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________________ भूमिका अन्य सब लोगों ने अपना मान लिया था), (४) एवं प्रवर गोत्र । इसी प्रसंग में कुछ गोत्रों के नाम भी दिये गये हैं, जैसे-मंडव (मांडव्य), सेट्ठिण, वासेट्ठ, सांडिल्ल (शांडिल्य), कुम्भ, माहकी, कस्सव (काश्यप), गोतम, अग्गिरस, भगव (भार्गव), भागवत, सद्दया, ओयम, हारित, लोकक्खी (लौगाक्षि), पचक्खी, चारायण, पारावण, अग्गिवेस्स (अग्निवेश), मोग्गल्ल (मोद्गल्य), अट्ठिसेण, (आष्टिषेण), पूरिमंस, गद्दभ, वराह, डोहल (काहल), कंडूसी, भागवाती (भागवित्ति), काकुरुडी, कण्ण (कर्ण), मज्झंदीण (माध्यन्दिन), वरक, मूलगोत्र, संख्यागोत्र, कढ (कठ), कलव (कलाप) वालंब (व्यालम्ब), सेतस्सतर (श्वेताश्वतर), तेत्तिरीक (तैत्तिरीय), मज्झरस, बज्झस (संभवत: बाध्व), छन्दोग (छान्दोग्य), मुञ्जायण (मौञ्जायन), कत्थलायण, गहिक, णेरित, बंभच्च, काप्पायण, कप्प, अप्पसत्थभ, सालंकायण, यणाण, आमोसल, साकिज, उपवति, डोभ, थंभायण, जीवंतायण, दढक, धणजाय, संखेण, लोहिच्च, अंतभाग, पियोभाग, संडिल्ल, पव्वयव, आपुरायण, वावदारी, वग्घपद (व्याघ्रपाद), पिल (पैल), देवहच्च, वारिणील, सुघर । इस सूची में स्पष्ट ही प्राचीन ऋषि गोत्रों के साथ साथ बहुत से नये नाम भी हैं जो पाणिनीय परिभाषा के अनुसार गोत्रावयव या लौकिक गोत्र कहे जायेंगे । इस तरह के बांक या अल्ल समाज में हमेशा बनते रहते हैं और उस समय के जो मुख्य अवटंक रहे होंगे उनमें से कुछ के नाम यहाँ आ गए हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों और शास्त्रों के नाम भी आये हैं जैसे वैयाकरण, मीमांसक, छन्दोग, पण्णायिक (प्रज्ञावादी दार्शनिक), ज्योतिष, इतिहास, श्रुतवेद (ऋग्वेद), सामवेद, यजुर्वेद, एकवेद, द्विवेद, त्रिवेद, सव्ववेद (संभवत: चतुर्वेदी), छलंगवी (षडंगवित्), सेणिक, णिरागति, वेदपुष्ट, श्रोत्रिय, अज्झायी (स्वाध्यायी), आचार्य, जावक, णगत्ति, वामपार (पृ० १५०) । ___ छब्बीसवां अध्याय नामों के विषय में है । नाम स्वरादि या व्यंजनादि, अथवा ऊष्मान्त, व्यंजनान्त या स्वरान्त होते थे । कुछ नाम समाक्षर और कुछ विषमाक्षर, कुछ जीवसंसृष्ट और कुछ अजीवसंसृष्ट थे । स्त्रीनाम, पुंनाम, नपुंसक यह विभाग भी नामों का है । अतीत, वर्तमान और अनागत काल के नाम यह भी एक वर्गीकरण है । एक भाषा, दो भाषा या बहुत भाषाओं के शब्दों को मिला कर बने हुए नाम भी हो सकते हैं । और भी नामों के अनेक भेद संभव हैं । जैसे नक्षत्र, ग्रह, तारे, चन्द्र, सूर्य, वीथि या मंडल, दिशा, गगन, उल्का, परिवेश, कूप, उदपान, नदी, सागर, पुष्करिणी, नाग, वरुण, समुद्र, पट्टन, वारिचर, वृक्ष, अन्नपान, पुष्प, फल, देवता, नगर, धातु, सुर, असुर, मनुष्य, चतुष्पद, पक्षी, कीट, कृमि इत्यादि पृथिवी पर जितने भी पदार्थ हैं उन सब के नामों के अनुसार मनुष्यों के नाम पाये जाते हैं । वस्त्र, भूषण, यान, आसन, शयन, पान, भोजन, आवरण, प्रहरण-इनके अनुसार भी नाम रखे जाते हैं । नरकवासी लोक, तिर्यक् योनि में उत्पन्न, मनुष्य, देव, असुर, पिशाच, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, गन्धर्व, नाग, सुपर्ण इत्यादि जो देव योनियाँ हैं उनके अनुसार भी मनुष्यों के नाम रखे जाते हैं । एक, तीन, पाँच, सात, नौ, ग्यारह अक्षरों के नाम होते हैं, जो विषमाक्षर कहलाते हैं । अथवा दो, चार, आठ, दस, बारह अक्षरों के नाम समाक्षर कहलाते हैं । संकर्षण, मदन, शिव, वैष्णव, वरुण, यम, चन्द्र, आदित्य, अग्नि, मरुत्संज्ञक देवों के अनुसार भी मनुष्य नाम होते हैं । मनुष्य नाम पाँच प्रकार के कहे गये हैं-(१) गोत्रनाम, इनके अन्तर्गत गृहपति और द्विजाति गोत्र दो कोटियाँ थीं जिनका उल्लेख ऊपर हो चुका है । (२) अपनाम या अधनाम-जैसे उज्झितक, छड्डितक । इनके अन्तर्गत वे नाम हैं जो हीन या अप्रशस्त अर्थ के सूचक होते हैं । प्रायः जिनके बच्चे जीवित नहीं रहते वे माता-पिता अपने बच्चों के ऐसे नाम रखते हैं । (३) कर्मनाम । (४) शरीर नाम जो प्रशस्त और अप्रशस्त होते हैं, अर्थात् शरीर के अच्छे बुरे लक्षणों के अनुसार रखे जाते हैं; जैसे सण्ड, विकड, खरड, खल्वाट आदि । दोषयुक्त नामों की सूची में खंडसीस, काण, पिल्लक, कुब्ज, वामणक, खंज आदि नाम भी हैं । यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्राकृत भाषा में भी नाम रखे जाते हैं। उसमें प्रशस्त नाम वे हैं जो वर्ण गुण या शरीर गुण के अनुसार हों-जैसे अवदातक और उसे ही प्राकृत भाषा में सेड या सेडिल, ऐसे ही श्याम को प्राकृत भाषा में सामल या सामक और कृष्ण को कालक या कालिक कहा जायगा । ऐसे ही शरीर गुणों के अनुसार सुमुख, सुदंसण, सुरूप, सुजान, सुगत आदि नाम होते हैं । (५) करण नाम वे हैं जो अक्षर संस्कार के विचारसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001439
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size12 MB
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