________________
विषयानुक्रम १७२६-२७ (१८१) बारह निम्न अङ्ग
१२३ १७२८ (१८२-८३) नव गम्भीर और निम्न गम्भीर अङ्ग
१२४ १७२९-३२ (१८४-८९) पन्दरह विषम, चौदह उन्नत, बारह सम, दस उष्ण, १२४
दस शीतल, दस आवुणेय अङ्ग १७३३-३४ (१९०-९१) चौरासी पूर्ण और पिचत्तर तुच्छ अङ्ग
१२४ १७३५-७४ (१९२-२३८) उन्नीस विवर, अविवर आदि अङ्ग १२४-२६
१९२ उन्नीस विवर, उन्नीस अविवर, अट्ठाईस विवृतसंवृत, सात सुकुमार, १९६ चार दारुण, पांच मृदु, चार पत्थीण-प्रस्त्यान, छप्पन श्लक्ष्ण, चौबीस खर, २०१ दस कुटिल, दस ऋजुक, छत्तीस चण्डानत, छ आयत, छ आयतमुद्रित, २०६ बीस दिव्य, चौदह मानुष्य, चौदह तिर्यग्योनिक, दस नैरयिक, २१० पिचत्तर (पंचाणवें) रौद्र, दो सौम्य, बाईस मृदुभाग, दो पौत्रेय, दो कन्येय, चार स्त्रीभाग, दो युवतेय, २१७ छब्बीस दुर्गस्थान, बारह (चौदह) ताम्र, चार रोगमण, छ पूति, २२१ छ चपल, सात अचपल, चार गुह्य, पांच उत्तानाक्३५७न्मस्तक, दस (बारह) तत, दस मत, २२७ बारह (ग्यारह) महंतक, अट्ठाईस शुचि, दश क्लिष्ट, पिचत्तर वर, २३१ पिचत्तर नायक, पिचत्तर अनायक, पचास (अट्ठावन) नीच, पिचत्तर निरर्थक, २३४ पचास
अन्यजन, सोलह अम्बर (अन्तर), ग्यारह शूर, तीन भीरु अंगोंके नाम १७७५-१८१४ (२३९-७०) पचास एक्कादि अङ्गों के नाम
१२६-२७ १८१५-६८ दो सौ सत्तर द्वारों का समुच्चित फलादेश और नववें अध्याय की समाप्ति १२८-२९ १० दसवाँ आगमन अध्याय
१३०-१३५ आगमन विषयक फलादेश पृष्ट १३० पंक्ति ५-७, पं० १७–१८, पृष्ठ १३२ पं० १४, पृष्ठ १३३ पं० ९ में प्राकृत धातुओं का संग्रह है ११ ग्यारहवाँ पृष्ट अध्याय
१३५-१३८ प्रश्नपृच्छा के प्रकार और तदनुसार फलादेश इस अध्याय में अनेकानेक प्रकार के गृह, शालायें और वैभागिक एवं प्रादेशिक स्थानों का संग्रह है १२ बारहवाँ योनि अध्याय
१३८-१४० अंगविद्या द्वारा अनेक प्रकार की मानसिक, व्यावहारिक, जाति विषयक एवं औपाधिक जीवन प्रवृत्तियों के आधार स्वरूप योनियों का फलादेश
१३ तेरहवाँ योनिलक्षण व्याकरणाध्याय १४०-१४४ १४ चौदहवाँ लोमद्वाराध्याय
१४४-१४५ १५ पनरहवाँ समागमद्वाराध्याय
१४५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org