सन्निकासियं । अप्पं थोवं ति किंचि त्ति अतिथोवं ति वा पुणो ॥ १५३५ ॥ आकुंडितं संहितं ति तधा संवेल्लितं ति वा । उस्सारितं ति णिम्मटुं अवमट्ठाऽपमज्जियं ॥ १५३६ ॥ जे यऽन्ने एवमादीया पायवा(पज्जवा) हस्ससंसिता । 20 तेसि संकित्तणासद्दा ते हस्ससमका भवे ॥ १५३७ ॥ छ । [११६ दस परिमंडला] मत्थगो १ बाहुसीसाणि ३ जाणूसिस्साणि बे तधा ५ । थणा ७ णाभी ८ फिओ चेव १० दसेते परिमंडला ॥ १५३८ ॥ सिरं १ ललाट २ गंडा य ४ संखे ६ कन्ने य ८ करतले १० । केयि एते ववस्संति दसेव परिमंडले ॥ १५३९ ॥ 25 एते सव्वे पसस्संति उम्मट्टा परिमंडला । परिमंडलसद्दे य तुल्लत्थे उवधारए ॥ १५४० ॥ ___ मंडलं ति व जो बूया परिमंडलमेव वा । अद्दागमंडलं व त्ति अधवा मंडलस्सति ॥ १५४१ ॥ णक्खत्तमंडलं व त्ति G अधवा जोइसमंडलं । आदित्तमंडलं व त्ति छ अधवा चक्कमंडलं ॥ १५४२ ॥ समयमंडलं व त्ति तधेव रिसिमंडलं । जं मंडलं ति वा बूया अधवा चक्कमंडलं ॥ १५४३ ॥ १ 'मायं हं० त० विना ॥ २ संधं योगं हं० त० विना ॥ ३ दीहं मुच्चं महत्तं ति सप्र० ॥ ४ रज्जको हं. त० । ५ केसा अं हं० त० ॥ ६ वयो सप्र० ॥ ७ मच्छो त्ति हं० त० विना ॥ ८ त्ति कायकं ति हं० त० ॥ ९ धणंभाग हं० त० ॥ १० अण्णे हं० त० ॥ ११ पादोया हं० त० ॥ १२ गुटुंगरोमाणि हं० त० ॥ १३ रस्सा य कीवि हं० त० ॥ १४ अकुंडितं हं० त० ॥ १५ ओसारितं सं ३ पु० ॥ १६ हुस्स हं० त० ॥ १७ हस्तचिह्नन्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ अंग०१३ For Private & Personal use only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 ११६ अंगविज्जापइण्णयं [ ११९ बारस पुधूणि संक्खमंडलके व त्ति तधा मंडलेको त्ति वा । णापुण्णमंडलं व त्ति अधवा अट्ठमैंडलं ॥। १५४४ ॥ मंडलासं ति वा बूया अधवा छेत्तमँडलं । उवलेवमंडलं व त्ति किमिमंडलिकारिका ॥। १५४५ ॥ पंचमंडलिको वत्ति तेधेवापंचमंडलं । माकण्णीर्कण्णिकं व त्ति लक उद्धलक त्ति वा ॥। १५४६ । तलकण्णिक त्ति वा बूया वद्धकों तलपत्तकं । परिहेरकं ति तलभं ति कण्णवलयकं ति वा । १५४७ ।। खंडुकं मुँद्दिका व त्ति वेढको कैण्णपालिको । णीपुरं ति व जो बूया कण्णुप्पलकं ति वा । १५४८ ॥ पैलिक त्ति वा बूया तधा सकडपट्टको । तधा पल्लत्थिकापट्टो तधा अकरपट्टको ॥ १५४९ ॥ तधस्समंडलं वत्ति लोममंडलकं ति वा । बाहुमंडलकं व त्ति हत्थमंडलकं ति वा ।। १५५० ॥ तधा चक्कमंडलं व त्ति वातचक्ककमंडलं । झल्लरीमंडलं व त्ति लेहपट्टिकमंडलं ॥ १५५१ ॥ जे यन्ने एवमादीया लोए मंडलपज्जया । णामसंकित्तणे तेसि परिमंडलसमं भवे ।। १५५२ ॥ छ ॥ [ ११७ चोद्दस करणमंडला ] करणोपसंहिता वऽण्णे भवंति परिमंडला । "ते जधा होंति णायव्वा कित्तयिस्सामि तं विधि ॥१५५३ ॥ दक्खिणस्स य बाहुस्स मंडले १ वामकस्स य २ । एतार्णिं बे ततियं च बाहुसंघातमंडलं ३ ॥ १५५४ ॥ एत्तो चउत्थं विण्णेयं सत्थिसंघातमंडलं ४ । करे करे य चत्तारि अंगुलीमंडलाणि य १२ ॥ १५५५ ॥ हत्थाणं च दोन्हं पि अंगुट्ठेहंगुलीहि य । संघायमंडलाई दो आलेक्खकरणेण य १४ ॥ १५५६ ॥ परिमंडलेसु पुव्वुत्तं उम्मट्ठेसु तु जं फलं । फलं अनंतरं तत्तो बूया करणमंडले || १५५७ ।। ॥ परिमंडलाणि करणमंडलाणि ॥ ११६ ॥ ११७ ॥ छ ॥ [ ११८ वीसं वट्टा ] हत्थ - पादंगुलीपैव्वा २० वीसं वट्टे वियागरे । अभिमुहा पसस्ते अप्पसत्था परम् ॥ १५५८ । वट्टं ति व जो बूया तधा वट्टतरं ति वा । अतिवट्टं ति वा बूया अहोवट्टं ति वा पुणो ॥ १५५९ ॥ पैंसाधणकवट्टो ति वट्टखेलणको ति वा । वट्टखुरो त्ति वा बूया तधा वट्टमुहोति वा ॥ १५६० ।। ...।] वट्टसीसो त्ति वा बूया वट्टमत्थो त्ति वा पुणो || १५६१ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं वट्टोदाहरणं भवे । तस्स संकित्तणासद्दा ते वट्टसमका भवे ।। १५६२ ॥ वज्झायो ॥ ११८ ॥ छ ॥ [ ११९ बारस पुधूणि ] उरो १ ललाडं २ पट्टी य ३ पाद--पाणितलाणि य ७ । कण्णपीढाणि ९ गंडा य १९ जिब्भा य १२ पिधुलाणि तु ॥ १५६३ ।। पुधूणि बारसेताणि उम्मट्ठाणि पसस्सते । समे सद्दे य जाणेज्जो जे पुधू मणिके मता ॥ १५६४ ॥ पुधुं ति पुधुलं व त्ति खेत्तं वत्युं ति वा पुणो । तंसं ति आयतं वत्ति चतुरस्सं ति वा पुणो ॥। १५६५ ।। तस्सायतं ति वा बूया चतुरंसायतं ति वा । अत्थुतं पत्थुतं वत्ति संथितं संथडियं ति वा ।। १५६६ ।। १ सक्ख सि० । रुक्ख हं० त० ॥ २ लखो त्ति हं० त० ॥ ३-४ मंडला हं० त० विना ॥ ५ तवे वा हं० त० ॥ ६ कणिकं व त्ति लक...द्धलकड त्ति हं० त० ॥ ७ को तल हं० त० विना ॥ ८ परिदेरिकं विवलभं हं० त० ॥ ९ खंसुकं हं० त० विना ॥ १० वुद्धिका हं० त० ॥ ११ कण्णपीलको हं० त० ॥ १२ पण्णालिकण्णि वा सि० । पणालिक त्ति वा हं० त० ॥ १३ बहुधा हं० त० ॥ १४ णि चेवतियं हं० त० ॥ १५ पर्वशब्देनात्र अग्रभागाः संभाव्यन्ते ॥ १६ एसावणकहंवो त्ति बहुखेल हं० त० ॥ १७ वट्टखरो हं० त० ॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ १२५ बे अणूणि १२६ एक्के परमाणू य] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ वित्थिन्नं वित्थतं व त्ति वत्थितं ति व जो वदे । विततं वियाणकं व त्ति तधा पत्थरियं ति वा ॥ १५६७ ॥ ये वऽण्णे एवमादीया पज्जया पुधुसंसिता । णामसंकित्तणे तेसिं पुधूहि सममादिसे ॥ १५६८ ॥ ॥ पुधूणि ॥ ११९ ॥ छ । [१२० एकतालीसं चउरंसा] णिडालं १ णिडालपस्साणि ३ पाद-पाणितलाणि ७ य । पण्हीतला ९ कडीय तला ११ तीसं पव्वंतरंगुला ४१ ॥ १५६९ ॥ चउरंसा उकरालीसं उम्मट्टब्भंतरा जधा । पुच्छितम्मि पसस्संते चतुरस्सं च णिदिसे ॥ १५७० ।। ॥ चतुरस्साणि ॥ १२० ॥ छ । [१२१ बे तंसा] वत्थी १ सीसं २ भवे तंसं तंसाकारो य जोऽवरो । खुज्जंगे पक्खपेंडं ति तं पि तंसं वियागरे ॥ १५७१ ॥ छ । 10 [१२२ पंच काया ] थूला व तधूमट्ठा कायवंतो भवंतिह १ । तधा मज्झिमकाया तु उवथूला भवंतिह २ ॥ १५७२ ॥ मज्झिमाणंतरा काया जुत्तोपचया भवंतिह ३ | तधा जधण्णकाया य कसेहि अभिणिद्दिसे ॥ १५७३ ॥ जधण्णतरका काया परंपरकिसा भवे ५ । एवं पंचविधे काए वियाणेज्जंगचितओ ॥ १५७४ ॥ थाणमिस्सरियं दव्वं लाभमायुं सुहाणि य । कालं चंऽगम्मि वि भवे कायेहेतेहिं पंचहि ॥ १५७५ ॥ । थूलेसु बूया उक्कट्ठ उवथूले अणंतरं । एवं सेसेसु कायेसु बूया कच्छंतरेण तु ॥ १५७६ ।। ॥ थूलाणि (काया) ॥ १२२ ॥ छ । [१२३ सत्तावीसं तणू १२४ एगवीसं परमतणू य] पाद-पाणितला ४ कण्णा ६ जिब्भा चेव ७ णहाणि य २७ । सत्तावीसं तणू उत्ता थीणामत्थे पसस्सते ॥ १५७७ ।। अग्गणहाणि सव्वाणि २० अग्गकेसा तधेव य २१ । एगवीसं परमतणू पुच्छिते ण प्पसस्सते ।। १५७८ ।। 20 तणुकं ति व जो बूया तधा तणुकतरं ति वा । तधाऽतितणुकं व त्ति तणुकातितणुकं ति वा ॥ १५७९ ॥ पयणू ति व जो बूया तहा पयणुतरं ति वा । तधाऽति[प]तणुकं व त्ति पतणुं पतणुं ति वा ॥ १५८० ॥ तणुत्तयो तणुणहो तणुलोमो त्ति वा पुणो । तणुमज्झं ति वा बूया तधाऽतितणुको त्ति वा ॥ १५८१ ।। जे यऽण्णे एवमादीया पज्जवा तणुसंसिता । तेसिं संकित्तणे सद्दा ते तणूहिं समे वदे ॥ १५८२ ॥ ॥ तणूणि ॥ १२३ ॥ १२४ ॥ छ । 25 [१२५ बे अणूणि १२६ एक्के परमाणू य] केस-लोम-णहा मंस बे अणणि विधीयते । पच्छिते ण पसस्ते अणं ति य वियागरे ॥ १५८३ अग्गकेसऽग्गलोमाणि णिम्माणि यदा भवे । परमाणु वियाणीया पच्छितेण प्पसस्सते ॥ १५८४ ॥ परमाणू एकको उत्तो थूला णिम्मट्ठसंजुता । अवसेसा जे भवंतंगे ते मज्झत्थे वियागरे ॥ १५८५ ॥ छ । १ उकतालीसं सिं० । उकतीलासं सं ३ पु० ॥ २ जो णरो हं० त० ॥ ३ कण्णा ...........णि य सं ३ पु० ॥ कण्णा जिब्मा ओट्ठा य अंगुली सि० ॥ ४ मूलद्वारेषु एक्कवीसं परंपरतणू १२४ इति नाम दृश्यते ॥ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 30 [ १३१ दुवालस आकासाणि अंगविज्जापइण्णयं [ १२७ पंच हितयाणि ] १५८८ ॥ पाद - पाणितलाणं च हितयाणि ४ हितयं च जं ५ । पंच एताणि हितयाणि पुच्छितम्मि पसस्सते ।। हितिकं ति व जो बूया तधा हितिकतरं ति वा । तधाऽतिहितिकं व त्ति हितिकं हितिकं ति वा । सुहितं ति व जो बूया तधा सुहिततरं ति वा । तधाऽतिसुहितं व त्ति सोहितं सोहितं ति वा हितयं ति व जो बूया हितयत्थं ति वा पुणो । हितयस्स पिया व त्ति हितयाकूतं ति वा पुणो || १५८९ ॥ जे यऽणे एवमादीया पादवा हितयसंसिता । तेसिं संकित्तणासद्दा हितयस्स समा भवे ॥ १५९० ॥ छ ॥ [ १२८ पंच गहणाणि ] १५९३ ॥ केस १ मंसु २ अधोमंसु ३ उभो कक्खा ५ तथैव य । गहणाणि पंच जाणीया जधुत्तं च वियागरे ॥ १५९१ ॥ किलेसबहुलं अत्थं गहणेसु वियाणिया । वाधि - सोग - परिक्केसं गहणं च तं णिद्दिसे ॥ १५९२ ॥ गहणं ति व जो बूया तधा गहणतरं ति वा । तहाऽतिगहणं व त्ति गहणं गहणं ति वा ॥ विरूढं ति व जो बूया विरूढतरकं ति वा । तधा अतिविरूढं ति विरूढं विरूढं ति वा ॥ १५९४ ॥ रूढं ति व जो बूया तथा (धा) रूढतरं ति वा । अतिरूढं ति वा बूया रूढं रूढं ति वा पुणो ॥ घणकेडतं ति वा बूया अतिघणकंडतं ति वा । तधा संझडितं व त्ति अतिसंझडितं ति वा गहणं वणं ति वा बूया रन्नं व गहणं ति वा । गहणा अडवी व त्ति णदी ग्रहणं ति य ॥ जे यन्ने एवमादीया पादवा गहणस्सिता । तेसिं संकित्तणे सद्दा ते गहणसमा भवे ॥ १५९८ ॥ छ ॥ [ १२९ पंच उपग्गहणाणि ] १५९५ ॥ ॥ भुमा बे २ अक्खिपम्हाणि ४ लोमवासि ५ तधेव य । पंचोपग्गहणे जाणे जधुत्तं च वियागरे । १५९९ ॥ गणेसु जधा दिट्ठो सव्वो अत्थो सुभाऽसुभो । तधोपग्गहणेसु फलं णिद्दिसे तु अनंतरं । १६०० ॥ छ ॥ [ १३० छप्पण्णं रमणिज्जाणि ] ओट्ठा २ दंता ४ णिडालू ५ पाद - पाणितला ९ उरो १० । वीसमंगुलिपोट्टाणि ३० वीसतिं च णहाणि तु ५० ॥ १६०१ ॥ णासा ५१ णासपुडो ५२ चेव सोणी ५३ कण्णा ५५ समेहणा ५६ । छप्पण्णं रमणिज्जाणि यधुत्तेण वियागरे ॥। १६०२ ॥ अब्धंतरत्थो य जधा आगासत्थो य जो भवे । रॅमणीयविसिट्ठतरो एवमादि फलं वदे || १६०३ || रम्मं ति व जो बूया तधा रम्मतरं ति वा । अतिरम्मं ति वा बूया रम्मरम्मं ति वा पुणो || १६०४ ॥ रमणीयं ति वा बूया रमणीयतरं ति वा । तधाऽतिरमणीयं ति रमणीयमहो त्ति वा ।। १६०५ ॥ अभिरामं ति वा बूया अभिरामतरं ति वा । अतीव अभिरामं ति अभिरामं अहो त्ति वा । १६०६ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं रमणीयस्सितं भवे । तस्स संकित्तणासद्दा रमणीयतरं वदे || १६०७ ॥ छ ॥ [ १३१ दुवालस आकासाणि ] णिडालं १ अंसपीढाणि ३ जाणू ५ जाणुपच्छिमं ७ । ११८ १५८६ ॥ १५८७ ॥ पाद - पाणितला ११ पट्टी १२ आकासाणि दुवालस ॥। १६०८ ॥ आगासं ति व जो बूया आकासतरकं ति वा । तधेव अतिआकासं आकासं अहो त्ति वा ।। १६०९ ॥ आकासको त्ति वा बूया आकासं गमो त्ति वा । तधेव आकासचरो तधा आगाससंसितो ॥ १६१० ॥ १ परिक्खेसं हं० त० विना ॥ २-३ कडितं हं० त० ॥ ४ वरिमणीय सं ३ पु० ॥ ५ अभिरम्मं ति सप्र० ॥ For Private Personal Use Only १५९६ ॥ १५९७ ॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७-३८ पेस्सेयाणि णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ ११९ आगासं पइरिक्कं ति आकासवियडं ति वा । आकासं विमलं व त्ति आकासं सोभति ति वा ॥ १६११ ॥ यो वऽण्णा एवमादीया कहा आकाससंसिता । तिस्से कहिज्जमाणीय आकाससममादिसे ॥ १६१२ ॥ छ । [१३२ छप्पण्णं दहरचला १३३ छप्पण्णं दहरथावरेज्जा] हत्थ-पादंगुलीपव्वा दहरचला भवंति ते । तेसिं पव्वंतरा सव्वे दहरत्थावरा हि ते ॥ १६१३ ॥ एते चेव तु णिमट्ठा दहरचला भवंतिह । जधुत्तं पुव्वमत्थं तु तं सव्वं चलमादिसे ॥ १६१४ ।। जंघोरु-बाहुमज्झे य पट्ठी पस्से कर-कमे । दहरे थावरे अंगे एते इच्छंति केयि तु ॥ १६१५ ॥ थिरमत्थं वियाणीया सव्वमेव अणागतं । एवमेतेसु सव्वेसु दहरत्थावरेसु तु ॥ १६१६ ॥ ___ डहरो त्ति व जो बूया तधा डहरतरो ति वा । तधाऽतिडहरो व ति डहरातिडहरो त्ति वा ॥ १६१७ ॥ डहराको ति वा बूया डहराकतरको ति वा । अतिडहराको व त्ति डहराको अहो त्ति वा ॥ १६१८ ॥ अहोडहरो त्ति वा बूया अतीवडहरो त्ति वा । किह ता डहराको त्ति जो एस डहरो त्ति वा ॥ १६१९ ॥ 10 जे यऽण्णे एवमादीया पादपा (पज्जया) डहरस्सिता । तेसिं संकित्तणे सद्दे डहरत्थावरे समा ॥ १६२० ॥ एते य एवमादीया जे सद्दा चलसंसिता । विभावेतूण ते सम्म डहरचलसमे वदे ॥ १६२१ ॥ एते य एवमादीया जे सद्दा थावरस्सिता । विभावेतूण विण्णेया डहरा थावरे समा ॥ १६२२ ॥ छ । [१३४ दस इस्सरा १३५ दस अणिस्सरा य] सिरोऽधरा य ओटुं (पओटुं) तु भवंति दस इस्सरा । णामतो ते पवक्खामि दस चेव अणिस्सरे ॥ १६२३ ।। 15 णिडालं १ मत्थको २ सीसं ३ कण्णा ४ गंडा ५ भुमंतरं ६ ।। दंतो ७ 8 ८ णासा ९ जिब्भा य १० उम्मट्ठा दस इस्सरा ।। १६२४ ॥ एते सव्वे पसस्संते उम्मट्ठा दस इस्सरा । अणिस्सरे य णिम्मढे एते चेव वियागरे ॥ १६२५ ॥ सव्वमत्थं पंसत्थं तु इस्सरेसु वियागरे । थाणमिस्सरियं वद्धि भोग-लाभ-सुहाणि य ॥ १६२६ ॥ __ इस्सरोपक्खरे चेव इस्सरोवकरणेसु य । इस्सरो त्ति वियाणीया तस्सद्दोदीरणेसु य ॥ १६२७ ॥ इस्सराणं च आमासे ईसराणं च आगमे । इस्सराणं च सद्देसु इस्सराणं च कित्तणे ॥ १६२८ ॥ तधिस्सरगतीणं च सद्द-रूवर्कतेसु य । तधिस्सरोवकरणाणं सद्द-रूवकतेसु य ॥ १६२९ ॥ जं चऽण्णं एवमादीयं लोए इस्सरलक्खणं । तस्सद्द-रूवसंलावे ते इस्सरसमे वदे ॥ १६३० ॥ छ ॥ 25 [१३६ चोद्दस इस्सरभूता] एत्तो इस्सरभूते तु उड्डु णाभीय णिद्दिसे । ते उम्म? वियाणीया इस्सरत्थम्मि अंगवी ॥ १६३१ ॥ छ । [१३७ पण्णासं पेस्सेज्जा १३८ पण्णासं पेस्सभूया ] पादंगुली १० पादणहा २० पादमंगुलिपोट्टिया ३० । तला ३२ पण्ही ३४ खुला ३६ गोप्फा ३८ कंडरा ४२ जंघ ४४ पेंडिका ४६ ॥ १६३२ ।। जाणूणि य ४८ फिओ ५० चेव पेस्सेज्जाणि वियागरे । । पेस्समेतेहि जाणीया पेस्सोवकरणेहि य ॥ १६३३ ॥ अब्भंतरे तु णिम्मढे पेस्सेए ति वियागरे । G ते चेव किंचि णिम्मढे पेस्सभूए वियागरे ॥ १६३४ ॥ 30 उड़े जाणूहि णाभि त्ति पेस्सभूते वियागरे । अधे जाणूहि पाद त्ति पेस्सभूते वियागरे ॥ १६३५ ॥ 20 १ आकाससोभिते त्ति सं ३ पु० सि० ॥ २ ये वऽण्णा एवमादीया जधा आ हं० त० विना ॥ ३ अह हं० त० विना ॥ ४ किध ती डह हं० त० विना ॥ ५ सरोवरायउत्थं तु हं० त० विना ॥ ६-७ ईसरा हं० त० ॥ ८ पसस्सं तु हं० त० ॥ ९ 'णेण य हं० त० ॥ १० 'कमेसु हं० त० ॥ ११ हस्तचिहान्तर्गतमुत्तरार्द्ध हं० त० एव वर्तते ॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० अंगविज्जापइण्णयं [१४१ छव्वीसं मज्झत्थाणि पवासं णिग्गमं कम्मं पेस्सोवकरणाणि य । पेस्सलाभं च पेस्सेसु एवमादि फलं वदे ॥ १६३६ ॥ । पेस्सो त्ति व जो बूया तधा पेस्सतरो ति वा । अतिपेस्सो त्ति वा बूया पेस्सपेस्सो त्ति वा पुणो ।। १६३७ ॥ तधा पेस्सणिको व त्ति पेस्सणीकतरो त्ति वा । अतिपेसणिको व त्ति अहोपेसणिकि त्ति वा ॥ १६३८ ॥ पडिचारको त्ति वा बूया पडिचारकतरो त्ति वा । अतिपडिचारको व त्ति अहोपडिचारको त्ति वा ॥ १६३९ ।। जे यऽण्णे एवमादीया पज्जवा पेस्ससंसिता । तेसिं संकित्तणासद्दा पेस्सेयसमका भवे ॥ १६४० ॥ ॥ पेस्सेयाणि ॥ १३७ ॥ १३८ ॥ छ । [१३९ छव्वीसं पिया १४० छव्वीसं वेस्सा य] णिडालं १ मत्थको २ सीसं ३ संखा ५ कण्ण ७ ऽक्खि ९ णासिका १० । दंतो १२ टू १४ जिब्भ १५ गंडा य १७ उरो १८ थणक २० थणंतरं २१ ।। १६४१ ।। 10 हत्थयंगटका २३ हत्था २५ णाभि २६ ओमज्जिता पिता । वेस्सा णिमज्जिया एते ठियामा अपीलिता ॥ १६४२ ।। तधा पिउ त्ति वा बूया तधा पिअतरो त्ति वा । तधा अतिप्पिओ व त्ति तधा पिअप्पिओ त्ति वा ॥ १६४३ ॥ इट्ठो त्ति व जो बूया तधा इट्टतरो त्ति वा । अतिइट्ठो त्ति वा बूया इट्ठा इट्ठो त्ति वा पुणो ॥ १६४४ ।। दइतो ति व जो बूया तेधा दइततरो त्ति वा । अतिदइतो त्ति वा बूया दइतातिदइतो त्ति वा ॥ १६४५ ॥ अभिप्पेतो त्ति वा बूया अभिप्पेततरो त्ति वा । तधा अतिअभिप्पेतो अभिप्पेतो अति त्ति वा ॥ १६४६ ॥ मणामो त्ति व जो बूया छलिको (छंदको) ति व जो वदे । पियदंसणो त्ति वा बूया तधा भावस्सिओ त्ति वा ॥ १६४७ ॥ जे यऽण्णे एवमादीया पज्जवा पेम्मसंसिता । तेसिं संकित्तणासद्दा ते प्पिएहि समे वदे ॥ १६४८ ॥ वेस्सो त्ति व जो बूया तदा वेस्सतरो त्ति वा । अतिवेस्सो त्ति वा बूया अधोवेस्सो त्ति वा पुणो ॥ १६४९ ॥ अणिट्ठो त्ति व जो बूया अणि?तरको त्ति वा । तधा अतिअणिट्ठो त्ति अहो अणिट्ठो त्ति वा पुणो ॥ १६५० ॥ अणभिप्पेतो त्ति वा बूया अणभिप्पेततरो त्ति वा । अतीव अणभिप्पेओ अणभिप्पेतो अहो त्ति वा ॥ १६५१ ।। पडिकूलो त्ति वा बूया पडिकूलतरो त्ति वा । तधा अतिपडिकूलो पडिकूलो अहो त्ति वा ॥ १६५२ ।। अप्पिओ त्ति व जो बूया अप्पिअतरको त्ति वा । अतिअप्पिओ ति वा बूया अप्पियाणऽप्पिओ त्ति वा ॥ १६५३ ॥ अकंतो त्ति व जो बूया अकंततरको त्ति वा । अति चेव चक्खुआकंतो अकंतो तु अहो त्ति वा ॥ १६५४ ॥ अमणामो ति वा बूया अछंदिको त्ति वा पुणो । अप्पिओ दंसणे व त्ति विदिट्ठो दंसणे त्ति वा ॥ १६५५ ।। 25 जे वऽण्णे एवमादीया पज्जवा वेस्ससंसिता । तेसिं संकित्तणासद्दा वेस्सेहि समका भवे ॥ १६५६ ॥ छ ।। [१४१ छव्वीसं मज्झत्थाणि] भुमंतरं च १ वंसो य २ मत्थको ३ णासिका ४ मुहं ५ ।। उरो ६ थणंतरं ७ हितयं ८ [... ................|| १६५७ ॥ ...................... । ................] मज्झत्थाणि वियागरे । १६५८ ।। 30 मज्झत्थो त्ति व जो बूया मज्झत्थतरको त्ति वा । तधेव अतिमज्झत्थो मज्झत्थो बलिकं ति वा ॥ १६५९ ॥ अवत्थितो त्ति वा बूया अवस्थिततरो त्ति वा । तधाऽयवत्थितो व त्ति अतीव य अवत्थितो ॥ १६६० ।। णिव्विकारो त्ति वा बूया णिव्विकारतरो त्ति वा । तधाऽतिणिविकारो त्ति णिव्विकारो अहो ति य ।। १६६१ ॥ १ हस्तचिह्नान्तर्गतमुत्तरार्धं हं० त० एव वर्त्तते । २ "स्थमंगु हं० त० ॥ ३ णाभि भुंमज्झिता (उम्मज्जिता) हं० त० विना ॥ ४ णिमज्झिया हं० त० विना ॥ ५ तहा दयियतरो हं० त० ॥ ६ अछंदको हं० त ॥ ७ मूलद्वारनिर्देशे छव्वीसं अवस्थिया १४१ इति पाठदर्शनादत्र पाठो गलितः सम्भाव्यते तथा मूलद्वारेषु छव्वीसं अवत्थिया इति नाम वर्तते ।। ८ तधा पायव सप्र० ॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माण १५२ पण्णासं दीणा] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ १२१ मज्झत्थमुदाहरणा जे यऽन्ने एवमादीया । तेसिं संकित्तणासद्दा मज्झत्थसममादिसे ॥ १६६२ ॥ छ । [१४२-१४६ बारस पुढविकाइकाईणि] पुधूसु पुधविं जाणे दगं णिद्धेसु णिद्दिसे । अग्गेये सप्पभे उण्हे अग्गिमो(मे)तेसु णिद्दिसे ॥ १६६३ ।। वायुणेयेसु सव्वेसु वातं वातमणेसु य । वणप्फती तु णातव्वा गहणोपगहणेसु य ॥ १६६४ ॥ छ ।। [१४७ वीसं जंगमाणि] चले १ अस्सास २ पस्सासे ३ आउंटण ४ पसारणे ५ । उवेठ्ठ ६ ट्ठित ७ संचिढे ८ गमणा ९ ऽऽगमणेसु य १० ॥ १६६५ ॥ फेंदिते ११ चलिते १२ यावि णिविल्लु १३ म्मिल्लितम्मि १४ य । तसकायोवलद्धीयं २० जंगमं ति वियागरे ॥ १६६६ ॥ छ । [१४८ तेत्तीसं आतिमूलिकाणि] 10 पादंगुट्टा य २ पादा य ४ गोप्फा ६ जंघो ८ रु १० जाणुका १२ । अंसा १४ बाहू १६ पबाहू य १८ बाहुसंधी २० तधेव य ॥ १६६७ ।। उदरं २१ कडी २२ कडीपस्सा २४ लोमवासी २५ तधेव य । उरो २६ सिरा २७ ऽधरा २९ जत्तुं ३० मुहं ३१ सीसं ३२ तला ३३ तधा ॥ १६६८ ॥ एते सव्वे जता होंति उम्मट्ठा तु अपीलिता । तेत्तीसं आतिमूलीया सव्वत्थेसु पसस्सते ॥ १६६९ ।। 15 जधा पुण्णामधेयेसु आदेसो तु विधीयते । एवं एतेसु सव्वेसु आतिमूलेसु णिद्दिसे ॥ १६७० ॥ छ । [१४९ तेत्तीसं मज्झविगाढाणि] एते • चेव सेमामट्ठा जता होंति अपीलिता । मज्झे विगाढा तेत्तीसं पुच्छितम्मि पसस्सते ॥ १६७१ ।। तधा मज्झे विगाढेसु तेत्तीसायं पि अंगवी । पुण्णामधेयेहि फलं विसिट्ठतरकं वदे ॥ १६७२ ॥ छ । [१५० तेत्तीसं अंता] 20 अंगुली २० केस २१ लोमग्गं २२ कन्न २४ णासग्गमेव २६ य । कोप्परा २८ पण्हिक ३० फिजा ३२ तहेव य ककाडिका ३३ ॥ १६७३ ॥ एते तेत्तीसतिं अंता णिम्मट्ठा य जया भवे । पसत्थे ण पसस्संते णिरत्थेसु पसस्सते ।। १६७४ ॥ छ । [१५१ पण्णासं मुदिता १५२ पण्णासं दीणा य] अभितरंगा मुदिता बाहिरंगा य पीलिता । पुणो अभितरा चेव संविमट्ठा तु दीणगा ॥ १६७५ ॥ 25 मुदिते [वा] पमोदं वा हासं पीति व णिद्दिसे । जण्णं छणुस्सयं सव्वं जं वाऽभुदइकं भवे ॥ १६७६ ॥ दीणेसु वाधि सोगं च परिक्वेसं च णिद्दिसे । जधा णपुंसकाअत्थे एवमेसु फलं वदे ॥ १६७७ ॥ मुदितो त्ति व जो बूया तधा पमुदितो त्ति वा । हट्ठो तुट्ठो पहट्ठो त्ति उदत्तो सुमणो त्ति वा ॥ १६७८ ।। णिव्वुते सुहिते व त्ति आरोमो पीणितो त्ति वा । कतत्थो कतकज्जो त्ति संवत्तमणोरधो त्ति वा ॥ १६७९ ।। उस्सयो त्ति समासो ति विहि जण्णो छणो त्ति वा । बालोपणयणं वाधुज्जं अधिक्कमणकं ति वा ॥ १६८० ।। 30 जं चऽण्णं उस्सयवरं सव्वब्भुदइकं च जं । तस्स संकित्तणासद्दा मुदितेहि सममादिसे ॥ १६८१ ॥ दीणो त्ति दुम्मणो व त्ति परितंतो त्ति वा पुणो । उक्कट्ठितो त्ति सोकत्तो चिंता-झाणपरो त्ति वा ॥ १६८२ ॥ अणिव्वुतो आतुरो त्ति परायितणिरागतो । अकतत्थो असिद्धत्थो अहमो णियमसक्कतो ॥ १६८३ ॥ खंडितो पडितो व त्ति भिण्णो मंतुलितो त्ति वा । पिवासितो परिस्संतो छातो तण्हाइतो त्ति वा ॥ १६८४ ॥ १ अत्रेदं चिन्त्यम्-वायुणेयाः किल द्वादश, वातमणाः पुनश्चत्वार इति संख्याप्रमाणविरोध इति ॥ २ फंडिए विलिए या वि णिव्वुल्लु हं० त० ॥ ३ जंतु हं० त० ॥ ४ जता सुण्णा ' सप्र० ॥ ५ समा सद्दा जहा होंति हं० त० ॥ ६ संधिमट्ठा हं० त० विना ॥ ७ पाणेसु वावि(धि )योगं च हं० त० ॥ ८ 'मेएसु वि फलं हं० त० ॥ ९ त्ति तिधे जण्णो हं० त० विना ॥ १० उक्कंठितो हं० त० विना ॥ ११ परायत हं० त० ॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 १२२ अंगविज्जापइण्णयं [१५३ वीसं तिक्खा अलद्धलाभो उव्वातो असंपत्तमणोरधो । विहलो विपडतो त्ति विहतो ति विचेयणो ॥ १६८५ ॥ जे यऽण्णे एवमादीया पज्जवा दीणसंसिता । तेसिं संकित्तणासद्दा दीणेहि समका भवे ॥ १६८६ ॥ छ । [१५३ वीसं तिक्खा] तिक्खग्गदंतरंगहणा अग्गदंता तु सूयिता । समे सद्दे य जाणेज्जो तिक्खा जे मणिके मता ॥ १६८७ ॥ 5 तिक्खं ति व जो बूया तधा तिक्खतरं ति वा । अतितिक्खं ति वा बूया तिक्खतिक्खं ति वा पुणो ॥ १६८८ ॥ तिक्खलोहं ति वा बूया तिक्खं आयुधं ति वा । सत्थकं अतितिक्खं ति जं चऽण्णं तिक्खणामकं ॥ १६८९ ॥ आउधाणं च सव्वेसि सत्थकाणं च सव्वसो | लोहोपकरणाणं च सव्वेसि तिक्खणाखणे ॥ १६९० ॥ जे यऽन्ने एवमादीया पदे वा तिक्खसंसिता । णामसंकित्तणे तेसिं तं तिक्खसममादिसे ॥ १६९१ ॥ छ । [१५४ पण्णत्तरं उवहृता १५५ पण्णत्तरिं वापण्णा य] पुण्णामा पीलिता सव्वे एते होंति उवहुता। उवत्ता य विछिन्ना य वापन्न त्ति वियागरे ॥ १६९२ ॥ वापण्णा य णिग्गहिता वापण्णा होति पावका । एतेसिं च वग्गाणं तिण्हं पि फलमादिसे ॥ १६९३ ॥ जधा दीणे आदेसो अप्पसत्थो पवेदितो । उवहुतेसु वि तधा सव्वं असुभमादिसे ॥ १६९४ ॥ वापण्णेसु विणासं च सरीरं वापदं तथा । सव्वत्थाणं च वापत्ति दुब्भिक्खं वा वियागरे ॥ १६९५ ॥ छ । [१५६ दुवे दुग्गंधा १५७ दुवे सुगंधा य] दुग्गंधेसु परीतावं आयासं च वियागरे । सयणा दुकुंछं च अवमाणं च णिदिसे ॥ १६९६ ॥ णासापुडा य पिहिता दुग्गंधा बे ण पूयिता । अवंगुता सुगंधा य पुच्छितम्मि य पूयिता ॥ १६९७ ॥ छ । [१५८ णव बुद्धीरमणा १५९ चत्तारि अबुद्धीरमणा य] हत्थ २ पाद ४ भूम ६ ऽक्खि ८ मुहं ९ बुद्धीरमण त्ति णिद्दिसे । पस्सो २ दरं ३ च पट्ठी य ४ अबुद्धीरमणा भवे ॥ १६९८ ।। 20 णाणं बुद्धीरमणेसु मति मेधं च णिद्दिसे । अबुद्धीरमणेसु वदे मोहं मुक्खत्तमेव य ॥ १६९९ ॥ बुद्धीमंतो त्ति वा बूया बुद्धिमततरो त्ति वा । अतीव बुद्धिमंतो ति बुद्धिमतो अहो त्ति वा ॥ १७०० ॥ मतिमंतो त्ति वा बूया मतिमंततरो त्ति वा । अतीव मतिमंतो ति मतिमंतो अहो त्ति वा ॥ १७०१ ॥ सुबुद्धिको त्ति वा बूया सुबुद्धिमंतो त्ति वा पुणो । तधा पसण्णबुद्धि त्ति किंतबुद्धि त्ति वा पुणो ॥ १७०२ ॥ जे यऽण्णे एवमादीया पदे वा बुद्धिसंसिता । तेसिं संकित्तणे सद्दा ते बुद्धिरमणे समा ॥ १७०३ ॥ छ । [१६० एक्कारस महापरिग्गहा १६१ चत्तारि अप्पपरिग्गहा य] उदरं १ हत्थं ३ पादं च ५ कण्णा ७ णासं ८ ऽखिणो १० मुहं ११ । महापरिग्गहा एते सामिद्धिं चऽत्थ णिद्दिसे ॥ १७०४ ॥ छ । केस १ लोम २ णहं ३ मंसुं ४ एते अप्पपरिग्गहा । पुच्छिते ण प्पसस्ते दारिदं चऽत्थ णिदिसे ॥ १७०५ ॥ छ । [१६२ एकूणवीसं बद्धा १६३ सत्तावीसं मोक्खा य] 30 हत्थ पादं सिहा कण्णा जं चऽण्णं किंचि बंधति । दढेसु यावि सव्वेसु एते बद्धे वियागरे ॥ १७०६ ॥ छ । हत्थ पादं सिहा कण्णा जं चऽण्णं किंचि मुंचति । चलेसु यावि सव्वेसु एत्थ मोक्खं वियागरे ॥ १७०७ ॥ छ ।। १ "मणोरमे हं० त० ॥ २ 'ग्गणहा अग्ग सि० विना ॥ ३ वा पुणो । सत्थ' हं० त० विना ॥ ४ क्खणे खणे हं० त० ॥ ५ उवद्दवा हं० त० ॥ ६ उवउत्ता सि० ॥ ७ “सु हि तधा हं० त० ॥ ८ “सु हि सव्वं च हं० तः । ९ कित्तिबुद्धि हं० त० ॥ १० पायवा पुव्वसं' हं० त० ॥ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 १८१ बारस णिण्णाणि] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ १२३ [१६४ पण्णासं सका १६५ पण्णासं परक्का १६६ पण्णासं सकपरक्का य] दढा बंधा चला मोक्खा सका अब्भतरा भवे । परक्का बाहिरा मिस्सा बाहिरब्धंतरा भवे ॥ १७०८ ॥ [१६७-१७२ दुवे सद्देया दुवे रूवेया इच्चाइ] सद्देया कण्णसोता बे २ णयणा दंसणिया दुवे २ । णासापुडा २ य गंधेयं रसेयं जिब्भमादिसे १ ॥ १७०९ ॥ तयं च १ पोरिसं २ चेव फासेयाणि वियागरे । मणेयं हितयं १ जाणे अंगविज्जाविसारओ ॥ १७१० ॥ 5 सद्देयेसु पिओ लोए इढे सद्दे सुणेति य । विस्सुतो य महाणम्मि महं च लभते जसं ॥ १७११ ॥ दसणीयेसु कंतो य सव्वस्स पिअदंसणो । गुणप्पगासो लोगम्मि पियाणि पि य पावति ॥ १७१२ ॥ गंधेयेसु यसभागी इटे गंधे य पावति । सम्मतो यावि लोकस्स णारीसु सुभगो वि य ॥ १७१३ ॥ रसेयेसु मणुण्णाणि भोयणाणि तु भुंजति । गहितवक्को य सद्धेयो सव्वत्थ य विसारदो ॥ १७१४ ॥ सयणा-ऽऽसण-जाणाणि वाहणाणि य पावति । थिओ य भूसणाई च फासेयम्मि णिसेवति ॥ १७१५ ॥ 10 मणेयम्मि ट्ठियामढे सव्वविज्जाविसारतो । पंडितं बुद्धिमंतं च णिद्दिसे सुबहुस्सुतं ॥ १७१६ ॥ छ । [१७३ चत्तारि वातमणा १७४ दुवे सद्दमणा १७५ दस वण्णेया य] मुहं १ णासग्ग २ कण्णा य ४ एते वातमणा भवे । गुदो य १ मेहणं चेव २ एते सद्दमणा भवे ॥ १७१७ ॥ केसमंसु १ उरो २ पट्ठी ३ जंघा ५ कक्खा उभो ७ तधा । वत्थिसीसं च ८ संखा य १० वेण्णेयाणि वियागरे ॥ १७१८ ॥ जो पुव्वमुत्तो आदेसो गहणेसु विधीयते । वण्णेयेसु वि एमेव आदेसं संपकप्पते ॥ १७१९ ॥ छ । [१७६ दस अग्गेया] मुहम १ ऽच्छी ३ उरो ४ हितयं ५ तले ७ जिब्भं ८ तिके १० वि तु । एते अग्गेययं णेया इच्चेस दुविधो गमो ॥ १७२० ॥ अक्खीणि २ णासिका ३ कण्णा ५ णिडालं ६ मुह ७ मत्थगो ८ । कण्णुप्परिका य ९ सिस्स १० अग्गेया दस पूयिता || १७२१ ॥ गणेस्सरिकलाभेसु अग्गेये अग्गिकम्मसु । पुण्णामधेयेसु फलं विसिट्ठतरकं वदे ॥ १७२२ ॥ छ । [१७७ दस जण्णेया] सिरोमुहस्सयामासे अग्गेया य भवंति जे । जण्णेया दस वक्खाता पसत्था तत्थ पुच्छिते ॥ १७२३ ॥ छ । [१७८ दुवे दंसणीयाणि १७९ दुवे अदंसणीयाणि य] 25 दंसणीयाणि बे चलूँ १ सोणी य २ पसस्सते । अदंसणीया य दुवे उक्कूणिय १ विकूणिता २ ॥ १७२४ ॥ छ । [१८० दस थलाणि] मत्थको य १ णिडालं च २ गंडा य ४ हितयं ५ उरो ६ । कर-कमतला १० चेव थलाणि दस णिदिसे ॥ १७२५ ॥ छ । [१८१ बारस णिण्णाणि] णिण्णाणि वक्खणा २ कक्खा ४ अक्खिकूडाणि बे तधा ६ । अंतो य कण्णसोताणि ८ जं च गीवाय हे?तो १० ॥ १७२६ ॥ कुकुंदलो ११ य णाभी य १२ एवं णिण्णाणि बारस । पुच्छिते ण प्पसस्ते णिण्णं चऽत्थ वियागरे ॥ १७२७ ॥ छ । १ मूलद्वारेषु दुवे रूवेया १६८ इति नाम वर्तते ॥ २ मूलद्वारेषु दस जम्मणा १७५ इति नाम दृश्यते ॥ ३ 'लालेमुयग्गे हं० त० ॥ ४ "त्था सव्वपु हं० त० विना ॥ ५ "णि चक्खुणा हं० त० ॥ नया 30 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 १२४ अंगविज्जापइण्णयं [१८२ णव गंभीरा [१८२ णव गंभीरा १८३ णव परिणिण्णगंभीरा ] गंभीरे तु मुहं १ णासं ३ कण्णे ५ बाहुं ९ च णिद्दिसे । ते चेव णिण्णगंभीरे अंतिमढे वियागरे ॥ १७२८ ।। [१८४-१८९ पण्णरस विसमा चोद्दस उण्णता इच्चाइ] णासं १ ऽसपीढा ३ सवसणा ५ फिओ ७ कोप्पर ९ जण्णुगा ११ ।। खलुका १३ मणिबंधा य १५ विसमा पण्णरसाऽऽहिया ॥ १७२९ ।। मत्थको सीसकूडाणि विसमा जे य कित्तिया । णासावंसो य एंगूणं उण्णत त्ति वियागरे ॥ १७३० ।। जे पुधू ते समा होति अग्गेया उसिणा भवे । जे णिद्धा ते भवे सीता सीतला आवुजोणिया ॥ १७३१ ॥ जधा णिद्धेसु सव्वेसु आदेसो तु विधीयते । तेधाऽऽपुणेएसु फलं विसिट्ठतरकं वदे ॥ १७३२ ॥ छ । [१९० चउरासीतिं पुण्णा १९१ पण्णत्तरं तुच्छा य] गंडा २ थणो ४ दरं ५ आसं ६ अंजली ८ मुहमेव ९ य । पुण्णामा ८४ त तओम्मट्ठा एते पुण्ण त्ति णिद्दिसे ॥ १७३३ ॥ णपुंसकाणि सव्वाणि परंपरकिसा य जे । तुच्छाणेताणि जाणीया अप्पसत्थाणि णिद्दिसे ॥ १७३४ ॥ छ ।। [१९२-२३८ एक्कूणवीसं विवरा इच्चाइ] मुहं १ पालुं च २ मेड्ढे च ३ अंगुलीअंतराणि य १९ । एकूणवीसं विवरे वियाणे अंगचिंतओ ।। १७३५ ॥ १९२ ।। 15 एते चेव जधुत्ता तु संपेंडितसंपुडा । अंगे अपी(वि)वरा होंति ते वियाणेज्ज अंगवी ॥ १७३६ ॥ १९३ ।। अक्खीणि २ हत्थ ४ पादं च ६ गुंदो ७ मेढे ८ तधेव य । अद्वैव एते जाणेज्जो अंगे विअडसंवुडे ॥ १७३७ ।। १९४ ।। जिब्भा १ अक्खीणि ३ ऊरू य ५ पालू ६ मेहणमेव य ७ । सुकुमालाणि सत्तेव वियाणे अंगचिंतओ ॥ १७३८ ॥ १९५ ॥ 20 अबुद्धीरमणा अंगे जे पुव्वं परिकित्तिता । ते चेव दारुणे जाणे सव्वेए अंगचिंतओ ॥ १७३९ ॥ १९६ ।। जिब्भा १ ओट्ठा ३ थणा ५ गंडा ७ सत्तेव मदुका भवे । जधुत्तमणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ १७४० ॥ १९७ ॥ दारुणाणि य चत्तारि पुव्वुत्ताणि तु याणिह । पत्थीणाणि तु ताणेव वियाणे अंगचिंतओ ॥ १७४१ ॥ १९८ ।। रमणीया जे तु अंगम्मि पुव्वं तु परिकित्तिया । ते चेव सण्हा णातव्वा जधुत्तं च वियागरे ।। १७४२ ।। १९९ ।। सव्वे णहसिहाओ य २० कोप्परा २२ जण्णुकाणि य २४ । चतुव्वीसं खरा एते वियाणे अंगचिंतओ ॥ १७४३ ॥ २०० ॥ पादाणं अंगुलीओ य १० कुडिल त्ति वियागरे । २०१ ।। हत्थाणं अंगुलीओ य १० उज्जुकं ति वियागरे ॥ १७४४ ॥ २०२ ॥ णिडालं १ अग्गकण्णा य ३ भुमो ५ ट्ठा ७ दंतसेढिका ८ । संखा बे १० कण्णपालीओ १२ अंगुट्ठांगुलिभिस्सह ३२ ॥ १७४५ ।। कक्खा ३४ णासापुडा चेव ३६ एते चंडाणता भवे । छत्तीसं तु णातव्वा जधुत्तं च वियागरे ॥ १७४६ ॥ २०३ ।। १ वामुं च हं० त० विना ॥ २ अंति' हं० त० विना ॥ ३ जुण्णगा हं० त० ॥ ४ एतूणं हं० त० विना ॥ ५ आउजो' हं० त० ॥ ६ तधा पुण्णेएसु सप्र० ॥ ७ त वधुम्म' हं० त० विना ॥ ८ गुदो मंदुत्तरेव य हं० त० ॥ ९ मत्थीणाणि हं० त० ॥ १० छव्वीसं हं० त० ॥ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ 10 २२७ बारस महंतकाइं] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ जंघो २ रु ४ बाहु ६ एताणि आयताणि वियागरे । २०४ । जंघा २ [फि]यो य ४ णातव्वा आयता मुद्दियाणि तु ॥ १७४७ ।। २०५ ॥ उत्तमाणि तु जाणंगे ताणि दिव्वाणि णिद्दिसे ॥ २०६ ।। जाणेव मज्झिमाणंगे ताणि माणुस्सकाणि तु ॥ १७४८ ॥ २०७ ।। तिरिच्छजोणिया अंगे मज्झिमाणंतराणि तु । २०८ । जधण्णाणि तु जाणंगे ताणि णेरइकाणि तु ॥ १७४९ ॥ २०९ ॥ णहसेढी-दंतसेढीओ णहा दंतसिहा य जा । उवहुता य ७५ तिक्खा य ९५ एते रुद्दे वियागरे । १७५० ।। २१० ॥ पीति १ णिज्झाइतं वा वि २ दुवे सोम्मे वियाणिया । पुच्छितम्मि पसस्संते सोतव्वं चऽत्थ णिद्दिसे ॥ १७५१ ॥ २११ ।। ओटुं २ गुटुं ६ गुलीओ य २२ मिदुभागे वियाणिया । जधुत्तमणुगंतूणं ततो बूयांगचिंतओ ॥ १७५२ ॥ २१२ ।। अंगुट्ठा २ होंति पुत्तेया २१३ कण्णा होंति कणिल्लिका २ । २१४ । अणामिका २ मज्झिमियो ४ थिया होंति ण संसयो ॥ १७५३ ॥ २१५ ।। पदेसिणीहि २ विण्णेया जुवतीयो ण संसयो । 15 थिया तु तिविधा एवं अंगुलीहिं विभावये ॥ १७५४ ॥ २१६ ॥ णिम्मज्जिताणि दीहाणि णिग्गहीताणि ताणि तु । दुग्गट्ठाणाणि एताणि जधुत्तेणं वियागरे ॥ १७५५ ॥ २१७ ।। पाद-पाणितला ४ ओट्ठा ६ अवंगा ८ जिब्भ ९ तालुका १० । कणवीरका १२ तधंगुट्ठा १४ तंबाणेताणि चोद्दस ॥ १७५६ ॥ २१८ ॥ केस १ लोम २ णहं ३ मंसुं ४ एते रोगमणा भवे । पुच्छिते ण प्पसस्संति बहुरोगं च णिद्दिसे ॥ १७५७ ॥ २१९ ।। 200 कक्खा २ वसणंतरं ४ चेव अधिट्ठाणं ५ समेहणं ६ । एताणि पूतीणि भवे जधुत्तेण वियागरे ॥ १७५८ ।। २२० ।। उभो हत्था २ उभो पादा ४ उभो य णयणाणि तु ६ । एताणि छ व्वियाणीया चवलाणंगचिंतओ ॥ १७५९ ।। २२१ ।। सिरं १ ललाई २ पट्ठी य ३ पस्साणि ५ उदरं ६ उरो ७ । एते अचवले सत्त जधुत्तेण वियागरे ॥ १७६० ॥ २२२ ।। गोज्झाणि मेहणं १ पालुं २ वसणे य ४ वियागरे । 25 रहोसंजोगपुच्छायं थी-पुमसे पसस्सते ॥ १७६१ ॥ २२३ ॥ हत्था २ मुहं च ३ अक्खीणि ५ उत्ताणुम्मत्थकाणि तु । जधुत्तमणुगंतूणं णिद्दिसे अंगचिंतओ ॥ १७६२ ।। २२४ ॥ कण्णसक्कुलिओ २ कण्णा ४ फिओ ६ जंघो ८ रु १० पेंडिका १२ । तताणेताणि जाणीया जधुत्तं च वियागरे ॥ १७६३ ॥ २२५ ।। जाणि लुक्खाणि १० ताणेव दूरं णिम्मज्जिताणि तु । 30 मताणेताणि जाणीया अप्पसत्थं च णिदिसे ॥ १७६४ ॥ २२६ ।। थूले चेव तधुम्मटे महंताणि वियागरे । महंतकं इस्सरियं अत्थं भोगे य णिद्दिसे ॥ १७६५ ॥ २२७ ॥ १ आणालिका हं० त० ॥ २ रोममणा सं ३ पु० ॥ ३ रोमं च सं ३ पु० ॥ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 १२६ 30 अंगविज्जापइण्णयं [ २२८ अट्ठावीसं सुवि र्दढाणुम्मज्जियाणि तु सुचिकाणि वियागरे । पुच्छितम्मि पसस्संते सोयव्वं चत्थ णिद्दिसे || १७६६ ॥ २२८ ॥ पूतीणि जाणि अंगम्मि ६ केस ७ लोम ८ णहं ९ च जं ( तयं) संविमट्ठार्णि चंऽगम्मि किलिट्ठाणि वियागरे || १७६७ ॥ २२९ || १० । २३० ॥ २३१ ॥ २३२ ॥ अंगे पुण्णामधेयाणि वराणि पवराणि य । तम्मि सव्वम्मि अत्थं तु पसत्थं संपवेदये || १७६८ ॥ ताणि चेव णिमित्तस्स णायकाणि विधीयते । ताणऽधिद्वाणभूयाणि आदेसस्स सुभाणि तु || १७६९ ॥ णिमित्ते सव्ववत्थूणं सव्वणीया णपुंसका । तेण इट्ठेहिं अत्थेहिं सव्वकालं विवज्जिया ॥ १७७० ॥ जाणेव बज्झबज्झाणि ताणि अणायैकाणि तु ॥ २३३ ॥ अणुं च परमाणुं च णिरत्थे त्ति वियागरे । १७७१ ।। २३४ ॥ अण्णेयाणि तु अंगम्मि पुण्णामाणि तु णिद्दिसे । जेसु पुण्णो सुभो अत्थो ण कोति पतिसिज्झति ॥ १७७२ ॥ २३५ ॥ भुजोरुमंगुलीणं च अंतराणंतराणि तु । जधा गुज्झेसु आदेसो अंतरेसु वि तं वदे ॥ १७७३ || २३६ || दंत १ हत्थणहाणि ११ च एते सूर ति णिद्दिसे ॥ २३७ ॥ अच्छीणि २ हितयं चेव ३ तयो भीरु वियागरे ।। १७७४ ॥ २३८ ॥ [ २३९ पण्णासं एक्ककाणि ] एक्कसि चेव आमट्ठे एगं भेकुंगुलीय य । एगाभरणेक्कबारीसु एगोपकरणम्मि य ॥ १७७५ ॥ छ ॥ [ २४० पणुवीसं बिकाणि] मिधुणे बिअंगुलीगहणे एक्वेक्केसु य वीसु तु । जमलाभरणे चेव जमलोवकरणे बिकं ॥ १७७६ ॥ छ ॥ [ २४१ दस तिकाणि ] तिंगुलिग्गहणे चेव एक्वेक्केसु तिसु तधा । तिसिके य तिकोडीके तंसेसु य तिकेसु य ॥ भुमसंगयचूलायं णासायं च तिकम्मि य । पोरुसे य सणालम्मि तिकण्णम्मि य तिणि तु ॥ [ २४२ अट्ठ चतुक्काणि ] चतुरस्सेसु सव्वेसु चउप्पयगतेसु य । चउक्केसु य सव्वेसु चउग्गुण चतु वदे || १७७९ ॥ चउसं(रं)गुलीसु चत्तारि चउसु एक्केक्केसु य । तधा करतले चेव तधा पादतलम्मि य ॥ १७८० ।। छ । [ २४३ छ पंचकाणि ] फिजंसपीढे दो च्चेव समुट्ठिकरणे थणे । पंचंगुलीणं गहणे सणरे संयणासणे ॥ १७८१ ॥ पंच तस्से पंच काये एक्वेक्केसु य पंचसु । सव्वपंचकसंजोगे पमाणं पंचकं वदे ॥ १७८२ ॥ छ ॥ [ २४४ छक्कए ठिआमासे ] तिकेसु तु । तिसु बिकेसु छक्के य पंचके चेकसंजुते ॥ १७८३ ॥ सयणाऽऽसणे । सव्वइक्कगते चेव अंगवी छक्कमादिसे ॥ १७८४ ॥ छ ॥ [ २४५ सत्तए ठिआमासे ] पस्से य सोणि कण्णे य जंघायं बाहुणालीयं । कुक्खिम्मि संत्तके चेव चतुक्कसहिते तिगे ॥ १७८५ ॥ सयणाssसणे सपुरिसे तिगाढे वा चतुप्पदे । सव्वसत्तकसंजोगे पमाणं सत्तकं तिगं ॥ १७८६ ॥ छ ॥ चउक्के बिगसंजुत्ते बेसुं चेव मणिबंधण गोप्फे य विणरे १ दव्वाणु सं ३ पु० ॥ २णि रंगम्मि सं ३ पु० । णि वागम्मि हं० त० ॥ ३ ताणि वि ठाण हं० त० ॥ ४ यतणाणि तु सप्र० ॥ ५ मूलद्वारेषु पण्णासं अण्णजणाई २३५ इति नाम दृश्यते ॥ ७ सजणा सप्र० ॥ ८ सव्वछक्कगए चेव हं० त० विना ॥ ९ सत्यके हं० त० विना ६ सूरित्ति हं० त० विना ॥ ॥ १७७७ ॥ १७७८ ॥ छ ॥ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ 10 २७० एगे अपरिमिते] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ [२४६ अट्टए ठिआमासे] हितये ऊरू य मज्झे य णाभी पाणितलम्मि य । णिडाले चेव कण्णे य बिचउक्के य पिडिते ॥ १७८७ ॥ सयणासणे य जमले जमले य चतुष्पदे । सव्वमट्ठकसंजोगे पुच्छं अट्ठाहमादिसे ॥ १७८८ ॥ अटुंगुलमईसे तधऽट्ठाकारणम्मि य । बूया अट्ठाहिकं पुच्छं वीसु पादतलेसु य ।। १७८९ ॥ छ । [२४७ णवए ठिआमासे] णवसंगुलीसु णवके य णवसेक्ककेसु य । णवंसि णवर्भिद्दीसु णवणक्खसिहासु य ॥ १७९० ॥ अट्ठगे एगसहिते सचतुक्के य पंचगे । छक्के तिगसंजुत्ते णवाहं तिरियपेक्खिते ॥ १७९१ ॥ छ | [२४८ दसए ठिआमासे] पिडितेसु य पादेसु उवाहणा-पादुकासु य । तधंजलिकच्छभके विहत्थी उवणामिते ॥ १७९२ ॥ बिपंचके वा सहिते अट्ठके बिकसंजुते । सत्तगे तिगसंजुत्ते दसाहो उज्जुपेक्खिते ॥ १७९३ ॥ छ । [२४९-२७० बे पण्णरसवग्गा जाव एंगे अपरिमिते] तिपंचके य सहिते दसक्खे य सपंचके । तधेव पादजंघे य बूया पण्णरसेव तु ॥ १७९४ ॥ छ । वीसं तु अंसफलके जण्णुके कोप्परेसु य । बेसु चेव दसक्खेसु चउक्केसु य पंचसु ॥ १७९५ ॥ छ || जणूसु वीसं मज्झे य ऊरू बे पणुवीसका । तीसं कडीय पणतीसं णिद्दिसे अंतरोदरे ॥ १७९६ ॥ चत्तालीसं च णाभीयं णाभीय उवरिं पुणो । पणतालीसं ति वा बूया पंचासं हितयम्मि य ॥ १७९७ ॥ 15 थणंतरे पंचवण्णा उरे सर्टि वियागरे । जत्तूसु पंचसेट्टि [.................... .............] || १७९८ ॥ अंसे य सत्तरं बूया गीवायं पंचसत्तरिं। हणुकायं सहोट्ठाय, असीर्ति पुणमादिसे ॥ १७९९ ॥ णासायं पंचासीर्ति णवती भूमकासु य । णिडाले पंचणउति सिरम्मि सतमादिसे ॥ १८०० ॥ एवं एतेसु ठाणेसु पंच पंच समारभे । पिट्ठोदरे सपिटुंते सहस्सं बाहु-तालुके ॥ १८०१ ॥ पुण्णं सतसहस्सं तु संवुतम्मि मुहे भवे । अवंगुते मुहे कोडी विप्पेतविजिब्भिते ॥ १८०२ ॥ 20 तधा छिद्देसु सव्वेसु तं अपरिमितं वदे। जधण्णेसु य सव्वेसु हणुकायं तधेव य ॥ १८०३ ॥ केसमंसूसु लोमेसु भिण्णं तु सतमादिसे । भिण्णं सहस्सं जाणीया मज्झिमाणंतरेसु य ॥ १८०४ ॥ सहस्साणं पमाणं तु मज्झिमेसु वियाणिया । तधा सतसहस्साणि कायवंतेसु णिद्दिसे || १८०५ ॥ एतं चतुस्सु कायेसु पमाणं उवलक्खये । संहारे कायवंताणं कोर्डि बूयांगचिंतओ ॥ १८०६ ॥ कायवंते य उम्मटे दढे य अमितं धणं । अब्भंतरे दढे णिद्धे पुण्णे पुण्णामसुक्किले ॥ १८०७ ॥ ......... ..............] समेसु यावि सव्वेसु समं बूयांगचिंतओ ॥ १८०८ ॥ भिन्ने दसक्खमाधारे बे वा चत्तारि अट्ठ वा । आधारिते सते यावि अट्ठ चत्तारि वा वदे ॥ १८०९ ॥ अणुमाणेण सव्वेण सहस्साणि वियागरे । तधा सतसहस्साणि कोडिं वा अंगवी वदे ॥ १८१० ॥ एते[हिं] चेव सव्वेहिं अंगबीजपदेहि तु । णिउणं संपधारेंतो बूया अपरिमितं विधि ॥ १८११ ॥ __एत्तो तिविधमाहारं जधन्नं मज्झिमुत्तमं । जुत्तं तदुभयामासे लक्खये तु इमं गर्म ॥ १८१२ ॥ 30 उत्तमं अवडं गीवं हितयं पट्ठी च मज्झिमं । कडि-वक्खणे जधण्णे तु एवेस तिविधो गमो ॥ १८१३ ॥ एवं भिण्णसतादीयं गमेणेतेण अंगवी । समे य विसमे चेव विण्णातूण वियागरे ॥ १८१४ ॥ छ । [....... १णिम्मूले हं० त० ॥२ गुलिमढंसे हं० त० विना। ३ "भिडीसु हं० त० ॥ ४ जतूसु हं० त० ॥ ५ “सट्ठियं एवं ठाणस्सुणुकम्मे ॥ सि० ॥ ६ पंचणिवुर्ति सं ३ पु० ॥ ७ एवं हं० त० ॥ ८ कायवंतेसु उम्मढे सं ३ पु० ॥ ९ अट्ठधा सप्र० ॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 १२८ अंगविज्जापइण्णयं [उवसंहारो दक्खिणाणि तु सव्वाणि सव्वाणेव दढाणि तु । अणागताणि सव्वाणि तधा अब्भंतराणि य ॥ १८१५ ।। अभंतरंतराणि वा अव्वोयताणि याणि य । उवाताणुत्तमाणि च उत्तमाणंतराणि य ॥ १८१६ ।। जाणि च जोव्वणस्थाणि बंभेज्जाणि य सव्वसो । सुक्कपण्डुपडीभागा णिद्धणिद्धतराणि य ॥ १८१७ ॥ आहाराणि य सव्वाणि आहारतरकाणि य । तधा पुरथिमाणि वा पुव्वदक्खिणकाणि य ॥ १८१८ ॥ सव्वाणि [य] पसन्नाणि पसण्णतरकाणि य । जे य वामद्धणाहारा [..............................॥ १८१९ ॥] सिवाणि तध थूलाणि दीहाणुम्मज्जिताणि य । परिमंडला य उम्मट्ठा वट्टा चेव अभिमुहा ॥ १८२० ॥ चतुरस्सा य उम्मट्ठा उम्मट्ठा पुधुला य जे । कायवंतो य आमट्ठा हितयाणुम्मज्जिताणि य ॥ १८२१ ॥ रमणीया य उम्मट्ठा डहरा थावराणि य । इस्सराणि य सव्वाणि पियाणि य विसेसतो ॥ १८२२ ॥ तधेव आतिमूलीया मज्झगाढा तधेव य । मुदिताणि सुगंधाणि सेबुद्धिरमणाणि य ॥ १८२३ ।। महापरिग्गहाणि च सकाणि च तधेव य । सद्देया दंसणीया य गंधेया उ तधेव य ॥ १८२४ ॥ फासेया य रसेया य उम्मट्ठा तु जया भवे । तधा अग्गेयया णेया थलाणि य तधेव य ॥ १८२५ ॥ आवुणेयाणि पुण्णाणि उज्जुकाणि तधेव य । दिव्वाणि तध सव्वाणि सोमाणि य मितूणि य ॥ १८२६ ॥ पुत्तेयाणि य तंबाणि उत्ताणाणि सूयीणि य । वराणि णायकाणि च आणेयाणि महाणि य ॥ १८२७ ।। जधा पुण्णामधेयेसु सव्वं दिटुं सुभासुभं । तधा एतेसु सव्वेसु सव्वं बूया सुभासुभं ॥ १८२८ ॥ छ । 15 मज्झिमाणि य सव्वाणि वत्तमाणाणि जाणि य । बहिरभंतराणि च अब्भंतरबाहिराणि य ॥ १८२९ ॥ सामोवाताणि सोमाणि कण्हा मज्झिमकाणि य । मज्झिमाणंतराणि च खत्तवेस्साणि जाणि य ॥ १८३० ॥ विणा य कण्हणीलेहिं पडिभागा तु सेसगा । सव्वे ज्जेव ठियामासा कण्हलुक्खेहिं जे विणा ॥ १८३१ ।। णिद्धलुक्खाणि सव्वाणि लुक्खणिद्धाणि जाणि य । तधा आहारणीहारा णीहाराहारसंजुता ॥ १८३२ ।। पुरिमुत्तराणि सव्वाणि पसण्णा मिस्सका य जे । उवथूलाणि जाणंगे जुत्तोउवचयाणि य ॥ १८३३ ।। 20 जुत्तप्पमाणदीहाणि दीहजुत्ताणि जाणि य । परिमंडलाणि जाणंगे भवे करणोवसंहिता ॥ १८३४ ॥ तधा मज्झिमकाया य मज्झिमाणंतरा य जे । आकासाणि य सव्वाणि इस्सराणंतराणि य ॥ १८३५ ॥ वामिस्स-सक-परक्काणि सीउण्हाणि समाणि य । सुकुमाले य अंगम्मि तधा वियडसंवुडे ॥ १८३६ ॥ सण्हाणि मदुकाणि च [उज्जुकाणि च] जाणि तु । माणुस्सकाणि सव्वाणि कण्णेयाणि य जाणि [तु] ॥ १८३७ ॥ जुवतेयाणि सव्वाणि थीभागाणि जाणि तु । तधा अचवलाई च तधा गोज्झाणि जाणि य ॥ १८३८ ॥ 25 जधा थीणामधेज्जेसु सव्वं वुत्तं सुभा-ऽसुभं । तधा एतेसु सव्वेसु फलं बूया सुभा-ऽसुभं ॥ १८३९ ॥ छ ।। वामाई च चलाइं च अतिवत्ताणि जाणि य । बाहिराणि य सव्वाणि बज्झबज्झंतराणि य ॥ १८४० ॥ कण्हाणि अतिकण्हाणि जधण्णाणि य जाणि तु । महव्वयाणि सव्वाणि आदेयाणि तधेव य ॥ १८४१ ।। कण्हणीलपडीभागा ठियामासा तधेव य । लुक्खाणि लुक्खलुक्खाणि णीहारा जे य कित्तिता ॥ १८४२ ॥ तधा णीहारणीहारा तधा पच्छिमदक्खिणा । तधेव पच्छिमाइं च तधेव पच्छिमुत्तरा ॥ १८४३ ॥ अप्पसण्णाणि जाणंगे अप्पसण्णेतरा य जे । जे य पाणहरा वामा वामा धणहरा य जे ॥ १८४४ ॥ संखावम्माणि जाणंगे अंगे(अग्गे)याणि किसाणि य । परंपरकिसाइं च तधा ह्रस्साणि जाणि य ॥ १८४५ ॥ तंसा जहण्णकाया य जधण्णतरका य जे । तणू परंपरतणू परमाणू अणू य जे ॥ १८४६ ॥ १ अव्वोअयाणि हं० त० ॥ २ माणुत्तरा हं० त० ॥ ३ आहारी णेयसव्वाणि पियाणि य विसेसतो । तधा पुर' हं० त० विना ॥ ४ उम्मट्ठा सि० ॥ ५ सुबुद्धि हं० त० ॥ ६ कच्छा मच्छिमकाणि य सप्र० ॥ ७ परिमुत्ताणि सं ३ पु० सि० ॥ ८ इस्सराणितराणि हं० त० ॥ ९ वामिस्सं सको प्पर सप्र० ॥ १० सण्णाणि मडुकाणि च जाणित्तु अंगचिंतओ सि० ॥ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवसंहारो] णवमो अंगमणी णाम अज्झाओ १२९ गहणोपगहणा जे य तधा डहरचलाणि य । अणिस्सरा य पेस्सा य पेस्सभूया य अप्पिया ।। १८४७ ।। अंता दीणा य तिण्हा य वापण्णोपडुता य जे । अबुद्धिरमणा दुग्गंधा तधा अप्पपरिग्गहा ॥ १८४८ ॥ बंध-मोक्खा परक्का य सद्द-वातमणा य जे । अदंसणीया णिण्णा य गंभीरा दुविधा य जे ॥ १८४९ ।। विसमाणि य तुच्छाणि विवरा दारुणा य जे । पत्थीणाई खराइं च कुडिला चंडाणता य जे ॥ १८५० ।। आयता मुद्दियाणि च तिज्जज्जोणिगताणि य । दुग्गट्टाणाणि रुट्टाणि तधा रोगमणाणि य । १८५१ ॥ 5 • पयलाइताणि चंऽगम्मि तधा ओमत्थकाणि य । मताणि जाणि चंऽगम्मि तधा पूतीणि जाणि य ॥ १८५२ ॥ किलिट्ठाणि य जाणि तु तदा णीयाणि जाणि य । तधा अण्णजणाणि वा णिरत्थाणंतराणि य ॥ १८५३ ॥ जधा णपुंसकाणं तु फलं दिटुं सुभासुभं । तधा एतेसु सव्वेसु फलं बूया सुभासुभं ॥ १८५४ ॥ छ । ___ एवं समुच्चिता एते मणिणो तिण्णि रासयो । पुण्णाम-त्थी-णपुंसेहि G णिद्दिटुं च जहक्कमं ॥ १८५५ ॥ तत्थ जो दक्खिणा दीगो रासी अंगम्मि कित्तितो । सो तु सव्वो जधुद्दिट्ठो पुण्णामेहि समप्फलो ॥ १८५६ ॥ 10 बितियो मज्झिमादीयो रासी पुवं पकित्तितो । सो वि सव्वो जधुद्दिट्टो थीणामेहि समप्फलो ॥ १८५७ ॥ । ततितो वामभागो तु जो रासी पुव्वकित्तितो । सो वि सव्वो जधुट्ठिो णपुंसकसमप्फलो ॥ १८५८ ॥ एवमेते जधुद्दिट्ठा तिधा तिण्णि जधक्कम । पुण्णाम-त्थी-णपुंसेहिं विण्णातव्वा समप्फला ॥ १८५९ ॥ मणीसमुच्चयो णाम अज्झायो तिविहप्फलो । सतसाहो सहस्सक्खो दारसतसहस्सिओ ॥ १८६० ॥ .........] महापुरिसदिण्णाए समक्खातो महामणी ॥ १८६१ ।। केवलं अंगविज्जाए मणिओ अस्थि दीवणो । अंग-स्सरविणिव्वत्तो अंगस्स रयणं मणि ।। १८६२ ।। मणिओ अंगहिययं णिमित्तहिययं तधा । ततियलोकहितयं तस्स णामं विधीयति ॥ १८६३ ॥ तं णिच्चसज्झायरओ णिच्चमाधारए णरो । अणण्णमतिमं दच्छो तरे वागरणोदधि ॥ १८६४ ॥ णागतण्णुमसिस्सं व णापुत्तं णासहस्सतं । ण अणातभूतं वायेज्जो भगवंतं महामणि ॥ १८६५ ॥ एतमासज्ज हि णरो अणंतमतिचक्खुमं । अजिणो जिणसंकासो पच्चक्खं देवतं भवे ॥ १८६६ ॥ हिता-ऽहिताण अत्थाणं दिव्वमाणुसकाण य । संपया-ऽणागता-ऽतीताण विण्णाया भवतंगवी ॥ १८६७ ॥ धियाधारो सूयी सूरो दच्छो सुप्पतिभाणवं । आमास-सद्द-रूवण्णू जिणो विय वियागरे ॥ १८६८ ॥ ॥ णमो अरहंताणं । णमो सव्वसिद्धाणं । णमो भगवतीए महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय समुद्देसो मणिसव्वकारणणिद्देसो मणी नाम नवमो अज्झाओ सम्मत्तो ॥ ९ ॥ छ ॥ 20 १ हस्तचिह्नान्तर्गतमुत्तरार्द्ध हं० त० एव वर्तते ॥ २ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते । ३ भागी तु हं० त० विना ॥ ४ तसति' हं० त० विना ॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० अंगविज्जापइण्णयं [ दसमो आगमणज्झाओ ] णमो भगवतो अरहतो यसवतो महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय आगमणणामाज्झायो । [तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामि ] । तं जहा - तत्थ पंचविधं आगमणं जाणितव्वं भवति । तं जधा - णिरत्थयं १ दंसणट्टयाय २ विण्णासणट्टयाय ३० आयरणट्टयाय ४ Do अत्थत्थिकत्थताय चेति ५ । 5 तत्थ बज्झामासे चलामासे तुच्छामासे कण्हामासे णिम्मज्जिते णिल्लिखिते कासिते खुधिते लुचिते पम्हुट्ठे पपुट्टे पेमुते अधोमुहे अवलोकिते अवसरिते ओलोकिते ओसारिते सव्वअसक्कारिते सव्वअसारगते तुच्छके रित्तके वा कुक्कयणायं वा एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे णिरत्थकं आगतो सित्ति बूया १ । तथा हितयामासे णयणामासे भुमंतरामासे मातापितु-भाउ-भगिणि— सोदैरी - मित्त- संबंधिगते सव्वमित्तगते सव्वदेवगते सव्वपेच्छागते सव्वरंगावचरगते सव्ववित्तगए सव्वरूवगए सैव्ववुद्धवण्णरागगते सव्वदंसणीयगते एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे दंसणट्टयाय आगतो सित्ति बूया २ । 10 तत्थ भमुँखुक्खेवणे अच्छिणि कासिते अंतोमुहे हसिते दरकडायं वा विज्जायं दरकडे वा सिप्पे दरकडे वा उवकरणे दरसंलाविते वा सव्वदरकडे वा जूते वा जणवाए वा वादसंलावे वा सव्वमायागते सव्वउवधिगते वा सव्वचित्तविज्जागते वा सव्वपुच्छंतभावगते वा सव्वग्गहणगते वा सव्वअतिसंघणागते वा एवंविधसद्दरूवपादुब्भावे विण्णासणट्ठताय आगतो सित्ति बूया ३ । तत्थ पडिलोमेसु गतेसु विकूणिते ओट्ठर्णिकुंजणे सीसविकंपणे सव्ववालगते सव्वसंबाधगते सव्वरोधगते सव्वविवादकडे संव्वविग्गहकडे कूडमासके कूडणाणके कूडलेक्खे कूडपाउब्भावे वा पण्णे पुप्फे फले 15वा मल्ले वा भोयणे वा वत्था - ऽलंकारे वा सव्वकीड - किविल्लकपादुब्भावे वा एवंविहसद्द - रूवपादुब्भावे आ बूया ४ । तत्थ अब्भंतरामासे 0 दढामासे Do णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जा आगो मासे Do मुदितामासे सव्वआहारगते वाविद्धे मल्ले वा भूसणे वा उल्लोगिते अभिहट्ठे अभिमट्टे अच्छाइते पागुते परिहिते अणुलित्ते अलंकिते सेसग्गहणे जण्णबलिहरणगते वणपुण्णामपहट्ठ-पसत्थ- परघ-पच्चुगतपुप्फे वा फले वा मल्ले वा भूसणे वा सव्वअत्थगते सव्वअत्थोपयारगते सव्वअत्थसद्दगते सव्वववहारगते सव्वसामिद्धिगते सव्वअत्थभोयणगते 20 एवंविधसद्द - रूवपाउब्भावे अत्थत्थिगताय आगतो सित्ति बूया ५ । त्थ अत्थे पुव्वाधारिते सव्वमत्थं दुविधमाधारए - सज्जीवं १ अज्जीवं चेव २ । तत्थ सव्वं सव्वचलामासे दढामासे अब्भंतरामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे मुदितामासे सव्वसज्जीवगते सव्वसज्जीवपादुब्भावे सव्वसज्जीवपरामासे सैव्वसज्जीवसद्दगते o सव्वसज्जीवउवकरणपादुब्भावे सव्वसज्जीवउवकरणपरामा सव्वसज्जीवउवकरणसद्दगते सव्वसज्जीवडवकरणणामधेज्जोदीरणे अंकुर - परोहगते पत्तुदग- पुप्फ-फलगते एवंविधसद्द - 25 रूवपादुब्भावे सज्जीवं अत्थं बूया १ । तत्थ बज्झामासे कण्हामासे रुक्खामासे मतामासे सव्वअज्जीवगते सव्वअज्जीवसद्दगते सव्वअज्जीवपाउब्भावे सव्वअज्जीवपरामासे सव्वअज्जीवणामधेज्जोदीरणे सव्ववातंकुर परोह - पुप्फ-फलतय-पवालगते सव्वेसिं रित्ततुच्छगते सव्वसरीरभायणगते धाउगए एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे अज्जीवत्थं बूया २ । तत्थ सज्जीवे अत्थे पुव्वाधारिते सज्जीवमत्थं दुविधमाधारये - मणुस्सजोणिगतं चेव १ तिरियजोणिगतं चेव २ । तत्थ उज्जुकामासे उज्जुगते उज्जुभावगते सव्वमणुस्सपाउब्भावे सव्वमणुस्सपरामासे सव्वमणुस्ससद्दगते सव्वमणुस्सणाम १० Do एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ २ पम्मुते सं ३ पु० ॥ ३ कक्क हं० त० सि० ॥ ४ 'दरीए मित्त हं० त० विना ॥ ५ रंगोव हं० त० विना ॥ ६ सव्वयुद्धं वद्धवण्ण हं० त० विना ॥ ७ 'मुक्खुक्खे' हं० त० विना ॥ ८ अइबंध" सं ३ पु० ॥ ९ 'णिभुंज" हं० त० विना ॥। १० हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ।। ११०८ Do एतच्चिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० नास्ति ॥ १२ मुद्धा हं० त० ॥ १३० Do एतच्चिह्नगतं पदं हं० त० नास्ति । १४ अच्छायए पायुए परि हं० त० ॥ १५ तहा अत्थे पुव्वाधारे जे सज्जीवं हं० त० ॥ १६० Do एतच्चिान्तर्गतः पारः हं० त० नास्ति || १७ कन्नामासे हं० त० सि० ॥ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमो आगमणज्झाओ १३१ धेज्जोदीरणे सव्वमणुस्सरूवागितिपादुब्भावे सव्वमणुस्सरूवागितिपरामासे 4 सव्वमणुस्सरूवागितिसद्दगते वा > सव्वमणुस्सरूवागितिणामधेज्जोदीरणे वा एवंविधसद्द-रूवपाउब्भावे मणुस्सं बूया १ । तत्थ तिरियामासे तिरियगते तिरियविलोकिते सव्वतिरिक्खजोणिपादुब्भावे सव्वतिरिक्खजोणीकपरामासे सव्वतिरिक्खजोणिकसद्दगते सव्वतिरिक्खजोणिकणामधेज्जोदीरणे सव्वतिरिक्खजोणिकरूवागितिपाउब्भावे सव्वतिरिक्खजोणिकरूवागितिपरामासे वा सव्वतिरिक्खजोणिकरूवागितिसद्दगते वा सव्वतिरिक्खजोणिकरूवागितिणामधेज्जोदीरणे वा सव्वतिरिक्खजोणिकउवकरणपादुब्भावे वा 5 सव्वतिरिक्खजोणिकउवकरणपरामासे वा सव्वतिरिक्खजोणिकउवकरणसद्दगते वा सव्वतिरिक्खजोणियउवकरणणामधेज्जोदीरणे सव्वतिरिक्खजोणिकथी-पुरिसणामधेज्जोदीरणे वा एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे तिरिक्खजोणि बूया २ । ___ तत्थ मणुस्से पुव्वाधारिते अज्जो १ पेस्सो २ त्ति पुणरवि आधारयितव्वं भवति । तत्थ G उद्धं णाभीय गत्तेसु क उद्धं णाभीय गत्तोवकरणे सव्वअज्जसमाचारगते सव्वअज्जगते सव्वअज्जपादुब्भावे सव्वअज्जपरामासे सव्वअज्जसद्दगते [सव्वअज्जणामधेज्जोदीरणे सव्वअज्जरूवागितिपादुब्भावे] सव्वअज्जरूवागितिपरामासे वा सव्वअज्ज- 10 रूवागितिसद्दगते सव्वअज्जरूवागितिणामधेज्जोदीरणे वा F सव्वअज्जउवगरणपाउब्भावे के सव्वअज्जउवकरणपरामासे सव्वअज्जउवकरणसद्दगते सव्वअज्जउवकरणणामधेज्जोदीरणे वा सव्वअज्जथीपुरिसणामधेज्जोदीरणे एवंविधसद्दरूवपाउब्भावे अज्जं मणुस्सं बूया १ । तत्थ अधोणाभीगत्तामासे अधोणाभीगत्तोपकरणे G सव्वपेस्सगते सव्वपेस्सोवयारगए 9 सव्वपेस्सपादुब्भावे सव्वपेस्सपरामासे सव्वपेस्ससद्दगते सव्वपेस्सणामधेज्जोदीरणे सव्वपेस्सरूवागितिपादुब्भावे सव्वपेस्सरूवागितिपरामासे सव्वपेस्सरूवागितिसद्दगते सव्वपेस्सरूवागितिणामधेज्जोदीरणे सव्वपेस्सउवकरण- 15 पादुब्भावे सव्वपेस्सउवकरणपरामासे सव्वपेस्सउवकरणसद्दगते सव्वपेस्सउवकरणणामधेज्जोदीरणे सव्वपेस्सथी-पुरिसणामधेज्जोदीरणे एवंविधसद्द-रूवपाउब्भावे पेस्सं मणुस्सं बूया २ ।। तत्थ अज्जो पेस्से त्ति पुव्वमुपधारिते इत्थी १ पुरिसो २ । पुणरवि आधारयितव्वं भवति । तत्थ दाहिणामासे पुण्णामधेज्जगत्तामासे पुरिसपाउब्भावे पुरिसपरामासे पुरिसस पुरिसणामधेज्जोदीरणे पुरिसरूवागितिपाउब्भावे पुरिसरूवागितिपरामासे पुरिसरूवागितिसद्दगते पुरिसरूवागितिणामधेज्जोदीरणे पुरिसणामधेज्जोवकरणपाउब्भावे ज पुरि- 20 सणामधेज्जोवकरणपरामासे के पुरिसणामधेज्जोवकरणसद्दगते पुरिसणामधेज्जउवकरणणामधेज्जोदीरणे पुरिसणामधेज्जदिव्वजोणिगतपादुब्भावे वा G पुरिसणामधेज्जदिव्वजोणिगयपरामासे 9 पुरिसणामधेज्जदिव्वजोणिगतसद्दगते पुरिसणामधेज्जदिव्वजोणिगतणामधेज्जोदीरणे पुरिसणामधेज्जपाणजोणिगतपादुब्भावे पुरिसणामधेज्जपाणजोणिगतपरामासे पुरिसणामधेज्जपाणजोणिगतसद्दगते पुरिसणामधेज्जपाणजोणिगतणामधेज्जोदीरणे G पुरिसणामधेज्जधाउजोणिगयपाउन्भावे पुरिसणामधेज्जधाउजोणिगयपरामासे पुरिसणामधेज्जधाउजोणिगयसद्दगए पुरिसणामधेज्जधातुजोणिगतणामधेज्जोदीरणे 25 पुरिसणामधेज्जमूलजोणिगतपाउब्भावे A पुरिसणामधेज्जमूलजोणिगतपरामासे 20 पुरिसणामधेज्जमूलजोणिगतसद्दगते पुरिसणामधेज्जमूलजोणिगतणामधेज्जोदीरणे सव्वपुरिसोवकरणे वा सव्वपुरिसोवचारगते वा पुण्णामधेज्जे पुप्फे वा फले वा भूसणे वा भायणे वा एवंविधसद्द-रूवपाउब्भावे पुरिसं बूया १ । तत्थ वामामासे थीणामधेज्जगत्तामासे थीपाउब्भावे थीपरामासे थीसद्दगते थीणामधेज्जोदीरणे थीरूवागितिपादुब्भावे F थीरूवागितिपरामासे < थीरूवागितिसद्दगते o थीरूवागितिणामधेज्जोदीरणे थीरूवागितिउवकरणपाउब्भावे थीरूवागितिउवकरणपरामासे थीरूवागितिउवकरण- 30 सद्दगते थीरूवागितिउवकरणणामधेज्जोदीरणे थीणामधेज्जदिव्वजोणिगतपादुब्भावे थीणामधेज्जदिव्वजोणिगतपरामासे थीणामधेज्जदिव्वजोणिगतसद्दगते थीणामधेज्जदिव्वजोणिगतणामधेज्जोदीरणे थीणामधेज्जधातुजोणिगतपादुब्भावे थी १ एतच्चिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ २ अस्सो पेस्से त्ति पुण' हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्रान्तर्गत: पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ गते चेव सव्व हं० त० ॥ ५ चतुरस्रकोष्ठकगतः पाठः सर्वासु प्रतिषु नास्ति ॥ ६ सव्वअज्जरूवागितिणामधेज्जोदीरणे वा सव्वअज्जरूवागिति सद्दगते इत्येवं व्यत्यासरूपेण सर्वासु प्रतिषु पाठो वर्त्तते ॥ ७-८-९-१०-११ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ १२ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ अंगविज्जापइण्णयं . णाम-धेज्जधातुजोणिगतपरामासे < थीणामधेज्जधातुजोणिगतसद्दगते o थीणामधेज्जधातुजोणिगतणामधेज्जोदीरणे Gथीणामधेज्जपाणजोणिगयपाउब्भावे क थीणामधेज्जपाणजोणिगतपरामासे थीणामधेज्जपाणजोणिगतसद्दगते थीणामधेज्जपाणजोणिगतणामधेज्जोदीरणे G थीणामधेज्जमलजोणिगयपाउब्भावे क थीणामधेज्जमूलजोणिगतपरामासे थीणामधेज्जमूलजोणिगतसद्दगते थीणामधेज्जमूलजोणिगतउपकरणणामधेज्जोदीरणे सव्वइत्थिसमायारगते इत्थीवेसगते इत्थीणामे 5 पुप्फे फले वा भूसणे वा भायणे वा एवंविधसद्द-रूवपाउब्भावे इत्थी बूया २ । इति सज्जीवा समणुगता । तत्थ दिव्वजोणिगते दिव्वत्थी-पुरिसपाउब्भावे वा परामासे [वा] सद्दगते वा णामधेज्जोदीरणे वा उपकरणगते वा दिव्वत्थी-पुरिसे एवंगतं जं भवति इति सज्जीवो अत्थि दिव्व-माणुस्सको थी-पुरिसगतो विण्णायव्वो भवति । तत्थ सज्जीवे अत्थे पुव्वाधारित तिरिक्खजोणिगते तिरिक्खजोणिगतं अत्थं तिविधमाधारये । तं जधा-चतुप्पदगतं १ पक्खिगतं २ परिसप्पगतं ३ चेति । तत्थ चउप्पदेसु चतुरस्सेसु चउक्केसु सव्वचउप्पयगते सव्वचउप्पयपादुब्भावे 10 सव्वचउप्पयपरामासे सव्वचउप्पयसद्दगते सव्वचउप्पयणामधेज्जोदीरणे सव्वचउप्पयरूवागितिपादुब्भावे सव्व चउप्पदरूवागितिपरामासे सव्वचउप्पदरूवागितिसद्दगते सव्वचतुप्पदरूवागितिणामधेज्जोदीरणे सव्वचतुप्पदउपकरणपाउब्भावे सव्वचउप्पयउपकरणपरामासे सव्वचउप्पयउपकरणसद्दगते सव्वचउप्पयउपकरणणामधेज्जोदीरणे सव्वचउप्पय F थी-पुमंस के णामधेज्जोदीरणे एवंविधसद्द-रूवपाउब्भावे चउप्पयगतं अत्थं संचिंतियं ति बूया १ । तत्थ उद्धं गीवाय सिरोमुहामासे उद्धं गीवा-सिरो-मुहोवकरणउल्लोगिते उस्सिते उच्चारित उद्धंभागे सव्वपक्खिपाउब्भावे 15 सव्वपक्खिपरामासे सव्वपक्खिसद्दगते सव्वपक्खिणामधेज्जोदीरणे सव्वपक्खिरूवागितिपाउब्भावे सव्वपक्खिरूवागितिपरामासे सव्वपक्खिरूवागितिसद्दगए सव्वपक्खिरूवागितिणामधेज्जोदीरणे सव्वपक्खिउवकरणपाउब्भावे सव्व [पक्खि] उपकरणपरामासे सव्वपक्खिउपकरणसद्दगए सव्वपक्खिउवकरणणामधेज्जोदीरणे सेव्वपक्खिणामधेज्जोदीरणे थी-पुरिसगते एवंविधसद्दरूवपाउब्भावे पक्खिगयं सज्जीवं अत्थं बूया २ । तत्थ दीहेसु सव्वपरिसप्पपाउब्भावे सव्वपरिसप्प परामासे सव्वपरिसप्पसद्दगते सव्वपरिसप्पणामधेज्जोदीरणे सव्वपरिसप्परूवागितिपाउब्भावे सव्वपरिसप्परूवागितिपरामासे 20 सव्वपरिसप्परूवागितिसद्दगते सव्वपरिसप्परूवागितिणामधेज्जोदीरणे सव्वपरिसप्पउवगरणपाउब्भावे सव्वपरिसप्पउवगरणपरामासे सव्वपरिसप्पउवगरणसद्दगते सव्वपरिसप्पउवगरणणामधेज्जोदीरणे सव्वपरिसप्पत्थि-पुरिसणामधेज्जोदीरणे एवंविधसदरूवपाउन्भावे परिसप्पकतं सज्जीवं अत्थं ब्रूया ३ । तत्थ तिरिक्खजो णिकते [अत्थे] पुव्वमाधारित तिरिक्खजोणिकतं G तिरिक्खं 2 दुविधमाधारये-पुरिसो तिरिक्खजोणी १ इत्थी तिरिक्खजोणी २ । तत्थ दक्खिणामासे पुण्णामधेज्जामासे पुरिसपादुब्भावे पुरिसपरामासे 25 पुरिससद्दकते पुरिसणामधेज्जोदीरणे पुरिसरूवागितिपाउब्भावे एवंविधसद्द-रूवपाउब्भावे पुरिसं तिरिक्खजोणिगतं बूया १ । तत्थ वामामासे सरीरत्थीणामधेज्जामासे सरीरत्थीणामधेज्जोदीरणे व इत्थीपादुब्भावे Do इत्थीपरामासे इत्थिसद्दगते इत्थीणामधेज्जोदीरणे इत्थिरूवागितिपादुब्भावे इत्थिसमायारगते इत्थीवेसगते एवंविधसद्द-रूवपाउब्भावे इत्थीतिरिक्खजोणिगतं बूया २ । जधा मणुस्सेसु थी-पुरिस-णपुंसकप्पविभागो तधा तिरिक्खजोणीयं पि आमास-सद्द-रूवपविभागेहिं पुव्वुद्दिटेहिं णातव्वं भवति । इति सज्जीवो अत्थो विण्णेयो । 30 तत्थ अज्जीवे अत्थे पुव्वमाधारिते अज्जीवमत्थं तिविधमाधारये । तं जहा-पाणजोणिगतं १ मूलजोणिगतं २ धातुजोणिगतं ३ चेति । तत्थ चलामासे 4 सव्वपाणजोणिपरामासे - सव्वपाणजोणिपादुब्भावे सव्वपाणजोणिगतपरामासे सव्वपाणजोणिगतसद्दगते सव्वपाणजोणिगतणामधेज्जोदीरणे सव्वपाणजोणिथी-पुरिसगते पाणजोणिमयं अज्जीवं बूया १ । १ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३ दसमो आगमणज्झाओ तत्थ दढामासे सव्वधातुजोणिगते सव्वधातुजोणिपाउब्भावे सव्वधातुजोणिगतपरामासे F सव्वधातुजोणिगयसद्दगए ' सव्वधातुजोणिगतणामधेज्जोदीरणे सव्वधातुमये वा उवकरणे सव्वधातुजोणीथी-पुरिसगते एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे धातुजोणिगतं अज्जीवमत्थं बूया २ । तत्थ गहणेसु केस-मंसु लोमगते सव्वमूलजोणिपादुब्भावे सव्वमूलजोणिपरामासे सव्वमूलजोणिसद्दगते सव्वमूलजोणिणामधेज्जोदीरणे - सव्वमूलजोणिमए उवकरणे सव्वमूलजोणिगए णामधेज्जे उवकरणे एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे थी-पुरिसगयं अत्थं अज्जीवं बूया ३ । । तत्थ पाणजोणिगतणामधेज्जउवकरणे 5 ★ एवंविधसद्द-रूवपाउब्भावे णपुंसकगतं ★ अत्थं अज्जीवं बूया । Do तत्थ पाणजोणिगते अत्थे पुव्वमाधारिते पाणजोणिगतं अत्थं दुविधमाधारए-आहारगतं उवकरणगतं चेव १ मूलजोणिगतं उवगरणगतं चेव २ । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे आहार-मुह-गीवाय दंतोटे गंडे कवोल-जिब्भ-तालुके पस्सपदे सहितय-कुक्खि-उदरपरामासे डेट्ठित्ते परिलीढे णिग्गिणे अस्साविते सस्साविते सव्वभोयणगते सव्वपाणगते सव्वपाण-भोयणभायणगते सव्वआहारगते पुष्फ-फले पत्त-पवाले भक्खपक्खिचतुप्पदे 10 परिसप्पगते एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे पाणजोणिगतं अज्जीवआहारगतं अत्थं बूया । तत्थ सव्वउवगरणगते सव्वकारुकगते सव्वसिप्पिगगते सव्वअण्णाहारगते पाणजोणिगतं अज्जीवउवकरणगतं अत्थं बूया १ । तत्थ पाणजोणिमये आहारगते अज्जीवमत्थे पुव्वमाधारिते पाणजोणिगतो अज्जीवो आहारगतो अत्थो दुद्धं दधि णवणीतं तक्खं घतं मांसं वसा मज्जमिति, इति पाणजोणिगतो अत्थो आहारगतो त्ति बूया । तत्थ पाणजोणिगते अज्जीवे उवकरणगते अत्थे पुव्वमाधारिते अज्जीवो पाणजोणिगतो उवकरणगतो अत्थो अँटिगतो दंतगओ सिंगगतो चम्मगतो ण्हायुगतो लोमगतो वालगतो तंतुगतो सोणियगतो 15 चेति, इति पाणजोणिगतो उवकरणगतो अज्जीवो अत्थो २ । तत्थ धातुजोणिगते अत्थे F पुव्वमाधारिए धातुजोणिगयं अत्थं दुविहमाहारए-अग्गेयं १ अणग्गेयं २ चेति । तत्थ सव्वअग्गेयेसु उण्हेसु सव्वअग्गिपाउब्भावे सव्वअग्गिपरामासे सव्वअग्गिसद्दगए सव्वअग्गिणामधिज्जोदीरणे सव्वरत्तेसु सव्वअग्गिजीवणेसु सव्वअग्गिजीवणोपकरणेसु य अग्गेयं बूया १ । तत्थ सव्वअणग्गेएसु सव्वसीयलेसु सव्वउदकचरेसु सव्वअणग्गिजीवणेसु अणग्गेयोवजीवणोवकरणेसु य अणग्गेयं धाउजोणिगयं अत्थं बूया २ । तत्थ 20 अग्गेये धाउजोणिगए अत्थे पुव्वमाहारिए सव्वलोहाणि खारलोहाणि अग्गेयं च मणिधाउकयं बूया । छ तत्थ अणग्गेये धातुजोणिगते अत्थे पुव्वाधारिते अणग्गेयं धातुजोणिगतं वण्णधातुगतं कढिणधातुगतं अत्थं पुढविधातुगतं अणग्गेयं च मणिधातुगतं रसधातुगतं बूया । इति धातुजोणिगतो अणग्गेयो अंग्गेयो - य दुविधो अत्थो भवति । तत्थ मूलजोणिगते अत्थे पुव्वाधारिते मूलजोणिगतं अत्थं तिविधमाधारये-मूलगतं १ खंधगतं २ अग्गगतं ३ चेति । तत्थ अधोभागेसु अधेणाभीय उवकरणे सव्वमूलजोणिपाउब्भावे सव्वमूलजोणिपरामासे सव्वमूलजोणिसद्दगते 25 सव्वमूलजोणीणामधेज्जोदीरणे सव्वमूलजोणिउवकरणपादुब्भावे सव्वमूलजोणिउवकरणपरामासे सव्वमूलजोणिउवगरणसद्दगते सव्वमूलजोणिउवकरणणामधेज्जोदीरणे एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे मूलगतं अत्थं बूया १ । तत्थ सव्वसमाणे १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ २-३ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं सव्वसमाणोपकरणेसु सव्वसमभागोपलद्धीयं सव्वखंधगते सव्वखंधपाउब्भावे सव्वखंधपरामासे सव्वखंधसद्दगते सव्वखंधणामधेज्जोदीरणे सव्वखंधईक्कासोवलद्धीयं सव्वसमभागोवलद्धीयं सव्वखंधमये उवकरणे सव्वखंधोवकरणे एवंविधसद्द - रूवपाउब्भावे खंधगयं बूया २ । तत्थ उद्धंभागेसु उद्धंगत्तोपकरणे सव्वपुप्फ-फल - [पत्त ] पादुब्भावे सव्वपुप्फ-फल-पत्तपरामासे सव्वपुप्फ-फल-पत्तसद्दगते सव्वपुप्फ-फल-पत्तणामधेज्जोदीरणे सव्वपुप्फ-फल-पत्त 5 उवकरणपाउब्भावे सव्वपुप्फ-फल-पत्त उवकरणपरामासे सैव्वपुप्फ-फल-पत्तउवकरणसद्दगए सव्वपुप्फफल-पत्तउवकरणणामधेज्जोदीरणे एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे अग्गगतं मूलजोणिगतं अत्थं बूया ३ । इति मूलजोणिगतो तिविधो अत्थो भवति । १३४ तत्थ चले टुं वा पावासिकं वा आतुरं वा बूया - तत्थ अब्धंतरे चलेसु णट्टं बूयां, बाहिरेसु चलेसु पावासिकं बूया, विमज्झेसु चलेसु आतुरं बूया । बद्धेसु बद्धं बूया । मोक्खेसु मोक्खं बूया । तत्थ हियय - कुक्खि- णाभि10 उदर-उच्छंग-पोरुस—– अंगुट्ठक - कणेट्टिकापरामासे पयं पयं अंतरेण पुच्छितुं आगतो सित्ति बूया । पुण्णामोपलद्धीयं तंबूया | थीणामोवलद्धीयं दारिकं बूया । पुण्णामधेज्जेसु पुरिसं अंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । श्रीणामधेज्जेसु इत्थीमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । णपुंसकेसु णपुंसकमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । दढेसु सारिकोपकरणमंतरेण [ पुच्छिउं] आगओ सि त्ति बूया । कण्हेसु सारिकोपकरणमंतरेण पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । तंबे रत्तोपलीयं च सुवण्णकं बूया । सुक्केसु सारवंतेसु य मज्झकं बूया । सव्वधणोपलद्धीयं धणं बूया । णिरत्थकेसु 15 णिरत्थकं बूया । तत्थ णिद्धेसु कूवं वा गदि वा समुद्दं वा पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया- तत्थ उव्विद्धेसु कूवं बूया, दीहेसु गर्दि बूया, महापरिग्गहेसु परिक्खेवेसु य समुदं बूया । तत्थ कसेसु सुतं वा अच्छादणं वा कसं वा थी - पुरिसं अंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । तत्थ कसेसु अज्जवेसु केस-मंसु-लोमगते सुत्तं वा तंतुं वा विततं वा बूया । तत्थ वत्थे वित्थते परिहिते पागुते वेट्टणे वा अच्छादणं बूया । तत्थ सज्जीवेसु पुण्णामेसु पुरिसं बूया । थीणामेसु सज्जीवेसु इत्थिकं बूया । णपुंसके णपुंसकं बूया । तत्थ थलेसु उण्णतेसु पव्वयं वा पासायं 20 वा उण्णतं बूया । तत्थ गहणेसु रण्णं बूया । उवग्गहणेसु आरामं बूया वणरासि वा बूया । परिमंडलेसु भायणं बूया । पुधूसु य पुधवि वा किलंजं वा बूया । जण्णेयेसु य जण्णं वा वाधेज्जं वा बूया । अग्गेयेसु अग्गी बूया । गिद्धे उदगं वा वुट्ठि वा आहारं वा बूया - उवरिट्टिमेसु णिद्धेसु वासं बूया, समभागेसु णिद्धेसु आहारं बूया, अधे (धो) भागेसु णिद्धेसु उदगं बूया । चतुरस्सेसु चउप्पयं वा खेत्तं वा बूया । बज्झेसु पावासिकं बूया । बज्झेसु परस्स अत्थाय पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । पुरिमेसु अप्पणो अत्थाय पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । बज्झतरेसु अप्पणो य 25 परस्स य अंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । पुरिमेसु अणागतं बूया । पच्छिमेसु अतिवत्तं बूया । वामदक्खिणेसु गत्तेसु वत्तमाणं बूया । मतेसु मतं वा मतकप्पं वा बूया । लुक्खेसु चारिकमंतरेणं पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । सेतेसु णिद्धेसु य रुप्पं बूया । चउरंसेसु णिद्धेसु चित्तेसु दढेसु य काहावणं बूया । किण्हेसु अंसकोवकरणमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । सामेसु आभरणमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । दीहेसु दवियमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । ह्रस्सेसु पुप्फ-फलमंतरेण पुच्छिउं आगओ सि त्ति बूया । रमणीयेसु ईरिणं वा भट्ठ वा रमणिज्जं वा देसं बूया । मुदितेसु उस्सयं वा समायं वा अंतरेण पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । दीणेसु उवसग्गसलद्धं 30 अंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । पुण्णेसु पसण्णेसु उस्सयं वा वारेज्जं वा बूया । उद्धंभागेसु दिव्वजोणिगतं बूया । कणपट्टे सव्ववाहणगते चतुप्पदगतं वा अंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । तिक्खेसु जोग-क्खेमं बूया । तत्थ केस - मंसु-लोमगते मूलजोणिगतं अत्थमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । अणूसु सव्वधन्नगतं बूया । सामेसु संपयोगे मेधुणमंतरेण पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । बंभेयेसु बंभणमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । १ खंधगते हं० त० विना ॥ २ 'इक्खासो सं३ पु० ॥ ३ हस्तचिह्नगतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ सुद्धिं पा हं० त० विना ॥ ५ विमद्दिसु सप्र० ॥ ६ च्छितुज्जे आ' सप्र० ॥ ७ पण्णेसु या पावा हं० त० ॥ ८ ईरिणं हं० त० ॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ एकादसमो पुच्छितज्झाओ व र्खत्तेयेसु खत्तियमंतरेण पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । वेस्सेज्जेसु वेस्समंतरेण पुच्छिउं आगतो सि बूया । सुद्देज्जेसु सुद्दमंतरेणं पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । बालेयेसु बालमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । जोव्वणत्थेसु जोव्वणमंतरेण पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । मज्झिमवयेसु मज्झिमवयमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । महव्वसु महव्वयमंतरेण पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । उत्तमेसु उत्तमं बूया । उत्तमसाधारणेसु उत्तमसाधारणं बूया । मज्झिमेसु मज्झिमं बूया । मज्झिमसाधारणेसु मज्झिमसाधारणं बूया । जधण्णेसु जधण्णं बूया । जधण्णसाधारणेसु 5 जधण्णसाधारणं बूया । पुरत्थिमेसु अभिकंखितं बूया । पच्छिमेसु उवभुत्तं बूया । वामदक्खिणेसु उवभुज्जमाणं अत्थं अंतरेण अत्थं पुच्छिउं आगतो सित्ति बूया । एवं सव्वेसु आमासेसु अंतरंगे बाहिरंगे य अधापडिरूवेण सद्द-रूवगंध-फास - रसगतेण सव्वं समणुगंतव्वं भवति ॥ ॥ आगमणो नामऽज्झायो दसमो सम्मत्तो ॥ १० ॥ छ ॥ [ एकादसमो पुच्छितज्झाओ ] णमो भगवतो अरहतो यसवतो महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पुच्छितं णामाज्झतं । तं खलु भो ! तमणुवक्खयिस्सामि । तं जहा - अप्पाणं ताव दसधा परिक्खेज्ज । तं जधा—हिट्ठतं १ दीणतं २ आतुरतं ३ आरोग्गतं ४ कुद्धतं ५ पसण्णतं ६ छाततं ७ पीणियततं ८ एक्कग्गमणतं ९ विखित्तमणतं १० चेति । तत्थ हिट्ठे अप्पणि पहिट्ठमत्थं वागरे । दीणे अप्पणि दीणमत्थं अणेव्वाणि च वियागरे । कुद्धे अप्पणि आधि कलहं च वियागरे । पसण्णे अप्पणि सम्मोई संपीति च वियागरे । आतुरे अप्पणि आतुरं उवद्दुतं च वियागरे । आरोग्गे अप्पणि आरोग्गं वियागरे । छाते अप्पणि दुब्भिक्खं तत्थ णिद्दिसे । पीणिते अप्पणि धातकं अण्णलाभं च वियागरे । एक्कग्गमणसे अप्पणि मणोणिव्वुतिं मणोतुट्ठि च वियागरे । विक्खित्तचित्ते अप्पणि विक्खित्तचित्तभावं अप्पसण्णभावं अत्थहाणि च वियागरे ॥ छ ॥ १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ २ आगमणोऽज्झाओ ॥ छ ॥ हं० त० विना ॥ ३ हिट्ठयं दीणयं आउरयं आरोग्गयं कुद्धयं पसण्णयं छाययं पीणिमयं एकग्गमणयं विक्खित्तमणयं चेति हं० त० ॥ ४ ग्गं णिरुवद्दवं वियागरे । छाते अप्पणि विच्छायं दुब्धि सि० ॥ ५-६ - ७ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ८ पलायमाणो हं० त० विना ॥ ९ छलवंतो हं० त० विना ॥ १० छन्नेमाणो हं० त० विना ॥ 20 T अतो परं परस्स पुच्छितं वक्खाइस्सामो । तं जधा गच्छंतो वा पुच्छेज्ज, ठिओ वा पुच्छेज्ज, कुदुको व पुच्छेज्ज, परिसक्कंतो वा पुच्छेज्ज, उवेसंतो वा पुच्छेज्ज, णिवण्णो वा पुच्छेज्ज, अपत्थद्धो वा पुच्छेज्ज, अणवत्थद्धो वा पुच्छेज्ज, उच्चारणगतो वा पुच्छेज्ज, णीयासणगतो वा पुच्छेज्ज, पुरतो वा पुच्छेज्ज, पच्छतो वा पुच्छेज्ज, वामतो वा पुच्छेज्ज, दक्खिणतो वा पुच्छेज्ज, अभिमुहो वा पुच्छेज्ज, परम्मुहो वा पुच्छेज्जा (ज्ज), उवसकंतो व पुच्छेज्ज, अवसक्कंतो वा पुच्छेज्ज, संहरंतो वा गत्ताणि पुच्छेज्ज, विखिवंतो वा गत्ताणि पुच्छेज्ज, 25 उट्ठितो वा पुच्छेज्ज, ओणमंतो वा पुच्छेज्ज, उण्णमंतो वा पुच्छेज्ज, उत्तरंतो वा पुच्छेज्ज, आरुहंतो वा पुच्छेज्ज, विणमंतो वा पुच्छेज्ज, णीहरंतो वा पुच्छेज्ज, पल्लत्थीकाकतो वा पुच्छेज्ज, पक्खपेंडकतो वा पुच्छेज्ज, कासमाणो वा पुच्छेज्ज, छीयमाणो वा पुच्छेज्ज, पयलायमाणो वा पुच्छेज्ज, णिस्सिघेमाणो वा पुच्छेज्ज, णिट्टुभंतो वा पुच्छेज्ज, णिस्ससंतो वा पुच्छेज्ज, जंभायमाणो वा पुच्छेज्ज, छेलंतो वा पुच्छेज्ज, पवडंतो वा पुच्छेज्ज, रोदंतो वा पुच्छेज्ज, हसंतो वा पुच्छेज्ज, आहारेमाणो वा पुच्छेज्ज, छंद्देमाणो वा पुच्छेज्ज, सक्कारेमाणो वा पुच्छेज्ज, असक्कारेण वा पुच्छेज्ज, 30 10 For Private Personal Use Only 15 Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ अंगविज्जापइण्णयं भिउडीय वा पुच्छेज्ज, मुढेि वा करेमाणो पुच्छेज्ज, मुत्तं वा करेमाणो पुच्छेज्ज, पुरीसं वा करेमाणो पुच्छेज्ज, वातं वा करेमाणो पुच्छेज्ज, वंदंतो वा पुच्छेज्ज, सव्वेसु वा जाण-वाहणेसु संतो पुच्छेज्ज, कोट्ठके वा संतो पुच्छेज्ज, अंगणे वा संतो पुच्छेज्ज, अरंजरमूले वा पुच्छेज्ज, गब्भगिहे वा पुच्छेज्ज, अब्भंतरगिहे वा पुच्छेज्ज, भत्तगिहे वा पुच्छेज्ज, वच्चगिहे वा पुच्छेज्ज, णकूडे वा पुच्छेज्ज, उदगगिहे वा पुच्छेज्ज, अग्गिगिहे वा पुच्छेज्ज, रुक्खमूले वा पुच्छेज्ज, 5 भूमिगिहे वा पुच्छेज्ज, विमाणे वा पुच्छेज्ज, गगणगतो वा पुच्छेज्ज, चच्चरे वा पुच्छेज्ज, संधीसु वा पुच्छेज्ज, समरे वा पुच्छेज्ज, कडिकतोरणे वा पुच्छेज्ज, पागारे वा पुच्छेज्ज, चरिकासु वा पुच्छेज्ज, वेतीसु वा पुच्छेज्ज, गयवारीसु वा पुच्छेज्ज, संकमेसु वा पुच्छेज्ज, G सेयणेसु वा पुच्छेज्ज, ३ वलभीसु वा पुच्छेज्ज, G रासीसु वा पुच्छेज्ज, पंसूसु वा पुच्छेज्ज, णिद्धमणेसु वा पुच्छेज्ज, णिकूडेसु वा पुच्छेज्ज, फलिखायं वा पुच्छेज्ज, पावीरे वा पुच्छेज्ज, पेढिकासु वा पुच्छेज्ज, मोहणगिहे वा पुच्छेज्ज, ओसरे वा पुच्छेज्ज, संकमे वा पुच्छेज्ज, सोमाणत्थगतो वा पुच्छेज्ज, 10 अब्भंतरपेरियरणे वा पुच्छेज्ज, बाहिरायं दुवारसालायं वा पुच्छेज्ज, बाहिरायं वा गिहदुवारबाहायं पुच्छेज्ज, उवट्ठाणजालगिहे वा पुच्छेज्ज, अच्छणके वा पुच्छेज्ज, सिप्पगिहे वा पुच्छेज्ज, कम्मगिहे वा पुच्छेज्ज, स्यतगिहे वा पुच्छेज्ज, ओधिगिहे वा पुच्छेज्ज, < उप्पलगिहे वा पुच्छेज्ज, Do हिमगिहे वा पुच्छेज्ज, आदंसगिहे वा पुच्छेज्ज, तलगिहे वा पुच्छेज्ज, आगमगिहे वा पुच्छेज्ज, चतुक्कगिहे वा पुच्छेज्ज, रच्छागिहे वा पुच्छेज्ज, दंतगिहे वा पुच्छेज्ज, कंसगिहे वा पुच्छेज्ज, पडिकम्मगिहे वा पुच्छेज्ज, कंकसालायं वा पुच्छेज्ज, आतवगिहे वा पुच्छेज्ज, पणियगिहे वा पुच्छेज्ज, आसणगिहे 15 वा पुच्छेज्ज, भोयणगिहे वा पुच्छेज्ज, रसोतीगिहे वा पुच्छेज्ज, हयगिहे वा पुच्छेज्ज, रधगिहे वा पुच्छेज्ज, गयगिहे वा पुच्छेज्ज, पुप्फगिहे वा पुच्छेज्ज, जूतगिहे वा पुच्छेज्ज, पातवगिहे वा पुच्छेज्ज, खलिणगिहे वा पुच्छेज्ज, बंधणगिहे वा पुच्छेज्ज, जाणगिहे वा पुच्छेज्ज, 2 जाणगिहे वा संतो पुच्छेज्ज ॥ छ । अभिमुहो वा पुच्छेज्ज अभिमुहअप्पणीयकं अणागतं अत्थं चिंतेसि त्ति बूया । परम्मुहो पुच्छेज्ज अप्पणीयकं अत्थं परम्मुहं अंतरेण पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । उवसकतो पुच्छेज्ज अत्थो खिप्पं भविस्सति त्ति बूया । अवसक्कतो 20 पुच्छेज्ज अत्थो खिप्पं ण भविस्सति त्ति बूया । अवसवंतो पुच्छेज्ज अत्थो सिग्घं विणस्सिहिति त्ति बूया । संहरमाणो अंगाणि पुच्छेज्ज संजोगं वा समागमं वा अंतरेण पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । विक्खिवमाणो अंगाणि पुच्छेज्ज विप्पयोगमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । उट्ठेतो पुच्छेज्ज चलमत्थमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । णिवेसंतो पुच्छेज्ज धुवत्थावरमत्थमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । उण्णमंतो पुच्छेज्ज विवद्धीमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । ओणमंतो पुच्छेज्ज हाणीमंतरेण पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । आरुभंतो पुच्छेज्ज आगमेस्सो अत्थो भविस्सति त्ति बूया । उत्तरंतो पुच्छेज्ज आवायमंतरेणं 25 पुच्छिउं आगतो सि त्ति बूया । विणामेंतो अंगाणि पुच्छेज्ज दुक्खा अत्थो भविस्सति त्ति बूया । णीहरतो अंगाणि पुच्छेज्ज णिरागारमंतरेणं पुच्छसि त्ति बूया | पल्लत्थिकासंपउत्तो पुच्छेज्ज बंधं वा घरावासमंतरेणं पुच्छसि त्ति बूया । पक्खडाय पुच्छेज्ज अत्थहाणीमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । णि?भमाणो पुच्छेज्ज अप्पियमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । णीससंतो पुच्छेज्ज आयासमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया। जंभायमाणो पुच्छेज्ज उक्कंठकमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । पयलायमाणो पुच्छेज्ज अत्थं दुक्कतं अंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । पवडतो पुच्छेज्ज अत्थविणासमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । रोदंतो 30 पुच्छेज्ज पियं पाणं अंतरेणं पुच्छसि त्ति बूया । हसंतो पुच्छेज्ज रतीसंपयुत्तं अत्थमंतरेणं पुच्छसि त्ति बूया । आहारेमाणो १ हस्तचिहान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ २ हस्तचिह्मन्तर्गत: पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ३ 'गिहेसु वा हं० त० ॥ ४ संकामे वा सं ३ पु० । संकडे वा सि० ॥ ५ परिवरणे हं० त०॥ ६ उवगिहे हं० त० ॥ ७ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ एकादसमो पुच्छितज्झाओ पुच्छेज्ज भागविवद्धिमंतरेणं पुच्छसि त्ति बूया । छद्देमाणो पुच्छेज्ज हाणीसंपयुत्तं अत्थं पुच्छसि त्ति बूया । सक्कारेण पुच्छेज्ज खिप्पं सुहेण अत्थं पाविहिसि त्ति बूया । असक्कारेण पुच्छेज्ज दुक्खेणं अत्थं ण पाविहिसि त्ति बूया । भिउडी करेमाणो पुच्छेज्ज कोवमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । सुद्धि करेमाणो पुच्छेज्ज संजोगमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । मुत्तं करेमाणो पुच्छेज्ज पयाअपायमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । पुरीसं करेमाणो पुच्छेज्ज अत्थावायमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । वातं करेमाणो पुच्छेज्ज मतं वा मतकप्पं वा अंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । 5 वंदंतो पुच्छेज्ज इस्सरियं वा उवचयं वा अंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । कोट्ठए पुच्छेज्ज णिग्गमं अंतरेण पुच्छसि त्ति बूया | अंगणे पुच्छेज्ज महाजणमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । णिक्कूडे पुच्छेज्ज अरहस्समंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । उदगगिहे पुच्छेज्ज आरोग्ग -हास - सिणेहमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । गब्भगिहे पुच्छेज्ज णिव्वुतीरतीसंपउत्तमत्थमंतरेण त्ति बूया । भग्गगिहे पुच्छेज्ज अणिव्वुतिमंतरेणं ति बूया । अंग्गिगिहे पुच्छेज्ज सरीरपरितावणमंतरेणं ति बूया | Do रुक्खमूले पुच्छेज्ज सरीरसोक्खमंतरेण पसत्थमत्थमंतरेण यत्ति बूया । भूमिगिहे पुच्छेज्ज अरहस्स - 10 मत्थमंतरेणं ति बूया । विमाणे पुच्छमाणो सुहमत्थमंतरेणं ति बूया । गगणे संतो पुच्छेज्ज अव्वत्तमत्थमंतरेणं ति बूया । उवलगिहे पुच्छेज्ज णिसुहमंतरेणं ति बूया । णरविवुद्धवाहणे पुच्छेज्ज इस्सरियमंतरेणं ति बूया । सयणासणगतो पुच्छेज्ज सोक्खमंतरेणं ति बूया। रासीसु विपुलइस्सरिय - आधिपच्चकारणलाभायं पुच्छसि त्ति पावेहिसि त्ति बूया । वियडप्पकासे पुच्छेज्ज दुरुववण्णमत्थं ति बूया । रायपधे पुच्छेज्ज चलं महार्जणासाधारणं रायत्थमंतरेणं ति बूया | सिंघाडग-चच्चरेसु पुच्छेज्ज चतुप्पदरूवचारीमंतरेणं ति बूया । दुवारे पुच्छेज्ज पुरिसस्स णिग्गमणमंतरेणं 15 पुच्छसि त्ति बूया । खेत्ते पुच्छेज्ज पच्छण्णं पलायमंतरेणं ति बूया । अट्टालए पुच्छेज्ज भयमंतरेणं ति बूया । गयवारीय पुच्छेज्ज सत्तुभयमंतरेणं ति बूया । संधिसमरेसु पुच्छेज्ज संता Do देसंतरगमणमंतरेणं ति बूया । सयणे संतो पुच्छेज्ज भज्जामंतरेणं ति बूया । वलभीसु दंसणीयरतिविहारसंपयुत्तं अत्थमंतरेणं ति बूया । उदगपधेसु अमणुण्णणिराससंपयुत्तमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । वयेसु पुच्छेज्ज दुप्पावणीयं रायत्थं पुरिससंपयुत्तं ति बूया । रासीसु पुच्छेज्ज सरीरअभिर्वाद्धमंतरेण पुच्छसि त्ति बूया । वप्पेसु सुभिक्खमंतरेणं ति बूया । णिद्धमणेसु पुच्छेज्ज 20 अमणुण्णमत्थमंतरेणं ति बूया । फलिहासु पुच्छेज्ज रायमंतरेणं ति बूया । पउलीसु पुच्छेज्ज सिद्धदुवारमंतरेणं ति बूया । कोट्ठके पुच्छेज्ज णीहारपावासिकणिग्गमणमंतरेणं ति बूया । अस्समोहणके पुच्छेज्ज मोहणमंतरेणं ति बूया । ओसरकेसु पुच्छेज्ज बाहिरसाधारणं ति बूया । मंचिकासु पुच्छेज्ज वेस्समंतरेणं ति बूया । सोवाणेसु पुच्छेज्ज अद्धाणमंतरेणं ति बूया । खंभेपुच्छेज्ज थावरमंतरेणं ति बूया । अब्भंतरदुवारे पुच्छेज्ज आगमणसंरोध[मंतरे]णं ति बूया । बाहिरदुवारे पुच्छेज्ज णिग्गमणमंतरेणं ति बूया । दुवारसालाय बाहिराय पुच्छेज्ज 25 वारे पुरुस अब्भंतरघरप्पवासागमणपतिपुत्तलाभं च त्ति बूया । अब्भितरे विरहे णिग्गमणं, बाहिरे Do दुवारबाहायं खिप्पं पवासागमणं, गब्भिणीय य पजायणं ति बूया । अब्धितरगिहे पुच्छेज्ज गोज्झरतिसंपयोगमंतरेणं ति बूया चतुरस्सके पुच्छेज्ज पाणरतिविहारसंपयुत्तं ति बूया । जलगिहे हौससुहविहारमंतरेणं पुच्छसि त्ति बूया । महाणसगिहे पुच्छेज्ज विप्पवंचणासंपयुत्तं ति बूया । अच्छणके पुच्छेज्ज कम्मणिच्छेदणं बूया । सिप्पगिहे पुच्छेज्ज विज्जालाभमंतरेणं ति बूया । कम्मगिहे पुच्छेज्जै कम्मारंभमंतरेणं ति बूया । रयणगिहे पुच्छेज्ज रज्जाभिसेकछायाभिगमणमंतरेणं ति 30 बूया । भंडगिहे पुच्छेज्ज संचयमंतरेणं ति बूया । ओसधगिहे पुच्छेज्ज सरीरसंतावमंतरेणं ति बूया । उपलगिहे पुच्छेज्ज गुरुचलसंसितं अत्थमंतरेणं ति बूया । हिमगिहे पुच्छेज्ज णेव्वाणिसंसितं अत्थमंतरेणं ति बूया । चित्तगिहे १ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठसन्दर्भः हं० त० एव वर्त्तते ॥ २०० एतच्चिह्यन्तर्गत: पाठसन्दर्भः हं० त० नास्ति ॥ ३ अग्गगिहे सं ३ पु० । अभिग्गिहे सि० ॥ ४ 'स्समंत' हं० त० ॥ ५ णिमुहुमंत हं० त० ॥ ६ 'जणसाधा' हं० त० सि० ॥ ७ रुवधारी हं० त० ॥ ८ गयचारीय हं० त० ॥ ९ ० Do एतच्चिह्मन्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ॥ १० हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्त्तते ॥ ११०० एतच्चिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ॥ १२ हासमुह हं० त० विना ॥ १३ विप्पबंधणा हं० त० ॥ १४ णिव्वेदणं हं० त० विना ॥ १५ ज्ज महप्पभावमंत हं० त० विना ॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ अंगविज्जापइण्णयं मणोवितक्कामंतरेणं ति पुच्छसि त्ति बूया । आदंसगिहे पुच्छेज्ज महप्पभावमंतरेणं ति बूया । लतागिहे पुच्छेज्ज थीरतीसंपयोगमंतरेणं ति बूया । आगम्मगिहे पुच्छेज्ज वयस्सरतिसंपयुत्तं ति बूया । चतुक्कगिहे पुच्छेज्ज असारसंतावमंतरेणं ति बूया । जाणगिहे पुच्छेज्ज रायत्थविवद्धिमंतरेणं ति बूया । दगकोट्ठगे पुच्छेज्ज उत्तममहाजणसुहसंपयोगमंतरेणं ति बूया। कोसगिहे पुच्छेज्ज अत्थवच्चासमंतरेणं ति बूया। पडिकम्मगिहे पुच्छेज्ज तरुणसंपयोगमंतरेणं ति बूया । कंकसालायं 5 पुच्छेज्ज सरीरविसुद्धिमंतरेणं ति बूया । आतवगिहे पुच्छेज्ज विजयं वा हासदुक्खपरिमोक्खं व त्ति बूया । पणियगिहे पुच्छेज्ज पाणधारणं आयुप्पमाणं व त्ति बूया । पाणगिहे पुच्छेज्ज पमादं वा विब्भमं व त्ति बूया । आसणगिहे पुच्छेज्ज ठाणमंतरेणं ति बूया। भोयणगिहे पुच्छेज्ज बलविवद्धि आरोग्गं च अंतरेणं ति बूया । सयणगिहे पुच्छेज्ज सरीरोवचयमंतरेणं ति बूया । हयगिहे पुच्छेज्ज पंथगमणमिस्सरियसाधारणं ति बूया । गयसालाय पुच्छेज्ज संगामविजयसाधारणं रायमंतरेणं ति बूया । वत्थगिहे पुच्छेज्ज सोभग्गमंतरेणं ति बूया । रसालायं पुच्छेज्ज संगामविजय-रतिविहारमंतरेणं ति बूया । 10 पुष्फगिहे पुच्छेज्ज आभरणालंकारमंत]रेणं ति बूया । जूतसालायं पुच्छेज्ज उवधि-णिकडिपीलामंतरेणं ति बूया । पाणवगिहे पुच्छेज्ज ववहारमंतरेणं ति बूया । लेवणगिहे पुच्छेज्ज कलमंतरेणं ति बूया । तलगिहे पुच्छेज्ज उवदेसगुरुसंजोगमंतरेणं ति बूया। सेवणगिहे पुच्छेज्ज वाधुज्जसंरोधमंतरेणं ति बूया । उज्जाणगिहे पुच्छेज्ज कामरतिसहाससंपयुत्तं ति बूया । जाणसालाय पुच्छेज्ज भयसंरोधमंतरेणं ति बूया । आएसणे पुच्छेज्ज सरीरस्स कम्मलाभमंतरेणं ति बूया । मंडवे पुच्छेज्ज दारिद्दमंतरेणं ति बूया । लेवणगिहे पुच्छेज्ज महाजणसाधारणपरिरक्खणायं ति बूया । वेसगिहे पुच्छेज्ज 15 वयकम्मवंचणयाय त्ति बूया । कोट्ठाकारे पुच्छेज्ज धण-धण्णमंतरेणं ति बूया । पवासु पुच्छेज्ज दाणविसग्गमंतरेणं ति बूया । सेतुकम्मेसु पुच्छेज्ज परलोगगमणमंतरेणं ति बूया । जणके पुच्छेज्ज दाससंखरणामंतरेणं ति बूया । ण्हाणगिहे पुच्छेज्ज सरीरसोक्खमंतरेणं ति बूया । वच्चगिहे पुच्छेज्ज अमणुण्णसंजोगमंतरेणं ति बूया । अंगणगिहे पुच्छेज्ज अंगणगतं सम्मोहप्पयुत्तं ति बूया । आतुरगिहे पुच्छेज्ज वाधिपरिमोक्खमंतरेणं ति बूया । संसरणगिहे पुच्छेज्ज रायत्थविवादं व त्ति बूया । सुंकसालायं पुच्छेज्ज अत्थचिंतमंतरेणं ति बूया । करणसालायं पुच्छेज्ज आयुधेयमंतरेणं ति बूया । पणितगिहे 20 पुच्छेज्ज कुडुंबवद्धीमंतरेणं ति बूया । पुरोहडे पुच्छेज्ज संपेसणमंतरेणं ति बूया ॥ छ । सेसाणि गिहाणि पडिरूवपडिपोग्गलेहिं णातव्वाणि भवंति, तं जधा-आसणाणि पल्लत्थिकाओ आमासट्ठसतं अपस्सयाणि ठिताणि पुच्छिताणि वंदिताणि आगताणि संलाविताणि चुंबिताणि आलिंगिताणि उवदासिताणि णिवण्णाणि सेविताणि । जधा एताणि सव्वाणि आमास-सद्द-रूव-इंगितागारभावेहिं आधारयित्ता विण्णातव्वाणि भवंति, एवं पुच्छितज्झायो(ये) एतेहि ज्जेव सामास-सद्द-रूवपादुब्भावेहि आधारयित्ता विण्णातव्वाणि भवति ॥ ॥ पुच्छितनामऽज्झायो एकादसमो सम्मत्तो ॥ ११ ॥ छ । [बारसमो जोणीअज्झाओ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाए अंगविज्जाए जोणी णामऽज्झायो । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामि । [तं जहा-] तत्थ सव्वअपरिग्गहेसु सव्वपासंडगते सव्वपासंडोवकरणे सव्वधम्मपयुत्तगते सव्वधम्मोपगरणे य धम्मजोणी बूया । तत्थ सव्वमहापरिग्गहेसु सव्वअत्थ ८ गते सव्वत्थ वैत्तमाणेसु थी-पुरिसेसु सव्वत्थसव्वागते य अत्थजोणी 30 बूया । तत्थ सव्वसामेसु सव्वारामगते सव्वसामोयिगते सव्वकामोचारगते य गंध-मल्ल-हाणा-ऽणुलेवण-आभरणगते १ कारेति बूया सं ३ पु० ॥ २ संधण' हं० त० विना ॥ ३ वावज्ज हं० त० ॥ ४ झवण हं० त० ॥ ५ म्मविवण्णया हं० त० ॥ ६ ज्ज वधणमंत हं० त० ॥ ७ "म्मे पु. हं० त० ॥ ८ 'त्ता णातव्वं भवति हं० त० ॥ ९ पुच्छितज्ज्झाओ ॥छ ॥ हं० त० विना ॥ १० 'क्खयिस्सामि हं० त० ॥ ११ र एतच्चिान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ १२ वण्णमा हं० त० विना ॥ १३ स्थगसव्वगए हं० त० ॥ १४ रामिगते हं० त० विना ॥ १५ सव्वसम्मोईगते हं० त० ॥ . Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमो जोणीअज्झाओ १३९ य कामजोणि बूया । तत्थ पुण्णेसु उद्धभागे य विवद्धमाणेसु य थी - पुरिसेसु सव्वविवद्धीयं र्जुत्तेसु विवद्धिं बूया । तत्थ तुच्छेसु अधेभागेसु हायमाणेसु य थी - पुरिसेसु सव्वहाणिसंपयुत्तेसु य हाणि बूया । तत्थ समागतेसु गत्तेसु य मल्लाभरणगतेसु य मेल्लोपकरणेसु य मिधुणचरेसु य सत्तेसु सव्वसंगमगतेसु य संगमजोणि बूया । तत्थ एकंगे गत्ते विखित्तेसु य एकाभरणे एकचारिस गत्तेसु विखिप्पमाणेसु सव्वविप्पयोगेसु विप्पयोगजोणि बूया । तत्थ पसण्णेसु गत्तेसु सव्वपसण्णगतेसु य सव्वमित्तगए य सव्वसम्भोयीगते य मित्तजोणि बूया । तत्थ अप्पसण्णेसु गत्तेसु सव्वअप्पसण्णगते 5 यसैव्वअमित्तगए य सव्वअत्थगए य सव्वजोधगते य सव्वसंगामणामधेज्जोदीरणे उण्हससुक्कागउलूगगते अहि-णउलगगते विवादजोणि बूया । तत्थ णीहारेसु चलेसु गाम-नगर-निगम - जणपय-पट्टण - णिवेस- सेण्णाखंधावारअडवि—पव्वयदेस—संजाण - जाणगते दूत - संधिवाल - पावासिकगते उदाहिते पावासिकजोणि बूया । एतेसामेव ठितसाधारणेसु पवुत्थजोणि बूया । एतेसामेव आहारोदीरणे आगमणजोणि बूया । तत्थ णीहारिसु मुदितेसु कण्हेसु णिग्गमजोणि बूया । तत्थ आहारेसु मुदितेसु आगमजोणि बूया । तत्थ उत्तमेसु रायोवकरणेसु रायजोणि बूया । तत्थ उत्तमेसु रायाणुपायजोणि 10 बूया । इस्सरेसु रायपुरिसागतेसु य रायपुरिसजोणि बूया । तत्थ दढेसु सव्ववणियगतेसु य वणियप्पधजोणि बूया । तत्थ चलेसु सव्वकारुगगते य सव्वकारुकोपकरणे कारुकाजोणि बूया । तत्थ सव्वअणूस संव्वकसेसु सव्वकासिकोपकरणे सव्वत्थीगगते य अणुयोगजोणि बूया । तत्थ उद्धं णाभिउवकरणगते य सव्वअज्जगते य सव्वअज्जोपचये अज्जजोणि बूया । तत्थ अधेणाभिगते उड्डुं जाणुगते सिस्सजोणि बूया । तत्थ पाद - जंघा - पेस्स - पव्वपेस्सगते य पेस्सजोणि बूया । तत्थ सोत्तपडिप्पिधाणे णेत्तपडिप्पिधाणे मुहपडिप्पिहाणे अप्पाणपडिप्पिहाणे से पेंडिप्पिधाणे सव्वबंधेसु य बंधणजोणि 15 बूया । तत्थ एतेसु सव्वेसु आहारसंपयत्तेसु बंधणजोणि बूया । तत्थ एतेसु चेव णीहारेसु य जुत्तेसु य चलेसु सैव्वमोक्खेसु य मोक्खजोणि बूया । तत्थ मुदितेसु सव्वसाधारणेसु य आरोग्गपवति बूया । तत्थ उत्तमेसु आहारसंपउत्तेसु मुदितजोणि बूया । तत्थ उद्धंभागेसु आहारेसु उवद्दुतेसु पीडिते साधारणे आतुरजोणि बूया । तत्थ पच्छिमेसु णिम्मट्ठेसु अधोभागेसु य मरणजोणि बूया । तत्थ उद्धंभागेसु आहारसंपयुत्तेसु य सयितव्वसाधारणेसु य सयितव्वजोणि बूया । तत्थ सव्वत्थ छेदणेसु य छिण्णजोणि बूया । तत्थ सोत्तपडिप्पिधाणे णेत्तपडिप्पिधाणे मुहपडिप्पिधाणे अप्पाणपडिप्पिधाणे णिधाणपडि- 20 प्पिधाणे णिक्खित्त-पम्हुट्ठगते य णट्टजोणि बूया । तत्थ सव्वत्थ आहारगते विणयजोणि बूया । तत्थ सव्वबंभेज्जेसु बंभचारिगजोणि बूया । तत्थ सव्वबंभणेसु सव्वबंभणोपकरणे य बंभणजोणि बूया । तत्थ सव्वखत्तेयेसु आयुधभंडे य खत्तियजोणि बूया । तत्थ सव्ववेस्सेज्जेसु वेस्सजोणि बूया । तत्थ [ सव्व ] सुद्देज्जेसु सुद्दजोणि बूया । तत्थ सव्वबालेयेसु बालजोणि बूया । तत्थ सव्वजोव्वणत्थेसु जोव्वणत्थजोणि बूया । तत्थ सव्ववुड्ढेसु वुड्ढजोणि बूया । तत्थ सव्वमज्झिमेसु मज्झिमणि बूया । तत्थ सव्वउत्तमेसु उत्तमजोणि बूया । तत्थ सव्वपच्चवरेसु पच्चवरजोणि बूया । तत्थ सव्वअब्भंतरेसु 25 अभंतरजोणि बूया । तत्थ सव्वबाहिरेसु बाहिरजोणि बूया । बाहिरब्धंतरेसु सकपरक्कसाधारणेसु साधारणजोणि बूया । तत्थ णपुंसकेसु णपुंसकजोणि बूया । तत्थ पुण्णामेसु पुण्णामजोणि बूया । थीणामेसु थीणामजोणि बूया । तत्थ पुरत्थिमेसुँ गत्तेसु अणागतेसु य सद्देसु अणागतजोणि बूया । तत्थ पच्छिमेसु गत्तेसु अतिवत्तेसु य सद्देसु अतिक्कंतजोर्णि बूया । [तत्थ] वामदक्खिणेसु गत्तेसु वत्तमाणेसु य सद्देसु वत्तमाणजोणि बूया । तत्थ पुरत्थिमेसु [गत्तेसु] पुरत्थिमजोणि बूया । तत्थ उत्तरेसु गत्तेसु उत्तरजोणि बूया । तत्थ पच्छिमेसु गत्तेसु पच्छिमजोणि बूया । तत्थ दक्खिणेसु गत्तेसु 30 दक्खिणणि बूया । तत्थ दक्खिणपच्छिमेसु गत्तेसु दक्खिणपच्छिमजोणि बूया । तत्थ पच्छिमुत्तरेसु गत्तेसु पच्छिमुत्तरजोणि बूया । तत्थ पुव्वुत्तरेसु गत्तेसु पुव्वुत्तरजोणि बूया । तत्थ पुव्वदक्खिणेसु गत्तेसु पुव्वदक्खिणजोणि बूया । [ तत्थ ] १ जुद्धे सप्र० ॥ २ मलोप हं० त० विना ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ रणे अण्हसमुक्काकडल्लगगते हं० त० ॥ ५ 'सुण्णा' हं० त० ॥ ६ सव्वकेसेसु हं० त० ॥ ७ जाणगते सि० विना ॥ ८ तं पाद ० ॥ ९ गते या पेयस्सजो हं० त० वि ॥ १० धाणे घाणपडिप्पिधाणे मुह हं० त० सि० ॥ ११ पप्पडिहाणे हं० त० ॥ १२ सव्वसोक्खेसु य सोक्ख हं० त० विना ॥ १३ 'सु अत्थेसु अणा हं० त० विना ॥ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० अंगविज्जापइण्णयं उपरिट्टिमे उपरिट्ठिमजोणि बूया । तत्थ हेट्ठिमेसु हेट्ठिमजोणि बूया । तत्थ आहारेसु आहारजोणि बूया । [ तत्थ] णीहारेसु णीहारजोणि बूया । तत्थ आहारणीहारेसु आहारणीहारजोणि बूया । तत्थ णीहाराहारेसु णीहाराहारजोणि बूया । तत्थ पाणजोणियं पाणजोणि बूया । तत्थ धातुजोणीयं धातुजोणीं बूया । तत्थ मूलजोणियं मूलजोणि बूया । तत्थ सव्वसामेसु आभरणजोणि बूया । तत्थ अणूसु धण्णजोणि बूया । तत्थ तणूसु वत्थजोणि बूया । तत्थ गहणेसु रेण्णजोणि बूया । 5तत्थ उपग्गहणेसु आरामजोणि बूया । तत्थ उत्तमेसु उत्तमजोणि बूया । तत्थ अधमेसु अधमजोणि बूया । तत्थ उणतजोणि बूया । तत्थ णिण्णेसु णिण्णजोणि बूया । तत्थ रसेसु रसजोणि बूया । तत्थ वण्णेसु वण्णजोणि बूया । [तत्थ] गंधेसु गंधजोणि बूया ।तत्थ छहिं उडूहिं उडुजोणि बूया । तत्थ अब्भंतरामासे 04 सव्वम्मि Do सव्वमत्थि त्ति बूया । तत्थ बाहिरामासे सव्वम्मि सव्वं णत्थि त्ति बूया । तत्थ सव्वेहिं इंदियेहिं इंदियत्था विण्णातव्वा भवतीति ॥ ॥ जोणी णामऽज्झायो बारसमो सम्मत्तो ॥ १२ ॥ छ ॥ 10 [तेरसमो जोणिलक्खणवागरणज्झायो ] महाविद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय जोणिलक्खणवागरणो णाऽज्झायो । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामि । तं जधा - तत्थ तिविधा जोणी सज्जीवा १ णिज्जीवा २ सज्जीवणिज्जीवा ३ चेति । तिविधं लक्खणं- दीणोदत्तं १ दीणं २ उदत्तं ३ चेति । तत्थ इमाणि उदत्ताणि - उत्तमाणि पुण्णामाणि 15 दढाणि दक्खिणाणि सुक्काणि आहारीणि दीहाणि थूलाणि पुधूणि मैधंताणि मंडलाणि लोहिताणि परिमंडलाणि थलाणि मोक्खाणि पसण्णाणि उच्चाणि पुण्णाणि आयुजोणीयाणि वट्टाणि अग्गेयाणि हिदयाणि पत्तेयाणि दंसणीयाणि, उदत्तलक्खणाणि वक्खाताणि १ । तत्थ इमाणि दीणलक्खणाणि - णपुंसकाणि चलाणि लुक्खाणि णीहारीणि हस्साणि किसाणि तिक्खाणि दहरचलाणि मताणि णिण्णाणि वट्टाणि अप्पसण्णाणि तुच्छाणि अणूणि वाउजोणीकाणि मताि अदंसणीयाणि इति दीणाणि २ । तत्थ इमाणि दीणोदत्ताणि - थीणामाणि समाणि दहरत्थावरेज्जाणि गहणाणि उपग्गहणाणि 20 तणूणि अंताणि अंतिमदीणोदत्ता सद्द-रस-गंध-फासा चेति दीणोदत्ताणि भवंति ३ । तत्थ चउव्विधा पुच्छणट्ठा भवंति - अत्थाणुगता १ [ कामाणुगता २] धम्माणुगता ३ वीमंसाणुगता ४ चेति । दीणोदत्ता सेवते सततसद्दाणि दीणाणि वा उदत्ताणि वा दीणोदत्ताणि वा, दीणोदत्तो वा सेवते घायते गंधाणि दीणाणि वा उदत्ताणि वा दीणोदत्ताणि वा, उदत्तो वा दीणो वा दीणो उदत्तो वा सेवते चक्खुतो रूवाणि दीणाणि वा उदत्ताणि वा दीणोदत्ताणि वा, दीणो वा उदत्तो वा सेवते तयतो फासाणि दीणाणि वा उदत्ताणि वा दीणोदत्ताणि वा । दीणो 25वा उदत्तो वा दीणोदत्तो वा सेवते यं तत्थ पढमं भवति जत्थ भावोऽणुरज्जति तेण तं णिद्दिसे । पढमं च से पडिपोग्लो तत्थ वेत्तणइंदियत्थेसु य इंदियपण्णाय उवधारयित्ता ततो बूयांगचितओ । उदत्तो उदत्तागारो विण्णातव्वो, दीणोदत्तागारो विण्णातव्वो, ० उदत्तो दीणागारो विण्णातव्वो Do । तत्थ पण्णापरं बालो बालधिप्पायो विण्णातव्वो, बालो तरुणाधिप्पायो विण्णातव्वो । तत्थ सव्वत्थो दुविधो पुच्छणट्ठो दीणोदत्तो चेति । तत्थ इमाणि उदत्तस्स णिव्वत्तिकारणाणि भवंति— तुट्टं मं पुच्छति, पसण्णं मं पुच्छति, पीणितं मं पुच्छति, आरोगं मं पुच्छति, अविक्खित्तं मं पुच्छति, उदत्तं मं पुच्छति, 30 सहरिसं मं वदति, बहुम Do तं ति मं उदत्तवत्थाभरणो उदत्तमल्लाणुलेवणो उदत्तवेसालंकारो, उदत्तसयणासो १ रत्तजोणि हं० त० विना ॥ २ अवमेसु अवम हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४० Do एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ५ दीणाणि हं० एव ॥ ६ महंताणि हं० त० ॥ ७ वा सेवते वा सेवते सं ३ पु० ॥ ८०० एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ९ पेक्खति हं० त० ॥ एतच्चिान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ १०० Do Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमो जोणिलक्खणवागरणज्झायो १४१ दक्खिणायतं णिविट्टो उज्जुर्मुहो पेक्खति, उज्जुमुक्खो उल्लोकेति चतुरक्खि वंदति, पूर्येतो वा पुच्छति, अवत्थितं अब्भुप्पवति उम्मज्जति अब्भुत्तिट्ठति, उदत्ते वेसे उत्ते गंधे जण्णे वा छणे वा उस्सये वा उदत्ते समाये वा उदत्ते पडिपोग्गले वा उदत्ते सद्द - रूवम्मि रस-गंध-फासे णिमंतणम्मि य आगमे भक्ख-भोज्जआमंतणम्मि य । तत्थ इमाणि आहारलक्खाणि भवंति, तं जधा-पवासागमणं कण्णाय अभिवहणं अत्थस्स विविधस्स लाभं धणस्स लाभं कामलाभो विविधविज्जालाभो जं च अण्णं पसत्थं पस्सेज्ज तस्स सव्वस्स लाभो भविस्सति त्ति बूया । तत्थ उदत्तस्स पुच्छणट्ठो 5 भवति एक्कसिरीयं लाभो त्ति पुरिसस्स लाभो, पुरिसस्स इत्थीलाभो हिरण्णस्स लाभो वत्थलाभो अण्णलाभो Do पाणलाभो धातगलाभो इस्सरितलाभो उत्तमजोणीयं आमासो आहारम्मि य उत्तमे । पुण्णामधेज्जे सुक्के [य] दढे णिद्धे य लोहिते । उदत्तेसु असणलाभे य वत्थे आभरणेसु य ॥ १ ॥ गंध - मल्लेसु फासे य सद्द-रूवे य बाहिरे । एरिसे उत्तमे दित्ते इस्सरियलाभं वियागरे ॥ २ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुण्णे आगमम्मि य । अमणुण्णे सद्द - रूवम्मि इस्सरिये चलणं धुवं ॥ ३ ॥ [.... | मणुणे सद्द - रूवम्म] रस - गंधे य उत्तमे ॥ ४ ॥ उत्तमेसु य फासेसु तज्जातपडिपोग्गले । धुवो भूमीय लाभो तधा चेव उ पेसणे ॥ ५ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुण्णे य आगमे । णिहुते य किलिट्ठे [य] भूमीय चलणं धुवं ॥ ६ ॥ कण्णा गंडा उरं ओट्ठा दंता अंगुट्ठके तधा । बाहूदरे य पादे य पुरिसणामं च जं भवे ॥ ७ ॥ एतेसु सद्द-रूवेसु आहारेसु य कित्तिते । हसिते णट्टे य गीये य वादिते कामसंसिते ॥ ८ ॥ मधुरे आलाप-संलावे आसिते मदणे अय । सुगंधे ण्हाण-मल्लम्मि गंधम्मि असुगंधिगे ॥ ९ ॥ • अ॑सुगंधि Đ० अणुलेवणे सव्वाभरणे (?) । अतिमासे य सव्वत्थ गोज्झस्स चेव दंसणे ॥ १० ॥ पाणिणा पाणलाभम्मि सिचकतस्स मुंचणे । एरिसे सद्द - रूवम्मि पुरिसलाभो थिया भवे ॥ ११ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुण्णे आगमम्मि य । अमणुण्णे सद्द - रूवम्मि धुवो से असमागमो ॥ १२ ॥ कण्णपाली भुमा णासा जिब्भा गीवा तधंगुली । सोणी णाभी य कुक्खी य अरहस्साणि य आमसे ॥ १३ ॥ 20 अतिमासे य सव्वम्मि वियागरे वेसकम्मि य । अलंकारे य सव्वम्मि सव्वेसाऽऽभरणेसु य ॥ १४ ॥ हाण - मल्लेसु गंधेसु सुगंधे अणुलेवणे । कामुके कामसंलावे उम्मिते गीत - वादिते ॥ १५ ॥ पारावत—चक्कवाया य हंस-कागं च किण्णरा । बिपदा चउप्पदा वा वि जे वऽण्णे मिधुणचारिणो ॥ १६ ॥ मधुरे आलावसंलावे कामस्स अणुलोमके । आलिंगिते चुंबिते य सामग्गीय समागमे ॥ १७ ॥ वधुज्जभंडकपरिकित्तणाय तलियं ति विवण्णके वा । मणुण्णे सद्द-रूवम्मि रस-गंधे य उत्तमे ॥ १८ ॥ 25 फासे य मणुण्णम्मि आहारे य अणुमते । पडिपोग्गलेसु एतेसु थिया लाभो ति णिद्दिसे ॥ १९ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुण्णे आगमम्मि य । णिम्मट्ठे णिट्टुते लित्ते ण थिया य समागमो ॥ २० ॥ पासाणं सक्करं लोणं [तधा] रयतमंजणं । दंतसिप्पिपडलं... . अट्ठिअक्खते ( ? ) ॥ २१ ॥ मणिरूवालिका लोहं हिरण्णपडिपोग्गले । आमासे य मणुण्णाणं [.. उत्तमम्मि य आमासे [. |] उदत्तम्मि य पुच्छंते हिरण्णलाभं धुवं वदे ॥ २३ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुणे आगमम्मि य । णिम्मट्ठे णिहुते चलिते णासो होति हिरण्णके ॥ २४ ॥ लक्खा हरिद्दा मंजिट्ठा हरिताल मणस्सिला । कोरेंटेक सिरियकं मणोज्ज णुत्तमालकं ॥ २५ ॥ ॥ २२ ॥] १ मुह पेक्खति सप्र० ॥ २ अब्भप्पध उम्म हं० त० विना ॥ ३ इत्थीहिर हं० त० ॥ ४० Do एतच्चिान्तर्गत: पाठ: हं० त० नास्ति ॥ ५ असुगंधिम्मि हं० त० विना ॥ ६०८ Do एतच्चिन्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ७ गीवा य अंगुली हं० त० ॥ ८ अहरस्साणि हं० त० ॥ ९ मणुस्साणं सप्र० ॥ १० अमणुण्णम्मि य आगमे हं० त० ॥ ११ टकेसरियकं सि० ॥ 10 15 30 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ अंगविज्जापइण्णयं अग्गेयाणि य अग्गी य जिब्भाणिटुं च सप्पभं । णिद्ध-लोहितके दव्वे सुवण्णपडिपोग्गले ॥ २६ ॥ एतेसु सद्द-रूवेसु मणुण्णाणं च आगमे । उदत्तम्मि य पुच्छंते धुवो लाभो सुवण्णके ॥ २७ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुण्णे आगमम्मि य । णिम्मढे णिढ़ते चलिते धुवो णासो सुवण्णके ॥ २८ ॥ धणं पुरिसो गेण्हित्ता गोमयं उदकमट्टिका । पुण्णे णिद्धे सुहामासे आहारे उत्तमम्मि य ॥ २९ ॥ .............. I] तिण-तुस-करीसाणि मुहं च परिमद्दति ॥ ३० ॥ आहारम्मि य सव्वम्मि तज्जातपडिपोग्गले । रसाणं दंसणे उदिते पीणियस्स ये सुंछणे ॥ ३१ ॥ एतेसु सद्द-रूवेसु मणुण्णाणं च आगमे । धातकं अण्णलाभं च एतस्स दंसणे धुवो || ३२ ॥ अण्ण-पाणे विसंजुत्ते बहुखित्तपिपासिते । जायमाणे अलाभम्मि परिविटुं भाइतं ति वा ॥ ३३ ॥ अण्ण-पाणस्स णीहारे अमणुन्ने आगमम्मि य । छातकं अण्ण-पाणं च धुवं णस्थि वियागरे ॥ ३४ ॥ दारकम्मि गिहीतम्मि अक्खिम्मि अंजितम्मि य । दारकाणं च कीलणके दारकाभरणे तधा ॥ ३५ ॥ वच्छके पुत्तके चेति पोतके पिल्लके तधा । सिंगके [तण्णके व ति] घत-दुद्धदरिसणे ॥ ३६ ॥ पुप्फे पवाले तरुणे विरूढे तरुणंकुरे । जोणिवालिकं दिट्ठा पुन्नामेसु बालको ॥ ३७ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुण्णाणं च दरिसणे । णिम्मढे णिट्टते चलिते पुत्तणासं वियागरे ॥ ३८ ॥ चतुप्पदं णामे दुप्पदे चतुप्पयं उवकरणे । चतुप्पददरिसणे वा गहणे चेव वाहिते जोइतम्मि य ॥ 15 एतेसु सद्दरूवेसु मणुण्णाणं च आगमे । उदत्तम्मि य पुच्छंते धुवो लाभो चतुप्पदे ॥ ३९ ॥ एतेसु चेव णीहारेसु अमणुण्णाणं च आगमे । णिम्म? णिट्ठते चलिते धुवो णासो चतुप्पदे ॥ ४० ॥ चलाणि मुसलं सुप्पं पीढकं पडाका झयो । पाद-ऽच्छि-पाणि-घटको केसा सोपाणपादुका ॥ ४१ ।। पादपुंछणं उपाणहा आभरणं सव्वपादोवकं च यं । उरुणीं चलोढो वणिसया.........उक्खली (?) ॥ ४२ ॥ ........... 1] उत्तमम्मि य पुच्छंते पेस्सलाभं धुवं वदे ॥ ४३ ।। एतेसामेव णीहारे अमणुण्णे य आगमे । णिम्म? णिट्ठते चलिते पेस्सणासं धुवं वदे ॥ ४४ ॥ पासाण मट्टिया लेटुं काकवालं पिधुला सिला । सव्वलोहे य पुधुले खेत्त–वत्थुपरिग्गहे ॥ ४५ ॥ .......... । ............] अंत्थुते पुधुले दढे ॥ ४६ ॥ उदगम्मि य आमासे सद्द-रूवे य उत्तमे । उदत्तम्मि य पुच्छंते वत्थुलाभं वियागरे ॥ ४७ ॥ G एतेसामेव णीहारे अमणुण्णाणं च आगमे । णिम्मद्वे ट्ठिते चलिते वत्थुणासं वियागरे ॥ ४८ ॥ णवधम्मपलासाणि वक्कला कुसुमालिका । चीरं च वासणं चेव पत्तुण्णा वालकाणि वा ॥ ४९ ॥ उण्णरूवं च कप्पासं तिदं अवकेसु य । वेल्लिका वक्कभंडं च वित्तम्मि अणूसु य ॥ ५० ॥ एएसु सद्द-रूवेसु मणुण्णाणं च आगमे । उदत्तम्मि य पुच्छंते वत्थलाभं वियागरे ॥ ५१ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुण्णाणं च आगमे । णिम्म? णिट्ठते चलिते वत्थहाणि च णिदिसे ॥ ५२ ॥ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे दक्खिणामासे सव्वपणितगते सव्वसिप्पिया30 तणुगते सव्वभंडगते सव्वसिप्पोपकरणे सव्वसिप्पिगदंसणे कारुकसंलापकम्मि किट्टिते सुगयपडिच्छत्ते उदत्तसिप्पिकामासदरिसणे । १य मुंछणे सं ३ पु० ॥ २ कायर्क हं० त० ॥ ३ "णिचालिकं दिट्ठा हं० त० विना ॥ ४ पडको झयो हं० त० विना ॥ ५ रुणी वालो दोवणि' हं० त० ॥ ६ णिढ़ते णिते चलिते सं ३ पु० सि० त० । णिट्टए चलिए चलिए हं० एव ॥ ७ पासाणि हं० त० ॥ ८ ‘ग्गहे ॥ ४५ ॥ अत्थुते पुधुले चेव दढे य उदरम्मि य । आमासे सद्द-रूवे य उत्तमे य विसेसओ । उदत्तम्मि य पुच्छंते । सि० ॥ ९ अत्युते थावरे पुधुले दढे हं० त० ॥ १० हस्तचिह्नान्तर्गत: श्लोकसन्दर्भः हं० त० एव वर्तते ॥ ११ "म्मि कट्ठिते सि० । १२ सुपडिच्छंते सि० ॥ सुपडिसुंते सं ३ पु० ॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमो जोणिलक्खणवागरणज्झायो एते सद्दपडिरूवेसु मणुण्णाणं च आगमे उदत्तम्मिय पुच्छंते आहारम्मि य पुच्छिते । एतेसु सद्द-रूवेसु कम्मलाभं वियाणिया ॥ ५३ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुण्णम्मि य आगमे । णिम्मट्ठे णिहुते चलिते कम्मणासं वियागरे ॥ ५४ ॥ अब्धंतरामासे णिद्धामासे पुण्णामासे [पुण्णामधेज्जामासे] दक्खिणामासे अवस्थित - गंभीर थिमिते आवग्गिते अदीणसत्तसव्वणाणगकित्तणे लोक - वेय-सामयिके आभिरामिके अभिधम्मीयसुतणाणाणुकित्तणे लिपि-गणित-रूप- 5 रायविज्जापरिकित्तणे अंग-सैर लक्खण- वंजण-सुविण भोमुप्पात - अंतलिक्ख अणुकित्तणे । एते सद्दरूवे मणुणाणं च आगमे । उदत्तम्मिय आहारे पुच्छंते उदत्तम्मि य । विज्जालाभं वियाणीया उत्तमं जीविकारणं ॥ ५५ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुण्णाणं त आगमे । णिम्मट्ठे णिडुते चलिते विज्जाणासं वियागरे ॥ ५६ ॥ अब्भंतरामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे दक्खिणामासे पुप्फ-फलसद्द - उवभोगसद्द - ओसधी - 10 पडिपोग्गलेसु उदत्ते भक्ख - भोज्जे य पेज्ज - लेज्झकित्तणे य । १४३ एतेसु सद्द-रूवेसु आगमे उत्तमम्मि य । धातकं [ धण्णलाभं च] अत्थलाभं च णिद्दिसे ॥ ५७ ॥ एतेसामेव णीहारे अमणुणे आगमम्मि य । णिम्मट्ठे णिडुते चलिते छायकं तत्थ णिद्दिसे ॥ ५८ ॥ अब्भंतरामासे णिद्धामासे सुद्धामासे दढामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे उदत्तथी - पुरिसदंसणपादुब्भावे जणे वा छणे वा उस्सये वा समाये वा वाधुज्जे वा चोलके वा उपणये वा पसत्थ-विस्सत्थ-विमुत्तसुखासणभावे रतिहासे 15 पडिरूवेण णिद्दिसे । एतेसामेव णीहारे अमणुण्णाणं वा आगमे । णिम्मट्ठे णिहुते चलिते भयं तत्थ वियागरे ॥ ५९ ॥ तत्थ इमाणि दीणसत्थस्स णिव्वत्तीकारणाणि भवंति । तं जधा - दीणं मं पुच्छति, अगल्लं मं पुच्छति, छातकं मं पुच्छति, विखित्तं मं पुच्छति, दीणं मं उवसंकेति, दीणं पेक्खति, दीणमधीतं पुच्छति, दविणं बहुमन्नते, किलिट्ठ वत्था–ऽऽभरणं किलिट्ठमल्ला - ऽणुलेवणो अणज्जवेसा - ऽलंकारो अणुदत्तसयणा - ऽऽसणो वा उत्तराभिमुहासणाभिग्गहो वा 20 समुज्जतो णिवेट्टो तिरियम्मुहो ओलोकेंतो तिरियम्मुहो पेक्खति, नीयम्मुखो णिज्झायति, हेट्ठामुहो वंदर्ति, खिसतो अणवत्थितं पुच्छति, परावत्तोर्णिम्मज्जति ओणमति, अपसक्कंतो औभासिज्जते अणुदत्ते दीणपडिपोग्गले दीणे सद्द-रूवे रस-गंधफ अणुलेपणे सरे य सव्वम्मि दीणे अणुदत्ते किलिट्ठे दीणमाणसे । तत्थ इमाणि दीणलक्खणाणि भवंति । तं जधाअपसक्किते १ अपगते २ अपणामिते ३ णिम्मट्ठे ४ णिहिते ५ । णितिम्मिय आहारे अमणुण्णाणं च आगमे ॥ ६० ॥ णीहारे सद्द-रूवाणं फासे गंधे रसम्मि य । पवासागमणे चेव कण्णाणिव्वहणं च जं ॥ ६१ ॥ विविधो य अत्थपचयधम्मस्स कामुकस्स खओ सव्वेसिं चेव अत्थाणं अलाभो त्ति, तत्थ इमं दिसं पुच्छणट्ठा भवंति । जधा–अँप्पसत्थस्स अत्थस्स अलाभो विणासो विद्दवो विप्पयोगो आतंको आतुरो मरणं छविच्छेयो बंधी पवासगमणं पैराजयो धणापचयो अणावुट्ठी अकम्मं सोभा छातकं पतिभयं चेति । जं किंचि अप्पसत्थं सव्वं एतं दीणस्स पुच्छमाणेसु पयुट्ठेसु पसुसु य णेकेर्सु जुद्धाय परिते भवे पडिते आहतम्मि य मुट्ठिणा भिउडीयं च वग्गणे अतिपातिते विवादे विग्गहे 30 त्ति य कलहं तत्थ वियागरे । उक्कंपिते झपिते खित्ते ओबाधितम्मि य संरुद्धे उपधावंते य रोदंते कलहं धुवं । १ लोकवेसाम सं० ३ सि० पु० । लोकएसाम हं० त० ॥ २ आभिध हं० त० ॥ ३ 'सरक्खण" हं० त० विना ॥ ४ धातकं पुत्तलाभं च अत्थ सि० ॥ ५ दीणमत्थ हं० त० विना ॥ ६ कर्मति हं० त० ॥ ७ पुच्छा वंदति णं बहु हं० त० विना ॥। ८ 'दत्तसमणो वा उत्त सं ३ पु० ॥ ९ वामपुजुत्तो हं० त० ॥ १० तीरियम्मुखो हं० त० ॥ ११ ति खित्तो अण हं० त० ॥ १२ णिमज्जति हं० त० ॥ १३ आसासिज्जते हं० त० ॥ १४ अप्पसत्थस्स लाभो सि० ॥ १५ पराजणोपचयो सं ३ पु० ॥ १६ सु यद्वाय वरिए हं० त० ॥ १७ कलहो हं० त० ॥ 25 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ अंगविज्जापइण्णय वाचिवाकेचिको कलहो तालिते पहरेहि य । सत्थम्मि रुधिरुप्पाया छइच्छेदं वियागरे ।। ६२ ॥ संगामे जुद्धसद्देसु अब्भातलपलाइते । सन्नाहे जुद्धसंरागे [रा]यविज्जाभये भयं ॥ ६३ ॥ . जंघापादे य छत्तचोपादधिकाणि य । जुत्तं च जाणवासं च पंथं च पडिपोग्गलं ।। ६४ ॥ पवासगमणे सज्जे कंतार[ग]हणासु य । संपत्थिते पदग्गाहे भंडउग्गाहणासु य ॥ ६५ ॥ लोहेसु पव्वतग्गहणे तं तिरिययसितियं वा पत्थिताणं व दंसणे कोसल्लपुण्णपाते य पवासा आगतो चेति पसत्थपवासागामी य परातं च णिहिते । एतेस सद्द-रूवेसु पवासा आगमम्मि य । आहारेसु य सव्वेसु पवासा आगमं वदे ॥ ६६ ॥ थिते साधारणे चेव पयत्तं तत्थ णिद्दिसे । णीहारे य णिवट्टेति णटुं तत्थ विणिद्दिसे ॥ ६७ ॥ णीहारे य मणुण्णे य कण्णाणिव्वहणं वदे । आहारे य मणुण्णे य कण्णायावहणं वदे ॥ ६८ ॥ णीहारे चेव णीहारे दीणंसि मुदिते वि वा । पडिरूवेण पस्सित्ता ततो सम्मं वियागरे ॥ ६९ ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय जोणीलक्खणवागरणो णामऽज्झायो तेरसमो सम्मत्तो ॥ १३ ॥ छ । [चोद्दसमो लाभद्दारज्झाओ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय लाभद्दारं णामऽज्झायं । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामि। 15 तं जधा-अत्थदारं १ समागमदारं २ पयादारं ३ आरोग्गदारं ४ जीवितद्दारं ५ कामदारं ६ वुट्ठिदारं ७ विजयद्दारमिति ८ । अतो अत्थद्दारं । तं जधा-अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे मुदितामासे पुण्णामधेज्जामासे दक्खिणामासे आहारे उत्तमे पुष्फगते फलगते हरितगते परग्घवत्था-ऽऽभरण-मणि-मुत्त-कंचण–प्पवाल-भायण-सयण-भक्खभोयणगते परग्घउवकरणगते पहाणा-ऽणुलेवण-विभूसिय-पह?णर-णारिपादुब्भावे एताणि पेक्खमाणो वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेसि वा बाहिरे पादुब्भावे सद्द-रूवे पुच्छेज्ज अत्थलाभं वा खेमं वा पुत्तं वा णिचयं वा जाणं वा 20 जुग्गं वा सयणं वा आसणं वा भो(भा)यणं वा भूसणं वा जं किंचि पसत्थमत्थं पुच्छेज्ज लाभमंतरेण एवमेवं भविस्सति त्ति वत्तव्वं । एताणि चेव पेक्खमाणो वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेसिं वा बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज अत्थहाणि वा खयं वा विणासं वा किलेसं वा अणत्थसिद्धिं वा जं किंचि अप्पसत्थं पुच्छेज्ज अलाभमंतरेण भविस्सति त्ति बूया । एताणि चेव अक्कमंतो पुच्छेज्ज लाभमंतरेण ण भव(वि)स्सतीति बूया । एताणि चेव अक्कमंतो पुच्छेज्ज अलाभमंतरेण सव्वं भविस्सति त्ति बूया । एताणि चेव छिदंतो वा भिंदंतो वा < फालेंतो वा bo विवाडेतो वा णिक्खणंतो 25 वा पुच्छेज्ज अत्थहाणि वा खयं वा विणासं वा किलेसं वा अणत्थसिद्धि वा जं किंचि अप्पसत्थं पुच्छेज्ज अलाभमंतरेण तिउणो अवायो भविस्सतीति वत्तव्वं । एताणि चेव उवकडतो पुच्छेज्ज अत्थलाभं वा खेमं वा पुत्तं वा णिचयं वा जाणं वा जुग्गं वा सयणं वा आसणं वा भायणं वा भूसणं वा जं किंचि पसत्थमत्थं पुच्छेज्ज लाभमंतरेणं एवमेतं भविस्सतीति तिगुणो लाभो बूया । एताणि चेव उपकड्डेतो पुच्छेज्ज अत्थहाणि वा खयं वा विणासं वा किलेसं वा अणत्थसिद्धि वा जं किंचि अप्पसत्थं पुच्छेज्ज ण भविस्सतीति बूया । एताणि अपकड्तो पुच्छेज्ज एवमादीणं लाभो ण भविस्सतीति बूया, जं च पुच्छेज्ज तस्स तिगुणो अपायो भविस्सतीति बूया । एताणि चेव अपकड्ढेतो १पहरेट्ठिया हं० त० । परिहरेहि य सि० ॥२ संगामजुद्धे सद्देसु हं० त० ॥३ अब्भालतप सं०३ पु० सि० ॥ ४ छत्तावापाद' सि० ॥५ पोग्गला हं० त० ॥६ “हणेसुय हं० त० विना ।। ७ हणेतू तंतरियय हं० त०॥ ८ पत्थियणाण दंसणे हं० त० ॥ ९ सिते हं० त० ॥१० पयुत्तं हं० त० ॥११ अत्थं वा लाभं हं० त० सि० ॥१२ वा जोग्गं सि० विना ॥१३ एवमेयं भ हं० त० ॥१४ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठारसमो जीवितदारज्झाओ १४५ पुच्छेज्ज एवमादीणं लाभो ण भविस्सतीति बूया । एताणि चेव उपकड्डित्ता अपकड्डेज्जा ततो पुच्छेज्ज एवमादीणं पुव्वं लाभो - भवित्ता पच्छा अलाभो 2 भविस्सतीति बूया । एवमादीणि ज्जेव अपकड्वेत्ता उपकड्डेज्जा ततो पुच्छेज्ज पुव्वं अलाभो भविस्सति पच्छा लाभो भविस्सतीति बूया ।। ॥ इति लाभद्दारं ॥ १४ ॥ छ । [पन्नरसमो समागमद्दारज्झाओ] समागमदारं वक्खस्सामो । तं जधा-हंस-कुरस्-चक्कवाक-कारंडव-कातंब-काकाक-मज्जुकामिधुणचरेसु सत्तेसु मेधुणं समाचरतेसु तेसु आलिंगितं चुंबितं हसितं गीत-वादित-मदग्गहणे वधू-वरसंदंसणे सयणा-ऽऽसणसव्वसगुण-तिरिक्खजोणीउपचारे संकुणे णिदिसे चच्चर-मधापध-सव्वदारसमयतित्थोदुपाणआभोगपणितगते तेसं परिकित्तणासु सागर-णदी-पट्टण-गोत्तमेसु समागते सव्वसमागमागमगते य सव्वसंजोगगते सव्वहरिसपादुब्भावे एताणि पेक्खमाणो वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेसिं वा बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज समागमं वा सम्मोइं वा संपीति वा मित्तसंगमं 10 वा वीवाहं वा जं च किंचि पसत्थमत्थं पुच्छेज्ज समागममंतरेणं एवमेतं भविस्सतीति बूया ॥ ॥ समागमदारं ॥ १५ ॥ छ । [सोलसमो पयादारज्झाओ] 0000000 अध पयादारं वक्खस्सामो । तं जधा-दारकपादुब्भावे कीलणके दारकाण अभिणव्वे पुप्फ-फल-पवाल-परोहगते सप्पक-सीहक-वच्छवच्छके तरुणपादपके अण्णं वा यं किंचि बालकं बालसमाचारं वा एताणि पेक्खमाणो वा भासमाणो 15 वा आमसंतो वा एतेसं वा बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज पयामंतरेण पुच्छसीति वत्तव्वं, भज्जा ते भविस्सतीति बूया । एताणि चेव पेक्खमाणो वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेसिं वा बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे वा पुच्छेज्ज पयाविप्पयोगो ण भविस्सतीति बूया । उदरपडणं वा पुत्तमरणं वा जं किंचि अप्पसत्थं पुच्छेज्ज पेयाविप्पयोगो ण भविस्सतीति बूया । ॥ पयादारं सम्मत्तं ॥ १६ ॥ छ । [ सत्तरसमो आरोग्गदारज्झाओ] 00000000 आरोग्गदारं वक्खस्सामो-तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे मुदितामासे पुण्णामधेज्जामासे दक्खिणामासे उत्तमामासे पहट्ठपुष्फ-फलामासे परग्घवत्था-ऽऽभरणे भूसणगते अब्भुत्थिते उवविढे हसिते भणिते गीते वादिते अप्फालिते पेक्खिते गज्जिते मुदिते णारीगणसमुदिते पसु-पक्खिसंदंसणे उदग्गवत्था-ऽऽभरण-सयणा-ऽऽसणगते एवंविहसद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज आरोग्गं वा पमोदं वा सोमणसं वा जं किंचि पसत्थमत्थं पुच्छेज्ज आरोग्गमंतरेणं एवमेतं भविस्सतीति बूया । एताणि चेव पेक्खमाणो वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेसिं वा बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज 25 रोगं वा विणासं वा मरणं वा जं च किंचि अप्पसत्थं पुच्छेज्ज रोगमंतरेणं ण भविस्सतीति बूया ॥ ॥ आरोग्गदारं सम्मत्तं ॥ १७ ॥ छ । [अट्ठारसमो जीवितदारज्झाओ] 00000000 जीवितद्दारं वक्खस्सामो । तं जधा-तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामधेज्जामासे अणुपहुँतामासे आहारे उत्तमे सुपसण्णे सूरे उदग्गे उत्तम उपविट्टे उल्लोकिते हसिते उक्कडे गज्जिते अप्फालिते पच्छेलिए गीते 30 १ एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ २ मेज्जका हं० त० ॥ ३ सकुणणिद्दे चच्चरमहापध हं० त० ॥ ४ "समागमगते हं० त०॥ ५ पयामंतरेणं ण भवि हं० त० । पयाविप्पयोगेण भवि सि० ॥ ६ पेसिते हं० त०॥ ७ उक्कदिए गज्झिए हं० त० ॥ ८ अप्फाडिते पच्छलिए सं ३ पु० ॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 १४६ अंगविज्जापइण्णयं वादिते तल-ताल-फाससमुदिते णर-णारिपादुब्भावे सव्वत्थपरग्घगते सव्वणिच्च-धुवपादुब्भावे एताणि पेक्खमाणो वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेसिं वा बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज मरणं वा णिव्वाणं [वा] वहं [वा] बाहं वा जं किंचि अप्पसत्थं मरणमंतरेणं पुच्छेज्ज ण भविस्सतीति बूया । ॥ जीवितद्दारं सम्मत्तं ॥ १८ ॥ छ । [एगूणवीसइमो कम्मदारज्झाओ] 00000000 कम्मदारं णाम वक्खस्सामो । तं जधा-रायोपजीवीसु कारुकोपक्खरोपकरणेसु य उदग्गपुण्फ-फलगते पच्छेलिते मुदितणारि-णरगते यं किंचि पसत्थमत्थं पुच्छेज्ज पणियमंतरेण एवमेतं भविस्सतीति बूया । एताणि ज्जेव पेक्खमाणो वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेसं(सिं) वा बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज कम्महाणि वा कम्मणासं वा पणियविणासं वा जं किंचि अप्पसत्थमत्थं पुच्छेज्ज कम्ममंतरेण ण भविस्सतीति बूया ॥ ॥ कम्मदारं सम्मत्तं ॥ १९ ॥ छ । [वीसइमो वुट्ठिदारज्झाओ] 0000वुट्ठिदारं णाम वक्खस्सामो । तत्थ णिद्धामासे जलामा णस्संघिते मुत्त-वच्चकरणे सेदपरामासे उदगदंसणे उदगचरसत्तपादुब्भावे णावा-कोटिंब-डआलुए पदुमुप्पल-जलय-पुष्फ-फल-कंद-मूलसंदंसणे सव्वजलोवकरणे सव्वजलोपजीविसंदंसणे सव्वजलपादुब्भावे तेल्ल-घत-दुद्ध-मधुपाणगते वुट्ठि-थणित-मेहगज्जित-विज्जुतपादुब्भावे 15 णदी-समुद्द-कूप-तलाक-विकरण-पस्सवणोपलंभे एताणि पेक्खमाणो वा भासमाणो वा < आमसमाणो वा < एतेसि वा बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज वुढेि वा वासारत्तं वा उदकं वा सस्सणिप्फत्ति सस्स[संप]दं वा एवमादी यं किंचि पसत्थमत्थं पुच्छेज्ज वुट्ठीमंतरेणं एवमेतं भविस्सतीति बूया । एताणि ज्जेव पेक्खमाणो वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेसिं वा बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज दुवुद्धि वा अपग्गहं वा सस्सविणासं वा सस्सवापत्ति वा जं च किंचि अप्पसत्थं पुच्छेज्ज सस्समंतरेणं वासारत्तमंतरेण वा भविस्सतीति बूया ॥ ॥ वुट्ठिदारं ॥ २० ॥ छ । [एगवीसइमो विजयद्दारज्झाओ] 000000000 तत्थ विजयद्दारं णाम वक्खस्सामो । तं जधा-तालवेंट-भिंगार-वेजयंति-जयविजय-पुस्समाणव-सिबिकारधपादुब्भावे परग्घवत्थ-मल्लाभरणपादुब्भावे परग्घवत्थ-मल्ला-5ऽभरणअप्पडिहयसंख-भेरि-दुंदुभि-परसद्द-रूव-रस गंध-फासपादुब्भावे सेणालंभे अडवी-परर?-खंधावारणिज्जातलद्धअधिगते पमुदिते पादुब्भावे पुण्ण-सुद्ध-णिद्ध-दढ25 अब्भंतर-पुण्णामधेज्जामासे अपराजितसद्द-रूव-रस-गंध-फासपादुब्भावे पुच्छेज्ज विजयं वा पररट्ठमद्दणं वा सत्तुपराजय वा जं च किंचि पसत्थमप्पसत्थं वा पुच्छेज्ज विजयमंतरेणं एवमेतं भविस्सतीति बूया । एताणि ज्जेव पेक्खमाणो वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेर्सि ज्जेव बाहिरे सद्द-रूवपादुब्भावे पुच्छेज्ज रायमरणं वा रायहाणि वा रायविप्पलोवं वा रायभंगं वा संगामपराजयं वा जं किंचि अप्पसत्थमत्थं पुच्छेज्ज पराजयमंतरेण ण भविस्सतीति बूया । जधा पढमं पडलं परिवारितं तधा सव्वाणि पडलाणि परिवारेतव्वाणि ।। ॥ विजयद्दारं णामं ॥ २१ ॥ छ । [बावीसइमो पसत्थज्झाओ] 20 30 अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पसत्थं णामाज्झायं । तं खलु भो ! वक्खस्सामो । तं जधा-तत्थ कय-विक्कय-लाभसंपदाय कम्मागतलाभसंपदाय कित्ति-वंदण-माणण-पूयणासु उक्किट्ठपहट्ठसद्दपादुब्भावे १णिव्वाणं वा बांधवं वा जं हं० त० विना ॥२रेण भवि हं० त० विना ।। ३ णिदुद्वेणिस्सं हं० त० ॥ ४'कोट्टिमुआलुए हं० त० विना ॥ ५ "दुद्धमुद्धपाण' हं० त० विना ॥ ६ विकरपस्स हं० त० विना ॥ ७ एतच्चिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ८ खलु हो वक्ख हं० त० ॥ ९ “पदा-कित्ति' हं० त० विना ।। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावीसइमो पसत्थज्झाओ १४७ केसमोलिकरणे केसाभिवद्धणे कण्णाकण्णविवाहे अक्खलियसव्वविज्जापयोगसिद्धिसु खत्तियसोत्तिउपयोगे 'खितिउवचयसद्दपाउब्भावे इक्खुवण-सस्स-फल-हरियक-सस्साणं च दंसणे खेत्तसुभिक्ख-महाबंधुजणसमागम-वंदणेसु गेज्जर्कव्वपादबंधपट्टकव्वसंपूयणासे गोणा-वलक्ख-मिग-णस्-णारि-सयणरक्खासु गंध-मल्ल-भायण-भूसणसंजोयणासु घणविज्जुत-वच्छ-गोच्छक-जाणा-ऽऽसण-सयणे सव्वमिधुणचस्-कमलवण-भमर-विहग-दुमसमागमेसु घात-वध-बंधरोध-परिरोध-हासभाव-पेतपरिमोयण-दसणेसु घिसुम हेमंत-वसंत-सरद-पाउस-वासारत्तयतरासपूयणासु ओघट्टपरक्कमो- 5 सोपकमच्छदंसणे अग्घेयमणप्पसादणेसु घोडदाढिकरबंधणेसु घंटिक-चक्किक-सत्थिक-वेतालिक-मंगलवायणेसु यस्सकसमिद्धसासकगहणे अच्चापचच्चणगंध-मल्लाऽगरुभरणे चिरप्पवासगतसिद्धयत्तसंबंधिसमागमेसु भूताधिपच्चपुणोप्पत्तीसु चेतियमहामहिकतुरियसद्दसुती-दसणेसु चोरहितब्भट्ठ–ण?-पतिलाभणेसु चिंध?यकणकचीणकरघणोदीरणेसु छत्तोपाहणभिंगारसंपदाणेसु रच्छाहसंपदाहस्समुप्पत्तीसु छिंदति मासातिमासे इच्छूपपन्नहाससमुप्पत्तीसु छेगसमावयण-संपूयणाऽभिवंदणासु अच्छोदकउप्पण्णभापतिभंगदंसणासु छंदमणोरहसकपसत्थकमुपपत्तीसु जलभार्यणजलासयपूरणेसु जातकम्मादि- 10 पसत्थजलणपज्जालणेसु जीवित-धण-कण-कणग-रयण-भायण-भूसण-परिधाण-भवण-सुहसरणसंपदासु उज्जूअज्जवसाधुसंपूयणासु जेट्ठाणुजेट्ठसंथाणथावणासु जोति-जलण-विज्जु-वज्ज-मणि-रतणतप्पणासणेसु जम्मणपरिवंदणवालमंडलेसु अज्जजणसम्माणण-पूयणासु झाणसमाराधणसमारंभेसु झीण-परिक्खीण-विण?-पुणलाभ-पुराणणवीकरणेसु अज्झप्पगतिज्जखिप्पसंदंसणे आज्ञयणीयसामिसामिद्धयागपच्चवदाणासु झणितणीवारदसणे झंझणितभूसणणिस्सणसद्दे ततो पच्चवदाणे तणिते तिरिणे तुच्छापूरिते तेसं तेसं च भावाणं पसत्थाणं दंसणेसु अंतोमुहचुंबणे अंतद्विणा रंगसमापेण 15 थलज-जलजपुप्फ-फल-हरित-कंद-मूल-सस्सवतारणेसु थलपंथसलिलपंथभंडावतारणेसु थिताथितसद्द-सिद्धसाधुभुत्तगय-तुरय-वसभ–मुदितणस्-णारी-णट्ट-गीत-वादित भूसाससटुप्पत्तीसु थुति-संथक्-सिद्धकम्माणुकित्तणेसु अत्थेस्सरियभोगवद्धणेसु थोकाभिवद्धणे थंभासण-सयण-पुरिस-दुमसंसयेसु दद्दुम्मणे वा पिज्जमादीविगुणसंपयोगसिद्धीसु दुम-. भवण-तुरंग-पव्वतारोहणेसु उद्देस-देस-पुर-गामवेद्धणेसु संदेहधीवेसणेसु वदंसक-मुकुडकुंडला-ऽऽभरणविविधपिणेधणे वरतालघणे उद्धविते अधिज्जमाणे < उद्धज्जमाणे > उद्धे कते अणुमते धातदाणसंपदाणेण व कते मंडिते णिवेसिते 20 अणुच्चारिते अणंगजणसतपहिसमागमे अण्णोण्णसंपदाणेण आणंदितदंसणे पच्चग्गरूवजोव्वण-फल-हरितदंसणे बाहिरउक्कट्ठपहट्ठसद्दपादुब्भावे पीतिकरविहकसंकीलणेसु पुण्णभोयणेसु दंसणे पेंडिज्जमाणधण-रयण-पुष्प-फलदसणे बोधणे रुद्दोपघातकरजलजलणविचय-सव्वभयमोक्खणदंसणेसु पंचरस-वण्ण-फासोपपण्णघाणसुहमणुव्वेगदंसणेसु फलसंपदासु फासितसुत्तत्थपतिग्गहे फीतसव्वकित्तणदंसणेसु फुल्लतकमलुप्पलदसणे उड्डससंभमावक्कमेसु अड्डोदितहिट्ठसद्दसमुन्भवेसु अप्पंसितपरिक्कमसिद्धीसु बलि-मंगल-यागहरण-सेसापादुब्भावे वालालंकितवलवलकवाहणदंसणेसु पिवकतिसरिसरिस-25 कम्मसंपयुत्तेसु बुझंतकमलवणवखगमिगणरणारिदंसणेसु वेस्सप्पसादकरणे बोधिज्जमाणणरदेवतुरियणियणिस्सणेस बंधणागारमोक्खणेसु आभरणपिणिधणेसु भावपादुब्भावे अभिमुहपदक्खिणासणणिव्वसप्पतासु णिरिक्खणेसु भमुहु]क्खेपणे उब्भेदसमुब्भावे भोयणोक्कारणिस्सणे भंडकरंडगपतिपूरणदंसणे मत्तमातंगदंसणे णिस्सणे माणिज्जमाणे १ खत्तिउव' हं० त० ॥ २ 'कच्छपा सप्र० ॥ ३ पायवंचपव्वकट्टसंपू हं० त० ॥ ४ पट्टकव्यसं सं ३ पु० ॥ ५ सु णाणावल हं० त० ॥ ६ जाणसयणासणे हं० त० ॥ ७ 'दुगसमा सं ३ पु० । 'दुग्गसमा सि० ॥ ८ सणासु सं३ पु० ॥ ९ उग्घट्टपरक्कमोसाप” सं ३ पु० । उग्घुट्टपरक्कमासोप सि०॥ १० 'वासागयासिद्ध हं० त०॥ ११ सु धुवाधि हं० त० ॥ १२ सुवीदंस हं० त० विना ॥ १३ चिंतठय सं ३ पु० ॥ १४ कवीणयकर हं० त० ॥ १५ सुत्तत्थोपहाण सि० ॥ १६ “संपादणेसु हं० त० ॥ १७ इच्चूपप हं० त० विना ॥ १८ 'वंदणेसु हं० त०॥ १९ "पत्तिभंग हं० त० विना ॥ २० 'त्थसमुप सि० ॥ २१ “णजलजलास' हं० त० विना ॥ २२ धणकणग' सं ३ पु० सि० ॥ २३ उज्जअज्जव हं० त० ॥ २४ ‘णकालमंडणेसु हं० त० ॥ २५ ‘सु ज्झासियणी हं० त० ॥ २६ अंतहिणा हं० त० ॥ २७ ‘सायसह हं० त० ॥ २८ "माणे दीवि' हं० त० ॥ २९ वद्धाणे हं० त० ॥ ३० णे धर हं० त०॥ ३१ एतच्चिह्नार्गन्तः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ३२ "लयाह हं० त० विना ॥ ३३ तचलवलवकवाहाण' हं० त० ॥ ३४ 'कतिसरिसकम्म' हं० त० ॥ ३५ "ज्जमाणे णर' हं० त० ॥ ३६ ‘यणिम्मढेसु हं० त० ॥ ३७ ‘गस्स पति हं० त० ॥ Jain Education अंग०.१५ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ अंगविज्जापइण्णयं मुदितणट्ट-गीत-वाइयसंदंसणे अमेज्झपक्खालियसुद्धदंसणे अमोघविचेट्टिते मंचातिमंचकरणेऽधिरोहणे जलधरमधुरगयमत्तजयघोसणिग्धोसे यत्ताणुयत्तणिद्देसपतिछंदे वइस्-मणि-प्पवाल-मुत्तासंजोयणे जूव-चिति-सेतुबंधणमायतणकिरियासु जे य पसत्था सकंसि देहंसि फंदरेदे योगियोगसिद्धिसु यण्णेज्जामासे यण्णदसणे हस्सवद्धणे रासिवद्धणे रिपुहडपच्चाणयणे रुहविरुद्धदसणे रोयितपुरभावणप्पवेसणे सुरोरूवलणरिंदसत्थसंसिद्धसमुप्पयाणेसु रम्मुज्जाण-सलिलयत्तागमणप्पवेसणेसु 5 अलसदसणे उल्लालिते आलिंगिते लुलितप्पसादिते उल्लंहिते उल्लोकिते उल्लंघिते वरवधूकित्तणे वारमोक्खाधिकारसंदसणे विलंघिते वूहिते उव्वेहासिते वोसट्टमाणे भायणपूरणे वंदितसत्थवरहसंथवे उस्ससिते आसासणे उस्सिघिते सुद्धमल्लवत्थोदण–बलिकम्मगहण-दंसणे सेवलिकायत्तकट्ठकित्तणा-गति-दंसणेसु सोवच्चसप्पण्णफासुकाहारसंपदासु संघायसम्मोदणासु हसितोपहसिते आहारे गतेहित-समीहितसंपयासु हुतहुतासणच्चिसंभवे हेम-मणि-मुत्त-प्पवालसज्जोयणेसु अहोणिसामास-पक्ख-[उ]दु-वासादिसु हंस-कुर-चक्कवाक-सरभोतुककालपच्चागमोपसमादिसु ।। यं लोके पूयितं किंचि मणो यत्थ य रज्जति । यमिदियाणमिटुं च पसत्थं तम्मि णिद्दिसे ॥ १ ॥ ॥ इति महापुरिसदिण्णाय० पसत्थो णामऽज्झायो बावीसइमो सम्मत्तो ॥ २२ ॥ छ । [तेवीसइमो अप्पसत्थऽज्झाओ] 00000000 अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय. उप्पातिकमप्पसस्थमज्झायं वक्खस्सामि । तं जधा-तत्थ मे हाणी पुरेक्खडा ण पुंछा अलाभेसु सुहे जीविते वद्धीयं जसे विज्जायं समागमे जये इति उप्पाया अप्पसत्था भवंति । तं 15 जधा-कड्डिते कासिते किलेसिते उक्कूणिते केसणिम्मज्जणे अकोडिते उक्कंदिते खलिते अक्खारिते खिसिते खुधिते खुसिते खोडिते खंडिते उग्गहिते गालिते गिद्ध-सिगालदसणे गृहिते गोवयोरसभुज-चरण-मुखाणे गोविते गंदिते ओघट्टिते उग्घाडिते घिघिणोपिते घुण्णिते घेयअमेज्झपादुब्भावे घोरमहव्वयदंसणे घंसिते चलिते चालिते चित्तविन्भमे वुच्छदड्ढे चेतिविणासणे चोरभयोदीरणे चंदप्पभोपघातिते पच्छादिते पच्छादाणछिन्ने छुन्ने छेलितछादिते छंदाभिलासअसंपत्तीयं जज्जरिते जालिंकरे जीवितसंसये जुगुच्छितअणिट्ठोपसट्ठदंसणे जेयहितसद्दपादुब्भावे जोतिसापणासणे जंभिते झुपिते झामिते झीणे झुझुरायिते 20 अज्झेणणासिते झोसिते उज्झंते तमूभावे तासिते णिक्खिते तुच्छिते तेणिते तोमरविद्धे तंडिते उत्थते थाणपवायणे थितोपवेसणे णि?ते थेव्विद्धे थंभिते उद्दविते दालिते दीणमुहामासे उद्दुते देसपपतणे दोभग्गे दंडकसा-ले?घाते धमिते धाविते धिक्कारकरणे धुते ओधुते घेणववच्छपघातणे अधोपाणे धंसिते णटे ओणामिते णिहिते णूणे गामपतणे अन्नोसक्किते णंदीउवघाते अणंतसोके पब्भटे पातिते पीलिते पूतिवापण्णदंसणे पेंडितविच्छोभणे पोकत्तदुरंतपादुब्भावे पंडकदंसणे फल-पुप्फणासणे फालिते फियाबाहिरकपरामासे फुल्लिते फोडिते बधिरंध-मूय-जलमत्तपादुब्भावे वाधायविमूविणासणे बुद्धिउपघाते वेस्सदंसणे ओवालिते 25बंधुजणविप्पयोगे भट्ठ भामिते भिन्ने भुक्खिते भेदिते भोयण-पाण-भक्खवापडासुभंते मलिते उम्मज्जिते ओणिपीलिते उम्मुक्के उम्महिते मोघविखद्धिते उम्मत्थिते यतिविणासेयगविणासेयिट्ठविअसक्कारे जंगभंगे अये पडिसेधिते अयोग्गेयं तस्स य हाणिसु रतिविघाते रायपराजये ओरिक्के ओरूढे रेचिते ओरेचिते रंधिते ललितोपघाते अलातक्खोभणे गुलखिते लुचिते पघातणे ओलकिते ओलंबिते उवद्दिते ओवारिते विणासिते वहभेदणे वेसाणरविज्झापणे वोकसिते संचिते ससिते ओसारिते ओसुद्धे सेदणिम्मज्जणे सोणितपादुब्भावे संसरिते ओहते हारिते हिसेते हुडिते हेडिते अहोणिसाधिकरे हंस-चक्कवाकसव्व १ रणोधि सप्र० ॥ २ दंसणे हस्सवद्धणे रिपुहडपच्चाणयणे रुहविरुद्धदसणे हस्सवद्धणे रासि इतिरूपो द्विरावृत्तः पाठः सर्वास्वपि प्रतिषु वर्तते ॥ ३ समुप्पयारेसु हं० त० । 'समुप्पायणेसु सि० ॥ ४ हसतो सप्र० ॥ ५ णामाज्झा' हं० त० ॥ ६ ण पुच्छा सि० ॥ ७ खोडते सि० विना ॥ ८ पच्छादणे छिण्णे चुण्णे छेलिते छंदाभिलासे असं सि०॥ ९ "तिसापुणासणे जंपिते हं० त० । “तिसणासणे जंपिते त० ॥ १० भासि त०. एव ॥ ११ णिच्छुद्धे थेचित्ते थंभिए उद्दसिते त० एव ॥ १२ विहवि त० एव ॥ १३ "विचेट्ठिए उम्मच्छिए तिणासेयागविणासे पेट्ठअस' हं० त० ॥ १४ ओरोचिते हं० त० विना ॥ . १५ गुलिखित्ते हं० त० विना ।। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४९ 5 पणुवीसइमो गोत्तज्झाओ मिहुणविप्पयोगे चेति एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे अप्पणा आधारिते परेण वा पुच्छिते पसत्थे अत्थे णत्थि वत्तव्वं, अप्पसत्थे पुच्छिते खिप्पं भविस्सतीति वत्तव्वं । भवंति चऽत्थ सिलोगा असुयीणं च सव्वेसि किलिट्ठाणं च दंसणे । असुभेसु य सद्देसु हीणमत्थं वियागरे ॥ १ ॥ तंरूवेण य तंरूवं तण्णिभेण य तण्णिभं । णिभं च णिभमत्तेण तण्णिभोपणिभेण य ॥ २ ॥ पसंस्थमप्पसत्थं च उप्पातं समुपेक्खिया । वियागरेज्ज मित्ती तज्जातपडिपोग्गला ॥ ३ ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय अप्पसत्थऽज्झायो तेवीसइमो सम्मत्तो ॥ २३ ॥ छ । - [चउवीसइमो जातीविजयज्झाओ] 0000000अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय जातीविजयो णामाज्झायो । तं खलु भो ! वक्खस्सामि । जं जधा-तत्थ अज्जो मिलक्खु ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे अज्जो त्ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे कण्हामासे लुक्खामासे तुच्छामासे मिलक्खु त्ति बूया । तत्थ अज्जे 10 पुव्वमाधारिते अज्जं तिविधमाधारये, तं जधा-बंभणं १ खत्तियं २ वेस्समिति ३ । तत्थ बंभेज्जेसु सुक्केसु य बंभणा विन्नेया १ । तत्थ खत्तेज्जेसु रत्तेसु य खत्तिया विन्नेया २ । तत्थ वेस्सेज्जेसु पीतेसु य वेस्सा विन्नेया ३ । तत्थ सुद्देयेसु कण्हेसु य सुद्दा सव्वमिलक्खू य विन्नेया । तत्थ अज्जेसु मिलक्खूसु वा अणंतरेसु वा पुव्वमाधारितेसु सुक्कामासे सुद्धवण्णा विन्नेया । सामेसु सामामासे सामा विण्णेया । तत्थ कालामासे कालका विण्णेया । महाकायेसु महाकाया विन्नेया । मज्झिमकायेसु मज्झिमकाया 15 विन्नेया भवंति । पच्चंवरकायेसु पच्चंवरकाया विन्नेया । तत्थ चलेसु सव्वववहारगते य ववहारोपजीवी विन्नेया । तिक्खेसु सव्वसत्थगते य सत्थोपजीवी विन्नेया । तत्थ पुधूसु खेत्तोपजीवी विन्नेया । णिक्खुडेसु णिक्खुडवासिणो विण्णेया । दढेसु उन्नतेसु य पव्व[त]वासिणो विण्णेया । तत्थ णिद्धेसु आपुणेयेसु य दीववासिणो विन्नेया । तत्थ रमणेसु जणपदवासिणो विण्णेया । गहणेसु रण्णवासिणो विन्नेया । चलेसु चक्कचरा विण्णेया । परिमंडलेसु य चउरस्सेसु य णगरवासिणो विन्नेया । तत्थ सव्ववण्णपरिवद्धणेसु य सव्वपाणपतिवद्धणेसु य चेट्टितका विण्णेया । मूलजोणिगते 20 आपेलचिंधा विण्णेया । गहणेसु कण्हा विण्णेया । संवुते कंचुकचिंधा विण्णेया । उपगहणेसु सामा विण्णेया। सुक्कामासेसु रमणीयेसु ओवाता विण्णेया । पुरत्थिमेसु गत्तेसु पुरत्थिमदेसीया विण्णेया । दक्खिणेसु दक्खिणदेसीया विण्णेया । पच्छिमेसु पच्छिमदेसीया विण्णेया। वामेसु उत्तरदेसीया विण्णेया । गम्मेसु अज्जदेसणिस्सिते बूया । गम्भाणंतरे अज्जदेसंतरेसु बूया । णिक्खुडेसु णिक्खुडदेसिज्जे अम(ण)ज्जदेसिज्जा विण्णेया ॥ ॥ इति महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय जातीविजयो नामऽज्झायो चउवीसइमो सम्मत्तो ॥ २४ ॥ छ ॥ 25 [पणुवीसइमो गोत्तज्झायो] .000000000 अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय गोत्तनाम अज्झायं । तमणुवक्खस्सामो । तं जधातत्थ गोत्तं दुविधं, गहपतिकगोत्तं चेव १ दिजातीगोत्तं चेव २ । तत्थ माढ-गोल-हारित-चंडक-सकित-(कसित)-वासुल-वच्छ-कोच्छ-कोसिक-कुंडा चेति गहपतिकगोत्ताणि १ । तत्थ थूलेसु माढा विन्नेया । सव्वसगुणगते य चतुरस्सेसु गोला विण्णेया । सव्वचतुप्पयगते य णिद्धेसु हाला विण्णेया। 30 सव्वमदगते चेव परिमंडलेसु चांडिका विन्नेया । सव्वदंसणीयेसु चेव कसेसु कसिता विण्णेया । सव्वबीजगते चेव पुण्णेसु वासुला विण्णेया । सव्वपुप्फ-फलगते चेव दढेसु वच्छा विण्णेया । सव्वधातुगते चेव चले कोच्छा विन्नेया। सव्वपाणजोणीगते चेव दीहेसु कोसिका विन्नेया । सव्वपरिसप्पगते य हस्सेसु कोंडा विन्नेया । सव्वमूलजोणिगते १वत्तव्वे अप्प' सप्र० ॥ २ सव्वगते य पसत्थो हं० त० । सव्वत्थगते य सत्थो सं ३ पु० सि० ॥ ३ रमणिज्जेसु हं० त० ॥ ४ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० अंगविज्जापइण्णयं तत्थ एतेसिं गोत्ताणं जं गोत्तं इत्थी पुरिसो वा भवति तं गोत्तं विण्णातव्वं भवति । तत्थ बंभणगोत्ताणि चतुव्विधाणि भवंति । तं जधा-सगोत्ता १ सकर्विगतगोत्ता २ बंभचारिका ३ पवरा ४ चेति । तत्थ अब्यंतरेसु सकगोत्ता विष्णेया । वंकेसु सगवि[ग]तगोत्ता विण्णेया । उद्धेसु बंभचारिका विण्णेया । उत्तमेसु पवरा विण्णेया । उद्धभागे मंडवा विन्नेया । समभागेसु पुधूसु वा सेट्ठिणो । ह्रस्सेसु वासिट्ठा । डहरचलेसु संडिल्ला । डहरथावरे 5 कुंभा । उण्णतेसु माहकी । तिरियंभागेसु कस्सवा । अधोभागेसु गौतमा । अग्गेयेसु अग्गिरसा । दढेसु भगवा । चलेसु भागवता । दीहेसु दढेसु सद्दया । णिद्धेसु ओयमा । णीहारेसु हारिता । तणूसु लोकक्खिणो । उपहुतेसु कचक्खी । सुक्केसु चारायणा विन्नेया । परिमंडलेसु पारावणा विन्नेया । जण्णेज्जेसु अग्गिवेस्सा विन्नेया । ह्रस्सेसु मोग्गल्ला विन्नेया । अब्भंतरअब्धंतरेसु अट्ठिसेणा । बाहिरबाहिरेसु गहणेसु पैरिमंसा । फरुसेसु गद्दभा । उपग्गहणेसु वराहा । कण्हेसु डोहला । णिक्खुडेसु कंडूसी । तिरिच्छाणेसु भागवाती । उत्ताणेसु काकुरुडी । णिकुज्जेसु कण्णा । मज्झिमेसु मज्झंदीणा । 10 वामेसु वरका । कायवंतेसु मूलगोत्ता । संखासु संखागोत्तं, केस - मंसु - णह - लोमगते पसन्नेसु य भेदाणुजोगगोत्तं बूया । दारुणेसु कढा । किन्नेसु कलवा । चतुरस्सेसु वालंवा । सेतेसु सेतस्सतरा । आतिमूलिकेसु तेत्तिरिका । मज्झविगाढे मज्झरसा । अंतेसु बज्झसा णेया । सामेसु छंदोगा । उयुभागेसु पसन्नेसु मुज्जायणा । अप्पसत्थेसु कत्थलायणा । सारवंतेसु ग्गहिका ।' असारेसु णेरिता । कुडिलेसु बंभच्चा । अच्छतेसु काप्पायणा । विच्छिन्नेसु कप्पा । आपुणे अप्पसत्थभा । चंडाणयेसु सालंकायणा । सामेसु यणाणा । विसमेसु आमोसला । सामुग्गेसु साकिजा । परिमंडलेसु 15 उपवति । उण्णतेसु डोभा । उद्धभागेसु थंभायणा । मुदितेसु जीवंतायणा । वेरेसु दढका । णातिवत्तेसु धणजाया । बुद्धिरमणेसु संखेणा । अबुद्धीरमणेसु लोहिच्चा । थिंतेसु अंतभागा पियोभागा । सद्देयेसु संडिल्ला । दुंदुभिघोसे पव्वयवा । जीणाधिगतेसुआपुरायणा । "विविहेसु वावदारी । संवुत्तेसु वग्घपदा । खतेसु पिला । उत्तमेसु जीवसाधारणेसु देवहच्चा । बंभेयेसु आपुणेयेसु वारिणीला । दट्ठोदरेसु सुघरा । सव्वधणगते चेव सव्वखिडागते संव्वदुगते खघाणसेसु य मूलगोत्तं चेव । हत्थ - पादसंजमे चेव थीणवे । 20 सव्व अपरिग्गहेसु चेव सव्वसत्तेसु वेयाकरणं बूया । गणावलोकणे मीमंसका । जत्थ (तत्थ ) पमाणे छंदोको । विछिण्णविमद्दिते सव्वविडगते पण्णायिकं बूया । ओजासणे ककितजाणे । यण्णेज्जेसु यण्णिकं बूया । सण्हेसु तिक्खकं बूया । अग्गेयेसु जोतिसिकं बूया । पतिलोमेसु इतिहासं बूया । संबंधेसु रहस्सं बूया । पुरत्थिमेसु सुयवेदं बूया । सामेसु सामवेदं बूया । संखतेसु यजुव्वेदं बूया । दारुणे अहव्वेदं बूया । समभागेसु एकवेदं बूया । उद्धंभागेसु दुवेदं बूया । उद्धंभागेसु आहारेसु य तिवेदं बूया । उद्धंभागे आहारमंगेसु सव्ववेदं बूया । परिहितेसु छलंगवी बूया । 25 महावकासेस सेणिका । लुक्खेसु णिरागति । अंतेसु वेदपुटुं बूया । बंभंतरेसु सोत्तिया । घोसवंतेसु अज्झायी । कन्नेसु आचरियो । मुदितेसु जावको । अणुलोमपतिलोमे णगत्ति । उत्तमंगे वामपारा ॥ ॥ इति गोत्तज्झायो नाम पंचवीसइमो सम्मत्तो ॥ २५ ॥ छ ॥ [ छव्वीसइमो णामज्झायो ] | भगवतो अरहतो यसवतो महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । णमो भगवतीय महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय । 30 अधापुव्वं खलु भो ! महामुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय णामज्झायं । तं खलु भो ! तमणुवक्खायिस्सामो । तं जधायदक्षरमिदं प्रोक्तं, महर्षिप्रविचिन्तितम् । अंगविज्जावसुं रत्तनामाध्यायं प्रचक्ष्महे ॥ १ ॥ ऋषयो येन बुध्यन्ते लोके नामगतं पधं । तदहं प्रोदाहरिष्यामि, सङ्क्षेपं नामसङ्ग्रहम् ॥ २ ॥ १ विकयगो त० एव ॥ २ 'सु पचारा हं० त० ॥ ३ गोत्तमा सप्र० ॥ ४ णिट्ठेसु सि० विना ॥ ५ पुरियंता हं० त० ॥ ६ काहला हं० त० ॥ ७ णिण्णेसु हं० त० ॥ ८ लंभच्चा हं० त० विना ॥ ९ डोला हं० त० ॥ १० सितेसु हं० त० ॥ ११ जणा हं० त० विना ॥ १२ विवट्टेसु हं० त० ॥ १३ सव्ववदुगए खज्जाणरेवसु हं० त० ॥ १४ कमपारा हं० त० विना ॥ १५ लोकानां सुगतं सि० ॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उमान्स छव्वीसइमो णामज्झाओ १५१ गते यो वाऽनुभाषेत, पढंतो य विसेसतो । जीवमज्जीवसंसटुं दुविधं नामपग्गहं ॥ ३ ॥ सममक्षरसङ्गातं भवेद् वा विसमक्षरम् । ससंजोगमसंजोगं गुणा-ऽभिप्पायकं तधा ॥ ४ ॥ सरादि १ व्यञ्जनादि वा २ सव्वणामगतं ३ तिधा । उष्मान्तं १ व्यञ्जनान्तं वा २ स्वरान्तमिति ३ तत् त्रिधा ॥ ५ ॥ थीणामधेयं १ पुण्णामं २ णपुंसकमिति ३ तिधा । ऐकभस्सं १ दुभस्सं च बहुभस्समिति ३ तिधा ॥ ६ ॥ 5 अतीता १ ऽणागता काले २ वत्तमाणं च ३ तं तिधा । [............. ................ ॥ ७ ॥] उपसग्ग १ णिपाताणं २ णामा ३ ऽक्खायं च ४ भागसो । विणिच्छितं महेसीणं भस्समेतं चतुविधं ॥ ८ ॥ सच्चं १ चेवालितं चेव २ तधा सच्चालितं भवे ३ । ण सच्चा णालिता वा वि ४ गिरा लोके चतुविधा ॥ ९ ॥ अंतरिक्खं १ सलिलजं २ पत्थिवं ३ पाणनं ४ तधा । मग्गा य तस्स अक्खाता णामं जेहिं पवत्तते ॥ १० ॥ णक्खत्ताणं गहाणं च ताराणं चंद-सूरयो । विधीणं मंडलाणाय दिसाणं गयणस्स य ॥ ११ ॥ 10 उक्काणं परिवेसाणं तधा पुव्वगतस्स य । सतहुताणं मेताणं पक्खिलं(ण) जे णभालया ॥ १२ ॥ कट्ठा-मग्गा-ऽऽलवाणं च गयणस्स णिसाय य । उदूणं च समाणं च तधा मास-ऽद्धमासयो ॥ १३ ॥ णिस्सितं वा वि णक्खत्तं तधा णक्खत्तदेवतं । यं णामधेयं भवति सव्वमाकासणिस्सितं १ ॥ १४ ॥ कूपाणं उदपाणाणं णदीणं सागरस्स य । हृद-पुक्खरणीणं च णागाणं वरुणस्स य ॥ १५ ॥ समुद्द-पट्टणाणं च दण्णपाणं च सव्वसो । सव्ववारिचराणं च द्विजा वारिचरा य जे ॥ १६ ॥ 15 णदीरुहा य जे रुक्खा जले जं चाभिरोहति । यदस्सियं णामधेज्जं सव्वं सलिलसंभवं २ ॥ १७ ॥ दुमाणं च लताणं च सव्वपुप्फ-फलस्स य । देवाणं णगराणं च णातूणं जं जतो भवे ॥ १८ ॥ जत्तु देवणिभं किंचि वसुधामभिणिस्सितं । धातुरत्तगतं वा वि सव्वं तं पुढविसंभवं ३ ॥ १९ ॥ सुराणं असुराणं च मणुस्साणं च सव्वसो । चतुप्पदाणं पक्खीणं कीडाणं किमिणं तधा ॥ २० ॥ जदस्सितं णामधेज्जं जं किंचेवंविधं भवे । बहुप्पदाणं अपदाणं सव्वं तं पाणसंभवं ४ ॥ २१ ॥ 20 सव्ववत्थ भूसण-जाणा ०८-ऽऽसण-> सयण-पाण-भोयण-आवरण-पहरण-पुक्खरगतं चेति, जं चेदं तदपि किंचि एतारिसं सव्वं तदपि जीवं सव्वणेरयिक-तिज्जजोणिगत-मणुस्स-देवा-ऽसुर-पिसाय-जक्ख-रक्खसकिन्नर-किंपुरिस-गंधव्व-णाग-सुवण्णा चेति, जं चऽण्णदपि किंचिदपि एतारिसं दिव्वसंठाणणामधेज्जं तं जीवसंसटुं । तदेक-ति-पंच-सत्त-णवेकादसक्खराणि, जाणि वऽण्णाणि चेव समक्खरसंघाताणि णामधेज्जाणि, ततो परमेतारिसार्णि तं विसमक्खरसंघातं ततो द्वि-चतुर्थ-अष्ट-दश-द्वादशाक्षराणि, जाणि वि अण्णाणि विसमक्खरसंघाताणि णामधेज्जाणि, 25 अत परमेतारिसाणि समक्खरसंघातं स तत इदं सेध-संकरिसण-मदण-सिव-वेसमण-वरुण-जम-चंदा-ऽऽदिच्चऽग्गि-मारुत-दिवस-रयणि-रोदुम-विहंग-णाग-सुवण्ण-देवा-ऽसुस्-मणुय-वसुधंतरिक्ख पव्वत-समुद्द-वसुधाधिपरत्तणिये, एतं जं चऽण्णदपि किंचि एतारिसं णाम-गोत्तं चेति णिघुटके उभयोरवि णिपयण्णगोण्णं तं तं णक्खत्तदेवयणामधेज्जेसु जं किंचि दीहसरीरादितं सरादितं वंजणादितं तहा उस्सातं तधा वंजणातं स्वरांताणि भवंति । जधा-थी-पुं-णपुंसकणामधेज्जाणि एक-द्वि-बहुवचनानि अतीत-सांप्रता-ऽनागतानि सवन्नेरेव विण्णेयाणि भवंति 30 उच्चारितस्समुम्मटे तधा उल्लोकित-ऽब्भुत्थियसमाचारे यदिझं विब्भंसमुसितमिति सवणणक्खत्तदेवताणिस्सितेसु थी १ वापिसम सप्र० ॥ २ ति त्रिधा सि० विना ॥ ३ 'एकभाष्यं द्विभाष्यं च बहुभाष्यमिति' एकवचन द्विवचन बहुवचनं चेत्यर्थः ॥ ४ 4 एतच्चिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ॥ ५ सि० विनाऽन्यत्र "णि विविहसमक्खसंघा हं० त० । "णि विविसमक्खरसंघा' सं ३ पु० ॥ ६ "णि यं विसंघातं सं ३ पु० ॥ ७ संतत इदं सेंडसं हं० त० ॥ ८ रोहम हं० त० ॥ ९ यदिष्टं वि हं० त० विना ॥ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ अंगविज्जापइण्णयं पुंसयो णामधेज्जेसु णक्खत्तं बूया । एतेसामेव संधिउदीरणे णक्खत्तणिस्सितं णामधेज्जं बूया । एतेसामेव जमकोदीरणे णक्खत्तदेवतणामधेज्जं बूया । एतेसामेव जमकोदीरणे संहारे णक्खत्तणिस्सितं णामधेज्जं बूया । एतेसामेव सव्वत्तोदीरणे अत्थमितणक्खत्त-चंदा-ऽऽदिच्चणामधेज्जं बूया । तेसामेव चलोदीरणे अयहत्थिसु समगमारुतणामधेज्जं बूया । सा चलोदीरणे संहारे अजहत्थिसु समगमारुतणिस्सितं णामधेज्जं बूया । अवत्थितोदीरणेसु णक्खत्तणामधेज्जं बूया । तेसामेव 5 च उदीरणे संहारे सुणक्खत्तदेवतणिस्सितं णामधेज्जं बूया । एतेसामेव अवकरिसणोदीरणे वा पव्वत - सागर - मेदिणीणदी-चेतिया - ऽऽयागणामधेज्जं बूया । तेसामेवावकरिसणे वा अधरोदीरणे वा संहारे पव्वत - सागर - मेदिणी-नदीचेतिया-ऽऽयागणिस्सितं थी - पुमंसयो णामधेज्जं बूयादिति । तत्थ सव्वतिज्जजोणिगते तत सव्वतिज्जजोणीगते थी— पुमंसयो णामधेज्जे तिज्जजोणीणामधेज्जं बूया । तेसामेव संहारोदीरणे तिज्जजोणीणिस्सितं णामधेज्जं बूया । तेसामेव य उदीरणे थावरतिज्जजोणिणिस्सितं णामधेज्जं बूया । तैसामेव च उद्धंभागोदीरणे विहगणामधेज्जं बूया 10तेसामेव उद्धंभागोदीरणे संहारे विहगणिस्सियं नामधेज्जं बूया । 1 तैंसामेव उद्धंभागोदीरणे संहारे परिसप्पणिस्सितं णामधेज्जं बूया | Do तेसामेव थिरोदीरणे संहारे परिसप्पणिस्सितं णामधेज्जं बूया । तेसामेव सव्वतोदीरणे मच्छणामधेज्जं बूया । तेसामेव सव्वतोदीरणे संहारे मच्छणिस्सितं [णामधेज्जं ] बूया । तेसामेव अपकरिसणोदीरणे वा कीडिकिपिल्लकणामधेज्जं बूया । णिम्मज्जित-वाहित - पोरुपविद्धा - ऽवलोकिते णिक्खयसव्वभवण[ग]ते सव्वधरगते चेति । तत सव्वणेरयिकेसु दाणवगतेसु अधरणामधेज्जं बूया । तेसामेव जमकोदीरणे णिक्खणामधेज्जं बूया । तेसामेव जमकोदीरणे संहारे 15 णिरयाणिरया—णिस्सितं वा 'हिंसाणिस्सियं वा Do णामधेज्जं बूया । तेसामैव तिज्जभागोदीरणे संहारे णागणिस्सितं णामधेज्जं बूया । तेसामेव च उद्धंभागोदीरणे दाणवणिस्सितं णामधेज्जं बूया । तेसामेव उद्धंभागोदीरणे संहारे दाणवनिस्सितं णामधेज्जं बूया थी - पुंसयोरिति । तत्थ णक्खत्तणामधेज्जं दुविधं - णक्खत्तणिस्सितं चेव १ णक्खत्तदेवतणिस्सितं चेव २ । तत्थ मणुस्सणामधेज्जं पंचविधं तं जधा - गोत्तणामधेज्जं १ अयणामकं २ कम्मणामधेज्जं ३ सरीरणामं ४ 20 करणणामं ५ चेति । तत्थ गोत्तणामधेज्जं गहपतिकगोत्तणामधेज्जं दिजातीगोत्तणामधेज्जं चेति । तत्थ गहपतिकगोत्तणामधेज्जं तं जधा— माढ - गोल- हाल - चंडिक - सकित (कसित ) - वासुल-वच्छ - कोसिका चेति । अतो परमुद्धं बंभणगोत्तणामधेज्जं भवति १ । तत्थ अधणामकं समीसु सीसणाम अपि किन्नक- कतरक - उज्झितक-छड्डितका चेति । याणि वऽण्णाणि वि काणिचिदेवजुत्ताणि २ । 25 तत्थ कम्पणामधेज्जं पंचकमाधिकरणकाहपयोगेकसिमाभिणिस्सितं, जं चण्णदपि किंचिदेतारिसं कम्माधिकरणजुत्तं तं कम्मणामधेज्जं ३ | 30 तैंत्थ सरीरणामधेज्जं पसत्थमप्पसत्थं च दुविधं - लक्खणदोसजुत्तं च उपद्दवदोसजुत्तं च । 'सैंड-विकड-खरडखल्लाड–विपिण आहारे उदके यावि देवभूतिवलायर्समाणुवद्धी समवसीवापि अपरिक्कमा । हडये मित्तवग्गे य गोत्तणामे य सँव्वस्स । संजोगेसु य सव्वेसु मित्तं बूया परिक्कमं ॥ १ ॥ गंदी गंदं च दिण्णं च णंदणो णंदिको तधा । णपुंसके अणंदिकरं णिक्खित्ते सैण्णिकुट्टिते ॥ २ ॥ १ समागमारूवणि हं० त० ॥ २ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ३०० एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ४ वाहिय- पोरुपविविद्वाऽव हं० त० विना ॥ ५ ० ० एतच्चिान्तर्गतः पाठः हं० त० सि० नास्ति ॥ ६ "मेव जमकोदीरणे संहारे णाग सं ३ पु० ॥ ७ णागणिस्सितं णामधेज्जं बूया । तेसामेव सव्वतोदीरणे संहारे मच्छणिस्सितं णामधेज्जं बूया । तेसामेव च युद्धं सप्र० ॥ ८ बिजाती हं० त० ॥ ९ णाममपि हं० त० ॥ १० माभिस्सितं हं० त० विना ॥ १९ तत्थ सरीरसरीर सप्र० । १२ संढ-विकड-खवड हं० त० ॥ १३ सभाणुवद्धीयसमव हं० त० ॥ १४ सव्वस सि० ॥ १५ सण्णकुट्ठिते हं० त० विना ॥ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छव्वीसमो णामज्झाओ १५३ र्परिक्कमाणा विण्णेया जे जे पधदुप्पते इति पप्परूवं कोणो वेति, जाणि वऽण्णाणि वि काणि वि एतारिसाणि तल्लक्खणदोससंजुत्तं । तत सरीरोपद्दवजुत्तं तं जधा - खंडसीस - काण - पिल्लक- कुज्ज- वामणक-कुँविक-सबल- खंजवडभो वेति, जाणि वऽण्णाणि वि एरिसाणि तं सरीरोपद्दवजुत्तं । पागयभासाय तत्थ पसत्थं ति विविधं तं जधावण्णगुणजुत्तं चेव सरीरगुणजुत्तं चेव । तत्थ वण्ण[गुण] जुत्तं तिविधं तं जधा - सुद्धे सामे कण्हे चेति । तत्थ सुद्धे अवदातको सेडो सेडिलो चेति पागयभासाय । सामे सामा सोमली सामकसामला चेति पागयभासाय । तत्थ कण्हे 5 कालककालिका चेति पागयभासाय । तत्तो तम्मि पादगोरा चेति इति वण्णणामधेज्जाणि । ततो सरीरगुणजुत्तं सुमुहसुदंसण- सुरूव-जातसुगता चेति । तत्थ सरीरजमभिणिस्सियं चयं चसित्तं बालकबालक - डहरक-मज्झिम-विसमाजुत्ताणि चयो जं सरीरजं चेति ४ । तत्थ करणणामधेज्जं जं किंचि संपरिक्कमं । ततो परिक्कमा तिविधा- ऐक्कक्खरा दुक्खरा तिअक्खरा चे तत्थ एक्कक्खरा चतुव्विधा, तं जधा - ककार - लकार - सुकार - णिकारा चेति । तत्थ द्वक्खरो परिक्कमो दुविधो - सव्वगुरू 10 चैव पधमक्खरलघू पच्छिमक्खरगुरू । तत्थ द्वक्खरो परिक्कमो सव्वगुरू, तं जधा-तात - दत्त-दिण्ण-देव-मित्त-गुत्त— भूत - पौल - पालि- सम्म - यास - रात - घोस- भाणु - विद्धि- नंदि - नंद-माना चेति । तत्थ पढमक्खरलघवो पच्छिमेकक्खरगुरू द्वक्खरपरिक्कमा तं जधा-सैच्चसिरियबलधरसहवगिरिरिति । अथातधा उक्खरा परिक्कमा बिविधा - मज्झिमेकक्खरलघवो चेव पच्छिमेकक्खरगुरवो चेव । तत्थ उक्खरा मज्झिमेकक्खरलघवो तं जधा - उत्तरा - पालित-रक्खिय—णंदण—णंदिकणंदका चेति । तत्थ उक्खरा पच्छिमेकक्खरगुरवो तं जधा - सहितमहका चेति इति छव्विधा । एक्कचत्तारीसं परिक्कमा 15 भवतीति ॥ छ ॥ १६ तत्थ एवमणुगंतूणं सकणामधेज्जं पढतेणं इदं तदिति नन्नतअक्खरेरिति । तत्थ छव्विधमक्खरं- सरा १ फरसा २ अंतत्था ३ जोगवहा ४ अजोगवहा ५ यमा ६ चेति । तत्थ अकारादयो औकारणिधणा सरा । ककारादयो मकारणिधणा फरिसा । य-र-ल-वा इति अंतत्था । चत्तारो श-ष-स- हेति उष्माणश्चत्वारो योगवहा । तथा विसर्जनीयो उपध्मानीयो जिह्वामूलीयो अनुस्वारोऽनुनासिका चेति तत्थ पंच [अ] योगवहाः -अः इति विसर्जनीयः, 8 क इति जिह्वामूलीय:, 20 ७ प इत्युपध्मानीयः, अं इत्यनुस्वारः, ला (लॉ) इति नासिका । क ख ग घ इति यैमा चत्तारि । अत्र अकारादीर्णि लृकारनिधनानि समाणक्खराणि अट्ठ, दस इच्चेके । तत्थ ए ऐ ओ औ इति चत्तारो संधिअक्खराणि । अकारआकारवज्जा नामिस्सरा, तानेव तु अक्खराणि । ककारादयो मकारणिधणा फरसा । तत्थ क-च-ट-त–पा खछठ थ-फा श-ष-सा चेति त्रयोदश अघोसा । गज-ड-द-बा घ-झ-द-ध-भा ङ- ञण-न-मा य-स्ल–वा हकारो य वीसतिं घोसवंतो, हकारेण सह एकविंशतिं । ङ-ज-ण-न-मा अनुनासिका यमा चेति 25 एकादशानुनासिका । ख-छ-ठ-थ-फा द्वितीया घ- झढ-ध-भा चत्तारो (चउत्था) योगवहा । यमनिधना छव्विधा । पंचसट्ठि सव्ववायोगते भवंति भगवानाह अरहा महापुरिस इति । ततो विसर्जनीयो हकारो चेति उरे विण्णेयो सर्वोष्मसवण्णे चेति । अकार आकारा कंठे विण्णेया सवण्णे चेति । ऋकार-ऋकार-कवर्गो जिह्वामूलीयो चेति हतु (नु) मूलजिह्वामूलीयो विण्णेयो सवण्णे चेति । इकार-ईकारो एकारऐकारो चवर्गों यकारो शकारो चेति तालुको विण्णेयो सवण्णे चेति । षकारो मज्झिमो टवग्गो चेति सिरसि विण्णेयो 30 १ परक्कमाण वि हं० त० विना ॥ २ रूवाकाणो हं० त० ॥ ३ कुधिक हं० त० विना ॥ ४ 'तको सेणसेडिलो हं० त० विना ॥ ५ सासणी हं० त० ॥ ६ वयं वस्सियं वा हं० त० ॥ ७ सम्मजु' हं० त० ॥ ८ सपरक्कमं हं० त० विना ॥ ९ एक्किक्कराद्वक्खरा तिक्खरा हं० त० ॥ १० चेव पथमक्खरगुरू हं० त० ॥ ११ पालयालिसम्मतास हं० त० विना ॥ १२ सव्वसरियवलवरसह हं० त० ॥ १३ अहातहा हं० त० ॥ १४ मा तिविधा सप्र० ॥ १५ उत्तरपालित-रिक्खियणंणदिकणंदिका चेति हं० त० विना ॥। १६ अंतस्था ३ योगवहा ४ अयोग हं० त० विना ॥ १७ अंतस्था हं० त० विना ॥ १८ स्वारः इति सं ३ पु० | 'स्वारः ग्ला इति सि० ॥ १९ जमा हं० त० ॥ २० णि यकार सप्र० । २१ तातेव अक्ख सं ३ पु० । तानेव अक्ख सि० ॥ २२ अकार सकार ऋकार कवर्गों हं० त० ॥ For Private Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ अंगविज्जापइण्णय सवण्णे चेति । लकारो तवर्गो सकारो लकारो चेति दंतेसु विण्णेयो सवण्णे चेति । उकार ऊकार ओकार औकार पवर्ग उपध्मानीय वकारो चेति ओट्ठयो विण्णेयो सवण्णे चेति । दंतमूले रेफो विण्णेयो सवण्णे चेति । अवत्तवितसंदि? सतरूपे लकारो विण्णेयो सवण्णे चेति । तत्थ उद्धंभागेसु इकार-ईकारा एकास्-ऐकारा ओकार-औकारा विण्णेया सवण्णा चेति । ऋजुभागेसु अवत्थितेसु अकार-आकारो विण्णेयो सवण्णे चेति । संवुतेसु उद्धंभागेसु अवत्थितेसु 5ॐकारो विण्णेयो सवण्णे चेति । ओकार-औकारौ अधे(धो) भागेसु विण्णेया सवण्णा चेति । संधिसु संधिअक्खराणि हत्थ-पाद-गुप्फ-जाणु-जंघोरु-वसण-फिज-कुविख-पस्स-हत्थतल बाहु-सहणुगंङ-ओट्ठसवण्णेण नाम चेति समाणेसु । मिधुणचरेसु य सत्तेसु य मलाभरणके चेव समाणं विण्णेयं सवण्णे चेव । उद्धंभागा-ऽधरभागेसु णामिणो विण्णेया सवण्णा चेव । णिक्खित्ते पडिकुंडिते चेव सबि, विण्णेयं सवण्णे चेव । तत्थ बज्झेसु अब्भंतरेसु य णीहारेसु पकिण्णेसु एकवंजणमसंजोगं विण्णेयं सवण्णे चेव । तत्थ समाणेसु मिधुणचरेसु य सत्तेसु य मेलाभरणेसु य मेलोपकरणेसु य 10संजोगं विण्णेयं सरिससंयोगं चेव । आहारेसु सरं बूया णीहारे वंजणाणि तु । णीहारा-ऽऽहार-मिस्सेसु संपभिण्णं पवेदये ॥ १ ॥ कवग्गमसितेसाऽऽहु यकारं वा वि णिव्वदा । पडिरूवेसु कण्हेसु जकारं तत्थ णिद्दिसे ॥ २ ॥ डवग्गो य-रकारो श-ष-सा चेव पंडरे । चित्ते लकारो विण्णेयो ससंजोगं च णिद्दिसे ॥ ३ ॥ चवग्गो य लकारो य हकारं चावि तंबसु । णीले पवग्गो विण्णेयो तवग्गो वा वि पीतके ॥ ४ ॥ थूले डवग्गो विण्णेयो मकारो यावि मज्झिमे । उपध्मानीयो विण्णेयो जिह्वामूलीय एव य ॥ ५ ॥ कवग्गो य रकारो य गकारो य कणीयसो । तवग्गो य लकारो ये कसेसेते पकित्तिया ॥ ६ ॥ चवग्गो ये यकारो य वकारं वा वि जेट्टगं । णातिथूलेसु बोद्धव्वा तधा णातिकसेसु य ॥ ७ ॥ चतुरस्सेसु सव्वेसु सव्वचतुष्पदेसु य । चतुक्केसु य सव्वेसु चतुपह्वयणेसु य ॥ ८ ॥ औकारं वा एकारं वा बूया वण्णेसु वण्णवि । परम्मुहे वा तिजं वा चकारोऽवत्थितेसु य ॥ ९ ॥ 20 हकारोऽभिमुहो यो औकारो सव्वणिको । आयुधेसु य सव्वेसु सव्वजोगागतेसु य ॥ १० ॥ एकारं वा यकारं वा बूया सव्वक्खरेस्विधी । एकारमुद्धभागेसु जैकारमधरेसु य ॥ ११ ॥ बूया एकारमाहारे यत णीहारलक्खणे । शिरो गंडे तधा णाभी जाणु-गुप्फे तधा ट्ठिजा ॥ १२ ॥ भायणेसु य सव्वेसु यं किंचि परिमंडलं । दव्वोपकरणं लोके यं वर्ल्ड दिस्सते कचि ॥ १३ ॥ घकारं वा वकारं वा बूया वण्णेसु वण्णवि । वट्टे दव्वोपकरणे यदणासी भवे कचि ॥ १४ ॥ हकारो तत्थ विण्णेयो धकारो चेतरेसु वि । रसदव्वो तथा दव्वे सुयपासकडेच्छुके ॥ १५ ॥ आदरिसे वा सुयायं वा यं वट्टस्स तु अंततो । पुष्पं फलं च यं किंचि दीहवढें भवे कचि ॥ १६ ॥ वकारं वा चकारं वा बूया सव्वक्खरेसु वि । आहारे सैति मूलेसु चकारमभिणिद्दिसे ॥ १७ ॥ णीहारेसु चकारो सा सवेसंसगतेसु य । णक्खत्तेसु य सव्वेसु तथा णक्खत्तदेवते ॥ १८ ॥ १ हकारो सप्र० ॥ २ अवतूरियसंदिढे सनरूपे हं० त० ॥ ३ 'सु अकारो हं० त० विना ॥ ४ क्खिते पणिकुं हं० त० विना ॥ ५ मल्लाभ हं० त० ॥ ६ मल्लोप हं० त० ॥ ७ वंजणेण तु हं० त० विना ॥ ८ “साहू हं० त० ॥ ९ चावियं वसु हं० त० ॥ १० य सकारो हं० त० विना ॥ ११ य सेसेए प हं० त० ॥ १२ य जकारो य सकारं हं० त० ॥ १३ चउप्पहूणेसु हं० त० ॥ १४ आयवेसु हं० त० ॥ १५ एकारं कायकारं वा बूया सव्वखरे खिध हं० त० ॥ १६ यकारमधुरे हं० त० विना || १७णीवा(धा)र हं० त० ॥ १८ तहा टिका हं० त० ॥१९ वकारो हं० त० ॥ २० तधो दव्वे हं० त० विना ॥ २१ पासुकडेच्छुको हं० त० ॥ २२ सति थूलेसु हं० त० ॥ २३ सा सतेसंगतेसु हं० त० । सा वसंगतेसु सं ३ पु० ॥ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ॥ छव्वीसइमो णामज्झाओ जिब्भग्गे दंतपज्जं च पंज्जजत्तुणिसेवणे । केसंते कण्णसक्कुल्लं कण्णपालीय य तथा ॥ १९ ॥ अवत्तं वा विवट्टं अट्ठदंताण तं चयं । णमोक्कते वंदिते वा पूयितुल्लोकिते तधा चंदणक्खत्तघोसे य डकारमभिणिद्दिसे । भूसंघाते य णिण्णे य गत्तेयमविणामिते ॥ २१ ॥ विनामितायं जिब्भायं जं किंचि विणतं भवे । विणतेसु य सव्वेसु दव्वोपकरणेसु य ॥ २२ ॥ चेपसंथाणरूपेसु हकारमभिणिद्दिसे । वत्थिसीसे तिके चेव चिबुके सभुमन्तरे ॥ २३ ॥ तिकुज्जं वा वि जं किंचि पैकारं तत्थ णिद्दिसे । कुंचितेसु य केसेसु मंसु - लोमे य कुंचिते ॥ २४ ॥ कुडि य दव्वेसु सव्ववलीगतेसु य । आकुंचितासंगुलीसु गत्तेसाऽऽकुंचितेसु य ॥ २५ ॥ आकुंचितायं जिब्भायं जं किंचि कुंडलं भवे । आविट्टे चेट्ठिते चेव भामिते सव्वसप्पसु ॥ २६ ॥ ठेकारं वा हकारं वा ब्रूया सव्वक्खरेसु वि । विधत्तेसु ढँकारो स (सा) हकारे संवुतेसु य ॥ २७ ॥ पंडरेसु ढैकारो सा चमुतेसु णिव्वदा । आकुंचिताणं गत्ताणं जं किंचि बाहिरं भवे ॥ २८ ॥ कुंडिलं नाम जं किंचि नयपाकुंचितं भवे । छिन्ने भिन्ने य भग्गे य कुट्टिते वा विणिव्वरा ॥ २९ ॥ कारं वा लकारं वा बूया सव्वक्खरेसु वि । तैतवज्जेसु सव्वेसु दकारमभिणिद्दिसे ॥ ३० ॥ पंडरेसु दकारो स्सा संधिसुत्तेसु णिव्वदा । पैंपुते दद्दुपिलकाय वणे खते तिलकालके ॥ ३१ ॥ चम्मक्खीले तद्दोसे य पलिते य तधा पुणो । पुरीसमुत्ते सद्दे य असीवे कण्णगूधके ॥ ३२ ॥ पूतिके रुधिचीके य णिते खुविए तधा । विकूणिते कूविते य रुण्ण विक्कंदिते तधा ॥ ३३ ॥ कासिते जंभिते चेव वेविते परिदेविते । पयलाइते पसुत्ते य पतिते विप्पलोट्टिते ॥ ३४ ॥ णिव्वाहिते णिस्ससिते "रोगे संधाणिदंसणे । उवद्दुते फले पुप्फे पावन्ने पाण- भोयणे ॥ ३५ ॥ उवद्दुतेसु सव्वेसु हकारमभिणिद्दिसे । ऋजुकेसु उज्जुलेहासु रकारमभिणिद्दिसे ॥ ३६ ॥ वालेसु सव्वबीयेसु जकारमभिणिद्दिसे । णामप्पयोगे संव्वत्त मुदितेसु य सव्वसो ॥ ३७ ॥ 1] सत्थिकाकाररूपेसु मकारमभिणिद्दिसे ॥ ३८ ॥ उत्तासु य वत्तेसु सयणेसाऽऽसणेसु य । उक्कूजे सयणे वत्थे दव्वोपकरणे तधा ॥ ३९ ॥ - ञकारो दढहुतं तकारो पैदमा तधा । उद्धमुहे रकारं वा मकारं वा वि मज्झिमं ॥ ४० ॥ तिज्जाणतेसु गत्तेसु सयणेसाऽऽसणेसु य । तिज्जंभागासणे वत्थे दव्वोपकरणे तधा ॥ ४१ ॥ दे - धकारो यकारो य हाऊणापणमेव य । लघवो पंचवण्णा जे गुरवो जे य कित्तिता ॥ ४२ ॥ लघवो यावि जे वण्णा सेसा वक्खामि गोरवं । यमा य योगवाहा य संयोगा यावि केवला ॥ ४३ ॥ पंच वायर्तेणिद्धं ति पुव्वरूवगुरू भवे । द्वैवंजणपच्चवरो सतवंजणमुत्तमं ॥ ४४ ॥ संजोगकद्धणामस्स संजोगेसु य छव्विधं । गत्ताणामादिमूलेसु पढमं तत्थ णिद्दिसे ॥ ४५ ॥ पढमेसु य सव्वेसु दव्वोपकरणेसु य । गत्ताणामद्धदेसेसु ततियं तत्थ णिद्दिसे ॥ ४६ ॥ [ १ पणुजंतुणि हं० त० ॥ २ यं बद्धं अट्ठदंताण संचयं हं० त० ॥ ३ गत्तेयमिति नामिए हं० त० विना ॥ ४ विणितं हं० त० विना ॥ ५ चयसंथाणरूवेसु दकार" सि० ॥ ६ एकारं हं० त० ॥ ७ ले सव्वदव्वेसु हं० त० विना ॥ ८ कुंडिलं हं० त० सि० ॥ ९ टकारं वा हुंकारं हं० त० ॥ १० टकारो हं० त० ॥ ११ टकारो सांचसुएसु णिच्छदा हं० त० ॥ १२ कुंचिए भवे हं० त० ॥ १३ णिच्छदा हं० त० ॥ हं० त० ॥ १६ जपुव्वे दट्टु विलकाय चरणे खते हं० त० ॥ १७ सपुरी १९ सोगे हं० त० ॥ २० सव्वं च हं० त० ॥ २१ थऋकारो हं० त० ॥ २३ दवकारो जकारो य हं० त० ॥ २४ जमा य जोगवण्णा य संजोगा हं० त० ॥ २५ तणिट्टं ति हं० त० ॥ २६ द्धवंजण हं० त० ॥ २७ संजोगं कट्टणामस्स हं० त० विना ॥ २८ गत्ताणमट्ठदेसेसु हं० त० ॥ १४ डंकारं हं० त० विना ॥ १५ तववत्थेसु हं० त० ॥ १८ असीवे णकगू हं० त० ॥ २२ पढमा तथा । उट्ठसुद्धेरकारं हं० त० ॥ १५५ 5 10 15 20 25 Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 30 १५६ अंगविज्जापइण्णयं तियेसु य सव्वे देव्वाणं मज्झिमेसु य । गत्ताणामंतदेसेसु जे तथा तत्थ णिद्दिसे ॥ ४७ ॥ पच्छिमेसु य सव्वेसु दव्वोवकरणेसु य । आदि - मज्झधिगाढेसु बितियं तत्थ णिद्दिसे ॥ ४८ ॥ मज्झिमाणं विमरिसेसु चउत्थं तत्थ णिद्दिसे । यदक्खरं णामधेज्जं पुरत्था समुदीरितं ॥ ४९ ॥ तण्णक्खरं नामधेज्जं भागाभागं पवेदये । थीणामधेज्जं थीणामे तुल्लातुल्लं पवेदये ॥ ५० ॥ पुतं णामगते णत्थि गेयेण णंतगायणं । अधीयतां सामवेदं विप्पाणं तप्पुयं भवे ॥ ५१ ॥ सव्वेसेतेसु रूवेसु पंडरं अभिणिद्दिसे । पुरत्थिमेसु गत्तेसु सद्द-रूवे पुरत्थमे ॥ ५२ ॥ दक्खिणेसु य गत्तेसु दक्खिणं दारमादिसे । दक्खिणेसु य सव्वेसु पीते रूवे य दक्खिणे ॥ ५३ ॥ सव्वकण्हेसु रूवेसु पच्छिमं दारमादिसे । पच्छिमेसु य सद्देसु सद्दे रूवे य पच्छिमे ॥ ५४ ॥ सव्वमेतेसु गत्तेसु उत्तरं दारमादिसे । उत्तरेसु य गत्तेसु सद्दे रूवे य वामतो ॥ ५५ ॥ णासावंसे भुमंगुट्टे ओट्ठे गंडे सपोरिसे । अंगुलीसु य सव्वासु णंतं भागे पवेदये ॥ ५६ ॥ तं चरेसु पक्खीसु सव्वचतुप्पदेसु य । णंतं चरेसु सव्वेसु णंतभागं पवेदये ॥ ५७ ॥ हत्थयो पादयो चेव जंघयोरूरयो तधा । गीवायं वा वि बद्धो च पुव्वं भागं पवेदये ॥ ५८ ॥ मज्झिमेसु य पक्खीसु सव्वचतुप्पदेसु य । मज्झिमेसु य सव्वेसु पेट्ठिवापुदरे तधा ॥ ५९ ॥ कडं पस्सोदरं वा वि कुच्छीसु सिरसी तधा । मुहे य दुपधोभागे णक्खत्तं अभिणिद्दिसे ।। ६० ।। कायवंतेसु पक्खीसु सव्वचतुप्पदेसु य । कायवंतेसु सव्वेसु महाखेत्तं पवेदये ॥ ६१ ॥ केस-मंसु—णहग्गेसु तणूरु - गहणेसु य । डहरे चले थावरे वा अप्पखेत्तं पवेदये ॥ ६२ ॥ सव्वबीयते वा वि तधा कीड - किविल्लगे । अणूसु सव्वसुहुमेसु अप्पखेत्तं पवेदये ॥ ६३ ॥ दारुणेसु य सव्वेसु सव्वपक्खि चतुप्पदे । सव्वेसु यावि दुग्गेसु दारुणंगाणि णिद्दिसे ॥ ६४ ॥ चलेसु चलसंधीसु णिद्दिसे थावरेसु य । सव्वेसु थावरण्णे य थावरेसु य णिद्दिसे ॥ ६५ ॥ आसिलेखा तथा मेत्तं बंभेयं विस्सदेवतं । सतभिसावज्जमेतेसु वंजणंताणि णिद्दिसे ॥ ६६ ॥ अद्दा पूसो य साती य महा मूलं च पंचमं । ठक्कुरं सव्वगुरुकं पढमेगलघुं तधा ॥ ६७ ॥ सद्दाना तधऽस्सिलेसा संसमत्ते [' .] । कित्तिका रोहिणि चेव फग्गुणी रेवती तथा ॥ ६८ ॥ ॥ त्वक्षरं मज्झिमं ॥ छ ॥ द्वितीये गुरुं णेयं पयापति संतक्कतो । [ ". .] एव गुरुं णेयं महीवृधो ॥ ६९ ॥ [...] भिदेवमितिगुत्तघोसगिरिवधि तधा । परिक्कमा से देवतेते विण्णेया कण्हसंभवा ॥ ७० ॥ सम्मसेण करति यो रक्खितो रौजविग्गहा । रैतिणेयो [य] सूरो य सहो य सहितसिरि ॥ ७१ ॥ मित्त भागाचलो भूति भाणु मित्त महा तधा । पालितो पालिपालो य महितो महिको तधा ॥ ७२ ॥ नीले पतिरूवेसु बारसेते परिक्कमा । पंच्चक्खरगतं [ चेव] लकारो ताम्रसंभवो ॥ ७३ ॥ ततो दत्तो य दिण्णो य णंदणो णंदिको धरो। देवदासो य पीतेसु णिकारो णंदको तधा ॥ ७४ ॥ द्वंद्वे गाते तथा अंधे तधा जमलभूसणे । परिक्कमा ससंजोगा शतमिश्राश्रवं तथा ॥ ७५ ॥ १ ततियेसु इत्ययं श्लोकः सं ३ पु० प्रतिषु द्विरावृत्तो दृश्यते, मया तु हं० त० सि० प्रतीराश्रित्य सकृदेव आहतः ॥ २ दव्वोवकरणेसु य सि० ॥ ३ 'ज्झविगारेसु हं० त० ॥ ४ बह्वी च पुच्छं भागं हं० त० विना । ५ पट्टिसापु हं० त० ॥ ६ थावरेने सं ३ पु० ॥ ७ उखरं हं० त० ॥ ८ सद्धानायवस्सिलेसा संसामते हं० त० ॥ ९ उक्षरं हं० त० ॥ १० सयक्कए हं० त० ॥ ११ [] ध गुरुं हं० त० विना ॥। १२ सम्मासेण हं० त० विना । १३ * * एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः सि० एव वर्त्तते ॥ १४ रतिचेतिणेयो सूरो हं० त० ॥ १५ भागो वलो तूतिभाउमित्त हं० त० ॥ १६ द्वादसेते हं० त० विना ॥ १७ एकक्खर हं० त० सि० | १८ चरो हं० त० ॥ १९ अंचे तथा हं० त० ॥ २० त्रात्तमित्ताश्र हं० त० ॥ For Private Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छव्वीसइमो णामज्झाओ १५७ सत्थे सत्थोपजीवीसु परक्कमकधासु य । ताओ गुत्तो य सेणो य रक्खितो य परिक्कमा ॥ ७६ ॥ संरोधेसु य सव्वेसु तधा बाहुपरिग्गहे । परिक्खेवेसु सव्वेसु संबाधे बंधणेसु य ॥ ७७ ॥ बलवता तधा गुत्तो पालि पालोयणी तधा । पालितो रक्खितो चेव विन्नेया गुत्त-रक्खिते ॥ ७८ ।। गंदी गंदो बलो मित्तो णंदणो णंदको सिरि । सामेसु मुदिते चेव महव्वमहकारिणि ॥ ७९ ॥ हत्थयो भासणे चेव सव्वदाणपरिग्गहे । दत्तो दिण्णो य विण्णेया पासंडेसु य सव्वसो ।। ८० ॥ 5 उत्तमे सक्कतो चेव वंदिए पूतिए तधा । देवो भूति जसो घोसो भाणू णेया महासिरि ॥ ८१ ।। महितो यावि विण्णेयो सिरिमुहविभूसणे । दढे धातुगते यावि गिरि णेयो धरोऽचलो पाद-जंघागते णिच्चं पादुकोपाहणे तधा । पेस्सोवकरणे यावि दासं बूया परिक्कमे ॥ ८३ ॥ आहारे वोदके या[वि] देव भूति बलो यसो । भाणू वद्धी य सम्मं च सवपीतपरिक्कमा ॥ ८४ ॥ हितये च मित्तवग्गे य गोत्तणामे य सव्वसो । सेसं जोगेसु सव्वेसु मित्तं बूया परिक्कम ॥ ८५ ॥ 10 गंदी गंदो य दिण्णो य णंदणो णंदको तधा । णपुंसकेसु णंदिकरं णिक्खिते सण्णिकुट्टिते ॥ ८६ ॥ णीहारेसु य सव्वेसु बाहिरेसु चलेसु य । णिज्जीवेसु य सव्वेसु णामं णिज्जीवमादिसे ॥ ८७ ।। आहारेसु य सव्वेसु दढेसऽब्भंतरेसु य । गोणरूवेसु सव्वेसु गोणणामं पवेदये ॥ ८८ ॥ णीहारेसु य सव्वेसु बज्झेसु य चलेसु य । आभिप्पायिकणामेसु आभिप्पायिकमादिसे ॥ ८९ ॥ अभिहारेसु सव्वेसु दढेसऽब्भंतरेसु य । समणामेसु सव्वेसु णामं बूया समक्खरं ॥ ९० ॥ 15 समणामेसु सव्वेसु जमलाभरणेसु य । द्वंद्वे दव्वोपकरणे य समं जोगं पवेदये ॥ ९१ ।। एक्कक्केसु य गत्तेसु एक्काभरणके चले । वंजणेसु य सव्वेसु वंजणंतं पवेदये ॥ ९२ ॥ णीहारा-ऽऽहार-मीसेसु बज्झ-ऽब्भंतरमिस्सिते । उम्मत्तेसु य सव्वेसु उम्मत्तं तत्थ णिद्दिसे ॥ ९३ ॥ आहारेसु य सव्वेसु दढेसऽब्भंतरेसु य । पुण्णामेसु य सव्वेसु पुण्णामं तत्थ णिद्दिसे ॥ ९४ ॥ णीहार-मिस्सेसु तधा बज्झेसऽब्भंतरेसु य । णपुंसकेसु सव्वेसु णामं बूया णपुंसकं ॥ ९५ ॥ एक्कक्केसु य सव्वेसु एकोपकरणेसु य । एक्कभस्से य सव्वम्मि एक्कभस्सं पवेदये ॥ ९६ ॥ समाणेसु य सव्वेसु जमलाभरणे तधा । तधा बिवयणे यावि बिभस्समभिणिद्दिसे ॥ ९७ ॥ उक्खरप्पभितीगणेसु बहूपंकरणेसु य । बहुभस्सेसु सव्वेसु बहुभस्सं पवेदये ॥ ९८ ॥ पच्छिमेसु य गत्तेसु सद्द-रूवे य पच्छिमे । अतीतवयणे यावि अतीतवयणं भवे ॥ ९९ ।। वाम-दक्खिणगत्तेसु सद्दे रूवे तधेव य । संपतेसु य सव्वेसु वत्तमाणं पवेदये ॥ १०० ॥ 25 पुरत्थिमेसु गत्तेसु सद्दे रूवे पुरत्थिमे । अणागते य वयणे वक्कं बूया अणागतं ॥ १०१ ॥ उवहुतेसु गत्तेसु सद्दे रूवे उवहुते । सोवसग्गे य सव्वम्मि सोवसग्गं पवेदये ॥ १०२ ।। णिम्मज्जिते णिल्लिहिते छिपणे भिण्णे णिकूजिते । णिपातेसु य सव्वेसु णिपातमभिणिद्दिसे ॥ १०३ ।। दढामासेसु सव्वेसु थावरेसु य सव्वसो | G सव्वनामगए चेव बूया नामगयं विसु ॥ १०४ ॥ णिमज्जिया पमज्जिया य संधिमट्ठिभिमज्जिए । आखाए वा वि सव्वत्त आखातमभिणिद्दिसे ॥ १०५ ।। 30 उद्धभागेसु सव्वेसु सज्जभंगेसु सव्वसो । उद्धभूए य वयणे सव्वमेवाभिणिद्दिसे ॥ १०६ ॥ अहोभागेसु गत्तेसु कुदिएसु य सव्वसो । 9 विवरीते य वयणे वितधं तत्थ णिद्दिसे ॥ १०७ ॥ १ सत्थो सत्थो हं० त० ॥ २ तत्तो गत्तो हं० त० विना ।। ३ परिखात्तेसु हं० । परिक्खेत्तेसु त० ॥ ४ चलवंता हं० त० ॥ ५ मुत्त' हं० त० ॥ ६ महिणाया वि वण्णेया सिरिमुहविभूसणा । दढे धातुमए यावि गिरे यो वरोऽचलो हं० त० ॥ ७ नंदिणो नंदिको हं० त० ॥ ८ णीहारीसु हं० त० विना ॥ ९ अक्खर हं० त० ॥ १० हस्तचिह्नान्तर्गतः श्लोकसन्दर्भः हं० त० एव वर्तते ॥ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं उद्धार - विमीसेसु कुडिला - ऽकुडिलेसु य । भूताऽभूते य वयणे बूया सव्वाणितं गिरं ॥ १०८ ॥ गत्ताणं छिद्ददेसेहि देव्वणामंतरेसु य । अवत्तेसु य सद्देसु असव्वणतमादिसे ॥ १०९ ॥ उद्धंभागेसु खत्तेसु चंदणक्खत्तसंगहे । अंतरिक्खे य सव्वत्त अंतरिक्खं पवेदये ॥ ११० ॥ आपुणेयेसु गत्तेसु जलेयेसु य सव्वसो । सव्वमत्थगते यावि वारिजं तत्थ णिद्दिसे ॥ १११ ॥ 5 दढामासेसु सव्वेसु थावरेसु य णिच्चसो । सव्वचातुप्पदे यावि पत्थिवं णाममादिसे ॥ ११२ ॥ चलामासेसु सव्वेसु लालायं णिग्गमेसु य । सज्जीवेसु य सव्वेसु पाणजं णाममादिसे ॥ ११३ ॥ संग एक्कसण्णा । तत्थ एक्कक्खरणामधेज्जाणि - श्रीः श्रिया स्त्रीः स्त्रियाः वागिति वाचा णौरिति णावा खमिति आकासं, जाणि वऽण्णाणि एवंविधाणि णामधेज्जाणि तदेकक्खरं णाम । तत्थ प्लवा चउव्विधा-द्वेक्खरा त्र्यक्खरा चतुरक्षरा पंचक्खरा । तत्र द्वक्खरा प्लवा द्विविधा - सव्वगुरु चेव पढमक्खरलघवो चेव पच्छिमक्खरगुरवो 01 चेति । 10 तत्थ द्वक्खरगुरवो Do प्लवा णक्खत्तेसु तं जधा - अद्दा पूसो हत्थो चित्ता साती जेट्ठा मूलो मघा इति, तत्थ णक्खत्ते देवतेसु चंदो रुद्दो सप्पो अज्जो तट्ठो वायू मित्ता इंदो तोयं विस्से ऋजा बंभा विण्हू पुस्सा इति णक्खत्तदेवतेसु, कण्हो रामो संबो पज्जुण्णो भाणु इति दसारणिस्सितेसु, लक्ष्मी भूती वेदी नदी इति थीणामधेज्जेसु । तत्थ परिक्कमे त्रात - दत्त - देव - मित्त-गुत्त- पाल- पालित- सम्म — सेण- दास- रात - घोस - भाग - वृद्धिमात्रा वेति परिक्कमेस्विति, अनेन परिक्कमेण सेव्वत्थाणुगंतव्वं भवतीति । तत्थ पढमक्खरलघवो पच्छिमक्खरगुरवो सव्वगुरवो चेति । तत्थ पच्छिमक्खरलघवो 15 त्र्यक्षरलघवो णक्खत्तेसु-अभिजि सवणो भरणी अदिती सविता णिरिती वरुण इति णक्खत्तदेवतेसु सहितमहितरतिका चेति परिक्कमेसु इत्येतेन प्लवेनानुगन्तव्यं भवति । तत्थ मद्भक्खरलघवो प्लवा - कत्तिका रोहिणी आसिका मूसिका वाणिजो मगधा मधुरा प्रातिका चेति णक्खत्तेसु, बे फग्गुणीयो रेवती अस्सयाविति णक्खत्तेसु, अज्जमा अश्विनाविति णक्खत्तदेवतेसु इति अनेन प्लवेनानुगन्तव्यं भवति । तत्थ पढमक्खरलघवो प्लवा विसाहा आसाढा दुवे धणिट्ठा इति णक्खत्तेसु, ईदगिरीति णक्खत्तदेवतेस्विति अनेन प्लवेनानुगन्तव्यं भवति । तत्थ चतुरक्खरप्लवा सव्वगुरवो तृतीयलघवो 20 प्रथमलघवो प्रथमद्वितीयलघवो । तत्थ सव्वगुरवो तं जधा - रोहत्रातो पुस्सत्रातो फग्गुत्रातो हत्थत्रातो अस्सत्रातो इति देवते, अपच्छिमगुरवो — ऋघसिल श्रवणिल पृथिविल इति । असप्लव ससित्रात पितृत्रात भवत्रात वसुत्रात अंजुत्रात यमत्रात इति प्रथमलघुरिति । शिवदत्त पितृदत्त भवदत्त वसुदत्त अजुदत्त यमदत्त इति बिपच्छिमे गुरुणि पुणव्वसु क्खत् । प्रजापति बृहस्पति शतक्रतुरिति देवतेसु इति, अनेन प्लवेनानुगन्तव्यं भवति । सैंथानेन संथानं प्रमाणेन प्रमाणं परिक्कमेण परिक्कमं प्लवेन प्लवं सव्वत्ताणुगंतव्वं भवति । इति अक्खरणाममिदं सव्वं णामविणिच्छयं । सभस्सं जनयं लक्ष्मी यसो य "विलोविद्धारिति ॥ ११४ ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय णामज्झायो छव्वीसतिमो सम्मत्तो ॥ २६ ॥ छ ॥ 25 १५८ १ दव्वाणामं हं० त० ॥ २ द्वक्षरा त्र्यक्षरा चतुक्षरा पंचक्षरा । तत्र द्वक्षरा हं० त० ॥ • एतच्चिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० नास्ति ॥ ४ 'सु भ्रात हं० त० ॥ ५ सव्वत्थोऽणु सप्र० ॥ ६ 'क्खरलघवो चेति हं० त० ॥ ७ चउक्खर हं० त० ॥ ८ अपत्थियगुरवो हं० त० ॥ ९ ऋषितिल घुरिसिल श्रव हं० त० ॥ १० अजत्रात हं० त० ॥ ११ अजदत्त हं० त० ॥ १२ पूतक्रतु हं० त० विना ॥ १३ संघातेन संघातं प्रमाणेन सि० ॥ १४ विष्णुलो हं० त० विना ॥ १५ णामाज्झा हं० त० ॥ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५९ अट्ठावीसइमो कम्मजोणिअज्झाओ [सत्तावीसइमो ठाणज्झायो] 000000000 6 णमो महापुरिसवद्धमाणस्स। छ अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय ठाणं णामऽज्झायं, तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामो । तं जधा-तत्थ उद्धंभागेसु सिरोमुहामासे सव्वउद्धंभागे पडिरूवे चेव रायाणं वा रायकम्मिकं वा अमच्चं वा अमच्चकम्मिकं वा बूया । अक्खीसु णायकं बूया । कण्णेसु आसणथं बूया । दंतेसु भांडागारिकं बूया । णासायं अब्भागारिकं बूया । जिब्भायं आहारपडिरूवगते य महाणसिकं बूया । थणेसु गयाधियक्खं 5 बूया । पुणरवि य णासायं आहारेसु य मज्जघरियं बूया । णिद्धेसु पाणियघरियं बूया णावाधियक्खं वा बूया । अग्गेयेसु सुवण्णाधियक्खं बूया । सव्वचतुप्पयपडिरूवगते य हथिअधिगतं वा बूया अस्सअधिगतं वा योग्गायरियं वा गोवयक्खं वा बूया । संवुतेसु पडिहारं बूया । थीणामेसु अब्भागारिगं गणिकखंसं वा बूया । पुण्णामेसु बलगणकं वा णायकं वा बूया । णपुंसकेसु वरिसधरं बूया । दढेसु वत्थुपारिसदं वा आरामपालं वा पच्चंतपालं वा बूया । चलेसु दूतं वा संधिपालं वा बूया । अभितरेसु अब्भागारिकं बूया सीसारक्खं वा बूया । बाहिरब्भंतरेसु पतिआरक्खं बूया । 10 आहारेसु सुंकसालियं बूया । णीहारेसु दिनायरेसु रज्जकं वा पंधवावतं वा बूया । उवग्गहणेसु आडविक बया । परिमंडलेस णगराधियक्खं बूया । मतेसं सुसाणवावतं वा सूणावावतं वा बूया । संरोधबंधणेसु चारकपालं बूया । पुण्णेसु महाणसिकं वा फलाधियक्खं वा बूया । मुदितेसु पुप्फाधियक्खं बूया । जण्णेयेसु पुरोहितं बूया । तिक्खेसु आयुधाकारिकं बूया । पुधूसु सेणापति बूया । अणूसु कोट्ठाकारिकं बूया ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय० ठाणज्झायो नाम सत्तावीसतिमो सम्मत्तो ॥ २७ ॥ छ ॥ 15 [अट्ठावीसइमो कम्मजोणिअज्झाओ] 0000000 अधापव्वं खल भो ! महापरिसदिण्णाय अंगविज्जाय कम्मजोणीणामज्झायो । तं जधा-तत्थ अस्थि कम्म र त्थि कम्मं - ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे अत्थि कम्मं ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे तुच्छामासे णत्थि कम्मं ति बूया । तत्थ कम्मं पंचविधं पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तं जधा-रायपोरिसं ववहारे कसिगोरक्खं कारुककम्म भेतिकम्मं पंचमं भवति । तत्थ उत्तमेसु इस्सरितेसु 20 य रायपोरिसं बूया । गहणोपगहणेसु सव्वगो-बलिवद्दगते य कसिगोरक्खं बूया । तत्थ महापरिग्गहेसु सव्वदाणपतिग्गहेसु य वाणियककम्मं बूया । तत्थ चलामासेसु सव्वकारुकोपकरणपरिग्गहेसु य कारुककम्मं बूया । तत्थ सव्वबज्झेसु सव्वअंतेसु य सव्ववेट्ठिककम्मकरपयोगे य भतिकम्मकारकं बूया । तत्थ रायपोरिसे पुव्वमाधारिते उत्तमेसु य रायाणं वा रायमच्चं वा बूया । सव्वराजोपकरणे चेव तत्थ उपोत्तमेसु अमच्चं वा अस्सवारिकं बूया । बाहिरेसु सव्वचतुप्पदगते य आसवारियं बूया । अक्खीसु णायकं बूया । अब्भंतरेसु अब्भंतरावचरं बूया । थीणामेसु अब्भाकारियं बूया । 25 संवुतेसु भांडागारियं बूया । सीसकोपकरणे सीसारखं बूया । चलेसु आहारणीहारेसु य पडिहारकं बूया। उदरे कुक्खिम्मि मुहे गीवायं सव्वआहारगते य सूतं वा महाणसिकं वा बूया । आपुणेयेसु सव्वपाणगते य मज्जघरियं बूया पाणीयघरितं वा बूया । सव्वचतुक्केसु चतुरस्सेसु हत्थाधियक्खं वा महामत्तं वा हत्थिमेंठं वा अस्साधियक्खं वा अस्सारोधं वा १ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ २ संजुत्तेसु हं० त० ॥ ३ सुकआलिंग हं० त० ॥ ४ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० अंगविज्जापइण्णयं अस्सबंधकं वा छागलिकं वा गोपालं वा महिसीपालं वा उट्टपालं वा बूया, मगलुद्धगं वा ओरब्भिकं वा अहिनिपं वा बूया । तत्थ रायपोरिसगताणि अस्साधियक्खो वा < हत्थाधियक्खो वा > हत्थारोहो वा हत्थिमहामत्तो वा गोसंखी वा गजाधिपति त्ति वा । तत्थ सुक्केसु सव्वहिरण्णकारेसु चेव भांडागारिकं वा कोसरक्खं वा बूया । महापरिग्गहेसु सव्वाधिकतं बूया । अंगुलीसु सव्वलिपिगते चेव लेखकं बूया । जिब्भाय हितये सव्वबुद्धिरमणेसु य गणकं बूया । 5 सव्वसत्थगते सव्वदेवगते य पुरोहितं बूया । णिद्धेसु चक्खूसु य संवच्छरं बूया । अतिअसिणिग्गमेसु दाराधिगतं वा दारपालं वा बूया । G पुण्णामेसु वलगणकं बूया के सेणापति वा बूया । थीणामेसु अब्भागारिकं वा गणिकाखंसकं वा बूया । णपुंसकेसु वरिसधरं बूया । दढेसु वत्थुसु वत्थाधिगतं बूया जगरगुत्तियं वा बूया । चलेसु दूतं वा जइणकं वा बूया पेसणकारकं वा पतिहारकं वा बूया । णिद्धेसु तरपअटुं वा णावाधिगतं वा तित्थपालं वा पाणियपरियं वा ण्हाणघरियं वा सुराधरितं वा बूया । लुक्खेसु कट्टाधिकतं वा तणाधिगतं वा बीतपालं वा बूया । अभितरेसु ओपेसेज्जिकं 10 वा सीसारखं वा बूया । बाहिरेसु आरामाधिगतं बूआ(या) । बाहिरब्भंतरेसु णगररक्खं वा अब्भागारियं वा बूया । कण्हेसु असोकवणिकापालं बूया वाणाधिगतं वा । सामेसु ओभरणाधिगतं बूया । तत्थ ववहारिणं आपुणेयेसु उदकर्वड्डकि वा मच्छबंधं वा नाविकं वा बाहुविकं वा बूया । तंबेसु सुवण्णकारं अलत्तककारकं वा रत्तरज्जकं वा देवडं उण्णवाणियं सुत्तवाणियं जतुकारं चित्तकारं चित्तवाजी वेति । सुक्केसु तट्ठकारं सुद्धरजकं वा बूया । खंडिते छिण्णे भिण्णे सुवण्णकारे लोहकारे सीतपेट्टके जतुकारे कुंभकारा य विण्णेया । दढेसु मणिकारं संखकारं च विन्नेयं । थूलेसु कंसकार-पट्टकार15 दुस्सिक-रयक-कोसेज्ज-वाग-देवडसा(मा)ति विण्णेया । थूलेसु ओरब्भिक-महिसघातका विण्णेया । दीहेसु उस्सणिकामत्तं छत्तकारक-वत्थोपजीविका विण्णेया । ह्रस्सेसु रसेसु फलवाणिय-मूलवाणिय-धण्णवाणिया विण्णेया । सव्वआहगते ओदनिक-मंस-कम्मासवाणिज्ज-तप्पण-लोणवाणिज्जा-ऽऽपूपिक-खज्जकारका विण्णेया । तत्थ सव्वग्गहणेसु पण्णिक-फलवाणियका विण्णेया । उपग्गहणेसु सिंगारवाणिया विण्णेया । सिरसि राया वा अमच्चो वा अस्सवारिको वा छत्तधारको वा छत्तकारको वा सीसारक्खो वा पसाधको वा विण्णेया । णिडाले हेत्थिखंसं वा अस्सखंसं व त्ति बूया । 20 अच्छीसु अग्गिउपजीवि वा आहितग्गि वा बूया । कण्णेसु सुवण्णकारो वा कुसीलको (वो)[वा] रंगवचरो वा विण्णेया । णासायं गंधिको मालाकारो चुण्णिकारो वा, जिब्भायं सूतमागधं पुस्समाणवं पुरोहितं धम्मटुं महामंतं गणकं गंधिकं गायक दपकारं बहुस्सयं वा, गीवायं मणिकारं सुवण्णकारं कोट्टाकं वड्डकिं वा बूया । बाहूसु वत्थपाढकं वत्थुवापतिकं मंतिकं भंडवापतं तित्थवापतं आरामवावतं वा बूया । तत्थ उरे अधिगतं वा रधकारं वा दारुकआधिकारिका विण्णेया । उदरे महाणसिकं वा सूतं वा ओदनिकं वा बूया । कडीयं सामेलक्खं वा गणिकाखंसं वा बूया । ऊरुसु हत्थारोहं वा 25 अस्सारोह वा बूया । जंघासु दूतं पेस्सं वा बूया । खुलुकेसु बंधं वा बंधनागारियं वा बूया । पादेसु चोरलोपहारा विण्णेया । सव्वमूलजोणीगते मूलक्खाणक-मूलिक-मूलकम्मा विण्णेया । तिक्खेसु सव्वसत्थका विण्णेया । सारवंतेसु हेरण्णिक-सुवण्णिक-चंदण-दुस्सिक-संजुकारका देवडा वेति विण्णेया । बाहिरेसु कम्मावयणेसु तिण्हेसु सव्वचतुप्पयगतेसु सव्वभूमीगते य गोवज्झभतिकारका य विन्नेया । चलेसु य आसारेसु य आविद्धेसु य ओयकार-ओडा य विण्णेया । १ "लुद्धंगधाउरत्तिकं वा हं० त० ॥ २ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणतीसइमो णगरविजयज्झाओ १६१ णिण्णेसु मूलखाणक-कुंभकारिक-इड्डकार-बालेपतुंद-सुत्तवत्त-कंसकारक-चित्तकारका विण्णेया। ओकिन्नेसु रूवपक्खरफलकारका विन्नेया । सव्ववद्धमाणेसु सीकाहारके-मड्डहारका विण्णेया । तत्थ अप्पणा पहतेसु कोसज्जवायका दिअंडकंबलवायका कोलिका चेव विण्णेया । उपहुतेसु सव्वओसधगते य वेज्जा विण्णेया । कायस्स परिमासे कायतेगिच्छका विण्णेया । थणेसु य सव्वसत्थगते सल्लकत्ता विण्णेया । अच्छिगते सालाकी, सव्वदेवगते भूतविज्जिका, बालेज्जेसु कोमारभिच्चा विण्णेया। सव्वपरिसप्पगते विसतिथिका विण्णेया । अब्भंतरेसु सिप्पपारगतं बूया । बाहिरब्भंतरेसु 5 मज्झिमं बूया । सव्वपाणजोणिगते वेज्ज-चम्मकार-हाविय-ओरब्भिक-गोहातक-चोरघाता विण्णेया । बाहिरेसु वि दढं बूया । सिवेसु मायाकारकं वा गोरीपाढकं वा लंखक-मुट्ठिक-लासक-वेलंबक-गंडकघोसकं बूया । सव्वछिद्देसु सव्वउपद्दुतेसु मोघं सिप्पं बूया । अवस्थितेसु उर्दुभागेसु सफलं सिप्पं बूया । अधोभागेसु निप्फलं सिप्पं बूया ॥ ॥ इति भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय कम्मजोणी णाम अट्ठावीसतिमो अज्झाओ सम्मत्तो ॥ २८ ॥ छ । [एगूणतीसइमो णगरविजयज्झाओ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय णगरविजयो णामाज्झायो । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामो । तं जधा-तत्थ अस्थि णगरं णत्थि णगरं ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे मुदितामासे पुण्णामधेज्जे सव्वआहारगते य अस्थि णगरं ति बूया । तत्थ बज्झामासे सव्वणीहारगते य णत्थि णगरं ति बूया । तत्थ णगरे पुव्वमाधारिते समिद्धं न समिद्धं ति आधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासादीसु समिद्धं णगरमिति बूया । तत्थ बज्झामासादिसु ण समिद्धं णगरं ति बूया । तत्थ णगरे पुव्वमाधारिते 15 बंभेयेसु सव्वबंभणपडिरूवगते य बंभणज्झोसियं ब्रूया, बंभणोसण्णं वा णगरं ति बूया । तत्थ खत्तेयेसु सव्वखत्तगते य सव्वखत्तपडिरूवर्गते खत्तियज्झोसियं वा खत्तिकोसण्णं वा णगरं ति बूया । वेस्सेज्ज(ज्जे)सु सव्ववेस्सपडिरूवगते य इस्स-झोसितं वा वेस्सोसण्णं वा णगरं ति बूया । सुद्देयेसु सव्वसुद्दपडिरूवगते य सुद्दज्झोसियं वा सुद्दोसण्णं वा णगरं ति बूया । तत्थ णगरे पुव्वमाधारिते थीणामं पुण्णामं ति पुवमाधारयितव्वं भवति । तत्थ पुण्णामेसु सव्वपुरिसपडिरूवगते य पुण्णामधेज्ज रायहाणि बूया । थीणामेसु सव्वइत्थिपडिरूवगते य थीणामधेज्जं साखानगरं वा बूया । दढेसु चिरनिविटुं 20 नगरं ति बूया । चलेसु अचिरनिविलृ णगरं ति बूया । णिद्धेसु बहुउदगं वा बहुवुट्ठीकं वा णगरं ति बूया । लुक्खेसु अप्पोदगं वा अप्पवुट्ठीगं वा णगरं ति बूया । बज्झेसु सव्वचोरपडिरूवगते य चोरवासो णगरं ति बूया । अब्भंतरेसु सव्वअज्जपडिरूवगते य अज्जो वासो णगरे त्ति बूया । आहारेसु अप्पणो णगरं ति बूया । णीहारेसु परणगरं ति बूया । दीहेसु दीहं णगरं ति बूया । परिमंडलेसु परिमंडलं ति बूया । चतुरस्सेसु चतुरस्सं ति बूया। कैसेसु सव्वमूलजोणीगते य कट्ठपागारपरिगतं णगरं ति बूया । थूलेसु इट्टगपागारं ति बूया । दक्खिणेसु दक्खिणोद्दागं णगरं ति बूया । वामेसु 25 वामोद्दागं णगरं ति बूआ । मज्झिमेसु पविलृ णगरं ति बूआ । पुधूसु वित्थिण्णं णगरं ति बूआ । गहणेसु गहणणिविटुं णगरं ति बूआ । उपग्गहणेसु आरामबहुलं णगरं ति बूया । उद्धंभागेसु उद्धनिविटुं पव्वते व त्ति बूया । णिण्णेसु णिण्णे वा निव्विगंदि पाणुप्पविटुं वा णगरं ति बूया । द्धेसु बहुवाधीतं वा णगरं ति बूया । मोक्खेसु अव्वाधितं १ कारछावेपर्बुद हं० त० ॥ २ 'कनट्टहा" हं० त० ॥ ३ उपद्दवेसु हं० त० ॥ ४ कायएगिच्छका हं० त० ॥ ५ सालकी, सत्तदेवगते भूयवेधिका, बालेयेसु हं० त० ॥ ६ “समत्थिका हं० त० ॥ ७ "प्पकार हं० त० ॥ ८ 'बकगंतुकयोसकं हं० त० ॥ ९ माहारियव्वं हं० त० ॥ १० णत्थि घरं ति सप्र० ॥ ११ आहारियव्वं हं० त० ॥ १२ गते पुण्णामधेज्जं तं वा खत्तिकोसण्णं हं० त० विना ॥ १३ वइस्सिज्झो सप्र० ॥ १४ 'माहारियव्वं हं० त० ॥ १५ केसेसु हत० ॥ १६ मूलेसु हं० त० ॥ १७ उच्चनिवि हं० त० विना ॥ १८ वट्टेसु सं ३ पु० सि० । वहेसु हं० त० ॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ अंगविज्जापइण्णयं वा अप्पुज्जोगं व त्ति बूया । पसन्नेसु अतिक्खदंडं अप्पपरिक्खेसं वा णगरं ति बूया । अप्पसन्नेसु बहुविग्णहं बहुपरिक्खेसकारामणं ति व बूया। पुरत्थिमेसु गत्तेसु पुरत्थिमेसु य सद्द-रूवेसु पुरत्थिमायं दिसायं णगरं ति बूया । पच्छिमेसु य गत्तेसु स पच्छिमेसु - य सद्द-रूवेसु पच्छिमायं दिसायं ति बूया । दक्खिणेसु सद्द-रूवेसु दक्खिणेसु य गत्तेसु दक्खिणायं दिसायं ति बूया । वामेसु गत्तेसु वामेसु य सद्द-रूवेसु उत्तरायं दिसायं ति बूया । पुण्णेसु बहुअण्णपाणं 5[णगरं] ति बूया । तुच्छेसु अप्पअण्णपाणं णगरं ति बूया । वायव्वेसु बहुवातकं बहुवातोवद्दवं च णगरं ति बूया। अग्गेयेसु बहुउण्हं आलीपणगबहुलं व त्ति बूया । आपुजोणीयेसु बहूदकं बहुवुट्ठिकं बहूदकवाहनं वा णगरं ति बूया । तण्हेसु बहुमकसकं वा सेत्थप्पातबहुलं व त्ति बूया । आदिमूलिकेसु आसण्णे णगरं ति बूया । मज्झविगाढेसु जुत्तोपकट्ठणगरं ति बूया । अंतेसु दूरे पच्चंतिमणगरं ति बूया । अयोगखेमपडिरूवगते सुभिक्खयोगक्खेमगतं अणभिवुत्तं वा णगरं ति बूया । सद्देयेसु विस्सुयकित्तियं ति बूया । दंसणीयेसु दिट्ठपुव्वं वा रमणीयं वा णगरं ति बूया ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय णगरविजयो णामाज्झायो एगूणतीसतिमो सम्पत्तो ॥ २९ ॥ छ । [तीसइमो आभरणजोणीअज्झाओ] 0000000 अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय आभरणजोणी णामाज्झायो । तं खलु भो ! [त]मणुवक्खस्सामो । तं जधा-तत्थ अस्थि आभरणं णत्थि आभरणं ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे 15 दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे आबद्धे मल्ले वा भूसणे वा हसिते वा गीते वादितगते सव्वाभरणगते आबद्धं आभरणं बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे तुच्छामासे कासिते खुहिते णिम्मज्जिते णिल्लिखिते णिब्भग्गे णिट्ठते ओमुक्के मल्ले वा भूसणे वा अच्छादणे वा रुण्णे वा कंदिते वा कुंजिते वा सव्वउपहुतेसु य अणाबद्धं आभरणं बूया । तत्थ आभरणं तिविधमाधारयितव्वं भवति-पाणजोणीगतं धातुजोणीगतं मूलजोणीगतं । तत्थ पाणजोणीयं चलेसु य पाणजोणीयं विण्णेयं । सव्वमूलगते मूलजोणीगतं विण्णेयं । F धाउजोणीगए धाउजोणीगयं विण्णेयं । तत्थ पाणजोणीमयं 20संखमयं मुत्तामयं दंतमयं गवलमयं वालमयं अट्ठमयं चेति । तत्थ मूलजोणीमयं कट्ठमयं पुप्फमयं फलमयं पत्तमयं चेति । तत्थ धातुमयं सोवण्णमयं रुप्पमयं तंबमयं सीसमयं लोहमयं तपुमयं काललोहमयं आरकुडमयं सव्वमणिमयं गोमेयकं लोहितक्खो पवालकं रत्तक्खारमणि लोहितकं चेति । तत्थ सेतेसु रुप्पमयं संखमयं मुत्तामयं सुक्क फलिकविमलक-सेतक्खारमणी विण्णेया । तत्थ कालकेसु सीसक-काललोह-अंजणमूलक-कालक्खारमणी वेति । णीलेसु सस्सक-णीलखारमणी चेति । अग्गेयेसु सुवण्ण-रुप्प-सव्वलोहमयं लोहितक्ख-मसारकल्ल-खारमणी चेति । अणग्गेयेसु 25 अवसेसाणि बूया । कोट्टिते सव्वलोहमयं विण्णेयं । णिस्सिते सव्वक्खारमयं विण्णेयं । घट्टेसु सव्वमणिमयं विण्णेयं संखगतं पवालगतं वा बूया । विसुद्धेसु ओमधिए परिमद्दिते मुत्ता विण्णेया । तत्थ सिरसि ओचूलक-णंदिविणद्धकअपलोकणिका-सीसोपकाणि य आभरणाणि बूया । कण्णेसु तलपत्तका-ऽऽबद्धक-पलिकामदुघनक-कुंडल-जणकओकासक-कण्णेपूरक-कण्णुप्पीलकाणि य बूया । अक्खीसु अंजणं, भमुहासु मसी, गंडेसु हरिताल-हिंगुलुय-मणस्सिला विण्णेया । ओढेसु अलत्तको विण्णेयो । कण्ठेसु वण्णसुत्तकं तिपिसाचकं विज्जाधारकं असीमालिका-हार-ऽद्धहार १ अप्पजोगं हं. त० ॥ २ "रिक्वेस हं० त० विना ॥ ३ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगतीसइमो वत्थजोणी अज्झाओ १६३ पुच्छलक—आवलिका–मणिसोमाणक - अट्ठमंगलक- पैंचुका - वायुमुत्ता - वुप्पसुत्त - पडिसराखारमणी कट्टेवट्टका वेति आभरणजोणी बूया । बाहूसु अंगयाणि तुडियाणि सव्वबाहोवकाणि बूया । हत्थेसु हत्थेकडगाणि कडग - रुचक-सूचीका यानि वा तानि हत्थोपकाणि वा बूया । हत्थेसु अंगुलीसु य अंगुलेयकं मुद्देयकं वेंटकं जाणि य अन्नाणि अंगुलेयकाणि ताणि ब्रूया । कडीयं कंचिकलापकं मेखलिका कडिउपकाणि य बूया । जंघासु गंडूपयकं णीपुराणि परिहेरकाणि आभरणाणि य बूया । पादेसु खिखिणिक - खत्तियधम्मका पादमुद्दिका पादोपकाणि य आभरणाणि बूया ॥ ॥ इति खलु भो महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय आभरणजोणी नामज्झायो तीसतिमो सम्मत्तो ॥ ३० ॥ छ ॥ [ एगतीसइमो वत्थजोणी अज्झाओ ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय वत्थजोणी णामऽज्झाओ । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामो । तं जधा-तत्थ अत्थि वत्थं नत्थि वत्थं ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे मुदितामासे पुण्णामधिज्जे सव्वआहारगते य सव्ववत्थपडिरूवगते य अत्थि वत्थं ति बूया । तत्थ बज्झामासे 10 चलामासे तुच्छामासादिके हि णत्थि वत्थं ति बूया । तत्थ वत्थे पुव्वाधारिते वत्थं तिविधमाधारयितव्वं भवति - धातुजोणिगतं मूलजोणितं पाणजोणिगतं चेति । तत्थ चलामासे सव्वपाणजोणिगते य पाणजोणिगतं बूया । तत्थ दढामासे सव्वधातुजोणीगते य धातुजोणीगतं बूया । तत्थ सव्वकेस - मंसुगते सव्वमूलगते य मूलजोणि बूया । तत्थ पाणजोणीगते वत्थे पुव्वमाधारिते पाणजोणिगतं वत्थं तिविधमाधारये - कोसेज्जं पतुज्जं आविकं चेति । तत्थ सव्वचतुप्पदगते सव्वचतुप्पयपडिरूंवगए य सव्वाविकं बूया । तत्थ सव्वकीडगते सव्वकीडपडिरूवगते य कोसेज्जं वा पेत्तुण्णं वा 15 बूया । तत्थ मूलजोणीगते पुव्वाधारिते मूलजोणिगतं वत्थं चतुव्विधमाधारये - खोमं दुकुल्लं चीणपट्टं सव्वकप्पासिकं चेति । तत्थ सव्वतयागते सव्ववक्कगते सव्वखंधगते य खोमं वा दुकुल्लं वा चीणं वा पट्टं वा बूया । तत्थ सव्वफलगते सव्व अग्गगते य सव्वपम्हगते य कप्पासिकं बूया । तत्थ धातुगते वत्थे पुव्वमाधारित धातुगतं वत्थं तिविधमाधारयेलोहजालिका सुवण्णपट्टा सुवण्णखसितं चेति । तत्थ कण्हपडिरूवगते य सव्वकाललोहजालिकं बूया । तत्थ सव्वपीतके सव्वपीतपडिरूवगते य सुवण्णपट्टं सुवण्णखंसितं बूया । तत्थ दढामासे अहतं वत्थं बूया । चलामासे परिजुण्णं बूया | 20 अब्भंतरेसु परग्धं बूया । बाहिरेसु जुत्तग्घं बूया । बाहिरबाहिरेसु समग्घं ति बूया । थूलेसु थूलं, अणूसु अणुकं, दीहेसु दीहं बूया, ह्रस्सेसु ह्रस्सं बूया । अंगुलीसु सकलदेसदं बूया । णहेसु बहितं दसं बूया । चलेसु छिन्नदसं बूया । अंगुलीयंतरेसु विवाडितं बूया । वणेसु सिवितं बूया । छिद्देसु छिदं बूया । गहणेसु पावारकं वा कोतवकं वा उण्णिकं वा अत्थरकं बूया । उपग्गहणेसु एयाणं चेव तणुलोमाणि ह्रस्सलोमाणि वा बूया । मुदिएसु वधूय वत्थाणि बूया । दीणेसु मतेसु य मतकवत्थाणि विलाता वा बूया । अब्भंतरेसु सकं वत्थं बूया । बाहिरब्धंतरेसु आतवितकं 25 बूया । बाहिरेसु परकं बूया । दढेसु णिक्खित्तं वत्थं बूया । चलेसु अपहितं बूया । आहारेसु याचितकं बूया । णीहारेसु णट्टं बूया । अतिगमेसु लद्धं बूया । तत्थ अब्भंतरामासे सव्वसेतवण्णपडिरूवगते य सेयं ब्रूया । क कालकं बूया । जिब्भा - तालु — ओट्ठ - करतल - चरणतलसव्वरत्तपडिरूवगते य रत्तं बूया । ओमद्दिते पीतवण्णपडिरूवगते १ पेसुकावायुमत्तासुप्पसुत्त हं० त० ॥ २ त्थभंड हं० त० विना ॥ ३ अंगुलीकं मुद्दीकं हं० त० विना ॥ ४ बूया अय एव हत्थोवकाणि बूया । कडीयं हं० त० ॥ ५ णामाध्यायो हं० त० विना ॥ ६ कोसेट्टं प हं० त० विना ॥ ७ पउन्नं आधिकं हं० त० ॥ ८ रूवे य हं० त० विना ॥ ९ पउण्णं हं० त० ॥ १० खचियं हं० त० ॥ ११ रस्सेसु रस्सं हं० त० ॥ १२ दकं हं० त० ॥ १३ सिव्वियं हं० त० ॥ १४ विलयो वा हं० त० ॥ १५ सु णिमित्तं हं० त० ॥ अंग० १६ 5 Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ अंगविज्जापइण्णयं य पीयकं बूया । तत्थ सव्वआहारगते सेवालकं बूया । कैंस-मंसुगते सेवालकं बूया । सव्वसंधीसु अक्खके उदरे तंब - सेतसाधारणे मयूरग्गीवं बूया । सेतकण्हसाधारणेसु करेणूयकं बूया । अक्खीसु वित्तं बूया । सीतपीतसमामासे साधारणे कप्पासिकं पुप्फकं विण्णेयं । सेतरत्तसाधारणे पयुमरत्तकं विण्णेयं । रत्तपीतसाधारणे मणोसिलकं विण्णेयं । तंबकण्हसाधारणेसु मेचकं विण्णेयं । उत्तमेसु उत्तमरागं विण्णेयं । मज्झिमेसु मज्झिमरोगं विण्णेयं । 5 मज्झिमाणतरकायेसु ण जधामाणसिकं बूया । पच्चवरकायेसु विरत्तं वा अद्धरत्तं वा बूया । तत्थ अब्भंतरेसु जातीपट्टणुग्गतं बूया । बाहिरब्धंतरेसु जातीपर्डिरूपकं बूया । बाहिरेसु अपट्टणुग्गतं बूया । उद्धंगीवासिरोमुहामासे महोपकरणे उद्धभागे य जालकं वा पट्टिकं वा Do वॅटुणं वा सीसेकरणं वा बूया । उद्धं णाभीय गत्तेसु उद्धं णाभीय उपकरणेसु सव्वउत्तरिज्जगतेसु य उत्तरिज्जं बूया । अधोहेट्ठा णाभीय गत्तेसु अधोगत्तोपकरणे अंतरिज्जं बूया । पट्ठीय पच्चत्थरणं बूया । उल्लोकिते उद्धंभागेसु य विताणकं बूया । तिरियंभागेसु परिसरणकं बूया ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय वत्थजोणी णामऽज्झाओ एगतीसतिमो सम्मत्तो ॥ ३१ ॥ छ ॥ [ बत्तीसइमो धण्णजोणी अज्झाओ ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय धण्णजोणी णामाज्झायो । [तं खलु भो ! तं अणुवक्खयिस्सामि ।] तं जधा - तत्थ अत्थि धण्णं णत्थि धण्णं ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे 15 णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे मुदितामासे पुण्णामधेज्जामासे आहारगते य अस्थि धण्णं ति बूया । तत्थ सव्वधण्ण सव्वववहारगते अत्थि धण्णं ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे तुच्छामासे दीणामासे णपुंसकामासे सव्वणीहारगते य णत्थि धण्णं ति बूया । 10 तत्थ धण्णाणि सालि वीहि कोद्दवा कंगू रालका तिला मासा मुग्गा चणका कलाया णिप्फावा कुलत्था यवा गोधूमा कुसुंभा अतसीयो मसूरा रायसस्सव त्ति । तत्थेकण्णेसु पुव्वमाधारिते पुव्वण्णं अवरण्णं ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । 20 तत्थ पुरिमेसु गत्तेसु पुरिमेसु य सद्द-रूवेसु पुव्वण्णं बूया । तत्थ पच्छिमेसु गत्तेसु पच्छिमेसु य सद्द-रूवेसु अवरणं बूया । तत्थ पुव्वण्णेसु पुव्वमाधारिते सालि वीहि कोद्दवा रालका कंगू वरका तिला वेति । तत्थ अवरणे पुव्वमाधार मासा मुग्गा निप्फावा चणवा (का) कलाया कुलत्था यव-गोधूमा कुसुंभा अतसीयो मसूरा रायसस्सव त्ति बूया । तत्थ पुव्वण्णे पुव्वमाधारिते णिद्धेसु साली वीही तिला वा विष्णेया । लुक्खेसु कोद्दवा रालका वरका वा विणेया । णिद्धलुक्खसाधारणेसु वीही वा कंगू वा विण्णेया । सेतेसु सालि सेतवीही वा सेततिला वा बूया । 25 रत्तेसु रत्तसालि वा कोद्दवा वा कंगू वा रत्तवीही वा रत्ततिला वा विण्णेया । पीतकेसु रालके वा बूया । कण्हेसु कण्हवीही वा कण्हरालके वा कण्हतिले वा बूया ।* सामेसु वरके बूया । मधुरेसु साली कंगू तिले वा बूया । अंबेसु रालके बूया । कसायेसु वीही का कोद्दवे वा बूया । तत्थ संवुतेसु कोसिधण्णगते सव्वकोसीगते सव्वसंगलिकागते सव्वसंगलिकपुष्फेसु रुक्खेसु सव्वफलसमुग्गतविकागते सव्वसिंगिगते तिला बूया । तत्थ सव्वविमुक्केसु सव्वपरिकिण्णेसु बाहिरे सव्वअकोसिधण्णगते सव्वअसंगलिकाफलेसु रुक्खेसु सव्वअसंगीगते य साली वा वीही वा कोद्दवे वा वरके वा १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ २ अक्खीसु उदरे हं० त० विना ॥ ३ सेयपीयस हं० त० ॥ ४ रागं बूया । मज्झि हं० त० ॥ ५ डिरूवंचिकं हं० त० ॥ ६ सुहो हं० त० ॥ ७ Do एतच्चिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० नास्ति ॥ ८ वद्धणं हं० त० विना । ९ नामाज्झा हं० त० ॥ १० * * एतच्चिह्नान्तर्वर्ती पाठः सर्वासु प्रतिषु द्विरावृत्तो वर्त्तते ॥ अस्माभिस्तु सकृदेव स्वीकृतोऽस्ति ॥ ११ काफलेसु रु हं० त० ॥ १२ 'ग्गहवि हं० त० । गधवि सि० ॥ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेत्तीसइमो जाणजोणीअज्झाओ १६५ रालके वा कंगू वा बूया । तत्थ रत्तेसु घणेसु आचितेसु सवर्पसूतेसु सव्वपधगगते यरालकं वा कंगू वा बूया । तत्थ खंधगते सव्वर्विसालगते य तिले बूया । तत्थ सव्वअखंधगते सव्वअविसालगते य साली वा वीही वा बूया । परिमंडलेसु वट्टेसु कोद्दवा वा रालके वा बूया । तत्थ पुप्फगए अपुष्फगए त्ति । तत्थ पुष्फवंतेसु कोद्दवे कंगुओ रालके वरके वा बूया । तत्थ अव्वत्तपुप्फेसु साली वीही वा बूया । सुव्वत्तपुप्फेसु तिला बूया । इति पुव्वधण्णं (पुव्वण्णं) वक्खातं । तत्थ अवरण्हे पुव्वमाधारिते जवे वा मासे वा अतसीयो वा कुसुंभे वा सस्सवे वा बूया । तत्थ सुक्खेसु 5 णिप्फावमुग्गे चणवे(गे) कुलत्थे मसूरे वा बूया । णिद्धलुक्खेसु साधारणेसु गोधूमे वा कलाये वा बूया । सेतेसु यवे वा सेतणिप्फावे वा कुसुंभे वा बूया । रत्तेसु गोधूमे वा कुलत्थे वा अतसीयो वा वरके वा कंगू वा [बूया] । पुधूसु तिला बूया । दीहेसु साली वा वीही वा बूया । परिमंडलेसु रत्तसासवे वा रत्तणिप्फावे वा बूया । पीतकेसु चणके कलाये वा बूया । कण्हेसु मासा वा मुग्गे वा कण्हतिले वा बूया । णीलेसु हारीडणिप्फावे वा बूया । सामेसु मसूरे वा बूया । मधुरेसु जवे वा मासे वा कलाये वा मसूरे वा बूया । अंबेसु चणवेया वा गोधूमे वा कुलत्थे वा बूया 10 । कसायेसु मुग्गे बूया । तित्तकेसु णिप्फावे वा कुसुंभे वा बूया । कडुकेसु सस्सवे बूया। तत्थ सव्वसंवुतेसु कोसीधण्णगते बूया । सव्वसंगलिकागते सव्वसंगलिकाफलेसु रुक्खेसु सव्वफलसमुग्गधविकागते य सव्वसिंगिसु य मासे मुग्गे चणके वा कलाये वा णिप्फावे वा मसूरे वा कुलत्थे वा बूया। तत्थ सव्वघणे(धण्णे)सु सव्वआचितेसु सव्वपधगगते सव्वमंजरिंगते य जवे वा गोधूमे वा बूया । तत्थ सव्वगुम्म(गुप्फ)गते सव्वगोप्फधण्णगते य कुसुंभे वा सस्सवे वा अतसीको वा बूया । तत्थ सव्ववल्लीगते सव्ववल्लिधण्णगते य णिप्फावे वा कुलत्थे वा बूया । तत्थ सव्वगुम्मगते सव्वगुममधण्णगते 15 य मुग्गे वा मासे वा कलाये वा मसूरे वा चणए वा बूया । तत्थ सव्वखंधगते सव्वखंधमये धण्णगते सस्सए वा कुसुंभे वा अतसीओ वा बूया । तत्थ सव्वअक्खखंधगते जवे वा गोधूमे वा बूया । तत्थ सव्वपुधूसु णिप्फावे वा कुलत्थे वा मसूरे वा बूया । वट्टेसु चणए वा मुग्गे मासे वा कुसुंभे वा सस्सपे वा बूया । दीहेसु जवे वा गोधूमे वा बूया । तत्थ सव्वत्तपुप्फेसु मुग्गे वा मासे वा चणए वा णिप्फावे वा मसूरे वा अतसीको वा सस्सए वा कुसुंभे वा बूया । अव्वत्तपुप्फेसु जवे वा गोधूमे वा बूया । थूलेसु णिप्फावे वा बूया | मज्झिमकायेसु जवे वा गोधूमे वा 20 बूया । कुसुंभे वा मासे वा मुग्गे वा चणगे वा कलाये वा बूया । पच्चवरकायेसु अतसीको वा सस्सवे वा मसूरे वा बूया । तत्थ णिद्धेसु अतिगमेसु य भायणगतं धण्णं बूया । कायवंतेसु मंजूसागतं पल्लगतं बूया । चलेसु जाणगतं बूया। अब्भंतरेसु णिवेसणगतं बूया । अब्भंतरभंतरेसु ओवारिगतं बूया । बाहिरेसु बाहिरो धण्णं बूया । बाहिरबाहिरेसु अरण्णगतं बूया । आहारेसु कीतं बूया । णीहारेसु विक्कीतं बूया। अब्भंतरब्भंतरेसु सकं बूया । अब्भंतरेसु मित्तधण्णं बूया । बाहिरब्भंतरे जाचितकं बूया । बाहिरेसु णिक्खे[व]परिगतं ब्रूया । बाहिरबाहिरेसु अपरिहियं बूया । महापकासेसु महापरिग्गहेसु य 25 बहुं बूया । अप्पपकासे अप्पपरिग्गहेसु य अप्पं बूया । परिजुन्नेसु पोराणं बूया । बालेसु णवं बूया ॥ ॥ इति महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय धण्णजोणी णामाज्झायो बत्तीसतिमो सम्मत्तो ॥ ३२ ॥छ । [तेत्तीसइमो जाणजोणीअज्झायो] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय जाणजोणी णामाज्झायो । तं जधा-तत्थ अत्थि जाणं णस्थि जाणं ति पुवमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे 30 १ पत्तएसु हं० त० ॥ २-३ 'विलासगते हं० त० विना ॥ ४ पुष्फगते फलगते त्ति हं० त० विना ॥ ५ कंगू रा' हं० त० ॥ ६ सुवण्णपु' हं० त० ॥ ७ पुव्ववण्णं हं० त० ॥ ८ गते सव्वगुप्फधण्णगए य मुग्गे हं० त० ॥ ९ वण्णमए सस्सवे हं० त० ॥ १० सुवण्णगुप्फे वा समुग्गे हं० त० | ११ अवत्तगुप्फेसु हं० त० ॥ १२ अपहरियं हं० त० ॥ १३ सु वण्णवं हं० त० ॥ १४ णामऽज्झा' हं० त० ॥ १५ 'माहारयियव्वं हं० त० ॥ १६ “मासे दढामासे णिद्धा सि० ॥ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ अंगविज्जापइण्णयं सव्वआहारगते अत्थि जाणं ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे तुच्छामासे दीणामासे णपुंसकामासे सव्वणीहारगते य णत्थि जाणं ति बूया ।। तत्थ जाणे पुव्वमाधारिते जाणं दुविधमाधारये-सज्जीवं णिज्जीवं चेति । तत्थ सज्जीवोवलद्धीयं सज्जीवं बूया । तत्थ अज्जीवोवलद्धीयं अज्जीवं । तं दुविधमाधारये-जलयरं थलयरं चेति । 5 तत्थ सव्वथलोपलद्धीयं थल विण्णातव्वं भवति । तत्थ सव्वआपुणेयेसु जलयरं विण्णातव्वं भवति । तत्थ थलचरे सिबिका भद्दासणं पल्लंकसिका रधो संदमाणिका गिल्लि जुग्गं गोलिंगो सकडं सकडी चेति । तत्थ पुण्णामेहि पुण्णामं ति बूया । थीणामेहि थीणामं ति बूया । तत्थ उत्तमेसु सिबिका भद्दासणं वा विण्णेयं-पुण्मामेसु भद्दासणं, थीणामेसु सिबिका । सव्वसत्थगते सव्वसंगामगते य रधो विण्णेयो । तत्थ सव्वसयणगते पल्लंकसिका विण्णेया । तत्थ विपुलेसु विपुलं बूया । संवुतेसु संवुतं बूया । महव्वयेसु सकडं वा संदमाणिकं वा गिल्लिं वा बूया । मज्झिमकायेसु 10 सकडिं बूया । पच्चंवरकायेसु रधं गोलि[गं] वा बूया । स तत्थ उद्धंभागेसु उल्लायितं बूया । अधोभागेसु अणुल्लायितं बूया । तत्थ दीहेसु सकडं वा गिल्लिं वा जुग्गं वा सकडि वा बूया । > परिमंडलेसु भद्दासणं वा रधं वा गोलिकं वा बूया । इति थलचराणि अज्जीवाणि जाणाणि बूया ।' तत्थ णिज्जीवाणि जलचराणि-णावा पोतो कोट्टिबो सालिका तप्पको प्लवो पिंडिका कंडे वेलु तुंबो कुंभो दती चेति । तत्थ पुण्णामेसु पुण्णामाणि । थीणामेसु थीणामाणि । तत्थ महावकासेसु णावा पोतो वा विन्नेया । 15 मज्झिमकायेसु कोट्टिबो सालिका संघाडो प्लवो तप्पको वा विण्णेयो । मज्झिमाणंतरेसु कटुं वा वेलू वा विण्णेयो । पच्चंवरकायेसु तुंबो वा कुंभो वा दती वा विण्णेया । इति णिज्जीवाणि जलचराणि भवंति । तत्थ सज्जीवा जाणजोणी-अस्सा हत्थी उट्टा गो महिसा खरा अयेलका मका चेति । तत्थ उद्धंभागेसु सव्वसिगिसु य सव्वसंगलिकागते य संगलिकावत्थेसु सव्वगोसिधण्णगते य सिंगी विण्णेया । तत्थ अधोभागे सव्वअसंगलिकागते य फल-वच्छेसु या सव्वअकोसीधण्णगते य असिंगी विण्णेया । तत्थ महावकासेसु हत्थी उट्टा महिसा वा विन्नेया । . 20 मज्झिमकायेसु अस्सा बलिवद्दा वा विन्नेया । मज्झिमाणंतरकायेसु मगे वा खरे वा बूया । पच्चवरकायेसु अए वा एलके वा बूया । तत्थ सव्वहत्थिगते हत्थिउपजीविसु हत्थिउपकरणे हत्थिपडिरूवगते य सव्वहत्थिपादुब्भावे हत्थि बूया । तत्थ सव्वअस्सगते सव्वअस्सोपकरणे सव्वअस्सोपलद्धीयं अस्सपादुब्भावे य अस्सं बूया । तत्थ सव्वगोगते सव्वगोउपजीविसु सव्वगोउपकरणगते सव्वगोउपकरणणामधेज्जोदीरणे सव्वगोपादुब्भावे य बलिवदं बूया । तत्थ सव्वमहिसोपलद्धीयं महिससद्दरूवपादुब्भावे य एवमेव महिसं बूया । एवमेव सव्वउट्टोपलद्धीयं उट्टो विन्नेयो । 25 सव्वखरोपलद्धीयं खरो विन्नेयो । सव्वअयेलकोपलद्धीयं अयेलको विण्णेयो । एवमेव सव्वमगोपलद्धीयं मका विन्नेया । तत्थ गहणेसु अयेलकं विण्णेयं । उपग्गहणेसु य अवसेसा विण्णेया । तत्थ अब्भंतरभंतरेसु सकं जाणं विण्णेयं । बाहिरब्भंतरेसु याचितकं जाणं बूया । बाहिरेसु आधावितकं जाणं । बाहिरबाहिरेसु अपहरितकं जाणं । तत्थ वयस्थेसु अभिरामेसु य णवं बूया । अणभिरामेसु महव्वएसु य जुण्णं बूया । छिद्देसु दुट्ठितं जाणं । घणेसु सुद्रुितं जाणं बूया । आहारेसु कीतकं बूया, णीहारेसु विक्कीतं बूया । सामेसु पडिरूवं जाणं ति बूया ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय जाणजोणी णामाज्झायो तेत्तीसतिमो सम्मत्तो ॥ ३३ ॥ छ । १ सव्वोपल' सं ३ पु० सि० । सव्ववलोपल हं० त० ॥ २ जलचरे सप्र० ॥ ३ जुग्गगोसंकडकडी हं० त० विना ।। ४ एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ५ कोडिंबो हं० त० ॥ ६ वच्छेसु हं० त० ॥ ७ “सु अहावियकं हं० त० ॥ ८ नामज्झा हं० त० ॥ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चडतीसइमो संलावजोणी अज्झाओ [ चउतीसइमो संलावजोणी अज्झाओ ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय संलापजोणी णामाज्झायो । तं खलु भो ! तवक्खस्साम । तं जधा - तत्थ वत्तो संलावो ण वत्तो त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंत मासे दढमासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे वत्तो संलावो त्ति बूया । तत्थ बज्झामासे लुक्खामासे तुच्छामा पुव्वामासे ण वत्तो संलावो त्ति बूया । तत्थ सज्जीवेसु सज्जीवमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । तत्थ णिद्धामासे 5 सुद्धामासे पुण्णामासे घोसवंतेसु य सज्जीवमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे सुक्खामासे लुक्खामासे तुच्छामासे अघोसवंतेसु य अज्जीवमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । १६७ तत्थ जीवगतं तिविधं - दिव्वं माणुस्सं तिरिक्खजोणीगयं चेति । तत्थ उद्धंभागेसु दिव्वमंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । उजुभागेसु थीणामामासेसु माणुस्सोपकरणगते य माणुसमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । तत्तो चतुरस्सेसु चतुप्पदोपकरणेसु य चतुप्पदमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । तत्थ उद्धंभागेसु सव्वपक्खिगते य पक्खिमंतरेणं वत्तो 10 संलावो त्ति बूया । तत्थ दीहेसु सव्वेसु सव्वपरिसप्पगते य परिसप्पमंतरेणं वत्तो संलावोति बूया । आयुजोणीये जलचरेसु य जलचरमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । अणूसु सव्वखुड्डसिरीसिवगए य खुड्डसिरीसिवमंतरेणं वत्तो संलावोति बूया । तत्थ पुण्णामासेसु पुरिसमंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । श्रीणामधेज्जेसु थीणाममंतरेण वत्तो संलावोति बूया । णपुंसकेसु णपुंसकमंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । बंभेयेसु बंभणमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । खत्तेयेसु खत्तियमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । वेसेज्जेसु वेस्समंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । सुद्देयेसु सुद्दमंतरेण 15 वत्तो संलावो त्ति बूया । उड्ड णाभीय उत्तममंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । अधो णाभीयं उद्धं जाणुकेहि अधे दीणकमंतरेण वत्तो संलावोति बूया । अहे जाणूणं पायजंघेसु पेस्समंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । अणूसु वत्थमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । सामेसु आभरणमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । बेद्धेसु बद्धं वावारकमंतरेणं वा वत्तो संलावोति बूया । चलेसु जाणमंतरेणं वत्तो संलावोति बूया । उद्धंभागेसु पासादं वा चंदं वा सूरं वा णक्खत्तस्स वा अंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । अधोभागेसु कूप-णदीमंतरेणं वा वत्तो संलावो त्ति बूया । तिण्हेसु सव्वसत्थगते य आयुधाकारस्स 20 वा आयुधभंडस्स वा अंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । एतेसु ज्जेव जोधस्स वा खंधावारस्स वा संगामस्स वा अंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । सव्वकामुकपयत्तेसु चलेसु य अंतरेसु य वेसिकं वा गणिकायं वा गढिकायं वा कामुकस्स वा कामिणीयं वा अंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । तत्थ दढेसु णगरस्स वा जणपदस्स वा सण्णिवेसस्स वा खेत्तस्स वा खेडस्स वा आरामस्स वा अंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । णिद्धेसु तलाकस्स वा णदीयं वा सरस्स वा पोक्खरणीयं वा उउपाणस्स वा अंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । लुक्खेसु कंटकस्स वा सुसाणस्स वा सुण्णघरस्स 25 वा उपद्रवस्स वा अण्णणगर-गाम- जणपदस्स वा गिहस्स वा अंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । णपुंसकेसु णिरत्थकं वत्तो संलावो त्ति बूया । बज्झेसु दूरजणपद - णगरमंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । बाहिरब्धंतरेसु इमस्स जणपदस्स अंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । अब्भंतरेसु सैंकस्स वा जणकस्स वा उपकरणस्स वा अंतरेणं वत्तो ला बूया । णीहारेसु बज्झस्स वा जणस्स अण्णातकस्स वा उपकरणस्स वा अंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । दीहकालं वत्तो संलावो त्ति बूया । दीहेसु रस्सेसु रस्सकालं वत्तो संलावो त्ति बूया । थूलेसु हत्थिस्स वा ० मैंहिसस्स वा 30 १ नामऽज्झा हं० त० ॥ २ तं जहा खलु हं० त० ॥ ३ जीवमयं हं० त० ॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ५ वद्वेसुवद्दं वावा' हं० त० ॥ ६ जालमं हं० त० ॥ ७ वा मूढि हं० त० ॥ ८ उदुपाण हं० त० ॥ ९ लुक्खस्स कं हं० त० विना ॥। १० सकस्स वा उपकारणवत्तो सं ३ पु० । सकस वा जणसकस्स वा उपकरण वा उपकरेण वत्तो सि० || १९ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ १२० एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ अंगविज्जापइण्णयं मच्छस्स वा थूलपक्खि-परिसप्पथी-पुरिसमंतरेण वा वत्तो संलावो त्ति बूया । कसेसु खुडाकसत्तमंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । पुधूसु वत्थुमंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया, खेत्तमंतरेण वा बूया । गहणेसु आराममंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । उपग्गहणेसु खेत्तसीमामंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । परिमंडलेसु भायणमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । मतेसु मतमंतरेणं वत्तो संलावो त्ति बूया । उण्णतेसु उलुकमंतरेणं पव्वतमंतरेण वा वत्तो संलावो त्ति 5 बूया । पसण्णेसु दाणमंतरेण वा वंदणमंतरेण वा + पतिग्गहमंतरेण वा “ सम्मोईमंतरेण वा वत्तो संलावो त्ति बूया । अप्पसण्णेसु निच्छोभमंतरेण वा णिराकारमंतरेण वा वत्तो संलावो त्ति बूया । पुण्णेसु आहारमंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । तुच्छेसु छुधामंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । अग्गेयेसु अग्गीमंतरेण वा आलीपणकमंतरेण वा वत्तो संलावो त्ति बूया । जण्णेयेसु उस्सयमंतरेण वा समवायमंतरेण वा वत्तो संलावो त्ति बूया । दंसणीयेसु चंदा-ऽऽदिच्च गह-तारारूवसमिद्धसामिद्धि गाम-जणपद-णगस्-उस्सयसमायमंतरेण वा वत्तो संलावो त्ति बूया । अणागतेसु 10 अणागतमंतरेण वा वत्तो संलावो त्ति बूया । वामदक्खिणेसु वत्तमाणमत्थमंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । पच्छिमेसु गत्तेसु अतीतमत्थमंतरेण वत्तो संलावो त्ति बूया । ॥ इति महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय संलावजोणी नामाज्झायो चउतीसतिमो सम्पत्तो ॥ ३४ ॥ छ । [पणतीसइमो पयाविसुद्धीअज्झाओ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पयाविसुद्धी णामाज्झायो । तं जधा-तत्थ अत्थि 15 पया णत्थि पय त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे दक्खिणामासे मुदितामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे सव्वआहारगते य अत्थि पय त्ति बूया । तत्थ उल्लोइते उस्सिते उच्चारिते उण्णामिते उत्थिते उपसारित उपवप्यिते उपलोलिते उपकड्डिते उपवत्ते उपणते उपणद्धे उपलद्धे उपसारिते एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे अस्थि पय त्ति बूया । तत्थ माता-पितु-भगिणि-सोदरिय-मित्त-बंधुजणसमागमे समाणिते अभिसंगते अभिणंदिते उपदासिते उपगूहिते चुंबिते अच्छायिते पागुते परिहिते अणुलित्ते अलंकिते वा एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे अत्थि पय 20त्ति बूया । तत्थ उक्कुटे अप्फोडिते पच्छोलिते गज्जिते पवादिते सेसाऽऽयाग-बलिहरगते णव-पुण्ण-पसत्थ-पह? परग्घ-पच्चउदग्गीये पुप्फे वा फले वा मल्ले वा भूसणे वा अच्छादणे वा F आसणे वा सयणे वा 9 जाणे वा वाहणे वा उपकरणे वा रयणगते वा धण्णगते वा धणे वा पाणे वा भोयणे वा उपणामित-पडिच्छिते वा एवंविधसद्दरूवपादुब्भावे अत्थि पय त्ति बूया । तत्थ उवलद्ध-संत-भूत-अत्थिसद्दपादुब्भावे अत्थि पय त्ति बूया । तत्थ धातीकुमारदारकसव्वअपच्चपादुब्भावे य अस्थि पय त्ति बूया। तत्थ बज्झामासे चलामासे कण्हामासे लुक्खामासे तुच्छामासे 25 दीणामासे णपुंसकामासे सव्वणीहारगते य णत्थि पय त्ति बूया । तत्थ कासिते छीते जंभिते रुदिते परिदेविते भग्गे भिण्णे विणढे विपाडिते विक्खिन्ने विच्छुद्धे विच्छित्ते "णिटुंचिते विणासिते "विसंधिते रूवाकडे फूमिते विज्झविते धंते वा एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे णत्थि पय त्ति बूया। तत्थ णिम्मज्जिते णिल्लिखिते णिस्सारिते णिण्णामिते णिद्धाडिते "णिल्लोलिते णिकड्डिते णिप्फीलिते णिच्छालिते णिक्खित्ते णिच्छुद्धे णिव्वाडिते णिसित्ते णिलूचिते णिच्छोलिते णिस्ससिते १ वत्थमं हं० त० ॥ २ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ३ आलापक' हं० त० ॥ ४ नामोऽज्झा हं० त० ॥ ५ णामऽज्झा ' हं० त० ॥ ६ माहारयियव्वं हं. त० ॥ ७ उल्लोकिए हं० त० ॥ ८ ‘णते उपणाइ[ए] उपसारिते हं० त० विना ॥ ९ उक्कटे हं० त०॥ १० पच्छिलिते हं० त० विना ॥ ११ "लिदूर हं० त० ॥ १२ “पच्चादग्गीये हं० त० विना ॥ १३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ १४ धण्णे वा हं० त० ॥ १५ णितुंचिते सं ३ पु० । णिलुविए हं० त० ॥ १६ विधंसिते सि० ॥ १७ णिल्लोडिए णिक्कट्ठिए हं० त० ॥ १८ णिच्छोलिए णिषिद्धे णिव्वुद्धे हं० त० ॥ १९ णिच्चोलिए हं० त० ॥ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणतीसइमो पयाविसुद्धीअज्झाओ णिस्सरिते णिप्पतिते णिप्फाडित 'णिड्डीले णिकुज्जिते णिव्वामिते णिराकते णिराणते चेति एवंविधसद्दरूवपादुब्भावे णस्थि पय त्ति बूया । तत्थ पम्हुढे पेमुक्के पब्भटे पकिण्णे पेविसिते पमुच्छिते पलोलिते परावत्ते परिसडिते परिसोडिते पंडिसिद्धे पप्फोडिते पडिणायिते पैडिहरिते पडिदिन्ने पडिछुद्धे पडिते परिवद्धिते पडिलोलिते पडिसरिते पडिओधुते एवंविधसद्दरूवपादुब्भावे णत्थि पय त्ति बूया । तत्थ अपमढे अपलोलिते अपसारिते अपणासिते अपकड्डिते अपणते अपछुद्धे अपहिते अप्फिडिते चेति एवंविधसद्दरूवपादुब्भावे णत्थि पय त्ति बूया । तत्थ ओलोकिते ओसरिते ओमथिते ओणामिते 5 ओवट्टिते ओलोलिते ओकड्डिते ओवत्ते ओणते ओछुद्धे ओतारिए ओमुक्के मल्ले वा भूसणे वा अच्छादणे वा एवंविधसद्दरूवपादुब्भावे णत्थि पय त्ति बूया । तत्थ आयरणे असंत-णत्थिसद्दपादुब्भावे णत्थि पय त्ति बूया । तत्थ वंज्झा-संढक-अणवच्च-पासंडगते संदंसणे य णत्थि पय त्ति बूया । तत्थ णवणीत-तेल्ल-घत-दधि-गोरसदसणे वच्छक-पुत्तक-पिल्लक-वप्पक-सिंगक-खुड्डक-बालक-साडक-मोहणक-अंकुस्-परोह-पुप्फ-फल-पादप-पवालहरिताल-हिंगुलुक-मणसिल-सव्व-समालभणकगते बालकपरिणंदिते जं किंचि बालसमाचारं वा एताणि पेक्खमाणो 10 वा भासमाणो वा आमसंतो वा एतेसिं वा बाहिरे सद्दरूवपाउब्भावे पयं वा पयालाभं वा पयासामग्गी वा उदरं वा पुत्तलाभं वा इमं से भविस्सतीति बूया । एतेसामेव अंतरोरुकरणे अप्पणो गब्भो त्ति बूया । एताणि चेव तिलेमाणो पुच्छेज्ज ससल्ला गम्भिणी मरिस्सति त्ति बूया । एताणि चेव अक्कमंती पुच्छेज्ज पैया से विणस्सिस्सति त्ति बूया । एताणि चेव पतिगिण्हंती पुच्छेज्ज पैया से भविस्सति त्ति तं बूया । एताणि चेव पणामयंती [पुच्छेज्ज] पया ते परिहायिस्सति त्ति णं बूया । एताणि चेव उपकडूती पुच्छेज्ज पैया से भविस्सति त्ति णं बूया । एताणि चेव 15 अपकाढता पुच्छेज्ज पया से ण भविस्सति त्ति णं बूया | 20 एताणि चेव उपकड्डित्ता अपकड्ढती पुच्छेज्ज पया ते भवित्ता ण भविस्सति त्ति बूया । एताणि चेव अपकड्डित्ता उपकड्डिती पुच्छेज्ज पया ते ण भवित्ता ण भविस्सति त्ति बूया । एताणि चेव छिदंती वा णिक्खणंती वा फालेंती वा विवाडेती वा पुच्छेज्ज पया ते विणस्सिस्सति त्ति बूया । एतेसामेव आदिमूलगहणेसु उवजिव्वा ते पया भविस्सति त्ति बूया । एतेसामेव मज्झगहणेसु जुत्तोपचया ते [पया] भविस्सति त्ति बूया । एतेसामेव अंतगहणे णिरोपजिव्वा ते पया भविस्सति त्ति बूया । 20 तत्थ पयायं पुव्वाधारितायं वावण्णा अवावण्ण त्ति आधारयितव्वं भवतीति । तत्थ वावण्णामासे अप्पसत्थामासे दीणामासे वापण्णे वा पुप्फे वा फले वा पाणे वा भोयणे वा सव्ववापण्णेसु वा वापण्णे त्ति बूया । अवावण्णामासे अणुपद्दुतामासे सुगंधामासे पसण्णामासे मुदितामासे अव्वापण्णे पुप्फे फले वा पाणे वा भोयणे वा भायणे वा सव्वअव्वापण्णेसु य अव्वापण्ण त्ति बूया। तत्थ पयायं पुव्वाधारितायं विकतं अविकतं पजायिस्सति त्ति पुणो आधारयितव्य भवति । तत्थ उज्जुकामासे उज्जुभावगते उज्जुउल्लोयिते य सव्वमणुस्सजोणीपादुब्भावे य सव्वमणुस्सजोणीणामधेज्जोदीरणे 25 य सव्वमणुस्सरूपागितिपादुब्भावे य सव्वमणुस्सरूपागितिणामधेज्जोदीरणे सव्वमणुस्सरीरोपकरणणामधेज्जोदीरणे सव्वमणुस्सगते सव्वमणुस्सवेसगते सव्वमणुस्सकम्मोवारगते सव्वमणुस्सोपलद्धीयं च अविगतं बूया । तत्थ तिरियामासे तिरियगते तिरियविलोकिते सव्वतिरियजोणिपादुब्भावे सव्वतिरियजोणीणामधेज्जोदीरणे सव्वतिरियजोणीउपकरणे तिरिक्खरूपागितिपादुब्भावे तिरिक्खरूपागितिणामधेज्जोदीरणे तिरिक्खजोणीमये उवकरणे णामधेज्जोदीरणे सव्वतिरिक्खजोणिगते विगतं बूया । तत्थ पयातं पुव्वमाधारियायं कण्णा कुमारो त्ति आधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दक्खिणामासे पुण्णामधेज्जामासे 30 पुण्णामे पुप्फे [वा] फले वा पाणे वा भोयणे वा सव्वकुमारोपलद्धीयं च कुमारं बूया । तत्थ बज्झामासे वामामासे थीणामधेज्जामासे व थीणामे पुप्फे वा फले वा भायणे वा भोयणे वा उपकरणे वा सव्वइत्थीउपलद्धीयं च कण्णं १ णिड्डीणा णिकु हं० त० विना ॥ २ पम्हुक्के सप्र० ॥ ३ पसविते हं० त० ॥ ४ परिसिटे हं० त० ॥ ५ परिहरिते हं० त० ॥ ६ परिवट्ठिते हं० त० ॥ ७ पडिभुए एवं हं० त० ॥ ८ अपट्टिते हं० त० ॥ ९ उण्णामिते सि० ॥ १० उक्चट्ठिते हं० त० ॥ ११ अहरोरु' हं० त० ॥ १२ पया ते वि हं० त० ॥ १३ पया ते भ हं० त० ॥ १४ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० अंगविज्जापइण्णयं बूया । तत्थ पजायं र्पुव्वमाधारितायं एक्कं दुवे पजाइस्सति त्ति आधारयितव्वं भवति । तत्थ एक्ककेसु गत्तेसु एक्का एकोपकरणे एक्कचारिसु सत्तेसु सव्वएक्कसाधारणगते य एक्कं पजातिस्सति त्ति बूया । तत्थ बिएसु गत्तेसु य मल्लाभरण य मल्लोपकरणे मिधुणचरेसु सत्तेसु सव्वबिसाहागते य दुवे पजातिस्सति त्ति बूया । तत्थ बहवे गत्तेसु बहूपं - करणके बैहूकोपकरणके संघचारिसु सत्तेसु सव्वबहुसाहागते य. बहवो पजातिस्सति त्ति बूया । त ० तत्थं कहा5मासे कण्हवण्णपडिरूवगते य सव्वणिप्पभावगते य उल्लोकिते य कालो पजातिस्सति त्ति बूया । तत्थ सुक्कामा Do से सुक्कवण्णपडिरूवगते य सव्वसप्पभा [व] गते य उल्लोकिते दक्खिणामासे पुण्णामधेज्जामासे सव्वदिवाचारिसु सत्तेसु सव्वदिवसोपलद्धीयं च दिवा पजातिस्सति त्ति बूया । तत्थ कण्हामासे कण्हवण्णपडिरूवगते य सव्वणिप्पभावे अलोकिते वामामासे थीणामधेज्जामासे सव्वरत्तीचारिसु सत्तेसु सव्वरत्तीउपलद्धीयं च रति पजातिस्सति त्ति बूया । सुक्काणि आमसित्ता सुक्काणि आमसती पुणो जोण्हे दिवा पजायिस्सति त्ति बूया । कण्हाणि आमसित्ता कण्हाणि आमसती पुणो काले 10 रति पजातिस्सति त्ति बूया ॥ अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय दोहलो णामाऽज्झायो । तं जधा - अत्थि दोहलो णत्थि 15 दोहलो त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पयाविसुद्धी णामऽज्झायो पंचतीसतिमो सम्मत्तो ॥ ३५ ॥ छ ॥ [ छत्तीसइमो दोहलज्झायो ] तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे सव्वआहारगते य अत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ उल्लोकिते उस्सिते उच्चारिते उण्णामिते उत्थिते उपसारिते उपणामिते उपविट्टे उपलोलिते उपवत्ते उपणते उपणद्धे उपलद्धे उपसरिते उपविट्टे एवंविधसद्द - रूवपाउब्भावे अत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ माता - पितुभगिणि—संबंधिजणसमागमे समाणिते सातिज्जिते पडिच्छिते अभिनंदिते अभिसंधुते उपदासिते चुंबिते अच्छाइते पागुते 20 परिहिते अणुलित्ते अलंकिते एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे रस-गंध-फासपादुब्भावे अत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ उकट्ठे अप्फोडिते पच्छेलिते पवायिते सेसागहणे बलिहरणगते एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे अत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ णवपुण्ण—पसत्थ—पहट्ठ—परघ- पच्चुदग्गे पुप्फे वा फले वा पत्ते वा पवाले वा मल्ले वा भूसणे वा आसणे वा स वा विसयणे वा जाणे वा वाहणे वा भायणे वा उपकरणे वा धण्णे वा धणे वा पाणे वा भोयणे वा उपणामिते पडिच्छिते एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे अत्थि दोहलो त्ति वा बूया । तत्थ उपलद्धे अत्थिसद्दपादुब्भावे अस्थि दोहलो 25त्ति बूया । तत्थ धाती - कुमार - दारक - बडु - अपच्चसद्द - रूवपादुब्भावे अत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ णवणीत - दुद्धघत - परिसप्पक - अंडक - सप्पक- वच्छक-बालक- साडक-वालक-मोहणके बालाभरके अंकुर - परोह - वाल- पुप्फफलपादुब्भावे परामासे वा हरिताल - हिंगुलुक - मणोसिला - ण्हाण - समालभणकगते बालकपरिवंदितके यं किंचि बालं बालचारं वा एताणि आमसंतो वा पेक्खमाणो वा भासमाणो वा एतेसिं वा बाहिरे आमाससद्द - रूवपादुब्भावे अतिथ दोहलो ति बूया । 30 तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे कण्हामासे तुच्छामासे दीणामासे णपुंसकामासे सव्वणीहारगते य णत्थि दोहोति बूया । तत्थ कासितेण खुधितेण जंभितेण रुदितेण परिदेवितेण भग्गे छिण्णे भिण्णे विणासिते विपाडिते १ पुव्वं धारियायं हं० त० ॥ २ आहारयियव्वं हं० त० ॥ ३ भरणके हं० त० ॥ ४ मलाभ हं० त० विना ॥ ५ मलोप हं० त० ॥ ६ पक्खकोप हं० त० ॥ ७०८ Do एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ८ सव्वदीवचा हं० त० ॥ ९ नामाज्झाओ हं० त० ॥। १० नामऽज्झा हं० त० ॥ ११ आहारयियव्वं हं० त० ॥। १२ उस्ससिते हं० त० ॥ १३ उपवेए हं० त० ॥ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१ छत्तीसइमो दोहलमज्झायो विक्खिन्ने विच्छुद्धे विच्छिन्ने विणट्टे वंते सिवितालिते रूयकडे पुंसिते विज्झविते एवंविधसद्द–रूवपादुब्भावे णत्थि दोहो ति बूया । तत्थ णिम्मज्जिते निल्लक्खिते णिस्सारिते णिव्वट्टिते णिलुलिते णिक्कडिते णिद्धाडिते णिस्साविते णिप्फाविते णिच्छोलिते णिक्खण्णे णिव्विट्टे णिच्छुद्धे विच्छुद्धे णिस्सिते णिल्लविते णिवोल्लिते णित्थणिते णिस्ससिते णिस्सिघि णिते णित्थुद्धे णिस्सरिते णिप्फेडिते णिद्दीणे णिण्णीते णिकुज्जिते णिव्वासिते णीरक्कए णिराणंदे एवंविधसद्द— रूवपादुब्भावे णत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ पैमुट्टे पम्हुते पकिण्णे पब्भट्ठे पसंखित्ते पमुच्छिते पलोलिते परावत्ते 5 परिसाडिते पडिसिद्धे पॅप्फाडिते पडिणामिते पैडिहारिते पडिदिण्णे पडिबुद्धे पडिते पडिमुंडिते पडिलोलिते पडिसरिते पंडिछुद्धे एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे णत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ अपमट्ठे अपलिखिते अपसारिते अपणाम अप अपलोलिते अपवत्ते अपणते अपहिते अपविट्ठे अपछुद्धे आपडिते एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे णत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ ओलोकिते ओसारिते ओमत्थिते ओणामिते ओवट्टिते ओलोकिते ओकट्ठिते ओवत्ते ओणते उग्गहिते उच्छुद्धे ओतारिते ओतिण्णे उक्खित्ते ओमुक्के मल्ले वा भूसणे वा अच्छादणे वा एवंविधसद्द - रूवपादुब्भावे णत्थि दोहलो त्ति 10 बूया । तत्थ आयरणाअणंतणत्थिभूतपादुब्भावे णत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ वंझा-पंडक - अणपच्चसद्द - रूपादुब्भावे णत्थि दोहलो त्ति बूया । तत्थ परिजुण्णे परिसुक्के वा परिखडे वा वापण्णे वा पुप्फे वा फले वा भूसणे वा अच्छादणे वा आसणे वा सयणे वा जाणे वा वाहणे वा उपकरणे वा रयणगते वा धण्णे वा धणे वा पाणे वा भोयणे वा सव्ववापणेसु वा वापरणं दोहलं बूया । तत्थ दोहले पुव्वमाधारिते दोहलकं पंचविधमाधारये । तं जधा - सद्दगतो गंधगतो रूवगतो रसगतो फासगतो 15 चेति । तत्थ सद्देयेसु सव्वसद्दपडिरूवगते य सद्देयो दोहलो विण्णेयो । तत्थ गंधेयेसु सव्वगंधपडिरूवगते य गंधेयो दोहलो विण्णेयो । तत्थ सव्वरूवगते सव्वदंसणीयगते य रूपगतो दोहलो विण्णेयो । तत्थ संव्वफासगते सव्वफासपडिरूवगते य फासगतो दोहलो विण्णेयो । तत्थ सव्वरसगते सव्वरसपडिरूवगते य रसगतो दोहलो विण्णेयो । तत्थ रूवगते दोहले पुव्वमाधारिते रूवगतो दोहलो मणुस्सगतो चतुप्पदगतो पक्खिगतो परिसप्पगतो कीडकविलगतो पुप्फगतो विद्धिगतो णदीगतो समुद्दगतो तलागगतो वापिगतो पुक्खरणिगतो अरण्णगतो भूमीगतो णगरगतो 20 खंधावारगतो जुद्धगतो किड्डागतो । तत्थ मणुस्सजोणीपडिरूवगते मणुस्सजोणि बूया । सव्वपक्खिपडिरूवगते पक्खि [ जोणी ] विण्णेया । चतुप्पदजोणीपडिरूवगते य चतुप्पदजोणी विण्णेया । सव्वपरिसप्पपडिरूवगते सव्वपरिसप्पजोणी विण्णेया । अंतोडहरचलेसु कीड-किमिगते य कीड - किविल्लगगतो विण्णेयो । मुदितेसु सव्वपुप्फगते य पुप्फगतो विण्णेयो । पुण्णेसु सव्वफलगते य फलगतो विण्णेयो । दीहेसु णिद्धेसु य णदीगतो विण्णेयो । णिद्धेसु परिमंडलेसु महापकासेसु समुद्दगतो विण्णेयो । णिद्धेसु सण्णिरुद्धेसु तलागगतो विण्णेयो । णिद्धेसु वित्थिण्णेसु महासरगतो विण्णेयो । दढेसु 25 पुधूसु य पुढवीगतो विण्णेयो । दढेसु उद्धंभागेसु य महापगाहेसु य पव्वतगतो विण्णेयो । गहणेसु रण्णगतो विण्णेयो । उपग्गहणेसु आरामगतो विण्णेयो । चतुरस्सेसु संरुद्धेसु परिमंडलेसु संखतेसु णगरगतो विण्णेयो । विमुत्तेसु महावकासेसु पुधूसु य देवगतो विण्णेयो । सव्वसत्थअब्भुज्जोगगते संरुद्धेसु य खंधावारगतो विण्णेयो । संजोगगते सव्वकिड्डागते य किड्डागतो विण्णेयो । तिरिक्खेसु आकोडिते य संगामगतो विण्णेयो । इति रूवगतो दोहलो । तत्थ सद्दगते दोहले पुव्वाधारिते सद्दगतो दोहलो, तं जधा - मणुस्ससद्दगतो पक्खिसद्दगतो चतुप्पदसद्दगतो 30 परिसप्पसद्दगतो दिव्वघोसगतो वादित्तघोसगतो o आभरणघोसगतो । तत्थ मणुस्सजोणीगते मणुस्सजोणीपडिरूवगते य मणुस्सजोणी विण्णेया । सव्वपक्खिपडिरूवगते पक्खिगतो विण्णेयो । सव्वचतुप्पदजोणीपडिरूवगते चतुप्पदजोणीगतो १ सिंविताते हं० त० विना ॥ २ पूमिए हं० त० ॥ ३ पम्हुट्टे हं० त० विना ॥ ४ पुप्फंडिते हं० त० ॥ ५ परिहरिते परिदिण्णे हं त० ॥ ६ पडिबुद्धे हं० त० विना ॥ ७ अपबुद्धे हं० त० विना ॥ ८ ओछुद्धे हं० त० ॥ ९ 'अंत' हं त० विना ॥ १० ०1 Do एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ११ गाढेसु हं० त० ॥ १२०० एतच्चिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० नास्ति । Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ अंगविज्जापइण्णयं विण्णेयो। [सव्वपरिसप्पजोणीपडिरूवगते परिसप्पजोणीगतो विण्णेयो।] सव्वसंखडगते वादित्तगतो विण्णेयो । सव्वसामेसु आभरणघोसगतो विण्णेयो । दिव्वेयेसु उत्तमेसु दिव्वघोसगतो दोहलो विण्णेयो । इति सद्दगतो । तत्थ गंधगते दोहले पुव्वमाधारिते गंधगतो दोहलो । तं जधा-हाणगतो अणुलेवणगतो अधिवासगतो पघंसगतो धूपगतो मल्लगतो पुप्फगतो फलगतो पत्तगतो आहारगतो चेति । उत्तमेसु ण्हाणगतो विण्णेयो । समभागेसु अणुलेवणगतो 5 विण्णेयो । अग्गेयेसु धूवगतो विण्णेयो पघंसगतो चुण्णगतो | तणूसु सव्वत्थगते य अधिवासगतो विण्णेयो । पुण्णेसु सेव्वपुष्फ-फलगते य [पुष्फ-]फलगतो विण्णेयो । G इति गंधगओ । तत्थ रसगए दोहले पुव्वमाधारिते के रसगतो दोहलो । तं जधा-पाणगतो भोयणगतो खज्जगतो लेज्झगतो चेति । तत्थ णिद्धेसु सव्वपाणगते य पाणगतो दोहलो विण्णेयो । सव्वभोयणगते सव्वभोयण-भायणगते य भोयणगतो दोहलो विण्णेयो । सव्वडहरचलेसु सव्वभक्खगते य सव्वभक्ख-भोयणगते य भक्खगतो दोहलो विण्णेयो । इति 10 आहारगतो दोहलो विण्णेयो । तत्थ फासगते दोहले पुव्वमाधारिते फासगतो । तं जधा-आसणगतो सयणगतो वाहणगतो गहगतो वत्थगतो आभरणगतो विण्णेयो । सव्वसयणपडिरूवगते सयणगतो विण्णेयो । तत्थ सव्वआसणगते सव्व - आसण Do पडिरूवगते य आसणगतो विण्णेयो । चलामासेसु सव्वजाण-वाहणपडिरूवगते य जाण-वाहणगतो विण्णेयो । तत्थ दढेसु सव्वगहगते य गहगतो दोहलो विण्णेयो । तत्थ तणूसु सव्ववत्थगते य सव्ववत्थपडिरूवगते य 15 वत्थगतो दोहलो विण्णेयो । सामेसु सव्वआभरणगते सव्वआभरणपडिरूवगते य आभरणगतो दोहलो विण्णेयो । इति फासगतो दोहलो । तत्थ दोहले पुव्वमाधारिते कता वत्तो दोहलो विण्णेयो भवति ? तत्थ पसन्नेसु सव्वसरदपडिरूवगते य सरदे वत्तो दोहलो ति विण्णेयो । तत्थ कण्हेसु रुक्खसाधारणेस सव्वगिम्हपडिरूवगते य गिम्हे वत्तं दोहलं ति बया । तत्थ णिरुद्धेसु वालेसु य पाउसे वत्तो दोहलो त्ति बूया । तत्थ णिद्धेसु वासारतपडिरूवगते य वासारत्ते वत्तो दोहलो 20त्ति बूया । संवुतेसु सव्वहेमंतपडिरूवगते य हेमंते वत्तो दोहलो त्ति बूया । तत्थ सामेसु मुदितेसु सव्ववसंतपडिरूवगते य वसंते वत्तो दोहलो त्ति बूया । तत्थ सुक्केसु सव्वसुक्कपडिरूवगते य सुक्कपक्खे वत्तो दोहलो त्ति बूया । तत्थ कण्हेसु सव्वकण्हपडिरूवगते य कालपक्खे वत्तो दोहलो त्ति बूया । सामेसु पक्खसंधिसु वत्तो दोहलो त्ति बूया । अतिमुल्लीयेसु अभंतरपंचमी वत्तो दोहलो त्ति बूया । मज्झिमविगाढेसु परं पंचमि वत्तो दोहलो त्ति बूया । अब्भंतरेसु अब्भंतरं दसमीय दोहलो वत्तो ति बूया । अब्भंतरभंतरेसु परं दसमीतो वत्तो दोहलो त्ति बूया । सुक्केसु अतिमुल्लेयेसु 25 पायरासे वत्तो दोहलो त्ति बूया । कण्हेयेसु अतिमूलेयेसु पदोसे वत्तो दोहलो त्ति बूया । सुक्केसु मज्झिमविगाढेसु मज्झंतिके वत्तो दोहलो त्ति बूया । कण्हेसु मज्झिमविगाढेसु अड्डरत्ते वत्तो दोहलो त्ति बूया । सुक्केसु अंतेसु अपरण्हे वत्तो दोहलो त्ति बूया । कण्हेसु अंतेसु पदोसे वत्तो दोहलो त्ति बूया । पच्छिमेसु गत्तेसु अतिवत्तेसु य सद्देसु अतिवत्तं बूया । पुरत्थिमेसु गत्तेसु अणागतेसु य सद्देसु अणागतं बूया । वामदक्खिणेसु गत्तेसु वत्तमाणेसु य सद्दरूवेसु संपतं वत्तमाणं दोहलं बूया ॥ 30 ॥ इति महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय दोहलो णामाज्झायो छत्तीसतिमो सम्मत्तो ॥ ३६ ॥ छ । १ सव्वखंड' हं० त० ॥ २ दिव्विएसु हं० त० ॥ ३ धूमपगतो सप्र० ॥ ४ गतो दोहलो विष्णेयो हं० त० विना । ५ सव्वपण्णफल" सि० ॥ ६ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ७ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७३ सत्ततीसइमो लक्खणज्झायो [ सत्ततीसइमो लक्खणज्झायो] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय लक्खणो णामाज्झायो । तं जधा-तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पसत्थलक्खणं ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे 6 लुक्खामासे णपुंसकामासे असुभं लक्खणं ति बूया । स तत्थ पुव्वं सुभाणि आमसित्ता पच्छा असुभाणि आमसति सुभाणि पुरिमखेत्ताणि असुभाणि पच्छिमाणि त्ति बूया । - तत्थ पुव्वं असुभाणि आमसित्ता पच्छा सुभाणि आमसति असुभाणि पुरिमखेत्ताणि 5 पच्छिमाणि सुभाणि त्ति बूया । तत्थ लक्खणं बारसविधं । तं जधा-वण्णो १ सरो २ गति ३ संठाणं ४ संघतणं ५ माणं ६ उम्माणं ७ सत्तं ८ आणुकं ९ पगति १० छाया ११ सारो १२ वेति । तत्थ वण्णसंपण्णे अंजण-हरिताल-मणसिला-हिंगुलुकरयत-कंचण-पवाल-संख-मणि-वइस्-सुत्तिका-उगलु-चंदण-सयणा-ऽऽसण-जाणेसप्पभागते वण्णसंपण्णं बूया । तत्थ चंदा-ऽऽदिच्च-णक्खत्त-गह-तारारूक्-उक्क-विज्जुता-मेघ-जलण-सलिल इंदीवर-इंदगोपक-अघाटुिक-पिअंगु- 10 पियदंसणे वण्णसंपण्णं बूया । तत्थ पुष्फ-फल-पवाल-पत्त-घत-मंड-तेलवर-सुर-पसण्ण-पदुमुप्पल-पुंडरीककोरेंटदाम-चंपक-परग्धमल्लाभरणविविधसमाउत्ते वण्णसंपण्णं बूया । तत्थ वण्णसंपण्णे थी-पुरिसे वा चतुष्पदे वा परिसप्पे वा पक्खिम्मि वा पियदरिसणे वण्णसंपण्णं बूया । सव्ववण्णगते पाणजोणीयं वा धातुजोणीयं वा मूलजोणीयं वा वण्णसंपण्णं बूया । तत्थ सव्ववण्णगते अप्पियदंसणे अबुद्धवण्णरागे अवण्णसंपण्णं बूया १ । तत्थ सरसंपन्ने हिरन्न-मेघ-दुंदुभि-वसभ-गय-सीह-सद्दूल-भमर-रधणेमिघोस-सारस-कोकिल-उक्कोस-15 कोंच-चक्काक-हंस-कुर-बरिहिण-तंतीसर-गीत-वाइत-तलतालघोस-उक्कुट्ठ-छेलित-फोडित-खिखिणिमहुरघोसपादुब्भावे सरसंपण्णं बूया । तत्थ थी-पुरिस-चतुप्पदे वा परिसप्पे वा पक्खिम्मि वा सरसंपन्ने सरसंपन्नं बूया । तत्थ अमहरकडुकभणितेसु एवंविधपादुब्भावे असरसंपण्णं बूया २ । तत्थ सीह-वग्ध-उसभ-गय-मज्जास्-बरिहिण-सुक-चक्कवाक-हंस-भासय बलाक-वाल-द(रसव्वगतिसंपन्ने 20 थी-पुरिसे वा चतुष्पदे वा परिसप्पे वा पक्खिम्मि वा गतिसंपण्णं बूया । तत्थ सव्वम्मि अगतिसंपन्नं बूया ३ । तत्थ दढामासे सव्वधातुगते सव्वसंघातसंपन्ने वा थी-पुरिसे वा चतुप्पदे वा परिसप्पे वा पक्खिम्मि वा संघातसंपन्नं बूया । तत्थ चलामासे अप्पसारेसु असंघातोपगते असंघातसंपन्नं बूया ४ । तत्थ सव्वअविभत्तगते संठाणोपगतेसु य पियरूवेसु संठाणसंपण्णं बूया। दुविभत्तसंठाणोपगतेसु संठाणहीणं बूया ५ । 25 तत्थ जुत्तप्पमाणे सव्वमाणगते सव्वपासंडगते य माणसंपन्नं बूया । तत्थ अयुत्तप्पमाणेसु अपमाणसंपण्णं बूया ६ । तत्थ अभंतरामासे सव्वगारवोपगते सव्वमहासारेसु य सव्वपरग्घेसु य उम्माणसंपण्णं बूया । तत्थ बज्झामासे सव्वअसारेसु य सव्वअसारोपपेतेसु सव्वअप्पग्घेसु सव्व उम्माणहीणे य > उम्माणहीणं बूया ७ । तत्थ उत्तमेसु सव्वउत्तमगत्तेसु सव्वमहाभोगगते थी-पुरिस-चतुप्पद-पक्खिपरिसप्पगते य सूर-ववसायिमहापरक्कमगते य सत्तसंपन्नं बूया । तत्थ पच्चवरकायेसु सव्वणिप्पभागते य थी-पुरिस-चतुष्पद-परिसप्प-पक्खिम्मि 30 वा अव्ववसिते परक्कमहीणे य सत्तहीणं बूया ८ । १ नामऽज्झा हं० त० ॥ २ हस्तचिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० एव वर्तते ॥ ३ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ अंगविज्जापइण्णयं तत्थ आणूकं-आणूकलद्धी तिविधा आधारेतव्वा भवति, तं जधा-दिव्वा १ माणुसा २ तिरिक्खगता ३ चेति । तत्थ देवाणूकाणि दिव्वोपलद्धीयं उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ देवाणूके पुव्वाधारिते देवाणूकविधि दिव्वा असुरा गंधव्वा जक्खा रक्खसा णागा किन्नरा गरुला महोरगा एवमादयो सकाहि उवलद्धीहिं उवलद्धव्वा भवंति १ । तत्थ माणुसाणूके णत्थि विधि २ । तिरिक्खजोणीकाणूके पुव्वाधारित तिविधमाधारये, तं जधा-पक्खी परिसप्पा चतुप्पदा चेति । ताणि 5 सकाहि उवलद्धीहि उवलभितव्वाणि भवंति उत्तमा-ऽधम-मज्झिमाणि ३ ।९। तत्थ चंदा-5ऽदिच्च-नक्खत्त-गह-तारारूव-अग्गि-विज्जूसव्वपाणगते य छायासंपन्नं बूया । सव्वणिप्पभागते सव्वअच्छायागते य छायाहीणं बूया १० । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे मधुरेसु णिद्धेसु सुक्केसु उद्धं जत्तगते सेम्हपडिरूवगते य सेम्हपगति बूया । तत्थ बज्झामासे कडुकेसु कसायेसु सव्वअधोभागगते य वातप्पगति बूया । तत्थ उण्हेसु तिखेसु पीतकेसु अंबेसु वा 10 वापण्णेसु वा सव्वसमाभागेसु पित्तप्पगतिं बूया । तत्थ वाते पित्ते सेंभे वा मिस्सपगति बूया ११ । तत्थ सारवंतपडिरूवे सव्वसारवंतेसु य सारवंतं बूया । तत्थ सव्वअसारवंतेसु असारवंतं बूया १२ । तत्थ वण्णसंपन्नस्स फलं पहाणा-ऽणुलेवणभागी मल्लालंकारभागी सुभगो सुहभागी भवति, वण्णहीणे तेर्सि विपत्ति । सरसंपण्णे इस्सरियं इस्सरियसमाणं कित्ति-जससंपण्णं च गहियवक्कं विज्जाभागी य सरसंपण्णे भवति, सरहीणे एतेसिं विवत्ति । गतिसंपण्णे महाजणपरिवारो गणपकड्डको महापक्खजणसमित्तो य भवति, अगतिसंपण्णे तेसिं विवत्ति । 15 संठाणसंपण्णे चक्खुरमणतं महाजणपियत्तणं च छायामणोरधसंपत्ती संठाणे भवंति, असंठाणजुत्ते तेसिं विवत्ति । संघातसंपण्णे आउसमत्थो बलविरियसमत्थो भवति, असंघातसंपण्णे एसिं विवत्ति । माणसंपन्ने माणरिहो माणणीओ य भवति, माणहीणे तेसिं विवत्ति । उम्माणसंपण्णे आयुगारवं साधीणं एत ज्जेव य विपुलतरं फलं भवति, उम्माणहीणे तेर्सि विवत्ति । सत्तसंपण्णे सूरो ववसायी, सत्तहीणे भीरू अव्ववसिते य । आणूके जधाणूकं फलं । छायासंपण्णे सवभोगं बूया, छायाहीणे तेसिं विवत्ति । पगतीसु जेधापगतं बूया । > सारवंते सारवंतं बूया, असारवंतेसु असारवंतं बूया ॥ 20 ॥ इति महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय लक्खणो णामाज्झायो सत्ततीसतिमो सम्पत्तो ॥ ३७ ॥ छ । [अट्ठतीसइमो वंजणज्झाओ] 00000000 अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय वंजणो णामाज्झायो । तं जधा-तत्थ दक्खिणतो पुरिसस्स पसत्थं, वामतो इत्थीय । तत्थ दक्षिणेसु पस्सेसु दक्खिणगत्ते वंजणं ति बूया, वामेसु गत्तेसु वामपस्से वंजणं ति बूया । पुरिमेसु गत्तेसु पुरिमे वंजणं ति बूया, पच्छिमेसु गत्तेसु पच्छिमे पस्से वंजणं ति बूया । उद्धंभागेसु उद्धं 25 वंजणं ति बूया, अधोभागेसु अधो वंजणं ति बूया । पुण्णामेसु पुण्णामं वंजणं ति बूया, थीणामेसु थीणामं वंजणं ति बूया । दढामासे दढेसु गत्तेसु वंजणं ति बूया | चलामासे चलेसु गत्तेसु वंजणं बूया । णिद्धामासे णिद्धेसु गत्तेसु वंजणं ति बूया । लुक्खामासे लुक्खेसु गत्तेसु वंजणं ति बूया । सव्वसत्थगतेसु सत्थाभिहतं वंजणं ति बूया । सव्वमूलगते कट्ठाभिहतं वंजणं ति बूया । सव्वधातुगते पासाण-लेट्ठ-सक्कराभिहतं वंजणं ति बूया । अभिहते अभिघातं बूया, छिन्नेसु छिन्नं बूया, वणेसु वणं बूया, उण्णतेसु विलकं बूया, सव्वधातुगते कुणिणहं बूया, मूलधातुगते कुणिणहं 30फलातं बूया, कण्हेसु तिलकालकं चम्मखीलं वा बूया, उद्धं गीवाय रज्जलाभाय, बाहूसु सव्वाधिकरणलाभाय, उरे १ दिव्वाणूकविधि देवा असुरा हं० त० ॥ २ > एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणचत्तालीसइमो कण्णावासणज्झाओ १७५ रायपरिसलंभाय, अक्खिसु णायकलंभाय, थणंतरे धणलंभाय, सामेसु आभरणलंभाय, बैज्झेसु जंघासु वा पवासाय, चलेसु जाणलंभाय, थीणामेसु थीलंभाय, पुण्णामेसु मणुस्सलंभाय, अंगुट्ठ-कणेट्ठिकार्य थण-हितय-कुक्खिपोरिससमामासे सव्वबज्झेसु य अपच्चलभाय बूया । बंधेसु बंधं बूया, मोक्खेसु मोक्खं बूया, तणूसु वत्थलाभं बूया, अणूसु धण्णलाभं बूया, वित्थिण्णेसु भूमीलाभं बूया, ओढे सुहलंभाय, अण्णेसु रोगं बूया, महंतेसु रण्णं बूया, महापरिग्गहेसु महापरिग्गहं, अपरिग्गहेसु अपरिग्गह, पसंतेसु पमोदं, अप्पसण्णेसु विवादं, मतेसु मरणं, आहारेसु आहारं, सिवेसु आरोग्गं, 5 मुदितेसु हासं, दीणेसु सोकं, सामेसु मेधुणसंजोगं । ॥ इति महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय वंजणज्झायोऽमृतीसतिमो सम्पत्तो ॥ ३८ ॥ छ । [ एगूणचत्तालीसइमो कण्णावासणज्झाओ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय कण्णावासणो णामाज्झायो । तं जधा-तत्थ कण्णा विज्जिस्सति ण विज्जिस्सति त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ बज्झामासे चलामासे णीहारेसु मुइतसाधारणेसु कण्णा 10 विज्जिस्सति त्ति बूया । तत्थ धणु-चाप-सर-पावरणक-आभरण-मल्ल-तलिए वाधुज्जभंड-घरवास-पकरणे आलिंगिते चुंबिते पहाणा-ऽणुलेवणे विसेसकिपेस्समाणयणे य मलाभरणे य मिधुणचरेसु सत्तेसु पक्खी-चतुष्पदेसु कीङ-किविल्लगेसु मिधुणसंपयुत्तेसु कण्णा विज्जिस्सति त्ति बूया । तत्थ पुण्णामधेज्जामासे पुण्णे व चले णिद्धे दक्खिणे य कन्ना विज्जिस्सति त्ति बूया । तत्थ आहारेसु अब्भंतरामासे दढामासे दीणेसु दीणसाधारणेसु वा कण्णा विज्जिस्सति त्ति बूया । तत्थ लुक्खेसु सुक्खेसु तुच्छेसु कण्णा ण विज्जिस्सति त्ति बूया । तत्थ विज्जिस्सति त्ति पुव्वाधारिते पुण्णामेसु 15 रायपुरिसस्स वा सूरस्स वा उत्तमस्स वा विज्जिस्सति त्ति बूया । णपुंसकेसु किलिट्ठस्स विज्जिस्सते, से य किलिटे खिप्पं मरिस्सतीति बूया । थीणामेसु ण ताव विज्जिस्सति, जता य विज्जिस्सति - संसपत्तं विज्जिस्सतित्ति बूया । दढेसु वामेसु चिरा विज्जिस्सति जिणाती वा णिपुण्णो भविस्सति । दक्खिणेसु दक्खिणाचारवेसस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । पुण्णेसु बहुअण्ण-पाण-भोयणस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । तुच्छेसु अप्पण्ण-पाणं कुलं गमिस्सति त्ति बूया । मुइतेसु अच्चण्णमुइतं कुलं गमिस्सति त्ति बूया । दीणेसु अच्चंतदीणं कुलं गमिस्सति त्ति बूया । जण्णेयेसु 20 बहुउस्सयं कुलं गमिस्सति त्ति बूया । सद्देयेसु विस्सुयकित्तियं कुलं गमिस्सति त्ति बूया । दंसणीयेसु दरिसणीयस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । गंधेयेसु णिच्चसुगंधस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । रसेज्जेसु पभूतण्ण-पाणस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । फासेज्जेसु पभूतच्छादणा-ऽणुलेवणस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । मेतेयेसु इट्ठा इट्ठस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । उपद्दुतेसु बहुरोगस्स दिज्जिस्सति त्ति बूया । सामेसु रतिपधाणस्स दिज्जिस्सति त्ति बूया । पुत्तेयेसु बहुपुत्तस्स दिज्जिस्सति त्ति बूया । कन्नेयेसु बहुकन्नागस्स दिज्जिस्सति त्ति बूया । चले यमलोदीरणे एकपतिम्मि पतिट्ठा भविस्सति 25 त्ति बूया । जतिसु अंगेसु चला यमलोदीरणा भवति ततिसु पतिसु पतिट्ठा भविस्सति त्ति बूया । चैलजमलोदीरणे परंपरगते वा णीहारोदीरणे ण कहिंचि सा तिट्ठिस्सति त्ति बूया, बहुजलचरा य भविस्सति त्ति बूया । असारेसु अप्पकसे पंचपव्वयं रोजयिस्सति त्ति बूया । पुण्णामधेज्जे यमलोदीरणे पति-देवरेसु संचिट्ठिस्सति त्ति बूया । पुण्णामधेज्जे चलोदीरणे कण्णा दुसिस्सति त्ति बूया । उद्धं णाभीय इस्सरियं कारयिस्सति त्ति बूया । अधोणाभीयं उद्धं जाणूणं वेस्सगोचरा भविस्सति त्ति बूया । पादजंघे दासत्तं कारयिस्सति त्ति बूया । जमकथीणामोदीरणे ससवत्तं विज्जिस्सति 30 १ वजेसु हं० त० विना ॥ २ थीनामलंभाय हं० त० ॥ ३ "रिससमासे हं० त० विना || ४ नामऽज्झा हं० त० ॥ ५-६ विज्जस्सति हं० त० ॥ ७ “सरपाचणकआभरणमलतलिपवाभुज्जभंड हं० त० ॥ ८ < एतचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ९ स्सति जणावाचिणीपुणो हं० त० ॥ १० कित्तीयं हं० त० ॥ ११ “सु जला य मल्लोदी हं० त० ॥ १२ जलजम हं० त० ॥ १३ पंचपव्वज्जं रोज हं० त० ॥ १४ राजयि सि० ॥ १५ “दीरणे ण पतिदेवरेसु संतिट्ठस्सति हं० त० विना ।। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ अंगविज्जापइण्णयं । त्ति बूया । जतिथं यमकं थीणामधेज्जं भवति ततिसु सवत्तिसु संतिट्ठिस्सति त्ति बूया । अधोभागेसु पेस्सजातीयस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । ऊरुभागेसु थीणामेसु तुल्लजातीयस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । उद्धंभागेसु पुण्णामधेज्जेसु उत्तमतरागस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । बंभेज्जेसु बंभणस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । खत्तेयेसु खत्तियस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । वेस्सेज्जेसु वेस्सस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । सुद्देज्जेसु सुद्दस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । महव्वयेसु महव्वयस्स, मज्झिमवयेसु 5 मज्झिमवयस्स, जोव्वणत्थेसु जोव्वणत्थस्स, बालेज्जेसु बालस्स विज्जिस्सति त्ति बूया । अंतेसु विद्धिकरस्स, चलेसु कारुकस्स, कारुकोपकरणेसु य दढेसु वाणियकस्स, इस्सरिएसु इस्सरोपकरणेसु य इस्सरस्स विज्जिस्सति त्ति बूया ॥ ॥ इति महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय कण्णावासणो णामाज्झायो एगूणचत्तालीसतिमो सम्मत्तो ॥ ३९ ॥ छ॥ [चत्तालीसइमो भोयणज्झाओ] 00000000णमो भगवतो अरहतो जसवतो महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिन्नाय 10 अंगविज्जाय भोयणो णामऽज्झायो । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामो । तं जधा-तत्थ अत्ति भोयणं णत्थि भोयणं ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे मुदितामासे दढामासे उल्लोगिते ऊहस्सिते माता-पितुभावणे उक्कट्ठे अप्फोडिते सव्वपुण्णपादुब्भावणे दंतोट्ठ-जिब्भ-तालुक-गल-कवोलपरामासे आहारितं बूया । तत्थ उल्लोगिते णिग्गिण्णे अस्साते संपाविते परिलीढे आहारितं बूया । तत्थ णाभोरु-वच्छंगे कुक्खि पस्सोदरपरामासे आहारितं बूया । तत्थ सव्वआहार-भायणगते मूलगते वा खंधगते वा पत्तगते वा पुष्फगते वा फलगते 15वा आहारितं बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे कण्हामासे तुच्छामासे व दीणामासे णपुंसकामासे सव्वणीहारगते अणाहारितं बूया । तत्थ डेक्कासिते खुविते जंभिते णिम्मज्जिते णिल्लूहिते अपमढे अपमज्जिते अवलोणिते पम्हुतु पमुक्के ओलोकिते ओसारिते अणाहारितं बूया । तत्थ अब्भंतरामासे भाणितव्वं । तत्थ आहारे पुव्वमाधारिते आहारं तिविधमाधारये, तं जधा-पाणजोणीगतं मूलजोणीगतं धातुजोणीगतं । तत्थ चलामासे सव्वपाणगते सव्वपाणोवकरणे सव्वपाणमए उवकरणे सव्वपाणजोणीणामधेज्जउवकरणे सव्वपाणजोणीणामधिज्जथी20 पुरिसगते सव्वपाणजोणीपडिरूवगते य एवंविधसद्द-रूव-रस-गंधपादुब्भावे पाणजोणी बूया । तत्थ केस-लोम–णहगते मंसुगते सव्वमूलगते सवमूलजोणीगते सव्वमूलजोणीउवकरणे सव्वमूलजोणीमए उवकरणे सव्वमूलजोणिणामधिज्जउवकरणे सव्वमूलजोणिणामधेज्जोदीरणे थी-पुरिसगते एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे मूलजोणीगतं बूया । तत्थ सव्वदढामासे सव्वधातुगते 6 सव्वधातुजोणीगते उवकरणे व सव्वधातुजोणिणामधेज्जे उवकरणे सव्वधातुजोणीणामधेज्जोदीरणे थी-पुरिसगते एवंविधसद्द-रूव-रस-गंध-फासपादुब्भावे धातुजोणीगतं बूया ।। 25 तत्थ पाणजोणीगते पुव्वाधारिते पाणजोणीगतो आहारो दुद्धं दधि णवणीतं तक्कं घतं मंसं वसा मधु ति । तत्थ पाणजोणीगओ आहारो संखओ असंखओ त्ति पुवमाधारइयव्वयं भवइ । तत्थ संखए > संखयं बूया, असंखये असंखयं बूया । तत्थ संखयं दुद्धं दधि मधु त्ति । तत्थ संखयाणि दुद्धं वा दधि वा सोतगुलं सक्करा वा अण्णेहिं दव्वेहिं संखताणि अण्णे मधुं ति । तत्थ अग्गेय F मणग्गेयं का ति पुवमाधारइयव्वं भवइ । १वीरस्स व हं० त० ॥ २ भोतणो णामऽज्झा हं० त० ॥ ३ रुउच्छंगे हं० त० विना ॥ ४ एतच्चिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ॥ १२ हस्तचिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० एव वर्त्तते ॥ १३ माहारयियव्वं भवति हं० त० ॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्तालीसइमो भोयणज्झाओ १७७ तत्थ अग्गेयेसु अग्गेयं बूया, अणग्गेयेसु अणग्गेयं बूया । तत्थ अग्गेयाणि घयं वा मंसं वा दुद्धं वा सिद्धं वसा वा । तत्थ अणग्गेयाणि दुद्धं वा ससत्तं दधि णवणीतं मधु ति । तत्थ सुक्केसु सुक्कवण्णपडिरूवगए य दुद्धं वा दधि वा G तकं वा 5 णवणीयं वा [बूया] । तत्थ पीतके पीतवण्णपडिरूवगए य त घेयं ब्रूया । क तत्थ अरसेसु तिक्खदारुणेसु सव्वसत्थगए य मंसं बूया । 6 तत्थ सामेसु वसं मधु वा बूया । तत्थ मधुरेसु घयं वा दुद्धं वा बूया । तत्थ बालेयेसु दुद्धं बूया । तत्थ सिद्धेसु घयं बूया । तत्थ अंबिलेसु दधि वा तक्कं वा 5 णवणीयं वा 6 बूंया । ॐ तत्थ घणेसु सुद्धेयेसु दहिं बूया । सारवंतेसु णवणीयं बूया । असारवंतेसु तक्कं बूया । दुग्गंधेसु वसं बूया । G मुंइतेसु वसं बूया । ॐ इति पाणजोणीगतो आहारो । तत्थ मूलजोणिगए आहारे पुव्वाधारिए मूलजोणीगतं आधारं तिविधमाधारये-मूलगतं खंधगतं अग्गगतं चेति । तत्थ अधोभागेसु गत्तेसु अधोभागगतोपकरणे व सव्वमूलगते > सव्वमूलोपकरणे सव्वमूलमये उपकरणे G सव्वमूलजोणीनामधिज्जोपकरणे च सव्वमूलजोणीणामधेयोदीरणे थी-पुरिसगते एवंविधसद्द-रूव-रस-गंध-10 फास-पादुब्भावे मूलगतं बूया । तत्थ मूलगते पुव्वाधारिते मूलगतं तिविधमाधारये-मूलगतं कंदगतं तजगतं चेति । तत्थ मूलगते मूलगयं, कंदगते कंदगतं(यं), तयागते तयागयं बूया । तत्थ सव्वमाणेसु गत्तेसु सव्वमाणगतोपकरणे सव्वखंधगते सव्वखंधोपकरणे सव्वखंधगते उवगरणे सव्वखंधणामधेज्जे उवकरणे सव्वखंधगयणामधेज्जोदीरणे थी-पुरिसगते एवंविधसद्द-रूव-रस-गंध-फासपादुब्भावे खंधगयं बूया । तत्थ खंधगते पुव्वाधारिते खंधगयं दुविधमाधारये-खंधगयं णिज्जासगतं 'चेव सव्वखंधगए - सव्वसारगते - य खंधगयं 15 बूया । तत्थ सिरिविट्ठकसद-लया-सल्लईहिं कास-सोणिय-पूक-लसिया सव्वणिज्जासगते य णिज्जासगतं बूया । तत्थ उद्धगते अधोसिरमुहामासे उद्धजत्तुसिरोमुहोपकरणे 6 सव्वअग्गगए सव्वअग्गोपकरणे व सव्वअग्गमए उपकरणे सव्वअग्गणामधेज्जे उपकरणे सव्वअग्गणामधेज्जोदीरणे थी-पुरिसगते य एवंविधसद्द-रूव-रस-गंधपाउब्भावे अग्गगतं बूया । तत्थ अग्गगते पुव्वाधारिते अग्गगतं तिविधमाधारये, तं जधा-पत्तगतं पुप्फगतं फलगतं चेति । तत्थ अणूसु सव्वपुधूसु य सव्वपत्तगते य पत्तगतं बूया । तत्थ पत्तगते पुव्वाधारिते पत्तगतं तिविधमाधारये-तरुणं वयत्थं 20 पंडु चेति । तत्थ बालेज्जेसु तरुणं पत्तं [बूया], तत्थ वयत्थेसु वयत्थं पत्तं बूया, तत्थ महव्वयेसु य महव्वयं बूया । तत्थ सव्वमुदितेसु सव्वपुष्फगते य पुष्फगयं बूया । G तत्थ पुप्फगए पुव्वाहारिए पुप्फगयं तिविहमाहारएपत्तेगपुप्फ गुलुकपुष्फ मंजरीपुर्णं चेति । तत्थ एक्कामासे एक्ककेसु छ एक्काभरणे एक्कोपकरणे एक्कचारिसु सत्तेसु एक्कसाहागते एक्कंगुलिगहणे य पत्तेकपुर्फ बूया । तत्थ बहुकेसु गत्तेसु बह्वाभरणक-बह्वोपकरणे संघचारिसु सत्तेसु बहुसाहागते य बहुअंगुलिग्गहणे य गुलुकपुष्पं बूया । तत्थ दीहेसु सव्वमंजरिगते य मंजरीपुष्पं बूया । इति 25 पुष्फगतं । तत्थ पुण्णामेसु सव्वफलगते य फलगतं बूया । तत्थ फलगते पुव्वाधारिते फलगतं चतुविधमाधारये, तं जधा-रुक्खगतं गुम्मगतं वल्लिगतं छुपगतं चेति । तत्थ उद्धंभागेसु कायवंतेसु सव्वरुक्खगते य रुक्खफलगतं बूया । तत्थ दीहेसु कुडिलेसु य सव्ववल्लिगते य वल्लिफलगतं बूया । तत्थ मज्झिमाणंतरकायेसु सव्वगुम्मगते य गुम्मफलगतं बूया । तत्थ पच्चंवरकायेसु सव्वछुपगते य छुवफलं बूया । 30 १-२-३-४-५ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ६ पुवमाहारिए हं० त० ॥ ७ आहारं हं० त० ॥ ८ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ अंगविज्जापइण्णयं तत्थ अणूसु सव्वधण्णगते य धण्णगतं बूया । तत्थ धण्णेसु पुव्वाधारितेसु सव्वधण्णं दुविधमाधारए, तं जधा-पुव्वण्णं अवरण्णं चेति । तत्थ पुरित्थमेसु गत्तेसु पुरत्थिमेसु य सद्द-रूवेसु म पुव्वण्णगते य पुव्वण्णं बूया, तत्थ पच्छिमेसु गत्तेसु पच्छिमेसु य सद्द-रूवेसु क सव्वअवरण्णगते य अवरणं बूया । तत्थ पुवण्णे पुव्वाधारिते पुव्वण्णं अट्ठविधमाधारये, तं जधा-साली कोद्दवा वीही कंगू रालका वरका 5 सामाग(गा) तिला वेति । तत्थ दीहेसु साली वा वीही वा, पुधूसु तिले बूया । तत्थ कसेसु कोद्दवो कंगू वा रालके वा वरके वा सामाकं बूया । तत्थ रत्तेसु कंगू वा कोद्दवे वा बूया । तत्थ पीतेसु रालके बूया । फरुसेसु सामाकं बूया । सामेसु वरके बूया । णिद्धेसु सालि वा वीहिं वा कंगुं वा तिले वा बूया । तत्थ लुक्खेसु कोद्दवे व रालके वा वरके वा सामाकं वा बूया । तत्थ मुसलसमाहतगते साली वा वीही वा कंगू वा रालके वा वरके वा सामागं वा बूया । तत्थ घटे वा भामिते वा कोद्दवे बूया । तत्थ पिढे वा पीलिते वा तिले बूया । इति 10 पुव्वण्णं । तत्थ अवरपणे पुव्वाधारिते अवरण्णं तेरसविधमाधारये । तं जधा-मासा मुग्गा चणका कलावा णिप्फावा मसूरा कुलत्था तुवरयो यवा गोधूमा कुसुंभा सासवा अतसीओ त्ति । तत्थ पीतेसु चणके वा कलाए वा तुवरीओ वा बूया । तत्थ कालेसु मासा वा मुग्गा वा बूया । तत्थ सेतेसु णिप्फावे [बूया] । तत्थ कडुकेसु सासवे बूया । तत्थ कसायेसु गोधूमे बूया । तत्थ अंबेसु चणके कुलत्थे वा बूया । इति अव[र]ण्णं । 15 तत्थ सव्वधण्णगतं चतुविधमाधारये, तं जधा-खंधगतं वल्लिगतं तणगतं छुभगतं चेति । तत्थ मधुरेसु मासा वा मुग्गा वा मसूरा वा कलावा [वा] बूया । तएसु णिप्फावा कुसुंभा वा अतसीओ वा तुवरीओ वा बूया । तत्थ खंधगते तिले वा कुसुंभे वा तुवरीओ वा अतसीओ वा सासवे वा बूया । तत्थ वल्लिगते णिप्फावे वा कुलत्थे वा मसूरे वा बूया । तत्थ गुम्मगते (छुभगते) मासे वा मुग्गे वा चणके वा कलाये वा बूया । तत्थ भाणगते (तणगते) साली वा वीही वा कोद्दवे वा रालकं वा जवे वा गोधूमे वा वरके वा बूया । 20 तं पुण सव्वधण्णगते दुविधमाधारये-कोसीधण्णं F चेव अकोसीधण्णं चेव । ॐ तत्थ अंगुलीगते णहगते पेलागते धविकागते पसिव्विकागते सव्वमुग्गागते सव्वसुसंवलिकाफलेसु सव्वसिंगिगते य कोसीधण्णं बूया, तं जधा-तिला मासा मुग्गा चणका कलावा णिप्फावा कुलत्था मसूरा तुवरीओ त्ति । अवसेसाणि अकोसीधण्णाणि । इति अग्गगयं । तत्थ सव्वमाहारं छव्विधमाधारये, तं जधा-महुरं तितं कसायं अंबिलं कटुकं लवणमिति । तत्थ अभंतरामासे 25 सव्वमधुरगते मधुरं बूया । तत्थ तिक्खामासे सव्वकडुकगते य कडुकं बूया । तत्थ विघद्वेसु सकसायोपलद्धीयं कसायं बूया । तत्थ वावण्णेसु सव्वअंबिलोपलद्धीयं अंबं बूया । तत्थ अक्खिगूधके कण्णगूधके दंतगूधके सुणासगते य थूभागगते य रेतगते सेयमलगते य सव्वलवणे य लवणं बूया । तत्थ चलामासे सव्वतित्तगते य तित्तकं बूया । तत्थ आधारे पुव्वाधारिए आधारं चतुव्विधमाधारये, तं जधा-भोयणगतं पाणगयं भक्खगतं लेज्झगतं चेति । तत्थ पुण्णामधेज्जामासे सव्वभोयणगते सव्वभोयणपडिरूवगते य भोयणं बूया । तत्थ णिद्धामासे सव्वपाणियेसु सव्वपाणगयं 30 सव्वपाण-भोयण-भायणगते य पाणगतं बूया । तत्थ डहरत्थावरेसु डहरचलेसु य सव्वभक्खगते य सव्वभक्खसंभवेसु य संधीसु य भक्खगतं बूया । तत्थ सव्वभक्ख-पाणमीसेसु लेज्झगते य लेज्झं बूया । १ हस्तच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ २ 'त्थ घट्टे वा भासिए वा हं० त० ॥ ३ तत्थएसु हं० त० विना ॥ ४ धण्णं वा दुवि हं० त० ॥ ५ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ६ अंगुलीगते धणगओ पलगए चविकागए पसिविकागए सव्वमुग्गगए सव्वमुसंवलिकाफलेसु सव्वसिरिगए य कोसीधण्णं हं० त० ॥ ७ अग्गगं हं० त० विना ॥ ८ वियढेसु हं० त० ॥ ९ 'णागगते हं० त० ॥ १० य सव्वलवणं हं० त० ॥ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्तालीसइमो भोयणज्झाओ . १७९ तत्थ भोयणे पुव्वाधारिते भोयणं बिविधमाधारये-विसयगतं चेव <घेणगतं चेव । - तत्थ सव्वविसयकडे 4 सव्वरासिकडे > सव्वपुंजकडे सव्वउस्सयकडे सव्वविवद्धीकडे सव्वविसयकडे य विसयं बूया । तत्थ सव्वघणकडे सव्वपाणिकडे सव्वपुंधुकडे सव्ववित्थडकडे सव्वघणण्णकडे य घणण्णं बूया । तत्थ विसयकडे पुव्वमाधारिते विस्सोदणं वा अतिकूरकं वा 4 गुलकूरकं वा घतकूरकं वा बूया । तत्थ सव्वविसयोपलद्धीयं विसयोदणं बूया । उम्मट्ठम्मढेसु य आहाराहारेसु सव्वअतिमासकडे य अतिकूरं बूया । तत्थ सव्वणेहोपलद्धीयं सव्वघतोपलद्धीयं च घतकूरकं बूया । तत्थ सव्वमधुरोपलद्धीयं सव्वगुलोपलद्धीयं च गुलकूरं बूया । तत्थ घणन्नकडे पुव्वाधारिते विलेपि वा पायसं वा कसरिं वा दधितावं वा तक्कुलिं वा अंबेल्लिं वा बूया । तत्थ महुरोपलद्धीयं विलेपि वा पायसं वा कसरि वा बूया । तत्थ अंबिलोपलद्धीयं दधितावं वा तक्कुल्लिं वा अंबेल्लिं वा बूया । तत्थ मधुरेसु पुव्वाधारितेसु आपुणेयेसु विलेपि वा बूया । तत्थ बालेयेसु सव्वदुद्धकडे य पायसं बूया । तत्थ कण्हेसु संखतेसु य कसरं बूया । तत्थ अंबेसु पुव्वाधारितेसु दधितापं वा तक्कुल्लि वा अंबेल्लिं वा बूया । तत्थ सारेसु दधितावं बूया । असारेसु तक्कुलि बूया । तत्थ पागतेसु आसेतेसु असारेसु य अंबेल्लिं बूया । ___ तत्थ भोयणस्स सव्वोपलद्धीयं सालि-वीही-कोद्दव-कंगु-रालक-जव-गोधूम-वरक-सामागो त्ति जधुत्ताहिं उपलद्धीहि उपलद्धव्वा भवंति । तत्थ अधण्णोपलद्धीयं मुग्गा मासा चणका कलया णिप्फावा मसूरा तुवरीओ वेति जधुत्ताहिं उपलद्धीयं उपलद्धव्वा भवंतीति । [तत्थ] भोयणस्स णेहोपलद्धीयं पाणजोणीगता + मूलजोणीगता र चेति । तत्थ भोयणस्स उपसेकोपलद्धीयं रसो जूसो कुलत्थो खलको दधि दुद्धं तकं अंबिलकं पालीको त्ति । सो उपसेको दुविधो-पाणजोणीसंभवो चेव G मूलजोणिसंभवो चेव । सो पुण दुविधो-अंबो चेव मधुरो चेव । सो पुण दुविधो-अग्गेयो चेव अणग्गेयो चेव । सो पुण दुविधो-लवणो चेव 6 अलवणो चेव । क तत्थ भोयणस्स उपसेकोपलद्धीयं मूलगता चेव अग्गगता चेव । तत्थ मूलगता सव्वपक्खिमये उपकरणे सव्वपक्खिणामधेज्जे उपकरणे सव्वपक्खिणामधेज्जोदीरणे थी-पुरिसगते एवंविधसद्द-रूव-रस-गंध-फासपादुब्भावे पक्खिमंसं बूया । तत्थ सव्वपरिसप्पगते सव्वपरिसप्पोपकरणे सव्वपरिसप्पमते उपकरणे GF सेव्वपरिसप्पणामधिज्जे उपकरणे सव्वपरिसप्पणामधेज्जोदीरणे थी-पुरिसगते एवंविधसद्द-रूवरस-गंध-फासपादुब्भावे व परिसप्पमंसं बूया । तत्थ चउप्पए पुव्वाधारिए चउप्पयं तिविहमाहारये, तं जहा-गम्मा रण्णा [गामारण्णा चेति] । तत्थ अभंतरेसु गत्तेसु अब्भंतरगाम–णगरगए [य अब्भंतरगाम-णगरचतुष्पदे य] एवंविहसद्दरूव-रस-गंध-फासपाउब्भावे चउप्पदमंसं बूया । तत्थ बाहिरब्भंतरेसु गत्तेसु सव्वबाहिरब्भंतरगते य सव्वगामरण्णचतुप्पदे य एवंविधसद्द-रूव-रस-गंध-फासपादुब्भावे गामारन्नगतं बूया । सव्वबाहिरेसु गत्तेसु सव्वआरनगते य सव्वआरणपडिरूवगते य एवंविधसद्द-रूव-रस-गंध-फासपादुब्भावे आरन्नं बूया । तत्थ चतुप्पदमंसे पुव्वाधारिते उद्धंभागेसु उद्धंगीवा-सिरो-मुहामासे सव्वसिंगिगते सव्वसंगलिकागतेसु धन्नेसु सव्वसंगलिकाफलेसु वच्छेसु सिंगीणं चतुप्पदाणं मंसं बूया । तत्थ अधोभागेसु सव्वअंगगते सव्वअसंगलिताफलेसु वच्छेसु असिंगीणं चतुप्पदाणं मंसं बूया । १-२ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० अंगविज्जापइण्णयं तत्थ चतुष्पदेसु परिमिताउपलद्धीए-तत्थ कायमंतेसु कायमंता विण्णेया। मज्झिमकायेसु मज्झिमकाया विनेया । मज्झिमाणंतरकायेसु मज्झिमाणंतरकाया विनेया । पच्चवरकायेसु पच्चवरकाया विण्णेया । सेतेहि सीता, पीतेसु पीता, रत्तेसु रत्ता, कण्हेसु कण्हा, णीलेसु णीला, पंडुरेसु पंडुरा, फरुसेहि फरुसा, चित्तेहि चित्ता, घोसवंतेहिं घोसवंता, मधुरघोसेहि मधुरघोसा, महुररूवेहिं मधुररूवा, पियदंसणेहि पियदंसणा, थीणामेहि थीणामा, पुण्णामेहिं पुण्णामा, णपुंसकेहि णपुंसका 5विण्णेया । इति चतुप्पयजोणी । तत्थ पक्खिगते पुव्वाधारिते थलयरा जलयरा पुव्वाधारयितव्वं भवति । तत्थ सव्वत्थलेसु सव्वणिण्णेसु सव्वजलगते सव्वथलगते सव्वजलोपजीविसु सव्वजलयेसु सव्वजलोपकरणेसु य जलयरं बूया । तत्थ पक्खिसु पुव्वाधारितेसु • पक्खी तिविधमाधारये-पुप्फ-फलभोगी मंस-रुहिरभोगी < धण्णभोगी Do चेति । तत्थ मुदितेस सव्वपुप्फ-फल गते य पुष्फ-फलभोगी बूया । तत्थ सव्वसत्थगते सव्वरुधिरभोगिसु सव्वमंसरुधिरगते य मंसरुधिरभोगी बूया । तत्थ 10 अणूसु सव्वधण्णगते य धण्णभोगी बूया । तत्थ पक्खिसु अपरिमियातो उपलद्धीतो तत्थ जधुत्तेण उपलद्धव्वं भवति । तत्थ कायवंतेसु पुण्णेसु सव्वफलगते य उवलद्धीहिं सव्वपक्खि उवलद्धव्वा भवंति । इति पक्खिगयं मंसं बूया । तत्थ परिसप्पे पुव्वाधारिते थलयरा जलयर त्ति पुणरवि आधारयितव्वं भवति । जधुत्ताहिं उवलद्धीहि थलयरा जलयरा उपलद्धव्वा भवंति । G कायवंताहि उवलद्धीहिं कायवंतो परिसप्पा उवलद्धव्वा, वण्णोपलद्धीहिं वण्णवंतो परिसप्पा उवलद्धव्वा इति परिसप्पं मंसं बूया । तत्थ सव्वं दुविधमाधारये, तं जधा-अद्दमंसं सुक्कमंसं चेति । तत्थ णिद्धेसु 15 सव्वद्दगते य अद्दमंसं बूया । तत्थ सव्वलुक्खेसु सव्वसुक्खमंसगते य सुक्खमंसं बूया । इति मंसगतं । तत्थ मुदितेसु उस्सये भोयणं ति बूया । तत्थ दीणेसु उवद्दुतेसु य मतकभोयणं G वा सड्ढकभोयणं वा ) बूया । तत्थ अवस्थितेसु ण वि दीणेसु ण वि मुदितेसु य दासीणं भोयणं बूया । तत्थ बालेयेसु उत्थाणके वा सत्ताहिकायं वा बालोपणयणे वा भुत्तं बूया । तत्थ सव्वकामोपलद्धीयं सव्वकाममुपजुत्ते सव्वबंधुज्जोपलद्धीयं च बंधुज्जे भुत्तं बूया । तत्थ सव्वदेवगते सव्वदेवोवलद्धीय देवयागे भुत्तं बूया । तत्थ सेव्वधम्मोपलद्धीयं जातीयं 20 जण्णे वा मंतगहणे वा मंतसमावणे वा विज्जागहणे वा विज्जासमत्तीयं वा भुत्तं बूया । तत्थ मुदितेसु अभिणवेसु य अभिणवभोयणं बूया । वापण्णेसु सीतभोयणं बूया । तत्थ लुक्खामासे भिक्खोदणं बूया । तत्थ विमुत्तेसु असामण्णेसु असामण्णपडिरूवगते य असामण्णं भुत्तं बूया । तत्थ सामण्णेसु सव्वसामण्णपडिरूवगते य परेण सह भुत्तं बूया । तत्थ जधावातेण वा जधासंठाणेण वा संठाणं रूवेण वण्णेण वा जाणितव्वं भवति । जातिकुलेणं कुलं, कम्मेण कम्मं, अणुभावेण [अणुभावं,] थीणामेण थीणामा य, पुण्णामेण पुण्णामा य, णपुंसकेण णपुंसका य, एवं समणुगंतव्वं 25 भवति । तत्थ सहचरेसु परेण परिविट्ठा भवति । एवमेव जातीहि सव्वमणुगंतव्वं भवति । तत्थ भोयणस्स भो(भा)यणगतं तिविधमाधारयितव्वं भवति, तं जधा-पाणजोणीमयं धातुजोणीमयं मूलजोणीमयं । जधुत्ताहि उवलद्धीहि उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ पाणजोणीमये पुव्वाधारिते पाणजोणीमयं सिप्पिपुडं संखमयं च एवमादीहिं उवलद्धीहिं उवलद्धव्वं भवति । तत्थ मूलजोणीमये पुव्वाधारिते मूलजोणीमयं कट्ठमयं फलमयं पत्तमयं चेति जधुत्ताहिं उवलद्धीहिं उवलद्धव्वं भवति । तत्थ धातुजोणीमये भायणे पुव्वाधारिते धातुजोणीमयं सुवण्णमयं रुप्पमयं 30 तंबमयं कंसमयं काललोहमयं सेलमयं मत्तिकामयं ति जधुत्ताहिं - उवलद्धीहिं ० उवलद्धव्वं भवति । एवं सव्वभायणाणि उपलद्धव्वाणि भवंति । १ 'माहारयियव्वं हं० त० ॥ २ सव्वजलचरगते हं० त० ॥ ३ "जलयोप हं० त० ॥ ४ पुव्वमाहारयिएस हं० त० ॥ ५ गतेसु पुष्फ हं० त० विना ॥ ६ “त्थ सव्वअणूसु हं० त० ॥ ७ 'वंतेहिं पु" हं० त० ॥ ८ "क्खिमंसं हं० त० विना ॥ ९ आहारयियव्वं हं० त० ॥ १० हस्तचिह्रान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ ११ “सुखसंगते हं० त० ॥ १२ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ १३ “सु उदासीणाभायणं सं ३ पु० । “सु दासीण भोयणं सि० ॥ १४ सव्ववज्जोपलद्धीयं च वाधुर्ये भुत्तं हं० त० ॥ १५ सव्वसव्वधम्मोपजातीयं जण्णे हं० त० विना ॥ १६ मारणे हं० त० विना ॥ १७ जधावातेण वा जधासंगणेण वा जधासंठाणेण हं० त० विना ॥ १८ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्तालीसइमो भोयणज्झाओ १८१ तत्थ अब्भंतरेसु सगिहे भुत्तं ति बूया । बाहिरब्भंतरेसु मित्तकुले भुत्तं ति बूया । बाहिरेसु उज्जाणघरे जिमितं ति बूया । मुदितेसु सक्कारपडिरूवेणं सक्कारेणं भुत्तं ति बूया । दारुणेसु भीतपडिरूवे य भीतेणं भुत्तं बूया । दढेसु अवस्थितेणं भुत्तं [बूया] । चलेसु उप्पुत्तेणं भुत्तं बूया । पसण्णेसु पसण्णपडिरूवगते य पसण्णेणं भुत्तं ति बूया । अप्पसण्णेसु अप्पसण्णपडिरूवगते य अप्पसण्णेण भुत्तं ति बूया । तत्थ अक्खोडिय-परिविट्ठिय-सव्वकोधपडिरूवगते य कुद्धेणं भुत्तं ति बूया । तत्थ पुरत्थिमेसु गत्तेसु पुरत्थिमेसु य सद्द-रूवेसु पुरथिममुहेणं भुत्तं ति बूया । एवं 5 सव्वा दिसा समणुगंतव्वाओ । इति भोयणगते त्ति ।। तत्थ पाणगते पुव्वमाधारिते पाणगतं तिविधमाधारये-पाणजोणीगतं मूलजोणीगतं धातुजोणीगतं चेति । जहुत्ताहि उवलद्धीहिं तिविधमपि उवलद्धव्वं भवति । तत्थ पाणजोणीगतं पाणगं दुद्धं दधि तक रसो घतं वा विततं वसा वा वितता यधुत्ताहिं उवलद्धीहिं उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ मूलजोणीगते पुव्वाधारिते मज्जगतं जवातूगयं फलरसगतं वा बूया । तत्थ मुदितेसु सव्वखंधपडिरूवगते य उच्छुरसं वा गोलोयं वा बूया । तत्थ पुधूसु सव्वपत्तगते य पत्तरसं 10 बूया । तत्थ मुदितेसु सव्वपुष्फपडिरूवगते य पुष्फरसं बूया । तत्थ पुण्णेसु सव्वफलपडिरूवगते य फलरसं बूया । तत्थ अणूसु सव्वधण्णगते य धण्णरसं बूया । तत्थ धातुगते पाणीयं बूया । तत्थ मज्जगतेसु पुव्वाधारितेसु यवा पसण्णं वा अयसं वा अरिद्धं वा महुं वा बूया । तत्थ ओधुतेसु सव्वोसधीपडिरूवगते य अरिष्टुं बूया । तत्थ पीतेसु सव्वफलपडिरूवगते य मधुं बूया । तत्थ पसण्णेसु सव्वपसण्णपडिरूवगते य पसण्णं बूया । सेतेसु सेतसुरं बूया । इति मज्जगतं । 15 तत्थ जवागूपुव्वाधारितेसु दुद्धजवाणू वा + धेयजवाणू वा 9 तेल्लजवाणू वा अंबिलजवाणु वा उण्हिअं वा ओसधजवाणू वा बूया । तत्थ वालेयेसु पाणजोणिगते सुक्केसु मधुरेसु दुद्धजवाणू वा बूया । तत्थ णिद्धेसु पीतेसु य घतजवाणू वा बूया । तत्थ णिद्धेसु समेसु तेल्लजवाणू वा बूया । तत्थ वापण्णेसु अंबिलोपलद्धीयं वा अंबिलजवागुं वा बूया । तत्थ आपुणेयेसु उण्हेसु य उण्हितं बूया । तत्थ उद्धतेसु सव्वोसधोपलद्धीयं च ओसधजवाणू वा बूया । तत्थ पुष्फ-फलसमाणेसु पाणगतं वा सालयगयं वा बूया । तत्थ सव्वधण्णजोणीयं जहुत्ताय सव्वधण्णरसगते य 20 उवलद्धव्वा । इति पाणजोणीगतो । तत्थ भक्खगते पुव्वाधारिते भक्खगतं दुविधमाधारये-पाणजोणीमयं [मूलजोणीमयं] चेति । तत्थ जधुत्ताहिं उवलद्धीहिं दुविधा उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ पाणजोणीगते जधुत्ताहिं मंसोवलद्धीहि उवलद्धव्वाणि भवंति । इति पाणजोणीगतं । तत्थ मूलजोणिगते पुव्वाधारिते मूलगतं खंधगतं णिज्जासगतं पत्तगतं फलगतमिति जधुत्ताहिं उवलद्धीहिं 25 उवलद्धव्वाणि । तत्थ मूलगते पुव्वाधारिते आलुकं वा कसेरुकं वा सिंघाडकाणि वा भिसं वा भिसमुणालं वा चायं वा एवमादी कंदमूलगतो समणुगंतव्वो भवति । तत्थ खंधगते उच्छु वा अण्णं वा खंधगतं बूया । तत्थ णिज्जासगते सक्करं वा मच्छंडिकं वा गुलं वा बूया । तत्थ जधण्णेसु वट्टेसु गुलं बूया । तत्थ पसण्णेसु सारवंतेसु सीतलेसु य सक्करं बूया । तत्थ पकिण्णेसु मच्छंडिकं बूया । मुदितेसु खज्जगगुलं बूया । जधण्णेसु वट्टेसु गुलं बूया । असंखेत्तेसु अणग्गेये य इक्कासं बूया । जधुत्ताहि उवलद्धीहिं पत्तगतं पुष्फगतं फलगतं धण्णगतं भक्खं बूया । तत्थ सव्वमूलगते रुक्खगते वल्लिगतं गुम्मगतं छुभगतं तणगतमिति । तत्थ उद्धंभागेसु पुण्णामेसु दक्खिणेसु कायवंतेसु सव्ववुक्खगते य वुक्खगतं बूया । तत्थ दीहेसु कुडिलेसु वामेसु थीणामेसु सव्ववल्लिगते य वल्लिफलं 30 १ यवागूगतं हं० त० विना ॥ २ उदुएसु हं० त० ॥ ३ जवायुपु हं० त० ॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ५ उण्हुतेसु हं० त० विना ॥ ६-७ रुक्ख हं० त० ॥ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ अंगविज्जापइण्णय बूया । तत्थ मज्झिमाणंतरकायेसु गहणेसु सव्वगुम्मगए य गुम्मफलं बूया । तत्थ पच्चवरकायेसु उपग्गहणेसु सव्वछुभतणोपलद्धीयं च छुभगतं बूया ।। - तत्थ जधुत्ताहिं धण्णोपलद्धीहिं फलोपलद्धीहि य भक्खोपलद्धीओ उपलद्धव्वाओ भवंति । तत्थ पिट्ठगते चुण्णगते य तप्पणा बदरचुण्णं वा विक्कसं वा चुण्णं वा उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ भक्खगते पकिण्णगते य कलायभज्जियं वा 5मुग्गभज्जियं वा जवभज्जियं वा गोधूमभज्जियं वा सालिभज्जियं वा तिलभज्जियं वा एवमादीणि भज्जितकाणि बूया । तत्थ भक्खगतं चउविधमाधारये-गुलगतं लवणगतं अगोलीयं लवणमिति । तत्थ लवणगतं दुविधं-अग्गेयं च अणग्गेयं च । [तत्थ] अणग्गेयं सामुदं वा सेंधवं वा सोवच्चलं वा पंसुखारे वा । तत्थ अग्गेयाणि जवखारो वा सोवच्चिका वा पिप्पली वा खारलवणं वा बूया । . तत्थ सव्वगुलगते सक्करं वा मच्छंडिकं वा गुलेण वा गुलगतं जधुत्ताहि [उवलद्धीहिं] उवलद्धव्वाणि भवंति । 10 तत्श वट्टेण सव्ववट्टपडिरूवगते य मोदका वा पेंडिका वा पप्पडे वा मोरेंडकाणि वा सालाकालिकं वा अंबट्टिकं वा एवमादीकाणि वट्टाणि उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ पुधूसु वित्थडेसु सव्ववित्थतपडिरूवगते य पोवलिकं वा वोक्कितकं वा पोवलके वा पप्पडे वा सक्कुलिकाओ वा पूंपे वा फेणके वा अक्खपूपे वा अपडिहते वा पवितल्लके वा वेलातिको वा पत्तभज्जिताणि वा उल्लोपिको वा सिद्धत्थिका वा बीयकाणि वा उक्कारिका वा मेंडिल्लका वा एवमादीकाणि बूया । तत्थ दीहेसु दीहसक्कुलिकं वा खारवट्टिका वा खोडके वा दीवालिकाणि वा दसीरिका वा भिसकंटकं वा 15 मत्थतकं वा, जाणि वऽण्णाणि एवमादीणि बूया । तत्थ गुलोपलद्धीयं गोलिकं बूया । लोणोपलद्धीयं लोणितकं बूया । [भक्खोपलद्धीयं] भक्खगतं बूया । आधायणेणं अलवणमगोलिकं बूया । इति भक्खगयं । तत्थ लेज्झगते पुव्वाधारिते लेज्झगतं दुविधमाधारये-पाणजोणीगतं मूलजोणीगतं चेति । तत्थ जधुत्ताहिं पाणजोणीयं उवलद्धव्वाण पाणजोणीगतं लेज्झगतं उवलद्धव्वं भवति । तत्थ लेझं वा पाणजोणीगयं घयं नवणीयं वसा मधु ति यधुत्ताहिं उक्लद्धीहि उवलद्धव्वं । इति पाणजोणीगतं लेझं । तत्थ जधुत्तायं मूलजोणीयं उवलद्धीयं मूलजोणीगतं 20 लेझं उवलद्धव्वं भवति । तत्थ मूलजोणीगते लेज्झे पुव्वाधारिते फाणितं वा कक्कबं वा तिलक्खली वा पलालं वा तंबारागो वा लेज्झचुण्णं वा बूया । तत्थ गुलोवलद्धीयं कक्कबं वा फाणितं वा उवलद्धयं भवति । तिलोवलद्धीयं पललं वा तिलक्खली वा उवलद्धव्वा । एवं कटुकेसु रागलेज्झा उवलद्धव्वा भवति । इति भोयणं भक्खं लेझं पाणं चउव्विहमवि समणुगंतव्वं भवति ॥ ॥ इति भोयणो नामाज्झायो चत्तालीसइमो सम्मत्तो ॥ ४० ॥ छ । [ एगचत्तालीसइमो वरियगंडियज्झाओ] 25 णमो भगवतो महावीरवद्धमाणस्स । णमो भगवतो जसवतो महापरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । अहापव्वं खल भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय वरियगंडिया नाम अरहस्समज्झायं । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामो । तं जधा-तत्थ रतं ण रतं ति पुवर्माधारयितव्वं भवति । तत्थ अभंतरामासे णिद्धामासे छिद्दामासे अतिमासे सव्वपारगते भीते ण रतं ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे च ण रतं ति बूया । तत्थ सव्वअब्भंतरगते १ मोरंड' हं० त० ॥ २ पोवलिवे वा हं० त० विना ॥ ३ पूणफेणके हं० त० विना ॥ ४ वेल्लातिकाओ वा पउभज्जियाणि वा उल्लोपिकाओ वा हं० त० ॥ ५ मंडल्लिका हं० त० विना ॥ ६ व दीवलि हं० त० विना ॥ ७ मच्छत्तकं हं० त० ॥ ८ अहायणेणं हं० त० ॥ ९ णामाध्यायो हं० त० विना ॥ १० यसवओ हं० त० ॥ ११ “स्सामि हं० त० ॥ १२ "माहारयियव्वं हं० त० ॥ १३ व्वसंपार' हं. तू० विना ॥ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३ एगचत्तालीसइमो वरियगंडियज्झाओ सव्वमल्लगते सरगते पुक्खरगते गीत-वादितगते संलाव-हसित-तालगते चुंबिता-5ऽलिगित-पाण-भोयण-भक्खलेज्झगते सयणा-5ऽसणगते य रतं ति बूया । विक्कणिते णिक्काणिते छिविते जंभिते णिटुभिते अविमुत्ते मल्ले वा भूसणे वा पकिण्णे वा अपपातिते अपलोलिते ण रतं ति बूया । तत्थ पुण्णामेसु पुरिसेण रतं ति बूया, थीणामेसु थिया रतं ति बूया, णपुंसकेसु चुंबित-आलिंगितरतं ति, ण पुण सेवणारतं ति बूया । तत्थ रते पुव्वाधारिते पुण्णामेसु अभारिकेण पुरिसेण रतं ति, थिया वा अपतिकाय । थीणामेसु सभारिकेण पुरिसेण रतं, थिया वा संपतिकाय । णपुंसकेसु 5 अणवत्थेण(वच्चेण) पुरिसेण रतं, थिया वा वंझाय ।। तत्थ तिविहं रतं-दिव्वं माणुस्सं तिरिक्खजोणियं चेति । तत्थ उद्धंभागेसु सिरोमुहे य ऐकस्सिकायं अंजलीकरणे पायुकोपाहणाअधमुंचणे अभिवंदिते आसण-सयणसंपदाणे पहाणा-ऽणुलेवणे गंध-मल्लगते छत्त-भिंगार-लाउल्लोपिके वासकडक-लोमहत्थे जक्खोपयाणे समिधजोगपच्चपयणेसु य दिव्वं रतं ति बूया । तत्थ उद्धंभागेसु सुक्केसु अच्छराय रतं ति बूया, थिया य वा देवेण रतं ति बूया। णिद्धेसु णागकन्नाय रतं ति बूया, थिया वा णागेण रतं ति बूया । तिरियं भागेसु 10 किण्णरीय रतं ति बूया, थिया वा किण्णरेण रतं ति बूया । तत्थ तिरियजोणीगते विगताभिरामेसु य हस्सेसु पिसायीअ रतं बूया, थिया वा पिसाएण रतं ति । दारुणेसु रक्खसीअ रतं ति बूया, थिया वा रक्खसेण रतं ति बूया। सव्वगंधव्वेसु गंधव्वीय रतं ति बूया, थिया वा गंधव्वेण रतं । अधोभागेसु असुरकन्नाय रतं ति, थिया वा असुरेण रतं ति बूया । तत्थ दुपदजोणीगते सव्वअज्जीवगते वियाकरणे मतकपडिमाय रतं ति बूया । असारेसु पत्थिवपडिमाय रतं ति बूया । सारवंतेर्से मुत्तिकापडिमाय रतं ति बूया । पुधूसु चित्तपडिमाय रतं ति बूया । इति दुपदजोणी अज्जीवा । 15 तत्थ तिरियजोणीगते तिरियजोणीरतं ति बूया । तं दुविध-सागुणं वा चतुष्पदं चेति । [तत्थ] उद्धंभागेसु सव्वसगुणपाउब्भावगते य सगुणीय रतं बूया । चित्तसिहे कक्कडीयं रतं बूया । अमधुरघोसेसु टिटिभीय रतं ति बूया । चित्ते असिहे पारेवतीय रतं ति बूया । विगतदारुणेसु छिन्नगालीय रतं । इति पक्खिगतरतं ति । तत्थ सव्वचतुप्पदेसु चतुष्पदेण रतं बूया । तत्थ सेव्वसिंगिगए य क सव्वसिंगीकोसीधण्णगते य गो-महिस-अयेलकेण रतं ति बूया । मज्झिमकायेसु गो-महिसेण रतं ति बूया । मज्झिमाणंतरकायेसु अयेलकेण अस्सतरीहिं वा रतं ति बूया । 20 दारुणेसु सुणिकाय रतं ति बूया । साधारणेसु वराहीय रतं ति बूया । वायव्वेसु वलवाय रतं ति बूया । विणतेसु उट्टीय रतं ति बूया । फरुसेसु गद्दभीय रतं ति बूया । चित्तेसु गावीय रतं ति बूया । D कण्हेसु महिसीय रतं ति बूया । इति चतुप्पयगतं रतं ति । तत्थ माणुसं तिविधं-थिया पुरिसा णपुंसका चेति । थीमाणे थिया रतं, पुण्णामेसु पुरिसरतं ति बूया, णपुंसकेसु णपुंसकरतं ति बूया । तत्थ रतं दुविधं विगतं अविगतं चेति । तत्थ माणुसेसु माणुसं उद्धंभागेसु उवरि गीवाय पासितं 25 विज्जा । तत्थ सव्वसयणा-5ऽसणगते परिधाण-पादकलापक-पादकिंकणिका-खत्तिय-धम्मक-पायुकोपाणह-सव्वजाणगते सव्वजाणोवकरणे य माणुसं रतं बूया । तत्थ सव्वमल्ल-मुकुडउद्धगते कूचफणलीखावण-हाण-पधोवणविसेसकिया ओकुंतणक हरिताल-हिंगुलक-मणसिल-अंजण चुण्णक-अलत्तक-गंध-वण्णक कण्णसोधणक-अंजणीसैलाका-कुच्चठावण-कुंच-सूची-धूपण-गंधविधि-सव्वआहारगते सव्वभोयणगते भोयण-भायणगते भक्ख हरितपुप्फ-फलगते सासा-सम्मिका-वतंसक-ओवास कण्णपीलक-कण्णपूरक-णंदीविणद्धक-कुलीयंधक-तिलक- 30 कुंडल-वल्लिका-तलपत्तक-मधुरक-मुंहवासक-चंद-सुज्ज–णक्खत्त-गह-तारागण–पडिरूवसद्दपादुब्भावे भुत्तपीते चेति एवंविधसद्दरूवपादुब्भावे पासियं बूया । तत्थ मणुस्सरतं पुव्वाधारितं उद्धितं अवेटुं वेति । तत्थ उद्धंभागेसु १ सु आभिसारिकेण हं० त० विना ॥ २ “सुभसारिकेण हं० त० ॥ ३ सपालिकाय हं० त० विना ॥ ४ 'क्खजोणिगयं हं० त० ॥ ५ एकम्मिकायं हं० त० ॥ ६ पाउको हं० त० ॥ ७ य सहस्से हं० त० विना ॥ ८ हस्तचिहान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ ९ "त्थ चउप्पदजो हं० त० ॥ १० वियागरे मत हं० त० ॥ ११ 'सु मच्छिका हं० त० ॥ १२-१३ हस्तचिहान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वति ॥ १४ 'यचम्मक' हं० त० ॥ १५ "सक्किपाटकंतूणक हं० त० ॥ १६ “सलाकीकुच्च हं० त० विना ॥ १७ णट्ठककुरीएवतिलक हं० त० ॥ १८ महवासक-चंदमुहणखग्गहलरोगहणपडि हं० त० ॥ १९ चंद-सज्जु-णक्खत्तह-गह हं० त० विना || २० पोसितं हं० त० ॥ २१ अट्ठतं अवेटुं हं० त० ॥ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ अंगविज्जापइण्णयं उस्सितेसु य उद्रुिताय रतं ति बूया । तत्थ सव्वसयणासणगते जाणि वऽण्णाणि माणुसस्स रतस्स पुव्वलिंगाणि एतेसु उवविट्ठाय रतं ति बूया । सव्वसयणासणगते संविट्ठाय रतं ति बूया । सव्व-वस्सयगते अवत्थद्धाय रतं ति बूया । संविट्ठरते पुव्वाधारिते दक्खिणेसु य गत्तेसु देक्खिणाय विलोकिते दक्खिणे यावि सद्दम्मि पडिरूवम्मि दक्खिणे दक्खिणेण पस्सेण रतं ति बूया । वामेसु य गत्तेसु वामम्मि य विलोकिते वामे पसारिते यावि वामम्मि पडिपोग्गले वामेण 5रतं ति बूया । तत्थ पट्ठीयं सयणासणगते उक्कुज्जभायणम्मि वत्थे वा सद्द-रूव-गंधपादुब्भावे वा एवंविधे तुत्ताणाय रतं ति बूया । तत्थ णिकुज्जे सयणासणे णिकुज्जभायण-भूसणे वा वत्थे वा सव्वम्मि व पडिगते णिकुज्जे य सद्द-रूवपादुब्भावे वा णिकुज्जाय रतं ति बूया । तत्थ सव्वचतुप्पदगते अधोभागेसु संधीसु बाहिरेसु ओणते ओलोइते ओसन्ने चेव एवंविधसद्दरूवपादुब्भावे ओणताइ रतं ति बूया । तत्थ उव्वारितेसु गत्तेसु विसारितेसु गत्तेसु उब्भाय रतं ति बूया । तत्थ एक्कक्केसु गत्तेसु एक्काभरणे एक्ककोपकरणे एक्ककपरामासे एक्कसाहागते चेव एक्कब्भगायं 10 रतं ति बूया । पेसल्लिएसु उप्पाएसु पडिरूवेसु पसल्लिएसु पसल्लियवेलुफालिय रतं ति बूया । तत्थ उत्ताणरतं तिविहंउभयोसंविटुं अद्धसंविटुं एक्कापविलृ ति । तत्थ सव्वापस्सिते उभयोसंविट्ठरतं, उरोपविढेसु अद्धसंविट्ठरतं, उद्धंभागेसु उपविट्ठरतं । तत्थ पणतं तिविधं-कडीगहितं चतुप्पदरतं रधजातं ति । तत्थ जाणगते आसणगते पादगते जहण्णे पगते अधोणाभीय गत्तामासे य कडीगहिताय र ति बूया । तत्थ सव्वत्थरणगते सव्वचतुप्पयगते य चतुप्पयरतं ति बूया । तत्थ सिरोमुहोपकरणे सव्वआहारगते य रधप्पयातकं वा रतकं [ति] बूया । तत्थ उपविट्ठरयं चतुव्विधं-सयणावत्थद्धं 15 आसणावत्थद्धं साहावत्थद्धं वक्खावत्थद्धं चेति । तत्थ स[य]णोपकरणोपलद्धीयं च सयणावत्थद्धरतं ति बूया । सव्वासणगते कडीयं वा आसणावत्थद्धरतं ति बूया । सव्वसाहागतेसु साहाअवस्सिताय रतं ति बूया । सव्वमूलगते सव्वमूलजोणीगते अस्सेसु वक्खेसु वक्खावत्थद्धाय रतं ति ब्रूया । तत्थ एक्कामासे एक्कोपकरणे एकचरेसु सत्तेसु एकपादुब्भावे य सद्द-रूवाणं एक्कसि रतं ति बूया । तत्थ सामाणेसु गत्तेसु यमलाभरणके मिधुणचरेसु सत्तेसु बिसद्द-रूवपादुब्भावे बिक्खुत्तो रतं ति बूया । तत्थ भुयंतरेसु नासातिके वत्थीसीसे हणसंधिस विकणिए णिकज्जे कासिते छिविते जंभिते ओणामिते णिम्मज्जिते ओलोकिते तिके सिंघाडके सव्वतिकसद्द-रूवपादुब्भावे य तिक्खुत्तो रतं ति बूया । तत्थ पादतल-करतलेसु चतुरस्सेसु चउक्केसु चतुरंगुलिग्गहणे हसिते आविद्धमल्ल-भूसणे उवसक्किते उवेटे सव्वभोयण-सयणा-ऽऽसणचउरस्से पच्छेलिते आलिगिते चुंबिते भुत्ते पीते चतुप्पदोपकरणे चतुप्पदणामधेज्जे थी-पुरिसगते चतुप्पदरूवपादुब्भावे चतुक्खुत्तो रतं ति बूया । तत्थ हत्थ-पाद-जाणु समामासे मुट्ठीकरणे हत्थाभरणे पंचकसद्दपाउब्भावे य पंचखुत्तो रतं ति । तत्थ गैंड-मणिबंध-गुप्फामासे तिजमलोदीरणे 25 एक्कके 'पंचकसहिए छक्कसद्दपडिरूवगते य छखुत्तो रतं ति । तत्थ छसु वा एक्कसहिएसु पंचसु वा दुगसहिएसु चउसु वा तिगसहिएसु दोसु वा तिगेसु एक्कगसहिएसु + तिसु दुगेसु एक्कगसहिएसु सत्तए वा सद्द-रूवपाउब्भावे सत्तखुत्तो रतं ति बूया । तत्थ ललाडमज्झे उरमज्झा एक्केक्कअट्ठकोदीरणे अट्ठके वा आमाससद्द-रूवपादुब्भावे अट्ठखुत्तो रतं ति बूया । तत्थ चउक्क-पंचकोदीरणे तिक-छक्ककोदीरणे बिक-सत्तकोदीरणे एक्क-अट्ठकोदीरणे णवसद्द-रूवपादुब्भावे वा णवखुत्तो रतं ति बूया । तत्थ सिरो-पाद-अंजलिकरणे कच्छभकरणे पादसमाणणे जमलपंचकोदीरणे चउक्क-छक्कको30 दीरणे एक्कक-णवकोदीरणे तिअ-सत्तकोदीरणे बियअट्ठकोदीरणे दसए वा आमासद्द-रूवडिपोग्गलपाउब्भावे दसखुत्तो १ दक्खिणे य हं० त० ॥ २ वामंसि य हं. त० ॥ ३ ओवारितेसु हं० त० ॥ ४ एक्कभग्गायं हं० त० ॥ ५ पस्सत्तिएसु तुप्पाएसु हं० त० ॥ ६ पस्सल्लि सं ३ पु० ॥ ७ ‘यावकवारयं बूया हं० त० ॥ ८ साधाव हं० त० ॥ ९ तत्थासणोप हं० त० विना ॥ १० 'वसिवाय हं० त० ॥ ११ असेसु हं० त० विना ॥ १२ “सु अवत्थ' सप्र० ॥ १३ कसिए विधिए जं. हं० त० ॥ १४ “सु वत्थर सं ३ पु० ॥ १५ पवेलिते सं ३ पु० ॥ १६ “समासमामासे तुट्ठी सं ३ पु० ॥ १७ गंधमणि हं० त० विना ॥ १८ पंचकसद्दपाउब्भावे छक्क हं० त० विना ॥ १९ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ २० ‘पडिपुण्णपाउ हं० त० विना ॥ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगतालीसइमो वरियगंडियज्झाओ १८५ रतं ति बूया । अतो उद्धं अण्णेण समाजोगेण विकप्पणाय आमास-सद्द-रूव-पडिपोग्गलपाउब्भावेहि गणणापरिसंखाणि रतेसु वा जोजयितव्वं भवति । तत्थ विगतेण बीभत्थेण परिमंडले गुदे रतं ति बूया । परिमंडले णाभीय रतं ति बूया । उण्णते थणंतरे रतं ति बूया । हत्थगते थिग्गलगते य पाणिणा रतं ति । इति विगतरताणि । तत्थ उवाएसु उवाताय रतं, सामसु सामाय रतं, कण्हेसु कालिकाय रतं, दीहेसु दीहाय रतं, रस्सेसु रस्साय रतं, थूलेसु थूलाय रतं, किसेसु किसाय 5 रतं । बालेसु बालाय रतं, वयत्थेसु वयत्थाय रतं, मज्झिमेसु मज्झिमाय रतं, महव्वयेसु महव्वयाय रतं । बंभेज्जेसु बंभणीय रतं, खत्तेज्जेसु खत्तिकाय रतं ति बूया । वेसेजेसु वेस्सीय रतं, सुद्देज्जेसु सुद्दीय रतं, मूलजोणीगते कसिगोरक्खभज्जाय रतं, दढेसु कारुकभज्जाय सह रतं, थलेसु ववहारीभज्जाय सह रतं । पुण्णामेसु सपतिकाय सह रतं, थीणामेसु ससपतिकाय सह रतं, णपुंसकेसु पउत्थपतिकाय सह रतं । दढेसु अविधवाय सह रतं, अमुक्काय अवट्ठिताय सह रतं, चलेसु अणवत्थिताय सह रतं चलचित्ताय त्ति । णिद्धे उदुणीय सह रतं, G चु(लु)क्खेसु अणुदुणीय 10 सह रतं, ति बूया, लुक्खाय विसदाय [व] रतं बूया । कण्हेसु दुस्सीलाय सह रतं, तणूसु सुक्केसु अद्धसंवुताय रतं । अब्भंतरेसु अब्भंतराय सकाय थिया रतं, बाहिरेसु परभज्जाय रतं ति, बाहिरब्भंतरेसु मित्तभज्जाय सह रतं ति बूया । रायचिंधेसु पडिरूवेसु रायपुरिसपडिरूवेसु य रायपुरिसपडिपोग्गले य रायपुरिसभारिकाय सह रतं । जस्स जं चिंधं पडिपोग्गलपडिरूवं वा तेण तस्सोवजीवकभारिकाय सह रतं । < णीहारे परिचारिकाय सह रतं । 20 गहणेसु परूढणख-कक्खरोमाय रतं, उपग्गहणेसु अचिरपरूढनह-रोमाय रतं, आकासेसु रमणीयेसु सुपरिमज्जितणह-15 कक्ख-वत्थिसीसाय रतं ति बूया । पुधूसु पुधुउपधाय रतं, संखित्तेसु संखित्तभगाय सह रतं, परिमंडलेसु परिमंडलभगाय सह रतं, चउरस्सेसु चउरस्सभगाय, 1 तिअंसेसु - तिअंसभगाय सह रतं । असंखतेसु अमेहलाय रतं, संखतेसु समेहलाय रतं । कण्णेयेसु कुमारीय सह संकेतो ति, जुवतेयेसु जुवतीय व सह रतं ति, अतिवत्तेसु विविधाय रतं । < उत्ताणेसु > उत्ताणभगाय सह रतं, णिण्णेसु णिण्णभगाय सह रतं । पसण्णेसु पसण्णाय सह रतं, अपसण्णेसु कुद्धाय रतं । सद्देयेसु चित्ताय वा मुदिताय वा विस्सुयकित्तीय वा पक्खाताय वा सह रतं ति बूया । दंसणीयेसु 200 सुरूवेसु दंसणीयरूवसंपण्णाय सह रतं, गंधेयेसु सुगंधाय पहाणा-ऽणुलेवण-मल्ल-गंधसंपुण्णाय सह रतं ति बूया । रसेयेसु मधुराय मधुरलवणाय रतिरसगुणसमण्णागयाय बहुभक्ख-पेय-रसगुणसमण्णागतं रतं ति बूया । फासेज्जेसु फासाय फासगुणसमण्णागयं रतं । मणेयेसु इट्ठाय थियाय सह रतं, भुमकाय भिउडीरतं, अक्खिसु णिकाणितं बूया, मुहे चुंबितं बूया, ओढेसु खयं ब्रूया, बाह्सु आलिंगियं ब्रूया, उच्छंगेसु उपविटुं बूया, णहेसु णक्खपदं बूया, दंतेसु दंतपरिमंडलं दंतखयं वा बूया । तणेसु खयं बूया, समेसु घोसवंतेसु य गीतरतं बूया, सद्देयेसु हसियं बूया, आहारोपगएसु आहारियं 25 बूया, णिमिसिएसु कण्हेसु पुसुयं बूया, तिक्खेसु सोणियओघायणं बूया, तुच्छेसु सुद्दाय रतं बूया, कण्णेसु पडियाय रतं बूया, अप्पसण्णेसु विवादं बूया, अभिकामेसु रतं बूया ।। तत्थ काले पुव्वाधारिए कंसि काले रतं ? ति–कण्हेसु रत्तिरतं ति, सुक्केसु दिवा रतं ति बूया, सामेसु संझाकाले रतं बूया, कण्हेसु आदिमूलीयेसु पदोसे रतं, सुक्केसु आदिमूलीयेसु अवरण्हेसु रतं, सुक्कमज्झविगाढेसु मज्झंतियए रतं बूया, कण्हेसु मज्झविगाढेसु अद्धरते रतं, सुक्केसु अंतेसु अवरण्हे रतं बूया, कण्हेसु खंतेसु पच्चूसे रतं । 30 तत्थ आधारयितू आधारयितू रयण(णि)रतं ति केण वा सह रतं ? देवेण वा देवीय वा ? मणुस्सेण वा मणुस्सीय वा ? तिरिक्खजोणिएण वा तिरिक्खजोणीगीय वा? किंजातीयेण किंरूवेण किंवयेणं किंअलंकारेणं किंसील-भावा १ बालायेसु हं० त० विना ॥ २ हस्तचिह्नन्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ३. 4 एतच्चिदन्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ४ पहिट्ठाय रतं हं० त० ॥ ५ 'सु कट्ठाय हं० त०॥ ६ बूया, अद्धेसु हं० त० विना ॥ ७ सिए कण्णेसु भुसुनुं बूया हं० त० ॥ ८ कण्हेसु सि० ॥ ९ 'भिक्खामे सि० ॥ १० "मूलेसु हं० त० विना ॥ ११ "सु अंतेसु प हं० त० विना ॥ १२ रयित्तु आधारयित्तु रय हं० त० विना ॥ १३ जाईतेण हं० त० विना ॥ . Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ अंगविज्जापइण्णयं ऽऽचारेणं ? कधं सेवितं सेवणागार-विगता-ऽविगतसेवणा व त्ति ? कंसि देसंसि आसण-सयण-अवस्सयविधीसु वा? गीत-वाइत-हसित संलाविय-आलिंगित चुंबिय-णहदंतकेसग्गहण आगारविगारविधीहिं वा सद्द-रूव-रस-गंधफास-पडिभोग-इट्ठा-णिट्ठबहुलेति वा ? सम्मोइ-विग्गह-अभिप्पेत-अणभिप्पेय-पडित-मुट्ठय-अणुलोम अणणुलोमरतादिकाणि वा ? विविधाणि रताणि केवतिखुत्तो वा ? कंसि वा कालंसि रतं ति ? एताणि सव्वाणि 5 ठाणाणि अणेगेविधभेद-गमाणि जधुत्ताहिं उवलद्धीहि उवलद्धव्वाणि भवंति । आमास-सद्द-रूव-रस-गंधपडिपोग्गलेहिं सव्वाणि अणुगंतव्वाणि भवंति ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय रहस्सपैडलो णामज्झाओ एगतालीसइमो सम्मत्तो ॥ ४१ ॥ छ । [बायालीसइमो सुविणज्झाओ] -000000000 णमो महावीरवद्धमाणाय । णमो भगवतो जसवतो महापुरिसस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय 10 अंगविज्जाय सुविणो णामज्झायो । तं खलु भो ! वक्खस्सामि । तत्थ दिट्ठो सुविणो ण दिट्ठो अवत्तदिट्ठो सुविणो ति पुव्वमाधारयियव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पयलाइए पसुत्ते चक्खुपरामासे त्ति दिटुं वत्तं सुविणं ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे कण्हामासे ण दिट्ठो सुविणो त्ति बूया । तत्थ बाहिरब्भंतरम्मि दढचलम्मि णिद्धलुक्खम्मि णीहाराहारमिति अव्वत्तं दिटुं सुविणं ति बूया। तत्थ चक्खुम्मि सव्वदंसणीयेसु य सव्वपभागएसु य सव्वणयणोवभोगेसु य दिटुं सुविणं बूया । सुभेसु सुभं असुभेसु असुभं दिटुं सुविणं बूया । 15 तत्थ कण्हेसु उकुढे अप्फोडिए किलकिलायिए मेघडयकायण-आभरण-हिरण्ण-गीय-वाइय-तंती-तल ताल-सव्व-आउज्जगते सव्वसद्दोवलद्धीयं तथऽक्खरोपपत्तिमुपलभते तत्थ सुविणे सुतं ब्रूया, इटे इटुं सुतं बूया, अणिद्वेसु अणिटुं सूयं बूया । तत्थ णासायं उस्सिघिते णिस्सिघिते णत्थोकम्मव्वमणत्ते सव्वगंधागते सव्वगंधजोणीगते सव्वगंधजोणीपडिरूवगते य घातं गंधं सुविणे बूया, सुभेसु सुभं गंधं घाणं बूया, असुभेसु असुभं गंधं घाणं बूया । तत्थ दंतोट्ठ-जिब्भा-तालु-गल-कवोलपरिमासे दड्डे कित्तणिग्गिण्हे अस्साविते संसाविते परिलीढे णाभी-उदरुच्छंग-कुक्खि20 पस्स-उदरपरामासे सव्वआहारगते सव्वआहारपडिरूवगए या आहारितं सुविणे बूया, सुभेसु सुभं आहारिअं, असुभेसु असुभं बूया । णासातिमासे तत्थ सव्वफासगते सव्वत्तयागते सव्वसयणाऽऽसणगते सव्वफासपडिरूवगते य फासगतं सुविणं बूया, सुभेसु सुभं फासं असुभेसु असुभं बूया। तत्थ कण्णातिमासे णासाति[मासे] णयणातिमासे मुहातिमासे दंतंतरातिमासे णक्खन्तरातिमासे संबाधंतरातिमासे अब्मंतरातिमासे किलिवरणसव्वछिंदपरामासे सव्वरतपडिरूवे य रतं सुविणं बूया । सव्वजाणगते सव्ववाहणगते सव्वचलेसु य जाणं सुविणं बूया । उम्मज्जितेसु चलामासेसु आरूढं सुविणे बूया । उम्म25 ज्जितेसु चलेसु ओरूढं बूया । सव्वचलामासेसु जंगमेसु य सत्तेसु जंगमं सुविणं बूया । जलामासेसु सव्वजलचरपडिरूवगते य जलचरदिटुं सुविणं बूया । उद्धंभागेसु सव्वदिव्वपडिरूवगते य दिव्वं दिटुं सुविणं बूया । उज्जुभागेसु सव्वमाणुसपडिरूवगते य माणुसं दिटुं सुविणं बूया । तिरियभागेसु सव्वतिरिक्खजोणीपडिरूवगते य तिरिक्खजोणियं १ सयवस्सवधी हं० त० विना ॥ २ हुणेते वा हं० त० ॥ ३ ताणि वा हं० त० ॥ ४ कस्सि वा हं० त० ॥ ५ 'गविट्ठिभेद' हं० त० ॥ ६ “पडलं णामज्झायो एगचत्तालीस हं० त० विना ॥ ७ वन्नयिस्सा हं० त० ॥ ८ णो [त्ति ] तिविहमा हं० त० ॥ ९ दिट्ठिवत्तं हं० त० विना ॥ १० उकुडेसु हं० त० विना ॥ ११ घउयकायणभारण्णहि हं० त० ॥ १२ सि० विनाऽन्यत्र-त्थ खरो हं० त० । “स्थ करो सं ३ पु० ॥ १३ सुयतं हं० त० ॥ १४ 'म्मधूमणेत्ते हं० त० विना ॥ १५ "रूवे य आ हं० त० विना ॥ १६ “ववण' हं० त० विना ॥ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७ बायालीसइमो सुविज्झाओ सुविणं दिट्टं बूया । थीणा[ मा] मासे थीणामामासेसु सव्वेसु सव्वत्थीपडिरूवगते यथीदिट्ठ बूया, पुण्णामेसु पुरिसदिट्टं सुविणे बूया, णपुंसकेसु णपुंसकदिट्ठ बूया । तत्थ दिव्वेसु पुव्वाधारितेसु देवो देव त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ पुण्णामेसु देवो दिट्ठो सुविणे त्ति बूया | थीणामेसु दिव्वपादुब्भावेसु देवी दिट्ठा सुविणे त्ति बूया । देवोपलद्धीहि य संद्द - रूवपादुब्भावेहि य णातव्वाणि भवंति । इति दिव्वोपलद्धिसुविणे दिट्ठा उपलद्धव्वा भवंति । तत्थ माणुसे पुव्वाधारिते माणुसा तिविधा, तं जधा - मता संपदा अणागतं ति । तत्थ पच्छिमेसु गत्तेसु ० मतेसु Do य मतं मणुस्सं सुविणे दिट्टं बूया । वामदक्खिणेसु गत्तेसु वत्तमाणेसु य सद्द-रूवेसु जीवंतं मणुसं सुविणे दिट्टं बूया । पुरिमेसु गत्तेसु अणागतेसु य सद्द - रूवपादुब्भावेसु अणागतं मणुस्सं सुविणे दिट्ठे बूया । तत्थ तिविधा - थीओ पुरिसा णपुंसका इति । तत्थ थीणामे थियं बूया, पुण्णामेसु पुरिसं बूया, णपुंसकेसु णपुंसका विण्णेया । तत्थ थी—पुरिससिरोमुहामासे बंभणं सुविणे दिट्ठ बूया, बाहूअंतरेसु खत्तियं, पट्ठोदरे वेस्सं सुविणे दिट्ठ बूया, पाद- 10 जंघेसु सुद्दं दिट्टं बूया । तत्थ वये पुव्वाधारिते पाद - जंघासु बालं दिट्ठ बूया, बाहूसु अंतरंसे य मज्झिमवयं दिट्ठ बूया, सिरोमुहे महव्वयं दिट्ठ बूया । अवदातेसु अवदातवण्णं दिट्टं बूया, सामेसु सामवण्णं दिट्ठं बूया, कण्हेसु कालकं दिट्ठ बूया, ठियामासेसु मिस्सकेहि तधावण्णसाधारणं दिट्ठ बूया । तत्थ ठाणे पुव्वाधारित उद्धं णाभीय अज्जवाणं इस्सरं दिट्टं बूया, अधत्था णाभीयं उवरिं जाणूसु अवत्तपेस्सं दिट्टं बूया, पाद-जंघासु पेस्समेव दिट्ठ बूया, पोदेसु दासं दिट्ठे बूया, उवरिं थणेहिं अधस्था गीवाय अज्जवाणं विसिद्धं बूया । जो तु गुरुत्थाणे उवरि ग्गीवाय 15 अधत्था भमुहाय अज्जवाणं गुरुत्थाणीतं दिट्टं बूया, एताणं उद्धं गुरुणो गुरुदिट्ठे बूया । वामेसु पुण्णामेसु थीसणामं दिट्टं बूया, वामेसु थीणामेसु थीसामण्णयं थीगमेव दिट्टं बूया, दक्खिणेसु पुण्णामेसु पुरिससामण्णयं पुरिसं बूया, दक्खिणेसु थीणामेसु पुरिससामण्णयं महिलं बूया । पुरिसणामे पुरिसणामेसु अधोभागेसु पुत्तं दिट्ठ बूया, पुरिसणामेसु पुरिसभागेसु पवत्तेसु उद्धंभागे पितरं बूया, पुरिसणामा पुरिसणामेसु पवत्तेसु समभागेसु भातरं बूया, पुरिसणामा थीणामेसु पवत्तेसु अधोभागेसु दुहितरं बूया, पुरिसणामा थीणामेसु पवत्तेसु समभागेसु भगिणि बूया, पुण्णामा थीणामेसु पवत्तेसु उद्धंभागेसु 20 मातरं बूया । थीणामेसु पवत्तेसु थीणामा उद्धंभागेसु थिया मातरं बूया, थीणामा थीणामेसु पवत्तेसुं थीसमभागे थिया भगिणि दिट्टं बूया, थीणामा थीणामेसु पवत्तेसु अधोभागेसु थिया दुहितरं बूया । तत्थ थीणामा पुण्णामेसु पवत्तेसु अधोभागेसुँ जामातरं बूया, तत्थ थीणामा पुण्णामेसु पवत्तेसु समभागेसु भगिणिपतिं दिट्ठ बूया, थीणामा पुण्णामे पवत्तेसु उद्धंभागेसु ससुरं बूया । थीसंसद्वेसु आमासेसु पुणो पुणो आवलिं बूया -थीसंसद्वेसु पुण्णामेसु बाले बूया, अब्भंतरेसु अब्भंतरं दिट्टं बूया, बाहिरब्धंतरेसु मित्तं दिट्ठ बूया, बाहिरबाहिरेसु जणं दिट्ठे बूया । इति मणुस्सं सुविणे 25 दिट्ठ आमास - सद्द-रूवेहि बूया । तत्थ तिरिक्खजोणियं पुव्वाधारिते तिरिक्खजोणि पंचविधमाधारये, तं जधा - पक्खिगतं चतुप्पदगतं परिसप्पगतं जलचरगतं कीड-किविल्लग – दंस-मसगगतं ति । तत्थ उद्धं गीवाय सिरोमुहामासे उल्लेोगिते उद्धंभागेसु सव्वसगुणगते सव्वसगुणोपकरणे सव्वसगुणमये उवकरणे सव्वसगुणोपकरणणामधेज्जे सव्वसगुणणामधेज्जे य थी - पुरिसगते एवंविधसद्द— रूवपादुब्भावे सगुणं दिट्ठे सुविणं बूया । ते दुविधा - जलचरा थलचरा वेति । तत्थ आपुणेयेसु सव्वउदगच - 30 उदकोपकरणपादुब्भावे जलचरा दिट्ठा विण्णेया । लुक्खेसु थलेसु थलजेसु थलचरेसु थलोपकरणे थलोपकरण-थलज थलचरणामधेज्जे सद्द–रूवपादुब्भावे य थलजा पक्खी सुविणे दिट्ठा भवंति, सुभेसु सुभो असुभेसु असुभो पक्खी दिट्ठो भवति । १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ २ सद्दपडिरूवपा हं० त० । सद्दरूवपडिरूवपा सि० ॥ ३ बाहुअंत हं० त० ॥ ४ या, विसामा हं० त० ॥ ५ हस्तचिह्नन्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ६ सु सम हं० त० विना ॥ ७ सु मातरं हं० त० ॥ ८ ससरं हं० त० ॥ ९ उद्धंगए भासेसु हं० त० ॥ 5 Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ अंगविज्जापइण्णयं तत्थ चतुप्पदेसु चतुरस्सेसु चउक्केसु चतुप्पदउवकरणे चतुप्पयमये उवकरणे चउप्पयणामधेज्जउवकरणथी-पुरिससद्दपादुब्भावे चतुष्पदं दिटुं सुविणे बूया । ते दुविधा-थलजा जलजा चेति जधुत्ताहिं उवलद्धीहिं उवलद्धव्वा भवंति । ते तिविधा पुणरवि उवलद्धव्वा-गम्मा गम्मारण्णा आरण्णा चेति । ते यधुत्ताहि उवलद्धीहि उवलद्धव्वा भवंति । संठाण-वण्ण-घोस-आहार-परिभोगविधीहि य उवलभिङ सुविणे दिटुं बूया । 5 तत्थ दीहेसु चलेसु तिरियभागेसु य सव्वपरिसप्पगते सव्वपरिसप्पउवकरणगते परिसप्पमये उवकरणे परिसप्पणामधेज्जे उवकरणे थी-पुरिससद्दपाउब्भावे वा परिसप्पं बूया । ते दुविधा-थलजा जलजा य । जधुत्ताहि उवलद्धीहिं संठाण-वण्ण-संघात-घोस-विरिय-आहार-परिभोगविधीहि य उवलभितुं सुविणे दिटुं बूया । तत्थ अणूसु चलेसु सव्वखुद्दपाणेसु खुद्दपाणणामधेज्जे उवकरणे थी-पुरिसगते सद्द-रूवपादुब्भावे य कीङकिविल्लग-दंसमसगे सुविणे दिटुं बूया । ते दुविधा-थलजा जलजा चेव । जधुत्ताहि उवलद्धीहि संठाण-वण्ण10घोस पडिभोगविधीहि य उवलभिउं सुविणे दिटुं बूया । दिव्व-माणुस-तिरिक्खजोणियसाधारणोपलद्धीहिं साधारणे दिढे बूया । मिस्सगामासेहिं दिव्व-तिरिक्खजोणिगेहिं मिस्से दिट्ठो बूया ।। तत्थ रूवा-ऽरूवगते अज्जीवे सुविणे पुव्वमाधारिते रूवगतं अज्जीवं तिविधमाधारये-पाणजोणीगतं मूलजोणीगतं धातुजोणीगतं । तत्थ चलामासे पाणजोणिगते पाणजोणीउवकरणे पाणजोणीमये उवकरणे व पाणजोणी - णामधेज्जे उवकरणे थी-पुरिससद्दपाउब्भावे पाणजोणीगतं अज्जीवं रूवगतं सुविणे दिटुं बूया । तत्थ केस-मंसु-लोमगते सव्वमूल15 जोणीगते मूलजोणीउवकरणे मूलजोणीणामधेज्जे उवकरणे थी-पुरिसगते य सद्द-रूवपादुब्भावे वा मूलजोणीगतं अज्जीवरूवगतं सुविणं दिटुं बूया । तत्थ दढामासे सव्वधातुगते सव्वधातुजोणीगते य सव्वधातुजोणीउवकरणे धातुजोणीमये उवकरणे धातुजोणीउवकरणे धातुजोणीणामधेज्जे उवकरणे थी-पुरिसगते वा धातुजोणीगतं अज्जीवरूवगतं सुविणे दिटुं बूया । तत्थ सद्दगते सुविणे पुव्वाधारिते सद्दगतं सुविणं तिविधमाधारये, तं जधा-भासासद्दगतं आतोज्जसद्दगतं 20 पराघातसद्दगतं चेति । तत्थ तिविधमाधारये-जीवसमाजुत्तं 6 अज्जीवसमाजुत्तं , जीवाजीवसमाजुत्तं चेति । तत्थ सद्देयेहिं भासासद्दे आतोज्जसद्दे पराघाते य भेद-संघायसमुत्थितेहिं सद्देहिं पडिरूवेहि आतोज्जउवकरणपादुब्भावेहि य उवलभिउं सद्दगतं इट्टा-ऽणिदुसद्दगतं सुविणं दिटुं बूया । तत्थ गंधगते सुविणे पुव्वाधारिते गंधगतं सुविणं दुविधमाधारये-सुभगंध असुभगंधं चेति । तत्थ सुगंधपरामासे सुगंधसद्द-रूवपादुब्भावे य सुभं गंधं सुविणे घातं ति बूया । दुग्गंधपरामासे < किलिट्ठपरामासे Do दुग्गंधसद्द25 रूवपादुब्भावे य असुभं गंधं सुविणे घायं । तत्थ गंधं पुणरवि सुभाऽसुभं तिविधमाधारये-पाणजोणीगतं मूलजोणीगतं धातुजोणीगतं ति । तत्थ जधुत्ताहि पाणजोणी-मूलजोणी-धातुजोणीउवलद्धीहिं उवलभितुं सद्द-रूवपादुब्भावेहि य तिविधजोणीयं गंधं सुभाऽसुभं सुविणे दिटुं बूया । तत्थ रसगते सुविणे पुव्वाधारिते < रसगते D सुविणे तिविधमाधारये, तं जधा-पाणजोणिगतं मूलजोणिगतं धातुजोणिगतं । तत्थ जधुत्ताहि उवलद्धीहिं तिविहजोणिओ रसो उवलद्धव्वो भवति । अव्वापण्णजोणीआमास-सद्द-रूव30 पाउब्भावेणं अव्वापण्णो रसो उवलद्धव्वो भवति सुभो । वावण्णजोणीआमास-सद्द-रूवपादुब्भावेण वावण्णरसो उवलद्धव्वो भवति असुभो । तत्थ रसं तिविधजोणीयं पुणरवि छविधमाधारये, तं जधा-तित्तकं अंबिलं लवणं कटुकं कसायं मधुरमिति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे मधुरेसु य सद्द-रूवपादुब्भावेसु मधुरं बूया । तत्थ तिक्खामासे दारुणामासे बज्झामासे कडुगेसु य सद्द-रूवपाउब्भावेसु कडुगं बूया । वावण्णेसु आमासेसु अंबिलेसु सद्द-रूवपाउब्भावेसु अंबिलरसं सुविणे सेवितं बूया । तत्थ णासापरामासे आसगपरामासे पोरुसपरामासे सव्वआपुणेयेसु अंसु-खेल-सिंघाणग-पस्सवण १ आरण्णा इति सि० एव वर्तते ॥ २ <> एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ४ रूवगतेहिं सि० ॥ ५-६ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १८९ बायालीसइमो सुविणज्झाओ सव्वसोयदूसिकापरामासे लवणरससद्दपादुब्भावे य लवणरसं सुविणे सेवितं बूया । तत्थ विमुत्तेसु विसयेसु परिवढेसु य सव्वकसायसद्द-रूवपादुब्भावेसु कसायं रसं सुविणे पडिसेवितं बूया। तत्थ चलामासे अंतेसु य सव्वतित्तकसद्द-रूवपादुब्भावेसु य तित्तकरसं सुविणे सेवितं बूया । एवंविधजोणीयं रसं छव्विधं जधुत्ताहि उवलद्धीहिं उवलद्धव्वं सुविणे दिटुं बूया । तत्थ फासगते सुविणे पुव्वाधारिते फासगतं सुविणं तिविधमाधारये, तं जधा-सज्जीवफासगतं १ अज्जीवफासगतं २ मिस्सकं जीवाजीवसंजुत्तं ३ चेति । तत्थ सज्जीवेसु चलामासेसु य सज्जीवसद्द-रूवपादुब्भावेसु य सज्जीवं 5 फासं [सुविणे सेवितं] बूया । अज्जीवेसु मयेसु य अज्जीवसद्द-रूवपादुब्भावे य अज्जीवं फासं सुविणे सेवितं बूया । वामिस्सामासे सज्जीवअज्जीवेसु य सद्द-रूवपादुब्भावे मिस्सकं फासं सुविणे सेवितं बूया । तत्थ सज्जीवो फासो दिव्व-माणुस्स-तिरिक्खजोणिकादीहिं जीवजोणीहि उवलद्धव्वो भवति । अज्जीवो फासो अज्जीवोपलद्धीहि पाणजोणी-मूलजोणी-धातुजोणीआदीहिं उवलद्धव्वो । मिस्सको फासो मिस्सकोपलद्धीहि मिस्सको उवलद्धव्वो भवति । तत्थ फासो पुणरपि अट्ठविधों उवलद्धव्वो, तं जधा-कक्खडो मउको गुरुको लहुको सीतो उसिणो णिद्धो लुक्खो 10 चेति । तत्थ दढामासे तिक्खामासे दारुणामासे सव्वकक्खडपडिरूव-सद्दपादुब्भावे कक्खडं फासं बूया । तत्थ मउकामासे सव्वमउकसद्द-पडिरूवपादुब्भावे मउकं फासं सुविणे सेवितं बूया । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे उत्तमामासे सव्वसारगते य सव्वसारमंतपडिरूव-सद्दपादुब्भावे गुरु-गारवसद्द-रूवपादुब्भावेसु य गुरुफासं सुविणे सेवितं बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे तुच्छामासे जहण्णामासे सव्वणीहारगते सव्वक-लहुस-तुच्छसारजम्मपडिरूव-सद्दपादुब्भावे य लहुकं फासं सुविणे सेवितं बूया । तत्थ णिद्धामासे सव्वणिद्धफासपडिरूवसद्दपाउब्भावे णिद्धं फासं सुविणे सेवितं ति बूया । 15 तत्थ लुक्खामासे सव्वलुक्खपडिरूव-सद्दपाउब्भावे य लुक्खं फासं सुविणे सेवियं बूया । तत्थ सव्वआपुणेयेसु सव्वसीयफासदव्वोपकरणे पडिरूव-सद्दपाउब्भावे सुपिहिए पागुए उवगूढे पाविविए लुक्खसिए हेमंतउज्जसद्दभयमाणेसु य आहारोपकरण-सयणा-ऽऽसणपरिच्छदपरिभोगपाउब्भावेसु सद्द-रूवेसु य एवंविधेसु सीतं फासं सुविणे सेवियं बूया । तत्थ अग्गेयेसु सव्वअग्गिगए G सव्वउसुमागए सव्वउँसुणागए सव्वउँसुणसद्द-पडिरूवपाउब्भावे य उसुणं फासं सुविणे सेवितं बूया । एवं जधुत्ताहि उवलद्धीहि सद्द-रूव-रस-गंध-फासगताहिं G सुभा-ऽसुभाहिं आहारयिउं 20 सद्द-रूव-रस-गंध-फासगयाओ सुविणे सेवणाओ विण्णेया भवंति । इति विसयगतो विण्णेयो सुविणो ति । __तत्थ चलेसु णटुं वा पावासिकं आउरं वा सुविणे दिटुं बूया । तत्थ अभंतरेसु चलेसु य णटुं बूया । बाहिरेसु चलेसु य पावासिकं दिटुं बूया । पुण्णामेसु पुरिसं दिटुं बूया । सम्मे सम्मद्दितेसु चलेसु आउरं दिटुं बूया । बद्धेसु बद्धं दिटुं, मोक्खेसु मोक्खं दिटुं बूया । तणप्फय-कुक्खि–णाभि-उच्छंग-पोरुस-अंगुट्ठ-कणेट्ठिकापरामासे पयासंतरेण दिटुं बूया । व पुण्णामेसु पुरिसं दिटुं बूया । थीणामेसु थियं दिटुं बूया । णपुंसकेसु णपुंसकं दिलृ बूया । दढेसु सारिउपकरणं 25 दिटुं बूया । 0 कण्हेसु असारिउवकरणं दिटुं बूया । तंबेसु सुवण्णकं दिटुं बूया । सुक्के रुप्पं वा कोहावणे वा बूया । सुक्केसु दढेसु रुप्पं बूया । चित्तेसु सुक्केसु दढेसु य काहावणे बूया । णपुंसकेसु णिरत्थकं सुविणं दिटुं बूया । णीहारेसु हाणि सुविणे दिटुं बूया । आहारेसु वद्धि सुविणे दिटुं बूया । G वण्णउवलद्धीयं सव्ववण्णगए य रणं दिटुं बूया । 9 णिण्णेसु णदि वा कूवं वा तलागं वा पुक्खरणि वा वार्वि वा समुदं वा दिटुं बूया । G उवट्ठिसु कूवं दिटुं बूया। 1 णिण्णेसु वित्थिण्णेसु सण्णिरुद्धेसु य तलागं दिटुं बूया । चउरस्सेसु मुदितेसु य पुक्खरणिं बूया । चउरस्सेसु 30 १ ‘सोयगदू सं ३ पु० ॥ २ धो णातव्वो सि० ॥ ३ जण्हामा हं० त० विना ॥ ४ सव्वलकलकुसतुच्छसारजम्म" हं० त० ॥ ५ "हिए सुवगूढे पधिगते उलुक्कुसिते हेमंतउक्चसद्द हं० त० विना ॥ ६ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ७-८-९ उसुण स्थाने हं० त० विना उसण इति पाठो वर्त्तते ॥ १० हस्तचिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ११ ०८Do एतच्चिदान्तर्गतः सन्दर्भः हं० त० नास्ति ॥ १२-१३ कहा हं० त० विना ॥ १४-१५ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वति ॥ १६ “सु विच्छेसु रुढेसु य हं० त० ॥ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० अंगविज्जापइण्णयं वाविं बूया । महावकासेसु य समुदं दिटुं बूया । कसे सुत्तं वा अच्छादणं वा किसं वा थी-पुरिसं दिटुं बूया । तत्थ अज्जीवेसु केस-मंसु-लोमगतेसु सुत्तं वा तंतुवितं वा दिटुं बूया । तत्थ वित्थतेसु अत्थुतेसु परिहिते पाउते विट्ठणे व त्ति अच्छादणं दिटुं बूया । थलेसु उण्णतं वा पव्वतं वा दिटुं बूया । तत्थ महावकासेसु दढेसु य पव्वयं दिटुं बूया । गहणेसु अरणं वा पव्वतं वा बूया । तत्थ उण्णएसु गहणेसु पव्वयं बूया । णिण्णेसु कंदरं वा दरिं 5 वा बूया । समेसु समं गहणं दिटुं बूया । उपग्गहणेसु आरामं वा वणराई वा दिटुं बूया । परिमंडलेसु भायणं । पुधूसु किलंजं वा पुधव वा दिटुं बूया । तत्थ पुधूसु दढेसु पुहवि बूया । जण्णेयेसु जण्णं वा वाधुज्जं वा दिटुं बूया । अग्गेयेसु अग्गि दिटुं बूया । णिद्धेसु उदकं वा वुट्टि वा आहारं वा दि8 बूया । तत्थ उवरिमेसु णिद्धेसु वुढेि बूया । समभागेसु णिद्धेसु आहारं बूया । अधोभागेसु णिद्धेसु उदकं बूया । चउरस्सेसु चउप्पयं वा खेत्तं वा सुविणे दिटुं बूया । तत्थ चउरस्सेसु चलेसु चतुप्पदं बूया । चतुरस्सेसु दढेसु खेत्तं बूया । बज्झेसु पावासियं बूया । 10 पच्छिमेसु परस्स सुविणं दिटुं बूया । पुरथिमेसु अप्पणो सुविणं दिटुं बूया । बज्झन्भंतरेसु अप्पणो य परस्स य सुविणं दिटुं बूया । पुणरवि आधारिते अतिकंतो सुविणो अणागतो वत्तमाणो त्ति । पुरत्थिमेसु अणागतं सुविणं बूया । पच्छिमेसु अतिक्कंतं सुविणं बूया । वामदक्खिणेसु गत्तेसु वत्तमाणं संपदाकालियं सुविणं अणंतरं दिटुं बूया । मतेसु मतकप्पं वा मतं वा दिटुं बूया । रुक्खेसु चोरियं दिलृ सुविणं बूया । वामेसु आभरणं दिटुं बूया । दीहेसु अडवि दिटुं बूया । ह्रस्सेसु पुष्फफलं दिटुं बूया । रमणीयेसु इरिणं वा मटुं वा रमणीयं वा देसं दिटुं सुविणे बूया । 15 मुदितेसु उस्सयं वा समायं वा दिटुं बूया । दीणेसु उवसग्गं वा दणि वा थी-पुरिसं दिटुं बूया । पेस्सतेसु उस्सयं वा वाधुज्जं वा दिटुं बूया । उद्धंभागेसु दिव्वं दिटुं बूया । कण्णपधेसु सव्ववाहणगतं चतुप्पदं वा दिटुं बूया । तिखिणेसु जोग-खेमं दिटुं बूया । केस-मंसु-लोमगतेसु मूलजोणिगतं बूया । अंतेसु सव्वधण्णगतं बूया । सामेसु संपयोगेसु मेधुणं दिटुं बूया । बालेयेसु बालं दिटुं बूया । जोव्वणत्थेसु जोव्वणत्थं दिटुं बूया । मज्झिमवयेसु मज्झिमवयं दिटुं बूया । मज्झिमसाधारणेसु मज्झिमसाधारणं दिटुं बूया । जधण्णेसु जधण्णं बूया । जधण्णसाधारणेसु जधण्णसाधारणं 20 बूया । तत्थ पुणरवि पुरत्थिमेसु अभिकंखितं दिटुं बूया । पच्छिमेसु अणुभुत्तं बूया । वामदक्खिणेसु उवभुज्जमाणं दिटुं बूया । पुणरवि पसण्णेसु सव्वसम्मोइगते य सम्मोई सुविणं दिटुं बूया । विवादेसु दीणेसु सव्वविग्गहगते विग्गहं वा विवादं वा सुमिणे दिटुं बूया । उवद्दुतेसु सव्वछेज्जगते य छेज्जं बूया । अब्भंतरेसु अप्पणो सुविणं दिटुं बूया । बाहिरेसु बाहिरेण सुविणं दिलै बूया । तत्थ कंसि देसे सुविणो दिट्ठो? ति पुव्वमाधारिते अभंतरेसु अब्भंतरणगरे सुविणं दिटुं बूया । अब्भंतरभंतरेसु 25 अब्भंतरणिवेसणे सुविणं दिटुं बूया । बाहिरेसु बाहिरिकायं सुविणं दिटुं बूया । बाहिरबाहिरेसु बाहिरिकायं सुविणं दिटुं बूया । ॐ [तत्थ] दिसासु आधारितासु कंसि दिसायं दिट्ठो सुविणो ?। तत्थ पुरथिमेसु पुरथिमायं दिसायं [दिट्ठो] सुविणो त्ति बूया । पच्छिमेसु पच्छिमायं दिसायं दिवो सुविणो । दक्खिणेसु दक्खिणायं दिसायं दिट्ठो, वामेसु उत्तरायं । दिसाओ विदिसाओ य वामदक्खिणेहि पुरथिमपच्छिमेहि य साधारणेहिं णातव्वाओ आमासेसु भवंति । 30 तत्थ काले पुव्वाधारिते कंसि काले दिवो सुविणो ? ति । तत्थ कण्हेसु रतिं सुविणो दिट्ठो ति । सुक्केसु सव्वप्पभागते य दिवा दिट्ठो सुविणो त्ति बूया । कण्हेसु आदिमूलेसु पदोसे सुविणो दिट्ठो त्ति । क[ण्हेसु] मैज्झिमविगाढेसु अद्धरत्तकालं दिट्ठो त्ति । कण्हेसु अंतेसु पच्चूसे सुविणो दिट्ठो । सुक्केसु आदिमूलेसु पुव्वण्हे सुविणो दिट्ठो त्ति बूया । मज्झविगाढेसु सुक्के मज्झण्हे दिवो सुविणो त्ति । सुक्केसु अंतेसु अवरणहकाले दिट्ठो सुविणो त्ति बूया । १ वा कर्सि वा हं० त० ॥ २ वा सव्वतं हं० त० विना ॥ ३ उस्सुयं हं० त० विना ॥ ४ वा टुिं णं वा हं० त० ॥ ५ पसंतेसु हं० त० ॥ ६ कण्हप हं० त० ॥ ७ व्ववण्ण हं० त० ॥ ८ रवि सस्सेसु सव्व हं० त० ॥ ९ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ १० सप्पभा हं० त० ॥ ११ मज्झवि सि० ॥ १२ मज्झिमगा हं० त० ॥ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेयालीसइमो पवासज्झाओ एवं पक्खोपलद्धीहिं सुक्कपक्ख-कण्हपक्खा उवलद्धव्वा भवंति जधा पुव्वमुद्दिटुं । उतुउपलद्धीहिं उदू उपलद्धव्वा छप्पि भवंति जधा पुव्वमुवदिटुं । एवं सव्वाहिं आमास-सद्द-रूव-रस-गंध-फासपडिरूवोवलद्धीहि आधारयितुं सुविणे सव्वत्ताणुगंतव्वं भवति ।। ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय सुविणो णामाज्झायो बायालीसतिमो सम्मत्तो ॥ ४२ ॥ छ । [ तेयालीसइमो पवासज्झाओ] 000000000 णमो भगवतो जसवओ महापुरिसस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पवासो णामाज्झायो । तं खलु भो ! वक्खस्सामि । तं जधा-तत्थ अत्थि पवासो पत्थि पवासो त्ति पुव्वमाहारियव्वं भवति । तत्थ बज्झामासे चलामासे सव्वणीहारगते सव्वमोक्खगते उवाहण-छत्तर्गते सव्ववाहणगते सव्वजाणगते पत्थित-पधितपधावितसव्वचतुष्पद-पक्खि-सिरीसिव-वारिचर-कीड-किविल्लगगते उवाहणआबंधणे छत्तकग्गहणे तप्पण-कत्तरिका- 10 कुंडिकुक्खलिकापादुब्भावे पंथ-पवा-णदी-पव्वत-तलाग–गाम-णगर-जणपद-पट्टण-सन्निवेसे असमरंगावचर-पासंङदूतपरिधावके एवंविधसद्द-रूवपाउब्भावे अस्थि पवासो त्ति बूया । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे सव्वआहारगते सव्वसंबाधगते सव्वत्थावरगते सव्वणिवेसितगते सव्वअपरिधावकगते एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे णत्थि पवासो ति बूया । तत्थ पाद-जंघ-पादुकोपाणह-च्छत्तकएवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे पादेहि पवासं गमिस्सति त्ति बूया । तत्थ उद्धंभागेसु चलेसु सव्वजाणगते सव्ववाहणगते सव्वजाण-वाहणोपगरणगते जाणेण वा वाहणेण वा पवासं गमिस्सति त्ति बूया । 15 तत्थ मुदिएसु मुदितमाणसो पवासं गमिस्सति त्ति बूया । तत्थ पवासे पुव्वाधारिए दीहेसु दीहं पवासं गमिस्सति त्ति बूया । G रस्सेसु रस्सपवासं गमिस्सति त्ति बूया । पुण्णामेसु राजपोरुसेण पवासं गमिस्सति त्ति बूया । थीणामेसु थीपवासे लभिस्सति त्ति बूया। <णेपुंसकेसु णिरत्थकं पवासं गमिस्सति त्ति बूया । > दढेसु तत्थेव गंतुं वाहिसि त्ति बूया । चलेसु खिप्पं पवासा आगमिस्सति त्ति बूया । G विविये चलामासे परेण परं गमिस्ससि त्ति बूया । छ सुक्केसु पवासे महंतं धणखधं लभिस्सति त्ति 20 बूया । रत्तेसु पीतकेसु वा दढेसु सुवण्णलाभं पवासे लभिस्सति त्ति बूया । कण्हेसु परिकिलेसं पवासे णिप्फलं पाविस्ससि त्ति बूया । आहारेसु कतकज्जो खिप्पं आगमिस्ससि त्ति बूया । णीहारेसु अकतकज्जो चिरा आगमिस्सति त्ति बूया । थूलेसु णिव्वाधिको पच्छत्तो पवासा आगमिस्ससि त्ति बूया । कसेसु वाधिपरिकिट्ठो किसच्छादणो पवासा आगमिस्ससि त्ति बूया । गहणेसु अरण्णदेसं गमिस्ससि त्ति बूया । उपग्गहणेसु आरामबहुलं रमणीयं देसं गमिस्ससि त्ति बूया । आगासेसु रमणीयदेसं णिरुक्खगं गमिस्ससि त्ति बूया । परिमंडलेसु णगरं गमिस्ससि त्ति बूया । तणूसु जणपदं 25 गमिस्ससि त्ति बूया । मतेसु पवासे मरिस्ससि त्ति बूया । उवद्दुते पवासे उवद्दवं पाविस्सति त्ति बूया । बंधेसु बंधं पाविस्ससि ति बूया । मोक्खेसु पंवासो असंगो भविस्सति त्ति बूया, पंथं खेमं गमिस्सति त्ति बूया । पसण्णेसु पवासे १ पुव्वदिटुं हं० त० ॥ २ पुव्वदिटुं हं० त० विना ॥ ३ सव्वमणु हं० त० ॥ ४ वतो महावीरमहा सं ३ पु० ॥ ५ व्वसोक्ख हं० त० विना ॥ ६ गते वाहणछत्तगते सव्व हं० त० विना ॥ ७ "हणे धपाणकोत्त' हं० त० ॥ ८ पट्टणरज्जटुपमुहट्ठाणेसु परिधा' सि० ॥ ९ व्वणिवेसगते हं० त० ॥ १० जाण-वाहणपवासं हं० त० विना ॥ ११ हस्तचिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ १२ AD एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ १३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ १४ पच्छण्णो प" हं० त० ॥ १५ णिरक्खमं ग' हं० त० विना ॥ १६ हं० त० विनाऽन्यत्र-"हुते हा...........बंधेसु सं ३ पु० । “हुते हाणि गमिस्सति त्ति सव्वया बूया बंधेसु सि० ॥ १७ पवासासंगो हं० त० विना ॥ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ अंगविज्जापइण्णय मित्तं पाविस्ससि त्ति बूया । अप्पसण्णेसु पवासे विग्गहं वा विवादं वा पाविस्सति त्ति बूया । उद्धंभागेसु मूलेसु य पव्व[य]बहुलं देसं वेहायसं गमिस्ससि त्ति बूया । अधेट्ठिमे णिण्णेसु य णिण्णं देसं अडवीबहुलं गमिस्ससि त्ति बूया । तुच्छेसु पंवासे उड्डुज्झिहिसि त्ति बूया । पुण्णेसु पवासे परस्स हरितं धणं पाविस्ससि त्ति बूया । आपुणेयेसु पवासे अंतरा अधिवसिस्सति त्ति बूया । अग्गेयेसु पवासे आलीवणकं पाविस्ससि त्ति बूया । वायव्वेसु पवासे वाउव्वातिकं पाविस्ससि 5त्ति बूया । जण्णेयेसु उस्सयं पाविस्ससि त्ति बूया, जिण्णुवबहुलं चेव देसं गमिस्ससि त्ति बूया । सद्देयेसु विस्सुयजणपदं गीत-वाइतबहुलं गमिस्ससि त्ति बूया । दंसणीयेसु बहुजणाभिप्पेतं दंसणीयजणपदं गमिस्ससि त्ति बूया । गंधेयेसु गंधुपयोगगंधोपभोगबहुलं जणपदं गमिस्ससि त्ति बूया । रसेयेसु विविधपाधेज्ज-बहुअण्ण-पाण-रसिगपरिभोगं देसं गमिस्ससि त्ति बूया । फासेज्जेसु जाणगतो वाहणगतो वा उदुसुखं उदुसुहफासं देसं गमिस्ससि त्ति बूया । मणेयेसु णिव्वुतमणसो अभिज्जियणिव्वुतबहुलं देसं गमिस्ससि त्ति बूया । तिण्हेसु अंतरा संगामं पाविस्ससि त्ति बूया । दक्खिणेसु दक्खिणायं 10 दिसायं पवासं गमिस्ससि त्ति [बूया] । दक्खिणपुरत्थिमेसु गत्तेसु दक्खिणपुरत्थिमायं दिसायं पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । दक्षिणपच्छिमेसु गत्तेसु दक्खिणपच्छिमायं दिसायं पवासं गमिस्ससि त्ति बूया। पच्छिमउत्तरेसु गत्तेसु पच्छिमुत्तरायं दिसायं पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । वामपुरत्थिमेसु गत्तेसु पुव्वुत्तरां दिसायं पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । एवं सव्वदिसाओ आधारयितुं उवलद्धव्वाओ भवंति । जधाकालकालोपलद्धीहि आधारयितुं कालो पवासे विण्णेयो भवति । जधा लाभा-ऽलाभे जीवित-मरणे सुह-दुक्खे सुकाल-दुक्काल-भया-ऽभयादी य भावा आमास15 सद्द-पडिरूव-रस-गंध-फासउवलद्धीहि F आहारयितुं जहुत्ताहि उवलद्धीहिं 2 पवासे सव्वे उवलद्धव्वा भवंति || ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पवासो णामाज्झायो तेयालीसइमो सम्मत्तो ॥ ४३ ॥ छ । [चउयालीसइमो पवासद्धकालज्झाओ] 2000000000 णमो भगवतो यसवतो महावीरवद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पवासस्स 20 अद्धाकालं णामाज्झायं । तं खलु भो ! वक्खायिस्सामि । तं जधा तत्थ पुरत्थिमायं दिसायं अव्वत्तसद्द-रूवे वा अद्धमासे वा पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । दक्खिणायं दिसायं अव्वत्ते वा सद्दे वा रूवे वा पक्खगणणायं पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । अव्वत्तेसु सद्द-रूवेसु दिवसगणणाय पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । पच्छिमायं दिसायं अव्वत्तेसु सद्द-रूवपाउब्भावेसु वस्सगणणाय पवासं गमिस्ससि त्ति [बूया] । अव्वत्तेसु सद्द-रूवपादुब्भावेसु मासगणणाय पवासं गमिस्ससि ति बूया । वायं (उत्तरायं) दिसायं अव्वत्तसद्द-रूव25 पादुब्भावे वस्सगणणाय पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । अव्वत्तेसु सद्द-रूवपादुब्भावेसु मासगणणाय पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । एएसु चेव एक्कवीसाय मासाणं पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । तत्थ आहारनीहारेसु आगम्म पडिगमिस्ससि त्ति बूया । अणूसु गाउयं पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । साधारणे य अंद्धजोयणं पवासं गमिस्ससि त्ति बूया। अब्भंतरेसु इस्सरो रायब्भंतरो पवासो त्ति बूया । अब्जंतरमंतरेसु देसब्भंतरो पवासो त्ति बूया । बाहिरब्भंतरेसु अणंतरं रज्जंतरं गमिस्ससि त्ति बूया । बाहिरेसु रज्जंतरं गमिस्ससि त्ति बूया । 30 बाहिरबाहिरेसु अस्सुयं गमिस्ससि त्ति बूया । पुधूसु जणपदं गमिस्ससि त्ति । परिमंडले णगरं गमिस्ससि त्ति । १'सु थूलेसु य बहुलदेसं हं० त० विना ॥ २ अधिणिणे हं० त० विना ॥ ३ बहुयं हं० त० विना ।। ४ पवासेसु उडुज्झि हं० त० विना ॥ ५ जित्तव सं ३ पु० ॥ ६ स ठाणगतो हं० त०॥ ७ एतच्चिबान्तर्गतः पाठः है ८ आगास हं० त० ॥ ९ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ १० पुरिमायं सि० ॥११-१२ सु समाग हं० त० विना ॥ १३ अट्ठजो हं० त० ॥ १४ ‘स्सरे रा हं० त० विना ।। १५ 'तरे प हं० त० विना ॥ १६ अस्सुर्ति ग' हं० त० विना ॥ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९३ पणयालीसइमो पवेसज्झाओ थावरेसु पट्टणाणि गमिस्ससि त्ति बूया । डहरत्थावरेसु खेडाणि गमिस्ससि त्ति । चेलेसु खंधावारं गमिस्ससि । डहरचलेसु गामं गमिस्ससि त्ति बूया । इस्सरेसु रण्णो मूलं गमिस्ससि त्ति बूया । उवउत्तमेसु अमच्चस्स मूलं गमिस्ससि त्ति । पुण्णामधेज्जेसु रायपुरिससकासं गमिस्ससि त्ति । दढेसु सेंससु ववहारं गमिस्ससि त्ति बूया । अब्भंतरेसु अप्पणी अत्थेण पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । बाहिरेसु परस्स अत्थेण पवासं गमिस्ससि त्ति । बाहिरब्धंतरेसु मित्तस्स अत्थेण पवासं गमिस्ससि त्ति बूया । बाहिरबाहिरेसु णेव अप्पणो णेव परस्स अत्थेणं पवासं गमिस्स Do सि 5 त्ति बूया ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पवासज्झायस्स वि अद्धाकालं णामज्झायो चउयालीसतिमो सम्मत्तो ॥ ४४ ॥ छ ॥ [ पणयालीसइमो पवेसज्झाओ ] णमो भगवतो यसवतो महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय 10 पवेसं णामाज्झातं । तं खलु भो ! वक्खस्सामि । तं जधा - अब्धंतरामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे उम्मट्ठे उल्लोगिते अभिग्गहिते भुत्ते पीते खइते लीढे कण्णतेल्लअब्भंगणे हरिताल - हिंगुलुक - मणस्सिला - अंजणसमालभणकगते अलत्तक- कलंजक - वण्णक-चुण्णग- अंगरागगते उस्सिंघण - मक्खण - ऽब्भंग [ण] - उच्छंदण-उव्वट्टणपघंस[ण]—ण्हाण—पधोवण - पव्वासण- अणुलेवण - विसेसकायधूमाधिवाससंजोयणपादुभावेसु परिधाण- उत्तरासंग - सोणिसुत्त वरमल्ल—–सुरभिजोगसंविधाणक - आभरणविविधभूसणसंजोयणासु अलंकारमंडणासु य सद्द-रूवेसु य एवंविधेसु पुच्छेज्ज 15 आगमो भविस्सतीति बूया । तत्थ सिबिका - रध - जाण - जुग्ग-कट्ठमुह - गिल्लि - संदण - सकड-सकडिवाहिज्जविविधअधिरोहणासु हय-गज - बलिवद्द - करभ - अस्सतर- खर-अयेलक - णर - मरुत- हरित-महिरुह—पासादविमाण - सयणाधिरोधणासु धय-तोरण - गोपुर - ऽट्टालग - पतागासु समारोधण-समुस्सवणे वा पुच्छेज्ज आगमो भविस्सतीति बूया । तत्थ हत्थसमाणयणे सव्वंगसमाणयणे य आगमो भविस्सतीति बूया । तत्थ दुद्ध - दधि - सप्पि-णवणी - गुल- लवण-मधु-मच्छ— मंस-सेव्वमेद-समामासे आगमो भविस्सतीति । तत्थ पुढवि - दग - अग्गि- वायु-पुप्फ-घण्ण- 20 वीर्य - सव्वरयणदव्वसमाधिअणे आगमो भविस्सतीति बूया । तत्थ अंकुर - परोह - पत्त - किसलय - पवाल- तणकट्ठे-लेडुक - सक्कर- उपल - विविहसत्थ- सत्थाभरणोउपकरणगरुवि अलोह - मणिसुत्त - रयत - वैरसमावण्णेसु चेव आगम भविस्सतीति बूया । तत्थ उक्खुलि पिट्ठरग- दविउलंक - रसदव्वीसु य छत्तोपाणह-पाउग- उब्भुभंडउभिखणफणखपसाणगकुव्वद्धं वणपेलिका-विवट्टण - अज्जणी - पसाणग- आदंसग - सरगपति भोयण - वाधुज्जोपकरणमालागते वा उवसक्किते वा उववसिते वा आबद्धे वा माला- ऽलंकारभूसणे वो पवसिते वा परिहिते वा पाउने वा 25 अच्छादणे वा पुच्छिज्जमाणे वा अभिमुहे वा आलिंगिते वा उवणीए वा एतेसिं वा एवमादीणं पडिपोग्गलाणं संपदग्गहणे पुच्छिज्जमाणे आधारिज्जमाणे वा एवंविधसद्दरूवपादुब्भावे आगमो भविस्सतीति बूया । तत्थ अब्भंतरेसु य सज्जीवेसु य सज्जीवं पवेक्खति त्ति बूया । तत्थ बज्झेसु सव्वअज्जीवेसु य अज्जीवं पवेक्खति त्ति बूया । तत्थ सज्जीवेसु पुव्वाधारिते सज्जीवं तिविधमाधारये - दिव्वं माणुसं तिरिक्खजोणियं चेति । तत्थ उर्द्धभागेसु भिंगार—- छत्त- पतागा - लोवहत्थपाणियपादुब्भावे चेव दिव्वं पवेक्खति त्ति बूया । तत्थ उज्जुकामासे 30 समभागेसु सव्वमणुस्सगते य माणुसं पवेक्खति त्ति । तत्थ तिरियामासे सव्वतिरिक्खगते य तिरिक्खजोणियं पवेक्खति त्ति १ रत्तेसुगंधा हं० त० ॥ २ सम्मूढेसु सि० ॥ ३ 'गउच्छवण' हं० त० ॥ ४ हिण्णवणा हं० त० ॥ ५ 'सज्मेद हं० त० विना ॥ ६ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ७ गरेति हं० त० विना ॥ ८ वा पवेसिते हं० त० ॥ ९ वा पावासिए वा हं० त० ॥ १० अच्छोदणे हं० त० विना ॥ ९९ आगच्छन्ते वा हं० त० ॥। १२ 'त्थपहाणिय हं० त० ॥ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ अंगविज्जापइण्णयं बूया । तत्थ पुण्णामधेज्जामासे दक्खिणामासे सव्वपुरिसगते य पुरिसो पवेक्खति त्ति । पुण्णामे पुव्वाधारिए पुण्णा[मा]दिपाउब्भावेहि पुरिसा समणुगंतव्वा भवंति । पुण्णामेसु उत्तमेसु गुरुजोणि पवेक्खति त्ति, समभागेसु तुल्लजोणी पवेक्खति त्ति बूया, पच्चवरकायेसु बालजोणि पवेक्खति त्ति बूया । पाद-जंघसव्वपेस्सगते सव्वपेस्सोवकरणे पेस्सो पवेक्खति त्ति । तत्थ वण्णे पुव्वाधारिते उवाते उवातो पवेक्खति ति, काले कालो, सामे सामो, थूले थूलो, किसे 5किसो, दीहे दीहो, रस्से रस्सो । अब्भंतरेसु सकं, बाहिरेसु परक्कं । बंभेज्जेसु < खत्तेज्जेसु Do वेस्सेज्जेसु सुद्देज्जेसु य बंभणखत्तिय-वेस्स-सुद्दजोणीयो वत्तव्वातो । पुरिसे पुव्वाधारिते पुण्णामेसु पुरिसो पवेक्खति त्ति, थीणामेसु थी पवेक्खति, णपुंसकेसु नपुंसकं पवेक्खति त्ति बूया । तत्थ चतुरस्सेसु सव्वचतुप्पदंपादुब्भावे य चतुप्पदपडिरूवसद्दरसपादुब्भावेसु चेव चतुप्पदं पवेक्खति त्ति । दीहेसु कण्हेसु य सव्वपरिसप्पगए य परिसप्पपडिरूवपाउब्भावे य परिसप्पं पवेक्खति त्ति बूया | चलेसु उद्धंभागेसु सव्वपक्खिगए पक्खिपडिरूव-सद्दपादुब्भावे चेव पक्खि पवेक्खति 10त्ति । आपुणेयेसु चलेसु य सव्वजलयरपडिरूवपादुब्भावेसु जलयरं पवेक्खति त्ति बूया । परिमंडलेसु भायणं पवेखति त्ति, 6 तणू[सु]वत्थं पवेखति त्ति, 5 चतुरस्सेसु चित्तेसु सारवंतेसु य काहावणे पवेखति ति । रत्तेसु पीतेसु य सारवंतेसु सुवण्णकं पवेखति त्ति, सेतेसु सारवंतेसु य रुप्पं पवेक्खति त्ति, सुक्केसु अणग्गेयेसु सीतलेसु मुत्ता पवेक्खति त्ति बूया । घणेसु सारवंतेसु सव्वप्पभागते य मणी पवेक्खति त्ति । णिस्सितेसु संखतेसु सव्वप्पभागते य खारमणी पवेक्खति त्ति बूया । घ8सु सव्वमणिगतं सकेहिं वण्णेहिं विण्णायं भवतीति । कोट्टिते सव्वलोहगतं 15 पवेक्खति त्ति । णिद्धेसु सव्वपाणं पवेक्खति त्ति । पुण्णेसु आहारं पवेक्खति त्ति । ॐ विण्हेसु सत्थं पवेक्खति त्ति । तिण्हेसु सत्थं पवेक्खति त्ति । के अंतेसु उवकरणं पवेक्खति त्ति । थीणामेसु बज्झसाधारणेसु ण्हुसं पवेक्खति त्ति । पुण्णामेसु णीहारेसु य परम्हमावयिता पवेक्खति त्ति । थीणामेसु णीहारेसु य विधवा पवेक्खति त्ति बूया । थीणामेसु अप्पसण्णेसु विधवा पवेक्खति त्ति । थीणामेसु दढेसु कण्णा पवेक्खति त्ति बूया । थीणामेसु चलेसु जुवती पवेक्खति त्ति । थीणामेसु चलेसु मुदितेसु य पवियाता पवेक्खति त्ति । थीणा[मा] मासे G थियामासे 9 वेस्सा 20 पवेक्खति त्ति । थीणामेसु णिद्धेसु भगा पवेक्खति त्ति । लुक्खेसु निरागता पवेक्खति त्ति, कण्हेसु असारा पवेक्खति त्ति बूया । मतेसु अणाधा पवेक्खति त्ति । पसण्णेसु मुदिता पवेक्खति त्ति । कण्णेयेसु सुतीसीलसमायारा कण्णा पवेक्खति त्ति । सद्देयेसु विस्सुतकुल-घरा-ऽऽवासा पवेक्खति त्ति । दसणीयेसु पतिरूवा पवेक्खयि(ति) त्ति । गंधेयेसु गंधवती पवेक्खति त्ति । रसेयेसु रसगुणसंजुत्ता रसवती पवेक्खति त्ति बूया । फासेयेसु फासवती पवेक्खयि त्ति । G मणेयेसु इट्ठा पवेखयित्ति । ॐ तत्थ पावासिगगमणे पुण्णामधेज्जेसु अपरक्कमेण आगमिस्ससीति । थीणामधेज्जेसु 25 सभज्जो आगमिस्ससि त्ति । नपुंसकेसु णिरत्थगो आगमिस्ससि त्ति बूया । दढेसु णेदाणिं आगमेस्ससि त्ति । जलेसु खिप्पं आगमिस्ससि त्ति । णिद्धेसु कतभोगो आगमिस्ससि त्ति बूया । लुक्खेसु णिरागतो आगमिस्ससि त्ति बूया । सुक्केसु सधणो आगमिस्ससि त्ति । सामेसु सुहं आगमिस्ससि त्ति बूया । बज्झेसु बहुअंतरागो आगमिस्ससि त्ति बूया । आहारेसु आयबहुलो आगमिस्ससि त्ति । णीहारेसु हितसारो आगमिस्ससि त्ति बूया । मतेसु आमतमंतो मरिस्सति त्ति । तुच्छेसु आमतमतो वाधि पाविस्सति त्ति । पुण्णेसु सया जोगो आगमिस्सति त्ति बूया, आगमं वा वि आयं 30 पाविस्सति त्ति बूया ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पवासो णामज्झायो पणयालीसतिमो सम्मत्तो ॥ ४५ ॥ छ । १ एतच्चिान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ २ ‘दजोणीपा सि० ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ४ विन्नेहिं विण्णेतं भ' हं० त० विना ॥ ५-६-७ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ८ णिरागमो हं० त० ॥ ९ वग्गेसु हं० त० विना ॥ १० “सु य आहित हं० त० ॥ ११ ‘सु य आगममओ म हं० त० ॥ १२ आगयमओ वा हं० त० ॥ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायालीसइमो पवेसणज्झाओ [छायालीसइमो पवेसणज्झाओ] 000000000 णमो भगवतो यसवतो महापुरिसस्स । अधापुव्वं खलु भो! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पवेसो णामाज्झायो । तं जधा गिहं पविसतो वा वि जं जं पस्से सुभा–ऽसुभं । सव्वं हितयेण गेण्हित्ता णिपिसे अंगचिंतओ ॥ १ ॥ बलिवद्दा यावि अस्सा वा उट्टा वा गद्दभा वि वा । सुओ मदणसलाका वा कवी मोरा व दिस्सते ॥ २ ॥ 5 एताणि कोट्ठये दिस्स अंगणं पविसे ततो । अणाइलो असंदिद्धो दिट्ठीसु य समाहितो ॥ ३ ॥ बंभत्थलम्मि यं पस्से जं वा पस्से अरंजरे । उव्वरे वा उवट्ठाणे आसेणगहणे तधा ॥ ४ ॥ उदुक्खलस्स सालायं कवाडे दारकण्णये । आसणस्स य दिण्णस्स अंजलीकरणम्मि य ॥ ५ ॥ महाणसम्मि जं पस्से भत्ताकारीय वा पुणो । तत्थ भत्तघरे वा वि जे य वत्थुस्स णिक्कुडा ॥ ६ ॥ ओकट्टितम्मि णेवम्मि ओभग्गे ओपणिव्वए । बाहिरत्थस्स वावत्तिं अंगवी इति लक्खए ॥ ७ ॥ 10 कंबासु विप्पमुक्कासु ओसरिता मल्लका जति । वियडे उत्तमाकारे कुलभंगं वियागरे ।॥ ८ ॥ वेदणं वा सिएणिएहिं दास-कम्मकरेहि वा । अणेव्वाणी व अत्थेहि णिद्दिसे अंगचिंतओ ॥ ९ ॥ दधि-मंगल-पुप्फ-फलं अक्खते सारतंदुले । विदू सम्मज्जिते दिट्ठा वद्धि तत्थ वियागरे ॥ १० ॥ तुसेहिं वा समोखिण्णं पंसुएण व दिस्सति । अंगारच्छारिओखिण्णं हाणि तत्थ वियागरे ॥ ११ ॥ 15 अध रुक्खम्मि भग्गम्मि अधवा जज्जरीकते । विमुक्केसु य संधीसु कुलभंगं वियागरे ॥ १२ ॥ दारुवण्णकसंपाते संधी जस्स चलाचला । अणेव्वाणिं कुडुंबस्स अत्थं वा वि चलाचलं ॥ १३ ॥ पुरिसस्स दक्खिणे पासे थिया वामे पवेदये । खंडिते पडिते भिण्णे पडिरूवेण णिद्दिसे ॥ १४ ॥ संधिम्मि विप्पमुक्कम्मि भग्गे वा उत्तरूंबरे । जमत्थमभिकंखेज्ज तमत्थं होणमादिसे ॥ १५ ॥ उग्घाडो वा कवाडं वा दारं समणुवत्तति । दुक्खेण अज्जितो अत्थो सव्वो होति णिरत्थयो । १६ ।। 20 अधरुत्तरुम्मिरे यावि ओभग्गे विप्पकड्डिते । वासवण्णकसंपाते गिहे बूया अणिव्वुर्ति ॥ १७ ॥ सव्वतो विप्पमुक्कम्मि ओभग्गे एकपस्सिते । कुडुंबिणो अणेव्वाणि अत्थहाणि च निद्दिसे ॥ १८ ॥ तिलवेल्लववाका वा कोट्टते होंति अच्छ्या । पिवीलिया वा दिस्संति वाधि तत्थ वियागरे ॥ १९ ॥ एलओ कोट्ठए बद्धो वाहरे विगतं जया । अकारणे विरत्तम्मि कुडुंबे भयमादिसे ॥ २० ॥ अस्सो कोट्ठए बद्धो कहुं बुवति पच्छतो । णिघंसते णिडालं वा कुडुंबं स विणस्सति ॥ २१ ॥ 25 पक्खी य कोट्ठए जत्थ लूणपक्खोऽत्थ दिस्सति । दासा णिगलबद्धा वा हाणिं तत्थ वियागरे ॥ २२ ॥ उदग्गा दिस्सते पक्खि मोदंताणि दैढं ति य । उदग्गत्थपुमंसा य वद्धिं तत्थ वियागरे ॥ २३ ॥ एताणि कोट्ठए दिस्स पविट्ठो अंगणम्मि वि । अणाइलो असंदिद्धो ततो पेक्खेज्ज लक्खणं ॥ २४ ॥ विद्द (विदू) सम्मज्जितं दिस्स चक्खुस्सं च वियाणिया । कतं पुप्फोवयारं च वद्धि तत्थ वियागरे ॥ २५ ॥ दारका जति दिस्संति पलोट्टा. धरणीतले । मुत्तं पुरीसमोगाढा हाणिं तत्थ वियागरे ॥ २६ ॥ 30 दारका जति दिस्संति अलंकित-विभूसिया । हिट्ठा तुट्ठा पमोदंता वद्धि तत्थ वियागरे ॥ २७ ॥ १ असंविट्ठो हं० त० ॥ २ “सणे ग सि० ॥ ३ दारकामए हं० त० ॥ ४ णिक्खुडा हं० त० ॥ ५ उक्कट्टितम्मि हं० त० ॥ ६ का जिया (जया) हं० त० ॥ ७ “स्स हत्थं हं० त० ॥ ८ उत्तरुस्सरे हं० त० ॥ ९ दीण हं० त० विना ॥ १० आधितो हं० त० विना ॥ ११ “कट्ठिते हं० त० ॥ १२ दारुवण्ण हं० त० विना ॥ १३ अट्ठता हं० त० विना ॥ १४ कुट्ठओलद्धो हं० त० ॥ १५ ददंति हं० त० विना ॥ १६ विट्ठस्सम्म हं० त० विना ।। अंग० १८ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ 15 अंगविज्जापइण्णयं अंगणे जत्थ पस्सेज्ज वण्णं पुप्फ-फलाणि वा । णिणिज्जमाणं णीहारं हाणि तत्थ वियागरे । २८ ।। अंगणे जत्थ पस्सेज्ज वेण्णं पुप्फ-फलाणि वा । अंतणिज्जमाणं आहारं वद्धि तत्थ वियागरे ॥ २९ ॥ अंगणे जत्थ पासेज्ज रोदंतो बज्झतोमुहं । परिदेवमाणं कलुणं हाणि तत्थ वियागरे ॥ ३० ॥ अंगणे जत्थ पासेज्ज रममाणं अभिमुहं । उदग्गवेसं मुदितं वद्धि तत्थ वियागरे ॥ ३१ ॥ अंगणे जत्थ पासेज्ज छिज्जमाणे य णंतए । मइले विवण्ण-वियले हाणि सोयं च णिद्दिसे ॥ ३२ ॥ अंगणे जत्थ पासेज्ज सुक्किले कंबले सुयि । वासिते य मणुण्णे य वद्धि लाभं च णिदिसे ॥ ३३ ॥ भायणाणि य भिण्णाणि अंगणे जत्थ दिस्सते । पलोट्टिताणि तुच्छाणि हाणि रोगं च निद्दिसे ॥ ३४ ॥ भायणाणि य दिस्संति पडिपुण्णाणि अंगणे । चक्खुसाणि अखंडाणि आयं लाभं च णिदिसे ॥ ३५ ।। अंगणे जत्थ दीसंति पोत्ती णंतकविक्कला । आसंदका य संभग्गा हाणि रोगं च णिद्दिसे ॥ ३६ ॥ 10 पविट्ठो अंगणं साधु पस्सेज्ज णर-णारिओ । अलंकिते सुयी हिट्ठे संपीति-लाभमादिसे ॥ ३७ ॥ अंगणे जति दीसेज्ज खिज्जंतं रोसणं नरं । पुव्वं जो अज्जिओ अत्थो सव्वो तम्मि विणस्सति ।। ३८ ।। G फैला तु उक्कडरसा अंगणे जति दिस्सति । पुण्णामा य मणुण्णा य कुटुंबी घरिणिं जिया ॥ ३९ ॥ ॐ फला उ उक्कडरसा अंगणे जति दीसति । थीणामा य मणुण्णा य कुटुंबी(बिं) घरिणी जये ॥ ४० ॥ पुण्णामधेज्जा छिज्जंते भिज्जंते य फला जति । बाला तत्थ विवज्जंते तम्मि उप्पायदरिसणे ॥ ४१ ॥ थीणामा जति छिज्जंते पवालाणि फलाणि वा । दारियाओ विवज्जंते तम्मि उप्पायदरिसणे ॥ ४२ ॥ समणो बंभणो वा वि गेहे जस्स पलायति । उप्पायं तारिसं दिस्स हाणिं तत्थ वियागरे ॥ ४३ ॥ पुण्णो अरंजरो जस्स विवज्जेज्ज अणाहतो । कुडुंबस्स विणासाय णिद्दिसे अंगचिंततो ॥ ४४ ॥ < तुच्छो अरंजरो जत्थ विवज्जेज्ज अणाहतो । कुडुंबिणो विणासाय णिद्दिसे अंगचिंततो ॥ ४५ ॥ 2 कागा अरंजरे पवरे सुणका वा चारुभत्तिया । घरिणी तत्थ कुटुंबस्स जणेण परिभुज्जति ॥ ४६ ॥ 20 बलिओ अरंजरो जत्थ दुब्बला जस्स पेढिया । पुरिसस्स पुण्णं जाणेज्ज अप्पपुण्णा कुडुंबिणी ॥ ४७ ।। बलिया पेढिया जत्थ दुब्बलो य अरंजरो । घरिणीय पुण्णं जाणेज्जा अप्पपुण्णो कुडुंबिओ ॥ ४८ ॥ बंभत्थलम्मि भिण्णम्मि णासं जाणं कुडुंबिणो । पियविप्पयोग-मरणं अत्थहाणि च णिद्दिसे ॥ ४९ ॥ समणस्स आसणे दिण्णे कीलिटे अत्थुते पडे । कुडुंबियस्स संपत्ती सह भारियाए णिद्दिसे ॥ ५० ॥ समणस्स आसणे दिण्णे सुक्किले अत्थुते पडे । कुडुंबियस्स संपत्ती सह भज्जाए णिद्दिसे ॥ ५१ ॥ अधवा भग्गगेहम्मि समणो आसणं लभे । पंडिउज्जमाणे धूमेण कलहं हाणि च णिदिसे ॥ ५२ ।। सिद्धमण्णं वियाणेज्जो जं जधा जारिसं भवे । [वि] भत्ति उवधारेत्ता दीणोदत्तेण णिद्दिसे ॥ ५३ ।। संवेगमुत्तरयतं सुद्धं विमलं च पस्सिया । बंभणं सुक्कर्वत्थं च सुयिमोदणमादिसे ॥ ५४ ।। कापुरेसु य वण्णेसु वामिस्सं ओदणं वदे । जो जस्स वण्णपडिरूवो तं तधा अण्ण(अत्थ)मादिसे ॥ ५५ ॥ उत्तंदुलम्मि कलहं कुधितो रोगमादिसे । अणेव्वाणि वउत्थम्मि दढे जीवितसंसयं ।। ५६ ।। कुधितो पूतिको सित्तो कल्लं सिद्धो दिवा भवे । वहूए परिहाए य तं विणासाय लक्खणं ॥ ५७ ।। विवण्णो अप्पसारो वा पिच्छिलो वा वि ओदणो । कुडुंबिणो विणासाय ओदणेण पवेदये ॥ ५८ ॥ किविल्लकाउ दीसंति उप्पुते या मते वि वा । मतासु मरणं बूया जीवंतीसु उवद्दवं ॥ ५९ ।। १-२ धण्णं हं० त० विना ॥ ३ अतिणिज्जमाणं णीहारं हं० त० ॥ ४ रोदसीतो हं० त० विना ॥ ५ पोवीणं कवि हं० त० ॥ ६ अत्थितो अत्थो हं० त० विना ॥ ७ हस्तचिह्नान्तर्गत: श्लोक: हं० त० एव वर्त्तते ॥ ८ उक्कट्ठरसा हं० त० विना ॥ ९ विवज्जंते हं० त० ॥ १० Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छायालीसइमो पवेसणज्झाओ केसे दिट्ठे परिक्वेसं सक्कराय उवद्दवं । पराजयमसक्कारं कंडगम्मि वियागरे ॥ ६० ॥ सुत्ते पसारिते दिट्ठे अट्ठाणंतेण णिद्दिसे । तमेव सुत्तं पलिमूढे बंधणंतेण णिद्दिसे ॥ ६१ ॥ तणं च जति दिस्सेज्ज कुडुंबे जं समीहती । सव्वं णिरत्थकं भवति जति सुक्खं ओदणं भवे ॥ ६२ ॥ जवणीयं च पुच्छेज्ज पहसंती परम्मुही । वेधव्वं सा लभित्ताणं पच्छा रूवेण जीवति ॥ ६३ ॥ जवणीयं च पुच्छंती समणं जा उ अभिम्मुही । वत्थे वा वि पलिमूढा पुण्णेज्ज पवडेज्ज वा ॥ ६४ ॥ 5 कुटुंबिणो असंपत्ती तिस्से थीया पवेदये । अब्भंतरेण पक्खस्स बंधणे सा विरुब्भति ॥ ६५ ॥ जवणीयं च पुच्छंती समणं जा उ भिम्ही । संधितं अंजलि कुज्जा णिव्वुर्ति तत्थ णिद्दिसे ॥ ६६ ॥ दक्खिणे पुत्तलाभाय र्धिती लाभं च वामतो । सक्कारे सुहभागी य असक्कारे अणेव्वति ॥ ६७ ॥ संखिप्पे वा खिवै हत्थे पुव्वं भागी वियागरे । विखिप्प संखिवे हत्थे पच्छा भद्दं वियागरे ॥ ६८ ॥ उज्जयं अंजलि कुज्जा विपुला अत्थसंपदा । विणतं अंजलि कुज्जा अत्थहाणि वियागरे ॥ ६९ ॥ अंतो महाणसे सेसं साकं सूवोदणं दधि । तब्भावपडिरूवेणं अंगवी उवलक्खये ॥ ७० ॥ १९७ 15 दढं च अंगमामसति तिधा उट्ठाय आमसे । अभिमुही य भणति अण्णमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७१ ॥ उल्लयिते उम्मट्ठे आणिते उवणामिते । हितयोदराणं आमासे अण्णमत्थि ति णिद्दिसे ॥ ७२ ॥ चले चलं अंगमामसति बाहिराणि र्णिसेवति । णिम्मट्ठेसु य गत्तेसु अण्णं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७३ ॥ रित्तकाणि पदिस्संति भायणाणि समंततो । पलोट्टिताणि भिण्णाणि अण्णं णत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७४ ॥ तंदुले य पदिस्संति पणालीय गेलेज्ज य । परिमज्जकं च दट्ठूणं अस्थि मज्जं ति णिद्दिसे ॥ ७५ ॥ पसुत्ता जति दीसंति मोरा वट्टक लावका । तेसिं रुताऽरुतं सोच्चा सागुणामऽभिणिद्दिसे ॥ ७६ ॥ ओसुद्धे णिट्टुते छुद्दे णिसुद्धे धंसिते धुते । कलहं व दिट्ठा बालाणं मंसमत्थि त्ति णिद्दिसे ॥ ७७ ॥ रित्तकाणि पदीसंति घेड - कुड- अरंजरा । पलोट्टिता य भिण्णा ये णत्थि मज्जं ति णिद्दिसे ॥ ७८ ॥ जलयरेसु य सत्तेसु जलपस्संदणेसु य । उदकेसु य भंडेसु मच्छमत्थि ति णिद्दिसे ॥ ७९ ॥ । । दब्भे कुसे य दणं अद्दपुप्फ - फलाणि य हरितंकुर - पवालाणि सागं हरितकं वदे ॥ ८० ॥ फलाणि जति दीसंति णिद्धाणि मधुराणि य दन्तोट्ठ - जिब्भ आमासे फल-सागाणि णिद्दिसे ॥ ८१ ॥ वामिस्सोदीरणे वण्णा वामिस्सोदीरणे रसा । वामिस्साणि तु सागाणि णिद्दिसे अंगचितओ ॥ ८२ ॥ अत्थि अब्भंतरामासे बज्झामासेसु णत्थि य । आमाससंजोगविधि अंगवी इति लक्खये ॥ ८३ ॥ मच्छमाणं दणं तक्कमच्छंबिलं तथा । परिकिण्णसद्देसु तधा दव्वम्मि रसकं वदे ॥ ८४ ॥ समणं पत्थितं संतं णिग्गतं बज्झतोमुहं । जो ठवेतूण पुच्छेज्ज अप्पसत्थं पवेदये ॥ ८५ ॥ पवेट्टकामं पुच्छेज्ज अत्थि आगमणं धुवं । निग्गंतुकामं पुच्छेज्ज पवासा णिग्गमं वदे ॥ ८६ ॥ कोट्टकम्मि व पुच्छेज्ज बज्झत्थं तं पवेदये । सक्कारेण य पुच्छंते अत्थि अत्थो त्ति णिद्दिसे ॥ ८७ ॥ तं चेव अत्थं पुच्छेज्ज असक्कारेण अंगविं । जाणे असुभं अत्थं बाहिरं अंगचितको ॥ ८८ ॥ समणं पज्जुवासंतो अंतो वा जति वा बहिं । महिला होंति असम्मूढा पुरिसा तत्थ वट्टेति ॥ ८९ ॥ समणं पज्जुवासंतो अंतो वा जति वा बहिं । पुरिसा होंति असम्मूढा इत्थिओ तत्थ वदृंति ॥ ९० ॥ पेम्मं रागं च दोसं च अवणेत्ता वियक्खणो । आधारयित्ता अंगेणं अंगवि अभिणिद्दिसे ॥ ९१ ॥ छ ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पवेसणो णामाज्झायो खटुचत्तालीसतिमो सम्मत्तो ॥ ४६ ॥ छ ॥ 30 १ अभिमुही हं० त० ॥ २ स्स बंभणे सा विरुभए हं० त० ॥ ३ अभिमुही हं० त० ॥ ४ थिती वामं च वासए हं० त० ॥ ५ वे सुहत्थि हं० त० विना ॥ ६ अज्जयं हं० त० विना ॥ ७ तहा उद्धाए हं० त० ॥ ८ णिवेसति हं० त० ॥ ९ गएसु य हं० त० ॥ १० वंसिए वुओ हं० त० ॥ ११ दिट्ठे हं० त० विना ॥ १२ घरकुंड हं० त० विना ॥ १३ य छिन्नं मज्जं हं० त० ॥ १४ षट्चत्ता हं० त० विना ॥ 