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________________ २६ १४५ १४५ १४५-१४६ १४६ १४६ १४६-१४८ १४८-१४९ १४९ १४९-५० अंगविज्जापइण्णयं १६ सोलहवाँ प्रजाद्वाराध्याय १७ सतरहवाँ आरोग्यद्वाराध्याय १८ अठारहवाँ जीवितद्वाराध्याय १९ उन्सवाँ कर्मद्वाराध्याय २० बीसवाँ वृष्टिद्वाराध्याय २१ इक्कीसवाँ विजयद्वाराध्याय २२ बाईसवाँ प्रशस्ताध्यार' इस अध्याय में अनेक जातीय प्रशस्त नाम, क्रियाएँ, पूजा, उत्सव, स्थान, ऋतु आदि का उल्लेख और तदनुसार फलादेश का कथन है २३ तेईसवाँ अप्रशस्त अध्याय इस अध्याय में अनेक प्राकृत क्रियापदों का संग्रह है २४ चौबीसवाँ जातिविजयाध्याय इस अध्याय में अङ्गविद्या के अनुसार जातिविषयक फलादेश कथन है २५ पच्चीसवाँ गोत्राध्याय अंगविद्या अनुसार गोत्रविषयक फलादेश इस अध्याय में प्राचीन गोत्रों का विपुल उल्लेख है २६ छब्बीसवाँ नामाध्याय इस अध्याय में व्याकरणविभाग, नामविषयक विचार और अंगविद्या अनुसार फलादेश है २७ सत्ताईसवाँ स्थान अध्याय अंगविद्या अनुसार अधिकारविषयक फलादेश इस अध्याय में अनेक प्रकार के अधिकारियों का निर्देश है २८ अट्ठाईसनाँ कर्मयोनि अध्याय अंगविद्या अनुसार कर्म एवं शिल्पविषयक फलादेश इस अध्याय में अनेक प्रकार के कर्म, शिल्प एवं व्यापारों का उल्लेख है २९ उनतीसवाँ नगरविजयाध्याय ३० तीसवाँ आभरणयोनि अध्याय इस अध्याय में प्राचीन विविध आभरण एवं अंगरचना के नामों का उल्लेख है ३१ इकतीसवाँ वस्त्रयोनि अध्याय इस अध्याय में वस्त्र के प्रकारों का उल्लेख है १५०-१५८ १५९ १५०-१६१ १६१-१६२ १६२-१६३ १६३-१६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001439
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size12 MB
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