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अंगविज्जापइण्णयं तस्य प्रशस्याञ्जनि मुक्तमाया जाया रमाईरित नामधेया । एवं परीवारविराजमानो मानोज्झितो राजति देवराजः ॥ १४ ॥ अनेन जैनागमभक्तिभाजा राजादिमान्येन धनीश्वरेण । वस्वग्निबाणक्षितिमानवर्षे १५३८ हर्षेण देवाभिधसाधुनाऽत्र ॥ १५ ॥ श्रीमत्तपागणेन्द्र श्रीलक्ष्मीसागराह्वसूरीणां । श्रीसोमजयगुरूणामुपदेशाल्लेषितः कोशः ॥ १६ ।। युग्मम् ॥ चित्कोशचिन्ताकरणे सुधीरैः परोपकारप्रथनप्रवीणैः । गणीश्वरैः श्रीजयमंदिराद्वैर्भक्त्या भृशोपक्रम एष चक्रे ॥ १७ ॥ विबुधैर्वाच्यमानोऽसौ शोध्यमानः सुबुद्धिभिः । ज्ञानकोशश्चिरंजीयादाचंद्राकै जगत्त्रये ॥ १८ ॥
॥ इति प्रशस्तिः समाप्ता ॥ छ । ५ मो० प्रति-यह प्रति पाटण श्रीहेमचन्द्राचार्य जैनज्ञानमंदिरस्थ मोंका मोदीके भण्डार की है। भण्डार में प्रति का नम्बर १००८२ है और इसकी पत्रसंख्या १२७ है । पत्र के प्रतिपृष्ठ में १७ पंक्तियाँ और प्रतिपंक्ति ६२ से ६६ अक्षर लिखे गये हैं। प्रति की लम्बाई-चौड़ाई १३॥ x ५। इंच की है । प्रति की लिपि अच्छी है। शुद्धिकी दृष्टि से प्रति बहुत ही अशुद्ध है, एवं स्थान स्थान पर पाठ और पाठसंदर्भ गलित हैं। प्रति मोदी के भंडार की होने से इसका संकेत मो० रक्खा गया है। इसका समाप्ति भाग सं० प्रति के समान है, सिर्फ लेखनकाल में फर्क है । जो इस प्रकार है-श्रीअंगविद्या पुस्तकं सम्पूर्णा ॥ ० ॥ ग्रंथानं ९००० ॥ छ । संवत् १५७४ वरषे मार्गशीर्ष शुद्धि १. शनौ लिषापितम् ॥ छ ।
६ पु० प्रति—यह प्रति मेरे निजी संग्रह की है। संग्रह में इसका क्रमाङ्क १८ है। इसकी पत्रसंख्या १३२ है। पत्र के प्रतिपृष्ठ में १७ पंक्तियाँ हैं और प्रतिपंक्ति ५८ से ६६ अक्षर हैं । प्रति की लम्बाई-चौड़ाई १३॥ x ५। इंच है । लिपि सुन्दर है । इसकी स्थिति जीर्णप्राय है और उद्देहिका ने प्रति के सभी पत्रोंको छिद्रान्वित किया है, फिर भी प्रति के अक्षरों को पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं है । शुद्धि की अपेक्षा प्रति अति अशुद्ध है और स्थानस्थान में पाठ व पाठसंदर्भ गलित हैं। प्रति मेरे संग्रह की होने से मेरे नाम के अनुरूप इसकी पु० संज्ञा रक्खी गई है। इसके अन्त की पुष्पिका सं० प्रति के समान ही है, सिर्फ लेखनसंवत् में अन्तर है
संवत् १५७३ आषाढादि ७४ प्रवर्त्तमाने मार्गशीर वदि १ रवी लष्यतं ॥ छ ।
७ सि० प्रति-यह प्रति पूज्यपाद शान्तमूर्ति चरित्रचूडामणि श्रीमणिविजयजी दादाजीके शिष्यरत्न महातपस्वी चिरंजीवी महाराज श्री १००८ श्रीविजयसिद्धिसूरीश्वरजी महाराज के अहमदाबाद-विद्याशालास्थित ज्ञान इसकी पत्रसंख्या १५३ है। पत्र के प्रतिपृष्ठ में १४ पंक्तियाँ और प्रतिपंक्ति ६६ अक्षर लिखित हैं । लिपि सुन्दर है
और प्रति नई लिखी होने से इसकी स्थिति भी अच्छी है । शुद्धि की दृष्टि से प्रति बहुत ही अशुद्ध और जगह जगह पर इस में पाठ एवं पाठसंदर्भ छूट गये हैं। प्रति श्रीविजयसिद्धिसूरीश्वरजी महाराजश्री के संग्रह की होने से इसकी संज्ञा मैंने सि० रक्खी है। इसके अन्त में सं० प्रति के समान ही पुष्पिका है। सिर्फ लेखनसंवत् में अन्तर है
लि० भावसार भाईलाल जमनादास गाम वसोना संवत् १९५८ ना आषाढ शुदि १३ दिने पंन्यास श्रीसिद्धविजयजी ने काजे लिखी सम्पूर्ण करी छे ॥ छ ॥ श्री ॥ छ ॥: ॥: ॥ छ ।
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