________________
पद्य
१-३६
१-५४
॥ जयन्तु वीतरागाः ॥
अंगविज्जापइण्णय - विषयानुक्रम
१ - २८
१-९
१० - २०
२१-३६
Jain Education International
विषय
१ पहला अंगोत्पत्ति अध्याय
अंगविद्या की उत्पत्ति
अंगविद्या का स्वरूप
अंगविद्या प्रकीर्णक ग्रन्थ के अध्यायों के नाम
२ दूसरा निजसंस्तव अध्याय
३ तीसरा शिष्योपख्यापन अध्याय
अंगविद्याशास्त्र को पढ़नेवाले शिष्यों की योग्यायोग्यता, उनके गुण-दोष और अंगशास्त्र पठन के योग्य और अयोग्य स्थान- जगह का वर्णन
४ चौथा अंगस्तव अध्याय
अंगविद्या का माहात्म्य
५ पाँचवाँ मणिस्तव अध्याय
अंगविद्या के पारंगत मणिस्वरूप महापुरुषों की स्तुति
६ छट्टा आधारण अध्याय
अंगविद्याशास्त्रज्ञ गंभीर होकर प्रश्न करनेवाले के प्रश्न का श्रवण एवं अवधारण करे- इस विधिका वर्णन |
७ सातवाँ व्याकरणोपदेश अध्याय अंगविद्याशास्त्रज्ञ गंभीर होकर फलादेश करे इस विधि का कथन ।
८ आठवाँ भूमीकर्म अध्याय
-
१
१-२
२-३
(२) पद्यबंध संग्रहणीपटल
भूमीकर्म अध्याय के पटलों में वर्णनीय विषयों का निर्देश । (३) भूमीकर्म सत्त्वसमुद्देश पटल भूमीकर्म अध्याय के ज्ञान में ध्यान रखने योग्य वस्तु का निर्देश ।
For Private Personal Use Only
(१) गद्यबंध संग्रहणीपटल
अंगविद्या की भूमी को साध्य करने की विद्यायें एवं भूमीकर्म अध्याय के पटलोंमें वर्णनीय विषयों का निर्देश ।
१-१८
पत्र
१-३
३
३-५
५-६
६
७
७
८-५६
८-९
९-१०
१०-११
www.jainelibrary.org