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अंगविज्जापइण्णयं
णकूड (संभवत: नगकूट या क्रीड़ापर्वत), उदकगृह, अग्निगृह, भूमिगृह (भोंहरा), विमान, चत्वर, संधि (दो घरों की भीतों के बीच का प्रच्छन्न स्थान), समर ( स्मरगृह या कामदेवगृह), कडिक तोरण ( चटाई या फूँस से बनाया हुआ अस्थायी तोरण), प्राकार, चरिका (प्राकार के पीछे नगर की ओर की सड़क), वेती (संभवतः वेदिका), गयवारी ( गजशाला), संकम (संक्रम या परिखा के ऊपर बनाया हुआ पुल), शयन ( शयनागार), वलभी (मंडपिका), रासी ( कूड़ी), पंसु (धूल), णिद्धमण (पानी का निकास मार्ग, मोरी), णिकूड (निष्कुट या गृहोद्यान), फलिखा (परिखा), पावीर (संभवतः मूल पाठ पाचीर प्राचीर), पेढिका (पेढ़ी या गद्दी ), मोहण गिह (मदनगृह, स्मरशाला), ओसर (अपसरक - कमरे के सामने का दालान, गुजराती ओसरी, हिन्दी ओसारा), संकड़ (निश्छिद्र अल्प अवकाश वाला स्थान), ओसधि गिह, अभ्यन्तर परिचरण (पाठान्तर परिवरण- भीतरी परिवेष्टन - परकोटा), बाहिरी द्वारशाला, गृहद्वार बाहा (गृहद्वार का पार्श्वभाग), उवट्ठाण जालगिह ( वह उपस्थानशाला जहाँ गवाक्ष जाल बने हों; यह प्रायः महल के ऊपरी भाग में बनी होती थी), अच्छणक (आसनगृह या विश्रामस्थान), शिल्पगृह, कर्मगृह, रजतगृह (चांदी से मांडा हुआ विशिष्ट गृह), ओधिगिह (पाठान्तर उवगिह उपगृह), उप्पलगृह (कमलगृह), हिमगृह, आदंस (आदर्शगृह, शीशमहल), तलगिह (भूमिगृह), आगमगिह (संभवत: आस्थायिका या आस्थानशाला), चतुक्कगिह (चौक), रच्छागिह (रक्षागृह), दन्तगिह ( हाथीदांत से मंडित कमरा), कंसगिह (कांसे से मंडित कमरा), पडिकम्मगिह (प्रतिकर्म या धार्मिक कृत्य करने का कमरा), कंकसाला (कंक = विशेष प्रकार का लोहा, उससे बना हुआ कमरा) आतपगिह, पणिय गिह (पण्यगृह), आसण गिह (आस्थानशाला), भोजनगृह, रसोती गिह (रसवतीगृह, रसोई ) हयगृह, रथगृह, गजगृह, पुष्पगृह, द्यूतगृह, पातवगिह (पादपगृह), खलिण गिह ( वह कमरा जहाँ घोड़े का साजसामान रखा जाता है), बंधनगिह ( कारागार) जाणगिह ( यानगृह) ( पृ० १३६) । इस सूची के हिमगृह का विस्तृत वर्णन कादम्बरी में आया है ।
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आती है जिसमें बहुत से नाम तो ये
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कुछ दूर बाद स्थापत्य संबंधी शब्दों की एक लम्बी सूची पुनः ही हैं और कुछ नये हैं, जैसे भग्ग गिह (लिपा पुता घर, देशी भग्ग शब्द लिपा पुता, देशी नाममाला ६।९९), सिंघाडग (शृंगाटक सार्वजनिक चतुष्पथ), रायपथ (राजपथ ), द्वार, क्षेत्र, अट्टालक, उदकपथ, वय (व्रज), वप्प (वप्र ), फलिहा ( परिघ या अर्गला ), पउली (प्रतोली, नगरद्वार) अस्स मोहणक (अश्वशाला ), मंचिका (प्राकार के साथ बने हुए ऊँचे बैठने के स्थान ), सोपान, खम्भ, अभ्यंतर द्वार, बाहरी द्वार, द्वारशाला, चतुरस्सक (चतुष्क), महाणस गिह, जलगिह, रयणगिह ( रत्नगृह, जिसे पहले रयत गिह या रजत गृह कहा है वही संभवतः रत्नगृह था), भांडगृह, ओसहि गिह ( ओषधिगृह), चित्तगिह (चित्रगृह), लतागिह, दगकोट्ठक (उदक कोष्ठक), कोसगिह (कोषगृह), पाणगिह (पानगृह), वत्थगिह (वस्त्रगृह, तोशाखाना), जूतसाला (द्यूतशाला), पाणवगिह (पण्य या व्यवहारशाला), लेवण ( आलेपन या सुगंधशाला), उज्जाणगिह ( उद्यानशाला), आएसणगिह (आदेशनगृह), मंडव (मंडप ), वेसगिह ( वेशगृह, शृंगारस्थान), कोट्ठागार (कोठार), पवा (प्रपाशाला), सेतुकम्म (सेतुकर्म), जणक (संभवतः जाणक = यानक), ण्हाणगिह (स्नानगृह), आतुरगिह, संसरणगिह (स्मृतिगृह), संकशाला ( शुल्कशाला), करणशाला ( अधिष्ठान या सरकारी दफ्तर), परोहड ( घर का पिछवाड़ा) । अन्त में कहा है कि और भी अनेक प्रकार के गृह या स्थान मनुष्यों के भेद से भिन्न भिन्न होते हैं, जिनका परिचय लोक से प्राप्त किया जा सकता है ( पृ० १३५ - १३८ ) ।
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बारहवें अध्याय में अनेक प्रकार की योनियों का वर्णन है। धर्मयोनि का संबंध धार्मिक जीवन और तत्संबंधी आचार-विचारों से है | अर्थयोनि का संबंध अनेक प्रकार के धनागम और अर्थोपार्जन में प्रवृत्त स्त्री-पुरुषों के जीवन से है । कामयोनि का संबन्ध स्त्री-पुरुषों के अनेक प्रकार के कामोपचारों से एवं गन्धमाल्य, स्नानानुलेपन, आभरण आदि की प्रवृत्तियों ओर भोगों से है । सत्त्वों के पारस्परिक संगम और मिथुन भाव को संगमयोनि समझना चाहिए । इसके प्रतिकूल विप्रयोगयोनि वह है जिसमें दोनों प्रेमी अलग अलग रहते हैं। मित्रों के मिलन और आनंदमय जीवन को मित्रयोनि समझना चाहिए । जहाँ आपस में अमैत्री, कलह आदि हों और दो व्यक्ति अहि-नकुलं भाव से रहें वह विवादयोनि है | जहाँ ग्राम, नगर निगम, जनपद, पत्तन, निवेश, स्कन्धावार, अटवी, पर्वत आदि प्रदेशों में मनुष्य
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