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जीव तत्त्व का स्वरूप
25 अर्थ-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग जिसमें हो, उसे जीव कहते हैं। ये सत्ता की अपेक्षा सब जीवों में है, परन्तु संसारी जीवों में घाति कर्मों के बंध से इन गुणों का घात होता है और कर्मों के क्षयोपशम के अनुसार इनका न्यूनाधिक प्रकटीकरण होता है। इनका विशेष वर्णन लेखक की ‘बंध तत्त्व' पुस्तक में पठनीय है।
जैनदर्शन में वर्णित एकेन्द्रिय जीवों के पाँच भेद प्रस्तुत पुस्तक के लेखक ने 'विज्ञान के आलोक में पृष्ठ 9 से 142 तक जीव तत्त्व का विवेचन किया है। आत्मा के अस्तित्व का विवेचन पृष्ठ 9 से 13 तक किया है। इसके पश्चात् 1. पृथ्वीकाय, 2. अप्काय, 3. तेउकाय, 4. वायुकाय और 5. वनस्पतिकाय का विवेचन किया है। लेखक ने इनमें से प्रथम चार भेदों की सजीवता को प्रमाणित करने का विवेचन (पृष्ठ 14 से 35) बीस से अधिक पृष्ठों में किया है। इसके पश्चात् वनस्पतिकाय की सजीवता को विवेचन है।
वनस्पतियाँ हलते-चलते जीव-जन्तुओं, कीट-पतंगों, पशु-पक्षियों व मानवों का आहार भी करती हैं। वनस्पति-विज्ञान में ऐसी वनस्पतियों को मांसाहारी वनस्पतियाँ कहा गया है। इनके विस्तृत वर्णन से वनस्पतिशास्त्र भरे पड़े हैं।
मांसाहारी-वनस्पतियाँ-इनके सर्वाधिक जंगल आस्ट्रेलिया में हैं। इन जंगलों को पार करते हुए मनुष्य इन विचित्र वृक्षों को देखने के लिए जैसे ही इनके पास जाते हैं, इन वृक्षों की डालियाँ और जटाएँ इन्हें अपनी लपेट में जकड़ लेती हैं, जिनसे छुटकारा पाना सहज कार्य नहीं है।
तस्मानिया के पश्चिमी वनों में ‘होरिजिंटल स्क्रब' नामक वृक्ष होता है। यह आगन्तुक पशु-पक्षी व मनुष्य को अपने क्रूर पंजों का शिकार बना