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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य दो सर्वथा भिन्न समझे जाते थे। परंतु कुछ समय पूर्व विज्ञान को अपनी इस मान्यता को छोड़ना पड़ा। वर्तमान युग के महान् विज्ञानवेत्ता आइंस्टीन ने गणितीय विधियों से यह सिद्ध किया कि पदार्थ कुछ नहीं ऊर्जा या शक्ति है और ऊर्जा कुछ नहीं पदार्थ है। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि प्रकाश को पदार्थ रूप में बदला जा सकता है। हम जानते हैं कि प्रकाश पदार्थ नहीं है, शक्ति (Energy) है। पर जब शक्ति को पदार्थ रूप में बदला जा सकता है तो पदार्थ भी शक्ति में रूपान्तरित होगा। यह तो पहले ही जान लिया गया था कि एक शक्ति को दूसरी शक्ति के रूप में बदला जा सकता है, जैसे विद्युत् शक्ति को बल्ब में विद्युत् निरोधक तंतु (Resistentwire) की सहायता से प्रकाश-शक्ति में बदल कर, उसी विद्युत् निरोधक तन्तु की सहायता से विद्युत् को ताप शक्ति में बदलकर
और उसी विद्युत् धारा को लोहे पर लपेटे तार में से प्रवाहित करके चुम्बकीय शक्ति में बदलकर। पर यह शक्ति के पदार्थ रूप में बदलने का सिद्धांत, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
ऊर्जा का नाश नहीं होता, उसकी शक्लें बनती और बदलती रहती हैं। इसके रूप और नाम भी भिन्न होते हैं किंतु वह होती एक ही है। यह नष्ट नहीं हुई, केवल उसने शक्लें बदल ली, यह ऊर्जा के परीक्षण का सिद्धांत है।
रासायनिक सारूप्य के अभिव्यंजक समीकरण से भी स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार एक ओर होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया समान रूप से दूसरी ओर भी होने लगती है और किस प्रकार दोनों और रासायनिक पदार्थ समान होते हैं, उदाहरण के लिए यह समीकरण लें zno
1. कल्याण, अप्रैल 1963, पृष्ठ 840