10 20 25 Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ अंगविज्जापइण्णय [सीयालीसंइमो जत्तज्झाओ] 000000000 णमो भगवतो जसवतो महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय जत्ता णामज्झायो । तं खलु भो ! तमणुर्वक्खाइस्सामो । तं जधा-अस्थि जत्ता णत्थि जत्त ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तं जधा-अब्भंतरामासे धुवे थितामासे दढामासे दक्खिणगत्तामासे णपुंसकामासे पच्छिमगत्तामासे उम्मज्जिते 5 उवकसिते उवट्ठिए आउंडिते संविढे अवस्सिते पल्लत्थियागते छिद्दापिधाणे पिहिते उग्गहिते पच्चालंबिते पडिकुटे पडिसिद्धे पवेसिते विक्खित्ते ठविते ठावरथितीए लइते णिकायिते एतेसु आमास-सवण-दसणपादुब्भावेसु णत्थि जत्त त्ति बूया । तत्थ छत्ते वा भिंगारे वा वियणियं वा तालवेंटे वा सत्थे वा पहरणे वा आयुधे वा आवरणे वा वम्मे वा कवये वा अभिणीयमाणे वा पवेसियमाणे वा णिखिप्पमाणे वा पडसामिज्जमाणे वा वियाजिज्जमाणे वा विणासिज्जमाणे वा पच्चालंबिज्जमाणे वा अवज्जेयमाणे वा णत्थि जत्त त्ति बूया । अब्भंतरम्मुहे एवंपकारये वा जाणे वा वाहणे 10 वा उवणाहणे (उववाहणे) वा ओमुंचणे वा अतिणयणे वा णत्थि जत्त त्ति बूया । सव्वेसु य णत्थिकारसद्दपादुब्भावेसु णत्थि जत्त त्ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे चलणामासे वामगत्तामासे पंसारितामासे गत्तपंचगओमज्जिते णिम्मज्जिते अपमज्जिते उपविढे उट्ठिते पत्थिते वा णिग्गते वा णिल्लोकिते वा स जिल्लालिते वा > णिल्लिखिते वा अवसारिते अवसक्किते अपधजाते वा विप्पमुंचणे अपंगुते णिक्कट्ठिते णिण्णेते णिक्किद्वे वा कोसीगते वा गमणलिंगदंसण-सवणपादुब्भावे सज्जीव-णिज्जीवाणं च दव्वाणं एवंविधाकारपादुब्भावे अस्थि जत्त त्ति बूया । तत्थ छत्ते वा भिगारे वा वीयणीयं 15 वा तालवोंट वा अब्भुत्थिते वा णीणिते वा पहरणे वा आयुधे वा आवरणे वा वम्मे वा कवये वा सण्णाहपट्टे व उद्धीरमाणे वा णीणीयमाणे वा णेव बाहिरंतो वा जत्तामुहे वा कज्जमाणे व सज्जे वा सज्जिज्जमाणे वा अत्थि जत्त त्ति बूया । तत्थ जाणे वा पवाहणे वा वाहणे वा जुत्ते वा जोयिज्जमाणे वा संसिज्जमाणे वा णिग्गते वा णिज्जायते वा णिव्वट्टिज्जमाणे वा णिव्वट्टिते वा पादुपाहणाणं वा गहणे आबंधणे वा णिण्णयणे वा आगमणलिंग सद्दपादुब्भावेसु वा अस्थि जत्त त्ति बूया । बिपद-चउप्पद-छप्पद-बहुपद-अपदाणं वा सत्ताणं गमणसंथाणसद्द20 रूवपादुब्भावे अत्थि जत्त त्ति बूया । तत्थ पुण्णामधेज्जेसु विजयिका जत्ता भविस्सतीति [बूया] । थीणामधेज्जेसु सम्मोदी जत्ता भविस्सतीति बूया । णपुंसकेसु णिरस्थिका जत्ता भविस्सतीति । दढेसु चिरं जत्ता भविस्सतीति । चलेसु ण चिरं जत्ता भविस्सतीति । सुद्धेसु महाफला जत्ता भविस्सतीति बूया । कण्हेसु बहुपरिक्केसा जत्ता भविस्सतीति बूया । सामेसु मुदितेसु य बहुउस्सवसमीया जत्ता भविस्सतीति बूया, अवि य पमादवती जत्ता भविस्सतीति बूया, सुक्केसु य पभूतऽण्ण-पाणा । 25 बहुखज्ज-पेज्जजत्ता भविस्सतीति बूया, धणलंभबहुला यावि जत्ता भविस्सति त्ति । आहारेसु आयबहुला जत्ता भविस्सतीति बूया । णीहारेसु अपायबहुला जत्ता भविस्सतीति बूया । थूलेसु महब्भया जत्ता भविस्सतीति बूया । किसेसु अप्पजोगा जत्ता भविस्सतीति बूया । पुधूसु जणपदलंभाय जत्ता भविस्सतीति बूया । परिमंडलेसु णगरलंभाय जत्ता भविस्सतीति बूया । डहरचलेसु गामलभाय जत्ता भविस्सति । डहरथावरेसु खेडलभाय जत्ता भविस्सति । गहणेसु अरण्णदेसगमणभूयिट्ठा १ वक्खइ हं० त० ॥ २ ‘स्सामि सि० ॥ ३ रयियव्वं हं० त० ॥ ४ ओविट्ठे हं० त० विना ॥ ५ संधिटे हं० त० ॥ ६ लइओणिका हं० त० ॥ ७ आहारणे हं० त० ॥ ८ अतिणीयमाणा वा पवासिय हं० त० ॥ ९ वा विणि सि० ॥ १० असज्जे वा ण हं० त० सि० ॥ ११ तरे मुहे हं० त० ॥ १२ वा ओसुंचणे हं० त० ॥ १३ परिसारितामासे गयपच्चंग' हं० त० ॥ १४ अपविढे उत्थिते पत्थि हं० त० विना ॥ १५ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अडयालीसइमो जयज्झाओ १९९ जत्ता भविस्सति । उवग्गहणेसु आरामदेसगमणभूयिट्ठा जत्ता भविस्सति । णिण्णेसु णिण्णदेसभागगमणबहुला जत्ता भविस्सति । बद्ध-रुद्ध-वइतेसु गाम-णगस्-सण्णिवेसरोधाय जत्ता भविस्सति । मोक्खेसु सुक्केसु अपंगुतेसु य णगररोधविप्पमोक्खाय जत्ता भविस्सति, णगरं रुद्धं विप्पमुच्चिस्सति त्ति । पसादेसु पसण्णेसु य विजयाय जत्ता भविस्सति त्ति बूया, पसादलंभाय जत्ता भविस्सति त्ति । अप्पसण्णेसु अप्पसादेसु य पराजयाय विवादबहुला यावि जत्ता भविस्सति त्ति । णवेसु पच्चुदग्गेसु य णवो अपुव्वो जयो जत्तायं भविस्सति त्ति । अधोभागेसु पराजयो जत्तायं भविस्सति 5 त्ति । F उद्धंभागेसु वेसिकाविजयाय जत्ता भविस्सति । 0 मज्झिमेसु समागमं उभयतो समेण जत्ता भविस्सति त्ति । विवद्धीसु चतुप्पद-बिपदेसु वाहणागार-सद्द-रूवपादुब्भावेसु य वाहणलाभजुत्ता य जत्ता भविस्सति । जष्णेयेसु बालेयेसु य जाणलाभाय जत्ता भविस्सति । तिक्खेसु सत्थसण्णिवायबहुला जत्ता भविस्सति, संगामबहुला यावि जत्ता भविस्सति त्ति । उवद्दुतेसु उवद्दवबहुला जत्ता भविस्सति । संसयितेसु सस्सयिता जत्ता भविस्सति त्ति । साहाधम्मसु साहाधम्मप्पहारबहुला जत्ता भविस्सति । मुदितेसु णिरुवहुता जत्ता भविस्सति । अब्भंतरेसु उत्तमेसु य सयं अत्थवति 10 जत्तं गमिस्सति त्ति बूया । बाहिरेसु बाहिरपरिवारो भूयिटुं अत्थवतिस्स जत्तं गमिस्ससि त्ति । बाहिरब्भंतरेसु बाहिरब्भंतरो भूयिटुं अथवतिस्स जत्तं गमिस्सति त्ति । बाहिरब्भंतरा बाहिरा बाहिरबाहिरा य आमासपादुब्भावा उत्तम-मज्झिम-पच्चवर-साधारणेसु णायका परिवारो य जत्तायं आधारयित्ता सकाहिं उवलद्धीहिं उवलद्धव्वं भवति । तत्थ णीहारेसु णीहारबहुला जत्ता भविस्सति त्ति । णीहारणीहारेसु अपयाता अब्भुत्थिता णिवत्तिस्सति त्ति । पुरथिमेसु पुरत्थिमं जत्ता भविस्सति । दक्खिणेसु दक्खिणं 15 जत्ता भविस्सति । पच्छिमेसु पच्छिमेण जत्ता भविस्सति । वामेसु उत्तरेण जत्ता भविस्सति । आपुणेयेसु वरिसारत्ते जत्ता भविस्सति त्ति । विसिमेतेसु पसण्णेसु य सरदे जत्ता भविस्सति । संवुतेसु सीतलेसु य हेमंते जत्ता भविस्सति । अलंकितेसु चित्तेसु य सुरभीसु य वसंते जत्ता भविस्सति । अग्गेयेसु उण्हेसु य धिसुमे जत्ता भविस्सति त्ति । उवणिद्धेसु बालेसु य पाउसे जत्ता भविस्सति ति बूया ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय जत्ताऽज्झायो नाम सीतालीसतिमो सम्मत्तो ॥ ४७ ॥ छ । [अडयालीसइमो जयज्झाओ] णमो भगवतो जसवतो महापरिसस्स। अधापव्वं खल भो! महापरिसदिण्णाय अंगविज्जाय जयो णामाज्झायो । तमणुवक्खाइस्सामि । तं जधा-तत्थ अत्थि जयो णत्थि जयो त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे लद्धामासे व पुण्णामासे 2 मुदितामासे दक्खिणामासे पुण्णामधेज्जामासे इस्सरामासे उत्तमामासे उद्धंभागामासे 25 पसण्णामासे अणुपदुतामासे उम्मज्जिते उल्लोगिते उदत्तेसु सद्द-रूव-रस-गंध-फासपादुब्भावे य अत्थि जयो त्ति बूया । तत्थ रणं वा रायकुलं वा गणाणं वा णगराणं वा णिगमाणं वा पट्टणाणं वा खेडाणं वा आगराणं वा गामाणं वा सनिवेसाणं वा विवद्धीसंपयुत्तासु कहासु उदाहरणोदीरणेसु वा एवमादीणं सद्दाणं अत्थि जयो त्ति बूया । तत्थ उदुकाले उस्सये वा रुक्खाणं वा गुम्माणं वा लताणं वा वल्लीणं वा पुष्फ-फल-तय–पत्त-पवाल-परोहउदग्गपहट्ठसद्द-रूवपादुब्भावेसु पक्खि-चतुप्पद-परिसप्प-जलयरापं मंदोदग्गसंपयोगे य कधासु वा एवमादीसु पडिरूवेसु 30 वा अत्थि जयो त्ति बूया । तत्थ णव-पुण्ण-अहिणवपुष्फ-फल-पत्त-पवाल-मूल-कंदगतेसु वत्था-5ऽभरण-भायण १ पन्नदज्झेसु य हं० त० विना ॥ २ हस्तचिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ३ समासमं हं० त० सि० ॥ ४ संसंतितेसु हं० त० सि० ॥ ५ विसिमिते ॥ ६ उण्हेयेसु हं० त० ॥ ७ सत्ताली हं० त० ॥ ८० एतच्चिान्तर्गतः पाठ: हं० त० नास्ति ॥ ९ उत्तरामासे हं० त० ॥ १० महोदग्ग' हं० त० ॥ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० अंगविज्जापइण्णयं सयणा-ऽऽसण-जाण-वाहणपरिच्छद-वत्था-ऽऽभरणोपकरणसमग्ग-उदत्त-परग्घपादुब्भावेसु चेव अत्थि जयो त्ति बूया। तत्थं धण-धण्णगह-गाम-णगरलद्ध-अधिट्ठितपभुक्त-जातसद्दपादुब्भावेण खंधावारअक्खुज्जंतउदग्गविजितणिचयपादुब्भावेण सव्वकज्जारंभपुरिसकारणिव्वेसफलपादुब्भावेण अस्थि विजयो त्ति बूया । तत्थ छत्त-भिंगार-ज्झय–विअणि-सिबिकारध-पासादसद्द-रूवपादुब्भावेसु असण-पाण-खाइम-साइमणव-पच्चुदग्ग-मणुन्नपादुब्भावे गाम-णगर-खेड-पट्टणा5ऽऽगस्-अंतेपुर-गिह-खेत्त-सण्णिवेससंथापणमापणासु आराम-तलाग-सव्वसेतुसंथावणमापण-सन्निवेसेसु एवंविहेसु सद्द-रूवपादुब्भावेसु अत्थि विजयो त्ति बूया । एवमादीसु मणुण्णोदत्तेसु अब्भंतरबाहिरेसु आमास-सद्द-रूवपादुब्भावेसु विजयं बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे कण्हामासे तुच्छामासे दीहामासे वामामासे णपुंसकामासे पेस्सामासे जधण्णामासे अधोभागामासे अप्पसण्णामासे उद्दुयामासे ओमज्जिते ओलोगिते अणुदत्तेसु य सद्द-रूव-गंध-रस-फासपादुब्भावेसु णत्थि जयो त्ति बूया । तत्थ धण्णं वा रायकुलाणं वा गणाणं वा देसाणं वा णिगमाणं वा णगराणं वा पट्टणाणं वा खेडाणं 10 वा आगराणं वा गामाणं वा सण्णिवेसाणं वा एवमादीणं अण्णेसि पि हाणीसंपयुत्ता[सु] कधासु णत्थि विजयो त्ति बूया । तत्थ उट्टणं वा मासाणं वा समयाणं वा रुक्खाणं वा गुम्माणं वा लताणं वा वल्लीणं वा पक्खीणं वा चतुष्पदाणं वा परिसप्पाणं वा कीङ-किविल्लगाणं वा थीणं वा पुरिसाणं वा उदुकाल-मद-जोव्वण-पहास-पमुदित-बल-वीरियअतिवत्त-हीण-दीणसद्द-रूवपादुब्भावेसु णथि विजयो त्ति । तत्थ परिदीणोवद्दुत-वावण्णपुष्फ-फल-पवाल अंकुर-परोह-पाण-भोयण-वत्था-ऽऽभरणोपकरण-सयणाऽऽसण-जाण-वाहणपरिच्छद-आसार-परिविहल–भिण्ण15 जज्जरपादुब्भावेसु एतेसि वा एवमादीणं दव्वोवकरणाणं विणास-विसंजोयणादिसु सद्दरूवपादुब्भावेसु णत्थि विजयो त्ति । तत्थ धण-धण्ण-रतणसंचयपरिहाणि-विणास-विप्पलोवणसद्द-रूवपादुब्भावेसु णत्थि विजयो त्ति बूया । तत्थ धय-छत्त-सत्ति-पास-वीयणी-भद्दासण-सिबिक-संदण-रध-वलभी-पदोलि–पवहणभग्ग-मधित-पडित-विप्पजोयितओणामित-लग्ग-लयित-अपविद्ध-छुद्ध-सदिवारित-पहत-परावत्तियएवंविधसद्द-रूवपादुब्भावेसु णस्थि विजयो त्ति बूया । तत्थ खंधावारपराजय-विणिपातितजोध-विविधवाहण-पडह-तुरिय-वेजयंति-घंटा अणुदत्त-हीण-खामसर20 भीतवाचक(बाधक)-पलातविविधएवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे णत्थि जयो त्ति बूया ।। तत्थ अब्भंतरेसु सयं परक्कमेण विजयं बूया । बाहिरब्भंतरेसु सयं परक्कमेण संभुच्चविजयं बूया । बाहिरेसु परसंसयपरक्कमेण विजयो भविस्सति त्ति बूया । पुण्णामेसु परक्कमेण विजयो भविस्सतीति बूया । थीणामेसु संतेण विजयो भविस्सतीति । णपुंसएसु अपुरिसकारेणं विजयो भविस्सतीति । णिद्धेसु समुदितस्स सामिद्धीयं विजयो भविस्सतीति बूया । लुक्खेसु णिरागयस्स अदसंसाय विजयो भविस्सतीति । अभंतरेसु रज्जत्थस्स विजयो भविस्सतीति बूया । 25 अब्जंतरमंतरेसु सयधाणितं णगरगतस्स विजयो भविस्सतीति बूया । बाहिरब्भंतरेसु रज्जंतरगतस्स विजयो भविस्सतीति त्ति । बाहिरेसु परविसयं गंता विजयो भविस्सतीति । बाहिरबाहिरेसु परविसयगतस्स परो विजयो भविस्सतीति बूया । आहारेसु आयबहलो विजयो भविस्सतीति । णीहारेस जोणिबहलो विजयो भविस्सतीति । थूलेस महाविजयो भविस्सतीति बूया । किसेसु अप्पो विजयो भविस्सतीति । तिक्खेसु महता सत्थसण्णिवातेण विजयो भविस्सतीति । मतेसु पाणावायबहुलो विजयो भविस्सतीति बूया । मुदितेसु अहिंसाय मुदितस्स विजयो भविस्सतीति बूया । पुरत्थिमेसु गत्तेसु पुरत्थिमायं 30दिसायं विजयो भविस्सतीति बूया । दक्खिणेसु दक्खिणायं दिसायं विजयो भविस्सतीति । पच्छिमेसु गत्तेसु पच्छिमायं दिसायं विजयो भविस्सतीति । वामेसु गत्तेसु उत्तरायं दिसायं विजयो भविस्सति ति ।। G कंसि काले विजयो भविस्सतीति । पुव्वमाधारिते जधुत्ताहि कालोपलद्धीहिं उदु-पक्ख-सुक्ककाल-पुव्वण्ह-मज्झण्हा-ऽवरणह-पदोस–ऽड्डरक्त-पच्चूसोपलद्धीहि उवलद्धव्वा भवंति । पुव्वं जये आधारिते कस्स १'मयउ सं ३ पु० । 'मग्घउ सि० ॥ २थ वणवण्ण हं० त० ॥ ३ अब्भज्जुतउद सं ३ पु० । अब्भुज्जंतउद' सि० ॥ ४ 'त्य वण्णं वा रायकुलं वा गहणं वा हं. त० ॥ ५ महित हं० त० ॥ ६ “सु अत्थस्स सं ३ पु० ॥ ७ "सु जाणीब हं० त० विना ॥ ८ हस्तचिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ . Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१ एगूणपण्णासइमो पराजयज्झाओ कधं कंसि खेत्तंसि केण गुणोपजयेण कंसि कालंसि त्ति एवमादीआओ उवलद्धीओ आधारयित्ता आधारयित्ता जयमंतरेण जधुत्ताहिं उवलद्धीहि उवलभिउं वियाकरे तव्वाओ भवंति ।। ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय जयो णामाज्झायो अडयालीसतिमो सम्मत्तो ॥ ४ ॥ छ ॥ [एगूणपण्णासइमो पराजयज्झाओ] 000000000 णमो भगवतो जसवतो महापुरिसस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पराजयो णामाज्झायो । तमणुवक्खस्सामि । तं जधा-तत्थ अत्थि पराजयो णत्थि पराजयो त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे दक्खिणगत्तामासे इस्सरियामासे उत्तमामासे उद्धंभागामासे अभिमज्जितामासे मुदितामासे पसण्णामासे णत्थि पराजयो त्ति बूया । तत्थ उदूणं वा कच्छाणं वा लताणं वा गुम्माणं वा वल्लीणं वा पक्खीणं वा चतुप्पदाणं वा परिसप्पाणं वा जलचराणं वा कीडकिविल्लगाणं वा इत्थीणं 10 वा उदुकालहासं समुदयउदग्गसमायुत्तासु कधासु पडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु य णत्थि पराजयो त्ति बूया । तत्थ णवपरिपुण्ण-अविणट्ठरुक्ख-पुप्फ-फल-पत्त-मूल-पवाल-पाण-भोयण-वत्था-ऽऽ भरण-भायण-जाण-वाहण-वत्थाऽऽभरणोवकरणपादुब्भावे सद्दोदीरणे वा णत्थि पराजयो त्ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे किलिट्ठामासे तुच्छामासे णपुंसकामासे वामगत्तामासे जधण्णामासे अधोगत्तामासे णिम्मज्जिते अपमज्जिते दीणामासे अप्पसण्णामासे मतामासे उवद्दुतामासे दुग्गंधामासे पराजयो भविस्सतीति बूया । तत्थ अरण्णं वा रायकुलं वा देसाणं वा णिगमाणं 15 वा नगराणं वा पट्टणाणं वा खेडाणं वा आगराणं वा गामाणं वा सन्निवेसाणं वा हाणी-उढाण-विणासपाउब्भावे एवंजुत्तासु कहासु य पराजयो भविस्सतीति बूया । तत्थ णीहारेसु उदूणं वा उस्सयाणं वा रुक्खाणं वा गुम्माणं वा लताणं वा पक्खीणं वा चतुप्पदाणं वा परिसप्पाणं वा जलचराणं वा कीडकिविल्लगाणं वा पुरिसाणं वा इत्थीणं वा उदुकालहास-जव्वण-मंदोदग्ग–अतिवत्त-खीणपादुब्भावेसु पराजयो भविस्सतीति बूया । तत्थ रयणविणासे रज्जविणासे रायविणासे रायकुलविणासे देसविणासे रायधाणिविणासे णगरविणासे णिगमविणासे पट्टण-खेड-आगर-गाम-सण्णिवेस- 20 पासाद-गिह-खित्त-आराम-तलाग-सव्वसेतुविणासपादुब्भावे चेव एवंजुत्तासु य कधासु पराजयो भविस्सतीति बूया । तत्थ परिजिण्ण-खंड-हीणोपडुत-हित-विण?-वावण्णोपकपुप्फ-फल-पत्त-पवाल-कंद-मूल-अंकुर-परोहगते पाणभोयण-वत्था-5ऽभरण-जाण-वाहण-भायण-सयणा-5ऽसण-वत्था-5ऽभरणउवकरणविणासपाउन्भावे पराजयो भविस्सतीति बूया। तत्थ धण-धण्ण-रतणसंचय-सयणा-ऽऽसण-जाण-वाहण-वत्था-5ऽभरण-परिच्छद-सत्थावरणसव्वोपकरणामासेसु उत्थाणकरण-असंपत्ति-असक्कार-परिभव-अवमाणा-ऽवसिद्धि-असंपत्त-अणिव्वुतिपादुब्भावेसु 25 एवंजुत्तेसु वा उदाहरण-सद्दपादुब्भावेसु पराजयो भविस्सतीति बूया । तत्थ अब्भंतरे सयं पराजयो भविस्सतीति बूया। बाहिरब्मंतरेसु अण्णेहिं सह पराजयो भविस्सतीति बूया । बाहिरेसु परसंसितो पराजयो भविस्सतीति बूया। पुण्णामेसु परक्कमेण पराजयो भविस्सतीति 6 बूया । थीणामेसु संतेण पराजयो भविस्सतीति। 9 णसएसु अपुरिसक्कारेण पराजयो भविस्सतीति बूया । दढेसु एकट्ठाणट्ठिताणं पराजयो भविस्सतीति । चलेसु परिधावंताणं पराजयो भविस्सतीति बूया । णिद्धेसु मुदिताणं पराजयो भविस्सतीति बूया । 30. १ जयंत" हं० त० सि० विना ॥ २ णामज्झा' सि० ॥ ३ यालातीसति हं० त०॥ ४ माहारियव्वं हं० त० ॥ ५ हस्तचिहान्तर्गत: पाठसन्दर्भः हं० त० एव वर्तते ॥ ६ “महोदग्ग" हं० त० ॥ ७ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ अंगविज्जापइण्णयं लुक्खेसु निरागताणं पराजयो भविस्सतीति बूया । अब्भंतरेसु रायत्थस्स पराजयो भविस्सतीति । G अब्भंतरेसु रायहाणीगयस्स पराजयो भविस्सति त्ति के बूया । बाहिरब्भंतरेसु रज्जसंधीगतस्स पराजयो भविस्सतीति । बाहिरेसु अरण्णगतस्स पराजयो भविस्सति त्ति । G बाहिरेसु अरण्णगयस्स पराजयो भविस्सति त्ति । क बाहिरबाहिरेसु परविसयगयस्स पराजयो भविस्सति त्ति । आहारेसु सलाभो पराजयो भविस्सति त्ति । णीहारेसु अफलो पराजयो 5 भविस्सति त्ति । थूलेसु महापराजयो भविस्सति त्ति । कसेसु अप्पो पराजयो भविस्सतीति बूया । कण्हेसु बहुक्खतो पराजयो भविस्सतीति बूया । सुक्केसु अत्थलाभसमाउत्तो पराजयो भविस्सतीति । तिक्खेसु सत्थपातबहुलो पराजयो भविस्सतीति । मतेसु पाणपातबहुलो पराजयो भविस्सतीति । अप्पसण्णेसु अप्पियपराजयो भविस्सति त्ति । पुरत्थिमेसु पुरत्थिमायं दिसायं पराजयो भविस्सतीति । दक्षिणेसु गत्तेसु दक्खिणायं दिसायं पराजयो भविस्सति त्ति । पच्छिमेसु गत्तेसु पच्छिमायं दिसायं पराजयो भविस्सति त्ति । वामेसु गत्तेसु उत्तरायं दिसायं पराजयो भविस्सति त्ति ।। 10 एवं पराजये पुव्वाधारिते उप्पन्ने पादुब्भावे अत्थि पराजयस्स पुणरवि कधं पराजयो भविस्सति त्ति 6 कंधं कस्स कस्स पराजयो भविस्सति त्ति क कंसि देसंसि पराजयो भविस्सति त्ति 6 कंसि कालंसि पराजयो भविस्सति त्ति कंसि दिसायं पराजयो भविस्सति त्ति के आधारइत्ता अणुपुव्वसो आमास-सद्द-रूव-रस-गंध-फासपादुब्भावेसु अब्भंतस्-बाहिरत्थावणाहि य एवमादीहि यधोत्ताहिं उवलद्धीहिं पराजयो समणुगंतव्वो भवति । ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पराजयो णामाज्झायो एगोणपण्णासतिमो समणुगंतव्यो भवति ॥ ४९ ॥ छ । 15 [पण्णासइमो उवद्दुतज्झाओ] णमो भगवतो जसवतो महापुरिसस्स अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय उवहुतं नामऽज्झातो । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामि । [तं जधा-] तत्थ सोवद्दवो निरुवद्दवो त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ उवद्दुतामासे दुग्गंधामासे किलिट्ठामासे कण्हामासे लुक्खामासे अप्पसण्णामासे दीणामासे तिक्खामासे सव्वसत्थगते सव्वछिद्दगते 20 सव्वखंडगते सव्ववज्जगते सव्वउपद्दवगते सव्वउपद्दुतणस्–णारि-पक्खि-चउप्पद-परिसप्प-जलचर-कीडकिविल्लक पुप्फ-फल-रुक्ख-गुम्म लता वल्लि-पत्त-पवाल अंकुर-परोहगते वत्था-ऽऽभरण-सयणा-ऽऽसण-जाण-वाहणभायणपरिच्छद-दव्वोवकरण धण-धण्ण-रयणगते भिण्ण-विज्ज–सविकार-सवाहत-उवहित-कूङ-कम्मपाससमाउत्तपादुब्भावे एतारिसे सोवद्दवे सोवद्दवं बूया । तत्थ अणुवहुतामासे अव्वापण्णामासे सुगंधामासे अकिट्ठामासे सुक्कामासे णिद्धामासे पेसण्णामासे मुदितामासे सव्वअच्छिण्ण-अखंड-अणवज्ज-अणुवहुतगते सव्वअणुपद्रुतमुदितणर-णारि25 पक्खि-चउप्पद-जलयर-कीडकिविल्लगगते णव-पुण्णपुप्फ-फल-रुख-गुच्छ–गुम्म-लता-वणे(वल्लि)-पत्त-पवाल अंकुस्-परोहगते उदत्तवत्था-ऽऽभरण-सयणा-ऽऽसण-जाण-वाहण-भायणपरिच्छद-दव्वोपकरण-धण-धण्ण-रयणगते अभिण्ण-अविज्ज–अविकार-अव्वाहत-अफुडित-अकूडकम्मदोसविप्पमुक्कपादुब्भावे मणुण्ण-पच्चुदग्गऽण्ण-पाण-भोयणपादुब्भावेसु चेव एवंविहेसु आमास-सद्द-रूव-रस-गंध-फासपादुब्भावेसु उदत्तेसु णिरुवहुतेसु णिरुवद्दुतो त्ति बूया । उवद्दवे पुव्वाधारिते उपण्णवापादुब्भावेसु सोवद्दवो कीरिसो त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ सव्वत्थगते 30 छेज्जं बूया । सव्वणिण्णेसु विलकं बूया । कण्हेसु तिलकालकं बूया । गहणेसु णत्थकं बूया । उवग्गहणेसु तणं बूया । १-२ हस्तचिह्नन्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ३ बहुकूलो परा हं० त० ॥ ४-५ हस्तचिहान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ६ भविस्सति हं० त० विना ॥ ७ एगूण हं० त० ॥ ८ 'माहारयियव्वं हं० त० ॥ ९ पण्णामासे हं० त० विना ॥ १० "ण्णहत्थपु' हं० त० ॥ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णासइमो उवद्दुतज्झाओ २०३ अप्पस चलं ब्रूया । वावण्णेसु किडिभकं सरं कुणिणखाणि णयणविकारो वा विण्णेया । गंठीसु गंठी बूया । वणेसु वणं बूया । अदंसणीयेसु काणं वा अंधं वा बूया । सद्देयेसु बहिरं वा कण्णछेज्जं वा बूया । गंधेयेसु णासारोगं वा णासाछेज्जं वा [बूया] । रसेयेसु जिब्भारोगं वा जिब्भाछेज्जं वा बूया । फासेयेसु तयादोसं वा फासोवघातं वा बूया । तत्थ वद्दुतो अणुवद्दुतो पुव्वमाधारिते इमे संखेवा - उवद्दुते पडिपोग्गला उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ अंधं वा कुंटं वा गंडीपादं वा खंजं वा कुणीकं वा आतुरं वा उवद्दुतं वा विकलं वा दिट्ठा पडिरूवे उवद्दुतो त्ति 5 बूया । तत्थ पलितं वा खरडं वा विपण्णा वा तिलकालकं वा चम्मक्खीलं वा दद्धुं वा किडिंगं वा किलासं वा कट्टं वा सिब्धं वा कुणिणहं वा खतं वा अरुअं वा अण्णतरं वा सोवद्दवं दव्वमामसति उवद्दुतो त्ति जाणितव्वो भवति । तत्थ तेल-दधि - दुद्ध - मधु - पुप्फरस - फलरस - मंस - सोणित- पूर्व- वसा-मुत्त-पुरीस- खेल - सिंघाणक-अक्खिगूधक- कण्णगूधकादीणि एवंविधाणि आमसेज्जो उवद्दुतो त्ति जाणितव्वो भवति । तत्थ किलिट्ठे किलिट्ठमल्लाणुलेवण - किलिट्ठपुप्फ-फल- पवाल - मूल - परोह - अंकुरकिलिट्ठ - पमिलातादुभावे 10 वाणदुद्ध-दधि-घत - वापण्णपाणभोयण - परिजिण्णवत्थ भोयणजज्जर - परिभिण्ण- खंडदव्वोपकरणे चेव एवंविधे पेक्खितामासे सद्द - रूव-गंध-फास - रसपाउब्भावेसु उवद्दुतो त्ति बूया । तत्थ उवद्दुते पुव्वाधारिते उप्पण्णे पादुब्भावे कीरिसो उवद्दवो त्ति पुव्वाधारिते तत्थ सुक्केसु सबलं बूया, चेव सुवारकं बूया । पीतेसु कामलं बूया । वापण्णेसु वापणं बूया । णीलेसु णीलं बूया । कण्हेसु कण्हतिलं बूया । गहणेसु णच्छकं बूया । उवग्गहणेसु तूणं बूया । सव्वणिद्धेसु पिलकं चम्मखीलं वा गलुकं वा बूया । पिलकाय पिलकं चम्मक्खीलं, गलुणा गलुकं, गैंडेण गंडं 15 पडिरूवेण जाणितव्वं भवति । तत्थ अग्गेयेसु दङ्कं बूया । कोढे कोढिकं, कोट्टिते कोट्टितं, आपडितेण आपडितं, वणेण वणं, तज्जातपडिरूवेण एवमादि अणुगंतव्वं भवति । तत्थ णहेसु कुणिणहं, पोरिसेण वातंडं वा अम्हरिं वा, वसणेसु वातंडेअरिसं वा भगंदलं वा, उदरे कुच्छिरोगं वा वातगुम्मं वा सूलं वा, हितये छड्डि वा, उरे हिक्कं वा, कंठे अवयिं वा गलगंडं वा कंटुंसालुकं (कंठमालकं) वा, कँकेसु अवर्यि, पट्ठीये पट्ठिरोगं, सव्वाहारगते खंडो व गुरुलं वा करलं वा बूया । मूकं वा खंडदंतं वा 01 समदंतं वा Do आमासपडिरूवेहि आधारयितूण पत्तेगं पत्तेगं 20 सव्वं गीवाय गीवरोगं अवर्यि वा गलगंडं वा बूया । हत्थेसु हैंत्थछेज्जं वा अंगुलिछेज्जं वा अत्थोवद्दवं वा । पडिरूवोपलद्धीहिं आमासेहि य उवलद्धि बूया । पादेसु पादछेज्जं वा अंगुलिछेज्जं वा पादोवद्दवं वा बूया । सीसे सीसवाधयो बूया । अक्खिसु अक्खिवाधयो बूया । तत्थ वातिको पेत्तिको संभिको सण्णिवातिको त्ति रोगा पुव्वमाधारयितव्वा भवंति । तत्थ सव्ववायव्वेसु सुक्केसु कसायरसपादुब्भावेसु वा सव्वप्पयोगेसु सव्वचेट्ठागते य वातिकं रोगं बूया । तत्थ अग्गेयेसु पीयरसपादुब्भावेसु पण्णे 25 अंबिलरसपादुब्भावेसु लवणरसपादुब्भावेसु सव्वउसुणपरिदाहगते य पेत्तिकं रोगं बूया । आपुणेयेसु दढेसु सीतलेसु मधुरपेसलरसपादुब्भावेसु चेव सेंभिकं रोगं बूया । तत्थ अधोणाभीयं गत्तामासे अधोणाभीगत्तोपकरणेसु य वातिकं रोगं बूया । अधोहितयस्स जाव णाभीतो त्ति एतेसिं गत्ताणं संपरामासे एतेसिं चैव उवकरणसद्द - रूवपादुब्भावे पेत्तिकं रोगं ब्रूया । उद्धंहितयगत्तेसु संपरामट्ठेसु एतेसिं चेव गत्तोवकरणेसु धूमणेत्तादिसु पादुब्भावेसु य पुण्णामेसु य स - रूवे सेंभिगं रोगं बूया । आमेसु अणग्गेयेसु य आमा [स]यगतं रोगं बूया । पक्केसु अग्गेयेसु य पक्वासय-समुप्पण्णं 30 रोगं बूया । १ डिलं वा हं० त० विना ॥ २ अरूवं वा हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ गंडयेण हं० त० ॥ ५ 'डपरि हं० त० ॥ ६ कट्टुसा हं० त० ॥ ७ कक्केसु हं० त० विना ॥ ८ वा मुरुलं वा करणं वा हं० त० विना ॥ ९० एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ १० हत्थेज्जं हं० त० ॥ ११ गंधामासे हं० त० ॥ १२ चेव करण हं० त० विना ॥ १३ बभावेहि सुतण्णामे हं० त० विना ॥ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ अंगविज्जापइण्णयं एवं वातपित्त-सिभोपलद्धीहि अभिघातखयोपलद्धीहि आमासय-पक्कासतोपलद्धीहि वात-पित्त--सिंभोपलद्धीहि उवलब्भ आमास-सद्द-रूवपादुब्भावेहिं य संगहतो वातिक-पित्तिक-सेंभिक-सन्निवातिका य चउव्विहा भेदसो अणेगागारा आधारयितृणं जधुत्ताहिं उवलद्धीहिं उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ तिलकालकं वा चम्मकीलं वा दटुं वा पिलकं वा तूणं वा णत्थकं वा वणं वा एवमादि सुद्धंभागेसु आमढेसु उद्धंगीवाय विण्णेयाणि भवंति । अधोभागेसु 5 अधोकडीयं विण्णेयाणि भवंति । समभागेसु गत्तेसु आमढेसु अंतरकाये विण्णेया भवंति । कंसि देसे पुव्वाधारितेसु दक्खिणेसु दक्खिणेसु चेव गत्तेसु विण्णेयाणि भवंति । वामेसु वामेसु चेव गत्तेसु विण्णेयाणि । वामदक्खिणेसु वामदक्खिणेसु गत्तेसु विण्णेयाणि । मज्झिमे णेव वामेसु णेव दक्खिणेसु मज्झिमेसु चेव गत्तेसु विण्णेयाणि । पुण्णामेसु गत्तेसु पुण्णामेसु चेव विण्णेयाणि । थीणामेसु गत्तेसु थीणामेसु चेव विण्णेयाणि भवंति । नपुंसकेसु अंतसंधिच्छेदेसु विण्णेयाणि । दढेसु दढेसु कक्खडगत्तेसु विण्णेयाणि । चलेसु चलेसु चेव गत्तेसु विण्णेयाणि । णिद्धेसु अच्छीसु 10 कण्णेसु वा णासायं वा मुहे वा पोरिसे वा विण्णेयाणि । लुक्खेसु णहेसु विण्णेयाणि । कण्हेसु केसंते वा उत्तरोटे वा भुमकासु वा । सुक्केसु णाभीयं वा वत्थिसीसे वा विण्णेयाणि । सामेसु थणपालीसु विण्णेयाणि भवंति । किसेसु सुयीसु वा दंतेसु विण्णेयाणि । बाहिरेसु बाहिरेसु चेव गत्तेसु विण्णेयाणि । अब्भंतरेसु अब्भंतरेसु चेव गत्तेसु विण्णेयाणि । दीहेसु दीहेसु चेव गत्तेसु विण्णेयाणि । रस्सेसु रस्सेसु चेव गत्तेसु विण्णेयाणि । थूलेसु थूलेसु चेव गत्तेसु विण्णेयाणि । किसेसु किसेसु चेव जाणेज्जो । णिलाडेसु गंडेसु कण्णेसु पादतलेसु करतलेसु चेव विण्णेयाणि भवंति । डहरचलेसु 15 चेव अंगुलीसंधीसु जाणेज्जो । डहरथावरेसु अंगुलीपव्वेसु जाणेज्जो । गहणेसु सिरंसि कक्खेसु वा वत्थिसीसे वा विण्णेया । उवग्गहेसु भमुहासु अच्छीसु वा जाणेज्जो । परिमंडलेसु सिरंसि गंडे वा विण्णेया । थलेसु उण्णतेसु जाणेज्जो । वायव्वेसु णासायं वा मुहे वा अवाणे वा विण्णेया । अग्गेयेसु अग्गेयेसु चेव जाणेज्जो । तिक्खेसु दंतेसु वा णहेसु वा जाणेज्जो । आदिमूलिएसु आदिमूलिएसु चेव जाणिज्जो । मज्झिमविगाढेसु मज्झिमविगाढेसु चेव जाणेज्जो । अंतेसु अंतेसु चेव जाणेज्जो । 6 तंबेसु तंबेसु चेव जाणेज्जो । क दंसणिज्जेसु दंसणिज्जेसु चेव 20 जाणेज्जो ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय उवहतो णामाज्झायो पण्णासतिमो सम्मत्तो ॥ छ ॥ ५० ॥ [एगपण्णासइमो देवताविजयज्झाओ] णमो भगवतो यसवओ महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणसामिस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिन्नाय 25 अंगविज्जाय देवताविजयो णामाज्झायो । तं खलु भो ! तमणुवक्खाइस्सामि । तं जधा-उद्धंभागेसु सुरा, अधोभागेसु सुरा, सुयीसु जक्खा, सद्देयेसु गंधव्वा, चलेसु पितरो, मतेसु पेता, महब्बलेसु दारुणेसु य दारुणा विनेया । सारमंतेसु वसवा, अग्गेयेसु आदिच्चा, चतुरस्सेसु अस्सिणो, णिव्वेढेसु अव्वाबाधा, सामेसु देवदूता, कण्हेसु अरिट्ठा, बुद्धिरमणेसु सारस्सता, घोसमंतेसु गद्दतोया, वण्णवंतेसु वण्हिणो, थीणामेसु अच्छरातो, सेतेसु वरुणकाइया, पच्छिमेसु दक्खिणेसु मतेसु य पेतका, असारवंतेसु य उत्तरेसु वेसमणकाइया जक्खा, अग्गेयेसु पुरत्थिमेसु य अग्गिकाइया सोमकाइया 30य विण्णेया । चलेसु कंदप्पहस्सेसु य छिद्देसु णक्खत्त-गह-चंद-तारारूवाणि विनेयाणि भवंति । अक्खिसु चंदाऽऽदिच्चा-तत्थ अग्गेयेसु आदिच्चा पीतेसु रत्तेसु य विनेया, सीतलेसु सुक्केसु य चंदो विण्णेयो, संखतेसु णक्खत्ताणि, संखतेसु उत्तमेसु य णक्खत्तदेवताणि, बद्धेसु गहा विण्णेया । सद्देयेसु सामण्णेसु य बलदेव-वासुदेवा सिववेस्समणा खंद-विसाहा अग्गि-मारुया य विण्णेया भवंति । सकाहिं सकाहि आमास-सद्द-रूव-पडिरूवोपलद्धीहिं १ वा चमक्कासु सं ३ पु० । सुमकासु हं० त० ॥ २ णिडालेसु हं० त० विना ॥ ३ हस्तचिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ४ “सतिमो वक्खाओ भवति ॥ ५० ॥ हं० त० ॥ ५ निव्वद्वे हं० त० ॥ ६ “प्पहेसु सुस्सेसु हं० त० ॥ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ एगपण्णासइमो देवताविजयज्झाओ णिद्धेहिं सागरो वा णदी वा विण्णेया- तत्थ परिक्खेवेसु सागरा विण्णेया, दीहेसु णदी विण्णेया । लुक्खे अग इंदग्गि वा विण्णेया । संप्पभेसु आदिच्चो । उहेसु अग्गी । उत्तमसाधारणेसु उण्हेसु य इंदग्गि विण्णेयो । मत्थए बंभा उत्तमेसु या विष्णेया । निडालेसु इंदो इस्सरेसु य विष्णेयो । उत्तरेसु उवेंदो सव्वपरक्कमगते य विण्णेयो । बाहूसु बलदेवो वा वासुदेवो वा सव्वबलदेवगते य विण्णेया । सामेसु कामो विण्णेयो । सव्वकामपउत् सव्वरतिपत्ते चेव संधिसु उदलादला विण्णेया । दढेसु गिरी विण्णेया । सिवेसु सिवो विण्णेयो । बहुरूवेसु य लिंगपादुब्भावेसु 5 जमेसु य जमो विण्णेयो । सारवंतेसु वेस्सवणो विण्णेयो । सुक्केसु य उत्तमेसु य वरुणो विण्णेयो । सोमेसु सोमपादुब्भावेसु य सोमो विण्णेयो | कण्हेसु रत्ती विण्णेया । सुक्केसु दिवसो विण्णेयो । सिरंसि सिरी विण्णेया । मुदितेसु कामपजुत्तेसु य अइराणी विष्णेया । महावकासेसु पुधवी विण्णेया । सामेसु एकणासा विण्णेया । दंसणीयेसु णवमिगा विण्णेया । णिद्धेसु सुरादेवी विण्णेया । कण्हेसु णिण्णेसु सव्वपरिसप्पपादुब्भावे य णागी विण्णेया । उद्धंभागेसु चलेसु य वण्णवंतेसु सुवदणेसु सव्वपक्खि-पवकपादुब्भावे य सुवण्णा विण्णेया । गरुलवाहणपादुब्भावे य तत्थ अधोभागेसु णिण्णे य 10 अधोलोकोपवण्णा विण्णेया, असुरा वा णागा वा सुवण्णा वा विण्णेया भवंति, सकाहिं सकाहिं उवलद्धीहि विण्णेया । तत्थ तिरियंभागेसुं उद्धंणाभीय अधोगीवाय तिरियामासे तिरियविलोकिते तिरियसद्दपादुब्भावे य तिरिउवपपातिका दीवकुमारा समुद्दकुमारा दिसाकुमारा अग्गिकुमारा वाउकुमारा थणितकुमारा विज्जुकुमारा पिसाय - भूत - जक्ख - रक्खस-गंधवा चंदिम - सूरिय- गहगण - णक्खत्त - तारारूवा य सकाहि सकाहिं उवलद्धीहि आधारयितूणं आधारयितूणं आमास - सद्दरूवपादुब्भावेहिं विण्णेया भवंति । उद्धंभागेसु छत्त-वीयणि- भिंगार - पादुब्भावेहिं उद्धं पक्खित्तंसि उद्धंभागोवकरणेसु 15 य एवमादीसु य पडिरूव - सद्दपादुब्भावेसु उद्धंलोकोपपण्णा वेमाणिका देवा विण्णेया कप्पसण्णाहि विधिआधारणा लेस्सादिआधारणाहिं चेव भवंति । तत्थ उत्तमेसु इस्सरेसु चेव अधिपती विण्णेया । सामाणेसु दंडेसु सामापदुभ य सामाणिया विष्णेया । पेस्सेसु आभियोगिका परिसोववण्णा विण्णेया । तत्थ सव्ववाहणगते सव्ववाहणजोणीगते य आभिजोगिका विष्णेया । सव्वपरिसागते सव्वपरिवारगते य परिसोववण्णा विण्णेया । तत्थ सव्वसगुणगते सुवण्णा पुण्णामेसु, थीणामेसु सुवण्णकण्णका जाणितव्वा भवंति । दीहेसु णिद्धेसु णागा पुण्णामेसु थीणामेसु णागीदेवी 20 विणेया । धणगते ववहारगते सारवंतेसु य वेस्सवणो विण्णेयो । सुक्केसु णिद्धेसु इस्सरेसु समुद्दावकपादुब्भावेसु य वरुणो विण्णेयो । ० ईस्सरेसु उत्तमेसु सव्वरायपडिरूवेसु य इंदो विण्णेयो । मतेसु सव्वपेतपडिरूवेसु इस्सरेसु य जमो विण्णेयो | Do गो— महिस - गवेलकपादुब्भावे रुद्देसु य सिवं बूया । कुक्कुड - मयूरपादुब्भावे सेणावति [ विष्णेयो] । कुमारपादुब्भावेसु य खंदो विण्णेयो । छगल- मेंढक - कुमार- असिपादुब्भावे य विसाहो विण्णेयो । दंडेसु सव्वजोधपादुब्भावेसु य वण्ही विण्णेयो । उण्हेसु अग्गी विण्णेयो । सव्वदव्वोवकरणपादुब्भावे य चलेसु तालखंड- 25 वीजणकादिसु य पादुब्भावेसु यातं बूया । दारुणेसु रक्खसा विण्णेया । बिभित - रुद्द -भय-हासेसु पिसाय - भूता चेव विष्णेया, थीणामेसु एतेसु चेव पादुब्भावेसु रक्खसीओ पिसाईओ भूतकण्णा देवीओ विण्णेयाओ भवंति । सव्वगंधव्वगते तंति-तल-तालणिग्घोसे गंधव्वा विण्णेया, थीणामेसु गंधव्वकण्णाओ विण्णेया । मधुरघोसेसु पक्खिसु पडिरूवपादुब्भावेसु किन्नरा किंपुरिसा य विण्णेया, थीणामेसु किन्नरीओ किंपुरिसकण्णका विण्णेया । सुयीसु पुण्णेसु यक्खा विण्णेया, थीणामेसु जक्खिणिओ विण्णेयाओ । मूलजोणीगते वण्णस्सतीकण्णाओ विण्णेयाओ । धातुजोणीगते पव्वतदेवता 30 विण्णेया । णिद्धेसु पाणजोणीगए य समुद्द - नदी - कूव - तलाग - पल्ललदेवयातो विण्णेया- [ तत्थ] णिण्णेसु परिक्खेवेसु समुद्ददेवताओ, ० तत्थ दीहे णदीदेवताओ, ० णिण्णेसु उवट्ठेसु परिमंडलेसु य० कँवदेवता विण्णेया, णिण्णेसु परिमंडलेसु य Do समुद्ददेवताओ विष्णेयाओ, विवेक्खिते दिसादेवताओ विण्णेया । तधाऽणुपुव्वं दिसोपलद्धीहिं उवलद्धव्वं भवति । इट्ठेहिं सिरी विण्णेया । बुद्धिरमणेसु बुद्धि - मेहाओ विण्णेयाओ । अब्भंतरेसु लतादेवताओ विण्णेयाओ । १ सपादेसु हं० त० ॥ २ सु अधोणाभीय हं० त० विना ॥ ३ एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ४ यतं हं० त० विना ॥ ५ 'यावो वि हं० त० ॥ ६-७० Do एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ अंगविज्जापइण्णयं दढेसु वेत्थुदेवताणि विण्णेयाणि । परिमंडलेसु णगरदेवताणि विण्णेयाणि । मतेसु सुसाणदेवताणि विण्णेयाणि । दुग्गंधेसु वच्चदेवताणि उक्कुरुडिकदेवताणि य । उत्तमेसु उत्तमाणि, मज्झिमेहि मज्झिमाणि, पच्चवरेहिं पच्चवराणि । आरियोपलद्धीहिं आरियदेवताणि, मिलक्खूपलद्धीहिं मिलक्खूहिं मिलक्खदेवताणि । विमुत्तेसु अपरिग्गहेसु उज्जुएसु य < सप्पभेसु पसण्णेसु य सम्मभाविताणि । अविमुत्तेसु वंकेसु णिप्पभेसु 5 परिग्गहवंतेसु आरुभेसु य मिच्छभावियाणि । पुण्णामेसु पुरिसा विण्णेया, थीणामेसु थिओ विण्णेयाओ भवंति । कण्हनील-कापोत-रत्त-पीय-सुक्किलेहिं वण्णपडिरूवेहिं ठियामासेहि य कण्ह-णील-काउ-तेउ-वंभ-सुक्काओ लेस्साओ सएहिं वण्णपडिरूवेहि आधारयित्ता आधारयित्ता देवताणं विण्णेयाओ भवंति ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय देवताविजयो णामाज्झायो एगपण्णासतिमो वक्खातो भवति ॥ ५१ ॥ छ । ___ [बापंचासइमो णक्खत्तविजयज्झाओ] णमो भगवतो जसवतो महापुरिसस्स महावीरस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय णक्खत्तविजयो णामाज्झायो । तं खलु भो ! वक्खस्सामि । तं जधा-उल्लोगिते उम्मज्जिते सीसुम्मज्जणे पक्खिदंसणे इंदधणु-विताण-विज्जु-थणित-चंदा-5ऽदिच्च-णक्खत्त-गहगण-तारागणजोगा-ऽजोगा उदयऽत्थमण-अमावस्सा पुण्णमासी-मंडल-वीधी वि जारिसं थाणं जुग-संवच्छर-उदु-मास-पक्ख-सव्वतिधि-अधोरत्त-खण-लव-मुहुत्त15 उक्कापात-दिसादाह-संझादसण-णक्खत्तणाम-थी-पुरिस-पक्खि-चउप्पद-दव्वोवकरणगते एवंविहसद्द-रूवपादुब्भावे जोतिसं पुच्छसि त्ति बूया । तत्थ सुक्कामासे चंदं बूया । णिडाले चेव चंदं बूया । अक्खिसु मुहे चेव आदिच्चं बूया । संधिसु णक्खत्तं बूया । दढामासेसु गहं बूया । पकिण्णामासे तारकाओ बूया । ओमज्जिए ओलोकिए अत्थमणाणि बूया । उल्लोकिए उम्मज्जिए उम्मट्ठिए य उदयं बूया । चलेसु वियारं बूया । दढामासेसु आहारेसु य गहणं बूया । णीहारेसु चलेसु मोक्खं बूया । परिमंडलेसु परिमंडलाचारं बूया । दीहेसु विधीचारं बूया । आहारेसु पवेसं बूया । 20 णीहारेसु णिग्गमणं बूया । बज्झेसु बाहिरमंडलायारं बूया, सच सामेसु मज्झिममंडलायारं बूया, 2 अब्भंतरेसु अब्भंतरमंडलायारं बूया । तत्थ दीहेसु बहस्सति बूया । सुक्केसु सुक्कं बूया । रत्तेसु लोतेकं बूया । मंडलेसु सणिच्छरं बूया । पयलाइएसु निमिल्लियंसि य राहुं बूया । उपद्दुएसु धूमकेउं बूया । पंडूसु विसुद्धेसु ये बुधं बूया । तत्थ पुरिमेसु गत्तेसु कत्तिकादीणि असलेसपज्जवसाणाणि पुव्वदारिकाणि सत्त नक्खत्ताणि बूया । दक्खिणेसु गत्तेसु महादीकाणि विसाहापज्जवसाणाणि सत्त नक्खत्ताणि दक्खिणदारिकाणि बूया । पच्छिमेसु गत्तेसु अणुराधादीणि 25 सवणपज्जवसाणाणि सत्त नक्खत्ताणि पच्छिमदारिकाणि बूया । वामेसु गत्तेसु धणिवादीकाणि भरणीपज्जवसाणाणि सत्त नक्खत्ताणि उत्तरदारिकाणि बूया । तत्थ पुण्णामेसु पुण्णामं पुणव्वसुं वा पुस्सं वा पुव्वदारेसु बूया । हत्थं वा साति वा दक्खिणदारेसु बूया । मूलं वा अभीइं वा सवणं वा पच्छिमदारेसु बूया । उत्तरदारेसु णत्थि पुण्णामाणि णक्खत्ताणि । सव्वाणि उत्तराणि थीणामाणि जाणियव्वाणि भवंति । अवसेसाणि णक्खत्ताणि थीणामाणि एक्कवीसं जाणियव्वाणि भवंति ।। १ वत्थदे हं० त० ॥ २ दुग्गंतेसु हं० त० ॥ ३ 'डिकाणि देव हं० त० विना ॥ ४ सीसज्जाणा हं० त० ।। ५ “ए य उट्ठिएहि उदयं हं० त० ॥ ६ <2 एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ७ लोचकं हं० त० । लोहितकं सि० ॥ ८ निमज्झियंसि हं० त० विना ॥ ९ य धुवं बू हं० त० ॥ १० अस्सिलेस हं० त० ॥ ११ अभीयं वा समणं हं० त० ॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बापंचासइमो णक्खत्तविजयज्झाओ २०७ तत्थ हत्थ-पाद-जंघोरु-बाहु-णाभीसु तीसं मुहुत्ताणि बूया । तत्थ पट्ठोदर-खंध-वच्छेसु सिरंसि च पणयालीसतिमुत्ताणि बूया । तत्थ केस-मंसु-लोम-णह-सव्वंगुलीगए अंगुढेसु चेव पण्णरसमुहुत्ताणि बूया । एतेसामेवादेसंग्गहणे तूणपण्णरसमुहुत्तं अभीयि बूया ।। तत्थ तीसतिमुहुत्तेसु पुव्वदारेसु कत्तिगा मिगसंठाणं पुस्सं ति तिण्णि णक्खत्ताणि बूया । दक्खिणदारेसु महा पुव्वाफग्गुणी हत्थो चित्तं च चत्तारि णक्खत्ताणि बूया । अवइद्दारेसु अणुराधा मूलो पुव्वासाढाओ सवणो चत्तारि णक्खत्ताणि 5 बूया । उत्तरदारेसु धणिट्ठा पुव्वापोट्ठपदाओ रेवती अस्सिणी य चत्तारि णक्खत्ताणि बूया । एयाणि तीसमुहुत्ताणि पण्णरस नक्खत्ताणि बूया । तत्थ पणतालीसमुहुत्ताणि पुव्वदारेसु रोहिणी पुणव्वसुं च दुवे णक्खत्ताणि जाणीया । दक्खिणद्दारेसु उत्तराफग्गुणीओ विसाहा चेव दुवे णक्खत्ताणि जाणीया । पच्छिमदारेसु उत्तरासाढा एगं णक्खत्तं जाणिया । उत्तरदारेसु उत्तरापोट्ठपदा एकं णक्खत्तं जाणीया । एवमेयाणि पणयालीसमुहुत्ताणि छ णक्खत्ताणि बूया । तत्थ पण्णरसमुहुत्ते पुव्वदारिए अई असिलेसं च दुवे णक्खत्ताणि जाणिया । दक्खिणदारेसु एकं साई णक्खत्तं बूया । पच्छिमद्दारेसु 10 जेटुं एक्कं णक्खत्तं बूया । उत्तरदारेसु सयभिसया भरणी य दुवे णक्खत्ताणि जाणिया । एयाणि पण्णरसमुहुत्ताणि छ णक्खत्ताणि बूया । अवरद्दारेसु जण्णं पण्णरसमुहत्तं अभितिं णक्खत्तं एकं णवमुहत्तं सत्तावीसं चे [सत्त]सट्ठिभागा मुहुत्तस्स जाणिया । तत्थ तीसमुहुत्ताणि समखेत्ताणि पनरस णक्खत्ताणि उवलद्धीहिं समखेत्तोवलद्धीहिं उवलद्धव्वाणि भवंति । पणयालीसमुहुत्ताणि छ णक्खत्ताणि दिवड्वखेत्ताणि दिवड्डखेत्तोवलद्धीहिं उवलद्धव्वाणि भवंति । पण्णरसमुहुत्ताणि अद्धखेत्ताणि 15 छ णक्खत्ताणि अद्धखेत्तोवलद्धीहि उवलद्धव्याणि भवति । तूणपण्णरसमुहत्तं तूणपण्णरसमुहुत्तोवलद्धीहि उवलद्धव्वं भवति । एयाणि अट्ठावीस णक्खत्ताणि दारतो खेत्तपविभत्तीहि य आधारयितुं आधारयितुं उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ चलेसु चलाणि खिप्पाणि वा बूया-तत्थ चलाणि पुणव्वसू सवणो धणिट्ठा सतभिसय त्ति, तत्थ खिप्पेसु पुस्सो हत्थो अभियी अस्सिणीउ त्ति चत्तारि णक्खत्ताणि बूया । तत्थ दढामासे रोहिणीओ तिण्णि उत्तराणि चत्तारि णक्खत्ताणि बूया । दारुणेसु दारुणाणि बूया, तिण्णि पुवाओ महा चेति । तत्थ चत्तारि नक्खत्ताणि सव्वसत्थगताणि 20 उग्गाणि बूया, उग्गाणि पुण अस्सेस जेट्ठा मूलो अद्दा भरणी चेति पंच णक्खत्ताणि भवंति । तत्थ मिदूसु सव्वमित्तगते पसण्णेसु य मुदूणि बूया, तत्थ मुदूणि मिगसिरो चित्ता अणुराधा रेवति चत्तारि णक्खत्ताणि बूया । तत्थ साधारणेसु साधारणाणि बूया, साधारणाणि पुण कित्तिया विसाहा चेति दुवे णखत्ताणि बूया । तत्थ बंभेयेसु सव्वबंभणपडिरूवगते य अभियं बूया । तत्थ सव्ववण्हिगते सव्ववण्हिपडिरूवगते य सवणं बूया । तत्थ सव्ववसुगते धण-रयणगते य वसु-धण-रतणपडिरूवगते य धणिटुं बूया । तत्थ सव्वमदगते सव्वमदमज्जपडिरूवगते य सतभिसं बूया । तत्थ 25 सव्वअयगते सव्वअयपडिरूवगते य पोट्ठवदं बूया । तत्थ विवद्धिसंपयुत्ते सव्वविद्धिगते सव्वअभिवद्धिपडिरूवगते य उत्तरपोट्ठपदं बूया । तत्थ सव्वदाणगते विग्गहगते सव्वदाण-विसग्गपंडिरूव-सद्दपादुब्भावगते चेव रेवति बूया । तत्थ सव्वातिगच्छोवलद्धीहिं सव्वअस्सगते सव्वअस्सपडिरूवोवकरणगते य सव्वअस्सोपजीवीहि य एतेसामेव पडिरूवसद्दपादुब्भावे अस्सिणि बूया । तत्थ दीणं मदोवलद्धीहिं सव्वजमगते य जमपडिरूव-सद्दपादुब्भावे चेव भरणीओ बूया । तत्थ सव्वअग्गेयेसु अग्गिगते अग्गीउपलद्धीयं सव्वअग्गेयोपकरणे सव्वअग्गिदेवताए य अग्गिउवकरणे 30 सव्वकंटइरुक्खगते एवंविधेसु सद्द-रूवपादुब्भावे कत्तियाओ बूया । तत्थ पयापुत्तोपलद्धीयं पयावतिसद्द-रूवपादुब्भावेसु १ रबंधुव हं० त० विना ॥ २ ‘साणिग्गह हं० त० विना ॥ ३ ताणि पण्णरसमुहुत्ताणि पण्णरस हं० त० विना ॥ ४ "चन्द्रस्याभिजिता योगे मुहूर्ता नव कीर्तिताः । सप्तषष्टिभुवोंऽशाश्च मौहूर्ताः सप्तविंशतिः ॥" लोकप्रकाशे सर्ग: २८ श्लोकः ३२३ पत्रं ३८० ॥ ५ च अट्ठभागा हं० त० ॥ ६ पण्णरस णक्खत्ताणि अट्ठणक्खत्ताणि छ णक्ख हं० त० विना ॥ ७ 'त्थ वत्ताणि णक्ख हं० त० ॥ ८ “सत्थाणिं गताणिं बूया सि० ॥ ९ गते दाणविग्ग हं० त० ॥ १० पडिसहरूवपा हं० त० विना ॥ . Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ____ अंगविज्जापइण्णयं चेव सव्वधण्णगते सव्वकासकगते सव्वकासकोपकरणगते कासकोपलद्धीयं सव्वरूढगते चेव रोहिणी बूया । तत्थ सव्वसोमगते सव्वसोमोपलद्धीयं सव्वसोमकम्मोवयारगते चेव सव्वसोमकम्मोपलद्धीयं सव्वसाधारणगते सव्वकोसीधण्णगते सव्वसंगलिकागते सव्वखीरवच्छगते एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु मिगसिरं बूया । तत्थ सव्वरुद्दगते सव्वणिधाणगते सव्वरुद्दोवकरणे सव्वरुद्दोपयारकम्मगते एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावेहिं अदं बूया । तत्थ पुणरावत्तिएसु सद्देसु 5 पुणगते य सव्वअदितिगते सव्वअदितिकम्मोपचारगते सव्वअदितिउवलद्धीयं एवंविधेसु पडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु पुणव्वसुं बूया । तत्थ सव्वबुद्धिगते सव्वबुद्धिकम्मगते सव्वबहस्सतिगए 5 सव्वबहस्सतिपुस्सकम्मोवयारगते सव्वबहस्सतिपुस्सोवलद्धीसु एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु पुस्सं बूया । तत्थ सव्वसप्पगते सव्वसप्पोवलद्धीयं सव्वसप्पोवजीविगते सव्वविसगते सव्वअस्सिलेसोपलद्धीयं एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावे असिलेसं बूया । तत्थ पितुकज्जकिच्चपेतकिच्चगते सव्वसद्दगते सव्वमाघगते सव्वपितुकिच्चोपलद्धीसु सव्वपितुउवलद्धीसु एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु मघाओ 10 बूया । तत्थ सव्वसोभग्ग-सोभग्गिय-सुभगगते सव्वरूवोवजीविगते सव्ववेसियागते सव्ववेसियाउवकरणगते सव्वसोभग्गियकम्मोवयारगते सव्ववेसोवलद्धीयं एतेर्सि चेव पडिरूवसद्दपादुब्भावेसु पुवाओ फग्गुणीओ बूया । तत्थ सव्वउज्जगते सव्वसच्चगते सव्वधम्मगते सव्वधम्मिगगते एतेसिं जेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु उत्तराओ फग्गुणीओ बूया । तत्थ सव्वहत्थिगते सव्वहत्थिपडिरूवगते य सव्वहत्थिउवकरणगते सव्वहत्थिकम्मोपचारगते सव्वहत्थिउपजीविगते आदिच्चकम्मोवयारे आदिच्चोवलद्धीयं सव्वकारुकोपलद्धीयं एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपाउब्भावेसु हत्थं बूया । तत्थ 15 सव्वदंसणीयेसु रूवकार-चित्तकार-कट्ठकार-सव्वरूवकारोवकरणे सव्वअलंकारियगते सव्वालंकारेसु < अलंकार कम्मोवगरणेसु 20 अलंकारकम्मोवयारेसु एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु चित्तं बूया । तत्थ वायव्वेसु सव्ववायगते वीयणक-तालवेंटगते उखेवगते फूमिते वीजणकम्मोवयारेसु वातयत्तकीयोपचारेसु एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावे साति बूया । तत्थ वणस्सतीसु सव्वदव्वगते सव्वसामण्णगते विसाहं बूया । तत्थ सव्वणानिमित्तसंबंधिगते सव्वमेत्तिउवयारगते पसण्णेसु य एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु अणुराधं बूया । तत्थ इस्सरेसु सव्वजेट्ठगते 20 सव्वइंदकम्मोवयारगते इंदोपलद्धीयं एतेसिं चेव पडिरूवगते सद्दपादुब्भावेसु जिटुं बूया । तत्थ सव्वमूलजोणीगते सव्वबीजभूतगते सव्वमूलकम्मगते सव्वमूलोवयारगते एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावे मूलं बूया । तत्थ आपुणेयेसु । सव्वआपुणजोणीसु सव्वजलगते सव्वजलचरगते सव्वजलोवेजीविगते सव्वजलावगाहीगते णवपोतोवकरणे एतेसिं चेव पडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु पुव्वासाढा बूया। तत्थ उव सत्ताउवट्ठलकहा " संलावजोणीसु G णिसृरकम्मोवयारेसु " णिठ्ठलपडिरूव-सद्दपादुब्भावेसु य उत्तरासाढा बूया । स तत्थ अग्गेयेसु कत्तियं वा विसाहं वा बूया । > असाधारणेसु 25 अग्गेयेसु कत्तियं बूया । साधारणेसु अग्गेयेसु विसाहं बूया । आपुणेयेसु अई वा पुव्वासाढं वा सतविसयं वा बूया । तत्थ सव्वचतुप्पदगते चतुक्केसु रोहिणि वा मिगसिरं वा हत्थं वा अस्सिणीओ वा बूया । मतेसु मघं वा भरणीयो वा बूया । मूलजोणीपडिरूवगते 6 रोहिणी वा मूलं वा बूया । तत्थ सव्वजाणपडिरूवगते 7 कत्तियं वा रोहिणि वा बूया । तत्थ सव्वरायोपलद्धीयं पुस्सं वा जेटुं वा बूया । कंटकीरुक्खगते कत्तियं बूया । सगडजाणगते रोहिणि बूया । खीररुक्खेसु चंदोपलद्धीयं मिगसिरपडिरूवे य मिगसिरं बूया । मुदितेसु पुस्सं वा सतविसयं वा 30 बूया । तत्थ असणोपलद्धीयं अदं वा पुव्वासाढा सतविसयं वा बूया । तत्थ सव्वपरिसप्पगते असिलेसं बूया । तत्थ कोसीधण्णगते विसाहं वा मिगसिरं वा बूया । तत्थ सव्वजोगगते कम्मोवलद्धीयं च मघा वा पुव्वफग्गुणीओ वा बूया । मतेसु पेतोवलद्धीयं मघा विण्णेया । सोभग्गीसोभिकोपचारेसु रूवोपजीविउवलद्धीसु य पुव्वाओ फग्गुणीओ १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ २ "पिउकज्जोप हं० त० ॥ ३ चेव हं० त० ॥ ४ ०८DO एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ५ वबीजंजीवगते हं० त० विना ॥ ६-७ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ८ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बापंचासइमो णक्खत्तविजयज्झाओ २०९ बूया । सव्वसिप्पिगते हत्थं बूया । चित्तेसु चित्तं बूया । सव्वमित्तगतेसु अणुराधं बूया । सव्वजलचरेसु अद्दा वा पुव्वासाढाओ वा सतविसयाओ वा बूया । तत्थ सव्वरुद्दगते सव्वरुद्दोपयुत्तेसु पादुब्धावेसु अद्दा, आवसंपयुत्तेसु पुरिमेसु पडिरूवेसु पुव्वासाढा, सुरालायुल्लोधिकमच्छकपादुब्भावेसु सतविसया बूया । तत्थ सव्वदव्वगते सव्वजलगते जमलाभरणकजमलोपकरणे मिधुणचरेसु सत्तेसु जमलणक्खत्ताणि बूया । सव्वगणितगतेसु सव्वजोगगते य सम (व) णो विणेयो । सव्वधण - घण्णगते धणिट्ठा विण्णेया । तत्थ पुरत्थिमेसु पुरत्थिमदाराणि बूया, दक्खिणेसु दक्खिणदाराणि बूया, पच्छिमेसु पच्छिमदाराणि बूया, उत्तरेसु उत्तरदाराणि बूया । पुण्णामेसु पुण्णामाणि बूया, थीणामेसु थीणामाणि बूया । अतिक्कंतेहिं अतिक्कंताणं जोगं बूया, अणागतेसु अणागताणि जोगे बूया, वत्तमाणेसु संपतिजोगवत्तमाणाणि बूया । उसुणेसु अग्गेयेसु स सूरियपादुब्भावेसु य आदिच्चगताणि बूया । उवद्दुतेसु सग्गहाणि बूया । अब्भंतरेसु जातिणक्खत्तं बूया । आदिमूलीएसु आदाणणक्खत्तं बूया । पुण्णामेसु कम्मणक्खत्तं बूया । बाहिरब्भंतरेसु मित्तसंबंधिणक्खत्तं बूया । बाहिरेसु परस्स णक्खत्तं बूया । पुण्णामेसु 10 पुरिसणक्खत्तं ब्रूया | थीणामेसु थीणक्खत्तं बूया । णपुंसएसु णपुंसकणक्खत्तं बूया । दढेसु णगरणक्खत्तं बूया । पुधूसु देवणक्खत्तं । डहरचलेसु गामणक्खत्तं बूया । डहरत्थावरेसु खेडणक्खत्तं बूया । सुक्केसु सुक्कपक्खे जुत्तं बूया । कण्हे कण्हपक्खे जुत्तं बूया । सुक्केसु अंतेसु पुण्णेसु य पुण्णिमासिणीय जुत्तं ति बूया । कण्हेसु अंतेसु तुच्छेसु चेव अमावस्साइ जुत्तं ति बूया । एवमाधारयितु काल-पक्ख - माण - जोगेसु-आमास - सह - रूवपादुब्भावेसु जधाणिद्दिट्ठाहिं उवलद्धीहिं णक्खत्ताणं 15 जोगकालं बूया । तत्थ कुलणक्खत्तं उपकुलणक्खत्तं ति आधारित अब्भंतरेसु कुलणक्खत्तं ति बूया, अब्भितरबाहिरे कुलोपकुलं विण्णेयं । चंदमग्गातो आधारितंसि कधं एतेसिं णक्खत्ताणं अट्ठावीसाए चंदो गच्छति ? एकविधं उत्तरेणं दक्खिणेणं वा दुविधं उत्तरतो पमद्दणेण वा दक्खिणतो पमद्दणेण व त्ति, तिविधजोएण वा केसं उत्तरतो दक्खिणतो पमद्दमाणो व त्ति । णक्खत्ते उप्पण्णंसि पडिरूवतो आमासतो वा दक्खिणुत्तरेहिं आमासेहिं असामण्णेहिं एकविधजोगी दक्खिणेहिं 20 दक्खिणतो चंदमसो गमणं बूया, उत्तरेहिं उत्तरेणं चंदमसो गमणं बूया । दुविधजोगीणि दक्खिणेसु मज्झिमसाधारणेसु उत्तरेहि य मज्झिमसाधारणेहिं आमासेहिं दुविधजोगीणिं णक्खत्ताणि बूया । दक्खिण- उत्तर - मज्झिमाणं आमासाणं तिहं पि सेवणाय तिविधजोगीणि णक्खत्ताणि बूया । एक्ककोदीरणेसु सद्द-रूवेसु एक्कविधजोगीणि बूया, दुगोदीरणे सहरूवेसु दुविधजोगीणि बूया, तिकोदीरणे सद्द-रूवेसु तिविधजोगीणि बूया । 5 तत्थ सव्वसव्वोवणक्खत्ताणं णिएण णक्खत्तेण णक्खत्तसंठाणेण णक्खत्तगोत्तेण णियएण णक्खत्तकम्मोपचारेण 25 णियएण णक्खत्तदेवएण णियएण णक्खत्तपडिरूवेणं णियएण णक्खत्तगोत्तेणं णियएणं णक्खत्तदेवताकम्मोवयारेणं चेव णक्खत्तं णामतो गोत्ततो संठाणतो कुलतो गणतो कम्मतो जोगा -ऽजोगतो चेव सव्वमणुगंतव्वं भवति ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय णक्खत्तविजयो णामाज्झायो वक्खातो भवति बापंचासतिमो 04 सम्मत्तो ० ॥ ५२ ॥ छ ॥ १ आपुस्संप हं० त० ॥ २ आमासेहिं हं० त० विना ॥ ३०० एतच्चिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ॥ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० अंगविज्जापइण्णयं [तिपंचासइमो उप्पातज्झाओ] 00000000 णमो भगवतो जसवतो महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय उप्पातणामज्झायो । तं खलु भो ! तमणुर्वक्खस्सामि । तं जधा-उद्धं णाभीय उद्धंभागेसु अन्तलिक्खगतं उप्पायं विज्जा । अधो णाभीयं अधोभागेसु भोम्म उप्पायं बूया । तत्थ अंतलिक्खेसु पुव्वाधारितेसु उप्पातेसु परिमंडलगतेसु 5चंदा-ऽऽदिच्चगतं उप्पायं ब्रूया । कण्हेसु धूमकेतु-राहुगतं उप्पायं बूया । दीहेसु बहस्सतिगतं उप्पायं बूया । अंतरेसु धूमकेतु-सुक्क-बुधगतं उप्पायं बूया । सुद्धसुक्केसु सुक्कगतं उप्पायं बूया । दसणीयेसु बुधगयं उप्पायं बूया । किलिडेसु धूमकेतुगतं उप्पायं बूया । 4 मैदेसु सणिच्छरगतं उप्पायं बूया । - थावरेसु बुध-सणिचर-बहस्सतिगतं उप्पायं बूया । चलेसु सुक्कमालोहित-धूमकेतु-राहुगतं उप्पातं बूया । अग्गेयेसु आदिच्चगतं, [उप्पायं बूया] । लोहितंके उक्कागतं उप्पायं बूया । कण्हेसु रत्तिगतं उप्पायं बूया । संधिसु संझागयं उप्पायं बूया । सुक्केसु आदिमूलीयेसु पुव्वण्हगतं 10 उप्पायं बूया । सुक्केसु मज्झिमविगाढेसु अद्धरत्तगतं उप्पायं बूया । सुक्केसु अंतेसु अवरण्हगतं उप्पायं बूया । कण्हेसु आदिमूलीयेसु पदोसगतं उप्पायं बूया । कण्हेसु मज्झिमविगाढेसु अद्धरत्तगतं उप्पायं बूया । कण्हेसु अंतेसु पच्चूसगतं उप्पायं बूया । अब्भंतरेसु अब्भंतरमग्गगतं उप्पायं बूया । बाहिरब्भंतरेसु सामेसु य मज्झिमवीधीगतं उप्पायं बूया । बाहिरेसु वेस्साणरपधगतं उप्पायं [बूया] । पुरथिमेसु पुरत्थिमायं दिसायं उप्पायं बूया । दक्खिणेसु गत्तेसु दक्खिणायं दिसायं उप्पायं बूया । पच्छिमेसु गत्तेसु पच्छिमायं दिसायं उप्पायं बूया । वामेसु गत्तेसु उत्तरायं दिसायं उप्पायं बूया । 15 णिद्धेसु उवरिट्ठिमेसु मेघगतं उप्पायं बूया । चलेसु पभागतेसु य विज्जुगतं उप्पायं बूया । फरुसेसु पंसुवुट्ठिगतं उप्पायं बूया । कण्हेसु धूमकोपेतं रत्तिगतं उप्पायं बूया । अग्गेयेसु दिसादाहगतं उप्पायं बूया । णिद्धेसु चलेसु वुट्ठिगतं उप्पायं बूया । णिद्धेसु चलेसु रत्तेसु य मंस-सोणितवुट्ठिगतं उप्पायं बूया । एवं पडिरूवोवलद्धीहि पत्तेकसो पत्तेकसो वुट्ठिउप्पाता तेल्ल-घत-दुद्ध-वसा-विच्छिक-सप्प-परिसप्प-कीङ-किविल्लगते वा उवलद्धव्वा भवंति । इति अंतलिक्खगता उप्पाता वक्खाता भवंति । 20 तत्थ भोम्मा उप्पाया भवंति माणुसा चतुप्पदा परिसप्पगता मच्छगता खुड्डसिरीसिवगता वणप्फतिगता गिरिणदि णगगता आयतण-उवकरण-सयणा-ऽऽसण-जाण-वाहण-भायणगता चेव भवंति । तत्थ केस-मंसु-लोमगते वणप्फतिगतं उप्पायं बूया । तत्थ अपत्ते काले पाणे वा भोयणे वा आभरणे वा हसिते वा भणिते वा गीते वा णट्टे वा वादिते वा अप्पत्तकाले पेक्खितम्मि वा चउप्पदे वा परिसप्पे वा सप्पे वा खुडुसिरीसिवे वा आहारे वा दंसणे वा पयाणे वा अपत्तकाले पुष्फ-फले उप्पातं बूया । तत्थ वणप्फतीसु एतेसु चेव अतिवत्तकालेसु एतेसु 25 चेव पुव्वदिद्वेसु पडिरूवेसु अतिवत्तकाले वणप्फतीगतं बूया । तत्थ पाण-भोयण-वत्था-ऽऽभरण-सयणा-ऽऽसण पुष्फ-फल-धण्ण-प्पकरण-विविधविवरीयदंसणे विगताभिरामे वा अभूतपुव्वपुप्फ-फलपादुब्भावे विगतरूववणप्फती उप्पायं बूया । तत्थ उद्धं गीवाय सिरोमुहामासे अंजलिकरणे एकंसाधारणे उप्पायणोमुंचणे णमोक्कार-वंदित-पूतियछत्त-भिंगार-लाउल्लोयिक-वासण-कडग-लोमहत्थ-उस्सय-समाय-महाभागगते चेव देवतागतं गहगतं उप्पायं ब्रूया । दढेसु पव्वत-गाम-दुग्ग-णगरगतं बूया । संखतेसु गामगतं उप्पायं बूया । अब्भंतरेसु वित्थडेसु णगरगतं उप्पातं बूया । 30 4G बाहिरेसु वित्थडेसु जणपदगयं उप्पायं बूया । उत्तमेसु उण्णएसु य पव्वतगयं उप्पायं बूया । दीहेसु णिद्धेसु य णदीगतं उप्पातं बूया । णिद्धेसु परिक्खेवेसु य समुद्दगतं उप्पायं बूया । G निद्धेसु सण्णिरुद्धेसु कूवगयं उप्पायं बूया । ॐ चलेसु पाणजोणीगते 6 सव्वपाणजोणीगए क सव्वपाणजोणीउवकरणे चेव पाणजोणीगतं बूया । १ "प्यायणा णामा हं० त० ॥ २ 'वक्खाइस्सा सं ३ पु० । वक्खयिस्सा सि० ॥ ३ 40 एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ४ 'करणे एकंसाकरणे उपाहणोधुवणे णमो सि० । "करणे उपायणोउंधणे णमो हं० त० ॥ ५-६-७ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउपण्णासइमो सारासारज्झाओ २११ उज्जुभागेसु मणुस्सजोणीगतं उप्पायं बूया । तं (ति) ज्जंभागेसु तिरिक्खजोणीगतं उप्पायं बूया । Do सव्वचउप्पदेसु य चउरस्सेयु य चउक्सु चतुप्पदोपकरणे चतुप्पदणामधेज्जे थी - पुरिसउवकरणगते चतुप्पयगतं उप्पायं बूया । तत्थ उद्धंभागेसु चलेसु य सव्वपक्खिगते उवकरणे पक्खिउवकरणेसु पक्खिणामधेज्जे थी - पुरिसउवकरणगते पक्खिगतं उप्पायं बूया । तत्थ दीहेसु कण्हेसु सव्वपरिसप्पोवकरणे परिसप्पणामधेज्जथी - पुरिसेउवकरणगते चेव परिसप्पगतं उप्पायं बूया । णिद्धेसु सव्वजलचरेसु सव्वमच्छेसु सव्वजलेसु थी - पुरिसउवकरणगते चेव मच्छगतं बूया । सव्वबीयगते कीडकिविल्लगगए 5 कीडकिविल्लगगतं उप्पायं बूया । तत्थ बालेयेसु पजातं उप्पायं बूया । तत्थ छिण्ण- भिण्ण- कोहेंतसद्दे पासाद-गोपुरऽट्टालग—इंदधय-तोरणगतं वा उप्पायं बूया । अग्गेयेसु पागार - गोपुर - ऽट्टालग कोट्ठागारौ -ऽऽयुधाकार - आयतण - चेतिएँसु अग्गि-जलण-धूमपादुब्भावेण विज्जुपतणगतं उप्पातं बूया । णिद्धेसु उदकवाहेक अणादके उदकपादुब्भावेण अपवातकअकाल अनंत अणंततिमिरपादुब्भावेणं वा बूया । पुधूसु अज्जीवेसु सव्वभायणपडिरूवगयं चेव भायणगतं उप्पातं बूया । जाणेसु सव्वजाणोपलद्धीयं जाणगतं उप्पायं बूया । किसेसु वत्थ - परिच्छदगतं उप्पायं बूया । थूलेसु थलगतं 10 वा पल्लेकगतं वा उपायं उट्टिकगतं अरंजरगतं वा बूया । सामेसु सव्वआभरणगते य आभरणगतं उप्पायं ब्रूया । तिक्खेसु सव्वसत्थगते चेव सत्थगतं उप्पातं बूया । अब्भंतरेसु णगरगतं उप्पायं बूया । अब्भंतरब्धंतरेसु अंतेपुरगतं उप्पायं ब्रूया । बाहिरब्भंतरेसु बाहिरिकागतं उप्पायं बूया । बाहिरेसु जणपदगतं उप्पायं बूया । गहणेसु उप्पायं ब्रूया । उवग्गहणेसु आरामगतं उप्पायं बूया । एवं आमास - सद्द - रूव-रस-गंध-फासपाउब्भावेसु अंतलिक्खभोम्मा चउव्विधो उप्पातो आधारयित्ता आधारयित्ता यधुत्ताहिं उवलद्धीहिं उवलद्धव्वो भवति ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय उप्पातो णामाज्झायो तिपण्णासतिमो सम्मत्तो ॥ ५३ ॥ छ ॥ [ चउपण्णासइमो सारासारज्झाओ ] णमो भगवतो जसवतो महापुरिसस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जायँ सारासारो णामाज्झायो । तं खलु भो ! तमणुवक्खायिस्सामि । तं जधा - तत्थ अत्थि सारो णत्थि सारो त्ति पुव्वमाधारयितव्वं 20 भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे पुण्णामधेज्जामासे सारवंतो त्ति बूया । तत्थ बाहिरामासे चलामासे लुक्खामासे कण्हामासे तुच्छामासे णपुंसकामासे असारवंतो त्ति बूया । 15 तत्थ सारगते पुव्वाधारिते सारं चतुव्विधमाधारये - धणसारं १ मित्तसारं २ इस्सरियसारं ३ विज्जासारमिति ४ । तत्थ अब्धंतरेसु धणमंतेसु य धणसारं बूया १ । तत्थ महापरिग्गहेसु सव्वमित्तगते य मित्तसारं बूया २ । तत्थ सव्वइस्सरियगए सव्वरायगए सव्वविजयगए य इस्सरियसारं बूया ३ । तत्थ बुद्धिरमणेसु सव्वसत्थबुद्धिगते य 25 विज्जासारं बूया ४ । तत्थ उत्तमेसु उत्तमो धणसारो वा मित्तसारो वा इस्सरियसारो वा 4 विज्जासारो वा Do विष्णेयो । मैज्झिमेसु मज्झिमो धणसारो वा मित्तसारो वा इस्सरियसारो वा 01 विज्जासारो वा Do विणेयो । मज्झिमाणंतरेसु मज्झिमाणंतरो धणसारो वा मित्तसारो वा इस्सरियसारो वा विज्जासारो वा विण्णेयो । तत्थ पच्चवरे पच्चवरो धणसारो वा मित्तसारो वा इस्सरियसारो वा विज्जासारो वा विण्णेयो । अंग० १९ १ ० ० एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ २ सगते उवकरणे गते हं० त० विना ॥ ३ 'रायमकाराआववणचेति हं० त० विना ॥ ४ एसु वण्णजलण सि० । एसु थीयजलण सं ३ पु० ॥ ५ 'हकं अणोद' हं० त० ॥ ६ बाहिरगतं हं० त० ॥ ७ य सारो णामा हं० त० ॥ ८ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ९० bo एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ १० हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ११०० एतच्चिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० नास्ति ॥ १२ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ अंगविज्जापइण्णयं तत्थ धणसारो भूमीगतो खेत्तगतो आरामगतो < गामगतो णगरगतो त्ति भूमीगतो एस सारो पुव्वमाधारयितव्वो भवति । तत्थ महावकासेसु अवत्तेसु भूमीसारो विण्णेयो। तत्थ सयणा-5ऽसण-पाण-भोयण-वत्था-5ऽभरणगते गिहसारं बया । तत्थ चतरस्सेस खेत्तसारं बया । उवग्गहणेस आरामसारं बुया । रायगते विजयगते अव्वत्ते गामसारं बूया। रायगते विजयगते अव्वत्ते णगरसारं बूया । एतेसामेव जमकोदीरणे रज्जसारं बूया । इति भूमीगतो धणसारो 5विण्णेयो । तत्थ पाणसारो धणसारो दुविधो आधारयितव्वो भवति-मणुस्ससारो १ तिरिक्खजोणियसारो चेव २ । तत्थ सव्वसज्जीवगते पाणसारं बूया । तत्थ उज्जुभागेसु सव्वमणुस्सगते य मणुस्ससद्द-रूवपादुब्भावेसु य मणुस्ससारं बूया । तत्थ तिरियामासे सव्वतिरियजोणिगते सव्वतिरिक्खजोणियसद्द-रूवपादुब्भावे तिरिक्खजोणिगतं सारं बूया । तत्थ तिरिक्खजोणियगतो सारो णातव्वो भवति-अस्सा हत्थी गो-महिसं अयेलकं खरोट्टमिति विण्णेयं । तत्थ 10 सव्वसिंगिगते सिंगिपडिरूव-सद्दपादुब्भावे हत्थि-गो-माहिसं अयेलकमिति विण्णेयं भवति । तत्थ तिणभोयिसु तिणभोयी विण्णेया । मंस-रुधिरभोयीसु हत्थी विण्णेया । कण्हेसु हत्थी वा मासा वा विण्णेया । खत्तिसु हत्थी वा अस्सा वा पसू वा विण्णेया । सेतेसु खरा विण्णेया । सामेसु उट्टा विण्णेया । गहणेसु अयेलकं विण्णेयं । उपग्गहणेसु अस्सा गो-माहिसं उट्ट-खरे बूया । आकासेसु अगहणेसु य कायवंतेस हत्थी विण्णेया । मज्झिमकायेसु अस्सा गोमाहिसा उट्टा य विण्णेया । मज्झिमाणंतरकायेसु खरा विण्णेया । पच्चवरकायेसु अयेलका विण्णेया । इति तिरिक्खजोणिगतो 15 मणुस्सगतो दुपद-चतुप्पदगतो पाणसारो विण्णेयो भवति । तत्थ धणसारो अज्जीवो सज्जीवो य दुविधो विण्णेयो । वित्थरतो एक्का(बा)रसविधो भवति-वित्तसारो १ सुवण्णसारो २ रुप्पसारो ३ मणिसारो ४ मुत्तासारो ५ वत्थसारो ६ आभरणसारो ७ सयणासणसारो ८ भायणसारो ९ दव्वोपकरणसारो १० अब्भुपेहज्जसारो ११ धण(ण्ण)सारो १२ । इति धणसारो विण्णेयो । तत्थ सव्वसंघातेसु वित्तेसु चतुरस्सेसु य काहावणसारो विण्णेयो भवति १ । पीतकेसु तंबेसु य सुवण्णसारो विण्णेयो २ । सेतेसु अग्गेयेसु 20 य रुप्पसारो विण्णेयो ३ । अणग्गेयेसु मणिसारो विण्णेयो ४ । आपुणेयेसु मुत्तासारो विण्णेयो ५ । किसेसु वित्थतेसु पुधूसु य सव्ववत्थगते सव्वतंतुगते चेव वत्थसारो विण्णेयो ६ । सामेसु सव्वआभरणगते य आभरणसारो विण्णेयो ७ । चतुरस्सेसु कडीयं च आसणसारो विण्णेयो, पढेसु (वट्टेसु) सव्वसत्तेसु य सयणसारो विण्णेयो ८ । पुधूसु सव्वभायणपडिरूवगते य भायणसारो विण्णेयो ९ । हत्थ-पादपरामासे सव्वसिप्पिकगते य उवकरणगते य उवकरणसारो विण्णेयो १० । आहारेसु सव्वेसु अब्भुपहज्जेसु सद्द-रूवेसु य अब्भुपहज्जाणं अब्भुपहज्जसारो विण्णेयो ११ । 25 अणूसु सव्वधण्णगते य धण्णसारो विण्णेयो १२ । चलेसु पाद-जंघे य जाणसारो विण्णेयो । इति धण्ण(ण)सारो सज्जीवो अज्जीवो य दुविधो विण्णेयो एक्कारसविधो (बारसविधो) वित्थरेण वक्खातो भवति । तत्थ मित्तसारो पंचविधो आधारयितव्वो भवति । तं जधा-संबंधिसु १ मित्ताणि २ वयस्सा ३ थिया ४ कम्मकर-भिच्चवग्गे ५ चेति । तत्थ अब्भंतरभंतरेसु सव्वसंबंधिगते य संबंधिणो विण्णेयो(या) १ । बाहिरब्भंतरेसु सामेसु य मित्ता विण्णेया २ । सामेसु वयस्सा विण्णेया ३ । थीणामेसु थिया विण्णेया ४ । पेस्सेसु अंतेवासी विण्णेया, बाहिरेसु 30 बाहिरो कम्मकर-भिच्चवग्गो त्ति विण्णेयो ५ । तत्थ थीसु पुव्वाधारितासु समागमेसु भज्जावग्गो विण्णेयो । सामेसु गमेसु अंतेसु सहिवग्गो विण्णेयो । पच्चवरकायेसु दासिवग्गो कम्मकरवग्गो त्ति वा विण्णेयो । तत्थ भज्जासु पुव्वाधारितासु बालेयेसु थणेसु य कोमारीणं भज्जाणं सारं बूया । चलेसु पुणब्भवाणं भज्जाणं सारं बूया । तत्थ पुरिसेसु संबंधिसु य १४ एतच्चिान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ २ "माहारियव्वो हं० त० ॥ ३ हत्थ सप्र० ॥ ४ वा मसा हं० त० ॥ ५ "पहेज्ज हं० त० विना ॥ ६ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१३ पणपण्णासइमो णिधाणज्झाओ पुव्वाधारितेसु य सव्वप्पसूतेसु पुप्फ-फलेसु पुरिसेसु य पुत्तसारं बूया । एतेसु चेव थीणामेसु कण्णेयेसु कण्णासारं बूया । इति मित्तसारो विण्णेयो भवति । तत्थ इस्सरियसारे पुव्वाधारिते इस्सरियसारं दुविधं आधारए-अव्वत्तं सुव्वत्तं चेति । तत्थ सुव्वत्तो अधिकरणं णायकत्तं अमच्चत्तं रौयत्तं वेति । तत्थ अव्वत्ते इस्सरियसारे पेस्साणं रायपुरिसस्स य पेस्सत्तं बूया । तत्थ अव्वत्सु पच्चवरकायेसु चेव संसयं मज्झिमाणंतरेसु पेस्साणं रायपुरिसस्स णिस्सियं इस्सरियसारं बूया । मज्झिमकायेसु थाणप्पत्तं 5 अधिकरणत्थं बूया । कायमंतेसु सेणापतिं वा अमच्चं वा णायकं वा बूया । एतेसु चेव आहारेसु रायिणं बूया । धुत्ताहि यथाणज्झाये थाणोवलद्धीहिं इस्सरियसारं बूया । इति इस्सरियसारो विण्णेयो । तत्थ विज्जासारे पुव्वाधारिते सव्वबुद्धिरमणेसु सव्वविज्जासत्थगते य पडिव - सद्दपादुब्भावेसु चेव विष्णेयाणं सत्थाणं वा विज्जासारं बूया । तत्थ कायमंतेसु विज्जासारं गतं बूया । मज्झिमकायेसु उत्तमाणंतरेसु य विज्जाविस्सुयं बूया । मज्झिमेसु मज्झिमं बूया । मज्झिमाणंतरकायेसु मज्झिमजहण्णसारेसु य असमत्तविज्जं बूया । पच्चवरकायेसु 10 जहण्णेसु य विज्जाविलंबितं बूया, विज्जाछित्तं वा बूया । इति विज्जासारो विण्णेयो || ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाए अंगविज्जाए [ सारा ] सारो णामाज्झातो वक्खातो चउपन्नासतिमो सम्मत्तो ॥ ५४ ॥ छ ॥ [ पणपण्णासइमो णिधाणज्झाओ ] णमो भगवतो जसवतो महापुरिसस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय णिधाणं 15 णामाज्झायं । तं खलुं वक्खायिस्सामि । तं जधा-तेत्थ अत्थि णिहाणं णत्थि णिहाणं ति पुव्वमाहारयियव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे अत्थि णिहाणं ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे कण्हामासे तुच्छामासे अत्थि ( णत्थि ) णिहाणं ति बूया । तत्थ अत्थि णिधितं ति पुव्वमाधारिते णिधितमद्वविधमादिसे । तं जधा - भिण्णसतपमाणं भिण्णसहस्सपमाणं सैयसहस्सपमाणं कोडिपमाणं अपरिमियपमाणमिति । कायमंतेसु उम्मट्ठेसु अपरिमियणिहाणं बूया । 20 अपुण्णामेसु अब्धंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे य समं बूया । भिण्णे दसक्खे पुब्बांधारिते दो वा चत्तारि वा अट्ठ वा बूया । समे पुव्वाधारिते दसक्खे वीसं वा [ चत्तालीसं वा] सट्ठि वा असीति वा बूया । वीसासु समासु पुव्वाधारितासु दो वा चत्तारि वा छ वा अट्ठ वा सताणि बूया । तधा सहस्साणि तधा सयसहस्साणि तधा कोडीओ तधा अपरिमिते एतेण बीयगमेण दसक्खभिण्णादी जाव अपरिमितो त्ति सव्वं समे आधारित समणुगंतव्वं भवति । तत्थ थीणामेसु चलेसु लुक्खेसु बज्झेसु सुक्केसु णीहारेसु समग्गेसु चेव सद्द - रूवपादुब्भावेसु विसमोपलद्धीसु 25 चेव विसमं बूया । तत्थ भिण्णे दसक्खे विसमे पुव्वाधारिते एक्कं वा तिण्णि वा पंच वा सत्त वा णव वा बूया । दसक्खे पुव्वाधारित दस वा तीसं वा पण्णासं वा सत्तरिं वा णउतिं वा बूया । एवं भिण्णसत्तप्पमाणे विगले दसक्खेसु पुव्वाधारितेसु सव्वमणुगंतव्वं भवति । तत्थ सतप्पमाणे विगले पुव्वमाधारिते सयं वा तिण्णि वा सताणि च वा सताणि ष्∞ सत्त वा सयाणि णव वा सयाणि बूया । एवं भिण्णसहस्सप्पमाणविगलेसु एतेसु पुव्वाधारितेसु समणुगंतव्वं १ रायितं हं० त० ॥ २-३ हस्तचिह्नन्तर्गतः पाठसन्दर्भ: हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ तत्थ पु सि० ॥ ५ वीयरागेण हं० त० ॥ ६० एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ For Private Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ अंगविज्जापइण्णयं भवति । एवं विगलसहस्सप्पमाणं भिण्णसहस्सप्पमाणं भिण्णसतसहस्सप्पमाणं भिण्णकोडीप्पमाणं अपरिमितं च विगलप्पमाणं एतेण कमेण जधुत्ताहि उवलद्धीहि उवलब्भ सव्वमेव विगलप्पमाणं समणुगंतव्वं भवति । तत्थ कंसि देसंसि णिधाणं पुव्वमाधारितं ? ति इमाहि उवलद्धीहि समणुगंतव्वं भवति-तत्थ उल्लोगिते पासायगतं बूया मालगतं वा पट्टीवंसगतं वा आलग्ग[गतं] वा पागारगतं वा गोपुरगतं वा 6 अट्टालगयं वा रुक्खगतं 5 वा ब पव्वतगतं वा बूया । तत्थ असंखयेसु रुक्खगतं वा पव्वतगयं वा बूया । संखतेसु आमास-सद्द-पडिरूवपादुब्भावेसु अवसेसाणि बूया । तत्थ सव्वजोधगते सव्वरायगतेसु य पागार-गोपुर-ऽट्टालक-धयगतं बूया । णिग्गमपधेसु बारगयं बूया । सण्णिरुद्धेसु पागारगतं बूया । पविढेसु अट्टालगगतं बूया । सयणासणे उवविठ्ठ-संविढेसु पासातगतं बूया । सव्वदिव्वजोणिगते देवतायतणगतं बूया । केस-मंसु-सव्वमूलगते य गिहणिस्सितं बूया । णिद्धेसु कूविअणिधितं बूया । गंभीरेसु कूवियणिधितं बूया । उपद्रुतेसु उट्ठितपढे रण्णे वा णिधितं बूया । गहणेसु गहणंसि अरण्णगतं णिधितं 10 बूया । उवग्गहणेसु आरामगतं णिधितं बूया । आकासेसु आकासे णिधितं बूया । गहणाणं आकासाण य समामासे जणपदगतं वा अरण्णाणं वा सीमंतिकासु वा G आरामसीमंतिकासु वा ॐ णिधितं बूया । चतुरस्सेसु संकद्वेसु खेत्तगतं णिधितं बूया । इति थावराणि णिधिताणि बूया । अब्भंतरेसु गत्तेसु दीहेसु रच्छागतं णिधितं [बूया] । परिमंडलेसु णिवेसणंसि णिधितं बूया । पुरिमेसु रायमग्गे णिधितं बूया । कायमंतेसु रायमग्गे णिधितं बूया । मज्झिमकायेसु रायमग्गसमासु रच्छासु णिधितं बूया । मज्झिमाणंतरकायेसु खुडिकासु रच्छासु णिधितं बूया । पच्चंवरकायेसु णिक्कुडरच्छासु 15 णिधितं बूया । अब्भंतरब्भंतरेसु अब्भंतरमंतरे णिवेसणे णिधितं बूया । मत्थकेसु मालगतं बूया । कण्हेसु आलग्गगतं बूया । उद्धेसु कुड्डगतं बूया । केसेसु णिव्वगतं [बूया] । णासायं णत्थणपोरुसे वा पणालीगतं बूया । अंतेसु गंभीरेसु कुपी[ग]यं ति बूया । पालुम्मि ढुंढेसु य वच्चाडगतं ति बूया । उदरे मुखे वा गब्भगिहगतं [बूया] । पुरत्थिमेसु अंगणगतं बूया । पेच्छिमेसु पच्छावत्थुगतं बूया । Do कंसि भायणंसि पुव्वमाधारियंसि?-तत्थ मूलजोणिगते कट्ठभायणगतं बूया । धातुजोणीयं सारमंतेसु य लोहीगतं 20 वा कडाहगतं वा अरंजरगतं वा कुंडगतं वा उक्खलिगतं वा रकिगतं वा लोहीवारगतं वा बूया । तत्थ महावकासेसु उट्टिकं वा लोहि वा कडाहकं वा बूया । मज्झिमकायेसु कुंडगतं वा उक्खलिगतं वा वारगतं वा लोहवारगतं वा बूया । पच्चवरकायेसु आयमणी वा सत्थिआयमणी वा चरुकगतं वा ककुलुंडिगतं वा णिधाणं बूया । एतेसामेव तिण्हं सण्णिधाणाणं दढामासेसु तत्थ तिविधं पि य भायणं बूया । तत्थ पडिरूवेहिं आमासेहि य मूलजोणी-धातु जोणीउवलद्धीहिं संठाणेहि य भायणगतं बूया । वित्थडेसु भूमीयं णिधितं बूया । तत्थ ओमज्जितेसु अणाहारेसु अण्णेहिं 25 हरितं णिधियं बूया । ठितामासेसु पच्छा णीहारेसु णिधिट्ठाणा विप्पणटुं बूया । केवलणीहारेसु णत्थि णिधितं ति बूया । अब्भंतरामासे दैढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पप्पे णिधितं ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे लुक्खामासे कण्णामासे अपप्पे णिधितं ति बूया । सुभा-ऽसुभेसु पत्तं णिधि अण्णेहिं हरितं ति बूया । असुभेसु पुव्वपादुब्भावेसु पच्छा सुभेसु पुव्वमपरिकिट्ठो णारासो पाविहिसि णिधि ति बूया । एवं गणणापरिसंखाय देस-भागोवलद्धीहिं भाजणोपलद्धीयं दिसाउवलद्धीयं अप्पणीयक-परातकोपलद्धीहिं लंभ-विप्पणास–ण?-पडिलंभोपलद्धीहि य आमास-सद्द-रूवपादुब्भावेहि 30 सव्वं समणुगंतव्वं भवति ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय णिधाणो णामाज्झातो वक्खातो भवति पणपण्णासतिमो सम्मत्तो ॥ ५५ ॥ छ । १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ २ "ढाणं सं हं० त० ॥ ३ समासेण जण हं० त० ॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ५ खंडिकासु हं० त० विना ॥ ६ णिद्धगतं हं० त० ॥ ७ "लीसगतं हं० त० विना ॥ ८ दुखेसु हं० त० विना ॥ ९ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छप्पण्णासइमो णिव्विसुत्तज्झाओ [ छप्पण्णासइमो णिव्विसुत्तज्झाओ ] णमो भवगतो जसवतो महापुरिसस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय णिव्विसुत्तं णामाज्झायं । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामि । तं जधा - तत्थ अत्थि बद्धं णत्थि बद्धं ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे उल्लोगिते ओहसिते माता- पितिसद्द - रूवपादुब्भावे उक्कुट्ठे अप्फोडिते णवपुण्णामपहट्ठे-तुट्ठ पच्चुदग्गे पुष्फे फले वा उवलद्ध - संत - अत्थिसद्दपादुब्भावे अत्थि बद्धं ति बूया । तत्थ बज्झामासे चलामासे उक्कासि 5 खुधिते णिम्मज्जिते णिल्लिखितें पकुट्ठे पम्मुए अवमट्ठे अवलोयिते ओलोगिते ओसारिते अणुदत्ते अपच्चुदग्गे अपहट्टे पुष्फे फले वा पादुब्भूते एवंविधे वा पंडिरूव - सद्दपादुब्भावे आवरण - असंत - णत्थिसद्द पाउब्भावे णत्थि बद्धं ति बूया । तत्थ बद्धे पुव्वाधारिते बद्धं तिविधमाधारये - पाणजोणीगतं १ मूलजोणीगतं २ धातुजोणीगतं ३ । तत्थ जधुत्ताहि पाणजोणी - मूलजोणी - धातुजोणीउवलद्धीहि पाणजोणी य [ मूलजोणी य] धातुजोणी य उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ पाणजोणीगते पुव्वाधारिते मुत्तिकं संखभंडं गवलभंडं वालमयं दंतमयं अट्टिकमयमिति उवलद्धव्वं भवति । 10 एताणि सव्वाणि आधारयित्ता पत्तेगं जधुत्ताहि उवलद्धीहि o आमास-सद्द - रूवोपलद्धीहि उवलद्धव्वाणि भवंति । २१५ मूलजोणीगते पुव्वाधारिते तं चतुव्विधमाधारये - मूलगतं खंधगतं अग्गगतं पत्तगतमिति फलगतमिति । एतं एवमादि चतुव्विधं मूलजोणीगतं जधुत्ताहि उवलद्धीहिं पत्तेकसो पत्तेकसो आधारयित्ता आधारयित्ता सव्वं समणुगंतव्वं भवति । तत्थ धातुजोणिगते पुव्वाधारिते तं दुविधामाधारये - मणिधातुगतं चेव 01 लोहधातुगतं चेव । Do तत्थ सव्वलोहधातुपडिरूवेण तस्सद्दपादुब्भावेण चेव लोहधातुगतं उवलद्धव्वं भवति । तत्थ सव्वमणिधातुपडिरूवेण सव्वमणिधातुगतं 15 उवलद्धव्वं भवति । पुणरवि धातुगतं दुविधमाधारयितव्वं भवति - अग्गेयमणग्गेयं चेति । दुविधमवि जधुत्ताहि उवलद्धीहिं उवलद्धव्वं भवति तत्थ अग्गेयाणि सव्वलोहगयाणि लोहियक्खो पुलओ गोमेदओ मसारगल्लो खारमणी चेव, अवसेसाणि धातु अणग्गेयेसु उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ जधुत्ताहि उवलद्धीहिं सव्वलोहाइं सव्वमणीसु य उवलद्धव्वाणि भवं । तत्थ घट्ठेसु मणिं वा संखभंडं वा पवालयं वा बूया । ओमत्थिते पर (रि) मत्थिते सव्वर्विद्धपडिरूवे य विद्धभंडं बूया । मुत्ताओ य आधायितेण अविद्धभंडं बूया । तत्थ सामेसु सव्वाभरणगते चेव आभरणगतं बूया । तत्थ कोडिते खोडिते 20 दंतणहे अंजण-पासाण - सक्करा - लेडुक - ढेल्लिया - मच्छक - फल्लादिसु सव्वकढिणगते सव्वेकडगए सव्वचुण्णगते सव्वैधणपडिरूववकरणगते चेव घेणं बूया । उद्धं णाभीय काहावणे बूया । अधो णाभीय णाणकं बूया । तथ अब्भंतरामासे सव्वसारगते सव्वकाहावणोपकरणगते य काहावणे बूया । तत्थ काहावणेसु पुव्वाधारितेसु उत्तमेसु उत्तमयत्तिए बूया, मज्झिमेसु मज्झिमयत्तिए बूया, जहण्णेसु जहण्णयत्तिए बूया, साधारणेसु उत्तममज्झिमजर्हण्णेसु साधारणयत्तिए बूया, आदिमूलेसु पुराणे बूया, बालेसु णवाए बूया । तत्थ बज्झामासेसु असारगते य सव्वणाणकपडिरूवगते य णाणकं 25 बूया । तत्थ णाणए पुव्वाधारिते कायमंतेसु सव्वमासकपडिरूवगते य मासए बूया, मज्झिमकाएसु अद्धमासकपडिरूव— सद्दपादुब्भावे य अद्धमासए बूया, मज्झिमाणंतरकारसु सव्वकाकणिपडिरूवगते य काकणि बूया, पच्चवरकाएसु सव्वअट्ठपडिरूवगते य अट्ठातो बूया । तत्थ अब्भंतरेसु छेए बूया, बाहिरब्धंतरे पत्तेये बूया, बाहिरेसु बाहिराहियं बूया, कण्हेसु लोहं बूया, फालितेसु गाढं बूया, दढेसु सारमंते बूया, चलेसु अप्पसारं बूया, चतुरस्सेसु चतुरस्सं बूया, वट्टे वट्टं बूया, लेहागते लेहागतं चित्तं बूया, सण्हेसु अप्पलक्खणं बूया, थलेसु उत्ताणलक्खणं बूया, उविद्धेसु 30 उविद्धलक्खणं बूया एतेसु अक्खठाणाणि भवंति । १ ते पम्हुत्ते अव हं० त० ॥ २ पादुब्भावे एवं हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ - ५ एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ६-७-८ विट्ठभं हं० त० ॥ ९ व्वडंकग हं० त० सि० ॥ १० 'व्ववण्णप हं० त० । व्वण्णप सि० ॥ ११ वण्णं हं० त० ॥ १२ 'हण्णसाधा हं० त० ॥ १३ सु यत्तिये बूया, बाहिरबाहिरे हतं बूया, हं० त० विना ॥ १४ अप्पासा हं० त० विना ॥ For Private Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ अंगविज्जापइण्णयं एत्थं एक्कक्केसु गत्तेसु एक्काभरणे एक्कोपकरणे एक्कचरेसु सत्तेसु एक्कवीणियं एक्वंगुलिग्गहणे एक्कसाहागते य एक्कं बूया । तत्थ दंडेसु गत्तेसु जमलाभरणे जमलोवकरणे मिधुणचरेसु सत्तेसु बिअंगुलिग्गहणे बिसाहागते सव्वबिगपडिरूवगते .य दुवे बूया । तत्थ तिए भमुहासंगयए णासाचूलायं पोरिसे तियंगुलिग्गहणे सव्वतियपडिरूव-सद्दपादुब्भावे य तिण्णि बूया । तत्थ चतुरस्सेसु चतुक्केसु सव्वचतुप्पदेसु चतुरंगुलिग्गहणे पादतल-पाणितलेसु सव्वचतुसाहागते सव्वचतुक्कपडिरूवे 5य चत्तारि बूया । तत्थ दंतेसु थणेसु अंसे मुट्ठीकरणे फियग्गहणे पंचकपरामासे पंचकपडिरूवेसु य पंच बूया । तत्थ गंडे मणिबंधणे गोप्फासु छक्कपडिरूवे य छ बूया । तत्थ सोणीयं कण्णेसु पस्सेसु कुक्खीसु य सत्तकपडिरूवे य सत्तकं बूया । तत्थ णिडाले कण्हे उरमज्झे हिदए णाभीयं अट्ठकपडिरूवे य अट्ठकं बूया । तत्थ चतुक्क-पंचकपरामासे एक्कके अट्ठगसहिए बिए सत्तगसहिए तिए छक्कगसहिते णवगपडिरूव-सद्दपादुब्भावे य णव बूया। तत्थ पंचगदंडोदीरणे पंचकजुवलकपरामासे एक्कए णवकसहिते बिए अट्ठगसहिते चउक्के छक्कगसहिते दस बूया। एवं एक्कारसकसहिते बारसक10 तेरसक-चोद्दसक-पण्णरसक-सोलसक-सत्तरसक-अट्ठारसक-एकूणवीसाका वग्गा आमास-पडिरूवसंजोगेहिं पडिरूव सद्द-आकारपादुब्भावेहि य एक्कुत्तरवड्डीय णेतव्वा भवंति । तत्थ अंसफलए कोप्परे जण्णूसु वीसं बूया । तूरुमज्झे पणुवीसं बूया । पट्ठीयं तीसं बूया । अंतरोदरेण पणतीसं बूया । णाभीयं चत्तालीसं बूया । उपरि णाभीयं पणतालीसं बूया । उवरि णाभीयं अंगुलेसु पण्णासं बूया । हेट्ठा हितयस्स पंचावण्णं बूया । हियए सर्ट्सि बूया । उवरिं हिययस्स पंचसट्टि बूया । अक्खए सत्तरि बूया । गीवामज्झे पण्णत्तरं बूया । हणु-कवोले असीति बूया । उत्तरोटे पंचासीति 15 बूया । भमूसु णउति बूया । णिडाले पंचाणउति बूया । सीसे सतं. बूया । बाहुमज्झे उरमज्झे य तीससयं बूया । तालुये जिब्भायं वासंते मुहे त्ति सहस्सं बूया । गीते विप्पेक्खिते विजंभिते सहस्समेतं बूया । पुव्वदिद्वेण चेव कमेण अक्खट्ठाणाणि यधुद्दिट्ठाणि एकुत्तरियाय वड्डीय समत्त-भिण्णोवलद्धीहिं चेव आधारयित्ता आधारयित्ता काहावणा . णाणकोवलद्धीओ य आमास-पडिरूवसंजोगोपलद्धीहि आकार-सण्णा-सद्द-रूवपादुब्भावेहिं सव्वं समणुगतव्वं भवति । तत्थ 'कंसि बद्धं ?' पुव्वमाधारिते णासायं थणेसु पोरिसे त्ति थविकाय त्ति बूया । मुखे पिटुंते णाभीयं 20 अक्खीसु त्ति चम्मकोसगतं बूया । अवहत्थेसु कुक्खीसु त्ति पोट्टलिकागतं बूया । दढेसु बद्धं बूया । चलेसु सुक्कं बूया। ओवेढिय-परिवेढिते अट्टियगतं बूया । केस-मंसुगते सुत्तबद्धं बूया । अंगुलीसु चक्कबद्धं बूया । तणूसु हेतिबद्धं बूया । अब्भंतरेसु सकं बूया । बाहिरेसु परकं बूया । बाहिरब्भंतरेसु सक-परक्कसाधारणं बूया । कायमंतेसु सुवण्णप्पमाणं बूया । मज्झिमकायेसु अट्ठसुवण्णप्पमाणं बूया । मज्झिमाणंतरकायेसु सुवण्णमासकप्पमाणं बूया । पर सुवण्णकाकणि बूया । अब्भंतरेसु पलप्पमाणं बूया । बाहिरब्भंतरेसु भिण्णपलप्पमाणं बूया । अणिव्वुतेसु अपरिणिव्वुर्ति 25 बूया । G णिव्वुएसु णिव्वुयं बूया । णिव्वु(व्वि)एसु णिब्वियं बूया । 0 आहारेसु अचिरलद्धं बूया । णीहारेसु वयगयं बूया । थीणामेसु अद्धद्धितमेव बूया ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय णिब्विसुत्तो णामाज्झायो वक्खातो भवति छप्पण्णासतिमो ॥ ५६ ॥ छ । १ एक ए हं० त० ॥ २ णासाभूयालं पो हं० त० ॥ ३ पुवुद्दिद्वेण हं० त० ॥ ४ चविकाय हं० त० ॥ ५ ओवेट्ठित-परिवेट्ठिते उअट्टि हं० त० विना ॥ ६ अणिजुत्तेसु अपरिणिव्वुति सं ३ पु० । अणिव्वएसु अपरिणिव्वयं हं० त० ॥ ७ हस्तचिह्नन्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ८ “सु चय' हं० त० ॥ ९ अद्धद्दियं मेयं बू हं० त० ॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७ सत्सपण्णासइमो णट्ठकोसयज्झायो [सत्तपण्णासइमो णटुकोसयज्झायो] . 000000000 णमो भगवतो यसवतो महापुरिसस्स वद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाए णट्ठाणट्ठो णामाज्झायो। तं खलु भो ! तमणुवक्खाइस्सामि । तत्थ णटुं ण णमिति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थे णेत्तपडिप्पिधणे सोत्तपडिप्पिधणे पाणपडिप्पिधणे पुहपडिप्पिधणे अट्ठाणपडिप्पिधणे छिद्दपडिप्पिधणे बज्झामासे चलामासे अणामिकागहणे पल्लत्थे पसंखित्ते मुत्ते पकिण्णे णिक्खित्ते उवादिण्णे बद्धमुत्ते अवसक्किते अवणामिते विणासिते ण?- 5 हरियसद्दपादुब्भावे णटुं बूया । तत्थ अब्भंतरामासे दढामासे णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामासे आहारेसु अणट्ठ-हरितपादुब्भावे चेव ण णटुं ति बूया । णटे पव्वाधारिते णटुं तिविधमाधारये-ण, वा पम्हद्रं वा हरितं वा । तत्थ अणामिकागहणे बंधणमोक्खणे दाणापत्तिगते णिक्खेवउपावणे बझे भट्ठो त्ति बूया । तत्थ सोत्तपडिप्पिधाणे णेत्तपडिप्पिहाणे G घाणपडिप्पिहाणे छ णप्फडिते मुत्ते सयं भट्ठे पलोलिते पम्हुटुं ति बूया । तत्थ चलामासे णीहारेसु य सव्वचोरपडिरूव- 10 सद्दपादुब्भावेसु य हरितं बूया ।। तत्थ णटुं दुविधं-सज्जीवं अज्जीवं चेति । तत्थ अब्भंतरामासे चलामासे णिद्धामासे पुण्णामासे सव्वसज्जीवगते णटुं बूया । तत्थ बज्झामासे दढामासे लुक्खामासे तुच्छामासे सव्वअज्जीवगते चेव अज्जीवं णटुं बूया । तत्थ सज्जीवे णटे पुव्वाधारिते सज्जीवं णटुं दुविधमाधारये-मणुस्सजोणीगतं तिरिक्खजोणिगतं चेव । तत्थ तिरियामासे तिरियगते तिरियविलोगिते सव्वतिरिक्खजोणिगते पडिरूव-सद्दपादुब्भावे सव्वतिरिक्खजोणीपरामासे 15 सव्वतिरिक्खजोणीसद्दगते सव्वतिरिक्खजोणीणामोदीरणे तिरिक्खजोणीणामधेज्जे थी-पुरिसगते तिरिक्खजोणीणामधेज्जे उवकरणे तिरिक्खजोणीउवकरणे चेव तिरिक्खजोणी णटुं ब्रूया । तत्थ तिरिक्खजोणीयं पुव्वाधारितायं तिरिक्खजोणि तिविधमाधारये-पक्खिगतं चतुप्पदगतं परिसप्पगतं चेति । तत्थ उद्धंगीवा-सिरो-मुहामासे णक्खत्त-चंद-सूर-गहतारागणपडिरूव-सद्दपादुब्भावे उद्धंभागागते सव्वपक्खिपादुब्भावे सव्वपक्खिपरामासे सव्वपक्खिसद्दगते सव्वपक्खिणामधेज्जोदीरणे G सव्वपक्खिणामधेज्जे थी-परिसगए ॐ सव्वपक्खिणामधेज्जोवकरणदव्वगते सव्वपक्खीउवकरणे चेव 20 पक्खि नटुं बूया । तत्थ सव्वचतुरस्सेसु वा चतुष्पदेसु वा चतुप्पदपादुब्भावे चतुष्पदपरामासे चतुप्पदसद्दगते य चतुप्पदणामधिज्जोदीरणे चतुप्पयमये उवकरणे चतुप्पदोपकरणे चतुप्पदणामधेज्जे थी-पुरिसे चतुप्पदउवकरणदव्वगते चउप्पदसद्द-रूवपादुब्भावेसु चउप्पयं णटुं बूया । तत्थ कण्हेसु सव्वदीहेसु सव्वपरिसप्पपादुब्भावे परिसप्पपरामासे परिसप्पसद्दगते सव्वपरिसप्पणामोदीरणे परिसप्पमये उवकरणे परिसप्पउवकरणगते परिसप्पणामधेज्जे थी-परिससद्दोपकरणे परिसप्पसद्द-रूवपादुब्भावे चेव परिसप्पं नटुं ति बूया । 25 तत्थ पक्खिसु णद्वेसु पुव्वाधारितेसु जलचरं थलचरं ति पुव्वमाधारयितव्वं । तत्थ आपुणेयेसु सव्वजलयेसु सव्वजलचरेसु जलचरजलयपरामासे जलचरजलयणामोदीरणे जलचरजलयणामधेज्जे उवकरणे थी-पुरिसदव्वोवकरणे सद्द-रूवपादुब्भावेसु जलचरं पक्खि नटुं ति बूया । तत्थ लुक्खेसु थलेसु य थलयेसु य थलचरेसु य सत्तेसु थलयथलचरपरामासे थलयथलचरसद्दणामोदीरणे थलयथलचरउवकरणपादुब्भावे सव्वथलयथलचरणामधैज्जे उवकरणे थी-पुरिसे य थलचरउवकरणसद्द-रूवपादुब्भावे थलचरं पक्खि णटुं बूया । तत्थ अब्भंतरेसु आहारेसु सव्वगामेसु 30 १ वक्खस्सा हं० त० ॥ २ णेत्तपडिप्पिधणे मुहपडिप्पिधणे अवाणपडिप्पिधणे बज्झा' हं० त० विना ॥ ३ एलामासे हं० त० ॥ ४ बद्धमित्ते हं० त० ॥ ५ “पाणणे हं० त० विना ॥ ६ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ७ भद्दे प हं० त० विना ॥ ८ हस्तचिहान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ९ धेज्जेसु य थी हं० ॥ . Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ अंगविज्जापइण्णयं य गामपक्खि णटुं बूया । तत्थ बज्झेसु नीहारेसु य सव्वआरण्णेसु आरण्णपादुब्भावेसु य आरण्णं पक्खि णटुं बूया । तत्थ कायवंतेसु कायवंतं, मज्झिमकायेसु मज्झिमकायं, मज्झिमाणंतरकायेसु मज्झिमाणंतरकायं, पच्चंवरकायेसु पच्चंवरकायं पक्खि णटुं ति बूया । सेदेसु सेदं, तंबेसु तंबं, पीतेसु पीतं, सेवालएसु सेवालयं, णीलेसु णीलं, फरुसेसु फरुसं, चित्तेसु चित्तं, पियदंसणेसु पियदंसणं, अदंसणीयेसु अदंसणीयं, घोसवंतेसु घोसवंतं, अघोसवंतेसु अघोसवंतं पक्खि 5 णटुं ति बूया । मधुररुतेसु मधुररुतं, कडुयरुतेसु कडुयरुतं, दारुणेसु दारुणं, मदूसु मढुं, अविदेसुमविदं, मंस-रुधिरभोयीसु मंस-रुहिरभोयिं, पुप्फ-फलभोयीसु पुप्फ-फलभोयिं, अणूसु धण्णभोयिं णटुं ति बूया । इति पक्खिगतं णटुं बूया । तत्थ चउप्पदेसु णढेसु गम्म आरण्ण त्ति दुविधा आहारा पीतआहारा पीत व्व चेवं ति । तत्थ अब्भंतरेसु आहारेसु सव्वगम्मेसु य गम्मचउप्पदं णटुं ति बूया । ॐ तत्थ बज्झेसु नीहारेसु सव्वआरण्णेसु आरण्णचतुप्पदं नटुं ति बूया। क तत्थ सव्वउण्णतेसु सिंगीसु कोसिवलगते य सिंगीचतुप्पदं णटुं ति बूया । तत्थ अधोभागेसु असिंगीसु 10 < असिंगि > चतुप्पदं णटुं बूया । असंगमिरागते वणप्फतीसु असिंगिचतुप्पदं णटुं बूया । तत्थ कायवंतेसु कायवंतं, मज्झिमकायेसु मज्झिमकायं, मज्झिमाणंतरकायेसु मज्झिमाणंतरकायं बूया । पच्चवरकायेसु पच्चवरकायं चतुप्पदं णटुं ति बूया । तत्थ सेतेसु सेतं, तंबेसु तंबं, पीतेसु पीतं, सेवालयेसु सेवालयं, स पेण्हूसु > पण्डं, णीलेसु णीलं, कण्हेसु कण्हं, फरुसेसु फरुसं, चित्तेसु चित्तं चतुप्पदं नटुं ति बूया । थीणामेसु थीणामं, पुण्णामेसु पुण्णामं, णपुंसएसु णपुंसकं चतुप्पदं णटुं ति बूया । इति चतुप्पदगतं णटुं । 15 तत्थ परिसप्पे णढे पुव्वाधारिते तिविधमाधारये-दव्वीयरं मंडलि राइण्णं चेति । तत्थ वायव्येसु दव्वीयरं णटुं ति बूया । परिमंडलेसु परिमंडलिणो णढे बूया । तिरिच्छीणराईसु तिरिच्छीणराइणो णढे त्ति बूया । उद्धेसु उद्धराइणो णढे त्ति बूया । तत्थ कायमंतेसु कायमंता, मज्झिमकायेसु मज्झिमकाया, मज्झिमाणंतरकायेसु मज्झिमाणंतरकाया, पच्चवरकायेसु पच्चवरकाये परिसप्पे णढे त्ति बूया । सेतेसु सेता, तंबेसु तंबा, पीतेसु पीता, सेवालेसु सेवाला, पण्हूसु, पण्हू, णीलेसु णीला, कण्हेसु कण्हा, फरुसेसु फरुसा, चित्तेसु चित्ता, थीणामेसु थीणामा, पुण्णामेसु पुण्णामा, णपुंसएसु 20 णपुंसका परिसप्पे णटे त्ति बूया । इति परिसप्पगतं णटुं ति बूया । इति तिरिक्खजोणिगतं णटुं । तत्थ मणुस्सजोणीयं पुव्वाधारितायं उज्जुमासे उज्जुअपेक्खिते उज्जुकुल्लोइते सव्वअज्जवगते य मणुस्सं णटुं ति बूया । तत्थ मणुस्से णटे पुव्वाधारिते अज्जो पेस्सो ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ उद्धं णाभीयं सव्वअज्जवगते य अज्जम णटुं ति बूया । तत्थ अधो णाभीयं सव्वपेस्सगते य पेस्सप्पाणं णटुं ति बूया । पुण्णामेसु पेस्सेसु दासं णटुं ति बूया । F थीणामेसु पेस्सेसु दासं णटुं ति बूया । क एवं पेस्सगते पुव्वाधारिते णायव्वं भवतीति । 25 अज्जगते पुव्वाधारिते बंभणो खत्तितो वेस्सो सुद्दो त्ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ बंभिज्जेसु बंभेयेसु बंभणं णटुं बूया । खत्तेयेसु खत्तियं णटुं ति बूया । वेस्सेयेसु वेस्सं णटुं ति बूया । सुद्देयेसु सुई णटुं ति बूया । वण्णेसु पुव्वाधारितेसु उवातेसु उवातं, कण्हेसु कण्हं, सामेसु सामं, कालस्सामेसु कालस्सामं, सुद्धस्सामेसु सुद्धस्सामं, वण्णपडिरूवेण वण्णसाधारणं बूया । सत्थाणे पुव्वाधारिते दीहेसु दीहं, हस्सेसु हस्सं, थूलेसु थूलं, किसेसु किसं, बालेसु बालं, वयत्थेसु वयत्थं, मज्झिमवयेसु मज्झिमवयं, महव्वतेसु महव्वतं णटुं मणुस्सं ति बूया । 30 तत्थ अभंतरो बाहिरो बाहिरब्भतरो गुरुतुल्लो पच्चवरो त्ति मणुस्से पुव्वाधारिते-तत्थ अब्भंतरेसु आहारेसु य अभंतरं बूया, बाहिरेसु बाहिरं बूया, बाहिरब्भंतरेसु मित्तं बूया, अब्भंतरमंतरेसु अप्पणो बंधवं णटुं ति बूया, बाहिरबाहिरेसु मित्तामित्तं णटुं बूया । अब्भंतरभंतरे पुव्वाधारिते उद्धंगीवाय गुरुजोणीयं बूया । अधत्था १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ २-३ KO एतच्चिान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्त्तते ॥ . Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तपण्णासइमो णट्ठकोसयज्झाओ २१९ गीवाय उद्धं कडीय तुल्लजोणीयं बूया । अधत्था कडीय पच्चवरजातीयं बूया । तत्थ गुरुजोणीयं पुव्वाधारितायं अज्जयं वा पितरं वा आयरियं वा णटुं ति बूया । पुण्णामेसु दंडेसु पेतिज्जं वा मातुलं वा उवज्झायं वा णटुं बूया । थीणामेसु दंडेसु मातुस्सियं वा पितुस्सियं वा उवज्झायभगिणिं वा णटुं ति बूया । पुणो विसेसितेसु दंडेसु थीणामेसु चुल्लमातुयं बा उवज्झायं वा बूया । अब्भंतरेसु दंडे पितुस्सियं वा उवज्झायभगिणिं वा णटुं बूया । बाहिरेसु दंडेसु थीणामेसु पितुजाति वा उवज्झायजाति वा बूया । तत्थ उत्तमुत्तमेसु अब्भंतरभंतरेसु य पुण्णामधेज्जेसु अज्जकं वा उवज्झायं 5 वा णटुं बूया । उत्तमुत्तमेसु थीणामेसु अज्जियं वा उवज्झायमातरं वा उवज्झायउवज्झायिणि वा णटुं बूया । इति गुरुजोणी णट्ठा वक्खाता भवति । तत्थ तुल्लजोणीसु भाता वा वयस्सो वा भगिणिं वा संलो वा भगिणि वा पति वा मेधुणो वा देवरो वा पतिजेट्टो वा भातुवयस्सो वा G जस्स(वयस्स)वयस्सो वा कु णट्ठो विण्णेयो भवति । तत्थ दंडेसु भाता विण्णेयो । वामेसु पुण्णामेसु भगिणिपति विष्णेयो । दक्खिणेसु पुण्णामधेज्जेसु मातुलपुत्तो विण्णेयो । वामेसु पुण्णामधेज्जेसु 10 मातुस्सियापुत्तो विण्णेयो । चलेसु बज्झेयेसु य पुण्णामेसु वयस्सो विण्णेयो। दंडेसु चलेसु पुण्णामधेज्जेसु य भातुवयस्सो विण्णेयो । बाहिरबाहिरेसु चलेसु पुण्णामेसु य वयस्सवयस्सो विण्णेयो । तत्थ थीणामेसु तुल्लजोणीयं भज्जं वा सालिं वा भगिणि वा मातुस्सियाधीतरं वा पितुस्सियाधीतरं वा पित्तियधीतरं वा जातरं वा णणंदरं वा सहिं वा जारि वा णटुं जाणिय । तत्थ अब्भंतरेसु चलेसु भज्जा वा भातुज्जा वा विण्णेया भवति । बाहिरब्भंतरेसु चलेसु य सही वा सल्ली वा विण्णेया । बाहिरेसु चलेसु य थीणामेसु जारिं विण्णेया । तत्थ दंडेसु भगिणिं वा भगिणिगतं वा 15 बूया । तत्थ पुण्णामधेज्जेसु सोदरं वा महपितुकधीतरं वा पित्तियधीतरं वा मातुलधीतरं वा जोणिभगिणि वा बूया । तत्थ अब्भंतरेसु सोदरियं भगिणि बूया । उम्मज्जितेसु पुण्णामेसु महपितुयधीतरं भगिणि बूया । उम्मज्जितेसु पुण्णामेसु णामेसु पित्तियधीतरं भगिणि बूया । थीणामधेज्जेसु सोदरियं भगिणिं बूया । थीसाधारणेसु पुण्णामेसु मातुलधीतरं बूया । बाहिरेसु चलेसु य जोणिभगिणि बूया । बाहिरेसु थीसाधारणेसु पितुस्सियाधीतरं बूया, मातुस्सियाधीतरिं वा । दक्खिणेसु थीणामेसु पितुस्सियाधीतरं बूया । उदरेसु सोदरिउग्गमेव बूया, दक्खिणपस्से भायरो, वामपस्से भगिणीओ बूया । 200 दक्खिणपस्से उदरस्स उम्मज्जिते जेट्ठो भाया, ओमज्जिए कणेट्ठो भाता, थितामासे जमलभातरो विण्णेया । वामपस्से उदरस्स उम्मज्जिते जेटुं भगिणि बूया, ओमज्जिते कणि?भगिणीं बूया, थितामासे जमलभगिणीओ बूया । इति तुल्लजोणीणटुं वक्खातं भवति । तत्थ पच्चवरजोणीपूण्णामधेज्जेसु पुत्तो वा जामाता वा जामातुयभाया वा पहुसा वा भाया वा भागिणेज्जो वा वयस्सपुत्तो वा जोणीपुत्तो वा भत्तिओ वा । तत्थऽब्भंतरेसु पुत्ता विण्णेया । बाहिरब्भंतरेसु दंडेसु भातुपुत्ता विण्णेया । 25 थीणामेसु दंडेसु भगिणीपुत्तो विण्णेया । बज्झेसु थीणामेसु जोणिपुत्ता विण्णेया । बज्झेसु चलेसु वयस्सपुत्ता विण्णेया । तत्थ पच्चवरजोणीयं थीणामधेज्जेसु थिया जोणी धीया वा विण्णेया । तत्थ अब्भंतरेसु थीणामधेज्जेसु धीतरं बूया । बाहिरब्भंतरेसु थीणामधेज्जेसु भातुधीतरं बूया । जमगथीणामोदीरणे भगिणिधीतरं बूया । बज्झसण्णितेसु थीणामधेज्जेसु जोणिभगिणीधीतरं बूया । थीणामेसु बज्झेसु चलेसु य वयस्सधीतरं बूया । थीणामधेज्जसाधारणे जामातरं ण्हुसं वा बूया । पुण्णामेसु अभंतरेसु ण्हुसं बूया । इति पच्चवरजोणी णढे वक्खाया भवति । 30 एतेसिं पच्चवरजोणीयं समुद्दिवायं अण्णतरंसि आधारिए अण्णतरं णटुं बूया । तत्थ 'केण हरितं ?' ति आधारितंसि तत्थ णटुं आहारेसु । अब्भंतरेसु य अब्भंतरेण हरितं ति बूया । अब्भंतरेसु यमगामासेसु य जो पुच्छेज्ज १ संभो वा हं० त० ॥ २ हस्तचिहान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ३-४ दढेसु हं० त० विना ॥ ५ सल्लिं वा हं० त० ॥ ६ दंतेसु हं० त० विना ॥ ७ पच्चत्तर हं० त० ॥ ८ वा जायाभाया जामाउयजाया वा ण्हुसा हं० त० ॥ ९ भवत्तिओ हं० त० ॥ १० वक्खातो हं० त० विना ॥ ११ यमगामामगामासेसु हं० त० ॥ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० अंगविज्जापइण्णयं तेणेव हरितं ति बूया । बाहिरब्भंतरेसु णीहारेसु बाहिं वसंतेण हरितं अब्भंतरेण त्ति बूया । अम्भितरबाहिरेसु आहारणीहारेसु अण्णहिं वसंतेण G बाहिरेण हरियं ति बूया । 2 बाहिरेसु अण्णहिं वसंतेण दिट्ठपुव्वेण हरितं ति बूया । बाहिरबाहिरेसु अण्णहि वसंतेण अदिट्ठपुव्वेण हरितं ति बूया । तत्थ णिवेसणे पुव्वाधारिते अब्भंतरेसु णिवेसणगतं बूया, अब्भंतरब्भंतरेसु उव्वरकगतं बूया, बाहिरब्भंतरेसु पडिवेसघरगतं बूया, बाहिरेसु बहिद्धा णिवेसणस्स त्ति बूया, बाहिरबाहिरेसु 5 बहिद्धा णगरस्स बूया । तत्थ बहिं वा णिवेसणस्स त्ति पुव्वाधारिते अब्भंतरे णगरे पुव्वाधारिते अब्भंतरेसु णगरगयं बूया, अब्भंतरभंतरेसु पडिवेसघरगतं बूया, अब्भंतरबाहिरेसु बाहिरियागतं बूया, बाहिरेसु आरामगतं बूया, बाहिरबाहिरेसु अरण्णगतं बूया । पुरत्थिमेसु गत्तेसु पुरथिमायं दिसायं बूया । दक्षिणपुरत्थिमेसु दक्खिणपुरत्थिमायं दिसायं ति बूया । दक्खिणेसु दक्खिणायं दिसायं ति बूया । दक्खिणपच्छिमेसु दक्खिणपच्छिमायं दिसायं ति बूया । पच्छिमेसु गत्तेसु पच्छिमायं दिसायं ति बूया । उत्तरपच्छिमेसु गत्तेसु उत्तरपच्छिमायं दिसायं ति बूया । उत्तरेसु गत्तेसु उत्तरायं दिसायं 10ति बूया । उत्तरपुरत्थिमेसु गत्तेसु उत्तरपुरस्थिमायं दिसायं ति बूया । तत्थ उद्धेसु मालगतं वा रुक्खगतं वा पव्वतगतं वा आरुभितकं वा बूया । अधोभागेसु कूवगतं वा वावीगतं वा तलागगतं वा पवाणगतं वा णदीगतं वा भूमीगतं वा भूमीघरगतं वा णिण्णे वा णिधितं बूया । तत्थ अज्जीवपंगति अणेकाकारा भवति थाणेण वा णिधाणेण वा । सा तिविधा उवलद्धा-पाणजोणीगता मलजोणीगता धातजोणीगता वेति । तत्थ चलामासेस पाणजोणी विण्णेया सव्वपाणपडिरूवगते य । 15 लोमगते मूलजोणी विण्णेया सव्वमूलपडिरूवगते चेव । दढामासेसु सव्वधातुपडिरूवगते चेव धातुजोणी विण्णेया । सा दुविधा विण्णेया-संखता असंखता चेव । तत्थ संखते संखता विण्णेया । असंखते असंखता । सा पुणरवि दुविधा विण्णेया-अग्गेया अणग्गेय त्ति । तत्थ अग्गेयेसु अग्गेया विण्णेया । [अणग्गेयेसु अणग्गेया विण्णेया ।] सा पुणरवि दुविधा विण्णेया-आहारे उवकरणे चेव । तत्थ आहारेसु आहारो विण्णेयो । सव्वभोयणपडिरूवगते चेव णीहारेसु उवकरणं विण्णेयं सव्वउवक्खरगतं चेव । तत्थ पाणजोणीए आहारे दुद्धं दधि तकं णवणीतं कूचियं आमधितं 20 गुलदधि व रसालादहि " मंथु परमण्णं दधितावो तक्कोदणो अतिकूरको मंसं रुधिरं वसा वेति । अवसेसाणि पुव्वुद्दिवाणि असंखताणि, दुद्धं दधि वेति असंखताणि । तत्थ णिद्धेसु पाणीयं, णिद्धसाधारणेसु परमण्णं, अणिद्धेसु दधितावो तक्कोदणो वा विण्णेयो । अलुक्खेसु अतिकूरको मंसं ति विण्णेयं । लुक्खेसु वल्लूरं विण्णेयं एवमादी । इति पाणजोणीगते आहारो विण्णेयो भवति । तत्थ मूलजोणीगते आहारे साली वीही कोदवा कंगू रालका वरका जव-गोधूमा मासा मुग्गा अलसंदका 25 चणका णिप्फावा कुलत्था चणविकाओ मसूरा तिला अतसीओ कुसुंभा सामाका वेति । तत्थ आहारेसु अंतेसु धण्णगतमेव णटुं बूया । जधुत्ताहिं पुव्वोपलद्धीहि अणूसु संखतेसु मूलजोणीयं आहारं णटुं बूया । जधुत्ताहि भोयणपडले आहारोवलद्धीहिं तत्थ सेते साली वीही सेततिला कुसुंभा सेतसासया चेति विण्णेया । सामेसु अदसी विण्णेया । तंबेसु कोद्दवा गोधूमा तंबनिष्फावा तिला कुलत्था वा रायसासवा विण्णेया । तत्थ सव्वण्णगतं तिविध-तणगतं गुम्मगतं वल्लिगतं ति । तत्थ तणगतं साली वीही कोद्दवा कंगू रालका 30सामाका तणफलं चेति विण्णेयाणि भवंति । तत्थ गुम्मगते अदसी तिला सासवा चेति विण्णेयाणि । तत्थ वल्लीगते मुग्गा मासा चणका चणविकाओ अलसंदे वा निष्फावा कुलत्था वेति विण्णेया भवंति । इति आहारगतं णटुं ति बूया । तत्थ उवणिद्धेसु कुसणगतं विण्णेयं मास-मुग्ग-अलसंदका-चणविकातं भवति । तत्थ कोलथो कंबलिको साकरसो थूणिकाखलो दुद्धं दहिं तकं अंबिलं ति विण्णेया उपसेका । तत्थ सेतेसु मधुरेसु असंखयेसु य दुद्धं १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ २ “पमाति हं० त० विना ॥ ३ हस्तचिह्रान्तर्गत: पाठ: हं० त० एवं वर्तते ॥ ४ पुव्वदिट्ठा हं० त० ॥ ५ काल हं० त० ॥ ६ सारकसो हं० त० ॥ ७ का दुद्धं हं० त० विना ॥ ८ उपसिको हं० त० विना ॥ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तपण्णासइमो णट्ठकोसयज्झाओ २२१ विण्णेया । अंबेसु घणेसु असंखतेसु दधि विण्णेयं भवति । तंबेस संखतेस य तकं विण्णेयं । पाणजोणीगते सोपरत्ते सोपडुते रसगतं विण्णेयं भवति । मूलजोणीगते संखयेसु जूसो विण्णेयो । अच्छेसु कंबलिको विण्णेयो । वापण्णेसु अंबिलं ति विण्णेयं । तत्थ सव्वकोसगए सव्वकोसीधण्णगते सव्वसिंगिगते सव्वसुद्धचूलागते सव्वचेट्टितसिहंडिगते सव्वसंपुङ-पेला पेलिकगते करंडगगते संकोसकगते पणसक-थइआ-पसेव्वकगते सगलिकारसं बूया । तत्थ सव्वबालेयेसु थूणिकारसं बूया । सव्वअंतेसु सागरसं बूया । मुदितेसु पुप्फरसं बूया । पुण्णेसु फलरसं बूया । तत्थ 5 सागगते एतेहिं ज्जेव पादुब्भावे तव्वं । सव्वहेट्ठिमेहिं मूलगतं विनेयं । सव्वमूलजोणीपडिरूवगते य पा(बा)लेयेसु थूणिकारसो विण्णेयो । तणूसु सागगते चेव सागरसो विण्णेयो । मुदितेसु पुष्फगते य पुष्फरसो विण्णेयो । पुण्णेसु फलेसु फलगते चेव फलरसो विण्णेयो । इति फलजोणी वक्खाता भवति । तत्थ पसण्णा णिट्ठिता मधुरको आसवो जगलं मधुरेसेरको अरिठ्ठो अट्ठकालिका आसवासवो सुरा कुसुकुंडी जयकालिका चेति पाणगतं आधारयित्ता आधारयित्ता उवलद्धीहिं जधुत्ताहि उवलद्धव्वं भवति । तत्थ पसण्णेसु पसण्णा 10 विण्णेया । सेतेसु कुसकुंडी णिट्ठिता जगलं वेति विण्णेया भवंति-तत्थ सारवंतेसु णिट्ठिता, मधुरेसु कुसुकुंडी, सद्देसु जगलं विण्णेयं भवति । तत्थ मधुरेसु तंबेसु य आसवो विण्णेयो । तंबेसु कण्हसाधारणेसु कसायेसु य मधुरं विण्णेयं । इति एतेर्सि एकतर मज्जं णटुं ति बूया । एवं मूलजोणी वक्खातो भवति । पाणजोणी गता आहारजोणी गता चेति । तत्थ धातुगते णत्थि आहारो ति बूया । तत्थ धाउजोणीगते उवकरणं आभरणं वा विण्णेयं । तत्थ उवकरणं तिविध-पाणजोणीजं मूलजोणीजं धातुजोणियं चेति । तत्थ पाणजोणियं मुत्तिकं संखागवलमयं दंतमयं सिंगमयं अट्ठिकमयं 15 लोहमयं चम्ममयं वालमयं चेति भाजणगतं विण्णेयं । तत्थ अच्छादणाणि कोसेज्जकं आयिकं अविकपत्तुण्णा अजिणपट्टा अजिणप्पवेणी चम्मसाडीओ वालवीरा चेति । इति पाणजोणीआणि उवकरण-भायण-भूसण-ऽच्छादणाणि आधारयित्ता आधारयित्ता सकाहि उवलद्धीहि उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ मूलजोणीआभरणाणि कट्ठमयं पुष्फमयं फलमयं पत्तमयं चेति । तत्थ मूलजोणीभायणाणि कट्ठमयं पुष्फमयं फलमयं पत्तमयं चेति । तत्थ मूलजोणियो अच्छादो कप्पासिकं G वक्कभंडं वेलुमयं 7 चेति । एवमेव उवकरणं मूलजोणियं समणुगंतव्वं भवति । इति मूलजोणिओ अच्छादो 20 आभरणाणि भायणाणि उवकरणाणि य सव्वं समणुगंतव्वं भवति । तत्थ धातु-जोणिमयं आभरणं सुवण्णमयं रुप्पमयं तंबमयं हारकूडमयं तपुमयं सीसकमयं काललोहमयं वट्टलोहमयं सेलमयं मत्तिकामयं । तत्थ धातुजोणिमयो अच्छादो सुवण्णपट्टो सुवण्णखयितो अच्छादो लोहजालिका वेति । एतेसिं एत्तो एगतरं आधारयित्ता आधारयित्ता जधुत्ताहि उवलद्धीहिं उवलद्धव्वं भवति । तत्थ णिद्धेहिं रसगतं णटुं बूया । सुक्खेसु सुक्खं णटुं बूया । चलेसु सज्जीवं णटुं बूया । दढेसु धातुगतं 25 णटुं बूया । पुण्णामधेज्जेसु पुरिसं णटुं बूया । थीणामधेज्जेसु इत्थि णटुं बूया । णपुंसकेसु णपुंसकं नटुं बूया । तणस वत्थं नद्रं बया । सव्वतंतुगते चेव सामेसु आभरणं णटुं ब्रूया । सुक्केसु चउरस्सेसु चित्तेसु सारवंतेसु य काहावणे णटे बूया । परिमंडलेसु भायणं णटुं बूया । चलणीहारेसु जाणं णटुं बूया । पुण्णेसु आहारं णटुं बूया । तिक्खेसु सत्थं णटुं बूया । अंतेसु उवकरणं णटुं बूया । तंबेस पीतकेसु य सुवण्णकं णटुं बूया । बुद्धीरमणेसु णटुं बूया । उत्तमेसु उत्तमं णटुं बूया । मज्झिमेसु मज्झिमं णटुं बूया । जहण्णेसु जहण्णं णटुं बूया । 30 तत्थ णद्वेसु पुव्वाधारिते अब्भंतरणिवेसणंसि कंसि देसंसि भायणंसि? त्ति । तत्थ थूलसि अरंजरंसि उट्टिआगतं वा पल्लगतं वा बूया । उवथूलेसु कुड्डगतं वा किज्जरगतं वा उखलिकागतं वा बूया । णातिथूलेसु णातिकसेसु १ “परित्ते हं० त० विना ॥ २ रमेरको अरिठ्ठो वि अस्टुिका हं० त० विना ॥ ३ "मयं वअइट्ठिक' हं० त० ॥ ४ आच्छादो हं० त० विना ॥ ५ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठ: हं० त० एव वर्तते ॥ ६-७-८ आच्छादो हं० त० ॥ ९ वण्णेसु वत्थं हं० त० ॥ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ अंगविज्जापइण्णयं घडभायणगतं बूया । कसेसु खड्डभायणगतं [बूया] । पुधूसु पेलितागतं बूया । आसन्नेसु पेलिकागतं वा करंडगगतं वा बूया । चतुरस्सेसु सयणा-ऽऽसणगतं बूया । उद्धंभागेसु मालगतं बूया । अक्खिसु वातपाणगतं बूया चम्मकोसगतं वा बूया । णिडाले कुड्डगतं बूया । कण्णछिद्देसु बिलगतं बूया । णासायं णालीगतं बूया । गीवाय थंभगतं बूया । भमुहासु अंतरियागतं बूया । गंडेसु पस्संतरियागतं बूया । थणंतरेसु कोट्ठागारगतं बूया । उदरे भत्तघरगतं बूया । हियए 5 वासघरगतं बूया । तंबेसु अरस्सगतं बूया । पसण्णेसु पडिकम्मघरगतं बूया । गहणोवगहणेसु असोयवणियागतं बूया । पोरिसे आवुपधगतं पणालीगतं वा बूया । णाभीयं उदकचारगतं बूया । अवाणे वच्चाडकगतं बूया। उवहुतेसु अरिद्धगहणगतं बूया । सामेसु चित्तगिहगतं [बूया] । सुक्केसु सिरिघरगतं बूया । कण्हेसु अग्गिहोत्तगतं बूया । णिद्धेसु ण्हाणघरगतं बूया । उत्तमेसु पुस्सघरगतं बूया । 6 जहण्णेसु दासिघरगयं बूया । 7 इति वेसणगतं णटुं ति बूया । 10 तत्थ णगरे पुव्वाधारिते मत्थए अंतेपुरगतं बूया । णिडाले अंतेपुरगतं बूया । णासायं भुमंतरे वा तिए बूया । पोरिसे सिंघाडगगतं बूया । उरे पादतल-करतलेसु वा चउक्कगतं बूया । दीहेसु रायपधगतं बूया । जुत्तप्पमाणदीहेसु महारच्छागतं बूया । किंचिदीहेसु उस्साहियागतं बूया । उद्धंभागेसु पासादगतं वा गोपुरगतं वा अट्टालगगतं वा पकंठागतं वा बूया । तत्थ अब्भंतरेसु पासादगतं बूया । मुदितेसु तोरणगतं बूया । संखतेसु धण्णगतं बूया । णिग्गमातिगमेसु बारगतं बूया । दढेसु पव्वतगतं बूया । उवद्दुतेसु वासुरुलगतं बूया । मतेसु थूभगतं वा एलुयगतं वा बूया, 15 मुदितसाधारथूभगतं वा बूया । दीहेसु पणालीगतं बूया । अधोपभागेसु पवातगतं वा वप्पगतं वा तलाकगतं वा दहफलिहागतं वा णदीगतं वा बूया । तत्थ दीहेसु णिण्णेसु णदीगतं वा फलिहागतं वा बूया । णिद्धेसु णदीगतं बूया । संखतेसु फलिहागतं बूया । चतुरस्सेसु बाहिगतं बूया । चंदाणतेसु तलागगतं बूया । उस्सितेसु अट्टालगतं बूया । दीहेसु परिक्खेवेसु मंडलेसु य पाकारगतं बूया । थलेसु वयगतं बूया । णिण्णेसु परिखागतं बूया । तत्थ बज्झगतो णगरस्स त्ति पुव्वाधारित उद्धंभागेसु धयगतं वा < तोरणगतं वा देवागारगतं वा वुखगतं 20 वा पव्वतगतं वा मालगतं वा थंभगतं वा एलुगगतं वा पालीगतं वा बूया । तत्थ मुदितेसु तोरणगतं बूया । उत्तमेसु देवागारगतं बूया । मूलजोणीगतेसु रुक्खगतं बूया | वट्टेसु तलागगतं बूया । तणूसु साधारणेसु चउक्केसु य वप्पगतं बूया । उपग्गहणेसु आरामगतं बूया । आगासेसु आगासणिधितं ति बूया । मतेसु उवद्दुतेसु य सुसाणे णिधितं बूया । तुच्छेसु सुक्करुक्खगतं वा सुक्कतलागगतं वा बूया । वायव्येसु वच्चभूमीयं णिधितं ति बूया, मंडलभूमीगतं वा बूया, जतो वाओ वायति तम्मि देसे निधितं ति बूया । आपुणेयेसु पवा-उदुपाणं वा णदी-तलागं वा बूया । अग्गेयेसु 25 दड्ढवणं व उट्टियपट्टगं वा बूया, जतो वा आदिच्चो तम्मि देसे णिधितं ति बूया । जण्णेयेसु जण्णवाडगतं वा देवायतणगतं वा बूया, जतो वो तुसरिदो (तुरियसद्दो) तम्मि देसे णिधितं ति बूया । तिक्खेसु संगामभूमीयं वा णिधितं ति बूया, जतो वा वाधितो तम्मि देसे णिधितं ति बूया । सद्देयेसु सुतप्पवत्तिकं णटुं ति बूया । दसणीयेसु दिट्ठचेटुं ति बूया । ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाए अंगविज्जाए णट्ठकोसयो णामऽज्झातो सत्तावण्णो वक्खातो भवति ॥ ५७ ॥ छ । 30 १ पारिसेज्जादुपवगवं ह त० ॥ २ आवणे वच्चाडक' हं० त० । अवाणे वाघाडक' सं ३ पु० सि० ॥ ३ सु स्सतुस्सघर' हं० त० ॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ५ भुमुत्तरे हं० त० ॥ ६ सु सुवण्ण' हं० त० ॥ ७ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२३ अट्ठवण्णासइमो चिंतितज्झाओ [ अट्ठवण्णासइमो चिंतितज्झाओ] 000000000 णमो भगवतो जसवतो महापुरिसस्स वद्धमाणस्स । अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाए अंगविज्जाए चिंतितं णामाज्झातो । तं खलु भो ! तमणुवक्खायिस्सामि । तं जधा-तत्थ चिंतितमचिंतितं ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । तत्थ परित्ता-ऽणंतप्पमाणोपदेसा अणंतमपारगमसंजुत्तं चिंतितमुदाहरिस्सामि । तत्थ अब्भंतरामासे व देढामासे - णिद्धामासे सुद्धामासे पुण्णामधेज्जामासे सव्वआहारगते एक्कग्गणयण-माणसे सुप्पणिहितिदिय-अवत्थितसरीरमणोवयारगते 5 चेव चिंतितं ति बूया । तत्थ बज्झामासे कण्हामासे किलिट्ठामासे णपुंसकामासे सव्वणीहारगते अणेकग्गणयणमाणसे उच्चावय-चल-इंगितागार-अणवत्थितसरीरमणोपयारे ण चिंतितं ति बूया । तत्थ दुविधा चिंता पवत्तति संगहतो तिविधा-जीवचिंता अज्जीवचिंता तदुभयचिंत त्ति । जीवचिंता दुविधासंसारसमावण्णजीवचिंता य असंसारसमावण्णजीवचिंता य । तत्थ सव्वजीवगते सव्वजीवआमासगते जीवणामसद्दरूवपादुब्भावे चलामासेसु य जीवं चिंतितं बूया । तत्थ चिंतिते पुव्वाधारिते सव्वअज्जीवगते अज्जीवआमासेसु 10 अज्जीवणामसद्द-रूवपादुब्भावेसु अज्जीवं चिंतितं बूया । एतेसु चेव वामिस्सेसु आमास-सद्दपादुब्भावेसु जीवाऽजीवसमायुत्तं चिंतितं बूया । तत्थ जीवचिंतायं जीवचितं दुविधमाधारये-संसारसमावण्णजीवचिंता चेव असंसारसमावण्णजीवचिंता चेव । तत्थ उत्तमेसु उम्मज्जितेसु सव्वबंध-मोक्खेसु सव्वनिग्गमेसु सव्वमुव(त्त-)सिद्ध-अंतगड-तिण्ण-सुद्धपादुब्भावेसु चेव असंसारसमावण्णं जीवं चिंतितं ति बूया । तत्थ सव्वआहारेसु सव्वबंधेसु सव्वसंजोगेसु सव्वकामभोगेसु सव्वकामभोग- 15 सद्दपादुब्भावेसु जायणविवद्धि-पडिभोगकम्म-चे?-आवाह-विवाह-चोलोपणयण-तिधि-उस्सव-समाय-जण्णएवमादियलोइयसद्द-रूवपादुब्भावेसु संसारसमावण्णं जीवं चिंतितं ति बूया । तत्थ संसारसमावण्णजीवचितं चउव्विधमाधारयितव्वं भवति-दिव्वं माणुसं तिरिक्खजोणिगतं णेरइयसंसारसमावण्णजीवं चिंतितं चेति । तत्थ सव्वेसु उड्भागेसु एवं वाकरणे वंदिते पूयिते संथुते अब्भुत्थिते उल्लोगिते पादुकोपाहणामुंचणे छत्तपडागा-वासण-कडग-लोमहत्थ-वीयणि-चामरपाहाणगते G सेव्वदेवगते के सव्वदेवायतणगते सेसाय गहणे उस्सय- 20 समाय-अब्भुदय-उदु-पव्व-देवपादुब्भावे देवणामकम्मोपचारसद्द-रूवपादुब्भावे चेव देवं चिंतितं बूया । तत्थ सव्वसकुणगते सुवण्णं चिंतितं बूया सुवण्णित्थि वा । थीणामेसु उटुंभागेसु य धणगते ववहारगते य वेस्समणं चिंतितं बूया । दंतेसु वेण्डं चिंतितं बूया । सव्वजोधपडिरूवगते य गो-माहिस-अय-एलएसु रुद्देसु सिवं चिंतितं बूया । सउणगते वालेयेसु कुमारोवकरणे चेव तस्सद्द-रूवपादुब्भावे चेव खंदं चिंतितं बूया । तरुणकच्छाएकगए असिपडिरूवे य विसाहं चिंतितं ति बूया । तत्थ पुण्णामेसु देवेसु बंभा बलदेवो वासुदेवो पज्जुण्णो वेस्समणो खंदो विसाहो पव्वतो णागो 25 सुवण्णो एवमादीया उवलद्धव्वा भवंति । थीणामेसु णदी अलणा अज्जा अइराणी माउया सउणी एकाणंसा सिरी बुद्धी मैंधा कित्ती सरस्सती एवमादीयाओ उवलद्धव्वाओ भवंति । तत्थ उण्हेसु अग्गि चिंतितं बूया अग्गिघरं वा । णिद्धेसु श णागं णागघरं वा, थीणामेसु णिद्धेसु णागि चिंतितं बूया । दारुणेसु रक्खसं, थीणामेसु दारुणेसु रक्खसि चिंतितं बूया । विगतभयं कंदप्प-भय-हस्सेसु [असुरं, थीणामेसु] असुरकण्णा चिंतितं बूया । सव्वगंधव्वगते तंतीसरगते तलतालघोसेसु य गंधव्वं चिंतितं ति बूया, थीणामेसु गंधव्वी < बूया >o | मधुरघोसेसु पक्खिसु किंपुरिसं 30 बूया, थीणामेसु किंपुरिसकण्णं बूया । सुयीसु पुण्णामेसु य जक्खो, थीणामेसु य [जक्खी बूया। ........] मणोणयणाभिरामेसु १ एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ २ "व्वयुतसिद्ध हं० त० विना ॥ ३ कामसद्दभोगपादु हं० त० ॥ ४ “यण्णजण्ण हं० त० विना ॥ ५ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ६ खज्जा अइ हं त० । अज्जा खइ सं ३ पु० सि० ॥ ७ मित्ता हं० त० ॥ ८-९ - एतच्चिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ . Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ अंगविज्जापइण्णयं देवं वेमाणितं चितितं बूया, थीणामासु अच्छरसाओ मूलजोणीगतेसु व अज्जोपगते वेति अज्जाधिउत्थं 9 चिंतितं बूया, थीणामेसु देवीसु वुक्खाधिउत्था चितितं ति बूया । धातुजोणीगए पव्वतदेवतं चिंतितं ति बूया, थीणामेसु गिरिकुमारि बूया । णिद्धेसु परिक्खेवेसु य समुदं वा समुद्दकुमारं वा चिंतितं बूया, थीणामेसु समुद्दकुमारिं बूया । महापकासेसु पुधूसु परिक्खेवेसु य दीवकुमारं चिंतितं बूया, थीणामेसु दीवकुमारिं चिंतितं बूया । चतुप्पदगते वग्घ5सीह-हत्थि-वसभपडिमाधिउत्थं चिंतितं बूया । दीहेसु उवणिद्धेसु य णागं चिंतितं बूया । मुद्धणि बंभं चिंतितं । उद्धंभागेसु धणगते य वेसमणो । सप्पभेसु चंदा-5ऽदिच्चा गह-णक्खक्त–तारागणे चिंतिते बूया । Fथेलेसु मारुतं चिंतियं बूया । 0 थीणामेसु वातकण्णाओ चितिताओ बूया । मतेसु जमं बूया । आपुणेयेसु उद्धंभागेसु सुक्कवण्णपडिरूवगते य वरुणं चिंतितं बूया। सोम्मेसु सव्वसोम्मगते य सव्वसोम्मपादुब्भावेसु चेव सोमं चिंतितं बूया । इस्सरेसु इंदं बूया । पुधूसु पुर्वि बूया । विवेक्खितेसु दिसाकुमारीओ बूया, दिसाओ वा बूया । इद्वेसु सिरिं चितितं 10 बूया । बुद्धीरमणेसु मेधं बुद्धि सत्थंधिवुत्थाओ चिंतिताओ बूया। विमुत्तेसु णिप्परिग्गहेसु य मोक्खं विज्जासत्थाहिवुत्थाओ चिंतिताओ बूया । अब्भंतरेसु कुलदेवताओ बूया । दढेसु वत्थुदेवताणि चिंतियाणि बूया । दुग्गंधेसु वच्चदेवताणि बूया । मतेसु सुसाणदेवताणि बूया । पच्छिमेसु पितुदेवताणि बूया । माणुसदिव्वसाधारणेसु विज्जाधरे विज्जासिद्धे वा चारणे चिंतिते बूया । थीणामेसु दिव्वसाधारणेसु माणुसेसु विज्जाधरीओ चिंतिताओ बूया । बुद्धिरमणेसु दिव्वसाधारणेसु सव्वविज्जादेवताओ बूया । थीणामेसु विज्जादेवताओ बूया । पुण्णामेसु देवविज्जाहिवुत्थे चिंतिते बूया । दिव्वेसु सुरेसु 15य महरिसयो बूया । एवमादीदेवताहिं जधुत्ताहिं देवताज्झाये उवलद्धीहिं देवताणामेहिं देवसंठाणेहिं देवआभरण-पहरण कम्मोवयारपादुब्भावेहिं आमास-सद्द-रूवपादुब्भावेहिं जधा देवताज्झाये उवदिटुं तधा णातव्वं भवति । इति देवतागता चिंता वक्खाता भवति । ___तत्थ उज्जुकामासे उज्जुकविलोइते उज्जुपेक्खिते उज्जुभावगते सव्वाणुस्सगते णाम-सद्द-रूव–उवकरणपादुब्भावे य मणुस्सजोणीगतं चिंतितं बूया । तत्थ मणुस्सेसु पुव्वाधारितेसु मणुस्सेसु तिविधमाधारये-थिओ पुरिसे 20 णपुंसके ति । तत्थ थीणामेसु थिओ चिंतियाओ त्ति बूया । पुण्णामेसु पुरिसे चिंतिते बूया । णपुंसकेसु णपुंसके चिंतिते बूया । तत्थ णपुंसके पुव्वाधारिते थीणामेसु इस्सापंडका विण्णेया । पुण्णामेसु आसेक्का विण्णेया । णपुंसकेसु अच्चंतोपहता आदिपंडका विण्णेया । वामदक्खिणेसु पक्खापक्खिणो विण्णेया । तुच्छेसु अणुप्पवी विण्णेया चिंतिता भवंति । इति णपुंसकजोणी वक्खाता भवति । तत्थ थी-पुरिस–णपुंसकोपलद्धीयं उवलद्धायं बंभणो खत्तिओ वेस्सो सुद्दो त्ति । तत्थ सिरोमुहामासे बंभणो, बासु खत्तिओ, पट्ठोदरे वेस्सो, पाद-जंघेसु सुद्दो उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ 25 वये पुव्वाधारिते पादजंघे बालो, पट्ठोदरे तरुणो, बाहूसु अंतरंसे य मज्झिमवयो, सिरोमुहामासे महव्वयो चिंतिते ति महव्वय-मज्झिमवय-बालेयसाधारणोपलद्धी वा वया उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ वण्णे पुव्वाधारिते अवदातेसु अवदातं थी-पुरिस-णपुंसकं बूया, सामेसु सामं बूया, कण्हेसु कण्हं बूया । अज्जो पेस्सो त्ति पुव्वमाधारिते तत्थ उद्धं णाभीयं अज्जप्पाणं चिंतितं ति बूया । अधो णाभीयं उद्धं जाणूणं अव्वत्तं पेस्सं बूया । पादजंघेसु पेस्समेव बूया । पादेसु अधत्थ पेस्सपेस्सं दासं चिंतितं बूया । तत्थ अज्जे पाणे पुव्वाधारिते पुणरवि 4 गुरुजोणी D तुल्लजोणी पच्चंवरजोणि त्ति 30तिविधमाधारयितव्वं भवति । तत्थ उवरिद्धा गीवाय अधो भुमकाणं गुरुजोणि, अतो उद्धं गुरुणो गुरु चिंतितो ति बूया । अधत्था गीवाय उद्धं कडीय तुल्लजोणीयं बूया । अधथा कडीयं पच्चवरजोणीयं अज्जपाणं चिंतितं ति बूया । तत्थ समण्णय-संबद्धे पुव्वाधारिते वामेसु पुण्णामेसु थीसमण्णयं पुरिसं चिंतितं ति बूया । थीणामेसु पुरिससमण्णयं इत्थि १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ २ 'मारिं चिंतितं बू हं० त० विना ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ सोमेसु हं० त० ॥ ५ दित्तेसु सूरेसु हं० त० विना ॥ ६ ‘मणुस्सगते हं० त० ॥ ७ “लद्धव्वायं हं० त० विना ॥ ८ 'व्वा इच्च त्ति । तत्थ हं० त० ॥ ९ अच्चंतं हं० त० ॥ १० Do एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ११ "स्था गीवाय कडी हं० त० ॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठवण्णासइमो चिंतितज्झाओ - २२५ चिंतियं ति बूया । दक्खिणेसु पुण्णामेसु पुरिससमण्णयं पुरिसमेव चिंतितं ति बूया । पुरिसणामा पुरिसणामेसु पवत्तेसु उद्धंभागेसु पितरं चिंतितं बूया । पुरिसणामा पुरिसणामेसु पवत्तेसु समभागेसु भायरं बूया । पुरिसणामा पुरिसणामेसु पवत्तेसु अधोभागेसु पुत्तं बूया । पुरिसणामा थीणामेसु पवत्तेसु उद्धंभागेसु मातरं बूया । पुरिसणामा थीणामेसु पवत्तेसु समभागेसु भगिणिं बूया । पुरिसणामा थीणामेसु पवत्तेसु उद्धंभागेसु दुहितरं बूया । थीणामा थीणामेसु पवत्तेसु उद्धंभागेसु थीमातरं बूया । थीसमभागेसु थिया भगिणिं चिंतितं बूया । थीणामा थीणामेसु पवत्तेसु अधोभागेसु थिया दुहितरं 5 बूया । थीणामा पुण्णामेसु पवत्तेसु अधोभागेसु जायामातरं बूया । थीणामेसु पुण्णामेसु पवत्तेसु समभागेसु भगिणिपति बूया । थीणामा पुण्णामेसु पवत्तेसु < अधोभागेसु > उद्धंगीवाय ससुरं बूया । थीसंसिद्धेसु पुणो पुणो संलि बूया । थीसंसिद्धेसु पुण्णामेसु संलि बूया । अब्भंतरेसु अब्भंतरं बंधवं बूया । बाहिरब्भंतरेसु मित्तं बूया । बाहिरबाहिरेसु जणं बूया । तत्थ मणुस्सजोणीवण्णविसेसेहिं थी-पुरिस–णपुंसकादेसेहिं अज्ज-पेस्सोवलद्धीहिं संठाण-वण्णवयप्पमाणेहिं सम्मण्णय-संबद्धगवेसणाहिं गुरुजोणि-तल्लजोणी-पच्चंवरजोणीहि उवलद्धीहिं बज्झ-ऽब्भंतरपवियएहिं एव 10 जधुत्ताहिं आमास-सद्द-रूवपादुब्भावोपलद्धीहि य णट्ठकोसए उवदिटुंतेहिं उवलद्धिविचारविसेसेहिं माणुसजोणी समणुगंतव्वा भवति । इति मणुस्सजोणी वक्खाता भवति । तत्थ तिरियामासे तिरियविलोइते तिरियगते सव्वतिरिक्खजोणीमते उवकरणे तिरिक्खजोणिउवकरणे तिरिक्खजोणीसद्दगते तिरिक्खजोणीणामोदीरणे तिरिक्खजोणीमए उवकरणे थी-पुरिससद्द-रूवपादुब्भावे एवंविधे सद्द-रूवपादुब्भावे तिरिक्खजोणि बूया । तत्थ तिरिक्खजोणिसंगहेण दुविधा-तसगता थावरगता चेव । तत्थ तसोवलद्धीय तसगता विण्णेया । 15 थावरोवलद्धीय थावरा विण्णेया । सा वित्थरतो छव्विधा आधारयितव्वा भवति । तं जधा-पक्खिगता १ चतुष्पदगता २ परिसप्पगता ३ उदकचरगता ४ कीड-पयंगक-किविल्लकगता चेव ५ एकिंदियथावरकायगता ६ चेति । तत्थ उद्धंगीवाय सिरोमुहामासे उल्लोइते उद्धंभागेसु सव्वसगुणगते सव्वसउणमते उवकरणे सव्वसउणोवकरणे सउणोपकरणे सउणसद्दगते सउणणामधेज्जोदीरणेसु सउणणामधेज्जे थी-पुरिससद्द-दव्वोवकरणपादुब्भावे एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-रूवपादुब्भावेसु पक्खी विण्णेया । ते दुविधा आधारयितव्वा-थलयरा जलयरा चेति, अधवा जलजा थलजा चेति । तत्थ आपुणेयेसु 20 णिण्णेसु य जलजा पक्खि विण्णेया चिंतितं ति बूया । लुक्खेसु थलेसु थलजेसु य थलजा पक्खी चिंतिय त्ति बूया। तत्थ सेतेसु हंसा सेडिका य विण्णेया । पण्हर्स चक्कवा-चक्कवाकयीएसु य विण्णेया । चित्तेसु आडा टेट्टिवालको णवूहका णदीसुत्तका कारंडवा य विण्णेया । कालेसु काकमज्जुका कातंबा णदीकुक्कुडीको विण्णेया । आरुणेसु उक्कोसा कोंचा गीवा रोहिणिका समुद्दकाक त्ति विण्णेया । G फेरुसेसु बक-हंस-चक्कवाका विण्णेया । के अवसेसा जलजा सगुणो पडिरूवआहारओ य विण्णेया । मंसरुधिरभोयीसु मंसरुधिरभोयी चिंतित त्ति । मुद्धं चूलेसु कातंबा 25 रोहिणिका बलाक त्ति विण्णेया । थीणामेसु सेडिका रोहिणिका णदीकुक्कुडिका आडाओ टिट्टिभीओ त्ति विण्णेया । तत्थ कायवंतेसु कुररा पारिप्पवा उक्कोसा रोहिणिका वेति विण्णेया । मज्झिमकायेसु हंसा चक्कवाका विण्णेया । मज्झिमाणंतरकायेसु आडा सेडिका णदीकुक्कुडिकाओ कारंडवा चेति विण्णेया । पच्चंवरकायेसु टेट्टिवालको णवूहका णदीपुत्तका एवमादयो विण्णेया । अणुलोम-पडिलोमेसु गत्तेसु उद्धंभागेसु अधोभागेसु य उद्धरायिसु उद्धरायी विण्णेया । सेतेसु सेता, एवमादीहिं वण्णेहिं सुवण्णा विण्णेया । तत्थ अक्खतेसु सव्वेसु अंतिमासेसु वा आसीविसा विण्णेया । 30 तिण्हेसु तिण्हविसा विण्णेया । तिहपच्चावत्तितेसु मिदुसाधारणेसु मंदविसा विण्णेया । वापण्णेसु अविसा चिंतेसि त्ति बूया । ते दुविधा-मंसरुधिरभोजी अमंसरुधिरभोजी चेव । इति जलजा पक्खिणो जलचर त्ति विण्णेया । १ "सु अहोभा हं० त० ॥ २ थीनामयरं बू हं० त० ॥ ३ द्धीहिं वयण हं० त० ॥ ४ ‘णीगते सि० ॥ ५ पंडूसु सं ३ पु० । पंडरेसु सि० ॥ ६ “सु चक्कवाकी पीतेसु य हं० त० विना ॥ ७ अडा हं० त० विना ॥ ८ "डा डेंटिवा' हं० त० ॥ ९ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ १० “सु 'देविवा' हं० त० विना ॥ ११ अतिसामेसु हं० त० ॥ १२ तिण्हेसु प हं० त० ॥ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ अंगविज्जापइण्णयं तत्थ थलजा पक्खी तिविधा आधारयितव्वा-गम्मा रण्णा गम्मारण्णा चेति । तत्थ अब्भंतरामासे गामेसु चेव पादुब्भावेसु गम्मा विण्णेया । बाहिरामासेसु आरण्णेसु य पादुब्भावेसु आरण्णा विण्णेया । बाहिरब्तरेसु गम्मारण्णपादुब्भावेसु चेव गम्मारण्णा पक्खी चिंतिय त्ति विण्णेया । थीणामेसु थीणामा, पुण्णामेसु पुण्णामा, णपुंसकेसु णपुंसका विण्णेया । सेतेसु सेता, रत्तेसु रत्ता, पीतेसु पीता, णीलेसु णीला, कण्हेसु कण्हा, आरुणेसु आरुणा, पंडुसु पंडू, 5कविलेसु कविला, फरुसेसु फरसा, 'चित्तेसु चित्ता, जधाप(व)ण्णपडिरूवतो वण्णे आधारिते पक्खिणो चिंतित त्ति बूया । कायवंतेसु कायवंता मयूरा कंका छिण्णालिंगाओ सुवण्णाओ चेति, एवमादीका कायवंतेसु चिंतित त्ति बूया । तत्थ मज्झिमकायेसु गद्धा वीरल्ला सेणा उलूका चेति एवमादयो विण्णेया । मज्झिमाणंतरकायेसु सालका कपोता वायसा सुका कोकिला तित्तिरा चेव विण्णेया । पच्चवरकायेसु वातिका तेल्लपातिका सगुणीका परसउणिका चम्मडिला एवमादी विण्णेया । एवं चतुविधकायो पडिरूवतो आमासेहि य विण्णेया । उरसरगते पाणगतेसु य < सेव्वसउणा > 10विण्णेया । चित्तेसु तित्तिरा चित्तकपोतका वणकुक्कुडा वह्यकाओ य विण्णेया । घोसवंतेसु घोसवंता विण्णेया । दारुणेसु मंसरुधिरभोयी विण्णेया । अणूसु धण्णभोयी विण्णेया । अघोसवंतेसु अघोसवंता विण्णेया । मधुररुतेसु महुररुता । कटुकरुतेसु कडुकरुता विण्णेया । तधा अव्वत्तघोसेसु अव्वत्तघोसा चिंतितं ति विण्णेया । एवमादीहिं संठाण-वण्णथी-पुरिस–णपुंसकोपलद्धीहिं आहार-घोस-पडिरूव-सद्दपादुब्भावेहिं जलया थलया य पक्खिणो आधारयित्ता आधारयित्ता जधुत्ताहिं उवलद्धीहिं आमास-सद्द-पडिरूवपादुब्भावेहिं उवलद्धव्वा भवंति । इति पक्खिगतो जलय-थलयपक्खिसमायुत्ता 15 दुविधा चिंता वक्खाता जीवचिंता भवतीति । तत्थ चतुष्पदे चउरस्सेसु य चउप्पदमए उवकरणे चतुप्पदोवकरणे चतुप्पदसद्दगते चतुप्पदणामोदीरणे चतुप्पदणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणगते एवंविधपक्खित्तामासे सद्द-रस-रूवपादुब्भावे चतुप्पदं चिंतितं ति बूया । ते दुविधा आधारये-पज्जा जलचरा चेव, अधवा थलचरा जलचरा चेति । तत्थ सव्वआपुणेयेसु सव्वजलेसु जलचरेसु य जलचरा विण्णेया । तं जधा-सुंसुमारा उदककच्छभ त्ति मच्छगये विण्णेया भवंति । तत्थ पुणरवि चतुप्पदा 20 आधारयितव्वा भवंति-गम्मा अरण्णा गम्मारण्णा चेति । तत्थ अब्भंतरेसु सव्वगम्म < गते चेव गम्मा > विण्णेया । बाहिरामासेसु सव्वआरण्णगतपादुब्भावेसु चेव आरण्णा चतुप्पदा चिंतित त्ति बूया । अभितरबाहिरेसु गम्मारण्णेसु तस्सद्दरूवपादुब्भावे य गम्मारण्णा विण्णेया । तत्थ गो-महिस-अयेलकोट्ट-खर-सुणका चेव एवमादी गम्मा विण्णेया । सीह-वग्ध-तरच्छ-ऽच्छ-भल्ल दीविक-गेज-चमरीओ खग्गा चेति विण्णेया, एवमादयो आरण्णा विण्णेया । तत्थ जे केयि आरण्णा भुत्ता गम्मा भवंति एते गम्मारण्णा भवंति । तत्थ हत्थी अस्सा वराहा वगा सियाला मुंगुसा णउला 25 उंदुरा कालका पयला कातोदूका सरंता घरघुला चेति एवमादयो गम्मारण्णा विण्णेया । तत्थ चउप्पदा पुणरवि दुविहा आहारयियव्वा भवंति–चउप्पदा चेव परिसप्पा चेव । तत्थ चउप्पदगए सव्वउद्धंभागेसु सव्वपरिसप्पचउप्पदगते चेव परिसप्पचउप्पदा विण्णेया । अजगरं असालिका गोधा तोडका सरंता मुंगुसा णकुला पयलाका अहिणुका घडोपला उंदरा चेति । तत्थ पुणरवि तिविधा चतुप्पदा आधारयितव्वा-थलचरा वुक्खचरा बिलसाइ त्ति । तत्थ पत्थिएसु 30 थलेसु थलचरेसु य थलचरा चिंतित त्ति बूया । उद्धंभागेसु मूलजोणीगते चेव वुक्खचरा चतुप्पदा चिंतित त्ति बूया । सव्वछिद्देसु अधोभागेसु य बिलसायी विण्णेया । तत्थ वुक्खचरा विराला उंदुरा खालका घरपूपला अहिणुका तोड्डका य पचलाका वेति एवमादयो चिंतिता विण्णेया भवंति । तत्थ बिलासया दुविधा-सेलबिलासया भूमिबिलासया १ छिण्णलिं हं० त० विना ॥ २ सुका काका को हं० त० ॥ ३ चम्मट्ठि एव हं० त० विना ॥ ४ उरसुर सं ३ पु० । उवसर' सि० ॥ ५ > एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ६ वहाका हं० त० ॥ ७ अहातच्चंतघो हं० त० ॥ ८ अच्चंतघो हं० त० ॥ ९ गवज (गवल) चम' हं० त० विना ॥ १० रा कापयला काओट्टका सरंवा घर हं० त० ॥ ११ सरंडा मुं हं० त० ॥ १२ उदुंबरा हं० त० ॥ १३-१४ तुखचरा हं० त० ॥ १५ थालका हं० त० ॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ अट्ठवण्णासइमो चिंतितज्झाओ चेव । तत्थ दढेसु अधोभागेसु सेलबिलासया विण्णेया । थूलेसु भूमिबिलासया विण्णेया । तत्थ सेलबिलासया दीहवग्घा अच्छभल्ला तरच्छा सालिभा सेधका दीपिका विलालु अजिणविलाला सलभा गोधा उंदुरा अयकरा वेति विण्णेया भवंति । तत्थ भूमिबिलासयेसु लोपका णउला गोधा अहिणूका तोड्डका ताडका चेति एवमादयो विण्णेया । माणुसतिरिक्खजोणीसाधारणेसु वाणरा णरसीहा अस्सपूतणा वेति विण्णेया । तत्थ वायुसु चलेसु साहागते अणवत्थियसभावगते य वाणरा विण्णेया । सारवंतेसु सूरेसु य णरसीहा । दारुणेसु तिणादेसु य अस्सपूतणा विण्णेया । असमूलकायवंतेसु 5 असालिका अयकरा > हत्थिणो एवमादयो चिंतिता विण्णेया । मज्झिमकायेसु सीह-वग्ध-अच्छभल्ल-तरच्छणीलमिग-गयगोकण्णा गो-महिस-खरोट्टा य एवमादयो विण्णेया । मज्झिमाणंतरकायेसु दीपिका-तरच्छ-कोंच-वगमग-अयेलकमिति एवमादयो विण्णेया भवंति । पच्चवरकायेसु सुणग-सिगाल मज्जास्-सस-मंगुस–णउल एवमादी चिंतिया विण्णेया । अणूसु उंदुरा खालका तोडुका अहिणूका वेति एवमादयो विण्णेया । गो-महिस-खरोट्ट-अस्सा हत्थि वेति वाहणेसु विण्णेया । तणादेहि तणादा, G मंस-रुधिरभोयिसु के मंसरुधिरभोयी विण्णेया । सेतेसु 10 सेता, पीतेसु पीता, रत्तेसु रत्ता, णीलेसु णीला, कण्हेसु कण्हा, पुंडेसु पुंडा, पंडूहि पंडू, आरण्णेहि आरण्णा, चित्तेहिं चित्ता, फरुसेहि फरुसा, वण्णतो आधारित चिंतिता विण्णेया भवंति । पुण्णामेहि पुण्णामा, थीणामेहि थीणामा, णपुंसकेहि णपुंसका, मिधुणचरेहि मिधुणचरा, गणचरेहिं गणचरा विण्णेया, एकचरेहिं एकचरा चतुष्पदा पक्खी वा । एवमादी पज्जएहिं आधारयित्ता आधारयित्ता सव्वमेव समणुगंतव्वं भवति । तत्थ परिसप्पजोणी तिविहा-दव्वीकरा मंडलिणो रायिमंता चेति संगहेण आधारयितव्वं भवतीति । तत्थ 15 तिरिच्छाणराइणो रत्तराइणो सेत-पीत-चित्त-सेवालका कण्हा अणज्जपुप्फवण्णगा पंचाणुरत्ता वेति वित्थारतो वण्णविसेसेहि आधारयितव्वा भवंति । तत्थ आयतेसु वायव्वेसु य दव्वीकरा चितिता विण्णेया । मंडलेसु मंडलिणो विण्णेया । तिरियामासे तिरियविलोगिते चेव तिरिच्छाणराइणो चिंतिता विण्णेया । अणुलोम-पडिलोमितेसु गत्तेसु उद्धंभागेसु य उद्धराइणो विण्णेया । सेतादीका वण्णसमायोगा य सवण्णपडिरूवेसु परिसप्पाण वण्णो आधारिते विण्णेया चिंतिता भवंतीति । तत्थ अक्खयेसु सव्वेसु अतिमासेसु वा आसीविसा बूया । तिण्हेसु तिण्हविसा विण्णेया । तिण्हेसु बच्चो- 20 वतियेसु मिदुसाधारणेसु वातंदविसा बूया । पण्णेसु णिव्विसे बूया । ते दुविधा आधारयितव्वा भवंति-थलजा जलजा चेति । तत्थ आपुणेयेसु जलजा विण्णेया । तत्थ कद्दमग-हित्थिय-कच्छभक-आणावचरणिग-पदुमा-भिंगणागवमारक-राजमहोरक-जलचर-सवलाहिका कुक्कुडा देवपुत्तका समाणाहिए ति जलजेसु चोदिता । तत्थ अंतलिक्खपरिसप्पा चलेसु उद्धंभागेसु विण्णेया भवंति तलिका पगती । अवसेसा थलचरा । ते चतुप्पदा अपदा बहुपदा चेति पुणरवि आधारयितव्वं भवति । तत्थ चतुप्पदेसु चतुरस्सेसु चतुष्पदमदे उवकरणे चउप्पदोवकरणे चतुप्पदसद्दोदीरणे 25 चउप्पदणामोदीरणे चतुष्पदणामधेजे थी-पुरिसउवकरणगते चेव एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-रूवपादुब्भावे चतुप्पदपरिसप्पं चिंतितं बूया, अयकस्-तोड्डक-गोधा-सरंट-अहिणूका चेति । तत्थ बहुपदेहिं केस–मंसु-णहसमामासेसु चेव बहुपदसद्दपडिरूवपादुब्भावेसु चेव बहुपदा विण्णेया, गोम्मि सतपदि इंदगोविका चसणिका वेति एवमादिणो भवंति । अवसेसा दीहसमामासेसु विण्णेया भवंति । थीणामेसु थीणामा, पुण्णामेसु पुण्णामा, णपुंसकेसु णपुंसका । संठाण-वण्णबहुविसं आहार-विधास्-जोणिकादीकाणि य जधुत्ताहिं उवलद्धीहि आधारयित्ता परिसप्पा उवलद्धव्वा भवंति । इति परिसप्पजोणीगते 30 चिंता वक्खाता भवति । १ "भा सेवका हं० त० ॥ २ वाडका हं० त० ॥ ३ "स्सा वेति ह' हं० त० ॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त. एव वर्तते ॥ ५ पण्हूहि पण्हू, आ हं० त० ॥ ६ अवि(धि)मा हं० त० ॥ ७ ‘सु वण्णवि हं० त० ॥ ८ पच्चोभवति हं० त० ॥ ९ वापण्णे' है. त० ॥ १० भवंतीति हं० त० विना ॥ ११ अणाव' हं० त० विना ॥ १२ भिमणागवमीरकराजमवराहारक हं० त० ॥ १३ "हिवे ति हं० त० विना ॥ १४ ततिका हं० त० विना ॥ १५ करओड्डक हं० त० ॥ १६ “सामासामेसु हं० त० ॥ १७ सतापट्ठि इंदगोधिका वरुणिका हं० त० ॥ अंग० २० Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं तत्थ आपुणेयेसु जलचरेसु एवंरूवेसु चेव पडिरूव - सद्दपादुब्भावेसु चेव जलचरे चिंतिते बूया । तत्थ उदकचरा चतुव्विधा आधारयितव्वा - दुपदा १ चउप्पदा २ बहुपदा ३ अपदा दीहपदा ४ वेति । तत्थ दुपदेसु दुपदसद्दपडिरूवे चेव दुपदं चिंतितं बूया, हत्थिमच्छा मगमच्छा गोमच्छा अस्समच्छा णरमच्छा णदीपुत्तका सव्वचरा चेति । तत्थ चतुप्पदेसु चतुक्केसु चतुप्पदसद्द - रूवपादुब्भावे चेव चतुष्पदा विण्णेया, कच्छभा सुंसुमारा मंदुक्का उदकायो चेत 5 एवमादयो भवंति । तत्थ केस-मंसु णह-लोमपरामासे बहुपदपडिरूवगते चेव बहुपदा विण्णेया, कुमारीला - सकुचिकादयो भवंति । तत्थ दीहामासे सव्वदीहपट्टपडिरूवगते य दीहपदा विण्णेया, चैम्मिरा घोहणुमच्छा वइरमच्छादयो भवति, एवमादयो अपदा । तत्थ दारुणेसु गाहा विण्णेया । सव्वआहारगते चेव सव्वआहारगते आहारोपका विण्णेया । अधोभागग कूवगता विण्णेया । णिण्णेसु सर- पुक्खरणिगता विण्णेया । सण्णिरुद्धेसु तब्भागगता विण्णेया । थीणामेसु दीहेसु णिण्णेसु य णदीगता विण्णेया Do | महावकासेसु परंपरगंभीरेसु परिक्खेवेसु य समुद्दगता विण्णेया । महाकायेसु 10 तिमितिमिंगिला विण्णेया । मज्झिमकायेसुं वालीणा सुंसुमारा कच्छभमगरा गद्दभकप्पमाणा चिंतित त्ति बूया । मज्झिमाणंतरकायेसु रोहित - पिचक - णल- मीण-चम्मिराजी विण्णेया । पच्चवरकायेसु कल्लार्डक - सीकुंडी - उप्पातिकाइंचका–कुडुकालक—सित्थमच्छका वेति चिंतित त्ति बूया । सेतेसु सेता, रत्तेसु रत्ता सवण्णपडिरूवपादुब्भावेहिं जधण्णामासे दंसणीयपादुब्भावे यदिट्ठपुव्वो चिंतित त्ति बूया । णयणपडिप्पिधाणे य दंसणीयाणं पतिवग्गामेव अदिट्ठपुव्वा विष्णेया । सोत्तामासे सव्वघोसवंतेसु य सुयपुव्वा भवंति । सोत्तपडिप्पिधाणे घोसवंतविब्भामे य अस्सुतपुव्वा विण्णेया । इति 15 जलचरजोणी वक्खाता भवति । २२८ तत्थ सव्वपच्चवरकायेसु अणूसु य कीडकिविल्लकजोणी चिंतिता विष्णेया । वण्णे आधारिते सेतेसु सेता, रत्सु रत्ता, पीते पीता, णीलेसु णीला, कण्हेसु कण्हा, सेवालकेसु सेवालका, पण्हूसु पण्हू, फरुसेसु फरसा, चित्तेसु चित्ता, सवण्णपडिरूवतो विण्णेया । थीणामेसु थीणामा, पुण्णामेसु पुण्णामा, णपुंसकेसु णपुंसका, एकचरेसु एकचरा, मिधुणचरेसु मिधुणचरा, गणचरेसु गणचरा चिंतित त्ति विण्णेया । इति कीड - पतंग - किविल्लिकागता तिरिक्खजोणी 20 पडिरूवपादुब्भावेहि उवलद्धव्वा । इति कीड-पतंगगता तिरिक्खजोणी वक्खाता भवति चितिता । तत्थ थावरतिरिक्खजोणी पंचविधा आधारयितव्वा भवति । तं जधा - पुढविकाइगगता आवुक्काइगगता ते उक्काइगगता वाउक्काइगगता वणप्फतिकाइगगता वेति । तत्थ सव्वदढेसु पुढवीपाउब्भावेसु धातुजोणिगते य पुढविकाइकं थावरं चिंतितं ति बूया । आपुणेयेसु उदकपादुब्भावे आवुजोणीगते चेव आवुक्कायिका थावरा चिंतित त्ति बूया । अग्गेयेसु अग्गिपादुब्भावे अग्गेयेसु सद्द - रूवपादुब्भावेसु अग्गिउवकरणगते चेव तेवुक्काइका थावरा चिंतित त्ति बूया । वायव्वेसु वायपादुब्भावेसु 25 चेव उवकरणसद्दपादुब्भावेसु चेव वायुक्कायिकं थावरं चिंतितं ति बूया । सव्वगहणेसु सव्वतरुणहरितक- पुप्फफलपत्तपादुब्भावे चेव मूलजोणीगतेसु चेव सद्द - रूव - उवकरणपाउब्भावे चेव एवंविधवणप्फतीकायिकथावरं चिंतितं ति बूया । इति थावरगया तिरिक्खजोणीकगता चिंता वक्खाया भ॑वति । तत्थ अधोभागे जहण्णेसु किण्हेसु संकिलिट्ठेसु उवद्दुतेसु अदंसणीयेसु अबुद्धीरमणेसु चेव एवमादीकेसु आमासेसु सद्द-रूवेसु चेव एवंरूवेसु णेरइकपडिरूवेसु णेरइकसद्दपादुब्भावेसु चेव णेरइयं चितितं ति बूया । इति 30 णेरइकगता चिंता वक्खाता भवति । तत् सव्वपाणा पुणरवि सत्तविधा आधारयितव्वा भवंति । तं जंधा - एकपदा १ बिपदा २ चतुप्पदा ३ [छप्पदा ४] अट्ठपदा ५ बहुपदा ६ अपदा ७ चेति । तत्थ एकपादुब्भावे एकपदा विण्णेया एक्करुका भवंति १ । दुगपदुभा दुपदका भवंति । ते दुविधा - माणुसा पक्खी माणुसतिरिक्खजोणी वेति । ते तिविधा - किण्णरा किंपुरिसा अस्समुहीओ I १ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ २ कुरीला हं० त० विना ॥ ३ तम्मिरा योह हं० त० ॥ ४सु पालीणा सं ३ पु० ॥ ५ 'मीलच हं० त० विना ॥ ६ 'डकुसीकुंडिओपातिकाईवकाकुटुकालकमित्थमच्छका हं० त० विना ॥ ७ अण्णेसु हं० त० ॥ ८ ता तणवण हं० त० ॥ ९ भवति छप्पया । तत्थ हं० त० विना ॥ १० एक्कारका हं० त० ॥ ११ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ For Private Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठवण्णासइमो चिंतितज्झाओ २२९ वेति माणुसा व तिरिक्ख माणुस - जोणीसाधारणे बिपदा भवंति । तत्थ सव्वं उद्धंभागेसु पक्खी दुपदो विण्णेयो । सव्ववित्थडामासेसु माणुसोपकरणेसु चेव माणुस्सदुपदजोणी विण्णेया । मणुस्सतिरिक्खजोणीसाधारणेसु.किन्नरा किंपुरिसा अस्समुहीओ वेति । तत्थ दुपदे थीणामेसु चेव अस्समुहीओ विण्णेयाओ भवंति । सव्वरुतेसु सव्वसउणगते चेव किन्नरा किंपुरिसा विण्णेया । इति माणुसतिरिक्खजोणीसाधारणेसु तिरिक्खजोणी विण्णेया भवति २ । तत्थ सव्वचतुष्पदे सव्वचतुप्पदपडिरूवगते य चतुक्कवग्गगतेणं चेव उवलद्धव्वा भवंति ३ । तत्थ छप्पदा छेकवग्गोवलद्धीहि पडिरूवगते 5 उवलद्धव्वा भवंति । तं जधा-भमरा मधुकरीओ मसगा मक्खिकाओ चेति । तत्थ मुदितेसु भमर-मधुकरा विण्णेया । सव्वमूलगते चेव दारुणेसु मसका मक्खिकाओ य विण्णेया । थीणामेसु मधुकरीओ मक्खिकाओ चेव विण्णेया । पुण्णामेसु भमरा मसका चेव विण्णेया ४ । तत्थ अट्ठपदा अट्ठकवग्गपादुब्भावेण अट्ठकपडिरूवेण चेव उवलद्धव्वा भवंति ५ । केस-मंसु-णह-लोमपरामासे बहुपदपडिरूवे चेव बहुपदा विण्णेया भवंति ६ । अपदेहिं परिमंडलेहि दीहपादुब्भावेहिं चेव अपदे वि त्ति जाणिय त्ति ७ । 10 तत्थ अट्ठपदा बहुपदा कीडकिविल्लगे इमेहिं विण्णेया भवंति । तं जधा-किविल्लकाओ ओपविका कुंथू इंदगोपका पसलचित्ता कण्हकीडिका - यूका मंकुणा उप्पातका रोहिणिका चेति एवमादयो । तत्थ उण्हेसु जुगलिका कण्हपिपीलिका कण्हविच्छिका चेति विण्णेया, जे यऽण्णे उपहा । रत्तेसु रत्ता रोहिणिका इंदगोपगो, जे यऽण्णे रत्ता पिपीलिका जगलिका । पत्थिवेसु किविल्लका इंदगोपका चेति विण्णेया । F दढेसु किविल्लका जंगलिका विण्णेया । का दीहेसु पिपीलिका जंगलिका विण्णेया । परिमंडलेसु इंदगोपका मंकुणा य । गामेसु यूका मंकुणा य विण्णेया । 15 गम्मारण्णेसु घुणा विण्णेया । अवसेसा भूमीणिस्सितेसु । अंतलिक्खेसु संताणका उंडणाही घुक्कभरधा वि वा विण्णेया । पक्खिगते अग्गिकीङ-पतंगा मक्खिकाओ भमर-मधुकरा चेव विण्णेया । इति छप्पदा जोणी बहुपदजोणी अपदजोणी चेव कीडकिविल्लगगता वक्खाता चिंता भवतीति । तत्थ सत्तविधा पाणा पुणरवि आधारयितव्वा भवंति दुविधा-जलचरा थलचरा चेति । तत्थ आपुणेयेसु जलचरेसु सव्वजलचरपडिरूवे चेव जलचरा विण्णेया भवंति । तत्थ थलेसु लुक्खेसु उण्णतेसु य सव्वथलयरगते चेव थलचारी 20 चिंतितं ति बूया । तत्थ उदकचरा विण्णेया उब्भिजा बिलासया अभितचरा चेति । तत्थ उब्भिजा संखणा काकुंथिका वडका सिरिवेट्ठका करिण्हुका पैयुमका सद्दा तीलका इति । उब्भिजेसु एते उम्मढे आमास-सद्दपडिरूवेण उवलद्धव्वा भवंति उब्भिय त्ति । तत्थ बिलासयेसु कण्हगुलिका सेतगुलिका खुल्लिका आहाडका कसका वातकुरीला वातंसु कुतिपि एवमादयो अधोभागेसु छिन्नेसु वण्ण-आयार-पडिरूंवेणं चेव एतेसु बिलासया भवंति । इति बिलासया । तत्थ अमितचरेसु इलिका-सीकूणिक-णंदि-उब्भणाभी तंतुवायका णदीमच्छका जलायुमच्छका वेति बहुपदेहि एते सकेहि पडिरूवपाउब्भावेहिं 25 जधोपदिद्वेहि उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ अपदा दुविधा-परिसप्पा चेव किमिका चेव । तत्थ महावकासेसु परिसप्पा विण्णेया । तत्थ किमिगता आसाति(लि)का किमिका चुरु गुण्हु(गंडू)पया य सव्वट्ठका सूकमिंडा वेति G एवमादयो 7 विण्णेया भवंति । तत्थ णीलेसु णीला, चित्तेसु चित्ता, संविकट्ठपाणस्सितेसु आसातिका किमि धुरुउ त्ति विण्णेया । भूमीणिस्सितेसु गंडूपका १ एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठ: हं० त० नास्ति ॥ २ छवण्णोव हं० त० ॥ ३ अपरिमंडलदीह' हं० त० ॥ ४ उपधिका हं० त० ॥ ५ पमलचिंता हं० त० विना ॥ ६ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० अंगविज्जापइण्णयं विण्णेया । मूलजोणीणिस्सितेसु लिच्छा संवुट्टिका सूकमिदा ति विण्णेया । इति अपदजोणीयं वक्खाता भवति । इति सत्तविधा पाणजोणी वक्खाता । सज्जीवपडिरूव-आमास-सद्दपादुब्भावेहिं चितायं भवतीति । तत्थ अज्जीवा तिविधा-पाणजोणीसंभवा मूलजोणीसंभवा धातुजोणीसंभवा चेति । तत्थ चलामासेसु सव्वपाणजोणीगते चेव पाणजोणी विण्णेया । केस-मंसु-लोम-णहगते य सव्वमूलगते चेव मूलजोणी विण्णेया । तत्थ 5 दढामासेसु सव्वधातुगते चेव धातुजोणी विण्णेया । तत्थ पाणजोणी दुविधा-संखता असंखता चेव, अग्गेया F अणग्गेया ' चेव दुविधा आधारयितव्वा भवति । तत्थ अग्गेयेसु अग्गेया विण्णेया । अणग्गेयेसु. अणग्गेया विण्णेया भवंति । सा दसविधा आधारयितव्वा भवति, तं जधा-केसगता - सिंगगता लोमगता - अत्थिगता [मंसगता रुधिरगता] मज्जागता चम्मगता ण्हाउगता मेदगता वेति । उपजोणीणका पंचविधा, तं जधा-पित्तगता सिंभगता दुद्धगता मुत्तगता रेतगता चेति । तत्थोवलद्धीओ केसगता लोमगता सिंगगता चेति आहारमेए उपकरणे उवलद्धव्वा 10 भवंति । अंजणी-फणिका-वीजणी-दंडाओ धूमणत्तं समग्गपाउकामये आसंदक-पल्लंक-कोडिलक्खणकआसणगते चेव विण्णेया भवंति, इति केसगता । तत्थ लोमगतं सजीवक-पत्तुण्ण-अजिणप्पवेणि इति पकिण्णक वीजणिया चामरं अजीणकंबलो बालसाडि बालमुंडिका बालव्वयणी वा एवमादीणि विण्णेयाणि । तत्थ चम्मगते उपाणहा अस्सभंडं भच्छा दितिका अजीणं अजीणप्पवेणिका वीणा मसूरका पखरगतं दद्दरका आलिंगा मुख त्ति एवमादयो विण्णेया भवंति पडिरूवपादुब्भावेणं सएहि आमासपडिरूवेहि चेव । तत्थ मंसगते आहारो विण्णेयो भवति । तत्थ व्हावुणीगतं 15दुविधं-हीरगतं गंडिगतं चेव । तत्थ हीरगतं तत-वितता व ता विक्खाता वा गुणगतं विण्णेयं भवति । तत्थ अट्ठिगतं संकुगतं खीलिगतं सिप्पिपुडगतं F संखभायणगतं 9 विण्णेयं भवति । रुधिरगते अट्ठिगतं कियागतं विण्णेयं भवति । तधा धातुगतं तधा वेसागते पुरिसगते कियागतं विण्णेयं भवति ओसहाहारगतं वा । तत्थ आपुणेयेसु वसागतं रुधिरगतं पित्तगतं दुद्धगतं विण्णेयं भवति । तत्थ रत्तेसु रुधिरगतं विण्णेयं । सेतेसु दुद्धगतं रेतगतं वा विण्णेयं भवति । स दद्धगतं विण्णेयं । मदितेस विणदेस य सक्कं विष्णेयं भवति । सेतेस चेव कड़केस पित्तं विण्णेयं 260 भवति । Do पीतेसु चित्तेसु थूलेसु रुधिर-वसा विण्णेया । अणूसु केस-मंसु-लोमगतं विण्णेयं । उद्धंभागेसु सिंगगतं विण्णेयं । केसगतेसु चेव अग्गेएसु पुरी-दुद्धगतं विण्णेयं । 6 तणूसु वस्सगयं विण्णेयं । क दारुणेसु रुधिर-हार-अट्ठि-मेदो विण्णेया । सव्वबहलगते दुद्धं विण्णेयं । परिजिण्णेसु वधेसु य मुत्त-पुरीसं विण्णेयं । तत्थ आहारेसु पाणजोणी चम्मगता वत्थिगता अट्ठि अट्ठिमज्जा । जे अट्ठिगता दुद्धं वसा रुधिरमिति । दीहेसु ण्हारुगतं विण्णेयं । वायव्वेसु वत्थिगतं विण्णेयं भवति । तत्थ आहार-पाणजोणीओ चम्मगता मंसगता वत्थिगता 250d अलि 2 अट्ठिमज्जागता य । अट्ठिगता दुद्धं वसा रुधिरमिति । तत्थ भायणगते सिप्पिगतं संखमयं दंतमयं गवलमयं विण्णेयं भवति । तत्थ अट्ठिमये आभरणलोहितिका विण्णेया भवति । तत्थ चम्मे वत्थी आहारगते विण्णेया भवति, दंतभायणगते विण्णेया । अजिणपट्टे अजिणप्पवेणी अजिणगकंचुका चेव वत्थगते विण्णेया भवंति, चम्मसाडीओ य विण्णेया भवंति । मूलगते लोमगतं अच्छादणं विण्णेयं भवति । इति पाणजोणिपडिरूव-सद्दपादुब्भावेहि समास वासतो उवलद्धव्वं भवतीति । इति पाणजोणी वक्खाता भवति चिंताया अज्जीवेति । 30 तत्थ मूलजोणी तिविधामाधारयितव्वं भवति-मूलगता खंधगता अग्गगता चेति । तत्थ पाद-जंघे मूलजोणी सव्वधातुगते य उद्धं कडीयं अधो गीवायं खंधं जोणीखंधगतेसु य उज्जुयगेसु य उद्धं गीवाय अग्गजोणी उद्धंभागेसु १सूकीमद्दा हं० त० ॥ २ विहायं हं० त० ॥ ३ हस्तचिान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ४ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठवण्णासइमो चिंतितज्झाओ २३१ चेव । तत्थ मूलजोणी एकविधा विण्णेया । स खंधजोणी दुविधा तया Do गता सारगता चेति । तत्थ तणूसु तयागता विण्णेया तयागता चेव । सारगता सारगते विण्णेया भवंति धातुगते चेव । तत्थ अग्गगता तिविधा-पत्तगता पुप्फगता फलगता वेति । तत्थ पत्तगया तिविधा-तरुणा मज्झिमा जरढा चेति । तत्थ पत्तगया ति(बि)विहा-पुधूसु तणूसु य । पुष्फगते पुष्फगता विण्णेया मुदितेसु चेव । फलगते फलगता विण्णेया पुण्णेसु सारवंतेसु य । तत्थ फलगतं पंचविधं-सेतं रत्तं पीतं नीलं कण्हमिति । एताणि सवण्णेहिं विण्णेयाणि भवंति । तत्थ फलं पंचरसं आधारयित्ता 5 जधारसं विण्णेयं भवति । तत्थ मूलजोणी दुविधा-सज्जीवा चेव अज्जीवा चेव । तत्थ सज्जीवगते सज्जीवा विण्णेया । अज्जीवगते अज्जीवा विण्णेया । तत्थ सज्जीवा तिविधा-गम्मा ८ अरण्णा Do गम्मारण्णा चेति । तत्थ अब्भंतरेसु गम्मा वणप्फतयो विण्णेया । गम्मेसु चेव सव्वबज्झेसु वणप्फतयो आरण्णा विण्णेया । बज्झब्भंतरेसु गम्मारण्णा विण्णेया वणप्फतयो । सव्वगम्मारण्णेसु चेव तिविधा-थीणामा पुण्णामा णपुंसकणामा चेति । तत्थ थीणामेसु थीणामा, पुण्णामेसु पुण्णामा, णपुंसकणामेसु णपुंसकणामा विण्णेया वणप्फतयो । आपुणेयेसु णदीरुहा । णिण्णेसु य थलेसु थलजा विण्णेया । 10 लुक्खेसु चेव दढेसु स पव्वतविरुहा विण्णेया । Do पव्वतपडिरूवेसु य पव्वतरुहेसु चेव ते चतुविधा-पुष्फसाली १ पुष्फफलसाली २ ०4 फैलसाली Do चेव ३ [ण] पुप्फसाली ण फलसाली ४ चेति । तत्थ पुप्फसालिणो तिविधा आधारयितव्वा भवंति–पत्तेकपुप्फा गुलुकपुष्फा मंजरिणो । तत्थ एक्ककेसु गत्तेसु एक्ककपादुब्भावे चेव पत्तेकपुप्फा विण्णेया । पत्तेकपुप्फेसु चेव परिमंडलेसु गुलुकपुप्फा विण्णेया । गुलुकपुप्फेसु चेव दीहेसु मंजरिणो विण्णेया । मंजरिपुप्फेसु चेव मंजरिपुप्फेसु ते पंचविधा-सेतपुप्फा 15 रत्तपुप्फा पीतपुप्फा णीलपुष्फा कण्हपुप्फा चेति । एते सवण्णतो आधारयित्ता आधारयित्ता विण्णेया-सेतेसु सेतापुप्फा, रत्तेसु रत्तपुप्फा, पीतेसु पीतपुप्फा, णीलेसु णीलपुष्फा, कण्हेसु कण्हपुप्फा विण्णेया । एते तिविधं आधारयित्ता सुगंधपुष्फा दुग्गंधपुप्फा अच्चंतगंधपुप्फा चेति । तत्थ सुगंधेसु सुगंधपुप्फा, दुग्गंधेसु दुग्गंधपुप्फा, अच्चंतगंधेसु अच्चंतगंधपुप्फा विण्णेया १ । तत्थ फलसाली चतुविधा-कायवंतफला मज्झिमकायफला मज्झिमाणंतरकायफला पच्चवरकायफला चेति । 20 तत्थ कायवंतफला पणसा तुंबा कूभंडपुष्फ-फलप्पमाणफला विण्णेया भवंति । मज्झिमकायवंतफला कवित्थबिल्लप्पमाणा विण्णेया भवंति । मज्झिमाणंतरकायफला अंब-अंबाडक-णीप-तिदुक-उदुंबरप्पमाणा विण्णेया । पच्चवरकायफला अस्सोत्थ-वङ-पील-पियाल-फरुस-चम्मणडोला-कोलक-करमंद-कलायसैबीयप्पमाणाणि । ते पंचविधा सेतफला रत्तफला पीतफला णीलफला कण्हफला चेति । जधापडिरूवेहि वण्णतो कायप्पमाणतो चेव आधारयित्ता आधारयित्ता उवलद्धव्वा भवंति भक्खफलगता अभक्खफलगता चेव । तत्थ सव्वआहारगते भक्खफला विण्णेया । अणाहारगते 25 अभक्खफला विण्णेया । ते तिविधा आधारयितव्वा-सुगंधा दुग्गंधा अच्चंतगंधा चेव । सुगंधेसु सुगंधफला, दुग्गंधेसु दुग्गंधफला, अच्चंतगंधेसु अच्वंतगंधफला विण्णेया । ते पंचविधा रसफला आधारयितव्वा भवंति, तं जधा-तित्तफला कडुकफला अंबिलफला कसायफला मधुरफला चेति । एते जधुत्ताहि रसोपलद्धीहि रसतो उवलद्धव्वा भवंति २ । तत्थ जे पुप्फेण णज्जंति ण फलेण [ते पुप्फसालिणो,] तं जधा-असोग-णागरुक्खा सत्तिवण्णा तिलका सिंदुवार त्ति, जे यऽण्णे एवंविधा वेति । तत्थ जे फलेण उवभुज्जते ते फलसालिणो । तत्थ इमे फलेण णज्जंते, 30 तं जधा-पणसा पारेवता लउचा मातुलुंगा उदुंबरा, जे यऽण्णे एवमादयो । तत्थ इमे पुप्फेण फलेण चेव णज्जंते पुप्फ-फलोपगा, तं जधा-अंबा अंबाडगा णीव-बउल-जंबु-दालिमा, जे य अण्णे एवंविधा भवंति । पुप्फ-फलतो य जे उवयुजंति तें चिंतिता विण्णेया भवंति पुप्फ-[फल]सालिणो त्ति ३ । १-२-३ No एतच्चिह्रान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ४ 'त्थफलप्प हं० त० विना ॥ ५ 'धम्णण हं० त० विना ॥ ६ संथीय हं० त० ॥ ७ “णाणग' हं० त०॥ ८ माउसगा हं० त० ॥ ९ ण णज्जंते फहं० त० ॥ १० “लओ य जे वज्जतिए चिति' हं० त० ॥ . Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइणयं तत्थ जे ण पुप्फेण फलेण णेव उवजुज्जंते ते णेव पुप्फसालिणो [व] फलसालिणो त्तिविण्या । तं जधा - खदिरा धवा अयकण्णा पूतिकरंजो अहिमारो पूतिला कुंभकंडका चेति एवमादयो विण्णेया । जे य अण्णे एवंविधा, ते णेव पुप्फसालिणो [णेव फलसालिणो] चतुत्था पगती रुक्खाणं विण्णेया इति ४ । 10 २३२ एते धुत्ताहि सकाहि उवलद्धीहि उवलभित्ता चतुव्विधा उवलद्धव्वा । ते सव्वे चतुव्विधा - कायवंतो मज्झिमकाया 5 मज्झिमाणंतरकाया पच्चंवरकाया चेति तत्थ सव्वरुक्खा विण्णेया । उद्धंभागेसु लता विण्णेया । कुडिलेसु य वामभागे मज्झिमकायेसु गुम्मा विष्णेया । गहणेसु य तिरियपच्चवरकायेसु तणा विण्णेया उवग्गहणेसु य । तत्थ सव्वबीयाणि तणेसु विण्णेयाणि । बीयाणि जधुत्ताहिं उवलद्धीहि जहावण्णजोणीयं उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ खंधेयेसु उच्छू विष्णेया, सव्वं चेव गुलगतं । तत्थ कंदजाणि सव्वाणि धूवणाणि विण्णेयाणि भवंति । अग्गेयेसु धूवणाणि विण्णेयाणि भवंति । उद्धंसिरोमुहामासे ण्हाणोपलेवणकेण पधोवणविसेसक्किता विण्णेया । मज्झिमकायेसु अणुलेवणं विण्णेयं । झमकायं च हाणागलु— अलत्तक - कालेयक - देवदारुगतं व गंधे विण्णेयं । मूलगता गंधा विण्णेया मूलगते । खंधगता गंधा विण्णेया खंधगते । तयगता गंधा विण्णेया तयगते । सारगता गंधा विण्णेया सारगते । णिज्जासगता गंधा विण्णेया णिज्जासगते । तणूसु पुधूसु य पत्तगते य पत्तगया गंधा विण्णेया । पुण्णेसु सव्वफलगते चेव फलगता गंधा विणेया । मुदितेसु पुप्फगते य सव्वपुप्फगता गंधा विण्णेया । पुण्णेसु णिद्धेसु य सव्वरसगते य रसगता गंधा विण्णेया । 15 तत्थ गुग्गुलविगतं सज्जलसं इक्कासो सिरिवेट्ठको चंदणरसो तेलवण्णिकरसो कालेयकरसो सहाकाररसो मातुलुंगरसो करमंदरसो सालफलरसो सव्वरसा चेति रसगते विण्णेया भवंति । जधुद्दिट्ठाहिं सकाहिं उवलद्धीहिं आधारयित्ता उवलद्धव्वा भवंति एवमादयो रसा चेति । तत्थ तेल्लेसु कुसुंभतेल्लं अतसीतेल्लं रुचिकातेल्लं करंजतेल्लं उण्हिपुण्णामतेल्लं बिल्लतेल्लं उसणीतेल्लं वल्लीतेलं सासवतेल्लं पूतिकरंजतेल्लं सिग्गुकतेल्लं कपित्थतेल्लं तुरुक्कतेल्लं मूलकतेल्लं • अंतिमुत्तकतेल्लं ० एवमादीणि तिल्लाणि रुक्ख गुम्मवल्लि 20गुच्छ—वलयफलणिव्वत्ताणि विण्णेयाणि भवंति । जधुत्ताहिं रूवोवलद्धीहिं गुम्मोवलद्धीहि Do य चत्तारि तेल्ला ० विण्णेया–तिलतेल्लं अतसीतेल्लं सासवतेल्लं कुसुंभतेल्लं चेति पच्चंवरकायेसु चेव विष्णेयाणि भवंति । रुचिकातेल्लं इंगुणि (दि) तेल्लं सिंगुग्गुतेल्लं चेति एवमादीणि मज्झिमाणंतरकायेसु विण्णेया भवंति । अतिमुत्तकतेल्लं पधकलीतेल्लं चेति मज्झिमकासु विणेयाणि भवंति । अवसेसाणि कायवंतेसु o विण्णेयाणि तिल्लाणि भवंति । तत्थ चंपक - चंदणिकापुस्सतेल्लं अतिमुत्तकतेल्लं जातीतेल्लं पीलुतेल्लं यूथिकातेल्लं ओसधतेल्लाणि चेव उवद्दुतेसु विण्णेयाणि भवंति । मुद 25 गंधतेल्लाणि विष्णेयाणि भवंति । मधुरेसु चंदणिकतेल्लं विण्णेयं । तिण्हेसु वक्किकतेल्लं विण्णेयं । अग्गेयेसु पुस्सतेल्लं विष्णेयं । पीलितपरिमंडितादीसु उवलद्धीहिं पडिरूवतो आमासतो य जधुत्तं तधा उवलद्धव्वं भवति । इति तेल्लाणि वक्खाताणि भवंति । तत्थ मूलजोणी साली वीही कोद्दवा कंगू रालका वरका मुग्गा मासा णिप्फावा चणका कुलत्था मसूरा अदसीओ कुसुंभा सासवा चेति आहारगता विण्णेया सव्व अणूसु चेव । तत्थ सेतेसु साली जवा सेततिला सेतणिप्फावा 30 कुसुंभा वेति विण्णेया । रत्तेसु वीही कोद्दवा रत्तणिप्फावा कुलत्था मसूरा सस्सवा वेति विण्णेया । पीतेसु कंगू लगा सिद्धत्थका चेति एवमादयो विण्णेया भवंति। आपुणेयेसु अतसी कुसुंभा तिला सासवा वेतिआहारगया विष्णेया । अवसेसाणि जधुत्ताहि उवलद्धीहिं उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ उवग्गहणगते मूलजोणीगते वत्थाणि खोमकं दुगुल्लं जग्गिकं चीणपट्टा वागपट्टा कप्पासिकं चेति विण्णेयं भवति । जधुत्ताहिं वत्थोपलद्धीहि उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ जधा वत्थजोणीयं उवदिट्ठति । १ "या इति गह हं० त० विना ॥ २-३० Do एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ४०० एतच्चिह्नान्तर्गत: पाठसन्दर्भः हं० त० नास्ति ॥ ५ उसवते हं० त० ॥ ६ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ For Private Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठवण्णासइमो चिंतितज्झाओ २३३ तत्थ मूलजोणीयाणि भायणाणि कट्ठमयं फलमयं पत्तमयं चेलमयं इति एवमादीयाणि विण्णेयाणि भवंति । तत्थ खंधगते कट्ठमयं विण्णेयं सव्वकट्ठपडिरूवे चेव । पुण्णेसु फलमयं विण्णेयं सव्वफलपडिरूवे चेव । तणूसु पुधूसु य पत्तमयं विण्णेयं सव्वपत्तपडिरूवगते चेव । किसेसु वित्थडेसु ये चेलमयं विण्णेयं सव्ववत्थपडिरूवगते चेव । एवमादीहिं सकाहिं सकाहिं उवलद्धीहि उवलद्धव्वाणि भायणाणि o भवंति । इति मूलजोणीआ भायणं । तत्थ मूलजोणीयं आभरणं पुप्फमयं फलमयं पत्तमयं कट्ठमयं चेति । तत्थ मुदितेसु पुष्फमयं विण्णेयं । 5 पुण्णेसु फलमयं विण्णेयं । तणूसु पुधूसु य पत्तमयं विण्णेयं । खंधगते सारगते चेव कट्ठमयं विण्णेयं भवति । इति मूलजोणीयं आभरणं चितियायं वक्खातं भवति । तत्थ धातुजोणी सारगता वण्णगता चेव । तत्थ सारगता धातुजोणी सारगता विण्णेया । 4 वेण्णगता वण्णगते विण्णेया भवति । Do तत्थ सारगता दुविधा-विलयगता चेव घणगता चेव । तत्थ विलयगता णवविधा, तं जधासुवण्णकं तवुकं तंबगं सीसकं काललोहं वट्टलोहं कंसलोहं हारकूडगं रूविअगमिति एवमादीणि विण्णेयाणि भवंति । 10 तत्थ पीतकेसु सुवण्णकं हारकूडकं चेव विण्णेयं । उत्तमेसु दंसणीयेसु य सुवण्णं विण्णेयं । पच्चवरेसु सोवद्दवेसु य पीतएसु हारकूडकं विण्णेयं । तंबेसु सुवण्णकं वा तंबकं वा हारकूडकं वा विण्णेयं । उत्तमेसु रत्तेसु सुवण्णं, मज्झिमेसु तंबकं, उवद्दुतेसु हारकूडकं, सेतेसु रुप्पं वा तवुकं वा कंसलोहं वा विण्णेयं । सारमंतेसु सुक्किलेसु रुप्पं, असारेसु तवुकं, सप्पभेसु कंसलोहं विण्णेयं । कण्हेसु सीसकं काललोहं चेति । तत्थ कढिणेसु काललोहं विण्णेयं । F मुदितेसु सीसकलोहं विण्णेयं । छ वट्टे वट्टलोहं विण्णेयं । भायणोपकरणेसु काललोह-कंसलोहाणि विण्णेयाणि । 15 सप्पभेसु कंसलोहं, सव्वच्छायागते चेव तिक्खेसु काललोहं, सव्वसत्थगते चेव जण्णेयेसु सुवण्णकं वा तंबकं वा कंसलोहं वा वट्टलोहं वा विण्णेयं भवति । वत्थेसु तंबकं वा सुवण्णकं वा काललोहं वा विण्णेयं भवति । इति धातुजोणी विलयगता विण्णेया । तत्थ घणजोणी धातुगता वेरुलिय-फालिय-मसारकल्ला लोहितक्खा अंजणमू(पु)लका गोमेदका अंकामलका सासका सिलप्पवाला पवालका वइरं मरगतं विविधा खारमणी वेति । एवमादी पाणजोणी धातुजोणीगता यधुत्ताहिं उवलद्धीहिं आमास-वण्ण–पडिरूव-सद्दोपकरणेहि सिप्पिकपादुब्भावेहिं जाति-विजातीहिं 20 अग्गेय-अणग्गेयोपलद्धीहिं उवलद्धव्वा भवंति । इति सारगता चिंता विण्णेया भवंति । वण्णजोणीगता, तं जधा-सुधा सेडिका पलेपको लर्कता कडसकरा वेति । रत्तेसु गेरुग-मणोसिला पत्तंगे हिंगुलुकं पज्जणी वण्णमत्तिका इति विण्णेया भवंति । पीतएसु हरितालं मणोसिला वण्णकमत्तिका चेति विण्णेया । णीलेसु णीलकधातुको सस्सकचुण्णकमिति एवमादी विण्णेयं । कण्हेसु अंजणं कण्हमत्तिका चेति । पण्हसु पण्हुमत्तिका वण्णमत्तिका चेति वा वण्णेसु । खेत्तभूमीए पण्हभूमीओ विण्णेयाओ। णिद्धेसु णदीमत्तिका विण्णेया । पाणजोणीगते 25 संगमत्तिका विसाणमत्तिका विण्णेया । उवद्दुतेसु विसाणमत्तिका । मुदितेसु देवताययणमत्तिका विण्णेया । तत्थ पुणरवि मत्तिका बहुविधा भवति, तं जधा-कण्हमत्तिका पंडुमत्तिका तंबभूमी मुरुंबो कडसक्करा सुवण्णं जातरूवं मणस्सिला गोकंटको खीरपको अब्भवालुका लवणं सुद्धभूमी चेति आधारयितव्वं भवति सकाहिं उवलद्धीहिं । तत्थ सेतेसु लवणं खीरपओ गोकंडको अब्भवालुका वेति । दढेसु मणसिला विण्णेया । मिसु कण्हमत्तिक | मुरुबो तंबो वेति विण्णेया । इति धातुजोणीगता चिंता वण्णधातुगता वेति वक्खाता भवति । 30 तत्थ विगता धातुजोणी भूमीसंजुत्ता, तं जधा-खेत्तं वत्थु गाम-णगर-सण्णिवेस-आवास-कुंङ-णदी-तलागपुक्खरणि-कूव-सर-फैलिह-से-पागारो पेंडपाली एलुको 'चेति पवा पंथा पव्वता चेति एवमादीयं विण्णेयं भवति । १ त्थ गंधग' हं० त० ॥ २ य वेउमयं हं० त० ॥ ३ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ अंगविज्जापइण्णयं तत्थ उद्धंभागेसु उण्णतेसु पव्वत-पधा(वा)-पाली-चेति-एलुकमिति, जं च किंचि उण्णतं तं सव्वं विण्णेयं भवति । णिण्णेसु णदी-तलाग-पुक्खरणी-वावी-कूव-उदुपाण-सर-फलिहा एवमादयो विष्णेया भवंति । सण्णिरुद्धेसु तलागपुक्खरणी-वावी-गाम-णगर-णिगम सन्निवेसादयो उवलद्धव्वा भवंति । दीहेसु णदी विण्णेया। चतुरस्सेसु वावी पुक्खरिणी खेत्तं वा विण्णेयं भवति । असंखतेसु णदी पव्वता विण्णेया भवंति । महावकासेसु भूमी वा अपव्वता वा के 5 विण्णेया । पुधूसु महावकासेसु भूमी विण्णेया, उद्धंभागेसु दढेसु य पव्वता विण्णेया। उद्धंभागेसु मतेसु य एलुको विण्णेयो । उद्धंभागेसु जिण्णेयेसु य चीती विण्णेया । पादजंघासु दीहेसु य पँधा विण्णेया । इति भूमिपयुत्ता धातुजोणी । तत्थ धातुजोणीओ आभरणजोणी जधुत्ता आभरणजोणीयं तधा विण्णेयं भवति इति धातुजोणीआभरणजोणिचिंताय उवलद्धव्वा भवति । तत्थ धातुजोणिजा वत्थजोणी लोहजालिका सुवण्णपट्टो खचितं वेति जधुत्तं वत्थजोणीयं तधा धातुजोणीगतं वत्थं विण्णेयं भवति इति धातुजोणिवत्थजोणिजं चिंताय उवलद्धव्वं भवति । तत्थ धातुजोणिया 10 भायणजोणी पुधूसु धातुजोणिगतेसु सव्वभायणपडिरूवगते चेव मत्तिकामए चेव लोहमये मणिमये सेलमये जधुत्ताहि जधुत्ताहिं भूमी-सेल-लोह-मणिजोणीहिं समणुगंतव्वं भवति इति धातुजोणिजा भायणा जोणीचिंतायं उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ धातुजोणिजो सयणासणजोणी लोहमयी सिलप्पवालमयी मणिमयी सेलमयी भूमी वेति जधुत्ताहिं धातुजोणीहि उवलद्धीहि सयणासणोवलद्धीहि चेव समणुगम्म उवलद्धव्वा भवंति । तत्थ महावकासेसु भूमी विण्णेया । अग्गेयेसु इट्टका, समेसु पेढिका, दढेसु सिलापट्टपासाणा, चतुरस्सेसु सिलापट्टा, दढेसु चेव परिमंडलेसु सिलापट्टा, चतुरस्सेसु 15 परिमंडलेसु वा अग्गेयेसु इट्टका । तत्थ तिविधमेव धातु तिविधमेव आसणं सयणं वा संठाणतो उत्तम-जधण्ण मज्झिमाहिं चेव उवलद्धीहि उवलद्धव्वा भवंति इति धातुजोणिजं सयणासणं चिंताय उवलद्धव्वं भवति । इति धातुजोणीचिंता वक्खाता भवति । तत्था पाणजोणी मूलजोणीसाधारणा, पाणजोणी धातुजोणीसाधारणा, मूलजोणी पाणजोणीसाधारणा, मूलजोणी धातुजोणीसाधारणा, धातुजोणी पाणजोणीसाधारणा, धातुजोणी मूलजोणीसाधारणा, पाणजोणी-धातुजोणीसमभागा 20समणुगंतव्वा भवति । एवमादी चिंता जीव-अज्जीवसमायुत्ता दिव्व-माणुस्स-तिरिक्ख-णेरइयसंसारसमायुत्ता सिद्धसमायुत्ता य एवमादी जीवचिंता अजीवचिंता चेव सदगता रूवगता रसगता गंधगता फासगता गाम-णगर-खेड-पट्टण-जणपदपव्वत-गिह-सण्णिवेस-खेत्त-खल-भूमि-वत्थुगता तलाग-पुक्खरणि-कूव-सर-णदी-समुद्द-धण-धण्ण-रतणउवकरण-जाण-वाहण-सयणा-ऽऽसण-वत्थ-परिच्छद-भायणगता पाणजोणिगता मूलजोणिगता धातुजोणिगता अतिक्कंताऽणागतकालसंपतसमायुत्ता गणणा-परिसंखा-असंखेज्जसमायुत्ता य विज्जासुत्तसमायुत्ता य सजीव-अज्जीवसमायुत्ता 25 दुविधा समासेण उदत्ता अणुदत्ता चेति आमास-सद्द-पडिरूवपादुब्भावेहि जधुत्ताहिं उवलद्धीहिं आधारयित्ता आधारयित्ता सव्वं समणुगंतव्वं भवतीति ॥ इति खलु भो महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय चिंतितो णामाज्झायो अणंतागमसंजुत्तो जिणाणंतरणाणिपवरगुणाणंतपवरागमसंयुत्ताय मणोगतभावप्पकासणकरायमं(अं)गविज्जाय णमोकारयित्ता णमो भगवतो यसवतो महतिमहावीवद्धमाणाय अभिप्पसण्णाय अंगविज्जाय चिंता णामज्झायो अट्ठावण्णो सम्मत्तो ॥ ५८ ॥ छ । 30 १ पहापा' हं० त० ॥ २ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ३ जिणेये हं० त० विना ॥ ४ पवा वि हं० त० ॥ ५ 'णीमयं सव्वमणु हं० त० ॥ ६ सविज्जासुत्तत्थसत्थसमा हं. त० ॥ ७ 'तराणि प हं० त० विना ॥ ८ "पराग हं० त० विना ॥ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सो कालज्झाओ [ एगूणसट्टिमो कालज्झाओ ] [ पढमं पडलं ] उसभादी तित्थकरे सिरसा वंदित्तु वीरणिच्छेवे । विज्जं महापुरिसदेसितं च णाणं च णाणी य ॥ १ ॥ पंचविहो जो कालो महापुरिसदेसिताय विज्जाय । सो गाधाहिं णिबद्धो अणुजोगत्थं चियेतूणं ॥ ·२ ॥ पंचविध पण कालो मुहुत्तमादी दिवसा य पक्खा य । मासे मासा वस्सं वस्साणि य दिग्घकालो य ॥ ३ ॥ 5 जं पुच्छितं मुहुत्तविस मुहुत्ता तर्हि गणेतव्वा । जं दिवसाणं विसेणय (विसयो) तर्हि तु दिवसा गणेतव्वा ॥ ४ ॥ पक्खेसु य ते पक्खा एक्कारसमासिकं च मासेसु । वस्साणं जो विसयो तहिं तु वस्सा गणेतव्वा ॥ ५ ॥ अट्ठागते य कच्छागते य वित्थारिमे य गणिमे य । माणुम्माण - पमाणे काले वेलागते चेव ॥ ६ ॥ सव्वम्मि अंतिम्मत्ते समाणजोगा य समगिरेसम्म । ओलमिर्तदुक्खलक्खे चिरणिप्फण्णे य चिरकालो ॥ ७ ॥ अट्ठागतेय कच्छागते य वित्थारिमे य गणिमे य । माणुम्माण- पमाणे काले वेलागते चेव ॥ ८ ॥ एतेसिं भावाणं मज्झिमजोगेण मज्झिमो कालो । अट्ठे संपुण्णा - अणधिकम्मि लेहट्ठकाले य ॥ ९ ॥ अट्ठागते य कच्छागतेय वित्थारिमे य गणिमे य । माणुम्माणपमाणे काले वेलागते चेव ॥ १० ॥ एतेसिं भावाणं पतणुकभावे य थोवभावे य । खुड्डलक- हस्सभावे आसण्ण - पसण्णभावे य ॥ ११ ॥ लहुकड - लहुणिप्फण्णे लहुलोभे [...] आगते सिग्धं । अपरिक्केसेण य उवगतम्मि सिग्घो हवति कालो ॥ १२ ॥ वासाणि दीहकालो मासा पक्खा य मज्झिमो कालो । दिवस-मुहुत्ता ह्रस्सम्मि होंति कालप्पमाणम्मि ॥ १३ ॥ 15 वस्सेण व वस्सेहि व अयमत्थो होहिति त्ति उप्पण्णे । वस्साणि विजाणेज्जो तस्सुप्पादस्स लद्धी ॥ मासेण व मासेहि व अयमत्थो होहिति त्ति उप्पण्णे । मासे ति विजाणेज्जो तस्सुप्पादस्स लद्धी ॥ पक्खेण व पक्खेहि व अयमत्थो होहिति त्ति उप्पण्णे । पक्खे त्ति विजाणेज्जो तस्सुप्पादस्स लद्धीय ॥ १६ ॥ दिवसेण व दिवसेहि व अयमत्थो होहिति त्ति उप्पण्णे । दिवसे त्ति विजाणेज्जो तस्सुप्पादस्स लद्धी ॥ १७ ॥ किंचि क्खणं मुहुत्तं अयमत्थो होहिति त्ति उप्पण्णे । जाणसु तत्थ मुहुत्ते तस्सुप्पादस्स लद्धीए ॥ १८ ॥ 20 समतिक्कंते दिवसे मासे संवच्छरे व जाणाहि । णिव्वत्ते अणुतुरिते कडे य भुत्ते अतीते य ॥ १९ ॥ संपतकाले दिवसे वत्तंते वत्तमाणदिवसे य । वत्तंतं वासं वच्छरं तु मुण वत्तमाणेसु ॥ २० ॥ दिवसे मासे संवच्छरे व पुरतो अणागते जाणे । सव्वम्मि अणुप्पण्णे उप्पज्जिहिति त्ति र्विण्णातो ॥ २१ ॥ समतिक्कंते दिवसे मासे संवच्छरे य जाणेज्जो । णिव्वत्ते अणुभूते कडे य भूते अतीते य ॥ २२ ॥ अतिवत्तेसु ण बूया अणागतं ण वि य वत्तमाणाइ । संपतमतिवत्ताणि य ण वागरे वत्तमाणेसु ॥ २३ ॥ 25 उप्पण्णमतीतेसुं अतिवत्तं जाण सव्वभावेसु । उप्पण्णवत्तमाणे अ वत्तमाणो हवति कालो ॥ २४ ॥ सव्वम्मि अणुणे उपज्जिहिति त्ति णागतो कालो । उप्पज्जंतेसु अणागतं व मुण वत्तमाणं वा ॥ २५ ॥ उप्पुप्फ– ज्झीणफले मलिणर्फेले [ तह य] मलिण - १४ ॥ १५ ॥ सुक्खपत्ते व जुत्ते मते व वत्तुस्सए य कालो अतिक्कंतो ।। २६ ।। मुण वत्तमाणकालं गणिज्जमणे तिरिच्छमाणे वा । दिज्जंते भुज्जंते आढत्ते कीरमाणे वा ॥ २७ ॥ २३५ १. अतिस्सए हं० त० ॥ २ 'तलक्खदुक्खे हं० त० विना ॥ ३ अद्धाग हं० त० ॥ ४ पुण अणविकम्पि ले हं० त० ॥ ५ अच्छागते य क हं० त० ॥ ६-७-८ उप्पण्णो हं० त० ॥ ९ विण्णेतो हं० त० ॥ १० फले मसिणफले मलिणमुखतणो मुखपत्ते व भुत्ते मत्ते य वत्थस्स हं० त० ॥ ११ माणे विविज्जमाणे हं० त० ॥ For Private Personal Use Only 10 30 Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 30 २३६ अंगविज्जापइण्णयं [ तइयं पडलं पुप्फ-फल- सस्स - उदयसमुदए य वत्तमाणम्मि । णवजोव्वणर्कस्सेसु चेव मुण संपदं कालं ॥ २८ ॥ पुप्फ–फलाणं सस्से अचिरा ओतरति वा सुहो सरदो । ठायंति बंधवत्था होहिति दुक्खेणे भोतव्वं ॥ २९ ॥ एहिति दाहिति काहिति होहिति दिज्जिहिति लभिहिती व त्ति । दस्सामो कस्सामो त्ति होति तु अणागतो कालो ३० संपदमणागतमतिच्छिते व एक्कतरगम्मि भावम्मि । उवयुत्ते पुच्छंते सो कालो होइ बोधव्वो ॥ ३१ ॥ आधारे तत्थ बाहिरेण तम्मि तु तज्जायअविभत्तोति । तिण्हं पि य कालाणं [.......] ॥ ३२ ॥ पंचिदिएहि पंचहि सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधा तु । जे फुड विण्णाता तत्थ ते उप्पाता गणेयव्वा ॥ ३३ ॥ ॥ पढमं पडलं ॥ १ ॥ छ ॥ [ बितियं पडलं ] "केयि ज्जातिविसेसा गज्झा केयिच्च रूवसो गज्झा । "केयी वण्णविसेसा केयि त्ति रसा रसविसेसा ॥ १ ॥ केयि त्थाणविसेसा गज्झा केयि त्ति जीवितविसेसा । केयि ण्णामविसेसा केयि तु बलाबलविसेसा ॥ २ ॥ सारगुणा सीलगुणा केयिं कम्मगुणतो सुगेज्झति । मिदु - कढिण- णिद्ध - रुक्खा सी - उण्हगुणा य केयिं तु ॥ ३ ॥ " तेतेण सव्वभावा गज्झं तु भावविधिविसेसेण । इट्ठत्तणं उवगता विण्णेया माणुसे लोए ॥ ४ ॥ जे पाणजोणिया मूलजोणिया धातुजोणिया वा वि । उप्पाया उप्पण्णा एताय विधीय गातव्वा ॥ ५ ॥ सव्वेसिं भावाणं अकित्तिमाणं च कित्तिमाणं च । इट्ठत्तमणिट्ठत्तं मज्झिमं च तिविधं पुणो णेयं ॥ || इट्ठे दिग्घकालो मझिट्ठेसु वि य मज्झिमो कालो । दोसमणिट्ठमसारेसु चेव अप्पो हवति कालो ॥ ७ ॥ पुण्णामा सारजुत्ता मज्झिमसारा य होंति थीणामा । जे तु णपुंसकणामा ते तु असारेसु बोधव्वा ॥ ८ ॥ कालो तु महासारेसु महंतो मज्झो य मज्झसारेसु । अप्पो य हवति कालो असारवंतेसु सव्वे ॥ जध णामा तध रूवा सद्दा गंधा रसा 0 ये फासा य । पंचविधा उप्पाया एतेण गमेण णातव्वा ॥ उप्पत्ति - विपत्तिसुभा दो वि [य] जे संभवंति दव्वाणं । एगमहोरत्तेण तु तेसु मुहुत्ता सुणातव्वा ॥ ११ ॥ उप्पत्ति (त्ती य) विपत्ती य उदया जे भवंति भावाणं । Do वस्सेहिं तेहिं वस्साणि होंति उप्पज्जमाणेहिं ॥ १२ ॥ निमिसंतरमुस्सासा कट्ठा व लवा कला व वीसं तु । कालस्स एस आदी एगमुहुत्ता समक्खाता ॥ १३ ॥ एते तीसं संखा तु मुहुत्ता जायते अहोरत्तं । एसो तु परो कालो भवति मुहुत्तप्पमाणस्स ॥ १४ ॥ एतेसुप्पातविधी मुहुत्तवग्गस्स वन्नयिस्सामि । जेसु समुदीरमाणेसु मुहुत्ता होंति बोधव्वा ॥ १५ ॥ जे य परंपरकिसा परमाणू वा सथावरा उत्ता । जीवा - ऽजीवणिकाया सव्वे उ मुहुत्तसंखाता ॥ १६ ॥ ॥ उप्पातविधिपरिक्खायं उप्पत्तिता अवितयं जधुवदेसं पडलं द्वितीयं ॥ २ ॥ छ ॥ १० ॥ [ तइयं पडलं ] उप्पातविधि तु जहक्कमेण वोच्छं दिवसवग्गस्स । उप्पातविधि च पुणो मुहुत्तवग्गस्स वोच्छामि ॥ १ ॥ पक्खुप्पातविधि पि य ततिकं आगमं वोच्छं । मासुप्पातविधि पि य वोच्छामि चतुत्थवग्गस्स ॥ २ ॥ वस्साणं पि य उप्पातविधिं सव्वं जहक्कमं वोच्छं । संवच्छरं कुच्चोलि दीवो त्ति ण्णाणरासिस्स ॥ ३ ॥ एत्तो अपरिमितविधि अपरिमितस्स तु पुणो वि कालस्स । कालमणंतं च पुणो णिरुद्धकालं च वण्णेस्सं ॥ ४ ॥ उदु- वस्स-मास-पक्खं दिवसे य मुहुत्तवग्गं च । मंडलवित्थारेहि य कीलणकउवक्खरविधीहिं ॥ ५ ॥ १ "कससेसु हं० त० ॥ २ण होयव्वं हं० त० ॥ ३ गाहम्मि हं० त० ॥ ४ देवजुते हं० त० ॥ ५ कज्जिज्जाविविसेसा हं० त० ॥ ६ केयि त्ति वण्ण हं० त० ॥ ७ तेएण सव्वभागा हं० त० ॥ ८ 'ज्झिमेसु हं० त० विना ॥ ९० एतच्चिह्नान्तर्गत: श्लोकद्वयाधिकः पाठः हं० त० नास्ति ॥ १० दीवे त्ति हं० त० विना ॥ || Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं पडलं ] गूणसट्टिमो कालज्झाओ २३७ बारसमासे संवच्छरे य जोतिसगतीय वण्णेस्सं । बारसमासे य पुणो उदुपेयालेण वण्णेस्सं ॥ ६ ॥ एगाह - दुग - तिगा चउक्का पंचके च्छाहा सत्तस्तं च । अट्ठ णवके दसाहे पण्णरसाहे य वोच्छामि ॥ ७ ॥ कालं जोहं च पुणो दिवसं रतिं च वण्णएस्सामि । एकमहोरत्तं वा वेलाणं वण्णइस्सामि ॥ ८ ॥ एत्तो वुट्ठीगंडय पुणो अग्घगंडय अग्गिगंडयं । पंचहि वि मूलवत्थूहि जधुत्तं कित्तयिस्सामि ॥ ९ ॥ एक्वेक्कीअ य गाधा य मुहुत्ते य दिवसे य पक्खे य । मासे य पुणो वोच्छं मज्झिमकालप्पमाणम्मि ॥ १० ॥ 5 तण्णा तरूवेहिं चेव तब्भावविधिविसेसेहिं । एत्तो कालपमाणं अपच्छिमं वण्णयिस्सामि ॥ ११ ॥ ॥ भगवतीय महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय कालणामावलिकायामध्यायस्तृतीयः ॥ ३ ॥ छ ॥ [ चउत्थं पडलं ] अंडसुहुमे य बीयसुहुमे य पणकसुहुमे सिणेहे य । वायू सद्दे गंधे सुहुमे सुहुमेसु सव्वेसु ॥ १ ॥ खुड्डलक- थोक - डहरक- अणुक - सुहुम-केस-मंसु - रोमेसु । एत्थ भवंति मुहुत्ता अब्भंतरतो अहोरते ॥ २ ॥ 10 खुल्लक- वराड-संखणग-सिप्पि - गंडूपदे जलूका य । आसालिका वारवत्ते पाण्णयिका सुक्केसु पट्टेसु ॥ ३ ॥ धिंकुण- लिक्खा - घुण - चम्मकीड - फलकीड - घण्णकीडा [य] । सुत्तजगलिका कुंथू उरणी सुयम् ॥ ४ ॥ एवमादिका जीव(वा) बिंदिका तिंदिका य तसकाया । सुकुमालका डहरका सव्वे तु मुहुत्तसंखाता ॥ ५ ॥ पुप्फ-फलं धण-धण्णं सद्द-प्फरिस - रस- रूव-गंधा य । सुकुमालका सुहुमका सव्वे तु मुहुत्तसंखाता ॥ ६ ॥ कंगू- रालक-सामाक - वरक- सिद्धत्थका - सरिसवेसु । एत्थ मुहुत्ता णेया सुहुमेसु य सव्वबीयेसु ॥ ७ ॥ 15 धण्णरते ० वण्णरते Do पंसुरये छारिका दगरये य । चुण्णेसु अंजणेसु य पदुमरयकतम्मि य मुहुत्ता ॥ ८ ॥ सुकुमालका सुहुमका तिइंदिगा जे तु तेसु तु मुहुत्ता । थूलसरीरेसु तिइंदियेसु दिवसा विधीयते ॥ ९ ॥ खुड्डलकेसु तु चतुरिंदिएसु दिवसा भवंति णातव्वा । थूलसरीरे चतुरिंदिकेंसु पक्खा विधीयते ॥ १० ॥ खुड्डलकेसु तु पंचेंदिकेसु दिवसा व होंति पक्खा वा । संवच्छर-मासा वा पंचेंदिकथूलकायेसु ॥ ११ ॥ खुड्डलकेस तु पंचेंदिएसु एत्थ दिवसा व होंति पक्खा वा । संवच्छर-मासा वा थूलसरीरेसु पक्खी ॥ १२ ॥ 20 सिग्घ-चवलेसु मदु - सुहुमकेसु पुप्फेसु अप्पसारेसु । आसण्ण-पसण्णेसु य एत्थ मुहुत्ता उ बोधव्वा ॥ १३ ॥ किंचि क्खणं मुहुत्तं बिंदु थोगं विपच्चते सिद्धं । वड्डीयते पडिच्छह एवं तु मुहुत्तिओ कालो ॥ १४ ॥ अणुसुहुमम्मि य काए जति काया पेंडिता व गणिता वा । तति तु मुहुत्ता णेया होंति मुहुत्तप्पमाणम्मि ॥ ॥ महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय कालप्पमाणो चउत्थो ॥ ४ ॥ छ ॥ १५ ॥ [ पंचमं पडलं ] भुम-णयण - कण्ण - णासो - पोरुसंगोट्ठ - अंगुलिग्गहणे । एतेसिं भागाणं उवकरण - उवक्खरविधीसु ॥ १ ॥ अतिसुहुमे मोत्तूणं खुड्डलकेसु वि य सव्वसत्तेसु । आमास - सद्द - दंसण - कक्खेसु दिवसा मुणेतव्वा ॥ २ ॥ जलुका- लूता - कोलिक- घरपोपलिकासु चेव अहिलूका । भिंगारी - औलकासु चेव दिवसा विधीयते ॥ ३ ॥ भमरा मधुकर तोड्डा पतंग तध मच्छिका मगस (मसग ) केसु । चउरिंदियतसपाणेसु एत्थ दिवसा विधीयते ॥ ४ ॥ कडुकालमच्छसिकुवलिका तध विकलका व पलकेसु । छिर- कुरिले - सिगिलि - मंडूकलिआसु य तधेव ॥ ५ ॥ 30 २ सुक्कप हं० त० विना ॥ ३ के तु प° हं० त० विना ॥ 'ल - कुभिगिल - मं हं० त० विना ॥ ४ सिद्धं हं० १ वारवल्ले प्पा हं० त० विना ॥ त० विना ॥ ५ 'अल हं० त० ॥ ६ : 25 Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 30 २३८ अंगविज्जापइण्णयं [छट्टं पडलं गोम्मी - कीडग - विच्छिय - सुरगोपक - इंदकाइयासु वि य। उंदुर-सरड-क्खालग - खुड्डुलग - चतुप्पदे दिवसा ॥ ६ ॥ पंथोलग–वतिभेदग–गहकंडुक - कुंभिकारीआसु वि य । चोलाडिगासु कुलिंगएसु केसु दिवसा विधीयते ॥ ७ ॥ धम्मणग-पंडरागं दासएसु आमलग- जंबु-लप्फलेसु । अंबाडग - करमंदे सीवणे उंबरफले ॥ ८ ॥ रातण–तोडण–सीडा–लउसु तुंबुरु-पिप्पलफलेसु । सेलुफल- कोलफल - वारमट्ठिएसु य तधेव ॥ ९ ॥ घरिफलं करिलेग-लोमसिग - बिडालकेसु य तधेव । वार्तिगण - वालुंकेसु चेव दिवसा विधीयते ॥ १० ॥ पूगप्फल - कक्कोलग - लवंग - जातीफलेसु य तधेव । मुद्दीगा - खज्जूरा - पिप्पलि - मरिएसु य तधेव ॥ ११ ॥ तफलगते मुहुत्ता गुम्मफलेसु दिवसा मुणेयव्वा । वल्लिफलेसु य पक्खा मासा रुक्खे विधीयते ॥ एत्थ विधी हालिसवित्थएसु पक्खा हवंति मासा वा । वट्टेसु य हस्सेसु य फलेसु दिवसा विधीयं ॥ अज्ज व हिज्जोऽवसरे णियट्टियं णेव कित्तिदिवसा तु । तंदेसि - तण्णियोगेसु चेव दिवसा विधीयते ॥ पाडिवदाती[या]सु य तिधीसु चाउद्दसावसाणेसु । दिवसपरिकित्तणाय तु एत्थ तु दिवसा मुणेतव्वा ॥ बालगसद्दे बालगमोहणते बालगाभरणए य । बालम्मि य पुप्फफले एत्थ तु दिवसा विधीयते ॥ खुड्डुलकाया तध जावतिका पेंडिता व गणिता वा । तति दिवसा णातव्वा होंति तु दिवसप्पमाणेणं ॥ ॥ पडलं पंचमं ॥ ५ ॥ छ ॥ १२ ॥ १३ ॥ १४ ॥ १५ ॥ १६ ॥ १७ ॥ [छट्टं पडलं ] जंघोरु— बाहु—गीवाआमासे तध सहत्थ - पादाणं । उवकरण - भूसणकतेसु चेव तह पक्खिओ कालो ॥ १ ॥ तरुणगणर—णारिगणे तरुणवयेसु वि य सव्वसत्तेसु । मज्झिमकायेसु चतुप्पदेसु पक्खा विधीयते ॥ २ ॥ अय-अमिल-सुणग-सूअर - मग - पसत - विलालजातीसु । वाणर-सस-लोपासु चेव पक्खा विधीयते ॥ ३ ॥ तित्तिर- वट्टक-लावक-पैरभुत-सुक-सालका-रिकिसिकेसु । काक-कपोतेसु कर्पिजलेसु पक्खा विधीयते ॥ ४ ॥ वच्छ—–कोट्टकवास—–सतपत्त - वंजुल - कलहिभीसु पि य । सूकरिका - मेंचुलकेसु चेव पक्खा विधीयते ॥ ५ ॥ आडवक—-काक—मेज्जुक - सेडीका - टेट्टि - कालकेसु पि य । णइकुक्कुडिका - कातंबकेसु पक्खा विधीयते ॥ ६ ॥ वासिकासु फ़लासु दिरुलेसु मरकलेसु य तव । मँग्गवच्छक - सिंगालकेसु पक्खा विधीयते ॥ ७ ॥ अंधक - दालिम-तीतिणि- बिल्लि-पल्लालु-केयवसकेसु । मूल- कक्खारुक-तवुसकेसु पक्खा विधीयते ॥ ८ ॥ मज्झिमके पुप्फफले मज्झिमकायेसु चेव दव्वेसु । अट्ठागते य कच्छागते य पक्खा विधीयते ॥ ९ ॥ इत्थीहिं जाण पक्खे पक्खच्छिड्डुं णपुंसके जाणे । पुरिसम्मि जाण मासं मिधुणजुगले अहोरतं ॥ १० ॥ इत्थीसु अप्पसारेसु बाहिरासूणो भवति पक्खो । आचरितमहासारासु थीसु ते पक्खमो जाण ॥ ११ ॥ सुहपस्सरायपस्सं उभयोपस्सं सरीरपस्सं ति । पडिपक्खो त्ति सपक्खो त्ति पक्खवादो त्ति वा पक्खो ॥ १२ ॥ अड्डो त्ति अद्धमासे अंजलिमद्धं सरीरमद्धं च । पुप्फ-फलस्स य अद्धं देसद्धं मंडलद्धं च ॥ १३ ॥ पक्खस्स तु विणियोगेण जाण पक्खेण चेव संपत्ति । पक्खेण व जं कीरति तेण तु पक्खा विधीयते ॥ १४ ॥ मज्झिमकायेसु तधा यति काया पिंडिता व गणिता वा । तति पक्खा णातव्वा भवंति पक्खप्पमाणम्मि ॥ १५ ॥ ॥ पडलं [ षष्ठं ] ॥ ६ ॥ छ ॥ १ चम्मणग हं० त० ॥ २ सेण्णुफल हं० त० विना ॥ ३ मासे य विहत्थदोषाणां हं० त० ॥ ४ 'परसुअक्खसाल' हं० त० ॥ ५ मंतुभुकेसु हं० त० ॥ ६ वामिका हं० त० ॥ ७ मचलकेसु हं० त० ॥ ८ मग्गमच्छ हं० त० विना ॥ ९ लुके तवुसके हं० त० विना ॥ १० णेयव्वा हं० ॥ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २३९ [सत्तमं पडलं] कडि-उदर-पट्टि-उरसी-सीसामासे य मासिको कालो | आभरणपक्खरगते एतेसिं चेव भागाणं ॥ १ ॥ हय-गय-खरोट्ट-गो-माहिसेसु सत्तेसु कायवंतेसु । मासा विण्णातव्वा सव्वेसु महासरीरेसु ॥ २ ॥ वग्ध-ऽच्छ[भल्ल-]दीपिक-तरच्छ-खग्ग-वगसावदेसु पि य । रोहित-पसत-वराहेसु चेव मासा विधीयते ॥ ३ ॥ विपुलणदीमच्छेसु मज्झिमकेसु य समुद्दमच्छेसु । मासा विण्णातव्वा गाह-मगर-सुंसुमारेसु ॥ ४ ॥ 5 हंस-कोंचेसु किण्णरेसु कुक्कुङ-मयूर-कलहंसे । मासा विण्णातव्वा पारेवत-चक्कवागेसु ॥ ५ ॥ भासकुण-महासकुणा दिग्घग्गीवा य दिग्घपादा य । मासेसु समक्खाता पारिप्पव-ढंकरालीओ ॥ ६ ॥ गद्दो कुरलो दलुका भासा वीरल्ल-ससघाती । मासेसु समक्खाता छिण्णंगाला ककीओ य ॥ ७ ॥ सव्वे य दीहकीला दव्वीकर-मोलिणो य णातव्वा । मासेसु समक्खाता भिंगारी गोणसा चेव ॥ ८ ॥ उग्गविसेसु मुहुत्ता सप्पेसु हवंति विसविसेसेण । सप्पेसु तु मंदविसेसु एत्थ मासा समक्खाता ॥ ९ ॥ 10 सेतेसु होति जोण्हा कालो पुण होति कण्हसप्पेसु । चित्तेसु माससंधि संझा पुण होति लोहितके ॥ १० ॥ तलपक्क-णालिकेसु कपिट्ठ-लकुलेसु र चेव पणसेसु । कालिंग-तुंब-कूभंडगेसु मासा विधीयते ॥ ११ ।। पेंडीसु य गोच्छेसु य पुष्फ–फलेसु य सवेंट-णालेसु । पोट्टलकभारबद्धे जमलकबद्धे ठियामासे || १२ || भंडेसु(सू)वकरणेसु य पुप्फ-फलेसु वि य कायवंतेसु । दीहेसु वित्थतेसु य महासरीरेसु पि य मासा ॥ १३ ॥ वेतोपकरण-पुराण-सुत्तेरक-सुतीसोपकेसु सव्वेसु । रुप्पियमासेसु सुवण्णमासके मासमो बूया ॥ १४ ॥ 15 [..........] पायग्गहणे य दोण्हं पि बाहुणं जाण । उभयोपक्खाय समागतम्मि मासा विधीयते ॥ १५ ॥ सव्वमहाकायेसु वि जावतिया पिडिता व गणिता वा । तति मासा णातव्वा होति मासप्पमाणेणं ॥ १६ ॥ ॥ पडलं सम्मत्तं (सत्तमं) ॥ ७ ॥छ ॥ [अट्ठमं पडलं] एतेसु चेव अतिकायेसु तु भवंति वस्साणि । कुल-जाति-माण-रूवाधिके य बहुमुल्लसारे य ॥ १ ॥ 20 उम्मज्जितूणमंगे उम्मढेसु वि य सव्वगत्तेसु । विच्छिण्णथितामासे उड्डूंगाणं व आमासे ॥ २ ॥ देविंदो णागिंदो असुरिंद-महिंद-नरवरिंदो त्ति । सीहो हयो गयो णरवरो त्ति संवच्छरुप्पाया ॥ ३ ॥ सुरवति धणवति जलवति पोतवती णरवती णइवति त्ति । तारावती गहवती जोतिपती जोतिसपति त्ति ॥ ४ ॥ आयरिय-उवज्झाया अम्मा-पिऊ-गुरुजणे य सव्वम्मि । देवा रिसयो ति य साधवो त्ति संवच्छरुप्पाया ॥ ५ ॥ जगपति गणपति कुलपति जूहपति मिगपति त्ति वस्साणि । गोपति पयापति ति य वस्साणि भवंति एतेसु ॥ ६ ॥ 25 जंबुद्दीवकधासु य अत्थगिरीसु उववण्णणायं च । वस्सधर-वस्सपरिकित्तणाय वस्साणि जाणेज्जो ॥ ७ ॥ दीवो त्ति समुद्दो त्ति य अकम्मभूमि त्ति कम्मभूमि त्ति । तेलोक्कं पुढवी पव्वतो त्ति संवच्छरुप्पाता ॥ ८ ॥ अतिदूरं अतिदिग्धं अतिम्महंतेसु अतिमहग्घेसु । लंगे कोट्टिते-धणिते धणितबद्धे य वस्साणि ॥ ९ ॥ चिर-दीह-सस्सत-विमद्दितेहि संवच्छरेहि जाणाहि । थिस्-बलिक-धुवक्कारे अतिबहुमच्चत्थकारे य ॥ १० ॥ सव्वेसि भावाणं चिरणिव्वत्तीय जाण वस्साणि । जोतिसमंडल-पुढवीमंडलं एक्कचक्के य ॥ ११ ॥ 30 णगरणिवेसकतेसु य पासादुदधी-णदीकधायं वा । हत्थीणं व पदेसू भवंति संवच्छरुप्पाता ॥ १२ ॥ १ रद्धो कु हं० त० ॥ २ 'कीडा य द हं० त० विना ॥ ३ "पच्छणा' हं० त० ॥ ४ ‘यबंधेसु हं० त० विना ॥ ५ वेओवयकपुः हं० त० ॥ ६ “सु उभयं ति व हं० त० ॥ ७ गयवई जोगवई जोतिस हं० त० ॥ ८ जलपति हं० त० ॥ ९ तवणिए वणि हं० त० ॥ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० अंगविज्जापइण्णयं [णवमं पडलं . हत्थी पव्वतमत्तो अस्से य भवंति मालवंतो त्ति । वसभो य हत्थिमेत्तो त्ति बेंति संवच्छरुप्पाता ॥ १३ ॥ पक्खीसु माणुसेसु य कीडेसु चतुष्पदेसु य तधेव । पुष्फफले दव्वेसु य वस्साणि अतिप्पमाणेसु ॥ १४ ॥ अतिकायेसु वि य तधा जति काया पिंडिता व गणिता वा । तति वस्सा तव्वा भवंति वस्सप्पमाणम्मि ।। १५ ॥ वस्सगणणाविभंगं पण्णरसविधं पुणो वि वोच्छामि । पंचहि वि मूलवत्थू एकेण तधा विभंगेणं ॥ १६ ॥ भिण्णदसक्खपमाणं वस्साण पुणो मुहुत्तवग्गम्मि । दस चत्तारि य वस्साणि जाण दिवसप्पमाणेसु ॥ १७ ॥ पण्णरस चेव वस्सा पक्खपमाणेण होंति णातव्वा । मासपमाणे तीसा चत्ता पण्णा य सट्ठी य ॥ १८ ॥ सट्ठी व सत्तरी वा असिती णउती सयं च जाणेज्जो । वस्सपमाणुप्पाते वस्साण सहस्सवग्गे वा ॥ १९ ॥ मुहत्तप्पमाणमसारे तिण्णेव भवंति वस्साणि । छम्मासमसारेसु तु तध य महासारवंतेसु ॥ २० ॥ दिवसप्पमाणमसारे दस वस्साणि तु भवंति णेयाणि । चोद्दस मज्झिमसारे वीसा य भवे महासारे ॥ २१ ॥ पक्खपमाणमसारे पण्णरसेव तु हवंति वस्साणि । तीसं व मज्झसारे पणतालीसा महासारे ॥ २२ ॥ मासं पमाणसारे तीसा चत्ता य मज्झसारम्मि । पण्णासा सट्ठी वा मासपमाणे महासारे ॥ २३ ॥ वस्सपमाणमसारे सट्ठी वा सत्तरि व्व वासाणि । मज्झिमकम्मि असीती णवुती व सतं महासारे ॥ २४ ॥ कोडी अपरिमितं वा अपरिमितेहिं मुण सव्वभावेहिं । ऊणाधिको दसाहो संजोगविहीहिं बोधव्वो ॥ २५ ॥ जे पुव्वं उप्पण्णा पंचविधा विसमकं उदीरंति । जे आसण्णा बहुका धुवा य ते वग्गमूलाणि ॥ २६ ॥ G जति मिस्सा उग्घाया पंचविहा विसमकं उदीरंति । जे आसण्णा बहुका धुवा य ते वग्गमूलाणि ॥ २७ ॥ जे थोवा जे तुल्ला दूरे पच्छा य जे उदीरंति । ते वस्सदसक्खाणं वग्गग्गं होति णातव्वं ॥ २८ ॥ वस्सपमाणुप्पाता जति तति वस्साणि होंति अंगेसु । जति मूले विण्णाते पुणरवि एते उदीरंति ॥ २९ ॥ मासपमाणुप्पाता जति तति मासा हवंति अंगेसु । जति मूले विण्णाते पुणरवि एते उदीरंति ॥ ३० ।। G पक्खपमाणुप्पाया जति तति पक्खा हवंति अंगेसु । जति मूले विण्णाए पुणरवि एए उदीरंति ॥ ३१ । दिवसपमाणुप्पाता जति तति दिवसा हवंति अंगेसु । जति दिवसदसक्खाणं पुणरवि एते उदीरंति ॥ ३२ ॥ जति तु मुहत्तपमाणा तति तु मुहुत्ता हवंति अंगेसु । जति वस्सदसक्खाणं पुणरवि एते उदीरंति ॥ ३३ ॥ मूलदसक्खे ऊणे दसट्ठ वस्साणि अग्गकं होति । मासा वा पक्खा वा दिवस-मुहुत्ता व णातव्वा ॥ ३४ ॥ वस्साणि य विण्णाते केवतिया केत्तियाणि वि पुणो वि । तावतिया णातव्वा कतम्मि पण्णाविसेसम्मि ॥ ३५ ॥ सुहुमाणि बादराणि य जति दव्वाणि गणणागते होंति । तति वस्सा णातव्वा पक्खा दिवसा मुहुत्ता वा ॥ ३६ ॥ जध कालो तध लाभो तध य सुहं जीवियं तध य दिग्धं । तध दव्वाणं सारो तध ठाणगुणा य बोधव्वा ॥ ३७॥ ॥ पडलं [अष्टमं] ॥ ८ ॥ छ । 25 [णवमं पडलं] • पासुत्त निसीधं ति य मोण णिसद्दो तधेव थिमियं ति । मंतो अ रहस्सं ति य अपरिमितो जायते कालो ॥ १ ॥ दुक्खं उव्वेल्लेउं वल्लिपरिपल्लकं ति गुपितं ति । एयादीया सद्दा पडिरूवा दिग्घकालस्स ॥ २ ॥ धण-धण्ण-रयणरासीसु चेव जुद्धे व सव्वसत्ताणं । अपरिमिता उप्पाया अपरिमिते होंति कालम्मि ॥ ३ ॥ लोको वेदो समयो अत्थो धम्मो तधेव कामो त्ति । अपरिमिता बोधव्वा अविभत्तसमासवग्गेसु ॥ ४ ॥ वंदं संघो त्ति गणो महाजणो आउलं णिकायो त्ति । रज्जं देसो त्ति य जणपदो त्ति कालो अपरिमेज्जो ॥ ५ ॥ १ मज्झे अहं० त० ॥ २ वत्तव्वा हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतोऽयं श्लोक: हं० त० एव वर्त्तते ॥ ४ हस्तचिह्नान्तर्गतोऽयं श्लोक: हं० त० एव वर्त्तते ॥ ५ 'ग्गिकं हं० त० विना ॥ ६ वल्लिए परिपल्लं ति अपि ॥ हं० त० ॥ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं पडलं ] एगूणसद्विमो कालज्झाओ २४१ चिंता मणोरधोत्ति य हितयागूतं त अंधकारो त्ति । ठइयाऽऽवरितं अंतेपुरं ति सुद्धी समग्गो ति ॥ ६ ॥ वीयं रासी पैंयालितं ति भरितं ति संत त्ति । अणुमाणं संकं ति य अपरिमितो जायते कालो ॥ ७ ॥ सव्वे जीवणिकाया अचला य अविकंपिणो चेव । अपरिमिता णातव्वा कायसमासोवलद्धीयं ॥ ८ ॥ पुढवि दग अंगणि मारुय आकासं सह ( तह) य मूलजोणीओ । अपरिमिता गातव्वा कायसमासोवलद्धीयं ॥ ९ ॥ १४ ॥ 10 ॥ निव्वट्टणा विभत्ता एते ज्जेव तु भवंति संखेज्जा । अविभत्ता य अणिव्वट्टिता य ते चेव संखेज्जा ॥ १० ॥ देविड्डी देवजुती पलितोवम सागरोवमं व त्ति । कोसो [य] णिधि त्ति महाणिधि त्ति कालो अपरिमेज्जो ॥ ११ ॥ अतिअग्गी अतिवातो अतिवासं भेदितं डमरितं ति । सज्जीव-ऽज्जीवाणं अतिउदयं सव्वदव्वाणं ॥ १२ ॥ अतिपेम्ममतिपदोसो अतिथुति - अतिर्गज्जियकधासु । 04 अतिसद्दे Do अतिअव्वाउले य कालो अपरिमेज्जो ॥ १३ ॥ अलसम्भारो भीरू अतिकिमणो मंथरो त्ति वा सद्दो । मज्झत्थो त्ति पमत्तो त्ति पंगुलो दिग्घपस्सि त्ति ॥ एवतिया सव्वे चिरकारी जे चिराहि व भवंति । एतेसिं उप्पत्तीय दीहकालो हवइ यो ॥ १५ साहसिको मेहावी लहुको सद्धो त्ति मुक्कहत्थो त्ति । चंडो सूरो दच्छो त्ति चेव सिग्घो हवति कालो ॥ आदि णिधणं च जस्स तु ण णज्जते ० णज्जते o य वृत्तंतो । एरिसका उप्पाता विण्णातव्वा अणंतत्ते ॥ गब्भा सुद्धो मासे जावज्जीवे तवे य नियमे य । कोमारबंभचेरे य अणंतं णिद्दिसे कालं ॥ १८ ॥ पाली मेरा सीमंतिकत्ति सुगति त्ति छिण्णपंथो त्ति । पागारो फलिहो त्ति य वति त्ति कालो णिरुद्धो ति ॥ १९ ॥ कालम्मि णिरुद्धम्मि उ दिट्टं आगत समागतं वा द्धं वाउप्पणं तं वा १६ ॥ १७ ॥ । आगते पुच्छियं सव्वं ॥ २० ॥ जं जावतितं लभती जं मग्गति तं च दिस्सती ताधे । जं इच्छति तं उप्पज्जते पडिपुच्छणाकाले ॥ २१ ॥ जं'" चिच्छते करेति य कम्मं सिप्पं णयं विभंगं वा । [.......] णिप्पधं च णाणाभिगमणं वा ॥ २२ ॥ आहारे णीहारे सरीरमब्भंतरे व मज्झे वा । सयमप्पणो परस्स व मित्तममित्तस्स वा किंचि ॥ २३ ॥ 20 इच्छति विसयगुणं वा कंचि धम्म - ऽत्थ - कामजोगं वा । अण्णं वा सुभमसुभं तं चेव णामं च तंवेलं ॥ २४ ॥ सव्वम्मि कडे दिण्णे दिट्ठे सम्माणिते वा वि । मणदुक्खं णिच्छिण्णं संपत्ति इच्छितं जाण ॥ २५ ॥ इच्छितसंपत्तीस वि तसकायाणं च थावराणं च । तंवेलमुवणतासु तु उववण्णत्थं वियाणेज्जा ॥ २६ ॥ सज्जीव - ऽज्जीवेसु य उवभोगेसु वि य माणुसाणं पि । तंवेलमुवणतेसु य उववण्णत्थं वियाणेज्जो ॥ २७ ॥ ॥ पडलं [ णवमं ] ॥ ९ ॥ छ ॥ [दसमं पडलं ] संवच्छरं महामंडलेसु मज्झिमगमंडले मासं । खुड्डलगमंडलेसु य अहोरत्तं वियाणेज्जो ॥ १ ॥ णक्खत्तमंडलैंऽद्दागमंडले चंदमंडले मासा । [...] सूरमंडलें वस्समो जाणे ॥ २ ॥ जाणे मंडले तिविधेसु खुड्डुलग - मज्झिम - महंते । दिवसं पक्खं छम्मासमेव वित्थारजोगेणं ॥ ३ ॥ १ पुरम्मि सु° हं० त० ॥ २ वेया हं० त० ॥ ३ तं निसंभंति हं० त० विना ॥ ४ अग्गि मा हं० त० विना ॥ ५ णिज्जं ठियायए चेव हं० त० ॥ ६ गव्विय हं० त० ॥ ७० एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ८ मलारो हं० त० विना ॥ ९ चंदो हं० त० विना ॥ १००० एतचिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ॥ ११ सुभगब्धि छि हं० त० ॥ १२ वा वि । आगते पुच्छियं सव्वं लाभालाभं वियागरे ॥ २० ॥ जं जाव सि० ॥ १३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते । १४ जं तिच्छते हं० त० विना ॥ १५ भिमतणं सं ३ पु० ॥ १६ 'लद्धासमं हं० त० ॥ १७ ले पुहइमंडले वस्स सि० ॥ १८ मणंते हं० त० विना ॥ 25 Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 २४२ अंगविज्जापइण्णयं [ एक्कारसमं पडलं दारमकीलणगेसु वि चतुचक्कीया भवेज्ज ठेववत्ती । चत्तारि अहोरत्ते व जाण चत्तारि वा मासे ॥ ४ ॥ दारककीलणगेसु वि बे चक्कलगाणि होति ताण । बे होंति अहोरत्ता बे वा मासा, विधीयते ॥ ५ ॥ पल्लंकैक—चक्कलगे दिवसे मासे व जाण चत्तारि । धाडीचक्के मासो वस्सं तु भवे सकडचक्के ॥ ६ ॥ एतेण कारणेण तु मूलं कालस्स सुड्डु कातव्वं । जम्मि भवंति मुहुत्ता दिवसा मासा वै वस्सा वा ॥ ७ ॥ पुप्फ-फल- भूसण - ऽच्छादणे य उवकरण भत्त पाणे वा । सज्जीवा - ऽजीवं वा उप्पज्जति जं णिमित्तम्मि ॥ ८ ॥ जध तू रससंभूतं जध य महग्घं जहो महासारं । जध जाती अविसिद्धं तध दिग्घं णिद्दिसे कालं ॥ ९ ॥ जे कसका जे य विपुलसरीरा ते रसदीहकालभूया । विपुलसरीरेसु य जे कसका दिग्घसकालजुता ॥ १० ॥ सिग्घमणिट्ठप्पाते ओयवति सिग्घमो अणिट्ठस्स । अभिलसितसिग्घलंभो सिग्घं इट्ठोपपत्ती ॥ ११ ॥ जंध मूलं तध थोगं जध य समग्घं अजातिमंतं वा । जध सुलभमप्पसारं तध थोगं णिद्दिसे कालं ॥ १२ ॥ पीतिकरे अणुबद्धो भवति धणदुधणसुहस्स । दुक्खस्स वि अणुबंधो भवति अणिट्ठाणुबंधेसु ॥ १३ ॥ पच्चग्ग–सरस—णव—तरुणगेसु दिवसा हवंति पक्खा वा । परिणतजुण्णगते रसेसु मास—संवच्छरे जाण ॥ १४ ॥ मासपमाणे य महुम्मि उत्तविसैमं व यमलिते मासा । विसंमेधेसु तु पक्खा समागमागमसैंमेसु वस्साणि ॥ १५ ॥ जं दिस्सते छलंसं उव्वंते छ उदू वि जाणेज्जा । जं वा सणणा अँसितं तं वा तं ते उर्दु जाण ॥ चुभलका पेलग - मुकुड-वेटुणे मालिकासु वट्टासु । सीसावकम्मि सव्वम्मि उत्तमत्थं विजाणीया ॥ पुणामेसु तु पुप्फोवकेसु मासा व होंति वासा वा । पुप्फोवकत्थिणामे रातीओ होंति पक्खा वा ॥ १८ ॥ संवच्छरेसुँ कुडवेट्टणेसु साराणुसारतं व वदे । पुप्फोवकेसु मासा पक्खा दिवसा य णातव्वा ॥ १९ ॥ अल्ले मल्ले सव्वम्मि मुहुत्ता अल्लसरभावेणं । परिमलित-मिलाणेण य विलंबितं कालमो जाण ॥ २० ॥ एसेव सव्वदव्वेसु गमो पाणे व भोयणे वा वि । सद्दे वा रूवे वा एएण गमेण गंतव्वं ॥ २१ ॥ ॥ [ पडलं दसमं ] ॥ १० ॥ छ ॥ १६ ॥ १७ ॥ [ एक्कारसमं पडलं ] पुरिमंगाणामासे पुव्वदिसाए य ओवलद्धीए । कत्तिय - मग्गसिर - पोसमासेसु जाणीया ॥ १ ॥ संवच्छरलद्धीयं अग्गेयं मग्गसीस पोसं वा । [ जाणे] संवच्छरमो पुव्वदिसि पुरत्थिमंगेसु ॥ २ ॥ दक्खिणगत्तामासे पुणो य दक्खिणदिसोवलद्धीयं । माहं Do फग्गुण चेत्तं वेसाहं वा वदे मासं ॥ ३ ॥ संवच्छरलद्धीयं संवच्छर-माह - फग्गुणं वा वि । चेत्तं वेसाहं वा दक्खिणदिसि दक्खिणंगे ॥ ४ ॥ पच्छिमगत्तामासे अवरदिसायं च ओवलद्धीयं । जेट्ठामूला - ऽऽसाढा - सावणमासं च मासे ॥ ५ ॥ संवच्छरलद्धीयं संवच्छरमिंद विस्स विण्णुं वा । संवच्छरमो बूया पच्छिमदिसि पच्छिमंगेसु ॥ ६ ॥ वामे गत्तामासे पुणो य उत्तरदिसोवलद्धीयं । पोट्ठपदऽस्सोजं वा मासं मासेसु जाणीया ॥ ७ ॥ पोट्ठपदं वा संवच्छरं तु संवच्छरं च अस्सोयं । संवच्छरलद्धीयं उत्तरदिसि वामगत्तेसु ॥ || १ उववज्जि हं० त० विना ॥ २ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्त्तते ॥ ३ ककुच हं० त० ॥ ४ व पक्खा वा हं० त० ॥ ५ हा सहामासे हं० त० ॥ ६ 'लजुता हं० त० विना ॥ ७ ग्घलाभा सि हं० त० ॥ ८ जधुमूलतंधव्वोगं जध हं० त० विना ॥ ९ भवति सव्वअणि सि० ॥ १० पक्खो हं० त० ॥ ११ समं धयमलिए मासा हं० त० विना ॥ १२ 'समधसु हं० त० ॥ १३ 'समुसु हं० त० ॥ १४ असितं यव्वा तं हं० त० ॥ १५ चुवल काल ० ० ॥ १६ ण्णामासे तु हं० त० विना ॥ १७ "सु हुड हं० त० ॥ १८ अण्णे म हं० त० विना ॥ १९ अण्णस हं० त० विना ॥ २००८ Do एतच्चिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति || २१ च सेसेसु हं० त० ॥ For Private Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २४३ उद्धंगाणामासे पादुब्भावे य थावराणं तु । फग्गुणमासाढं वा पोट्ठपदं वा वदे मासं ॥ ९ ॥ संवच्छरलद्धीयं फग्गुणमासाढ पोटुपादो वा । संवच्छरमो बूया दढ-थावस्-सासते भावे ॥ १० ॥ चलमंगाणामासे पादुब्भावे य चंचलाणं तु । सावणमासं बूया मासुप्पातोपलद्धीय ॥ ११ ॥ चलमंगाणामासे पादुब्भावे य चंचलाणं च । संवच्छरलद्धीयं सावणसंवच्छरं बूया ॥ १२ ॥ G सावण पोट्ठपदं वा अस्सोयं कत्तियं च मासेसु । पुण्णदगभायणेसु य निद्धंगाणं च आमासे ॥ १३ ॥ छ ॥ 5 सावण पोट्ठपदं वा अस्सोयं कत्तियं च जाणीया । संवच्छरमो बूया णिद्ध वासोवलिंगे य ॥ १४ ॥ चेतं वेसाहं वा जेट्ठामूलं तधेव आसाढं । मासं मासेसु वदे रुक्खे गिम्होवलिंगे य ॥ १५ ॥ मग्गसिर पोसमासं माहं वा फग्गुणं व जाणीया । मासेसु सीतभावे तधेव हेमंतलिंगे य ॥ १६ ॥ तं चेव जधुद्दिढे संवच्छरलद्धियं च जाणेज्जो । संवच्छरे तु चउरो सीते हेमंतलिंगे य ॥ १७ ॥ णीहारेसु तु पक्खा उजुभावेसु पुण संथिते मासा । अहोरत्ते [पुण] पक्खं वदे तु पक्खप्पमाणम्मि ॥ १८ ॥ 10 ॥ [पडलं एक्कारसमं] ॥ ११ ॥ छ । [बारसमं पडलं] तरुणंकुर-किसल-पत्तलकेहि अंडकित-जालकेहि वि य । आसित-पोसित-ओकुंभआगमे पाउसं जाणे ॥ १ ॥ अज्जुण-कुडय-कतंबे सिलिंध-कंदलि-कुडुंबके चेव । दद्दुर-1 जतपडिरूवे पाउसं बूया ॥ २ ॥ खेत्तप्पवत्तणे बीजणिग्गमे बीयवावणे यावि । गहकरण-पज्जणेसु य उदगपरणालिकरणे य ॥ ३ ॥ 15 वासारत्तिकभंडगहसुयणकावरुत्तकहणेसु । वाहणपडिसामण्णेसु य जलं ति णवपाउसं बूया ॥ ४ ॥ साढिकसीहलबंधयतववेसिसगणिअगणिकक्खदिसेसु । णिठ्ठलसंलावेसु य आसाढं मासमो बूया ॥ ५ ॥ हरितं व सद्दलं ति व पडिरूढतणं ति जातसस्सं ति । णिद्दिज्जति सस्सं ति य सावणमासं विजाणीया ॥ ६ ॥ पुण्णपलोत्थितदकभायणेसु अच्छायकुप्पवट्टे य । वद्दलकअच्छाणीक त्ति पोट्ठपादो भवति मासो ॥ ७ ॥ मज्झिविगाढे णटे उलुंबितो वीलैंणि त्ति य किलिण्णे । अभिवद्धमाणगेण य पोट्ठपदं मासमो जाणे ॥ ८ ॥ 20 इंदसयणे य इंदमहभंडके इंदमोवकरणे य । इंदधणुइंदणामेण पोट्ठपादो भवति मासो ॥ ९ ॥ साली गब्भणिका व त्ति तित्ति सुज्जते य वीहित्तिकं । बूया पक्क त्ति य तिला य ओपुष्फित त्ति वदे ॥ १० ॥ अस्साइस्सेइ णवमिक ति णीराणिका वलायं ति । अस्सोयं पुण मासं अब्भुत्थाणे णरपतीणं ॥ ११ ॥ दारग्घाडि कत्तिय अभया माहातयो सजीवंती । बहुलं मासं बूया वधमोक्खे बंधमोक्खे य ॥ १२ ॥ उववासो दाणं ति य देवतपूय त्ति साधुपूय त्ति । बहुलं मासं बूया उदुंबरभुयो विबुद्धो त्ति ॥ १३ ।। 25 णिव्वट्ठमच्छमुदगं विमलणभं सारसा सुरा सरदो । दीवा हसंति तध दंतिक त्ति दाणं वतोववासो त्ति ॥ १४ ॥ देवस्स वा वि थेवणं उदुंबरभूयो विबुद्धो त्ति । वसागाधा उवरि उवयुत्ते पुच्छंते सो कालो होति बोधव्वो ॥ १५ ॥ आधारेतव्वं बाहिरेण तम्मि तु भवंति जे भावा । तज्जाता तरूवा भवंति ते तं पि कालाण ॥ १६ ॥ पंचिदिएहिं पंचहिं सद्द-प्फरिस-रस-रूव-गंधेहिं । अग्गिकते अग्गिकम्मि य बहुलं मासं विजाणेज्जो ॥ १७ ॥ पच्छा जक्खो धणकं सुरयितपडदीवरुक्खो त्ति । मुण मग्गसीसमासं हल्लिसकडे धमकसद्दे ॥ १८ ॥ 30 १ भागे हं० त० ॥ २ हस्तचिह्नान्तर्गतोऽयं श्लोक: हं० त० एव वर्त्तते ॥ ३ "मासे हं० त० विना ॥ ४ मासे हं० त० ॥ ५ तरुणंकिलरसकिलपत्तकेहि हं० त० ॥ ६ रमज्जि हं० त० ॥ ७ सत्तप्पवहणे हं० त० ॥ ८ "पहणा' हं० त० ॥ ९ “सुतणकाधभत्तगह हं० त० विना ॥ १० "लवधलवविसेअगणिक हं० त० विना ॥ ११ णिद्वे हं० त० विना ॥ १२ लणेति य हं० त० विना ॥ १३ सालीगभणकावत्तितं ति सु हं० त० ॥ १४ “स्सा अलेई ण हं० त० ॥ १५ णोरा' हं० त० ॥ १६ “लाणं ति हं० त० ॥ १७ सद्दो हं० त० विना ॥ १८ ज्जवणं हं० त० विना ॥ १९ तेवं पि हं० त० ॥ अंग० २१ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 30 २४४ अंगविज्जापइणयं [तेरसमं पडलं १९ ॥ ॥ २४ ॥ २५ ॥ २६ ॥ संगलिगं खीरदुमे चतुप्पदे खीरिणीसु खीरेसु । मुण मग्गसीसमासं सोम्मे वा सोम्मणामे वा जाणपवट्टण—यत्तप्पवहणे पुव्वसस्समलणे य । मुण मग्गसीसमासं गिरिजण्णे भूमिजागे य ॥ २० सीतं हिमं ति वा सीतलं ति दीहमहिला णिसा दीहा । थीउत्तरे जुगलगे य एत्थ पोसो भवति मासो ॥ २१ ॥ इंगालसगडिका - अग्गचुल्लके तावणे य अग्गिम्मि । गब्भघर - कंबलणिसेवणे य पोसो हवति मासो ॥ २२ ॥ थीणं महाजणे पुरिसवद्धणे माहमासमो बूया । पीतकधमासिकत्थे सद्धे ओछाडि चेव ॥ २३ ॥ सव्वम्मि सीतभावे सायं गीत - अग्गिसेवणाए य । एत्थ वि माहो मासो अणोज्जवासं विसेसो वा ॥ णर-णारीमिधुणगतस्स उस्सवे मेधुणप्पसंगेसु । दित्तेसु य मुदितेसु य फग्गुणमासं वियाणेज्जा ॥ सीतक्खयपरिणामे उवगमेसु वि य उहभावस्स । णच्चण्हा सीतेसु य फग्गुणमासं वियाणीया ॥ आपाणगप्पमोदे उक्कुट्टे गीत वादिते हसिते । परभुयस चूतकुसुमे य मुण फग्गुणं मासं ॥ २७ ॥ जवकिंदीवर-सामाककुसुम - अंदोलका वसंतो त्ति । फग्गुणमासं बूया मत्तो अंदोलति जणोति ॥ २८ ॥ मिधुणसमागम - मेधुणकधासु सव्वेसु कोमलंगीसु । फग्गुणमासं बूया छणरत्तमंडणासु विय ॥ २९ ॥ उस्सयमत्तुम्मत्ते वसंतलिंगे य कामलिंगे य । एत्थ वि चेत्तो मासो समे य पुण्णाम - थीणामे ॥ ३० ॥ समुदयमणुबद्धेसु य वसंतलिंगे य कामलिंगे य । चेत्तं मासं बूया समे य थीणाम - पुण्णामे ॥ ३१ ॥ वत्थगते रूवगते चित्तगते चित्तवण्णजोगे य । चेत्तं मासं बूया चेत्तो विविधे यऽलंकारे ॥ ३२ ॥ पुरुसुत्तरे जुगलगे जव— गो धुमसंगहे गहपतीणं । मुण वेसाहं मासं णिदाघमासे उवणतम्मि ॥ पाडल-मल्लिक-वट्टिक—सीतजलनिसेवणेसु य णराणं । मुण वेसाहं मासं वीयणके तालवेंटे णिद्दड्डधण्णतावे अतिउण्हो वा पवाति वातो त्ति । तण्हा मगतण्ह त्ति य जेट्ठामूलो हवति मासो ॥ ३५ ॥ तुच्छे यै लुक्खेसु य दगभायण - णट्टभायणेसु वि य । णदि - कूव - तलागेसु वि जेट्ठामूलो हवति कालो ॥ ३६ ॥ अहिकरक उत्थोऽभितपणे छेत्ते पावाक्खयं । आपक्खये व णेहक्खए व जेट्ठो त्ति ता मासो ॥ ३७ ॥ णिद्धे वासारत्तं हेमंतं व मुण सीतवातं सीतभावेणं । उण्हेहि य लुक्खेहि य गिम्हं सुहि य ॥ ३८ ॥ जे जम्मि तम्मि भावे तसकाया थावरा व सव्वे वि । तेसि पादुब्भावेण येव तं तं उर्दु जाण ॥ ३९ ॥ पुप्फ-फल- भूसण - ऽच्छादणेहि उवकरण - भत्त-पाणेहिं । तं तं उदुं वियाणे जं जम्मि उदुम्मि भयमाणं ॥ ४० ॥ देव - मणुस्सा पक्खी चतुप्पदा जलचरा थलचरा य । जे जं सोमे॑ति उदुं तेहि तु तं तं उर्दु जाण ॥ ४१ ॥ सज्जीवा -ऽजीवाणं उवलद्धीय वि उ सव्वभावाणं । तं तं उदुं वियाणे जं जस्स उदुस्स भयमाणं ॥ ४२ ॥ ॥ पडलं बारसमं ॥ १२ ॥ छ ॥ ३३ ॥ ॥ ३४ ॥ [तेरसमं पडलं ] सव्वे रूवविसेसा 0 वैण्णविसेसा Do य पतिविसेसेणं । सुव्वत्तमविण्णाता भवंति कालस्स पडिरूवं ॥ १ ॥ सव्वे वण्णविसेसा रूवविसेसा य पतिविभागेणं । अच्चतं विण्णाता भवंति जोण्हस्स पडिरूवं ॥ २ ॥ अच्छीणि चंद-सूरा अग्गी दीवो पभंकरा सव्वे । णाणुज्जोवो तेयो पभ त्ति जोण्हस्स पडिरूवं ॥ ३ ॥ चक्खुपणासे जोती पणस्सते चंद-सूरमत्थमणे । अण्णातमविण्णातेण य कालस्स पडिरूवं ॥ ४ ॥ सुद्धं ति पंडरं तिय विमलं उज्जोतितं पभा व त्ति । दिवसो त्ति णीरयो त्ति य पडिरूवं जोण्हपक्खस्स ॥ ५ ॥ माणोलतिकालाकं पभभंति - नीलं तिमिरंधकारं ति । रत्ती उत्तासो त्ति य पडिरूवं कालपक्खस्स ॥ ६ ॥ १ पेतकधमसिकच्छे हं० त० ॥ २ वासं ति भस्सो य हं० त० विना ॥ ३ पीडयम' हं० त० ॥ ४ य सुहेसु यहं० त० ॥ ५ छत्ते य वाकूयं हं० त० विना ॥ ६०० एतच्चिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ॥ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्णरसमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २४५ थकितं रित्तं ति व लंछितं ति पडिसामितं ति णिक्खित्तं । अव्वत्तमदेसं ति य पडिरूवं कालपक्खस्स ॥ ७ ॥ उब्भिण्णं मुक्कमवंगुतं ति पागडियं दंसियं बहिद्धं वा । सुव्वत्तं दिस्सति पागडं ति जोण्हस्स पडिरूवं ॥ ८ ॥ खुव्वति मारमरीति सुज्झति त्ति < जोण्हस्स [जाण] पट्ठवणं । विमलं सुद्धं परिमज्जितं ति जोण्हस्स पडिरूवं ॥९॥ मइलतिकेणं कितकालगो त्ति कालस्स जाण पट्ठमणं । मइले कालकियं ति य भवंति संपुण्णकालस्स ॥ १० ॥ ॥ पडलं [तेरसमं] ॥ १३ ॥ छ । 5 [चोद्दसमं पडलं] एगदिवसप्पमाणे एगंगे एगमाभरणगते य । एक्कंगियउवकरणे सत्तेसु य एक्कचारीसु ॥ १ ॥ बिंगुलिगहणे बिसु एक्कएसु आभरणएसु जमलेसु । मिधुणचरसत्तजमले जुवकरणे बेट्ठिओ कालो ॥ २ ॥ भुमगंतर-णासग्गे तिक-हणु-मज्झक्खयंतरे चेव । पोरिसि सवस्थि-सीसे तिगुलिगहणे तियं बूया ॥ ३ ॥ ओणतमुत्थितमज्जियते य उल्लोइते [य] हसिते य । णटे गीते वाइते चउक्के य चतुरंता ॥ ४ ॥ 10 चउरंगुलिगहणेसु य [..........] चउपुडागते य । पादतल-करतले बिजुगलेसु चतुरत्तिओ कालो ॥ ५ ॥ पंचंगुलिगहणेण ये जणहितयाणं व गहणजोगेण । सयणा-ऽऽसणे सपुरिसे य पंचरत्तो भवति कालो ॥ ६ ॥ गुप्फ-मणिबंधगहणेसु बिसु य तिगेसु य तधेव जाणीया । बिअसहिते य चउक्के वियाण छरत्तियं कालं ॥ ७ ॥ तियसहिते [य] चउक्के बितिकम्मि य एक्कएण सहितम्मि । एक्कसहितेसु तिसु वा बिएसु सत्ताहिओ कालो ॥ ८ ॥ अट्ठसु य एक्कएसुं बिसु य चउक्केसु चउसु व बिएसु । [.......... ......... ॥ ९ ॥ 15 .............. I] तिगतिगुणे णवगणणे कते य जाणे णवाहं ति ॥ १०॥ पंचबिगेसु दसाहो दसाहिभागे दसक्खगणिते य । कच्छवकंजलिकरणे उवणीतदुहत्थलंभे य ॥ ११ ॥ पंचसहिते दसक्खे मासद्धे पक्खिते य पक्खे य । पण्णरसाहं जाणे पण्ण[रस]सु एक्कग्गणंतेसु ॥ १२ ॥ ॥ पडलं [चोद्दसमं] ॥ १४ ॥ छ । [पण्णरसमं पडलं] पुण्णामेसु य दिवसं थीणामेहिं रयणि वियाणेज्जो । दिवसं दिवाचरेहि य रत्ती रतिविचारेहि ॥ १ ॥ दिवसकरेण तु दिवसं स्यणिकरेण रयणि वियाणेज्जो । सुज्जोदएण दिवसं रत्ति चंदोदए जाण ॥ २ ॥ उण्हेण जाण दिवसं रत्तिं सीतेण संविजाणेज्जो । उज्जोवेण य दिवसं रत्ति पुण अंधकारेणं ॥ ३ ॥ सुज्जपरिवेस-इंदधणु-रायिवासेण दिवसकं जाणे । सोमपरिवेस-विज्जुत-उक्कापातेण रत्तिं तु ॥ ४ ॥ पासंडजणोवयारोपलद्धीय दिवसमो वियाणेज्जो । चोराऽऽरक्खिगचरितोपलद्धीयं रत्तिमो जाण ॥ ५ ॥ 25 समणजण-सावकजणस्साऽऽहारे दिवसमो वियाणेज्जो । आजीवकआहारोवलद्धीयं रत्तिमो जाण ॥ ६ ॥ दिवसाहारविधी अग्गिजं ति दिवसो त्ति संवियाणीया । कज्जोवदीविकदीवतारकादंसणे रतिं ॥ ७ ॥ पडिसामित-णिक्खित्ते ठइया-ऽऽवरितं ति रत्तिमो जाण । मुक्कमपंगुत-पागडिय-दंसिते दिवसंमो जाण ॥ ८ ॥ पयलाइत पासुत्ते सयिते रतिं वियाणेज्जो । वुट्टितेस दिवसं दिवसकडे कम्मजोगे य ॥ ९ ॥ दिवरत्ति भूतरत्ती तधेव आणंदसव्वरत्ति त्ति । रयणि त्ति सव्वरि ति य णिस त्ति खणता णिवियरत्ति ॥ १० ।। 30 पुरिसे पुरिसोवकपुरिसपुरिसभावाण दिवसमो जाणे । महिलाभरणे दव्वेसु महिलिका भवति रत्तिमुहं ॥ ११ ॥ दिवसको दिवसकम्मकं ति णिव्वावदिवसो त्ति । आय-व्वयदिवसो त्ति य दिवसेसु सम त्ति ये सद्दा ॥ १२ ॥ ॥ पडलं [पण्णरसमं] ॥ १५ ॥ छ ॥ 20 १ छकियं हं० त० ॥ २ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ अंगविज्जापइण्णयं [सत्तरसमं पडलं [सोलसमं पडलं] बारस मासा संवच्छरो त्ति भागेसु तीसती मासो । पण्णरसेव तु पक्खो तीसं भागे अहोरत्तं ॥ १ ॥ एतस्स अहोरत्तस्स पुणो तीसतिविधस्स णातव्वं । राति-दिवसपरिवड्डी हाणी य पुणो गणेयव्वा ॥ २ ॥ राती दिवसं च पुणो वड्डी हाणी य सुट्ठ णातूणं । सव्वे वि अहोरत्ता वेलाहि पुणो गणेतव्वा ॥ ३ ॥ एत्तो तिण्हि मुहुत्ता बेसंझाउट्ठिओ य मज्झण्हो । छ प्पुव्वण्हो वुत्तो छ अवरहो मुहुत्तो उ ॥ ४ ॥ बिमुहुत्तो मागधओ बिमुहुत्तो हवति पातरासो वि । अणुमज्झण्हो बिमुहुत्तमो त्ति तिविधो य पुव्वण्हो ।। ५ ॥ किं वा वत्ते सूरम्मि दिवाभातो वि हवति बिमुहुत्तो । अवरण्हो बिमुहत्तोणिये सूरो बिबिमुहुत्तो ॥ ६ ॥ संजोगेति तिमिरहा उडेतो दिणकरो दिसं पुव्वं । तेण मुणे पुव्वण्हं पुव्वदिसायोवलद्धीय ॥ ७ ॥ संजोगेति तिमिरहा मज्झण्हे दक्खिणेण वच्चंतो । तेण मुणे मज्झण्हं तु दक्खिणदिसोवलद्धीय ॥ ८ ॥ संजोयेति तिमिरहा अवरदिसं दक्खिणेण वच्चंतो । तेण मुणे अवरण्हं अवरदिसायोवलद्धीय ॥ ९ ॥ पुव्वदिसाए इंदो तस्सुवलंभेण जाण पुव्वण्हं । अवरदिसाए वरुणो तस्सुवलंभेण अवरण्हं ॥ १० ॥ दक्खिणतो पेयवती उत्तरतो धणवती दिसाधिवती । एतेसिं उवलद्धीय जाण मज्झंतियं वेलं ॥ ११ ॥ जं जिस्से उप्पज्जति दिसाय बिपदं चतुप्पदं वा वि । पुप्फ फलं दव्वाणि व तेण तु तं तं दिसं जाण ॥ १२ ॥ ॥ पडलं [सोलसमं] ॥ १६ ॥ छ । [सत्तरसमं पडलं] मइलब्भे रत्तकदंसणम्मि संझं तु पच्छिमं जाण । अभिणवरत्तकसंदसणम्मि पुव्वा भवति संझा ॥ १ ॥ रत्तच्छादणणवघडिकुंभें वेरत्तकंबलाणं च । पुष्फ-फल-रत्तमणिकेण कुंभेण य जाण सूरुदयं ॥ २ ॥ रत्तंबरुत्तरिज्जे य दारगे रत्तमज्जणिज्जोगो । रत्तणिवत्थाउवणिग्गमे य सुज्जोदया वेला ॥ ३ ॥ पुण्णामाणुगमणे पुण्णामेण खचिते य थीणामे । ओणायकबाहुपावियाय सुज्जोदयणवेला ॥ ४ ॥ संदीवियग्गजलणे य जाण आलोकणे वणदवस्स । रण्णो वि य आगमणेण जाण सुज्जोदयणवेलं ॥ ५ ॥ बालतिलकं च कण्णातिलगे य तवणिज्ज-पदुमतिलके य । उदितं सूरं जाणे उवणीते रत्तमल्ले य ॥ ६ ॥ एसाऽऽगतो णरिंदो त्ति सामिको सुपुरिसो त्ति वा बूया । जातं दाणि सणाधं ति जाण अइरुग्गतं सूरं ॥ ७ ॥ देवतपूया-बलिमंगलकरणे सत्थीवायणकदेवा । विज्जुद्दीवेण अज्झापणे य मुण मागधं वेलं ॥ ८ ॥ विपणीए सारणेण य पट्ठवणेसु वि य दिवसकम्माणं । भत्तेवत्थोभे दोसिकम्मि मुण मागधं वेलं ॥ ९ ॥ 25 बालघतपज्जणेसु य मुहधोवण-मुंडकाणुदासेसु । खमगजणपारणासु य जाणेज्जो मागधं वेलं ॥ १० ॥ ओलिहणंजण-तिल(क)करण-केसमंडण-पसाधणविधीसु। बालजुवतीजणस्स तु मागधियं वेलमो जाण ॥ ११ ॥ सव्वम्मि पातरासे सिद्धवणीते य भुज्जमाणे य । दुद्धण्हिक-दधितावे अंबेल्लि-विलेपिकादीसु ॥ १२ ॥ कक्करपिंडगगंगावत्तगचुक्कितकवप्पडीसु वि य । अंबटिकघतउण्हे पोवलिकासिद्धिविद्धीसु ॥ १३ ॥ भतकजणसिप्पिकजणस्साहारे तरुणजणपातरासे य । मुण पातरासवेलं मज्झिमिया कूरवेल त्ति ॥ १४ ॥ जूताजूतकआढवकसेवकाणं च पातरासो त्ति । कज्जवसि पातरासे य अणुमज्झण्हं वियाणेज्जो ॥ १५ ।। सुद्धिकरवसभागमणे बंधवे इति अत्थवेल त्ति । मग्गो उवहरण त्ति य अणुमज्झण्हं वियाणेज्जो ॥ १६ ॥ आतवछत्तकगहणे जुत्तपसूणं विमोयणेणं च । तण्हाइत-मकतण्हासु चेव मज्झण्हवेलं तु ॥ १७ ।। णिद्दहति व आदिच्चो उण्हं तण्ह त्ति णिस्ससति भूमि । उण्हो व वाति वातो त्ति एव मझंतियं जाणे ॥ १८ ॥ १ 'भे चेव पक्खकंब हं० त० ॥ २ ओयाणकबाहुप्पतियाय हं० त० विना ॥ ३ उण्णे पोवलिकासित्ति विट्ठीसु हं० त० विना ॥ ४ रुयक हं० त० ॥ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगूणवीसइमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २४७ डझंतभूसति कढतु तिरियं ति वणदवग्गिजालो त्ति । रूवाविधो संतप्पते त्ति मज्झंतिकं वेलं ॥ १९ ॥ मज्झो त्ति मज्झिमो त्ति य मज्झत्थो मज्झदेसकं व त्ति । मज्झण्हो मज्झठिय तत त्ति मज्झण्हमेतेहिं ॥ २० ॥ तत्तस्स य णिव्ववणे सरितोमद्धकपिते पसण्णे य । सिद्धार्वतारणे मज्झिते य उव्वत्तमज्झण्हे ॥ २१ ॥ सव्वणियमट्ठिताणं कयण्हिकाणं तु भोयणाकाले । पज्जोवत्तं सूरं जाणे एकसत्तरत्तेसु ॥ २२ ॥ बहिणगरकम्मजणके ससिद्धकबलिकम्मकरणे य । उज्जाणभोज्जभत्तिककते य अवरहमो जाण ॥ २३ ॥ 5 निग्गंथकयाहारे पच्चक्खाणे पडिते घणायं च । पासंडालयवसधीकते य मुण पच्छिमं वेलं ॥ २४ ॥ सव्वदिवाचारीणं पसु-पक्खीणं तु वसतिमधिगमणे । पुण्णामाणं च खयेण जाण सूरत्थमणवेलं ॥ २५ ॥ रत्ते पुप्फ-फले भूसणे य अच्छादणे य रत्तम्मि । थीणामेसु य रत्तेसु जाण संझागतं वेलं ॥ २६ ॥ पडलं [सत्तरसमं] ॥ १७ ॥ छ । [अट्ठारसमं पडलं] 10 बालाहारविधीहि य मागधियं भत्तवेलिकं जाण । आतुरओसधपाणेसु चैव मुण मागधं वेलं ॥ १ ॥ खमगजणपारणाअ य जाणेज्जो दुद्धवेलिका य त्ति । समणजणवायरासे आलोलीवेलिकायं वा ॥ २ ॥ सेडकपढमाहारे जाणेज्जो आणुतासवेलं ति । भतकजणपातरासे जाणेज्जो कूरवेलं ति ॥ ३ ॥ वुड्डस्सावक-भिक्खुकजणे य मुण पातरासवेलं ति । भिक्खूणाऽऽहारेण य गंडीवेलं वियाणाहि ॥ ४ ॥ किंचोवत्तं सूरं णिग्गंथजणस्स भत्तवेल ति । जागु त्ति अण्णपाणे पधिकाणं कासकाणं च ॥ ५ ॥ 15 अच्छादण–पणियगते अवरण्हे व(वा)सवेलिकं जाण । प्पागेहिं णागवेलं पसूहि पसुवेलिकं जाण ॥ ६ ॥ रागेण सायवेलं दीवेहि य दीववेलिकं जाणे । आजीविकमहासारे सामासं वेलिकं जाणे ॥ ७ ॥ सुंभलक-सुरा-पुप्फे फले हरितकाण चुण्णणवसेसु । कामुकलिंगोपगतेसु चेव मुण आ पदोसो त्ति ॥ ८ ॥ णिव्वहणे य वधूणं जति भूतबलिकम्मकरणे य । पातिट्टे य वधूणं जाणेज्जो आ पदोसो ति ॥ ९ ॥ जामेण जामवेलं भिण्णं अंविसारिकाहि जाणेज्जो । चोरेहिं चोरवेलं महापदोसं च रक्खेहि ॥ १० ॥ 20 पासुत्त-णिसीधं ति य मोण-णिसई तधेव थिमितं ति । मते अरहस्सं ति य थितड्वरत्तं वियाणेज्जो ॥ ११ ॥ उच्छुप्पीलणके मोग्गरसद्दे जंत-मुसलसद्दे य । मंदिरमंथणगागरसद्दे [य] वियाण गोसग्गं ॥ १२ ॥ गो-माहिसणिग्गमणे पच्छा(त्था)णे य पधिग-प्पवासीणं । सारइयसालिमद्दणपंतीसद्दे य गोसग्गं ॥ १३ ॥ णरदेव-देवपडिबोधणासु संख-पडहायणादेसु । पच्छिमजामं कुक्कुडसद्दे वा जाण गोसग्गं ॥ १४ ॥ मंगलिक-सत्थिवाचक-गोसग्गिकसंखभाणकेसु वि य । देवथुतिमंगलेसु य तवोधणे 'चेव तु विभत्तं ॥ १५ ॥ 25 ॥ पडलं [अट्ठारसमं] ॥ १८ ॥ छ । [एगूणवीसइमं पडलं] . सीसकलोहेण तु पुहसीसिका अरुणमो य दव्वा वि । तंबे त पव्वसंझं वियाण सज्जोदयं वा वि ॥ १ ॥ तवणिज्ज-सुवण्णेण तु सूरमुदेंतमुदितं व जाणेज्जो । नवकणक-सुवण्णेसु य पुव्वण्हं पातरासं वा ॥ २ ॥ १ देसमज्झम्मि । मज्झ हं० त० ॥ २ वचारणे मज्झिते य ओवत्तमज्झण्हो हं० त० विना ॥ ३ सव्वतियमट्टियाणं कयण्हिकालं तु हं० त० ॥ ४ घयाणं च हं० त० ॥ ५ चेव पुण्णमागयं वेलं हं० त० ॥ ६ कासवाणं हं० त० ॥ ७ वुस हं० त० विना ॥ ८ चुंभल' हं० त० विना ॥ ९ जडिभूत हं० त० विना ॥ १० अवसा हं० त० विना ॥ ११ चेव ति भव्वं हं० त० ॥ १२ तु फुसीसका हं० त० विना || . Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 30 २४८ अंगविज्जापइण्णयं [ वीसइमं पडलं मज्झंतिकट्ठितं कंसलोहकेणं व कंसभाणे वा । किंचोवत्तं सूरं आ मइले कंसलोहम्मि ॥ ३ ॥ उच्चावरण्हमेव तु णवरुप्पिकेण संविजाणाहि । आ मइले रुप्पिकके तपुकेण व जाण अवरहं ॥ ४ ॥ अत्थमणवेलकं पि य जाणेज्जो वट्टलोहेणं । वैकंतकलोहेण य जाणेज्जो णागवेल त्ति ॥ ५ ॥ अरकूडकेण संझं अत्थमितं जाण काललोहेणं । मुदए आ पदोसं थितऽङ्कुरतं च विक्खेणं ॥ ६ ॥ परिवत्तंगो सग्गं जाणीया णाणकेण सव्वेण । घंटासद्देण पुणो यं जाण गोसग्गकालं ति ॥ ७ ॥ ॥ पडलं [ एगूणवीसइमं ] ॥ १९ ॥ छ ॥ [वीसइमं पडलं ] १ ॥ । २ ॥ पुरिसो वा इत्थी वा सा वेला तेण गातव्वा ॥ सौ वेला गातव्या तस्सुप्पत्तीय सद्दस्स ॥ Do सा वेला गातव्वा तस्सुप्पत्तीय गंधस्स ॥ सा वेला गातव्वा तस्सुप्पत्तीय रूवस्स ॥ ४ ॥ । ३ ॥ । सा वेला णातव्वा तस्सुप्पत्तीय भक्खस्स ॥ ५ ॥ जं जिससे वेलायं दिस्सति बिपदं चतुप्पदं वा वि । जो जिस्से वेलाए सद्दो उप्पज्जति सुव्वती वा वि जो जिस्से वेलाए गंधो उप्पज्जति दिस्सती वा वि जं जिस्से वेलाए रूवं उप्पज्जति दिस्सती वा वि । जो जिस्से वेलाए भक्खो उप्पज्जति लब्भती वा वि जं जिससे वेलाए पाणं उप्पज्जती लभती वा वि । सा वेला गातव्वा तस्सुप्पत्तीय पाणस्स ॥ ६ ॥ जं जीसे वेलाए दव्वं उप्पज्जति दिस्सती वा वि। सा वेला णातव्वा तस्सुप्पत्तीय दव्वस्स ॥ ७ ॥ जं जीसे वेलाए भंडं उप्पज्जति दिस्सती वा वि । सा वेला गातव्वा तस्सुप्पतीय भंडस्स ॥ ८ ॥ जं जीसे वेलाए रयणं उप्पज्जति दिस्सते वा वि । सा वेला गातव्वा तस्सुप्पातस्स लद्धीए ॥ ९ ॥ जं जीसे वेलाए पणितं उप्पज्जति दिस्सती वा वि । सा वेला गातव्वा तस्सुप्पत्तीय पणितस्स ॥ १० ॥ जं उवकरणं णर-णारीणं उप्पज्जते [य] जं वेलं । सा वेला गातव्वा तस्सुवकरणस्स लद्धी ॥ ११ ॥ अब्भंतरबाहिरका यं देयं सेवते मणुया । सा वेला गातव्वा तस्सुद्देसस्स लद्धीए ॥ १२ ॥ १९ ॥ लेहं रूवं गणितं विज्जाथाणाणि सत्थणीतीओ । इस्सत्थत्थरूवगतं जुद्धं चऽतिकिच्छयाणि विय ॥ १३ ॥ जं जीसे वेलायं तु मणूसा यं कालं अधीयंते । सा वेला गातव्वा तस्सुप्पातस्स लद्धीय ॥ १४ ॥ बंभणवेदज्झयणे पाडणं च ससमयज्झयणे । णिग्गंथाणं च सुयम्मि कालके रासिबद्धेयं ॥ १५ ॥ जं जिस्से वेलायं बंभण - समणा सुतं अधीयंते । सा वेला गातव्वा तस्सुप्पातस्स लद्धी ॥ १६ ॥ कामगुणे मणुयगुणे सद्द-प्फरिस - रस- रूव - गंधे य । मदु - कढिण - णिद्ध-रुक्खे फासे सुहे सीतमुण्हे य ॥ १७ ॥ जे जिस्से वेलाए - णारिगणा सुहं अणुभवंति । सा वेला गातव्वा विसयसुहाणोपपत्तीय ॥ १८ ॥ उक्कट्ठहसित—गीताइयाइ–—णट्टाइविलसियाणं च । णाडिज्जित - वेलंबिय - पढिताणि परूवणाओ य जं जिस्से वेलाए कीडं णरणारिओ णिसेवंति । सा वेला गातव्वा तस्सुप्पातस्स लद्धीय ॥ २० ॥ रामायण - भारधिका तु कहाओ जा य अरहता ( तां) वत्ता। रायपुरिसाण य जा परक्कमगुणा य सूराणं ॥ २१ ॥ एता पोराणाओ कधाओ जा जम्मि देस - कालम्मि । वत्ता तु कधीयते सा वेला तेण बोधव्वा ॥ २२ ॥ जं समनुभूतं - णारिगणेहिं जं च सेसेहिं । लाभा - ऽलाभं जीवित - मरणं दुक्खं सुहं वा वि ॥ २३ ॥ जं जीसे वेलाए परेण सुयमप्पणा व अणुभूतं । सा वेला गातव्वा तस्सुपायस्स लद्धीय ॥ २४ ॥ बहिणगरकणिग्गमणे समिद्धजो (लो) क-बलिकम्मकरणे य । उज्जाण - भोज्ज-भत्तिक- जत्तागमणेसु य णराणं ॥ २५ ॥ जं जीसे वेलाए उज्जाणगुणे णरा अणुभवंति । सा वेला णातव्वा जत्तागमणेण तु णराणं ॥ २६ ॥ १ संधि जा हं० त० ॥ २ वंकंतयलो हं० त० ॥ ३ अक्खूणडकेण हं० त० ॥ ४ ० ० एतच्चिह्नान्तर्गते उत्तरार्ध - पूर्वार्धे हं० त० न स्तः ॥ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकवीसइमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २४९ मज्जविधी खज्जविधी फल-हरितक-सुसिप्पिककडे वा । सुभमसुभे वाऽऽहारे उत्तममासे जहण्णे य ॥ २७ ॥ जं जिस्से वेलायं आहारविधि णिसेवए मणुया । सा वेला णातव्वा तस्साऽऽहारस्स लद्धीय ॥ २८ ॥ देवतसेतूणं वा णवकरणं वा वि उज्जवणिका वा । वय-णियमाणं गहणे दाण-विसग्गे य साधूणं ॥ २९ ॥ जं जीसे वेलायं पारत्तहितं णरा समीहंति । सा वेला णातव्वा तस्सुपातस्स लद्धीय ॥ ३० ॥ वाणियववहारगते दिवसववहारे ठिते य ववहारे । भंडपणियस्स कय-विक्कए य णियए विसग्गे य ॥ ३१ ॥ 5 जं जीसे वेलायं ववहारं तु वणिया समीहंति । सा वेला णातव्वा गहण-विसग्गेण भंडाणं ॥ ३२ ॥ कस्सेण कासकाणं वापण्णे खेत-खलकम्मजोगे य । धण्णाणं गहणे संगहे य वेला तु जा जत्थ ॥ ३३ ॥ जं जीसे वेलायं कम्मारंभं तु कासका कुणते । सा वेला णातव्वा तस्सुपायस्स लद्धीय ॥ ३४ ॥ जं वेलं जं कम्मं सुभमसुभं माणुसा णिसेवंति । सा वेला णातव्वा कम्मुप्पत्तीय पुरिसाणं ॥ ३५ ॥ थीणं पि सव्वकम्मेसु जाण रंधणक-भोयणादीसु । जं वेलं जं कम्मं करेति तं वेलमो जाण ॥ ३६ ॥ 10 ॥ पडलं [वीसइमं] ॥ २० ॥ छ । [ एकवीसइमं पडलं] तद्दिवसजातकं दिस्स दारकं जाण सूरमुग्गमणं । किंचुग्गयम्मि सूरे गोरे उत्ताणसेज्जम्मि ॥ १ ॥ ओसूतकं कडिगेज्झकं दारकं दिस्स अचिरुट्ठितं सूरं बूया । ओवातं दारकं दिस्स परिच्चकम्मंतं पातरासवेलं बूया । ओवातं दारकं लेहिच्चकं दिस्स उच्चपातरासं बूया । ओवातं दारकं तरुणजुवाणं दिस्स पुव्वण्हं बूया । ओवातं 15 तरुणं दिस्स जुवाणं अणुमज्झण्हं बूया । ओवातं पुरिसं मंज्झवयं दिस्स मज्झंतियं वेलं बूया । ओवातं पुरिसं पवत्तपलितं दिस्स उव्वत्तमज्झण्हवेलं बूया। ओवातं पुरिसं मिस्सपलितं दिस्स उच्चावरण्हवेलं बूया । ओवातं पुरिसं दिस्स पव्वपलितं अवरहं बूया । ओवातं पुरिसं दढपकम्महत्थं दिस्स ओलंबमाणं सूरं बूया। ओवातं पुरिसं खट्टासमारूढं दिस्स अत्थमितं आदिच्चं बूया । उत्ताणपस्सिकं दारिकं दिस्स संझावेलियं बूया । कडिगेज्झिकं दारिकं दिस्स दीववेलियं बूया । पंचकम्मंतिकं [दारिकं] दिस्स पाकंतरं ति बूया । वत्तवोलिकं दारिकं दिस्स पाकडितणक्खत्त-तारं बूया । 20 उब्भिज्जमाणथणिकं दारिकं दिस्स जामवेलिकं बूया । जोव्वणवत्तं दारिकं दिस्स तिण्णयामं बूया । महाकुमारि दारिकं दिस्स अड्डरत्तं जाणीया । मज्झिममहिलं पविआतं दिस्स वत्तवरत्तं बूया । बहुप्पयातं जुण्णं दिस्स महागोसग्गं बूया । वुड्ढे णिव्वियातं दिस्स विधवं वा पासंडवद्धं महिलगोसग्गं वेलं बूया । ओवाते[सु] पुरिसेसु जोण्हपक्खं बूया । कालकेसु पुरिसेसु कालदिवसे बूया । सामेसु पुरिसेसु मिस्ससंधि बूया । ओवातासु इत्थिकासु जोण्हरत्ति, बूया । कालिकासु इत्थिकासु कालरति बूया । सामासु इत्थिकासु मिस्सा पुण्णमासद्धरति बूया । ओवातसामेसु पुरिसेसु जाव 25 जोण्हपडिपदातो जोण्हट्ठमित्तो त्ति जोण्हदिवसे बूया । ओवातेसु पुरिसेसु जोण्हट्ठमीतो पाय याव जोण्हपुण्णमासीतो दिवसे बूया । कालसामेसु पुरिसेसु जाव कालट्ठमीतो पाय याव चतुद्दसातो त्ति कालदिवसे बूया । ओवातसामार इत्थिकाय जाव जोण्हट्ठमीतो त्ति जोण्हरत्तिं बूया । ओवातासु इत्थिकासु जोण्हट्ठमीतो पाय जाव पुण्णमासीतो त्ति जोण्हरत्तिं बूया । कालसामासु इथिकासु कालट्ठमीतो त्ति कालरर्ति बूया । कालिकासु इत्थिकासु कालट्ठमीतो पाय जाव कालचाउद्दसातो त्ति कालरत्तिं बूया । ओवातं उत्ताणसेज्जं दिस्स जोण्हपडिपदं बूया । ओवातदारकस्स 30 सरीरजोव्वणपरिवड्डीय जाव तरुणसम्मत्तजोव्वणातो त्ति य दारकपरिवड्डीय जाव पुण्णमासीतो त्ति वत्तव्वं । एवमेव कालकदारकपरिवड्डीय कालपरिवड्डी बूया । १ गते दीसववहारे भिए य हं० त० ॥ २ दिव्वपरच्चकंतपा' हं० त० ॥ ३ मज्झगयं दिस्स मज्झम्मियं हं० त० ॥ ४ “स्सायो संधि रत्तिं हं० त० विना ॥ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० अंगविज्जापइण्णयं [बावीसइमं पडलं जधा मणुस्सेसु तधा चउप्पदेसु तधा पक्खीसु तधा परिसप्पेसु तधा कीङ-किविल्लकेसु तधा पुप्फ-फलेसु भोयणेसु तथा अच्छादणेसु तधा भूसणाऽऽसण-मल्लाऽणुलेवणकरणेसु तधा लोहेसु सव्वसाधुसु (सव्वधातुसु) य तधा सव्व[ध]ण्णेसु य तधा सव्वभंडोपक्खर-उवकरणेसु तधा सज्जीव-णिज्जीवेसु सव्वदव्वेसु समणुगंतव्वं । जधा मणुस्साणं वयपरिणामेणं दिवस-रत्तिपरिणामेणं एवं सव्वदव्वाणं पुरिसजुण्णपरिणामेण दिवस-रत्तिपरिणामो विण्णातव्वो-पुण्णामेसु 5 दिवसाणं, थीणामेणं रत्तीणं । वण्णविसेसेणं जोण्हा कालो वा विण्णातव्वो-सुक्किलेसु सप्पभेसु ओवातेसु जोण्हा णातव्वो, कालवण्णेसु णिप्पभेसु मइलेसु अचक्खुविसयकेसु कालपक्खं बूया ॥ ॥ पडलं [एगवीसइमं] ॥ २१ ॥ छ । 10 [बावीसइमं पडलं] अग्धस्स तु परिवड्डूि ओसरणं व पुण सव्वभंडाणं । देसिय-मुहत्त-पक्खिय-मासिक-वस्सप्पमाणेहि ॥ १ ॥ अतिवत्ते अतिवत्तो अग्घो हवति णिचयेसु भंडाणं । अणुपालणा ण खमते भवति धुवो छेदको एत्थं ॥ २ ॥ एमेव वत्तमाणेसु जाणयो संपदं भवति अग्घो । वस्ससतस्स तु अंतो एतस्स तु एत्तिओ अग्घो ॥ ३ ॥ खमति णिचयो णिचेतुं खमति य अणुपालणा गहीतस्स । सव्वमणागतभावे इतु य मणाभिलसिते य ॥ ४ ॥ [............... ...................... I] खमति णिचयो णिचेतुं वड्डीसु य सव्वभंडाणं ॥ ५ ॥ वड्डीसु समुदएसु य तसकायाणं च थावराणं च । इच्छासंपत्तीसु य लाभस्स वि होति संपत्ती ॥ ६ ॥ सव्वम्मि वि तसकाये थावरकायेसु चेव सव्वेसु । पुप्फ-फल-भोयण-ऽच्छादणेसु दव्वोवकरणे य ॥ ७ ॥ एत्थ तु जे मंगलिया ते धन्ना ते तु लाभिया होति । एतेर्सि उप्पत्ती भंडणिचए हवति लाभो ॥ ८ ॥ धणसंपत्तिकैधाए महाधणाणं कुडुंबिणं चेव । कोसपरिवद्धणासु य रुप्प-हिरण्णे सुवण्णे य ॥ ९ ॥ जुज्झजये पणियजये विज्जासिद्धीसु कम्मसिद्धीसु । आरंभाणं सिद्धीसु चेव णिचये धुवो लाभो ॥ १० ॥ उवणतमणोरधाणं उप्पत्तीए य मणभिलसियाणं । अद्दिट्ठसिरीए चिय लाभे लाभस्स संपत्ती ॥ ११ ॥ 20 जध विपुलो उप्पातो जातिविसिट्ठो य सारमंतो य । जध जुत्तमपरितोसो तध णिचये लाभओ बहुओ ॥ १२ ॥ अप्पो उप्पातो ति य अजातिमंतो य अप्पसारो य ।। जध यऽप्पो परितोसो तध णिचये लाभओ अप्पो ॥ १३ ॥ जध वागविणो पडिलाभणा य उप्पज्जते परीतोसो। अप्पो वा बहुओ वा तधा णिचये लाभओ होति ॥ १४ ॥ वधिकरं पीतिकरं णिव्वाणिकरं च मंगलिज्जं च । इट्टा आणंदकरं च लाभिया होंति उप्पाता ॥ १५ ॥ लुक्खे तुच्छेसु णपुंसकेसु कसकेसु बाहिरंगेसु । वावण्णेसु चलेसु व ण भंडणिचया पसस्संति ॥ १६ ॥ आरंभ-विवत्तीसु य छेअवितेहि वि य सव्वभंडेहिं । मोहपरिधावितेसु य अफलं च कडे पुरिसकारे ॥ १७ ॥ उज्झीयति विज्झीयति हायति त्ति परिहायति त्ति वा सद्दे । णट्ठ-हित-पलाते दूसिते विणढे विपण्णे वा ॥ १८ ॥ असणिहते विज्जुहते उडूढे जित-पराजिते विहले । भग्गो त्ति दुग्गतो किस्सते अणत्तो अणाधो त्ति ॥ १९ ॥ किवण-वणीमक-पेस्सजण-सव्वपासंडअस्समगते य । अधणेसु दुग्गतेसु व परिहायंतेसु व अलाभं ॥ २० ॥ 30 अभिलसितस्स अलाभे आसाभंगे ये पणयभंगे य । पडिसिद्धणिराकारे य जायणायं अलाभे य ॥ २१ ॥ उवहतमुवइते वा अभिजुत्ते गहिय-बद्ध-रुद्ध वा । अहव य मयसेवासु य धुववावत्ती उ णिचयस्स ॥ २२ ॥ १ पुरिसजसपरि हं० त० ॥ २ "मासक हं० त० विना ॥ ३ वत्तेसु अति' हं० त० विना ॥ ४ 'प्पत्तियभंडणिज्ज वे हवंति लाभो सप्र० ॥ ५ कहासु य महा" हं० त० ॥ ६ अग्यो उप्पाओ च्चिय हं० त० ॥ ७ “परिहाविएसु हं० त० ॥ ८ "कारो हं० त० ॥ ९ वा भद्दे हं० त० ॥ १० असिणिहते हं० त० ॥ ११ य पाणभंगे हं० त० ॥ १२ अवचय मवसेवा' हं० त० विना ॥ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावीसइमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २५१ देवदंड रायदंडे व चोरदंडे व अग्गिदंडे वा । इट्ठाणं च अलाभे उववत्तीए अणिट्ठाणं ॥ २३ ॥ दमग-वणीवग-छातक-अणसितेहि दुक्कालमो जाण । भुत्त-हसित-प्पहिढे मुदिते सुभिक्खं सुवुट्ठीयं ॥ २४ ॥ आहारेसु दढ-थावरेसु अणुपालणं पसंसंति । मोहा व णिग्गमो विक्कयो व ण पसस्सते एत्थं ॥ २५ ॥ मोक्खे चल-णीहारिसु विक्कयो सिग्घमेव कातव्वो । अणुपालणा ण सहते भवति धुवो छेदओ एत्थं ॥ २६ ॥ गंतागंतुवणित्तेण णामग्गेया पडिभण्णति । अक्खोडिते उवक्खलिते णिकिण्णे ण वि विक्किते ॥ २७ ॥ 5 णिद्धे यो यंतिते हंती उच्छाहे जाव चिट्ठते । णर-णारीयोऽभिणंदंति ण [क्किणे] विक्किणे वि वा ॥ २८ ॥ लाभस्स छेदकस्स य परिमाणं पुण पुणो वि वोच्छामि । तस्स पमाणुप्पाते भवंति बहुका महंता य ॥ २९ ॥ मासिक-पक्खपमाणे मज्झिमको छेअको व लाभो य । अप्पो छेअक-लाभो दिवस-मुहुत्तप्पमाणे वा ॥ ३० ॥ पक्खेवो वा ण भवति पक्खेवो पंचभागसेसो वा । मासपमाणुप्पातेसु अप्पसत्थेसु सव्वेसु ॥ ३१ ॥ पक्खेवो वा ण भवति पक्खेवो वा तिभागसेसो तु । पक्खपमाणुप्पातेसु अप्पसत्थेसु सव्वेसु ॥ ३२ ॥ 10 पक्खेवो वा ण भवति चउत्थभागो य छेयको भवति । दिवसपमाणुप्पाते सव्वेसु तु अप्पसत्थेसु ॥ ३३ ॥ पक्खेवो वा ण भवति पंचमभागो व छेदको भवति । सव्वम्मि पणियभंडे असुभम्मि मुहत्तवग्गम्मि ।। ३४ ॥ सव्वपमाणुप्पाता तु लाभिका जति अणागता होंति । पंचगुणो व बहुगुणो व भंडणिचये भवति लाभो ॥ ३५ ॥ मासपमाणुप्पाता तु लाभिका जति अणागता होति । तिगुणो चतुग्गुणो वा वि भंडणिचये भवति लाभो ॥ ३६ ॥ पक्खपमाणुप्पाता तु लाभिका जति अणागता होति । बिगुणो तिगुणो व चतुग्गुणो व भंडणिचये भवति लाभो ॥ ३७ ।। 15 दिवसपमाणुप्पाता तु लाभिका जति अणागता होति । एक्कगुणो बिउणो वा भंडणिचये भवति लाभो ॥ ३८ ॥ होति मुहुत्तुप्पाता तु लाभिका जति अणागते कालो । किंचि च्छोका सग्घं व भंडणिचये भवति लाभो ॥ ३९ ॥ अच्चग्घे विण्णाते दसक्खवड्डी तहिं गणेतव्वं । जध वस्सपमाणेण तु णीतदसक्खा सया होति ॥ ४० ।। सतवग्गस्स पवद्धी एव सहस्साति संगणेतव्वं । वद्धिसहस्से वग्गस्स सतसहस्सं ति णातव्वा ॥ ४१ ॥ जध कोडी दोण्णि विवद्धी भवति सहस्सवग्गस्स । कोडीय तु वद्धीय तु अपरीमाणा गणेतव्वा ॥ ४२ ॥ 20 एसऽग्घे परिवड्डी एवतिकेसु मुण सव्वपणिएसु । कारणमासज्जित्ता भवति बहुगुणा असारे वि ॥ ४३ ॥ जोग-क्खेमं वढेि आसज्जित्ता खयं च भंडाणं । आकाले असंते वड्डी उ भवति अपरिमेया ।। ४४ ॥ कइक-च्छेअकलाभो त्ति पुच्छितेण तु पुणो वि णातव्वं । लाभो व छेयको वा सिग्घसिग्धं पडुप्पण्णो ॥ ४५ ॥ कइक-च्छेयकलाभो त्ति पुच्छितेण तु पुणो वि णातव्वं । लाभो व छेयको वा चिरेण तु चिरं पडुप्पन्ने ॥ ४६ ॥ सिग्घं दिवस-मुहुत्ता मासा पक्खा य मज्झिमे काले । चिरदुक्खं पडुपण्णेहिं जाण संवच्छरे एत्थं ॥ ४७ ॥ 25 सुट्ठ वि य लाभवंतं अतिवत्तेसु तु अणागतो कालो । छिण्ण-खये वा ण भवति सव्वेसु य अप्पसत्थेसु ॥ ४८ ।। जं जिस्से उवयोगं तिरिक्खजोणीय माणुसाणं वा । तेसिं अब्भागमणे पियकारो तस्स भंडस्स ॥ ४९ ॥ जं सेसं उवयोगं तिरिक्खजोणीय माणुसाणं वा । तेसिं णीहारगते अणिग्गमो तस्स भंडस्स ॥ ५० ॥ णिप्फत्तिमणिप्फत्ति खमणाकालेसु वुट्टि-दुव्वुट्ठी । कइके व अकइके वा अग्घमणग्धं तधा बूया ॥ ५१ ॥ पुण्णामचलामासे खय-णीहारे य पुरिसणामाणं । अग्घखयं णासं वा बूया पुण्णामधेयाणं ॥ ५२ ॥ 30 पुण्णामाणामासे जयमाहारे य पुरिसणामाणं । णिप्फत्ती लाभो आगमो य पुण्णामधेज्जाणं ॥ ५३ ॥ थीणामखयामासे जयमाहारे य इत्थिणामाणं । णिप्फत्ती लाभो आगमो य थीणामधेज्जाणं ॥ ५४ ॥ थीणामखयामासे खय-णीहारे य इत्थिणामाणं । अग्घखयं णासं वा बूया थीणामधेज्जाणं ॥ ५५ ॥ १ सुबुद्धीयं हं० त० विना ॥ २ तु णिव्वत्तेण हं० त० विना ॥ ३ "डिहण्ण हं० त० विना || ४ अववाडिए उवखडिए विक्किण्णे न विवक्किए हं० त० ॥ ५ जालं वटुंते सं ३ पु० । जायं टुत्ते हं० त० ॥ ६ छेदकारस्स यं परि हं० त० ॥ ७ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ अंगविज्जापइण्णयं [बावीसइमं पडलं भोयणदव्वाणं पि य चल-णीहारे खये अलाभे य । अग्घखयं णासं वा बूया आहारदव्वाणं ॥ ५६ ॥ . भोयणदव्वाणं पि उ उदये लाभे तधेव आहारे । णिप्फत्ती लाभो आगमो य आहारदव्वाणं ।। ५७ ॥ सुक्कंगचलामासे खय-णीहारे य सुक्किलाणं तु । अग्घखयं णासो वा दव्वाणं सुकिलाणं तु ॥ ५८ ॥ सुक्कंगदढामासे आहारगते य सुक्किलाणं तु । णिप्फत्ती लाभं आगमं व मुण सुकिलाणं तु ॥ ५९ ॥ रत्तंगचलामासे खय-णीहारे य सव्वरत्ताणं । अग्घखयं णासं वा दव्वाणं रत्तवण्णाणं ॥ ६० ॥ रत्तंगदढामासे आहारगते य सव्वरत्ताणं । णिप्फत्ती लाभं आगमं व मुण सव्वरत्ताणं ॥ ६१ ॥ कण्हंगचलामासे खय–णीहारे य कालकाणं तु । अग्घखयं णासं वा दव्वाणं कालकाणं तु ॥ ६२ ॥ कण्हंगदढामासे आहारे चेव कालकाणं तु । णिप्फत्ती लाभं आगमं व मुण कालकाणं तु ॥ ६३ ॥ अग्गेयचलामासे खय–णीहारे य अग्गिकज्जाणं । अग्गिखयं णासं वा जाणे अग्गेयणामाणं ॥ ६४ ॥ अग्गेयदढामासे आहारगए य अग्गिदव्वाणं । णिप्फत्ती लाभं आगमं व अग्गेयदव्वाणं ॥ ६५ ॥ पुधुलंगचलामासे खय-णीहारे य पुधुलदव्वाणं । अग्घखयं णासं वा जाणेज्जो पुधुविदव्वाणं ॥ ६६ ॥ पुंहुलंगदढामासे आहारगमे य पुढविदव्वाणं । णिप्फत्ति लाभं आगमं च मुण पुधुलदव्वाणं ।। ६७ ॥ निद्धंगचलामासे खय-णीहारे य आपजोणीयं । G अग्घखयं नासं वा जाणेज्जो आपजोणीयं ॥ ६८ ॥ निद्धंगदढामासे आहारगते य आपजोणीयं । 9 निप्फत्तिं लाभं [आगमं] व मुण आपजोणीयं ।। ६९ ॥ वायव्वचलामासे खय-णीहारे य वायजोणीयं । अग्घखयं णासं वा वायव्वाणं मुणसु तत्थ ॥ ७० ॥ वायव्वदढामासे आहारगते य वायुजोणीयं । णिप्फत्ति लाभं आगमं च मुण वातजोणीयं ॥ ७१ ॥ छिदंगचलामासे खय–णीहारे य झुसिरदव्वाणं । अग्घखयं णासं वा जाणेज्जो झुसिरदव्वाणं ॥ ७२ ॥ छिदंगदढामासे आहारगते य झुसिरदव्वाणं । णिप्फत्ति लाभो आगमो ये सुसिराण दव्वाणं ॥ ७३ ।। तिरियंगचलामासे णीहारे चेव तिरियजोणीयं । अग्घखयं णासं वा जाणेज्जो तिरियजोणीयं ॥ ७४ ॥ तिरियंगदढामासे आहारगते य तिरियजोणीयं । णिप्फत्तिं लाभं आगमं व मुण तिरियजोणीयं ॥ ७५ ॥ उड्डंगचलामासे खय-णीहारे य धातुजोणीयं । अग्घखयं णासं वा वियागरे धातुजोणीयं ॥ ७६ ॥ उड्डंगदढामासे आहारगते य धातुजोणीयं । णिप्फत्ति लाभं आगमं व मुण धातुजोणीयं ॥ ७७ ॥ मूलजोणिचलामासे खय–णीहारे य मूलजोणीयं । अग्घखयं णासं वा जाणेज्जो मूलजोणीयं ॥ ७८ ॥ मूलजोणिदढामासे आहारगते य मूलजोणीयं । < णिप्फतिं लाभं आगमं च मुण मूलजोणीयं ॥ ७९ ॥ - पाणजोणिचलामासे खय–णीहारे य पाणजोणीय । अग्घखयं णासं वा जाणेज्जो पाणजोणीय ॥ ८० ॥ पायजोणिदढामासे आहारगते य पाणजोणीयं । णिप्फत्तिं लाभं आगमं च मुण पाणजोणीयं ॥ ८१ ॥ उत्तमंगचलामासे खय–णीहारे य उत्तमंगाणं । अग्घखयं णासं वा जाणेज्जो उत्तमंगाणं ॥ ८२ ॥ उत्तमंगदढामासे आहारगते य उत्तमंगाणं । णिप्फत्तिं लाभं आगमं च मुण उत्तमंगाणं ॥ ८३ ॥ मज्झंगचलामासे खय–णीहारे य मज्झिमंगाणं । अग्घखयं णासं वा मज्झिमजणउपभोग्गाणं ॥ ८४ ॥ 30 मज्झंगदढामासे आहारगते य मज्झसाराणं । णिप्फत्ति लाभं आगमं व मुण मज्झसाराणं ॥ ८५ ॥ पेस्संगचलामासे खय–णीहारे य पेस्सवग्गस्स । अग्घखयं णासं वा दव्वाणं पेस्सणामाणं ।। ८६ ॥ पेस्संगदढामासे आहारगते य पेस्सवग्गस्स । णिप्फति लाभं आगमं व मुण पेस्सभोगाणं ॥ ८७ ॥ एसेव पंचसु रसेसु गमो पाणेसु भोयणेसु वि य । वत्थे आभरण उवक्खरे य तध गंध मल्ले य ॥ ८८ ॥ १ हस्तचिह्रान्तर्गतं श्लोकाधू हं० त० एव वर्त्तते ॥ २ आवुजो हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गते उत्तरार्ध-पूर्वार्धे हं० त० एव वर्तेते ॥ ४ आवुजो हं० त० ॥ ५ वायजो' हं० त० ॥ ६ य [मुण] झुसिरदव्वाणं हं० त० विना ॥ ७ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावीसइमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २५३ तेल्ल-घते गुल-वण्णे एसेव गमो तु सव्वधण्णेसु । मणि-मुत्ते रयणेसु य रुप्प-हिरण्णे सुवण्णे य ॥ ८९ ॥ पंचविधो य अवायो यो गहण-णिचयेसु भंडाणं । अग्गी उदकं चोरा राया य तिरिक्खजोणीयं ॥ ९० ॥ . दिव्वो भवति अवाओ उसुण हिम अग्गि मारुतो आपं । मणुयगतम्मि य राया चोरा सयणो परजणो य ॥ ९१ ॥ सव्वेसु अप्पसत्थेसु अपायो पुव्ववण्णितेसु भवे । णट्ठविणढे जोणिंगते य [..........] अवहिते चेव ।। ९२ ॥ पुव्वपरिकित्तिएसु तु वासुप्पातेसु अप्पसत्थेसु । उदकातो हु अपायो एत्थ णिस्संकितो बूया ॥ ९३ ॥ 5 मुण य तिरिक्खजोणी तिरिक्खजोणीगओ अपाओ त्ति । दसणपादुब्भावे असुभा य तिरिक्खजोणीए ॥ ९४ ॥ रायदंडे कोटे य आणकोवत्तणे य पणए य । रायग्गहेसु य कयक्कए य मुण रायदंडो त्ति ॥ ९५ ॥ गाहण-कालक्खवणा खया पाणपराभियोगेसु । गुत्तिं अंदु-णिगलेसु बद्ध-रुद्धेसु सव्वेसु ॥ ९६ ।। पंचमहाकारणकारणेसु सव्वेसु रायदिढेसु । रायभये सव्वम्मि तु रायकुलगतो अपायो तु ॥ ९७ ।। उण्हे वा णिस्ससिते मणसंतावे य अंगदाहे य । हक्कार-रुदित-कंदित-भयहुते रुद्धमाबद्धे ॥ ९८ ॥ 10 उण्हहते व उदके व कुथिते तध तुच्छ दड्डे वा । अग्गीतो हु अवायो धूमाणुगते य आहारे ॥ ९९ ॥ तिरियंगाणामासे तिरिक्खजोणीगते य सव्वम्मि । उवकरणोवखरगते तिरिक्खजोणीय संदेहो ॥ १०० ॥ उंदुर-मुत्तोली या अत्थिला कीडा किविल्लिकाओ य । दाढी णंगूली संगिणो य णहि-सज्जवाला य ॥ १०१॥ जलचस्-थलचर-खगचारिणो य पक्खी चतुप्पदा चेव । अवरझंति णराणं असुभा जे अप्पसत्था य ॥ १०२ ॥ तेसिं पादुब्भावे सद्दे रूवे दवक्खरकते य । तेरिक्खिसु य अवायो त्ति एव णिस्संसयं बेहि ॥ १०३ ॥ 15 इत्थिअतिसंधणायं णियडी-कवडेसु वंचणादीसु । चोरुप्पत्तिं बूया हित-महिताविज्झणायं च ॥ १०४ ॥ कूडतुल-कूडमाणं कूडहिरण्णे य कूडलेहे य । चोरुप्पत्ति बूया आयरणायं च सव्वायं ॥ १०५ ॥ सव्वेसु पावकम्मिसु हिंसके होढकेसु य णरेसु । वीसत्थपाणहरणे य अवायं चोरतो विज्जा ॥ १०६ ॥ अवि धावह कूवित-कंदितेसु हित-मारिते य छिण्णे य । चोरुप्पत्तिं बूया सव्वेसु य चोरलिंगेसु ॥ १०७ ॥ जध विपुला उप्पाता तध विपुलं णिद्दिसे अपायं ति । मज्झिमके मज्झिमकं अप्पसारेसु अप्पं तु ॥ १०८ ॥ 20 दिण्ण-परिविट्ठ-वत्तुस्सयम्मि झीणे य भोज्ज-पेयम्मि । णटे पम्हुटु पडिसामिते य पडिसाहणायं च ॥ १०९ ॥ वेस्से दोभग्गे अप्पिते य णिच्चक्किते य चकिते य । उक्कंठिय परितंते य छेइया सव्वभंडेसु ॥ ११० ॥ एवं अग्घपमाणं एतेण गमेण सव्वभंडाणं । सव्वपणितेसु य तधा तिविधो सारो मुणेयव्वो ॥ १११ ।। तं जधा-साली-वीही-जव-गोधूमादिसु सणसत्तरसेसु धण्णेसु अग्घपमाणं विण्णातव्वं भवति । एवमेव पुप्फ-फलेसु, तेल्ल-घतादिसु णेहेसु, लवणादिसु छसु रसेसु, कप्पासादिसु य सव्वछादणेसु, रुप्प-सुवण्णादिसु य 25 सव्वलोहेसु, वइस्-वेरुलिकादिसु य सव्वरतणेसु, मणसिलादिसु सव्वधातुसु, अगुरु-चंदणादिसु सव्वसंखितेसु, सव्वमूलजोणिसु सव्वतण-कट्ठेसु य, मणुस्सादिसु य सव्वपाणजोणिसु, सव्वम्मि चेव परिणभंङ-पणितगते समणुगंतव्वं भवति । उत्तरं च सविसेसं सुवुट्ठीपडिपोग्गलं दुभिक्खपडिपुग्गलं च धण्णग्धं बूया । सुवुट्ठिपडिपोग्गलं च दगभायणेहि सुक्खेहि तिरोगेहिं आपजोणिक्खयेण णिद्ध-लक्खत्तणेण उल्लाणं सक्खत्तणेण तण्हाइत-पिपासिताणं च अपार अवुढेि बूया । अवुट्ठीयं पुण जावतिकाणि वुट्ठिसंभवाणि धण्णादीकाणि सव्वमूलजोणीकाणि एतेसिं अणिप्फत्ती पियंकरं 30 च बूया ॥ ॥ एवं भगवतीय अंगविज्जाय महापुरिसदिण्णाय [ बावीसइमं ] अग्घप्पमाणं [ पडलं ] सम्मत्तं ॥ २२ ॥ छ । १ वातुप्पा हं० त० विना ॥ २ 'माविट्ठे हं० त० विन्न ॥ ३ भुच्छद हं० त० विना ॥ ४ विज्जयाणं च हं० त० ॥ ५ अभिधाहव कू हं० त० विना ॥ ६ गलतं वण्णयं बूया हं० त० ॥ ७ 'हिं णिरोगेहिं हं० त० विना ॥ ८ "णिखग्गेण हं० त० ॥ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 30 २५४ अंगविज्जापइण्णयं [ तेवीसइमं पडलं ] अग्गस्स संभवं पिय अग्गेयेहि मुण सव्वदव्वेहिं । धूमो त्ति व अग्गित्ति व आलीवणकं वणदवो ति ॥ १ ॥ संतत्थे वा कोलाहलं च डमरे विलुप्पमाणे वा । अवि धावध सद्दे वा आलीवणकं वियाणेज्जा ॥ २ ॥ इंगालकोट्ठकंगालसकडिका कडुच्छ-धूपघडिकाय । धूमकरडाक - धूमणाण पिसायके धूमणेत्ते य ॥ ३ ॥ छगणि- छारि - क्खारार्पको त्ति वीजणक - धूमणालीसु । होमाहुतिक्कये अग्गिकारिके अग्गिकुंडे य ॥ ४ ॥ जग्गतको त्ति संदीपणं ति दारु समिध त्ति वा सद्दा । आहुति हुणियति वित्तिय उवक्खरे यऽग्गि होतस्स ०५ दीवो त्ति दीवक त्ति य चुडली मधअग्गि चुल्लके व त्ति । विज्जु त्ति विज्जुता आयवो त्ति कज्जोपको व त्ति ॥ ६ ॥ अणलि त्ति व चुल्लि त्ति व चितक त्ति व फुंफुक त्ति वा सद्दा । एत्थ उ अग्घुप्पत्ती अग्गिट्ठे अग्गिकुंडे य ॥ ७ ॥ अहिमकरिक- अग्गिपखंडकेसु अग्गिस्स जाण उप्पत्तिं । रुद्धापिते य संतापिते य संतप्पमाणे य ॥ ८ ॥ उदगे व वातउण्हाहते य कुथिते व वुत्थ दड्ढे वा । धूमायतम्मि य भोयणम्मि अग्गिस्स उप्पत्ती ॥ ९ ॥ डज्झति सुंस्सति भज्जिज्जते त्ति उक्खलिते पखलिते त्ति । कँढउत्तरीयते -त्ति य अग्गुप्पत्तिं वियाणाहिं ॥ १० ॥ अग्गउवजीवणे अग्गिमेंढपव्वेसु अग्गिकम्मेसु । उवकरणेसु य अग्गिस्स जाण अग्गिस्स उप्पत्ति ॥ ११ ॥ उन्हे वातुब्भामे फरुसे वा अग्गिसंभवं जाणे । उम्मुक्कपरिकूलेसु य अंगारे छारिकायं च ॥ १२ ॥ रत्तम्मिय पुप्फ-फले रुधिरणिपाते य सव्वसत्ताणं । तिक्खरसे खारेसु य अग्गुप्पत्तिं वियाणेज्जो ॥ १३ ॥ अगणि पुण जाततेओ अणलो वा हुतवहो त्ति जलणोति । पवणो त्तिय जोति त्ति य अग्गिस्स भवंति णामाणि ॥ १४ ॥ वस्सपमाणुप्पाते अग्गेयेसु पुण अप्पसत्थेसु । वित्थिण्णस्स णिवेसस्स झावणं सण्णिवेसस्सा ॥ १५ ॥ मासपमाणुष्पाते अग्गेयेसु वि य अप्पसत्थेसु । मज्झिमर्कस्स णिवेसस्स झावणं मज्झसारस्स ॥ १६ ॥ पक्खपमाणुप्पाते अग्गेयेसु वि य अप्पसत्थेसु । बाहासु सण्णिवेसस्स झामणं मज्झसारस्स ॥ १७ ॥ दिवसपमाणुप्पाते अग्गेयेसु वि य अप्पसत्थेसु । गिहझामणिकं बूया ततिमगिहा जति य दव्वाणि ॥ १८ ॥ मोहुत्तिकप्पमाणं अग्गेयेसु मुण अप्पसत्थेसु । जत्थुप्पज्जति अग्गी तत्थेव पसम्मते सिग्घं ॥ १९ ॥ संवट्टका य वाता उण्हा लुक्खा गिहाणि भंजंति । सुमहं अग्गुप्पातो जति भवति उ पुच्छणाकाले ॥ २० ॥ तस - थावरसोभाणिव्वुतेसु वाते सुखेम वायंते । सुब्भिग्गंधा वाता य मणुण्णा खेमभावाय ॥ २१ ॥ ॥ पडलं [ तेवीसइमं ] ॥ २३ ॥ छ ॥ [ चउवीसइमं पडलं [ चउवीसइमं पडलं ] वंदित्तु सव्वसिद्धे सज्जो वुट्ठि तधा अवुट्ठि च । वासारत्तविभागं वासपमाणं च वोच्छामि ॥ १ ॥ वासंति व सव्वे त्ति व जागा वरुणो जलाधिपो व त्ति । णागिंद गइंदो सागरो समुद्दो त्ति वा बूया ॥ २ ॥ एतेसि देवाणं णामे वा भूसणोवकरणे वा । सामुद्दकेसु भंडेसु चेव वासस्स उप्पत्ती ॥ ३ ॥ इंदधणु-इंदकेतुग्गमेसु णिद्धासु इंदराईसु । कीर्डिदकायिका इंदगोपका इंदरुक्खा य ॥ ४ ॥ णिद्धाणं फलिहाणं णिद्धाणं वग्गमेण मेहाणं । दुमसंड- मच्छ— कच्छभ-गय-गसंठाणरूवेहिं ॥ ५ ॥ णिद्ध-घणे अच्छिद्दे परिवेसे यावि चंद-सूराणं । उदय - ऽत्थमणेसु समागमेसु तारा - गहाणं तु ॥ ६ ॥ णिद्धायं संझायं णिद्धासु य सूरियस्स रस्सीसु । सूर-पडिसूरएसु य आवयदसुरसेते व ॥ ७ ॥ १ 'पकोविहीजण हं० त० ॥ २०० एतच्चिह्नान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ॥ ३ वुस्सति सं ३ पु० । भुस्स सि० ॥ ४ कढतुत्तरीयतेल्लिय हं० त० ॥ ५ पम्मुक्क' हं० त० ॥ ६ 'कम्माणि पसस्सकारणं मज्झ हं० त० ॥ ७ भूसणे व करणे हं० त० ॥ ८ त्थवणे' हं० त० ॥ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवीसइमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २५५ लोह-गुलाणं झरणे लोहकलंके य णिदिसे वासं । कंडकण्णकग्गहणे पुढविठिते उण्हमुदके य ॥ ८ ॥ तसकायाणं गब्भे जावणे रोहणे य बीयाणं । अंडग[प]पूरणम्मि य पिपीलिकाणं थलारुभणं ॥ ९ ॥ गंडूपदणिक्खमणे कुलीर-मंडूक-कच्छभाणं च । उत्थलमारुभणे या मच्छाणं कच्छभाणं च ॥ १० ॥ मच्छ-महंतमहोरग-समुद्दकाका तधेव वम्मीका । कासार-समुद्दच्छेणके य जलफेणके चेव ॥ ११ ॥ मेहे विज्जुत-गज्जित-फुसिते वा पगलिते पवढे वा । जलसत्तपमोदे वा दारुकवासेलिकाकरणके वा ॥ १२ ॥ 5 आपाणकप्पमोदे सोदकउक्कोसणे पपतणे वा । मत्त-पणे?-पलोट्टे कट्टित-पासासकरणे वा ॥ १३ ॥ उल्लपडसाडके केसपीलणे आसिते सवंते य । उक्कापतणे पुढविजओलविले णिव्विले चेव ॥ १४ ॥ धोवंतो वा पुच्छति हत्थं पादं मुहं व दूसं वा । उवकरण भायणं वा सज्जो वुट्टि विजाणेज्जो ॥ १५ ।। तेल्ल घत-दुद्ध-दधि-मज्जपाणिते बहुविधे मधूसु तधा । रस-णिज्जासे णेहेसु चेव वासस्स उप्पत्ती ।। १६ ।। सागर-णदी-तडागेसु चेव वावि-दह-कूव-वरणेसु । पुण्णेसु अत्थि वासं वासति पुण भिज्जमाणेसु ।। १७ ।। 10 कुड-घडग-ऽरंजरुट्टिक-आचमणिक-करक-कुंडिकासु वि य । पुण्णेसु अत्थि वासं वासति य पलोट्टमाणेसु १८ F हिस्सेंघियाणि दुढेसु मुत्त-पुरीसकरणेसु य काणे । सेआइयपसण्णे सव्वम्मि सरीरनीहारे ॥ १९ ॥ एएसु अत्थि वासं वुट्ठी पडिपोग्गलेसु सव्वेसु । छ लुक्खेसु य तुच्छेसु य सुक्खेसु य आतवं बूया ॥ २० ॥ णिस्सुंघिते सवाते वाति जति सगज्जितं तहिं वासं । रुदितेसु विज्जुपतणं उक्कापातं सणिद्धटे ॥ २१ ॥ पासासम्मि पवढे खेले सिंघाणके य मुक्कासं । रुदितं पि य अणुबद्धं उच्चारगते महावासं ॥ २२ ॥ 15 वद्दलिका वि असेआइते उल्लपडसाडकेसु वि य । वालेसेउसु पवट्टितेसु पवट्टिमं वासं ॥ २३ ॥ दगअसणि-देगतुच्छलकेसु मज्जघर-पाणभूमीसु । वच्छच्छगणम्मि य सद्दले य णिद्धे महितले य ॥ २४ ॥ जातम्मि जलचरे जलउवक्खरे जलयरेसु सत्तेसु । पुप्फे फले य जलजे जलोवजीवीसु य णरेसु ॥ २५ ॥ उदइकदगवड्डगि-णाविग-जलकम्मि-वाणिकाणं च । तेसिं कम्मुप्पत्तीसु चेव वासस्स उप्पत्तिं ॥ २६ ॥ उदगपधउदकसंकामणाय पणालीकोरणे य सव्वम्मि । दगजंतककुप्पलेसु चेव वासस्स उप्पत्तिं ॥ २७ ।। 20 देवाणं पहाणेसु य रायीणं पि य महाभिसेगेसु । दगसेविगमज्जणके मज्जणग उवक्खरविधीसु ॥ २८ ।। वरमज्जणे वधूमज्जणे य गोसग्गण्हाणके चेव । वरपंचमज्जणे मज्जणे य तेरिक्खजोणीय ॥ २९ ॥ एतेसु वुट्ठिपडिपोग्गलेसु दित्तेसु सोभमाणेसु । मुदितेसु उदत्तेसु य वुट्ठिमुदत्तं वियाणेज्जो ॥ ३० ॥ एतेसिं लाभे आगमे य उवगमण उवगमो वा वि । पादुब्भावे वा धारिते य वासस्स उप्पत्ती ॥ ३१ ॥ एतेसिं वुखणसेणे व्व हरणे व सण्णिरुद्ध वा । एतेसिं च अलाभेण चेव जाणे अणावुढेि ॥ ३२ ॥ 25 विपुलुत्तमेसु विपुलं मज्झिमसारेसु मज्झिमं वासं । अप्पं च भवति वासं अजातिमंते असारे य ॥ ३३ ॥ फरुसकिदुकसराय तिरिक्खजोणीय माणुसेसु वि य । कडुकासु य णासासु य फरुसासु भवे अणावुट्ठी ।। ३४ ॥ अभिजुत्तमभग्ग-हते लग्गे वा बद्ध रुद्धे वा। णिस्ससित-छीत-कासित-जंभायंते अणावुढेि ॥ ३५ ॥ णिप्पीलिते णिगलिते झीणे झविते य लुक्ख-तुच्छे य । तुस-केतलिछारिका-चुण्णछारिकायं चऽणावुट्ठी ।। ३६ ।। जति दिवसा आभोगे रोधणकमभिग्गहे व आतम्मि । दुक्खस्स व सहितव्वा तति दिवसे आहवं बूया ।। ३७ ॥ 30 जतिहि दिवसेहिं मुच्चति इटेहिं समेहिं इच्छितं लभति । जं वेलं च विमुच्चति तं वेलं णिद्दिसे वासं ॥ ३८ ॥ १ कंडकसगहणे हं० त० ॥ २ 'णद्धपलोइयहेछटियपासा' हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः सार्धश्लोक: हं० त० एव वर्तते ॥ ४ सासासम्मि पवद्धे हं० त० ॥ ५ दगवुच्चुल हं० त० विना । ६ पाणजोणीसु हं० त० ॥ ७ तु खणासणो व सण्णि ' हं० त० विना ॥ ८ “सकतुगसरा' हं० त० विना ॥ ९ कवलि हं० त० ॥ १० आतवं हं० त० विना ॥ ११ भवति हं० त० ॥ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 10 15 20 25 30 २५६ अंगविज्जापइण्णयं ३९ ॥ [ चउवीसइमं पडलं वासुप्पाते इट्टे णिव्वाणिकरे सुभे पसत्थे य । इच्छापूरमपीडाकरेसु वासं सुभं बूया ॥ वासुप्पातमणिट्ठे अणिव्वुतिकरे य अप्पसत्थे य । पीलाकरे य असुभे वासं पीलाकरं बूया ॥ ४० ॥ वासुप्पाते अप्पे अप्पं विपुले भवे महावासं । अणुबद्धे अणुबद्धं दिट्ठपणट्टे य पुण णासो ॥ ४१ ॥ दैवतपूताणियमे समिद्धजाग-बलिकम्मकरणे या । जारिसया सा संपति तारिसकं णिद्दिसे वासं ॥ ४२ ॥ जणे छणुस्सए वा वाधुज्जे तध चोल-उवणयणे । उज्जाणभोज्ज-भत्तिय - जण्णागमणेसु य णराणं ॥ ४३ ॥ आहाररसुप्पत्ती गंधेसु वि य तध गंधसंपत्ति । विविधालंकारेसु वि जारिसिया रूवसंपत्ती ॥ ४४ ॥ Đ० एते तु मणतुट्ठी गुणसंपत्ती व जारिसी भवति । हासजणणी णराणं तारिसिया वाससंपत्ती ॥ ४५ ॥ देव-मणुस्सा पक्खी चतुप्पदा जलचरा थलचरा य । दीसंति लद्धलाभा यधलाभो तारिसं वासं ॥ ४६ ॥ इच्छासंपत्तीयं तसकायाणं च थावराणं च । जारिसिया संपत्ती तारिसिकं निद्दिसे वासं ॥ ४७ ॥ इच्छासंपत्तीसमागमेसु धम्म - ऽत्थ - कामजोगाणं । जारिसिया तु णराणं संपत्ती तारिसं वासं ॥ ४८ ॥ अत्थकते संपत्ती कम्मकर्तम्मि य रती संपत्ती । धम्मत्थे य समाधी जारिसिया तारिसं वासं ॥ ४९ ॥ राईसु इस्सरेसु य महाधणाणं कुटुंबिणं चेव । बहुरयणसंचयाणं णगराणं जणपदाणं च ॥ ५० ॥ इड्डिगुणा रायगुणा आरंभगुणा कुटुंबिणं चेव । णगरगुणौ णयराणं णिप्फत्तिगुणा जणपदाणं ॥ ५१ ॥ जारिसिया सुयजंते कधासु वा जारिसा कधिज्जति । आहारम्मि य वत्ते तारिसकं णिद्दिसे देवं ॥ ५२ ॥ कच्छाय जेट्ठिकार्य जति सिद्धी जेट्ठकं भवति वासं । मज्झिमिकासु य मज्झं कणिट्टिकायं कणिट्ठे च ॥ ५३ ॥ कच्छागतेसु जध तध जातिविसेसे वि समणुगंतव्वं । थाणविसेसेसु तधा सारा - ऽसारेसु य नराणं ॥ ५४ ॥ कच्छागते ये काणं सेट्ठिमतत्थे कामजोगेसु । जारिसिया सिद्धीओ तारिसकं णिद्दिसे देवं ॥ ५५ ॥ जुज्झजये पणितजये विज्जासिद्धीसु कम्मसिद्धीसु । जारिसिया सिद्धीओ तारिसकं णिद्दिसे देवं ॥ ५६ ॥ जातीय उत्तमा हीणमुत्तमं उत्तमं च कच्छायं । सारम्मि उत्तमे वा वि उत्तमं णिद्दिसे वासं ॥ ५७ ॥ एत्तो एक्कतरम्मि वि जध सिद्धी तारिसं भवति वासं । जैति वुत्तमसंजोगा ताव गुणं उत्तमं वासं ॥ ५८ ॥ पुण्णामा पुण्णामा दक्खिणा य णिद्धा य मंगलिज्जा य । वद्धिकरा णंदिकरा य एरिसा होंति उप्पाता ।। ५९ ॥ सव्वे मधुरा य मणोहरा य इट्ठा य णिव्वुतिकरा य। चित्ता आणंदकरा य वरिसिया होंति उप्पाता ॥ ६० ॥ जाती रूवं वण्णो सत्तं सारो बलं व तेयो य । णाणं विण्णाणं विक्कमो य पगती सभावो य ॥ ६१ ॥ एताणि मणुस्साणं जध पवराणुत्तमाणि य भवंति । वासधरे समुदीरितम्मि तध उत्तमं वासं ॥ ६२ ॥ से आयं वा लंभं णर—णारीणं व एक्कमेक्कम्मि । पीती बहुमाणोवग्गहो य पेम्माणुरागो य ।। ६३ एतेसिं पडिपक्खम्मि अवासं विग्गहे सुवे तेसं । एतेसिं च अलाभे णीहारमसंपदायं च ॥ ६४ ॥ जारिसिया संपत्ती सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधाणं । गुणजुत्ता पीतिकरी तारिसकं णिद्दिसे वासं ॥ ६५ ॥ फुसिताणि मुहुत्तेसु तु मुक्कासं च दिवसप्पमाणम्मि । पक्खेसु तु अणुबद्धं मासपमाणे विरैय पुरा ॥ ६६ ॥ संवच्छरप्पमाणेसु णदिर्पूरणं लोकपूरो य । पुण्णो चंदो तो मेघा वासंति संवच्छरुप्पाता ।। ६७ ।। लुक्खंगा तसकाया थावरकाया य रुक्खपुप्फ-फला । लुक्खा य दगत्थाणा वातो य भवे अवुट्ठीयं ॥ ६८ ॥ णिद्धंगा तसकाया थावरकाया य णिद्धपुप्फफला । णिद्धा य दगत्थाणा वातो य भवे सुवुट्ठीयं ॥ ६९ ॥ सिसिर—वसंत—णिदाहा तु सुपुप्फ-फल- सीतर्मुम्हाणं । अब्भुदये अतिसोभासु चेव अतिसोभमो बूया ॥ ७० ॥ ॥ १ देवयपूयाणिय हं० त० ॥ २ ० ० एतच्चिह्नान्तर्गतमुत्तरार्धं हं० त० नास्ति ॥ ३ 'णा य णराणं हं० त० ॥ ४ आधारम्मि पवित्ते हं० त० विना ॥ ५ वकाणं सेट्ठिमधत्थे हं० त० विना ॥ ६ जति तुल्लम हं० त० ॥ ७ राय हं० त० विना ॥ ८ पूरं तोकपू हं० त० ॥ ९ मुण्हाणं हं० त० ॥ For Private Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउवीसइमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २५७ उदुसोभा य उपहता सीतं उण्हं फलं च पुष्पं च । उदयेसु ण सोभंते तदा अवुद्धि वियाणीया ॥ ७१ ॥ सव्वा दिसा वितिमिरा चंदाऽऽदिच्चा गहा सणक्खत्ता । विमला विपुलसरीरा दीसंति णभे सुवुट्ठीयं ॥ ७२ ॥ तिमिराकुला दिसाओ चंदाऽऽदिच्चा गहा सणक्खत्ता । फरुसा किसा विपण्णा दीसंति णभे अवुट्ठीयं ।। ७३ ॥ सम्म(म) चरंति णक्खत्ता उदू पुष्फ-फलाणि या। सम्मं चंदो य सूरो य सम्मं देवोऽत्थ वासति ।। ७४ ।। विसमं चरंति णक्खत्ता फलं पुप्फ अणोदुगं । एवमादि जधाकालं काले वासति वासवो ॥ ७५ ॥ 5 जुज्जति य जोतिसं सम्मं उदू पुप्फ-फलाणि य । जधाकालं जधासुत्तं काले वासति वासवो ॥ ७६ ॥ णक्खत्तजोगा उदुणो दुमा पुष्फ-फलाणि य । ण भवंति जधाकाले पच्छा देवो ति वासति ॥ ७७ ॥ पुण्णे पुण्णामे दक्खिणे य णिद्धे य आमसित्ताणं । एतेसिं पडिपक्खं पुणरवि पच्छा परामसति ॥ ७८ ।। पुरिमे मासे वासति आसारो पच्छिमेसु मासेसु । जाव बहुं परिमसते जं बहुकं तं बहुं बूया ॥ ७९ ॥ लुक्खे णपुंसके तुच्छके य वामकडुके य दीणे य । पुव्वं परामसित्ता पडिपक्खं से परामसति ॥ ८० || 10 पुरिमे मासे उग्गंतो पच्छा वासति य पच्छिमे मासे । जं च बहुं परिमसती जं बहुकं तं बहुं बूया ॥ ८१ ।। एसेव सव्वदव्वेसु गमो सद्द-रस-रूव-गधेसु । सज्जीवे णिज्जीवे य जं बहुं तं गहेतव्वं ॥ ८२ ॥ जवमज्झा उप्पाता मुतिंगमज्झा य जे उदीरंति । मज्झपसत्था अंतेसु गरिता पुरिमणिच्छेवा ॥ ८३ ।। एतेसु मज्झवासं मासे अस्सोय-पोट्ठपादेसु । सावणबहुलामासेसु दोसु आसारमो बूया ॥ ८४ ॥ जे होंति पणवमज्झा किविल्लका वेज्ज-मुसलमज्झा वा । मज्झम्मि पलित्ता अंतकेसु विपुला पसत्था य ।। ८५ ।। 15 एवं पुरिमं वासं मज्झे पच्छा व होति णातव्वं । तध पुरिम-पच्छिमं वा मज्झं वा जेण पुण जुज्जे ॥ ८६ ।। सिँसवेसयसव्वे वि सोभमाणा सव्वकालिकपसत्था । सव्वे वि अप्पसत्था तदा अवुट्टि वियाणेज्जो ॥ ८७ ॥ दिवस-मुहुत्तपमाणे वासारत्तो तु हवति दोमासो । फूसल्लि यत्थ वासति ण य होंतित्थ सारधण्णाणि ॥ ८८ ॥ पक्खपमाणुप्पाते वासारत्तो तु हवति तेमासो । फूसल्लि एत्थ वासति ण य होंति तेलालपुरत्था ॥ ८९ ॥ चातुम्मासं वासति वासपमाणे तु मज्झिमं वासं । मज्झिमिका एत्थ भवे णिप्फत्ती सव्वधण्णाणं ॥ ९० ।। 20 वासति य पंचमासे वासपमाणे तु उत्तमं वासं । णिप्फज्जते य सस्सा अधिगं सई सारधण्णाणं ॥ ९१ ।। पुण्णामे पुण्णेसु य णीरोगेसुवचितेसु णिद्धेसु । मुदितेसु उदत्तेसु य णिप्फत्ती सव्वधण्णाणं ॥ ९२ ॥ लुक्खे णपुंसकेसु य तुच्छेसु किसेसु अप्पसारेसु । थाणेसुवहुतेसु य इति बूया अवुट्टि वा ॥ ९३ ॥ पुण्णेसु सुवुट्टि धातकं च अधिगं सई य धण्णाणं । तुच्छेण अवुढेि छातकं व सइ सस्सणासाय ॥ ९४ ॥ पुण्णामे णिप्फत्ती पुण्णामाणं तु सव्वधण्णाणं । थीणामे णिप्फत्ती थीणामाणं च धण्णाणं ॥ ९५ ॥ 25 पुण्णामा थीणामा य णस्थि सस्सा णपुंसके केयि । वासच्छिदं च भवे रित्तफला जायते सस्सा ॥ ९६ ॥ उत्तममंगामासे पादुब्भावे य उत्तमाणं तु । उत्तमया भागाणं णिप्फत्ती सव्वधण्णाणं ॥ ९७ ॥ मज्झिमगाणामासे पादुब्भावे य मज्झिमाणं तु । मज्झिमजहण्णगाणं णिप्फत्ती सव्वधण्णाणं ॥ ९८ ॥ पेस्संगाणामासे पादुब्भावे य पेस्सवग्गस्सा । णिप्फत्ति धण्णाणं पेस्सजणस्सेव भोगाणं ॥ ९९ ॥ पुण्णामा थीणामा उत्तम-मज्झिम-जहण्णवग्गा य । णिरुवद्दता उवचिता य जति य होंति पसण्णा वा ॥ १०० ।। 30 तण्णामा तव्वण्णा तं ताणि य जणामोपभोगा वा । निप्फज्जते य सस्सा अधिकं च सईमणा होति ॥ १०१ ॥ ॥ पडलं चोवीसतिमं ॥ छ । १ पव्वा देवोऽत्थ वा हं. त० विना ॥ २ वासे वासति आकारो हं० त० ॥ ३ जो बहुं हं० त० विना ॥ ४ तु अंतो हं० त० विना ॥ ५ “सु मरि हं० त० ॥ ६ मज्झमुसलबज्झा हं० त० ॥ ७ अंधकेसु हं० त० ॥ ८ णिसाएत सव्वे हं० त० विना ॥ ९ अधिसगई हं० त० ॥ १० गं सिई हं० त० विना ॥ ११ भागेणं हं० त० ॥ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ अंगविज्जापइण्णयं [पणुवीसइमं पडलं [पणुवीसइमं पडलं] देवाणं तु पणामेण मुहुत्ता वंदितेण दिवसा तु । अभिसंथुतीए पक्खा ओवयित–णमंसिते मासा ॥ १ ॥ धूमो चुण्णेसु कतो त्ति मुहुत्ता मुक्कपुप्फयो दिवसा । कंठेगुणेसु पक्खा मासा तु समिद्धजोगेसु ॥ २ ॥ लाभस्स तु धुवकारे एवं कालो तु एस बोधव्वो । दुक्खस्स उ आगमणे पडिलोमो एस बोधव्वो ॥ ३ ॥ अम्मा-पितीसु मासा पक्खा तु भवंति मातुवग्गम्मि । पुत्तेसु होंति दिवसा अप्पसरीरम्मि य मुहुत्ता ॥ ४ ॥ अप्पत्थम्मि मुहुत्ता पुत्तत्थम्मि दिवसे वियाणेज्जो । मित्तत्थम्मि य पक्खा मासा य महाजणथम्मि ॥ ५ ॥ रायत्थो त्ति मुहुत्ता महतरकत्थो त्ति दिवसमो जाणे । णिगमत्था वि य पक्खा मासा य भवे जणपदत्थे ॥ ६ ॥ रायाणं ति मुहुत्ता महतरकाणं ति दिवसमो जाणे । णिगमाणं ति य पक्खा मासा गामस्स आणं ती ॥ ७ ।। सेट्ठिपसादे मुहुत्ता दिवसा जाण पगतीपसादम्मि । 1 मंतिपसादे पक्खा मासा रायप्पसादम्मि ॥ ८ ॥ इंदग्गि त्ति मुहुत्ता पवणग्गि त्ति दिवसा विधीयते । उदरग्गि त्ति य पक्खा मासा आदिच्चमग्गि त्ति ॥ ९ ॥ विज्जुपतणे मुहुत्ता अग्गिणिपाते य दिवसमो जाणे । सूरणिपाते पक्खा मासा वुट्ठीणिपातम्मि ॥ १० ॥ चोरुपरोधे मुहुत्ता वासुवरोधेण दिवसमो जाणे । मित्तुवरोधे पक्खा मासा रातोवरोधम्मि ॥ ११ ॥ समतिच्छिए मुहुत्ता थितम्मि दिवसा उवेक्खते पक्खा । मासा य णिवण्णम्मि तु वासा य भवे पसुत्तम्मि ॥ १२ ॥ संपत्थितो त्ति मासा अद्धपधं आगतो त्ति पेक्खा तु । एकवसधि त्ति > दिवसा अतीति एते त्ति य मुहुत्ता ।। १३ ।। परभज्जा ति मुहुत्ता दिवसा पणितमहिल त्ति णातव्वा । मित्तमिधुणं व पक्खा मासा य सकासु पत्तीसु ॥ १४ ॥ अंतो बारमुहुत्ता दिवसा अभितरे उवट्ठाणे । पक्खा य आतिकासु तु मासा पुण अंगणे होंति ॥ १५ ॥ अंतोनिवेसणे होंति मुहुत्ता कोट्ठके तधा दिवसा । उव्वरकम्मि य पक्खा मासा य भवे पडिद्दारे ॥ १६ ॥ सारीमुहेसु तु दिवसा मुहुत्ता णिवेसणस्स दारम्मि । सारीसु होंति पक्खा मासा पुण रायमग्गम्मि ॥ १७ ॥ अंतोपुरे मुहुत्ता अंतोणगरे य दिवसमो बूया । बाहिरकायं पक्खा मासा गामंतरगयम्मि ॥ १८ ॥ 20 सीमागते मुहुत्ता दिवसट्ठाणम्मि दिवसमो जाणे । पक्खा पक्खट्ठाणे मासा पुण दिवसमट्ठाणे ॥ १९ ॥ मंडवको त्ति मुहुत्ता दिवसा उदयभंडघरकेसु । तणसालासु य पक्खा मासा य घरे समालम्मि ॥ २० ॥ रायगिहेसु तु मासा पक्खा तेमग्गिहेसु णातव्वा । कारुगगिहेसु दिवसा पधिकणिलयेसु तु मुहुत्ता ॥ २१ ॥ खंधारो त्ति मुहुत्ता दिवसा गामेसु होंति णातव्वा । खेडेसु होंति पक्खा मासा णगरेसु णातव्वा ॥ २२ ॥ सव्वेसु किच्छवित्तिसु मुहुत्ता कारुगेसु दिवसा तु । पक्खा वडपासेसु तु मासा सामाइयजणम्मि ॥ २३ ॥ जण्ण-छणपरिवहणेसु एत्थ वासाणि होति मासा वा । णिच्चणिवासणगेसु तु दिवसा पक्खा व णातव्वा ॥ २४ ।। चक्खणिक त्ति मुहुत्ता थित घोट्टेति दिवसा विधीयते । भायणसुराय पक्खा मासा आपाणके होंति ॥ २५ ॥ पाणीयम्मि मुहुत्ता गुलपाणीयं परं च दिवसा तु । बहुपिट्ठीयं पक्खा जातिपसण्णा अरिटे य ॥ २६ ॥ मज्जमयो त्ति मुहुत्ता इस्सरियमयेसु वासमो बूया । विज्जामयो त्ति पक्खा मासे जाणे कुलमयो त्ति ॥ २७ ॥ णीवारम्मि मुहुत्ता दिवसा कोद्दवउरालभत्तेसु । वीहीसु होति पक्खा मासा सालीसु णातव्वा ॥ २८ ॥ अच्छंबिले मुहुत्ता दिवसा याकूसु होति णातव्वा । पक्खा अंबेल्लि-विलेवियम्मि मासा य कूरम्मि ॥ २९ ॥ दुद्ध होंति मुहुत्ता दिवसा दधिकम्मि होंति णातव्वा । लवणरसम्मि य पक्खा मासा मधुरे रसे होंति ॥ ३० ॥ भिक्खायं तु मुहुत्ता दिवसा पुण वट्टितो होति । परिवेसणं ति पक्खा मासा भोज्जं ति णातव्वा ॥ ३१ ॥ दाणं पुप्फाणं होंति मुहुत्ता भत्तवतदाणके दिवसा । अच्छादणम्मि पक्खा मासा य हिरण्णदाणम्मि ॥ ३२ ॥ १ एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ३ एए त्ति य हं० त० ॥ ४ क्खा एम हं० त० ॥ ५ वट्टणे' हं० त० विना ॥ ६ दाणं युवव्वेणं हं० त० ॥ 30 Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणुवीसइमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २५९ उत्ताणसेज्जगे होंति मुहुत्ता रिंगमाणके दिवसा । तरुणवयम्मि य पक्खा मासा पुण मज्झिमवयम्मि |॥ ३३ ॥ संझायं तु मुहुत्ता दिवसा पढमिल्लके पदोसम्मि । पक्खा तु मासवेलं मासा तु ठितद्धरत्तम्मि ॥ ३४ ॥ मासा चेव पवत्तिगतम्मि लेहागमे तु पक्खा तु । दिवसा गतागमणे तस्स णिग्गमणम्मि य मुहत्ता ॥ ३५ ॥ अरुणोदये मुहुत्ता दिवसा सुज्जोदये विधीयते । पुव्वण्हम्मि य पक्खा मासा य भवंति अवरण्हे ॥ ३६ ।। लोहरजे तु o< मुंहुत्ता > दिवसा तवु-सीसगेसु लोहेसु । पक्खा य तंबहारकूडके सुवण्णे तधा मासा ॥ ३७॥ 5 दुविधम्मि काललोहे मासे संवच्छरे य जाणेज्जो । मासा तु तिक्खलोहे वस्साणि तु मुंडलोहम्मि ॥ ३८ ॥ अट्ठागते हिरण्णम्मि मुहुत्ता णाणकम्मि दिवसा तु । पण्णरसद्दे पक्खा मासा तीसोवके होंति ॥ ३९ ॥ । अट्ठाकयाकये होंति मुहुत्ता मासकक्कये दिवसा । अड्डक्कये य पक्खा मासा पडिकक्कये होंति ॥ ४० ॥ काहापणा यति कयक्कयम्मि मासा तु तत्तिया होति । जति होंति सताणि कयाकयस्स तति होंति वस्साणि ॥ ४१ ।। तीसतिभागो सुहमम्मि मुहत्ता होंति सुहमछेदे त्ति । खुडलकभागछेदो मितिभागे दिवसमो जाण ॥ ४२ ॥ 10 पण्णरसमम्मि भागे मज्झिमकायेसु पक्खमो जाण । बारसभागम्मि य कइकेसु मासो भवति कालो ॥ ४३ ॥ अच्चत्थमहासारे बारसभागम्मि वस्समो जाणे । तति वस्सा णातव्वा हवंति जति भागलद्धीओ ॥ ४४ ॥ अत्थत्थिकागमणम्मि पुण्णहत्थम्मि लाभमो बूया । रित्तक-तुच्छकहत्थम्मि आगते णत्थि संपत्ती ॥ ४५ ॥ उच्छंगभायणे होति मुहत्ता दिवसमो तु पुडिकासु । पक्खा तु विअलभाणे मासा पुण लोहभाणम्मि ॥ ४६ ॥ वस्सपुप्फिते मुहत्ता दिवसा किंचि पवट्टिते होंति । पक्खा वद्दलिकाया मासा ये भवे विरजसूरे ॥ ४७ ॥ 15 उल्लोकिते मुहुत्ता णक्खत्तेसु दिवसा विधीयते । तारा-गहेसु पक्खा मासा पुण चंद-सूरेसु ॥ ४८ ॥ एक्कग्गामे एकणगरे व एक्कम्मि निवेसणे वा वि । मासा पक्खा व भवे बहुजणसाधारणे देसे ।। ४९ ॥ एक्कघर-एक्कसेज्जा-एक्कासण-एक्कभायणगते य । एक्कोऽत्थ अहोरत्तो अच्चासण्णे य मलितम्मि ॥ ५० ॥ एतेसि भावाणं पसत्थगुणसंथवे सुभो लाभो । णिदित-दोसगरहणासु चेव असुभो भवति लाभो ॥ ५१ ॥ पुप्फरतम्मि मुहुत्ता दिवसा पुण होंति सुक्कपुप्फम्मि । गुच्छेसु होंति पक्खा भुंभलक-उरच्छके मासा ॥ ५२ ॥ 20 आपेलगेसु दिवसा पक्खा .पुण मालिकासु णातव्वा । वट्टापेले मासा मुकुडेसु भवंति वस्साणि ॥ ५३ ॥ अवरण्हे वण्णेसु य दिवसा मासा व होति सकलेसु । कणलीकतेसु पक्खा चुण्णाणि कतेसु य मुहुत्ता ।। ५४ ॥ देवेसु य रायीसु य मासा संवच्छरा य णातव्वा । पक्खा वा मासा वा सेसेसु मणुस्सभागेसु ॥ ५५ ॥ आयरिय-उवज्झाये अम्मा-पितु-गुरुजणे य सव्वम्मि । थाणत्थिते य सव्वम्मि मासे संवच्छरे जाणे ॥ ५६ ॥ एतेणऽणुमाणेण तु कालं मुण सव्वदव्वेसु । थाणत्थाणविसेसेहिं चेव मुण माणुसाणं पि ॥ ५७ ॥ 25 जध कालो तध लाभो तधा सुहं तह य जीवितं "देहं । तध दव्वाणं सारो तध ठाणगुणो य बोधव्वो ॥ ५८ ॥ लाभो कालविभंगो सारा-ऽसारे य पुच्छणट्ठस्स । एगणिमित्तेण वि अणुगतम्मि जुत्तेण बोधव्वं ॥ ५९ ॥ आधारणासु G बहुसु वि जति सो चेव अणुबंधए भावे । ण य अण्णा उप्पज्जति तेण उ सव्वं ववसियव्वं ६० वामिस्सेसुं न बहुसु वि णाणत्थेसु समुदीरमाणेसु । जे तब्भावणुबंधी तज्जोणीया य ते गज्झा ॥ ६१ ॥ ॥ पडलं [पणुवीसइमं ॥ २५] ॥ छ । 30 १० एतच्चिह्रान्तर्गतं पदं हं० त० नास्ति ।। २-३ कक्कसे हं० त० ॥ ४ अब्भत्थ' हं० त० ॥ ५ य रूवे विरजमूले हं० त० ॥ ६ णेयव्वा हं० त० ॥ ७ धण्णेसु हं० त० विना ॥ ८ कसणीक' हं० त० विना ॥ ९ पुण्णा ' हं० त० विना ॥ १० कूलो हं० त० ॥ ११ दीहं हं० त० ॥ १२ हस्तचिह्नान्तर्गतः श्लोकपरिमितः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ Jain Educatioअंग० २२ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० अंगविज्जापइण्णय [सत्तावीसइमं पडलं [छव्वीसइमं पडलं] दिट्ठम्मि आगतम्मि य लद्धे थोवतरके मुहुत्तग्गे । दीवस्स य णिव्वामण एकदिवसो मुणेतव्वो ॥ १ ॥ एकजुगलम्मि पुरि सि]त्थिसंगमे एकमो अहोरत्तं । F रत्तंबखुच्छेहि य परिवुत्थं होयहोरत्तं ॥ २ ॥ १ जति मिधुणकाणि संपेंडिताणि तति णिद्दिसे अहोरत्ते । जति पुण्णामाणि समागताणि तति णिदिसे दिवसे ॥ ३ ॥ जं जतिहि अहोरत्तेहि होंति जं जतिहि भवति दिवसेहिं । पक्खेहि व मासेहि व तस्सुप्पत्तीय सो कालो ॥ ४ ॥ जो जत्तिएण कालेण जाति जातं च भवति णिप्फण्णं । सो कालो णातव्वो तस्सुप्पायस्स लद्धीय ॥ ५ ॥ जं जत्तिएण कालेण कीरते जस्स देसकालस्स । जम्मि व कीरति काले सो कालो तेण णातव्वो ॥ ६ ॥ कतणिट्ठितमि दव्वे वालाभमुपट्टितम्मि कालेण । जेण य तं निप्फज्जति सो कालो तेण बोधव्वो ॥ ७ ॥ आगतमेत्ते व समागते व दिण्णम्मि णिट्ठिते लद्धे । सिग्धं च पडुप्पण्णे संपत्ती तत्तियं वेलं ॥ ८ ॥ एहिति दाहिति काहिति कम्मं होहिति व मा व तूरित्थ । दुक्खेण व परिगणितम्मि दिग्घकालो भवति कालो ॥९॥ थोवं .सेसं सिद्धं विपच्चते थाहि ता मुहत्तागं । दुरागतो पधे वा गतेहि दिवसा मुहुत्ता वा ॥ १० ॥ पुण्णेसु समत्तेसु य मासं संवच्छरं ति जाणेज्जो । सव्वट्ठसु य पक्खो दिवसो य चतुत्थभागेसु ॥ ११ ।। जुण्ण-विमद्दित-खलित-विलिहिते दीहेण भवति कालेण । णव-तरुण-सरस-लहुसंपदासु थोवो भवति कालो॥ १२ ॥ सव्वेसिं दव्वाणं अफत्तिमाणं च कत्तिमाणं च । इट्ठत्त-मज्झिममणिट्ठता य तिविधा गती णेया ॥ १३ ॥ पुण्णामा सारजुता मज्झिमसारा य होंति थीणामा । जे तु णपुंसकणामा ते तु असारेसु बोधव्वा ॥ १४ ॥ कालो तु महासारेसु महंतो मज्झो य मज्झसारेसु । अप्पो य हवति कालो असारवंतेसु सव्वेसु ॥ १५ ॥ जध णामा तध रूवा सद्दा गंधा रसा य फासा य । पंचविधा उप्पाता एतेण गमेण बोधव्वा ॥ १६ ॥ ॥ भगवतीय महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय कालज्झायो पडलं ॥ २६ ॥ छ । [सत्तावीसइमं पडलं] 20 अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय कालप्पविभागं णामज्झायं वक्खस्सामि । तं जधातत्थ कालो पंचविधो भवति । तं जधा-मुहत्तप्पमाणं दिवसप्पमाणं पक्खप्पमाणं मासप्पमाणं संवच्छरप्पमाणमिति । मुहत्तप्पमाणं 'तिविध-> दिवसप्पमाणं रत्तिप्पमाणं भिण्णरत्ति-दिवसप्पमाणमिति । तत्थ दिवसप्पमाणं तिविधं-पंचरत्तप्पमाणं दसरत्तप्पमाणं पण्णरसरत्तप्पमाणमिति । तत्थ पक्खप्पमाणं बिविधं-एकपक्खप्पमाणं बिपक्खप्पमाणमिति । तत्थ मासप्पमाणं एक्कारसविधं-एक्कमासप्पमाणं बिमासप्पमाणं तिमासप्पमाणं चतुमासप्पमाणं पंचमास25 प्पमाणं छम्मासप्पमाणं सत्तमासप्पमाणं अट्ठमासप्पमाणं णवमासप्पमाणं दसमासप्पमाणं एक्कारसमासप्पमाण oK मिति । तत्थ संवच्छरपमाणं अपरिमितविधं भवति । तत्थ केस-मंसु-णह-लोमसमामासे खुड्डसत्तेसु अणूसु ठिएसु अच्छरप्फोडणे अंगुलिप्फोडणे य मुहुत्तप्पमाणं बूया । तत्थ कण्ह-णास-भुमक-णयण-जिब्भो?-दंत-पोरिसपरिमासे अंगुट्ठकंगुलिग्गहणे मज्झिमाणंतरकायेसु चेव पुष्फ-फलेसु दिवसप्पमाणं एवं बूया । तत्थ जंघोरु-हत्थ-पाद-बाहु-गीवा-अंस-कोप्पर-फिजागहणे मज्झिमकायेसु सत्तेसु 30 मज्झिमकायेसु पुप्फ-फलेसु चेव पक्खप्पमाणं बूया । तत्थ पट्ठी-उदर-कडी-उर-सीससमामासे कायवंतेसु सत्तेसु चेव पुष्फफलेसु मासप्पमाणं बूया । एते चेव उद्धंभागेसु उम्मढेसु वासं संवच्छरप्पमाणं बूया । तत्थ अवदातेसु सुक्कपक्खं दिवसं वा १णेवापेण हं० त० विना ॥ २ हस्तचिह्नान्तर्गतमुत्तरार्धं हं० त० एव वर्तते ॥ ३ "म्मि दिवसे वालारसु पट्टि हं० त० ॥ ४ ज्झायो सम्मत्तो ॥ छ ॥ हं० त० विना ॥ ५ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तावीसइमं पडलं] एगूणसट्ठिमो कालज्झाओ २६१ बूया । कण्हेसु कालपक्खं रतिं वा बूया । सामेसु संझं वा पक्खसंधि वा बूया । णिद्धेसु वासारत्तं बूया, कण्हेसु वि वासारत्तं बूया । सुक्केसु सरदं बूया, पसण्णेसु वि सरदं बूया । सीते हेमंतं बूया, < संवुतेसु य हेमंत बूया । - [..........सिसिरं बूया,..........वि सिसिरं बूया ।] सामेसु वसंतं बूया, मुदितेसु वि वसंतं बूया । लुक्खेसु गिम्हं बूया, उण्हेसु वि गिम्हं बूया । बालेयेसु पाउसं बूया, उवणिद्धेसु णिद्धेसु वा पाउसं बूया । एवं रत्तीयं वा दिवसे वा सुक्कपक्खे वा कालपक्खे वा अण्णतरस्सि वा छण्हं उदूणं उदुंसि आधारितंसि संझा-पक्खसंधीसु वा 5. उदुसंधीसु वा आधारितेसु एतेहिं जधुत्तेहिं आमासेहिं उवलद्धव्वं भवति, सद्द-रूवपादुब्भावेसु चेव समणुगंतव्वं भवति । तत्थ मासेसु पुव्वाधारितेसु कतमो मासो ? त्ति । तत्थ पुरिमेसु गत्तेसु कत्तियं वा मग्गसिरं वा पोसं वा बूया, संवच्छरे पुव्वाधारिते अग्गेयं वा सोमं वा पोसं वा संवच्छरं बूया । दक्खिणेसु गत्तेसु + माहं वा फग्गुणं वा चेत्तं वा वेसाहं वा मासं बूया, संवच्छरे पुव्वाधारिते 9 माहं वा फग्गुणं वा चेत्तं वा वेसाहं वा संवच्छरं बूया । पच्छिमेसु . गत्तेसु जेट्ठामूलं वा आसाढं वा सावणं वा मासं बूया, संवच्छरे पुव्वाधारिते जेट्ठामूलं वा आसाढं 10 वा सावणं वा संवच्छरं बूया । वामेसु गत्तेसु पोट्ठपदं वा अस्सयुजं वा मासं बूया, संवच्छरे पुव्वाधारिते पोट्ठपदं वा अस्सोजं वा संवच्छरं बूया । दढेसु गत्तेसु फग्गुणं वा आसाढं वा पोट्ठपदं वा मासं बूया, संवच्छरे पुव्वाधारिते फग्गुणं वा आसाढं वा पोट्ठपदं वा संवच्छरं बूया । चलेसु सावणमासं बूया, संवच्छरे पुव्वाधारिते सावणं संवच्छरं बूया । निद्धेसु सावणं वा पोट्ठपदं वा अस्सोजं वा कत्तियं वा बूया, संवच्छरे पुव्वाधारिते सावणं वा पोट्ठपदं वा अस्सोजं वा कत्तियं वा संवच्छरं बूया । लुक्खेसु चेत्तं वा वेसाहं वा जेट्ठामूलं वा आसाढं वा मासं बूया, संवच्छरे 15 पुव्वाधारिते चेत्तं वा वेसाहं वा जेट्ठामूलं वा आसाढं वा संवच्छरं बूया । सीतेसु संवुतेसु य मग्गसिरं वा पोसं वा माहं वा मासं बूया । संवच्छरे पुव्वाधारिते मग्गसिरं वा पोसं वा माहं वा संवच्छरं बूया । एवं आमाससद्दरूवपादुब्भावेसु उदुउपचारेहिं कम्म-चेट्ठापैविचारेहिं णक्खत्तदेवयकम्मोवयारेहिं उवलद्धीहिं चेव जधोपदिढेहि आधारयित्ता आधारयित्ता मास-संवच्छरोपलद्धीहिं कमसो पवासमणुगंतव्वं भवति । इति मासपरिसंखा ।। < संवच्छरपरिसंखा पमाणाणि चेव णामतो देवतोपलद्धीहिं उदुप्पविभागेहिं चेव वक्खातं भवतीति । तत्थ 20 पक्खे पुव्वाधारिते णीहारेसु पक्खप्पमाणं बूया । उजुभागेसु अवस्थितेसु मासप्पमाणं बूया । आहारेसु तिपक्खप्पमाणं बूया । दिवसे पव्वाधारित एक्कगत्ते एक्काभरणके एक्कोपकरणे एक्कचरेस सत्तेस एक्कसाहागते चेव एक्काहिकप्पमाणं बया । तत्थ दंडेस गत्तेसु बिअंगुलिग्गहणे यमलाभरणके यमलोपक तिअंगुलीग्गहणे भुमकंतरे णासग्गे तिके अपदूयं अखत्तरे पोरिसे बत्थिसीसे तियमलोपकरणे तिकसद्दपडिरूव-आकारपादुब्भावेसु चेव तिहप्पमाणं बूया । तत्थ चउरंगुलिग्गहणे पादतल-पाणितले उम्मज्जिते उल्लोकिते उट्ठिते णटे गीते 25 वादिते दंडजमलोदीरणे चतुक्कसद्दपडिरूवे आकारपादुब्भावेसु चेव चातूहिकप्पमाणं बूया । तत्थ पंचंगुलिग्गहणे मुट्ठिग्गहणे थणग्गहणे फिजागहणे सयणा-5ऽसणे सपरिसे सव्वपंचकपरामासे पंचकसहपडिरूवा-ऽऽगारपादब्भ पंचाहप्पमाणं बूया । तत्थ गुप्फग्गहणे मणिबंधग्गहणे छसु वा एक्ककेसु तिसु वा बिकेसु बिसु वा तिकेसु एक्कके पंचकसहिते बिके चतुक्कसहिते छक्कसद्दपडिरूव-आकारपादुब्भावेहिं चेव छाहिकप्पमाणं बूया । तत्थ सत्तकपरामासे चतुक्के तिगसहिते पंचगे दुगसहिते छक्के एक्ककसहिते बिसु वा तिकेसु एक्कगसाधारणेसु तिसु वा बिकेसु एक्कसाधारणेसु 30 सत्तकसद्दपडिरूव-आकारपादुब्भावेसु चेव सत्ताहिकप्पमाणं बूया । तत्थ बिचउक्कोदीरणे चउण्हं वा दुगाणं दंसणे अट्ठसु १Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ अंगविज्जापइण्णयं वा एक्ककेसु अट्ठकसद्दपडिरूव-आकारपादुब्भावेसु चेव अट्ठाहिकं बूया । तत्थ चउक्कपंचकोदीरणे अट्ठके एक्कगसहिते तिकाणं वा तिण्हं दंसणे सत्तके बिकसहिते णवण्हं वा एक्ककाणं उदीरणे परामासे वा णवकसद्दपडिरूवा-ऽऽकारपादुब्भावे चेव णवाहिकप्पमाणं बूया । तत्थ पंचकदंडोदीरणे पंचकजुगलग्गहणे पंचण्डं वा बिकाणं दंसणे दसकपरामासे वा दसकवग्गोदीरणे वा दसकपडिरूव-आकारपादुब्भावे चेव दसाहिकप्पमाणं बूया । एवं तव्वं वा योगेणं दिवसप्पमाणं 5 जाव एकूणतीसतिरत्तातो । बिपक्खे वाऽऽधारिते उप्पण्णे वा जोगेणं पण्णरसरत्तातो उद्धं जाव भिण्णमासमासप्पमाणातो त्ति णेतव्वं दिवसप्पमाणं भवति । इति दिवसप्पमाणं वा योगते आमास-सद्द-पडिरूवपादुब्भावेहि य उवलद्धव्वं भवति । तत्थ मासप्पमाणे पुव्वाधारिते एतेणेव एक्कवग्गादिणा दुग-तिग-चउक्क-पंचक-छक्कक-सत्तक-अट्ठक-णवकदसक-वग्गक्कमेणं यथा दिवसप्पमाणं उवदिटुं आमास-सद्द-पडिरूवा-ऽऽगारपादुब्भावविधीहिं तहा पक्खप्पमाण 4 मवि णेतव्वं भवति । जधा वा जोगप्पमाणं दिवसप्पमाणे उद्दिटुं तधा + मासप्पमाणं पि वा जोगए 10दिट्ठव्वं भवति । इति र मासप्पमाणं वक्खातं भवतीति । तत्थ संवच्छरप्पमाणे पुव्वाधारिते संवच्छरप्पमाणे उप्पण्णे जधा मासप्पमाणेण एक्कवग्गादिणा बिग-तिग-चउक्कवक-छक्क-सत्तक-अट्टक-णवक-दसकवग्गक्कमेण जधा मासप्पमाणमुवदिटुं आमास-सद्द-पडिरूवा-ऽऽकारपादुब्भावेहिं तधा संवच्छरप्पमाणं व णेतव्वं भवति । जाव कोडिवग्गाओ अपरिमितवग्गातो वा यधा वा जोग्गा अक्खट्ठाणं आमासा य उवदिवा णिधीसुत्ते तधा णेतव्वं भवति संवच्छरप्पमाणं परिमितं अपरिमितं चेति । मुहुत्त-दिवस-पक्खप्पमाण15मास-संवच्छरप्पमाणाणि चेव पुणरवि अण्णोण्णसमाजोगेणं भिण्णाणि एतेहिं चेव वग्गेहिं वा जोगट्ठाणेहि य आधारयित्ता संजोयणाविसेसेहि सम्मं समणुगंतव्वाणि भवंति ।।। ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय कालज्झायो णाम एगोनषष्टि(णसट्ठि)मो सम्मत्तो ॥ छ । [ सट्ठिमो पुव्वभवविवागज्झाओ-पुव्वद्धं ] 20 अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय पुव्वभवविवागं णामज्झायं । तं खलु भो ! तमणुवक्खस्सामि । तं जधा-तत्थ अंगवता अव्वग्गेणं मज्झत्थेणं तणुरागदोसेणं भवितूणं अप्पणो अज्झत्थभावेणं परेण वा पुच्छितेणं 'को मे भंते ! पुरिमो अणंतरपच्छाकडो भवो ?' ति एवमुत्तेणं सम्ममव्वग्गसतीकेणं अंतरंगे बाहिरंगे वा तदुभये वा भवो चउव्विहो आधारयितव्वो भवति । तं जधा-देवभवो मणुस्सभवो तिरिक्खजोणिकभवो णेरइकभवो चेति । तत्थ उद्धंगीवाय सिरोमुहामासे उम्मज्जिते उल्लोकिते पहस्सिते उस्सिते उट्ठिते एकंसाकरणे छत्त-भिंगार-पडागा-लोमहत्थ25 वासणकडक-चामरा-वीजणीदंसणे सेसा-जाग-जण्ण-बलिपादुब्भावे पहेणकगते अच्चिगते वंदिते पूयिते सक्कते संथुते णमोक्कारअंजलिकरणे देवतपूयापादुब्भावे सव्वदेवगते सव्वदेवणामोदीरणे सव्वदेवणामधेज्जे थी-पुरिसगते देवकम्मपरिकित्तणासु सव्वदेवोपचारगते एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-पडिरूवपादुब्भावे चेव देवभवातो आगते सि देवा अणंतरपच्छाकडो त्ति बूया । तत्थ कतरातो देवणिकायातो आगतो ? त्ति पुणरवि आधारयितव्वं भवति । तं जधादेवज्झाते तं उवदि, विधी देवणिकायाणं आमास-सह-पडिरूवपादब्भावोपलद्धीहिं तधा आधारयितव्वं भवति, 30 आधारयित्ता उवलद्धव्वा भवति । तत्थ पुणरवि देवोपलद्धीयं देवत्तातो आगतो आधारयितव्वं भवतीति इति दैवभवो पुरिमो विण्णेयो भवति । १ वा जोगेणं हं० त० ॥ २ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सट्ठिमो पुव्यभवविभागज्झाओ-पुव्वद्धं - २६३ तत्थ समगत्तामासे उज्जुकपेक्खिते उज्जुकवक्कोपचारे उज्जुभावगते उज्जुववहारगते णिकूडे णिरुवहते सव्वउज्जुककम्मोपचारगते अविसंवादणाय सव्वमाणुसगते सव्वमाणुसोपचारगते 6 सव्वमाणुसोपकरणगए के सव्वमाणुसकम्मचेट्ठागते चेव एवंविधे पेक्खितामासे पडिरूव-सद्दपादुब्भावे चेव माणुसभवातो आगतो सि माणुसभवातो अणंतरपच्छाकडो त्ति बूया । तत्थ कतमेहि माणुसेहिं आगतो त्ति जधुत्तं आधारयितव्वं । तस्स जातीविचये आरियमेलक्खु-अज्ज-पेस्सोपलद्धीयं दीव-समुद्द-पव्वतवासीतो वा आमास-पडिरूव-सद्दपादुब्भावोपलद्धीहि आधारयित्ता 5 आधारयित्ता उवलद्धव्वं भवतीति । तत्थ पुणरवि थीभावातो वा पुरिसभावातो वा कत्तो आगतो त्ति आधारितंसि जधुत्ताहिं थी-पुरिसणपुंसकोपलद्धीहि उवलद्धव्वं भवतीति । इति मेणुस्सभवो पुरिमो विण्णेयो । तत्थ तिरियामासे सव्वउवधि-णिकडि-सातिकजोगकरणे सव्वअणज्जवभावगते सव्वतिरिक्खजोणीगते सव्वतिरिक्खजोणीकणामगते सव्वतिरिक्खजोणिकउवचारगते सव्वतिरिक्खजोणीमये उवकरणे सव्वतिरिक्खजोणीकउवकरणे सव्वतिरिक्खजोणीकणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणगते एवंविधे पेक्खितामासे पडिरूव-सद्दपादुब्भावे चेव तिरिक्खजोणिगभवातो 10 सि आगतो त्ति बूया । पुव्वमाधारितंसि जधुत्ताहि एकैदिय–बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिय-पंचिंदियोपलद्धीको जीवणिकायाणं तसाणं थावराणं व तिरिक्खजोणीकाणं व विधिभेदोपलद्धीयं चिंतिते अज्झाये आमास-सद्द-रूवपादुब्भावेहि तधा सव्वं समणुगंतव्वं भवतीति । तत्थ पुणरवि आधारितंसि कत्तो आगतो? इति (इत्थि) भावातो पुरिसीवातो णपुंसक वातो ? त्ति । इमे कायणपुंसका विण्णेया भवंति, तं जधा-पुढविकाइया आयुकायिका तेउकायिका वाउकायिका वर्णप्फतिकायिका, एते एकेंदिया एकेदियोपलद्धीयं णपुंसकवेदा वेति विण्णेयं । बेइंदिया तेइंदिया 15 चउरिदिया एते वि सकाहिं उवलद्धीहिं उवलब्भ णपुंसकवेदो ज्जेव विण्णेयो भवति । पंचेंदियतिरिक्खजोणिकेसु सकार्य उवलद्धीयं उवलद्धेसु तिविधमाधारयितव्वं भवति–थियो पुरिसा णपुंसका चेति । एते जधुत्ताहि थी-पुरिसणपुंसकोपलद्धीहि आधारयित्ता आधारयित्ता थियो पुरिसा णपुंसका चेति थीणामाणंतरा विण्णेया भवंतीति । इति तिरिक्खजोणीगता पुरिमभावा अणंतरपच्छाकडा उवलद्धव्वा भवंतीति । तत्थ अधोगत्तामासे णिण्णामासे कण्हामासे उवद्दुतामासे संकिलिट्ठामासे दुग्गंधामासे दारुणामासे अमणुण्णसद्द- 20 पडिरूव-गंध-फासगते सव्वदारुणकम्मोपचारगते सव्वणेरइयणामपादुब्भावे सव्वणिरयपुरक्खडोपचारगते सव्वणेरयिकणामधेज्जे थी-पुरिसगते एवंविधसद्द-रूवपादुब्भावे चेव णेरइकभवातो सि आगतो णेरइकभवो ते अणंतरपच्छाकडो त्ति बूया । तत्थ कतमेहि णेरयिकेहिं आगतो ? त्ति पुणरवि आधारितंसि जधुत्ताय चिंतायं णेरइकोपलद्धीओ लेस्साहिं वेदणाहि ठितिविसेसेहिं आमास-सद्द-पडिरूवपादुब्भावोपलद्धीहिं तधा सव्वं समणुगंतव्वं भवतीति । तत्थ पुणरवि णेरइए पुव्वाधारिते णेरइया णपुंसका चेव सव्वे उवलद्धव्वा भवंतीति । एवं लेसाहि वेदणाहिं ठितीविसेसेहिं पुढवीए विचयेण 25 पढमाय बितियाय ततियाय चउत्थीयं पंचमीयं छट्ठीयं सत्तमीयं ति आगमणाणि आधारयित्ता आधारयित्ता आमाससद्दपडिरूवसण्णाभिणिवेसेहि य उवलब्भ णेरयिकभवो पुरिमो विण्णेयो भवतीति ॥ ॥ पुरिमभवविभागो णामा षष्टिमोऽध्यायः समाप्तः ॥ छ । [॥ पुव्वद्धं ॥ छ ॥] १ज्जुवकोप' हं० त० ॥ २ अतिसं हं० त० ॥ ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० एव वर्तते ॥ ४ 'भावतो हं० त० विना ॥ ५ सी चेव आ हं० त० ॥ ६ माणुसभवे पुरिसमो हं० त० विना ॥ ७ “माति' हं० त० विना ॥ ८ ‘जोणीगए भ' हं० ॥ ९ बेंदिय-तेंदिय' हं० त० ॥ १० भावओ हं० त० ॥ ११-१२ "भावओ हं० त० ॥ १३ “णस्सइका हं० त० । १४ बेंदिया तेंदिया हं० त० ॥ Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ अंगविज्जापइण्णयं [सट्ठिमो उववत्तिविजयज्झाओ-उत्तरद्धं ] अधापुव्वं खलु भो ! महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय उववत्तिविजयो णामज्झायो, तमणुवक्खस्सामि । तत्थ अंगविदा सम्म अप्पाणं पडिदेक्खियाणं सव्वंगेण सव्वंगसकेणं अवहट्ट राग-दोसे मज्झत्थेणं सम्मं आधारणे जोगं समंताहारपणिधितेणं एक्कग्गमतिदियसमंताहारेणं तप्परेणं अप्पणो अज्झत्थे सण्णायं आधारयमाणेणं 'कत्थ इमं 5 जंतुमुपपज्जिस्सति ?' त्ति 'काऽस गती पुरेक्खडे ?' त्ति एव पुव्वाधारितेण वा आधारयमाणेणं उपपत्ती जीवाणं उवलद्धव्वा भवति । तं जधा-णिरयभवोपपत्ति तिरिक्खभवोपपत्ति मणुस्सभवोपपत्ति देवभवोपपत्ति सिद्धिअभवउपपत्ति णिव्वाणमिति । तत्थ णेरयिकोपपत्ति तिरिक्खजोणिकोपपत्ति मणुस्सगतोपपत्ति देवोपपत्ति चेति चतुविधा संसारोपपत्ती विण्णेया भवति । सिद्धउपपत्ती मोक्खो अपुणब्भवो संसारविप्पमोक्खो असंसारोपपत्ती विण्णेया भवति । तत्थ अंतरंगे वा बाहिरंगे वा तदुभये वा आधारयित्ता संसारोपपत्ती पुणब्भवो चतुविधो सिद्धीउपपत्ती चेव अपुणब्भवो इमेहिं आमास-सद्द10 पडिरूवविसेसेहिं उवलद्धव्वं भवतीति ।। तत्थ अधोगत्तामासे णिण्णामासे कण्हामासे किलिट्ठामासे दुग्गंधामासे व उवद्दुतामासे सव्वदारुणगते सव्वणिरयपुरक्खडोपचारगते णेरयिकणामपादुब्भावे णेरयिकपडिरूवगते णेरयिकणामथी-पुरिसउवचारगते णिरयणामोदीरणे णिरयाणुभागपरिकित्तणासु णिरयोपपातकधासु अमणुण्णसद्द-पडिरूव-गंध-रस-फासोदीरणेसु चेव उव्वेदणीयासु एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-पडिरूवपादुब्भावे चेव णिरयमुपपज्जिस्सतीति णिरयभावो ते अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ कतमं 15णिरयमुपपज्जिस्सतीति पुव्वमाधारिते सीतवेदणीयं उसिणवेदणीयं व त्ति । तत्थ अग्गेयेसु सव्वअग्गिपादुब्भावे सव्वउसुणफासपादुब्भावे सव्वपयणपादुब्भावे सव्वतापणपादुब्भावेसु उसु[ण]जोणीकेसु सत्तेसु अग्गिउवकरणेसु अग्गिसरीरेसु वा उवकरणेसु एवंविधे सद्द-रूवपादुब्भावे वा उसुणवेदणीयं णिरयं उपपज्जिस्सति त्ति बूया । तत्थ सव्वआपुणेयेसु संवत्ततेसु सव्वसीतफासेसु सव्वसीतआपुजोणीयं सव्वआपुमये उवकरणे हेमंतोपकरणेसु हेमंतसीतफास सीतवातपरिकित्तणासु सीतजोणिकेसु सत्तेसु सीतद्द्यपरिकित्तणासु चेव एवंविधे सद्द-पडिरूवपादुब्भावे सीतवेदणीयं 20णिरयं उपपज्जिस्सति त्ति बूया । किलेसे निरये उपपज्जिस्सति त्ति लेसायं आधारितायं कण्हवण्णपडिरूवगते कण्हलेस्सजीवपरिकित्तणे चेव कण्हलेसं णिरयं उपपज्जिस्सति ति बूया । तत्थ णीलवण्णे पडिभोगपरामासे णीलवण्णपडिरूवगते य णीललेस्सजीवपरिकित्तणेसु चेव एवंविधे सद्द-पडिरूवपादुब्भावे णीललेस्सं णिरयं उपपज्जिस्सति त्ति बूया। तत्थ कावुवण्णपडिभोगपरामासे कावुवण्णपडिरूवगते कावुलेस्सजीवपरिकित्तणेसु चेव एवंविधे सद्दपडिरूवपादुब्भावे कावुलेस्सं णिरयं उपपज्जिस्सति त्ति बूया । तत्थ 'कतमस्सि पुढवीयं उपपज्जिस्सति ?' ति पुव्वमाधारयितव्वं भवति । 25 गणणापरिसंखायं एकक-बिक-तिक-चउक्क-पंचक-छक्क-सत्तकेहि ठियामासठाणेहिं उवलब्भ पढम-बितिय-ततिय चउत्थी-पंचमी-छट्ठी-सत्तमीयो पुढवीयो अमुकिस्सि पुढवीयं उपपज्जिस्सति त्ति बूया । 'किंठितीयं उपपज्जिस्सति णिरयं' ति पुव्वमाधारितंसि सव्वपादुब्भावेसु सव्वंगिकिं ठिति बूया । जधण्णपलितोवमेसु वा आधारितेसु पलियपडिरूवेसु पलियपडिरूवेहि सद्देहि य पलितोवमं विण्णेयं, सागरपडिरूवेण य सागरसद्दोदीरणेहि सागरोपमं विण्णेयं । गणणापरिसंखाय णेतव्वाणि पलितोवमाणि सागरोपमाणि य आधारयित्ता आधारयित्ता विण्णेयाणि भवंति 30सागरोपमाणं परिसंखा । सिद्धं खीरिणि ! खीरिणि ! उदुंबरि ! स्वाहा, सव्वकामदये ! स्वाहा, सव्वणाणसिद्धिकरि ! स्वाहा १ । तिण्णि छट्ठाणि, मासं दुद्धोदणेणं उदुंबरस्स हेट्ठा दिवा विज्जामधीये, अपच्छिमे छटे ततो विज्जाओ य पवत्तंते रूवेण य दिस्सते, १ सणिकेण हं० त० ॥ २ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सट्ठिमो उववत्तिविजयज्झाओ-उत्तरद्धं २६५ भणति-कतो ते पविसामि ?, तं जहा ते पविसामि तं ते अणंगं काहामीति । पविसित्ता य भणति-सोलस वाकरणाणि वा णाहिसि एक्कं चुक्किहिसि । एवं भणित्तु पविसति सिद्धा भवति । णमो अरहताणं, णमो सिद्धाणं, णमो सव्वसाधूणं, णमो भगवतीय महापुरिसदिण्णाय अंगविज्जाय, आकरणी वाकरणी लोकवेयाकरणी धरणितले सुप्पतिट्टिते आदिच्च-चंद-णक्खत्त-गहगण-तारारूवाणं सिद्धकतेणं अत्थकतेणं धम्मकतेणं सव्वलोकसुबुहेणं जे अढे सव्वे(च्चे) भूते भविस्से से अटे इध दिस्सतु पसिणम्मि स्वाहा २ । एसा 5 आभोयणीविज्जा आधारणी छटुग्गहणी, आधारपविसंतेण अप्पा अभिमंतइतव्वो, आकारणि वाकरणि पविसित्तु मंते जवति पुस्सयोगे, चउत्थभत्तेणमेव दिस्सति । णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो भगवतो यसवतो महापुरिसस्स, णमो भगवतीय सहस्सपरिवाराय अंगविज्जाए, इमं विज्जं पयोयेस्सामि, सा मे विज्जा पसिज्झतु, खीरिणि खीरिणि ! उदुंबरि ! स्वाहा, सर्वकामदये ! स्वाहा, सर्वज्ञानसिद्धिरिति स्वाहा ३ । उपचारो-मासं दुद्धोदणेण उदुंबरस्स हेट्ठा दिवसं विज्जामधीये, अपच्छिमे छठे 10 कातव्वे ततो विज्जा ओवयति त्ति रूवेण दिस्सति, भणति य-कतो ते पविसामि ?, जतो य ते पविस्सिस्सं तीय अणंगं काहामि । पविसित्ता य भणती-सोलस वाकरणाणि वाकरेहिसि, ततो पुण एक्कं चुक्किहिसि, वाकरणाणि पण्णरस अच्छिडाणि भासिहिसि, ततो अजिणो जिणसंकासो भविस्ससि, अंगविज्जासिद्धी स्वाहा । परिसंखा तव्वा, तच्छीसोपरि पुढवीयं ठिती विण्णेया । एसा उक्कट्ठो पलितोवमाणं गणणा । परं दस < कोडाकोडीओ आधारयित्ता दसकोडा Do कोडीओ सागरोवमं 15 पलितोवमाणं विण्णेयाणि भवंति । उक्कस्सं सागरोवमं विण्णेयं भवति । उक्कस्सा णिरयेसु ठिती तेत्तीसं सागरोवमाणि विण्णेयाणि भवंति । तत्थ कतमायं पुढवीयं ति एवं ठितीयो निरयो निरयोपपाते आधारयित्ता उक्कस्स-जहण्णायं पुढवीउवलद्धीयं चेव उवलब्भ अमुकठितीकं णिरयमुपपज्जिस्सतीति बूया । इति णिरयोपपाता विण्णेया । भवंति वा वि [एत्थं गाहाओ-] अधोगत्ताणि आमसति किलिट्टाणि य सेवति । दीणे दीणपरामासे अधोदिट्ठीय माणवो ॥ १ ॥ 20 उपद्दुताणि सेवंतो उव्विग्गो जो तु पुच्छति । अमणुण्णे सद्द-रूवम्मि णिरयाणं कधासु य ॥ २ ॥ णिरयोपपातकरणे वत्तंते वा वि दंसणे । एतारिसे समुप्पाते जाणेज्जा णिरयोपकं ॥ ३ ॥ इति । तत्थ तिरियामासे तिरियविलोकिते तिरियगमणे तिरिच्छागमणे तिरिच्छाकरणे सव्वकुडिलागते सव्वअणज्जवगते सव्वअणज्जवभावगते सव्वउवधि-णिकङि-सातिजोगकरणे सव्वअतिसंधणागते सव्वअणज्जवववहारगए च्छादणागृहणासु चेव सव्वतिरिक्खजोणीगते सव्वतिरिक्खजोणिकपडिरूवगते सव्वतिरिक्खजोणिकणामपादुब्भावे सव्वतिरिक्ख- 25 जोणिकसद्दगते सव्वतिरिक्खजोणिकउवकरणगते - सव्वतिरिक्खजोणिकसरीरमये उवकरणे सव्वतिरिक्खजोणिकणामधेज्जे थी-पुरिसे एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-पडिरूवपादुब्भावे तिरिक्खजोणी उपपज्जिस्सति त्ति तिरिक्खजोणीभावो ते अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ तिरिक्खजोणिकभावे पुव्वाधारित तिरिक्खजोणी पुणरवि पंचविधामाधारये । तं जधाएकेंदिए बेइंदिए तेइंदिए चउरिदिए पंचेंदिए चेति ।। तत्थ एक्केसु गत्तेसु एक्काभरणके एक्कोपकरणे एक्कवेणीकरणे एक्कचरेसु सत्तेसु एक्कसाधारगते एक्कपादुब्भावे 30 सव्वेकेंदियपादुब्भावे एकेंदियणामपादुब्भावे एकेदियमये उवकरणे एकेंदियणामधेज्जथी-पुरिसउवकरणे चेव एवंविधे सद्द-पडिरूवपादुब्भावे चेव एकेदियकायभवं बूया । तत्थ एकेदिये पुव्वाधारिते एकेंदियं पंचविधमाधारये, तं जधापुढविक्काइके आवुक्कायिके तेवुक्कायिके वायुकायिके वणप्फतिकायिके चेति । १ अत्थकत्थकएणं हं० त० ॥ २ 'वहेणं हं० त० ॥ ३ आलोयणी हं० त० ॥ ४ युवति हं० त० विना ॥ ५ D एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ ६ “माति त० विना ॥ ७° A DO एतच्चिह्नान्तर्गत: पाठः त० नास्ति ॥ ८ "पुराकडो त० सि० ॥ ९ एक्कामाहार' त० ॥ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगविज्जापइण्णयं तत्थ दढामासे सव्वधातुजोणीगते पुढवीकायपादुब्भावे पुढविणामधेज्जोदीरणे पुढवीउवकरणगते पुढवीधातुमये उवकरणे पुढवीणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणपादुब्भावे एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-पडिरूवपादुब्भावे पुढवीकायएकेंदियकाये उपपज्जिस्सति त्ति पुढविकाइओ ते अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ पुढविक्काइये पुव्वाधारिते पुणरवि सुद्धपुढवी पत्थरपुढवी मणिपुढवी धातुपुढवी कायवंतपुढवीकायं च अधापडिरूवतो आधारयित्ता आधारयित्ता सजोणीहिं आमास5 सद्द-पडिरूवपादुब्भावेहिं चेव बूया इति पुढविकायोपपत्ती विण्णेया भवति ।। तत्थ आपुणेयेसु पाणजोणीगते सव्वउदकपादुब्भावे उदकसद्दगते य उदकणामधेज्जोदीरणे आपुजोणिकदव्वोवकरणपादुब्भावे पाणजोणीमये उवकरणे आपुजोणीणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणगते चेव आपुकायिको ते एकेदियकायिको अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ आपुकायिके पुव्वाधारिते आपुकार्य सत्तविधमाधारये, तं जधा-सायोदकं लवणोदकं मधुरोदकं वारुणोदकं खीरोदकं घतोदकं खोतोदकं ति । एताणि उदकाणि जधोवदितुहिं रस-पडिरूवोपलद्धीहि 10 आमासोपलद्धीहिं चेव उवलद्धव्वाणि भवंति । तं समासेण पुणरवि दुविधमाधारयितव्वं भवति-अंतलिक्खं भोम्मं चेति । दकाणि अंतलिक्खोपलद्धीहिं भोम्मोपलद्धीहिं चेव उवलद्धव्वाणि भवंति । तत्थ उद्धंभागेसु गत्तेसु सद्द-पडिरूवेसु चेव अंतलिक्खेसु य अंतलिक्खोदकं बूया । अधोभागेसु गत्तेसु भोम्मेसु चेव सद्द-पडिरूवेसु य भोम्ममुदकं . बूया । तत्थ भोम्मे उदके पुव्वमाधारिते तं अट्ठविधमाधारये, तं जधा-सामुद्दे णादेयं तालुकं रोढं कोप्पं पल्ललजलं पस्सवण उद्भिज्जमिति । एताहिं जधुत्ताहि उवलद्धीहिं समुद्द-णदी-तलाक-कूपादिकाणि उवलद्धीहिं 6 आमास15 सद्दपाउब्भावेहि छ उवलद्धव्वाणि भवंति इति आपुक्कायो विण्णेयो भवतीति । तत्थ अग्गेयेसु सव्वअग्गिपादुब्भावे सव्वअग्गिगते सव्वअग्गिणामगते अग्गिउवकरणेसु अग्गेयेसु उवकरणेसु अग्गिजीवणेसु अग्गेयकम्मं उपचारपादुब्भावेसु अग्गिनामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणपादुब्भावेसु चेव तेवुक्कायं उववज्जिस्सति त्ति बूया, तेवुक्कायो ते एकेंदियकायो अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ तेवुक्काये पुव्वाधारिते अणुसरीरं बादरसरीरं वा कतमं उपपज्जिस्सति ? त्ति पुणरवि आधारयितव्वं भवति । तत्थ अणूसु आमास-सद्द-पडिरूवपादुब्भावेसु 20 अणुसरीरं तेवुक्कायं उपपज्जिस्सतीति बूया । तत्थ कायवंतेसु बायरसद्द- पंडिरूव , पादुब्भावेसु चेव बादर सरीरमुपपज्जिस्सति त्ति बूया । तत्थ तेवुक्कायस्स सुभत्तमसुभत्तं चेति आधारयित्ता आधारयित्ता आमास-सद्दपडिरूव- , पादुब्भावेसु चेव णेतव्वं भवतीति इति तेवुक्कायोपपातो विण्णेयो भवति । तत्थ वायव्वेसु वाउक्कायपादुब्भावेसु वायुक्कायसद्दगते वायुक्कायणामोदीरणे वायुक्कायोपकरणेसु विजणय-तालविंटादीसु संख-पव्वत-योगणालकादिसु आतोज्जेसु वायुक्कायणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणगते चेव एवंविधे पेक्खितामासे 25 सद्द-पडिरूवगते पादुब्भावे वायुक्कायमुपपज्जिस्सति त्ति बूया, वायुक्कायो ते एकेंदियभवो अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ वायुक्काये पुव्वाधारिते वायुक्कायस्स अणुसरीरेता बादरसरीरता य सुभता असुभता य आमास-सद्द-पडिरूवपादुब्भावेहि जधुत्ताहिं उवलद्धीहिं उवलद्धव्वं भवतीति इति वायुक्कातोपपातो उवलद्धव्वो भवतीति ।। तत्थ मूलजोणिगते सव्वतण-वणस्सति-हरितपादुब्भावेहिं मूलजोणीसद्दगते मूलजोणीणामपादुब्भावे मूलजोणीउवकरणगते मूलजोणीमये उवकरणे मूलजोणीणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणगते अहोगत्तामासे सव्वखंधगते सव्वमूलगते 30सव्वबीजगते चेव एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-पडिरूवपादुब्भावे वणप्फतिकायं उपपज्जिस्सति ति बूया, वणप्फतिकायो ते एकेंदियभवो अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ वणप्फतिकाये पुव्वाधारिते तं णवविधमाधारये, तं जधा-रुक्खगतं लतागतं गुम्मगतं गुच्छगतं वलयगतं उदाणगतं तणगतं थलजहरितगतं चेति । तत्थ उद्धंभागेसु सव्वखंधगते चेव रुक्खं बूया | उज्जूसु उद्धंभागेसु य उम्मढेसु य लतायो बूया । गहणेसु गुम्मे बूया । दीहेसु कुडिलेसु य सव्वगुच्छगते १ तालुकं वोढं सं ३ पु० सि० ॥ २-३-४ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः तः एव वर्तते ॥ ५ वीजण त० ॥ ६ रस्स भावादसरीराता य त० ॥ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 सट्ठिमो उववत्तिविजयज्झाओ-उत्तरद्धं २६७ चेव गुच्छे बूया । कायवंतेसु रुक्खे बूया । मज्झिमकायेसु गुम्मे बूया । मज्झिमाणंतरकायेसु वलये बूया । पच्चवरकायेसु तणाणि हरिताणि वा बूया । आपुणेयेसु मूलजोणीसाधारणेसु थलजोणिहरिताणि बूया । सद्द-पडिरूवपादुब्भावेसु चेव सव्वाणि सरिसेहिं बूया । तत्थ वणप्फति सव्वं पुणरवि चउव्विधमाधारये-कंदगतं मूलगतं खंधगतं अग्गगतं चेति । तत्थ कंदगते कंदगता विण्णेया, मूलगते मूलगता विण्णेया, खंधगते खंधगता विण्णेया, अग्गगते अग्गगता विण्णेया भवंतीति । तत्थ अग्गगता चतुविधामाधारयितव्वा भवंति, तं जधा-पत्तगता पुप्फगता फलगता बीजगता चेति । 5 तत्थ अणूसु पुधूसु सव्वपत्तगते चेव पत्तगता विनेया । मुदितेसु सव्वपुष्फगते चेव पुप्फगता विण्णेया । पुण्णेसु सव्वफलगते चेव फलगता विण्णेया । तणूस सव्वबीयगते चेव बीयगता विण्णेया । तत्थ एसा वणप्फती दुविधा समासेण-जलजा थलजा चेव । णवविधा रुक्खादिकेण वित्थारेणं । पुणरवि चउविधा समासेणं-कंदगता मूलगता खंधगता अग्गगता चेव । जधुत्ताहिं उवलद्धीहिं आमास-सद्द-पडिरूवसमुत्थिताहिं विण्णेया आधारयित्ता आधारयित्ता उवलद्धव्वा भवंति । इति वणप्फतिउपपातो विण्णेयो भवतीति । तत्थ दंडोदीरणे दंडेसु गत्तेसु जमलाभरणके यमलोपकरणे यमलपीतिकरणे मेधुणचरेसु सत्तेसु सव्वबियपादुब्भावे F बैंइंदियसत्तपादुब्भावे के सव्वबिइंदियसद्दगते बिइंदियणामोदीरणे बिइंदियोपकरणे बिइंदियसरीरमये उवकरणे बिइंदियणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणगते एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-पडिरूवगते बिइंदियकाये उपपज्जिस्सति त्ति बूया, बिइंदियकायो ते अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया इति बिइंदियोपपातो विण्णेयो भवति । तत्थ तिकपादुब्भावेसु भुमकंतरे णासग्गे सिंघाडगे सव्वतिकपादुब्भावेसु तिइंदियसत्तपादुब्भावे तिइंदियणामधेज्जोदीरणे तिइंदियोपकरणे तिइंदियसरीरमये 15 उवकरणे तिइंदियणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणगते पादुब्भावे एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-पडिरूवपादुब्भावेहिं तिइंदियोपपज्जिस्सतीति तिइंदियभवो ते अणंतरपुरक्खडो भविस्सतीति बूया इति तेइंदियोपपातो भवतीति विण्णेयो । तत्थ चउक्केसु सव्वचउक्कवग्गपादुब्भावे सव्वचउरिदियसत्तपादुब्भावे सव्वचउरिदियसद्दगते चउरिदियणामधेज्जोदीरणे चउरिदियउवकरणे चउरिदियमते उवकरणे चउरिदियणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणपादुब्भावे चउरिदियसद्दपडिरूवपादुब्भावे चेव चतुरिंदियभवो ते अणंतरपुरक्खडो त्ति इति चतुरिंदियोपपातो भवतीति । 20 तत्थ बेइंदिये संख-संखणग-सिप्पिका-जलाउ-दककिमी-णीपुर-सुमंगल-संबुक्कादयो एवंविधा फासिंदियजिब्भिदियोपपेता विण्णेया भवंतीति । तिइंदिया उ जुगलिका–उप्पाडक-उप्पातक-तणहारक-पत्तहारक-कुंथुपिपीलिका-उपचिकरोहणिक-तेवरुक-तपुस-मिजिक-पातिक-साहिक-सतप्पाय-गोम्मि-हत्थसोंडक-कडमच्छादयो एवंविधा [फासिदिय-जिब्भिदिय-घाणिदियोपपेता विण्णेया भवंति । तत्थ चउरिदिया.............. .............दयो] फासिंदिय-जिभिदिय-घाणिदिय-चक्खिदियउपपेता विण्णेया भवंति । एते णं जीवा तसकायिका सम्मुच्छणसंभवा, 25 ण एतेसिं गब्भोपपत्ती विण्णेया, एते णं पच्चवरकायेसु खुड्डुजोणी विण्णेया । एतेसिं णपुंसकजोणीयो सीत-उसुणसीतोसण-साधारणातो सरीरसाणाणि वण्णोपलद्धीतो अपद-बहुपदग्गं खेत्तोपपातविसेसा उद्धमधो तिरियं च दिसापविभागा उग्गविसता मंदविसया णिव्विसया तोपभोगतो अणोपभोग्गतो सुभत्तं असुभत्तं च यधुत्ताहिं 6 आमास-सद्दपडिरूवोपलद्धीहिं क आधारयित्ता आधारयित्ता उवलद्धव्वं भवतीति । एते व णं तसा बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिया बायरा य काया एकेंदिया सव्वे णपुंसका विण्णेया भवंतीति । 30 तत्थ पंचकामासे पंचकपादुब्भावे सव्वपंचेंदियगते सव्वपंचेंदियोपकरणे सव्वपंचेंदियतिरिक्खजोणिकसरीरमये उवकरणे सव्वपंचेंदियतिरिक्खजोणिकणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणगते एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-पडिरूवपादुब्भावे चेव पंचेंदियतिरिक्खजोणीयं उपपज्जिस्ससि त्ति बूया, पंचेंदियतिरिक्खजोणीकभवो ते अणुंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ १ मिदितेसु त० विना । २ रणेसु गत्तेसु त० विना । ३ हस्तचिह्नान्तर्गतः पाठः त० एव वर्तते ॥ ४ जंग त० ॥ ५ “या ओपभोग्गया अणोपभोग्गया सुत० ॥ ६ हस्तचिह्नान्तर्गत: पाठः त० एव वर्तते ॥ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ अंगविज्जापइण्णयं पंचेंदियतिरिक्खजोणीयं पुव्वाधारितायं पंचेंदियतिरिक्खजोणी पंचविधा आधारयितव्वा भवति, तं जधा-पक्खिगता चतुप्पदगता सरीसिवगता परिसप्पगता जलचरगता चेति । एस पंचविधा वि पंचेंदियतिरिक्खजोणीयं जधा पुव्वचिंतितायं उवदिट्ठा समास-वित्थरेहिं आमास-सद्द-रूवपादुब्भावोपलद्धीहिं तधा सव्वा समणुगंतव्वा भवतीति । एवं पंचेंदियतिरिक्खजोणीकउपपातो उवलद्धव्वो भवतीति । भवंति चावि एत्थं गाहाओ, तं जधा5 तिरियं गत्ताणि आमसति तिरियं वा वि विपेक्खति । तिरिच्छागमणे चेव तिरिच्छागमणेसु य ॥ १ ॥ उवधी-णियडिजोगेसु सातिजोगमणज्जवे । तिरिक्खजोणीसमुप्पाते तेरिच्छसद्दरूविते ॥ २ ॥ तिज्जजोणिसणामके थी-पुमंसे उवक्खरे । एरिसे सद्द-रूवम्मि तिज्जजोणिकमादिसे ॥ ३ ॥ तत्थ उज्जुकामासे उज्जुकपेक्खिते उज्जुकोपगमणे उज्जुकवापगते सव्वणिरुवहितगते सव्वअणुकूलगते सव्वमाणुसगते सव्वमाणुसपडिरूवगते माणुससद्दगते माणुस्सणामपादुब्भावे मणुस्सोवकरणगते मणुस्सकम्मोवयारगते 10 माणुसकम्मोवयारपरिकित्तणासु चेव एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-रूवपादुब्भावेसु चेव मणुस्सभवं उपपज्जिस्सति त्ति मणुस्सभवो ते अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ मणुस्सभवे पुव्वाधारिते मणुस्सा आरिया मिलक्खू अज्जा पेस्सा थी-पुरिस-णपुंसक-सिप्प-कम्म-विज्जा-खेत्तोववातविसेसेहिं चेव एवमादीकेहिं उक्कस्स-मज्झिम-जहण्णकेहिं उवलद्धीहिं जधा जातीविचये उवदिटुं आमास-सद्द-पडिरूवपादुब्भावोपलद्धीहिं तधा सव्वमाधारयित्ता आधारयित्ता सम्म समणुगंतव्वं भवतीति । भवंति वा वि एत्थ गाहाओ15 उज्जुगत्तसमामासे उज्जुकोवकरणम्मि य । उज्जुकं पेक्खिते चेव उज्जुभावगतेसु य ॥ १ ॥ सव्वज्जवोपयोगेसु ववहारम्मि य उज्जुके । उज्जुकम्मोपचारे य स माणुसाणं च दंसणे ॥ २ ॥ समे सद्दोवकरणे उवचारे य माणुसे । माणुसे पडिरूवे य माणुसं भवमादिसे ॥ ३ ॥ एवं मणुस्सभवोपपातो विण्णेयो भवतीति । तत्थ उद्धंगीवाय सिरोमुहामासे उल्लोकिते उम्मटे उपहसिते उस्सिते उट्ठिते एकंसाकरणे छत्त-भिंगार-आदंस20 पताका-लोमहत्थ-वीजणि-वासण-कड़कपादुब्भावे वंदिते पूजिते सक्कते संथुते अच्चिते पणमिते अभिवादिते सेसा जोगजण्ण-बलिहरणगते सव्वपहेण-गंध-मल्ल-धूप-लापण्णकपयोगगते चेव सव्वदेवागारगते देवणामोदीरणे देवतोपचारे देवकम्मपरिकित्तणासु सव्वदेवणामधेज्जे थी-पुरिसउवकरणगते एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-रूव-रस-गंधफासदिव्वियपादुब्भावे देवभवं उप्पज्जिस्सतीति देवभवो ते अणंतरपुरक्खडो त्ति बूया । तत्थ देवभवे पुव्वाधारिते देवाणं णिकायविसेसा व आधिवच्चविसेसा - सामाणिकविसेसा परिसाविसेसा स लैंसाविसेसा 2 खेत्तविसेसा 25 आभिजोग्गिकविसेसा थी-पुरिसविसेसा भावणाविसेसा जहा देवज्झाए उवइट्ठो तहा नेयव्वं भवइ । उवलद्धीयं पि आमास-सद्द-पडिरूव–णामपादुब्भावेहिं तव्वं भवतीति । भवंति चापि एत्थं गाहाओ उद्धं गीवाय गत्ताणि आमसंतो तु पुच्छति । उल्लोकंतो जो जं तु गत्तमुम्मज्जए तु जो ॥ १ ॥ एगंसाययकरणे छत्त-भिंगारदसणे । पताका-वेजयंतीणं पहेणाणं च दंसणे ॥ २ ॥ देवकम्मोपचारेसु देवकम्मकधासु य । देवोपपातं जाणीया पादुब्भावे य तारिसे ॥ ३ ॥ एवं देवोपपातो विण्णेयो भवतीति । तत्थ दिव्वजोणीयं अत्ताणं उम्मज्जणाय उत्तमढेसु उत्तमेसु सव्वमोक्खेसु सव्वअसंखतेसु सव्वविसंजोगेसु सव्वमोक्खोपायकधासु सव्वमोक्खसत्थोदीरणासु सव्वसिद्धिगते सव्वणिव्वुयगते सव्वतिण्णगते सव्वअरुजगते - सव्वअकम्मगते सव्वमुक्कगते < सव्वअयोगगते सव्वपरिसुद्धगते चेव एवंविधे पेक्खितामासे सद्द-रूवपादुब्भावसु 30 १ आयरिया त०॥ २-३-४ <2 एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः त० नास्ति ॥ ५ उल्लंकंतो जो तं तु गत्त सम्म त० ॥ ६-७ एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः हं० त० नास्ति ॥ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सट्ठिमो उववत्तिविजयज्झाओ-उत्तरद्धं चेव सिद्धि उपपज्जिस्ससि त्ति बूया, सिद्धिभावो ते अणंतरपुरक्खडो ति बूया । भवंति चावि एत्थं गाहाओ गत्ताणि देवजोणीयं उम्मज्जंतो तु पुच्छति । मोक्खेसु वा वि सव्वेसु उम्मढे उत्तमम्मि य ॥ १ ॥ सिद्धो मुत्तो त्ति तिण्णो त्ति णीरयो णिव्वुतो ति य । असंगो केवली बुद्धो असरीरकधासु य ॥ २ ॥ अकम्मो णिप्पयोगो त्ति सद्देसेवंविधेसु य । [...............] सिद्धिभावं पवेदयेदिति ॥ ३ ॥ इति सिद्धोपपत्ती अपुणब्भवा विण्णेया इति ॥ ॥ इति खलु भो ! महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय उपपत्तीविजयो णामऽज्झायो सट्ठितिमो सम्मत्तो ॥ ६० ॥ णमो भगवतो अरहतो यसवतो महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । णमो भगवतीय महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय • सहस्सपरिवाराय भगवतीय अरहंतेहि अणंतणाणीहि उवदिट्ठाय अणंतगमसंगहसंजुत्ताय पण्णसमणसुतणाणि-बीजमतिअणुगताय अणंतगमपज्जायाय ॥ णमो अरहंताणं । णमो सिद्धाणं । णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं । णमो लोए सव्वसाहूणं ॥ णमो भगवतीए सुतदेवताए ॥ छ ॥ ग्रंथाग्रम् ९००० ॥ छ । 10 ॥ अंगविज्जा[ पइण्णयं] संपुण्णं ॥ १ सिद्धमु त० विना || २ असंसारकधा त० विना ॥ ३ ग्रंथाग्रम् ८८०० ॥ अंगविद्यापुस्तकं समाप्तम् ॥ त० ॥ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टानि प्रथमं परिशिष्टम् ॥ जयन्तु वीतरागाः ॥ सटीकं अङ्गविद्याशास्त्रम् ....तानां कालोऽन्तरात्मा सर्वदा सर्वदर्शी शुभाशुभैः फलसूचकैः सविशेषेण प्राणिनामपराङ्गेषु स्पर्श-व्याहारेङ्गितचेष्टादिभिर्निमित्तैः फलमभिदर्शयति । तत्प्रयतो दैवज्ञोऽप्रहतमतिरवधार्य स्वशास्त्रार्थमनुसृत्य यशोवर्त्मानुग्रहार्थमर्थिनां शुभा - शुभानां भावा- भावमभिनिर्दिशेत् । तत्र दिशं दिशः कालं, व्या[हा] रद्रव्यदर्शनम् । अङ्गप्रत्यङ्गस्पर्शनं समीक्ष्य फलमादिशेत् ॥ १ ॥ इति ॥ १ ॥ स्थानं पुष्पसुहासिभूरिफलभृत्सुस्निग्धकृत्तिच्छदाऽसत्पक्षिच्युतशस्तसंज्ञिततरुच्छायोपगूढं समम् । देवर्षि - द्विज- साधु - सिद्धनिलयं सत्पुष्प - सस्योक्षितं, सत् स्वादूदकनिर्मलत्वजनिताह्लादं च सच्छाड्वलम् ॥ २ ॥ एवंविधं स्थानं 'सत्' पृच्छायां शुभदमित्यर्थः । कीदृशम् ? एवंविधानां तरूणां - वृक्षाणां या छाया तयोपगूढंछन्नम् । कीदृशानाम् ? ‘पुष्पसुहासि' पुष्पाणि - कुसुमानि शोभनो हासो येषां ते पुष्पसुहासिनः । तथा भूरीणि- प्रभूतानि फलानि [बिभ्रति-] धारयन्ति ये ते भूरिफलभृतः । सुस्निग्धा कृत्तिः - त्वक् छदानि - पर्णानि येषां ते सुस्निग्धकृत्ति— च्छदाः । तथा असत्पक्षिभिः - अनिष्टविहगैः काकोलूकादिभिश्च्युताः - रहिताः । तथा शस्तसंज्ञिता:- प्रशस्तनामानो ये पलाश-पिप्पल–न्यग्रोध- बिल्वप्रभृतयः । तथा 'समं' निम्नोन्नतावनिरहितम् । 'देवर्षीति' देवा:- सुरा ऋषयः - मुनयो द्विजाः विप्राः साधवः–सन्तः सिद्धाः - देवयोनय एतेषां यन्निलयं - स्थानम् । तथा सत्पुष्पैः - सुगन्धैः कुसुमैः सस्यैश्चधान्यादि–भिर्युतं उक्षितं— सेवितं शुभम् । तथा 'स्वादूदकनिर्मलत्वजनिताह्लादं च' स्वादु - मृष्टं यदुदकं - जलं निर्मलंप्रसन्नं च तद्भावेन जनितं - उत्पादितं आह्लादं - चित्तहर्षम्, यत् तथाभूतेनोदकेन युक्तम् । 'सच्छाड्वलं' शोभनदूर्वायुक्तं तत् सदिति । तथा च परासरः - " अथ पुष्पितफलितहरितस्निग्धत्वक्पत्रनामाङ्कितसौम्यद्विजवरनिषेविततरुच्छायोपगूढे सस्यकुसुम-रहितमृदुशाड्वलासिक्तमृष्टहृद्यप्रसन्नसतिलाशयेऽवकाशे देवर्षिसिद्धसाधू........ . पूर्वाभिमुखो वा यः पृच्छेत् तस्य प्रार्थितार्थोपपत्तिमेभिर्निर्दिशेत् ॥ २ ॥ अथ [ अ ]शुभस्थानप्रदर्शनार्थमाह छिन्न-भिन्न - कृमिखात - कण्टकि- प्लुष्ट- रूक्ष- कुटिलैर्न सत्कुजैः । क्रूरपक्षियुतनिन्द्यनामभिः शुष्कशीर्णबहुपर्णचर्मभिः ॥ ३ ॥ एवंविधैः कुजैः-वृक्षैर्युतं असत् । कीदृशैः ? छिनैः - कल्पितैः, भिन्नैः - कुटिलैः, कृमिखातैः -- कीटक्षितैः, कण्टकिभिः - सकण्टकैः, प्लुष्टैः- दुष्टैः रूक्षैः-अस्निग्धैः, कुटिलैः - अस्पष्टैर्न शोभनैः । कौ - भूमौ जायन्त इति कुजाः । तथा क्रूरैः - अनिष्टैः पक्षिभिः– विहगैः काक- गृध्र- बकाद्यैर्युक्तैः निन्द्यनामभिः - कुत्सितसंज्ञैः बिभीतक ........ शुष्कैः - नीरसैः । तथा शीर्णानि - च्युतानि बहूनि पर्णानि - प्रभूतानि पत्राणि चर्माणि - त्वचो येषां ते ॥ ३ ॥ [ अन्यद] प्याहश्मशान - शून्यायतनं चतुष्पथं तथाऽमनोज्ञं विषमं सदोषरम् । 1 अवस्करा - ऽङ्गार-कपाल - भस्मभिश्चितं तुषैः शुष्कतृणैर्न शोभनम् ॥ ४ ॥ एवंविधं स्थानं पृच्छायां न शोभनम् । कीदृशम् ? श्मशानं-शवशयनप्रदेशः । शून्यायतनं- उद्वासितदेवगृहम् । 'चतुष्पथं' चत्वारः पन्थानो यत्र । तथा 'अमनोज्ञं' न चित्ताह्लादकम् । विषमं - निम्नोन्नतम् । सदा-सर्वकालमूषरं१ ग्रन्थोऽयमाद्यन्तविरहितः खण्डित एव प्राप्तोऽस्ति, अतो नामाप्यस्येदं मत्परिकल्पितमेव ज्ञेयमिति ॥ For Private Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७१ अङ्गविद्याशास्त्रं सटीकम् । सिकतासंयुक्तम् । अवस्करैः - गृहमुक्तैरशुचिभिरनुपयोग्यैर्भाण्डैश्चितं - व्याप्तम् । तथाऽङ्गारकैः - दग्धकाष्ठैः कपालैः - अस्थिसफालैः भस्मना च चितं युक्तम् । तथा तुषैः - धान्यचर्मभिः शुष्कैः - नीरसैस्तृणैश्चितं न शोभनमिति ॥ ४ ॥ अन्यदप्याह प्रव्रजित - नग्न - नापित-रिपु- बन्धन - सौनिकैस्तथा श्वपचैः । कितव-यति-पीडितैर्युतमायुध - माक्षीकविक्रयादशुभम् ॥ ५ ॥ एवंविधं स्थानं पृच्छायामशुभम् । प्रव्रजितः - तापसो लिङ्गी । नग्नः - विवस्त्रः । नापितः - दिवाकीर्तिः शिल्पी सूत्रधारप्रभृति । रिपुः - शत्रुः । बन्धनं- बन्धशाला । सौनिकः - पशुघातकः । एतैर्युक्तं स्थानम् । तथा श्वपचै: - चाण्डालैः । कितवः–द्यूतकारकः । यतिः - त्रिदण्डी । पीडितो रोगादिना । एतैर्युक्तं स्थानम् । तथाऽऽयुधं आयुधशाला यत्र, माक्षीकंमधु तद्विकयशाला कल्पपालगृहसमीपाद्धेतोरशुभमिति ॥ ५ ॥ अथ दिक्काललक्षणमाह प्रागुत्तरेशाश्च दिशः प्रशस्ताः प्रष्टुर्न वाय्वम्बु - यमा - ऽग्नि- रक्षः । पूर्वाह्नकालेऽस्ति शुभं न रात्रौ सन्ध्याद्वये प्रश्नकृतोऽपराह्ने ॥ ६ ॥ दिश:- आशाः प्राक् - पूर्वा उत्तरा ऐशानी च पृच्छायां 'प्रशस्ताः शुभाः 'प्रष्टुः' पृच्छकस्य, तदभिमुखः शुभ इत्यर्थः । 'वाय्वम्बुयमाग्निरक्षः ' वायवी वारुणी दक्षिणाऽऽग्नेयी नैर्ऋती च न शस्ताः, न शुभाः एता दिशः प्रष्टुः । 'पूर्वाह्नकाले' दिनप्राग्भागसमये 'प्रश्नकृत:' पृच्छकस्य 'शुभं' शोभनफलमस्ति विद्यते, 'रात्रौ' निशि ['सन्ध्याद्वये'] सायं प्रातः अपराह्णे च न शुभमिति । तथा च परासरः- “छिन्नभिन्नशुष्करूक्षवक्र ........दग्धकण्टकक .. द्विज........ षिधिनाः प्रशस्तनामाङ्कितपादपच्छायश्मशानवन्यायतनबन्धरोषितरिपुनापितायुधमद्यविक्रय.......... सु नैर्ऋताग्नेययाम्यवारुणवायव्याशाभिमुखः प्रचोदयेत्, स्पष्टमर्थमनर्थाय विन्द्यात्" । अपि च वेलाः सर्वाः प्रशस्यन्ते पूर्वाह्ने परिपृच्छताम् । सन्ध्ययोरपराह्ने तु क्षि (क्ष) पायां च विगर्हिता ॥ १ ॥ इति ॥ ६ ॥ अन्यदप्याह यात्राविधाने च शुभाशुभं यत् प्रोक्तं निमित्तं तदिहापि वाच्यम् । दृष्ट्वा पुरो वा जनताहृतं वा प्रष्टः स्थितं पाणितलेऽथ वस्त्रे ॥ ७ ॥ यात्राविधाने यत् शुभाशुभं 'प्रोक्तं' कथितम्, “सिद्धार्थका - ऽऽदर्श - पयो - ऽञ्जनानि" इति शुभदम्, "कर्पासौषधकृष्णधान्यम्” इत्यशुभम् । तथा तत्र शाकुनं यन्निमित्तं 'प्रोक्तं' कथितं तद् 'इहापि' प्रश्नसमये 'वाच्यं' वक्तव्यम् । 'पुरो' अग्रतो वा दृष्ट्वा य..... नो वरजनता - जनसमूहः तया आहृतं - आनीतं 'प्रष्टुः' पृच्छकस्य 'पाणितले' हस्ते 'वस्त्रे' अम्बरे वा स्थितं दृष्ट्वा शुभमादिशेदिति । तथा च परासर: यात्राविधाने निर्दिष्टं निमित्तं यच्छुभाशुभम् । तदेव दृष्ट्वा दैवज्ञो वाञ्छासिद्धिं विनिर्दिशेत् ॥ १ ॥ ७ ॥ अधुना अङ्गानि पुंसंज्ञकान्याह अथाङ्गान्यूर्वोष्ठ—-स्तन-वृषण - पादं च दशना, भुजौ हस्तौ गण्डौ कच - गल - नखा - ऽङ्गुष्ठमपि यत् । सशङ्खं कक्षांसं श्रवण - गुद- सन्धीति पुरुषे, स्त्रियां भ्रू-नासा-स्फिग् - वलि - कटि - सुलेखा - ऽङ्गुलिचयम् ॥ ८ ॥ अथैतानि पुंसंज्ञकान्यङ्गानि भवन्ति - ऊरू ओष्ठौ स्तनौ वृषणौ - मुष्कौ पादौ चरणौ ' दशनाः' दन्ताः 'भुजौ' बाहू 'हस्तौ' करौ ‘गण्डौ' मुखकपोलौ कचाः केशाः गलः–कण्ठः नखाः-कररुहाः अङ्गुष्ठौ – हस्तपादाङ्गुष्ठौ, एतत् सर्वं यत्तदपि 'पुरुषे' पुंसि । कक्षौ प्रसिद्धौ, अंसौ-स्कन्धौ श्रवणौ-कण, गुदं - पायुस्थानं सन्धिग्रहणे सर्वाङ्गसन्धय उच्यन्ते, 'इति' एवं प्रकाराः सर्व एव पुरुषे पुंसि ज्ञेयाः । तथा च परासरः -" तथाङ्गानि मुष्क— For Private Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ प्रथमं परिशिष्टम् स्तन – पादा—ऽङ्गुष्ठोरु—गुह्य- भुज- हस्त-मस्तक - कर्णा - ऽक्षि-कक्ष - शङ्ख- दन्ता - ऽङ्गुष्ठौष्ठं नख - गल-स्कन्ध- गण्डं केशसन्धयः पुरुषाख्यानीति । अथ स्त्रीसंज्ञानाह - 'स्त्रियां' इति एतान्यङ्गानि स्त्रियां भवन्ति । भ्रुवौ प्रसिद्धे । नासाघ्राणम् । स्फिजौ - प्रसिद्धौ । वली - लेखा, यथा त्रिवली । कटिः- प्रसिद्धा । सुलेखा - शोभनलेखा करमध्यस्था । अङ्गुलिचयं - अङ्गुलिसमूहः ॥ ८ ॥ अन्यानपि स्त्रीसंज्ञानाह जिह्वा ग्रीवा पिण्डिके पाष्णियुग्मं जसे नाभिः कर्णपाली कृकाटी । वक्त्रं पृष्ठं जत्तु जान्वस्थि पार्श्व हृत्ताल्वक्षि स्यान्मेहनोरस्त्रिकं च ॥ ९ ॥ 'जिह्वा' रसना । 'ग्रीवा' कृकाटिका । 'पिण्डिके' जङ्घयोः पश्चिमभागौ । 'पाष्र्णी' चरणयोः पश्चिमभागौ 'जङ्गे' प्रसिद्धे । 'नाभिः' तुन्दः । 'कर्णपाली' प्रसिद्धा । 'कृकाटी' ग्रीवापश्चिमभागः । [.......] ॥ ९ ॥ नपुंसकाख्यं च शिरो ललाटमाश्वाद्यसंज्ञैरपरैश्चिरेण । सिद्धिर्भवेज्जातु नपुंसकैर्नो रूक्ष-क्षतैर्भग्न- कृशैश्च पूर्वैः ॥ १० ॥ अथ 'शिरः' मस्तकम् । 'ललाटं' मुखपृष्ठम् । एतत् सर्वं नपुंसकाख्यम् । तथा च परासरः- “शिरो - ललाटमु..... बु..... पृष्ठ - जठर- जत्तु – जान्वस्थि- पार्श्व - हृदय - कर्णपीठा - ऽक्ष — मेहनोरस्त्रिक-ताल्विति नपुंसकाख्यानि" । 'आद्यसंज्ञैः ' प्रथमत उक्तैः पुन्नामभिः स्पृष्टैः 'आशु' क्षिप्रमेव सिद्धिः 'स्याद्' भवेत् । 'अपरैः' तदनन्तरोक्तेः स्त्रीनामभिश्चिरगा सिद्धिर्भवेदिति । नपुंसकैः स्पृष्टैः 'न जातु' न कदाचित् सिद्धिः स्यात् । 'रूक्ष - क्षतैर्भग्न- कृशैश्च पूर्वै:' इति, नेत्यनुवर्तते, पूर्वैः पुंनामभिः स्त्रीनामभिर्वा रूक्षैः - अस्त्रिग्धैः क्षतैः - सप्रहारैः भग्नैः - स्फुटितैः कृशैश्चअल्पमांसैर्नजातु सिद्धिः । तथा च परासरः - " तत्र पुन्नामभिरस्निग्धमनुपहतमरोगमङ्गं स्पृष्टं दिग्देश-काल- व्याहारेष्टदर्शननिरुपहतप्रष्टुः पृच्छार्थे सकलमभिवर्तयति, स्त्रीसत्कमपि पूर्वोक्तलक्षणमुक्तं तत् कालान्तरेणासकलम् । नपुंसकाख्यमकार्यसिद्धिमनर्थानां च गमनं कुर्यात् । अपि च भवति यात्र पुंसंज्ञेष्वाशु सिद्धिः स्यात् स्त्रीसंज्ञेषु चिराद् भवेत् । अशुभं त्वेव निर्दिष्टं नपुंसकसनामसु ॥ १ ॥ पुरुषाख्येऽपि संस्पर्शे बाह्ये रूक्षे च लक्षिते । नार्थसिद्धिमथो ब्रूयादङ्गविद्याविशारदः ॥ २ ॥” इति ॥ १० ॥ अथ पृथक् पृथक् फलनिर्देशार्थमाह स्पृष्टे वा चालिते वाऽपि पादाङ्गुष्ठेऽक्षिरुग् भवेत् । अङ्गुल्यां दुहितुः शोकं शिरोघाते नृपाद् भयम् ॥ ११ ॥ तत्र पृच्छायां पादाङ्गुष्ठे चालिते स्पृष्टे वा प्रष्टुः 'अक्षिरुग्' नेत्रपीडा 'स्याद्' भवेत् । अङ्गुल्यां स्पृष्टायां दुहितुः शोकं वदेत् । ‘शिरोघाते' शिरोऽभिहत्य पृच्छेत् तदा 'नृपाद्' राजतो भयं ब्रूयात् । अथ पृथक् पृथक् फलनिर्देश:तत्र पादाङ्गुष्टं प्रचालयन् स्पृष्ट्वा वा पृच्छेत् तत्प्रष्टुश्चक्षुरोगं विनिर्दिशेत् अङ्गुलीं स्पृष्ट्वा दुहितृशोकम्, शिरसि हन्यमाने राजभयम् ॥ ११ ॥ अन्यदप्याह विप्रयोगमुरसि स्वगोत्रतः कर्पटाहृतिरनर्थदा भवेत् । स्यात् प्रियाप्तिरभिगृह्य कर्पटं पृच्छतश्चरण-पादयोजितुः ॥ १२ ॥ ...। 'कर्पट' ..........सह विप्रयोगं प्रवदेत् 'स्वगोत्रतः' आत्मीयवर्गात् । 'कर्पटाहृतिः' वस्त्रत्यागः 'अनर्थदा'.. वस्त्रं 'अभिगृह्य' प्राप्य चरणं पादं पादे द्वितीये चरणे योजयति तस्य 'पृच्छतः ' प्रष्टुः प्रेयलाभः स्यात् । तथा च परासरः——‘उरः स्पृष्ट्वा विप्रयोगं गोत्रात्, वस्त्रमृत्सृजतोऽनर्थागमम्, पादं पादेन संस्पृशेत् पटान्तमभिगृह्य वा पृच्छेत् प्रियसमागमं विद्यात् ॥ १२ ॥ अन्यदप्याह पादाङ्गुष्ठेन विलिखेद् भूमिं क्षेत्रोत्थचिन्तया । हस्तेन पादौ कण्डूयेत् तस्य दासीमया च सा ॥ १३ ॥ प्रष्टा क्षेत्रोत्थचिन्तया पादाङ्गुष्ठेन 'भूमि' भुवं विलिखेत्, 'हस्तेन' करेण पादं कण्डूयेत् तदाऽस्य 'सा' चिन्ता For Private Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७३ अङ्गविद्याशास्त्रं सटीकम् । 'दासीमया' दासीकृता । तथा च परासर:-"अङ्गष्ठेन भूमि विलिखेत् क्षेत्रचिन्तां विजानीयात्, हस्तेन पादौ कण्ड्रयेद दासीकृता च सा" ॥ १३ ॥ अन्यदप्याह ताल-भूर्जपटदर्शनेंऽशुकं चिन्तयेत् कच-तुषा-ऽस्थि-भस्मगम् । व्याधिराश्रयति रज्जु-जालकं वल्कलं च समवेक्ष्य बन्धनम् ॥ १४ ॥ तालवृक्षपत्रदर्शने भूर्जपटदर्शने वा प्रष्टा 'अंशुकं' वस्त्रं चिन्तयेत् । 'कचतुषा-ऽस्थि-भस्मगं व्याधिराश्रयति' कचा:-केशा: तुषं-धान्यवर्म अस्थि-प्रसिद्धम्, भस्म, एषामन्यतमस्योपरिगतं प्रष्टारं 'व्याधिः' पीडा आश्रयति । रज्जुःप्रसिद्धा, जालक-यत्र मत्स्य-पक्षिणो बध्यन्ते तदेव तत्सदृशं वा, 'वल्कलं' त्वक्, एषामन्यतमस्थं वा 'समवेक्ष्य' अवलोक्य गृहीत्वा वा पृच्छेत् तदा बन्धनं वदेत् । तथा च परासर:-"ताल-भूर्जपत्रदर्शने वस्त्रार्थे, केशाऽस्थिभस्मनाऽऽकम्य व्याधिभयं ब्रूयात्, निग(मृग)जाल-रज्जु-सिक्थ-वल्कलान्यधिष्ठाय दर्शने वा बन्धनं मतम्" ॥ १४ ॥ अन्यदप्याह पिष्पली-मरिच-सुण्ठि-वारिदै रोध्र-कुष्ठ-वसना-ऽम्बु-जीरकैः । गन्धमासि-शतपुष्पया वदेत् पृच्छतस्तगरकेन चिन्तनम् ॥ १५ ॥ स्त्री-पुरुषदोष-पीडित-सर्वा-ऽध्व-सुता-ऽर्थ-धान्य-तनयानाम् । द्वि-चतुःशफ-क्षितीनां विनाशतः कीर्तितैदृष्टैः ॥ १६ ॥ पिष्पलीति । पिष्पल्यादिदर्शने स्त्र्यादिचिन्तां क्रमशो व्यपदिशेत् । तत्र पिष्पलीदर्शने या स्त्री दोषदुष्टा सदोषा तत्कृतां चिन्ता वदेत् । मरिचदर्शने दोषयुतस्य सपापस्य पुरुषस्य चिन्तां प्रवदेत् । सुण्ठिदर्शने पीडितस्य-व्याधितस्य मृतस्य चिन्तां वदेत् । वारिदा-मुस्ता तेषां दर्शने सर्वनाशकृताम् । रोध्रदर्शने अध्वनाशकृताम् । कुष्ठदर्शने सुतनाशकृतांपुत्रनाशजाम् । वसनं-वस्त्रं तद्दर्शने अर्थनाशकृताम् । अम्बुदर्शने धान्य[नाश] कृताम् । जीरकदर्शने तनयस्य-पुत्रस्य नाशकृताम् । गन्धमांस्या द्विशफानां-द्विपदनाशकृताम् । शतपुष्पया चतुःशफानां-चतुष्पदविनाशकृताम् । तगरेण क्षितेःभूमेः नाशकृताम् । एतैः 'कीर्तितैः' उच्वरितैर्वा 'दृष्टैः' अवलोकितैर्वा विनाशहेतोः पृच्छा भवति । तथा च परासर:"पिप्पलीनां दर्शने प्रदुष्टस्त्रीकृतां चिन्ताम्, मरीचकस्य पापपुरुषकृताम्, शृङ्गबेरस्य मृतचिन्ताम्, अजाज्याः सुतनाशकृताम्, रोधस्याध्वनाशकृताम्, मुस्तस्य सर्वनाशकृताम्, कुष्ठस्य सर्वनाशकृताम् वसनस्यार्थनाशकृताम्, तगरस्य भूमिनाशकृताम्, शतपुष्पायाश्चतुष्पान्नाशकृताम्, मांस्या द्विपदनाशाम्" ॥ १५ ॥ १६ ॥ अन्यदप्याह न्यग्रोध-मधुक-तिन्दुक-जम्बू-प्लक्षा-ऽऽम्र-बदरजातफलैः । धन-कनक-पुरुष-लोहां-ऽशुक-रूप्योदुम्बराप्तिरपि करगैः ॥ १७ ॥ 'न्यग्रोधादिजातफलैः' तत्सम्भवैः फलैः 'करगैः' हस्तस्थैः धनाद्याप्तिर्भवति । तत्र न्यग्रोधजातफलैः प्रष्टुर्हस्तस्थैर्धनाप्तिः-वित्तलाभो भवति । मधुकफलैः कनकस्य-स्वर्णस्याप्तिः । तिन्दुकफलैः द्विपदस्य-पुरुषस्याप्तिः । जम्बूफलैर्लोहस्य । प्लक्षफलैः अंशुकस्य-वस्त्रस्य । आम्रफलैः रूप्यस्य । बदरफलैरुदुम्बरस्य–ताम्रस्येति । तथा च परासर:-"अथ न्यग्रोधफलैर्हस्तस्थैः पृच्छेद् धनागममादिशेत्, मधुकोदुम्बरफलैः काञ्चनागमम्, द्विपदागमं तिन्दुकैः, वस्त्रागमं प्लक्षजैः, रूप्यस्य आनैः, ताम्रस्य बदरैः, लोहस्य जाम्बवैः" इति ॥ १७ ॥ अन्यदप्याह धान्यपरिपूर्णपात्रं, कुम्भः पूर्णः कुटुम्बवृद्धिकरः । गज-गो-शुनां पुरीषं, धन-युवति-सुहृद्विनाशकरम् ॥ १८ ॥ धान्यपरिपूर्णं पात्रं कुम्भः पूर्णः कुटुम्बवृद्धिकरः । 'गज-गो-शुनां पुरीषं धन-युवति-सुहृद्विनाशकरं' गजानांहस्तिनां 'परीषं' विष्ठा गवां परीषं च शनां-सारमेयानां पुरीषं धनस्य-ऐश्वर्यस्य युवतीनां-स्त्रीणां व्यभिचारं सुहृदां च विनाशं करोति ॥ १८ ॥ अन्यदप्याह Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ प्रथमं परिशिष्टम् पशु-हस्ति-महिष-पङ्कज-रजत-व्याघेर्लभेत सन्दृष्टैः । आविक-धन-निवसन-मलयज-कौशेया-ऽऽभरणसङ्घातम् ॥ १९ ॥ पश्वादिभिः पृच्छासमये 'सन्दृष्टैः' अवलोकितैः अव्याद्याभरणसङ्घात-समूहं प्रष्टा लभेत । तत्र पशुदर्शने आविकस्य-औणिकस्य कम्बलादेर्लाभः । हस्तिन:-करिणो दर्शने धनागमः । महिषदर्शने निवसनस्य-क्षौमवस्त्रस्य, पङ्कजस्य-पद्मस्य दर्शने मलयजस्य, रजतस्य-रूप्यस्य दर्शने कौशेयस्य वस्त्रस्य, व्याघ्रदर्शने आभरणस्यागमः । तथा च परासर:-"महिषस्य क्षौमवस्त्रागमम्, मणिभाण्डस्य गवाजिनम्, औणिकानां पशुदर्शने, व्याघ्रस्याभरणागमं वदेत्, पङ्कजस्य दर्शने रक्तवस्त्रचन्दनलाभम्, रूप्यस्य दर्शने कौशेयवस्त्राणाम्" ॥ १९ ॥ अन्यदप्याह पृच्छा वृद्धश्रावक-सुपरिव्राड्दर्शने नृभिर्विहिता । मित्र-छूतार्थभवा गणिका-नृप-सूतिकार्था वा ॥ २० ॥ वृद्धश्रावक:-कापालिकः तद्दर्शने-तदालोकने 'नृभिः' पुरुषैः मित्र-द्यूतार्थभवा 'पृच्छा विहिता' कृता पृच्छा । गणिका–वेश्या नृपः-राजा सूतिका-प्रसूता स्त्री तत्कृता ॥ २० ॥ अन्यदप्याह शाक्योपाध्याया-ऽर्हन्निर्ग्रन्थ-निमित्त-निगम-कैवतैः । चौर-चमूपति-वाणिज-दासी-योधा-ऽऽपणस्थ-वध्यानाम् ॥ २१ ॥ शाक्यादीनां दर्शने चौरादीनां पृच्छा । शाक्यदर्शने चौरकृताम् । उपाध्यायदर्शने चमूपतिकृतां-सेनापतिकृताम् । अर्हतो दर्शने वाणिजकृताम्, निर्ग्रन्थदर्शने दासीकृताम् । नैमित्तिकस्य-दैवविदो दर्शने योधकृताम् । नैगमस्य दर्शने आपणस्थस्य-श्रेष्ठिनः कृताम् । कैवर्तस्य धीवरस्य दर्शने वध्यकृतां चिन्तामिति ॥ २१ ॥ अन्यदप्याह तापसे शौण्डिके दृष्टे प्रोषितः पशुपालनम् । हृद्गतं पृच्छकस्य स्यादुञ्छवृत्तौ विपन्नता ॥ २२ ॥ तापसे दृष्टे पृच्छकस्य 'हृद्गतं' चित्तस्थं 'प्रोषितः' प्रवासे यः कश्चित् स्थितः तस्य प्रवासिनश्चिन्तनम् । 'शौण्डिके' मद्यासक्ते दृष्टे पशुपालनं चित्तस्थम् । 'उञ्छवृत्तौ' शैलोञ्छवृत्तौ दृष्टे विपन्नार्थचिन्ताम् । तथा च परासर:-"निर्ग्रन्थदर्शने दासीपृच्छाम्, वृद्ध श्रावकदर्शने मित्रद्यूतकृताम्, शाक्यस्य चौरकृताम्, परिव्राजकस्य नृप-सूतिका-गणिकाएँ वा, उपाध्यायस्य चमूपतिकृताम्, नैगमस्य श्रेष्ठिकृताम्, नैमित्तकस्य योधार्थाम्, उञ्छवृत्तीनां विपन्नार्थाम्, अर्हतो वाणिजकृताम्, तापसस्य प्रोषिताम्, शौण्डिकस्य पशुपालनार्थाम्, कैवर्तस्य वध्यघातकृताम्" इति ॥ २२ ॥ अन्यदप्याह इच्छामि द्रष्टुं भण पश्यत्वार्यः समादिशेत्युक्ते । संयोग-कुटुम्बोत्था लाभैश्वर्योद्गता चिन्ता ॥ २३ ॥ इच्छामीत्याद्यक्ते यथासङख्यं संयोगादिकताम । तत्रेच्छामि द्रष्टमिति 'उक्ते' भाषिते संयोगकतां चिन्तां वदेत । भणेत्युक्ते कुटुम्बकृताम् । पश्यतु आर्य इत्युक्ते लाभाङ्गकृतां लाभार्थकृताम् । समादिशेत्युक्ते ऐश्वर्योद्गतां चिन्तामिति ॥ २३ ॥ अन्यदप्याह निर्दिशेति गदिते जया-ऽध्वजा प्रत्यवेक्ष्य मम चिन्तितं वद । आशु सर्वजनमध्यगं त्वया दृश्यतामिति च बन्धु-चौरजा ॥ २४ ॥ निदिशेति 'गदिते' उक्ते पृच्छा । 'जयाध्वजा' जयार्थं कृता जाता अध्वजा वा । 'प्रत्यवेक्ष्य' विचार्य मम 'चिन्तितं' हृद्गतं वदेत्युक्ते बन्धुकृता । सर्वजनमध्यगं द्रष्टारमेवं वक्ति 'आशु' क्षिप्रमेव त्वया दृश्यतामिति 'चौरजाता' तस्करकृता चिन्ता । तथा च परासर:-"आदिशेत्युक्ते ऐश्वर्यचिन्ताम्, भणेत्युक्ते कुटुम्बचिन्ताम्, इच्छामि द्रष्टुमिति संयोगचिन्ताम्, पश्यत्वार्य इति लाभकृताम्, निर्दिशेत्यध्वकृतां जयपृच्छां वा, पृच्छामि तावदार्येति वा सम्यक् सम्प्रत्यवेक्षस्वेति बन्धुकृताम्, अथ काले निष्पन्नातः सहसा बहुजनमध्यगतं दृश्यतामिति पृच्छेच्चौरकृतां जानीयादिति ॥ २४ ॥ अथ चौरज्ञानमाह Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अङ्गविद्याशास्त्र सटीकम् । अन्तःस्थेऽङ्गे स्वजन उदितो बाह्यगे बाह्य एव, पादाङ्गुष्ठा-ऽङ्गुलिकलनया दास-दासीजन: स्यात् । जो प्रेष्यो भवति भगिनी नाभितो हृच्च भार्या, पाण्यङ्गुष्ठा-ऽङ्गुलिचयकृतस्पर्शने पुत्र-कन्ये ॥ २५ ॥ : अन्तःस्थेऽङ्गे' अभ्यन्तरस्थे 'अङ्गे' अवयवे स्पृष्टे पृच्छायां चौरः 'स्वजनः' आत्मीय एव 'उदितः' उक्तः । बाह्यगेऽङ्गे स्पृष्टे बाह्यत एवोदितश्चौरः । 'पादाङ्गष्ठाङ्गलिकलनया' पादाङ्गष्ठे स्पृष्टे दासश्चौरः, अङ्गलीषु-पादाङ्गलीष्वप्येवं दासीजन: 'स्याद्' भवेत् । जङ्घास्पर्शने 'प्रेष्यः' कर्मकरो भवति । नाभितो भगिनी । हृदि 'भार्या' आत्मीया जाया । पाणिः-हस्तः, हस्ताङ्गष्ठस्पर्शने पुत्रः । अङ्गलिचयस्पर्शने कन्या-आत्मीया तनया चौरी । एवं कृतस्पर्शने चौरज्ञानम् ॥ २५ ॥ अन्यदप्याह मातरं जठरे मूलि गुरुं दक्षिण-वामको । बाहू भ्राताऽथ तत्पत्नी स्पृष्ट्वैवं चौरमादिशेत् ॥ २६ ॥ 'जठरे' उदरे स्पृष्टे 'मातरं' जननी चौरी वदेत् । 'मूनि' शिरसि गुरुम् । दक्षिण-वामको बाहू स्पर्शने यथासङ्ख्यं भ्राताऽथ तत्पत्नी, दक्षिणबाहुस्पर्श भ्राता, वामे तत्पत्नी । “एवं' अङ्गस्पर्शने दृष्टे 'चौरं' तस्करं 'आदिशेद्' वदेत् । तथा च परासर:-"बाह्याङ्गस्पर्शने बाह्यं चौरम्, अन्तः स्वकृतम्, तत्र पादाङ्गष्ठे दासम्, अङ्गलिषु दासीम्, जङ्घयोः प्रेष्यम्, जठरे मातरम्, हस्ताङ्गलिषु दुहितरम्, अङ्गष्ठे सुतम्, नाभ्यां भगिनीम्, गुरुं शिरसि, हृदि भार्याम्, दक्षिणबाहौ भ्रातरम्, वामबाहौ भ्रातृभार्याम्" ॥ २६ ॥ अथापहृतस्य लाभाऽलाभज्ञानमाह अन्तरङ्गमवमुच्य बाह्यगं स्पर्शनं यदि करोति पृच्छकः ।। श्लेष्म-मूत्र-शकृतस्त्यजन्नथ पातयेत् करतलस्थवस्तु चेत् ॥ २७ ॥ भृशमवनामिताङ्गपरिमोटनतोऽप्यथवा, . जनधृतरिक्तभाण्डमवलोक्य च चौरजनम् । हृत-पतित-क्षता-ऽस्मृत-विनष्ट-विभग्न-गतो न्मुषित-मृताद्यनिष्टरवतो लभते न धनम् ॥ २८ ॥ अन्तरङ्गमिति । एवंविधैनिमित्तैः प्रष्टा हृतं धनं न लभेत । कैः ? इत्याह-'अन्तरङ्ग' अभ्यन्तरस्थमवयवं प्राप्तं 'अवमुच्य' परित्यज्य बाह्यमवयवस्य स्पर्शनं यदि पृच्छकः करोति । अथवा श्लेष्म-मूत्र-शकृतः 'त्यजन्' परित्यजति तत्कालम् । अथवा करतलस्थं-पाणितलस्थं किञ्चिद् वस्तु पातयेत् ॥ २७ ॥ भृशमवनामिताङ्गमिति । अथवा 'भृशं' अत्यर्थं अवनामिताङ्गावयवो अङ्गानामेव परिमोटनं-चटचटाशब्दमुत्पादयति । तथा तत्कालं जनधृतं-लोकस्थादेवितरिक्तभाण्डं(?) 'अवलोक्य' दृष्ट्वा । तथा 'चौरजन' तस्करमवलोक्य । अथवा हृत पतिता-ऽक्षता-ऽस्मृत-विनष्ट-विभग्न-गतोन्मुषित-मृतादि, एषामनिष्टरवतः-शब्दश्रवणात्, आदिग्रहणानष्ट-कष्टदष्टाऽनिष्ट-जीर्णशब्दश्रवणात् प्रष्टा हृतं न लभत इति । तथा च परासरः-"अन्यत्र रोगं स्पृष्ट्वा निर्हरणं वा श्लेष्ममूत्र-पुरीषाणां कुर्यात्, हस्ताद्वा किञ्चित् पातयेत्, गात्राणि वा स्फोटयेत्, कृत-हत-पतित-मुषित-विस्मृत-नष्ट-कष्टाऽनिष्ट-भग्न-गत-जीर्णशब्दप्रादुर्भावो वा स्यात्, रिक्तभाण्ड-तस्कराणां दर्शने नष्टस्यालाभं विन्द्यात्" ॥ २८ ॥ अथ पीडार्थानां मरणाज्ज्ञानमाह - निगदितमिदं यत् तत् सर्वं तुषा-ऽस्थि-विषादकैः, सह मृतिकरं पीडार्तानां समं रुदित-क्षुतैः । "अन्तरङ्गमवमुच्य" इत्यत आरभ्य यदिदं नष्टचिन्तायां 'निगदितं' उक्तं तत् सर्वं तुषा-ऽस्थि-विषादकै: 'सह' साकं तथा रुदित-क्षुतैः, 'समं' सह 'पीडार्तानां' रोगिणां 'मृतिकरं' मरणं करोति । आदिग्रहणात् छिन-भिन्न-भृतअंग० २३ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ प्रथमं परिशिष्टम् दुग्ध-दग्ध-पाटितशब्दैरिति । तथा च परासरः-"अथो रोगाभिच्चातत्थर्दि(?)मूत्र-पुरीषोत्सर्ग-केशा-ऽस्थि-भस्म-तुषविषादानां अशुभानां दर्शने, तथा छिन-भिन्न-व्यापन-हृत-गत-क्षुत-जग्ध-बद्ध-दग्ध-पाटित-रुदितशब्दश्रवणे वा रोगिणां मरणमादिशेत्" ॥ अथ भोजनज्ञानमाह अवयवमपि स्पृष्ट्वाऽन्तःस्थं दृढं मरुदाहरे दतिबहु तदा भुक्त्वाऽन्नं सुस्थितः सुहितो वदेत् ॥ २९ ॥ 'अन्तःस्थं' अभ्यन्तरस्थितं 'दृढं' स्थिरमवयवं स्पृष्ट्वा 'मरुद्' वायुं 'संहरेत्' उगिरन् पृच्छेत् तदा स पृच्छको 'अतिबहु' अतिप्रभूतमन्नं भुक्त्वा 'सुहितः' तृप्तः सुस्थित इति वदेत् ॥ २९ ॥ अन्यदप्याह - ललाटदर्शनाच्छूकदर्शनाच्छालिजोदनम् । उरःस्पर्शात् षष्टिकाख्यं ग्रीवास्पर्शे च यावकम् ॥ ३० ॥ ललाटदर्शनाच्छूकधान्यानां वा दर्शनाच्छालिजौदनं पृच्छकेन भुक्तमिति वदेत् । उर:-वक्षःस्पर्शात् षष्टिकानम् । ग्रीवास्पर्श 'यावकं' यावान्नम् ॥ ३० ॥ अन्यदप्याह कुक्षि-कुच-जठर-जानुस्पर्शे माषाः पयस्तिल-यवागूः । आस्वादयतश्चौष्ठौ लिहतो मधुरं रसं ज्ञेयम् ॥ ३१ ॥ कुक्षिस्पर्शे माषा भुक्ताः । कुचौ-स्तनौ तयोः स्पर्शे पय:-क्षीरौदनम् । जठर-उदरं तत्स्पर्शने तिलौदनम् । जानुस्पर्शे यवागूं-यावकम् । ओष्ठौ आस्वादयतो लिहतो वा प्रष्टुर्मधुरं रसं भुक्तमिति ज्ञेयम् ॥ ३१ ॥ अन्यदप्याह विसृक्के स्फोटयेज्जिह्वामम्ले वक्त्रं विकोपयेत् । कटुकेऽसौ कषाये च हिष्केत् ष्ठीवेच्च सैन्धवे ॥ ३२ ॥ "जिह्य' रसनां विसृक्के स्फोटयेद्वा प्रष्टाऽम्ले भुक्ते । मुखं विकोपयेत् कटुके 'असौ' पृच्छकः । कषाये भुक्ते हिष्केत् । 'सैन्धवे' लवणे भुक्ते ष्ठीवेत् ॥ ३२ ॥ अन्यदप्याह श्लेष्मत्यागे शुष्क-तिक्तं तदल्पं श्रुत्वा क्रव्यादं प्रेक्ष्य वा मांसमिश्रम् । भ्रू-गण्डोष्ठस्पर्शने शाकुनं तद् भुक्तं तेनेत्युक्तमेतन्निमित्तम् ॥ ३३ ॥ श्लेष्मणः परित्यागे शुष्कं रूक्षं तिक्तं तदल्पं च भुक्तम् । 'क्रव्यादं' मांसाशिनं प्राणिनं [श्रुत्वा] 'प्रेक्ष्य' दृष्ट्वा वा तन्मांसमिश्रं भुक्तम् । भ्रूगण्डोष्ठस्पर्शने शाकुनं मांसं 'तेन' प्रष्ट्रा तद् भुक्तमिति । 'उक्तं' कथितमेतद् 'निमित्तं' चिह्नम् ॥ ३३ ॥ अन्यदप्याह मूर्द्ध-गल-केश-हनु-शङ्ख-कर्ण-जङ्ख च बस्ति च स्पृष्ट्वा । गज-महिष-मेष-शूकर-गो-शश-मृग-महिषमांसयुतम् ॥ ३४ ॥ मूर्खादिस्पर्शने यथाक्रमं गजादिमांसं वक्तव्यम् । मूर्द्धा-शिरस्तत्स्पर्शने गजमांसं भुक्तं वदेत् । गलस्पर्शने माहिषम् । केशस्पर्शने मेषमांसम् । हनुस्पर्शने शौकरं मांसम् । शङ्कस्पर्शने गोमांसम् । कर्णस्पर्शने शशमांसम् । जङ्कास्पर्शने मृगमांसम् । बस्तिस्पर्शने च माहिषमांसयुतमेव भुक्तमिति ॥ ३४ ॥ अन्यदप्याह - दृष्टे श्रुतेऽप्यशकुने गोधा-मत्स्यामिषं वदेद् भुक्तम् ।। गर्भिण्या गर्भस्य विनिपतनमेवं प्रकल्पयेत् प्रश्ने ॥ ३५ ॥ अशकुने दृष्टे श्रुते अवलोकिते वा........गोधामिषं मत्स्यमांसं वा भुक्तं वदेत् । एवमेव गर्भस्य पृच्छायां 'अशकुने' दुनिमित्ते दृष्टे श्रुते वा गर्भिण्याः स्त्रियो गर्भपतनं वदेत् । तथा च परासर:-"तथा स्निग्ध-दृढमभ्यन्तराङ्गं स्पृष्ट्वोगिरन् पृच्छेद् भुक्तमन्नं विन्द्यात् । तत्र ललाटस्पर्शे शूकानां च दर्शने शाल्योदनम्, उरसि संस्पृष्टे षष्टिकान्नम्, ग्रीवायां यावकान्नम्, जठरे तिलौदनम्, कुक्षौ माषौदनम्, स्तनयोः क्षीरोदनम्, जान्वोर्यावकमास्वादयेत्, ओष्ठौ वा परिलेढि मधुरम्, विसृक्के जिह्वां वा स्फोटयेत्, अम्ले मुखं विकूणयेत्, कटुके हिष्केत्, कषाये निष्ठीवेत्, Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अङ्गविद्याशास्त्रं सटीकम् । २७७ तिक्ते शुष्के श्लेष्माणमुत्सृजेदिति, लवणम् । क्रव्यादानां दर्शने मांसप्रायम् । तत्र भ्रू-गण्ड-जिह्वौष्ठसंस्पर्शने शाकुनम्, हन्वोराहम्, कर्णयोश्छागम्, जङ्घयोर्मार्गम्, केशानामौरभ्रम्, शङ्खयोर्गव्यम्, बस्ति-गलयोर्माहिषम्, मूर्ति कौञ्जरम्, पाटित-छिन-भिन्नानां दर्शने श्रवणे गोधा-मत्स्ययोमा॑समिति" ॥ ३५ ॥ अथ गर्भिण्या गर्भज्ञानमाह पुं-स्त्री-नपुंसकाख्ये दृष्टेऽनुमिते पुरःस्थिते स्पृष्टे । तज्जन्म भवति पाना-उन्न-पुष्प-फलदर्शने च शुभम् ॥ ३६ ॥ गर्भपृच्छायां पुरुषे 'दृष्टे' अवलोकिते 'अनुमिते' विकृते 'पुर:स्थिते' अग्रतः स्थिते स्पृष्टे वा तस्मिन् तस्मिन् 'तज्जन्म भवति' पुंजन्म भवति । एवं स्त्रियां दृष्टायां च पुर:स्थितायां वा स्पृष्टायां स्त्रीजन्म । नपुंसकाख्ये दृष्टे स्पृष्टे पुर:स्थितेऽनुमिते नपुंसकजन्म भवति । 'पाना-ऽन्न-पुष्प-फलदर्शने च शुभं' इति पानस्य-आसवस्य अन्नस्य-भोजनादेः पुष्पाणां-कुसुमानां फलानां च दर्शने 'शुभं जन्म' सुखप्रसवो भवति ॥ ३६ ॥ अन्यदप्याह अङ्गष्ठेन भ्रूदरं चाङ्गलीर्वा स्पृष्ट्वा पृच्छेद् गर्भचिन्ता तदा स्यात् । मध्वाज्या(हेम-रत्न-प्रवालैरग्रस्थैर्वा मातृ-धात्र्यात्मजैश्च ॥ ३७ ॥ स्त्री स्वाङ्गुष्ठेन भ्रूयुगमुदरं वाऽङ्गुलीर्वा स्पृष्ट्वा पृच्छेत् तदा गर्भचिन्ता 'स्याद्' भवेत् । अथवा 'अग्रस्थितैः' पुरोऽवस्थितैः 'मध्वाज्यावैः' मधु-माक्षिकं आज्यं घृतम्, आदिग्रहणात् पुंनामभिः शोभनफलैश्च, तथा 'हेम-रत्न-प्रवालैः' हेम-स्वर्ण रत्नानि–मणयः प्रवालं-विद्रुमम्, तथा 'मातृ-धात्र्यात्मजैश्च' माता-जननी धात्री-स्तनदायिनी आत्मजः-पुत्रः, एतैरप्यग्रस्थैर्गर्भपृच्छां जानीयात् । तथा च परासर:-"अथ स्त्री भ्रुवौ जठरमङ्गुष्ठेनाङ्गुलि स्पृष्ट्वा पृच्छेद् गर्भचिन्तां जानीयात्, तथा फल-च्छायावृक्ष-प्रवाला-ऽङ्कर-मधु-घृत-हेम-गर्भ-प्राजापत्यं वा मातृ-धात्री-पुत्रनिदर्शनशब्दप्रादुर्भावे गर्भपृच्छामेव" ॥ ३७ ॥ अन्यदप्याह गर्भयता जठरे करगे स्याद् दुष्टनिमित्तवशात् तदुदासः । कर्षति तज्जठरं यदि पीडोत्पीडनतः करगे च करेऽपि ॥ ३८ ॥ 'जठरे' उदरे 'करगे' हस्तगते हस्तेन स्पृष्टे स्त्री गर्भयुता 'स्याद्' भवेत् । तस्मिन्नेव पृच्छासमये 'दुष्टनिमित्तवशाद' दुष्टनिमित्तदर्शनात् क्षुत्-पतित-भग्न-विनष्ट-दग्ध-क्षीणादिदर्शन-श्रवणात 'तददासः' गर्भपतनं भवति । अथवा तज्जठरं 'पीडोत्पीडनतः' पीडमईनं कृत्वा कर्षति कद्रूवत्, 'करगे च करेऽपि' हस्तं हस्तेन वाऽवलम्ब्य पृच्छति तथापि तदुदास इति ॥ ३८ ॥ अथ गर्भग्रहणे कालज्ञानमाह घ्राणाया दक्षिणे द्वारे स्पृष्टे मासोऽन्तरं वदेत् । वामेऽब्दौ कर्ण एवं मा द्वि-चतुर्मं श्रुति-स्तने ॥ ३९ ॥ अङ्गष्ठेनेत्यनुवर्तते । 'घ्राणायाः' नासिकाया दक्षिणे 'द्वारे' श्रोतसि अङ्गष्ठेन स्पृष्टे गर्भग्रहणे मासोऽन्तरं 'वदेद्' ब्रूयात्, मासेन गर्भग्रहणं भविष्यतीति । वामे श्रोतसि स्पृष्टे 'अब्दौ' वर्षद्वयमन्तरम्, वर्षद्वयेन गर्भग्रहणं भवतीति । एवं वामे कर्णे वर्षद्वयेनैव । मा:शब्देन मास उच्यते, श्रुतिः-कर्णः दक्षिणे कर्णच्छिद्रे स्पृष्टे मासे द्विघ्नं-द्विगुणम्, मासद्वयेन गर्भग्रहणं भवतीति । वामे वर्षद्वयेन स्तनस्पर्शने । माश्चतुज़-चतुर्मासैः स्तनद्वयस्पर्शनेनेति ॥ ३९ ॥ अन्यदप्याह वेणीमूले त्रीन् सुतान् कन्यके द्वे कर्णे पुत्रान् पञ्च हस्ते त्रयं च । अङ्गुष्ठान्ताः पञ्चकं चाऽनुपूर्व्या पादाङ्गष्ठे पाणियुग्मेऽपि कन्याम् ॥ ४० ॥ वेणी-केशकलापः तन्मूले पृच्छायां स्पृष्टे त्रीन् ‘सुतान्' पुत्रान् द्वे कन्यके जनयिष्यसीति वक्तव्यम् । 'कर्णे' कर्णयुग्मे स्पृष्टे पुत्रान् पञ्च । हस्तयोः स्पर्शने पुत्रत्रयं च । कनिष्ठिकाङ्गुलेरारभ्याङ्गुष्ठाङ्गुलिं यावदानुपूर्व्या क्रमेण पुत्रपञ्चकं सूते । तत्र कनिष्ठिकास्पर्शने एकं पुत्रम्, अनामिकास्पर्शने द्वौ, मध्यमायां त्रयः, तर्जन्यां चत्वारः, अङ्गष्ठे पञ्च स्पृष्टे पाष्णियुग्मेऽपि स्पृष्टे कन्यामेकां सूते ॥ ४० ॥ अन्यदप्याह नुष्ठ पश्च । पादाङ्गष्ठे Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ प्रथमं परिशिष्टम् सव्या-ऽसव्योरुसंस्पर्शे सूते कन्या-सुतद्वयम् । स्पृष्टे ललाटमध्या-ऽन्ते चतु-स्त्रितनया भवेत् ॥ ४१ ॥ सव्यं-दक्षिणमूरु तत्संस्पर्शे कन्याद्वयं सुतद्वयं च सूते । असव्ये-वामेऽप्येवमेव । ललाटमध्या-ऽन्ते स्पृष्टे यथासङ्ख्यं चतुस्त्रितनया भवेत्, ललाटमध्ये स्पृष्टे चतुस्तनया:-चतुःपुत्राः, ललाटान्ते त्रितनया भवेत् । तथा च परासरः"तत्र जठरस्पर्शने गर्भिणीमेव ब्रूयात्, अङ्गुष्ठेन नासाश्रोतसि दक्षिणे कुर्यान्मासान्तेन गर्भग्रहणम्, वामे द्विवर्षान्तरेण, कर्णच्छिद्रे मासद्वयेन, वामे वर्षद्वयेन, स्तनयोरङ्गुष्ठेनैव स्पृशेच्चतुर्भिर्मासैः । पीठमर्द-कचान्तरे कृत्वोपरं कण्डूयेत्, अग्रहस्तं हस्तेनावगृह्य वा पृच्छेद्, भग्नलोहिका-बधिरउद्दालक-कुठार-सुतवलित-भग्नदर्शन-शब्दप्रादुर्भावे वा स्याद् गर्भपतनं वा विन्द्यात् । तथाऽन्न-पान-पुष्प-फलं प्रेक्ष्य द्वि-चतुष्पदामन्यद्रव्याणां पुंसंज्ञकानां दर्शन-श्रवणे पुंजन्म विन्द्यात्, स्त्रीपुंसंज्ञानां स्त्रीपुंजन्म, नपुंसकाख्ये नपुंसकानाम् । अथ विशेषः-वेणीमूलमतिगृह्य पृच्छेत् तस्य द्विवान् पुत्रान् जनयिष्यसीति ब्रूयात्, ललाटमध्यं स्पृशन्तीति चत्वार्यपत्यानि, ललाटान्तं त्रीणि, कर्णयोः संस्पर्शे पश्चापत्यानि विन्द्यात्, हस्ततलसंस्पर्श त्रीणि, कनिष्ठा-ऽनामिका-मध्यमा-प्रदेशिनी-तर्जन्यङ्गष्ठानामेक-द्वि-त्रि-चतुः-पञ्चापत्यानि, दक्षिणोरुस्पर्श द्वौ पुत्रौ द्वे कन्यके जनयिष्यसीति, वामस्य तिस्रः कन्यका द्वौ पुत्रौ, पादाङ्गष्ठस्य कन्यकैका, पार्योकन्यकैकैव" इति ॥ ४१ ॥ अथ गर्भिण्याः कस्मिन् नक्षत्रे जन्म भविष्यतीति तज्ज्ञानार्थमाह शिरो-ललाट-भू-कर्ण-गण्डं हनु-रदा गलम् । सव्योऽपसव्यः स्कन्धश्च हस्तौ चिबुक-नालकम् ॥ ४२ ॥ उरः कुचं दक्षिणमप्यसव्यं हृत्पार्श्वमेवं जठरं कटिश्च । स्फिक्पायुसन्ध्यूरुयुगं च जानू जङ्ग्रेऽथ पादाविति कृत्तिकादौ ॥ ४३ ॥ सूते इत्यनुवर्तते । पृच्छासमये गर्भिण्याः शिरःप्रभृतिसंस्पर्शने कृत्तिकादौ नक्षत्रे जन्म विन्द्यात् । 'शिरः' मूर्धानं संस्पृशेत् कृत्तिकानक्षत्रे जन्म भवति, गर्भिणी सूते । ललाटे रोहिण्याम्, ध्रुवोर्मृगशिरे, कर्णयोराज़्याम्, गण्डयोः पुनर्वसौ, हन्वोः पुष्ये, रदाः-दन्तास्तेष्वश्लेषायाम्, गले-ग्रीवायां मघासु, सव्ये-दक्षिणस्कन्धस्पर्शने पूर्वफल्गुन्याम्, अपसव्येवामस्कन्धस्पर्शने उत्तराफल्गुन्याम्, हस्तयोः स्पर्शने हस्ते, चिबुके-आस्याधोभागे चित्रायाम्, नालके-वक्षःसन्धौ स्वातौ, उरसि-वक्षसि विशाखायाम्, दक्षिणकुचस्पर्शेऽनुराधायाम्, असव्ये-वामे ज्येष्ठासु, हृदि मूले, पार्श्वद्वयं ‘एवं' प्राग्वत्, दक्षिणपार्श्वे पूर्वाषाढासु, वामपार्वे उत्तराषाढासु, जठरे श्रवणे, कट्यां धनिष्ठायाम्, स्फिग्-गुदसन्धिस्पर्शने शतभिषजि, दक्षिणोरुस्पर्शने प्रारभद्रपदायाम, वामे उत्तरभद्रपदायाम्, जान्वो रेवत्याम्, जङ्घयोरश्विन्याम्, पादयोर्भरण्यामिति । तथा च परासर:-"शिरसि स्पृष्टे कृत्तिकासु जन्म विन्द्यात्, ललाटे रोहिण्याम्, ध्रुवोः मृगशिरसि, कर्णयोराज़्याम्, गण्डयो: पुनर्वसौ, हन्वोस्तिष्ये, दन्तेष्वश्लेषायाम्, ग्रीवायां मघासु, दक्षिणांसे प्राक्फल्गुन्याम्, उत्तरायां वामे, हस्ते हस्तयोः, चिबुके चित्रायाम्, स्वातौ नालके, उरसि विशाखायाम्, दक्षिणे स्तनेऽनुराधायाम्, वामे ज्येष्ठासु, हृदि मूले, दक्षिणपार्वे प्रागाषाढासु, उत्तराषाढास्वपरपावें, जठरे श्रवणे, अविष्ठासु श्रोण्याम्, स्फिग्गुदयोर्वारुणे, दक्षिणे प्राक्प्रोष्ठपदायाम्, वामेनोत्तरायाम्, जानुभ्यां पौष्णे, जङ्घयोराश्विने, भरण्यां पादयोः" इति ॥ ४२ ॥ ४३ ॥ अथोपसंहारा [र्थमाह-] इति विरचितमेतद् गात्रसंस्पर्शलक्ष्म, . प्रकटमभिमताप्त्यै वीक्ष्य शास्त्राणि सम्यक् । विपुलमतिरुदारो वेत्ति यः सर्वमेतनरपति-जनताभिः. ........... ॥ ४४ ॥ [॥ अग्रे ,खण्डितोऽयं ग्रन्थः ॥] Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिशिष्टम् अंगविज्जाए सद्दकोसो । coom पत्र १३९ भाण्ड १९३ पितामह २१९ आर्य १३४-१८७ देवता २२३ देवता २२४ आर्यिका ६८ वृक्ष ६३ अध्यात्मवृत्त ७ गोत्र १५० क्रिया. १४८ २०२ अग्घायते अकुञ्चित ? १४८ अग्घाहिति १७८ अघोसा आभू. ६०-६५ अचपला भोज्य १८२ अचला आभू. ७१ अचलाय अक्षाम ४३ अचवलाई किया. १५४ अचवले ९२ १२८ शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द अग्गिवेस्स गोत्र १५० अज्जजोणि अइराणी देवता ६९-२०५-२२३ अग्गिहोत्त १०१-२२२ अज्जणी अइरिका देवता ६९ अग्गेय १२३ अज्जय अकरपट्टक ११६ अग्गेयया १२८ अज्जव अकंत अप्रिय १२० अग्घप्पमाणं [पडलं] २५३ अज्जा अकिट्ठामास आजिघ्रति ८३ अज्जाधिउत्थं अकोडित आघ्रास्यति ८४ अज्जिया अकोसीधण्ण १५३ अज्जुण ५९ अज्झप्पवित्त अक्खक अक्खपूप देवता ६९ अज्झायी अचलायाम् अक्खमालिका अज्झेणणासित ? १८ अज्झोआताणि अक्खाम अट्टालय १२५ अक्खारित ? अट्टियगत अचिरोत्थित २४९ अचिरुट्ठित अक्षिकूट ७२-१२३ अक्खिकूड अट्ठकालिका अत्यर्थकार २३९ अक्खिगुलिका अक्षिगुलिका-कनीनिका ६६ अच्चत्थकार अट्ठक्खाणंसि अच्चत्थहसित अक्खिगूधक अक्षिगूथ १७८-२०३ अत्यर्थहसित ३५ अट्ठखुत्तो अच्चल्लीण अत्यालीन ८७ अक्खिवत्तिणी अक्षिपत्रिका ६६ अट्ठपद अच्चा ____ अर्चा १४७ अक्खीणमहाणस अक्षीणमहानसलब्धि अट्ठमय अच्चाइक अत्यायिक ३७ अक्खुज्जंत ? २० अट्ठमसाधणी अच्चाइत अत्यायित ४१ अक्खोडित आस्फोटित २५ अट्ठमंगलक अच्छणक आसनक १३६ अक्खोडिय आस्फोटित १८१ अट्ठमंडल अच्छदंत पर्वत ७८ अक्खोल फल ६४-७१ अट्ठविधि अच्छभल्ल चतुष्पद ६२ अखई अक्षयिका १८ अट्ठाहिक अच्छाइत आच्छादित १३०-१७० अट्रिक अखुयाचार वस्त्र २२१ अट्टिकमय अगणिक्काइयाणि अच्छादण आच्छादन १९० अट्टिभिजा अगतिसंपन्न अच्छायित आच्छादित १६८ अट्ठिसेणा अगल्ल आकल्य १४३ अज सर्पजाति ६३ अडिल अगोलिक गुडवर्जित भोज्य १८२ अजिणगकंचुक चर्मवस्त्र २३० अड्डोदित अगोलीय गुडजित भोज्य १८२ अजिणपट्ट चर्मवस्त्र २२१-२३० अणण्णमणताय अग्गि अजिणप्पवेणी प्रापिाज वस्त्र २२१ अणप्पभूय अग्गिइंदग्गि देवता २०५ अजिणविलाल पशु २२७ अणभियित अग्गिउपजीवि कर्माजीविन् १६० अजीण अजिन २३० अणभिवुत्त अग्गिगिह अग्निगृह १३६ अजीणकंबल २३० अणसूयक अग्गिघर अग्निगृह ४१ अजीणप्पवेणिका प्राणिज वस्त्र २३० अणह अग्गिमारुय देवता २०४ अजोगवहा अयोगवाहाः १५३ अणंगण अग्गिरस गोत्र १५० अज्ज आर्य १३१-१४९ अणंत १३७-२१४ अट्टिकागत २१६ सुरा २२१ अर्थाख्याने १० अष्टकृत्वः १८४ अर्थपद ६ आभू. १६२ अष्टमसाधनी कण्ठआभू. ६५-१६३ ११६ अक्षुद्राचार ४ अच्छाद अर्थविधि ७८ अष्टाहिक १२७ अस्थिक(?) १५ भाण्ड २१५-२२१ अस्थिमज्जा १०५ गोत्र १५० चतुष्पद ६९ अर्डोदित १४७ अनन्यमनस्तया ५७ अनात्मभूत १० अनभिचि(जि)त ३० अनभिवृत्त १६२ अनुत्सुक अक्षत १७ गुल्मजाति ६३ आभू. ६५ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० १८४ १९३ ११८ अधभूतत्थ ४४ अतिमंगुल अतिस्फुटित १०६ अधापुव्व अतिअशुभम् ९५ अधामय २३२ अधिकंतण ? अनिकुज्ज ४५ अतिमुत्तग ५८-१११-१२९ अतिमुल्लेय ११४ अतिवत्ताणि अनुज्ज्वल ४ अतिविरूढ अनत्वरित २३५ अतिहरंति १०७ १३ ५६ अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र अणंतरपच्छाकड अनन्तरपश्चात्कृत २६२ अण्हेते भुनक्ति १०७ अद्धकोसिज्जिक वस्त्र ७१ अणंतरपुरक्खड अनन्तरपुरस्कृत २६४ अतप्परं अतः परम् ६२ अद्धखेत्ताणि २०७ अणंतोहिजिण अनन्तावधिजिन १ अतसी धान्य १६४ अद्धपल्लत्थिका अर्धपर्यस्तिका १८ अणाउत्त अनायुक्त १० अतिकण्हाणि ५७-९२-१२८ अद्धसंविट्ठरत अणागतजोणि १३९ अतिकिमण अतिकृपण २४१ अद्धसंवुताय अर्धसंवृतया १८५ अणागताणि ५७-८३-१२८ अतिकूरक भोज्य ६४-२२० अद्धहार कण्ठआभू. ६५-१६२ अणादिता देवता ६९ अतिक्कंतजोणि १३९ अद्धाकाल अज्झायो । अणाधारयमाण क्रिया. ११ अतिघणकडत ? यथाभूतार्थ ५९ अणापस्सय अनपश्रय ३० अतिच्छंत अतिकाम्यत् ३९ अधमजोणि १४० अणायकाणि ५९-१२६ अतिपच्चवर अतिश्रेष्ठ ९५ अधरुत्तरुम्मिरे ? १९५ अणावलोइयते अनवलोकितके १२ अतिफुट्ट यथापूर्व १-५-९-१९५ अणावलोक यथामत ९० अणावद्रिसवट्टि अनावृष्टि-सुवृष्टि ७ अतिमत्तकतेल्ल अणिकुज्ज अधिक्कमणक वृक्ष ६३ उत्सव ? ९८-१२१ अणिस्सरा अधिज्ज अध्यैत १० १७२ अणुक अधिवसिस्सति अधिवत्स्यति १९२ ५७-८१-१२८ अणुज्जल अधिवास दोहद १७२ ११८ अणुतुरित अधीयता तृतीयैकवचनम् किया. अणुदत्त २१५ अधीयाण क्रिया. अत्तभावपरिक्खा अणुपडुतामास १४५ अधोगागार ? अत्तभावपरीणाम अणुपुव्वसो अनुपूर्वशः ७६ अधोभागामास आत्ममान १६ अणुयोगजोणि अत्तमाण १३९ अनुनासिका अणुयोगविधि अत्थजोणी अत्थत्थिकत्थताय अार्थिकार्थतया १३० अणुलित्त अनुलिप्त १३०-१६८-१७० अन्नोसक्कित अन्यावष्वष्कित १४८ अणुलेवण दोहदप्रकार १७२ अत्थदार अपकृष्ट ४४ अणुल्लायित ? किया. १EE अत्थपीला अपकर्षत् १४४ अणुवक्खइस्सामि अनुव्याख्यास्यामि ७-१३५ अत्थरक आस्तरक १७-६५-१६३ अपकडित अपकर्षित १६९ अणुवक्खयिस्सामि अत्थवापद अपकर्षती १६९ अनुव्याख्यास्यामि ५-१६४ अत्थसच्च अपकर्षयेत् १४५ अणुवक्खाइस्सामि अनुव्याख्यास्यामि ५७ अत्थाय अर्थाय चतुर्थी एकव० १० अपक्वित्त अपक्षिप्त १६ अणुवक्खायिस्सामि अनुव्याख्यास्यामि २११ अस्थायं अर्थ+आयम्-अर्थलाभम् २० अपळद्ध अपक्षिप्त १६९-१७१ अणुसूयक अनुत्सुक १० अत्थिला क्षुद्रजन्तु २५३ अपडिहत । भोज्य १८२ अणुस्सित्त अनुत्सित ३ अत्थुत आस्तृत ११६-१९० अपणत किया. १६९-१७१ अणूणि ५८-११७ अत्थोपणायक अर्थोपनायक ८७ अपणामित किया. १७१ अणे आमन्त्रणम् ६८ अदसंसाय ? २०० अपणासित किया. १६९ अणेव्वाणि अनिर्वाणी १३५ अदसी धान्य २२० अपत्थद्ध अपस्तब्ध ३६-१३५ अणोकंत अनपक्रान्त ४२ अदंसणिया ५८ अपपातित क्रिया. १८३ अणोज्ज गुल्मजाति ६३ अदंसणीया १२३-१२९ अपमज्जितापमट्ठ अप्रमार्जितापमृष्ट २५ अणोदुग अनृतुक २५७ अदिति देवता २०८ अपमट्ठ १६९-१७१-१७६ अण्णजणाणि ५९-१२९ अद्दागमंडल आदर्शमण्डल ११५-२४१ अपमत अवमक अण्णजोणी ६४ अद्दारिटुक वनस्पति १७३ अपमतर अवमतर अण्णेयाणि १२६ अद्धकविट्ठग भाण्ड ६५ अपमयापमय अवमकावमक ९५ २०० १५३ १५३ ५३-५५-१३८ अनुस्वार ४८ १४४ अपकट्ठ अर्थपीडा २२ अपकटुंत अर्थव्यापत् १७ अपकड्डिती अर्थसत्य ९ अपकड्डेज्जा Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द अपमान संपण्ण अपयात अपरायित अपरिमित अपरिमितानुगमण अपरिमेज्ज अपलिखित अपलोकणिका अपलोलित अपवट्टित अपवत्त अपवाम अपवित अपविद्ध अपव्वाम अपक्कं अपसण्णअपसण्णा अपसण्णामास अपसव्व अपसारित अपस्सयम्हि अपस्सयविहि अपहट्ठ अपहरितक अपहित अपंगुत अपातयं अपातव अपात क्रिया. अपिधावधिकधा ? अपीलये ? अपीलित अपी (वि) वरा अप्पणामंतो अप्पणि अप्पणी अप्पणीयक अप्पणोक अप्पणिया ? अप्पपरिग्गह अप्पमज्जित अपरिमेय द्वितीयं परिशिाम पत्र शब्द १७३ अप्पसण्णतरा क्रिया. १९९ अप्पसण्णा अपराजित ७६ अप्पसत्थऽज्झाय १२७ अप्पसत्थभा ५७ अप्पसत्थमज्झायं २४०-२४१ अप्पाणे किया. १७१ अप्पिया १६२ अद्वितविभासा शीर्ष आभू. १६९ - १७१ - १८३ अप्पुट्ठिताणेक्कवीसं अपवर्तित १७१ अप्योवचया अपवृत्त १७१ अप्फिडित ७६ अप्फोडित आस्फोटित १७१ अप्फोतिका २०० अप्फोय २२ अबुद्धीरमणा अपष्वष्कत् १४३ अब्भरायां पत्र शब्द ११२ अभिनंदित ५८ अभिधम्मीय १४९ अभिप्पायक गोत्र १५० अभिमट्ठ आत्मनि १४८ अभिमज्जित ७ अभिमज्जितामास ५८-१२९ अभिमिल्लते ५८ अब्भवालुका • २०२ अब्भंतरअब्भंतरक ७६ अब्भंतरजोणि अपसव्य क्रिया. १६९-१७१ अब्भंतरठितामास अपश्रये ३१ अब्मंतरपरियरण अपश्रयविधि ९-१०-५९ अब्भंतरबज्झा अपस्सया सत्तरस ११ - २६ अब्मंतरबाहिराणि अपरिसअ अपश्रित अपाश्विक ४२ अब्भंतरंतराणि २५ अरक १३०-१३३ अरकूडक कर्माजीविन् १५९ अरलूसा कर्माजीविन् ६७-७९ अरस् कर्माजीविन् ८८-१५९ अरंजर अप्रतलपलायित १४४ अरंजरमूल अभ्यन्तरगृह १३७ अरंजरवल्ली अपीडित २५ अमितराभिम २५ अरिङ्ग १२४ अब्भुक्कदित अभ्युत्कृष्ट- अभ्युत्क्वथित १०६ अरिट्ठा अपनामयम् ३७ अब्भु ( प्पु) ट्ठियविधि ९-१० अलकपरिक्खेव आत्मनि ११ अम्युतिति अभ्युत्तिष्ठति १४१ अलणा आत्मनि १०-११-१२-१३ अब्भुप्पवति अभ्युत्प्लवते १४१ अलत्तक अपहृष्ट २१५ अब्भंतराणंतरिया अपहृतक १६६ अब्भंतराणि अपहृत १६९ अन्तरापम अप्रावृत १९९ अब्भंतरामास अपातपम् ७७ अब्भंतरावचर अपातप ६१ अब्भाकारिक ? अप्रावृण्वत् ३८ अब्भागारिक ? ४० अब्भातलपलाइत ४५ अब्भितरगिह आत्मीयक ११-१३६ - २१४ अभत्तीण आत्मीय ? १८ अभिकंखित २० अभिज्जिय ? ५८-१२२-१२९ अभिणवभोयणं अप्रमार्जित २१ अभिणव्व ४६ अभिवहण ११- ४५ अभिवंदहे ५८ - ११४ अभिसंगत आस्फिटित १६९ अभिसंधुत १६८-१७०-१७६ अभिहट्ठ वनस्पति ७० अभुदइक वृक्ष ६३ अभोगाकरिणी ? ५८-१२२-१२४ अमणुण्ण देवता ६९ अमिल मृत्तिका २३३ अमिला ८६ अम्हरि १३९ अयकण्ण २४ अयकण्ण १३६ अयमार ८८ अयसा ५७ - १२८ अयसीतेल्ल १२८ अयेलका ८७ अयो ५७-८७-९०-१२८ अयोगक्खेम अभक्त्या ४ अलवण अभिकाङ्क्षित १९० अलसंदक किया. १९२ अलंकित १८० अलंदक अभिनव १४५ अलंदिका जलघट -२८१ पत्र किया. १६८ - १७० अभिधार्मिक १४३ १५१ २५-१३० अभिमार्जित २१ २०१ अभिमीलति ३४ उत्सव ? १४१ अभिवन्दे ५-६ क्रिया. १६८ अभिसंस्तुत १७० अभिहृष्ट ३९ १३० अभ्युदयिक १२१ कर्माजीविन् ६८ अमनोज ३७ भाण्ड ७२ अविला २३८ रोग २०३ वृक्ष ६३ फल २३२ ६३ १८१ २३२ अजैडकौ १६६ वृक्ष सुरा अतः अयोगक्षेम कृमिजाति ४६ १६२ ६९ धातु २४८ वृक्षजाति ७० २२२ ३०-३१-६५-१९५ १३६ ७० देवता २०४ सुरा ६४ - १८१-२२१ अलकपरिक्षेप ६४ देवता २२३ अलक्तक १६२ १८२ धान्य २२० अलङ्कृत १६८ भाण्ड ६५ भाण्ड ७२ लवणवर्जित भो Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ शब्द अलि ? अलित्तककारक अलिंद अक्षीणमीण अवक ? अवकड्डति अवकरिसेंत अवक्खित अवज्जेयमाण ? अवडु अवणामित अवर्णेत अवत्थंभ अवत्थिया अवदातक अवमट्ठ अवयि अवरण्ण अवरण्ह अवरसजमगत्त ? अवलोणित अवलोयित अवसक्कंत अवसकिअ 'अवसक्कि अम्हि अवसक्कित अवसरित अवसव्व अवसिद्ध अवस्सय अवस्थित अवह अवहत्थ अवहत्थग अवंग अवाइमा अवामस्सा अवाहणत अविकपणा अविधेय अविवरा अविस्सर अवेगिअ शब्द ४१ अव्वतपुच्छित १६० अव्वंग भाण्ड ६५ अव्वापण्णामास ८७ अव्वाबाधा १४२ अव्वोआताणि अपकर्षति १०८ अव्वोकड्ढ अपकर्षत् ३७ अव्वोयताणि अव्याक्षिप्त ३८ अस अलक्तककारक आलीनालीन अपराह्न क्रिया. १९८ असण कुकाटिका ११४ असत्यण्णा क्रिया. २१७ असरसंपण्ण अपनयत् ३८ असलेसा अपस्तम्भ २७ असल्लीण ५८ असल्लीगुट्ठित १५३ असव्वओ अपसृष्ट २१५ असहस्सदि रोग २०३ असंघातसंपन्न १६४ - १७८ असामण्णं भूतं अपराह्न १६५ असालिका असित असितवण्णपडिभागा २६ किया. १७६ अवलोकित २१५ असिलट्ठी अवष्वष्कत् १३५ असिंगीण अवष्वष्कित १६ असीति अवष्वष्किते १७ असीमालिका अवष्वष्कित २१७ अपसृत १३० अपसव्य ७६ अपसिद्ध ६७ १८६ अपश्रित १९८ अङ्ग ६६ २१६ ६० ६४ आघ अपाचीना अंगविज्जाए सहकोसो पत्र अमावास्या अस्य असुयामाससद्द ? असोकवणिकापाल असोग असोयवणिया अस्सअधिगत अस्सकण्ण अस्सपूतण अस्सखंस ? अस्सबंध अस्सभंड १८-१९ अस्समच्छ २०६ २०९ अस्समंडल अवाखनत् ३८ प्राणिजवस्त्र २२१ अस्समोहणक अस्सवारिक ७३ ५८ अस्सात ? अविस्वर ३६ अस्सातियक्ख अवेगित ४ अस्सादेहिति पत्र शब्द ३६ अस्सायेति अव्यक्तपृष्ट अव्यङ्ग ११४ अस्सारोध २०२ अस्सावित देवता २०४ अस्सिणो ५७ अस्सोत्थ ८६ अहरहँ १२८ अहव्वेद १७- ५०-५४-२६४ अहिआण वृक्ष ६३ अहिणी ५२ अहिणूका १७३ अहिधावति अश्लेषा २०६ अहिनिप असंलीन असंलीनोत्थित ४६ अहिमार ४५ अहिरण्णक यशस्वतः १ अहिलका असहस्मृति आसालिका- जलचर वर्ण वृक्ष ६३ २३७ ६३ १० अंकोल्ल वृक्ष १७३ अंकोल्लपुष्फ पुष्प ६३ अक्षिणी १२२ १८० अंखिणो ६९ अंगजक ९० - १०५ अंगणगिह आभू. ६५ अङ्गनगृह १३८ ५८ अंगत्थवो अज्झायो अङ्गस्तवोऽध्यायः असिष्ट ११५ अंगदुवारघर अशृङ्गिणाम् १७९ अंगदेवी अशीति १२७ अंगमणी अज्झाय कण्ठआभू. १६२ अंगयाणि ४५ अंगरक्खा कर्माजीविन् १६० अंगविणा अशोकवनिका २२२ अंगवी कर्माजीविन् १५९ अंगहिय वृक्ष ६३ अंगहियय पशु २२७ अंगुप्पत्तीअज्झाय कर्माजीवि १६० अंगुलिपोडिया कर्माजीविन् १५९ अंगुलिमुद्दिका भाण्ड २३० अंगुलीमंडल मत्स्यजाति २२८ अंगुलेषक ११६ अंगे (अग्गे) याणि १३७ अंगोदधि पत्र आस्वादते १०७ अश्वारोह कर्माजीविन् १५९ आश्रावित १३३-१८६ देवता २०४ फल २३१ कर्माजीविन् १५९ अंछणिका किया. १७६ अंगणमूलक कर्माजीविन १६० अंजणी आस्वादयिष्यति ८४ अंजणेकसक अहरहः ५७ गोत्र १५० अधीयान १ सर्पिणी ६९ सर्पिणी ६९-२२७ अभिधावति ८० अधिनृप १६० फल २३२ वृक्ष ६३ अंगविज्जाविसारत अङ्गविद्याविशारद परिसर्पजीव ५ अङ्गद्वारधर ८ ११२ ५७ बाहुआभू. १६३ अङ्गरक्षा अङ्गविद्या १-७ ७ ९९ अङ्गवित् ७ १४ अग्रहित 6 ू अङ्गहृदय ६-१२९ १ अङ्ग ११९ आभू. ७१ ११६ अङ्गुलिआभू १६३ अग्नेयानि १२८ १ विशेष ११५ धातु ? १६२ भाण्ड २३० ७० वृक्षजाति Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगत्य १९२ आधारणाय द्वितीयं परिशिष्टम् शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र । अंतणिज्जमाण अन्तर्नीयमान १९६ आगच्छते किया. ८४ आदंसगिह आदर्शगृह १३६-१३८ अंतत्था १५३ आगण्णेति आकर्णयति १०७ आदाणणक्खत्त २०९ अंतपाल ८९ आगतविभासा णामं पडलं ४२ आदित्तमंडल ११५ अंतर १२६ आगताणि सोलस ४१ आदिपंडक नपुंसकविशेष २२४ अंतरंस १८७ आगमगिह आगमगृह १३६ आदेयाणि १२८ अंतरिज्ज अन्तरीय वस्त्र ६४-१६४ आगमण अज्झाय ... १३०-१३५ आधात्मचिंताय अध्यात्मचिन्तया ५७ अंतरिय अन्तरीय वस्त्र २२२ आगमणजोणि १३९ आधायित क्रिया. २१५ अंतलिक्खाय अन्तरिक्षक १ आगमणविधिविसेस ९-१०-५९ आधार आहार १७८ अंता ५८-१२१-१२९ आगमेसभद्द आगमिष्यद्भद्र १०८ आधारइता आधारयित्वा ६७-८१ अंतोघर अन्तर्गृह ३२ आगमेहिति आगमिष्यति ८४ आधारए आधारयेत् ११ अंतोणाद अन्तर्नाद ४३ आगम्म आधारणायाः अंतोवारीय अन्तर्वार्याम् ८५ आगम्मगिह १३८ आधारणो अज्झाओ अंदोलंति किया. ८० आगर आकर २०१ आधारतित्ता आधार्य अंधक फल २३८ आगामिभद्द १०८ आधारयितू आधार्य १८५ अंधी आन्ध्रदेशजा ६८ आगारेति आकर यति १०७ आधारयित्ता आधार्य ४० - अंब आम्रवृक्ष ६३ आचमणिका भाण्ड २५५ आधावितक क्रिया. १६६ अंबकधूवि भोज्य ७१ आचरिय गोत्र १५० आधिपच्च आधिपत्य ११२ अंबट्ठिक भोज्य १८२-२४६ आचिक्खति आचष्टे ८३-१०७ आधुत क्रिया. ८० अंबपिंडी भोज्य ७१ आचित क्रिया. १६५ आधोधिक आधोऽवधिक ९ अंब(त)राई ५९ आच्छण्ण आच्छन्न १७ आपडित आपतित अंबाडक गोशालकमत २४५ १७१ वृक्ष ६३ आजीवक अंबाडकधूवी भोज्य ७१ आजीवणिक आपंचमंडल ११६ पर्वतः अंबासण ७८ आजोग आपुणेय आयोग २० १२४-१४९ अंबिल अम्ल २२० आज्ञयणीय अध्ययनीय १४७ आपुरायण गोत्र १५० अंबिलक भोज्य १७९ आडवक कर्माजीविन् १६० अंबिलजवागू भोज्य १८१ आडविक आपीड २५९ अंबेल्लि भोज्य ७१-१७९-२४६ आडा आपीडचिह्न १४९ अंसकूड अङ्ग ७२ आणावचरणिग स्थल-जलचर २२७ आफकी वृक्षजाति अंसकोवकरण १३४ आणु(णू)क लक्षण १७३-१७४ आबद्धक कर्णआभू. १६२ अंसपीढाणि अङ्ग ११८ आणुतासवेला ? क्रिया. १९८ अंसवीफाणिए अङ्ग ९९ आणेयाणि आ आतवगिह आतपगृह १३६-१३८ आभरणगत दोहदप्रकार १७२ आइल आविल ४ आतवितक वस्त्र १६३ आभरणजोणी ६५ आउर आतुर १२ आतिअ[ति] आददाति १०७ आभरणजोणी अज्झाय १४०-१६२-१६३ आउंडित आकुञ्चित १९८ आतिगंछिति आचिकित्सति ८४ आभरणाधिगत कर्माजीविन् १६० आएसण आवेशन १३८ आतिमूलिकाणि ५८ आभिजण ७४-७६-१०४ आओग आयोग २० आतिमूलीया १२१-१२८ आभिजोग्गिक आभियोगिक २६८ आकारण्णपवत्तणा ? ४४ आतुरगिह आतुरगृह १३८ आभिणिबोधिक आभिनिबोधिक आकासवियड ११९ आतुरजोणि १३९ आभिप्पायिक १५७ आकासाणि ५८-११८-१२८ आतुरता १३५ आभियोगिक देवता २०५ आकुंडित आकुञ्चित ११५ आतोज्जसद्द आतोद्यशब्द १८८ आमट्ठ आमृष्ट २१-२४-१११-१२८ आकोडित आकुञ्चित १७१ आदंसग आदर्श-दर्पण १९३ आमतमत आमयमय १९४ पक्षी २३ आपूपिक १५९ आपेलग पक्षी ६९-२२५ आपेलचिध ७० २४७ आबंधण १२८ आबाधिक Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६-२०३ आलेक्ख ७-११-२१-१३८ आलोलीवेलिका '२४७ आहाडक १३ आवरित वस्त्र १६३ १२४ २८४ अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र आमधित आमथित भोज्य २२० आलिंगित क्रिया. ५१-१८४ आसंदी आसन ७२ आमलक फल ६४ आलिंगितरत १८३ आसाइत आस्वादित १०७ आमली वृक्षजाति ७० आलिंगियविधि ९-१० आसाति(लि)का कृमि २२९ आमसती आमृशति १७० आलिंगियाणि चउद्दस ११-१३८ आसार ? २०० आमसमाण आमशत् १४६ आलिगेतस्स आलिङ्गेदेतस्य ५१ आसालक आसनविशेष २६ आमसं . आमृशन् ७६ आलीपणग आदीपनक १६२-१६८ आसासण .. आश्वासन १४८ आमसंत आमृशत् १४५-१६९ आलीवणक आदीपनक १९२-२५४ आसित किया. २४३ आमसित्ता आमृश्य १०३-१७० आलुक भोज्य १८१ आसिलेखा अश्लेषा नक्षत्र १५६ आमा[स]य आलेख्य ११६ आसेक्क नपुंसकविशेष २२४ आमासट्ठसय उद्भिज्ज २२९ आमासपडिरूव आवग्गित आवल्गित १४३ आहार ५८-१०७-१२८ आमास-सद्द-रूव आवृत २४१ आहारगत दोहदप्रकार १७२ आमेलक पुष्पापीडक ६४ आवलिका कण्ठआभू. १६२ आहारजोणि १४० आमोसला गोत्र १५० आवसंपयुत्त ? २०९ आहारणीहार ५८-१०८-१२८ आमशौषधिप्राप्त आवातेंते आमोसहिपत्त ८ आपातयति आहारणीहारजोणि १४० आयताणि ५९-१२५-१२९ आवाह उत्सव २२३ आहारतरकाणि १२८ आयमणी आविक आचमनी ५५-७२-२१४ आहारमाहार १०८ आविधिहिति आव्यत्स्यति आययमुद्दिता आहारसम्मत्ति १०७ आवुजोणिय आयरणट्ठयाय आदरणार्थतया १३० आहाराहारा आवुणेया आयाग १५२-१६८ आहारिपेक्खित आहारिप्रेक्षित ३४ आवुपधगत आयिक प्राणिजवस्त्र २२१ कर्माजीविन् १०१-१६० आसक आस्य ४७ आयुक्कायिकाणि आसज्जित्ता आसज्य २५१ आहिचति क्रिया. ८३ आयुजोणीय अप्योनिक १४० आसणगत दोहदप्रकार १७२ आहेच्छिति किया. ८४ आयुधाकारिक आयुधागारिक आसणगिह आसनगृह १३६-१३८ आयुप्पमाणणिद्देस आसणऽज्झाअ आसनाध्याय १८३ पादपूत्तौं अव्ययम् ४ आयुप्पमाणे वस्ससतप्पमाणाणि आसणम्हि भोज्य १८१ आयोग आसणविधी तिविहा रस १३४-२३२ आरकूडमय पित्तलआभू. १६२ आसणस्स दिसा अट्ठ इत्येव ८० आरामजोणि आसन ७२ आरामपालक कर्माजीविन् ८९-१५९ आसणाणि इष्टकाप्राकार १६१ आरामवावत कर्माजीविन् १६० आसणाणि बत्तीसं १३ इड्डकार कर्माजीविन् १६१ आरामाधिगत कर्माजीविन् १६० आसणाभिग्गहविही आरिटुक ९२ आसणावत्थद्धरत आसनापस्तब्धरत १८४ इतिहास आरियदेवता देवता २०६ आसव सुरा ६४-२२१ इत्तेत्र आरुभंत आरोहत् १३६ आसवासव सुरा २२१ इत्थिा स्त्रियाः ३५ आरुभितक आरूढक २२० आसवाय पक्षिनाम ६२ इत्थीय स्त्रियाः १८ आरोग्गता १३५ आसवारिय कर्माजीविन् १५९ इमाणि इमानि ५ आरोग्गदार १४४-१४५ आसंदक आसन ६५-२३० इरिकाक पुष्प ६३ आलका क्षुद्रजन्तु २३७ आसंदग आसन १५-२६ इरिण १३४-१९० आलग्ग २१४ आसंदणा आस्यन्दना २६ इल्ली वस्त्र ७१ आलिंगा वाद्य २३० इस्सराणंतराणि अप्पथगत २२२ आहितग्गि आसने १६ इक्कास २० १५ इकास १४० आसणहारक ५१ इच्चेव ८१ इट्टक १३८ इट्टगपागार १५ इतिपिंडी भोज्य ७१ गोत्र १५० इत्येव ७ १२८ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द इस्सराणि इस्सज्ज इस्सरभूत इस्सरा इस्सरियामास इस्सरोपक्र इस्सापंडक इंगालकारक इंगालकोट्रक इंगालरिगा इंगालवाणिय गुण (दि) तेल्ल इंचका इंदकाइया इंटकेट ईसाभिमरित ईसिसपीलित ईसुम्म 'इंदगोपक इंदगोविका इंदणाम इंद इंदधय इंदमह इंदवड्ड इंदिआली इंदिआलि इंदीवर उउपाण उकरालीसं उक्कट्ठा उक्त उक्कडओकड उद्धति उक्त रिसाऽपरिसा उक्कस्स उक्कंठका उक्कंदित उक्कापात उक्कारिका पत्र शब्द १२८ उक्कासित ६१ उक्कुज्ज ५८-११९ उक्कुट्ठ ५८-११९ उक्कुट्ठ २०१ उक्कुट्ठ ११९ उक्कुडुक उक्कुलिणी नपुंसकविशेष ७३ - २२४ ऐश्वर्य कर्माजीविन् ९२ उक्कूज अङ्गारकोष्ठक २५४ उकूणित अङ्गारभूति १०६ उक्कोस कर्माजीविन् ९२ उक्कोस २३२ उक्कोसस मत्स्यजाति २२८ उक्खणंत क्षुद्रजन्तु २३८ उक्खलिका इन्द्रध्वज १०१ उक्खली क्षुद्रजन्तु १७३-२२९ उक्खंभमाण स्थलचर बहुपदा २२७ उक्खित्त १०१ उक्खित्ततुंबिक २०६ उक्खुली उ इन्द्रध्वज २११ उखलिका इन्द्रमह १०१ उग्गहित इन्द्रवर्धक १०१ उन्चाहित ८ उच्चपातरास पुष्प ६३-१७३ उच्चपति उच्चारित ई ईषदभिमर्दित २५ उच्छंदण ईषत्सम्पीडित २२ उच्छाडित ईषदुष्ट २२ उच्छुद्ध उच्छुरस उदपान १६७ उज्जवणिका एकचत्वारिंशत् ११७ उजागगिह उत्कृष्टा २४-३३ उब्जाणभोज्ज शोकार्त १२१ उज्जालक उत्कृष्टापकृष्ट ८६ उज्जुउल्लो उत्कर्षति ८० उज्जुकाणि उत्कर्षापकर्षात् १० उज्जुकामास वकर्ष १५ उज्झत द्वितीयं परिशिात्म् उत्कण्ठा १३६ उज्झीयति किया. १४८ उट्टपाल २०६ उट्टिका भोज्य १८२ उट्ठितपट्ठ उल्कापात पत्र शब्द १७६-२१५ उट्ठित्त उत्कुब्ज १८४ उडुजोणि उत्कृष्ट ९३ उबर उत्कृष्ट १७० उणमासक ध्वनि १७३ उण्णत उत्कुटुक ३७ उण्णतजोणि भाण्ड ७२ उण्णता उत्कूज १५५ उण्णमंत उत्कूणित १२३ - १४८ उण्णरूव ध्वनि १७३ उण्णवाणिय पक्षी २२५ उण्णामित देवता ६९ उण्णिक क्रिया. उत्खनत् ३८ उण्हणाभि उदूखलिका १९१ ठण्डा उदूखली ७२-१४२ उण्हाली उत्तम्भयत् ४२ उण्हिअ उत्क्षिप्त १७९ उण्हिपुण्णामतेल्ल ८१ उण्होलक भाण्ड १९३ उतदुंबरमूलीय ? उदखलिका २२१ तु उद्गृहीत १४८-१७१ उत्तमजोणि उद्घाटित १४८ उत्तममज्झिमसाधारणाणि २४९ उत्तमाणंतराणि क्रिया. १०७ उत्तमाणि वीसति क्रिया. १३२-१७० उत्तमामास क्रिया. १९३ उत्तरजोणि अउच्छादित १०६ उत्तरदारिक उत्क्षिप्त १७१ उत्तरपच्चत्थिम १८१ उत्तरपच्छिम उद्यानिका २४९ उत्तरपुरत्थिम उद्यानगृह १३८ उत्तराणि उद्यान भोज्य २५६ उत्तरिज्ज ९१ उत्ता ३४ उत्ताणपस्सिक ऋजूल्लोकित ५९ - १२८ उत्ताणरत १३० - १६९ उत्ताणसेज्ज उज्झत् १४८ उत्ताणाणि उत्शीयते २५० उत्तानुम्मत्यकाणि उष्ट्रपाल कर्माजीविन् १६० उत्तममज्झिमसाधारणाणि भाण्ड ७२ - २१४ उत्थत २१४ उत्थित २८५ पत्र क्रिया. १३३ १४० वृक्ष ६३ सिक्कक ६६ उन्नत उन्नमत् ३३-१३५ १४२ कर्माजीविन् १६० क्रिया. १६८ - १७० और्षिक १६३ उर्णनाभ ३३-१२४ १४० ५८ किया. ५८ चतुष्पदा ६९ भोज्य १८१ २३२ ६३ ९ ऋतु १९१ १३९ ९६ १२८ ५७-९३ १४५ - २०१ १३९ २०६ वृक्ष ५८ १११ ५८ ५८- ११० उत्तरीय ६४-१६४ ३८-२३६ उक्ता उत्तानपाश्र्विक २४९ १८४ २४९ 060 उत्तानशय्या १२८ ५९ - १२५ ५७ १४८ किया. १६८ - १७० Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ शब्द उदकचर उदकचार उदकजत्ता उदकवङ्गकि उदकाय उदकुण्डिका उदकेचर उदगगिह उदगचर उदगपरणालि उदगवल्ली उदग्ग उदत्त उदत्तदेसे उदपाण उदलादल उदाहित उदुकालहास उदुणीय उदुपाण उदुसोभा उदिच्च उदीरणा उदवित उद्दुत उद्दुयामास उढ उद्धभागा उद्धमुल्लो गित उद्धलक ? उद्धवित ? उद्धभागामास उद्धिततर उद्धीरमाण उद्भुज्जमाण उद्धमात उपक उपक उपकती उपकड़ित उपकड्डित्ता उदकोष्णिका भोज्य उदकयात्रा ८-९ उपग्गहण कर्माजी १६० उपविक मत्स्यजाति २२८ उपणत ७१ उपणद्ध ८० उपणय उदकगृह १३६ उपणयण उपणामित १८७ उपदासित उदकप्रणाली २४३ वृक्षजाति उपध्मानीय ७० उपपत्तीविजयोऽज्झायो उदग्र ९८ उपमाणक १२१-१४० उपरिगह २९ उपरिडिमजोणि १५१ देवता २०५ उपलगिह उपलद्ध उदाहृत ४८ उपलोलित उपवति उपवत्त उपवप्पित ? पत्र शब्द १३३ उपकुलणक्खत्त २२२ उपगृहित ऊर्ध्वोल्लोकित अंगविज्जाए सहकोसो ऋतुकालभास ऋतुमत्या १४५ - २२२-२३४ ऋतुशोभा २५७ उपविट्ठ औदीच्य १०५ ११ उद्द्भुत १४८ उपसन्नत्थिय उद्भुत १४८ उपसरित २०० उपसारित उदूढ २५० उपसेक ५८ उपाणह २०१ १८५ उपविट्ठरत उपविविधिविसेस ३४ उप्पल ११६ उप्पलगिह किया. १४७ उप्पाडक २०१ उप्पात अज्झाय १०० उप्पातक उद्भियमाण १९८ उपपातिका उपकृष्ट १६८ उमुक ? उपकृष्य १४५ उम्मज्जित पत्र शब्द २०९ उम्मज्जिताभिमट्ठ क्रिया. १६८ उम्मज्जितूण उपग्रहण ११८ उम्मट्ठ प्रीन्द्रियजन्तु २६७ उम्मेद्वाणि १६८ - १७० उम्मत्थित १६८-१७० उम्मर १४३ उम्महित उत्सव ९७ उम्माण किया. आलिङ्गित ? क्रिया. उपनद्ध १६८ - १७० उम्माणसंपण्ण १६८ - १७० उम्माणहीण १५३ उम्मुक्क २६९ उरच्छक ९८ उरणा उपरिगृह ३२ उरालक उपरिमयोनि १४० उरुणी उपलगृह १३७ उल्लंघित उपलब्ध १६८ उल्लंहित किया. १६८-१७० उल्लायक गोत्र १५० उल्लालित उद्भूयमान १४७ उप्पुत परिपूर्ण ११४ उब्धुभंड पक्षिनाम ६२ उभयभया उपकर्षत् १४४ उभयोर्सविरत उपकर्षन्ती १६९ भित्रणफणखपसाणगकुब्बई ? उपवृत्त १६८-१७० उत्त किया. १६८ उल्लूरधूविता उपविष्ट १७० उल्लोइत १८४ उल्लोएंत ५९ उल्लोकित उपसन्न्यस्त १६ उल्लोकेति क्रिया. १७० उल्लोगित १६८-१७० १७९ - २२० उल्लोपिक उपानत् १४२-१८३ उल्लोयित क्रिया. उत्पल १५ उल्लोहित उत्पलगृह १३६ उवकट्ठम्हि त्रीन्द्रियजन्तु २६७ उवकसित २१० उवक्खलित त्रीन्द्रियजन्तुः २२९ - २६७ उवगूढ मत्स्यजाति २२८ उवग्गहणाणि उत्प्लुत ३७ उवजिव्वा १९३ उवट्ठाणजालगिह ८ ल १८४ उवणात भाण्ड १९३ उवणिग्गमण ३४ उवत्त उन्मज्जित २५-१४८-२०६ उवत्थग पत्र १११ उन्मज्ज्य २३९ उन्मृष्ट २१ ९०-१२८ उन्मथित १४८ दे० देहली २९ उन्मथित १४८ लक्षण १७३ १७३ १७३ उन्मुक्त १४८ वर्म २५९ पुष्प ६४ ६६ धान्य कच्छ १४२ किया. १४८ अति १४८ कर्माजीविन् ९० किया. १४८ ७१ उल्लुप्त ११४ भोज्य उल्लोकित १६८ उल्लोकयत् ४२ किया. १७० उल्ल्ोकयति १४९ क्रिया. ४३-१३०-१७६ २०६-२१५ भोज्य १८२ क्रिया. १९७ किया. १०६ उपकृष्टे १७ उपकृष्ट १९८ उपस्खलित २५१ किया. ८६ ५८ किया. १६९ उपस्थान जालगृह १३६ उपस्थूल २०८ उपनामयत् ३७ ९७ १२२ उपस्थ ११४ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द उवथूलाणि उवदासिताणि उवद्दित ? उवहुत उवहुतामास बहुतो अग्झायो उवधाइणि ? उवधारए उवधि उवष्करिसते उवलक्खये उवलगिह उवलद्ध उवलेवमंडल स्ववत्तिविजय अज्झायो उववुत्त उवसक्कंत उवसक्किअ उवसक्किअम्हि उवसक्कित उवहित वातापुरामाणि स्वादिष्ण उववसित उवविट्ठविहि उपविष्टविधि ९-१०-११-१३ उववित्त उवे उवेसंत उव्वट्टण उव्वरक उव्वरित उव्वलित उव्वलेंत उव्वात उव्वेल्लित उल्हासित उसगीतेच जमतेव उसभक उसिण उस्सओ उस्सणिकामत्त आलिङ्गितानि १३८ उत्सव क्रिया. १४८ उस्सात उपद्रुत ५८-१२२ उस्सारित २०१ उस्साहिया २०२-२०४ उस्सित १८ उस्षिण उपधारयेत् १०० उस्सिथित उपधि- माया २६५ उस्सीस उपस्पृशति १०७ गुणी उपलक्षयेत् १९७ ठंडणाही उपलगृह १३७ उपलब्ध १७० ऊरुजालक ११६ ऊहस्सित पत्र शब्द ५८-११४- १२८ उस्सयभोयण २६४ उपोषित १९३ ऋरिकसुन १५ एकणासा उपवृत्त १०० एकभस्स उपष्वष्कमाण ३७-१३५ एकवेद उपष्वष्कित १६ एकाणंसा उपष्वष्किते १७ एकावलिका उपष्वष्कित १८४-१९३ एक्ककाणि उपहित २०२ एक्कग्गमणता १२८ एक्कभस्स २१७ एक्कसिरीय उपविष्ट १८४ एकापविदूरत उपादत्त उपविशत् १३५ एक्केक्क उद्वर्त्तन अपवरक १९३ एगपादट्ठि १९५ - २२० एण उद्धरित उद्वलित १०६ एतेसं १११ एताय उद्वलत् ३८ एतेसां उद्वात १२२ एलुक उदेखि १०८ एलुष उद्वेल्लित उदैहासिक १४८ एलूग २३२ एसकल्लाण २३२ द्वितीयं परिशिष्टम् आभू. ६४ ओकद्र उष्ण १२४ ओद्रित उत्सवः ९८ ओकड्डित कर्माजीविन् १६० ओकासक पत्र शब्द उत्सवभोजन १८० ओकुंभ ? उत्सव २२३ ओकूर्णत ऊष्मान्त १५१ ओगूढ उत्सारित ११५ ओघट्ट उच्छाखिका २२२ ओघट्टित उच्छ्रित १३२-१७० ओचक्खति ? आघ्राण १९३ ओचूलक १४८ - १८६ ओछुद्ध उच्छीर्ष ६४ ओमीण वृक्षजाति ७० ओड्ड क्षुद्रजन्तु २२९ ओणत आघ्रात ऊ ऋ ए देवता २०५ एकभाष्य एकवचन १५१ गोत्र १५० देवता २२३ आभू. ७१ ५९ एकाग्रमनस्कता १३५ एकवचन १५७ एकसरिक १४१ १८४ ओणमंत आभू. ६५ ओणामित क्रिया. १७६ ओणिपीलित ओतारिअ ११२ ओतारित ओतिण्ण एकैक १२६ एकपादस्थित ३३ एतं ५६ - ११४ ओधुत ओपणिव्वय ओपविका ओपुष्फ ओपेसेज्जिक ओबाधित एतया २३६ एतेषाम् १४५ एतेषाम् ७३-१४१ ओमज्जित ओम देहली २३३ ओमत्थकाणि देहली २२२ ओमत्थि देहली ५-३३ ओमथित ८३ ओमाहित एष्यत्कल्याण ओ अवकृष्ट ओतिष्णोतारित ओदणपिंडी ओदनिक ओदीयसिह ओधावति ओहि ओधिजिण ओमुक अवकृष्ट १६ ओमुक्क १७१ - १९५ ओमुंचमाण अवकृष्ट १६९ ओयकार कर्णआभू. १६२ ओयमा २८७ पत्र २४३ अवकूणत् ४२ अवगूढ ८६ अवघट्ट १४७ अव १४८ किया. ८३ शीर्ष १६२ अवक्षिप्त १६९ अपक्षीण ११४ कर्माजीविन १६१ अवनत ३३- ४२-१६९-१७१ अवनमत् ४२-१३५ अवनामित १६९-१७१-१८४ अवनिपीडित १४८ अवतारित १६९ अवतारित १७१ अवतीर्ण ३३-१७१ क्रिया. १११ भोज्य ७१ कर्माजीविन् १६० ९१ अवधावति ८० उपधिगृह १३६ अवधिजिन १ अवधुत ८०-१४८ क्रिया. १९५ क्षुद्रजन्तु २२९ ८१ कर्माजीविन् १६० अवबाधित १४३ ३३ अवम अपमार्जित १२० - २१९ १२९ अधोमुखीकृत १७१-२१५ अवमथित १६९ अवमंदित १६३ अवमुक्त १६२ अवमुक्त १६९-१७१ अवमुञ्चत् ३८ कर्माजीविन् १६१ गोत्र १५० Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओरुज्झ ५७ कचक्खी २८८ अंगविज्जाए सहकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र ओयवति साधयति २४२ ओहसित उपहसित ८१-२१५ कडिकतोरण कटिकातोरण १३६ ओरम्भिक कर्माजीविन् १६१ ओहास ७ कडिगेज्झक कटिग्राह्यक २४९ ओराणी आभू. ७१ ओहिज्जंत अपजिह्रियत् ८१ कडित कटित-कटयुक्त ३० ओरिक अवरिक्त १४८ ओहित अपहृत अवहित ३४ कडीगहितरत १८४ अवरुह्य ३९ ओहीण अपहीन ४६ कडुकालमच्छ २३७ ओरुभंते अवरोहति सप्तमी एक० ३३ कडुमाय चतुष्पद ६२ ओरूढ अवरूढ १४८ ककाडिका कृकाटिका ६६-११२-१२१ कडूकीका वृक्षजाति ७० ओरेचित अपरेचित १४८ ककितजाण गोत्र १५० कड्डित कृष्ट १४८ ओलकित अवलगित ? १४८ ककी पक्षी ? २३९ कढ गोत्र १५० ओलमित ? क्रिया. २३५ ककुलुंडि भाण्ड २१४ कढिणधातुगत १३३ ओलंबित अवलम्बित १४८ कक्कडी मत्स्यविशेष १८३ कणलीकत ? २५९ ओलोएत अवलोकयत् ४२ कक्कब गुडविशेष १८२ कणवीर गुल्मजाति ६३ ओलोकित अवलोकित १३०-१७१ कक्करपिंडग भोज्य २४६ कणवीरका कनीनिके ९३-१२५ ओलोलित क्रिया. ८१-१६९ कक्कुस कुकुस १०६ कणिकार कर्णिकार ९० ओवट्टित अपवर्तित १६९-१७१ कर्कशः १८९ कणिल्लिका कनीनिका १२५ ओवत्त अपवृत्त १६९-१७१ कक्खडाल कर्कशः ३३ कणेट्ठिका अङ्ग १३४ ओवयित अवपतित २५८ कक्खारुक-ग फल ६४-२३८ कण्ण गोत्र १२५-१५० ओवात अवपात १४९-२४९ कक्खारुणी वृक्षजाति ७० कण्णकोवग कर्णआभू. ६४ ओवातसामाणि गोत्र १५० कण्णखील कर्णआभू. ६५ कचि क्वचित् १५४ कण्णगूधक कर्णगूथक-कर्णमल: १५५ओवाताणि ५७-९० कच्छभक ओवातिक १७८-२०३ ६९ परिसर्पजाति स्थल-जलचर २२७ कच्छभमगर मत्स्यजाति २२८ कण्णचूलिगा कर्णचूलिका ६६ ओवातिका अवपातिका ६८ कच्छा कक्षा २०१ कण्णतिल धान्य १६४ ओवादकर अवपातकर ४ कज्जूरी खजूरीवृक्ष ७० कण्णपालिक कर्णआभू. ११६ ओवारि कज्जोपक कार्योपग २५४ कण्णपाली कर्णपाली ६६-१२४-१४१ ओवारित अपवारित वस्त्र ७१ कण्णपीलक कर्णआभू. ६५-१८३ ओवालित काष्ठ १५ कण्णपुत्तक अङ्ग ९३ ओवास कर्णआभू. १८३ आभू. ६५ कण्णपूरक कर्णआभू. ६५-१८३ ओवुलीक चतुष्पद जलवाहन १६६ कण्णरालक। धान्य १६४ ओवेढग. आभू. ६५ कट्ठखोड दे० काष्ठखोड १५ कण्णलोडक कर्णआभू. ६५ ओवेढिय अपवेष्टित कट्ठमय आभू. १६२ कण्णवलयक कर्णआभू. ११६ ओसधगिह औषधगृह १३७ कदमयं पीढं काष्ठमयं पीठम् २६ कण्णवल्लीका कर्णआभू. ७१ ओसधजवागू भोज्य कट्ठमुह वाहन १९३ कण्णवीही धान्य १६४ ओसधीपडिपोग्गल कट्ठहारक काष्ठहारक ८९ कण्णसक्कुल्ल अङ्ग १५५ ओसर कटुंसालुक (कंठमालक) रोग २०३ कण्णाणिव्वहण उत्सव १४३-१४४ ओसरक कर्माजीविन् १६० कण्णातिमास १८६ ओसरित अपसृत १६९ कद्वैवट्टक कण्ठआभू. १६३ कण्णातिलग तिलकप्रकार २४६ ओसारित क्रिया. १३०-१४८-१७१ कडक-ग स्तनआभू. ६४-६५-१६३ कण्णापवाहण कन्याप्रवाहन ३१ ओसीसजंभिय अवशीर्षजृम्भित ४७ कडुच्छिका ७२ कण्णायावहण उत्सव १४४ ओसुद्ध क्रिया. १४८-१९७ कडमच्छ त्रीन्द्रियजन्तु २६७ कण्णावासणो अज्झायो १७५-१७६ ओसूतक अवसुप्तक २४९ कडसक्करा वर्णमृत्तिका १०४-२३३ कण्णिका । कर्णआभू. ७१ ओहत उपहत १४८ कडाहक भाण्ड २१४ कण्णिकार वृक्ष ६३ ओहत्थहसिय अपहस्तहसित ३५ कडिउपकाणि कटीआभू. १६३ कण्णिवल्लीबंध ? __१६५ १४ क्रिया. कटुतरी २१६ १८ अपसरक १३७ कद्राधिकत Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८९ कंगुका कंगूक रोग २०३ कैची शब्द कण्णुप्परिका कण्णुप्पलक कण्णुप्पीलक कण्णेपूरक कण्णेयाणि कण्ह कण्हकराल ? कण्हकीडिका कण्हगुलिका कण्हणीलपडीभागा कण्हतिल कण्हतुलसी कण्हपडीभागे कण्हपिपीलिका कण्हमोयक ? कण्हलुक्ख कण्हवण्णपडिभागा कण्हविच्छिका कण्हाणि कण्हामास कण्हाल ? कण्हेरी कतमस्सि कतलिछारिका ? कतंब कतिमि कतरिका कत्थलायण कद्दमग कधा कधामज्झक कपिट्ठ कपित्थतेल्ल कपिलक कप्प कप्पासिक कप्पासी कप्पोपक कभेइका कमंडलू कम्मकत कम्मगिह द्वितीयं परिशिष्टम् पत्र शब्द पत्र शब्द अङ्ग १२३ कम्मजोणी अज्झाय १५९-१६१ कसक कर्णआभू. ११६ कम्मणक्खत्त २०९ कसकी कर्णआभू. १६२ कम्मण्ण ? ५ कसरि कर्णआभू. १६२ कम्मदार १४६ कसिगोरक्ख ५९-१२८ कम्मासवाणिज्ज कर्माजीविन् १६० कसित वर्ण १०४ कम्मिक कर्मिक ६१ कसेरुक ९२ कम्मियि कस्मिश्चित् ८५ कसेरुक क्षुद्रजन्तु २२९ कम्हियि कस्मिंश्चित् १७ कस्स ? उद्भिज्ज २२९ कयण्हिक कृताहिक २४७ कस्सव १२८ कयर पक्षिनाम ६२ कस्सामो रोग २०३ कयार कचवर १०६ कंक वनस्पति ९२ कर वृक्ष ६३ कंकण १०४ करकी भाण्ड ७२ कमालाय कंकसालाय क्षुद्रजन्तु २२९ करणमंडल ५८-११६ ९२ करणसालाय करणशालायाम् १३८ कंग १२८ करणोवसंहिता १२८ ५७ करमंद फल ६४-२३१ कंचणिका क्षुद्रजन्तु २२९ करल ५७-९२-१२८ करंजतेल्ल कंचीकलापक १३० करंडग करण्डक कंचुक ९२ करिण्हुका उद्भिज्ज २२९ कंटकमालिका चतुष्पदा ६९ करिलेग फल २३८ कंटकालक कतमस्याम् २६४ करीस करीष १०६-१४२ २५५ करेणूयक कदम्बवृक्ष ६३ करोडक कंटासक भाण्ड ६५ कतमाम् १०९ करोडी कतरिका १९१ कलभ गोत्र १५० कलवा गोत्र १५० कंठेगुण स्थल-जलचर २२७ कलस कथा ४० कलहिभी वृक्ष ? २३८ कंडूसी पक्षिनाम ६२ कलाय फल २३९ कलायभज्जिय भोज्य १८२ कंतिकवाहक २३२ कलायस फल २३१ कंदल पक्षिनाम ६२ कलिमाजक फल ६४ कंदलि गोत्र १५० कल्लाडक मत्स्यजाति २२८ कंदित वस्त्र २२१-२३२ कवचिका भाण्ड ७२ कंदियविधि . कर्पासी ७० कवल चतुष्पद ६२ कंदूग कल्पोपग ६२ कवल्ली भाण्ड ७२ कंबल कृमिजाति ७० कविट्ठ वृक्ष ६३ कंबलिक भाजन १०१ कविजल पक्षी ६२ कंसकारक कर्मकृत २५६ कवी पक्षी १९५ कंसगिह कर्मगृह १३६-१३७ कव्वुड ? ८१ कंसपत्ति उद्भिज्ज २२९ वृक्षजाति ७० भोज्य ७१-१७९ कर्माजीविन् १५९-१८५ गोत्र १४९ भोज्य १८१ फलजाति ११४ गोत्र १५० क्रक्ष्यामः २३६ रोग २०३ करआभू. ६५ कङ्कशालायाम् १३६-१३८ पुष्प ७० धान्य १६४ वृक्षजाति भाण्ड ७२ कटीआभू. ७१ कटीआभू. ६५-१६३ वस्त्र ६४ आभू. ७१ कण्टकमय कण्टकिवृक्ष फल ६४ आभू. ७१ चतुष्पद ६२ कण्ठसूत्र ? ६४-२५८ अङ्ग ६६-११९ गोत्र १५० जलवाहन १६६ ७९ पुष्प ६३ वृक्ष २४३ कन्दित ४६-१६२ ९-१० आभू. ६५ वस्त्र १७ वस्त्र २२० कर्माजीविन् १६०-१६१ कांस्यगृह १३६ भाण्ड ७२ वस्त्र १ कटकीरुक्ख भाण्ड ७२ कंटिका बाल २७ कंटेण भाण्ड ६५ कंडरा धान्य १६४ कंडे Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोत्र १५० किडिभक रोग २०३ कुद्दि १४४ कितबुद्धि रोग २०३ कित्तयिस्सं ५८ २९० अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र कंसलोह धातु २३३ कावकर काव्यकर ९१ कुट्टित किया १५५ कंसिक कांस्यिक ९० कास १७७ कुट्ठबुद्धी कोष्ठबुद्धी ८ काकमज्जुक पक्षी २२५ कासक कर्षक २४९ कुठारिका भाण्ड ७२ काकवाल ? १४२ कासमाण १३५ कुडज वृक्ष ६३ काकंडकवण्ण १०५ कासित क्रिया १३०-१४८-१६८-१८४ कुडिला ५९-१२४-१२९ काकाक पक्षी १४५ कासंत कासमान ३७ कुडुकालक मत्स्यजाति २२८ काकुरुडी गोत्र १५० काहापण सिक्कक ६६ कुडुंबक २४३ काकुंथिका उद्भिज्ज २२९ काहावण सिक्कक १३४-१८९ कुडापस्सय कुड्यापश्रय ३० काणटिट्रि कृमिजाति ७० किज्जर भाण्ड २२१ कुढारक भाण्ड ६५ काणवि वृक्षजाति ७० किद्रित कीर्तित १४२ कुणिणख रोग २०३ कार्तब कादंबपक्षी ६२-१४५-२२५ किडिका दे० खडक्किका २७ कुतिपि उद्भिज्ज २२९ कापुर कर्पूरसमान १९६ किडिग रोग २०३ कुदु(डु)क कुटुक १३५ काप्पायण क्रिया. १५७ कामजोणी ५३-५५-१३९ किणिहि कमिजाति ७० कधुलूक पक्षी ६२ कामदार कृतबुद्धि १२२ कुद्धता क्रुद्धता १३५ कामल कीर्तयिष्यामि ३४ फल ६४ कामसच्च कामसत्य कुभंड ९ किपिल्लक कृमि ६६ कायतेगिच्छक कर्माजीविन् १६१ कुभिधी पुष्प ७० किपिल्लिका कृमिजाति ७० कायतो ११७-१२८ कुमारीला मत्स्यजाति २२८ किमिका कृमिजाति २२९ काया कुम्मासपिंडि कुल्माषपिण्डी ७१ किमिमंडलिकारिका कारयिस्सति कारयिष्यति १७५ कुरबक आभू. किलकिलायिअ क्रिया १८६ कारिअल्लिका वृक्षजाति ७० कुरबक वृक्ष ६३ किलास कारुककम्म कर्माजीविन् १५९ रोग २०३ कुरिल ? २३७ १८८ कारुकाजोणि किलिट्ठपरामास १३९ कुरुडूका पुष्प ७० कारुगगिह ५९-१२६-१२९ कुलणक्खत्त कारुगिणी कर्माजीविनी ६८ किलिट्ठामास कुलत्थ धान्य १६४ कारंडअ-व क्लिन्न १०६ कुलत्थकूर भोज्य क्लीब ७३ कालक पक्षी ६८-२३८ किलिम पक्षिनाम ६२ क्लेशित १४८ कालककालिका कुलिंग क्षुद्रजन्तु २३८ कालक्खारमणी शलाका १३४-१९० कुलीयंधक आभू. १८३ कालज्झाय २६०-२६२ किविल्लका - कृमि ७२-२२९ कुलीर मत्स्यजाति कालप्पविभाग सर्पिणी ६९ काललोह धातु २३३ किसा २०९ काललोहमय धातुवस्त्र २२१ किस काललोहमय आभू. १६२ कीतक २२० कालस्साम कालश्याम ६८ कीलणक कालंची भाण्ड ७२ किसुग कुसीलक कुशीलव कर्माजीविन् १६० मत्स्यजाति कालाडग ६३ कुकुंदल सुरा २२१ कालापरण्णपिंडी ? ५ कुक्कयणायं ? १४२ कालिका वृक्षजाति ७० कुक्कुड अङ्ग ११४ कुसुंभ धान्य १६४ कालिंग फल २३९ कुक्कुडिगा २३२ कालिंगी वृक्षजाति ७० कुक्खिधारक कुक्षिधारक ७९ कुंजित क्रिया. १६२ कालेयकरस २३२ कुच्चोलि ? २३६ कुंट गुल्मजाति । ६३ कुच्छिया कुत्सिता ५ कुंडग . भाण्ड ६५ कारुकगृह २५८ किलिट्ठा २०९ २०१ पक्षी ६२-२२५ किलिण्ण कुलल १५३ किलेसित आभू. १६२ किलंज २६० किस ५८-१२८ कुलीरा कृश ११४ कुलोपकुल कीतक १६६ कुविक कीडनक १४५ कुसणगत अङ्ग १२३ कुसुकुंडी १३० कुसुमालिका फल ७१ कुसुंभतेल्ल Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ कुंभ भोज्य २२० कोद्दव १३० कोमारभिच्चा पक्षिणी ६९ कोरेंटक कूभंड फल २३९ कोलफल द्वितीयं परिशिष्टम् २९१ शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द कुंडमालिका आभू. ७१ कोटुिंब जलवाहन १६६ खचित धातुवस्त्र २३४ कुंडल कर्ण आभू. ६४-१६२ कोट्ठक कोष्ठक १३६-१३७ खज्जकारक कर्माजीविन् १६० गोत्र १४९ कोट्ठाकार कोष्ठागार १३८ खज्जगगुल गुलविशेष १८१ कुंडिका १९१ कोट्ठाकारिक कोष्ठागारिक १५९ खज्जगत दोहदप्रकार १७२ कुंथू क्षुद्रजन्तु २२९ कोट्ठागार कोष्ठागार २२२ खज्जापज्ज खाद्यपेय १०७ कुंभ जलवाहन १६६ कोडित क्रिया. २१५ खजूर फल ६४-२३८ कुंभकार कर्माजीविन् १६० कोडिलक्खणक आसन २३० खट्टा खट्वा १७-२६ कुंभकारिक कर्माजीविन् १६१ कोडिवग्गे ५९ खडुग मौक्तिककटक ६४-११६ कुंभकंडका फल २३२ कोडी १२७ खडुभायणगत गोत्र १५० कोढिक कुष्ठरोग २०३ खणता क्षणदा २४५ कुंभिकारीआ क्षुद्रजंतु २३८ कोतवक वस्त्र १६३ खणंत खनत् ३८ कुंभीकपंडक कोत्थकापल भाजन २७ खत्तपक क्षत्रपक सिक्कक ६६ कूचफणलीखावण ? १८३ कोत्थलग ८५ खत्तबंभ १०२ कूचिय धान्य १६४ खत्तवेस्साणि १०२-१२८ कूडणाणक कर्माजीविन् १६१ खत्तसुद्द १०२-१०३ कूडपुरी वर्ण १०५-१४१ खत्तिक १०२ कूडमासक कोरेंटवण्णपडिभागा ५८ खत्तिकोसण्ण १६१ कूडलेक्ख कोलक फल २३१ खत्तिय पादआभू. १८३ फल कोलथ धान्य २२० खत्तियजोणि १३९ कूभंडग २३८ खत्तियज्झोसिय १६१ कूभंडी कुष्माण्डी कोलिक कर्माजीविन् १६१ खत्तियधम्मक पादआभू. ६५-१६३ कूरवेला २४७ कोलिक वृक्ष ६३ खत्तेज्जवेस्सेजाणि ५७-१०२ कूवित क्रिया. १५५-२१४ कोलिक क्षुद्रजन्तु २३७ खत्तेज्जाणि ५७ केआ रज्जुविशेष ११५ ६३ खत्तेयाणि १०१ केज्जूर आभू. कोविराल वृक्ष ६३ खदिर वृक्ष ६३ केणिक ? ६२ खपल्लापाडण ? चतुष्पद केतभी वृक्षजाति ७० केयवसक कोशगृह १३८ खफुट्ट ? कोसज्जवायका केयिच्च केचिच्च २३६ कर्माजीविन् १६१ खरड कोसरक्ख कर्माजीविन् १६० खराई भाण्ड ३०-७२ ५९-१२४-१२९ कोसंब वृक्ष ६३ खलक ६४ केलास पर्वत ७८ कोसिक केवतिखुत्तो कियत्कृत्वः १८६ गोत्र १४९ खलिणगिह १३६ केस क्लेश ३६ कोसिवलगत २१८ खलित स्खलित १४८ केसणिम्मज्जण केशनिर्मार्जन कोसेज्जक प्राणिजवस्त्र १६३-२२१ खलुक गुल्फमणिबन्ध ११४ केसमोलि केशमौलि १४६ कोसेज्जिका वस्त्र ७१ खंजण खञ्जन ९२ केसवाणिय वस्त्र ६४ खंडसीस अङ्ग १५३ कोच्छ गोत्र १४९ कोसीधण्ण १६४-१७८ खंडित क्रिया १४८ कोज्जक १०६ खंद-विसाह देवता २०४ कोटिंब नौकाविशेष १४६ कोंडा गोत्र १४९ खंधार स्कन्धावार २५८ कोट्टकवास वृक्ष ? २३८ खंभावस्सय स्तम्भापश्रय २७ कोट्टाक कर्माजीविन् १६० खइत खादित ८१ खंस ? कोट्टित किया १९४-२०३-२३९ खईआ क्षयिका १८ खाति खादति १०७ कोट्टिम शयन ६५ खघाणस गोत्र १५० खारका चतुष्पदा ६९ अंग० २४ कोविडाल वृक्ष w w कोसक १०६ १०६ फल २३४ कोशगिह २०३ केला. केशवणिग्६७ कोसेयपारअ पुष्प ६३ कोंटक Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ २४७ अंगविज्जाए सहकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र खारमणी रत्न १९४-२१५ गहेतूणं गृहीत्वा ३९ खारलोह धातु १३३ गजाधिपति कर्माजीविन् १६० गंगावत्तग भोज्य ? २४६ खारवट्टिका भोज्य १८२ गज्जित क्रिया १६८ गंडक कर्माजीविन् १६१ खालक पशु २२७ गडिक ? ६२ गंडसेल गण्डशैल ७८ खाहिति खादयिष्यति ८४ गणक कर्माजीविन् १६० गंडीपाद रोग २०३ खिडागत गोत्र १५० गणिकाखंसक कर्माजीविन् १६० गंडीवेला खिप्पकार क्षिप्रकार ४ गणितापढपणक ? ९७ गंडूपक आभू. ६५ खिखिणिक पादआभू. ७१-१६३ गणेस्सरिक गणेश्वरिक १२३ गंडूपक कृमि २२९ खिखिणिमहुरघोस ध्वनि १७३ गततालुगवण्णपडिभागा गजतालु ५८ गंडूपयक जङ्घाआभू. १६३ खिसित किया. १४८ गतवय गतवयः १०० गंदित क्रिया १४८ खीणवंस क्षीणवंश १०० गति लक्षण १७३ गंधगत १८८ खीरपक मृत्तिका २३३ गद्द पक्षी २३९ गंधजोणी १४० खीरपादप क्षीरपादप ३० गद्दतोय देवता २०४ गंधविसारद ग्रन्थविशारद ४ खीररुक्ख क्षीरखक्ष २७ गद्दभ गोत्र १५० गंधिक कर्माजीविन् १६० खीरविक्ख क्षीरवृक्ष ५ गद्दभकप्पमाण मत्स्यजाति २२८ गंधिकगायक कर्माजीविन् १६० खीरस्सव क्षीरावलब्धि ८ गद्दभग पुष्प ६३ गंधेय ५८-१२३-१२८ खीरिणिविरणउदुंबरिणिआ ८ गब्भगिह गर्भगृह १३६ गंभीरा ५८-१२४-१२९ खुज्जंग कुब्जाङ्ग ११७ गम्म ग्राम्य १७९ गागरक मत्स्यजाति खुडित खण्डित ११५ गम्मारण्णा ग्राम्यारण्याः १८८ गाढलीण खुड्डुक बाल १६९ गम्मी ? ६ गाढोपगूढ खुडग हस्तआभू. ६५ गयगिह गजगृह १३६ गाणक गान ९१ खुड्डसिरीसिव क्षुल्लसरीसृप १६७ गयगोकण्ण पशु २२७ गाधमक मत्स्यजाति खुड्डाकसत्त क्षुल्लकसत्त्व १६८ गयतालुकवण्ण १०५ गामणक्खत्त २०९ खुड्डिकासु रच्छासु २१४ गयवारी गजवारी १३६-१३७ गालित क्रिया. १४८ खुधित क्षुधित १३०-१४८-२१५ गयसालाय गजशालायाम् १३८ गिज्जिहिते गास्यति ८४ अङ्ग ११९ गयाधियक्ख गजाध्यक्ष १५९ गितकारि गीतकार ९१ खुलुक कर्माजीविन् १६० गरुलक आभू. ६४ गिरिकुमारी देवता २२४ खुलुक परिसर्पजाति ६३ गलगंड रोग २०३ गिरिजण्ण गिरिजन्य २४४ खुल्लिका उद्भिज्ज २२९ गलुक रोग २०३ गिरिमेरुवर पर्वत ७८ खुवित किया. १५५-१७६ गल्लिका यान २६ गिल मत्स्यजाति ६२ खुसित किया. १४८ गवल? ९२ गिल्लि वाहन ७२-१६६-१९३ खुहित क्षुब्ध १६२ गवलभंड? २१५ गिधी गृद्धि १३ खेड २०१ गवलमय ? आभू. १६२ गीवरोग रोग २०३ खेडणक्खत्त २०९ गहकंडुक क्षुद्रजन्तु २३८ गीवा पक्षी २२५ खेडुखंड ? १७ गहगत दोहदप्रकार १७२ गुग्गुलविगत रस २३२ खोडक भोज्य १८२ गहणणिविटुं १६१ गुज्झ गुह्य १२६ खोडित किया. १४८-२१५ गहणाणि ५८-११८ गुढिकाय? गूढिकायाम् १६७ खोमक वस्त्र १६३-२३२ गहणोपगहण १२१-१२९ गुणोपजय २०१ खोमदुगुल्लग वस्त्र ६४ गहपतिक गोत्र १४९ गुण्हु (गंडू) पया कृमि २२९ खोरक भाण्ड ६५ गहर पक्षी ६२ गुरुत्थाणीत गुरुस्थानीय १८७ खोलकमालिका पुष्प ७० गहिका गोत्र १५० गुरुल रोग २०३ खुला Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द गुलकूरक गुलखित ? गुलदधि गुलभक्खण गुलमग गुलिक ? गुलुकपुप्फ गूहित गेज्जकव्व गेज्झ गेवेज्ज गोकंटक गोच्छक गोज्ज गोज्झकपती गोज्झरति गोज्झाणि गोट्ठाण गोणस गोतमा गोतन्द्राय गोत्तम ? गोधसालक गोधूम गोधूमभज्जिय गोपच्छेलक गोपाल गोप्फा गोब्बर गोमच्छ गोल गोलिक गोलिंग गेवभतिकारक गोवयक्ख गोवित पत्र भोज्य ६४ - १७९ शब्द भाण्ड गोसग्ग १४८ गोसग्गण्हाणक किया. भोज्य २२० गोसंखी ९८ गोहातक ६५ १०६ घडक १७७ घडभायण १४८ घडी १४७ घणकडत ? ३९ घणपिच्छिलिका ? द्वितीयं परिशिष्टम् किया. गेयकाव्य ग्राह्य गृहीत्वा कण्ठआभू. ६५ घतउण्ह मृत्तिका २३३ घतकूरक पुष्प ६४ घयजवागू दे० ? ३९ घरकोइला गुह्यकपति ६२ घरपोपलिका १३७ घरिफल ५९ - १२५ - १२८ घसेंत गोस्थान ५ घंटिक सर्पजाति ६३-२३९ घंसित गोत्र १५० घायति १४९ - १५० गोवकीडग गोमेदम रत्न २१५ पोसाकी गोमेयकमय रत्न आभू. १६२ घोहणुमच्छ गोम्मि त्रीन्द्रियजन्तु २२७ - २३८-२६७ गोरीपादक कर्माजीविन् १६९ चउदसपुव्वि गोत्र १४९ चउरंसा वाहन १६६ चउव्वीस वाहन १६६ चक्ककमिहुणग कर्माजीविन् १६० चक्कचर गोव्रजाख्य १५९ चक्कमंडल गोपित १४८ चक्कलग घिघिणोपित ? १४५ चिसुम सुरा ६४ घुक्कभरध धान्य १६४ घुण्णित भोज्य १८२ घुमति प्राणी ९२ पोति कर्माजीविन् १५९ घोडदाढिकर ? गुल्फौ ११२ - १६५ घोडित छगण १०६ घोलि मत्स्यजाति २२८ घोसक परिसर्पजति ६३ घोसवंत पत्र शब्द प्रभात २४७ चक्कवा प्रभातस्नान ९८-२५५ चक्कवाकयीअ कर्माजीविन् १६० चक्काक कर्माजीविन् १६१ चक्किक चक्खणिका घ भाण्ड ६५ त २२२ चक्खुसा ७२ चक्ाणि ११८ चक्खुस्सं आभू. ७१ चच्चर भोज्य २४६ चणक भोज्य ६४ - १७९ चणव च भाण्ड भोज्य १८१ चणविका चतुष्पदा ६९ चतु परिसजीव २२७ चतुकगिह २३८ चतुक्काणि घर्षयत् ३८ चतुक्खुत्तो १४७ चतुचक्रीया घर्षित १४८ चतुपह्वयण ? जिघ्रति १०७ चतुष्पंदरत किया. १४८ चतुरस्सा ग्रीष्म १४७ - १९९ चतुरंसायत क्षुद्रजन्तु २२९ चतुवेद पूर्णित १४८ चत्तालीसतिवग्गा क्रिया. ८० चपला घोटयत्ति २५८ चमुतेस ? १४७ चम्मकार घोटित ४६ चम्मकोस यान २६ चम्मक्खील कर्माजीविन् १६१ १५३-१६७ चम्मणडोला वनस्पति ७० चम्ममय मत्स्यजाति २२८ चम्मसाडी चम्मिरा ८ चम्मिराज ५८ - ११७ चयणी चतुर्विंश १ चरिका आभू. ६४ चरुकगत पाषण्डविशेष १४९ चलाणि चतुर्दशपूर्विन् ११६ चलामास २४२ चलिका चक्रक २९३ पत्र पक्षी २२५ पक्षी २२५ ध्वनि १७३ चक्रिक १४७ आस्वादनिका २५८ चक्षुरकान्तः १२० चक्षुषा ५६ चाक्षुष्काणि १९६ चक्षुष्मान् १९५ १३६ - १४५ धान्य १६४ धान्य १६४ चत्वर धान्य २२० १२६ चतुष्कगृह १३६ - १३८ ५९ चतुः कृत्वः १८४ चतुशकिका २४२ १५४ १८४ १२८-१६१ चतुरस्रायत ११६ चतुर्वेद १०१ ५९ ५९ किया. १५५ कर्माजी १६१ चर्मकोश २१६-२२२ चर्मकील- अर्शोरोगः १७४१५५-२०३ फल २३१ भाण्ड २२१ चर्मवस्त्र २२१ - २३० मत्स्यजाति २२८ मत्स्यजाति २२८ चयनी १०१ प्राकारसम्बद्धा १३६ भाण्ड २१४ ५७-७९-१२८ १३०-१३२ फलजाति ७० Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ शब्द चलित चलोढ चल्ला चवला चसणिका चसित्त ? चंडक चंडाणता ལྭཱ་ ླ་ चंदण चंदणरस चंदणिकातेल चंदलेहा चंपकतेल्ल चंपकाली चंपगपुप्फ चाउल्ल चातुव्वणविधाण चातूहिक चापल्ल चाय चार चारकपाल चारायण चालित चांडिक चिति चितका चित्तकारक चित्तकूड चित्तगिह चित्तजीवी चित्तपडिमा चित्तवण्ण चित्तवण्णपडिभागा चित्तविज्जा चिबुक चितूर्ण चिराइत चिराय चिलाती अंगविज्जाए सहकोसो पत्र शब्द किया. १४८ चिल्लक चोलपट्ट १४२ चिल्लिक अंङ्ग ६० चिचिणिक १२५ चितितं अज्झातो स्थल - बहुपदा २२७ चितितो अज्झायो १५३ चिफलक गोत्र १४९ चीणपट्ट ५९ - १२४ - १२९ चीणंसुग पुष्प ७० चीती वृक्ष ६३ चुक्कितक २३२ बुडिलीय २३२ चुण्णक ६९ पुण्णहारिका २३२ चुण्णिकार १०४ चुरु पुष्प ६३ चुल्लमाता चापल्य ३ चुली देवता १०३ चुंबणा सोलस चातुरहिक २६१ चुंबित चापल्य ३ चुंबिय. भोज्य १८१ चुंबियविभासापडलं वृक्ष ६३ चुंभल कर्माजी १५९ कुंभलक क्रिया. गोत्र १५० चूचुका क्रिया. १४८ चेट्टितक ? गोत्र १४९ चेति १०१-१४८ चेतिक चिता २५४ चेतित कर्माजीविन् १६० १६१ चेक्तिपादव पर्वत ७८ चेतितागत चिता चित्रगृह १३७ - २२२ चेतिय कर्माजीविन् १६० चेलिकमुत्तीजा चित्रप्रतिमा १८३ चेलिम वर्ण १०५ चोरघाता ५८ चोहरा चित्रविद्या १३० चोरवासो नगर अङ्ग ११४ चोरवेला चित्वा २३५ चोरालि चिरातिवृत्त १६ चोलक ९५ चोलाडिगा बिलातदेशजा ६८ चोलोपणयण वस्त्र वृक्ष नपुंसक वृक्ष पत्र २२३ आसन १५ २३४ छगणपीढग छगली ६४-१६३-२३२ छट्टग्गहणी वस्त्र ६४ छटुसाधणी चिता २३४ छड् भोज्य २४६ छत छण ९२ गृहधवलनद्रव्यम् १०४ २५५ कर्माजीविन् १६० कृमि २२९ सपत्नीमाता ६८-२१९ शब्द ६३ ७३ छहच्छेद ७० छक्क चैत्य चैत्य छत्तकारक छत्तधारक छत्तंसासणहारण ? भाण्ड ७२ छमिणी चुम्बनानि षोडश ११ छलंगवी छत्तोध छद्देमाण छप्पि ४८-१३८-१६८-१८३ क्रिया. ९-१० ४९ पुष्प ६४ छंदोक अवतंस - शेखर २४२ छंदोग छागलिक स्तनाग्र ६६ जाति १४९ चैत्य १४८-२३३ छातक छात ३१ छातता २६ छायत्त ३० छाया चैत्यपादप चैत्यागत ४१ छायाखंभ चैत्य १४७ छायासंपन्न सेलिकसूत्रा १८ छायछायाहीण २७ छारिअ कर्माजीविन् १६९ कि कर्माजीवि १६० हिन १६१ छिण्णंगाला २४७ छित्त भोज्य ७१ छिन्नगाली संस्कारोत्सव ९७ - १४३ छिर क्षुद्रजन्तु २३८ छिरा उत्सव २२३ छिवित छ छविच्छेद १४४ १२६ १८४ २६ ६६ ८ ८ रोग २०३ छर्दयत् ३७ क्षण १२१ कर्माजीविन् १६० कर्माजीविन् १६० ७९ वृक्ष ६३ छर्दयत् १३५-१३७ षडपि १९१ वृक्षजाति ७० गोत्र १५० षडस्र २४२ १२० छन्दयति १३ गोत्र १५० गोत्र १५० कर्माजीविन् १५९ दे० बुभुक्षित ३८-१२१ क्षुधितक १४२-१४३ छलंस छलिक (छंदक) ? छंदेति षट्कृत्वः छगणपीठक अङ्ग-चोटिका ? षष्ठग्रहणी षष्ठसाधनी पत्र क्षुधालुता १३५ दे० बुभुक्षितत्व ११ लक्षण १७३ २७-३० १७४ १७४ ३९ ६३ छायास्तम्भ क्षारिका रक्षा गुल्मजाति छिन्न १-१३१ प्राणी २३९ स्पृष्ट ? ७९ कुलटा १८३ प्राणी २३७ शिरा ६६ १८३-१८४ स्पृष्ट Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छीत 11303 छेलित छेलित द्वितीयं परिशिष्टम् २९५ शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र छिदंत छिन्दत् ३८ जधण्णाणि .१२८ जाणगिह यानगृह १३६-१३८ छिदंती छिन्दती १६९ जधण्णामास २०१ जाणजोणी अज्झाय १६५ क्षुत १६८ जधाजात यथाजात ४४ जाणसाला । यानशाला १३८ छीयमाण क्ष्यमाण १३५ जधाणात यथाज्ञात ५६ जाणिज्जो जानीयात् १५-१७ छुधा क्षुधा १६८ जधामाणसिक वस्त्र ? १६४ जाणि ज्यानिम् ५३ क्षुण्ण १४८ जधाविधि यथाविधि ४६ जाणेज्जो जानीयात् ३६-४४-५४ छुपगत वनस्पतिप्रकार १७७ जधावुत्त यथोक्त ४४ जातकम्म जातकर्म १४७ छुभगत वनस्पतिप्रकार १८१ जधासत्ति यथासत्ति ६३ जातिणक्खत्त २०९ छुवफल १७७ जधोद्दि? यथोद्दिष्ट ४३ जातीतेल्ल २३२ . छुहा सुधा १०४ जमलभूसण १५६ जातीपट्टणुग्गत वस्त्र १६४ छुछिका चतुष्पदा ६९ जम्मणा ५८ जातीपडिरूपक वस्त्र १६४ छेत्तमंडल क्षेत्रमण्डल ११६ जयकालिका सुरा २२१ जातीविजयो अज्झायो १४९ छेलंत सेण्टिका कुर्वत् १३५ जयतणं ? ५४ जामवेला २४७ सेण्टित १४८-१७३ जयविजय ? १४६ जामातुकीक जामात्रिक सेण्टिकां कुर्वत् ४६ जयसमण पुष्प ७० जामिलिक वस्त्र जयो अज्झायो १९९ जारिका जारी जइणक कर्माजीविन् १६०. जलगिह जलगृह १३७ जारीय जार्याः १६ जक्खोपयाण यक्षोपयाचन १८३ जलपस्संदण जलप्रस्यंदन १९७ जाला कृमिजाति ७० जगतिजगभूय जगतीजगद्भुत ६ जलाउ द्वीन्द्रियजन्तु २६७ जालिंकर किया. १४८ जगल सुरा २२१ जलामास १४६-१८६ जावक गोत्र १५० जग्गंतक अग्निज्वालनकर्कटिका २५४ जवभज्जिय भोज्य १८२ जावतिक यावत्क २३८ जग्गिक वस्त्र २३२ जवातू यवागू १८१ जिणसंथवो अज्झाओ जघण्ण जघन्य ४८ जसवओ यशस्वतः ९ जिणोत्त जिनोक्त ५ जज्जरित किया. १४८ जहण्णकाया १२८ जिस्से यस्यां २४९ स्थानविशेष १३८ जहण्णाणि ५७-९४ जिह्यमूलीय १५३ जणक कर्णआभू. १६२ जंगम ५८-१२१ जीवंजीवक पक्षिन् ६२ जण्ण यज्ञ १२१ जंगमाला पुष्प ७० जीवंतायणा गोत्र १५० जण्णकारि यज्ञकारिन् १०१ जंघावाणियक कर्माजीविन् ७९ जीवितद्दार १४४-१४५ जण्णजण जन्यजन ९८ जंतुतर अङ्ग ८३ जुगमत्थ युगमस्तक ११५ जण्णमुंड यज्ञमुण्ड १०१ जंपितविभासापडलं ४८ जुग्ग वाहन १६६-१९३ जण्णुकाणि अङ्ग १२४ जंपिताणि सत्तेव ४७ जुण्णवय जीर्णवयः १०० जण्णुगसंघी अङ्ग ११४. जंबुफल फल ६४ जुत्तग्घ १६३ जण्णेया ५८-१२३ जंबुफलक भाण्ड ६५ जुत्तग्घम्हि युक्ताये १६ जण्णोपइतक यज्ञोपवीतक १०१ जंबूका आभू. ७१ जुत्तप्पमाणदीहाणि ११५-१२८ जतुकार कर्माजीविन् १६० जंभाइत जृम्भायित ४७ जुत्तसंपीलित युक्तसम्पीडित २२ जतुमज्झ अङ्ग ७७ जंभाइयाणि सत्त ११ जुत्तामासाय ९३ जतूणि अङ्ग ६० जंभायमाण १३५ जुत्तोपचया ५८-११४ जत्ताज्झायो १९९ जंभित किया. १४८-१६८-१८४ जुत्तोवचयाणि ५८-११४-१२८ जत्तूणि अङ्ग ९५-१०१-११५-१२१ जंभितविभासा पडलं ४७ जुवतीयो १२५ जधजुत्त यथायुक्त ४४ जागी पुष्प ७० जुवतेयाणि ५९-१२८ जधण्णकाया ११७ जागू यवागू ७१-२४७ जुंगलिका त्रीन्द्रियजन्तु २६७ जधण्णतरका १२८ जाचितक याचितक १६५ जूतगिह द्यूतगृह १३६ जधण्णतरका काया ११७ जाणक यानक २६ जूतसालाय द्यूतशालायाम् १३८ huni sss . 136,114 1 1 13111 जणक 2 1 Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्जेव १८ णत्थण पत्र वृक्ष ६३ नप्त ६८ दे० नस्तक २०२ दे० नस्तन २१४ नास्ति १९ पक्षी २२५ दे० २२५-२२८ दे० २२५ १२० ड १३९ १४२ १२९-२०४ णपुंसकणक्खत्त लघु ११९ णपुंसकाणि दहत् ३८ णपुंसकामास गोत्र १५० डिप्फर डोभा नौविशेष ७९ णमोक्कत गोत्र १५० णमोकारयित्ता गोत्र उता ६८ पक्षी २३९ ढल्लिय मृत्खण्ड २१५ णल २९६ अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द जूधिका पुष्प ७०-१०४ ठियपडल ३३ णत्तमाल जूव यूप १०१-१४८ ठियपत्थिय १० णत्ति जूस ६४ ठियविहि ९ णत्थक एव १४६ ठियंतिय जोइसमंडल ज्योतिर्मण्डल ११५ ठियामट्ठा णत्थि-त्थी जोगक्खेम योगक्षेम १३४ ठियामासा ५९-१०४-१०५-१२८ णदीकुकुडीक जोगवहा योगवाहाः १५३ णदीपृत्तक जोजयितव्वं योजयितव्यम् १८५ डआलुअ नौविशेष १४६ णदीसुत्तक जोणिका यौनदेशजा ६८ डहरक लघु ९८-१२८-१५३ णपुंसकजोणि जोणिवालिक ? डहरचल जोणी अज्झाय १३८-१४० डहराक जोणीलक्खण वागरण १४०-१४४ डहंत जोतिसिक आसनविशेष १७-२६-६५ णप्फडित जोयिज्जमाण ___योज्यमान १९८ डुपकहारक जोव्वणत्थजोणि १३९ जोव्वणत्थमज्झिमवयसाधारणाणि ५७ णयणातिमास डोहला जोव्वणस्थाणि ५७-९७-१२८ णयणामास जोसिता युवती णरमच्छ ढंकराली णरसीह ढेल्लिका झणित नितम्बौ ११४ ध्वनित १४७ णरेतर झपित क्षपित १४३ ण झय ध्वज १४२ णल झयक्खंभ ध्वजस्तम्भ णइकुक्कुडिका झल्लरीमंडल ११६ णकूड स्थानविशेष १३६ सानो झंकक आभू. ६४ णक्खत्तमंडल झंझणित क्रिया. १४७ णक्खत्तविजयो अज्झायो २०६-२०९ णवणीत झामित ध्यामित १४८ णक्खपद नखपद १८५ णवमल्लिका झामितापस्सअ २७-३० णक्खंतरातिमास १८६ णवमिगा किया. ८१-१४८ णगत्ति गोत्र १५० तकविक्कला झुझुायित क्रिया. १४८ णगरगुत्तिय कर्माजीविन् १६० गंतुका झुपित क्रिया. १४८ णगरणक्खत्त २०९ णंदिविणद्धक झुसिर शुषिर १०० णगरदेवता देवता २०६ णवुतिवग्गा झोसित क्रिया. १४८ णगररक्ख कर्माजीविन् १६० णवूहक णगरविजयज्झाअ १६१ णहसिहा टक्कारी वृक्षजाति ७० णगराधियक्ख नगराध्यक्ष १५९ णहसेढि टेट्टिवालक पक्षी २२५ णग्गोध वृक्ष ६३ णाग णच्छक रोग २०३ णागतण्णु ठइय स्थगित २४१ णट्टोसक नाट्याचार्य ? ६७ णागमालक ठवेतूण स्थापयित्वा १९७ णट्ठ नष्ट १४८ णागरुक्ख ठाणज्झाय १५९ णट्ठकोसयो अज्झातो २२२ णागवेला ठितविधिविसेस ५९ णट्ठजोणि १३९ णाणी ठितसाधारण १३९ गट्ठाणट्ठो अज्झायो २१७ णातिकिसा ठितामास २१ णडिकुक्कडिका पक्षिणी ६९ णापुण्णमंडल ठिदामास २४ णतिभया ८ णाभिणिद्दिसे २०९ ५७-७२ १६८-२०१ निस्फटित २१७ नमस्कृत १५५ नमस्कृत्य ११२ १८६ १३० मत्स्यजाति २२८ पशु २२७ ७३ वृक्ष ६३ मत्स्यजाति २२८ आभू. ७१ . नवकृत्वः १८४ उत्सव ९८ भोज्य २२० पुष्प ७० देवता २०५ नंतकविकला १९६ पक्षिणी ६९ शीर्षआभू. १६२-१८३ पक्षी २३८ पलियमालिका ११५ णवण झीण पदार पक्षी २२५ अङ्ग १२४ नखश्रेणि १२५ परिसर्पजाति ६२ अनागतज्ञ १२९ गुल्मजाति ६३ वृक्ष ६३ २४७ ७६ ५८-११४ ११६ न अभिनिदिशेत् ३८ . Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ णित्थुद्ध ? १२८ नित्यशः १५८ णिद्धमण कर्माजीविन् ७९ णिच्छुद्ध १०७ शब्द णामज्झाय णायकाणि णाराय णारास ? णारिए णालक णालिक णालिकेर णालिमज्झाणि णावा णावाखंभ णावाधिगत णावाधियक्ख णाविक णाविकम्म णासपुडा णासातिमास णासाय पुत्तक णिकडि णिकड्डति णिकाणित णिकुज्ज णिकुज्जक णिकुज्जित णिकुंचिमट्टि ? णिकुंजण णिकूड णिकूजित णिक्कट्ठित णिक्कड्डित णिकाणित णिक्कुडरच्छासु णिक्कूड णिक्ख णिक्खणंत णिक्खणंती णिक्खण्ण णिक्खिण्ण णिक्खित णिक्खित्त णिविखप्पमाण णिक्खुड द्वितीयं परिशिष्टम् २९७ पत्र पत्र शब्द पत्र १५८ णिक्खुस्सति ? क्रिया. १०८ णिण्णेत ? क्रिया. १९८ ५९-१२६-१२८ णिक्खेवउपावण क्रिया. २१७ णितण्णिका पुष्प ७० नाराच ११५ णिगमणी निर्गमनी ७ णितरिंगि आभू. ७१ २१४ णिगमाणं निगमाज्ञाम् २५८ णित्थणित निस्तानत १७१ नार्याः २९ णिग्गमजोणि क्रिया. १७१ भाण्ड ६५ णिग्गमा एक्कारस णिद्दिज्जति नर्दीयते-लूयते २४३ फल २३९ णिग्गयविधि णिद्दीण निर्दीर्ण ? १७१ ९-१० वृक्ष-फल ६३-६४ णिग्गयविभासापडल णिधाणो अज्झायो २१४ णिधीसुत्त २६२ अङ्ग ७७ णिग्गिण्ण निर्गीर्ण १०७-१३३-१७६ नौ १६६ णिपुंटक ? णिद्धणिद्धतराणि १५१ नौस्तम्भ २७-३० णिच्चक्कित णिद्धणिद्धा ५८ निश्चकित २५३ कर्माजीविन् १६० णिच्चसो णिद्धम निर्धम ३२-३३ निर्द्धमन १३६ नावाध्यक्ष १५९ णिच्छालित णिद्धलुक्ख वर्ण ५८-१०५-१२८-१८६ निक्षिप्त १६८-१७१ णिद्धलक्खवण्णपडिभागा कर्माजीविन् णिच्छेव निक्षेप-पर्यन्त २३५ णिद्धलूहाणि अङ्ग णिच्छोडण निश्छोटन १०६ णिद्धवण्णपडिभागा णिच्छोलित निस्तक्षित १६८-१७१ णिद्धा ५८ अङ्ग ७६ णिज्जामक निर्यामक ७९ णिद्धाडित निर्धाटित १६८-१७१ निकृति २६५ णिज्जायतो निर्यान् १९८ णिद्धाणि उम्मट्ठाणि ११३ निकर्षति ८०-१०८ णिज्जासगत निर्यासगत १७७ णिद्धामास १३०-१३३ किया. १८५ णिज्झाय निर्ध्यात ३४ णिद्धावति निर्धावति ८० क्रिया. १८४ णिट्ठिता सुरा २२१ णिद्धोत निधौत १०६ निकुब्जक ४५ णिट्ठिअभासअ निष्ठितभाषक ४ णिप्पतित निष्पतित १६९ निकुब्जित १६९निष्ठयूत १४८-१७१ णिप्फाडित निस्फाटित १६९ निष्ठ्यूत १४६ णिप्फाव निष्पाव धान्य १६४ निष्ठीवत् १३६ णिप्फावित ? क्रिया. १७१ क्रिया. १६८ णिप्फीलित ? क्रिया. १५७ णिटुभंत निष्ठीवत् ३७-१३५ णिप्फेडित निस्फेटित १७१ निष्ठ्यूत १८३ निष्कृष्ट १९८ णिटुभित णिमामित निर्धामित १०६ निष्कृष्ट १६८-१७१ निष्ठीवति ८० णिमित्तसंग्रह निमित्तसङ्ग्रह १ निकाणित १८३ णिठूल णिमित्तहियय निमित्तहृदय १२९ २१४ णिडालपस्साणि ललाटपावें णिमिल्लहसित निमीलहसित ३५ निष्कूट-स्थान १३७ णिडालमासक आभू. ६४ णिमिल्लंत निमीलत् ३७ निष्क १५२ णिड्डील? १६९ णिम्मज्जित निर्मार्जित १३०-१५७निष्खनत् ३८-१४४ णिणादित निनादित ४६ १६८-१७१-१८४-२१५ निखनती १६९ णिण्णगंभीर निर्मुष्ट २१ निखात १७१ णिण्णजोणि निम्नयोनि १४० णिय ? ९८ निखिन्न ८०-१०८ णिण्णयण निर्णयन १९८ णियखेति पश्यति १०७ निक्षिप्त १४८ णिण्णाणि ५८-१२३-१२९ णिरत्थकाई ५९ निक्षिप्त १६८ णिण्णामित निर्नामित १६८ णिरत्थाणंतराणि १२९ निक्षिप्यमाण १९८ णिणिज्जमाण निर्णीयमान १९६ णिरत्थे १२६ निष्कुट १४९ पिण्णीत निर्णीत १७१ णिराकत निराकृत १६९ G णिद्भुत निकुञ्जन १३० णिटुद्ध निष्कूट १३६ णिटुभमाण णिटुंघति निपर २०८ निष्ठुर १२४ णिम्मट्ठ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ शब्द णिरागति णिराणत णिरातार ? निरुक्खगं णिरुत्त णिरोपजिव्वा णिलिक्खति मिलुलित णिलुंचित गिलूचित गिल्लिखित णिल्लिक्खण णिल्लिहित पिल्लूवित पिल्लूहित मिले पिल्लोलित णिवण्णविभासापडल णिवण्णाणि णिवसिहिति णिवार्सेत शिवुर निवेद्व णिवेसण शिवोह‍ णिवोल्लित णिव्वगत निव्यट्टियमाण निव्यट्टित णिव्वदा ? णिव्वर ? णिव्वलक निव्वहण निव्वाडित णिव्वाधिक णिव्वामण णिव्वामित णिव्वासित णिव्वाहित निव्वि जिव्विसुतो अज्झायो णिव्वुति जिसक पत्र गोत्र १५० णिसढ निरानत १६९ णिसण्ण शब्द ८२ णिसित्त निर्वृक्षकं १९१ णिसीदंत निरुक्त २ निवत्स्यति ८४ निवासयत् ३८ गिसुद्ध निरुपजीव्या १६९ पिरसट्ट निखिति १०७ णिस्सरित किया. १७१ णिस्ससंत किया. १६८ णिस्ससित १६८ क्रिया. निर्लिखित १३० - णिस्संघति १६८ - २१५ णिस्संघित निर्लिखन १०६ णिस्सारित निर्लिखित १५७ णिस्सावित ? क्रिया. १७१ णिस्सित नीरूक्षित १७६ णिस्सिघंत निर्माल्य ? १०८ णिस्सिघित निर्लोलित १६८ णिस्सिघेमाण ५३ णिस्सेणि १३८ वि अंगविज्जाए सहकोसो वृक्ष ६३ णीघाअ णीपुर णीपुर णीयमाण निविष्ट १४३ निवेशन १६५ णीया १०८ निमज्जयति ? निमज्जित ? १७१ णीरक्कए २१४ णीलक निर्वर्त्यमान १९८ णीलकधातुक निवर्तत १०१ गोलकंठक निर्वलक निर्वहन ९८ १५४ णीलखारमणी ७९ - १५५ णीलपडीभागा १०६ णीलमिग नीलवण्णपडी भागा निष्पातित १६८ नीलवाणियक निर्व्याधिक १९१ गोलहारककम्म निर्वाचन २६० निर्वामित णीलीकारक १६९ निर्वासित जीहरति १७१ निर्वाहित १५५ णीहार निर्विष्ट १७१ णीहारगत २१५ - २१६ णीहारजोणि निर्वृति ३० णीहारणीहारा भाण्ड ७२ गोहारपडल पर्वत निषण्ण निंषिक्त निःसृष्ट, अत्यन्त निःसृत पत्र शब्द ७८ णीहाराहारजोणि ३८ णीहाराहारा णीहारि निषीदत् पातित १९७ १६८ ३८ णीहारिपेक्खमाण णीहारेति पीहू ४४ १६९ - १७१ निःश्वसत् १३५ निःश्वसित १६८ - १७१ गुल्मजाति णुत्तमालक णुमज्जु ? णूण ? निश्शिङ्खति १०८ निःशिक्षित १४६ णेरिता किया. १६८-१७१ णेलकती यातुकासहा ? इकाणि किया. १७१ णेलकंठक निश्रित १७१ णेलकित ? निःशङ्खत् ३७ णेलवंत निःशङ्कित १८६ गोहित निःशङ्खत् १३५ पोति निःश्रेणि ३१ ण्हाणगिह वृक्ष ६३ ण्हाणघर निर्मात ५ ण्हाणघरिय डीन्द्रियजन्तु २६७ हापिति आभू. ६५-११६ - १६३ ण्हायमाणो नीयमान १९८ ण्हाविय ५९-१२६ - १२९ ण्हुसाय निराकृते १७१ वर्ण १०४ २३३ तक्कुलि तक्कुली तकोदण तक्क ६३ आभू. १६२ तच्छेमाण १०४ तजगत नीलमृग २२७ ५७ नीलवाणिजक ९२ ९२ तट्टक तट्ठकार कर्माजीविन् ९२ तड निःसरति १०८ तणच्छत ? ५८ - १०७ - १२८ तणपीढक १६१ तणसाला १४० तणसोल्लिका ५८-१०८ - १२८ तणसोल्लिय १०८ तणहारक तज्जातपडिपोग्गल तज्जायपडिरूव पत्र १४० ५८ - १०८ - १२८ ३४ ३४ क्रिया. १०८ वृक्षजाति वनस्पति १४१ ७० ३९ १४८ ६८ ५९ - १२५ गोत्र १५० वर्णमुत्तिका २३३ ९२ १०४ पर्वत ७८ स्निग्ध १०६ क्षिपति-नोदति ८० स्नानगृह १३८ स्नानगृह २२२ कर्माजीविन् १६० स्वास्यति ८४ ३८ स्त्रान् नापितकर्माजीविन् १६१ स्रुषायाः २९ त तक भोज्य २२० भोज्य ७१-१७९ पुष्प ७० भोज्य २२० तक्षत् ३८ त्वग्गत १७७ १४२ १८-३१ भाण्ड ६५ कर्मानी १६० तट क ३० ५२ तृणपीठक २६ तृणशाला २५८ मल्लिकाविशेष १०४ पुष्प ६३ प्रीन्द्रियजन्तु २६७ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द तणाधिगत तणित तणुणह तणुत्तय तणुमज्झ तणुलोम तणू तण्णक तण्णिका तण्हाइत तताणि ततियलोकहितव तध तन्निभोवनिभा तपनीयतिलक तपुमय तपुस तपसेालुक तप्पक तप्पण तप्प पिडी तप्पणा तप्पणा तयागत तयो तरच्छ तरपअट्ट तरवच्च तलकण्णिक तलकोड तलगिह तलतालघोस तलभ तलवरी तलपक्क तलपत्तक कर्णआभू. तला तलिय तलुसी वि तवुसी तस्स पत्र शब्द कर्माजीविन् १६० तस्सायत तत १४७ तंडित तनुनख ११७ तंत ? तनुत्वक् ११७ तंतुवित तनुमध्य ११७ तंदेसि तनुलोमन् ११७ निष्काव ५८-१२८ तंबभूमी तर्णक ९७-१४२ तंबमय तर्णिका ६८ तंबाणि तृषित २५३ तंबाधावक ५९ - १२५ तंबाराग १२९ तंसा तथा २९ ताडक १० तामरस तिलकप्रकार २४६ तालखंड आभू. १६२ तालवेंट तप्रक जलवाहन तर्पण तर्पणपिंडी फल ६४ भाण्ड उपकरण भोज्य त्वग्गत २६७ तालबोट तालुका १६६ तासित १०६ तिउण ७१ तिकाणि ततः ३४ तरक्ष ६२ कर्माजीविन् १६० तरवारी ११५ त्र्यत्र आभू. ११६ गुल्मजाति ६३ तलगृह १३६-१३८ ध्वनि १७३ फल ६४-२३९ ६४-११६ १६२-१८३ कर्ण आभू. ६५-११६ कर्माजीविनी ६८ कृमिजाति ७० शयन ६५ ७० पुष्प भाण्ड ७२ पुषी-कर्कटिका ७० १९१ तिकुज्ज १८२ तिक्खक १७७ तिक्वलह तिक्खा तिक्खामास तिक्खिण तिर्गिच्छसरिस तिमिच्छा तिज्जज्जोणिगताणि तिज्जभाग तिज्जाणत तिण्णयाम द्वितीयं परिशिष्टम् तिण्णि तिन्हा तित्तिल तित्थपाल तित्थवापत तिद ? तिधिणी तिपिसाचक १२६ तिमितिमिंगिल पत्र शब्द ११६ तिमिरक त्र्यस्त्रायत क्रिया. १४८ तिमिंगिल मृत्तिका २३३ तिरिच्छजोणिया आभू. १६२ तिरिच्छाण ५९-१२५ - १२८ तिरिच्छीण कर्माजीविन् ७९ तिरिण ? लेह्य भोज्य १८२ तिरियामास ५८ तिरोड पशु २२७ तिलक पुष्प ६३ तिलक व्यजनकविशेष ? २०५ तिलकालक तालवृन्त १४६ तिलक्खली तालवृन्त १९८ तिलतेल्ल १५ तिमी सन्तुष्पूतं १९० विप तद्देशे २३८ तिरिक्खजोणिका धान्य २२० तिक्खिजणीकाणूक - अङ्ग ६६ तिलपिंडी त्रासित १४८ तिलभज्जिय त्रिगुण १४४ तिलवेल्लववाका ? ५९-१२३ तिल १५५ तिलेमाण ? गोत्र १५० तिवेद धातु २५९ तिह ५८-१२२ तिगिच्छिग १८८-२०२ तिंदुक तीक्ष्ण १९० तिरुकी वर्ण ९० तीतवय पुष्प ७० तीता ऽणागय-संपदा ६२-१२९ तिर्यग्भाग २११ तीतिणि तिर्यगानत १५५ तीलक तीर्णयाम २४९ तीस परिसर्पजाति ६३ तुच्छाणि तीर्थपाल कर्माजीविन् १६० तुच्छामास तीर्थव्यात कर्माजीविन् १६० तुच्छित १४२ तुडियाण देवा ६९ तुत्ताणा कण्ठआभू. १६२ तुरित मत्स्यजाति २२८ रुकतेल १२६ तीसतिवग्गा १२९ तीसालिका गुल्मजाति मत्स्यजाति मत्स्यजाति आभू फल अतीता ऽनागत साम्प्रतात् २९९ ཀླ ཀླ 「 ६२ त्रिक २१६ ५९ १७४ १२५ तिरश्चीन ५२ तिरश्चीन १४ क्रिया. १४७ १३१-१६९ शीर्षआभू. ६४ ललाटआभू. ६४-१८३ वृक्ष ६३ रोग १५५ - २०३ तिलखली १८२ २३२ भोज्य ७१ भोज्य १८२ १९५ धान्य १६४ क्रिया. १६९ गोत्र १५० त्र्यह २६१ ६५ ६४ ७० वृक्षजाति अतीतवयाः १०० पत्र १० फल २३८ उद्भिज्ज २२९ १२७ ५९ ७० पुष्प ५८-१२४-१२९ १३०-१६८ क्रिया. १४८ बाहुआभू. १६३ उत्ताना १८४ त्वरित ४१ २३२ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० शब्द तुल्लग्घ तुल्लजोणी तुवरि तुंबुरु तूका तूण तूण तूरित्थ तूहा तेणित तेतेण तेत्तिरिक तेमग्गिह ? तेरणि तेलवण्णिकरस लेखकूर तेजवागू तेवरूक तेसं तेसं तेसं तोडण तोड़ तोडुक तोपभोगतो तोप्यरूपमा तोमर तोरण त्तेवं थइआ थक्केंत थणपाली थणंत थणित थलचर थला थलिका भविका थंभायणा थंभित थाल थालक थालिका थाली तुल्यार्ध्य पत्र १६ थावरा १९४ थिग्गलगत धान्य १७८ थितामास फल २३८ थिया स्त्रियाः यूका ७० थिल्ली रोग २०३ थीणक्खत्त ऊन २०७ थीणव त्वरिष्यसि २६० वृक्षजाति थीणामजोणि ऊहा ५६ थीणामाणि स्तनित १४८ थीणा [ मा ] मास एतेन २३६ थीपरामास गोत्र १५० थी भागा २५८ थीय शब्द 最 ७० थुल्ला थूणा तेषाम् ९५ तेषां तेषाम् १४७ २३२ भोज्य ६४ थूणिकाखल भोज्य १८१ थूणिकारस त्रीन्द्रियजन्तु २६७ यूभाग भूस्का थूलाणि फल २३८ लिड ? क्षुद्रजन्तु २३७ २२७ पशु ? उपभोगतः २६७ उत्सव ? ९८ ११५ ६४ ६७ अंगविज्जाए सद्दकोसो दककिमि दक्खाणक दक्खिणगत्तामास दक्खिणजोणि इत्येवम् दक्खिणदारिक दनिखणपच्चत्थिमा दक्खिणपच्छिमणि थ नकुलिका प्रकार २२१ श्राम्यत् ३८ दक्खिणपुरथिमा स्तनपाली ६६-२०४ दक्खिणाचार स्तनत् ३६ दक्खिणाणि स्तनित २०६ दक्खिणामास १८७ दक्खिणोद्दागं नगरं ५८-१२३-१२८ दग स्थलिका ३० दगकोट्ठग अङ्ग ११५ दगलगी गोत्र १५० दगवड्डगि स्तब्ध १४८ दच्छ भाण्ड ६५ दढका भाण्ड ६५ दढचल भाण्ड ७२ दढहुत ? ७२ दढाणि भाण्ड पत्र शब्द ४६-१२८ दढामास स्थिग्गलगत १८५ दणि ? २४-१९८ दण्णपाण ? २५-३४-३६-४७-१२५ दति यान ७२ दद्दरक २०९ पिलक गोत्र १५० दहुम्मण १३९ दधिकूर ५७-६६-७२ दधिताव १८७ दधिवण्ण १३१ दधिसर ५९-१२८ दपकार स्त्रियाः २४ दरकडाय ११३ दलायते दलिय स्कन्ध २२० दलुका २२१ दल्लभी ? स्तूप १७८ दविउलंक अङ्ग ६६ दविय ५८-११७- १२८ दव्वी क्रिया. १४८ दव्वीकर दसखुत्तो द्वीन्द्रियजन्तु २६७ दसमीहाणक आभू. ६४ दसाह २०१ दसीरिका १३९ दस्सामो २०६ दहफलिहा ५८ दहरचलणा १३९ दहरचला ५८ दहरत्थावरा ७४ दहरथावरेज्जा दंडमाणव ५७-१०९ - १२८ १४५ - १६८ दंतखय १६१ दंतगिह दक १२१ दंतगूधक दककोक १३८ तचुण दर्याष्टि ३० दंतपज्ज दकवर्द्धकिन २५५ तपवण दक्षः ९८ दंतमय गोत्र १५० दंतमय १८६ दंतवेढी १५५ दंतसिहा ५७-७७-१२८ दंतसेढिका पत्र १३०-१३३-१८८ १९० १५१ १६६ वाद्य २३० रोग १५५ क्रिया. १४७ भोज्य ६४ भोज्य ६४ - १७९-२२०-२४६ वृक्ष ६३ दधिसत्कपदार्थ १०४ कर्माजीवि १६० ईषत्कृतायाम् १३० विकसति ८३ दलिक ८० प्राणी २३९ ६८ दृति जलवाहन सर्पविशेष भाण्ड १९३ द्रव्य १३४ दवी पाण्ड ७२ २१८-२२७-२३९ दशकृत्वः १८४ दशमीस्नानक ९८ १२७ १८२ दशाह भोज्य द्रक्ष्यामः २३६ द्रहपरिखा २२२ ५८ ११९ ११९ ५८ पक्षी ६२ दन्तक्षत १८५ दन्तगृह १३६ दन्तगूथ-दन्तमल १७८ दन्तचूर्ण १०४ अङ्ग १५५ दन्तपवन ५ आभू. १६२ भाण्ड २१५-२२१ दन्तवेष्टि ६६ अङ्ग १२५ दन्त श्रेणि १२४ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०१ पत्र पत्र द्वितीयं परिशिष्टम् शब्द शब्द पत्र शब्द दंतंतरातिमास १८६ दीणामास १६८ देवणक्खत्त दंसणट्ठयाय दर्शनार्थतया १३० दीणारमासक सिक्कक ६६ देवताययणमत्तिका मृत्तिका २३३ दंसणियाणि ५८-१२३-१२८ दीणारी सिक्कक ७२ देवताविजयो अज्झायो २०४-२०६ दायते क्रिया. ८३ दिणोदत्त ४२-४९-१४० देवदूता देवता २०४ दारकण्णय द्वारकर्णक १९५ दीपिक पशु २२७ देवयागे भुत्तं देवयागभोजन १८० दारपाल कर्माजीविन् १६० दीवरुक्ख दीपवृक्ष-कल्पवृक्ष २७-३० देवहच्चा गोत्र १५० दारपिंड द्वारपिण्ड ३१ दीववेलिका २४७ देवागार २२२ दाराधिगत कर्माजीविन् १६० दीवालिकाणि भोज्य १८२ देवाणूक १७४ दारुकआधिकारिक कर्माजीविन् १६० दीविक चतुष्पद ६२-७२ देसंसि देशे ३७ दारुणा ५९-१२९ दीविकाधारक कर्माजीविन् ९१ दोणी भाण्ड ७२ दारुणामास १८८ दीविकाहारिक कर्माजीविन् ९१ दोहलो अज्झायो १७०-१७२ दारुणे १२४ दीहकील सर्प २३९ दालित दारित १४८ दीहजुत्ताणि १२८ धकंटि वृक्षजाति ७० दालिम दाडिम फल ६३-६४-२३१-२३८ दीहपदा (ट्ठा) मत्स्यजाति २२८ धणजाय गोत्र १५० दालिमपूसिक भाण्ड ६५ दीहवग्घ श्वापद २२७ धणित ध्वनित २३९ दालिय दारित ८० दीहसक्कुलिका भोज्य १८२ धणित दे० अत्यन्त ४-२३-२४ दासिघर दासीगृह २२२ दीहाणि ११४-१२५ धणिता प्रिया ६८ दाहिणाचार ७४ दीहाणुम्मज्जिताणि १२८ धण्णक चतुष्पद ६२ दाहिणामास १३१ दुकुल्ल दुकूल वस्त्र १६३ घण्णजोणि ३२-१४० दिअंडकंबलवायक कर्माजीविन् १६१ दुकुंछ जुगुप्सा १२२ धण्णजोणी अज्झाय १६५ दिग्घग्गीव २३९ दुगुल्ल दुकूल वस्त्र २३२ घण्णरस १८१ दिग्घपाद २३९ दुग्गट्ठाणाणि १२५-१२९ धण्णवा धान्यवान् १०५ दिग्घा ५८-११५ दुग्गथाणा ५९ घण्णवाणिय कर्माजीविन् १६० दिजाती गोत्र १०१-१४९ दुग्गंधपरामास १८८ धमित ध्मात १४८ दिज्जिस्सति दास्यति १७५ दुग्गंधा ५८-१२२-१२९ धम्मक पादआभू. १८३ दिट्ठिवाय दृष्टिवाद १ दुग्गंधामास २०१ धम्मजोणी ५३-१३८ दितिका दृतिका २३० दुद्धकूर भोज्य ६४ धम्मट्ठ कर्माजीविन् १६० दिमिलि द्रविडदेशजा ६८ दुद्धजवागू भोज्य १८१ धम्मण फल ६४ दिरुल ? २३८ दुद्धवेलिका २४७ धम्मणग सर्प २३८ दिवड्डखेत्ताणि द्वयर्द्धक्षेत्राणि २०७ दुद्धण्हिका दुग्धोष्णिका भोज्य ७१-२४६ धम्मण्ण वृक्ष ६३ दिव्वा ५९-१२५-१२८ दुभस्स द्विभाष्य-द्विवचनम् १५१ धम्मसच्च धर्मसत्य दिसा दिशि ३२ दुम्मणेज्जो दुर्मनस्कः ४३ धम्मिक्क धार्मिक दिसादाह दिग्दाह २०६ दुरुम्मट्ठ दुरुन्मृष्ट २२ धम्मी पुष्प ७० दिसावाणियग कर्माजीविन् ७९ दुवारसालाय द्वारशालायाम् १३६-१३७ धव वृक्ष ६३ दिसाहुत दिगभिमुख १४ दुवेद गोत्र १५० धवलपड १०४ दृष्ट्वा २४९ दुस्सिक कर्माजीविन् १६० धवासी वृक्षजाति ७० धृति ६ दूभग दुर्भग ७९ धविका नकुलिका विशेष १६५-१७८ दीणउल्लोगित दीनोलोकित ३४ दूरम्म? १११ धंत ध्मात १६८ दीणगा १२१ दूरातिसरित किया. ८७ धंसित ध्वंसित १४८-१९७ दीणता १३५ दूरोगाढ दूरावगाढ ८७ धातक ध्रातक-सुभिक्ष १३५-१४२ दीणपडिपोग्गल १४३ देवजोणि ६२ धातीकुमार ? १६८ दीणा ५८-१२९-१४० देवड कर्माजीविन् १६० धातुजोणी ३२-४९-१३२-१४० दिस्स दिहि Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ ३०२ शब्द धातुजोणीसमुत्थाण धातुमय धावित धिवलागत ? धीतर धीतरी धीता धीया धुत दुहितृ ५१ पक्खपेंड भाण्ड २३० पक्खात धूतुल्लिक धूपगत धूमणत्त धूमणाली घेताणि धोतक? धोवमाण पक्षवेष्टया ४२ पज्जणी प्रख्यात १८५ पज्जायवायग नपंसकविशेष ७३-२२४ पज्जिया ६२ पज्जुवासंतो प्रक्षरगत २३० पज्जोवत्त धौतक १०४ पखरगत वस्त्र १६३ पट्टकार १५३ पघंस अंगविज्जाए सद्दकोसो पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र २७ पउण्ण वस्त्र ७१ पच्छिमदारिक २०६ आभू. १६२ पउमकेसरवण्ण ९० पच्छिमाणि १०९-१२८ धौत १४८ पउली प्रतोली १३७ पच्छिमुत्तरजोणि ४१ पएणि वस्त्र ७१ पच्छिमुत्तरा १२८ दुहित २१९ पकंठा २२२ पच्छेलित प्रसेण्टित १४६-१७०-१८४ दुहित २१९ पकिण्ण प्रकीर्ण १६९-१७१ पच्छोलित प्रच्छोटित १६८ दुहितृ ६० पकुट्ठ प्रक्रुष्ट २१५ पजाणवं प्रज्ञानवान् ४८ दुहित २१९ पक्कासय पक्वाशय २०३ पजातिस्सति प्रजनिष्यते १७० किया. १४८ पक्खच्छयक पक्षच्छदक ८१ पजायिस्सति प्रजनिष्यते १६९ पक्षपिण्ड ११७ पजोजयिस्सं प्रयोजयिष्यामि ११२ भाण्ड ७२ पक्खपेंडकत पक्षपिण्डकृत १३५ पज्जजतु अङ्ग १५५ दोहदप्रकार १७२ पक्खवेढाय वर्णमृत्तिका २३३ पर्यायवाचक २५ धूम्रनलिका २५४ पक्खापक्खि नपुंसकविशेष ७३-२२५ प्रायिका ६८ हेयानि ३२ पक्खिजोणिय पर्युपासयन् १९७ पर्यपवर्त्त २४७ धावयत् ३८ पगति प्रकृति १७३ पगलेत प्रगलत् ३८ कर्माजीविन् १६० नर्तिका पग्गाहक प्रग्राहक ७९ पट्टिक वस्त्र १६४ दोहदप्रकार १७२ पट्ठकव्व पाठ्यकाव्य १४७ पघंसंत वनस्पति प्रघर्षत् ३९ पट्ठिवंस पृष्ठिवंश २१४ प्रघातन १४८ पड वस्त्र ६४ पचच्चण प्रचर्चन १४७ मातुर्माता ६८ पडमट्ठ भोज्य ७१ पचलाइयाणि सत्त नामप्रग्रह १५१ पटल २७ पचलायणा प्रचलायनात् ४४ नामिस्वराः १५३ पडाका पताका १४२ पच्चउदग्गीय प्रत्युदनीय १६८ नार्याः १७ पडालिका भाण्ड ७२ पच्चत्थरण वस्त्र १६४ कर्माजीविन् १६० पच्चत्थिमा पडिउज्जमाण प्रतियुज्यमान १९६ नि:क्षोभ ? १६८ पडिओधुत पच्चवदाण प्रत्यवदान १४७ प्रत्यवधूत १६९ १-२ पच्चवर दे० श्रेष्ठ १७-१९-९५ पडिकम्मगिह प्रतिकर्मगृह १३६-१३८ निमीलित २०६ पच्चवरजोणि प्रतिकर्मगृह २२२ प्रत्यन्तपाल ८९-१५९ पडिकुंडित प्रतिकुञ्चित १५४ प्रतीप्सित १६८-१७० प्रतिक्षिप्त १६९-१७१ प्रतिनामित १७१ नीचैर्मुख १४३ पच्चालंबिज्जमाण प्रत्यालम्ब्यमान १९८ १९. पडिणायित प्रतिनायित १६९ १३ पच्चालंबित प्रत्यालम्बित १९८ पडिणिवेसा . प्रतिनिवेशात् ४८ पच्चाहरणक प्रत्याहरणक ९७ पडित पतित ४४-१६९ प्रतिष्ठितायाम् १९ पच्चोदार प्रत्यवद्वार ९ पडितविभासा अज्झाय ४५ प्रतिभावत् ४ पच्छत प्रच्छद ६४ पडिदिण्ण प्रतिदत्त १६९-१७१ पत्यौ १६ पच्छादित प्रच्छादित १४८ पडिपिक्खिया प्रतिप्रेक्षेत १५ प्रतिरिक्त-शून्य ११९ पच्छिमजोणि १३९ पडिपेक्खिज्ज प्रतिप्रेक्षेत १४ प्रचलायित ९-१० पच्छिमदक्खिणा १२८ पडिपोग्गल प्रतिपुद्गल १४०-१४४ अङ्ग १५ पघातण नत्तिका नन्नत अक्खरे नलिणी नहट्ठिका नानिका नामपग्गह नामिस्सरा नारीय नाविक निच्छोभे निमित्त निमिल्लिय निम्मट्ठा निरागत निल्लक्खित निन्विगंदि नीयम्मुख नेमित्तमुपधारणापडलं ११ पडल ५८ १३९ पाडकम्मघर ८७ पच्चंतपाल किया. २०२ पच्चंतवसति निर्लक्षित १७१ पच्चंतिम निर्विगन्धि १६१ पच्चंवरकाया प्रत्यन्तवसति ८९ पडिच्छित प्रत्यन्तिम १६२ पडिछुद्ध १४९ पडिणामित पइट्ठियायं पइभाणव पइम्हि पइरिक्क पइलाइय Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र पात ८० द्वितीयं परिशिष्टम् ३०३ शब्द पत्र शब्द पत्र पडिबुद्ध प्रतिबुद्ध १७१ पण्णाधिग प्रज्ञाधिक ५७ पद्मतिलक तिलकप्रकार २४६ पडिमविधि ९-१० पण्णायिक गोत्र १५० पद्रव प्रदेशविशेष १६७ पडिमुंडित प्रतिमुण्डित १७१ पण्णासपण्णत्तरिवस्ससाधारणाणि ५७ पधकलीतेल्ल २३२ पडियाणि अट्ठ ११ पण्णिक कर्माजीविन् १६० पधवावत पथव्याप्त १५९ पडिलोलित प्रतिलोलित १६९-१७१ पण्णेलिका प्रणालिका ? ११६ पधावति प्रधावति पडिवज्झक उत्सव ९८ पण्हु पाण्डु २१८ पधिकणिलय पथिकनिलय २५८ पडिविक्खिज्ज प्रतिप्रेक्षेत १३ पतज्जण? ? ४५ पधित प्रहित १९१ पडिवेसघर प्रतिवेश्मगृह २२० पतिआरक्ख प्रत्यारक्ष १५९ पधोवंत प्रधावयत् ३९ पडिसराखारमणी कण्ठआभू. १६३ पतिगिण्हंती प्रतिगृण्हती १६९ पपुट्ठ प्रपुष्ट प्रपृष्ट प्रस्पृष्ट १३० पडिसरित प्रतिसृत १६९-१७१ पतिग्गह पतिग्रह १६८ पपुत प्रप्लुत १५५ पडिसामिज्जमाण ? १९८ पतिजेट्ठ प्रतिज्येष्ठ २१९ पप्पड भोज्य १८२ पडिसायण प्रतिशातन ११ पतिट्ठाण प्रतिष्ठान ३१ पप्परूव प्राप्यरूप १५३ पडिसिद्ध प्रतिषिद्ध १६९-१७१ पतिहारक कर्माजीविन् १६० पप्फडित प्रस्फटित १७१ पडिसेज्जक शयन ६५ पतुज्ज वस्त्र १६३ पप्फोडित प्रस्फोटित १६९ पडिसेधित प्रतिषेधित १४८ पते पतेत ४५ पब्भट्ठ प्रभ्रष्ट १६९-१७१ पडिहारक प्रतिहारक ७९ पत्तकूर भोज्य ६४ पमज्जितापमट्ठ . प्रमाजितापमृष्ट २३ पड़िहारित प्रतिहारित १६९-१७१ पत्तगत दोहदप्रकार १७२ पमदायं प्रमदायाम् २९ पडिहारी प्रतिहारी ८८ पत्तभज्जित भोज्य १८२ पमद्द योग २०९ पढमकप्पिगो प्रथमकल्पिक: ८२ पत्तभंड भाण्ड ६५ पमिलात प्रम्लान २०३ पढमिल्लक प्रथमक २५९ पत्तमय आभू. १६२ पमुक्क प्रमुक्त १६९ पणतालीस पञ्चचत्वारिंशत् १२७ पत्तरस १८१ पमुच्छित प्रमूच्छित १६९-१७१ पणतालीसतिवग्गा ५९ पत्तहारक त्रीन्द्रियजन्तु २६७ पमुट्ठ प्रमृष्ट १७१ पणतीस १२७ पत्तंग वर्णमृत्तिका २३३ पमुत्त ? क्रिया. १३० पणतीसतिवग्गा ५९ पत्तंवेल्लि भोज्य ७१ पमुह प्रमुखक १६ पणत्तिणी प्रनप्तृका , ६८ पत्ति भाण्ड ७२ पम्मुअ ? क्रिया. २१५ पणवमज्झ पणवमध्य २५७ पत्तुण्ण वस्त्र १४२-१६३ पम्हुट्ठ प्रस्मृत १३०-१३९-१६९ पणस वृक्ष ६३ पत्तुण्ण भाण्ड २३० पम्हुत प्रस्मृत १७१ पणस फल २३१ पत्तेकसो प्रत्येकशः २१५ पयणु प्रतनु ११७ पणसक भाण्ड ६५ पत्तेगपुप्फ १७७ पयलाइतविभासा पडलं ४७ पणसक नकुलिका प्रकार २२१ पत्थरिय प्रस्तृत ११७ पयलाइताणि ४६-१२९ पणाली प्रणाली ३२-३३-२२२ पत्थारइत्तु प्रस्तार्य ७ पयलायमाण प्रचलायमान ४४-१३५ पणितगिह पणितगृह १३६-१३८ पत्थित प्रस्थित १९१ पयलायंत प्रचलायमान ३७ पणिवते प्रणिपतेत् ५६ पत्थिवपडिमा पार्थिवप्रतिमा १८३ पयादार १४४-१४५ प्रणुवीसक १२७ पत्थीणाई ५९-१२४-१२९ पयाविसुद्धी अज्झाय १६८ पणुवीसतिवग्गा ५९ पत्थुत प्रस्तृत ११६ पयुका आभू. ७१ पणुवीसपण्णासवस्ससाधारणाणि ५७ पदक्कमणक उत्सव ९७ पयुमक उद्भिज्ज २२९ पणुवीसवस्सप्पमाणाणि ५७ पदग्गाह पदग्राह १४४ पयुमरत्तक वस्त्र १६४ पण्णत्तरिवस्सप्पमाणाणि ५७ पदबुद्धी पदबुद्धि ८ पयोजयिस्सामि प्रयोजयिष्यामि ८ पण्णत्तरिवस्ससतसाधारणाणि ५७ पदुम पद्म ३९-६३ परक्का ५८-१२३-१२९ पण्णरस १२७ पदुम स्थल-जलचर २२७ परग्घ १३०-१४४-१४६-१६८ पण्णरसवग्गा ५९ पदुमक वर्ण १०५ परघतरक पराय॑तरक १६ पण्णवोट्टल दे० पर्णगठरिका ३० पदे पतेत् ४५ परग्घम्हि पराये पण्णा प्रज्ञा ९ पदोलि प्रतोली २०० परणोल्लणा परनोदना ४४ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ शब्द परत्तिका परभुत परभुयसद्द पर (रि) मत्थित परमतणू परमाणू परमासक परमोधिजिण परम्हमावयिता ? परंगेणक ? परंपरकिसाई परंपरतण पराघातसद्द परातक परामट्ठ परावत्त पराहुत्त पराहूत परिकस परिकेस परिक्खेतू परिक्खेस परिखड परिग्गहासत्त परिषुमति परिचेति परिच्चकम्मंत परिणिण्णगंभीरा परिदेवणा तेरस परिदेवंत परिदेवित परिधावति परिधावंत परिदेवितविधि परिदेवितविभासा पडलं परिबाहिरक परिब्धमे परिभीत परिमज्जक परिमलित परिमंडलाणि परिमंडलाणि पत्र परमावधिजिन ५८-११४ - ११८-१२८ ५८ - १२८ शब्द वस्त्र ७१ परिलीढ परभृत पक्षी २३८ परिवट्ठ परभृतशब्द २४४ परिवत्तते परिमथित २१५ परिवद्धित ११७ परिवंदितक ५८ - ११७- १२८ परिविट्ठ आभू. ६५ परिविद्विय १ परिविहल १९४ परिवृढ ९७ परिवेढित परिसक्कतो परिसक्कंत अंगविज्जाए सद्दकोसो १८८ परिसडित परकीय २१४ परिसप्पक परामृष्ट २६ परिसरणक परावृत्त १६९ - १७१ परिसाडित पराङ्मुख ३७ परिसाहसतो पराभूत १०८ परिसुक्क परिकृश १९४ परिसोडित ? परिक्लेश ३८ परिसोवण परीक्ष्य ११ परिहायिस्सति परिक्लेश १६२ परिहित किया. १७१ परिहेरक ग १८ परोह परिघूर्णयति ८० पलक परिश्ते ८० पलाडीका परिदीव्यत् क्रिया. १६८ पलित ९-१० पलितोवम ४३ पलिहित किया. ८० पलेपक-ग परिधावत् २०१ पलोटित ८९ पलोट्टित परिभ्राम्येत् ८० पलोलोह ? २४९ पलात ५८ पलातसंगम ११ पलाल २६ पलिकामदुधनक पत्र शब्द १३३ - १७६-१८६ पल्ललदेवया परिविष्ट ? १८९ पल्लंक परिवर्त्तते पल्लंकसिका परिवर्धित १६९ पल्लालु ८० १७० पल्लालुका १८० परिविष्ट परिवेष्टित १८१ परिविफल २०० पवण पवर परिवृढ ११४ पवरुत्तम परिवेष्टित २१६ पवलित परिष्वष्कतः ३६ पवस्सिस्स परिष्वष्कत् ७७-१३५ पवा परिशटित १६९ पवाणगत बाल १७० पवादित वस्त्र १६४ पवायित परिशारित १७१ पवालक पर्षद्धर्षक: ४ पवालय परिशुष्क १७१ पवासस्स अद्धाकालं क्रिया. १६९ पवासो अज्झायो देव २०५ पविआत परिहास्यति १६९ पवितल्लक क्रिया. १६८ पविभज्जतु ६५-११६ - १६३ पविभागसो प्ररोह २०१ पवियात प्राणी २३७ पविसित जङ्घाआभू. क्रिया. १०८ पल्लगत परिमार्जक १९७ पल्लत्थिकाओ परिमदित २४२ पाल्कापट्ट ५८ - ११५ - ११८-१२८ - १६१ पल्लत्थिकाविधि करणमंडलाणि ११६ पल्लत्थीकाकत क्रिया. पक्षिणी ६९ पलायित ६१-९८ पलायितसङ्गम ६७ लेह्यभोज्य १८२ कर्ण १६२ श्वेतकेश २०३ पल्योपम कालविशेष २६५ प्रलिखित १०६ वर्णमृत्तिका १०४ - २३३ पवेसणो वर्णमृत्तिका ८१-१६९ - १७१ पवेसियमाण प्रलुटित ३०-८१ पवेसो पल्हत्थिकायो बावीसं पल्हत्थिगाविहि पत्थजोणि पवेक्खति पवेक्खयि पवेणी पवेदये पवेदयेदिति पवेदिज्जा पवेदेज्जो शयन २० पव्वयवा पल्यगत १६५ पसण्णअप्पसण्णा १३८ पसण्णतरकाणि ११६ पसण्णता ५९ पसण्णा पर्यस्तिकाकृत १३५ पसत पत्र पल्वलदेवता २०५ १५-२६-६५-२३० पल्यङ्कशिबिका १६६ फल २३८ वृक्ष ७० ११-१८ ९-१० २५४ गोत्र १५० प्रवरोत्तम ३६ प्रवलयत् ३८ प्रोषितस्य २९ प्रपा १३८ - १९१ प्रपानगत २२० किया. १६८ प्रवादित १७० आभू. १६२ रत्न २१५ अज्झायं १९२ प्लवन १९१-१९२-१९४ प्रविजात २४९ भोज्य १८२ ४४ प्रविभज्यताम् प्रविभागशः १५ प्रविजात १९४ प्रोषित ? १६९ प्रोषितयोनि १३९ प्रेक्षते १९३ - १९४ प्रप्रेक्षते १९४ १७ ४२ प्रवेणी-वस्त्र प्रवेदयेत् प्रवेदयेदिति २६९ प्रवेदयेत् ४५ प्रवेदयेत् २४४०-४३-४५-४७-५१ अज्झायो १९७ प्रविश्यमान १९८ अज्झायो १९५ गोत्र १५० ५८ १२८ १३५ सुरा १२८-२२१ गवय २३८ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिशिष्टम् ३०५ शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पसती __गवयी ६९ पाअसूचिका पादआभू. ७१ पापहिक सर्पजाति ६३ पसत्थं णामाज्झायं १४६ पाउत प्रावृत ४१ पामुद्दिका पादआभू. ७१ पसत्थो अज्झायो १४८ पाकटित प्रकटित २४९ पामेच्छ वनस्पति ? ९२ पसनतरका ११२ पागुत प्रावृत १३०-१३४-१६८-१७० पायस भोज्य १७९ पसत्राणि ५८-१२८-१८१ पाघट्टिका पादघट्टिका शिरआभू. ७१ पायुका पादुका १८३ पसन्ने अप्पसन्ने ११२ पाट्टालिका पुष्प ७० पारम्मुह पराङ्गरव ३३ पसरादि वस्त्र ७१ पाठीण मत्स्यजाति ६३ पारावणा गोत्र १५० पसलचित्ता क्षुद्रजन्तु २२९ पाडल पुष्प ६३ पारावत वृक्ष ६३ पसल्लिअ पार्श्विक १८४ पाण वृक्ष ६३ पारावत फल ६४ पसंखित्त प्रसक्षिप्त १७१ पाणक सुरा ६४ पारिप्पव पारिप्लव प्राणी २३९ पसाणग उपकरण ? १९३ पाणगत दोहदप्रकार १७२ पारियत्त पारियात्र पर्वत ७८ पसाधक कर्माजीविन् १६० पाणगिह पानगृह १३८ पारिहत्थी पुष्प ७० पसाधणकवट्ट प्रसाधनकपट्ट ११६ पाणजोणि ३२-४९-१३२-१४० पारेवत फल २३१ पसारितामास १९८ पाणजोणिगत ४२-४८ पालिका भाण्ड ७२ पसिव्विका नकुलिकाविशेष १७८ पाणजोणिसमुत्थाण २७ पालिभद्दग वृक्ष ६३ पसुवेलिका २४७ पाणवगिह ? १३८ पालीक भोज्य १७९ पसेव्वक नकुलिकाप्रकार २२१ पाणहरा वामा १२८ पालु ___ वृषण १२४-१२५-२१४ पस्स पार्श्व ४२ पाणि भाण्डोपकरण ७२ पालोयणी ? १५७ पस्सवण निर्झरण १४६ पाणियघरिय पानीयगृहिक पावन्न ? पस्संतरिया पान्तिरिका २२२ कर्माजीविन् १५९-१६० पावरणक वस्त्र १७५ पस्से पश्येत् १९५ पाणुप्पविटुं १६१ पावार वस्त्रप्रकार ६४-१६३ पहिज्जते प्रहीयते ८१ पातरासवेला २४७-२४९ पावासिक प्रवासिन् १३४-१३९ पंचकाणि ५९-१२६ पातवगिह पादपगृह १३६ पावासिय प्रवासिक १९० पंचखुत्तो पंचकृत्वः १८४ पातिक त्रीन्द्रियजन्तु २६७ पावासि प्रवासिनम् ९६ पंचणवुतिवग्गा ५९-१२७ पातिज्ज उत्सव ९८ पावीर स्थानविशेष १३६ पंचत्ते पञ्च आत्मनि ११ पातुणंत प्रावृण्वत् ३८ पासातगत प्रासादगत २१४ पंचपंचासति वग्गा ५९ पाथमक प्रथमक ३६ पासिकुत्ताणक पार्श्वकोत्तानक ४५ पंचमंडलिक ११६. पादकलापक पादआभू. ६५-१८३ पासुत्ताणाणि पंचमिका ९७ पादकिंकणिका पादआभू. १८३ पाहिति पास्यति पंचमेजण उत्सव ९८ पादखडुयग पादआभू. ६५ पांगुहिति प्रावरिष्यति पंचवण्ण १२७ पादगोरा ? १५३ पिअबंभण प्रियब्राह्मण १०१ पंचसट्ठिवग्गा ५९-१२७ पादजालक पादआभू. ६५ पिगाणादियवंतरा ? वस्त्र ७१ पंचसत्तरिवग्गा ५९-१२७ पादपट्ठिओ पादपृष्ठिके ७७ पिचक मत्स्यजाति २२८ पंचासतिवग्गा ५९ पादपुंछण पादप्रोञ्छन १४२ पिट्ठरग भाण्ड १९३ पंचासवस्सप्पमाणाणि ५७ पादपेसणक उत्सव ९७ पिढरक . भाण्ड ६५ पंचासीतिवग्गा ५९-१२७ पादफल आसन ६५ पिणंधण अपिनहन ४० पंडक ७३ पादबंध काव्यविशेष १४७ पिणिधण अपिनहन ३८ पंडराग सर्पविशेष २३८ पादमुद्दिका पादआभू. १६३ पिणेधण अपिनहन १४७ वर्ण १०४ पादसंडी अङ्ग ४८ पितरो देवता २०४ पंडुपडीभागे १०४ पादीविक ९१ पितकज्जकिच्च पितृकार्यकृत्य २०८ पंडुवण्णपडिभागा ५८ पादोपक आभू. १६३ पितुदेवता देवता २२४ पंथा पन्थाः २३३ पाधेज्ज पाथेय १९२ पितुस्सहा ? ६८ पंथोलग क्षुद्रजन्तु २३८ पापढक आभू. ६५ पितुस्सिया पितु:ष्वसा ६८-२१९ ८४ पंडु . Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ १३९ पिलक रोग २०३ पुत्तंगय प्लक्षक २७ पुत्तेयाणि गोत्र १५० पुत्थव्वा ? पुधवी ३०६ अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र पितुस्सियाधीतर पितुःष्वसृदुहित २१९ पुच्छितपडल ३८ पुरोहित कर्माजीविन् १६० पितुस्सियाधीतरी पितुःष्वसृदुहितृ २१९ पुच्छितविधिविसेस ५९ पुलअ रत्न २१५ पित्तप्पगति पित्तप्रकृति १७४ पुच्छिताणि चउव्वीसं ११-३६-३८ पुलिदि पुलिन्ददेशजा ६८ पित्तियधीतर २१९ पुच्छियविहि ९-१० पुव्वण्ण पूर्वाह्न १६४-१७८ पिधयित्ता पिधाय ४२ पुडिका पुटिका २५९ पुव्वदक्खिणकाणि १२८ पिधुलाणि ११६-१४२ पुढविकाइया ५८ पुव्वदक्खिणजोणि १४० पिपीलिका त्रीन्द्रियजन्तु २६७ पुढविधातुगत १३३ पुव्वदक्खिणभागाणि ११० पिप्परी वृक्ष ७० पुणोइ पुनः ११ पुव्वदारिक पिप्पलफल २३८ पुण्णा ५८-१२४ पुव्वभवविवाग २६२ पिप्पलमालिका आभू. ७१ पुण्णामजोणि १३९ पुवामास १६७ पियंगुका पुष्प ७० पुण्णामधेज्जामास १३०-१४५ पुव्युत्तरजोणि पियाणि ५८-१२८ पुण्णामम्हि पुंनाम्नि २४ पुसुय ? १८५ पियाल प्रियालफल २३१ पुण्णामाणि-णि ५७-१२६ पुस्सकोकिलक आभू. पियोभागा गोत्र १५० पुण्णामा पुण्णत्तरं ५९ पुस्सघर पुष्पगृह २२२ पिरिली पक्षिणी ६९ पुण्णामास १३०-१६१ पुस्सतेल्ल २३२ पिल पक्षी ६२ पुत्तक बाल १४२ पुस्समाणव कर्माजीवीन् १४६-१६० पक्षी ६२ पूक पूय १७७ पिलक्खक ५९-१२५-१२८ पूतणा पक्षिणी ६९ पिला ११४ पूता पूजा २५६ पिल्लक बालक ९७-१४२-१५३-१६९ पृथिवी १२१ पूतिक ? १५५ पिल्लिका लघ्वीबाला ६८ पुधुला ५८-१२८-१४२ पूतिकरंज फल २३२ पिविपिण मत्स्यजाति पुधूणि तेल्ल २३२ पिच्छोला दोहदप्रकार १७२ पूतिय पूजित २१० भाण्ड पिंडालुकी वृक्ष पुष्पगृह १३६-१३८ पूतियं पिडिक ६४ पूतिल फल २३२ जलवाहन पुप्फमय पीणक परिसर्पजाति आभू. १६२ पूर्तिगाल ६३ भाण्ड ६५ पीतक पुष्फरस १२५-१२९ १८१-२२१ पूतीणि वर्ण पुष्फाधियक्ख पुष्पाध्यक्ष १५९ पूप भोज्य १८२ पीतवण्णपडिभागा पुप्फितिक आभू. ७१ पूयित पूजित ४३ पीतउल्लोगित पुप्फुच्चाग पुष्पोच्चायक ८९ पूयिय पूजित ४६ पितिक पुरच्छिमा पीडोलकस्स खंभ ? पुरस्थिमजोणी १३९ पूसित ? किया. १७१ पीढक पीठक १५-१७-१४२ पुरथिमाणि १०८-१२८ पेक्खमाण प्रेक्षमाण १६९ पीढपिंडी भोज्य .७१ पुराण सिक्कक ६६ पेक्खितविभासा ३५ पीढफलक पेक्खितामास ७२-७३-८० १०३ पेचुक कण्ठआभू. १६३ पीणियतता पुरिमा प्रेक्षते १०७ पीलुतेल्ल २३२ पुरिमुत्तराणि पेय १४३ पुक्खरणी पुष्करणी २३३ पुरिसणखत्त पीठिका ३१-७२-१३६ पुक्खरपत्तग भाण्ड ६५ पुरिसपरामास पेतक देवता २०४ पुच्छलक कण्ठआभू. १६२ पुरिसावस्सय पुरुषापश्रय २७ पेतकिच्च प्रेतकृत्य २०८ पुच्छिज्जमाण पृच्छयमान १९३ पुरेक्खड देवता २०४ पुच्छित अज्झाय १३४-१३८ पुरोहड पैतृकम् २१९ ११७ पूतिकरंज पुष्फगत पुष्फगिह पुष्फजोणी पुष्प ५८ पूरिमंसा गोत्र १५० आसन ६५ परिमभवविभाग पीठिका १५ परिमंगाणि २६३ पीढिका १३५ ११५ पेच्छते १११-१२८ पेज्ज २०९ पेढिका १३१ पुरस्कृत १६-१८ पेता अग्रद्वार १३८ पेतिज्ज Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ ९० गोत्र १५० दोहदप्रकार १७२ बद्ध १२८ पेयाल पेयालित पेलग पेलिका पेलितागत पेला पेल्लिका पेसणकारक पेसणिय पेस्सजोणि पेस्सणिक पेस्सभूया पेस्सा पेस्सामास पेस्सेज्जाणि पेस्सेयाणि पेंडिका पेंडिका पेंडपाली ? पेंडित पोअड पोकत्त ? पोटाकी पोट्टल पोट्टलिका पोट्टह ? पोट्ठवद पोत पोतक पोत्थकम्म पोरिस पोरुपविद्ध ? पोरुस पोरेपच्च द्वितीयं परिशिष्टम् ३०७ पत्र शब्द पत्र शब्द रहस्य ६४-२३७ क्रिया. २४१ फणिका उपकरण ७२-२३० बक आभू. ६४ आपीड २४२ फरिसा १५३ बकुल वृक्ष. ६३ पेटा २२१ फरिसायते स्पर्शायते ८३ बज्झबज्झंतराणि पेटागत २२२ फरिसाहिति स्प्रक्ष्यति ८४ बज्झबज्झाणि __९२-१२६ पेटा १७८-२२१ फलक आसन १५ बज्झमंडलचारि भाण्ड बज्झसा कर्माजीविन् १६१ ७२ फलकारक बज्झामास कर्माजीविन् १६० फलकी १३० आसन १५-१७-२६-७२ बदरचुण्ण भोज्य १८२ ७९ फलकीय फलक्याः ५२ ५८-१२२ १३९ फलगत बब्बरी बर्बरदेशजा ६८ १२० फलजोणी बरिहिण बर्हिध्वनि १७३ ५८-११९-१२९ फल-पुफ्फपोट्टल फल-पुष्पगठरिका ३० बलगणक कर्माजीविन् १५९-१६० ५८-१२९-१३१ फलमय आभू. १६२ बहिरभंतराणि २०० फलरस १८१-२२१ बहुअंतराग १९४ ११९ फलवाणिय कर्माजीविन् १६० बहुक्खत बहुक्षय २०२ १२० फलहारक आभू. ६५ बहुभस्स बहुभाष्य बहुवचन १५१-१५७ अङ्ग ११९-१२५ फलाधियक्ख फलाध्यक्ष १५९ बहुवाधीत बहुव्याधिक १६१ भोज्य १८२ फलापस्सव फलापश्रय २७ बहस्सय कर्माजीविन् १६० २३३ फलामास १४५ बंधणगिह बन्धनगृह १३६ पिण्डित ११५ फलिक ५२ बंधणजोणि १३९ पोच्चड ? ९८ फलिखाय परिखायाम् १३६ बंधनागारिय कर्माजीविन् १६० १४८ फलिहा परिखा १३७-२३३ बंध-मोक्खा १२९ पक्षिणी ६९ फलुच्चाग फलोच्चायक ८९ बंधुजीवक वृक्ष ६३ दे. गठरिका ३० फंदरेदे ? १४८ बंधुज्जे भुत्तं बंधुभोजन १८० ग्रन्थिका २१६ फाणित गुडविशेष १८२ बंभखत्त ब्रह्मक्षत्र १०२ ६२ फालित किया. १४८ बंभखत्तेज्जाणि प्रोष्ठपद २०७ फालित स्फालयत ३८ बंभचारिका __गोत्र १५० जलवाहन १६६ फालेत गोत्र १५० बाल ९७-१४२ फासगत बंभच्चा बंभण ब्राह्मण पुस्तकर्म २७ फासेया १०२ ५८-१२३-१२८ बंभणजोणि अङ्ग १५६ फिजा स्फिग् ६६-१२१ बंभणज्झोसिय १६१ क्रिया. १५२ फुट्टफुट्टतर बंभणोसण्ण १६१ ६०-१३४ फुलित स्फुटित ? ८० ब्रह्मज्ञ १०१ पुरः पत्य ११२ फुल्लित पुष्पित १४८ अङ्ग १९५ शुषिर १०६ फुसी ब्रह्मर्षि १०१ भोज्य १८२ फूमणाली भुंगलिका ७२ बंभवण्ण भोज्य १८२-२४६ फूमित भ्रान्त फुक्कित १६८ बंभवत्थ १०१ लघ्वी युवती ६८ फूसल्लि तुषाकारा वृष्टि २५७ बंभविस्स ब्रह्मवैश्य १०३ बोंडज आच्छादन ६५ फेणक भोज्य १८२ बंभवेस्स ब्रह्मवैश्य १०२ १५० फोडित ध्वनि १७३ बंभसुद्द ब्रह्मशूद्र १०२-१०३ जलवाहन १६६ फोडित स्फोटित १४८ बंभेज्जखत्तेज्जाणि १०२ स्फाटयत् १४४ बंभचारिगजोणि १३९ १३९ १०६ बंभण्णू बंभत्थल ७० बंभरिसि कृमिजाति १०५ पोवलक पोवलिका पोहट्टी पोंडज प्रोदाहरिष्यामि प्लव अंग० २५ Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३९ १२७ ३०८ अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र बंभेज्जाणि ५७-१२८ बुद्धि-मेहाओ देवता २०५ भारद्दाइ पक्षिणी ६९ बंभेयाणि १०१ बुद्धीरमण ५८-१२२ भारधिक भारतिक २४८ बाढक्कार ९८ बुवति ब्रवीति १९५ भारंड पक्षी ६२ बाधिरंग बाह्याङ्ग १३ बुवी अब्रवीत् १७ भावस्सिओ भावाश्रितः १२० बारगय द्वारगत २१४ बेभेलक फल ६४ भासकुण पक्षी २३९ बालक बाल १७० बोडमच्छक मत्स्यजाति ६३ भासमाण भाषमाण १६९ बालजोणि १३९-१९४ बोंडज दे० कासिफल १८ भासा बालजोव्वणत्थसाधारणाणि भासासद्द १८८ बालजोव्वणसामण्ण १०० भक्ख-भोज्जकधा भक्ष्य-भोज्यकथा ४० भाष्य बालतिलक तिलकप्रकार २४६ भगवती देवता ६९ भिउडी कृमिजाति ७० बालमुंडिका भाण्ड २३० भगवा गोत्र १५० भिक्खोदण भिक्षौदन १८० बालवीरा प्राणिजवस्त्र २२१ भगिणिधीतर भगिनीदुहितृ २१९ भिण्ण भिन्न ४५-१६८ बालव्वयणी बालव्यजनी २३० भग्ग भग्न १६८ भिण्णं सहस्सं बालसाडि भाण्ड २३० भग्गगिह भग्नगृह १३७ भिन्नमणोघोसं ४३ बाला ९७ भच्छा भस्त्रा २३० भिस भोज्य १८१ बालाभरक ? १७० भज्जाय भार्यायाः १६ भिसकंटक भोज्य १८२ बालामास २६ भतिकम्म भृतिकर्म कर्माजीविन् १५९ भिसमुणाल भोज्य १८१ बालेपतुंद कर्माजीविन् १६१ भत्तघर भक्तगृह २२२ भिसी आसन १५-१६-७२-१०१ बालेयाणि ५७-९७ भत्तवेला २४७ भिंगणाग स्थल-जलचर २२७ बालोपणयण १२१-१८० भत्तवेलिका २४७ भिंगपत्त भृङ्गपत्र ९२ बाहिरओ बहिस्थः ९ भद्दपीढ आसन २६-६५ भिंगराय पक्षिन् ६२ बाहिरतुंबिय ८१-९० भद्दासण भद्रासन १५-१६ भिंगार भाण्ड २०५ बाहिरबाहिराणि ५७ भयमाभया ८ भिंगारिका भाण्ड ७२ बाहिरब्भंतरा ५७-८६-८७-९१ भरेहते भरिष्यति ८४ भिंगारी कृमिजाति ६९ बाहिराणि ८९-९२-१२८ भंडगिह भाण्डगृह १३७ भिंगारी सर्प २३९ बाहिरिकार्य बाहिरिकायाम् १९० भंजंत भञ्जत् ३८ भिजिक त्रीन्द्रियजन्तु २६७ बाहुजालक आभू. ६५ भंजुलिका वृक्षजाति ७० भीराहि सर्पजाति ६३ बाहुणाली अङ्ग ६६-८१-१२६ भंडण भण्डन ४० भीरु १२६ बाहुपल्लत्थिका बाहुपर्यस्तिका २० भंडभायण ६५ भीरुअ वृक्ष ६३ बाहुपंगुरण बाहुप्रावरण ४२ भंडवापत कर्माजीविन् १६० भीरूणि बाहुमंडलक ११६ भंडाकारिकिणी भाण्डागारिणी ६८ भुक्खायं बाहुविक कर्माजीविन् १६० भंत-भग्गाणि भ्रान्तभग्नानि ३३ भुक्खित क्षुधित १४८ बिक द्विक १२६ भागवता गोत्र १५० भुमंतरामास १३० बिकाणि ५९ भागवाती गोत्र १५० भुंभलक मद्यपात्र २५९ बिग द्विक २१६ भागसो भागशः १५१ भूतकूर भोज्य ६४ बिडालक फल २३८ भागहारक ८१ भूतविज्जिक कर्माजीविन् १६१ द्विभाष्य द्विवचन १५७ भागिणेज्ज भागिनेय ६८-२१९ भूमकंतरवंस ७६ बिल्ल फल ६४ भातुज्जाया भ्रातृजाया ६८ भूमिगिह भूमिगृह १३६ बिल्लतल्ल बिल्वतैल २३२ भातुधीतर भ्रातृदुहितृ २१९ भूमिजाग भूमियाग २४४ बिह द्वयह २६१ भातूणं भ्रातृणाम् १०९ भूमिबिलासय बीतपाल बीजपाल-कर्माजीवी १६० भामित भ्रामित १४८ भूमीकम्म अज्झाअ ९-५६ बीयकाणि भोज्य १८२ भायणजोणी भाजनयोनि ३२ भूमीकम्मविही बुज्झेहं भोत्स्यामि ४४ भायणापस्सत २७ भूमीकम्मसत्तसमुद्देसो पडलं क्षुधायाम् ४० बिभस्स २२७ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०९ 111xs . ६४ १५८ द्वितीयं परिशिष्टम् शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द भूमीकम्मस्स विज्जा ८ मज्झिमजोणि १३९ मत मृत १८७ भेदति भिनत्ति ८३ मज्झिममज्झिमसाधारणाणि ५७-९६ मतकपडिमा मृतकप्रतिमा १८३ भेदित किया. १४८ मज्झिममज्झिमाणंतरसाधारणाणि . ५७ मतकभोयण मृतकभोजन १८० भोगमित्ती भोगमैत्री ६८ मज्झिमम्हि मध्यमे १७ मताणि ५९-१२५-१२९ भोति आमन्त्रणम् मज्झिमवय < महव्वय< साधारणाणि ५७ मतामास १३०-२०१ भोम्म भौम १ मज्झिमवयाणि ५७-९९ मतिंग ? ९२ भोयणगत दोहदप्रकार १७२ मज्झिमविगाढ _१७२ मत्तिकामय धातुवस्त्र २२१ भोयणगिह भोजनगृह १३६-१३८ मज्झिमाणंतरजहण्णसाधारणाणि ५७-९६ मत्थक अङ्ग ७६ भोयणी भोगिनी ६८ मज्झिमाणंतरमज्झिमसाधारणाणि ९६ मत्थक पुष्पापीड ६४ भोयणो अज्झायो १७६-१८२ मज्झिमाणंतरा . ११७-१२८ मत्थककंटक मस्तककंटक आभू. भोयणोपक्खर भोजनोपस्कर ३२ मज्झिमाणंतराणि-णि ५७-९४-१२७-१२८ मत्थग आभू. ६४ मज्झिमाणि ५७-९४-७६-१२८ मत्थतक भोज्य १८२ मउक मृदुक १८९ मज्झे विगाढा १२१ मदणसलाका पक्षी ६९-१९५ मउक्क मृदुक ५९ मट्टियापीढय मृत्तिकापीठक २६ मदुक १२४-१२८ मउड मुकुट ६४ मडहक मडभक ११५ मद्धक्खर मक मृग १६६ मडहिया मडभिका ६८ मधअग्गि महाअग्नि २५४ मकण्णी आभू. ७१ मड्डहारक कर्माजीविन् १६१ मधापध महापथ १४५ मकतण्हा मृगतृष्णा २४६ मड्डाहसित बलाद् हसित ३५ मधित मथित २०० मकरिका आभू. ७१ मणवित्त मनोविद् ४ मधु सुरा ६४ मकसक ? १६२ मणस्सिला मनःशिला १४१ मधुरक सुरा २२१ मक्खित मेक्षित ४५ मणाम प्रिय १२० मधुरक मुखआभू. १८३ मग मृग ६२-१६६-२३८ मणिओ मणितः १० मधुरसेरक सुरा २२१ मगमच्छ मत्स्यजाति २२८ मणिक ८० मधुसित्थ मधुसिक्थ १०४ म[ग]यंतिका पुष्प ७० मणिकार कर्माजीविन् १६० मधुस्सव मधुस्रवलब्धि ८ मगरक आभू. ६४ मणित्थवो अज्झाओ ६ मधूग वृक्ष ६४ मगलुद्धग मृगलुब्धक १६० मणिधाउकय १३३ मयंसल कृमिजाति ७० मगवच्छक वनस्पति २३८ मणिधातुगत १३३ मयुं मृदु ३५-३६ मगसक क्षुद्रजन्तु २३७ मणिबंधहत्था ६० मयूरग्गीव वस्त्र १६४ मच्छबंध कर्माजीविन् १६० मणिमय आभू. १६२ मरकल ? मच्छंडिक शर्कराविशेष १८१ मणिरूवालिका १४१ मरणजोणि १३९ मज्जघरिय १५९ मणिवर ६ मरिअ फल २३८ मज्जणमालिका पुष्प ७० मणिवियारभूमिकम्म १० मरुभूतिक ७८ मज्झकल्लाणसोभणा ९९ मणिसण्णिअ मणिसंज्ञित १० मलय पर्वत ७८ मज्झगाढा १२८ मणिसुत्तं ५९ मलित मर्दित ११४-१४८ मज्झत्थाणि १२० मणिसोमाणक कण्ठआभू. १६३ मल्लकमूलक भाण्ड ६५ मज्झरसा गोत्र १५० मणीसमुच्चय १२९ मल्लगत दोहदप्रकार १७२ मज्झविगाढाणि ५८ मणुज्ज मनोज्ञ ५ मल्लगभंड भाण्ड ६५ मज्झंतिक २२-७७-१७२ मणेय ५८-१२३ मल्लसाडग वस्त्र ६४ मझंतिय २४९ मणोज्ज गुल्मविशेष १४१ मल्लिका पुष्प मज्झंदीणा गोत्र १५० मणोरध मनोरथ २४१ मल्लुंडी सर्पिणी ६९ मज्झायं मणोसिलक वस्त्र १६४ मसारअ मसारक मज्झिमकाणि १२८ मणोसिलवण्णपडिभागा ५८ मसारकल्लखारमणी आभू. १६२ मज्झिमकाया ११७-१२८ मणोसिलाणिभं वर्ण १०५ मसारगल्ल रत्न २१५ २३८ 1 . Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ ७२ भोज्य १८२ माहकी मण्डूकिका २३७ माहिद मृद् २७ ३१० अंगविज्जाए सहकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र मसूर धान्य १६४ मंजरीपुष्फ १७७ मातुस्सियाधीतरी २१९ मसूरक उपकरण १५-१७-६५-२३० मंजिट्ठा १४१ मातुस्सियापुत्त मातुःष्वसृपुत्र २१९ महाघम्हि महार्ये १६ मंजूसा मञ्जूषा २७-१६५ मायाकारक कर्माजीविन् १६१ महतरकाणं महत्तरकाज्ञाम् २५८ मंजूसिका मञ्जूषिका ७२ मारुदि मारुति ८ महतिमहापुरिस ८ मंड बृहत् ११४ मालाकार कर्माजीविन् १६० महतिमहावीर ८ मंडलक मालायोणि ___ ३२ महतिमहावीरवद्धमाणाय ५९ मंडलास मालुका पक्षिणी ६९ महपितुयधीतर महापितृदुहित २१९ मंडलि सर्प २१८-२२७ मास माषधान्य १६४ महामातुया पितुर्माता ६८ मंडलिकारिका कृमिजाति ६९ मासककाकणी महव्वताणि ५७-९९ मंडव मण्डप १३८ मासपूरणक महव्वय महावयः १८७ मंडवा गोत्र १५० महव्वयाणि मासालग शयन ५२-६५ १००-१२८ मंडि वृक्ष ७० महंतकाई गोत्र १५० ५९ मंडिल्लका महंताणि १२५ मंडी भाण्ड ७२ माहिसिक वस्त्र ७१ महाजाति पुष्प ७० मंडूकलिआ महाण महाजन १२३ मंत पर्वत ७८ मितु महाणपेसक महाजनप्रेष्यक ११३ मंतिक कर्माजीविन् १६० मितुभागा महाणसगिह महानसगृह १३७ मंतुलित ? क्रिया. १२१ मितूणि महाणसिक महानसिक ६७ मंथणी मन्थनी १७ मित्तजोणि महाणि १२८ मंथु भोज्य २२० मिदुभागे महानिमित्त १ मंदर पर्वत ७८ मिधो मिथः ३१ महापरिग्गह ५८-१२२ मंस कर्माजीविन् १६० मिधोसंलावजुत्ता महापरिग्गहाणि १२८ माउस्सहा ? ६८ मिलक्खदेवता देवता २०६ महामत्त हस्तिमहामात्र १५९ माउस्सिया मातुःष्वसा ६८ मिलक्खु म्लेच्छ १४९ महामंत ? हस्तिमहामात्र १६० माकण्णीकण्णिक ? ११६ मिलिंदक सर्पजाति ६३ महालोक ६२ मागधवेला २४७ मिल्लेति मुञ्चति ४५ महावीर वद्धमाण १-९-१३० माढ महासकुण २३९ माण देवता ६९ महाहिमवत पर्वत ७८ माणक महिलापस्सय महिलापश्रय २७ माणसंपन्न मत्स्यजाति २२८ महिलाय महिलायाः २० माणिका भाण्ड ७२ गोत्र १५० महिसघातक कर्माजीविन् १६० माणितपुव्व ८२ मुकणंदवण महिसाहा आसन ७२ माणुस्सकाणि १२५-१२८ महिसीपाल मुग्गभज्जिय भोज्य १८२ कर्माजीविन् १६० माणूसाणूक महिंद पर्वत ७८ मात ? मुग्गा नकुलिकाविशेष १७८ महु सुरा १८१ मातंग मुग्गा धान्य १६४ मंगलवायण मङ्गलवाचन १४७ मातुलधीतर मातुलदुहित २१९ गुण मुज्जायण गोत्र १५० अशुभ ९५ मातुलिंग कर्माजीविन् १६१ पशु २२७ मातुलिंगी वृक्ष ७० मुणालिक मृणालिका फल ७० मंचक शयन १५-२६-६५ मातुलुंग फल २३१ मुणेतूण ज्ञात्वा ५६ मंचातिमंच शयन १४८ मातुलुंगरस २३२ मुर्तिगमज्झ मृदङ्गमध्य २५७ मंचिका शयन २६-१३७ मातुस्सिया मातुःष्वसा २१९ मुत्तामय आभू. १६२ मंचुलक . वृक्ष ? २३८ मातुस्सियाधीतर मातुःष्वसृदुहित २१९ मुत्तावलि आभू. ७१ गोत्र १४९ मिस्सका लक्षण १७३ मिस्सकेसि भाण्ड ६५ मिस्सगामास १७३ मीण मीमंसका १०४ १७४ मंगुल मंगुस फल ६४ मुट्ठिक Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३११ पत्र युक्तार्ये १६ युनक्ति १३ २३२ मुत्तोली १५५ १५९ भाण्ड २१४ रथ्यागृह १३६ भोज्य ७१ ११५ आरण्य १७९ अरण्ययोनि १४० रज्जुविशेष ११५ १३७ वर्ण १०४ गुल्मजाति ६३ आभू. १६२ धान्य १६५-२३२ धान्य १६४ मुरुंब १५० द्वितीयं परिशिष्टम् शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द मुत्तिक मौक्तिक २१५ मेचक वर्ण १०४-१६४ युत्तग्घम्हि मुत्तिक भाण्ड २२१ मेज्जुक पक्षी १४५-२३८ युंजइ मुत्तिका पडिमा मृत्प्रतिमा १८३ मेदित ११४ यूथिकातेल्ल . प्राणिविशेष २५३ मेधुण ? ६८ योगवाहा मुदितजोणि १३९ मेयकवण्णपडिभाग ५८ योग्गायरिय मुदितसाधारथूभ २२२ मेरक सुरा ६४ मुदिताणि ५८-१२१-१२८ मेरा मर्यादा २४१ रकिगत मुदितामास १३० मेलक्खु म्लेच्छ २६३ रच्छागिह मुद्दिका आभू. ११६ मो पादपूरणे २५६ रच्छाभि(भ)त्ति मुद्दिका भाण्ड ७२ मोक्ख ५८-१२२ रज्जूक मुद्दियाणि-णि १२५-१२९ मोक्खजोणि १३९ रण मुद्दीगा द्राक्षाफल २३८ मोगरग पुष्प ६३ रणजोणि मुद्देयक अङ्गुलिआभू. १६३ मोग्गल्ल . गोत्र १५० रोहक मुधुलूक पक्षी ६२ मोघविखद्धित क्रिया. १४८ रतीसंपयुत्त मुम्मुलक कृमिजाति ७० मोदक भोज्य १८२ रत्त मुयंग मृदङ्ग ४१ मोरकंठ ९२ रत्तकंठक मुरुव वाद्य २३० मोरेंडक भोज्य १८२ रत्तक्खारमणि मुख मृत्तिका २३३ मोलि सर्प २३९ रत्तणिप्फाव मृत्तिका २३३ मोहणक १७० रत्ततिल मुसल १४२ मोहणगिह मोहनगृह १३६ रत्तनामाध्यायं मुहफलक मुखआभू. ६४ रत्तरज्जक मुहवासक मुखआभू. १८३ यग्गिक याज्ञिक (?) ५ रत्तवण्णपडीभाग मुहातिमास १८६ यजुव्वेद गोत्र १५० रत्तवीही मुंगसी चतुष्पदा ६९ यणाणा गोत्र १५० रत्तसालि मुंचंत मुञ्चत् ३८ यण्णिक गोत्र १५० रघ मुंडक भाण्ड ६५ यण्णेज्जामास यज्ञेयामर्ष १४८ रधकार मुंडलोह धातु २५९ यत्तप्पवहण यात्राप्रवहण २४४ रधगिह मुंदिका मृतीका फल ७० यत्ताणुयत्त यत्नानुयत्न १४८ रघजातरत मूलकतेल्ल २३२ यदाण यदाज्ञक ४ रधणेमिघोस मूलकम्म कर्माजीविन् १६० यधलाभ यथालाभ २५६ रधप्पयातकरत मूलक्खाणक कर्माजीविन् १६०-१६१ यधुत्ताहिं यथोक्ताभिः १८८-२११ रधसालाय मूलगोत्त गोत्र १५० यमगामास २१९ रभस्सं मूलजोणि ३२-४८-१३२-१४० यमा १५३-१५५ रमणिज्जाणि मूलजोणिसमुत्थित २७ यव १६४-१८१ रमणीयाणि मूलजोणीमय १६२ यसवतो यशस्वतः १३० स्यक मूलवाणिय कर्माजीविन् १६० यस्स यस्य ४६ रयणकलावग मूलामास २५ यस्सक ? १४७ रयणगिह मूलिक कर्माजीविन् १६० यागहरण १४७ रयतगिह मेखल __ आभू. ७१ याचितक क्रिया. १६६ स्ययमासअ मेखलिका कटीआभू. १६३ याण यान २६ रयितपुव्व मेघडयकायण ? किया. १८६ याणुस्सय यानोत्सव ४० रस मेघडंतीय ? ९ याव यावत् २४९ रसजोणि कर्माजीविन् १६० ५७-१०५ धान्य १६४ धान्य १६४ वाहन १४६-१६६ कर्माजीविन् १६० रथगृह १३६ रथजातरत १८४ ध्वनि १७३ १८४ रथशालायाम् १३८ रहस्यम् १० ११८ ५८-१२४-१२८ कर्माजीवि-रजक १६० आभू. ६५ रत्नगृह १३७ रजतगृह १३६ सिक्कक ६४ १४० Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द राते ३१२ अंगविज्जाए सद्दकोसो पत्र शब्द पत्र शब्द रसणा आभू. ७१ रिद्धिपत्त ऋद्धिप्राप्त ८ लकुचि वृक्ष ६३ रसदव्वी भाण्ड १९३ रिसिमंडल ११५ लकुल फल २३९ रसधातुगत १३३ रिंगमाणक रित् २५९ लक्खण लक्षण १-२ रसायते किया. १०७ रुक्खजोणि ७० लक्खणो अज्झायो १७३ रसाल भोज्य ७१ रुक्खफल १७७ लक्खये लक्षयेत् १९७ रसालादहि भोज्य २२० रुक्खामास १३० लतागिह लतागृह १३८ रसेज्जा ५८ रुगण ? ९२ लतादेवता देवता २०६ रसेया १२३-१२८ रुचक हस्तआभू. १६३ लतालट्ठि वृक्षजाति रसोतीगिह रसवतीगृह १३६ रुचिका वृक्षजाति ७० लद्धामास १९९ रस्स ह्रस्व १९१ रुचिकातेल्ल २३२ लभित्ताणं लब्ध्वा १९७ रहस्स गोत्र १५० रुट्ठाणि १२९ लयित लगित २०० रहस्सपडलो अज्झाओ १८६ रुण्ण रुदित ४३-१५५ लवंगपुष्फ पुष्प ६३ रंगावचर नाटकपात्र १६०-१९१ रुण्णारुत रुदितारुदित ३४ लसिया पूय १७७ रंधणक न्धनक २४९ रुदित क्रिया. १६८ लंका अङ्ग ६६ रंधित क्रिया. १४८ रुदितविधि ९-१० लंखक कर्माजीविन् १६१ राइण्ण सर्प २१८ रुदिताणि वीसं ११-४२ लंवा(चा)पलि वृक्षजाति ७० राजपोरुस राजपुरुष १९१ रुद्दा ५९ लाउलोपिक लगितोल्लोपिक १८३ राजमहोरक स्थल-जलचर २२७ रुधिचीक ? - १५५ लाउल्लोयिक लायितोल्लोचित १८३-२१० रातण राजादन-फल २३८ रुप्पमय आभू. १६२ लाजिका ? ६८ राति १०७ रुप्पियमास २३९ लाडी लाटदेशजा ६८ रातोवरोधम्मि राजोपरोधे २५८ रुप्पी पर्वत ७८ लाणी पुष्प ? १०४ रामायण ग्रन्थ २४८ रुरु चतुष्पद ६२ लाभद्दारं अज्झायं १४४ रायजोणि १३९ रूवपक्खर कर्माजीविन् १६१ लाविका पक्षिणी ६९ रायण्ण राजन्य ३ रूवाकड किया. १६८ लासक कर्माजीविन् १६१ रायधाणी राजधानी १६१-२०१ रूविअग धातु २३३ लासित किया. ८१ रायपध राजपथ १३७ रूवेया ५८ लिच्छा कृमि २३० रायपुरिसजोणि १३९ रेचित किया. १४८ लिंगिच्छी वृक्षजाति ७० रायपोरिस कर्माजीविन् १५९ रोगमणाणि ५९-१२५-१२९ लुक्खणिद्ध वर्ण १०५ रायप्पसात राजप्रसाद ६७ रोट्ट लोट्ट १०६ लुक्खणिद्धाणि ५८-१०६-१२८ रायब्मंतर राजाभ्यन्तर ८५ रोहणिक त्रीन्द्रियजन्तु २६७ लुक्खलुक्खाणि ५८-१०६-१२८ रायमग्गसमासु रच्छासु २१४ रोहिणिक क्षुद्रजन्तु २२९ लुक्खवण्णपडिभाग ५८ रायविज्जा १४३ रोहिणिक पक्षी २२५ लुक्खाणि ५८-१०६-१२५-१२८ रायसस्सव धान्य १६४ रोहित रोझ-गवय ६२ लुक्खामास १६८ रायसासव धान्य २२० रोहित मत्स्यजाति २२८ लुचित किया. १३०-१४८ रायाणं राजाज्ञाम् २५८ रोहिती चतुष्पद ६९ लुता कृमिजाति ७० रायाणुपायजोणि ललितप्पसादित किया. १४८ रायिणं राज्ञाम् २१३ लइत लगित १९८ लेखक कर्माजीविन् १६० रायिमंत सर्पविशेष २२७ लउच फल २३१ लेखा वस्त्र ७१ रायो पज्जायपत्ति राज्ञः पर्यायपत्नी ६८ लउसु फल २३८ लेज्झ लेह्य १४३ रालक धान्य १६४-२२० लक ? ११६ लेज्झगत दोहदप्रकार १७२ रिकिसिक पक्षी ६२-२३८ लकड आभू. ७१ लेज्झचुण्ण लेह्यचूर्ण १८२ वृक्ष ६३ लकुच वृक्ष ६३ लेवणगिह लेपनगृह १३८ १३९ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोत्र २०६ वक्खण लोद्ध पशु २२७ वक्खस्सामि वण्ण ११६ वक्खामि १३३ १०४ १२३ द्वितीयं परिशिष्टम् ३१३ शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र लेहणिक्खिवण लेखनिक्षेपण ९७ वइंदबुद्धि पुष्प ७० वडभ १५३ लेहपट्टिकमंडल ११६ वउत्थ प्रोषित १९६ वडु बृहत् ११४ लेहिच्चक ? २४९ वक वृक ६२ वड्डकि कर्माजीविन् १६० लोकक्खिणो १५० वक्कभंड वल्कभाण्ड १४२ वणकम्मिक लोकमाता ९ वक्कभंड वस्त्र २२१ वणति पुष्प ७० लोकम्हि लोके ३ वक्कय वल्कज आच्छादन ६५ वणपेलिका भाण्ड १९३ लोकहितय लोकहदय ५७ वक्कल वल्कल १४२ वणप्फइकाइकाणि लोणवाणिज्ज कर्माजीविन् १६० वक्किकतेल्ल वल्किकतैल २३२ वणप्फती वनस्पति १२१ लोतेक ? वङ्क्षण ६०-९६वणसंड वृक्ष ६३ वृक्ष ६३ १०१-१२३ वणियप्पधजोणि वणिक्पथयोनि १३९ लोपक व्याख्यास्यामि १८६ लक्षण १७३ लोपा वक्खाइस्सामो व्याख्यास्यामः १३५ वक्ष्यामि ४३ वण्णजोणि १४० लोममंडलक व्याख्यास्यामि १९२ वण्णधातुगत वक्खायिस्सामि अङ्ग लोमवासी ६६-७६-१२१ वक्खावत्थद्धरत वृक्षापस्तब्धरत १८४ वण्णपडीभागा लोमसिका कर्कटिका ७१ वग्घपद व्याघ्रपद गोत्र १५० वण्णमत्तिका वर्णमृत्तिका २३३ लोमसिग फल २३८ वचाई कृमिजाति ६९ वण्णयिस्सामि वर्णयिष्यामि २३७ लोमहत्थ लोमहस्त २१० वच्चगिह वर्चीगृह १३६-१३८ वण्णसुत्तक आभू. १६२ लोयक चतुष्पद वच्चदेवता व!देवता ७६-२२४ वण्णा वस्त्र ७१ लोयक दे० शटितधान्य ३३ वच्चभूमीय व!भूम्याम् २२२ वण्णेय लोलित क्रिया. ८४ वच्चाडक वर्षोंवत् ? २२२ वतंसक कर्णआभू. १८३ लोवहत्थपाणिय भाण्ड १९३ वच्चागत वर्षोभूमी २१४ वतिभेदग क्षुद्रजन्तु २३८ लोहकार कर्माजीविन् १६० वच्छ गोत्र १४९ वत्तणासी सर्पिणी ६९ लोहजालिका धातुवस्त्र १६३-२२१-२३४ वच्छक बाल १७० वत्तणीपालक वर्तनीपालक ८९ लोहभाण वादयिष्यति ८४ वत्तणीपालमग्गिय वर्तनीपालमार्गिक ९० लोहमय वृत्तपूर्व ८२ लोहमय भाण्ड ६५ वत्तमाणजोणि १३९ लोहसंघात १५ वट्टखुर वृत्तखुर ११६ वत्तमाणाणि लोहिच्च गोत्र १५० वद्रखेलणक ५७-८२-१२८ वृत्तकीडनक ११६ वत्ता लोहितक आभू. १६२ वट्टज्झाय वार्ता १० वृत्ताध्याय ११६ लोहितक सर्पजाति ६३ वट्टपीढक वृत्तोत्सव ८१-१०० आसन वत्तुस्सय ६५ लोहितक्ख आभू. १६२ वत्तमत्थ वत्थगत दोहदप्रकार १७२ वृत्तमस्तक ११६ लोहितिआ लोहितिका १८ वट्टमाणग वस्त्रगृह १३८ लोहियक्ख रत्न २१५ वट्टमुह १४० लोहीगत भाण्ड २१४ वट्टलोह धातु २३३ वत्थजोणी अज्झाअ १६३ लोहीवारगत भाण्ड २१४ वट्टलोहमय धातुवस्त्र २२१ वत्थपाढक कर्माजीविन् १६० ल्हासेहिति लासयिष्यति ८४ वट्टसीस वृत्तशीर्ष ११६ वत्थरिका भाण्ड ७२ ५८-१२८ वत्थाधिगत वस्त्राधिकृत कर्माजीविन् १६० वइए उक्तः ९ वट्टापेल वृत्तापीड २५९ वत्थि बस्ति ९४ वइत क्रिया. १९९ वट्टी वर्ति ६६ वस्थित अवस्तृत ११७ वइयाकरण व्याकरण ५७ वट्ठण वस्त्र १६४ वत्थिसीस अङ्ग ६०-२०४ वइरमच्छ मत्स्यजाति २२८ वड वृक्ष ६३ वत्थुदेवता वास्तुदेवता २०६-२२४ वइस्सज्झोसित वैश्यजोषित १६१ वडक उद्भिज्ज २२९ वत्थुपारिसद वास्तुपार्षद १५९ भाण्ड २५९ वज्जिहिते भाण्ड २२१ वट्रक आभू. १६२ वट्टक पक्षी १९७ वत्तपुत्व भाण्ड ६५ वत्थगिह वृत्तमुख ११६ वत्थजोणि वट्टा Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र ४०-१२१-१४३-१९० विवाहभाण्ड १७५ विवाह १३४ १२९ व्यापत् ६१-८० व्यापदं ८९ १२२ २०१ १५३ १२८ बाल १६९ वंत वंतं? वप्ता १०७ वंदहे भुनक्ति १०७ वंदिताणि स्थल-जलचर २२७ वंदियविहि आभू. ७१ वाइज्जो व्रज १३७-२२२ वाउकाणी १०० वाउजोणीक गोत्र १५० ७६ ७६ ३१४ अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द शब्द पत्र शब्द वत्थुवापतिक कर्माजीविन् १६० वसवा देवता २०४ वाधुज्ज उत्सव वत्थोपजीविक कर्माजीविन् १६० वसायं वसायाम् ५ वाधुज्जभंड वदंसक अवतंसक १४७ वसुमंतो वसुमान् १०५ वाधेज्ज वधुज्ज विवाह १४१ वस्सधर पर्वत ७८ वापण्णा वधूमज्जण वधूमज्जन २५५ वस्सारत्तं वर्षारात्र ६७ वापण्णोपहुता वद्धक आभू. ११६ वंजण व्यञ्जन १ वापद वद्धणक उत्सव ९७ वंजणउज्झायो १७४-१७५ वापदि वद्धमाण वर्धमान १ वंजणात व्यञ्जनान्त १५१ वापन्न वप्प वप्र १३७ वंजुल वृक्ष ६३ वामगत्तामास वप्पक वान्त १७१ वामणक वप्पडी भोज्य २४६ १० वामदेस वप्पा वन्दे ६ वामद्धणाहारा वप्फति ११-३८-१३८ वामपक्ख वमारक ९-१०-५९ वामपार वम्मिका वाचयेत् १० वामभाग वस्त्र वय ७१ वामसील वायुयोनिक १४० वयसाधारणा वामाई परिसर्पजाति वाउव्वातिक वरइ ६९ वातौत्पातिक १९२ वामाणि धान्य १६४-२२० वाकपट्टिका वल्कपट्टिका १८ वाया वरक वल्कल ८० वरक वामा पाणहरा वरढ वागरणजोणि ६-१० वरत्त रज्जुविशेष ११५ वामायार वागरणपागड व्याकरणप्रकट ७ वरमज्जण उत्सव २५५ वामावट्ट वागरणोदधि वराणि ५९-१२६-१२८ वामा सोवद्दवा वागरणोपदेसो अज्झाओ वराहा गोत्र १५० वामिस्स वाचि वाकेचिक? १४४ वरियगंडिया अरहस्स १८२ वामोद्दागं णगरं? वाणर पशु २२७ वरिसधर वर्षधर-कञ्चुकिन् १५९-१६० वाणाधिगत कर्माजीविन् १६० वायुक्काइकाणि वरुणक कर्माजीविन् १५९ वायुणेय वरुणकाइय गुल्मजाति वायुमुत्ता वलक्ख ? १४७ वायेज्जो १३६ वात वलभी १३६-२०० वायेहिति वातकण्ण वलुयग आभू. ६५ वातकुरील वलयवाणिय वातगुम्म वल्लिका कर्णआभू. वातचक्ककमंडल वल्लिपरिपल्लक ? वातपाण वल्लिफल वातमणा वल्लीतेल्ल वातंड रोग २०३ वारिस वल्लूर भोज्य २२० वातंडअरिस रोग २०३ वारेज्ज ववस्संति व्यवस्यन्ति ११५ वातंदविस प्राणी ? २२७ वालक ? वसणंतर वृषणान्तर १२५ वातंसु उद्भिज्ज २२९ वालकल्लि व(वा)सवेलिका २४७ वातिक वसया वसता ५ वार्तिगण फल २३८ वालमय ११३-१२८ ५७-७५-११० ५८-११२-१२८ ५८-११२ १३१ गोत्र १५० वाकल बृहत् ११४ वागपट्ट वस्त्र २३२ वामामास वृक्ष ६३ वाणियककम्म देवता २०४ वाणीर देवता १०४ २२४ उद्भिज्ज २२९ वारक रोग २०३ वारमट्ठि ११६ वारवाण ५८-११२ व्यामिश्र ९५-१२८ १६१ ५८ १२१ कण्ठआभू. १६३ वाचयेत् १२९ वादयिष्यति ८४ भाण्ड ६५ फल २३८ कञ्चुकप्रकार ६४ वृक्ष ६३ गोत्र १५० वर्षाकालिक १०१ विवाह ९८-१३४ १४२-१७० भोज्य ७१ आभू. १६२-२१५ भाण्ड २२१ २४० २२२ वारंग ५८-१२३-१२९ वारिणीला २३२ वात 11th t ७३ वालमय Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ विण्ह ? ४१ १९८ द्वितीयं परिशिष्टम् ३१५ शब्द पत्र पत्र शब्द वालंवा गोत्र १५० विक्खित्तमणता विक्षिप्तमनस्कता १३५ विणिकोलंत विनिकूजत् ? ३६ वालिका कर्णआभू. ७१ विक्खित्तविकधा विक्षिप्तविकथा ४१ विणिद्भुते विनिष्ठीवति १०८ वालीणा मत्स्यजाति २२८ विक्खिन्न क्रिया. ८०-१६८-१७१ विणियत्त विनिवृत्त ८१ वालुक्क फल ६४ विक्खिरे विकीरेत् ४५ विणीयविणअ विनीतविनय वालुंक फल २३८ विखिवंत विक्षिपत् १३५ विणेच्छिति विनत्स्यति ८४ वालुंकी वृक्षजाति ७० विगतस्सर विकृतस्वर ३५ विण्णातूण विज्ञाय १२७ वावदारी गोत्र १५० विगयसंठाण विकृतसंस्थान १७ विण्णासणट्ठयाय विन्यासनार्थतया १३० वावन्नजोणीआमास १८८ विगलप्पमाण १९४ वावारक? १६७ विगिलते क्रिया. १०७ वितड्डीक वितर्दिक ६ वाविद्ध व्याविद्ध १०८-१३० विघोलते किया. ८० वितत क्रिया. ११७ वास व्यास-विस्तार ४८ विच्छिक वृश्चिक २१० विताणक वस्त्र ६४-१६४-२०६ वासकडक वासकटक १८३ विच्छित्त विक्षिप्त १६८ वित्तीतोस वृत्तितोष ९३ वासघर वासगृह २२२ विच्चिन्न विस्तीर्ण १२२-१७१ वित्थत विस्तृत ११७-१३४-१९० वसन १४२ विच्छुद्ध वासण विक्षिप्त १६८-१७१ विदू विद्वान् १० विधत्तेसु वासंती क्रिया. १५५ पुष्प ७०-१०४ विच्छुद्धगत्त वासिट्ठ गोत्र १५० विच्छे ? विधार विहार २२७ विधावति किया. ८० वासुरुल स्थानविशेष २२२ विजयद्दार १४४-१४६ गोत्र १४९ विजयिका विधित्तिक ७० वासुल विजयवती फलजाति विधीचार वासुल विजानीयात् वीथीचार २०६ पुष्प ७०-१०४ विजाणीया १४ विधीयते विधीयति १२९ वाहणगत दोहदप्रकार १७२ विज्जता देवता ६९ विपज्जय विपर्यय ४५ वाहिज्ज वाहन १९३ विज्जा देवता ६९ विपडंत विअडसंवुडे १२४ विज्जा विद्यात् १८-४६ विपतत् १२२ १० विपत्तीसंपदा विआकरे देवता २२४ व्याकुर्यात् ४७ विज्जादेवता विपाडित विइत्त विपातित विपादित विचित्र ६ विज्जाधारक कण्ठआभू. १६२ विपाटित १६८-१७१ विकड्डति विकर्षति ८० विज्जासत्थाहिवुत्था देवता २२४ विपिक्खियविहि विकरण ९-१० १४६ विज्जिस्सति क्रिया. १७५ विपेक्खितविधिविसेस विकलका २३७ विज्जिहिए क्रिया. ८८ विप्पकड्डित विप्रकर्षित १९५ विकंपण क्रिया. १३० विज्जिहिति विप्पकिण्ण क्रिया. १०८ विकालिका आभू. ७१ विज्जिहिते किया. ८० विकूणंत विकूणत् ४२ विज्जु विप्रयोजित २०० विकूणिअ क्रिया. १८४ विज्जुता १३९ विकूणित १२३-१३०-१५५ विज्जुयाय क्रिया. ८० विक्कणित विक्वणित १८३ विज्जेहिते किया. ११० विप्परिवत्तते किया. ८० विक्कस भोज्य १८२ विज्झवित विक्षपित विध्यापित १६८-१७१ विपरिसि विप्रर्षि १०१ विक्कंदित विक्रन्दित १५५ विज्झीयति किया. १५५ विवंदियपडलं ४४ विट्ठण किया. २०० विक्कंदियाणि अद्वैव ४४ विडिएअ विटपक ६ विप्पसारित किया. १०८ विक्ख वृक्ष ५ विट्ठ विनष्ट १६८-१७१ विप्पेक्खियाणंगे दस ११-३४ विक्ख नपुंसक ७३ विणमंत विनमत् ३३-३७-१३५ विप्पोसहिपत्त विपडऔषधि लब्धिप्राप्त ८ विक्खरइ विक्षरति ४५ विणयजोणि १३९ विन्भट्ठपडित विभ्रष्टपतित ४४ विक्खिण्ण विकीर्ण १०८ विणासित किया. १४८-१६८ विभत्तीअ विभक्त्या ४० विक्खित्त विक्षिप्त १२-३८ विणासिंत विनाशयत् ३८ विभाएज्जो विभाजयेत् ४४ ५९ क्रिया. ९० विवक्ष्यति ८१-८५ विप्पघोलति विद्युत् २०६ विप्पजोयित विद्युत् २५४ विप्पयोगजोणि विद्युति ५ विप्परिचे?