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वनस्पति में संवेदनशीलता पर भूमि की ओर मुँह किए पाँच-पाँच इंच के लम्बे व कठोर काँटे रखते हैं। इन काँटों की संख्या इतनी अधिक होती है कि तना व डालें पूरी तरह इनसे ढकी रहती हैं। इन्हें किसी प्रकार की हानि पहुँचाने का प्रयत्न करने वाले को इनके शूल जैसे काँटों का सामना करना होता है। ये काँटों से अपनी सुरक्षा करते हैं।
पौधे केवल अपनी रक्षा के लिए ही नहीं अपितु अपनी संतान की रक्षा के लिए भी प्रयत्न करते देखे जाते हैं। ‘लिनेरिया' इसी प्रकार का पौधा है। यह पथरीली चट्टानों में उगता व पनपता है। चट्टानों के बीच कहीं छोटा-सा छेद अथवा खोखली-सी जगह मिलते ही वह उसमें अपनी जड़े जमा लेता है और बाहर निकल कर चट्टान की दीवार पर अपना शरीर झुकाये स्वयं को जीवित रखता है। पर मात्र जीवित रहने से ही उसका स्वभाव सिद्ध कार्य समाप्त नहीं हो जाता। अन्यान्य पौधों की भाँति उसके लिए भी यह आवश्यक है कि वंश-वृद्धि करे और सीधी खड़ी पथरीली दीवार पर वंश-वृद्धि करना कोई आसान काम नहीं हैं। लिनेरिया अपने इस कार्य को आश्चर्यजनक ढंग से सम्पन्न करता है। इसके लिए सबसे पहले मधु-मक्खियों की बाट जोहनी पड़ती है। मधुमक्खियाँ इसके फूलों का पराग स्त्रीकेसर के साथ मिलाकर गर्भाधान करने में समर्थ होती हैं। मधुमक्खियों को आकृष्ट करने के लिए इसे अपने फूलों की बहार दिखलानी पड़ती है और मधुमक्खियों की प्रतीक्षा में चट्टान की दीवार से फूल कहीं सड़ न जायें, यह सोचकर लिनेरिया अपने फूलों को यथासंभव दीवार से अलग रखता है। देखा गया है कि लिनेरिया की जो शाखा दीवार से दूर होती है, उसी पर अधिकतर पुष्प खिलते हैं। बीज तैयार हो जाने पर पौधे के सामने यह समस्या आ जाती है कि वह उन बीजों को कहाँ डाले, क्योंकि