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3. अजीव तत्त्व का स्वरूप
जो चेतना गुण से रहित हो, सड़न, गलन, विध्वसंन स्वभाव वाला हो, वर्ण, बन्ध, रस, स्पर्श से युक्त हो, ज्ञान-दर्शन उपयोग से हीन हो, जड़त्व युक्त हो, जीवत्व से विहीन हो, उसे अजीव कहते हैं। अजीव के पाँच भेव
धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गल जंतवो। एस लोगो त्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदंसीहि।।
-उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 28, गाथा 7 अर्थात्-धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल, ये पाँच अजीव द्रव्य तथा एक जीव द्रव्य को मिलाकर कुल छह द्रव्यरूप यह 'लोक' है। अजीव के भेद
धम्माऽधम्माऽऽगासा, तिअतिअ भेया तहेव अद्धाय।
खंध, देस पएस परमाणु अजीव चउदसहा।
अर्थात् धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, इन तीनों के स्कन्ध, देश और प्रदेश रूप से 9 भेद होते हैं। काल का एक भेद है एवं पुद्गल के स्कंध, देश, प्रदेश और परमाणु, ये चार भेद हैं। ये सब मिलकर अजीव के 14 भेद हैं।