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भूमिका
५७ वत्थुपारिसद (वास्तुपार्षद), आरामपाल (उद्यानपाल), पच्चंतपाल (प्रत्यंत या सीमाप्रदेश का अधिकारी), दूत, सन्धिपाल (सान्धिविग्रहिक), सीसारक्ख (राजा का सबसे निकट का अंगरक्षक), पतिआरक्ख (राजा का आरक्षक), सुंकसालिअ (शौल्कशालिक या चुंगीघर का अधिकारी), रज्जक, पधवावत (पथव्यापृत), आडविक (आटविक), नगराधियक्ख (नगराध्यक्ष), सुसाणवावट ( श्मशान व्यापृत) सूणावावत, चारकपाल (गुप्तचर अधिकारी) फलाधियक्ख, पुप्फाधियक्ख, पुरोहित, आयुधाकारिक, सेणापति, कोट्ठाकारिक (कोष्ठागारिक) ( पृ० १५९) ।
अट्ठाईसवें अध्याय में उस समय के पेशेवर लोगों की लम्बी सूची आई है । आरंभ में पाँच प्रकार के कर्म या पेशे कहे हैं जैसे रायपुरिस (राजपुरुष), ववहार (व्यापार वाणिज्य), कसि गोरक्ख (कृषि और गोरक्षा) कारुकम्म (अपने हाथ से उद्योग धन्धे करने वाले शिल्पी ओर पेशेवर लोग), भतिकम्म ( मजदूरी पेशा ) राजपुरुषों के ये नाम हैं-रायामच्च ( राजामात्य), अस्सवारिक (अश्वाध्यक्ष जैसा उच्च अधिकारी), आसवारिय (घुड़सवार जैसा सामान्य अधिकारी जिसे पउमचरिय ६।८७ में असवार कहा गया है), गायक, अब्भंतरावचर, अब्भाकारिय (अभ्यागारिक), भाण्डागारिय, सीसारक्ख, पडिहारक, सूत, महाणसिक, मज्जघरिय, पाणीयघरिय, हत्थाधियक्ख (हस्त्यध्यक्ष), महामत्त (महामात्र), हत्थिमेंठ, अस्साधियक्ख अस्सारोध, अस्सबन्धक, छागलिक, गोपाल, महिसीपाल, उट्टपाल, मगलुद्धग (मृगलुब्धक), ओरब्धिक (औरभ्रिक), अहिनिप (संभवत: अहितुंडिक या गारुडिक) । राजपुरुषों में विशेष रूप से इनका परिगणन है— अस्सातियक्ख, हत्थाधियक्ख हत्थारोह ( हस्त्यारोह), हत्थिमहामत्तो, गोसंखी (जिसे पाणिनि और महाभारत में गोसंख्य कहा गया है), गजाधिपति, भाण्डागारिक, कोषरक्षक, सव्वाधिकत (सर्वाधिकृत), लेखक (सर्वलिपिओं का ज्ञाता), गणक, पुरोहित, संवच्छर (सांवत्सरिक), दाराधिगत (द्वारपाल, दौवारिक), बलगणक, सेनापति, अब्भागारिक, गणिकाखंसक, वरिसधर, वत्थाधिगत (वस्त्राधिकृत, तोशाखाने का अध्यक्ष), णगरगुत्तिय (नगरगुप्तिक, नगरगुप्ति या पुररक्षा का अधिकारी), दूत, जइणक (जविनक या जंघाकर जो सौ सौ योजन तक संदेश पहुँचाते या पत्रवाहक का काम करते थे), पेसणकारक, पतिहारक, तरपअट्ट (तरप्रवृत्त), णावाधिगत, तित्थपाल, पाणियघरिय, हाणघरिय, सुराघरिय, कट्ठाधिकत (काष्ठाधिकृत ), तणाधिकत (तृणाधिकृत), बीजपाल, ओपसेज्जिक ( औपशय्यिकशय्यापाल, राजा की शय्या का रक्षक ), सीसारक्ख (मुख्य अंगरक्षक), आरामाधिगत नगररक्ख, अब्भागारिय, असोकवणिकापाल, वाणाधिगत, आभरणाधिगत । राज्य के अधिकारियों की इस सूचि के कितने ही नाम पहले भी आ चुके हैं । कुछ नये भी हैं। प्राचीन भारतीय शासन की दृष्टि से यह सामग्री अत्यन्त उपयोगी कही जा सकती है । प्रायः ये ही अधिकारी राजमहलों में और शासन में बहुत बाद तक बने रहे ।
इसके बाद सामान्य पेशों की एक बड़ी सूची दी गई है; जैसे ववहारि (व्यवहारी), उदकवड्डकि ( नाव या जहाज बनाने वाला), मच्छबन्ध, नाविक, बाहुविक (डाँड चलाने वाले), सुवण्णकार, अलित्तकार (आलता बनाने वाला), रत्तरज्जक (लाल रंग की रंगाई का विशेषज्ञ), देवड (देवपटविक्रेता), उण्णवाणिय, सुत्तवाणिय, जतुकार, चित्तकार, (चित्रकार), चित्तवाजी (चित्रवाद्य जानने वाला), तट्ठकार (ठठेरा), सुद्धरजक, लोहकार, सीतपेट्टक (संभवत: दूध दहीं के भांडोंको बरफ में लपेट कर रखने वाला), कुंभकार, मणिकार, संखकार, कंसकार, पट्टकार (रेशमी वस्त्र बनाने वाला) दुस्सिक ( दूष्य नामक वस्त्र बनानेवाले), रजक, कोसेज्ज (कौशेय या रेशमी वस्त्र बुनने वाला), वाग (वल्कल बनाने वाला), ओरब्भिक, महिसघातक, उस्सणिकामत्त (उख पेरने वाले), छत्तकारक, वत्थोपजीवी, फलवाणिय, मूलवाणिय, धान्यवाणिय, ओदनिक, मंसवाणिज्ज, कम्मासवाणिज्ज (कम्मास या घुघरी बेचने वाला), तप्पणवाणिज्ज (जौ आदि के सत्तू बेचने वाला), लोणवाणिज्ज, आपूपिक (हलवाई), खज्जकारक (खाजा बनाने वाला); इससे सूचित होता है कि खाजा नामक मिठाई कुषाण काल में भी बनने लगी थी), पण्णिक ( हरी साग-सब्जी बेचनेवाला), फलवाणियक, सिंगरेवाणिया (सिंगबेर या अदरक बेचने वाला) ।
इसके अनन्तर राजपुरुष और पेशेवर लोगों की मिली-जुली सूची दी गई है, जिनमें से नये नाम ये हैं - छत्तधारक, पसाधक (प्रसाधक, प्रसाधन कर्म करने वाला), हत्थिखंस (एक प्रति के अनुसार हत्थिसंख), अस्सखंस (एक प्रति के अनुसार अस्ससंख; संभवतः यही मूलरूप था जो उच्चारण में वर्णविपर्यय से खंस बन गया), अग्गि उपजीवी (आहिताग्नि), कुसीलक, रंगावचर (रंगमंच पर अभिनय करने वाला), गंधिक, मालाकार, चुण्णिकार
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