ते विक्षीयते २५० विप्पलोट्टित वेष्टन १९० विप्पलोवण Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ ५९-१२८ विसेसक व्याकुर्यात् ७ विसेसकिया पत्र विष्णु २२३ वैतालिक १४७ वेदिका १५२ वेदी १३६ वेदोपकरण २३९ वेदाध्यायिन् १०१ गोत्र १५० - वस्त्र ६४ वैधव्य १९७ वैमनस्यात् ४३ गोत्र १५० वस्त्र ७१ कर्माजीविन् १६१ किया. ८१ विडम्बयति ८३ भोज्य १८२ जलवाहन १६६ विझ १९७ वी २२१ अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द विभावेतूण विभाव्य ८६ विसतित्थिका कर्माजीविन् १६१ वेण्हु विमट्ठ विमृष्ट __ २१ विसमाणि ५८-१२४-१२९ वेतालिक विमरिस विमर्ष ५७ विसलाइत विशलाकित ? ८० वेतिया विमिलीसेलणालिक ? ५ विसंधित क्रिया. १६८ वेती विमिसिंत दे० प्रकाशित ६ विसाणमत्तिका वर्णमृत्तिका २३३ वेतोपकरण विमुक्कायं विमुक्तायाम् २० विसाह विशाखा २२३ वेदज्झाइ वियडप्पकास विकटप्रकाश १३७ विसिण्ण विशीर्ण ८१ वेदपुट्ठ वियडसंवुडा तिलकविशेष ६४ वेधण वियागरिज्ज ओकुंतणक १८३ वेधव्व वियागरे व्याकुर्यात् ४२ विस्सत्थ विश्वस्त १४३ वेमणंसा वियाजिज्जमाण ? क्रिया. १९८ विस्ससुद्द वैश्यशूद्र १०३ वेयाकरण वियाणक वितानक विस्सुअ विश्रुत १९२ वेलविक वियाणिज्जो विजानीयात् २४ विस्सोदण भोज्य १७९ वेलंबक विहक वियाणीया विजानीयात् ३३ विहग १४७ वेलंबित वियाणेज्जो विहि विजानीयात् १९६ १२१ वेलंबेति पर्वत ७८ वेलातिक वियाणेय विजानीयात् । अपि ३० वेलु विरुब्भति विरुणद्धि १९७ वीजणी उपकरण २३० वेलुमय विरूढतरक ११८ वीणा वाद्य २३० वेल्लरि विरोध विरुह उपकरण २०५ वेल्लिका ? विरोह व्यजनिका १९८ वेसगिह विरोहंते विरोहति (स० ए०) ३३ । पक्षिनाम ६२-२३९ वेसण विलका विलया-वनिता ६८-२०२ नोवाद १४५ वेसमणकाइय विलंधित १२७ वेसिक विलात ५९ वेसियागत विलाल पशु २३८ वीहि धान्य १६४ वेसेज्जसुद्देज्जाणि विलालु वुक्खाधिउत्था देवता २२४ वेसेज्जाणि विलित वीडित ४५ वुख वृक्ष २२२ वेस्स विलियंध वृक्ष ६३ वुट्ठिदार १४६ वेस्स विलिजरा पुष्प ७० वुट्ठिद्दार १४४ वेस्सखत्त विलेपिका भोज्य ६४-१७९-२४६ वुड्डजोणि १३९ वेस्सजोणि विलोकंत विलोकयत् ४२ वुप्पसुत्त कण्ठआभू. १६३ वेस्सप्पकतिओ विल्लरी पक्षिणी ६९ वूहित बृंहित १४८ वेस्सबंभ विवट्टणग भाण्ड १९३ वेइया वेदिका ३१ वेस्सवण विवरा ५८-१२४-१२९ वेइल्लपुष्फिका विचकिलपुष्पिका १०४ वेस्सेयाणि विवाडित वस्त्र १६३ वेकच्छग ____ आभू. ६५ वेस्सोसण्ण विवाडेंत विपादयत् १४४ वेकंतकलोह धातु २४८ वेहायस विवाडेती विपादयती १६९ वेजयंती वृक्षजाति ७०-१४६ वेंटक विवादजोणि १३९ वेजयंती पुष्प ७० वोकसित विवाह उत्सव २२३ वेट्ठण वेष्टन १३४-२४२ वोक्कितक्क विविय ? क्रिया. १९१ वेडसी वृक्ष ७० वोमीक विवेक्खित विप्रेक्षित २०५ वेढक आभू. ६५-११६ वोसट्टमाण विरुह वीयणी ९ वीयणीया वीरल वृक्षजाति ७० १४२ वेश्यागृह १३८ स्थानविशेष २२२ देवता २०४ वैशिक १६७ वेश्यागत २०८ ५७-१०३ क्रिया. १४८ वीस वस्त्र १६३ वीसतिवग्गा पशु वैश्य १०२ द्वेष्य १२०-२५३ वैश्यक्षत्र १०२ १३९ १०१ १०२ देवता २०५ १०२ १६१ १९२ अङ्गुलिआभू. १६३ व्यपकृष्ट १४८ भोज्य १८२ सर्पिणी ६९ विकसत् १४८ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द १५३ सअंसूग सक सकड २३५ ११६ सतपत्त वाहन ७२ सतपत्त वाहन ७२-१६६ सतपदि ५८ सतप्पाय वस्त्र १६३ सतवग्गे ११५ सदा सकडचक्क सकडपट्टक सकडी सकडीक सकपरक्का सकलदसद सकविगतगोत्त सकस्स सकाणि-णि सकित (कसित) सकुचिका सकुणि सक्कत सक्कुलिका सगड सगडी सगलिकारस सगुण सगोत्ता सच्चपडिहार सज्ज सज्जलस सज्जा सज्जिज्जमाण ९७ द्वितीयं परिशिष्टम् ३१७ पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र सण्णिरोध सन्निरोध ३८ सबरी शबरदेशजा ६८ साश्रुक ३५ सहमच्छ मत्स्यजाति ६३ सबल स्वक १२३ सण्हाणि ५९-१२४-१२८ सबुद्धिरमणाणि १२८ वाहन १६६ सत १२७ सभंडणमुल्लक सभण्डनोल्लाप ? ४० शकटचक्र २४२ सतधोत १०४ समखेत्ताणि २०७ पक्षिनाम ६२ समगिरेस ? पुष्पजाति ६३ समगुहिक भोज्य ७१ बहुपदा २२७ समजुंजं समयुञ्जन् (?) १५ त्रीन्द्रियजन्तु २६७ समणिम्मट्ठ समनिर्पष्ट २३ ५९ समणुवत्तति समनुवर्तते १९५ सतविसय गोत्र १५० समतिक्रान्त २५८ शतभिषग् २०८ समतिच्छिअ १२७ समतुंब परिपूर्ण ११४ स्वकस्य २४ सतसहस्स ५८-१२८ सतसहस्सवग्गे ५९ समयमंडल समलिकति गोत्र १४९ सता सतीमता समन्थनी स्मृतिमता २५ समंछणी ७२ मत्स्यजाति २२८ सतेरक सिक्कक ६६ समागमदार १४४-१४५ पक्षिणी सत्त लक्षण १७३ समाणए समापयेत् ५ सत्कृत समाणक्खराणि १५३ सत्तक भोज्य समाणयंतो सम्मानयन् सत्तखुत्तो ३७ सप्तकृत्वः १८४ शकट सत्तमिक समाणि ५८-१२४-१२८ शकटी २६ किया १६८-१७० सत्तर २२१ समाधिअण क्रिया १९३ सत्तरिवग्गा शकुन १४५ समामट्ठा १२१ सत्तिवण्ण वृक्ष ६३ गोत्र १५० समाय उत्सव १३४-१४३-२२३ सत्तुपिंडि सक्तुपिण्डी ७१ समारोधण समारोहण १९३ सत्थंधिवुत्था देवता २२४ वृक्ष ६३ सत्थाण समालभणक क्रिया १७० संस्थान २१८ रस २३२ समास उत्सव ९८-१२१ सत्थावरण शस्त्रावरण २०१ समासज्ज शय्या १०१ सत्थिआयमणी समासाद्य ५७ भाण्ड २१४ सज्यमान १९८ सत्थिक समासेयणक समासेचनक ९८ आसन पर्वत समिज्झतु समिध्यताम् ११२ ७८ सत्थिक समृद्धयोग २४८ १२७ सत्थिक आभू. ६५ समिद्धविहि समृद्धविधि ९-१० ५९ सत्थिण्णा ? निपन्नप्रकार ५२ समज्ज। समुद्यत (?) १५-३६ पक्षिणी ६९ सत्थिसंघातमंडल समुज्जत समुद्यत (?) १४३ श्राद्धभोजन १८० सदिवारित किया २०० समुज्जुग समर्जुक ३४ शढिक ६७ सद्दमणा ५८-१२३ समुद्दकाक पक्षी २२५ गुल्मजाति ६३ सद्दया गोत्र १५० समुद्दकुमार देवता २२४ शनैश्चर २१० सद्दा उद्भिज्ज २२९ समुद्दकुमारी देवता २२४ शनैश्चर १०४-२१० सद्देया ५८-१२३-१२८ समुद्दवल्ली वृक्षजाति ७० सनस्कन्धावार १३९ सनिकासिय सन्निकासित ११५ समुद्दावक ? २०५ ६४ सन्निवेस २०१ समुपलक्खिअ समुपलक्ष्य १३ किया १५२ सप्पक बाल १४५-१७० समुम्मट्ठ समुन्मृष्ट २२ क्रिया ११५ सप्फ पुष्प ६३ समुस्सवण समुत्सवन १९३ १२७ समाणित सज्झ स्वस्तिक १४७ समिद्धजोक सट्ठि सट्ठिवग्गा सडिका सडकभोयण सढिक सण सणिच्छर सर्णिचर सण्णाखंधावार सण्णाहपट्टक सण्णिकुट्टित सण्णिरुद्ध Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्र नलुलिकाप्रकार २२१ द्वीन्द्रियजन्तु २६७ संस्कृत १७६ कर्माजीविन् १६० १०४ द्वीन्द्रियजन्तु २६७ उद्भिज्ज २२९ १०४ संस्कृता २२० २१५ ام ب س आभू. १६२ १०४ १०४ शङ्खवाणिजक १०४ अङ्ग ७७-१२४ भाण्ड २२१ गोत्र १५० १२८ ५८-११२ م १३९ ३१८ अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द समोखिण्ण समुत्क्षिप्त १९५ सव्वचलामास १३० संकोसक समोवयितगत्त १११ सव्वट्ठक कृमि २२९ संख सम्मई सन्मति-वीरजिन १० सव्वणीहारगत १६८ संखअ सम्मज्जित सम्मार्जित २१ सव्वतोभद्द आसन ३१-६५ संखकार सम्मट्ठ सम्मृष्ट २४ सव्वत्त सर्वत्र १५८ संखचुण्ण सम्मिका कर्णआभू. १८३ सव्वत्थीक ? ३०-४८-५१ संखणग सम्मोई सम्मुद् १२-४०-१११ सव्वत्थीभावप्पदेसदंसक ५७ संखणा सम्मोदी सम्मत् १९८ सव्वपल्हत्थिका सर्वपर्यस्तिका १८ संखणाभि सम्मोयिआ सम्मुद् ३९ सव्वपादोवक सर्वपादोपक १४२ संखता सयओ सयतः ६ सव्वबाहिरबाहिर ८९ संखभंड सयणगत दोहदप्रकार १७२ सव्वरंगावचरगत १३० संखमय सयणगिह शयनगृह १३८ सव्ववेद गोत्र १५० संखमल सयणपाली कर्माजीविनी ६८ सव्वसज्जीवपरामास १३० संखवलय सयणावत्थद्धरत सयनापस्तब्धरत १८४ सव्वसप्पसु १५५ संखवाणियक सयसाह सव्वाणित ? शतशाख १५८ संखा सव्वोधिजिण सर्वावधिजिन १ संखागवलमय सयसाहस्समुख शतसहस्रमुख सव्वोसहिपत्त सौषधिप्राप्त ८ संखागोत्त सयसाहस्ससाधि शतसहस्रशाखिन् सस पशु २३८ संखावम्माणि सयाहिजुत्त सदाऽभियुक्त ससपतिकाय सस्वपतिकया १८५ संखावामा सयितव्वजोणि ससबिंदुक फल ६४ संखिक सर लक्षण १७३ ससबिंदुकिणी वृक्षजाति ७० संखेणा सर स्वर १५३ ससित श्वसित १४८ संगमजोणि सरक-ग सच्छिष्य ५ संगमत्तिका सरगपतिभोयण भाण्ड १९३ सस्सकचुण्णक २३३ संगमित सरजालक आभू. सस्सप धान्य १६५ संगलिका सरंट शरट २२७ सस्सयित संशयित १९९ संगलिकावत्थ सरसंपण्ण सस्सावित क्रिया १३३ संघतण सरस्सती २३२ संघमालिका स्वहस्तकारी ९८ संघाड सलाकंजणी शलाकाञ्जनी सहवरपुष्फ पुष्प ६३ संघायमंडल सलिलयत्ता सलिलयात्रा १४८ सहस्स १२७ संचित सल्लईहिं सल्लकीभिः १७७ सहस्सदंत मत्स्यजाति ६३ संजुकारक सल्लकत्ता कर्माजीविन् १६१ सहस्सदारजुत्त सहस्रद्वारयुक्त २ संझडित सल्लिका श्यालिका ६८ सहस्सपत्त पुष्पजाति ६३ संझादसण श्यालिका २१९ सहस्सवग्गे ५९ संठाण सवणगिह सवनगृह १३८ सहस्सवागरणा सहस्रव्याकरणा ८ संडिल्ला सवलाहिक स्थल-जलचर २२७ सहिगिणी ? ६८ संढ सवाहत क्रिया २०२ सहितमहका ? १५३ संतत्थ सव्वअज्जीवपरामास १३० संकधा सङ्कथा ४० संताणका सव्वअसक्कारित किया १३० संकम १३६ संतिट्ठिस्सति सव्वअसारगत १३० संकर ७३ संथडिय सव्वगोसिधण्ण १६६ संकुचणुट्ठित सङ्कोचनोत्थित ४५ संथित १०४ गोत्र १५० १३९ भाण्ड ६५ ससिस्स देवता २२३ सहकाररस भाण्ड ७२ सहत्थकारी सरिक वर्णमृत्तिका २३३ सङ्गमित ४१ साङ्गरिका ७१ सिङ्गिका १६६-१७९ संहनन लक्षण १७३ आभू. ७१ जलवाहन १६६ ११६ क्रिया १४८ कर्माजीविन् १६० संशीर्णः ११८ २०६ लक्षण १७३ गोत्र १५० ७३ संत्रस्त २५४ क्षुद्रजन्तु २२९ संस्थास्यति १७६ संस्तृत ११६ संस्तृत ११६ सल्ली Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द संदण संदमाणिका संधाणिदंसण संधावति संधिपाल संधिवाल संधी संपडिका संपडिपेक्खित्ता संपदा संपदाकालिय संपभिण्ण संपवेदये संपवेदेज्जो संपसस्ते संपादेंत संपावित संबाधंतरातिमास संयुक संभिक संलाविताणि संलावियविहि संवच्छर संवत्तमणोरभ संवलिका संविजाणिया संविताणक संविद्धविधी संविधाणक संविभावये संविमट्ठाणि संबुद्धिका संवेक्षित पत्र शब्द वाहन १९३ संसरणगिह ७२-१६६ संसरित यान सन्ध्यानिदर्शन १५५ संसावित किया ८० संसिज्जमाण कर्माजीविन १५९ संहित कर्माजीविन ८८ सा १३६ साकरस आभू. ७१ साकिजा सम्प्रतिप्रेक्ष्य ४१ साम्प्रता: १८७ संभिन्नसोय सम्पन्न श्रोतस्-लब्धि संभुच्चविजय संल संलापजोणी अज्झाय संलावजोणीओ संलाववंदित संलावविधिपडलं संलावितविधिविसेस साखानगर सागरस १९० सागरोवम सम्प्रभिन्न १५४ सम्प्रवेदयेत् १४- १२६ सम्प्रवेदयेत् ५० सम्प्रशस्यते ३९ सम्पादयत् ३८ सम्प्राप्त १७६ १८६ द्वीन्द्रियजन्तु २६७ श्लेष्मरोग २०३ सादृक साडक साडक सातिक सातिज्जित साधारणजोणि साधुजु साधूनि सापस्सत सामकहाणि संभूयविजय २०० श्यालक २१९ १६७ संलापयोनयः ४० संलापवन्दित ३९ ४१-४८ ५९ ११-१३८ ९-१० कर्माजीविन् १६० सामिद्धि संवृत्तमनोरम १२१ सामेलक्ख नकुलिकाविशेष १७८ सामोई संविजानीयात् सामोवाताणि ३२ पुष्प ६४ सार द्वितीयं परिशिष्टम् सामकाल सामली सामवेद सामंत सामाग सामाणि सामाणिय सामासवेलिका १० सारस्सत १९३ [ सारा] सारो अज्झातो संविभावयेत् ३६ सारिकोपकरण २२-१२१-१२६ साल कृमि २३० सालका क्रिया ११५ सालफलरस पत्र शब्द १३८ सालयगय किया १४८ सालंकायण किया १८६ सालाका संशीयमान १९८ सालाकालिक किया ११५ सालाकी स्यात् ११-२२-३६-४७ सालि २२० सालिका सालिभ १५० १६१ २२१ २६५ शाटक १८ बाल १६९ वस्त्र ६४-१७० मायाप्रकार २६३ स्वादित १७० १३९ ४ गोत्र कालविशेष साधूद्युक्त साधुयोग्य ५ सापश्रय ३१ देवता सालिभन्जिय सालिमालिणी सालिया सास सासक ? ५७-९२ १११ १५३ गोत्र १५० सिगिला सामन्त-समीप ५ सिगिलि धान्य १७८ सिग्गुकतेल्ल ५७ - १५३ सिचकत २०५ सिज्जति २४७ सिहक सासवकूर सासवतेल्ल साहबो साहाअवस्सितरत साहानामे साहिक साहुसंपन्न सिएणिअ ? लक्षण देवता १३० सिता कर्माजीविन् १६० सितीय सिकुत्थी सिकुवलिका सिकुवाली सम्मुद् ४०-१११ सित्थमच्छक ६८-९१ - १२८ सिद्ध १७३ सिद्धत्थिक २०४ सिद्धत्थिका २१३ सिद्धयत्त वृक्ष १३४ सिप्पगिह ६३ सिप्पपारगतं पक्षिन् २३८ सिप्पिका २३२ सिबिका ३१९ पत्र १८१ गोत्र १५० पक्षिणी ६९ भोज्य १८२ १६१ १६४ - २१९ १६६ पशु २२७ भोज्य १८२ देवता ६९ पक्षिणी ६९ कर्ण आभू. १८३ १४७ भोज्य ६४ २३२ ५ १८४ ११२ त्रीन्द्रियजन्तु २६७ साधुसम्पन्न ४ यान स्वालयगत कर्माजी धान्य जलवाहन साधवः १९५ सर्पिणी ६९ प्राणी २३७ सर्पिणी ६९ सर्पिणी ६९ प्राणी २३७ २३२ वस्त्र १४१ सीदति ५६ वृक्ष ६३ स्यात् २८ दे० निःश्रेण्याम् ३१-३३ मत्स्यजाति २२८ १७७ आभू. ७१ भोज्य १८२ सिद्धयात्र १४७ शिल्पगृह १३६ - १३७ कर्माजीविन् १६१ द्वन्द्रयजन्तु २५७ ७२-१४६-१६६-१९३ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ ७३ सुणहि अङ्ग ६६ सुण्हा अङ्ग ७६ सुतवी शिबिका २० सुतीसोपक फल ६४-२३८ सुत्तक ३२० अंगविज्जाए सद्दकोसो शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र सिब्भ श्लेष्म २०३ सीकाहारक कर्माजीविन् १६१ सुज्जुग्गमवण्णपडिभागा सिरिकंठ पक्षिनाम ६२ सीकुंडी मत्स्यजाति २२८ सुज्जोदअ सूर्योदय २४५ सिरिकंसग भाण्ड ६५ सीडा फल २३८ सुज्झिय शुद्धित ६ सिरिकुण्ड कुण्ड ६५ सीत १२४ सुट्ठियम्हि सुस्थिते १७ सिरिघर २२२ सीतपेट्टक कर्माजीविन् १६० सुट्ठियायं सुस्थितायाम् १८ सिरियक गुल्मविशेष १४१ सीतभोयण १८० सुणवारक रोग २०३ सिरिवच्छ आभू. ६५ सीतल चतुष्पदा ६९ सिरिविट्ठकसद १७७ सीतला ५८ सुण्णिक ? सिरिवेट्ठक रस २३२ सीता स्नुषा २८ सिरिवेट्टक उद्भिज्ज २२९ सीपिंजुला पक्षिणी ६९ सुतवितेहि सुतपद्भिः सिरी देवता २०५ सीमंतक श्रुतविद् ५६ सिरीस वृक्ष ६३ सीमंतिका सीमा २१४-२४१ सुतीसील शुचीशील १९४ सिरीसमालिका आभू. ७१ सीया २३९ सिरीसिव सरीसृप १९१ सीवण्ण आभू. ६५ सिरोमुहपरामास २६ सीवण्णी श्रीपर्णीवृक्ष ७० सुत्तक्किय सूत्रकृत १ सिरोमुहामास सुत्तगुणविभासा पडलं १३२ सीसमय ___ आभू. १६२ सिलातल शयन ६५ सीसवत्तिया सुत्तवत्त कर्माजीविन् १६१ वृक्षजाति ७० सिलापट्टपासाणा २३४ सीसारख कर्माजीविन् १६० कर्माजीविन् १५९-१० सुत्तवाणिय सिलिध सुत्तिका शुक्तिका १७३ वृक्ष ६३ सीसावक शीर्षआभू. २४२ सुत्तेरक ? २३९ सिलोच्चय पर्वत ७८ सीसेकरण वस्त्र १६४ सुत्थियागत स्वस्तिकागत ४१ सिवाणि ५८-११३-१२८ सीसोपक शीर्षआभू. १६२ सुद्द __ शूद्र १०३ सिविण स्वप्न १८८ सीहक बाल ? कोमल ? १४५ सुद्दखत्त शूद्रक्षत्र १०२-१०३ सिव्वणी अङ्ग ६६ सीहविजंभित सिंहविजृम्भित ४७ . सुद्दजोणि १३९ सिस्सजोणि १३९ सीहस्सभंडक आभू. ६४ सुद्दज्झोसिय १६१ सिस्सोपक्खावण ५ सुउत्तम श्रुतोत्तम सुद्दबंभ १०२-१०३ सिहा शिखा ६६ सुकुमालाणि शूद्रवैश्य १०३ सिंगक बाल ९७-१४२-१६९ सुक्क सिंगमय भाण्ड २२१ सुक्कपडीभाग शुक्लप्रतिभाग १०३ सुद्दोसण्ण सिंगारवाणिया कर्माजीविन् १६० सुक्कपण्डुपडीभागा १२८ सुद्धरजक कर्माजीविन् १६० सिंगालक ? २३८ सुक्कल शुष्क ? ११४ सुद्धवसिईअ शुद्धवसितिक ७ सिंगि नकुलिकाविशेष १७८ सुक्कवण्णपडिभागा ५७-१०४ सुद्धंसुतसाम सिंगिका लघ्वी बाला ६८ सुक्कामास २०२ सुद्धाकारी शम्बा १६६ सुक्किल शुक्ल १०४ सुद्धामास १३०-१३३ सिंघाडक भोज्य १८१ सुक्ख शुष्क ४१ सुपतिट्ठक भाण्ड ६५ सिंघाडक शृङ्गाटक-मार्ग १३७-१८४ सुक्ख-मलाणसु शूर्प १४२ सिंदीवासी वृक्षजाति ७० सुक्खामास १६७ सुप्पतिभाणवं सुप्रतिभानवान् ५६ सिंधुवार गुल्मजाति ६३-१०४ सुगंधाणि ५८-१२२-१२८ सुभिक्खदुब्भिक्ख सुभिक्षदुर्भिक्ष सिवितालित ? क्रिया १७१ सुगंधामास २०२ सुभिक्खयोगक्खेम १६२ सीउक आभू. ६४ सुघरा गोत्र १५० सुमंगल द्वीन्द्रियजन्तु २६७ सीउण्हाणि १२८ सुचिम शुचिमत् ९० सुयवेद गोत्र १५० सीकवल्लोकी वृक्षजाति ७० सुज्जुग्गम वर्ण १०५ सुरगोपक क्षुद्रजन्तु २३८ ५९-१२४ सुद्दवेस वर्ण १०५ सुद्देज्जाणि ५७ माग १६१ सिंगी Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२१ पक्षी २२५ सोतसा १५३ पक्षिणी दर सोदरिय सोपरत्त पत्र गुल्मजाति ६३ शोकात १२१ शोणित १७७ श्रोणिउपघातन १८५ आभू. ६५ श्रोणिका ८५ गुडप्रकार १७६ श्रोतसा ५६ गोत्र १५० सोदरिक १६८ २२१ देवता २०४ ___ १०१ १०१ सोमपायिन् १०१ सोपान ३१-३३-१३६ ५९-१२५-१२८ वस्त्र ७१ आभू. १६२ आभू. ६५ सुवरी द्वितीयं परिशिष्टम् शब्द पत्र शब्द पत्र शब्द सुराधरित कर्माजीविन् १६० सेड श्वेत १५३ सेंदकंठक सुरादेवी देवता २०५ सेडककंद १०४ सोकत्त सुरालायुल्लोधिकमच्छक ? २०९ सेडकणवीर श्वेतकर्णिकार १०४ सोणिय सुवण्णक सिक्कक १८९ सेडकफलिका श्वेतफलिका १०४ सोणियओघायण सुवण्णकाकणी सिक्कक ७२ सेडगद्दभक श्वेतगर्दभक चन्द्रविकाशिकमल पोजिसन सुवण्णकार कर्माजीविन् १६० सोणीआ सुवण्णखयित धातुवस्त्र २२१ सेडि सेटिका १०४ सोतगुल सुवण्णखसित धातुवस्त्र १६३ सेडिका सुवण्णगुंजा ७२ सेडिल सुवण्णजूधिगा सोत्तिया पुष्प ७० सेडीका पक्षी २३८ सुवण्णपट्ट धातुवस्त्र १६३-२२१-२३४ सेणा सुवण्णपडिपोग्गल . १४२ सेणायपतिणी सेनास्वामिनी ६८ सुवण्णमासक सिक्कक ६६-२३९ सेणिका गोत्र १५० सोमकाइय सुवण्णाधियक्ख सुवर्णाधिपाख्य १५९ सेण्ही पक्षिणी ६९ सोमणाम सुवण्णिक कर्माजीविन् १६० सेत वर्ण १०४ सोमपा चतुष्पदा ६९ सेतगुलिका उद्भिज्ज २२९ सोमपाइ सुविण स्वप्न १ सेतणिप्फाव धान्य १६५-२३२ सोमाण सुविणो अज्झायो १८६-१९१ सेततिला धान्य १६४-२२०-२३२ सोमाणि सुसाणदेवता देवता २०६-२२४ सेतवीही धान्य १६४ सोमित्तिकी सुस्सवमाण शुश्रूषमाण ५ सेतसासय धान्य २२० सोवण्णमय सुहस्सहा आसनविशेष १७ सेतसुरा सुरा १८१ सोवण्णसुत्तग सुहत् १९ सेतस्सतरा । १५० स्वरपिता सुंकसाला शुल्कशाला १३८ सेतुकम्म सुंकसालिय शुल्कशालिक १५९ सेद सुंसुमारा मत्स्यजाति ६२-२२८ सेदणिम्मज्जण क्रिया १४८ स्वाहाडंडपडीहार सुसुमारी परिसर्पजाति ६९ सेदपरामास १४६ स्सा सूकमिद्दा कृमि २३० सेदसाड श्वेतशाटक सूकमिंडा कृमि २२९ सेधक पशु २२७ सूकरिका वृक्ष ? २३८ सेलबिलासया हडिका २२७ सूचिकाणि १२६ सेलमय धातुवस्त्र २२१ सूचीका हस्त आभू. १६३ सेलुफल सूणावावत सूनाव्याप्त १५९ सेलूडक फल ६४ हत्थकडगाणि सूतमागध कर्माजीविन् १६० सेवणारत १८३ हत्थकलावग सूय ? __३९ सेवपूति वृक्षजाति ७० हत्थखड्ग सूयीणि . ५९-१२८ सेवालय सेवालक २१८ हत्थभंडक सूराई ५९-१२६ सेवितविधिविसेस ५९ हत्थमंडलक सूरुग्गमिक वर्ण १०५ सेवितविभासापडलं ५६ हत्थसंलग्ग सूवोदण सूपोदन भोज्य १९७ सेविताणि ११-५३-१३८ हत्थसोंडक शय्या २६ सेवियविहि सेवितविधि ९-१० हत्थाधियक्ख सेट्ठिणो गोत्र १५० सेसा शेषा १४७-१६८ हत्थारोह ni सुही १३८ स्वरविज्जा श्वेत २१८ स्वरान्त स्वरान्त १५१ स्यात् २५ ६४ २३८ हणुकायं काष्ठबन्धन ११५ हनु ११४ हनुके १२७ हस्त आभू. १६३ हस्त आभू. ६५ हस्त आभू. ६५ हस्त आभू. ६५ सेज्जा हस्तसंलग्न ४१ त्रीन्द्रियजन्तु २६७ कर्माजीविन् १५९ कर्माजीविन् १६० Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्द धातु २३३ हिमगिह धातुवस्त्र २२१ हिमवंत आभू. ७१ हिरणपडिपोग्गल किया १० हिसेत? ३२२ अंगविज्जाए सहकोसो पत्र शब्द पत्र शब्द पत्र हत्थिअधिगत हस्त्यधिकृत १५९ हंदोलक हिंडोलक ८० हित्थिय स्थल-जलचर २२७ हत्थिक आभू. ६४ हातु धातु ६ हिदयत्ताणक आभू. ६५ हत्थिखंस कर्माजीविन् १६० हार कण्ठआभू. ६५-१६२ हिदयाणि ५८ हत्थिमच्छा मत्स्यजाति २२८ हारकूडग १३६-१३७ हत्थिमहामत्त कर्माजीविन् १६० हारकूडमय पर्वत ७८ हत्थिमेंठ कर्माजीविन् १५९ हारावलि १४१ किया १४८ हतु(नु)मूलजिह्वामूलीय १५३ हारित हिंगुलकप्पभ वर्ण १०५ हयगिह गोत्र हयगृह १३६-१३८ हारित १४९-१५० हिंगुलकवण्णपडिभागा ५८ हरित चतुष्पद ६२ हारीहड पक्षिनाम ६२ हिंछाघोडा वृक्षजाति ७० हरित वर्ण १०५ हारीडणिप्फाव धान्य १६५ हुतासिणा सिहा हुताशनीशिखा ९१ हरितवण्णपडिभाग ५७ हाल किया. १४८ हरितापस्सत हरितापश्रय ३० हालक अधोमुख १४३ हरिताल १४१ हासहासित अधस्तन १११ हरितालवण्णपडिभागा ५८ हिज्जो ह्यः २३८ हेटिमजोणि १४० हरितालसमप्पभ वर्ण १०५ हिट्ठ हृष्ट १२-१४७ हेडित क्रिया १४८ हरितावस्सअ हरितापश्रय २७ हिट्ठता हृष्टता १३५ हेतिबद्ध हसितविधि ९-१०-५९ हितयाकूत हृदयाकूत ११८ हेरणिक कर्माजीविन् १६० हसितविभासा ३६ हितयागूत हृदयाकूत २४१ हेलणट्ठाय ४८ हसियाणि चउद्दस ११-३५ हितयाणि हृदयाणि ११८ हेलणत्थाय हेलनार्थाय ४२ हसीयमाण हसमान ३५ हितयाणुम्मज्जिताणि १२८ होक्खति भविष्यति ८४-९०-९१ हसुडोलक आभू. ६५ हितयामास १३० ह्रस्साणि ११५-१२८ हस्सा किंचि दिग्घा ५८ हित्थत त्रस्त, लज्जित ४१ हस्सा य किंचि दिग्घा ११५ गोत्र १४९ हंडित परिसर्पजाति ६३ हेटामुह ३५ हेट्ठिम २१६ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयं परिशिष्टम् अंगविज्जान्तर्गतानां प्राकृतधातुप्रयोगाणां सङ्ग्रहः | धातुरूपम् पत्रमा १ upur १६८ १७० १३०-१६८ १०८ १०८ १०८ १६-३८ १०८ १९८ २१७ अकोडित अक्कमंती अक्खारित अक्खोडित अग्घायते अग्घाहिति अच्चल्लीण अच्छाइत अच्छादण अच्छायित अज्जिहिते अज्झावए अज्झेणणासित अणभियित अणवत्थद्ध अणुगंतूण अणुतुरित अणुपविट्ठ अणुलित्त अणुलेवण अणुवक्खइस्सामि अणुवक्खाइस्सामि अणुवक्खामि अणोक्कंत अण्हेते अतिकंत अतिगत अतिवत्त अतिसरित अतिहरंति अधिज्जमाण अधिवसिस्सति अधीयता अधीयाण अन्नोसक्कित अपकटुंत अपकड्डित पत्रम् धातुरूपम् अपकड्डित्ता १४८ अपकड़िती १६९ अपक्खित्त १४८ अपछुद्ध २५१ अपणत ८३-१०७ अपणामंत ८४ अपणामित ८७ अपणासण १३० अपणासित १९३ अपत्थद्ध १६८ अपमज्जित ८४ अपमट्ठ ३ अपलिखित १४८ अपलोलित ३० अपवट्टित १३५ अपवत्त ८० अपविट्ठ २३५ अपसारित ८७ अपहित १३०-१६८ अपंगुत १९३ अपावुणंत ७ अप्फालित ७ अप्फोडित १ अब्भंगण ४१ अब्भुक्कढित १०७ अब्भुत्तिट्ठति ८१ अब्भुत्थित १०७ अब्भुप्पवति ८१ अभिजाणइ ८६ अभिज्जिय १०७ अभिणंदित १४७ अभिणिद्दिसे १९२ अभिणिस्सित ५ अभिणीयमाण ५६ अभिनिद्दिसे १४८ अभिमट्ठ १४४ अभिमिल्लंत १६९ अभिवड्डित पत्रम् धातुरूपम् १६९ अभिवंदहे १६९ अभिवंदिऊण १६ अभिसंगत १६९-१७१ अभिसंथुत १६९-१७१ अभिट्ठ ३७ अलंकरेमाण १७१ अलंकारेति १४८ अलंकारेहिते १६९ अलंकित १३५ अल्लीण १११-१७६ अवकड्डति १७१-१७६ अवकड्डित १७१ अवकरिसेंत १६९-१७१ अवकिण्ण १७१ अवक्खित्त १७१ अवच्चत १७१-२०० अवज्जेयमाण १६९-१७१ अवणामित १६९-१७१ अवणेत १९८ अवमट्ठ ३८ अवमाणित १४५ अवयक्खंत १६९-२१५ अवलोकित १९३ अवलोणित १०६ अवलोयित १४१ अवसकंत १४५-१९८ अवसक्कित १४१ अवसक्किय ४ अवसरित १९२ अवसारित १६८ अवस्सित १४ अवंगुत १५२ अवाहणंत १९८ अव्वोकड्ड ८९ अस्साएति १३० अस्सात ३४ अस्सादेहिति ३४ अस्सायेति २१५ १०८ १३० १७६ २१५ १३५ १९८-२१७ १३० १९८ 18 अंग० २६ Jain Education Intemational Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रम् १४८ ३२४ धातुरूपम् अस्सावित अहिजुत्त अहिधावति अहियाण अंदोलंति १३३ आ १३५ १११ ३३-१३५ १६८ ३८-८० १३६ १४८ १६८ अंगविज्जान्तर्गतानां प्राकृतधातुप्रयोगाणां संग्रहः पत्रम् धातुरूपम् पत्रम् धातुरूपम् १३३-१८६ आबंधति ८३ उज्झंत १३ आमसंत . १६९ उज्झित ८० आमसित्ता १७०-२५७ उज्झीयति १ आरुभंत १३५ उट्ठित ८० आलद्ध ७९ उट्ठित्त आलिंगित १४८-१९३ उटुिंत १९८ आलोकित १३० उडुज्झिहिसि १५५ आवातेंत ३६ उण्णत ११५ आविट्ठ १५५ उण्णमंत १७१ आविधिहिति ८४ उण्णामित ८४ आवेदिय २ उत्त ३६ आसज्जित्ता २५१ उत्तरंत १०७ आसते ८३ उत्थत १०७ आसाइत १०७ उत्थित ६०-८३ आसासण १४८ उदाहरिस्सामि १०८ आसित २४३-२५५ उदीरण ८४ आहारित १७६ उदीरंत १९२ आहारेति ८३-१०७ उदीरंति ८४ आहारेमाण १४४ उद्दवित १०७ आहित २१ उद्दुत ८३-१०७ आहिचति ८३ उद्धवित १४७ आहु ३६ उद्धीरमाण २३५ उद्धज्जमाण १४७ उक्कड्ड ८६ उपकडंती १०७ उक्कड्डति ८० उपकडित १०७ उक्कड्डिय १०८ उपकड्डित्ता ८३ उक्क(उक्तं) १ उपगूहित १०७ उक्कंदित १४८ उपधातित ८४ उक्कासित १७६-२१५ उपणत ६६-८३ उक्कूणित १४८ उपणद्ध २१५ उक्खणंत ३८ उपणामित ८४ उक्खलित २५४ उपदासित १०-८० उक्खंभमाण ४२ उपलद्ध ८१ उक्खित्त १११-१७१ उपलोलित ११ उग्गहित १४८-१७१ उपवत्त ८० उग्घाडित १४८ उपवप्पित १९३ उञ्चते ६८ उपविट्ठ १४९ उच्चंपति १०७ उपवेसण १२७ उच्चारित १३२-१७० उपसट्ट ८० उच्छंदण १९३ उपसरित १७१ उच्छाडित १०६ उपसारित १६२ उच्छुद्ध ३०-१७१ उपसेवण १४८ १४७ १९८ आउंडित आकुंचित आकुंडित आकोडित आगच्छते आगच्छतो आगण्णेति आगत आगमिस्सति आगमिस्सं आगमेहिति आगम्म आगहिति आगारेति आचिक्खति आज्ञयणीय आढत्त आणंदित आणित आणीय आणेति आतिअ[ति] आतिगंछिति आदिसे आधायित आधारइत्ता आधारए आधारतित्ता आधारयइ आधारये आधारिज्जमाण आधारित आधारे आधुत आपडित आबद्ध १४७ १६८ १४८ १६८-१७० १६८-१७० १६८ १६८ १६८-१७० १६८-१७० १६८-१७० १६८ १७० १४८ १४८ १७० १६८ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रम् ३२५ पत्रम् ३३-१७१ ८० ८०-१४४ २१५ १६९ १६२ १६२-१७१ ३८ १४८ ३३ १४८-१८६ १४८ १४८ २३५ १४८ ३४ १६९-१८४ ४२ ४२ धातुरूपम् उप्पज्जति उप्पज्जते उप्पज्जिहिति उप्पुत उब्भिण्ण उम्मज्जित उम्मज्जितूण उम्मत्थित उम्महित उम्मुक्क उल्लंधित उल्लंहित उल्लालित उल्लोइत उल्लोकित उल्लोकेति उल्लोगित उल्लोयंत उल्लोयित उल्लोहित उवकटुंत उवकसित उवक्खलित उवगूढ उवट्ठिय उवणामेति उवणात उवणिमिल्लंत उवत्त उवद्दित उवद्दुत उवधारए उवधारये उवपेक्खित उवप्फरिसते उवलक्खये उवलद्धव्व उववसित उवविट्ठ उववित्त उवसवंत उवसक्किम तृतीयं परिशिष्टम् धातुरूपम् पत्रम् धातुरूपम् २४६ उवसक्कित १८४ ओतिण्ण ८३ उवादिण्ण २१७ ओधावति ८४ उवे? १८४ ओधुत ३७ उवेसंत १३५ ओमत्थित २४५ उव्वट्टण १९३ ओमथित १११-१४८ उव्वरित १११ ओमधिय २३९ उव्वलित १०६ ओमुक्क १४८ उव्वलेंत ३८ ओमुंचमाण १४८ उव्वात १२२ ओरिक १४८ उव्वेल्लित १०८ ओरुज्झ १४८ उव्वेहासित १४८ ओरुभंत १४८ उस्ससित १४८ ओरूढ १४८ उस्सारित ११५ ओरेचित १६८ उस्सासेंत ३७ ओलकित १४५-१४८ उस्सित १३२-१६८ ओलमित १४१ उस्सिघण १९३ ओलंबित ३४-१७६ उस्सिघित १४८-१८६ ओलोइत ओलोकित १९७ ऊहस्सित १७६ ओलोयंत १०६ ओलोलित १४४ एति १०७ ओवट्टित १९८ एमि १०७ ओवत्त २५१ एहिति ७४-८४ ओवयित ८६ एहिती ८४ ओवारित ओवालित ८३ ओकट्ठ १६ ओसरित ३७ ओकट्ठित १७१-१९५ ओसारित ३४ ओकड्ड ८६ ओसुद्ध १२२ ओकड्डित १६९ ओहत १४८ ओकुणंत ४२ ओहसित १५५ ओखिन्न १९५ ओहिज्जंत १०७ ओगूढ ८६ ओहित ७९-१०७ ओघट्टित १४८ ३४ ओचक्खति ८३ कड्डित १०७ ओछुद्ध १६९ कड्डिति १९७ ओणत ३३-१७१ कत ९ ओणमंत ३७-१३५ कधेति १९३ ओणामित १४८-२०० करिस्सति १४५ ओणिपीलित १४८ कस्सामो १५ ओतरंति १ कंदित १३५ ओतारिअ १६९ कंपंत १६ ओतारित १११-१७१ कारयिस्सति ८१-१६९ १६९ १६९-१७१ २५८ .१४८ १९८ ओ १४८ १६९-१९५ १४८-२१५ १४८-१९७ १४८ ८१-२१५ ४६-१६२ ३६ १७५ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ पत्रम् १४४ १३ ३८-१२१ १४८ १७० अंगविज्जान्तर्गतानां प्राकृतधातुप्रयोगाणां संग्रहः पत्रम् धातुरूपम् पत्रम् धातुरूपम् १३५ गज्जित १६८-२५५ छद्देमाण १३०-१६८ गमिस्सति १७५-१९२ छंदेति ३७ गय ८० छात ६७-८४ गरहिअ १० छादित १४८ गलिअ छिण्ण ११ गहेतूण ३६-६२ गंदित ६३ गायते छिवित ६५ गायमाण छिदंत ६५ गालित गाहये गिज्जिहिते गीत छीयमाण छित्त १४८ छिन । १४८ १८४ धातुरूपम् कासमाण कासित कासेंत काहिति कित्तण कित्तइस्सामि कित्तयिस्सं कित्तयिस्सामि कित्तिय कित्तेसं किलकिलायिअ किलेसित कुट्टित कुरुते कुव्वत कुंचित कुंजित कूवित केसणिम्मज्जण कोट्टित कोडित छिदंती छीत ८४ छुद्ध १६९ १६८ १३५ १०८-२०० १४८ १३५ १४८ १०७ गीय गुलखित १५५ गृहित १६२ गेज्झ १४८ छुन्न १४८ छेलंत ३९ छेलित १४८ छेलित गोवित १६२-१९४ घट्ट १६२ जज्जरित ३८ जणयिस्सति १४८ जणये १४८ जतिस्सति १०७ जयिस्सति १४८ जहित्ता १४८ जंपति घसेंत घंसित घात घायति घिधिणोपित घुण्णित घुमति N० ० ० ६०-६६ १०८ १२१-१४८ घेत्तूण घोट्टेति घोडित ८० जंभमाण ३९ जंभाइत २५८ जंभायमाण ४६ जंभित १३६ १५५-१८४ ४५ खइत खणंत खमते खलित खंडित खाति खाहिति खिरे खिसित खुडित खुधित खुवित खुविय खुव्वति खुसित खुहित खोडित जाणिज्जो १४८ चमुत ११५ चलित १५५ जाणित्ता ८०-१४८ जाणे १४८ जाणेज्जो जाणेसु ७९-८९ ४४-९८ १३०-२१५ चालित १७६ चियेतूणं १५५ चितेति २४५ चितेहिति १४८ चुक्किहिसि १६२ चुंबित १४८-२१५ चेट्ठित जायति १०८ २५ २६५ जावण १९७ १४८ ३७-१८४ जीवति १५५ जुगुच्छित जुज्जे गच्छंत गच्छे १३५ छड्डित १० छड़ेंत ८०-१५२ जुण्ण ३७ जोइज्जमाण १९८ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२७ धातुरूपम् पत्रम् तृतीयं परिशिष्टम् पत्रम् धातुरूपम् पत्रम् धातुरूपम् णिग्गलित १०६ णिम्मज्जित १४७ णिग्गिण्ण १०७-१७६ णियक्खेति २५५ णिच्छालित १६८ णिराकत २५५ णिच्छुद्ध १०८-१६८ णिराणत झणित १५७-१८४ १०७ १६९ १४७ णिच्छोडण -१४८ णिच्छोलित । झरण झवित झंझणित झामित झीण झुझुरायित झुपित झोसित १०७ १०७ १७१ १६८ 1 १०६ णिरिक्खति १६८-१७१ णिलिक्खति १९९ णिलुलित ३४ णिलुंचित १०७ णिलूचित णिज्जायंत णिज्झाय णिज्झायति १६८ १७१ णिट्ठित णिद्रुत १०६ ठवित णिटुभमाण १३६ ठवेतूण १६२-१९८ १५७ णिदुभंत 10 १७१ डज्झति डहंत णिल्लक्खित १४८-१९७ णिल्लिक्खण णिल्लिक्खित ३७-१३५ णिल्लिहित णिल्लुवित णिल्लूहित णिल्लेलेउ णिल्लोकित णिल्लोलित णिवज्जंत णिवण्ण णिवसिहिति णिवासेंत १७६ १०८ १९८ १६८-१९८ णिटुंघति णिड्डील णिणादित ८३ णिण्णयण ८१ णिण्णामित २१७ णिण्णीत २५८ णिण्णेत १५५ णित्थणित ५६ णित्थुद्ध ८४ णिद्दहति २६५ णिद्दिज्जति ८०-१०८ णिद्दिसे ३६ ३६-१३५ १७१ २४६ णिवुड १३६ १४७ १०८ १७१ १९८ णिद्दीण १८४ णिद्धावति १६९-१७१ णिद्धाडित णिद्धोत णिप्पतित णिप्पीलित १९८ 9m १७१ १९८ १७१-१९८ णच्चति णच्चित णप्फडित णमंसित णमोक्कत णसिज्जति णाहिति णाहिसि णिकड्डति णिकायित णिकुज्ज णिकुज्जित णिकुंजण णिकूजित णिक्कट्ठित णिक्किट्ठ णिक्खणंत णिक्खणंती णिक्खण्ण णिक्खिण्ण णिक्खित णिक्खिन्न णिक्खिप्पमाण णिक्खुस्सति णिगलित णिग्गत णिग्गमिस्सति १०६ २५५ १६८ २६० णिवसंत २४३ णिवेसित १४-३६ णिवोल्लए णिवोल्लित ८० णिव्वट्टिज्जमाण १६८-१७१ णिव्वट्टित णिव्वत्तते णिव्वाडित णिव्वामण २५७ णिव्वामित १६९ णिव्वासित १७१ णिव्वाहित १६८ णिन्विट्ठ १७१ णिव्युत २ णिसण्ण १६२ णिसरति १०६ णिसामेति ३७ णिसारेति ३६ णिसित १४८ णिसीदंत १०८ १९८ णिप्फज्जते ३८-१४४ णिप्फाडित १६९ णिप्फावित णिप्फीलित १४८-१ णिप्फेडित णिबोधतं णिब्भग्ग १०८ णिमामित २५५ णिमिलंत १०८ णिमीलित ७६ णिम्मज्जण १५५ १७१ १२१-१९२ ३६-३८ १०८ १०७ १०८ १६८. ३६-३८ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ धातुरूपम् णिसुद्ध णिसेवति णिस्सरित णिस्ससति णिस्ससंत णिस्ससित निस्संघति णिस्सारित णिस्सावित णिस्सित णिस्सिघित णिसिघेमाण पिस्सूषित णिहित णीणित णीणीयमाण णीरक्कअ णिहरति पीहोत पीहारेति णीहित णुमज्जु णूण य Mile haltuu गोल्लण पोल्लति पहाण ण्हात हाधिति हायमाण माहिते तच्छेमान तणित तण्हाइत तरे तिरिण तिलेमाण तुच्छित तूरित्थ त अंगविज्जान्तर्गतानां प्राकृतधातुप्रयोगाणां संग्रहः धातुरूपम् पत्रम् १९७ १२३-१९७ थकित १०८-१६९ थक्केंत १०८ - २४६ थत ३७-१३५ थंभित १५५-१६८ थेव्विद्ध १०८ १०८-१६८ दद्दुमण १७१ दलायते १६२-१७१ दलिय १७१ - १८६ दस्सामो १३५ दायते २५५ दालित दाहिति १११-१४८ १९८ दिस्मिति १९८ दिज्जहिति १७१ १०८ १३६ १०८ १०७ ३९ १४८ १८ ४४ ८० १९३ ८१ ८४ ३८ ८४ दिस्सर दिस्सते दिस्सहिति दीसति दुसिस्सति देति धणित धमित धंत मंसित धावति धावित धाहिति धुत ३८ धूमायत १४७ घेत सं. १२१ - २४६ धोवमाण १० १४८ निवेसए १४८ निवेसेति १४७ १६९ पकिण्ण १४८ पकुट्ठ २६० पखलित १४८ पगलिअ थ ध न प पत्रम् पगलित २४५ पगलेंत ३८ पघंसण ३६ पघंसंत १४८ पघातण धातुरूपम् १४८ पचलायण पचलित १४७ पच्चालंबिज्जमाण ८३ पच्चालंबित ८० पच्छादित २३६ पच्छेलित ८३ पच्छोलित ८०-१४८ पजायति ८४-२३६ पजायते १७५ पजायिस्सति २३६ पजाहिति ८ पज्जुवासंत ८३-१०८ पज्जोवत्त ८४ पडिओधुत ८७ पडिगमिस्ससि १७५ पडिच्छह ८३ पडिच्छित पडिछुद्ध २३९ पडिणामित १४८ पडिणायित १४८ - १९७ १६८ पडित पडिदिण्ण ८० पडिदिन १४८ पडिपिक्खिया ८४ पडिबुज्झते ८०-१४८ पडिबुद्ध २५४ पडिमुंडित ३२ पडिलोलित ३८ पडिविक्खिज्ज पडिसरित ११ पडिमियमान ८३ पडिसामित पडिसिद्ध ८०-१६९ पडिसेधित २१५ पडिहरित २५४ पडिहारित ८० पढति पत्रम् २५५ ३८ १९३ ३९ १४८ ४४ ३८ १९८ १९८ १४८ १४५ - १८४ १६८ २९ ११० १६९ ६६-७९ १९७ २४७ १६९ १९२ २३६ १६८-१७० १६९-१७१ १७१ १६९ १२१-१६९ १७१ १६९ १५ ८३ १७१ १७१ १६९ १३ १६९ - १७१ १९८ २४५ १७१ - १९८ १४८ १६९ १७१ ८३ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .३२९ पत्रम् १९४ १६९ धातुरूपम् पढित पढिहिति पणामयंती पणीवते पतंत पतिगिण्हंती पतित पतिसिज्जति २६५ १९३ १९४ १९४ पते १०८ पवेदये २४५ पवेदिय २१५ पवेदेज्ज १६२ पवेदेज्जो पत्थरिय पत्थारइत्तु ४३ २४-४७ १०७-१९८ १३३-१७६ पासत १६९ पसस्सई १६९ पधावति पधोवण पधोवंत पपतण पपुत पप्फडित पप्फोडित पब्भट्ट पमुक्क पमुच्चति पमुच्छित पमुट्ठ ६७-८७ १७१ १४८ तृतीयं परिशिष्टम् पत्रम् धातुरूपम् पत्रम् धातुरूपम् ८१ परिचे?ति ८० पविट्ठ ८४ परिदेवंत ३६ पवियात १६९ परिदेवित १५५-१६८ पविसित ५६ परिधावति ८० पविसित्तु ३६ परिपुच्छेज्ज ७६-७९ पवेक्खति १६९ परिपुच्छेज्जा ६० पवेक्खयि १५५ परिब्भमे ८. पवेखति १२६ परिभीत ४५ परिमज्जित ११७ परिमत्थित ७ परिमद्दित ४५ परिलीढ पवेसित ८० परिवत्तते पवेसियमाण १९३ परिवद्धित ३९ परिसक्कतो पसस्सए १४८ परिसवंत पसस्सति पसस्सते १५५ परिसडित पसंखित्त १७१ परिसाडिय पसादित १६९ परिसुक्क १७१ पसाधेहिति १४८-१७१ परिसोडित पसायति १६९-१७६ परिस्संत पसारित १०८ परिहायति पसारेति १६९-१७१ परिहायिस्सति १७१ परिहित . १३० पलित २१५ पलिहित १०६ पहिज्जते १३०-१७६ पलोट्टित ८१-१९७ पाउणेति १७१ पलोयंत १५५ पलोलित १६९-२१७ पागडिय १३५ पलोलिय ३७ पवक्खामि ५९-८१ पाढेति ७ पवज्जे ९ पातित ७६-९८ पवट्टित २५५ पातुणंत १०८ पवडंत १३५ पावइ २५७ पवत्तउ ८ पावति १६९-१७१ पवयण सं० प्रपतन ४५ पाविस्सति २०० पवविस्सामि ९ पाविस्ससि १०८ पवसित १९३ पाहिति ६२ पवादित १६८ पांगुहिति १४७ पवायण १४८ पिणिद्धत १७१ पवायित १७० पिणेधण ११ पवासण ८० पविजाणिया १०८ १०८ १६९ पसुत्त १३०-१९३ पस्से १५५ पहत पमुत २०० पम्मुय पम्हुट्ठ ४२ पाउत ४१-१९३ २४५ १३०-१६८ ८१ पागुत १४८ ८३-१२३ पम्हुत पयलाइत पयलायमाण पयलायंत पयहिऊण पयाहिति पराजित परामसति परावत्त परावत्तिय पराहूत परिकित्तित परिक्खीण परिखड परिक्खेत परिघुमति १९३ पित ५६ पिधयित्ता Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० धातुरूपम् पिबति पिवासित पत्रम् पिहित पीणित अंगविज्जान्तर्गतानां प्राकृतधातुप्रयोगाणां संग्रहः पत्रम् धातुरूपम् . पत्रम् धातुरूपम् मालित १२१ भक्खण १९३ मिल्लेति भक्खते १०७ मुच्चति भग्ग ३०-१६८ मुच्चिहिति भज्जिज्जते २५४ मुज्झइ १४८ भट्ठ १४८ मुणेतूण १९३ भणति ८३ मुदित ३६-८७ भणित १४५ पीत पीलित पुच्छिज्जमाण पुच्छित पुच्छे पुच्छेज्जा पुफिय पूयित पूयिय ३६ भणित्तु ३० भमते २६५ युंजय ३६-१५५ भरेति ८३ रज्जति १४८ ८४ १०७ रमेहिति ६६-९८ रसायते ४६ भरेहते १४८ भविस्सति १७१ भविस्सते १०७-१४१ भंजंत पूरण रंधित १४८ ३८ राते १०७ भंजंति २५४ पूसित पेक्खति पेक्खत्ते पेक्खमाण पेक्खंत पेक्खित पेच्छति पेच्छते पेंडित पोरुपविद्ध पोसित भामित भासमाण भिण्ण रुदित रिंगमाणक रुण्ण १४८-१५५ १६९ रुण्णारुत १२१-१६८ ३०-१४८ रुद्धापित रूवाकड १४८ रेचित रोजयिस्सति ६६-८३ रोदंत १०७ भित्र १०७ २५९ १५५-१६२ ३४ १६८ २५४ १६८ १४८ १७५ ३६-१३५ ३७ २५५ ११५ भुक्खित १५२ भुत्त १८४ रोवंत ८७-२४३ भुंजति भुंजते ८३-१०७ भुंजिस्सति ८४ भूसित ३० भेदति १४८ भेदित रोहण ३८ फरिसायते परिसाहिति फलिय फालित फालित फालेंत फालेंती फासित फुलित फुल्लित फूमित फोडित ८२ १४४ मज्जति मज्जिय लक्खये लग्ग लब्मति लभित्ताणं लभिस्सति लयित १२७-१९७ ८०-२०० ७७ १९७ ६०-९८ १९८-२०० २४५ मत मधित मय मरिस्सति मलित मंडित लंछित ८० लासित १६९-१७५ लीण ८१-१४८ लुचित १४७ लुलित १२१ लूहित १३०-१४८ १४८ ८३ मंतुलित बुज्झते बुवति १०६ ल्हासेहिति बूया १९५ मंतेति १४-६९ मंतेहिति १७ माणेहिति १४७ मारमरीति बूवी ८४ वइए बोधिज्जमाण २४५ वक्खस्सामि १४८-१८६ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३१ पत्रम् ११७ धातुरूपम् वक्खामि वक्खायिस्सामि वज्जिहिते वट्टति वट्टिहिति वड्डए वड्डीयत वत्तते वत्थित १४८ १५५ तृतीयं परिशिष्टम् पत्रम् धातुरूपम् १०८ विक्खरइ १९२ विक्खण्ण ८४ विक्खित ६६ विक्खित्त ८४ विक्खिन्न ९ विक्खिरे २३६ विक्खिवमाण ८३ विक्खिवे ११७ विखद्धित ६६ विखिवंत विगलिय विगिलते पत्रम् धातुरूपम् ४५ वित्थिण्ण १०८ विदू १९९ विद्ध ३८ विधत्त ८०-१६८ विधावति ४५ विधीयति १३६ विधीयते विपडत विपाडित विप्पकड्डित विप्पकिण्ण विप्पघोलति विप्पजोयित विप्पमुक्क १६८ विप्परिचेट्टते ६३-१०७ १११ १२२ १६८-१७१ वदे १९५ ८०-१०८ १०७ विघोलते विप्पलोट्टित वधिस्सति वन्नयिस्सामि वष्फति वयंत सं० पतत् ववस्संति वंत वंदहे वंदामि वंदिऊण वंदित वाइय वादित वापण्ण वायए वायंत वायेज्जो वायेहिति वाविद्ध वासति वासित १७१ विप्परिवत्तते १६८-१७१ १४८ विप्पसारित २३५ विभाएज्जो विचलित विच्छिण्ण विच्छित्त विच्छिन विच्छुद्ध विच्छोभण विजाणेज्जो विजाणेति विज्जा विज्जिस्सति विज्जिहिति विज्जिहिते विज्जेहिति १०८-१३० विजेहिते २५७ विज्झवित ८३ विज्झीयति १०७ विट्ठ १५२ विणत ४७ विणमंत १२-६१ विणस्सिस्सति ८०-१०८ विणासण १०८ विणासिज्जमाण १५५ विणासित १३० विणिद्रुत १७ विणिकोलंत ४२ विणेच्छिति १५५ विण्णातूण ३६-६० ८३ विभावेतूण १८-२१ विमाणित ८३-१७६ विमिसंत ९० वियंभंत ८१-९८ वियाकरे ७५-७९ वियागरंति ११० वियागरिज्ज १६८-१७१ वियागरे २५० वियागरेज्ज १६८ वियाजिज्जमाण वियाण ३७-१३५ वियाणिज्जो १६९ वियाणिया १४८ वियाणीया वियाणेज्जो १०८-१६८ वियाणेय विरुब्मति १४९ वाहरति १९८ १५५ २४ १४-८४ २२ २४६ १९८ वाहित विआकरे विआगरे विकड्डति विकड्डित विकंदित विकंपण विकंपिय विकुणंत विकुणित विकूणि विकूणित विक्कंदिय १०८ १९७ १८४ विह १३० वितत ४४ वित्थत ८४ विरोहंत १२७ विलंधित १९४ विलित ११७ विलिपति ११७ विलिपंत Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ धातुरूपम् विलिपिहिति विलूहित पत्रम् १४८ १८६ विलोकंत विलोचित विवज्जये विवद्धये विवाडेती विसज्जेति विसलाइत विसंधित विसिण्ण विसोधह ४७ ३०-८१ सम्मज्जित १०८ सम्मद्दित १२२ सयते विहत वूहित वेदयति वेदयते वेलंबित वेलंबेति .० ०० ० ००० १२२ २५४ १२१ वेवित वोकसित अंगविज्जान्तर्गतानां प्राकृतधातुप्रयोगाणां संग्रहः पत्रम् धातुरूपम् पत्रम् धातुरूपम् ८४ समारोधण १९३ संसरित १०६ समाहरंति १०७ संसावित ४२ समिज्झये ५ संसिज्जमाण ३४ समुद्रुति ८७ संसित ५ समुढेहिति ६७-८० संहरमाण ५ समुदीरेति १०-८७ संहरंत १६९ समुपेक्खिय १४९ संहित १०८ समुस्सवण १९३ सा सं. स्यात् ८० समेहिति ८४ सातिज्जित १६८ समोखिन्न १९५ सातिट्ठिस्सति ८१-१९५ सिक्खइ ८१ सिक्खिहिते ८३ सिज्झतु ससित १४८ सिवितालित सस्सावित १३३ सुज्झति संकापित २५४ सु[ण]ते संचिट्ठते ८३ सुणेति संचिट्ठिस्सति १७५ सुयित संचित १४८ सुस्सति संजाणति ८३ सुहित संजायते ८३ सूयए संजोगेति २४६ सूयते संजोयेति २४६ सेवित्ता संतप्पते २४७ सोभंते संतिट्ठिस्सति १७६ सोभिहिते संधावति ८० स्सा सं. स्यात् संधुत संपकप्पते १२३ हणति संपडिपेक्खित्ता ४१ हणे संपतिवत्तते ८३ हवति संपधारए ११ हसते संपरिकित्तिय २ हसंत संपवेदये १४ हसित संपवेदेज्जो ५५ हसीयमाण संपादेंत ३८ हायति-ते संपावित १७६ हारित २५८ संपिंडित ११५ हित्थत २२-११५ हिसेत ५५ संभवति ८३ हुंडित ८३ संभंत ३७ हेडित ३७ संविट्ठ १९८ होक्खति ५ संविभावये ३६ होति १६८-१७० संवेल्लित ११५ होहिति वोच्छं ६९-८३ वोच्छामि वोसट्टमाण १४ ८० २३५ ३६-१३५ ३५-१४५ सक्कारित सक्कारेमाण सण्णिकासिय सण्णिकुट्टित सण्णिरुद्ध सज्जिज्जमाण सण्णद्ध सदिवारित समक्खात समणुवत्तति समतिकंत समतिच्छिय समभिजाणइ समल्लिकंति समाचरे समाणयंत समाणये समाणित १४८ ४ संपीलित १४८ १४८ १४८ ८४-९० १०७ ८४-२३५ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थं परिशिष्टम् ७३८ अंगविज्जानवमाध्यायमध्यगतानामङ्गनाम्नां कोशः 00000000 अंगनाम श्लोकांकः अंगनाम श्लोकांकः अंगनाम श्लोकांकः २ अक्खक ४ २ अंसकूड ३७६ २ कणवीरक २-९६७-१२८७-१७५६ २ अक्खि ११८१-१२४६-१२८५- १ अंसपीढ ११९४-१६०८-१७२९ २ कणिल्लिका कणिलिका १७५३ १२९८-१५२९-१६४१-१७२१- १ अंसवीफाणिय २ कण्ण २-९६७-११८१-१२९८१७३७-१७३८-१७६२ १ आस १७३३ १४६९-१५३९-१५७७-१६०२२ अक्खिअभंतर ७३६-१२४६ १ उदर ५-४८२-९९७-१०९६-१२०० १६२४-१६४१-१६७३-१७०४२ अक्खिकण्ण १४७० १२८४-१६६८-१६९८-१७०४ १७१७-१७२१-१७२८-१७६३ २ अक्खिकूड ३७६-१७२६ १७३३-१७६० २ कण्णचूलिगा १९३ २ अक्खिगुलिका १९४ १ उदरपुरिम ६९८ २ कण्णपस्स ६५७ २ अक्खिपम्ह १५९९ १ उदरभंतर ७३८ २ कण्णपाली १९४-१७४५ २ अक्खिवत्तिणी १९४ १ उर ४-४८१-५२२-११९४-१५०० २ कण्णपीढ १५६३ २ अग्गकण्ण १७४५ १५६३-१६०१-१६४१-१६५७ २ कण्णपुत्तक २-९६६ १ अग्गकेस १५७८ २ कण्णभंतर ७३७ २० अग्गणह १५७८ १६६८-१७१८-१७२०-१७२५-१७६० २ कण्णसक्कुली १७६३ २ अच्छिअब्भंतर ६९८ १२८६ १ उरपुरिम २ कण्णसंधि ५६५-१५१२ २ अच्छी २-१४६९-१७२०-१७७४ १ उरभंतर २ कण्णसोत १७०९-१७२६ २ अणामिका १७५३ १ उवत्थग १५१२ १ कण्णुप्परिका १७२१ २ अधर १५०९-१५२९-१६२३-१६६८ ६१८ २ कमतल ५६७-१७२५ १ अधिट्ठाण १७५८ १ऊरु १२०० २ करतल १५३९-१७२५ १ अधोमंसु १५९१ २ ऊरु ५-१५००-१५२१-१६६७ २ करमज्झ २ अपंग ९६७-१२८४ १७३८-१७४७-१७६३ २ कवोल २-११४९-१९८१ १ अवडु १५१३ २ ऊरुअब्भंतर ७३६ १ कंठपुरिम ६९७ अवह १९५ २ ऊरुअंतर १७७३ कंठोल्ल १२८७ २ अवहत्थग २ ऊरुपच्छिमभाग ६१८ कंडरा १९७ २ अवंग २-१२८७-१७५६ २ऊरुपस्स ६५८ ४ कंडरा १ अवंगभंतर १६३२ १२४६ २ ऊरुपुरिम ६९८ २ अंखी १ कुकुंदल १७२७ १७०४ २ऊरुमज्झिम ५२३ २ अंगुट्ठ २ कुक्कुड १५१२ १७५३-१७५६ २ ओट्ठ ३-४८१-९६७-११४९४ अंगुट्ठ ३७६ १ कुक्खंतर ४-१५१०-१५११-१५२९ ११८१-१२८५-१२८७-१५१०- २ कुक्खि १७४५-१७५२ १६०१-१६२३- १६२४-१६४१- १६ अंगुलि २ कुक्खिपस्स १२०० १९७-१५१०-१५११ १७४०-१७४५-१७५२-१७५६ १ केस ३७७-१५१९-१५२११५२१-१७४५-१७५२ २० अंगुलि १ ककाडिका १९५-१४७०-१६७३ १५९१-१६७३-१७०५१६७३ १ अंगुलिअंतर २ कक्खा १४७०-१५९१-१७१८ १७५७-१७६७ ३७६ १२ अंगुलिअंतर १७२६-१७४६-१७५८ १७७३ १ केसमंसु १७१८ १६ अंगुलिअंतर १७३५ २ कक्खाअभंतर ७३६ १ केसलोम १२८५ २० अंगुलिपोट्ट १६०१ १ कडि १९५-१०९६-१४६९-१६६८ १ केसलोमणह १५८३ २ अंजलि १७३३ २ कडितल १५६९ २ कोप्पर ३-१५१९-१६७३-१७२९२ अंस ३-९९८-१६६७ २ कडिपस्स १०९६-१२००-१६६८ १७४३ ५२४ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ णयण १७०९-१७५९ २ थविका १९४ ७३७ १ णह दंत १ दंत ७३६ ३३४ अंगविज्जानवमाध्यायमध्यगतानामङ्गनाम्नां कोशः अंगनाम श्लोकांकः अंगनाम श्लोकांक: अंगनाम श्लोकांक: २ खलुक १५१९-१६३२-१७२९ २ जंतुतरपुरिम ६९७ १ तल १६६८ २ खंध ४-५२४-११९४-१२४६ २ जाणु १२८४-१५१९-१६०८- २ तल १४६९-१७२० २ गंड २-१९३-५२४-९६७-११४९ १६३३-१६६७ २ तारक १९४ ११८१-१५००-१५३९-१५६३- २ जाणुपच्छिम १६०८ १ तालु-क १९४-१२८५-१२८७-१७५६ १६२४-१६४१- १७२५-१७३३- २ जाणुसीस १५३८ २ तिक १७२० १७४० १ जिब्भा १९५-१२८५-१२८७- २ थण ४-११२९-११७७-११९४२ गंडपस्स ६५७ १३३१-१३४९-१५२९-१५६३ १२४६-१२९८-१५००-१५३८२ गंडब्भंतर ७३८ १५७७-१६२४-१६४१-१७०९ १६४१-१७३३-१७४० १ गीवन्मंतर ७३८-१२८६ १७२०-१७३८-१७४०-१७५६२ थणपाली १९६ १ गीवा १९५-१७४९-१२४६-१२८४ २ ढेल्लिक १५१९ १ थणंतर ४८२-९९७-१६४१-१६५७ १ गीवापच्छिमभाग ६१७ १५२९ २ गीवाहे? १७२६ णह १२८५ थूणा १ गुदब्भंतर १७०५-१७५७-१७६७ थूरक १९६ १ गुदा १९५-१७१७-१७३७ २० णह-ख १२४६-१५७७-१६०१ ।। १२८५ २ गोप्फ ६-१०१५-१०६७-१०७३- २० णहसिहा १७४३ ९६७-१९८१-१२४६१२०६-१४७०-१५१२___णहसेढि १७५० १६२४-१७७४ १६३२ १ णाणी(णाभि ?) ४८२ २ दंत ५२४-११४९-१६०१-१६४१ २ गोप्फण १२८४ १ दंतमंस १ णाभि १९६-१०९६-१४६९-१५३८ ३-१२८७ १ घाण १३३१-१३४९ दंतवेढी १७२७ १९५ १ चक्खु १३३१-१३४९-१७२४ १ णाभिअब्भंतर १ दंतवेला २ चल्ल १ णासग्ग दंतसिहा १७५० १७१७ १ चिबुक १५१० १ दंतसेढिका-ढी २ णासग्ग १७४५-१७५० १६७३ २ चूचुक १९६ १ णासा १९५ ४८१-९६७-११४९१ छगली १९३ १ देहफरिस ११८१-१५१०-१६०२१ छिरा १३३१-१३४९ १९७ धमणी १६२४-१७०४-१७२९ २ जण्णुक-ग १७२९-१७४३ २ पओट्ठ १९६ २ णासा २ जण्णुगसंधि १५२९-१७२८ १५१२ १ पट्टि १९५-११९४-१५००१ णासापुड १६०२ २ जतु ४-५२२-११७९ १५१२-१५२१-१५६३२ णासापुड ९६७-११४९-१२९८२ जतुमज्झ ५२४ १६०८-१७१८-१७६० १६९७-१७०९-१७४६ १६६८ २ पट्ठीपच्छिमभाग ६१७ १ णासापुत्तक ४८१ २ जत्तु १०३८-११२९-११९४-१५२९ २ पट्ठीपस्स १०९६ १ णासावंस १७३० १ जत्तुअंतर ९९७ २ पण्हिका १९७ ४८१ १ णासिकमंतर १ जत्तुत्तर ७३७ २ पण्ही १६३२-१६७३ २ जंघब्अंतर १ णासिका १९४-१६४१-१६५७- २ पण्हीतल १५६९ २ जंघा १९६-१०१५-१०७३-१२०६ १७२१ २ पण्हीपच्छिमभाग ६१८ १ णिडाल १५०९-१५२१-१६३२ ५२२-९६६-११५०२ पदेसिणी १७५४ ११८१-१४९८-१५१०-१५६९- १६६७-१७४७-१७६३ २ पबाहु ३-९९८-१५२१-१६६७ २ जंघापच्छिमभाग ६१८ १६०१-१६०८-१६२४-१६४१- ३० पव्वंतरंगुल १५६९ २ जंघापस्स ६५८ १७२१-१७२५-१७४५ २ पस्स ४-५२२-११९४-१४६९२ जंधापुरिम २ णिडालपस्स १५६९ १६९८-१७६० २ जंघामज्झ ५२३ १ णिडालपुरिम ६९७ २ पाणितल १२८७-१५६३-१५६९जंघोरुउद्देसंतरभाग ३७५ १ णिडालब्भंतर ७३८ १५७७-१६०१-१६०८-१७५६ २ जंतुअब्मंतर ७३८ १ तया १७१०-१७६७ २ पाणितलब्भंतर ७३६ दाढा १९७ ७३६ ६९८ Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगनाम २ पाणितलहितय ६ पाणिलेहा २ पद १० पादणह २ पादतल २ पादतलहितय २ पादपि २ पादपहि २ पादपस्स २ पादहितय २ पार्दगु ६-१०७३-१२०६-१२८७ १५६३ - १५६९ - १५७७-१६०१ १६०८-१६३२-१७५६ २ पादंगुलि १० पादंगुलि १ पालु २ पेंडिका १ पोरुस ६-१३३१-१३३९-१४७० १६६७-१६९८ - १७०४१७३७-१७५९ १६३२ १० पादंगुलिपव्व १० पादंगुलिपोट्टिया २ फल २ फिजा २ फिजापच्छिमभाग २ फिया श्लोकांकः अंगनाम १५८६ २ भुम १५२९ १०१५-१०७३-१२०६ १ भमुह २ भुजंतर १५८६ ५२३ १०१५ ६५८ १०१५ १६६७ १०७३-१२०६ १६३२-१७४४ १५५८ - १६१३ १६३२ १७३५ - १७३८-१७६१ १६३२-१७६३ ५- १७१० १०९७ - १२०० १९५ ६१८ १५००- १५३८-१६३३ १६७३ - १७२९ - १७४७-१७६३ २ बाहा ११२८ १३३१-१३४९ १ बाहु २ बाहु ३ - ९९८ - ११८१-११९४ - १५०९ २ बाहुली २ बाहुणालीपच्छिमभाग २ बाहुलीपस्स २ बाहुणालीपुरम २ बाहुणालीमज्झ ९ बाहुपस्स २ बाहुमज्झ २ बाहु २ बाहुसीस चतुर्थं परिशिष्टम् १ भुमक १ भुमकंतर १ भुमर्कतरस २ घुमगन्धंतर १ भुमंतर २ भुमासंधि १ मज्झ २ मज्झमिया १ मत्थकब्भंतर १ मंस (मंसु) १ मंसु १ मुह २ मणिबंध २ मणिबंधहत्थसतल १ मत्थक-ग लंका लेहा १५२१-१६६७-१७२८- १७४७ १ लोम १९६ - ११२८ ६१८ ६५८ ६९८ ५२३ ६५८ ५२३ १४७०-१६६७ १५३८ १३३१-१३४९ १७७३ १ मुहपुरम १ मेड्डू १ मेहण ११८१ - १५२९ - १५९९१६९८ - १७४५ श्लोकांकः अंगनाम ७३८ १५८३ ३७७-१५९१-१७०५- १७५७ ३-१२९८ - १६५७-१६६८१६९८ - १७०४-१७१७-१७२०१७२१- १७२८-१७३३-१७३५१७६२ १९४ ११४९ ४८१ ७३८ ३७६-१६२४-१६५७ ५६५ - १५१२ १०९६. १७५३ १५१२-१७२९ १ लोमग्ग १ लोमवासी १-४८०-९६६ - १५३८१६२४-१६४१-१६५७१७२१-१७२५-१७३० १७६७ ६९७ १२०० - १२९८- १७३५-१७३७ ४८२ - १०९७-१६०२-१७१७१७३८ - १७५८ - १७६१ १ मेहणमंतर १ मेंढ १ रोम १ ललाट-ड २-४८१-१५३९-१५६३ १२८४ २ संधि १ सिखंड १ सिर ५२२ - ११५०-११८१-१५००४ १५०९-१५२९-१५३९१६२३-१६६८-१७६० १९७ १९७ ३७७-१५२९-१७०५- १७५७ ७३६ १५२९ १५१९ १७६० १६७३ १९६-४८२ - १०९६१५९९ - १६६८ २ वक्खण ५-१०५९-११७५-१२०० २ वक्खणमंतर वट्टी १ वत्थि १ वत्पुरिम १ वत्थिसीस ५-४८२ - १०९७-१२०० १५७१-१७१८ ७३६ १९५ १०९७ - १२०० -१५७१ ६९८ १ [ वत्थि] सीसपुरिम बली २ वसण २ वसणंतर १ वंस २ संख २ ५२४ ९६६-१९८१-१४६९१४७०-१५१२-१५३९१६४१-१७१८ - १७४५ १४६९ १ सिव्वणी १ सिहा सीता १ सीमंतक १ सीस १ सीसकूड १ सीसपच्छिमभाग २ सीसपस्स १ सोणि १ सोणिअब्भंतर १ हणु १ हत्थ २ हत्थ ३३५ श्लोकांक १ सोत्त १ हण (णह) १-९६६-१३३१-१३४९ १६२४-१६४१-१६६८-१७२१ ६९८ १९७ १७२९ - १७६१ १७५८ १६५७ १० हत्थणह २ हत्थतल २ हत्थपाद २ हत्थंगुट्ठक ११ हत्थंगुलि १ गुलिकोदर ११] हत्गुलिप १ हितय १ हिदय १ हिदयपुरिम १ हियय १९७ १९३ १९४ १-४८० १६०२-१७२४ ७३७ १३३१-१३४९ १५१९ १९५ - ११४९ १३३१-१३४९ ९९८ - ११२८-१४७०-१६९८१७०४-१७३७-१७५९- १७६२ १७७४ ९९८ १५०९ ११२८ १७४४ ११२८ १५५८ - १६१३ १७३० ६१७ ६५७ १२४६-१४६९ - १५८६ १६५७ - १७१०-१७२०१७२५-१७७४ ४८२ ६७७ ९९७-११९४ - १४७० Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) अंगविज्जानवमाध्यायप्रारम्भे निर्दिष्टानां २७० अङ्गविभाजकद्वाराणां सङ्ग्रहः २२१ द्वारांकः द्वारनाम द्वारांकः ९ गंभीरा १८२ १३६ ४ गोज्झा २२३ १३४ ४१ चउरंसा १२० २०२ ८ चतुक्काणि २४२ १८५ २ चत्तालीसतिवग्गा २५४ १८७ ६ चपला २८ चलाणि २५ ३६ चंडाणता २०३ ९२ ९३ १० जण्णेया १७७ ८९ १० जम्मणा २२४ १० जहण्णाणि ૨૮ ९४ २० जंगमाणि १४७ १२९ २५ जुत्तोपचया १०७ १०६ २ जुवतेया १५४ २ जोव्वणत्थमज्झिमवयसाधारणाणि ३८ १४ जोव्वणस्थाणि १७५ २१६ ३४ Tulunulmakuullulla chutkinlit २३९ द्वारनाम द्वारांकः द्वारनाम अ १० अगणिक्काइकाणि १४४ १४ इस्सरभूता १० अग्गेया १७६ १० इस्सरा ७ अचपला २२२ १६ अणागताणि ११ १० उज्जुका ७५ अणायकाई २३२ १४ उण्णता १० अणिस्सरा १३५ १० उण्हा २ अणू १२५ २ उत्तममज्झिमसाधारणाणि ५० अण्णजणाई २३५ २० उत्तमाणि ५० अतिकण्हाणि २४ १७ उत्तरपच्चत्थिमा १६ अतिवत्ताणि ९ १७ उत्तरपुरस्थिमा २ अदंसणिया १७९ १७ उत्तरा १३ अधोभागा ९५ ५ उत्ताणुम्मथका १ अपरिमिते २७० १२ उद्धभागा ५० अपसण्णअपसण्णा ९८ ५ उवग्गहणाणि ४ अप्पपरिग्गहा १६१ ९ उवथूला ५० अप्पसण्णा ९७ ५० उवद्दुता २६ अप्पिया १४० २० अप्पोपचया १०८ ५० एक्ककाणि ४ अबुद्धीरमणा १५९ ५० अब्भंतरअब्भंतराणि १३ ५० ओवातसामाणि ५० अब्भंतरबाहिराणि १५ ५० ओवाताणि अब्भंतराणि १२ २६ अवत्थिया १४१ २ कण्णेया १९ अविवरा १९३ १० कण्हवण्णपडिभागा ५० अव्वोआताणि २३ ५ कण्हाणि २ असीतिवग्गा २६२ १४ करणमंडला ३३ अंता १५० ५ काया १६ अंबराई १० किलिट्ठा आ १७ किसा १२ आकासा १० कुडिला २३ आतिमूलिकाणि १४८ १ कोडिवग्गे ६ आयता २०४ ४ आययमुद्दिता २०५ २ खत्तेज्जवेसेज्जाणि १० आयुक्कायिकाणि १४३ १४ खत्तेज्जाणि २० आयुष्पमाणे वस्ससतप्पमाणाणि २४ खरा १० आवुणेया १८९ १० आहारणीहारा २ गततालुगवण्णपडिभागा १० आहारा ८० ५ गहणाणि १० आहाराहारा ८२ २ गंधेया ओ २४४ २४६ ५ or or २२९ ६ ठिआमासे ७ ठिआमासे २४५ १८ ८ ठिआमासे ९ ठिआमासे २४७ २१४ १० ठिआमासे २४८ ठिआमासे असितवण्णपडिभागा ६८ ठिआमासे कोरेंटवण्णपडिभागा ६९ ११७ ठिआमासे चित्तवण्णपडिभागा ७० १२२ ठिआमासे णिद्धलुक्खवण्णपडिभागा ७३ ठिआमासे णिद्धवण्णपडिभागा ७१ ११० ठिआमासे पंडुवण्णपडिभागा ६३ २०१ ठिआमासे मणोसिलवण्णपडिभागा ६४ २६९ ठिआमासे लुक्खवण्णपडिभागा ७२ ठिआमासे सुज्जुग्गमवण्णपडिभागा ६७ ठिआमासे हरितालवण्णपडिभागा ६५ ठिआमासे हिंगुलकवण्णपडिभागा ६६ २०० ५८ णपुंसकाणि २ णवुतिवग्गा २६४ १२८ २० णातिकिसा १०९ १६९ ७५ णायकाई २३१ ॐ ८३ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वारनाम ५ णिण्णा १० णिद्धणिद्धा १० णिद्धलुक्खा १० णिद्धा ७५ णिरत्थकाई ५० णीयाई २० णीलवण्णपडिभागा १० णीहारणीहारा १० णीहारा १० णीहाराहारा १० णेरइया २७ तणू १० तता १२ तंबा २ तंसा १० तिकाणि २० तिक्खा १४ तिरिक्खजोणिका २ तीसतिवग्गा ७५ तुच्छा १४९ चतुर्थं परिशिष्टम् ३३७ द्वारांकः द्वारनाम द्वारांकः द्वारनाम द्वारांकः १८१ ७५ १६ पच्चत्थिमा ८७ १९ बद्धा २ पणतालीसतिवग्गा २५५ २ बंभखत्तेज्जाणि ७४ २ पणतीसतिवग्गा २५३ २० बंभेज्जाणि २ पणुवीसतिवग्गा २५१ २ बालजोव्वणत्थसाधारणाणि २ पणुवीसपण्णासवस्ससाधारणाणि १० बालेयाणि १० पणुवीसवस्सप्पमाणाणि ५० बाहिरबाहिराणि ८५ १४ पण्णत्तरिवस्सप्पमाणाणि ४८ बाहिरब्भतराणि २ पण्णत्तरिवस्ससतसाधारणाणि ५० बाहिराणि २ पण्णरसवग्गा २५ बिकाणि २०९ २ पण्णासपण्णत्तरिवस्ससाधारणाणि ५२ ९ बुद्धीरमणा १५८ ४ पत्थीणा १२३ ५० परक्का ३ भीरूणि २३८ २२५१ परमाणू १२६ २१८ ११ परंपरकिसा १११ ५ मउक्का १९७ १२१ २१ परंपरतणू ३३ मज्झविगाढाणि २४१ ९ परिणिण्णगंभीरा २ मज्झिममज्झिमसाधारणाणि | १५३ १२ (१०) परिमंडला २ मज्झिममज्झिमाणंतरसाधारणाणि ३१ २०८ ५० पसण्णअप्पसण्णा २ मज्झिमवयमहव्वयसाधारणाणि २५२ ५० पसण्णा १९१ ६ पंचकाणि १४ मज्झिमवयाणि २ पंचणवुतिवग्गा २ मज्झिमाणंतरजहण्णसाधारणाणि ३२ १८० २ पंचपंचासतिवग्गा १४ मज्झिमाणंतराणि २५७ २ पंचसट्ठिवग्गा १७ मज्झिमाणि ११५ २ पंचसत्तरिवग्गा १४ मज्झिमाणि २ पंचासतिवग्गा १ मणेये १४ पंचासवस्सप्पमाणाणि १० मता २ पंचासीतिवग्गा २६३ २० महव्वताणि ९० ३ पंडुवण्णपडिभागा १२ महंतकाई २२७ __ २६ पिया १३९ ११ महापरिग्गहा १६० ४ ३ पीतवण्णपडिभागा ५५ १४ माणुसा २०७. ७ १२ पुढविकाइया १४२ २२ मितुभागा २१२ १३२ ८४ पुण्णा १९० ५० मुदिता १३३ ७५ पुण्णामाणि १ २ मेयकवण्णपडिभागा १७८ २ पुत्तेया २१३ २७ मोक्खा १६३ १९६ १२ पुधुला ११९ ११२ १६ पुरच्छिमा ८६ १५ रत्तवण्णपडिभागा ११३ ६ पूतियं २२० ५६ रमणीयाणि २०६ ५० पेस्सभूया १३८ १ रसेज्जा १५२ ५० पेस्सा १३७ ७५ रुद्दा २ रूवेया १५६ २ फासेया १७१ ४ रोगमणा २६५ १० थला ७५ थीणामाणि ४ थीभागा ११ थूला २५६ २२६ १५१ १७ दक्खिणपच्चत्थिमा १७ दक्खिणपुरत्थिमा १७ दक्खिणा १७ दक्खिणाणि २८ दढाणि ५६ दहरचलणा ५६ दहरथावरेज्जा २ दंसणिया ४ दारुणा २६ दिग्घा २६ दिग्घा जुत्तप्पमाणा २० दिव्वा ५० दीणा २६ दुग्गथाणा २ दुग्गंधा 31 २१७ २१९ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ १० लुक्खणिद्धा १० लुक्खलुक्खा १० लुक्खा द्वारनाम २० वट्टा १० वणप्फइकाइकाणि १६ वत्तमाणाणि ७५ वराई ४ वातमणा ५० वापण्णा १७ वामाणि १६ वामा धणहरा १६ वामा पाणहरा ५८ वामा सोवद्दवा १२ वायुकाइकाण २८ विषबुडा १ १ १ १ २ १ २ २ २ २ २ २ २ २ १ ल १ २ व अङ्गसंख्या अङ्गनाम ७५ पुंजातीय अंग पृष्ठ ५९ सिखंड मत्थक सीस सीमंतक संख ललाट अच्छी अवंग कणवीरक कण्ण गंड कवोल मुह अंस अंगविज्जानवमाध्याये विभागशो निर्दिष्टानामङ्गनाम्नां यथाविभागं संग्रहः द्वारांकः कण्णपुत्तक ओट्ठ दंतवेला दंतमंस ७८ ७७ २ वीसतिवग्गा ७६ १४५ १९४ ११८ १४६ ५० सकपरक्का १० ५० सका २३० २ सट्ठिवग्गा १७३ १५५ ५ १०१ १०० १०२ १ ६ ७ ९ ११ ~ 22 & 2 m x x w ↓ १३ १५ १७ १९ ( ३ ) अंगविज्जानवमाध्याये विभागशो निर्दिष्टानामङ्गनाम्नां यथाविभागं सङ्ग्रहः सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गनाम २ बाहु २ २ २ २ २१ २३ २४ २५ १९ विवरा १५ विसमा २६ २८ २ सेजसुदेवाणि १४ वेसेज्जाणि द्वारनाम ५६ सण्हा १ सतवग्गे १ सतसहस्वग्गे २ सत्तरिवग्गा २ सद्दमणा २ सदेया १२ समा १ सहस्वग्गे २ २ २ २ १ २ २ १ २ १ १ २ स पबाहु कोप्पर अवहत्थग मणिबंधहत्थसतल अंगुट्ठ खंध जतु पस्स अक्खक उर थण हितय कुविख उदर द्वारांकः वक्खण पोरुस बत्थिसीस चल्ल द्वारनाम १९२ ३० संखा वामा १८४ ५० सामकहाणि २५० ५० सामाणि ४६ ११ सिवा ४२ १० सीतला ७ सुकुमाला ७२ सुकवण्णपडिभागा १६६ १६४ २ सुगंधा २५८ १९९ २६६ २६८ २६० ह १७४ १८ हरितवरणपरिभागा १६७ १६ हस्सा किंचिदिग्धा १८६ ५ हिदयाणि २६७ १६ हस्सा १० सुद्देज्जाणि २८ सूची सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गनाम ३० २ ऊरु ३२ २ गोप्फ ३४ २ ३६ २ ३८ ४२ ४४ ४६ ४८ ५० ५१ ५३ ११ सूराई २ सोम्मा ५८ ६० ६१ ६३ ६४ ६५ ६७ १ १ २ २ २ २ २ १ २ १ कण्णचूलिका भुमक अविखगुलिका तारका अक्खिवत्तिणी णासिका कण्णपाली द्वारांकः १०३ २१ २० १०४ १८८ १९५ ५४ १५७ ४३ धूणा सीता २२८ २३७ २११ पाद पादतल ७५ ७५ स्त्रीजातीय अंग पृ. ६६ छगली सिहा गंड तालुक दाढा ५८ ११४ १२७ ११५ सर्वसंख्या ६९ ७१ ७३ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ १ सिर चतुर्थं परिशिष्टम् ३३९ अङ्गसंख्या अङ्गनाम सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गनाम सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गनाम सर्वसंख्या दंतवेढी दक्खिणअक्खि थणंतर वट्टी दक्खिणभमु णाणी (णाभि) जिब्मा दक्खिणहणु लोमवासी हणु दक्खिणगंड ६१ उदर अवह दक्खिणगीवा ७१ मेहण ककाडिका दक्खिणअंस वत्थिसीस गीवा दक्खिणबाहु २८ दृढ अंग पृ. ७७ कडी दक्खिणथण पट्टि दक्खिणहत्थ णिडाल फिजा दक्खिणपस्स जतु गुदा दक्खिणवसण उर पओट्ठ दक्खिणऊरु पस्स बाहुणाली दक्खिणजाणु बाहुणालिमज्झ चूचुक दक्खिणजंघा बाहुमज्झ थणपाली दक्खिणपाद जंघामज्झ णाभि १७ वाम अंग पृ. ७५ ऊरुमज्झ लोमवासी वामसीस पादपट्टि जंघा वामकण्ण थूरक वामअक्खि संख कंडरा वामभुम गंड पण्हिका वामहणु करमज्झ लंका वामगंड खंध अंगुलि वामगीवा लेहा वामअंस जतुमज्झ छिरा वामबाहु २८ चल अंग पृ. ७९ कण्णसंधि वामथण वामहत्थ भुमासंधि सिव्वणी वामपस्स ................ ५८ नपुंसकजातीय अंग पृ. ७२ वामवसण २ कमतल जंघोरुउद्देसंतरभाग वामऊरु १६ अतिवृत्त अंग पृ. ८१ अक्खिकूड वामजाण १५ १ सीसपच्छिमभाग अंसकूड वामजंघा गीवापच्छिमभाग कुक्खंतर वामपाद पट्ठिपच्छिमभाग भुमंतर १७ मध्यम अंग पृ. ७६ बाहुणालीपच्छिमभाग अंगुलीयंतर मत्थक उवत्थपच्छिमभाग णिण्णअंग २१ १ सीमंतक फिजापच्छिमभाग ललाड ऊरुपच्छिमभाग मंसु भुमकंतवंस जंघापच्छिमभाग २० णासापुत्त पण्हिपच्छिमभाग १ लोम णासा १६ वर्तमान अंग पृ. ८२ १४ मज्झिमअंग ओट्ठ सीसपस्स १७ दक्षिण अंग पृ. ७३ कण्णपस्स दक्खिणसीस जत्तुत्तर १० २ गंडपस्स १ दक्खिणकण्ण २१ हिदय बाहुणालीपस्स अंग० २७ or or or roor narror or or or ora n or or or or or or or ora or orar or or m1w9.4AME52 Mm3. 200444452 Mmsw.. धमणी वली به م م م १ २ م م केस ه ه ه ه * णह or or or ornar. उर Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० अङ्गसंख्या अङ्गनाम २ बाहुपस्स २ जंघापस्स २ २ १ १ १ १ १ १ २ २ १ २ १ १ २ ऊरुपस्स पादपस्स १६ अनागत अंग पृ. ८३ मुहपुरम णिडालपुरिम कंठपुरिम हिदयपुरम जंतुतरपुरिम उरपुरिम अंगविज्जानवमाध्याये विभागशो निर्दिष्टानामङ्गनाम्नां यथाविभागं संग्रहः सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गनाम सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गनाम २० उत्तम अंग पृ. ९३ बाहुलीपुरम बत्यिपुरम सीसपुरम उदरपुरम जंघारम ऊरुपुरिम ५० अभ्यंतर अंग पृ. ८४ पादतलब्धंतर पाणितलब्धंतर जंघभंतर ऊरु अब्भंतर कक्खब्धंतर अक्खि अब्भंतर वक्खणभंतर णाभिअब्भंतर मेहणमंतर हितयसमूहतर कण्णब्भंतर णासिकब्भंतर बाणालीअन्तर हत्थभंतर सोणिअन्तर गुदन्वंतर मत्थकब्भंतर पिडालब्मंतर गीवब्भंतर गंडब्भंतर भुमगनंतर जंतु अब्भंतर उरब्धंतर उदरब्धंतर १० १२ १४ १६ ४ १० ११ १२ १४ १६ Dr ০ wwe mmmmm x १० १२ १४ १५ १६ २१ २३ २४ २६ २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३ ३५ ३७ ३९ ४० ४१ १. १ २ २ २ २ २ २ २ २ मत्थक सीस संख णिडाल कण्णपुत्तक कण्ण गंड खोड दंत णासा णापुड कणवीरक २ २ अपंग १४ मध्यम अंग पृ. ९४ अंतर थणंतर हियय उदर अंस बाहु पबाहु हत्थ हत्थतल १० जघन्य अंग पृ. ९४ अंगुट्ठ पादपण्डि जंघा ६ गुप्फ ८ पादहितय १० २ उत्तममध्यमसाधारणअंग पू. ९५ २ जतु ११ १३ १४ १५ १६ १८ २ मध्यमानंतरमध्य साधारण अंग पृ. ९६ वक्खण २ मध्यमानंतरजघन्यसाधारण अंग पृ. ९६ गोप्फ १० बालेय अंग पृ. ९७ पादंगुट्ठ पादंगुलि गोप्फ जंघा पादतल २० ४ ६ ८ १० १२ १४ २ ४ ६ ८ १० १ १ १४ यौवनस्थ अंग पृ. ९७ उदर कडि णाभि २ कडिपस्स पद्विपस्स पट्ठिमज्झ लोमवासी मेहण वत्थि [a]सीस १ २ फल १४ मध्यमवयः अंग पृ. ९९ बाहा २ बाहुगाली हत्थंगुलीउदर हत्थंगुट्ठ हत्थ अंसवीफाणिय जत्तु २ थण २० महावयः अंग पृ. ९९ १ गीवा सर्वसंख्या हणु दंत ओड णासा णासापुड गंड कवोल भुमकंतर णिडाल सिर २ यौवनस्थमध्यमवयः साधारण अंग पृ. १०० थण १ २ मध्यमवयोमहावय:साधारण अंग पृ. १०० जतु ? १० ११ १२ १४ २ 5 9 2 2 2 2 ९ १० १२ १४ २ बालयौवनस्थसाधारणअंग पू. १०० २ वक्खण १ ६ ७ ९ ११ १३ १४ १५ १६ २ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M गंड णाभि संधि सिर खंध mm3w. जत्तु गोप्फ चतुर्थं परिशिष्टम् ३४१ अङ्गसंख्या अङ्गनाम सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गनाम सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गलाम सर्वसंख्या २० ब्राह्मणेय अंग पृ. १०१ ७२ शुक्लवर्णप्रतिभाग अंग पृ. १०३ १ बाहु दंत १ २८ २८ १ भमुह ओट्ठ ३ १६ पुरिम ४४ १६ वामप्राणहर अंग पृ. ११२ । कण्ण ५ २० णख ६४ २ अच्छि ७ १ हितय कपण कवोल ९ २ थण २ संख अक्खि दंत हितय भुम १३ १ गीवा णासा १४ १ खंध कडि णिडाल २ अक्खि पस्स संख १७ ३ पांडुप्रतिभाग अंग पृ. १०४१ १ अवंगभंतर ४ तल बाहु अक्खिअब्भंतर १६ वामधनहर अंग पृ. ११२ १४ क्षत्रिय अंग पृ. १०१ १० स्निग्ध अंग पृ. १०५ हियय बाहुसंधि अंसपीढ णासापुड कक्खा कण्ण बाहु हत्थ १ मेड ककाडिका अक्खि १ उर २ थण २ थण अक्खिकण्ण १० आहार अंग पृ. १०७ २ चक्खु पस्स सोत्त २ ३० शाखावाम अंग पृ. ११२ घाण १४ वैश्येय अंग पृ. १०१ अंगुट्ठ देहफरिस ४ १६ कुक्खिपस्स अंगुलि जिब्मा कडीपस्स बाल हत्थ ६ ११ शिव अंग पृ. ११३ उदर पाद णिडाल ऊरु सीस बाहु ११ स्थूल अंग पृ. ११३ वक्खण भमुह २ ऊरु वत्थि १० नीहार अंग पृ. १०७ [वत्थि]सीस चक्खु १ १ पट्टि २ १ सिर १० शूद्रेय अंग पृ. १०२ घाण ३ २ गंड २ देहफरिस थण पादंगुलि जिब्भा हत्थ ६ ९ उपस्थूलअंग पृ. ११४ २ जंघा ८ १ पाद २ . जंघा पादतल सीस ८ १ सिर अंग०२८ संख हियय पाद mms णिद्ध . मेड . १० १ .. फल सोत्त पादंगुट्ठ फिया गोप्फ २ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ अङ्गसंख्या अङ्गनाम २ अधर २ बाहु २ हत्थपाद २५ युक्तोपचय अंग पृ. ११४ ४ अंगुद्र १६ १ १ २ १ २ २ २ २ अंगुलि णिडाल १६ १ चिबुक ओट्ठ २ २ २ १ २ २ २ १ १ Jigs २ अवडु ११ परंपरकृश अंग पृ. ११४ २ २ २ णासा १७ कृश अंग पृ. ११४ गोप्फ अंगविज्जानवमाध्याये विभागशो निर्दिष्टानामङ्गनाम्नां यथाविभागं संग्रहः सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गनाम सर्वसंख्या अङ्गसंख्या अङ्गनाम १ मेंढ जणुगसंधि मणिबंध उवत्थग [कृष्ण] संधि भुमसंधि संख पट्ठि खलुक जाणुक ढेल्लिक कोप्पर केस रोम हण (णह) २६ दीर्घ अंग पृ. १९४ बाहु पबाहु जंघा ऊरु अंगुलि केस पट्टि भुम अक्ि णासा जत्तु ५ ७ २० २१ २२ २४ २५ ११ १३ १४ १५ १७ ६ १० ११ २४ २५ १ २६ २६ युक्तप्रमाण दीर्घ अंग पृ० ११५ २ २ २ २ ६ ८ २ ४ ६ ८ २ १ ६ १० परिमंडल अंग पृ० ११५ १ मत्थग बाहु जाणुसीस १० १० २ १ थविका सिर थण णाभि २ फिया १४ करणमंडल अंग पृ० ११६ अधर जिब्मा १ २ २ अंगुट्ठ लोम पाणिलेहा २ २ ३० दक्खिणबाहुमंडल वाम बहुमंडल बहुसंघमंड सत्धिसंघातमंडल अंगुलिमंडल अंगुट्टंगुलिमंडल संघायमंडल २० वृत्त अंग पृ० ११६ हत्थंगुलिपव्व पादंगुलिपल्ल १२ पृथु अंग पृ० ११६ उर ललाड पट्टि पादतल पाणितल कण्णपीढ ४१ चतुरस अंग पृ० ११७ णिडाल गंड जिब्भा ९ ११ १२ १४ पस्स पादतल पाणितल पण्डितल कडितल पव्वंतरंगुल १५ १९ २० २६ ८ १० १ २ ३ १२ १३ १४ १० २० ७ ९ ११ १२ o ষ 5 ७ ११ ४१ १ १ १ १ २ १ २० २० १ १ २ २ त्र्यस्त्र अंग पृ० ११७ बत्थि १ [बस्थि])] सीस ५ काय अंग पृ० ११७ कायवंत मामकाय मज्झिमाणतरकाय जधण्णकाय जघण्णतरकाय २७ तनु अंग पृ० ११७ पादतल पाणितल कण्ण जिब्भा णह २१ परमतनु अंग पृ० ११७ सर्वसंख्या अग्गणह अग्गकेस २ अणु अंग पृ० ११७ केसलोमणह मंसु ५ हृदय अंग पृ० ११८ पादतलहितय पाणितलहितय हितय ५ ग्रहण अंग पृ० ११८ केस मंसु अधोमंस कक्खा ५ उपग्रहण अंग पृ० ११८ भुम अक्खिपम्ह सोमवासी २ १ ५६ रमणीय अंग पृ० २१८ ओड दंत णिडाल पादतल पाणितल उर २ ३ 50 w 92 ६ ७ २७ २० २१ १ २ ३ २ २ 20590 ५ ९ १० Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नह ه ه खुल ه ه به له له जाणु له م م م जतु पट्टि له به له م به दंत ओट्ठ له م चतुर्थ परिशिष्टम् अंगुलपोट्ट ३० १० पादंगुलिपोट्टिया . ३० २ ऊरु [पाद]तल ३२ २ जाणु णासा पण्हि अंस णासपुड ५२२ बाहु सोणि गोप्फ पबाहु कण्ण कंडरा बाहुसंधि मेहण जंघा उदर १२ आकाश अंग पृ. ११८ पेंडिका कडि णिडाल कडिपस्स अंसपीढ फिया लोमवासी जाणु २६ प्रिय अंग पृ. १२० उर जाणुपच्छिम णिडाल सिर पादतल मत्थक २ २ अधर पाणितल सीस संख मुह ५६ दहरचल अंग पृ. ११९ कण्ण सीस २८ हत्थंगुलिपव्व २८ अक्खि तल २८ पादंगुलिपव्व णासिका ३३ अंत अंग पृ. १२१ ५३ दहरस्थावरेय अंग पृ. ११९ अंगुलिअग्ग २८ हत्थंगुलिपव्वंतर २८ १४ १ केसग्ग पादंगुलिपव्वंतर जिब्मा १५ १ लोमग्ग दहरस्थावरेय अंग १३ मतान्तरे गंड कण्णग्ग जंघामज्झ १८ २ णासग्ग ऊरुमज्झ ४ २ थण कोप्पर बाहुमज्झ थणंतर पण्हिक हत्थंगुट्ठ २३ २ फिया ९ २ हत्थ ककाडिका कर णाभि २६ २० तीक्ष्ण अंग पृ. १२२ २६ मध्यस्थ अंग पृ. १२० । अग्गदंत १० ईश्वर अंग पृ० ११९ भुमंतर १ २ दुर्गंध अंग पृ. १२२ ।। णिडाल २ २ पिहित णासापुड मत्थक मत्थक ३ २ सुगंध अंग पृ. १२२ सीस णासिका अवंगुत णासापुड कण्ण मुह बुद्धिरमण अंग पृ. १२२ गंड उर भुमंतर थणंतर ७ २ पाद हितय ८ २ भुम ओट्ठ अक्खि णासा ३३ आतिमूलिक अंग पृ. १२ मुह जिब्मा पादंगुट्ठ ४ अबुद्धिरमण अंग पृ. १२२ ५० प्रेष्येय अंग पृ. ११९ पाद १० पादंगुलि १० २ गोप्फ ६ १ उदर १० पादणह २० २ जंघा ८१ पट्टि به ४ مر به م MMMMMM पट्टि به पस्स م कम वंस .M.Mm.19. . पस्स له له له له Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदर पाद or or or केस लोम १०१ णासा मंसु उर ३४४ अंगविज्जानवमाध्याये विभागशो निर्दिष्टानामङ्गनाम्नां यथाविभागं संग्रहः ११ महापरिग्रह अंग पृ. १२२ . २ शब्दवत् अंग पृ. १२३ १२ निम्न अंग पृ. १२३ १ १ गुदा १ २ वक्ख ण हत्थ मेहण कक्खा १० वर्णेय अंग पृ. १२३ अक्खिकूड कण्ण केसमंसु कण्णसोत णासा ८१ उर गीवाहे? अंखि १० १ पट्टि कुकुंदल ११ २ जंघा णाभि ४ अल्पपरिग्रह अंग पृ. १२२ गंभीर अंग(?) पृ. १२४ कक्खा १ १ वत्थिसीस संख णह कण्ण १० अग्नेय अंग पृ. १२३ १ बाह २ मुह १९ बद्ध अंग पृ. १२२ १५ विषम अंग पृ. १२४ अच्छि हत्थ णासा पाद अंसपीढ हितय सिहा वसण तल कण्ण फिया जिब्भा २७ मोक्ष अंग पृ. १२२ कोप्पर तिक हत्थ जत्तुग प्रकारान्तरेण पाद खलुक अक्खि सिहा मणिबंध णासिका कण्ण ८४ पुण्ण अंग पृ. १२४ कण्ण २ शाब्देय अंग पृ. १२३ गंड णिडाल २ कण्णसोत २ थण २ रूपेय अंग पृ. १२३ १ उदर मत्थग २ णयण १ आस २ गंधेय अंग पृ. १२३ कण्णुप्परिका ९ २ अंजलि सिस्स २ णासापुड १ रसेय अंग पृ. १२३ २ दर्शनीय अंग पृ. १२३ पुण्णाम जिब्मा १ चक्खु १ १९ विवर अंग पृ. १२४ २ स्पर्शय पृ. १२३ . सोणि तया १० स्थल अंग पृ. १२३ २ पालु पोरिस मत्थक अंगुलिअंतर १ मननीय अंग पृ. १२३ णिडाल २ ८ विवृतसंवृत अंग पृ. १२४ १ हितय गंड अक्खि ४ वातवत् अंग पृ. १२३ हितय ५२ हत्थ उर -१ -- मासम्म २ २ करतल कण्ण कमतल मुह Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ १ १ ३४५ ७ अचपल अंग पृ. १२५ सिर ललाड पट्ठी पस्स उदर १ १ २२ उर ४ गुह्य अंग पृ. १२५ मेहण पालु मेहण वसण २ २ अपार ५ उत्तानोन्मस्तक अंग पृ. १२५ हत्थ मुह २ २ अक्खि चतुर्थं परिशिष्टम् ७ सुकुमाल अंग पृ. १२४ ९५ रुद्र अंग पृ. १२५ जिब्मा १ ७५ उवद्दुत ७५ अक्खि ३ २० तिख ९५ ऊरु ५ २२ मृदुभाग अंग पृ. १२५ पालु ६ २ ओट्ट मेहण ७ ४ अंगुट्ठ ६ ७ मृदुक अंग पृ. १२४ १६ अंगुलि जिब्भा २ पुत्रेय अंग पृ. १२५ अक्खि २ अंगुट्ठ ऊरु २ कर्ण अंग पृ. १२५ पालु २ कणिल्लिका ७ ४ स्त्रीभाग अंग पृ. १२५ २४ खर अंग पृ. १२४ अणामिका णहसिहा २ मज्झिमिया २ कोप्पर २ युवती अंग पृ. १२५ जण्णुक २ पदेसिणी १० कुटिल अंग पृ. १२४ १४ तंब पृ. १२५ १० पादअंगुलि १० २ पादतल १० उजुक अंग पृ. १२४ पाणितल ४ १० हत्थंगुलि ओट्ठ ६ ३६ चंडानत अंग पृ. १२४ अवंग ८ णिडाल जिब्भा अग्गकण्ण तालुक १० भुम कणवीरक १४ दंतसेढी ४ रोगमण अंग पृ. १२५ १० १ केस १ कण्णपाली १२ १ लोम १६ १ णह अंगुलि ३२ १ मंसु कक्ख ३४६ पूति अंग पृ० १२५ णासापुड ३६ २ कक्खा ६ आयत अंग पृ. १२५ वसणंतर जंघा २ १ अधिट्ठाण २ ऊरु मेहण बाहु ६ चपल अंग पृ. १२५ ४ आयतमुद्रित अंग पृ. १२५ हत्थ २ २ २ पाद २ फिया ४२ णयण ६ ओट्ठ अंगुट्ठ संख २ १२ तत अंग पृ. १२५ कण्णसकुली २ कण्ण २ फिया २ जंघा ऊरु २ पेंडिक १० क्लिष्ट अंग पृ. १२६ ६ पूति केस १ लोम णह १६ अंतर अंग पृ. १२६ भुजंतर ऊरुअंतर अंगुलिअंतर ११ शूर अंग पृ. १२६ दंत हत्थणह ३ भीरु अंग पृ. १२६ २ अच्छि १ हितय २ अंगुट्ठ ४ २ rrrrrrow MMMMMM ६ १ जंघा ४ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमं परिशिष्टम् अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः सङ्ग्रहः मनुष्यविभाग: (१) चतुर्वर्णविभाग पृष्ठ १०२-३ सुद्दबंभ बंभण बंभखत्त खत्तबंभ बंभवेस्स वेस्सबंभ बंभसुद्द सुद्दबंभ खत्तिक खत्तवेस्स वेस्सखत्त खत्तसुद्द सुद्दखत्त वेस्ससुद्द सुद्दवेस सुद्द अज्ज मिलक्खु बंभण अज्जदेसंतर अणज्जदेसिज्ज सुद्धवण्ण साम कालक महाकाय मज्झिमकाय पच्चवरकाय (२) जातिविभाग पृष्ठ १४९ ववहारोपजीवी दीववासि सत्थोपजीवी जणपदवासि खेत्तोपजीवी चेट्टितक णिक्खुडवासि आपेलचिध णिक्खुडदेसिज्ज कण्ह पव्वतवासि कंचुकचिंध ओवात पुरस्थिमदेसीय दक्खिणदेसीय पच्छिमदेसीय उत्तरदेसीय अज्जदेसणिस्सिंत खत्तिय वेस्स सुद्द-मिलक्खु (३) गोत्रविभाग पृष्ठ १४९-५० वराह डोहल मुज्जायण कत्थलायण गहिक णेरित गहपतिक दिजाति माढ गोल हारित चंडक सकित(कसित) वासुल वच्छ संडिल्ल कुंभ माहकि कस्सव गोतम अग्गिरस भगव भागवत सद्दय इतिहास रहस्स सुयवेद सामवेद यजुव्वेद अहव्वेद एकवेद दुवेद कोच्छ ओयम कोसिक कुंड-कोंड सगोत्त सकविगतगोत्त बंभचारिक पवर लोहिच्च पियोभाग पव्वयव संडिल्ल आपुरायण वावदारी वग्घपद पिल देवहच्च वारिणीलं सुघर थीणव वेयाकरण मीमंसक छंदोक पण्णायिक ककितजाण यण्णिक तिक्खक जोतिसिक कंडूसी भागवाती काकुरुडी कण्ण मज्झंदीण वरक मूलगोत्त संखागोत्र भेदाणुजोग कढ कलव वालंव सेतस्सतर तेत्तिरिक मज्झरस बज्झस छंदोग लोकक्खि कचक्खि चारायण पारावण अग्गिवेस मोग्गल्ल अट्ठिसेण पूरिमंस गद्दभ बंभच्च काप्पायण कप्प अप्पसत्थभा सालंकायण यणाण आमोसल साकिज्ज उपवति डोभ थंभायण जीवंतायण दढक धणजाय संखेण तिवेद सव्ववेद छलंगवि सेणिक णिरागति वेदपुट्ठ सोत्तिय अज्झायी आचरिय जावक णगत्ति वामपार मंडव सेट्ठि वासिट्ठ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४७ पञ्चमं परिशिष्टम् (४) योनिविभाग-अटक पृष्ठ १३८-४० धम्मजोणि अत्थजोणि कामजोणि संगमजोणि विप्पयोगजोणि मित्तजोणि विवादजोणि पावासिकजोणि पवुत्थजोणि आगमणजोणि णिग्गमजोणि रायजोणि रायाणुपायजोणि रायपुरिसजोणि वणियप्पधजोणि कारुकजोणि अणुयोगजोणि अज्जजोणि सिस्सजोणि पेस्सजोणि बंधणजोणि मोक्खजोणि मुदितजोणि आतुरजोणि परिक उडुजोणि पितर देवर पृष्ठ ६८ पज्जिया अज्जिया नानिका महमातुया चुल्लमाता माउस्सिया पितुस्सिया भज्जा सही णत्ती पणत्तिणी सुण्हा सावत्ती सल्लिका मेधुणा भातुज्जाया भगिणी भागिणेज्जा पितुस्सहा मातुस्सहा मरणजोणि मज्झिमजोणि उत्तरजोणि मूलजोणि सयितव्वजोणि उत्तमजोणि पच्छिमजोणि आभरणजोणि छिण्णजोणि पच्चवरजोणि दक्खिणजोणि धण्णजोणि णट्ठजोणि अब्भंतरजोणि दक्खिणपच्छिमजोणि वत्थजोणि बाहिरजोणि पच्छिमउत्तरजोणि विणयजोणि रणजोणि साधारणजोणि आरामजोणि पुव्वुत्तरजोणि बंभचारिंगजोणि णपुंसकजोणि पुव्वदक्खिणजोणि अधमजोणि बंभणजोणि पुण्णामजोणि उपरिट्ठिमजोणि उण्णतजोणि खत्तियजोणि थीणामजोणि हेट्ठिमजोणि णिण्णजोणि वेस्सजोणि अणागतजोणि आहारणीहारजोणि रसजोणि सुद्दजोणि अतिक्कंतजोणि णीहाराहारजोणि वण्णजोणि बालजोणि . वत्तमाणजोणि पाणजोणि गंधजोणि जोव्वणजोणि पुरित्थिमजोणि धातुजोणि (५) सगप्पण (सगपण) पृ० २१९ संल मातुस्सियाधीतर जोणिभगिणी अज्जय संली पितुस्सियाधीतर सोदरियभगिणी मेधुण पित्तियधीतर भागिणेज्ज पेतिज्ज जातर जोणिपुत्त मातुल पतिजे? णणंदर भत्ति मातुस्सिया भातुवयस्स सही भातुपुत्त पितुस्सिया भगिणिपति भातुज्जा भगिणिपुत्त चुल्लमातुया मातुलपुत्त सल्ली अज्जिया मातुस्सियापुत्त महपितुकधीतर भातुधीतर भाता भज्जा मातुलघीतर भगिणिधीतर भगिणी साली सोदरी ण्हुसा (६) कर्मविभाग-व्यापारविभाग उज्जाणपालक गीतकार मंगलवायण सीसारक्ख वणपालक णट्टक पृ० १५९ पडिहारक पुप्फुच्चाग अग्गिक रायपोरिस सूत (सूद) फलुच्चाग जाणक ववहार महाणसिक वत्तणीपालग आजीवणिक कसिगोरक्ख मज्जघरिय अंतपाल पृ० ९२ कारुककम्म पाणघरिय पच्चंतपाल णीलीकारक भतिकम्म हत्थाधियक्ख पृष्ठ ९० इंगालकारक वाणियककम्म महामत्त उल्लायक णीलहारक राया हत्थिमेंठ कंसिक णीलवाणियक रायमच्च अस्साधियक्ख सुद्धाकारि इंगालवाणियक अमच्च अस्सारोध पृ० ९१ पृ० १४७ अस्सवारिक अस्सबंधक दिविकाहारिक घंटिक आसवारिय छागलिक पादीविक चक्किक णायक गोपाल उज्जालक सत्थिक अब्भाकारिय पृ० १६० कावकर वेतालिक भांडागारिय महिसीपाल धीया धूता पृष्ठ ७९ पडिहारक जंघावाणियक दिसावाणियग छत्तहारग सासणहारग पेसणिय आदिट्ठभूमिय णिज्जामक कुक्खिधारक णाविक डुपहारक पग्गाहक कंतिकवाहक तंबाधावक अब्भाकारिक पृष्ठ ८१ उक्खित्ततुंबिक बाहिरतुंबिय पक्खच्छयक कव्वुड भागहारक साधिगक्खर पृष्ठ ८८ पडिहारि संधिवाल अब्भागारिक पृष्ठ ८९ वणकम्मिक णाविकम्म कट्ठहारक आरामपालक Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ उट्टपाल मगलुद्धग ओरब्भिग अहिनिप हत्थिमहामत्तो गोसंखी गजाधिपति कोसरक्ख लेखक गणक पुरोहित संवच्छर दाराधिगत दारपाल बलगणक सेणापति गणिकाखंसक वरिसधर वत्थाधिगत णगरगुत्तिय अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः सङ्ग्रहः पाणियधरिय लोहकार छत्तधारक दारुकआधिकारिक ण्हाणघरिय सीतपेट्टक पसाधक सामेलक्ख सुराधरिय कुंभकार हत्थिखंस हत्थारोह कट्ठाधिकत मणिकार अस्सखंस अस्सारोह तणाधिगत संखकार अग्गिउपजीवी पेस्स बीतपाल कंसकार आहितग्गि बंधनागारिय ओपेसेज्जिक पट्टकार कुसीलक (व ?) चोरलोपहार आरामाधिगत दुस्सिक रंगवचर मूलक्खाणक णगररक्ख रयक गंधिक मूलिक असोकवणिकापाल कोसेज्ज मालाकार मूलकम्म वाणाधिगत वाग चुण्णकार सत्थक आभरणाधिगत साम सूतमागध हेरणिक उदकवड्डकि महिसघातक पुस्समाणव सुवण्णिक मच्छबंध उस्सणिकामत्त पुरोहित चंदण० नाविक छत्तकारक धम्मट्ठ दुस्सिक बाहुविक वत्थोपजीविक महामंत संजुकारक सुवण्णकार फलवाणिय दपकार गोवज्झभतिकारक अलत्तकारक मूलवाणिय बहुस्सय रत्तरज्जक धण्णवाणिय मणिकार ओयकार देवड ओदणिक कोडाक उण्णवाणिय कम्मासमंसवाणिज्ज वत्थुपाढक कुंभकारिक सुत्तवाणिय तप्पणवाणिज्ज वत्थुवापतिक इड्डकार जतुकार लोणवाणिज्ज मंतिक बालेपतुंद चित्तकार आपूपिक मंडवापत सुत्तवत्तय चित्ताजीवी खज्जकारक तित्थवापत कंसकारक तट्टकार पण्णिक आरामवावत चित्तकारक सुद्धरजक सिंगारवाणिय रधकार रूवपक्खर (७) स्थानाध्यक्षविभाग फलकारक सीकाहारक मडुहारक कोसेज्जवायक दियंडकंबलवायक कोलिक वेज्ज कायतेगिच्छक सल्लकत्ता सालाकी भूतविज्जिक कोमारभिच्च विसतित्थिक सिप्पपारगत चम्मकार पहाविय गोहातक चोरघात मायाकारक गोरीपाढक लंखक मुट्ठिक लासक वेलंबक गंडक घोसक ओडू जइणक पेसणकारक. पतिहारक तरपअट्ट णावाधिगत तित्थपाल पृ. १५९ राया रायकम्मिक अमच्च अमच्चकम्मिक णायक आसणत्थ भांडागारिक अब्भागारिक महाणसिक गयाधियक्ख मज्जघरिय पाणियघरिय णावाधियक्ख सुवण्णाधियक्ख हत्थिअधिगत अस्सअधिगत योग्गायरिय गोवयक्ख पडिहार गणिकखंस बलगणक गायक वरिसधर वत्थुपारिसद आरामपाल पच्चंतपाल दूत संधिपाल सीसारक्ख पतिआरक्ख सुंकसालिय रज्जक पधवावत आडविक णगराधियक्ख सुसाणवावत सूणावावत चारकपाल फलाधियक्ख पुप्फाधियक्ख पुरोहित आयुधाकारिक सेणापति कोट्ठाकारिक पृष्ठ २३९ सुरवति घणवति जलवति पोतवति णरवति णइवति तारावति गहवति जोतिपति जोतिसपति जगपति गणपति कुलपति जूहपति मिगपति गोपति पयापति (८) यानविभाग जुग्ग पृष्ठ ७१ सकडी सकडिका थिल्ली गिल्ली सिबिका संदमाणिका पृष्ठ १४६ जलचरयान णावा कोटिंब डआलुय पृष्ठ १६६ स्थलचरयान सिबिका भद्दासण पल्लंकसिका रध संदमाणिका गोलिंग सकड सकडी गिल्लि Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४९ सिबिका रघ प्लव पिडिका कंड उल्लायित अणुल्लायित जलचरयान णावा पोत कोट्टिब सालिका तप्पक सक जाण. णव जाण जुण्ण जाण दुट्ठित जाण सुट्टित जाण कीतक जाण विक्कीत जाण पडिरूव जाण पृष्ठ १९३ तुंब जाण जुग्ग कट्ठमुह गिल्लि संदण सकड सकडी महिस दति संघाड पञ्चमं परिशिष्टम् कट्ठ मक सं. मृग सजीवयान सिंगी अस्स असिंगी हत्थि बलिवद्द उट्ट अय एलग याचितक जाण खर आधावितक जाण अयेलक अपहरितक जाण (९) नगर-विभाग परिमंडलणगर उद्धनिविट्ठणगर चतुरस्रणगर पव्वतणगर कट्ठपागारपरिंगतणगर निव्विगंदिणगर इट्टगपागारपरिगतणगर पाणुप्पावट्ठणगर दक्खिणोद्दागणगर बहुवाधीतणगर अव्वाधितणगर वामोद्दागणगर पृष्ठ १६२ पविट्ठणगर अप्पुज्जोगणगर वित्थिण्णणगर अतिक्खदंडणगर गहणणिविट्ठणगर अप्पपरिक्खेसणगर आरामबहुलणगर बहुविग्गहणगर पृष्ठ १६१ चिरनिविट्ठनगर बंभणज्झोसियणगर अचिरनिविट्ठनगर बंभणोसण्णणगर बहुउदकनगर खत्तियज्झोसियणगर बहुवुट्ठीकनगर खत्तियोसण्णणगर अप्पोदगनगर वइस्सझोसितणनगर अप्पवुट्ठीकणगर वेस्सोसण्णणगर चोरवासणगर सुद्दज्झोसियणगर अज्जवासणगर सुद्दोसण्णणगर अप्पणगर रायहाणी परणगर साखानगर दीहणगर बहुपरिक्खेस कारामणणगर पुरस्थिमदिसणगर पच्छिमदिसणगर दक्खिणदिसणगर उत्तरदिसणगर बहुअण्णपाणणगर बहुवातकणगर बहुवातोवद्दवणगर बहुउण्हणगर आलीपणगबहुलणगर बहूदकणगर बहुवुट्ठिकणगर बहूदकवाहणगर बहुमकसकणगर सत्थप्पवातबहुलणगर आसण्णणगर जुत्तोपकट्ठणगर पच्चंतिमणगर सुभिक्खयोगक्खेम गतणगर अणभिवुत्तणगर विस्सुतकित्तियणगर रमणीयणगर पृष्ठ १३६ गब्भगिह अब्भंतरगिह भत्तगिह वच्चगिह उदगगिह अग्गिगिह भूमिगिह मोहणगिह उपलगिह हिमगिह आदंसगिह तलगिह आगमगिह चतुक्कगिह रच्छागिह दंतगिह कंसगिह पडिकम्मगिह कंकसाला आतवगिह पणियगिह आसणगिह भोयणगिह (१०) गृह-शाला घर-निलय विभाग रसोतीगिह भंडगिह सवणगिह हयगिह ओसधगिह उज्जाणगिह रधगिह चित्तगिह जाणसाला गयगिह पृष्ठ १३८ वेसगिह पुष्फगिह लतागिह ण्हाणगिह जूतगिह दगको?गगिह अंगणगिह पातवगिह कोसगिह आतुरगिह खलिणगिह पाणगिह संसरणगिह बंधणगिह सयणगिह सुंकसाला जाणगिह गयसाला करणसाला पृष्ठ १३७ रधसाला पृष्ठ २२२ भग्गगिह जूतसाला भत्तघर जलगिह पाणगिह वासघर महासणगिह वत्थगिह पडिकम्मघर रयणगिह लेवणगिह असोयवणिया चित्तगिह सिरिघर ण्हाणघर पुस्सघर दासीघर देवागार पृष्ठ २२३ अग्गिधर णागघर पृष्ठ २५८ तणसाला तेमग्गिह कारुगगिह पधिकणिलय दुवारसाला उवट्ठाणजालगिह सिप्पगिह कम्मगिह रयतगिह ओधिगिह सयण पृष्ठ १३६ अरंजरमूल कोट्ठक णकूड रुक्खमूल (११) स्थान-प्रदेश गृह-प्राकारादिअवयव प्रादेशिकसंकेत विभाग विमाण पागार णिकूड सोमाण गगण चरिका वलभी फलिखा अब्भंतरपरियरण संधि वेति (दि) पावीर गिहदुवारबाहा समर गयवारि पंसु पेढिका अच्छणक कडिकतोरण संकम पृष्ठ १३७ णिद्धमण ओसर Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० चच्चर अंगण वियडप्पकास रायपध सिंघाडग खेत्त अट्टालय उदकपध वय वप्प पडली अस्समोहणक खंभ आगमणसंरोध पृष्ठ १३८ आएसण मंडव पवा सेतुकम्म पुरोहड पृष्ठ १४५ चच्चर महापध तित्थ उदुपाण पृष्ठ १४६ जलस्थान णदी समुद्द पृष्ठ ६६ सुवण्णमासक रययमासक पृष्ठ ६५ पुंजातीय भंडो वगरण अरंजर अलिंद कुंडग माणक घडक कुढारक कूप तलाक विकरण परसवण पृष्ठ १४८ जूव चिति सेतुबंध आयतण पृष्ठ १५२ पव्वत सागर मेदिणी णदी चेतिय आयाग पृष्ठ २०० देस णिगम णगर पट्टण खेड आगर गाम सण्णिवेस अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः सङ्ग्रहः खित्त अंगण आराम पृष्ठ २२१ तलाग अरंजर सेतु उट्टिया पृष्ठ २१४ पल्ल पासाय कुड्ड किज्जर उखलिका पृष्ठ २०१ रायधाणी पासाद गिह दीणारमासक ऊणमासक काहापण वारक कलस गुलमग पिढरक मल्लगभंड पत्तभंड लोहमय मणिमय संखमय माल पट्टीवंस आलग्ग पागार गोपुर अट्टालग पव्वत धय देवतायतण गिह कूविया आकास जणपद अरण्ण सीमंतिका खेत रच्छा णिवेसण रायमग्ग कुड्ड णिव्व पणाली वच्चाड खत्तपक पुराण सतेरक सिप्पमय सेलमय पृष्ठ २२२ माल वातपाण कुड्ड बिल णाली थंभ (१२) सिक्कक विभाग पृष्ठ ७२ सुवण्णकाकणी मासकाकणी (१३) भाण्डोपकरणविभाग पृष्ठ ७२ थीजातीय भंडोव गरण अलंदिका पत्ती उक्खली थालिका अंतरिया पस्संतरिया कोट्ठागार अरस्स आवुपध पणाली उदकचार वच्चाडक अरिगहण वेसण अंतेपुर तिय सिपाडग चउक्क कालंची करकी कुठारिका पाली मंडी घडी दव्वी केला ठट्टिका रायपध महारच्छा उस्साहिया पासाद गोपुर अट्टालग पकंठ तोरण बार पव्वत वासुरुल थूभ एलुय पवात वप्प तलाक दहफलिका णदी फलिहा पाकार वय परिखा धय वुख पाली सुसाण वच्चभूमि मंडलभूमी पवा सुवण्णगुंजा दीणारी माणिका णिसका आयमणी चुनौ फूमणाली समंछणी मंजूखिका मुद्दिका सलाकंजणी उदुपाण उट्टियपट्टग जण्णवाड देवायतण संगामभूमी पृष्ठ २३३ खेत वत्थु गाम णगर सन्निवेस आवास कुंड णदी तलाग क्खरणी कूव सर फलिह सेउ पागार पेंडपाली एलुग चेति पवा पंथ पव्वत पृष्ठ २३४ उदुपाण चीती पेल्लिका भूमिका पिच्छोला फणिका दोणी उक्कुलिणी पाणी अमिला पडालिका Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तवी वत्थरिका कुदाली वासी कवल्ली दीविका कडच्छकी पृष्ठ १९१ उवाहण छत्तक तप्पण कत्तरिका कुंडिका उक्खलिका पादुका उपाणह पृष्ठ १९३ उक्खुली पिट्ठरग पृष्ठ ६५ पुंभा तट्टक सरक थाल सिरिकुंड पणसक अद्धकविट्ठग सुपतिट्ठक पुक्खरपत्तग सरग मुंडग पृष्ठ ६४ पुंभोयण कूर ओदण अन्न असण भोयण जेमण आहार अंग० २९ Jain Education Intona दविठलंक रसदव्वी छत्त उपाणह पाउगा अर्थह उभिखण फण खपसाणग वणपेलिका विवट्टणग अज्जणी पसाणग आदंसग पृष्ठ १९८ छत्त भिंगार वीयणिया तालवेंट पृष्ठ २०१ सिरिकंसग थालक दालिमपूसिक णालक मल्लकमूलक करोडक घट्टमाणग अलंदक जंबुफलक भंडभायण खोरक वट्टक पायस परमन्त्र दधिताव विलेपिक दधिकूरक दुद्धकूरक घतकूरक सासवकूरक गुलकूरक सयण आसण जाण वाहण वत्थ आभरण परिच्छद सत्थावरण पृष्ठ २२१ मुत्तिक संखागवलमय दंतमय सिंगमय अकिमय वालमय लोहमय चम्ममय पृष्ठ २३० अंजणी फणिका मुंडक पीणक पृष्ठ ७२ श्रीभावण करोडी कंसपत्नी पालिका सरिका भिंगारिका कंचणिका कवचिका पृष्ठ १८० पञ्चमं परिशिष्टम् वीजणी दंडा पत्तकूरक कुलत्थकूरक मुग्गकूरक मासकूरक ओदणकूरक अतिकूरक तिलकूरक भूमणत वीजणिया (१४) भाजनविभाग पाणजोणिमय धातुजोणिमय मूलजोणिमय पाणजोणिमय भूतकूरक श्रीआहार चामर अस्सभंड भच्छा दितिका अजीण पृष्ठ २५४ इंगालकोटुक इंगालसकडिका कडुच्छ धूपछाडिका धूमकरणाक धूमण पसाय धूमणेत्त खारापक वीजणक धातुजोणिमय सुवण्णमय (१५) भोजनविभाग सिप्पिपुड संखमय मूलजोणिमय कट्ठमय फलमय पत्तमय पृष्ठ ७१ दुगुहिका उदकुण्डिका समगुहिका जागू कसरी अंबेली पत्तंबेली वालकल्ली धूमणाली अग्गिकारिका अग्गिकुंड जग्गतक संदीपण दीव चुडली मधअग्गि चुल्लक चुली चितका फुंफुका अहिमकरिका अग्गपखंडक पृष्ठ २५५ कुड घडग अरंजर उट्टिक आचमणिक रुप्पमय तंबमय कंसमय काललोहमय सेलमय मतिकामय पृष्ठ २१४ लोही कडाह अरंजर उक्ली रकि ठकुली कुम्मासपिडी सतपिठी तप्पणपिंडी इतिपिठो ओदणपिंडी तिलपिंडी पीढपिडी रच्छाभत्ती करक कुंडिका पृष्ठ २६२ छत्त भिंगार पडागा लोमहत्व वासणकडक चामर वीजणी पृ० २२१ स्थगिका संपुर पेला पेलिका करंडग संकोसक पणसक थइया पसेवक लोहोवार उट्टिक आयमणी सत्थी आयमणी चरुक ककुलुंडी पृष्ठ २२१ कट्ठमय पुप्फमय फलमय पत्तमय रसाला पमिद्रा चोराली अंबडी अंबकभूवी सूरभूषिता अंबाडगधूवी भोजन पृष्ठ १७६ ३५१ Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ पाणजोणिगत मूलजोणिगत धातुजोणिगत पाणजोणिगत पलाल तंबाराग लेज्झचुण्ण भोजन पृष्ठ २२० दुद्ध दधि णवणीत तक्क घत दधि तक्क णवणीत कुचिया आमधित गुलदधि रसालादहि मथु परमण्ण दधिताव तक्कोदण अतिकूरक पूप मंस अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्ना विभागशः सङ्ग्रहः फलरस कसाय पाणजोणिमयभायण- सोवच्चिका धण्णरस अंबिल भोयण पिप्पली अग्गगत कटुक धातुजोणिमयभायण- खारलवण पत्तगत लवण भोयण वट्टभोयण पुप्फगत पृष्ठ १७९ मूलजोणिमयभायण- मोदक विस्सोदण भोयण फलगत पेंडिक अतिकूरक जवागू पुण्फगत पप्पड गुलकूरक पत्तेगपुष्फ मोरिंडक दुद्धजवागू घतकूरक घयजवागू सालाकालिक गुलुकपुष्फ विलेपि तेल्लजवागू अंबट्रिक मंजरीपुष्फ पायस अंबिल्लजवागू वित्थडभोयण फलगत कसरि उण्हियजवागू पोवलिक रुक्खगत दधिताव ओसधजवागू वोक्कितक गुम्मगत तक्कुलि आलुक पोवलक वल्लीगत अंबेल्लि कसेरुक पप्पड छुपगत अंबिलक सिंघाडक सकुलिका पृष्ठ १७८ पालीक भिस सालि पक्खिमंस भिसमुणाल फेणक कोद्दव परिसप्पमंस चाय अक्खपूप वीहि चतुप्पदमंस मच्छंडिका अपडिहत सिंगिचतुप्पदमंस गुल पवितल्लक असिंगिचतुप्पदमंस खज्जगगुल वेलातिक वरक पृष्ठ १८० पत्तभज्जित सामाग अद्दमंस पृष्ठ १८२ उल्लोपिक तिल सुक्कमंस तप्पणा सिद्धस्थिका मास उस्सयभोयण बदरचुण्ण बीयक मुग्ग मतकभोयण विक्कस उक्कारिका चणक सडकभोयण कलायभज्जिया मंडिल्लका कलाव दासीभोयण मुग्गभज्जिया दीहभोयण णिप्फाव बालोपणयणभोयण जवभज्जिया दीहसक्कुलिका मसुर देवताभोयण गोधुमभज्जिया खारवट्टिक कुलत्थ मंतगहणभोयण सालिभज्जिया खोडक तुवरि मंतसमावणभोयण तिलभज्जिया दीवालिक यव विज्जागहणभोयण अणग्गेयलवण दसिरिका गोधूम विज्जासमत्तिभोयण सामुद्द भिसकंटक कुसुंभ अभिणवभोयण सेंधव मत्थतक सासव सीतभोयण सोवच्चल लेज्झभोयण अतसी भिक्खोदण पंसुक्खार फाणित मधुर असामण्णभोयण अग्गेयलवण तित्त सहभोयण जवखार तिलक्खली रुधिर कंगु वसा मधु संखयआहार असंखयआहार सोतगुल सक्करा अग्गेयआहार अणग्गेयआहार पृष्ठ १७७ मूलजोणिगत मूलगत खंधगत अग्गगत कंदगत तजगत णिज्जासगत णिज्जासगत सिरिविट्ठकसद्द लता सल्लकि कास सोणिय पूक लसिया जवागू उच्छुरस गोलोय पत्तरस पुप्फरस रालक वसा कुसण कोलत्थ तंबलिक साकरस थूणिकाखल अंबिल उपसेक पृष्ठ २४६ दुद्भुण्हिका दधिताव अंबेल्लि विलेपिका कक्करपिंडग गंगावत्तग चुक्कितक वप्पडी कक्कब अंबट्ठिग घतउण्ह पोवलिका दधि दधि पृष्ठ ६४ पुंपेय अरिटु आसव मेरक (१६) पेयविभाग गोधसालक खलक पाणक पाणीय रस खीर दुद्ध अपक्करस गुल णवणीत घित तेल फाणित पक्करस मधु Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुख पृष्ठ १८१ पसण्णा अयसा अरिट्ठ महु पृष्ठ १६३ वत्थ कोसेज्ज पतुज्ज आविक पतुण्ण खोम दुकुल्ल चीणपट्ट कप्पासिक पट्ट लोहजालिका पृष्ठ ६४ पुंअच्छादण पडसाडग खोमदुगल्लग चांग चीणपट्ट पावार पड पृष्ठ ६४-६५ पुंजातीयभूसण तिरीड मउड सीहभंडक अलकपरिक्खेव मत्थककंटक गरुलक मगरक उसभक सीउक हत्थिक चक्ककमिहुणग सेतसुरा पृष्ठ २२१ पसण्णा गिट्टिता मधुरक आसव सुवण्णपट्ट सुवण्णखसित काललोहजालिक सकलदस बहिस छिण्णदस विवाडित सिव्वित पावारक कोतवक उण्णिक अत्थरक साडक सेदसाड कोसेवपाय कंबलक उत्तरिज्ज अंतरिज्ज उस्सीस वेधण झंकक कडग खडुग णिडालमासक तिलक मुहफलक विसेसक अवंग कुंडल बक मत्थग तलपत्तक दक्खाणक जगल धु अि पृष्ठ २५८ बहुपिट्ठिया पक्खा जातिकसण्णा अरिट्ठा (१७) वस्त्रविभाग मेचक अटुकालिका आसवासव सुरा कुसुकुंडी वधुवत्थ मतकवत्थ विलात आतवितक ओमरित पृ० १६४ सेवलक मयूरगीव करेणूयक कप्पासिकपुष्फक पउमरत्तक मणोसिलक पञ्चमं परिशिष्टम् कप्पास कंचुक वारवाण विताणक पच्छत सण्णापट्ट मल्लसाडग पृष्ठ ७१ पृ० २२१ कोसेज्जक (१८) आच्छादनविभाग कुरबक कण्णकोवण कण्णपील जयकालिका कण्णपूरक कण्णखीलक कण्णलोडक जातिपट्टणुगत पट्टिक वट्ठण सीकरण उत्तरिज्ज अंतरिज्ज केज्जूर तलभ कंदूग परिडेग आवेदन वलयग हत्थकलावग पच्चत्थरण विताणक परिसरणक थी अच्छादण पउण्णा पणी वण्णा सोमित्तिकी अद्धकोसिज्जिका हत्यखडुग अनंत खुड्डुग हत्थभंडक कंकण वेढक हार पसरादी पिगाणा दियवंतरा (१९) भूषण - आभरण - अलंकारविभाग अद्धहार फलहारक वेकच्छग गेवेन्ज कट्ठ कडक रस पृष्ठ २३२ गुग्गुलविगत सज्जलस इक्कास सिरिवेक आविक अविकपत्तुण्ण अजीणपट्ट अजीणप्पवेणी चम्मसाडी वालवीर पृ० २३० सजीवक पत्तुण्ण अजीणप्पवेणी अजीणकंबल बालसाडी लेखा वाउकाणी बेलविका सुक्क सोवण्णसुतग तिर्गिच्छिग हिदयत्ताणक सत्थिक सिविच्छ अट्टमंगलक सोणसुत रयणकलावग गंडूपक खत्तियधम्मक णीपुर अंगजक चंदणरस तेलवणकरस कालेयकरस सहकाररस मातुलुंगरस करमंदरस सालफलरस बालमुंडिका बालव्वणी सहा थूला सुवुता परत्तिका दुव्वुत्ता माहिसिका अप्पग्घा इल्ली महग्घा अहता जामिलिका थी अच्छादणएकार्थक धोतिका अजिण कंचुका चम्मसाडी पृ० २३२ खोमक दुगुल्ल जग्गिक बीजपट्ट ३५३ वागपट्ट कप्पासिक पापढक पादखडुयग परमासक पादकलावग सरजालक बाहुजालक ऊरुजालक पादजालक अक्खक पुस्तकोकिलक कंचीकलचक होलक पृ. ७१ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंजण णीपुर कुंडल धूपण ३५४ थीजातीयभूसण सिरासमालिका णलियमालिका मकरिका ओराणी पुप्फितिका मकण्णी . लका वालिका कण्णवल्लीका कणिका कुंडमालिका सिद्धत्थिका अंगुलिमुद्दिका अक्खमालिका . संघमालिका पयुका णितरिंगी कंटकमालिका घणपिच्छिलिका विकालिका एकावलिका पिप्पलमलिका हारावली मुत्तावली अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः सङ्ग्रहः कण्णवलयक सिरआभरण हत्थाभरण खडुक ओचूलक हत्थकडग चुण्णक मुद्दिका णंदिविणद्धक कडग अलत्तक वेढक अपलोकणिका रुचक गंधवण्णक कण्णपालिक सीसोपक सूचीक कण्णसोधणक कर्णाभरण हत्थोपक अंजणी कण्णुप्पलक तलपत्तक अंगुलिआभरण सलाका पृष्ठ १६२ आबद्धक अंगुलेयक कुच्चठावण प्राणयोनिगत पलिकामदुघनक मुद्देयक कुंच धातुयोनिगत वेंटक सूची मूलयोनिगत जणक कटिआभरण प्राणयोनिगत ओकासक कंचिकलापक गंधविधी संखमय कण्णेपूरक मेखलिका सासा मुत्तामय कण्णुप्पीलणक कडिउपक सम्मिका दंतमय अक्षिआभरण जंघाआभरण वतंसक गवलमय अंजण गंडूपयक ओवास वालमय भृकुटिआभरण कण्णपीलक अट्ठमय मषी परिहेरक कण्णपूरक मूलयोनिगत गण्डाभरण पादाभरण णंदीविणद्धक कट्ठमय हरिताल खिखिणिक कूलीयंधक पुप्फमय हिंगुलुय खत्तियधम्मक तिलक फलमय मणस्सिला पादमुद्दिका कुंडल पत्तमय ओष्ठाभरण पादोपक वल्लिका धातुयोनिगत अलत्तक तिलक तलपत्तक सोवण्णमय कण्ठाभरण पृष्ठ २४६ पृष्ठ १९३ रुप्पमय वण्णसुत्तक बालतिलक अंजण तंबमय तिपिसाचक कण्णातिलग ण्हाण सीसमय विज्जाधारक तवणिज्जतिलग पधोवण लोहमय असीमालिका पदुमतिलग पव्वासण तपुमय हार पृष्ठ १८३ अणुलेवण काललोहमय अद्धहार पादकलाप विसेसकाय आरकूडमय पुच्छलक पादकिंकिणीका धूमाधिवास गोमेयक आवलिका खत्तियधम्मक परिधाण लोहितक्ख पृष्ठ १६३ पायुका उत्तरासंग पवालक मणिसोमाणक उपाणह सोणिसुत्त रत्तक्खारमणि अट्ठमंगलक मल्ल लोहितक पेचुका मुकुड • सुरभिजोग सुक्कफलिक वायुमुत्ता कूचफणलीखावण(?) हत्थोपक विमलक वुप्पसुत्त व्हाण संविधाण सेतक्खारमणि पडिसराखारमणि पधोवण भिंगार मसारकल्ल कट्ठवट्टक विसेसकिया छत्त कालक्खारमणि बाहुआभरण ओकुंतणक पतागा अंजणमूलक अंगय हरिताल लोवहत्थ णीलक्खारमणि तुडिय हिंगुलुक पृष्ठ २२१ खारमणि सव्वबाहोवक मणसिल सुवण्ण रुप्प तंब हारकूड तपु सीसक काललोह वट्टलोह सेल मत्तिका कट्ठमय पुप्फमय फलमय पत्तमय पृष्ठ २४२ चुभलक पेलक मुकुड वेट्टण मालिका वट्टा सीसावक पृष्ठ २५९ भुं (चुं)भलक उरच्छक आपेलग मालिका वट्टापेल मुकुड णीपूर कंची तेल रसणा जंबूका मेखला कंटिका संपडिका पामुद्दिका वम्मिका पाअसूचिका पाघट्टिका खिखिणिका पृ. ११६ माकण्णीकणिक लक उद्धलक तलकणिक वद्धक तलपत्तक परिहेरक तलभ पृष्ठ २३२ कुसुंभतेल्ल अतसीतेल्ल रुचीकातेल्ल करंजतेल्ल उण्हीपुण्णामतेल्ल बिल्लतल्ल उसणीतेल्ल वल्लीतेल्ल सासवतेल्ल पूतिकरंजतेल्ल सिग्गुकतेल्ल कपित्थतेल्ल तुरुक्कतेल्ल मूलकतेल्ल Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५५ अतिमुत्तकतेल तिलतेल इंगुदीतेल्ल पधकलीतल्ल यूथिकातेल्ल ओसधतेल्ल वक्किकतेल्ल पुस्सतेल्ल पञ्च परिशिष्टम् चंपकतेल्ल जातीतेल्ल चंदणिकापुस्सतेल्ल पीलुतेल्ल (२०) आसनविभाग कट्ठखोड भूमीमय महट्टिका तणमय उप्पल छगणपीढग लोहसंघात पृष्ठ १५ पल्लंक फलक फलकी भिसी चिफलक तण साहा मही पृष्ठ १७ डिप्फर मंचक पुप्फ अत्थरक पवेणी कंबल सुहस्सहा कट्ठपीढ खेडुखंड समंथणी . दंत पीढिका आसंदक भद्दासण पीढग फल बीय अट्टिक सेज्जा पृष्ठ ५२ सयणासण पल्लंक मसारय मंचक खट्टा फलिक मंचिक (२१) शयनासनविभाग भूमि तुससेज्जा आसंदग सिलातल लोहसेज्जा भद्दपीढ फलपुष्पहरितसेज्जा अंगारछारिकासेज्जा पादफल तिणसेज्जा झामसेज्जा वट्टपीढक सुक्ककट्ठसेज्जा मासालग डिप्फर जाणसेज्जा पृष्ठ ६५ पीढफलक बीयसेज्जा पुंजातीयसयणासण धणधण्णसेज्जा आसण तलिय पहरणावरणसेज्जा सव्वतोभद्द मसूरक सेलसेज्जा सयणासण अत्थरक कोट्टिम सिलातल खट्टा मासाल भिसी मंचक आसंदी पलंक पेढिका पडिसेज्जक महिसाह पृष्ठ ७२ सिला थीजातीय सय- फलकी णासण इट्टका कणक तलिय पृष्ठ २६ आसणापस्सय आसंदय भद्दपीठ डिप्फर फलकी भिसी कट्ठपीढ तणपीढ मट्टियापीढ छगणपीढ सयणापस्सय खट्टा सेज्जा जाणापस्सय सीया आसंदण जाणक घोलि गल्लिका सगड सगडी याण पृष्ठ २७ पुरिसापस्सय मणुस्स गय वाजी वसभ करभ (२२) अपश्रयविभाग-टेका-तकिया दारप्पिधणापस्सय णावाखंभ अधोगागार- 1 कीडिका छायाखंभ संथितापडिमा । दारकवाड दीवरुक्खखंभ मितुपडिमा दारुपडिमा दगलट्ठिखंभ रस्सावरण हरितापस्सय सेलखंभ कुड्डापस्सय तणभारय लित्तकुड कट्ठखंभ पत्तभारय अलितकुड्ड अट्ठिकखंभ फलभारय लित्तचेलिम रुक्खापस्सय पुष्फभारय अलित्तचेलिम कंटकीरुक्ख भायणापस्सय लित्तफलकमय खीररुक्ख कुंभकारकत अलित्तफलकमय चेतितापस्सय लोहमय लित्तफलकपासित पडिमापस्सय पडल अलित्तफलकपासित सेलपडिमा कोत्थकापल खंभापस्सय लोहपडिमा मंजूसा खंभ अट्ठिपडिमा कट्ठभायण पाहाण कट्ठपडिमा पृष्ठ ३० धरणिखंभ पोत्थकम्मपडिमा झयक्खंभ पिलक्खखंभ चित्तकम्मपडिमा पीडोलकखंभ चेतितपादव पण्णवोट्टल फलपोट्टल मूलपोट्टल पुष्फपोट्टल घतकेला तेल्लकेला सुराकुंभ अरंजर पृष्ठ ३१ सोमाण सिती सव्वतोभद्दआसण दारपिंड कवाड अरंजरपेढिका वेश्या हिस्सेणि चेतिक सयण आसण पल्लंक मंच मासालक मंचिका Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ पृष्ठ १८३ दिव्वरत माणुस्सरत तिरिक्खजोणियरत पुरिसरत थीरत णपुंसकरत चुंबितरत आलिंगितरत सेवणारत अभारिकपुरिसरत सभारिकपुरिसरत अपतिकथीरत सपतिकथीरत अणपत्तपुरुसरत वंझाथीरत .दिव्वरत अच्छरारत देवरत णागकण्णारत णागरत किन्नरिरत किनररत पिसाईरत पिसायरत रक्ख सरत रक्खसीरत गंधव्वरत सुद्दारत अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः सङ्ग्रहः (२३) रतविभाग गंधव्वीरत णपुंसकरत वक्खावत्थद्ध उदुणीरत मुदितारत असुरकन्नारत विगतरत पृष्ठ १८५ अणुदुणीरत विस्सुयकित्तिरत असुररत अविगतरत गुदेरत विसदारत पक्खातारत मतकपडिमारत पृष्ठ १८४ णाभिरत दुस्सीलारत दंसणीयरूवसंपण्णारत पत्थिवपडिमारत उट्टितरत थणंतरस्त अद्धसंवुतारत सुगंधारत मुत्तिकापडिमारत उवविट्ठरत पाणिरत सभज्जारत इट्ठथीरत चित्तपडिमारत संविट्ठरत उवातारत परभज्जारत भिउडीरत तिरिक्खजोणि- अवत्थद्धरत सामारत मित्तभज्जारत णिकाणितरत यरत दक्खिणपस्सरत कालिकारत रायपुरिसभारियारत खयरत सगुणिरत वामपस्सरत दीहारत परिचारिकारत णक्खपदरत कक्कडिरत उत्ताणरत रस्सारत परूढणखकक्खरोमारत दंतखयरत टिट्टिभीरत णिकुज्जरत थूलारत अचिरपरूढणहरोमारत गीतरत पारेवतीरत ओणतरत किसारत सुपरिमज्जितणहकक्ख हसितरत छित्रगालिरत उब्भरत बालारत वत्थिसीसारत आहारितरत गोरत एक्कभग्गरत वयत्थारत पुधुउपधारत पुसुयरत महिसरत पसल्लियवेलुफालियरत मज्झिमारत संखित्तभगारत सोणियओघायणरत अयेलकरत उत्ताणरत महव्वयारत परिमंडलभगारत अस्सतरिरत उभयोसंविट्ठ बंभणीरत चतुरस्सभगारत पडियारत सुणिकारत अद्धसंविट्ठ खत्तिकारत तंसभगारत विवादरत वराहीरत एक्कापविट्ठ(द्ध) वेस्सीरत अमेखलारत रत्तिरत वलवारत पणतरत सुद्दीरत समेखलारत दिवारत उट्टीरत कडिगहित कसिगोरक्खभज्जारत कुमारीरत संझाकालरत गद्दभीरत चतुप्पद कारुकभज्जारत जुवतीरत पदोसरत गावीरत रधप्पयात ववहारिभज्जारत उत्तानभगारत अवरण्णरत महिसीरत उपविट्ठरत पउत्थपतिकारत णिण्णभगारत मज्झंतियरत माणुस्सरत सयणावत्थद्ध अविधवारत पसण्णारत अद्धरत्तरत थीरत आसणावत्थद्ध अवट्ठितारत कुद्धारत पच्चूसरत पुरिसरत साहावत्थद्ध चलचित्तारत चित्तारत (२४) दोहदविभाग अरण्णगत सद्दगतदोहद धूपगत वाहणगत पक्खसंधीसु वत्त भूमिगत मणुस्ससद्दगत मल्लगत गहगत अब्भंतरपंचमीवत्त णगरगत पक्खिसद्दगत पुप्फगत वत्थगत परमपंचमीवत्त खंधावारगत चतुष्पदसद्दगत फलगत आभरणगत अब्भंतर जुद्धगत पृष्ठ १७२ पत्तगत जाणगत दसमीवत्त किड्डागत परिसप्पसद्दगत आहारगत समयदोहद परमदसमीवत्त पुष्फगत दिव्वघोसगत रसगतदोहद सरदे वत्त पायरासे वत्त फलगत वादित्तघोसगत पाणगत घिम्हे वत्त पदोसे वत्त महासरगत आभरणघोसगत भोयणगत पाउसे वत्त मज्झंतिके वत्त पुढविगत गंधगतदोहद खज्जगत वासारते वत्त अड्डरते वत्त पव्वतगत णाणगत लेज्झगत हेमंते वत्त अपरण्हे वत्त आरामगत अणुलेवणगत फासगतदोहद वसंते वत्त अतिवत्तसद्दवत्त देवगत अधिवासगत आसणगत सुक्कपक्खे वत्त अणागतसद्दवत्त संगामगत पघंसगत सयणगत कालपक्खे वत्त वत्तमाणसद्दवत्त पृष्ठ १७१ रूवगतदोहद मणुस्सगत चतुप्पदगत पक्खिगत परिसप्पगत कीडकिविल्लगत पुप्फगत विद्धिगत णदीगत संमुद्दगत तलावगत वापिगत पुक्खरणिगत Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५७ सूल छड्डि फिक्का पृष्ठ २०२ छेज्ज विलक तिलकालक णत्थक पृष्ठ २०३ कीडिभक कुणिणख गंठि वण काण अंध कट्ठ बहिर कण्णच्छेज्ज णासारोग णासाछेज्ज जिब्भारोग जिब्भाछेज्ज तयादोस फासोवघात कुंट गंडीपाद खंज कुणीक सामदंत गीवारोग सीसवाधि अक्खिवाधि वातिक पेतिक सेंभिक पृष्ठ २०४ सण्णिवातित अवयि गलगंड कटुंसालुक । (कंठमालक) पट्ठीरोग खंडो? गुरुल करल खंडदंत खत ului Hulk पृष्ठ ९७ बालक जाणक ठियपडिया पंचमिका सत्तमिका उट्ठाणक मासपूरणक पिंडवद्धणक उवणिग्गमण पादपेसणक परंगणक पदक्कमणक सेसा पञ्चमं परिशिष्टम् (२५) रोगविभाग पलित पीलक खरड गलुक चम्मकील गंड कीडिग किलास कोढिक कोट्टित सिन्भ वातंड अंहरि सुणवारक वातंडअरिस कामल भगंदल णील कुच्छिरोग कण्हतिल वातगुम्म (२६) उत्सवविभाग णिव्वहण अधिक्कमणक अधिक्कमणक पृष्ठ १४७ तोप्पारुभणा बलि पातिज्ज मंगल णवण यागहरण पंचमेजण वारेज्ज अण्णोण्ण पृष्ठ २०८ जामातुकीय पितुकज्ज दसमीण्हाणक पेतकिच्च पृष्ठ १२१ पृष्ठ २२३ बालोपणयण जायणविवद्धी वाधुज्ज पडिभोगकम्म (२७) वादित्रविभाग दद्दरक मुख आलिंगा (२८) पर्वतविभाग केलास सज्झ वस्सधर मंत अच्छदंत (२९) खनिजविभाग खारमणी काललोह वट्टलोह पृ० २३३ कंसलोह सुवण्णक हारकूडग तवुक रूवियग तंबक पृ० २५८ सीसक पच्चाहरणक चोलक उपणयण लेहणिक्खिवण गणितापढपणक पृष्ठ ९८ गुलभक्खण बाढक्कार समासेयणक सुण्णिका उपमाणक गोसग्गण्हाणक पडिवज्झक गोसग्गण्हाणक वरपंचमज्जण तिरिक्खजोणिमज्जण पृष्ठ २५६ वाधुज्ज चोल उवणयण उज्जाणभोज्ज पृष्ठ २६२ आवाह वीवाह चोलोपणयण तिधि उस्सव समाय जण्ण पृष्ठ २४९ उज्जवणिका पृष्ठ २५५ वरमज्जण वधूमज्जण सेसा जोग जण्ण बलि पृ० २३० वीणा मसूरका पखर रुप्पि मेरु विझ पृष्ठ ७८ हिमवंत महाहिमवंत णिसढ मलय पारियत्त महिंद चित्तकूड अंबासण मेरुवर वेयड्ड मंदर णेलवंत वर्णमृत्तिका पृ० २३३ धातु सुधा रत्न पृ० २३३ वेरुलिय फालिय मसारकल्ल लोहितक्ख अंजणमू(पु)लक गोमेदक अंकामलक सासक सिलप्पवाल पवालक वइर मरगत सीसक लोह तंब हारकूडक सुवण्ण काललोह तिक्खलोह मुंडलोह सेडिका पलेपक णेलकता कडसक्करा गेरुग तवु Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ मणोसिल पत्तंग हिंगुलक पज्जणी अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः सङ्ग्रहः वण्णमत्तिका पंडुमत्तिका देवताययणमत्तिका सुवण्ण णीलकधातुक णदिमत्तिका तंबभूमी जातरूव सस्सकचुण्णक संगमत्तिका मुरुंब मणस्सिला कण्हमत्तिका विसाणमत्तिका कडसकरा गोकंटक II 411 खीरपक अब्भवालुका लवण सुद्धभूमी (३०) वर्ण-रविभाग कण्ह पृ० १०४ सुक्क रत मेचक पृष्ठ १०५ गयतालुकवण्ण काकंडवण्ण सुरुग्गमिक पदुमक मणोसिलाणिभ हरितालवण्ण हिंगुलक चित्तवण्ण मिस्सवण्ण कोरेंटकणिभ पंडु पीतक णील सेत (३१) मण्डलविभाग पृष्ठ ११५ अद्दागमंडल णक्खत्तमंडल जोइस आदित्त चक्क समयमंडल रिसिमंडल संखमंडल मंडलक णापुण्णमंडल अट्ठमंडल मंडलास छेत्तमंडल उवलेवमंडल किमिमंडलिक पंचमंडलिक अपंचमंडल माकण्णीकणिक उद्धलक तलकण्णिक वद्धक तलपत्तक परिहेरक तलभ कण्णवलयक खडुक मुद्दिका वेढक कण्णपालिक णीपुर कण्णुप्पलक पण्णेलिक सकडपट्टक पल्लत्थिकापट्ट अकरपट्टक अस्समंडल वातचक्कमंडल झल्लरिमंडल लेहपट्टिकमंडल सत्थिसंघातमंडल अंगलिमंडल संघायमंडल करणमंडल पृष्ठ २३९ जोतिसमंडल पुढवीमंडल पृष्ठ २४१ महामंडल मज्झिमगमंडल खुडुलगमंडल णक्खत्तमंडल अद्दागमंडल चंदमंडल सूरमंडल पृष्ठ २४२ पल्लंकचक्कलग धाडीचक्क सकडचक्क लक (३२) नक्षत्रविभाग पृष्ठ २०६ पुव्वदारिक दक्खिणदारिक पच्छिमदारिक उत्तरदारिक समखेत्तदिवड्डखेत्त अद्धखेत गामणक्खत्त खेडणक्खत्त कुलणक्खत्त उपकुलणक्खत्त कुलोपकुलणक्खत्त पमद्दणणक्खत्त पृष्ठ २३५ मुहत्त दिवस पक्ख मास वस्स निमिसंतर उस्सास कट्ठा लव कला पृष्ठ २४६ मज्झण्ह अहोरत्त जातिणक्खत्त थीणक्खत्त आदाणणक्खत्त णपुंसकणक्खत्त मित्तणक्खत्त णगरणक्खत्त पुरिसणक्खत्त देवणक्खत्त (३३) कालविभाग पुव्वण्ह मागधवेला अवरह दुद्धवेलिका मागधअ आलोलीवेलिका पातरास आणुतासवेला अणुमज्झण्ह कूरवेला पृष्ठ २४७ पातरासवेला भत्तवेलिका गंडीवेला जागुवेला वासवेलिका णागवेला पसुवेलिका दीववेलिका सामासवेलीका जामवेला चोरवेला गोसग्गवेला पृष्ठ २५७ धातक छातक (३४) व्याकरणविभाग पृष्ठ १५३ व्याकरण सर फरिस अंतत्थ जोगवह अजोगवह यम उष्माण: विसर्जनीय उपध्मानीय जिह्ममूलीय अनुस्वार अनुनासिक समाणक्खर संधिअक्खर णामिस्सर अघोस घोसवंत हनुमूलजिह्वामूलीय 111 पृष्ठ १५७ एक्कमस्स बिभस्स बहुभस्स Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमं परिशिष्टम् - ३५९ पृष्ठ ६२ चतुष्पद हत्थी कवल कोसक पृष्ठ ६९ णउल अस्स चतुष्पदी उट्ट पयल कणेरु हत्थिणी गावी महिसी वडवा किसोरी घोडिका अजा अविला कण्हेरी रोहिती एणिका पसती कुरंगी मिगी गद्दभ घोडग उसभ बलिवद्द वच्छक तण्णक सीह वग्घ वक खग्ग रोहित दीबिक अच्छभल्ल तरच्छ महिस गय लोयक उद्द भल्लुकी वग रोहित (३५) तिर्यग्जातिविभाग सूअर मंगुस मग पसत उंदुर विलाल कालक वाणर सस कातोदूक लोपा सरंत पृष्ठ २३९ घरघूला हय थलचर गय वुक्खचर खर बिलसाइ सेलबिलासय भूमिबिलासय माहिस वग्घ वृक्षचर अच्छभल विराल दीपिक उंदुर तरच्छ थालक खग्ग घरपूपल अहिणूक तोड्डक पसत पचलाक वराह शैलबिलाश्रय पृष्ठ २२६ दीहवग्घ अच्छभल्ल महिस तरच्छ अय सालिभ एलक सेधक दिपिक खर विलालु सुणक अजीणविलाल सलभ वाघ गोधा तरच्छ अच्छल्लभ उंदुर दीविक अयकर गज पृष्ठ २२७ चमरी भूमिबिलाश्रय खग्ग लोपक हत्थी णउल अस्स वराह अहिणूका वग तोडक सियाल ताडक पाठीण मनुष्यतिर्यक्सा- सुंसुमारी धारण असालिका वाणर जलचर णरसीह पृष्ठ २२७ अस्सपूतण कद्दमग णीलमिग हित्थिय गायगोकण्ण कच्छभक पृष्ठ ६२ आणावचरणिग पुंजातीयमत्स्य- पदुम जाति भिगणाग मच्छ वमारक कच्छभ राजमहोरक णाग सवलाहिक मगर कुक्कुड सुंसुमार देवपुत्तक तिमी समाणाहिय तिमिगिल पृष्ठ २२८ गिल दुपदमच्छ मंडुक हत्थिमच्छ कुलीर मगमच्छ बोडमच्छक गोमच्छ अस्समच्छ गागरक णरमच्छ सोहमच्छ णदीपुत्तक महामच्छ चतुष्पपदमत्स्य कालाडग कच्छभ गाधमक सुंसुमार पिविपिण मंदुक्क स्त्रीजातीयमत्स्य- उदकाय जाति बहुपदमत्स्य मल्लुंडी कुमारिल अहिणूका सकुचिक जलूका दीर्घपदमत्स्य अहिणी चम्मिर वोमीका घोहणुमच्छ सिकूवाली वइरमच्छ कुलीरा तिमि कच्छभी तिमिगिल वत्तणासी वालीण सिगिला सुंसुमार सिकुत्थी कच्छभमगर वरई गद्दभकपमाण ओवातिका रोहित मंडुक्की पिचक सस कंटेण धण्णक कडुमाय कुरंग सियाल सुण्ही सीही वग्घी विकी अच्छभल्ली मज्जारी मुंगसी उण्हाली अडिला मूसिका छुछिका ओवुलीका उंदुरी वाराही सुवरी कोली दीपिका खारका घरकोइला चतुष्पद पृष्ठ २३८ अय अमिल सुणय विराल णकुल सीह कुकुर मूसग सरभ रुरु वाणर गजपुंगव मेस ऊरणक मेंढग गोधा छगल हरित मग सुणग Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० णल मीण चम्मिराज कल्लाडक सिकुंडी उप्पातिक इंचक कुडुकालक सित्थमच्छक परिसर्प पृष्ठ २२६ अजगर असालिका गोधा तोड़का सरंत पयलाक अहिक घडोपल णकुल उंदुर पृष्ठ ६३ पुंजातीय सर्प कीटजाति भिराही गोणस अज अजगर मिलिंदक लोहितक पापहिक पूर्तिगाल तित्तिल गोमयकीडग कीड पतंग संख खुलुक हालक पृष्ठ ६९ स्त्रीजातीय सर्प कीटजाति गोधा गोमी मंडलिकारिका भिंगारी अरका वचाई इंदगोविगी तूका (यूका) लिक्खा फुसी मुम्मुलका जाला लुता भिउडी किणिही तला कभेड़का उहणाभी अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः सङ्ग्रहः टेट्टीवालक मयंसला किपिल्लिका सर्पजाति पृष्ठ २२७ दल्लीकर मंडलि रायिमंत आसीविस तिण्हविस वातंदविस णिव्विस पृष्ठ २३९ दीहकील दव्वीकर मोलि भिंगारी गोणस पृष्ठ ६२ पक्षी गरुल रायहंस कलहंस चास रिकिसिक नील सारस चक्कवाग बग भारंड गहर कुलल सेण बास (ज) सुय वंजुल सतपत्त कपिलक पावय कपोत हारीड कुक्कुड तित्तिर लावक कयर कविजल कातंब दंडमाणव आसवाय कोंच कधामज्झक सरभ उपक मयूर कारंडय पिलय सिरिकंठ पुत्तंगय भिगराय जीवजीवक मुधुलूक कुधुलूक पृष्ठ ६९ पक्षिणी विल्लरी रायहंसी कलहंसी कोकी सालिया पूतणा सकुणी गिटी सेणी 這 काकी घूकी तुका उलूकी मालुका सेणा सिपिबुला कीरी मदणसलाका सालाका कोकिला पिरिली कुडपूरी भारद्दाई लाविका चट्टिका सेन्ही कुक्कुडी पलाडीका पोटाकी सउणिगा आडा टिट्टिभिका डिकुकुटिका सडिका बलाका चक्कवायी पृष्ठ १४५ पक्षी हंस कुरर चक्कवाक कारंडक कातंब काकाक मेज्जुक पृष्ठ १९५ मदणसलाका कवी मोर पृष्ठ २२५ हंस सेडिक चक्कवाक चक्कवाकयी आडा णवूहक पणदीसुतक कारंडव काकमज्जुक कातंब नदीकुक्कुडी उक्कोस कोंच गीवा रोहिणिक समुद्दकाक बक चक्कवाक आसीविस तिण्हविस पृष्ठ २२६ मयूर कंक छिण्णालिंगा गद्ध वीरल्ल सेण उलूक सालक कपोत वायस सुक कोकिल तित्तिर वातिक तेल्लपातिक सगुणिक परसउणिक चम्मडिल चित्तकपोतक वणकुक्कुड वह्यक पृष्ठ २३८ तित्तिर वट्टक लावक परभुत सुक सालक रिकिसिक काक कपोत कपिंजल वच्छ कोकवास सतपत्त वंजुल कलहिभी सुकरिका मंचुलक आडवक काक मण्डुक सेडीका रेड्रि कालक पाइकुकुडिका कातंब पृष्ठ २३९ हंस कोंच किण्णर कुक्कुड मयूर कलहंस भासकुण महासकुण दिग्गीव दिग्घपाद पारिप्पव ढंकराली गद्द कुरल दलुक भास वीरल्ल समघाती छिण्णंगाला ककी जंतु पृष्ठ २२७ बहुपद गोम्मी Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६१ कुंथु सतपदी इंदगोपिका चसणिका पृष्ठ २२९ भमर मधुकरी मसग मक्खिका किविल्लका ओपविका कुंथु इंदगोपक पसलचित्त कण्हकीडिका यूका . मंकुण उप्पातका रोहिणिका जुगलिका कण्हपिपीलिका कण्हविच्छिका घूण संताणक उंडणाही घुक्कभरध अग्गिकीड पतंग उद्भिज्ज संखण काकुंथिक वडक सिरिवेट्ठक करिण्हुक पयुमक सद्द बिलासय कण्हगुलिक सेतगुलिक खुल्लिक आहाडक कसक वातपुरील पञ्चमं परिशिष्टम् णदीमच्छक फलकीड जलायुमच्छक धण्णकीड आसालिक सुत्तजगलिका कीमिक चुरु उरणी गंडूपय सुयम्मुत्ता सव्वट्ठक लूता सूकमिड कोलिक पृष्ठ २३० घरपोपलिका लिच्छ अहिलूका संवुट्ठिक भिंगारी सूकमिद्द आलका पृष्ठ २३७ भमर खुल्लक मधुकर वराड तोड़ संखणग पतंग सिप्पि मच्छिका गंडूपद मगसक जलूका छिर आसालिका कुरिल बारवत्त सिगिलि पाण्णयिक मंडूकलिआ धिकुण पृष्ठ २३८ लिक्खा गोम्मी घुण कीडग चम्मकीड विच्छिय सुरगोपक इंदकाइय उंदुर सरड खालग खुडलग पंथोलग वतिभेदग गहकंडुग कुंभकारीअ चोलाडिग कुलिंग धम्मणग पंडराग पृष्ठ २६५ एगिदिय पुढविक्काइक आवुक्कायिक तेवुक्कायिक वायुकायिक वणप्फतिकायिक पृष्ठ २६६ बेइंदिय संख संखणग सिप्पिका जलाउ दककिमि णीपुर सुमंगल संबुक्क तेइंदिय जुंगलिका उप्पाडक उप्पातक तणहारक पत्तहारक कुंथु पिपीलिका उपचिक रोहिणिक तेवरुक वातंसु तपुस कुतिपि बहुपद ईलिका सीकृणिक णंदी उब्भणाभि तंतुवायक मिजिक पातिक साहिक सतप्पाय गोम्मि हत्थसोंडक कडमच्छ (३६) वनस्पतिविभाग पृष्ठ २०२ पुष्फ फल रुक्ख चिल्लक बंधुजीवक दधिवण्ण सत्तिवण्ण कोसंब भीरुय अयकण्ण अस्सकण्ण धम्मण्ण गुम्म लता वल्ली पत्त पवाल कुंट असोग तिलक लकुची साल बकुल वंजुल पुण्णाग णागरुक्ख कुरबक अंकोल्ल कोलिक णग्गोध अतिमुत्तक अहिरण्णक कण्णिकार चार वरुणक किंसुग पालिभद्दग सज्ज अज्जुण कतंब णिब कुडज उदुंबर अप्फोय णग्गोध वड सिण्हक सिलिध विलियंध णिवुर साग असण पाण कोविडाल सिरीस पृष्ठ ६३ छत्तोध पुंजातीय गुल्म णल कोरेंट मधुग कणवीर चंदण सिंधुवार लोद्ध अणंगण उण्होलक अणोज्ज वारंग खदिर सेदकंठक अयमार कर रत्तकंठक पुंरुक्खएकार्थक वाणीर छिक्क दुम णीलकंठक रुक्ख तिमिरक अगम थावरकाय तलकोड विडवी णागमालक धव अंकुर पादव परोह पृष्ठ ६३ पुंजातीय वृक्ष अंब अंबाडक पणस लकुच दालिम णालिकेर कवि? टुिक पारावत णत्तमाल कोविराल वणसंड सण Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ पृष्ठ ६३ पुंजातीय पुष्प पदुम पुंडरीक पंकय सहस्सपत्त सतपत्त सप्फ कुमुद उप्पल कुवलय गद्दभग तणसोल्लिक तामरस इंदीवर कोज्जक पाडल कंदल चंपगपुप्फ हरिकाक लवंगपुष्फ मोगरग अंकोल्लपुप्फ सहवरपुप्फ पुंपुष्पएकार्थक कंठेगुण संविताणक उरणा चुंभल आमेलक मत्थक गोच्छक पुष्करासी पुष्कणिगर पुष्पोट्टल पृष्ठ ६४ पुंजातीय फल भंड तुंब कालिंग कक्खारुग ससबिंदुक वालुक तपसेालुक दालिम गालिकेर बिल्ल आमलक विदुक बदर सेलूडक तलपक्क सीवण्ण धम्मण तोरण करमंद येमेलक अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः सङ्ग्रहः कसेरुका मुणालिका विधित्तिका कंटासक जंबुफल पारावत अनखोल मातुलिंग खज्जूर कलिमाजक पृष्ट ७० स्त्रीजातीय वृक्ष गुल्मादि पिप्परी वेडसी जंबू अंबिलिका चिचिणिका मंडी सीवण्णी कज्जूरी केतभी कडूकीका तिबुरुकी धकंटी वेल्लरी तेरणी अरलूसा आमली सेवपूती लंचापली सीकवल्लोकी लिंगिच्छी हिंछाघोडा टक्कारी वेजयंती कंगूका सीसवत्तिया अप्फोतिका धवासी सिंदीवासी समुद्दवल्ली कप्पासी रुचिका रंगुनी मातुलिंगी पिहू आफकी अरंजरवल्ली उदकवल्ली कूभंडी तवुसी पल्लालुका तंबी कालिंगी वालुंकी कक्वारुणी णलिणी पउमिणी कमलिणी उप्पलिणी पिंडालुकी घोसाडकी ससबिंदुकिणी भंजुलिका कंसकी कारियल्लिका णिली कालिका अंजणेकसका स्त्रीवृक्षादि एकार्थक लता लट्ठी छमिणी काणवी दुमगुम्मलता पृष्ठ ७० थीपुप्फ चंपयजाति महाजाति सुवण्णजूधिका जूधिका तकुली तलुसी वासंती वासुला बदबुद्धी जयसमणा णवमल्लिका मल्लिका णितण्णिका तिगिंछी पीतिका मगयंतिका पिरंगुका कंगुका कुरुडूका वणती अंबमंजरी थीपुप्फएकार्थक पुप्फमंजरी पुण्फपिडिया पुष्फगोच्छी श्रीपुप्फसंजोग चंदा तीसालिका पारिहत्थी कुभिधी धम्मी जागी विलिंजर पोट्टालिका वेजयंती मज्जणमालिका जंगमाला खोलकमाला पृष्ठ ७०-७१ श्रीफल मुंदिका चलिका लोमसिका अक्खोला कुक्कुडिका सिंगलिका श्रीफल एकार्थक फलपिंडी फलगोच्छ फला फलिका फलमाला फलमिंजा फलपेसिका पृष्ठ १०४ सुक्लिपुप्फ सेडकणवीर वासंती वासुला बेलपुष्पिका जाती लाणी जूधिका णवमालिका मल्लिका चंपकाली तणसोल्लिक सेडकफलिका पुंडरिक सेडगद्दभक सेटककंद सिंधुवार रुक्ख पृष्ठ २३१ पणस तुंब भंड अंब अंबाडक णीप तिंदुक उदुंबर अस्सोत्थ वड पील पियाल फरुस चम्म होला कोलक करमंद कलायस पारेवत लउच मातुलुंग बउल जंबु दालिम पृष्ठ २३२ अयकण्ण पूतिकरंज अहिमार पुतिला कुंभकंडक पृष्ठ २३८ आमलग जंबु लप्फल अंबाडग करमंद सीवण्ण उंबर रातण तोडण सीडा लसु तुंबुरु पिप्पल सेफल कोलफल वारमडिअ घरिफल करिलेग लोमसिक बिडालक वार्तिगण वालुंक Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमं परिशिष्टम् कक्खारुक कूभंड पृष्ठ २४३ मूल खंध अग्ग कुडय पत्त पूगफल ककोलग लवंग जातीफल मुद्दीगा खजूर मरिय वासिका फला दिरुल मरकल मगवच्छक सिंगालक अंधक दालिम तीतिणी बिल्ली पलालु केयवसक रुक्ख लता गुम्म गुच्छ वलय उदाण तण थलज थलजहरित कंद पुष्फ फल बीज जलज मूल तुंब थलज पृष्ठ ६६ पुंधण्ण सालि पृष्ठ १६४ सालि वीहि जव गोधूम मास वीहि तिल कोइव कंगु तवुसक पृष्ठ २३९ अज्जुण तलपक्क णालिक कतंब कपिट्ठ सिलिंध लकुल कंदलि कालिंग कुडुंबक पृष्ठ २६६ (३७) धान्यविभाग रायसस्सव भाजनगत धान्य वरक मंजूसागत धान्य चणव पल्लगत धान्य सेतवीहि जाणगत धान्य सेततिल णिवेसणगत धान्य रत्तसालि ओवारिंगत धान्य रत्तवीहि अरण्णगत धान्य रत्ततिल कीत धान्य कण्हवीही विक्कीत धान्य सक धान्य कण्हरालक मित्त धान्य कण्हतिल जाचितक धान्य पृष्ठ १६५ णिक्खेवपरिगतधान्य सेतणिप्फाव पोराण धान्य रत्तसासव नव धान्य रत्तणिफाव पत्र १७८ हारीडणिप्फाव कोसीधण्ण सस्सप अकोसीधण्ण कोसीधण्ण तिल मास मुग्ग चणक कलाव णिप्फाव कुलत्थ मसूर कोद्दव वरक उरालक चीण मुग्ग णिप्फाव जव गोधुम मास मूढत्थ चणक रालक तिल मास मुग्ग चणक कलाय णिप्फाव कुलत्थ जव तुवरि पृष्ठ २२० सालि वीहि कोद्दव मुग्ग अलसंदक चणक णिप्फाव कुलत्थ चणविका मसूर तिल अतसी कुसुंभ सामात सेततिल सेतसासव तंबणिप्फाव रायसासव गोधूम कंगु कुलत्थ कुसुंभ अतसी मसूर रालक मरक सण पृष्ठ ६२ देव पिसाय जक्ख रक्खस चंद दिसा बुध असुरलोक असुरेंद णाग सुवण्ण णागलोक भवणवासी महालोक किंपुरुस गंधव्व किन्नर मरुत असुरी (३८) देवविभाग कप्पोपक जक्खी वेमाणिक किनरका गोज्झग वणप्फती गोज्झगपति पृष्ठ६९ तारका देवी हिरी सिरी असुरभज्जा लच्छी असुरकण्णा कित्ती मेधा णागकण्णा सती भवणालया धिती गंधव्वी रक्खसी बुद्धी सुक्क बहस्सति इला सिता विज्जा विज्जता चंदलेहा उक्कोससा अब्भराया देवकण्णा असुरकण्णा इंदग्गमहिसी असुरग्गमहिसी अइरिका भगवती अलंबुसा मिस्सकेसी मीणका मियदसणा अचला अणादिता अइराणी मिस्सकेसी तिधिणी सालिमालिणी तिलोत्तमा चित्तरधा चित्तलेहा देव पृष्ठ २०४ राहु णागी धूमकेउ लोहियंक सणिच्छर विमाणिंद कप्पपती भूत . Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ सुर जक्ख गंधव्व पितर बुद्धी अच्छरसा अज्जाधिउत्थ वुक्खाधिउत्थ गिरिकुमारी समुद्दकुमार दीवकुमार मारुत पेत अज्जा दारुण वसव आदिच्च अस्सि अव्वाबाध वातकण्णा अंगविज्जामध्यगतानां विशिष्टवस्तुनाम्नां विभागशः सङ्ग्रहः अग्गि णवमिगा पल्ललदेवया बलदेव मारुय सुरादेवी वासुदेव पृष्ठ २०५ णागी मेहा पज्जुण्ण इंदग्गि सुवण्णा पृष्ठ २०६ णाग बंभा असुर लतादेवता अलणा इंद णाग वत्थुदेवता उर्वेद सुवण्ण णगरदेवता अइराणी बलदेव दीवकुमार सुसाणदेवता माउया वासुदेव समुद्द वच्चदेवता सउणी काम दिसा एकाणंसा उक्कुरुडिकदेवता उदलादला अग्गि सिरी गिरी आरियदेवता वाउकुमार मिलक्खदेवता बुद्धी सिव थणितकुमार जमा सुवण्ण विज्जुकुमार कित्ती वेस्सवण सामाणिय पृष्ठ २२३ सरस्सती वरुण आभिओगिक वेस्समण रक्खस सोम परिसोववण्ण गंधव्व सिरी समुद्ददेवता सिव किंपुरिस अइराणी णदीदेवता खंद जक्ख पुढवी कूवदेवया विसाह पृष्ठ २२४ एकणासा तलागदेवया बंभा वेमाणित वरुण सोम देवदूत मेधा अरिटु सारस्सत गद्दतोय वण्हि अच्छरा वरुणकाइय वेसमणकाइय सोमकायिय वेण्हु पुधवी सत्थंधिवुत्था विज्जासत्थाधिवुत्था कुलदेवता वत्थुदेवता वच्चदेवता सुसाणदेवता पितुदेवता विज्जादेवता खंद विसाह (३९) एकार्थकविभाग कुमारी धिज्जा पत्ती सत्थवाही इब्भी भोगमित्ती वधू भडी पुंएकार्थक पृष्ठ ६१ अहोपुरिस महापुरुस पुरुससीह पधाणपुरुस कुलपुरुस रायपुरुस पुरिसिस्सर विज्जापुरिस जुवाण जोव्वणत्थ पोअंड पुरिस वीर विसारद विक्खात लद्धमाण महाबल महापरक्कम स्त्रीएकार्थक पृष्ठ ६८ अहोमहिला महिला सुमहिला अहोइत्थी पाडी कारुगिणी सहिगिणी उपवधू इत्थिया पमदा अंगणा महिला णारी पोहट्टी लाडी सामिणी वल्लभी पज्जिया अज्जिया नानिका महमातुया चुल्लमाता माउस्सिया पितुस्सिया भज्जा जारी सही धूता णत्ति पणत्तिणी रमा सुण्हा सावत्ती सल्लिका मेधुणा भातुज्जाया सगोत्ता भगिणी भागिणेज्जा कोडुंबिणी पितुस्सहा माउस्सहा णेयातुकासहा इत्थीरयण महादेवी रायपत्ती रायग्गमहिसी रायोपज्जायपत्ती सेणापतिणी भोयणी तलवरी रट्ठिणी गामिणी अमच्ची दल्लभी पडिहारी इस्सरिगिणी भोइणिगी घरिणी जुवती सुइत्थी इत्थी जोसिता धणिता विलका विलासिणी गड्डिक जोणिगा चिलाती बब्बरी पुलिंदी अंधी दमिली लाजिका उवधाइणी दासी कम्मकरी पेसी नत्तिका पयावती अणे पोट्टह दारिया बालिया सिंगिका पिल्लिका वच्छिका तण्णिका पोतिका कण्णा अड्डग सुभग विकंत विस्सुय कंता पिया मणामा हितइच्छिता इस्सरी धीर Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमंडलु उपल मणि सिलापट्ट गंडसेल गिरिक वइर मेरुक मरुभूतिक ३६५ उत्सवएकार्थक पृष्ठ ९८ उस्सय समास जण्ण छण अब्भुदय भोज्ज मज्जणक पृष्ठ १२१ उस्सय समास विहि धुवक बंभ सयंभु पयावति बंभण बंभरिसि बंभवत्थ बंभण्णु पियबंभण दिजाति दिजातिवसभ दिजातिपुंगव दिजाइपवर विप्प विप्परिसि विप्पवर जण्ण जण्णोकत जण्णकारि जण्णमुंड सोम सोमपा सोमपाइ सोमणाम अग्गिहोत्त आहितग्गि अग्गिहोत्तहुत जण्ण मंदर छण भोति माणिणी मातुस्सा ओवातिका सामोवाता कालस्सामा कालका दिग्घमडहिया खुज्जमडहिया आयतमडहिया चतुरस्सा अंतेपुरिका अभोगकारिणी सयणपाली भंडाकारिकिणी तणुकी मज्झिमिका काणा नपुंसकएकार्थक पृष्ठ ७३ णपुंसक अपुरुस चिल्लिक सीतल पंडक वातिक किलिम संकर कुंभीपंडक इस्सापंडक पक्खापक्खि विक्ख संढ लक्षण पृष्ठ १७३ वण्ण पञ्चमं परिशिष्टम् णीलुप्पल दब्भ पामेच्छा सज्जा णेलकंठक भिसी मसी दंड आटुिक जण्णोपइतक कण्हाल कृष्णवर्णएकार्थक कण्हमोयक पृष्ठ ९२ दृढएकार्थक कण्ह पृष्ठ ७८ नील हिमवंत कालक महाहिमवत असित णिसढ असितकिसिण रुप्पि हरित अंजण णेलवंत कज्जल केलास रुगण वस्सधर भंग वेयड्ढ खंजण अच्छदंत सज्झ गवल सूगर मंत कोकिला गोपच्छेलक मलय पारियत्त भमर मोरकंठ महेंद चित्तकूड वायस मातंग अंबासण मतिंग मेरुवर गय णग महिस पव्वत बलाहक मेघ सिलोच्चय जलहर सिहरि कण्हकराल पासाण कण्हतुलसी पत्थर भिंगपत्त विझ अचलित थावरक सिवणाम गुत्तणाम भव अभव थित सुत्थित ठाणत्थित अकंप णिप्पकंप णिव्वर सुहत वामएकार्थक पृष्ठ ७६ वाम वामावट्ट वामसील वामायार वामपक्ख वामदेस वामभाग वामतो अपवाम अपसव्व अवसव्व अप्पग्घ सर गति संठाण संघतण माण उम्माण सत्त आणुक पगति छाया सार अष्टाङ्गनिमित्त पृ.१ अंग सर लक्खण वंजण सुविण छिण्ण (दिव्व) वेद वेदज्झाइ वेदपारक चतुवेद वारिस पुव्वमास चतुम्मास सेल 'णरेतर जुव पृष्ठ १०१ ब्राह्मणएकार्थक पितामह भोम्म चिति अग्गिचयणी अंतलिक्ख Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ w ES WS ww. .