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________________ द्वितीय मुद्रणके अवसर पर : प्रकाशकीय निवेदन स्वतंत्र भारतके प्रथम राष्ट्रपति महामहिम डॉ. राजेन्द्रप्रसाद महोदयके प्रोत्साहक पथदर्शन में, ई. १९५३ के वर्षमें कार्यरत 'प्राकृत ग्रन्थ परिषद्' (PTS) नामक संस्थान के ४८ वें वर्षमें पदार्पण के सुअवसर पर, इसी संस्थान द्वारा प्रकाशित प्रथम महाग्रंथ 'अंगविज्जा' का पुनः प्रकाशन करते हुए मैं आनन्द अनुभव कर रहा हूं। दिवंगत आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजीने सख्त परिश्रम उठाकर इस ग्रंथका संशोधन व सम्पादन किया और इसकी प्रथम आवृत्ति ई. १९५७ में PTS. द्वारा प्रकाशित की गई। पिछले कई सालोंसे उक्त आवृत्ति अलभ्य हो चुकी थी, और उसका पुनः प्रकाशन अपेक्षित था । संस्थाके सौभाग्य से, आचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ, और इस ग्रंथ के पुनः प्रकाशन के लिए उन्होंने 'पूर्व-ग्राहक योजना' का आयोजन किया । इस योजना में भाग लेनेवाले दाताओं का मैं अभिवादन करता हूं। पहले सोचा था कि आधुनिक फोटो-झेरोक्स-पद्धतिसे ग्रंथ का पुनर्मुद्रण बहुत आसानीसे हो सकेगा । परंतु तदर्थ किया गया प्रयत्न असफल रहा । अतः पुनः टाइप-सेटिंग (कम्पोज) करना ही शेष रहा । फिर वह कार्य बहुत कष्टदायक व श्रमसाध्य था । किंतु मुझे आनन्द है कि मनन टाइप सेटर्स के श्री दिलीपभाई पटेलने यह मुश्किल कार्यको हाथ में ले लिया, और बहुत अच्छे ढंगसे मुद्रणका कार्य कर दिखाया है। एतदर्थ उन्हें शतशः धन्यवाद । प्रूफवाचन के कार्य में मुनि श्री धर्मकीर्तिविजयजी तथा मुनि श्रीकल्याणकीर्तिविजयजीका भी काफी योगदान रहा है; मैं उनका आभारी हूं। यह मुद्रणव्यवस्थामें अश्विन शाह के सहयोग के लिए आभारी हूँ । मुझे उम्मीद है कि इसी प्रकार से PTS. के अन्य अलभ्य प्रकाशनों भी पुन: प्रकाशनाधीन बनेंगे । PTS. की भूमिका, कार्यक्षेत्र एवं प्रारंभ - इत्यादिकी जानकारी प्रथम आवृत्तिके प्रधान सम्पादकों के निवेदन PREFACE द्वारा प्राप्त हो सकेगी । अंत में, आज जब प्राकृत भाषा एवं साहित्यको एक उपेक्षित चीज मानी-मनायी जाने की व्यापक साज़िश पैदा हो रही है, ऐसे समय में PTS. जैसी संस्था की खूब खूब व शीघ्र उन्नति हो और उसके माध्यम से प्राकृत भाषा एवं साहित्य का खूब प्रचार-प्रसार हो, ऐसी शुभकामना के साथ । दि. १-१-२००० - हरिवल्लभ भायाणी अध्यक्ष प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी अमदाबाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001439
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size12 MB
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