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________________ भूमिका ६९ नगर के विभिन्न भागों की सूची इस प्रकार है- अन्तःपुर या राजप्रासाद, भूमंतर (भूम्यंतर संभवतः भूमिगृह), सिंघाडक (शृङ्गाटक), चउक्क (चौक), राजपथ, महारथ्या, उस्साहिया ( अज्ञात, संभवतः परकोटे के पीछे की ऊँची सड़क), प्रासाद, गोपुर, अट्टालक, पकंठा (प्रकंठी नामक बुर्ज), तोरण, द्वार, पर्वत, वासुरुल (अज्ञात), थूभ ( स्तूप), एलुय (एडुक), प्रणाली, प्रवात (प्रपात, गड्ढा), वप्प, तडाग, दहफलिहा (हृदपरिखा), वय (व्रज - गोकुल अथवा मार्ग या रास्ता ) । नगरबाह्य स्थानों की सूची इस प्रकार है- ध्वज, तोरण, देवागार, वुक्ख (वृक्ष), पर्वत, माल, थंभ, एलुग (द्वार की लकड़ी), पाली ( तलाव का बांध ), तडाग, चउक्क, वप्र, आराम, श्मशान, वच्चभूमि (वर्चभूमि), मंडलभूमि, प्रपा, नदी-तडाग, देवायतन, दड्ढवण ( दग्धवन), उट्ठियपट्टग (ऊँचा स्थान), जण्णवाड (यज्ञपाटक), संगाम भूमि (संग्राम भूमि) । ५८ वाँ चिन्तित अध्याय है। जैनधर्म में जीव-अजीव के विचार का विषय बहुत विस्तार से आता है । यहाँ धार्मिक दृष्टिकोण से उस सम्बन्ध में विचार न करके केवल कुछ सूचिओं की ओर ध्यान दिलाना इष्ट है । जीव, अजीव - इसमें जीव दो प्रकार का है-एक संसारी और दूसरा सिद्ध । संसारी जीव के सम्बन्ध में याचन विवृद्धि, भोग, चेष्टा, आचार-विचार, चूड़ाकर्म (चोल), उपनयन, तिथि (पर्वविशेष), उत्सव, समाज, यज्ञ आदि विशेष आयोजनों का उल्लेख है। संसार चार प्रकार के होते हैं-दिव्य, मानुष्य, तिर्यंच, नारकी । देवताओं की सूची में निम्नलिखित नाम उल्लेखनीय हैं- वैश्रवण, विष्णु, रुद्र, शिव कुमार, स्कन्द, विशाख (इन तीन नामों का पृथक् उल्लेख कुषाण काल की मुद्राओं पर भी पाया जाता है), ब्रह्मा, बलदेव, वासुदेव, प्रद्युम्न, पर्वत, नाग, सुपर्ण, नदी, अलणा (एक मातृदेवी), अज्जा, अइराणी ( पृ० ६९, २०४ पर भी यह नाम आ चुका है), माउया (मातृका), सउणी, (शकुनी, सम्भवतः सुपर्णी देवी), एकाणंसा (एकानंसा नामक देवी जो कृष्ण और बलराम की बहिन मानी जाती है), सिरी (श्री- लक्ष्मी), बुद्धि, मेधा, कित्ती (कीर्ति), सरस्वती, नाग, नागी, राक्षसराक्षसी, असुर-असुरकन्या, गन्धर्व - गन्धर्वी, किंपुरुष - किंपुरुषकन्या, जक्ख-जक्खी, अप्सरा, गिरिकुमारी, समुद्रसमुद्रकुमारी, द्वीपकुमार - द्वीपकुमारी, चन्द्र, आदित्य, ग्रह, नक्षत्र, तारागण, वातकन्या, यम, वरुण, सोम, इन्द्र, पृथ्वी, दिशाकुमारी, पुरदेवता, वास्तुदेवता, वर्चदेवता ( दुर्गन्धि स्थान के अधिष्ठातृ देवता), सुसाण देवता ( श्मशान देवता), पितृदेवता, चारण, विद्याधरी, विज्जादेवता, महर्षि आदि । इस सूची में कई बातें ध्यान देने योग्य हैं । एक तो देवताओं की यह सूची जैनधर्म की मान्यताओं की सीमा में संकुचित न रहकर लोक से संगृहीत की गई थी । अतएव इसमें उन अनेक देव-देवियों के नाम आ गये हैं जिनकी पूजा-परम्परा लोक में प्रचलित थी । इसमें एक ओर तो प्रायः वे सब नाम आ गये हैं जिनकी मान्यता मह नामक उत्सवों के रूप में पूर्वकाल से चली आती थी; जैसे - वेस्समण मह, रुद्दमह, सिवमह, नदीमह, बलदेवमह, वासुदेवमह, नागमह, जक्खमह, पव्वतमह, समुद्रमह, चन्द्रमह, आदित्यमह, इन्द्रमह आदि; दूसरे कुछ वैदिक देवता, जैसे- वरुण, सोम, यम; कुछ विशेष रूप से जैन देवता जैसे द्वीपकुमारी, दिशाकुमारी; अग्निदेवता के साथ अग्निघर और नागदेवता के साथ नागघर का उल्लेख विशेष ध्यान देने योग्य है । नागघर या नागभवन या नागस्थान, नागदेवता के मन्दिर थे जिनकी मान्यता कुषाण काल में विशेष रूप से प्रचलित थी । मथुरा के शिलालेखों में नागदेवता और उनके स्थानों का विशेष वर्णन आता है । एक प्रसिद्ध नागभवन राजगृह में मणियार नाग का स्थान था जिसकी खुदाई में मूर्ति और लेख प्राप्त हुए हैं । स्कन्द, विशाख, कुमार और महासेन ये चार भाई कहलाते थे जो आगे चलकर एक में मिल गये और पर्यायवाची रूप में आने लगे, पर हुविष्क के सिक्कों पर एवं काश्यप संहिता में इनका अलग-अलग उल्लेख है, जैसा कि उनमें से तीन का यहाँ भी उल्लेख है । श्री लक्ष्मी की पूजा तो शुंगकाल से बराबर चली आती थी और उसकी अनेक मूर्तियाँ भी पाई गई हैं । किन्तु मेधा और बुद्धि का देवता रूप में उल्लेख यहाँ नया है । मनुष्य योनि के सम्बन्ध में पहले स्त्री, पुरुष और नपुंसक-इन तीन भेदों का विचार किया गया है और फिर पिता, माता आदि सम्बन्धियों की सूची दी है । तदन्तर पक्षी, चतुष्पद, परिसर्प, जलचर, कीट, पतंग, Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001439
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size12 MB
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