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भूमिका
६७ इसके अतिरिक्त कुछ प्रचलित मुद्राओं के नाम भी हैं, जो उस युग का वास्तविक द्रव्य धन था; जैसे काहावण (कार्षापण) और णाणक । काहावण या कार्षापण कई प्रकार के बताये गये हैं । जो पुराने समय से चले आते हुए मौर्य या शुंग काल के चांदी के कार्षापण थे उन्हें इस युग में पुराण कहने लगे थे, जैसा कि अंगविज्जा के महत्त्वपूर्ण उल्लेख से (आदिमूलेसु पुराणे बूया) और कुषाणकालीन पुण्यशाला स्तम्भ लेख से ज्ञात होता है (जिसमें ११०० पुराण मुद्राओं का उल्लेख है)। पृ० ६६ पर भी पुराण नामक कार्षापण का उल्लेख है। पुरानी कार्षापण मुद्राओं के अतिरिक्त नये कार्षापण भी ढाले जाने लगे थे । वे कई प्रकार के थे, जैसे उत्तम काहावण, मज्झिम काहावण, जहण्ण (जघन्य) काहावण । अंगविज्जा के लेखक ने इन तीन प्रकार के कार्षापणों का और विवरण नहीं दिया । किन्तु ज्ञात होता है कि वे क्रमश: सोने, चाँदी और तांबे के सिक्के रहे होंगे, जो उस समय कार्षापण कहलाते थे । सोने के कार्षापण अभी तक प्राप्त नहीं हुए किन्तु पाणिनि सूत्र ४.३.१५३ (जातरूपेभ्यः परिमाणे) पर हाटकं कार्षापणं यह उदाहरण काशिका में आया है । सूत्र ५.२.१२० (रूपादाहत प्रशंसयोर्यप्) के उदाहरणों में रूप्य दीनार, रूप्य केदार और रूप्य कार्षापण-इन तीन सिक्कों के नाम काशिका में आये हैं । ये तीनों सोने के सिक्के ज्ञात होते हैं । अंगविज्जा के लेखक ने मोटे तौर पर सिक्कों के पहले दो विभाग किए-काहावण और णाणक । इनमें से णाणक तो केवल तांबे के सिक्के थे । और उनकी पहचान कुषाणकालीन उन मोटे पैसों से की जा सकती है जो लाखोंकी संख्या में वेमतक्षम, कनिष्क, हुविष्क, वासुदेव आदि सम्राटों ने ढलवाये थे । णाणक का उल्लेख मृच्छकटिक में भी आया है, जहाँ टीकाकार ने उसका पर्याय शिवाङ्क टंक लिखा है । यह नाम भी सूचित करता है कि णाणक कुषाणकालीन मोटे पैसे ही थे, क्योंकि उनमें से अधिकांश पर नन्दीवृष के सहारे खड़े हुए नन्दिकेश्वर शिव की मूर्ति पाई जाती है । णाणक के अन्तर्गत तांबे के और भी छोटे सिक्के उस युग में चालू थे जिन्हें अंगविज्जा में मासक, अर्धमासक, काकणि
और अट्ठा कहा गया है। ये चारों सिक्के पुराने समय के तांबे के कार्षापण से संबंधित थे जिसकी तौल सोलह मासे या अस्सी रत्ती के बराबर होती थी। उसी तौल माप के अनुसार मासक सिक्का पांच रत्ती का, अर्धमासक ढाई रत्ती का, काकणि सवा रत्ती की और अट्ठा या अर्धकाकणि उससे भी आधी तौल की होती थी । इन्हीं चारों में अर्धकाकणि पच्चवर (प्रत्यवर) या सबसे छोटा सिक्का था । कार्षापण सिक्कों को उत्तम, मध्यम और जघन्य इन तीन भेदों में बाँटा गया है । इसकी संगति यह ज्ञात होती है कि उस युग में सोने, चाँदी और तांबे के तीन प्रकार के नये कार्षापण सिक्के चालू हुए थे। इनमें से हाटक कार्षापण का उल्लेख काशिका के आधार पर कह चुके हैं । वे सिक्के वास्तविक थे या केवल गणित अर्थात् हिसाब किताब के लिये प्रयोजनीय थे इसका निश्चय करना संदिग्ध है, क्योंकि सुवर्ण कार्षापण अभी तक प्राप्त नहीं हुए। चाँदी के कार्षापण भी दो प्रकार के थे । एक नये और दूसरे मौर्य शुंग काल के बत्तीस रत्ती वाले पुराण कार्षापण । चांदी के नये कार्षापण कौन से थे इसका निश्चय करना भी कठिन है। संभवतः यूनानी या शक-यवन राजाओं के ढलवाये हुए चांदी के सिक्के नये कार्षापण कहे जाते थे । सिक्कों के विषय में अंगविज्जा की सामग्री अपना विशेष महत्त्व रखती है। पहले की सूची में (पृ. ६६) खतपक और सतेरक इन दो विशिष्ट मुद्राओं के नाम आ भी चुके हैं । मासक सिक्के भी चार प्रकार के कहे गये हैं-सुवर्णमासक, रजतमासक, दीनारमासक और चौथा केवल मासक जो तांबे का था और जिसका संबंध णाणक नामक नये तांबे के सिक्के से था । दीनार मासक की पहचान भी कुछ निश्चय से की जा सकती है, अर्थात् कुषाण युग में जो दीनार नामक सोने का सिक्का चालू किया गया था और जो गुप्त युग तक चालू रहा, उसी के तौल-मान से संबंधित छोटा सोने का सिक्का दीनार मासक कहा जाता रहा होगा । ऐसे सिक्के उस युग में चालू थे यह अंगविज्जा के प्रमाण से सूचित होता है । वास्तविक सिक्कों के जो नमूने मिले हैं उनमें सोने के पूरी तौल के सिक्कों के अष्टमांश भाग तक के छोटे सिक्के कुषाण राजाओं की मुद्राओं में पाये गये हैं (पंजाब संग्रहालय सूची संख्या ३४, ६७, १२३, १३५, २१२, २३७), किन्तु संभावना यह है कि षोडशांश तौल के सिक्के भी बनते थे । रजतमासक से तात्पर्य चांदी के रौप्यमासक से ही था । सुवर्णमासक यह मुद्रा ज्ञात होती है जो अस्सी रत्ती के सुवर्ण कार्षापण के अनुपात से पांच रत्ती तौल की बनाई जाती थी ।
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