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________________ १४ अंगविज्जापट्टण्णयं ग्रन्थ में अब भी काफी त्रुटियाँ वर्त्तमान हैं । जैसे कि ग्रन्थ कई जगह खंडित है, अङ्ग आदि की संख्या सब जगह बराबर नहीं मिलती और सम-विषम भी है, इसमें निर्दिष्ट पदार्थोंकी पहचान भी बराबर नहीं होती है, अङ्गशास्त्र के साथ सम्बन्ध रखनेवाले पदार्थोंका फलादेशमें क्या और कैसा उपयोग है ? इसकी परिभाषा का कोई पता नहीं है । इस तरह इस ग्रन्थका वास्तविक अनुवाद करना हो तो इस ग्रन्थका साद्यन्त अध्ययन, आनुषङ्गिक ग्रन्थोंका अवलोकन और एतद्विषयक परिभाषा का ज्ञान होना नितान्त आवश्यक है । आभार स्वीकार इस ग्रन्थ के संशोधनके लिये जिन महानुभावोंने अपने ज्ञानभंडारोंकी महामूल्य हाथपोथियाँ भेजकर और चिरकाल तक धीरज रखकर साहाय्य किया है उनका धन्यवाद पुरःसर मैं आभारी हूँ । साथ साथ पाटली निवासी पंडित भाई श्री नगीनदास केशलशी शाह, जिन्हों ने इस ग्रन्थ की प्राचीन प्रतियों के आधार पर विश्वस्त नकल ( प्रेसकोपी) करना, कई प्रतियों के विश्वस्त पाठभेद लेना, एवं प्रूफपत्रों को प्रेसकापी और हाथपोथियों के साथ मिलाना आदि द्वारा काफी साहाय्य किया है, उनको मैं अपने हृदय से कभी नहीं भूल सकता हूँ । इसका साहाय्य मेरेको आदि से अन्त तक रहा है, जिसकी याद मेरे अन्तःकरण में जीवनभर रहेगी । अन्त में मेरा इतना ही निवेदन है कि इस ग्रन्थ के संशोधनादि के लिये मैंने काफी परिश्रम किया है, फिर भी इस ग्रन्थ में त्रुटियाँ रह ही गई हैं, जिनका परिमार्जन विद्वद्वर्ग करें और जिन त्रुटियोंका उन्हें पता चले उनकी सूचना मेरे को देने की कृपा करें । जैन उपाश्रय लूणसावाडा- अहमदाबाद Jain Education International For Private & Personal Use Only मुनि पुण्यविजय www.jainelibrary.org
SR No.001439
Book TitleAngavijja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages470
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Jyotish, & agam_anykaalin
File Size12 MB
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