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________________ ११५ ११५ विषयानुक्रम १५२९-३० (११३) छब्बीस युक्तप्रमाण दीर्घ अंग ११५ १५३१ (११४) सोलह ह्रस्व किंचिदीर्घ अंग १५३२-३७ (११५) सोलह ह्रस्व सोलह हुस्व अंगों के नामों का अतिदेश और समानार्थक १५३८-५२ (११६) दस परिमंडल ११५-१६ दस परिमंडल अंगों के नाम और एकार्थक १५५३-५७ (११७) चौदह करणमंडल ११६ १५५८-६२ (११८) बीस वृत्त ११६ बीस वृत्त अंगों के नाम और समानार्थक १५६३-६८ (११९) बारह पृथु ११६-१७ बारह पृथु अंगोंके नाम और एकार्थक १५६९-७० (१२०) इकतालीस चतुरस्र अंग ११७ १५७१ (१२१) दो व्यस्त्र अंग ११७ १५७२-७६ (१२२) पांच काय अंग ११७ १५७७-८२ (१२३) सत्ताईस तनु और (१२४) इक्कीस परमतनु सत्ताईस तनु और इक्कीस परमतनु अंगोंके नाम और समानार्थक १५८३-८५ (१२५) दो अणु (१२६) एक परमाणु अंग ११७ १५८६-९० (१२७) पांच हृदय और समानार्थक ११८ १५९१-९८ (१२८) पांच ग्रहण पांच ग्रहण अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १५९९-१६०० (१२९) पांच उपग्रहण अंग और एकार्थक १६०१-७ (१३०) छप्पन रमणीय छप्पन रमणीय अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १६०८-१२ (१३१) बारह आकाश अंग और एकार्थक ११८-१९ १६१३-२२ (१३२) छप्पन दहरचल और (१३३) छप्पन दहरस्थावर ११९ छप्पन दहरचल और छप्पन दहरस्थावर अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक १६२३-३० (१३४) दस ईश्वर (१३५) दस अनीश्वर ११९ दस ईश्वर और दस अनीश्वर अंगों के नाम, फलादेश और समानार्थक ११८ ११८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001439
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size12 MB
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