SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका चुण्णक, अंगराग, उस्सिघण (सुगन्धि सूंघना), मक्खण (म्रक्षण-मालिश), अब्भंगण, उच्छंदण (संभवतः आच्छादन), उब्बट्टण (उद्वर्तन-उबटन), पघंस (प्रघर्षण द्वारा तैयार सामग्री), माल्य, सुरभिजोगसंविधाणक (विविध गन्ध युक्ति), आभरण और विविध भूषणों की संजोयणा (अर्थात् सँजोना) एवं अलङ्कारों का मण्डन-इनके आधार पर प्रवासी के आगमन की आशा होती थी। इसी प्रकार शिबिका, रथ, यान, जुग्ग, कट्ठमुह, गिल्ली, संदण (स्यंदन) सकट (शकट), शकटी और विविध वाहन, हय, गज, बलीवर्द, करभ, अश्वतर, खर, अजा, एडक, नर, मरुत, हरित, वृक्ष, प्रासाद, विमान, शयन आदि पर अधिरोहण, ध्वजा, तोरण, गोपुर, अट्टालक, पताका समारोहण, उच्छ्यण के आधार पर भी विचार किया जाता था । दूध, दधि, घी, नवनीत, तेल, गुड़, लवण, मधु आदि दिखाई दें तो आगमन होने की आशा थी। ऐसे ही पृथिवी, उदक, अग्नि, वायु, पुष्प, धान्य, रत्न आदि से भी आगमन सूचित होता था । अंकुर, प्ररोह, पत्र, किसलय, प्रवाल, तृण, काष्ठ एवं ओखली, पिठर, दविउलंक (सम्भवतः द्रव का उदंचन) रस, दर्वी, छत्र, उपानह, पाउगा (पादुका), उब्भुभंड (ऊर्ध्व भाँड सम्भवतः कमण्डलु), उभिखण (अज्ञात), फणख (कंघा), पसाणग (= प्रसाधनक), कुव्वट्ठ (सम्भवतः कुप्यपट्ट, लंगोट), वणपेलिका (= वर्णपेटिका-शृङ्गारदानी), विवट्टणय-अंजणी (सुरमेदानी और सलाई), आदंसग (दर्पण), सरगपतिभोयण (मद्यआहार), वाधुज्जोपकरण (वाधुक्य = विवाह; विवाह की सामग्री), माल्य-इन पदार्थों के आधार पर आगमन की सम्भावना सूचित होती थी। फिर इसी प्रसंग में यह बताया गया है कि कौन-सा लक्षण होने पर किस वस्तु का प्रवेश या आगमन होता है । जैसे, चतुरस्त्र चित्र सारवंत वस्तु दिखाई पड़े तो कार्षापण; रक्त, पीत सारवान वस्तु के दर्शन से सुवर्ण; श्वेत सारवंत से चाँदी, शुक्ल शीतल से मुक्ता; घन सारवंत और प्रभायुक्त वस्तु से मणि का आगमन सूचित होता है। ऐसे ही नाना भाँति की स्त्रियों के आगमन के निमित्त बताये गये हैं(पृ० १९३-४) । ४६ वें पवेसण अध्याय में गृहप्रवेश सम्बन्धी शुभाशुभ का विचार किया गया है। अंगचिन्तक को उचित है कि घर में प्रवेश करते समय जो शुभ-अशुभ वस्तु दिखाई पड़ें उनके आधार पर फल का कथन करे । जैसे-बलीवर्द, अश्व, ऊष्ट्र, गर्दभ, शुक, मदनशलाका या मैना, कपि, मोर ये द्वारकोष्ठक या अलिन्द में दिखाई पड़ें तो शुभ समझ कर घर में प्रवेश करना चाहिए । ब्रह्मस्थल (सम्भवत: देवस्थान-पूजास्थान) में, अरंजर या जहाँ जल का बड़ा पात्र रखा जाता हो, उव्वर (धर्मस्थान या जहाँ धूल या भट्ठी हो), उपस्थान शाला में बैठने पर, उलूखलशाला में या कपाट या द्वार के कोने में, आसन दिये जाने पर और अंजलिकर्म द्वारा स्वागत किये जाने पर और ऊपर महानस या रसोई घर में, या मकान के णिक्कुड अर्थात् उद्यान प्रदेश में यदि अङ्गविद्याचार्य वस्तुओं को अस्त-व्यस्त या टूटी-फूटी या गिरी-पड़ी देखे तो बाहर से सम्बन्ध रखनेवाली वस्तुओं की हानि बतानी चाहिए । रसोई घर में कंबा (करछुल या दर्वी) को गिरी पड़ी देखे और मल्लक या मिट्टी के शराव आदि को फैले हुए (ओसरित = आकीर्ण) देखें तो कुलभङ्ग का फल कहना चाहिए, अथवा अपने दास कर्मकरों से कष्ट या अर्थों की अप्राप्ति कहनी चाहिए । दधि, मङ्गल, पुष्प, फल, अक्षत, तंडुल आदि से वृद्धि का फल बताना चाहिए । तुष, पंसु, अङ्गार, भग्न वृक्ष से हानि और कुलभंग सूचित होता है । लकड़ी का रोगन उखड़ गया हो और संधि या जोड़ यदि ढीले हों तो कुटुम्ब की हानि और अर्थ की अस्थिरता समझनी चाहिए । यदि द्वार की सन्धि शिथिल हो और उसकी देहली-सिरदल (उत्तरंबर = उतरंगा; गुजराती में देहली या नीचे की लकड़ी को अभी तक उम्बर कहते हैं) भग्न हो तो इष्ट वस्तु को हानि होगी । यदि द्वारकपाट खुला हुआ हो तो दुःख से अर्जित धन चला जाता है । द्वार के नीचे की देहली और ऊपर का उत्तरंगा (अधरुत्तरुम्मिर) टूटे या निकले हुए हों तो घर में क्लेश होगा । तिल, वेल्लव (वेलु या बांस) और वाक (छाल) ये कोठे में रक्खे हुए जब खराब हो जाय या कीड़े दिखाई पड़ें तो व्याधि समझनी चाहिए । कोठे में बांधा हुआ एलकभेड़ा, अश्व, पक्षी, यदि कुछ विपरीत निमित्त प्रकट करें तो उससे भी हानि सूचित होती है। यदि घर के भीतर बालक धरती में लोटते हुए, मूत्र, पुरीष ये सब दिखाई पड़े तो हानि, और इसके विपरीत यदि वे अलंकृत दिखाई पड़ें तो वृद्धि जाननी चाहिए । आंगन में लगे हुए पुष्प और फलों को आंगन के भीतर लाया जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001439
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy